बंटी और बबली ले डूबा लालच – भाग 3

प्रियंका ने राहुल का साथ देते हुए कहा, ‘‘इस तरह मुझे भी नौकरी करने की जरूरत नहीं होगी. बिना नौकरी के ही अपने पास काफी पैसे आ जाएंगे.’’

धमकी भरे खत में दीपक को राहुल ने लिखा, ‘‘मेरे मोबाइल की एक क्लिक तेरी जिंदगी खत्म कर देगी. तेरी प्राइवेट इनफार्मेशन को शेयर कर बदनाम कर फैक्ट्री तक को हम बंद करवा देंगे.’’

बदनाम करने की धमकी के साथ ही बिजनेसमैन को गैंग में कई सदस्यों के होने के बारे में भी बताया गया.

राहुल बोहरा ने धमकी भरे लेटर में दीपक और कंपनी की महिला कर्मचारी का नाम लिखा. दोनों के एक साथ गए स्थानों के बारे में डिटेल लिखी. बदनाम करने की धमकी दे कर पहली नवंबर, 2022 को 10 लाख रुपए देने की डिमांड की.

पुलिस को बताने या चालाकी करने पर लिखा कि उस की सारी कौन्टैक्ट लिस्ट उस के मोबाइल में है. उस की प्राइवेट और औफिशयल इनफार्मेशन सभी को शेयर कर दी जाएगी. तेरी हर मूवमेंट का मुझे मेरे मोबाइल में पता चल जाता है. मोबाइल के एक क्लिक से तेरी जिंदगी खत्म हो जाएगी.

रुपए कंपनी से डेढ़ किलोमीटर दूर विद्याधर नगर स्थित कपड़ों के शोरूम के पास रखने के लिए कहा. बताया गया था कि ब्लैकमेलिंग की रकम देने के लिए बिजनेसमैन खुद अकेला रुपए देने आए. रुपए बैग में रखने के बाद प्लास्टिक लौक से बंद हो. बैग की ऊपर चेन में अलग से सफेद लिफाफों में 25-25 हजार रुपए रख कर कोड लिखा जाए.

रुपए देने के दौरान बिजनेसमैन खुद की ही कार यूज करेगा और अकेले ही आएगा. बिजनेसमैन को बताया गया था कि उन के गैंग में कई लोग हैं. बैग उठाने वाला कोड देख कर अपना लिफाफा ले जाएगा. गैंग के अलगअलग लोग अपना कोड देख कर लिफाफे निकाल ले जाएंगे.

राहुल को पहली बार ब्लैकमेलिंग के समय डर लगा था. लेटर देने के लिए उस ने एक आटोरिक्शा ड्राइवर को पकड़ा. ड्राइवर को 5 सौ रुपए दे कर फैक्ट्री के गेट पर खड़े गार्ड को लिफाफा देने भेजा. लिफाफे पर लिखा, ‘इम्पोर्टेंट डाक्यूमैंट, केवल डायरेक्टर दीपक ही खोलें.’

बिजनेसमैन ने लेटर पढ़ने के बाद बदनामी के डर से पैसे देना तय किया. डिमांड के अनुसार रुपयों का बैग दीपक ने पेड़ के नीचे रख दिया.

करीब 15 मिनट तक खड़ा रहने के बाद वह वहां से चला गया. राहुल को पकड़े जाने का डर था. उस ने एक आटो ड्राइवर को पकड़ा. 5 हजार रुपए दे कर बैग उठा कर लाने के लिए भेजा था.

आटो वाला बैग उठा लाया और राहुल को दे दिया.

राहुल ने बैग खोल कर रुपए गिने तो पूरे 11 लाख रुपए थे. 11 लाख रुपए आसानी से मिलने से राहुल और प्रियंका का लालच बढ़ गया. ढाई लाख रुपए कम भेजने की बात कह कर दोबारा डिमांड की गई.

रुपए कम भेजने का जुरमाना 2 लाख रुपए लगाया गया. साढ़े 4 लाख रुपए के साथ ही 25-25 हजार के 3 लिफाफों की डिमांड का लेटर रास्ते में जा रहे मजदूर के जरिए गार्ड को भेजा. बिजनेसमैन को उसी पत्र में 10 लाख रुपए अलग से मांगे थे.

ये 10 लाख रुपए कंपनी के उस व्यक्ति की जानकारी देने के एवज में मांगे थे. दीपक ने सोचा कि कौन फैक्ट्री में आस्तीन का सांप बन कर यह सब जानकारियां जुटा कर आरोपियों को दे रहा है. उस का पता चल जाएगा. यह सोच कर दीपक ने डिमांड के अनुसार 15 लाख 25 हजार रुपए डर कर उसी पेड़ के नीचे रख दिए.

रुपए का बैग रख कर दीपक के जाने के बाद दूसरी बार राहुल का डर खुल गया था. बैग रखने के कुछ देर बाद जा कर राहुल खुद बैग उठा कर ले आया. दीपक कंपनी के व्यक्ति की जानकारी के लिए ब्लैकमेलर के लेटर का इंतजार करता रहा.

26 दिसंबर, 2022 को गार्ड ने दीपक को एक और लिफाफा दिया. उस में कुछ प्रश्नउत्तर लिखे थे. उस पत्र में कंपनी के व्यक्ति के नहीं मिलने और जानकारी नहीं होने के बारे में लिखा था. उस व्यक्ति की जानकारी देने के लिए 23 लाख रुपए की डिमांड की.

4 जनवरी, 2023 को बताए एड्रेस पर फिर दीपक माहेश्वरी रुपए की जगह पत्र लिख कर डाल आए. उस पत्र में दीपक ने लिखा कि रुपए की व्यवस्था नहीं हुई. व्यवस्था कर रहा हूं. मैं रात एक बजे आप के बताए अनुसार इसी जगह पर आप का काम कर दूंगा.

समाज में इज्जत न चली जाए, यह सोच कर उन्होंने पैसा ब्लैकमेलर को डर के मारे दे दिया था. 26 लाख 25 हजार रुपए गंवाने के बाद दीपक सोच रहे थे कि चलो ब्लैकमेलर से पिंड छूटा.

दीपक माहेश्वरी समझ गए कि ब्लैकमेलर उन्हें मरते दम तक ब्लैकमेल करते रहेंगे. ऐसे में दीपक माहेश्वरी ने 5 जनवरी, 2023 को विश्वकर्मा थाने में जा कर अपनी आपबीती बता कर ब्लैकमेलर ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद ही पुलिस ने योजना बना कर आरोपियों को गिरफ्तार किया.

दीपक माहेश्वरी को जब पता चला कि एक आरोपी उन की पूर्व अकाउंटेंट प्रियंका मेघवाल है और दूसरे आरोपी राहुल बोहरा की सगी बहन उन की फैक्ट्री में काम करती है तो वह कह उठे ‘यह सिला दिया जौब देने का.’

पुलिस ने दीपक द्वारा विश्वकर्मा थाने में दर्ज मामले में अज्ञात आरोपियों की जगह मुख्य आरोपी राहुल बोहरा एवं उस की सहयोगी प्रियंका मेघवाल का नाम दर्ज कर लिया. पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से राहुल व प्रियंका को जेल भेज दिया गया.  द्य

मसाज पार्लर की आड़ में जिस्म का धंधा – भाग 3

करमपाल केबिन से निकल कर रिसैप्शन काउंटर पर आ गया. उस ने बड़े रूखे स्वर में कहा, ‘‘वह युवती तो बड़े नखरे वाली है, मैं ने आप को 2 हजार दिए हैं. वह देह संबंध बनाने के लिए मुझ से एक्स्ट्रा पैसे मांग रही है. यह क्या बात हुई?’’

रिसैप्शनिस्ट गुस्से से भर गया. उस ने मोहिनी को बुलाया, वह आ गई तो रिसैप्शन मैनेजर उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यह क्या तरीका है मोहिनी, कस्टमर से अलग से चार्ज वसूलने का. मैं पहले भी तुम्हें समझा चुका हूं तुम्हें, यहां कस्टमर को खुश करने के लिए रखा गया है. मैं तुम्हें इसी बात के लिए मोटा कमीशन देता हूं लेकिन तुम हो कि अपनी हरकतों से बाज नहीं आती.’’

‘‘गलती हो गई सर,’’ मोहिनी सिर झुका कर बोली, ‘‘आगे आप को कोई शिकायत सुनने को नहीं मिलेगी.’’

‘‘जाओ, इन्हें केबिन में ले जाओ और संतुष्ट कर के ही विदा करना.’’

‘‘जी सर,’’ मोहिनी बोली और केबिन की तरफ कदम बढ़ाते हुए उस ने करमपाल को अपने पीछे आने का इशारा कर दिया. करमपाल उस के पीछेपीछे केबिन में आ गया.

मोहिनी केबिन का दरवाजा बंद करती उस से पहले ही करमपाल बोला, ‘‘मुझे फ्रैश होना है मोहिनी, तुम कपड़े उतार कर मेरा इंतजार करो. मुझे बताओ, वाशरूम कहां है?’’

‘‘आप सामने गैलरी में जाइए.’’

