दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 3

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल को जासूसी का शौक था. पुरानी कोठी में रहने वाले अजय के कत्ल और उन के अंतिम समय में लिखे कोड में उन्हें रहस्य दिखा सो वे इस हत्या के केस को सुलझाने को उत्सुक हुए और मामू के साथ घटनास्थल पर गए. हत्या वाली जगह पहुंच उन्होंने लाश का मुआयना किया और अजय द्वारा लिखे कोड को पढ़ने की कोशिश के साथ उस का फोटो भी लिया.

उन्हें यहां नकली दाढ़ीमूंछ और भौंहें मिलीं. एक ओर अजय की पत्नी यास्मिन बेसुध रोए जा रही थीं. उन्हें पता चला कि अजय एक हफ्ते से लापता थे और वे नकली बाल लगा कर वहीं घूमते रहते थे.

इंस्पैक्टर रमेश से उन्हें यह भी पता चला कि लाश के पास एक मोबाइल मिला है, इस से उन का उत्साह बढ़ा पर जब पता चला कि मोबाइल से किसी फोन नंबर पर कौंटैक्ट नहीं हुआ तो वे निराश हुए. वहां उन्हें बड़े साइज के जूतों के धूमिल से निशान भी मिले जिस से उन्हें यकीन हो गया कि अजय का कत्ल ही हुआ है. फिर वे वापस आ गए. दो आंखें उन की हर हरकत पर नजर रखे थीं.

पूरे रास्ते फैजल बेचैनी से बारबार घड़ी देखता रहा. घर पहुंचते ही वह जुनैद से एक कागज और पैन ले कर तुरंत अपने कमरे में घुस गया. फिर आधे घंटे बाद बाहर हौल में जहां सब बैठे हुए कत्ल के बारे में ही बात कर रहे थे, आया  और बोला, ‘‘अजय मरते वक्त जो मैसेज छोड़ गए हैं, उस का मतलब मुझे पता चल गया है.’’ सब ऐसे हैरान हुए मानो आसपास कोई विस्फोट हुआ हो.

‘‘क्या  तुम ने पता कैसे लगाया ’’

‘‘जूलियस सीजर की मदद से,’’ शरारती मुसकान बिखेरते हुए फैजल ने जवाब दिया.

‘‘जूलियस सीजर  तुम्हारा मतलब है, वह रोम का राजा  पागल हो गए हो क्या  वह कैसे तुम्हारी मदद करेगा ’’

‘‘अरे भई, शांत हो जाइए आप सब. मैं अभी सारी बात आप को समझाता हूं. बात ऐसी है कि जब मैं ने पहली बार अजय का मैसेज पढ़ा था, मैं तभी समझ गया था कि यह कोई अनापशनाप बकवास नहीं, बल्कि एक कोड है और जरूर अजय कोई महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहते थे वरना उन्हें कोड इस्तेमाल करने की क्या जरूरत थी. वहां मैं ने इस बात का जिक्र इसलिए नहीं किया, क्योंकि मैं पहले उसे डीकोड कर के देखना चाहता था कि कहीं मेरा शक गलत तो नहीं है. इसीलिए मैं अपने फोन में उस का फोटो खींच लाया था और आते ही उसे सौल्व करने में जुट गया.

‘‘मेरा शक बिलकुल सही निकला. यह वाकई एक कोड है, जिसे सीजर साइफर कहते हैं. रोमन राजा जूलियस सीजर का नाम तो आप ने सुना ही है. वह अपने गुप्त संदेश भेजने के लिए इस कोड का प्रयोग करता था. उसी के नाम पर इस का नाम रखा गया है. इस में जो भी शब्द आप को लिखना होता है, उस के हर अक्षर को एक फिक्स नंबर तक आगे या पीछे खिसका कर लिख दिया जाता है.

‘‘मैं एक उदाहरण दे कर समझाता हूं. अंगरेजी अल्फाबेट में 26 लैटर होते हैं. मान लीजिए मुझे लिखना है रूह्वह्म्स्रद्गह्म्.  इसे लिखने के लिए मैं ने कोड सोचा 2 प्लेस आगे, तो इस का मतलब होगा कि  रूह्वह्म्स्रद्गह्म् शब्द के सारे लैटर्स को मैं 2-2 प्लेस आगे खिसका कर लिखूंगा यानी रू की जगह श, ह्व की जगह ङ्ख, क्त्र की जगह ञ्ज तो इस तरह मेरा नया शब्द बन जाएगा हृङ्खञ्जस्नत्रञ्ज. इसे हम कहेंगे 2 का राइट शिफ्ट, क्योंकि हम ने लैटर्स को राइट की तरफ खिसकाया है. अगर मैं 8 प्लेस का लैफ्ट शिफ्ट करता हूं, तो मेरा शब्द बन जाएगा  श्वरूछ्वङ्कङ्खछ्व. इन बेतरतीब लिखे अक्षरों को देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह वास्तव में रूह्वह्म्स्रद्गह्म् लिखा है.

‘‘अब आते हैं अजय के मैसेज पर. मरते वक्त उन का कोड लैंग्वेज यूज करने का सीधा अर्थ यह है कि वे कोई साधारण इंसान नहीं थे, बल्कि कोडिंग के ऐक्सपर्ट थे और कोई बहुत इंपोर्टैंट बात बता कर जाना चाहते थे. पहले उन का लापता हो जाना, फिर भेस बदल कर यहीं गांव में ही रहना, संदिग्ध हालात में उन की मौत और अब यह संदेश. ये सब बातें किसी गहरे राज की ओर संकेत कर रही हैं.’’

‘‘तुम तो जीनियस निकले फैजल,’’ प्रशंसा भरी नजरों से उसे देखते हुए साहिल बोला, ‘‘मुझे यह तो पता था कि तुम्हें लौजिकल पजल्स और कोड वगैरा हल करने का शौक है, लेकिन तुम इतने ऐक्सपर्ट हो, यह मुझे आज पता चला. अच्छा, अब जल्दी से बताओ कि अजय ने लिखा क्या है ’’

‘‘यह लो, खुद ही देख लो अजय ने 5 का राइट शिफ्ट यूज किया है और इस तरह उन के लिखे कोड ह्नह्लह्लश्च द्दद्भरूहृह्यद्य ङ्घद्वद्भ श्चस्ठ्ठ्नद्भङ्ग का अर्थ बना यह,’’ कहते हुए फैजल ने कागज दिखाया.

सभी उत्सुकता से उस कागज के टुकड़े पर देखने लगे. उस पर लिखा था,

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. उस ने कहीं चाकू रखे हैं, जिन के पीछे सारा राज छिपा है. अब हमें बस, उन चाकुओं को ढूंढ़ना है और केस सौल्व.’’

‘‘लेकिन ये चाकू हमें मिलेंगे कहां ’’

‘‘सब से पहले तो उसी अस्तबल में देखते हैं. वहां नहीं मिले तो अजय के घर पर तो जरूर मिल जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम जल्दी से खाना खा कर गाड़ी और ड्राइवर के साथ पुलिस स्टेशन चले जाओ. वहां से इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर ही आगे जाना. अकेले वहां जाना ठीक नहीं होगा. मुझे क्लिनिक में कुछ काम है, मैं वहां जा रहा हूं. इंस्पैक्टर को भी मैं फोन कर के सारी बात बता देता हूं.’’

इंस्पैक्टर रमेश को जब कोड सौल्व होने की बात पता चली, तो खुशी से उन की बाछें खिल गईं, उस के कैरियर का यह पहला कत्ल का केस था और अगर यह इतना जल्दी सुलझ गया तो पूरे पुलिस डिपार्टमैंट में उस की तो धाक जम जाएगी. हो सकता है प्रमोशन भी मिल जाए. ‘ये शहरी लड़के तो बड़े काम के निकले,’ उस ने मन ही मन सोचा और बेसब्री से उन का इंतजार करने लगा.

अस्तबल में पहुंच कर सब ने वहां का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. वहां से सब लोग अजय के घर गए. उन की पत्नी को जब सारी बात पता चली, तो उन की सूनी आंखों में भी एक उम्मीद की किरण जगमगा उठी.

‘‘अजय तो खैर अब कभी वापस नहीं आ सकते, लेकिन अगर उन का हत्यारा पकड़ा गया तो मेरे तड़पते दिल को सुकून जरूर मिल जाएगा. चलिए, चाकू ढूंढ़ने में मैं भी आप की मदद करती हूं,’’ कहते हुए उन्होंने कौंस्टेबल व इंस्पैक्टर के साथ घर के कोनेकोने की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

साहिल, फैजल और अजय की बीवी यास्मिन ने किचन, बाथरूम, सारे बैडरूम्स, यहां तक कि हर अलमारी को भी पूरा खंगाल दिया, लेकिन कुछ नहीं मिला.

तभी अचानक यास्मिन को कुछ याद आया, ‘‘हो सकता है कि ये चाकू दुकान में रखे हों ’’ अपने घर से कुछ ही दूरी पर अजय ने एक दुकान खोल रखी थी.

‘‘अरे हां, दुकान के बारे में तो मैं भूल ही गया था. पक्का ये चाकू हमें दुकान में ही मिलेंगे, क्योंकि इस के अलावा अजय की और कोई प्रौपर्टी नहीं है,’’ इंस्पैक्टर रमेश उत्साह से बोले.

सब लोग आननफानन में दुकान पर पहुंचे और वहां तलाशी शुरू कर दी. लगातार 2 घंटे ढूंढ़ने के बाद चेहरों से निराशा और झुंझलाहट टपकने लगी. पूरी दुकान में अच्छी तरह ढूंढ़ने के बाद भी चाकू जैसी कोई चीज उन के हाथ नहीं लगी. अब सिर्फ कोने में रखी एक आखिरी अलमारी की तलाशी लेना बाकी था.

एकएक कर के उस का सामान भी बाहर निकाला गया लेकिन जब उस में भी कुछ न मिला, तो सब के चेहरे उतर गए. अगर अस्तबल, घर, दुकान कहीं पर भी अजय का बताया यह क्लू नहीं मिला तो आखिर वह है कहां  मरतेमरते अगर वे किसी चीज की ओर इशारा कर के गए हैं, तो उसे कहीं न कहीं तो जरूर होना चाहिए था.

निराशा और झुंझलाहट से भरे आखिरकार वे सब वापस जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो अजय की पत्नी यास्मिन ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘आप लोग सुबह से काम में लगे हैं, थक गए होंगे. मेरे घर चल कर कुछ चायनाश्ता कर के जाइएगा.’’

‘‘नहींनहीं, इस की कोई आवश्यकता नहीं.’’

‘‘प्लीज, मना मत कीजिए. आप लोग मेरे मरहूम पति के कातिल को ढूंढ़ने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, चलिए,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा. फिर सब लोग वापस अजय के घर पहुंच गए.

यास्मिन चाय बनाने किचन में चली गईं और इंस्पैक्टर, साहिल और फैजल ड्राइंगरूम में बैठ कर बातें करने लगे. कुछ ही देर में चाय के कप थमाते हुए यास्मिन बोलीं, ‘‘आप लोग चाय पीजिए. मैं तब तक बाहर बरामदे में सिपाहियों को भी चाय दे कर आती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आंटी, आप बैठिए, उन लोगों को चाय मैं दे आता हूं,’’ कह कर साहिल ने उन के हाथ से ट्रे ली और बाहर की तरफ चल दिया.

चाय देने के बाद जैसे ही वह घर के अंदर घुसने के लिए वापस मुड़ा अचानक उस की नजर मेनगेट के ऊपरी हिस्से पर पड़ी. वह कुछ पल के लिए हक्काबक्का रह गया. फिर बड़बड़ाता हुआ अंदर आया, ‘‘ओह, यह तो हद हो गई,’’ और सब लोंगों को खींच कर अपने साथ बाहर ले आया.

‘‘आखिर हुआ क्या है  कुछ तो बताओ साहिल,’’ उस के ऐसे व्यवहार से सब अचंभित थे. उस ने बिना कोई जवाब दिए गेट की तरफ इशारा कर दिया. एक क्षण के लिए तो किसी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन अगले ही पल सभी के चेहरे पर खुशी झलक उठी, ‘‘ओह, कमाल हो गया,’’ इंस्पैक्टर बोले.

जिस ओर साहिल ने इशारा किया था, वहां दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर ठीक बीचोंबीच 2 बहुत ही कलात्मक छोटी कटारें एक के ऊपर एक क्रौस का चिह्न बनाते हुए लगी हुई थीं.

‘‘यह तो वही बात हो गई, ‘बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा.’ हर पल ये चाकू हमारी आंखों के सामने थे, लेकिन कमाल की बात है कि किसी का भी ध्यान इन पर नहीं गया ’’ फैजल बोला.

अजय की पत्नी यास्मिन भी माथे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘अरे, ये चाकू तो अजय को उन के किसी दोस्त ने गिफ्ट किए थे और जब से हम यहां आए हैं, तब से यहीं लगे हुए हैं. मुझे भी इन का खयाल ही नहीं आया.’’

आननफानन में सीढ़ी लगा कर साहिल ने उन कटारों को दीवार से उतारा  और आगेपीछे देखता हुआ बोला, ‘‘इस के पीछे कुछ लगा हुआ है.’’

जल्दी से सभी ड्राइंगरूम में पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से मेज के चारों तरफ इकट्ठे हो गए. खूबसूरत नक्काशी से सजी इन कटारों के हैंडिल 2 इंच के लगभग चौड़े थे, जिन में एक के पीछे सफेद कागज में लिपटी एक छोटी सी वस्तु टेप द्वारा मजबूती से चिपकाई गई थी. बड़ी ही सावधानी से उस टेप को हटा कर धीरे से कागज को खोलते हुए इंस्पैक्टर रमेश सहित सब को लग रहा था जैसे किसी रहस्य का पर्दाफाश होने वाला है.

जैसे ही कागज की तह खुली, उस के अंदर से लगभग 2 इंच लंबी और 1 सेंटीमीटर चौड़ी एक चाबी निकली, ‘‘यह कहां की चाबी है ’’ हैरानी से उसे उलटतेपुलटते हुए इंस्पैक्टर रमेश बोले.

कुछ और चीज मिलने की उम्मीद में इन्होंने कागज को एक बार फिर देखा. कागज पर कुछ लिखा हुआ था, जिसे पढ़ कर वे झुंझला गए और बोले, ‘‘लो, कर लो मजे. कहां तो हम केस सौल्व होने की उम्मीद में बैठे थे और कहां इस नए झंझट में फंस गए.’’

फैजल ने उन से कागज ले कर देखा, तो उन के गुस्से का कारण समझते देर न लगी. यानी पहेली हल होने के बजाय एक और नई पहली जैसे उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

अपना ही तमाशा बनाने वाली एक लड़की – भाग 3

उर्वशी ने ऋषिराज को समस्या बताई तो उस ने जगतपुरा में ही जगदीशपुरी कालोनी में उसे किराए का दूसरा मकान दिलवा दिया. कुछ समय बाद उर्वशी अपने पिता व छोटे भाई को भी जयपुर ले आई. जयपुर आ कर वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगी. उस ने कुछ समय पहले स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की परीक्षा के लिए फार्म भरा था.

उस का परीक्षा केंद्र अलवर में पड़ा था. 9 जनवरी को उस की परीक्षा थी. इस के लिए वह जयपुर से अलवर गई. परीक्षा समाप्त होने के बाद वह 9 जनवरी को अलवर से शाम को मुजफ्फरनगर-पोरबंदर एक्सप्रैस टे्रन में सवार हो कर शाम सवा 7 बजे जयपुर जंक्शन पर उतरी. ट्रेन से उतर कर उर्वशी ने करीब 7 बज कर 20 मिनट पर अपने छोटे भाई को फोन कर के कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो जाएगी. वे लोग खाना खा कर सो जाएं. वह जब घर आएगी तो दरवाजा खटखटा देगी.

उर्वशी जयपुर जंक्शन से औटो में बैठ कर जगतपुरा पहुंची. वहां उसे ऋषिराज मीणा मिला. ऋषिराज ने औटो का 180 रुपए किराया चुकाया और उसे अपनी पल्सर बाइक पर बैठा कर जगतपुरा में ही प्रेमनगर स्थित अपने फ्लैट नंबर 280 पर ले गया. तय योजना के अनुसार, उर्वशी ने रात करीब 10 बजे अपने परिचित युवक संदीप लांबा को अपने पास बुला लिया.

संदीप को उर्वशी ने 9 जनवरी को दिन में ही फोन कर के कहा था कि रात को उस के घर वाले घर पर नहीं रहेंगे, इसलिए वह रात को उस के घर आ जाए. जयपुर जंक्शन से औटो में जगतपुरा जाते समय भी उर्वशी ने संदीप को बता दिया था कि वह रात को 280 प्रेमनगर, जगतपुरा आ जाए.

उर्वशी के इस तरह बुलाने से संदीप लांबा खुश था. संदीप ने अपनी गर्लफ्रैंड उर्वशी के पास जाने के लिए अपने एक मित्र पोलू जाट से 5 सौ रुपए उधार लिए और सजधज कर अपने कमरे से निकला. संदीप नर्सिंग के द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह जयपुर में गुर्जर की थड़ी पर किराए के मकान में रहता था. उस की उर्वशी से दोस्ती इस घटना से करीब एक महीने पहले हुई थी.

दोनों एक महीने से फोन पर संपर्क में थे. संदीप ने घर से निकल कर उर्वशी के लिए चौकलेट खरीदी. इस के बाद वह लो फ्लोर बस से रात करीब 10 बजे जगतपुरा पहुंचा. रात का समय होने और उस फ्लैट की सही लोकेशन न मिलने पर संदीप ने उर्वशी को 3-4 बार फोन किया. इस पर उर्वशी उसे लेने के लिए पैदल ही जगतपुरा रेलवे लाइन तक अकेली आई.

रेलवे लाइन से वह संदीप को अपने साथ ऋषिराज के प्रेमनगर स्थित फ्लैट पर ले गई. संदीप के पहुंचने पर ऋषिराज फ्लैट में छिप गया. उर्वशी संदीप को एक कमरे में ले गई, जहां बिस्तर लगा था. कमरे की बिजली जल रही थी. कमरे की बिजली जली होने पर संदीप को कुछ शक हुआ, लेकिन उर्वशी ने उसे बातों में लगा लिया. इस के बाद उर्वशी और संदीप उस कमरे में एक साथ रहे. इस दौरान उन्होंने कई बार शारीरिक संबंध बनाए.

सुबह करीब 3 बजे जब दोनों थक गए तो शांत हुए. उर्वशी ने संदीप का मोबाइल ले कर यह कहते हुए उस का सारा रिकौर्ड डिलीट कर दिया कि किसी को पता लग जाएगा. बाद में उर्वशी ने संदीप के पर्स की तलाशी ली और उस के डेबिट व क्रेडिट कार्ड देखे. इस के बाद उर्वशी ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर उस से मोटी रकम मांगी.

संदीप के इनकार करने पर उर्वशी ने उस का एटीएम कार्ड ले लिया और उस का पासवर्ड भी पूछ लिया. इस के बाद उसे घर से निकल जाने को कहा. वह वहां से निकला तो करीब आधे घंटे बाद उर्वशी ने उसे फोन कर के जल्दी से रकम का इंतजाम करने को कहा.

संदीप के जाने के बाद उसी फ्लैट में छिपा ऋषिराज मीणा कमरे में आ गया. सुबह करीब 5 बजे वह उर्वशी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर एमएनआईटी के समने ले गया. वहां उस ने उर्वशी के मुंह पर कीटनाशक एल्ड्रीन का घोल लगाया और उस के कपड़ों पर भी कीटनाशक छिड़क दिया. ऋषिराज ने उर्वशी से कहा कि वह पुलिस कंट्रोल रू म को फोन कर के अपने साथ गैंगरेप होने की सूचना दे.

यह कह कर ऋषिराज वहां से चला गया. उस के जाने के बाद उर्वशी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. उर्वशी को एमएनआईटी छोड़ने के बाद ऋषिराज अपने फ्लैट पर पहुंचा और सामान समेट कर कमरे को खाली कर के फरार हो गया.

शुरुआती पूछताछ में उर्वशी ऋषिराज के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार करती रही, लेकिन जब मोबाइल लोकेशन के आधार पर उसे पकड़ कर दोनों का आमनासामना कराया गया तो उर्वशी ने सारा सच उगल दिया.

पूछताछ में पता चला कि दोनों ब्लैकमेलिंग करने के लिए पहले युवकों को ढूंढते थे और फिर पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से रकम ऐंठते थे. इस मामले में उर्वशी ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय संदीप और ब्रजेश का नाम लिया था.

संदीप ने उर्वशी से उस की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे. लेकिन संदीप से उर्वशी को कुछ नहीं मिला तो उस ने पुलिस के सामने संदीप का नाम ले लिया. संदीप खुद को बैंक मैनेजर का लड़का बताता था, इसलिए उर्वशी को उस से मोटी रकम मिलने की उम्मीद थी.

संदीप लांबा को जब इस षडयंत्र का पता चला तो उस ने जवाहर सर्किल थाने में खुद के साथ ब्लैकमेलिंग व आपराधिक षडयंत्र की लिखित रिपोर्ट दी. जांच में यह भी सामने आया कि उर्वशी ब्रजेश से भी पहले से ही अच्छी तरह परिचित थी. उन की फोन पर बातें होती रहती थीं. ऋषिराज ने ही ब्रजेश को उर्वशी से मिलवाया था. उर्वशी ब्रजेश को फोन कर के बुलाती थी, लेकिन वह उन के झांसे में नहीं आया.

पुलिस का कहना था कि ऋषिराज मीणा ने उर्वशी के साथ मिल कर लोगों को दुष्कर्म के केस में फंसाने की धमकी दे कर उन्हें ब्लैकमेल कर के मोटी रकम ऐंठने की योजना बनाई थी. ऋषिराज संदीप और ब्रजेश से करीब 5 लाख रुपए में सौदा करना चाहता था. इन पैसों से वह अपना कोई व्यापार करना चाहता था.

पुलिस ने षडयंत्र रच कर गैंगरेप की मनगढं़त कहानी बना कर झूठा मुकदमा दर्ज कराने, अवैध व फरजी आईडी से अलगअलग सिम व मोबाइल रखने और ब्लैकमेलिंग कर के धन ऐंठने के आरोप में उर्वशी और ऋषिराज मीणा को 13 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इन के कब्जे से 6 मोबाइल फोन और 15 सिम बरामद किए. ऋषिराज मीणा सवाई माधोपुर जिले के वजीरपुर थाना इलाके के बढोद गांव के रहने वाले रामफल मीणा का बेटा था. उस के खिलाफ चोरी व गबन के 2 मामले पहले से दर्ज हैं.

पुलिस जांच में सामने आया है कि उर्वशी के जयपुर आने के बाद से ऋषिराज उस के साथ रिलेशनशिप में रह रहा था. उस ने लोगों को फंसाने के लिए घटना से 20 दिनों पहले ही प्रेमनगर में 8 हजार रुपए महीने पर किराए का फ्लैट लिया था. वह जल्दी ही उर्वशी से शादी करना चाहता था और उर्वशी के माध्यम से लोगों को दुष्कर्म के केसों में फंसा कर ब्लैकमेल करने के बाद मोटी रकम ऐंठ कर पैसे वाला बनना चाहता था.

इस के लिए उस ने उर्वशी का ब्रेनवाश भी कर दिया था. उर्वशी भी सहयोग करने के लिए तैयार हो गई थी. जांचपड़ताल में यह भी सामने आया है कि ऋषिराज और उर्वशी मिल कर आगरा और मैनपुरी में ब्लैकमेलिंग की 5 वारदात कर चुके थे. उर्वशी जब काशीपुर छोड़ कर आगरा आ गई थी तो ऋषिराज उस से मिलने आगरा जाया करता था.

पुलिस ने 14 जनवरी को ऋषिराज व उर्वशी को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के एक दिन के रिमांड पर लिया. पूछताछ में पता चला कि उर्वशी और उस के पिता के 4 बैंक खातों में करीब 5 लाख रुपए की रकम जमा है. पुलिस को शक है कि यह राशि ब्लैकमेलिंग की है.

उर्वशी ने इस रकम के बारे में पुलिस को बताया कि उस के पिता ने गांव में जमीन बेची थी, जबकि मैनपुरी से पुलिस को पता चला कि उर्वशी के पिता ने अभी तक कोई जमीन नहीं बेची है. उर्वशी के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बैंक खातों में 5 लाख रुपए जमा कर सके. इसलिए पुलिस इस रकम के बारे में भी जांच कर रही है.

पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर 15 जनवरी को दोनों आरोपियों को फिर मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रैट ने ऋषिराज व उर्वशी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है. पुलिस उर्वशी की ओर से सदर थाने में दर्ज कराए गए मामले और जवाहर सर्किल थाने में संदीप लांबा की ओर से दर्ज कराए गए मामले की जांचपड़ताल कर रही है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, उर्वशी परिवर्तित नाम है.

100 करोड़ की फिरौती का फंडा – भाग 3

संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

संजीव अब परेशान रहने लगा था. इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए उस ने एक योजना बनाई, जिस में उस ने पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर गुप्ता को शामिल किया. अगर संजीव की योजना सफल हो गई होती तो नीता पांडेय और उस के पति प्रदीप पांडेय जेल में होते और वह विदेश में मौज कर रहा होता.

योजना के अनुसार, संजीव ने सारिका की बहन के बेटे विप्लव गुप्ता तथा साले सागर को फिरोजाबाद बुला लिया. सागर सीए भी था और वकील भी. संजीव ने सागर को अपने ऊपर सूदखोरी के चल रहे मुकदमे की पैरवी के लिए बुलाया था, लेकिन आने पर अपने अपहरण की पटकथा लिखवा डाली.

सारिका किटी पार्टियों की शान मानी जाती थी. कमेटी और किटी में रुपए डालने के लिए सदस्यों को पटाने का काम वही करती थी. कमेटी चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी. पति के अपहरण के इस ड्रामे में मुख्य भूमिका उसी की थी.

संजीव ने अपने अपहरण का तानाबाना काफी मजबूती से बुना था, पर पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता के कारण उस का ड्रामा सफल नहीं हुआ. पत्रकारों के सामने संजीव, सारिका, विप्लव और सागर को पेश कर के एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि संजीव अपनी कार को ऐसे रास्तों से अलीगढ़ गया, जिन पर कोई टोलनाका नहीं था.

इसी वजह से वह सीसीटीवी कैमरों की नजर में नहीं आ सका. अलीगढ़ के गभाना टोल प्लाजा के पहले ही उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे खड़ी कर के लौक कर दी और बस से दिल्ली के आईएसबीटी बसअड्डे पहुंचा. वहां से चंडीगढ़, मोहाली होते हुए 24 जुलाई को वह जम्मू पहुंच गया.