करमपाल गैलरी में आ गया. यह बिल्डिंग का फर्स्ट फ्लोर था. करमपाल ने जेब से रुमाल निकाल कर हवा में लहरा दिया. यह रेडिंग पार्टी के लिए इशारा था. स्पा के आजूबाजू खड़े पुलिसकर्मी एसएचओ रविंद्र पाल तोमर का इशारा पा कर धड़धड़ाते हुए स्पा में घुस गए. एसीपी भी साथ में थे, इसलिए सभी चौकन्ने और मुस्तैद थे.

स्पा मसाज पार्लर के रिसैप्शन हाल में पड़े सोफे पर एक युवती और एक युवक बैठे बातें कर रहे थे. वह पुलिस को देखते ही उठ कर भागने को हुए लेकिन एसआई राकेश और शिवराज ने उन्हें पकड़ लिया. उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं.

लड़की को कांस्टेबल पायल के हवाले कर के रेडिंग पार्टी अन्य कमरों में दाखिल हो गई. एक केबिन में मोहिनी पलंग पर पैर लटका कर बैठी थी. वह अपने कस्टमर करमपाल के बाथरूम से फारिग हो कर लौटने का इंतजार कर रही थी. पुलिस को देखते ही वह घबरा गई.

एसआई रवि चौधरी ने उसे हिरासत में ले लिया. करमपाल भी अंदर आ गया. उसे देख कर मोहिनी को समझते देर नहीं लगी कि वह उस की देह का सौदागर नहीं, पुलिस का ही आदमी है. मोहिनी को बाहर ला कर महिला कांस्टेबल पायल के सुपुर्द कर दिया गया.

तलाशी में रिसैप्शन काउंटर की मेज की दराज में सफेद पौलीथिन में कंडोम के 5 पैकेट मिले. उन्हें कब्जे में ले लिया गया.

एसीपी की मौजूदगी में रिसैप्शन पर बैठने वाले युवक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस में 5-5 सौ रुपए के वे नोट भी बरामद हो गए, जिन पर एसएचओ तोमर के बहुत बारीक हस्ताक्षर थे. उन्हें एक पौलीथिन में रख कर पौलीथिन को सील कर के मुहर लगा दी गई. कंडोम के पैकेट भी एक पौलीथिन में सुरक्षित रख कर सीलमोहर कर दिए गए.

पकड़े गए युवक से नामपता पूछा गया तो उस ने अपना नाम मोहम्मद तसलीम पता 2729, जे-29 छोटी मोर सराय, जीपीओ नार्थ, दिल्ली-6 बताया. वहीं इस गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा का मालिक था.

वह कमसिन और जवान खूबसूरत युवतियों को मसाज पार्लर की आड़ में देह परोसने के लिए कस्टमर को औफर करता था. इन्हें इस के लिए मोटा कमीशन दिया जाता था. उस पर स्पा में लड़कियों से वेश्यावृत्ति करवाने के जुर्म में 3/4/5 इम्मोरल ट्रैफिक एक्ट 1956 का केस दर्ज किया गया.

स्पा में देह व्यापार करने वाली युवतियां आलिया और मोहिनी थीं. आलिया पत्नी मुजाहिद, नजदीक मुस्तफा मसजिद लोनी, गाजियाबाद में रहती थी. मोहिनी पत्नी मोहित, नबी करीब दिल्ली में रहती थी. दोनों से स्पा में देह परोसने की बाबत पूछा गया तो उन दोनों ने बताया कि उन के पति कोई कामधंधा नहीं करते हैं.

घर खर्च चलाने के लिए वह गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा में लगी तो मसाज करने के लिए ही थीं, लेकिन मोहम्मद तसलीम ने उन्हें मोटी कमीशन का लालच दे कर देह परोसने के लिए भी राजी कर लिया. स्पा में अधिकांश लोग सैक्स के लिए ही आते थे.

पुलिस आलिया, मोहिनी और मोहम्मद तसलीम को थाना पहाड़गंज ले आई. तीनों से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया.

मसाज पार्लर की आड़ में चल रहे सैक्स रैकेट का खुलासा करने वाली पुलिस टीम 20 नवंबर, 2022 की रात को अपनी कामयाबी पर स्टाफरूम में जश्न मना रही थी. तब रात के 12 बजे पुलिस का मुखबिर एएसआई मनोज कुमार के सामने हाजिर हुआ.

एएसआई मनोज कुमार उसे देख कर मुसकराए, ‘‘आओ जयपाल, ठीक मौके पर आए. कल देशबंधु गुप्ता रोड पर स्थित गोल्डन यूनिसैक्स सैलून में सफल रेड डाल कर अपराधियों को पकड़ने की खुशी में पार्टी चल रही है. जाओ, स्टाफ रूम में जा कर तुम भी कुछ खापी लो.’’

‘‘मैं यहां पार्टी खाने नहीं आया हूं साहब.’’

‘‘तो किसलिए आए हो, क्या कोई खबर है तुम्हारे पास?’’ एएसआई मनोज कुमार ने जयपाल के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

‘‘बहुत महत्त्वपूर्ण खबर है साहब,’’ जयपाल आगे को झुक कर बोला, ‘‘साहब, आप ही के क्षेत्र लक्ष्मीनारायण स्ट्रीट, चूनामंडी में अरबन गार्डन के पास स्थित बार में अश्लील डांस किया जा रहा है. बार वाले सभी नियमकानून ताक पर रख कर तेज आवाज में म्यूजिक भी बजाते हैं, जिस से आसपास रहने वाले परेशान होते हैं. यदि आप बार में इसी वक्त रेड डालेंगे तो गैरतरीके से बार में होने वाले अर्द्धनग्न डांस को रोका जा सकता है.’’

‘‘ओह! यह तो बहुत महत्त्वपूर्ण खबर है. तुम बैठो जयपाल, मैं इंसपेक्टर साहब को यह जानकारी दे कर उन से रेड की इजाजत लेता हूं.’’ मनोज कुमार ने कहा और उठ कर बाहर निकल गए.

एसएचओ रविंद्र कुमार तोमर अपने कक्ष में थे. मनोज कुमार ने उन के कक्ष में जा कर उन्हें जयपाल द्वारा दी गई खबर बताई तो वह चौंक कर बोले, ‘‘यह पहाड़गंज थाने की नाक के नीचे हो रहा है और हमें खबर नहीं है. बैठिए, मैं अफसरों से बात कर लेता हूं.’’

इंसपेक्टर तोमर ने तुरंत डीसीपी और एसीपी (पहाड़गंज) से फोन द्वारा बात कर के बार में अश्लील डांस होने की सूचना दी. दोनों अधिकारियों ने उन्हें अपने तरीके से टीम बना कर बार पर रात को ही रेड डालने की परमिशन दे दी.

एसएचओ तोमर ने उसी वक्त एएसआई मनोज कुमार के नेतृत्व में एक रेड पार्टी का गठन कर दिया. इस टीम में एसआई सुरेश बाल्यान, हैडकांस्टेबल निर्देश, सुनील और महिला कांस्टैबल पायल को शामिल कर के मुखबिर राजपाल के साथ अरबन गार्डन पर रेड डालने केलिए भेज दिया.

रात के साढ़े 12 बजे यह पुलिस पार्टी एएसआई मनोज कुमार के साथ अरबन गार्डन के पास पहुंच गई. मनोज कुमार ने मुखबिर की बात को सही पाया.

उन्होंने मुखबिर जयपाल को ही स्थिति जानने के लिए बार में भेजा. जयपाल थोड़ी ही देर में बार से बाहर आ गया. उस ने बताया कि बार में अश्लील डांस चल रहा है. एएसआई मनोज कुमार ने रेड पार्टी को इशारा किया. रेड पार्टी उन के नेतृत्व में बार में प्रवेश कर गई. बार ग्राउंड फ्लोर पर था.

बार में म्यूजिक पार्टी एक किनारे बैठी म्यूजिक बजा रही थी और काफी ग्राहक बैठ कर वहां अश्लील डांस कर रही 3 लड़कियों की ओर आकर्षित थे. वे लड़कियां अर्द्धनग्न कपड़ों में थीं, उन के शरीर के उत्तेजक अंग उन कम कपड़ों से झांक रहे थे. लड़कियां बहुत ही भद्दा डांस कर रही थीं, वे वहां बैठे ग्राहकों की तरफ गंदे इशारे भी कर रही थीं.

पुलिस को देखते ही वहां भगदड़ मच गई. लेकिन मुस्तैद पुलिस पार्टी ने दरवाजा पहले ही कवर कर रखा था. हैडकांस्टेबल पायल ने उन तीनों लड़कियों को हिरासत में ले लिया. हाल में बैठे ग्राहकों को तथा बार काउंटर पर बैठे मालिक कमलेश कुमार रस्तोगी को भी हिरासत में ले लिया गया.

अश्लील डांस कर रही तीनों लड़कियों के नामपते पूछे गए. एक का नाम सुनीता निवासी महिपालपुर, दिल्ली. दूसरी लड़की की नाम प्रियंका निवासी सीताराम बाजार, दिल्ली, तीसरी लड़की फरजाना खान दिल्ली के ही रामनगर की थी.