वहां से वह मनाली गया और 25 से 27 जुलाई तक वहीं रहा. वह रोहतांग भी गया, जहां से मनाली आ गया. मनाली से देहरादून होते हुए 28 जुलाई को वह पानीपत आया, जहां स्वर्ण होटल पहुंचा और योजना के अनुसार अपने अपहरण की कहानी होटल के कर्मचारियों को सुनाई.

दूसरी ओर सारिका ने कई बार सूटकेस ले कर कोठी से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के पहरे की वजह से वह जा नहीं सकी. यह भी उस का एक ड्रामा था. अगर वह निकल जाती तो लोगों से कहा जाता कि सौ करोड़ की फिरौती दे कर वह पति को छुड़ा कर लाई है.

संजीव एक तीर से कई निशाने साधना चाहता था. अपहरण की आड़ में नीता पांडेय और उस के पति को जेल भिजवा कर उन से छुटकारा पाना चाहता था. सौ करोड़ की फिरौती दे कर आने के नाम पर वह कमेटी के कर्ज से छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि लोगों को उस से सहानुभूति हो जाती.

पर सच्चाई सामने आ जाने से संजीव की योजना पर पानी फिर गया. इस की वजह थी ज्यादा लालच. उस ने सौ करोड़ की जो फिरौती की बात की थी, उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया.  जिन धाराओं में संजीव और सारिका को जेल भेजा गया है, उन का जेल से बाहर आना मुश्किल है. शानदार कोठी में रहने वाले पता नहीं कब तक जेल की कोठरी में रहेंगे.

संजीव के वकील ने उन की जमानत के लिए अदालत में अरजी लगा कर जमानत की काफी कोशिश की, लेकिन सरकारी वकील की दलीलें सुन कर न्यायाधीश श्री पी.के. सिंह ने जमानत की अरजी खारिज कर दी. एसटीएफ ने जिस तरह इस मामले का खुलासा किया, किसी को उम्मीद नहीं थी. उन की इस काररवाई से खुश हो कर एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने उन्हें प्रशस्तिपत्र के साथ 15 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह का तबादला हो गया है. उन की जगह पर नए कोतवाली प्रभारी भानुप्रताप सिंह आए हैं. वह संजीव गुप्ता और उस के साथियों को रिमांड पर ले कर एक बार फिर पूछताछ करना चाहते हैं.

12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर – भाग 3

गैंग का मुखिया सब से पहले अपनी रिश्तेदारी या फिर जानने वाले के बच्चे को तलाशने की कोशिश करता है. वहां न मिलने पर गांव के ही किसी बच्चे का चुनाव करता है. गांव के लोग बचपन से ही अपने बच्चे को छोटीमोटी चोरी करने की प्रैक्टिस कराते हैं. चोरी की प्राथमिक पढ़ाई घर वालों से पढ़ने के बाद हाथ आजमाने के लिए घर वाले इन्हें गैंग के लोगों को 6 महीने या साल भर के लिए सौंप देते हैं.

इन बच्चों के हुनर के अनुसार, उन का पैकेज 6 लाख से 12 लाख रुपए तक होता है. बच्चों के घर वालों को 25 प्रतिशत धनराशि एडवांस में नकद दे दी जाती है, बाकी की हर महीने की किस्तों में. इस तरह यहां के बच्चे बड़े पैकेज पर काम करते हैं.

राका ने पुलिस को बताया कि काम की शुरुआत करने से पहले उन्हें 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में उन्हें सिखाया जाता है कि लड़की या लड़के की शादी में ज्वैलरी या कैश का बैग किस तरह उड़ाना है.

राका और नीरज, दोनों साझे में काम करते थे. नीरज ने गैंग में अपने बेटे को भी शामिल कर रखा था. इन्होंने गांव के ही बच्चे चीमा (परिवर्तित नाम) को 10 लाख रुपए साल के पैकेज पर अपने गैंग में शामिल किया था. इस के बाद इन्होंने चीमा को बातचीत करने, खानेपीने, कपड़े पहनने, डांस करने की ट्रेनिंग दी. उस की मदद के लिए इन्होंने गांव के ही कुलजीत को अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

ये दिल्ली के अलगअलग इलाकों में किराए का कमरा ले कर रहते थे. ये अकसर मोटा हाथ मारने की फिराक में रहते थे. इन्हें पता था कि पैसे वाले लोग अपने बच्चों की शादियां कहां करते हैं. बच्चों को महंगे कपड़े पहना कर ये शाम होते ही औटोरिक्शा से छतरपुर, कापसहेड़ा, महरौली स्थित फार्महाउसों की तरफ घूम कर तलाश करते थे कि शादी कहां हो रही है. फार्महाउसों में ज्यादातर रईसों के बच्चों की ही शादियां होती हैं.

जिस फार्महाउस में शादी हो रही होती, उस के बाहर ही एक साइड में ये औटोरिक्शा खड़ा कर देते और तीनों बच्चे शादी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अंदर चले जाते, जबकि राका और नीरज औटो में ही बैठे रहते. औटो वाले को ये मुंहमांगा पैसा देते थे, इसलिए वह भी कुछ नहीं कहता था.

19 जून को भी इन्होंने ऐसा ही किया. राका और नीरज काम्या पैलेस के बाहर औटो में बैठे रहे और कुलजीत, चीमा तथा नीरज का बेटा मनोज चौधरी की बेटी की शादी समारोह में शामिल होने अंदर चले गए. वे उन के बेटे की लगन के कार्यक्रम में शामिल हुए.

लगन चढ़ने के बाद तीनों को 100-100 रुपए शगुन के तौर पर भी मिले थे. बेटी की शादी की वजह से मनोज चौधरी सूटकेस में अपने घर से कैश और ज्वैलरी ले आए थे. उस समय उन के सूटकेस में ज्वैलरी के अलावा 19 लाख रुपए नकद थे, इसलिए वह उस सूटकेस को अपने हाथ में ही लिए हुए थे.

तीनों बच्चों की टोली ने ताड़ लिया था कि माल इसी सूटकेस में है, इसलिए वे उस सूटकेस पर हाथ साफ करने के लिए उन के इर्दगिर्द ही मंडराते रहे.

शादी में आए मेहमानों की तरह उन्होंने खाना खाया और डीजे पर डांस भी किया. उन की गतिविधियां देख कर कोई शक भी नहीं कर सकता था कि बिन बुलाए मेहमान के रूप में ये चोर हैं.

जब कुलजीत डीजे पर डांस कर रही लड़कियों के साथ डांस कर रहा था, तब कन्यापक्ष के लोगों ने जरूर उस से डीजे से उतर जाने को कहा था. वह मनोज चौधरी का सूटकेस उड़ाने का मौका तलाशते रहे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

रात साढ़े 11 बजे के बाद जब फेरों का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उस समय भी वे उन के मेहमानों के बीच बैठ गए तो चीमा मंडप के इर्दगिर्द घूमता रहा. उसी दौरान जैसे ही मनोज ने हाथ में कलावा बंधवाने के लिए हाथ पंडित के आगे किया, तभी चीमा उन के सूटकेस को ले कर फुरती से निकल गया. उस के पीछे कुलजीत और फिर नीरज का बेटा भी निकल गया.

काम्या पैलेस से निकल कर वे सीधे औटो के पास पहुंचे, जहां राका और नीरज इंतजार कर रहे थे. इस के बाद वे औटो से द्वारका स्थित अपने कमरे पर गए और अगले दिन मध्य प्रदेश स्थित अपने घर चले गए. उन्होंने चुराए पैसे आपस में बांट लिए. राका के हिस्से में 4 लाख रुपए आए थे. कुछ दिन गांव में रह कर राका पैसे ले कर दिल्ली में अपने कमरे पर लौट आया.

वारदात करने के बाद ये किसी दूसरे इलाके में कमरा ले लेते थे. पूछताछ में राका ने बताया कि उस ने मुंबई के एक कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी का बैग चुराया था. उस ने बताया कि उस के गांव के लोग देश के तमाम बड़े शहरों में यही काम करते हैं. किसी गैंग में छोटे बच्चों के साथ महिला को भी रखा जाता है. लेकिन सारा कमाल ये बच्चे ही करते हैं.

राका से विस्तार से पूछताछ के बाद एंटी रौबरी सेल ने उस की निशानदेही पर 4 लाख रुपए कैश और कुछ ज्वैलरी बरामद कर ली. इस के बाद उसे कापसहेड़ा थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया, क्योंकि इस मामले की रिपोर्ट उसी थाने में दर्ज थी.

इस मामले की जांच एसआई प्रदीप को सौंपी गई थी. एसआई प्रदीप ने राका से पूछताछ की तो उस ने गुड़गांव की एक घटना का खुलासा किया है. कथा संकलन तक पुलिस उस से पूछताछ कर रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खिलाड़ियों का खिलाड़ी : भ्रष्टाचार की कहानी – भाग 3

सवाल यह था कि जब एसपी शंकरदत्त शर्मा ने ऋषभ सेठी के रिश्तेदार सनी पांड्या को फोन नहीं किया था तो उन के मोबाइल पर शंकरदत्त शर्मा का नंबर डिसप्ले कैसे हो रहा था?

इस मामले में एसीबी के अधिकारियों ने टेलीकौम के तकनीकी विशेषज्ञों से जानकारी मांगी तो पता चला कि आजकल विदेशी सौफ्टवेयर के जरिए स्पूफिंग काल किए जा सकते हैं. स्पूफिंग काल गेटवे के जरिए होती है. इसे वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) काल भी कहते हैं.

दरअसल, कई विदेशी कंपनियां ऐसा सौफ्टवेयर तैयार कर के उन के सर्वर बेचती हैं, जिन के जरिए कोई भी अपने मोबाइल से फोन कर सकता है, लेकिन फोन रिसीव करने वाले के पास नंबर वह डिसप्ले होगा, जो इस सौफ्टवेयर का उपयोग करने वाला चाहेगा. अगर किसी का मोबाइल स्विच औफ है तो भी उस के नंबर से इस सौफ्टवेयर द्वारा फोन किया जा सकता है.

crime

इस का टेलीकौम कंपनियों के पास कोई रिकौर्ड नहीं होता. केवल सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियों के सहयोग से ही जिस नंबर व मोबाइल फोन से फोन किया गया था, उस का आईपी एड्रैस पता किया जा सकता है. सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी यह काम बहुत आसान नहीं है.

भारत में स्पूफिंग काल के कोई 2-4 मामले ही अब तक सामने आए हैं. राजस्थान में इस तरह का यह पहला मामला था. जांच में पता चला कि फोन हांगकांग की एक गेटवे सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के जरिए किए गए थे. वे फोन दुनिया के 9 देशों के गेटवे सर्विस प्रोवाइडरों के जरिए रूट की गई थीं.

एसीबी के अधिकारियों ने अमेरिका, यूके, दक्षिणी अफ्रीका और चीन सहित 9 देशों की कंपनियों का सहयोग लिया. इस में कई महीने लग गए.

लंबी जांच के बाद एसीबी को उस मोबाइल नंबर का आईपी एड्रैस मिल गया. यह एयरटेल का सिम था, जो श्रीगंगानगर के साहिल राजपाल के नाम आवंटित था. इस के बाद एसीबी ने साहिल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

इस बीच एसीबी को जलदाय विभाग सहित दूसरे विभागों के अधिकारियों से भी कई और शिकायतें मिलीं. इन शिकायतों में भी बताया गया था कि एसीबी के एसपी शंकरदत्त शर्मा या किसी अन्य अधिकारी के नाम से उन्हें फोन कर के उन से रिश्वत की मांग की जा रही है.

इन शिकायतों के साथ एसीबी को 5 मोबाइल काल रिकौर्डिंग भी मिली, जिन में फोन करने वाले ने रिश्वत मांगी थी. जलदाय विभाग के एक इंजीनियर सी.एल. जाटव से एसीबी के एसपी शंकरदत्तर शर्मा के नाम से फोन कर के डेढ़ लाख रुपए ले भी लिए गए थे.

उन्होंने एसीबी के अधिकारियों को बताया कि एसपी शंकरदत्त शर्मा के मोबाइल नंबर एवं एसीबी के लैंडलाइनों से किसी ने उन के मोबाइल पर फोन कर के खुद को एसपी शंकरदत्त शर्मा बता कर जलदाय विभाग के घूसकांड से नाम निकालने के लिए 10 लाख रुपए मांगे थे. जाटव ने डेढ़ लाख रुपए दे भी दिए थे. इस के बाद भी बारबार पैसों के लिए एसीबी के नंबरों से फोन आ रहे थे.

एसीबी के अधिकारियों ने उन के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में शंकरदत्त शर्मा और एसीबी औफिस के लैंडलाइन नंबर मिल गए, लेकिन शंकरदत्त शर्मा की काल डिटेल्स में सी.एल. जाटव के नंबर नहीं मिले. यह भी कड़वा सच था कि उन का नाम जलदाय घोटाले में था ही नहीं, लेकिन साहिल के एसीबी का एसपी बन कर कई बार धमकाने से वह डर गए थे और डेढ़ लाख रुपए एसपी साहब के नाम पर दे भी दिए थे.

व्यापक जांच के बाद श्रीगंगानगर के साहिल राजपाल का नाम सामने आया तो एसीबी ने उस के बारे में पता किया. पता चला कि वह राजस्थान के पूर्वमंत्री और आजकल भाजपा के वरिष्ठ नेता राधेश्याम गंगानगर का पोता है.

साहिल के राजनीतिक परिवार से जुड़ा होने की जानकारी एसीबी के अधिकारियों ने उच्चाधिकारियों को दे दी.