उन से बार में अश्लील डांस करने के लिए पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बार का मैनेजर हेमंत गुप्ता ने उन्हें कम कपड़े पहन कर डांस करने के लिए बुलाया था.

उन के खिलाफ अश्लील डांस करने के लिए 294/109/34 आईपीसी की धारा के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एएसआई मनोज कुमार ने बार के मालिक कमलेश रस्तोगी, मैनेजर हेमंत गुप्ता, म्यूजिक बजाने वाली पार्टी, बार के स्टाफ मेंबर वहां दिल्ली और एनसीआर से आ कर अश्लील डांस देखने, डांस में शामिल होने के जुर्म में 17 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया. सभी को पहाड़गंज थाने लाया गया.

सभी के खिलाफ भादंवि की धारा 294/109/34 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें भेज दिया गया.

पहाड़गंज थाने ने 2 दिन में 2 जगह रेड डाल कर जो सफलता प्राप्त की थी, उस के लिए डीसीपी श्वेता चौहान ने उन्हें फोन कर बधाई दी.       द्य

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 3

कामुक मन में आया उबाल

नशा कैसा भी हो, चरस गांजा, भांग, यदि अपने सामने कोई इन का नशा करता है तो मन इन्हें सेवन करने को ललचा ही जाता है. अमर पुरी को धीरेधीरे चरस-गांजा, भांग पीने का चस्का लग गया. वह हर प्रकार का नशा करने लगा.

तथाकथित तंत्रमंत्र और ज्योतिष की दुकान चल ही रही थी, पैसा भी आ रहा था. नशेपत्ते ने अमर पुरी की खोपड़ी को ऐसा घुमाया कि वह हवालात में पहुंच गया.

हुआ यूं कि अपने कमरे में अमर पुरी बैठा हुआ शराब की चुस्कियां ले रहा था. तब उस के एक शिष्य ने आ कर बताया कि एक महिला अपनी समस्या ले कर दरवाजे पर आई है, आप से मिलना चाहती है.

‘‘भेज दो अंदर,’’ अमरपुरी ने बोतल का ढक्कन लगा कर बोतल को अलमारी के पीछे छिपाते हुए कहा.

शिष्य बाहर चला गया. कुछ ही देर में एक सुंदर महिला अंदर आ गई. अमर पुरी ने धूनी जला रखी थी. उस के सामने आसन पर वह आंखें मूंद कर बैठा था. महिला ने झुक कर अमर पुरी के चरण

स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘बाबा, मैं बहुत दुखी हूं. आप मेरा दुख दूर करें.’’

अमर पुरी ने आंखें खोल कर उस महिला की ओर देखा. उस के चेहरे पर परेशानी और दुख की पीड़ा साफ झलक रही थी. महिला की सुंदरता पर अमर पुरी मोहित हो गया.

कितने ही समय से वह स्त्री सुख से वंचित था,उस का मन महिला पर आया तो वह उसे हासिल करने की जुगत में लग गया. उस के दिमाग में एक योजना आई तो उस की आंखें चमक उठीं.

उस ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बैठ जाओ. और मुझे अपना कष्ट बताओ.’’

महिला नीचे बैठ गई. उस ने बड़े करुण स्वर में कहा, ‘‘मेरा पति मुझ से दूर होता जा रहा है बाबा.’’

‘‘क्यों?’’ अमर पुरी ने पूछा.

‘‘वह किसी दूसरी औरत के चक्कर में फंस गया है. सारी कमाई उसी पर खर्च कर देता है. मैं खर्चा मांगती हूं तो मुझ से लड़ाई करता है. मैं ने कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाला. मैं कैसे अपने खर्च के लिए काम करने जाऊं, मैं बहुत संकट में फंस गई हूं.’’

‘‘तुम्हारा संकट मैं दूर कर दूंगा. तुम अपने पति की तसवीर लाई हो क्या?’’

‘‘नहीं बाबा.’’

‘‘तुम कल उस की तसवीर ले कर उसी समय आना. मैं एकांत में तुम्हें सामने बिठा कर तंत्रमंत्र विद्या से तुम्हारे पति का दिमाग बदल दूंगा. वह कल के बाद कभी भी तुम्हारी सौतन के पास नहीं जाएगा. उस से नफरत करने लगेगा.’’

‘‘आप ऐसा कर देंगे तो मैं आप के चरणों को धो कर पीऊंगी बाबा. अब मैं चलती हूं, कल मैं अपने पति की फोटो ले कर इसी समय यहां आ जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है बच्चा,’’ अमर पुरी ने कहा.

वह महिला चली गई तो अमर पुरी फिर शराब की बोतल ले कर बैठ गया. उस की आंखों के आगे उस महिला का सुंदर चेहरा घूम रहा था और दिमाग में वह कुटिल योजना जिसे वह अमल में लाने वाला था.

दूसरे दिन शाम ढलने के बाद वह महिला अपने पति का फोटो ले कर अमर पुरी के कमरे में आ गई. अमर पुरी उसे देख कर खुश हो गया. अमर पुरी ने उसे अपने सामने आसन पर बिठाया और स्वर को गंभीर बना कर कहा, ‘‘मैं ने रात को ध्यान लगा कर तुम्हारे पति के विषय में ज्ञात किया था. उस औरत ने तुम्हारे पति को वश में करने के लिए किसी मौलवी से वशीकरण करवाया है. उसी वशीकरण क्रिया की काट हमें करनी होगी, तभी तुम्हारा पति उस औरत के वशीकरण से मुक्त होगा.’’

‘‘आप कुछ भी कीजिए बाबा, मुझे मेरा पति वापस चाहिए.’’ वह महिला गिड़गिड़ाई.

‘‘पति की तसवीर लाई हो तुम?’’

‘‘हां बाबा,’’ उस महिला ने अपने ब्लाउज में हाथ डाल कर चोली से एक पासपोर्टसाइज तसवीर निकाल कर अमर पुरी की तरफ बढ़ा दी.

अमर पुरी ने तसवीर ले कर अपनी दाईं ओर रखी काली माता की मूर्ति के चरणों में रख दी. फिर महिला से बोला, ‘‘मैं

तुम्हारे पति की वशीकरण क्रिया की काट करने के लिए तुम्हारे सहयोग से तांत्रिक क्रिया करूंगा. तुम्हें तन और मन से मेरा सहयोग करना होगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं बाबा,’’ महिला ने स्वीकृति दे दी.

महिला ने पहुंचा दिया हवालात

अमर पुरी ने धूप, लोबान जलाई. कमरे की तेज रोशनी बुझा कर उस ने जीरो पावर का मद्धिम प्रकाश कमरे में किया. फिर एक प्लेट में रखी उड़द और काले तिल को मुट्ठी में ले कर आंखें बंद कर के मंत्रजाप करने लगा.

वह महिला मद्धिम रोशनी के कारण रहस्यमयी बन चुके कमरे में बाबा के सामने बैठी उन की क्रिया को देख रही थी. वह बाबा द्वारा की जा रही तंत्रमंत्र क्रिया से और रहस्यमयी वातावरण से मन ही मन सहमी हुई थी.

अमर पुरी जोरजोर से मंत्रजाप कर रहा था और सामने जल रही धूनी में उड़द और तिल फेंक रहा था. कमरे में धूप, लोबान का धुआं भरने लगा तो वह महिला खांसने लगी.

‘‘लो, यह अभिमंत्रित जल पी लो, तुम्हारी खांसी रुक जाएगी.’’ अमर पुरी ने पानी से लबालब भरा एक प्याला उस महिला को देते हुए गंभीर स्वर में कहा.

महिला ने वह प्याला ले लिया और गटगट कर के वह प्याले का पानी पी गई. अमर पुरी के होंठों पर कुटिल मुसकान तैरने लगी. वह और जोर से मंत्रजाप करने लगा. कुछ ही क्षण गुजरे वह महिला सिर पकड़ कर बोली, ‘‘मेरा सिर तेजी से घूम रहा है बाबा.’’

‘‘घूमने दो,’’ अमर पुरी हंस कर अपनी जगह से उठते हुए बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में अपना होश खो दोगी. तब मैं तुम्हारे बेहोश जिस्म को वशीकरण क्रिया की काट करने के लिए उपयोग में लाऊंगा.’’

उस महिला ने बेहोशी की अवस्था में जातेजाते बाबा अमर पुरी के ये अंतिम शब्द नहीं सुने. वह लहरा कर फर्श पर गिरने को हुई तो अमर पुरी ने उसे अपनी बांहों में थाम लिया. उस के चेहरे पर शैतानी मुसकान और आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

सालों बाद उस की बांहों में एक खूबसूरत महिला का गुदाज जिस्म था. ऐसा जिस्म जो अमर पुरी की किसी भी अशोभनीय क्रियाकलापों का विरोध करने की स्थिति में नहीं था.

दुष्कर्मियों को सजा : निडरता की मिसाल बनी रीना

उस लड़की की हिम्मत को अब सराहा जाने लगा है, क्योंकि वह निडरता की ऐसी मिसाल बन गई,

जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली रीना (बदला हुआ नाम) दबंग प्रवृत्ति के युवाओं की दरिंदगी का शिकार हुई थी. प्यार करने वालों को सजा देने के मामले में बदनाम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की सरजमीं पर उसे 7 हैवानों ने सामूहिक रूप से अपनी हवस का शिकार बनाया था. विरोध करने पर उस के साथ दरिंदगी की गई.

चुप बैठने के बजाय दरिंदगी की शिकार रीना ने सामाजिक शर्म को किनारे रख कर उन्हें सजा दिलाने की ठान ली. लाख तिरस्कार, दबाव, लालच व धमकियों के बावजूद उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लड़ाई लड़ती रही. नतीजतन हैवानियत करने वाले छटपटा कर रह गए. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन मामूली लड़की निडरता से लड़ाई लड़ कर हैवानियत का खेल खेलने वालों को सजा दिला देगी.

मुजफ्फरनगर की जिला अदालत ने बहुचर्चित गैंगरेप कांड में 31 जुलाई, 2017 को दोपहर 7 युवाओं अब्दुल, राशिद, वासिफ, सोमान, मोनू, राहुल व सलाऊ को उम्रकैद और जुरमाने की सजा सुनाई. इन लोगों ने एक लड़की के साथ न केवल सामूहिक गैंगरेप किया था, बल्कि मोबाइल से उस का एमएमएस भी बना कर वायरल कर दिया था. उन की हनक, हैवानियत और गरीब लड़की की इज्जत को खिलौना समझने की भूल ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया.

किसी ने पीडि़त लड़की को डरायाधमकाया तो किसी ने उस की लूटी अस्मत को दौलत के तराजू में तौला. पर उन के सारे पैंतरों और दबंगता को उस मामूली लड़की ने चकनाचूर कर दिया. रीना की हिम्मत के सामने उन की सभी कोशिशें व करतूत जवाब दे गईं.

मुजफ्फरनगर के एक गांव की रहने वाली रीना रोंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत से रूबरू हुई. उस के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिता मजदूरी कर के तथा 2 भैसों को पाल कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते थे. रीना खुद शाहपुर कस्बे में एक चिकित्सक के क्लिनिक पर रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करती थी. वहीं काम करने वाले एक युवक से उस की दोस्ती हो गई.

17 अगस्त, 2013 को वह अपने दोस्त के साथ बाइक पर सवार हो कर रेस्टोरैंट में खाना खाने के लिए बेगराजपुर जा रही थी. बसधाड़ा गांव के जंगल में वे एक ट्यूबवेल पर रुक कर पानी पीने लगे. इसी बीच 3 युवक वहां पहुंच गए. उन की नजर में इस तरह एक लड़की का किसी लड़के से मिलना गुनाह था.

यह बात अलग थी कि समाज की इस कथित ठेकेदारी की आड़ में उन की खुद की घिनौनी मानसिकता जिम्मेदार थी. उन्होंने रीना के दोस्त के साथ मारपीट की, साथ ही अपने कुछ अन्य साथियों को भी बुला लिया. सभी ने मारपीट कर के रीना के दोस्त को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भगा दिया और रीना को पीटते हुए खींच कर खेत में ले गए.

society

इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा.

रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

हैवानियत करने वाले रीना को अपनी मौजमस्ती का साधन बनाना चाहते थे. लेकिन अब वह उन से दूर चली गई थी. इस पर उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने 10 महीने बाद जून, 2014 में वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. इस से हड़कंप मच गया. रीना का चेहरा और युवकों की करतूत साफ झलक रही थी. सभी की पहचान से मामला तूल पकड़ गया.

वीडियो क्लिप रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और रीना को खोज निकाला. इस के बाद रीना ने 24 जून, 2014 को सातों आरोपियों के खिलाफ थाने में तहरीर दे दी. मामला गंभीर था. पुलिस ने गैंगरेप और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. आरोपी दूसरे संप्रदाय के थे. इस से इलाके में तनाव भी बढ़ा, लेकिन पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

पहचान उजागर होने से रीना की जिंदगी दोजख बन गई. समाज ने भी अपनी परंपरागत मानसिकता के चलते उस पर उल्टीसीधी टिप्पणियां कर के अपना रोल बखूबी निभाया. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जो आरोपियों के इस दुष्कर्म पर यह कह कर परदा डालने की कोशिश कर रहे थे कि अगर रीना दोस्त के साथ उस रास्ते से नहीं जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.

कई तरह के लांछन लगाए गए. जिल्लत और तोहमतों से रीना का बेहद करीबी रिश्ता बन गया. तोहमत लगाने वाले लोग ज्यादा थे, जो हर मामले में लडकियों की ही गलती निकालने की मानसिकता का शिकार होते हैं. लेकिन इन सब बातों ने रीना को और भी मजबूत बना दिया था. उस ने इंसाफ की लड़ाई लड़ने की ठान ली.

आरोपियों को सजा दिलाना ही उस की जिंदगी का मकसद बन गया. वक्त बीतता रहा. एक साल बाद 7 में से 6 आरोपियों को जमानत मिल गई. आरोपियों के खिलाफ सबूत मजबूत थे. उन्हें सजा का डर था, लिहाजा वे समझौता करना चाहते थे. रीना द्वारा अदालत में बयान बदलने से पूरा केस उलट सकता था. उन की तरफ से दबाव बनाया जाने लगा.

तरहतरह के लालच दिए गए, लेकिन रीना और उसके मातापिता ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. रीना एक असहनीय दर्द से गुजर रही थी. वह रातों को जाग कर रोती थी. उस का दुख कम हो, इसलिए घर वाले उस की गृहस्थी बसा देना चाहते थे. खतौली कस्बे के नजदीक का रहने वाला एक युवक उस का हाथ थामने को तैयार हो गया. फलस्वरूप दोनों का विवाह हो गया.

एक साल तो रीना का ठीक बीता, लेकिन घटना की परछाईं और वक्त ने खुशियों को उस का दुश्मन बना दिया. आरोपियों के पैरोकार रीना की ससुराल तक पहुंच गए. रीना बताती है कि उन्होंने उस के पति को 25 लाख रुपए देने का लालच तक दे डाला. लालच में आ कर पति व ससुराल वालों ने रंग बदल लिया और उस से बयान बदलने को कहने लगे.

उन का तर्क था कि अब उस की शादी हो गई है, इसलिए ऐसी सभी बातों को बीता हुआ कल मान कर भूल जाना चाहिए, वरना बदनामी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा. रीना ससुराल वालों के बदले रवैये पर हैरान थी. आरोपी पैसे देने और माफी मांगने को तैयार थे. लेकिन रीना ने किसी की नहीं मानी.

इस मुद्दे पर परिवार में कलह रहने लगी. कई महीनों तक भी जब उस ने ससुराल वालों की बात नहीं मानी तो उसे फरमान सुना दिया गया कि या तो वह बयान बदल कर आरोपियों को बचाने में मदद करे या फिर रिश्ता खत्म कर ले. रीना समझ चुकी थी कि ससुराल में उस का साथ देने वाला कोई नहीं है. यह शर्मनाक हकीकत भी थी कि एक पति जिस ने उसे उम्र भर साथ निभाने का वचन दिया था, वह इंसाफ की डगर पर उस का साथ देने के बजाय उसे कमजोर कर रहा था.

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रीना ने जितनी जिल्लत झेली, उतनी ही वह मजबूत होती गई. रीना ने भी ठान लिया कि वह दुराचारियों को कभी माफ नहीं करेगी. लिहाजा उस ने किसी अनहोनी की आशंका के भय से ससुराल से ही रिश्ता खत्म करने का फैसला कर लिया. ससुराल छोड़ कर आपसी सहमति से पतिपत्नी दोनों अलग हो गए. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विचेनाधिकारी सबइंसपेक्टर अजयपाल गौतम ने विवेचना कर के सबूतों सहित अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई. रीना ने पूरा घटनाक्रम अदालत में बयान किया.

अभियोजन पक्ष की तरफ से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता कय्यूम अली ने इसे गंभीर अपराध बताया, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने आरोपियों के कैरियर, उम्र व भविष्य की दलीलें दे कर कम से कम सजा की मांग की. अदालत में आरोपियों द्वारा सुनाई गई शर्मिंदा कर देने वाली वीडियो क्लिप को भी देखा गया. उस से उन की वहशत सामने आ गई. अदालत ने वीडियो को अहम सबूत माना.

आरोप तय होने के बाद आखिर 31 जुलाई को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश भारद्वाज ने सातों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें भादंवि धारा 376 (जी) में उम्रकैद व 10-10 हजार रुपए जुरमाना व आईटी एक्ट में 3 साल का करावास व 25-25 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. आरोपियों में सोमान को छोड़ कर सभी अविवाहित थे. सजा के बाद जब आरोपियों को जेल ले जाया गया तो वे मुंह छिपाते नजर आए.

अदालत का फैसला आने के बाद रीना कहती है, ‘मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती. हैवानों को कभी माफ नहीं किया जा सकता. सजा से दूसरे वहशियों को सीख मिलेगी, ताकि फिर कोई किसी लड़की के साथ ऐसा न कर सके.’