वहां से हरी झंडी मिलने के बाद एसीबी ने 9 अगस्त, 2017 को जयपुर के जालूपुरा स्थित एक विधायक के सरकारी आवास से साहिल राजपाल को गिरफ्तार कर लिया. साहिल पूर्वमंत्री राधेश्याम गंगानगर के दूसरे बेटे वीरेंद्र राजपाल का बेटा था. वह इंग्लिश औनर्स से ग्रैजुएट था. एसीबी ने साहिल के खिलाफ 25 पेज की एफआईआर दर्ज की थी. इस एफआईआर के साथ फरवरी, 2017 से अब तक जुटाए गए दस्तावेजों के करीब 200 पेज लग चुके हैं.

पूछताछ में साहिल ने एसीबी के अधिकारियों को बताया कि उस ने जनवरी, 2017 से जुलाई तक विभिन्न सरकारी विभाग के अफसरों को विदेशी सौफ्टवेयर के जरिए एसीबी के लैंडलाइन एवं एसीबी अफसरों के मोबाइल नंबरों से न जाने कितने फोन किए हैं. वह अपने या किसी दूसरे के मोबाइल फोन से अफसरों को फोन करता था, लेकिन रिसीव करने वाले के मोबाइल पर एसीबी के नंबर डिसप्ले होते थे.

5 दिनों के रिमांड के दौरान पूछताछ में साहिल ने एसीबी को बताया कि उस ने जलदाय विभाग के एडिशनल चीफ इंजीनियर, 2 सुपरिंटेंडेंट इंजीनियरों और करीब 10 अन्य इंजीनियरों तथा रसद विभाग के अधिकारियों से एसीबी के एसपी के नाम से करीब 20 करोड़ रुपए मांगे थे.

वह एसपी शंकरदत्त शर्मा बन कर अधिकारी से पैसे मांगता था और उन का ड्राइवर बन कर पैसे लेने जाता था. उस ने एसीबी के अधिकारियों और जलदाय विभाग के इंजीनियरों के फोन नंबर विभागीय वेबसाइट से हासिल किए थे. स्पूफिंग काल के लिए उस ने एसटीडी बूथ से आईएसडी काल भी किए थे. उस ने कई बार एसटीडी बूथों से चंडीगढ़, गुड़गांव और दिल्ली फोन कर के अधिकारियों के नंबर लिए थे. एसीबी ने इन बूथों की भी जांच की है. चेन्नै से भी स्पूफिंग काल करने का पता चला है.

साहिल किसी भी अधिकारी को स्पूफिंग काल करने से पहले डायरी में लिख कर उस का अभ्यास करता था, ताकि पुलिसिया लहजे से बातचीत करने में कोई गलती न हो. एसीबी को उस के आवास से ऐसी 2 डायरियां मिली हैं, जिन में एसीबी के एसपी शंकरदत्त शर्मा के नाम से शुरुआत कर के कई बातें लिखी गई हैं.

डायरियों में कई नाम मिले हैं, जिन से अंदाजा लगाया जा रहा है कि साहिल ने उन्हें स्पूफिंग काल कर के पैसों की मांग की होगी. पुलिस ऐसे पीडि़तों का पता लगाने का प्रयास कर रही है. हालांकि एसीबी के पास अभी कुछ ही शिकायतें आई हैं. ज्यादातर पीडि़त अभी सामने नहीं आए हैं.

एसीबी को जालूपुरा स्थित विधायक के आवास की तलाशी में शराब की 34 बोतलें मिली थीं, जिन में विदेशी शराब भी थी. एसीबी की सूचना पर थाना जालूपुरा पुलिस ने शराब की उन बोतलों को जब्त कर लिया था और साहिल के खिलाफ अवैध रूप से शराब रखने का मामला दर्ज किया था. यह सरकारी आवास विधायक मोहनलाल गुप्ता के नाम से आवंटित था. इस में विधायक गुप्ता नहीं रहते थे. वहां साहिल रुका हुआ था.

पूछताछ में पता चला है कि साहिल राजपाल का श्रीगंगानगर में प्रौपर्टी का कारोबार था. प्रौपर्टी में मंदी के कारण उसे लाखों रुपए का घाटा हो गया था. घाटा पूरा करने के लिए उस ने जयपुर जा कर दिमाग लगाना शुरू किया. उस बीच मीडिया में जलदाय विभाग की रिश्वतखोरी की खबरें सुर्खियों में थीं.

साहिल हौलीवुड फिल्में खूब देखता था. इन्हीं फिल्मों से उसे आइडिया आया कि उन लोगों को ब्लैकमेल किया जा सकता है, जो भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हैं. ऐसे लोग जांच एजेंसियों के शिकंजे से निकलने के लिए मोटी रकम देने को जल्दी तैयार हो जाते हैं.

इस के लिए साहिल ने एसीबी के एसपी व अन्य अफसरों के नाम का उपयोग किया. राजनीतिक परिवार से जुड़ा होने की वजह से साहिल की श्रीगंगानगर में पुलिस अधिकारियों से भी अच्छी सांठगांठ थी. वह पैसे ले कर पुलिसकर्मियों व दूसरे विभागों के कर्मचारियों के तबादले कराता था. हालांकि लोग तबादलों के लिए राधेश्याम गंगानगर के पास आते थे.

राज्य में भाजपा की सरकार होने और भाजपा का वरिष्ठ नेता होने की वजह से लोग अधिकारियों पर उन का प्रभाव होने की बात मान कर तबादलों के लिए निवेदन करते थे.

वहीं साहिल के ताया रमेश राजपाल भाजपा के जिला उपाध्यक्ष हैं. इस कारण भी लोग मानते थे कि इस परिवार का अधिकारियों पर रुतबा है. तबादले के लिए दादा और ताया के पास आने वाले लोगों को मौका मिलने पर साहिल अपना शिकार बनाता था.

5 दिनों का रिमांड पूरा होने के बाद 14 अगस्त को एसीबी ने साहिल को अदालत में पेश कर 7 दिनों का रिमांड और लिया. एसीबी उस की एक साल की मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर रही है. इस के अलावा बैंक से उस के खातों की भी डिटेल मांगी गई है. एसीबी उस के साथियों के बारे में भी पता कर रही है.

विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जांच कराने के लिए उस की आवाज के नमूने लिए गए हैं. एसीबी ने जलदाय विभाग के इंजीनियर सी.एल. जाटव और एसपीएमएल कंपनी के डाइरेक्टर ऋषभ सेठी के रिश्तेदार सनी पांड्या के बयान दर्ज किए हैं.

दोनों ने एसीबी को वह रिकौर्डिंग भी सौंप दी थी, जो उन्होंने फोन पर एसपी के नाम से रकम मांगने के दौरान बातचीत की तैयार की थी.

इन रिकौर्डिंग की आवाज से साहिल की आवाज का मिलान किया जाएगा. एसीबी ने इन रिकौर्डिंग की ट्रांस्क्रिप्ट तैयार की है. पूर्वमंत्री राधेश्याम गंगानगर का कहना है कि उन का पोता ऐसा नहीं कर सकता. उन के परिवार को न्याय मिलेगा. न्याय प्रणाली पर उन्हें पूरा भरोसा है.

साहिल का कहना है कि इस मामले में उसे फंसाया गया है. सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि साहिल की गिरफ्तारी का असर राधेश्याम गंगानगर के राजनीतिक कैरियर पर भी पड़ सकता है.

साहिल के ताया रमेश राजपाल भाजपा जिला उपाध्यक्ष होने की वजह से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे थे. साहिल के पिता वीरेंद्र राजपाल गंगानगर क्लब के अध्यक्ष रहे हैं.

भारतपाक विभाजन के समय पाकिस्तान से आ कर श्रीगंगानगर में बसे राधेश्याम यहां की राजनीति की धुरी रहे हैं. कांग्रेस से 3 बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री रहे राधेश्याम ने सन 2008 में टिकट कटने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया था. वह चाहे सत्ता में रहे हों या न रहे हों, उन के परिवार का विवादों से पुराना नाता रहा है.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए भाजपा से जवाब मांगा है. जयपुर की पूर्व महापौर और प्रदेश कांग्रेस महासचिव ज्योति खंडेलवाल ने जयपुर के किशनपोल के विधायक मोहनलाल गुप्ता की भूमिका को भी संदिग्ध बताते हुए मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है.

– कथा एसीबी सूत्रों एवं अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

लव, सैक्स और मर्डर

उस दिन तारीख थी 31 जुलाई, 2017. भोर का समय था. नित्य मौर्निंग वौक करने वाले इक्का- दुक्का लोग सड़कों पर आ गए थे. खेतरपाल मंदिर के सामने से गुजरने वाले मेगा हाईवे पर वाहनों की आवाजाही जारी थी. मेगा हाईवे पर बाईं तरफ सड़क किनारे एक युवा महिला की औंधी लाश पड़ी थी. लाश देख कर एक राहगीर ठिठका और स्थिति को समझ कर मोबाइल से थानापुलिस को इस की सूचना दे दी. अज्ञात लाश की सूचना थानाप्रभारी सीआई विजय सिंह को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक राष्ट्रीय अखबार के प्रतिनिधि नरेश असीजा अखबार वितरण व्यवस्था का जायजा ले कर घर लौट रहे थे. उन्हें लाश मिलने की सूचना मिली तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस मृतका की पहचान का प्रयास कर रही थी. नरेश ने उस की पहचान कर दी. बरसों पहले मृतका उन की बिल्डिंग में किराएदार के रूप में रही थी. पत्रकार ने मृतका की पहचान समेस्ता पत्नी श्रवण कुमार के रूप में की. पहचान होने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

प्रथमदृष्टया यह मामला दुर्घटना का लग रहा था. संभवत: मृतका किसी वाहन की टक्कर से हाईवे पर गिर गई थी, जिस से उस का सिर फट गया था. लेकिन घटनास्थल पर मिले हुए साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे.

जिस जगह पर समेस्ता का शव मिला था, उस के पास मिट्टी में छोटे वाहन के टायरों के निशान दिख रहे थे. समेस्ता के शरीर पर टक्कर का कोई निशान नहीं था. पुलिस को लगा कि मृतका की हत्या कहीं और कर के लाश को यहां फेंक दिया गया है, ताकि मामला सड़क दुर्घटना का लगे.

समेस्ता की मौत का मामला संदिग्ध लग रहा था. बाल की खाल निकालने वाले माने जाने वाले सीआई विजय सिंह मीणा ने इस मामले को एक चैलेंज के रूप में लिया. विजय सिंह ने मामले के खुलासे के लिए एसआई छोटूराम तिवाड़ी, कांस्टेबल सुखदेव सिंह बेनीवाल, रीडर अमर सिंह, लक्ष्मीनारायण, अमनदीप व सुभाष को शामिल कर के एक टीम बना ली.

सुखदेव बेनीवाल का शहर में ही नहीं, देहात क्षेत्र में भी मुखबिरों का सशक्त नेटवर्क था. एसआई छोटूराम व सुखदेव ने मेगा हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू कर दिए. अथक प्रयासों के बाद एक हार्डवेयर शौप पर लगे कैमरे में समेस्ता दिखाई दी. वह संभल कर सड़क  पार कर रही थी. कैमरे के इस दृश्य को दोनों पुलिसकर्मियों ने जांच अधिकारी से साझा किया. जांच टीम ने विचारविमर्श के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि समेस्ता ने जितनी सावधानी से सड़क पार की थी. ऐसे में वह सड़क हादसे की शिकार नहीं हो सकती थी.

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पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाने के लिए मेगा हाईवे के 2 किलोमीटर के लंबे दायरे को खंगालना शुरू किया. एक वर्कशाप में लगे कैमरे की फुटेज में एक पिकअप गाड़ी दिखाई दी. 10 मिनट के अंतराल में 3-4 बार आनेजाने से पिकअप संदिग्ध के दायरे में आ गई. एक बार पिकअप एक झाड़ी के पास रुकी तो झाडि़यों में छिपा एक शख्स पिकअप के पास आता दिखाई दिया. यह दृश्य भी कैमरे में कैद हो गया था.

सुखदेव का एक मुखबिर जो समेस्ता के ही मोहल्ले में रहता था, ने भी जांच टीम को एक सुराग दिया. सुराग के मुताबिक समेस्ता और उस के पति की जरा भी नहीं बनती थी. उस का पति श्रवण कुमार सूरतगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह कभीकभार अपने 2 बच्चों के लिए रावतसर आ जाता था.

उधर दुर्घटनास्थल पर समेस्ता के शव की पहचान करने वाले पत्रकार नरेश असीजा घटनास्थल से सीधे समेस्ता के घर गए. श्रवण और समेस्ता का सगा भाई कालूराम घर में ही मिले. उन्होंने पूछा, ‘‘अरे श्रवण, समेस्ता दिखाई नहीं दे रही, कहां गई है वह?’’

‘‘अंकल, वह मंदिर गई थी, आती ही होगी.’’ श्रवण ने जवाब दिया.

नरेश असीजा समेस्ता के भाई कालूराम को साथ ले कर सीधे मोर्चरी पहुंचे. कालूराम ने मृतका की पहचान अपनी बहन समेस्ता के रूप में कर दी. कालूराम की तहरीर पर थाने में अज्ञात के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रवण 4 दिनों से रावतसर में ही था, जबकि कालूराम 2 दिन पहले ही रावतसर आया था.

समेस्ता कौन थी और बेमौत क्यों मारी गई, यह जानने के लिए हमें डेढ़ दशक पीछे लौटना पड़ेगा. समेस्ता श्रीगंगानगर निवासी पृथ्वीराज की बेटी थी. सन 2001 में समेस्ता की शादी हनुमानगढ़ जिले के मसीतावाली गांव निवासी हरलाल टाक के बेटे सीताराम टाक से हुई थी. सीताराम का ममेरा भाई था श्रवण कुमार.