रीना के मातापिता कहते हैं, ‘हम ने बेटी की अस्मत के सामने समझौता नहीं किया. हमें न्याय की पूरी उम्मीद थी.’ हैवानियत करने वाले शायद अपने गुनाह से बच भी जाते, लेकिन अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली रीना की हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ है. उस की हिम्मत ने ही उन्हें उन के गुनाह की सजा दिलाई.

बदतर जिंदगी जीने को मजबूर ‘बाल मजदूर’

इन बच्चों की उम्र 14 साल से कम  है, लेकिन रोजाना इन्हें अकसर 14 घंटे से ज्यादा हाड़तोड़ मशक्कत करनी पड़ती है. कहने को तो ये बाल मजदूर हैं, लेकिन अपनी उम्र और कूवत से बढ़चढ़ कर बालिगों से कहीं ज्यादा मेहनत करते हैं.

सुबहसवेरे जब आमतौर पर लोग सो कर उठते हैं, तब तक ये बच्चे रूखीसूखी रोटी का पुलिंदा बगल में दबाए अपनी काम की जगह पर मौजूद हो चुके होते हैं, फिर 15-16 घंटे की मेहनत के बाद थकान से चूर रात को घर लौट कर बिस्तर पर लेटते हैं, तो दूसरे दिन ही नींद खुलती है. यही जिंदगी है इन नन्हे कामगारों की. इतनी मेहनत के बावजूद ये मजदूर महीने के आखिर में पाते हैं महज कुछ सौ रुपए, पर इस से ज्यादा इन्हें मालिकों से मिलता है जोरजुल्म.

अपनी बुनियादी जरूरतों से दूर ये बच्चे नाजुक उम्र में ही भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीड़ी उद्योग के बाल मजदूर नाक की बीमारी, उनींदापन, निकोटिन के जहर से पैदा होने वाली बीमारी, सिरदर्द, अंधेपन वगैरह के शिकार हो जाते हैं, वहीं कालीन उद्योग के बच्चे लगातार धूल और रेशों में रह कर फेफड़ों की बीमारी से घिर जाते हैं.

पटाका और माचिस उद्योग के बाल मजदूर सांस की परेशानी, दम घुटना, थकावट, मांसपेशियां बेकार हो जाने जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसी तरह ताला उद्योग में तेजाब से जलना, दमा, सांस का रुक जाना, टीबी, भयंकर सिरदर्द होना आम बात है. खदानों में काम करने वाले बच्चों की आंखों, फेफड़ों व चमड़ी की बीमारियों का तोहफा मिलता है, तो कांच उद्योग में काम कर रहे बाल मजदूर आग उगलती भट्ठियों के नजदीक हर समय कईकई घंटे तीनों ओर से गरम कांच से घिरे रह कर कैंसर, टीबी और मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां पाल लेते हैं.

इसी तरह मध्य प्रदेश के मंदसौर इलाके के स्लेट उद्योग में काम करने वाले बच्चे वहां स्लेट, पैंसिल बनाने के लिए खान से स्लेटी रंग की लगातार उड़ती धूल में रह कर फेफड़ों और सांस की तरहतरह की गंभीर बीमारियों से घिर जाते हैं. गुब्बारा उद्योग में काम करने वाले बच्चों की हालत तो और भी ज्यादा खतरनाक है. वे नन्ही उम्र में ही दिल की बीमारी, निमोनिया और सांस की बीमारी की जकड़ में आ जाते हैं.

इतना ही नहीं, ढाबों में काम कर रहे या घरेलू बाल मजदूर नशीली चीजों के सेवन के आदी तो हो ही जाते हैं, शारीरिक और यौन शोषण, ज्यादा काम और दूसरी तरह से भी वे खूब सताए जाते हैं.

गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खेतखलिहानों, अलगअलग लघु व कुटीर उद्योगों, पत्थर खदानों, ढाबों और घरेलू कामों में तकरीबन 10 करोड़ बच्चे मजदूर बने हुए हैं. यह आलम तो तब है, जब कई लैवलों पर कई सालों से बाल मजदूर उन्मूलन के लिए कायदेकानूनों की झड़ी लगा दी गई है. आज भी नए कानून बनाने व बाल मजदूरी लगाने की कोशिश जारी है. फिर आखिर क्या वजह है कि बाल मजदूरी में कमी आने के बजाय लगातार इजाफा ही हो रहा है?

मिसाल के तौर पर, ‘बाल दिवस’ यानी बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू के जन्मदिन के मौके पर जगहजगह सैमिनार, भाषणबाजी और न जाने क्याक्या होता है, पर इन सब से अनजान चाचा नेहरू के 10 करोड़ लाड़ले उस समय रोटी की जुगाड़ में न जाने क्याक्या, सह रह होते हैं.

कुछ लोग बच्चों को मजदूर बनाने में उन से काम कराने वालों का भी बहुत बड़ा हाथ मानते हैं. ऐसे लोगों का लालच यही होता है कि बाल मजदूरी सस्ती पड़ती है. छोटेछोटे कुटीर उद्योग जहां जगह की कमी होती है, इसीलिए बच्चों को काम पर रखा जाता है, क्योंकि वे जगह कम घेरते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा बच्चे वहां ज्यादा से ज्यादा काम कर सकते हैं.

ये बच्चे पूरी तरह से असंगठित होते हैं, जिस से अपने शोषण के खिलाफ मालिक के सामने आवाज नहीं उठा सकते. दूसरी ओर, मालिकों को इन्हें रखने की मजबूरी यह होती है कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें केवल बच्चे ही पूरी सफाई से कर सकते हैं.

मसलन, कालीन उद्योग में कालीन बनाते समय जगहजगह गांठ लगाने की जरूरत पड़ती है. सफाई से गांठ लगाने के लिए उंगलियों का पतला होना जरूरी है, इसीलिए इस उद्योग में बच्चों को अहमियत दी जाती है. इसी तरह माचिस उद्योग में बाल मजदूर लगे होने से माचिसों की बनाने की लागत कम आती है. कम लागत के चलते विदेशी माचिसों से होड़ लेने में दिक्कत नहीं आ रही है. फिर भी बाल मजदूरी कराने वाले मालिकों और बाल मजदूरी के पक्ष में चाहे जो भी दलीलें पेश की जाएं, सचाई तो यही है कि बाल मजदूरी से कई और तरह की सामाजिक दिक्कतें बढ़ी हैं. यह सच है कि गरीबी के चलते बच्चे मजदूरी के लिए मजबूर हैं, पर इस से पैदा होने वाली समस्याएं कहीं ज्यादा गंभीर हैं. चूंकि कुछ इलाको में केवल बच्चों को ही काम पर रखा जाता है, इसलिए उन के मांबाप अकसर बेरोजगार ही होेते हैं.

दूसरी ओर, 15 साल से बड़ा होते ही इन बच्चों को काम से हटा दिया जाता है, इसलिए मांबाप यह मान कर चलते हैं कि ज्यादा बच्चे होने से आमदनी बराबर बनी रहेगी, क्योंकि बड़े बच्चे के काम से हटते ही छोटा संभाल लेगा, फिर उस के बाद उस से छोटा और फिर उस से छोटा. इस सिलसिले को जारी रखने के लिए बच्चों की तादाद ज्यादा रखना मजबूरी बन जाती है.

यह सोच आबादी की समस्या को गंभीर बना रही है. पर इन सब में सब से ज्यादा चिंताजनक पहलू तो सेहत ही है, क्योंकि पैसे की कमी में ये बाल मजदूर न तो ठीक से इलाज करा पाते हैं और न ही ठीक से खानेपीने का बैलैंस बनाए रख पाते हैं, इसलिए ये बच्चे जवानी आतेआते गंभीर बीमारियों के शिकार हो कर कदमकदम पर कतराकतरा मौत का इंतजार करते हैं.

यकीनन, आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं, लेकिन जहां के एकतिहाई बच्चे बचपन की बुनियादी सुविधाओं से अलग हो कर मेहनतमजदूरी में रातदिन एक कर रहे हैं व कम उम्र में ही भयानक बीमारियों से घिर जाते हैं, भविष्य में उन की जगह कहां होगी? क्या बीमार बच्चों के नाजुक कंधों पर तैयार की जा रही भविष्य के विकास की बुनियाद मजबूत हो पाएगी? कब इन्हें इन का हक मिल पाएगा? इन सवालों के जवाब भारत के नीति बनाने वालों के पास भी नहीं है.

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 2

पहला प्यार और पहला अपराध

जिंदगी का सफर और अपनी मंजिल खुद तय करने की चुनौती से जूझता शोभराज, जैसा कि ऐसे मामलों में डर रहता है, अपराध की तरफ चल पड़ा और इतनी तेजी से चला कि लोग ताकते रह गए. क्योंकि शोभराज ने कभी मुड़ कर अपने नन्हे कदमों के निशान भी नहीं देखे.

अब दुनिया खुली किताब की शक्ल में शोभराज की आंखों के सामने थी, जिसे अपने मुताबिक पढ़ने और समझने की आजादी उसे थी. एक आवारा किशोर कैसे दुनिया को पढ़ता और समझता है, यह जल्द ही उस के पहले अपराध ने जता दिया, जो बहुत मामूली था.