श्रवण कुमार रातवसर तहसील के गांव सरदारपुरा खालसा में रहता था. कानून की पढ़ाई कर रहे श्रवण कुमार के परिवार की माली हालत अच्छी थी. श्रवण एक दिन अपने भाई सीताराम से मिलने बाइक से मसीता वाली आया. उस वक्त सीताराम खेतों पर गया हुआ था. दरवाजा समेस्ता ने खोला.

‘‘जी कहिए.’’ समेस्ता ने पूछा.

‘‘सीताराम भैया से मिलना था, मैं सरदारपुरा से आया हूं. मेरा नाम श्रवण है.’’ जवाब में श्रवण ने बताया.

‘‘आइए बैठिए, आप के भैया खेतों पर गए हैं. आते ही होंगे.’’

श्रवण आंगन में पड़ी कुरसी खिसका कर किचन के सामने ही बैठ गया. सुगठित देह, उभरे वक्षस्थल वाली समेस्ता सुंदर लग रही थी. मीठे बोल और सलीके का उच्चारण करने वाली समेस्ता श्रवण के दिल को छू गई. वह बैठाबैठा समेस्ता के सौंदर्य का रसपान करता रहा. तभी समेस्ता 2 प्यालों में चाय ले कर आ गई. ‘‘लीजिए चाय पीजिए.’’

श्रवण चाय पीने लगा. समेस्ता भी प्याला उठा कर पालाथी मार कर श्रवण के सामने बैठ गई. श्रवण चाय समाप्त करते ही बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी, आप ने तो बड़ी गड़बड़ कर दी, यह आप के हाथों का कमाल है या आप की भावनाओं का, मैं आप की चाय का मुरीद हो गया हूं. लगता है, अब चाय पीने हर रोज आना पड़ा करेगा.’’

‘‘मना किस ने किया है देवरजी, मेरा दरवाजा आप के लिए 24 घंटे खुला रहेगा.’’ समेस्ता ने कहा.

समेस्ता से उस का मोबाइल नंबर ले कर श्रवण लौट गया. उस से हुई संक्षिप्त मुलाकात के आगे श्रवण ने भाई से मिलना जरूरी नहीं समझा.

एक साल बीततेबीतते समेस्ता बिलकुल बदल गई. प्यारमोहब्बत तो दूर, वह पति सीताराम की उपेक्षा तक करने लगी. नतीजतन घर में कलह रहने लगी. इस कलह में श्रवण की चाहत और उस की वकालत ने आग में घी का काम किया. शादी के 2 साल बाद ही श्रवण के उकसाने पर समेस्ता ने सीताराम के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न व दहेज मांगने का आरोप लगा कर अदालत में मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के बाद समेस्ता अपने मायके लौट गई.

इन हालात में समेस्ता व श्रवण के बीच पनपे प्यार ने अपनी राह पकड़ ली थी. श्रवण की चाहत पर समेस्ता उस के बुलाए स्थान पर पहुंच जाती थी. सामाजिक व पारिवारिक वर्जनाएं उन दोनों के सरेआम मिलन में बाधक बन रही थीं. आखिर श्रवण और समेस्ता एक दिन अपनेअपने घरों से फुर्र हो गए. जब पास का पैसा खत्म हो गया तो 10 दिन बाद दोनों घर लौट आए. लेकिन दोनों के घर वालों ने उन से नाता तोड़ लिया. इसी बीच अदालत से सीताराम और समेस्ता का विधिवत तलाक हो गया. तब तक समेस्ता एक बच्ची की मां बन गई थी.

समेस्ता व श्रवण अब निरंकुश हो गए थे. दोनों लिव इन रिलेशनशिप में पतिपत्नी की तरह रावतसर में रहने लगे. श्रवण बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर का खर्च चला रहा था. इस के साथसाथ वह अपनी वकालत की पढ़ाई भी कर रहा था. इसी बीच समेस्ता एक बेटे की मां और बन गई. दूसरी ओर श्रवण ने एलएलबी तथा एलएलएम की डिग्री हासिल कर ली.

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मात्र सैक्स को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले श्रवण और समेस्ता का प्यार अब धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा था. बच्चों की ट्यूशन से होने वाली आय में उस के खर्चे मुश्किल से पूरे होते थे. महंगाई के जमाने में तंगहाली से 2-4 हुए समेस्ता और श्रवण खुदगर्ज बन गए थे. तब सन 2014 में श्रवण समेस्ता को रावतसर में ही छोड़ कर सूरतगढ़ चला गया और वहीं रह कर बैंकिंग सर्विस की कोचिंग लेने लगा.

समेस्ता रावतसर में अपने 2 बच्चों के साथ किराए के एक कमरे में तंगहाली में जीवन गुजार रही थी. बाद में मजबूरी में उस ने विवाह शादियों में बरतन साफ करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही दोनों बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा दिया.

आर्थिक हालात में मामूली सुधार होते ही उस ने घर में ही खाने के टिफिन तैयार करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही अकेले रह रहे 2-3 अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां दोनों समय का खाना भी बना आती थी. अब तक समेस्ता 35 साल की हो चुकी थी. हालातों से लड़ने के जज्बे ने उसे शालीन बना दिया था.

बता दें कि सूरतगढ़ में रह रहे श्रवण ने समेस्ता से अभी अपने संबंध खत्म नहीं किए थे. वह 2-4 महीने में चक्कर लगा कर समेस्ता को संभाल जाता था. श्रवण को यह पता चला कि समेस्ता अधिकारियों के घर जा कर खाना बनाती है तो वह बिफर पड़ा. समेस्ता के रहनसहन में आए बदलाव ने उस के मन में शक का जहर पैदा कर दिया.

श्रवण ने एक दिन उस से कह ही दिया, ‘‘समेस्ता, अब तू किसी के घर खाना बनाने नहीं जाएगी. मुझे पता चल गया है कि खाना बनाने की ओट में तू अधिकारियों के यहां गुलछर्रे उड़ाती है.’’

गुस्से में कांपते श्रवण ने गालियों के साथ समेस्ता को चेतावनी दे डाली.

‘‘देख श्रवण, तूने मुझे अकेली छोड़ कर डांटने या कोई बंदिश लगाने का अधिकार खो दिया है. तूने कभी जानने की कोशिश की है कि मैं किन हालात में जी रही हूं. और हां, वैसे भी अगर मैं किसी के साथ मस्ती करती हूं तो तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? अगर तूने भविष्य में मुझे टोका तो मैं तुझे काट कर फेंक दूंगी.’’ गुस्से में समेस्ता ने श्रवण को खरीखोटी सुना दी.

समेस्ता के तेवर देख कर श्रवण उलटे पैरों सूरतगढ़ लौट गया. यह बात 4-5 महीने पहले की है.

समेस्ता श्रवण की विवाहिता नहीं थी. फिर भी वह उस पर पाबंदी लगाना चाहता था. चूंकि समेस्ता अपने पैरों पर खड़ी हो कर संभल चुकी थी, इसलिए उस ने श्रवण की उपेक्षा करनी शुरू कर दी. जो भी हो, वह श्रवण के बच्चे की मां तो थी ही, वह नहीं चाहता था कि उस के बच्चे की मां पराए मर्दों की रातें गुलजार करे.

इस सब से श्रवण का दिमाग घूम गया. उस ने जुलाई, 2017 में रावतसर के एकदो चक्कर लगाए. वह घर पहुंचता तो बच्चे बताते कि मां फलां अधिकारी के यहां खाना बनाने गई है. श्रवण समेस्ता से बिना मिले ही लौट जाता. उस के मन में स्वयं को मिटाने या समेस्ता को मार डालने के विचार आने लगे.

वकालत की पढ़ाई वह पूरी कर चुका था. अंत में उस ने समेस्ता को मिटाने का मन बना लिया. वह वकील था और उस की सोच थी कि वह फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को ठिकाने लगाएगा, ताकि पुलिस या कानून को उस की करतूत का पता नहीं चल सके.

2 दिनों तक योजना बनाने के बाद श्रवण ने समेस्ता को सड़क दुर्घटना में मारने की योजना बना ली. पर इस योजना को हकीकत में बदलने के लिए उसे एक विश्वसनीय साथी की जरूरत थी. उस ने विचार कर के अपने साथी अमरजीत सिंह को राजदार बनाने का निश्चय किया. अमरजीत सिंह मूलरूप से रायसिंनगर क्षेत्र के चक 38 एनपी का निवासी था. वह सूरतगढ़ में रह कर ट्रांसपोर्ट का काम करता था.

अजरजीत सिंह श्रवण का खास दोस्त था. श्रवण ने अपने मन की बात अमरजीत सिंह को बताई. अमरजीत सिंह जानता था कि श्रवण कानून का अच्छा जानकार है, जो भी योजना बनाएगा, वह फूलप्रूफ होगी. वह श्रवण का साथ देने को तैयार हो गया. वह श्रवण की योजना पर सहमत हो गया. यह बात 26 जुलाई, 2017 की है.

योजना के अनुरूप अमरजीत, जो एक कुशल वाहनचालक था, को किराए की गाड़ी ले कर रावतसर आना था. भोर में समेस्ता जब खेतरपाल मंदिर जाती थी, उसी समय उसे मेगा हाईवे पर गाड़ी चढ़ा कर कुचल डालना था. 27 जुलाई की सुबह श्रवण रावतसर आ गया. अमरजीत भी रात में पिकअप ले कर आ गया.

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अगली सुबह मेगा हाईवे पर निकली समेस्ता इसलिए बच गई, क्योंकि उसी समय जयपुर से आने वाली वीडियो बस खेतरपाल मंदिर बसस्टैंड पर पहुंच गई. अगले 2 दिनों तक अमरजीत रावतसर आता रहा. पर कभी हाईवे पर यात्रियों के आगमन या मौर्निंग वौक वालों के जमघट के कारण योजना सिरे नहीं चढ़ पाई.

30 जुलाई की रात श्रवण समेस्ता व बच्चों के साथ सो गया. सुबह वह भोर से पहले ही उठ कर मेगा हाईवे पर आ गया. भोर में साढ़े 3 बजे अमरजीत सिंह भी पिकअप ले कर आ गया. 4 बजे के आसपास समेस्ता मंदिर जाने के लिए मेगा हाईवे पर पहुंच गई. झाडि़यों में छिपे श्रवण ने उसी क्षण अमरजीत को घंटी मार दी.

सुनसान गली में खड़ी पिकअप का चालक अमरजीत सिंह जल्दी से मेगा हाईवे पर पहुंच गया. सुनसान मेगा हाईवे पर शिकार नजर आते ही अमरजीत ने एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ा दिया. तेजी से आई पिकअप की टक्कर से समेस्ता हवा में उछल कर सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी. समेस्ता की खोपड़ी फट गई थी, जिस से उस का ज्यादा तादाद में खून निकल गया और उस ने उसी समय दम तोड़ दिया.

कुछ दूरी जा कर अमरजीत पिकअप ले कर लौट आया. तब तक झाडि़यों से निकल कर श्रवण भी मेगा हाईवे पर आ गया था. अमरजीत ने श्रवण को गाड़ी में बिठाया और उसे मोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गया. दोनों ने गाड़ी से उतर कर समेस्ता का जायजा लिया. निश्चल पड़ी समेस्ता की मौत हो चुकी थी. श्रवण दबे पांव अपने घर पहुंच कर बिस्तर में दुबक गया. जबकि अमरजीत पिकअप ले कर सूरतगढ़ लौट गया.

फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को मौत की नींद सुलाने वाले श्रवण व अमरजीत योजना के क्रियान्वयन से खुश थे. दोनों को उम्मीद थी कि उन का जघन्य अपराध कभी भी जगजाहिर नहीं होगा. लेकिन वकालत की पढ़ाई कर चुका श्रवण इस तथ्य से अनजान था कि उन का कृत्य सीसीटीवी कैमरे में रिकौर्ड हो रहा था.

यह एक ऐसा अकाट्य साक्ष्य था जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. इसी कैमरे की फुटेज से श्रवण के कृत्य का भंडाफोड़ हुआ. समेस्ता व श्रवण के बीच बढ़ी दूरियों से श्रवण संदिग्ध बन कर पुलिस रिकौर्ड पर आ चुका था.

समेस्ता के अंतिम संस्कार के बाद श्रवण भूमिगत हो गया था. पर कांस्टेबल सुखदेव बेनीवाल के मुखबिरों के नेटवर्क के आगे वह बौना साबित हुआ. 10 अगस्त को पुलिस ने श्रवण को अमरजीत के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने षडयंत्रपूर्वक समेस्ता को मार देने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

रावतसर के सीजेजेएम रविकांत सोनी की अदालत ने पुलिस की मांग पर दोनों हत्यारोपियों का 4 दिनों का पुलिस रिमांड दे दिया. पुलिस ने इस केस की प्राथमिकी में भादंवि की धारा 302, 120बी और जोड़ दी. इस अवधि में आरोपी अमरजीत सिंह ने वारदात में प्रयुक्त पिकअप गाड़ी पुलिस को बरामद करवा दी. पूछताछ में पता चला कि अमरजीत का आपराधिक रिकौर्ड रहा है. पूर्व में भी उस के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था. लेकिन अदालत ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया था.

16 अगस्त, 2017 को पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. वकालत की पढ़ाई कर चुके नासमझ श्रवण ने समेस्ता को मिटा कर अपना और अमरजीत सिंह का भविष्य तो अंधकारमय बना ही दिया, समेस्ता के दोनों बच्चे भी बेसहारा हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फर्जी MBBS दाखिले : करोड़ों लूटे – भाग 2

‘‘मैं जानता हूं एमबीबीएस करने के लिए अस्सीनब्बे लाख रुपया चाहिए. यह कोर्स अमीर लोग ही अपने बेटों को करवा सकते हैं. हम लोग यह कोर्स करने का सपना भी नहीं देख सकते, लेकिन अब हमारे लिए एक रास्ता खुल गया है.’’

‘‘कैसा रास्ता?’’ चंद्रेश ने राजवीर की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.

‘‘गौतमबुद्ध नगर में एक औफिस खुला है. वे एमबीबीएस के लिए संबंधित कालेज में केवल 15 लाख में एडमिशन दिलवा देते हैं.’’

‘‘15 लाख, यह तो ज्यादा है.’’ चंद्रेश की आवाज में निराशा झलकी.

‘‘अबे, 80-90 लाख से तो ठीक है. तेरा सपना अगर 15 लाख रुपए में पूरा हो जाए तो और क्या चाहिए. डाक्टर बन कर कालेज से बाहर आओगे तो ऐसे कितने ही 15 लाख कमा लोगे.’’

‘‘कहता तो तू ठीक है, बोल कब चलेगा उस औफिस में?’’

‘‘कल चलते हैं. मैं आज दोस्त से उस औफिस का एड्रैस कंफर्म कर लूंगा. मुझे भी एमबीबीएस करना है.’’

‘‘ठीक है, मैं कल तुम्हें 9 बजे तुम्हारे घर पर मिलता हूं.’’ चंद्रेश ने उठते हुए कहा.

शाम को उस ने घर पहुंच कर इंटरव्यू में धोखाधड़ी होने की बात अपनी भाभी रमा को बता दी थी. भाभी तब बहुत निराश हो गई थीं.

वह सोचता था, ‘क्या उस ने 10-12 हजार की नौकरी पाने के लिए बीएससी की थी?’

जैसेतैसे वह रात कटी. चंद्रेश ने जल्दी से बिस्तर छोड़ा. नित्यकर्म से फारिग होने के बाद उस ने चायनाश्ता किया और तैयार हो कर वह 8 बजे ही घर से निकल गया.

9 बजे से पहले ही वह राजवीर के घर पहुंच गया. उसे हैरानी हुई कि राजवीर पहले से ही तैयार हो कर उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘तूने एड्रैस कंफर्म कर लिया न राजवीर?’’ चंद्रेश ने हायहैलो करने से पहले ही पूछ लिया.

‘‘हां, वह सैक्टर-63 में है. पूरा पता है डी-247/4ए, गौतमबुद्ध नगर. हम वहां आटो से चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ चंद्रेश ने सिर हिला कर कहा, ‘‘मेरी जेब में 2 सौ रुपया है.’’

‘‘मेरी जेब भी गरम है यार.’’ राजवीर बोला तो चंद्रेश हंस पड़ा.

दोनों ने रोड से गौतमबुद्धनगर के सैक्टर-63 के लिए आटो किया और आधा घंटे में ही सैक्टर-63 में पहुंच गए. पूछते हुए दोनों डी-247/4ए के सामने पहुंच कर रुक गए. वहां कुछ युवक खड़े थे.

‘‘यही है औफिस. देखो, पहले से यहां कितने ही युवक खड़े हैं.’’ राजवीर ने चंद्रेश का हाथ दबा कर कहा.

‘‘शायद एकएक को अंदर बुलाया जा रहा है, तभी औफिस के बाहर ये लोग खड़े हैं.’’ चंद्रेश ने अनुमान लगा कर कहा, ‘‘आओ, किसी से पूछ लेते हैं.’’

दोनों वहां बाहर खडे युवकों के पास आए.

‘‘अंदर प्रवेश के लिए क्या प्रोसिजर है दोस्त?’’ राजवीर ने एक युवक से पूछा.

‘‘गेट पर गार्ड खड़ा है, उस से एक फार्म 5 रुपए का ले लो और अपना बायोडाटा लिख कर गार्ड को दे दो. वही आवाज लगा कर आप को बुलाएगा.’’ उस युवक ने बताया.

दोनों ने गार्ड को 10 रुपए दे कर 2 फार्म ले लिए फिर फार्म भर कर गार्ड के पास जमा करवा दिए. उन को बताया गया कि एक घंटे तक उन का नंबर आ जाएगा. दोनों वहीं धूप में खड़े हो गए.

एक घंटे बाद पहले राजवीर को अंदर बुलाया गया, फिर 15 मिनट बाद चंद्रेश का नंबर आया. चंद्रेश ने शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश किया, तब उस के दिल की धड़कन बेकाबू थी. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए उस ने अंदर बने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर घुसते हुए बड़े शिष्टाचार से कहा, ‘‘गुड मार्निंग सर.’’

‘‘वेरी गुडमार्निंग,’’ सामने कुरसी में धंसे एक मुसलिम नजर आने वाले युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए.’’

चंद्रेश ने कुरसी पर बैठ कर नजरें घुमाईं. उस युवक के साथ वाली कुरसियों पर 2 युवतियां बैठी हुई थीं, जो चेहरेमोहरों से शिक्षित दिखलाई पड़ती थीं.

केबिन की दीवारें सपाट थीं. उन पर किसी नेता की तसवीर नहीं लगी थी. अकसर औफिस में किसी राजनेता की तसवीर जरूर लगी होती है. सामने बैठा मुसलिम युवक शायद हैड था. उस ने चंद्रेश को गौर से देखा, ‘‘क्या आप का नाम चंद्रेश गुप्ता है?’’ हाथ में पकड़े फार्म को देख कर उस युवक ने पूछा.

‘‘जी सर,’’ चंद्रेश ने बताया.

‘‘गुप्ता लोग तो पैसे वाले होते हैं चंद्रेश बाबू.’’ युवक ने प्रश्न किया, ‘‘क्या आप भी पैसे वाले हैं?’’

‘‘नहीं सर, हम खानेकमाने वालों में से हैं. भैया 12 हजार की नौकरी करते हैं.’’

‘‘हूं,’’ सामने बैठे युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘क्या आप को नहीं मालूम एमबीबीएस में एडमिशन पाने के लिए लाखों रुपया लगता है?’’

‘‘मालूम है सर. लेकिन सुना है, आप कम रुपयों में एमबीबीएस का दाखिला दिला देते हैं.’’ चंद्रेश ने जल्दी से बात को संभाला, ‘‘आप केवल 15 लाख रुपया लेते हैं.’’

‘‘जरूरी नहीं, 15 लाख ही लेंगे. हमें आप का सब्जेक्ट, शिक्षा सभी पर गौर करना है. खुशी हुई आप ने साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन किया है. लेकिन आप के मार्क्स कम हैं, इसलिए आप को सरकारी कालेज में दाखिला दिलवाने में थोड़ी परेशानी पेश आएगी.’’

‘‘सर, मुझे एमबीबीएस करना है. आप मन से चाहेंगे तो मुझे एडमिशन मिल जाएगा.’’ चंद्रेश गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘मैं बहुत उम्मीद से यहां आया हूं.’’

उस युवक ने पास बैठी युवती की ओर देखा. आंखों ही आंखों में बात की, फिर उन में से एक युवती ने चंद्रेश के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘क्या आप 30 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकेंगे?’’

‘‘30 लाख? यह तो बहुत ज्यादा होगा मैम.’’ चंद्रेश घबरा कर बोला.

‘‘तो आप कितना दे सकते हैं?’’ दूसरी युवती ने पूछा.

‘‘15 लाख दे दूंगा मैम.’’

‘‘15 लाख कम रहेगा.’’ सामने बैठे युवक ने इंकार में सिर हिलाया तो तुरंत पास बैठी युवली बोल पड़ी, ‘‘आप 20 लाख का इंतजाम करिए. हम आप के लिए सरकारी कालेज में एडमिशन की बात कर लेते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं 20 लाख ही दूंगा, लेकिन मेरा एडमिशन हो जाना चाहिए मैम.’’ चंद्रेश ने अपनी बात रख कर आश्वासन मांगा.

‘‘अवश्य हो जाएगा. आप एक हफ्ते में 20 लाख रुपया जमा करवा दें, इस से ज्यादा समय नहीं दिया जाएगा आप को, क्योंकि यहां एडमिशन पाने वालों की भीड़ ज्यादा है और सरकारी कालेजों में सीटें कम हैं.’’

‘‘मैं एक हफ्ते से पहले ही 20 लाख जमा करवा दूंगा मैम.’’ चंद्रेश जल्दी से बोला.

चंद्रेश उठा और बाहर आ गया. राजवीर उसे बाहर ही मिल गया. उस ने बताया कि उस से 25 लाख रुपया मांगा गया है, वह 2 दिन में यह रुपया ला कर जमा करवा देगा.

सावधान ! ऐसे ड्राइवर से वरना…

कोई भी अनहोनी या परेशानी बता कर नहीं आती. जिस तरह उजाले को शाम का अंधेरा अपने आगोश में समेटता है, वैसा ही कुछ हाल अनहोनी और परेशानी का भी होता है. नोएडा के वीआईपी इलाके सैक्टर ओमेगा वन स्थित ग्रीनवुड सोसायटी के रहने वाले कारोबारी अशोक गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

13 जनवरी, 2017 की दोपहर उनकी आलीशान कोठी में अजीब सी हलचल थी. ऐसी हलचल, जिसे पहले कभी महसूस नहीं किया गया था. दरअसल उस दिन अशोक गुप्ता की पत्नी और बेटा विपुल काफी परेशान थे. मृदुभाषी अशोक का बैटरी बनाने का बड़ा कारोबार था, जिसे वह अपने 2 बेटों की मदद से चला रहे थे.

यूं तो अशोक गुप्ता खुशियों भरी जिंदगी जी रहे थे, लेकिन उस दिन जैसे उन के परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई थी. दरअसल ढाई बजे के करीब उन के बेटे विपुल के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. नंबर चूंकि पिता का था, इसलिए उन्होंने तत्काल फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

विपुल को झटका तब लगा, जब दूसरी ओर से किसी अनजान आदमी की आवाज आई, ‘‘पापा, नहीं मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘आप कौन ’’ विपुल ने पूछा.

‘‘यह भी बता देंगे, फिलहाल इतना जान लो कि तुम्हारे पापा हमारे कब्जे में हैं. अगर उन की जान की सलामती चाहते हो तो जल्दी से 3 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ फोन करने वाले ने सख्त लहजे में कहा.

उस की बात सुन कर विपुल के पैरों तले से जमीन खिसक गई. विपुल ने पूछना चाहा कि वह कौन बोल रहा है तो उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ज्यादा सवाल नहीं, जितना कहा है, सिर्फ उतना करो.’’

इतना कह कर फोन करने वाले ने फोन काट दिया. इस के बाद गुप्ता परिवार सकते में आ गया. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि अशोक गुप्ता का अपहरण हो चुका है. वह बदमाशों के चंगुल में हैं. उन्हें छोड़ने के लिए बदमाश फिरौती मांग रहे हैं.

अशोक गुप्ता घर में बाजार जाने की बात कह कर अपनी कोरोला कार से ड्राइवर पवन के साथ निकले थे. उसी बीच उन का अपहरण हो गया था. उन का तो अपहरण हो गया, ड्राइवर पवन कहां गया, उस का कुछ पता नहीं था. घर वाले उसी के बारे में सोच रहे थे कि घबराया हुआ पवन घर में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह काफी डरा हुआ था.

उस के आते ही विपुल ने पूछा, ‘‘पवन, पापा को क्या हुआ ’’

‘‘वे मेरी आंखों के सामने से उन्हें ले गए और मैं कुछ नहीं कर पाया.’’ कह कर पवन जोरजोर से रोने लगा.

‘‘क्या हुआ, पूरी बात ठीक से बताओ.’’ विपुल ने पूछा.

‘‘भैयाजी, मैं साहब को ले कर सैक्टर पी-3 गोलचक्कर के पास जा रहा था, तभी एक मारुति वैन ने हमारी कार को ओवरटेक कर के रोक लिया. 3 बदमाशों ने हथियारों के बल पर साहब को निकाल कर अपनी कार में बैठाया और देखतेदेखते ले कर चले गए. मैं ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे धक्का दे कर गिरा दिया.’’ डरे हुए अंदाज में पवन ने कहा.

पवन अपनी बात कह ही रहा था कि अपहर्त्ता का फिर फोन आ गया. विपुल ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया’’

‘‘इतनी बड़ी रकम का इंतजाम इतनी जल्दी कैसे हो सकता है ’’

‘‘गुप्ताजी को जिंदा देखना चाहते हो तो फिरौती तो देनी ही होगी.’’

‘‘आप लोग मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए, रकम बहुत ज्यादा है. हम कोशिश कर के भी इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर सकते. हमारे पास जो नकदी और गहने हैं, वह सब हम देने को तैयार हैं. लेकिन मेरे पापा को कुछ नहीं होना चाहिए.’’

‘‘उस की फिक्र तुम मत करो, हम अपने वादे के पक्के हैं. तुम पैसा तैयार करो, हम दोबारा फोन करते हैं. और हां, गलती से भी पुलिस को खबर की तो मजबूरन हमें अपने हाथ खून से रंगने पड़ेंगे.’’ अपहर्त्ता ने कहा और फोन काट दिया. इस तरह अपहर्त्ता लगातार विपुल के संपर्क में बने थे.