कोई नौकरी या मेहनत वाला काम उस ने नहीं चुना, बल्कि युवा जीवन या करिअर कुछ भी कह लें, की शुरुआत साल 1963 में 19 साल की उम्र में पेरिस के एक घर में चोरी कर की. इस जुर्म में पहली दफा उसे जेल हुई और कुछ महीनों की सजा काटने के बाद वह रिहा भी हो गया.

इन कुछ महीनों ने ही उस की आने वाली जिंदगी की कहानी लिख दी. जेल में उस का वास्ता कई पेशेवर अपराधियों से पड़ा, जिन से बजाय सबक लेने के, शोभराज ने अपराध की दुनिया का सिलेबस पढ़ते हुए नएनए गुर सीखे.

यह वक्त हिंदी फिल्मों के उन दृश्यों सरीखा था, जिन में जेल में सजा काटने आए कम उम्र अपराधी को लंबी सजा काट रहे खतरनाक और खूंखार मुजरिम ट्रेनिंग देते यह भी बताते और सिखाते हैं कि अपराध करने के बाद कानून और पुलिस से कैसे बचा जाता है. जेल से इस शौर्ट टर्म कोर्स को पूरा करने के बाद शोभराज जब बाहर आया तो न केवल उस की दुनिया बदल गई थी बल्कि वह भी बहुत कुछ बदल गया था.

अब वह बड़ीबड़ी चोरियां करने लगा था. पेरिस के कई नामी मुलजिम उस के दोस्त बन गए थे, लिहाजा उस का नाम भी बड़े अपराधियों में शुमार होने लगा था. इसी दौरान शोभराज को पहली दफा प्यार हुआ जो मन और तन दोनों की मांग और जरूरत बन गया था.

कई बार अपराध की शुरुआत करने वालों को प्रेमिका सलीके और संस्कार वाली मिल जाए तो वे अपनी राह बदल भी देते हैं. लेकिन शोभराज को जिस युवती शातल डेस्त्रायार्स से प्यार हुआ, उस ने कोई दुहाई शराफत और मेहनत की जिंदगी जीने की नहीं दी. उलटे जिस दिन उस ने अपनी इस पहली प्रेमिका को पार्क में प्रपोज किया, उसी दिन पुलिस ने उसे धर लिया.

इस दिलचस्प घटना में शोभराज जब शातल से मिल कर पार्क के बाहर उस के ही साथ बाहर निकला तो फिल्मी स्टाइल में पुलिस ‘यू आर अंडर अरेस्ट’ कहते उस के स्वागत में तैयार खड़ी थी.

दरअसल, जिस बाइक से शोभराज शातल से मिलने गया था, वह उस ने 2 दिन पहले ही चुराई थी. नतीजतन वह फिर जेल की सलाखों के पीछे था. जब छूट कर बाहर आया तो शाटल उस के इंतजार में खड़ी थी. जल्द ही दोनों ने शादी कर ली और फिर दोनों को एक खूबसूरत बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने प्यार से फ्रैंक रखा.

यह रिश्ता ज्यादा चला नहीं और 1969 में दोनों अलग हो गए. ठीक वैसे ही जैसे कभी शोभराज के मांबाप हेचर्ड और त्रान अलग हुए थे. लेकिन इन के अलग होने की वजह बनी निहायत ही खूबसूरत युवती चैंटल काम्पेग्नन, जो पेरिस की रहने वाली थी और धार्मिक प्रवृत्ति की थी.

चैंटल पर शोभराज इस तरह फिदा हुआ कि उस ने पहली पत्नी और बेटे को छोड़ दिया और 8 महीने बाद चैंटल से शादी कर ली. यह भी बड़ी फिल्मी सी बात है कि इन दोनों की शादी के ठीक एक दिन पहले शातल ने शोभराज की दूसरी संतान को जन्म दिया. यह बेटी थी जिस का नाम म्यूरिल अनौक रखा गया.

अब तक शोभराज जुर्म की दुनिया में जानापहचाना जाने लगा था, क्योंकि अब वह बड़ी वारदातों को अंजाम देने लगा था. उस ने अपना कार्यक्षेत्र भी बढ़ा लिया था. दूसरी पत्नी चैंटल तो और उस्ताद निकली जो जुर्म के रास्ते पर भी उस की संगिनी थी.

पेरिस से सीधे मुंबई में डाला डेरा

दोनों अब पेरिस में मशहूर हो गए थे, इसलिए पहचाने जाने का डर हर वक्त उन पर  मंडराता रहता था. साल 1970 के लगभग इन दोनों ने फ्रांस ही छोड़ने का फैसला ले लिया. तब चैंटल गर्भवती थी.

दोनों ने दुनिया का नक्शा खोला और मुंबई पर गोल घेरा बना कर वहां जा कर डेरा भी डाल दिया. इस मायानगरी के बारे में गलत नहीं कहा जाता कि यह जोखिम उठाने वाले हिम्मती लोगों को निराश नहीं करती.

कुछ दिन दोनों ने मुंबई की आबोहवा सूंघी, लेकिन चैंटल का मन मुंबई में लगा नहीं. यहीं उस ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम शोभराज ने उषा रखा. भारतीय नाम रखने के पीछे उस की मंशा क्या थी, यह तो वह भी नहीं समझ पाया कि यह पिता के वतन के प्रति लगाव है या माहौल का असर है.

अभी उषा को गोद में आए चंद दिन ही हुए थे कि एकाएक ही चैंटल ने शोभराज से साफसाफ कह दिया कि अब अपराधों में उस का साथ देना तो दूर की बात है, वह उसे भी अपराध नहीं करने देगी.

इस हृदय परिवर्तन की कोई घोषित वजह नहीं थी, लेकिन यह एक ठीक और सही वक्त पर लिया गया समझदारी भरा फैसला था. क्योंकि दोनों जुर्म की दुनिया में इतने दूर नहीं आए थे कि शरीफों की दुनिया में वापस न जा पाएं.

शोभराज पत्नी की बात मान लेता तो तय है कि एक सुखद और बेहतर गृहस्थ जीवन जी रहा होता. लेकिन उस का खुराफाती दिमाग जिस में तरहतरह के कीड़े बिलबिला रहे थे, इस के लिए तैयार नहीं हुआ.

चैंटल ने भी त्रिया हठ की तर्ज पर साफसाफ चेतावनी दे दी कि या तो मुझे चुन लो या फिर अपराधों को. तो बिना वक्त गंवाए शोभराज ने जुर्म का रास्ता चुना. इस पर हताश और निराश हो कर चैंटल वापस फ्रांस लौट गई और आइंदा कभी शोभराज से न मिलने की कसम खा ली.

शोभराज की सेहत और इरादों पर पत्नी के यूं खफा हो कर चले जाने का रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा. उलटे वह एक बंधन से आजाद हो गया. इसी आजादी ने एक ऐसे अपराधी को जन्म दिया, जिस के कारनामे और करतूतें देख हर किसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

देखते ही देखते चार्ल्स शोभराज जुर्म की दुनिया का ऐसा बादशाह बन गया, जिस के नाम से समूचे एशिया की पुलिस अलर्ट हो गई थी.

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 2

पुलिस की एक टीम ने मौके पर पहुंच कर बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर जल्दी से जल्दी विनोद को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की. लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते पुलिस को इस काम में एक घंटे का समय लग गया. इस बीच विनोद के शरीर से लगातार खून बहता रहा. हालांकि उस हालत में भी वह पुलिस वालों को घटना के बारे में बताता रहा, जिसे एएसआई गुरमेज सिंह दर्ज करते रहे.

ठीक एक घंटे बाद एंबुलेंस विनोद को ले कर तलवंडी साबो के सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हुई तो लोगों का समूह उस के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच कर अस्पताल के मुख्य गेट को घेर कर खड़ा हो गया. यहां भी एंबुलेंस का घेराव कर के विनोद को अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया. लोगों ने एंबुलेंस को लगातार 3 घंटे तक घेरे रखा.

काफी मशक्कत के बाद पुलिस किसी तरह विनोद को फरीदकोट के सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल ले जाने में सफल हो पाई. लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया था. एएसआई गुरमेज सिंह के पास उस का बयान दर्ज था. उसी बयान को तहरीर के रूप में ले कर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अगली सुबह पुलिस मामले की जांच के लिए गांव भागीवांदर पहुंची तो वहां अजीब नजारा सामने आया. 4 हजार की आबादी वाले इस गांव के तमाम लोग इस अपराध की स्वीकृति के साथ आत्मसमर्पण को तैयार थे कि ड्रग सप्लायर विनोद का कत्ल उन सब ने मिल कर किया था.

उन लोगों में बुजुर्ग, जवान, पुरुषमहिलाओं के अलावा किशोर और छोटेछोटे बच्चे तक शामिल थे. सभी अपनी गिरफ्तारी देने को तो तैयार थे. उन का कहना था कि एक ड्रग सप्लायर को इस तरह मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. आगे भी इस इलाके में नशा बेचने वाले का यही हश्र होगा.