नातेरिश्तेदारों से सलाहमशविरा कर के विपुल ने पिता के अपहरण की सूचना पुलिस को दे दी. कारोबारी के अपहरण की सूचना मिलते ही सीओ डा. अरुण कुमार और स्थानीय थाना कासना के थानाप्रभारी सुधीर त्यागी अशोक गुप्ता की कोठी पर पहुंच गए.

मामला सीधे अपहरण का था. अब तक मिली जानकारी से पुलिस को पूरा विश्वास था कि अपहर्त्ता जरूर किसी न किसी रूप में अशोक गुप्ता के जानकार थे. उन्होंने उन की हैसियत देख कर ही फिरौती की मांग की थी.

उन के ड्राइवर पवन के सामने उन का अपहरण हुआ था, इसलिए पुलिस ने उस से पूछताछ की. उस ने वहीं बातें पुलिस को भी बताईं, जो विपुल को बताई थीं. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस ने वहां शोर क्यों नहीं मचाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं बहुत डर गया था.’’

एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने एसपी सुजाता सिंह से सलाह की. वह अपहृत कारोबारी अशोक गुप्ता की जल्द से जल्द बरामदगी चाहते थे, इसलिए उन के निर्देश पर एसपी सुजाता सिंह ने सर्विलांस टीम को सक्रिय कर दिया. पुलिस ने अपराध क्रमांक 33/2017 पर धारा 364ए/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी, साथ ही विपुल से अपहर्त्ताओं से संपर्क बनाए रखने को कहा.

अपहर्त्ता का फोन आया तो विपुल ने बात 15 लाख रुपए नकद और आभूषणों में तय कर ली. लेकिन अपहर्त्ताओं की एक बात ने विपुल को न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि वह सोचने पर भी मजबूर हो गए. अपहर्त्ता ने कहा था, ‘‘हम यह फिरौती एक शर्त पर लेंगे.’’

‘‘क्या ’’

‘‘आप को रकम अपने ड्राइवर के हाथों भेजनी होगी, क्योंकि हम उसे पहचानते हैं. इस में कोई चालाकी नहीं होनी चाहिए. फिरौती ले कर कहां आना है, यह हम थोड़ी देर में बता देंगे.’’

अपहर्त्ता ने जैसे ही फोन रखा, विपुल ने पुलिस अधिकारियों से कहा, ‘‘सर, अपहर्त्ता कौन है, मुझे पता चल गया है.’’

‘‘क्या ’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘जी सर, मैं ने उस की आवाज पहचान ली है. वह कोई और नहीं, हमारा पुराना ड्राइवर सनेश है. मेरा शक उस पर इसलिए और बढ़ गया है, क्योंकि उस ने फिरौती की रकम पहुंचाने के लिए पवन को भेजने की शर्त रखी है. पवन को डेढ़ महीने पहले उसी ने हमारे यहां नौकरी पर रखवाया था.’’ विपुल ने बताया.

विपुल ने यह बात बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कही थी, इसलिए पुलिस के शक की सुई पवन पर ठहर गई. उस की भूमिका पुलिस की नजर में पहले से ही संदिग्ध थी, क्योंकि उस ने पुलिस को फोन न कर के और शोर न मचा कर घर आ कर अपहरण की बात बताई थी.

जबकि अपहरण के मामलों में ऐसा होता नहीं है कि अपहर्त्ता किसी ड्राइवर के जरिए फिरौती मंगवाएं. असलियत जानने के लिए पुलिस की सर्विलांस टीम ने पवन, अशोक गुप्ता और सनेश की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना के समय की तीनों की लोकेशन एक साथ की पाई गई. यही नहीं, पवन और सनेश की लगातार बातें भी हो रही थीं.

पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की राह मिल गई थी. पवन से पूछताछ की गई तो पहले वह अपना हाथ होने से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपहरण की साजिश में वह खुद भी शामिल है.

सपी सुजाता सिंह जानती थीं कि अपहर्त्ताओं को जरा भी शक हुआ तो अशोक गुप्ता की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए उन्होंने पवन के जरिए अपहर्त्ताओं तक पहुंचने और अशोक गुप्ता को सकुशल बरामद करने की योजना बनाई. इस मामले में खास बात यह थी कि पवन को पता था कि अशोक गुप्ता को कहां रखा गया है.

विपुल ने अपहर्त्ताओं को फोन कर के बता दिया था कि उन्होंने पवन को रकम दे कर भेज दिया है. जबकि पुलिस टीम ने पवन को कार में अपने साथ बैठा रखा था. 10 मिनट बाद ही पवन के साथी का फोन उस के मोबाइल पर आ गया. पवन ने पुलिस के इशारे पर उसे विश्वास दिला दिया कि किसी तरह का कोई खतरा नहीं है और वह फिरौती का माल ले कर उन के पास पहुंच रहा है.

अब तक रात हो चुकी थी. हथियारों से लैस पुलिस टीम पवन को साथ ले कर रात करीब 12 बजे बुलंदशहर जनपद के थाना सिकंदराबाद के गांव सनौटा के जंगल में पहुंची. थोड़ी कोशिश कर के पुलिस ने ईंख के एक खेत में बंधक बनाए गए अशोक गुप्ता को सकुशल अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा लिया.

पुलिस ने घेराबंदी कर के सनेश और उस के साथी राबिन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इन के 2 साथी पुलिस को चकमा दे कर भाग निकले. पुलिस को इन के कब्जे से 315 बोर के 2 तमंचे मिले. अशोक गुप्ता काफी डरेसहमे थे. पुलिस सभी को ले कर नोएडा आ गई. पुलिस के लिए यह बड़ी सफलता थी.

एसपी सुजाता सिंह ने आरोपियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में राह से भटके एक शातिर महत्त्वाकांक्षी नौजवान की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

एक साल पहले अशोक गुप्ता ने सनेश को अपने यहां ड्राइवर रखा था. वह नोएडा से ही लगे जिला बुलंदशहर के गांव खगावली का रहने वाला था. निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला बीए पास सनेश काफी महत्त्वाकांक्षी था और बचपन से ही अमीर बनने के सपने देखता आया था.

यह बात अलग थी कि उस के सपने पूरे नहीं हो सके थे और वह ड्राइवर बन कर रह गया था. अपने काम से सनेश जरा भी खुश नहीं था. अपने सपने के बारे में वह अकसर अशोक गुप्ता से भी जिक्र करता रहता था कि एक दिन उसे भी बड़ा आदमी बनना है. अशोक गुप्ता उस की बातें सुन कर मुसकरा देते थे.

अमीर बनने के सपने ने सनेश को कुंठित कर दिया था. अक्तूबर, 2016 के अंत में नौकरी छोड़ कर उस ने कोई दूसरा काम करने का विचार किया. जबकि अशोक गुप्ता नहीं चाहते थे कि वह नौकरी छोड़ कर जाए. उन्हें परेशानी हुई तो उन्होंने उस से कोई दूसरा ड्राइवर दिलाने को कहा.

अशोक गुप्ता के कहने पर उस ने अपने रिश्तेदार पवन को उन के यहां नौकरी पर रखवा दिया. पवन का बड़ा भाई सनेश का जीजा था. पवन उसी के पड़ोस के गांव शरीकपुर का रहने वाला था. यहां अशोक गुप्ता की लापरवाही ही कही जाएगी कि उन्होंने दोनों ड्राइवरों का पुलिस वैरिफिकेशन कराना जरूरी  नहीं समझा.

सनेश ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन काफी भटकने के बाद भी उसे न कोई दूसरी नौकरी मिली और न ही वह कोई दूसरा काम कर सका. हर समय वह किसी भी तरह रुपए कमाने के बारे में सोचा करता था. दिमाग में जब एक ही बात बैठ जाए तो आदमी अच्छाबुरा भी नहीं देखता.

ऐसे में ही सनेश के दिमाग में गलत तरीके से पैसे कमाने की बात आई तो उस ने अपने पुराने मालिक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने का मन बना लिया. क्योंकि वह अशोक गुप्ता की आर्थिक स्थिति और स्वभाव को जानता था.

उस ने सोचा कि अगर अशोक गुप्ता का अपहरण कर लिया जाए तो उन से आसानी से मोटी रकम फिरौती में मिल सकती है. चूंकि उस का रिश्तेदार पवन उन के यहां ड्राइवर था, इसलिए उस के जरिए बिना किसी खतरे के अशोक गुप्ता का अपहरण किया जा सकता था. पूरी योजना बना कर सनेश ने इस मुद्दे पर पवन से कहा, ‘‘पवन मेरा बचपन से करोड़पति बनने का सपना है. अगर तू मदद कर दे तो मैं एक ही झटके में करोड़पति बन सकता हूं, साथ ही तुझे भी करोड़पति बना सकता हूं.’’

‘‘इस के लिए मुझे क्या करना होगा ’’ पवन ने पूछा.

‘‘अपने लालाजी का अपहरण कराना होगा.’’

‘‘क…क…क्या ’’ पवन चौंका.

‘‘देख, सीधे रास्ते से तो करोड़पति बनने से रहे. भाई इस के लिए कुछ ऐसा ही करना होगा. लेकिन इस में तुझे घबराने की जरूरत नहीं है. मैं सब संभाल लूंगा. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा.’’ सनेश ने पवन को समझाया तो अमीर बनने का उस का भी सपना जाग गया.

सनेश का ही एक दोस्त था राबिन, जो मेरठ जिले के थाना भावनपुर के गांव किनानगर का रहने वाला था. अपना इरादा उस ने राबिन और अन्य 2 साथियों विपिन और ललित को बताया तो पैसों के लालच में वे भी साथ देने को राजी हो गए. इस के बाद एक दिन सभी ने बैठ कर पूरी योजना तैयार की.

सनेश शातिर दिमाग था. वह पूरी सफाई के साथ अशोक गुप्ता का अपहरण कर फिरौती वसूलना चाहता था. उन की योजना थी कि फिरौती वसूल कर को वे अशोक गुप्ता की हत्या कर देंगे, क्योंकि वह उन्हें पहचानते थे. अगर उन्हें जिंदा छोड़ दिया जाता तो बाद में सभी पकड़े जाते. इसलिए वे फिरौती मिलने तक ही उन्हें जिंदा रखना चाहते थे. इस तरह अपहरण की फूलप्रूफ योजना तैयार कर ली गई.

योजना के मुताबिक, 13 जनवरी को पवन अशोक गुप्ता को ले कर निकला. उन्हें रामपुर बाजार जाना था. वापसी में पवन ने कार सेक्टर पी 3 गोलचक्कर के पास अचानक सर्विस रोड की ओर घुमा दी. अशोक गुप्ता को उधर नहीं जाना था, इसलिए

उन्होंने पूछा, ‘‘पवन, इधर कार कहां ले जा रहे हो ’’

‘‘अभी पता चल जाएगा.’’ पवन ने जवाब में कहा.

अशोक गुप्ता कुछ समझ पाते, उस के पहले ही पवन ने कार को किनारे कर के रोक दी. कार के रुकते ही पहले से ही मोटरसाइकिल से पीछा कर रहे सनेश और उस के साथियों ने कार को घेर लिया. इस के बाद सनेश और उस के अन्य साथी कार में दाखिल हो कर अशोक गुप्ता पर तमंचे तान दिए. अचानक घटी इस घटना से अशोक गुप्ता घबरा गए.

सनेश और उस के साथी राबिन ने अशोक को कब्जे में कर लिया. पवन ने कार बढ़ा दी तो बाकी 2 साथी मोटरसाइकिल से उन के पीछेपीछे चल पड़े. अशोक गुप्ता ने चीखने की कोशिश की तो उन्होंने उन के साथ मारपीट कर के और उन्हें जान से मारने की धमकी दे कर चुप करा दिया. इस में उन की स्वेटर भी फट गई.

कार पवन ही चला रहा था. योजना के मुताबिक वे उन्हें जंगल में ले गए और ईंख के खेत में बंधक बना लिया. इस के बाद पवन ने घर जा कर अपहरण की मनगढ़ंत कहानी सुना दी, जबकि सनेश आवाज बदल कर विपुल को फोन करता रहा. वे अपनी योजना में सफल भी हो जाते, लेकिन बुरे कामों का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. विपुल ने आवाज पहचान ली, जिस से अपहर्त्ताओं की पोल खुल गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सनेश, पवन और राबिन को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. बाकी बचे उन के साथियों ललित और विपिन की पुलिस तलाश कर रही थी. सनेश ने अपने बेलगाम सपनों को काबू में रखा होता तो ऐसी नौबत कभी न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार

कानपुर की क्राइम ब्रांच के आईजी आलोक कुमार सिंह को किसी व्यक्ति ने फोन पर जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंका देने वाली थी. एकबारगी तो आईजी साहब को भी खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ. पर इसे अनसुना करना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने उसी समय क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को फोन कर के अपने कैंप कार्यालय पर आने को कहा.

10 मिनट बाद क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला आईजी आलोक कुमार सिंह के निवास पर पहुंच गए. आईजी ने ऋषिकांत की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘शुक्लाजी, फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. और शर्मनाक बात यह है कि फीलखाना थाना व चौकी के कुछ पुलिसकर्मी ही कालगर्लों को संरक्षण दे रहे हैं. तुम जल्द से जल्द इस सूचना की जांच कर के दोषी पुलिसकर्मियों की जानकारी मुझे दो. इस बात का खयाल रखना कि यह खबर किसी भी तरह लीक न हो.’’