स्थिति को देखते हुए पुलिस के लिए गांव के किसी शख्स से पूछताछ करना तो दूर की बात, मामले की जांच तक करना मुश्किल हो गया. इस के बाद पुलिस ने गांव लेलेवाल पहुंच कर विनोद के परिवार वालों से संपर्क किया. वे सभी अपने घर में दुबके बैठे थे. हालांकि पुलिस वालों पर उन्होंने अपनी भड़ास खूब निकाली. उन लोगों को डर था कि कहीं उन पर भी जानलेवा हमला न हो जाए.

उन लोगों की आशंका जायज थी. लिहाजा उन के घर पर पुलिस का सशस्त्र दस्ता तैनात कर दिया गया. उसी दिन फरीदकोट मैडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने विनोद की लाश का पोस्टमार्टम कर के उसे पुलिस वालों को सौंप दिया.

पुलिस ने लाश लेने का संदेश विनोद के घर वालों तक पहुंचा दिया, लेकिन उन लोगों ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि पुलिस उन्हें न्याय दिलाने की जरा भी कोशिश नहीं कर रही है.

एएसआई गुरमेज सिंह को दिए अपने बयान में विनोद ने उस पर हमला करने वालों के नाम स्पष्ट बताए थे. वे अच्छीखासी संख्या में इकट्ठा हो कर आए थे. उन के पास मारक हथियार भी थे. जबकि पुलिस ने केवल धारा 302 (हत्या) का मुकदमा अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया था और अब इस लोमहर्षक हत्याकांड के असली मुजरिमों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है.

पुलिस ने इस बारे में समझाने की कोशिश की तो वे भड़क उठे थे. बाद में उन का कहना था कि समुद्र में रह कर मगरमच्छों से बैर न रखने वाले मुहावरे का हवाला दे कर पुलिस ने उन्हें कथित आरोपियों से समझौता कर लेने की सलाह दी थी. विनोद की 3 बहनों बबली, वीरपाल और अमनदीप कौर ने पहले तो रोरो कर आसमान सिर पर उठाया, उस के बाद पंखों से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश भी की.

पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन की यह कोशिश नाकाम कर दी. पर यह मामला घर वालों की ओर से कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था. अब तक तमाम लोग उन की हिमायत में भी आ गए थे और पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.

उन का कहना था कि किसी को इस तरह सरेआम मार दिया गया तो पुलिस को हत्यारों के दबाव में न आ कर अपनी काररवाई करनी चाहिए. कायदे से मुकदमा दर्ज कर के वांछित अभियुक्तों को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए. इस तरह तो दबंग लोग कानून को धता दिखा कर कुछ भी मनमानी करने लगेंगे.

प्रियंका को मिला मौत का शेयर – भाग 2

आशीष साहू ने आत्मविश्वास से लबरेज हो कर कहा, ‘‘हंडरेड परसेंट, मैं तुम्हें शेयर मार्केट में कमा कर ही दूंगा मगर…’’

‘‘मगर…मगर क्या?’’ प्रियंका आशंकित हुई.

आशीष साहू ने कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं, मैं देख लूंगा तुम्हें नुकसान नहीं होने दूंगा.’’

उसे लगा कि कहीं वह यह कह देगा कि शेयर में नुकसान भी हो जाता है कभीकभी तो प्रियंका शायद उस से आगे बात भी न करे.

आशीष साहू से बात कर के प्रियंका को आज एक नई मंजिल दिखाई देने लगी. उस ने फैसला किया कि वह भी शेयर मार्केट में रुपए लगाएगी और आशीष जैसा शेयर मार्केट का सधा हुआ खिलाड़ी जब उसे मिल गया है तो वह कमा कर देगा ही देगा.

प्रियंका ने कुछ ही दिनों में 5 लाख रुपए उस के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए और कहा, ‘‘यह पैसे हैं मैं ने किसी तरह इकट्ठे कर के रखे थे, तुम्हें दे रही हूं.’’

‘‘प्रियंका, तुम ने मुझ पर विश्वास किया है, मैं तुम्हें देखना कैसे कमा कर दूंगा.’’ आशीष ने विश्वास दिलाया.

आगे कुछ एक ऐप पर शेयर मार्केट का खेल चलने लगा. प्रियंका उसे रुपए देती और आशीष कुछ समय बाद उसे उस का लाभांश देता तो प्रियंका खुशी से झूम उठती.

आशीष साहू ने धीरेधीरे प्रियंका सिंह का विश्वास पूरी तरह हासिल कर लिया. प्रियंका भी आंखें बंद कर के उस पर विश्वास करने लगी थी.

वह यह मानती थी कि आशीष साहू उस के साथ कभी भी कोई धोखा नहीं कर सकता और इसी विश्वास की बुनियाद पर प्रियंका सिंह ने मां और अन्य जानपहचान वालों से पैसे ले कर आशीष को धीरेधीरे 15 लाख रुपए शेयर मार्केट में इनवैस्ट करने के लिए दे दिए.

इस के बाद इस कहानी में एक नया मोड़ आ गया. एक महीने का लंबा समय हो गया था, आशीष साहू ने उसे शेयर से कमाए पैसे नहीं दिए तो कुछ दिन तक तो प्रियंका यह सोच कर चुप थी कि आशीष खुद फोन कर के उसे खुशखबरी देगा और रुपए उस के अकाउंट में ट्रांसफर करवाएगा.

मगर जब सब्र की सीमा खत्म हो गई तो आखिर प्रियंका सिंह ने आशीष को फोन कर के कहा, ‘‘आशीष, क्या बात है, मुझे घर जाना है और तुम हो कि कई दिनों से मौनी बाबा बन कर बैठ गए हो.’’

आशीष साहू ने तत्काल बात बनाते हुए कहा, ‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं आज आप को पेमेंट दूंगा.’’

मगर उस दिन भी आशीष ने रुपए नहीं दिए तो प्रियंका ने दूसरे दिन फिर फोन पर झल्लाते हुए कहा, ‘‘आशीष, तुम्हें क्या हो गया है मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो?’’

आशीष साहू ने सौरी बोलते हुए कहा, ‘‘आज निश्चित रूप से आप को पेमेंट मिल जाएगी. दरअसल, अचानक बाहर चला गया था.’’

प्रियंका को धीरेधीरे एहसास होने लगा था कि मामले में कुछ तो पेंच है. आशीष साहू अब पहले जैसी बात और व्यवहार नहीं कर रहा है. फिर सोचा हो सकता है किसी तकलीफ में होगा, बता नहीं रहा है. मगर उस के रुपए वह कभी भी हड़पने का प्रयास नहीं करेगा.

यह सोच कर के प्रियंका सिंह को अच्छा लगा और वह अपने रोजाना के काम में लग गई. दोपहर में जब प्रियंका सिंह आशीष के मैडिकल स्टोर पर पहुंची तो आशीष ने उस का स्वागत किया और बताया कि अभी 5 मिनट में रुपए तुम्हारे अकाउंट में ट्रांसफर करवा देगा.

प्रियंका सिंह के लिए आशीष ने कुछ खाने के लिए स्नैक्स और काफी मंगा ली. कुछ देर दोनों बातें करते रहे. थोड़ी ही देर में प्रियंका के मोबाइल में मैसेज आ गया कि उस के अकाउंट में 4 लाख रुपए आ चुके हैं. इस पर प्रियंका ने आशीष साहू से कहा, ‘‘मेरी परीक्षाएं 20 अक्तूबर को खत्म हो चुकी हैं और मैं  बेवजह तुम्हारे कारण यहीं टिकी हुई हूं.’’

आशीष साहू ने प्रियंका को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम घर जाओ, 24 को दीपावली है. मैं त्यौहार के एकदो दिन बाद सारा पैसा आप के खाते में लाभ सहित डलवा दूंगा.’’

प्रियंका के सामने और कोई दूसरा चारा नहीं था. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और कहा, ‘‘ठीक है, दीपावाली के एकदो दिन बाद मुझे पूरा पैसा मिल जाना चाहिए.’’

आशीष साहू हंसते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो भी कहा है हमेशा उस पर खरा उतरा हूं.’’

प्रियंका ने भी चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम पर विश्वास है. मगर दीपावाली के बाद देखो फिर आगे गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.’’ यह कह कर प्रियंका सिंह वहां से चली गई.

16 नवंबर, 2022 बुधवार का शीत भरा दिन था. लोग दिन में भी ठिठुर रहे थे. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर कोतवाली के टीआई प्रदीप आर्य शहर में गश्त कर रहे थे. तभी लगभग शाम 3 बजे उन के मोबाइल पर एक फोन आया.

उन्होंने रिसीव किया तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘सर, मैं हिमांशु सिंह भिलाई से आया हुआ हूं, आप से मिलना चाहता हूं. दरअसल, मेरी बहन 2 दिनों से लापता है.’’

टीआई प्रदीप आर्य ने कहा, ‘‘मैं आधे घंटे में थाने पहुंच रहा हूं. आप लड़की का फोटो और सारी डिटेल ले कर आ जाओ.’’

कुछ देर बाद जब टीआई प्रदीप आर्य थाने पहुंचे तो हिमांशु रोआंसे स्वर में बोला, ‘‘सर, मैं ही हिमांशु हूं, आप से बात हुई थी. मेरी बहन प्रियंका सिंह 15 नवंबर से लापता है. उस से कोई बातचीत नहीं हो पा रही है, फोन भी बंद है.’’

इस के बाद उस ने प्रियंका सिंह के कुछ फोटो और अन्य दस्तावेज सामने रख दिए.

टीआई प्रदीप आर्य ने उस से विस्तृत जानकारी ली और कहा, ‘‘हिमांशु, तुम चिंता मत करो. पुलिस जल्दी ही प्रियंका के बारे में जरूर पता लगाएगी.’’

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 2

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

अपना ही तमाशा बनाने वाली एक लड़की – भाग 2

पुलिस ने औटो चालकों से पूछताछ शुरू की. जयपुर में करीब 8 हजार औटो हैं, लेकिन उन में किसी का भी वेरिफिकेशन नहीं है. उर्वशी ने पुलिस को हरेपीले औटो के बारे में बताया था. ये हरेपीले औटो सीएनजी से चलते हैं. ऐसे औटो की संख्या भी हजारों में है. पुलिस ने युवती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर उस की भी जांच की, साथ ही मोबाइल टावर के आधार पर आरोपियों का पता लगाने की भी कोशिश की गई.

अपराधों के मामले में राजस्थान पहले ही सुर्खियों में है. इस घटना से जयपुर में कानूनव्यवस्था पर सवालिया निशान लग गए थे. दिन भर इलैक्ट्रौनिक चैनलों पर युवती से दरिंदगी की खबरें चलती रहीं. लोगों में भी सरकार के प्रति आक्रोश उभरने लगा. उसी दिन शाम को दीनदयाल वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना के विरोध में स्टैच्यू सर्किल पर कैंडल मार्च निकाला.

11 जनवरी को देश भर की मीडिया में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना सुर्खियों में छाई रही. इस से पुलिस की किरकिरी हुई. सरकार की भी बदनामी हुई. स्थिति को देखते हुए पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट ने जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को आरोपियों का जल्द से जल्द पता लगाने को कहा. रात भर की जांच के बाद दूसरे दिन सुबह से ही पुलिस की अलगअलग टीमें मामले की तह में जाने के लिए पूरे उत्साह से जुट गईं. आरोपी औटोचालक का पता लगाने के लिए पूरे शहर में अभियान चलाया गया. औटोचालक यूनियनों के पदाधिकारियों से बात की गई. उर्वशी ने रेलवे स्टेशन से औटो में बैठने के बाद सिंधी कैंप, नारायण सिंह सर्किल आदि जिन रास्तों से औटो के जाने की बात बताई थी, उन तमाम रास्तों की सीसीटीवी फुटेज खंगाली गई.

पुलिस की एक टीम पीडि़त छात्रा उर्वशी को ले कर शहर में उस जगह का पता लगाने का प्रयास करती रही, जहां पीडि़ता ने सामूहिक दुष्कर्म की बात बताई थी. पीडि़ता को उस के बताए रास्ते में आने वाले पार्क व जगहजगह खाली पड़े प्लौट, पार्क दिखाए गए, लेकिन उर्वशी ने किसी भी प्लौट या पार्क की पहचान नहीं की.

इस तरह दिन भर खाक छानने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच राज्य महिला आयोग ने स्वत: संज्ञान ले कर पुलिस महानिदेशक को छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करने को कहा, साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरे चालू हैं या नहीं, इस की भी रिपोर्ट मांगी.

दूसरे दिन का नतीजा शून्य रहने पर जांच में लगे पुलिस अधिकारियों ने मीटिंग कर के पूरे मामले पर फिर से गंभीरता से विचार किया. इस विचारविमर्श में यह बात सामने आई कि ट्रेन से स्टेशन पर उतरते ही उर्वशी ने अपने भाई को फोन कर के कहा था कि घर पहुंचने में देर हो जाएगी, वह खाना खा कर सो जाए.

उस ने घर लेट पहुंचने की बात क्यों कही थी? इस के अलावा अकेली लड़की होने के बावजूद वह औटो में 3 लड़कों के साथ क्यों बैठी? इतनी कड़ाके की ठंड में रात भर वह पार्क में कैसे रही? दुष्कर्म करने वाले उसे पार्क में छोड़ कर क्यों नहीं गए? उन्होंने उसे एमएनआईटी पर ले जा कर क्यों छोड़ा? आरोपी उस का मोबाइल छीन कर क्यों नहीं ले गए?

ये सवाल उभरे तो पुलिस ने नए सिरे से जांच करने का फैसला किया. इस के अलावा यह भी आशंका जताई गई कि कहीं कोई व्यक्ति अलवर से ही तो उर्वशी का पीछा नहीं कर रहा था, जिस ने जयपुर पहुंच कर अपने साथियों की मदद से दरिंदगी की हो. इस का पता लगाने के लिए एक पुलिस टीम अलवर स्टेश्न पर सीसीटीवी कैमरों की जांच के लिए भेजी गई.

तीसरे दिन पुलिस ने नए सिरे से जांच शुरू की. उर्वशी के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली गई. उस की 9 जनवरी को जिन लोगों से बातें हुई थीं, उन से पूछताछ की गई. उर्वशी से भी अलगअलग तरीके से पूछताछ की गई. उस के परिचित युवकों से भी पूछताछ की गई. इस सारी मशक्कत से पुलिस को उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं तो वह उसी दिशा में आगे बढ़ती गई. युवती के परिवार के बारे में जांच के लिए एक टीम उत्तर प्रदेश के मैनपुरी शहर भेजी गई.

पुलिस अब कामयाबी की दिशा में आगे बढ़ रही थी. पुलिस ने उन दोनों युवकों संदीप और ब्रजेश का भी पता लगा लिया, जिन के नाम उर्वशी ने बताए थे. पुलिस अब आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए सबूत जुटाने में लग गई. तीसरे दिन रात भर और चौथे दिन दोपहर तक की जांच के बाद पुलिस ने उर्वशी द्वारा बताए गए गैंपरेप की गुत्थी सुलझा ली. 13 जनवरी को जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में गैंगरेप के मामले का परदाफाश किया गया.

पुलिस कमिश्नर ने बताया कि उक्त युवती ने नर्सिंग के छात्र को ब्लैकमेल कर के 5 लाख रुपए वसूलने के लिए अपहरण और गैंगरेप की झूठी कहानी अपने बौयफ्रैंड के साथ मिल कर रची थी. पुलिस ने इस मामले में उर्वशी और उस के बौयफ्रैंड ऋषिराज मीणा को गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस कमिश्नर ने बताया कि करीब 3 सौ पुलिस अधिकारियों ने करीब 80 घंटे तक लगातार जांच कर के जानकारी जुटाई और इस मामले का परदाफाश किया.

पुलिस की ओर से उर्वशी व ऋषिराज मीणा से की गई पूछताछ और व्यापक जांच में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह अनैतिक काम से लोगों को ब्लैकमेल कर के पैसा कमाने की कहानी थी.

उर्वशी अपने पिता व भाईबहनों के साथ उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में रहती थी. उस की मां की कुछ समय पहले मौत हो गई थी. उस के पिता मानसिक रूप से कमजोर थे. परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. उर्वशी के 2 भाई और 2 बहनें हैं.

करीब 2 साल पहले घर में उर्वशी का अपने अविवाहित भाई से झगड़ा हो गया था. तब वह नाराज हो कर अपनी बुआ के पास काशीपुर चली गई थी. काशीपुर में रहते हुए वह प्राइवेट ग्रैजुएशन की तैयारी करने लगी, साथ ही वह सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगी.

करीब 5-6 महीने पहले ऋषिराज मीणा किसी काम से काशीपुर गया था, जहां उस की मुलाकात उर्वशी से हुई. उर्वशी उसे स्वच्छंद लड़की लगी. 2-4 दिन वहां रहने के दौरान ऋषिराज की उर्वशी से घनिष्ठता हो गई. दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. बाद में ऋषिराज जयपुर आ गया. इस के बाद भी उर्वशी और ऋषिराज में लगातार बातें होती रहीं.

उर्वशी आगरा जा कर रहने लगी तो उस दौरान भी ऋषिराज की उस से लगातार बातें होती रहीं. कई बार बातोंबातों में उर्वशी ने ऋषिराज को अपनी पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं होने और नौकरी करने की बात बताई. इस पर ऋषिराज ने उसे जल्दी ही रेलवे में नौकरी लगवाने का विश्वास दिलाया.

घटना से करीब ढाई-3 महीने पहले ऋषिराज ने उर्वशी को फोन कर के कहा कि वह जयपुर आ जाए. वह उसे किराए का मकान दिलवा देगा. जयपुर में रहेगी तो नौकरी तलाशने में आसानी रहेगी. ऋषिराज के कहने पर उर्वशी जयपुर आ गई. ऋषिराज ने जगतपुरा की सरस्वती कालोनी में उसे किराए का मकान दिलवा दिया. ऋषिराज तो उर्वशी का पहले से ही परिचित था. जयपुर में उस की कई अन्य युवकों से भी दोस्ती हो गई. युवकों से दोस्ती के चलते मकान मालिक ने उसे निकाल दिया.