ऋषिकांत शुक्ला कानपुर के कई थानों में तैनात रह चुके थे. उन के पास मुखबिरों का अच्छाखासा नेटवर्क था. अत: आईजी का आदेश पाते ही उन्होंने फीलखाना क्षेत्र में मुखबिरों को अलर्ट कर दिया.

2 दिन बाद ही 2 मुखबिर ऋषिकांत शुक्ला के औफिस पहुंचे. उन्होंने उन्हें बताया, ‘‘सर, फीलखाना थाना क्षेत्र के पटकापुर में सूर्या अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर के एक फ्लैट में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चल रहा है. इस रैकेट की संचालिका बरखा मिश्रा है. वह पत्रकारिता की आड़ में यह धंधा करती है. उस ने बचाव के लिए वहां अपना एक औफिस भी खोल रखा है. उसे कथित मीडियाकर्मी, पुलिस तथा सफेदपोशों का संरक्षण प्राप्त है.’’

क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मुखबिर से मिली सूचना से आईजी आलोक कुमार सिंह को अवगत करा दिया. सूचना की पुष्टि हो जाने के बाद आईजी ने एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए.

चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए मीणा ने एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ कोतवाली अजय कुमार, सीओ सदर समीक्षा पांडेय, क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, फीलखाना इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, एसआई विनोद मिश्रा, रावेंद्र कुमार, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम तथा महिला सिपाही पूजा व सरिता सिंह को शामिल किया.

3 जनवरी, 2018 की शाम को यह टीम पटकापुर पुलिस चौकी के सामने स्थित सूर्या अपार्टमेंट पहुंची. कांस्टेबल पूजा ने इस अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली बरखा मिश्रा के फ्लैट का दरवाजा खटखटाया. चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला. सामने पुलिस टीम को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम बरखा मिश्रा है?’’ सीओ समीक्षा पांडेय ने पूछा.

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’  वह बोली.

‘‘मैडम, हमें पता चला है कि आप के फ्लैट में देह व्यापार चल रहा है.’’ समीक्षा पांडेय ने कहा.

इस बात पर बरखा मिश्रा न डरी न सहमी बल्कि मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं. मैं तो मीडियाकर्मी हूं. क्या आप ने मेरा बोर्ड नहीं देखा. पत्रकार के साथसाथ मैं समाजसेविका भी हूं. मैं भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की वाइस प्रेसीडेंट हूं.’’ रौब से कहते हुए बरखा ने एक समाचारपत्र का प्रैस कार्ड व कमेटी का परिचय पत्र उन्हें दिखाया.

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बरखा मिश्रा ने पुलिस टीम पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी कोशिश की, लेकिन पुलिस टीम उस के दबाव में नहीं आई. टीम बरखा मिश्रा को उस के फ्लैट के अंदर ले गई. वहां का नजारा कुछ और ही था. फ्लैट में 3 युवक, 3 युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे. जबकि एक युवक पैसे गिन रहा था.

पुलिस को देख कर सभी भागने की कोशिश करने लगे. लेकिन पुलिस टीम ने उन्हें भागने का मौका नहीं दिया. सीओ सदर समीक्षा पांडेय ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया, जबकि क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने चारों युवकों को अपनी कस्टडी में ले लिया.

फ्लैट की तलाशी ली गई तो वहां से 72,500 रुपए नकद, शक्तिवर्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक चीजें मिलीं. पुलिस ने इन सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.

संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड, आधार कार्ड व पैन कार्ड मिले, जो 2 अलगअलग नामों से बनाए गए थे. सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पुलिस थाना फीलखाना लौट आई.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा और एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या भी थाना फीलखाना आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो एक युवती ने अपना नाम प्रिया निवासी शिवली रोड, थाना कल्याणपुर, कानपुर सिटी बताया.

दूसरी युवती ने अपना नाम विनीता सक्सेना, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर तथा तीसरी युवती ने अपना नाम नेहा सेठी निवासी मकड़ीखेड़ा, कानपुर सिटी बताया. जबकि संचालिका बरखा मिश्रा ने अपना पता रतन सदन अपार्टमेंट, आजादनगर, कानपुर सिटी बताया.

अय्याशी करते जो युवक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम शेखर गुप्ता, गौरव सिंह, नवजीत सिंह और दीपांकर गुप्ता थे. सभी कानपुर सिटी के ही अलगअलग इलाकों के रहने वाले थे.

पुलिस ने संचालिका बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था.

उस ने कई वेबसाइटों पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड कर रखे थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. इतना ही नहीं वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था.

ग्राहकों की डिमांड पर वह दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस व मुंबई आदि शहरों के दलालों की मार्फत रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी. बरखा को कुछ मीडियाकर्मियों, पुलिस वालों, रसूखदार लोगों व प्रशासनिक अधिकारयों का संरक्षण प्राप्त था. समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण दे रहे थे. ऐसे लोग खुद भी उस के यहां रंगरलियां मनाते थे.

पूछताछ में पुलिस ने बरखा की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली. साधारण परिवार में पली बरखा के कालेज टाइम में कई बौयफ्रैंड थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी.

समय आने पर बरखा के मांबाप ने उस की शादी कर दी. मायके से विदा हो कर बरखा ससुराल पहुंच गई. ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो शरमीली बन कर रही पर बाद में वह धीरेधीरे खुलने लगी.

दरअसल, बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना संजोया था, उसे वैसा पति नहीं मिला. उस का पति दुकानदार था और उस की आमदनी सीमित थी. वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं. बरखा आए दिन उस से शिकायत करती रहती थी. फलस्वरूप आए दिन घर में कलह होने लगी.

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे, लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था. वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका करना या बंधन में रहना पसंद नहीं था. इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि आजिज आ कर बरखा ने पति का साथ छोड़ दिया.

पति का साथ छोड़ने के बाद वह कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी. वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी. उसे विश्वास था कि उसे जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवन मजे से कटेगा. इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई.

बरखा को यह पता नहीं था कि नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

लिहाजा उस ने पैसे के लिए अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया. वह खूबसूरत भी थी और जवान भी, इसलिए उसे ग्राहक तलाशने में कोई ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पडी. यह काम करने में उसे शुरूशुरू में झिझक जरूर महसूस हुई लेकिन कुछ समय बाद वह देहधंधे की खिलाड़ी बन गई. आमदनी बढ़ाने के लिए उस ने अपने जाल में कई लड़कियों को भी फांस लिया था.

जब इस धंधे से उसे ज्यादा आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह किराए पर फ्लैट ले कर धंधे को सुचारू रूप से चलाने लगी.

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वह नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह व्यापार में उतार देती. उस के निशाने पर स्कूल कालेज की वे लड़कियां होती थीं, जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं. बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी बातचीत से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी. इसी का फायदा उठा कर उस ने कई सामाजिक संस्थाओं के संचालकों, नेताओं, मीडियाकर्मियों, पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए थे. इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी थी. पुलिस थानों में पंचायत करने लगी. यही नहीं, उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर के प्रैस कार्ड भी बनवा लिया और एक सामाजिक संस्था में अच्छा पद भी हासिल कर लिया.

बरखा मिश्रा को देह व्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और बढ़ा लिया. दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई दलालों से उस का संपर्क बन गया. इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजती थी तथा डिमांड पर विदेशी लड़कियों को शहर में बुलाती भी थी.

कुछ ग्राहक रशियन व नेपाली बालाओं की डिमांड करते थे. उन से वह मुंहमांगी रकम लेती थी. ये लड़कियां हवाईजहाज से आती थीं और हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं. बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक में लड़की बुक होती थीं. होटल व खानेपीने का खर्च ग्राहक को ही देना होता था.

बरखा इस धंधे में कोडवर्ड का भी प्रयोग करती थी. एजेंट को वह चार्ली के नाम से बुलाती थी और युवती को चिली नाम दिया गया था. किसी युवती को भेजने के लिए वह वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी. मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी. चार्ली नाम के उस के दर्जनों एजेंट थे, जो युवतियों की सप्लाई करते थे. एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो.’’

लोगों को शक न हो इसलिए बरखा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी. जैसे ही उस के बारे में सुगबुगाहट होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती थी. पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने स्वरूपनगर में अपना काम जमाया. स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में उस ने किराए पर फ्लैट लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी.

नवंबर, 2017 में बरखा ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया. यह फ्लैट किसी वकील का था. उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. उसे फ्लैट में अपना औफिस खोलना है. इस फ्लैट में वह धंधा करती थी, जबकि रहने के लिए उस ने आजादनगर के सदन अपार्टमेंट में फ्लैट किराए पर ले रखा था.

दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखा को सुझाव दिया था कि वह समाचारपत्र का कार्यालय खोल ले. इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे. यह सुझाव उसे पसंद आया और उस ने फ्लैट किराए पर ले कर समाचार पत्र का बोर्ड भी लगा दिया. यही नहीं, उस ने धंधे में शामिल लड़कियों से कह रखा था कि कोई पूछे तो बता देना कि वह प्रैस कार्यालय में काम करती हैं.

इस फ्लैट में सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना आईजी आलोक कुमार सिंह को दे दी, जिस के बाद पुलिस ने काररवाई की.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई 19 वर्षीय विनीता सक्सेना मध्यमवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वहां उस की कई फ्रैंड्स ऐसी थीं जो रईस घरानों से थीं. वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाठबाट से रहती थीं. महंगे मोबाइल फोन रखतीं, रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करती थीं. विनीता जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश! ऐसे ठाठबाट उस के नसीब में भी होते.’

एक दिन एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई. उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है. राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है.

उस की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर भी जाने लगी. घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है.

इस के बाद विनीता जब भी बरखा के घर आती तो वह उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती. धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फांस कर उसे देह व्यापार में उतार दिया. घटना वाले दिन वह ग्राहक शेखर गुप्ता के साथ रंगेहाथ पकड़ी गई थी.

सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 21 वर्षीय प्रिया के मातापिता गरीब थे. कालेज की पढ़ाई का खर्च व अपना खर्च वह ट्यूशन पढ़ा कर निकालती थी. प्रिया का एक बौयफ्रैंड था, जिस का बरखा मिश्रा के अड्डे पर आनाजाना था. उस ने प्रिया की मुलाकात बरखा से कराई. बरखा ने उसे सब्जबाग दिखाए और उस की पहुंच के चलते उसे नौकरी दिलाने का वादा किया.

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नौकरी तो नहीं मिली, बरखा ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया. प्रिया की एक रात की कीमत 10 से 15 हजार रुपए होती थी. मिलने वाली रकम के 3 हिस्से होते थे. एक हिस्सा संचालिका बरखा का, दूसरा दलाल का तथा तीसरा हिस्सा प्रिया का होता था. घटना वाली शाम वह दीपांकर गुप्ता के साथ पकड़ी गई थी.

जिस्मफरोशी का धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई 40 वर्षीय नेहा सेठी शादीशुदा व 2 बच्चों की मां थी. नेहा का पति शराबी था. वह जो कमाता, शराब पर ही उड़ा देता.

नेहा उस से शराब पीने को मना करती तो वह उस की पिटाई कर देता था. एक दिन तो हद ही हो गई. शराब के नशे में उस ने नेहा को पीटा फिर बच्चों सहित घर से निकाल दिया.

तब नेहा बच्चों के साथ मकड़ीखेड़ा में रहने लगी. उस ने बच्चों के पालनपोषण के लिए कई जगह नौकरी की. लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी. नेहा ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

उन्हीं दिनों उसे बरखा मिश्रा के सैक्स रैकेट के बारे में पता चला. उस ने एक दलाल के मार्फत बरखा मिश्रा से संपर्क किया, फिर उस के फ्लैट पर धंधे के लिए जाने लगी. घटना वाले रोज वह ग्राहक गौरव सिंह के साथ पकड़ी गई थी.

अय्याशी करते पकड़ा गया शेखर गुप्ता धनाढ्य परिवार का है. उस के पिता का सिविल लाइंस में बड़ा अस्पताल है. शेखर बरखा का नियमित ग्राहक था. वह उसे ग्राहक भी उपलब्ध कराता था. इस के बदले में उसे मुफ्त में मौजमस्ती करने को मिल जाती थी. शेखर के संबंध कई बड़े लोगों से थे.

शेखर जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया तो इन्हीं रसूखदारों ने पुलिस को फोन कर के शेखर को छोड़ देने की सिफारिश की थी. लेकिन पुलिस ने यह कह कर मना कर दिया कि मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता.

गिरफ्तार हुए नवजीत सिंह उर्फ टाफी सरदार के पिता एक व्यवसायी हैं. नवजीत की पहले कौशलपुरी में कैसेट की दुकान थी. वहां वह अश्लील सीडी बेचने के जुर्म में पकड़ा गया था. बरखा मिश्रा जब कौशलपुरी में सैक्स रैकेट चलाती थी, तभी उस की मुलाकात नवजीत से हुई थी. पहले वह बरखा के अड्डे पर जाता था. फिर वह उस का खास एजेंट बन गया. ग्राहकों को लाने के लिए बरखा उसे अच्छाखासा कमीशन देती थी.

दीपांकर गुप्ता तथा गौरव सिंह व्यापारी थे. बरखा के खास एजेंट टाफी सरदार से उन की जानपहचान थी. घटना वाले दिन टाफी सरदार ही उन्हें बरखा के अड्डे पर ले गया था. दोनों ने 15 हजार में सौदा किया था. उसी दौरान पुलिस की रेड पर पड़ गई. यद्यपि दोनों ने पुलिस को चकमा दे कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.

थाना फीलखाना पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित