Social Crime News : ढाबे की आड़ में चलता था जिस्मफरोशी का कारोबार

Social Crime News : मुरथल की पहचान हाईवे पर स्थित ढाबों से है. इन के स्वादिष्ट परांठों का स्वाद पूरे भारत में फैल चुका है. लेकिन आधुनिक होटलों का रूप ले चुके इन सुसज्जित ढाबों से जब पुलिस ने देशविदेश की 15 युवतियों को जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार किया तो…

जब आप दिल्ली से करनाल जाने वाले जीटी हाईवे पर जाएंगे तो सोनीपत के नजदीक मुरथल में हाईवे के किनारे जगमगाते व सजे हुए अनेक ढाबे दिखाई देंगे. रात में तो इन ढाबों की रौनक देखने लायक होती है. इन ढाबों के परांठों का स्वाद भारत भर में मशहूर है. तभी तो रात में इन ढाबों की पार्किंग में सैकड़ों गाडि़यां खड़ी रहती हैं. दूरदूर से लोग मुरथल के परांठों का स्वाद लेने आते हैं. एक तरह से इन ढाबों की वजह से मुरथल की भारत भर में पहचान बनी हुई है. इन्हें भले ही ढाबा कहते हैं लेकिन ये किसी आधुनिक होटल से कम नहीं हैं, लेकिन पैसे कमाने के लालच में कुछ लोगों ने ढाबों की परिभाषा ही बदल दी है.

इन ढाबों पर ग्राहकों को मौजमस्ती कराने के लिए कालगर्ल भी बुलाई जाने लगी हैं. जिस से ग्राहकों के खाने के देशी और विदेशी देह का सुख भी मिल सके. अनैतिक देह व्यापार का धंधा भी खूब फलफूल रहा था. 7 जुलाई, 2021 की रात के तकरीबन 8 बजे का वक्त था, जब ढाबे रंगबिरंगी रोशनी से नहाए हुए थे. ढाबों के बाहर वाहनों की कतारें लगी थीं. तभी एक कार एक ढाबे के बाहर आ कर रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. पहले उन्होंने अपनी खोजी नजरों से ढाबे का मुआयना किया और फिर आराम से टहलते हुए सीधे काउंटर पर पहुंचे.

काउंटर पर मौजूद मैनेजर ने एक नजर उन पर डालते हुए पूछा, ‘‘कहिए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’

‘‘हमें स्पैशल परांठे चाहिए.’’ उस ने कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘प्लीज आप बैठ कर मेन्यू देख कर और्डर कीजिए, अभी भिजवाता हूं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘हमें खाने के नहीं, इस्तेमाल करने वाले परांठे चाहिए.’’ उन की बात सुन कर काउंटर पर बैठा व्यक्ति एक पल के लिए सकपका गया, लेकिन दूसरे ही पल उन दोनों को गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘हम ने ऐसी तो कोई बात की नहीं, जो आप समझ न सको. आप के एक पुराने ग्राहक ने ही हमें यह जगह बताई थी, इस भरोसे पर आज मनोरंजन के इरादे से यहां चले आए.’’ आगंतुक ने राजदाराना अंदाज में कहा.

तभी मैनेजर मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह समझ गया, यह बात है तो आप को पहले बताना चाहिए था. दरअसल, बात यह है सर कि पुलिस का भी चक्कर रहता है, इसलिए अंजान लोगों के साथ संभल कर बात करनी पड़ती है हमें. वैसे आप को किस तरह का परांठा चाहिए?’’

‘‘हमें एकदम बढि़या चाहिए, जो दिल खुश हो जाए.’’ एक व्यक्ति बोला.

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा कि हमारे पास देशीविदेशी दोनों तरह के हैं. अब मरजी आप की है, आप जो भी पसंद करें. सर्विस में भी आप को कोई शिकायत नहीं मिलेगी.

‘‘हमारे कई रेग्युलर कस्टमर हैं, जो हमारी शानदार सर्विस से हमेशा खुश रहते हैं. ऐसा करता हूं, मैं आप को फोटो दिखा देता हूं, आप पसंद कर लीजिए.’’ कहने के साथ ही उस ने अपना मोबाइल उन के सामने कर दिया और एकएक कर के फोटो दिखाने लगा. उस के पास कई सुंदर लड़कियों के अदाओं के साथ खिंचे फोटोग्राफ थे. इन में विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. वास्तव में वह परांठों की नहीं, बल्कि कालगर्ल के बारे में बात कर रहे थे.

‘‘विदेशी का इंतजाम कैसे करोगे?’’

‘‘सर, आप सिर्फ पसंद कीजिए, इंतजाम हमारे कमरों में पहले से है, फिलहाल कुछ लड़कियां आई हुई हैं.’’ उस ने कहा.

आगंतुक ने उन में से एक लड़की को पसंद किया और उस का रेट तय करने के बाद एक 500 का नोट उस की तरफ बढ़ाया, ‘‘ठीक है यह आप एडवांस रख लीजिए, हमारा एक दोस्त भी मस्ती के लिए आने वाला है.’’ कहने के साथ ही आगंतुक ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को काल कर के कहा, ‘‘दोस्त, जल्दी आ जाओ बढि़या इंतजाम हो गया है.’’

उस के फोन किए अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि तभी पुलिस की गाडि़यां वहां आ कर रुकीं. पुलिसकर्मी दनदनाते हुए उस ढाबे में आ गए और मैनेजर को हिरासत में लेने के बाद कमरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी. काउंटर पर बैठा व्यक्ति व अन्य लोग यह सब देख कर सकपका गए, जबकि 2 आगंतुक जो मैनेजर से बातचीत कर रहे थे, वे मंदमंद मुसकरा रहे थे. वास्तव में वह कोई और नहीं, बल्कि पुलिस के नकली ग्राहक थे. सटीक जानकारी होने के बाद ही पुलिस ने रेड की काररवाई की थी. पुलिस जब कमरों में पहुंची तो हैरान रह गई. कमरों में कई लड़कियां मौजूद थीं, जो पुलिस को देख कर अपना मुंह छिपाने लगीं.

महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे में ही अपनी निगरानी में ले लिया. सभी लड़कियां हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘हमें छोड़ दीजिए प्लीज, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘क्यों, यह सब खयाल तुम लोगों को पहले नहीं आया.’’ महिला पुलिसकर्मी ने कहा.

‘‘गलती हो गई अब कभी नहीं आएंगे.’’ कई लड़कियां गिड़गिड़ाते हुए बोलीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन की गुहार को नजरंदाज कर दिया. एक पुलिस अधिकारी ने अधीनस्थों को निर्देश दिया, ‘‘तुम लोग इन को यहीं रखो, कोई भी यहां से जाने न पाए, हम बाकी जगह को चैक करते हैं.’’ इस के बाद पुलिस ने अन्य 2 ढाबों पर भी रेड की. दरअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उड़नदस्ता टीम थी, जिस का नेतृत्व डीएसपी अजीत सिंह कर रहे थे. टीम में सोनीपत की एसडीएम शशि वसुंधरा को भी शामिल किया गया था.

स्पैशल टीम को सूचना मिल रही थी कि मुरथल के कुछ ढाबों पर देह व्यापार, जुएसट्टे व नशे का धंधा जोरों पर चल रहा है. सूचना को पुख्ता करना जरूरी था. इसलिए टीम ने पहले 2 लोगों को नकली ग्राहक बना कर वहां भेजा था. जब उन की बातचीत में सब कुछ साफ हो गया तो उन का इशारा मिलने पर काररवाई की. पुलिस टीम ने वहां स्थित हैप्पी ढाबा, राजा ढाबा व होटल वेस्ट ढाबों पर रेड की. इस काररवाई में 12 लड़कियों व 5 युवकों को देह व्यापार में जबकि 9 लोगों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया. वे महफिल सजा कर जुआ खेल रहे थे.

वे सभी अच्छे परिवारों से थे, इसलिए उन्होंने पुलिस पर रौब गालिब करने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस उन के प्रभाव में नहीं आई. 9 जुआरियों से पुलिस ने एक लाख 63 हजार रुपए भी बरामद किए. जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार लोगों में 3 विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. इन में एक लड़की उज्बेकिस्तान, दूसरी तुर्की व तीसरी रूस की रहने वाली थी. बाकी 9 लड़कियां दिल्ली निवासी थीं. गिरफ्तार किए गए युवक सोनीपत, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के थे.  पुलिस ने सभी लोगों के मोबाइल व नकदी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस की इस काररवाई से ढाबों पर भगदड़ मच गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को कस्टडी में ले कर पुलिस वैन में बैठाया और उन्हें ले कर मुरथल थाने पहुंची.

वहां आरोपियों से पूछताछ की तो ढाबों पर चलने वाले अनैतिक धंधे की ऐसी परतें खुलीं, जिस पर हर कोई सोचने पर मजबूत हो जाए. क्योंकि ढाबों पर यह सब होता होगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो. ढाबों पर अमूमन लोग खाना खाने के लिए ही आते हैं, क्योंकि ढाबे इसी काम के लिए बने होते हैं, लेकिन मुरथल के ढाबों की बात अलग है. उन्होंने जीटी करनाल हाइवे किनारे बने ढाबों की छवि को नया रूप दिया. नाम भले ही ढाबा रखा गया, लेकिन उन्हें आधुनिक होटल का रूप दिया गया. होटल की तरह ढाबों में रूम तक बनाए गए थे. ग्राहकों को खाने के साथसाथ रुकने की सुविधा भी दी जाने लगी. ढाबों की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर सहित दूरदूर से लोग यहां परांठों का स्वाद लेने आते हैं.

मुरथल के ढाबों के ज्यादातर मालिक खुद हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ढाबे बनाने के बाद वह दूसरे लोगों को किराए पर दे दिए. यानी ढाबे के चलने न चलने से उन का कोई मतलब नहीं होता, उन्हें तो बस महीने में किराए की रकम चाहिए होती है. वैसे तो ये ढाबे इतने मशहूर हैं कि उन पर न तो कमाई की कमी है और न ही ग्राहकों की, लेकिन कुछ ढाबे वालों को इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, उन्होंने लालच में अपने काम को चमकाने में चारचांद लगाने शुरू कर दिए. ढाबे वाले वह काम भी कराने लगे जो नैतिक नहीं थे. इन में जुआ, सट्टा या नशा ही नहीं, बल्कि देह व्यापार भी शामिल हो गया. ऐसे लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि ढाबों की छवि पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ढाबों पर देह व्यापार का धंधा संगठित तरीके से चलाया जाने लगा.

ढाबे वालों से ऐसी लड़कियों के संपर्क हो गए, जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं. वहां पर ऐसी लड़कियों को सप्ताह 10 दिन के हिसाब से एकमुश्त रकम दे कर बुलाया जाता था. उन की बुकिंग का काम ढाबा संचालक व उन से जुड़े दलाल करते थे. ग्राहकों से वह खुद तयशुदा रकम लेते थे, जिस में कालगर्ल का हिस्सा नहीं होता था.  एकमुश्त रकम लेने के बाद कालगर्ल को उस व्यक्ति के इशारों पर काम करना होता था, जो उन्हें लाता था. लड़कियोें के ठहरने व खाने का खर्च भी उन्हें ही उठाना होता था. कहते हैं कि गलत काम गुपचुप तेजी से चलता है. ढाबों का देह व्यापार भी कुछ इस तरह चला कि लड़कियां वहां शिफ्टों में काम करती थीं. इन में दिल्ली और उस के आसपास के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल व कोलकाता की लड़कियां भी शामिल होती थीं.

जो विदेशी लड़कियां पकड़ी गईं, वैसे तो वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन देह व्यापार में भी जुट गई थीं. उन के संपर्क कई ऐसे दलालों से थे, जो उन के लिए ग्राहक ढूंढते थे. तयशुदा कमीशन ले कर दलाल उन्हें ग्राहकों को परोसते थे. देह के धंधे में लिप्त ढाबे वाले औन डिमांड विदेशी लड़कियां बुलाते थे. विदेशी लड़कियों को इतनी कमाई होती थी कि वह ऐसी जगहों पर आनेजाने के लिए अपने साथ पेमेंट पर गाइड भी रखती थीं. गाइड भी उन के लिए ग्राहक ढूंढने में मदद करते थे. अमूमन कोई भी व्यक्ति सोचता है कि ढाबे तो सिर्फ खाने के लिए होते हैं, इसलिए किसी को शक नहीं होता था कि वहां के कमरों के अंदर क्या कुछ चलता है. इस बात का भी ढाबे वाले जम कर फायदा उठा रहे थे. उन्हें लगता था कि जल्दी से उन पर कोई शक भी नहीं करेगा.

ढाबों पर देह व्यापार के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने का काम भी उन्हें औफर दे कर चलता था. ऐसे लोगों को बताया जाता था कि उन के यहां खाने के साथ शबाब का भी इंतजाम है, जो लोग इच्छुक होते थे, उन्हें लड़कियां परोस दी जाती थीं. इसी तरह चेन बनती रही. देह व्यापार के लिए वाट्सऐप का भी इस्तेमाल किया जाता था. पुलिस से बचने के लिए नेटवर्क से जुड़े लोग वाट्सऐप के जरिए ही बातें किया करते थे और उसी से फोटो भेज कर लड़कियां पसंद कराई जाती थीं. कई बार लड़कियों को औन डिमांड बुलाया जाता था. विदेशी लड़कियां ज्यादातर औन डिमांड आती थीं. जैसे ही उन्हें फोन किया जाता था, वे टैक्सी से कुछ देर में वहां पहुंच जाती थीं.

पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के अगले दिन अदालत में पेश किया. जुए के आरोप में पकड़े गए 9 लोगों व स्थानीय लड़कियों को तो जमानत मिल गई, जबकि तीनोें विदेशी लड़कियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. हैरानी की बात यह थी ढाबों से मुरथल थाने की दूरी करीब एक किलोमीटर थी, ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे ही देह का धंधा आबाद था. मामला खुलने पर स्थानीय पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई. भला यह कैसे संभव था कि ढाबों पर जुआ, सट्टा व देह व्यापार होता हो और पुलिस को पता तक न हो. लापरवाही सामने आने पर सोनीपत के एसपी जश्नदीप सिंह रंधावा ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी अरुण कुमार को तुरंत लाइन हाजिर करते हुए उन के विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश दे दिए.

सुखवीर सिंह को मुरथल थाने का नया प्रभारी बनाया गया. दूसरी तरफ ढाबों की छवि को ले कर मुरथल ढाबा एसोसिएशन के पदाधिकारी भी चिंतित हो गए. ढाबा संचालक अमरीक सिंह, देवेंद्र कादियान आदि का मानना है कि कुछ लोगों की करतूत की वजह से कारोबार प्रभावित हो सकता है. इसलिए एसोसिएशन ने बैठक कर के तय किया कि उन के द्वारा निगरानी कर के गलत काम करने वालों को बेनकाब किया जाएगा. ऐसे लोग वहां ढाबा संचालन नहीं कर सकेंगे. जल्द ही वह ढाबा संचालन की गाइडलाइन तैयार कर के उस का पालन कराएंगे. Social Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best Crime Story : हेलीकौप्टर ब्रदर्स ने की 600 करोड़ की ठगी

Best Crime Story : मरियूर रामदास गणेश और उस के भाई मरियूर रामदास स्वामीनाथन का जीवन शाही था. लग्जरी कारों के अलावा उन के पास निजी हेलीकौप्टर भी था. एक साल में पैसा डबल करने का लालच दे कर उन्होंने लोगों से करीब 600 करोड़ रुपए ठगे. जैसे ही वे पुलिस के हत्थे चढ़े…

भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर तंजावुर जिला मुख्यालय है. इसी जिले का एक प्राचीन शहर कुंभकोणम है. यह शहर तंजावुर जिला मुख्यालय से कोई 40 किलोमीटर दूर है. कुंभकोणम शहर के उत्तर में कावेरी और दक्षिण में अरसालर नदी बहती है. यह शहर टेंपल टाउन के नाम से भी विख्यात है. इस का कारण है कि यहां बड़ी संख्या में मंदिर हैं. कुंभकोणम शहर में हर साल होने वाले ‘महामहम’ फेस्टिवल में पूरे देश से लोग आते हैं. मूलरूप से तिरवरूर जिले के गांव मरियूर के रहने वाले 2 भाई मरियूर रामदास गणेश और मरियूर रामदास स्वामीनाथन कोई 5-6 साल पहले कुंभकोणम शहर में आ कर बसे थे. इन के पिता रामदास बिजली विभाग में अधिकारी थे.

नौकरी के सिलसिले में रामदास पहले मदुलमपेट्टई और बाद में चेन्नई रहने लगे थे. बाद में वे सिंगापुर चले गए. सिंगापुर से कुंभकोणम में आ कर बसने पर उन्होंने विदेशी नस्ल की गायों से डेयरी कारोबार शुरू किया. दोनों भाई शहर के पौश इलाके श्रीनगर कालोनी में रहते थे. देखते ही देखते ही उन का कारोबार तेजी से फलनेफूलने लगा. उन के व्यापार में खूब बरकत होने लगी. पैसा आने लगा तो वे अपना कारोबार धीरेधीरे बढ़ाने लगे. उन्होंने सिंगापुर सहित दूसरे देशों में भी अपना व्यापार फैला लिया. फार्मास्युटिकल का काम शुरू कर दिया.

इस बीच, उन्होंने कुंभकोणम में ही विक्ट्री फाइनेंस नामक एक वित्तीय कंपनी शुरू कर दी. यह कंपनी कर्ज देने और लोगों के पैसे जमा करने का काम करती थी. कुछ दिनों बाद उन्होंने अर्जुन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड नामक एक विमानन कंपनी बना ली. इस कंपनी को केंद्र सरकार से पंजीकृत भी करा लिया. इस कंपनी के नाम से उन्होंने एक हेलीकौप्टर भी खरीद लिया. उन्होंने हेलीकौप्टरों के लिए कोरुक्कई गांव में एक विशाल हेलीपैड भी बना लिया. उस समय प्रचारित किया गया कि एंबुलेंस सेवा और यात्रा के लिए हेलीकौप्टर उपलब्ध रहेंगे.

2 साल पहले की बात है. जून 2019 के पहले सप्ताह में एक दिन सुबह के समय कुंभकोणम शहर के आसमान में एक हेलीकौप्टर मंडरा रहा था. इस हेलीकौप्टर से काफी देर तक पूरे शहर पर गुलाब के फूलों की वर्षा की गई. हेलीकौप्टर ने पुष्पवर्षा के लिए कई बार उड़ान भरी. फूलों की वर्षा देख कर शहर के लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि इस शहर में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. उन दिनों न तो कोई बड़ा त्यौहार था और न ही कोई नेता शहर में आ रहा था. इसलिए लोग इस बात पर चर्चा करने लगे. पता चला कि उस दिन एम.आर. गणेश (मरियूर रामदास गणेश) के बेटे अर्जुन का जन्मदिन था. बेटे के जन्मदिन की खुशी में ही एम.आर. गणेश ने पूरे शहर पर हेलीकौप्टर से पुष्पवर्षा कराई थी. उस दिन गणेश ने अपने बेटे के जन्मदिन की खुशी में बड़े स्तर पर भोज का भी आयोजन किया था.

दोनों भाइयों को हेलीकौप्टर ब्रदर्स के नाम से जानते थे लोग गणेश के बेटे के जन्मदिन पर हुए भव्य आयोजन ने दोनों भाइयों को पूरे शहर में चर्चित कर दिया. उस दिन से लोग उन्हें ‘हेलीकौप्टर ब्रदर्स’ के नाम से पुकारने लगे. दोनों भाई गणेश और रामदास जल्दी ही आसपास के इलाके में ही नहीं, राजधानी चेन्नई सहित पूरे तमिलनाडु में हेलीकौप्टर ब्रदर्स के नाम से मशहूर हो गए. इस के बाद से इन भाइयों का हेलीकौप्टर कई बार शहर में मंडराता और इधरउधर उड़ान भरता नजर आता था. कारोबार अच्छा चलने से वे पैसा तो पहले ही खूब कमा रहे थे. नए नाम से ख्याति मिलने से उन का रुतबा भी बढ़ गया था. आलीशान जिंदगी जीते हुए लग्जरी गाडि़यों के काफिले और सुरक्षाकर्मियों के साथ तो वे पहले से ही चलते थे. बाद में राजनीति में भी आ गए.

भारतीय जनता पार्टी ने गणेश को ट्रेडर्स विंग में जिला अध्यक्ष बना दिया. भाजपा में शामिल होने से पूरे प्रदेश में उन की राजनीतिक ताकत भी बढ़ गई. दिग्गज भाजपा नेता उन के घर आनेजाने लगे. कोई 2 साल पहले उन्होंने अपनी कंपनी विक्ट्री फाइनेंस और दूसरी कंपनियों के जरिए एक साल में दोगुनी रकम करने का वादा कर लोगों से पैसा जमा करना शुरू कर दिया. अच्छाखासा कारोबार करने और कई कंपनियां चलाने के कारण हेलीकौप्टर ब्रदर्स ने पहले से ही शहर की जनता पर अपना विश्वास बना लिया था. इसी विश्वास के भरोसे लोग उन की कंपनी में पैसा जमा कराने लगे.

सैकड़ों लोगों ने अपनी जमापूंजी उन की कंपनी में जमा करा दी. योजना की अवधि पूरी होने पर इन भाइयों ने लोगों को वादे के मुताबिक समय पर दोगुनी रकम वापस दे दी. इस से लोगों का विश्वास जमता गया. इस से उन की जमापूंजी भी बढ़ने लगी. पिछले साल तक सब कुछ ठीकठाक चला. जमाकर्ताओं को अपना पैसा वापस मिल गया. हालांकि न तो सरकारी स्तर पर और न ही चिटफंड कंपनियों तथा साहूकारी स्तर पर एक साल में पैसा दोगुना करने की पहले कोई योजना थी और न अब है. लेकिन लालच में लोग हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में अपनी मेहनत की कमाई जमा कराते रहे. जिन लोगों ने पहले पैसा जमा कराया था, उन्होंने दोगुनी रकम वापस मिलने पर वही रकम फिर से एक साल के लिए जमा करा दी.

लोगों के लालच का दोनों भाइयों ने फायदा उठाया. उन्होंने पैसा जमा कराने के लिए कमीशन पर अपने एजेंट नियुक्त कर दिए. एक साल में उन की कंपनी की साख बन गई थी. लालच में फंस रहे थे लोग इस का नतीजा यह हुआ कि रोजाना सैकड़ों लोग बिना आगेपीछे सोचे उन की कंपनी में पैसा जमा कराने लगे. बहुत से लोगों ने बैंकों या साहूकारों के पास जमा अपनी रकम निकाल कर हेलीकौप्टर ब्रदर्स की फाइनेंस कंपनी में जमा करा दी. नौकरीपेशा लोगों ने भी एक साल में रकम दोगुनी होने के लालच में अपनी जमापूंजी का निवेश उन की कंपनी में कर दिया. दोनों भाइयों के झांसे में आ कर कई व्यापारियों और अमीर लोगों ने भी उन की कंपनी में करोड़ों रुपए की राशि जमा करा दी.

इस साल जब अवधि पूरे होने पर जमाकर्ता अपने पैसे वापस मांगने लगे तो कंपनी की ओर से उन्हें कोरोना महामारी के कारण कामकाज ठप होने की बात कह कर कुछ दिन रुकने के लिए कहा गया. अप्रैल के महीने में कोरोना का असर ज्यादा बढ़ने पर लोगों को पैसों की आवश्यकता हुई तो उन्हें फिर टाल दिया गया. जमाकर्ताओं को दोगुनी रकम तो दूर कुछ राशि या ब्याज का पैसा भी नहीं दिया गया. छोटे जमाकर्ता रोजाना उन की कंपनियों के चक्कर लगा कर निराश लौट जाते थे. जिन लोगों के करोड़ों रुपए जमा थे, वे सब से ज्यादा परेशान थे. अवधि पूरी होने के बावजूद न तो उन का मूलधन वापस मिल रहा था और न ही कोई ब्याज दिया जा रहा था.

कुछ बड़े जमाकर्ताओं ने अपनी रकम वापस लेने के लिए हेलीकौप्टर ब्रदर्स गणेश और रामदास स्वामीनाथन से संपर्क किया तो उन्होंने कोरोना के कारण नुकसान होने की बात कह कर उन सभी को जल्द भुगतान करने का आश्वासन दिया. ले भागे 600 करोड़ रुपए भुगतान में लगातार देर हो रही थी. जमाकर्ताओं को किसी न किसी बहाने से टाला जा रहा था. ज्यादा बातें करने पर जमाकर्ताओं को धमकाया भी गया. इस से लोगों को कंपनी के मालिकों की नीयत पर शक होने लगा. उन्हें अपनी जमापूंजी की चिंता होने लगी. कुछ ही दिनों में पूरे शहर में यह बात फैलने लगी कि दोनों भाइयों का अब जमाकर्ताओं को पैसा वापस देने का मन नहीं है.

लोगों को असलियत का पता चलने पर दोनों भाई शहर से लापता हो गए. इस पर कुछ लोगों ने इसी साल के जुलाई महीने में शहर में जगहजगह हेलीकौप्टर ब्रदर्स के पोस्टर लगवा दिए. इन में आरोप लगाया था कि दोनों भाई लोगों के 600 करोड़ रुपए ले कर उड़ गए हैं. इन पोस्टरों के माध्यम से लोगों ने दोनों भाइयों के खिलाफ काररवाई की मांग की. कहा जाता है कि ये पोस्टर दोनों भाइयों के एजेंटों ने लगवाए थे, क्योंकि इन भाइयों ने एजेंटों को भी उन का कमीशन नहीं दिया था. पुलिस कोई काररवाई करने की सोच रही थी कि एक दंपति जफरुल्लाह और फैराज बानो ने तंजावुर जिले के एसपी देशमुख शेखर संजय के पास जुलाई के तीसरे सप्ताह में एक शिकायत दी.

इस शिकायत में दंपति ने कहा कि उन्होंने दोनों भाइयों की कंपनी में 15 करोड़ रुपए जमा कराए थे. योजना की अवधि पूरी होने के बाद भी उन्हें पैसे वापस नहीं दिए गए. दोनों भाइयों ने उन्हें अपने निजी सुरक्षाकर्मियों से पिटवाने की धमकी भी दी. पुलिस ने दंपति की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 420 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इन के अलावा एक निवेशक गोविंदराज ने पुलिस को बताया कि उस ने दोस्तों और परिवार से कर्ज ले कर हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में 25 लाख रुपए जमा कराए थे, लेकिन ये रकम वापस नहीं दे रहे हैं.

एक और निवेशक ए.सी.एन. राजन ने 50 लाख रुपए जमा कराने की बात पुलिस को बताई. पुलिस के पास कई और शिकायतें भी दोनों भाइयों के खिलाफ आईं. कुछ लोगों ने बताया कि उन्हें कुछ राशि का चैक दिया गया, लेकिन वह बाउंस हो गया. कोरकाई के रहने वाले पझानिवेल ने 10 लाख रुपए जमा कराए थे. बदले में उसे 20 लाख रुपए मिलने थे, लेकिन बारबार चक्कर काटने पर भी उसे पैसे नहीं मिले. भाजपा ने गणेश को पार्टी से निकाला ज्यादा कहासुनी करने पर एक दिन 10 लाख रुपए का चैक दिया. वह चैक बाउंस हो गया. जब उस ने चैक बाउंस होने की बात इन भाइयों को बताई तो उन्होंने अपने राजनीतिक संपर्क होने की धमकी दी.

मुकदमा दर्ज होने पर पुलिस ने दोनों भाइयों गणेश और रामदास स्वामीनाथन की तलाश शुरू की, लेकिन उन के मकान और दफ्तर बंद मिले. इस बीच, भाजपा ने गणेश को पार्टी के जिलाध्यक्ष पद से हटा दिया. इस संबंध में तंजावुर (उत्तर) के भाजपा नेता एन. सतीश कुमार ने 18 जुलाई को बयान जारी किया. दोनों भाइयों के आवास, कार्यालय और दूसरे ठिकाने बंद मिलने पर पुलिस ने उन की तलाश के लिए कई टीमों का गठन किया. मोबाइल फोन की लोकेशन से उन का पता लगाने का प्रयास किया. पता नहीं चलने पर पुलिस की टीमों को विभिन्न स्थानों पर भेजा गया. दोनों भाइयों के विभिन्न कारोबार के ब्यौरे जुटाए गए. साथ ही पुलिस ने इन भाइयों की कंपनियों में काम करने वाले लोगों का पता लगाना शुरू किया.

कुछ कर्मचारियों का पता चलने पर पुलिस ने उन से पूछताछ की, लेकिन दोनों भाइयों का सुराग नहीं मिला. कर्मचारी यह नहीं बता सके कि दोनों भाई कहां गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने 23 जुलाई को इन भाइयों की कंपनी के मैनेजर 56 साल के श्रीकांत को गिरफ्तार कर लिया. जांचपड़ताल में पता चला कि दोनों भाइयों के विदेशों में भी कारोबारी संपर्क हैं. इस से उन के विदेश भाग जाने की आशंका हुई. इस आधार पर पुलिस ने उन के पासपोर्ट का पता लगा कर विदेश भागने से रोकने के लिए काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने इन भाइयों के ठिकानों का पता लगाया. इन्होंने कई जगह अपने कार्यालय और ठहरने के ठिकाने बना रखे थे. एक बड़ा मकान तो केवल कारें रखने के लिए ही था. इन के पास दरजनों लग्जरी कारें थीं.

जांच के दौरान पुलिस ने इन के ठिकानों से 2 बीएमडब्ल्यू सहित 12 लग्जरी कारें जब्त कीं. एक कार्यालय से कंप्यूटर, हार्ड डिस्क और दस्तावेज जब्त किए. दोनों भाइयों की तलाश के दौरान पुलिस ने एक दिन उन की कंपनी में अकाउंटेंट का काम करने वाले भाईबहन मीरा और श्रीराम को कुंभकोणम के बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. वे शहर छोड़ कर भाग रहे थे. इन के अलावा दोनों भाइयों की कंपनी के एक और मैनेजर वेंकटेशन को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन से पूछताछ के आधार पर फरार एम.आर. गणेश की पत्नी अखिला को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़े हेलीकौप्टर ब्रदर लगातार कई दिनों की भागदौड़ के बाद तंजावुर जिले की क्राइम ब्रांच पुलिस ने 5 अगस्त, 2021 को दोनों भाइयों एम.आर. गणेश और एम.आर. स्वामीनाथन को पुडुककोट्टई जिले में वेंथनपट्टी गांव के एक फार्महाउस से गिरफ्तार कर लिया.

यह फार्महाउस उन के दोस्त का था. इसे उन्होंने छिपने के लिए किराए पर लिया था. कथा लिखे जाने तक दोनों भाइयों के अलावा गणेश की पत्नी और इन की कंपनी के 2 मैनेजर व 2 अकाउंटेंट गिरफ्तार किए जा चुके थे. पुलिस इन से पूछताछ कर जमा की गई रकम का पूरा ब्यौरा हासिल करने के प्रयास में जुटी थी. इस के साथ ही इन के बैंक खाते भी सीज करने की काररवाई चल रही थी. बहरहाल, अभी यह तो किसी को नहीं पता कि हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में निवेश करने वाले लोगों को उन का पैसा वापस मिल सकेगा या नहीं. लेकिन इस में कोई दोराय नहीं कि लोगों ने एक साल में रकम दोगुनी होने के लालच में बिना कोई जांचपड़ताल किए एक निजी फाइनेंस कंपनी में अपनी जमापूंजी निवेश कर दी. यह लालच ही अब उन निवेशकों की रात की नींद और दिन का चैन छीने हुए है.

यह अकेले तमिलनाडु की बात नहीं है. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. चालाक लोग लोगों की लालच की मानसिकता का फायदा उठा कर ठगी कर रहे हैं. भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में एक साल में कोई भी सरकारी या निजी कंपनी पैसा दोगुना नहीं करती. ऐसा करने का दावा करने वाले केवल ठगी करते हैं. लोगों को ऐसे ठगों की यह मानसिकता पहचाननी चाहिए. Best Crime Story.

Real Crime Stories in Hindi : महात्मा गांधी की परपोती धोखाधड़ी में पहुंची जेल

Real Crime Stories in Hindi : महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से निकलने वाले अपने अखबार की जिम्मेदारी अपने एक बेटे मणिलाल को सौंपी थी. बाद में मणिलाल वहीं जा कर बस गए थे. इन्हीं मणिलाल की पोती यानी महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने दक्षिण अफ्रीका में ऐसी जालसाजी की कि कोर्ट ने उन्हें 7 साल की सजा सुनाई. जानिए क्या है ये मामला…

दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत में 7 जून को एक अहम सुनवाई होनी थी. ज्यूरी के लोग पूरी तैयारी से अपनीअपनी जगहों पर आ चुके थे. कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और न्यायाधीश के अतिरिक्त मुकदमे के वादी, प्रतिवादी पक्षों के दरजनों लोग मौजूद थे. पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी, वैक्सीनेशन, औक्सीजन और भारत में कहर बन कर टूटी कोरोना वायरस संक्रमण की हो रही चर्चा के बीच मीडिया में इस सुनवाई को ले कर भी जिज्ञासा बनी हुई थी. गहमागहमी का माहौल था.

अंतिम फैसले पर सब की नजरें टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि मामले की जो आरोपी महिला थी, उस का संबंध महात्मा गांधी के परिवार और दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़े नाम के साथ जुड़ा था. पूरा मामला हाईप्रोफाइल होने के साथसाथ 6 साल पुराना कारोबारी धोखाधड़ी का था. यह आरोप एस.आर. महाराज नाम के एक बिजनैसमैन की शिकायत पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के द्वारा लगाया गया था. करीब 6 साल से जमानत पर चल रही 56 वर्षीया आरोपी महिला कठघरे में हाजिर हो चुकी थीं. अदालत की काररवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोपी के परिचय के साथसाथ न्यायाधीश के सामने उस पर लगे फरजीवाड़े के तमाम आरोप प्रस्तुत कर दिए गए थे.

प्रोसिक्यूटर द्वारा कहा गया कि धोखाधड़ी की आरोपी आशीष लता रामगोबिन ने अपनी पूर्व सांसद मां इला गांधी की इमेज और अपने परदादा महात्मा गांधी की वैश्विक कीर्ति का सहारा ले कर इस काम को अंजाम दिया था. इला गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती हैं. वह दक्षिण अफ्रीका में 9 साल तक सांसद रह चुकी हैं और भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी नवाजी जा चुकी हैं. वह राजनीतिक रसूख वाली जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के जवाब में आरोपी आशीष लता की तरफ से वैसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका, जिन से अगस्त 2015 में उद्योगपति एस.आर. महाराज के साथ धोखाधड़ी का लगा आरोप गलत साबित हो सकता था.

नतीजा कुछ समय में ही दक्षिण अफ्रीकी कानून के मुताबिक आशीष लता को अफ्रीकी मुद्रा में 62 लाख रैंड ( करीब 3 करोड़ 22 लाख रुपए) की धोखाधड़ी, जालसाजी का दोषी ठहराते हुए 7 साल जेल की सजा सुना दी गई. महाराज ने उन्हें कथित तौर पर भारत से ऐसी खेप के आयात और सीमा शुल्क कर के समाशोधन के लिए 62 लाख रैंड दिए थे, जिस का कोई अस्तित्व ही नहीं था. इस में आशीष लता की तरफ से लाभ का एक हिस्सा देने का वादा भी किया गया था. समाजसेविका के रूप में पहचान थी आशीष लता की वर्ष 2015 में जब इस संबंध में उन के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई थी, तब एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा था कि उन्होंने संभावित निवेशक को यकीन दिलाने के लिए कथित रूप से फरजी चालान और दस्तावेज दिए थे. उस में भारत से लिनेन के 3 कंटेनर आने की जानकारी दी गई थी.

आशीष लता इंटरनैशनल सेंटर फौर नौन वायलेंस नामक एक गैरसरकारी संगठन के एक प्रोग्राम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक रह चुकी थीं. हालांकि उन के खिलाफ लगे आरोपों में फरजीवाड़े की रकम भारतीय बैंकों को करीब 23 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी की तुलना में बहुत ही कम है. फिर भी हर भारतीय को आशीष लता का कारनामा क्षुब्ध कर गया है. कारण वह उस बापू की परपोती हैं, जिन्होंने जीवन भर सत्य को अपनाया, सत्य का प्रयोग किया, सत्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और सत्य के लिए जिया.

आज जब भी किसी को अपनी सत्यता का हवाला देना होता है तो वह बापू के अपनाए गए तरीके से प्रदर्शन करता है. लोग अंतर्द्वंद्व और आत्मग्लानि के मौकों पर बापू की प्रतिमा के आगे मौन धारण कर आत्मशुद्धि के लिए बैठ जाते हैं. इस अनुसार यह कहा जा सकता है कि आशीष लता ने न केवल इस सत्यनिष्ठा को आंच पहुंचाई, बल्कि बापू की वैश्विक कीर्ति पर ही कालिख पोतने का काम किया. यह बात हैरानी के साथसाथ अफसोस करने जैसी है. बात करीब 6 साल पहले उस समय की है, जब एक दिन उद्योगपति एस.आर. महाराज अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे औफिस जा रहे थे. उसी दौरान लैपटौप में अपने बैंक के बैलेंसशीट पर एक नजर डालने के बाद वह मेल चैक करने लगे थे.

पहले उन्होंने अपने एग्जीक्यूटिव्स के रोजमर्रा के मेल चैक किए. उन्हें जरूरी जवाब दिए, फिर वैसे मेल चैक करने लगे, जो पहली बार आए थे. एक मेल को देख कर चौंकते हुए उन की नजर ठहर गई. कारण वह सामान्य हो कर भी खास मेल था. उस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट थी, जिस से थोड़े समय में ही अच्छी आमदनी का वादा किया गया था. हालांकि उन के पास आए दिन इस तरह के मेल आते रहते थे, जिसे वे खुद विस्तार से पढ़ने के बजाय उस की डिटेल से जानकारी के लिए अपने सेक्रेटरी को फारवर्ड कर दिया करते थे. महाराज की बढ़ी रुचि लेकिन उस मेल में महाराज को जिज्ञासा भेजने वाले को ले कर भी हुई थी. उन्होंने तुरंत जवाब टाइप कर दिया, ‘‘आई नोटिस्ड योर रिक्वेस्ट, विल रिप्लाई सून!’’ यह बात साल 2015 के मई महीने की थी.

थोड़ी देर में महाराज दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अपनी कंपनी के औफिस ‘न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवेयर डिस्ट्रीब्यूटर्स’ के चैंबर में पहुंच गए. वह इस कंपनी के निदेशक हैं. कंपनी जूतेचप्पल, कपड़े और लिनेन के आयात, बिक्री एवं निर्माण का काम करती है. कंपनी का एक और काम प्रौफिट और मार्जिन के तहत दूसरी कंपनियों की आर्थिक मदद भी करना है. एस.आर. महाराज ने अपने सेक्रेटरी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर सुथार, आज ही मुझे उस मेल की तुरंत डिटेल्स दो, जिस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट की गई है.’’

‘‘कौन सा मेल… जिसे समाजसेवी महिला आशीष लता रामगोबिन ने भेजा है?’’

‘‘हांहां वही. वह कोई आम महिला नहीं हैं. उन्होंने अपने परिचय में जो लिखा है, शायद तुम ने उस पर गौर नहीं किया.’’ उन्होंने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ ज्यादा नहीं समझ पाया.’’ सेक्रेटरी बोला.

‘‘उस ने जिस के लिए काम की बात कही है वह एक विश्वसनीय परिवार से ताल्लुक रखता है. वह भरोसे के लायक है. उस परिवार ने भारत में सामाजिक उत्थान के लिए कई बेमिसाल काम किए हैं. उन के साथ भारत के राष्ट्रपिता का दरजा हासिल कर चुके महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है. उन के साथ जल्द ही मीटिंग की डेट फिक्स कर दो.’’

ऐसे हुआ आशीष लता पर विश्वास उद्योगपति महाराज का यह मजबूत आत्मविश्वास बनने की वजहें भी कम नहीं थीं. उस बारे में वे कई बातें पहले से जानते थे और कुछ जानकारी बाद में मालूम कर ली थीं. फाइनैंस की रिक्वेस्ट महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने भेजी थी. उन्होंने अपने परिचय में दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में सक्रिय महिला इला गांधी की बेटी लिखा था, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ काम किया था. तत्कालीन सरकार से सीधी टक्कर ली थी. उन्होंने निर्वासन की यातना झेली थी. उस के खात्मे के बाद सन 1994 से 2003 तक अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस की सदस्य के रूप में सांसद रह कर लोकहित में कई कार्य किए थे. उन के पति का नाम स्व.

मेवा रामगोबिन है. वह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के 4 बेटों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास में दूसरे बेटे मणिलाल मोहनदास गांधी की बेटी हैं. मणिलाल पहली बार 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे. महात्मा गांधी ने 1904 में डरबन के पास ‘द फीनिक्स सेटलमेंट’ नामक एक जगह की स्थापना की थी. वहीं उन्होंने एक ग्रामसंस्था भी स्थापित की थी और सत्याग्रह के साथ अपने अनूठे क्रांतिकारी प्रयोग किए थे. इस दौरान मणिलाल 1906 से 1914 के बीच क्वाजुलु नटाल और ग्वाटेंग में रहे. फिर वापस भारत आ गए. जबकि महात्मा गांधी ने डरबन से अपना साप्ताहिक अखबार अंगरेजी और गुजराती में ‘इंडियन ओपिनियन’ भी छापना शुरू कर दिया था. इस की शुरुआत 1903 में ही हुई थी.

बाद में महात्मा गांधी ने उस अखबार के विशेष रूप से गुजराती खंड प्रकाशन में सहायता के लिए मणिलाल को दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था. वहां मणिलाल सन 1920 में उस के संपादक बन गए और लंबे समय तक इस की जिम्मेदारी संभाली. उन्होंने सन 1927 में सुशीला मशरूवाला से शादी की थी, जो बाद में उन की प्रिंटिंग प्रैस की पार्टनर बन गईं. उन से 3 संतानें सीता, अरुण और इला हुए. ये सभी दक्षिण अफ्रीका के ही नागरिक बन गए. आशीष लता की मां इला का नाम दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में बड़ा नाम है. उन का जन्म वहां के क्वाजुलु नटाल में सन 1940 में हुआ था. उन्होंने हर तरह की हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया. इस के लिए उन्होंने गांधी डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाया, जो अहिंसा के लिए काम करता है. साथ ही महात्मा गांधी के नाम एक मार्च कमेटी भी बनाई गई है.

विभिन्न सामाजिक कार्यों को देखते हुए सन 2002 में वह ‘कम्युनिटी आफ क्राइस्ट इंटरनैशनल पीस अवार्ड’ से सम्मानित की जा चुकी हैं. भारत सरकार ने भी वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे महात्मा गांधी परिवार के कई सदस्यों में कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया, उमा धुपेलिया मेस्त्री, इला गांधी और आशीष लता रामगोबिन शामिल हैं. 3 दिसंबर, 1965 को जन्म लेने वाली आशीष लता रामगोबिन का रहनसहन हिंदू रीतिरिवाज पर आधारित है एवं प्रोफेशनल पहचान सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमिता के रूप में है. वैसे उन की नागरिकता दक्षिण अफ्रीका की है.

उन के 4 छोटे भाईबहनों में आशा और आरती बहनें हैं, जबकि किदार और खुश भाई हैं. उन की फेसबुक अकाउंट के अनुसार उन्होंने सन 1988 में उरबन के ग्लेनहैवेन सकेंडरी स्कूल से सेकेंडरी तक पढ़ाई पूरी कर क्वाजुलु नटाल यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया है. फिर दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रैशन से पोस्ट ग्रैजुएट तक की पढ़ाई की. बाद में प्रोफ्रेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग इंडस्ट्री के गुर सीखे. स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सरकारी प्रोजेक्ट, गवर्नेंस की बारीक जानकारियां, पं्रोजेक्ट एवं प्रोग्राम का मूल्यांकन, प्रोजेक्ट ड्राफ्ंिटग और एंटरप्रेन्योरशिप में महारत हासिल कर ली.

आशीष लता की शादी एक कारोबारी मार्क चूनू से हुई थी. उन से तलाक हो चुका है, लेकिन अपनी 2 संतानों बेटा और बेटी के साथ रहती हैं. वे अभी किशोर उम्र के हैं. उन का करियर स्वयंसेवी संस्था इंटरनैशनल सेंटर नान वायलेंस से जुड़ा है, जिस की वह संस्थापक और ओनर हैं. वह उस की कार्यकारी निदेशक भी हैं. उन की पहचान राजनीतिज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता की भी है. न्यूजएंडजिप वेब पोर्टल के अनुसार, उन्होंने 29 जनवरी, 2000 को महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए एक नान वायलेंस संस्था स्थापित की थी. साथ ही उन्होंने 2016 से 5 साल तक यूनाइटेड ट्रेड सोल्यूशन के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाई.

इस तरह उन्होंने स्वयंसेवी संस्था के लिए डोनेशन जुटाने का काम करने के साथसाथ बिजनैस करते हुए अच्छी पूंजी अर्जित कर ली है. लग गई धोखाधड़ी की कालिख आशीष लता के बारे में कई वैसी बातें भी हैं, जो उन्हें खास बनाने के लिए काफी हैं. जैसे उन्होंने अपने परदादा महात्मा गांधी और मां इला गांधी के कदमों पर चलने की निर्णय लिया है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार औरतों और बच्चों की मदद की है. वह दक्षिण अफ्रीका के समारोहों में अपने परिवार के साथ शामिल होती रही हैं. आशीष लता रामगोबिन की उद्योगपति एस.आर. महाराज से मुलाकात सन 2015 में ही हो गई थी. दोनों की पहली मीटिंग के दौरान महाराज ने फाइनैंस की जरूरत के बारे में पूछा, ‘‘आप को पैसा क्यों चाहिए?’’

‘‘दरसअल, हम ने भारत से लिनेन के 3 कंटेनर मंगवाए हैं, जो बंदरगाह पर पड़े हैं. आयात लागत और सीमा शुल्क पेमेंट करने में दिक्कत आ गई है. माल को साउथ अफ्रीकन हौस्पिटल ग्रुप नेट केयर को डिलीवर करना है.’’ लता ने सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया.

‘‘पैसे की वापसी का भरोसा क्या है?’’ महाराज के फाइनैंस एडवाइजर ने पूछा.

‘‘ये रहे नेट केयर कंपनी और हमारे साथ एग्रीमेंट बनाने के डाक्युमेंट्स. इस में सारी बातें लिखी हैं.’’ आशीष लता ने कहा.

‘‘कितना फाइनैंस करना होगा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘6.2 मिलियन रैंड की जरूरत है. उस की डिटेल्स की मूल कौपी दे रही हूं. आयात किए गए माल के खरीद की रसीद यह रही.’’ लता ने आश्वासन दिया.

‘‘इस में मेरा प्रौफिट क्या होगा?’’ महाराज ने पूछा.

‘‘उस बारे में भी फाइनैंस की रिक्वेस्ट डिटेल्स के साथ दी गई है.’’ लता ने साथ लाए डाक्युमेंट्स के पन्ने पलट कर दिखाए. उन के द्वारा सौंपे गए डाक्युमेंट्स पर महाराज ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई और अपने फाइनैंस एडवाइजर को सौंपते हुए उस का बारीकी से अध्ययन करने का निर्देश दिया.

‘‘थोड़ा वक्त दीजिए. वैसे मुझे आप पर और आप की पहचान के साथसाथ पारिवारिक इमेज पर पूरा भरोसा है. डाक्युमेंट्स की जांचपरख तो महज औपचारिकता भर है. जल्द ही फाइनैंस संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करवा दूंगा.’’ एस.आर. महाराज बोले.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद, जितना जल्द हो सके फाइनैंस करवा दें तो अच्छा रहेगा.’’ लता ने आभार जताते हुए आग्रह किया.

‘‘…लेकिन हां, मेरे प्रौफिट की हिस्सेदारी में देरी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में हमारी कंपनी काफी सख्त है.’’ महाराज ने साफसाफ कहा.

इसी बीच कंपनी के फाइनैंस एडवाइजर ने आशंका जताई, ‘‘सर, इस में कुछ डाक्युमेंट्स कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बता दो. जितनी जल्द हो सके, लताजी उसे जमा करवा देंगी. बैंक अकाउंट स्टेटमेंट और रिटर्न की डिटेल्स भी मंगवा लेना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, बाकी के सारे डाक्युमेंट्स एक हफ्ते में आप को मिल जाएंगे.’’ लता ने कहते हुए एक बार फिर महाराज को धन्यवाद दिया. इस तरह दोनों की पहली मीटिंग संभावनाओं से भरी रही. बहुत जल्द ही एक महीने के भीतर ही 3 मीटिंग्स और हुईं और आशीष लता को जरूरत के मुताबिक फाइनैंस मिल गया. उस के बाद मुनाफे के साथ रकम वापसी की एक महीने बाद की एक डेडलाइन तय हो गई. कहते हैं कि बिजनैसमैन एस.आर. महाराज की कंपनी ने जिस तरह से फाइनैंस करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतनी ही सुस्ती आशीष लता की तरफ से बरती गई.

समय पर नहीं लौटाई रकम  महाराज की कंपनी को समय पर भुगतान नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी के नियम और शर्तों के मुताबिक आशीष लता को नोटिस भेज दिया. नोटिस का सही जवाब नहीं मिलने पर कंपनी ने लता द्वारा जमा करवाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करवाई. जांच में लता द्वारा किए गए कई दावे गलत साबित हुए. जिस में माल की खरीद के हस्ताक्षरित खरीद का आदेश और नेटकेयर बैंक खाते में भुगतान से संबंधित था. कंपनी ने पाया कि उन के द्वारा जमा किए गए डाक्युमेंट्स जाली थे और उन के साथ नेटकेयर ने कभी कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. यहां तक कि लिनेन के कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचे ही नहीं थे.

इस फरजीवाड़े का पता चलते ही कंपनी के डायरेक्टर एस.आर. महाराज ने आशीष लता के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. 2015 में लता के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा कि लता ने इनवैस्टर को यकीन दिलाने के लिए फरजी दस्तावेज और चालान दिखाए थे. भारत से लिनेन का कोई कंटेनर दक्षिण अफ्रीका आया ही नहीं था. हालांकि सुनवाई के दौरान लता ने सबूत पेश करने के लिए समय मांगा और जमानत की अरजी दाखिल की. लता की पारिवारिक इमेज को ध्यान में रखते हुए अक्तूबर 2015 में 50 हजार रैंड (करीब 2.68 लाख रुपए) की जमानत राशि पर पर उन्हें छोड़ दिया गया.

जमानत पर रिहा हुई आशीष लता ने कुल 6 साल तक राहत की सांस ली, किंतु उन के कारनामे दिनप्रतिदिन और मजबूत होते चले गए और 7 जून, 2021 को डरबन की अदालत ने आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी और

का दोष सिद्ध करते हुए 7 साल की सजा सुनाई. कथा लिखे जाने तक वह दक्षिण अफ्रीका की जेल में थीं.

 

Crime News : अपहर्त्ताओं ने व्यापारी के बेटे को अगवा कर मांगी 2 करोड़ की फिरौती

Crime News : अपहर्त्ताओं ने व्यापारी मुकेश लांबा के एकलौते बेटे आदित्य उर्फ आदि का अपहरण कर 2 करोड़ की मांग की. ताज्जुब की बात यह रही कि पुलिस के मुस्तैद रहते हुए भी अपहर्त्ता फिरौती की रकम ले गए. इसी तरह के और भी अनेक ऐसे सवाल रहे जो पुलिस काररवाई पर अंगुली उठा रहे हैं.

शाम को करीब 6 बजे का समय रहा होगा. सुमन रसोई में शाम का खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. सब्जी बनाने के लिए उसे जीरा चाहिए था. जीरा खत्म हो गया था. सुमन ने रसोई से ही बेटे आदित्य को आवाज दी, ‘‘आदि बेटे, किराने वाले की दुकान से जीरा ला दो.’’

13 साल का आदि उस समय मोबाइल पर गेम खेल रहा था. मां की आवाज सुन कर उसे झुंझलाहट हुई. उस ने ड्राइंगरूम से ही मां को आवाज दे कर कहा, ‘‘मम्मी, दीदी को भेज दो. मैं खेल रहा हूं.’’

अपने कमरे में पढ़ रही रितु ने छोटे भाई आदि की आवाज सुन ली. उस ने कहा, ‘‘मम्मी, मैं पढ़ रही हूं. यह मोबाइल में गेम खेल रहा है. इसे ही भेज दो.’’

‘‘बेटे आदि, तुम ही दुकान पर जा कर मुझे जीरा ला दो.‘‘ सुमन ने रसोई से बाहर निकल कर उसे 50 रुपए का नोट देते हुए कहा. आदि मना नहीं कर सका. उस ने मां से पैसे लिए और घर से निकल गया. किराने वाले की दुकान उन के घर के पास ही थी. वे घर के राशन की चीजें उसी से लाते थे. आदि उस किराना की दुकान पर पहुंचा ही था कि उधर से गुजरती एक स्विफ्ट कार वहां रुकी. कार में सवार लोगों ने आदि को इशारे से अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटे, यहां आसपास ही मुकेश लांबा रहते हैं, क्या आप को पता है, उन का घर कहां है?’’

मुकेश लांबा का नाम सुन कर आदि बोला, ‘‘वे तो मेरे पापा हैं.’’

‘‘अरे तुम मुकेश के बेटे हो.’’ कार में सवार एक आदमी ने आदि की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘बेटे हम आप के पापा के दोस्त हैं. हमें अपने घर ले चलो.’’

पापा के दोस्त होने की बात सुन कर आदि ने कहा, ‘‘चलो, मैं आप को घर ले चलता हूं.’’ यह कह कर आदि पैदल ही कार के आगे चलने लगा. आदि को पैदल चलते देख कार में सवार एक आदमी ने खिड़की से बाहर सिर निकाल कर उसे आवाज दे कर कहा, ‘‘बेटे, तुम हमारे साथ कार में ही बैठ जाओ.’’

वैसे तो आदि का मकान वहां से 2-3 सौ मीटर दूर ही था. फिर भी आदि उन के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गया. कार में कुल 3 लोग थे. इन में एक कार चला रहा था. एक आगे की सीट पर और एक आदमी पीछे की सीट पर बैठा हुआ था. वे तीनों मास्क लगाए हुए थे. इसलिए उन के चेहरे साफ नजर नहीं आ रहे थे. आदि भी पीछे की सीट पर बैठ गया. आदि के बैठते ही आगे बैठे आदमी ने कार चला रहे अपने साथी से कहा, ‘‘यार, मुकेश के घर चल रहे हैं, तो कुछ मिठाई ले चलते हैं.’’ इस बात पर पीछे बैठे उन के साथी ने भी सहमति जताई.

आदि क्या कहता, वह चुप रहा. वे लोग कार में आदि को साथ ले कर काफी देर इधरउधर घूमते रहे. उधर आदी जीरा ले कर घर नहीं पहुंचा तो सुमन बुदबुदाने लगी, ‘‘पता नहीं ये लड़का कहां किस से बातें करने में लग गया. मैं सब्जी बनाने को बैठी हूं और यह नजाने कहां रुक गया. कम से कम जीरा तो मुझे दे कर चला जाता.’’

उधर वह लोग मिठाई की दुकान ढूंढने के बहाने कार को घुमाते रहे. बीच में मिठाइयों की कई दुकानें आईं, लेकिन उन्होंने मिठाई नहीं खरीदी. आखिर आदि ने उन से पूछ ही लिया कि अंकल आप को मिठाई खरीदनी है, तो कहीं से भी खरीद लो. मुझे घर जाना है. मम्मी ने मुझ से घर का कुछ सामान मंगाया है. मम्मी इंतजार कर रही होंगी.

‘‘लड़के, तू ज्यादा चपरचपर मत कर. चुपचाप बैठा रह.’’ कार में आगे की सीट पर बैठे आदमी ने उस से कहा, तो आदि सहम गया. उसे कुछ अनहोनी की आशंका हुई, लेकिन 13 साल का वह बालक क्या कर सकता था. पीछे बैठे आदमी ने उसे आंखें दिखाईं, तो वह सहम गया. कार के शीशे भी बंद थे. रात का अंधेरा भी घिर आया था. कुछ देर बाद कार सुनसान रास्ते पर एक मकान के आगे जा कर रुकी. कार से उतर कर वे तीनों आदमी आदि को भी उस मकान में ले गए. एक आदमी ने आदि से उस की मां और पापा के मोबाइल नंबर पूछे. आदि ने दोनों के नंबर उन्हें बता दिए.

शाम को करीब 7 बजे एक आदमी ने आदि की मां सुमन को मोबाइल पर काल कर कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. उसे जीवित देखना चाहती हो, तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो.’’

फोन सुन कर सुमन सन्न रह गई. वह काल करने वाले से बोली, ‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है?’’

‘‘तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है. तुम पैसों का इंतजाम कर लो.’’ यह कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया. दूसरी तरफ से सुमन हैलो.. हैलो.. ही करती रह गई. बेटे आदि के अपहरण और 2 करोड़ रुपए मांगने की बात सुन कर सुमन रोने लगी. घर पर आदि के पापा मुकेश लांबा भी नहीं थे. सुमन ने रोतेरोते फोन कर उन्हें बेटे का अपहरण होने की बात बताई. मुकेश तुरंत घर पहुंचे. उन्होंने पत्नी सुमन से सारी बातें पूछीं कि कैसे क्याक्या हुआ? आदि कहां गया था? अपहर्त्ताओं ने क्या कहा है? सुमन ने पति को सारी बातें बता दीं. यह बात 15 अक्तूबर, 2020 की है.

घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर की है. शहर के धनवंतरी नगर में दुर्गा मंदिर के पास रहने वाले मुकेश लांबा माइनिंग विस्फोटक का काम करते थे. पहले वह ट्रांसपोर्ट का काम करते थे. मुकेश का कारोबार अब ठीकठाक चल रहा था. जिंदगी मजे से गुजर रही थी. घर में किसी बात की कमी नहीं थी. परिवार में कुल 4 लोग थे. मुकेश, उन की पत्नी सुमन, बड़ी बेटी रितु और छोटा बेटा आदित्य. आदित्य को प्यार से घर के लोग आदी कहते थे. बेटा और बेटी दोनों पढ़ते थे. बेटे आदि के अपहरण की बात जान कर मुकेश परेशान हो गए. अपहर्त्ता कौन थे, यह भी पता नहीं था. वे 2 करोड़ रुपए मांग रहे थे. भले ही मुकेश का कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन 2 करोड़ की रकम कोई मामूली थोड़े ही थी.

वे सोचने लगे कि क्या करें और क्या नहीं करें. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. आदि के अपहरण का पता चलने के बाद से पत्नी और बेटी के आंसू नहीं रुक पा रहे थे. मुकेश इसी बात पर सोचविचार कर रहे थे कि रात करीब 8 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से धमकी भरी आवाज आई, ‘‘मुकेश, हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. बेटे को जिंदा देखना चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. ध्यान रखना पुलिस को सूचना दी, तो तुम्हारा बेटा जिंदा नहीं बचेगा.’’

‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है और उस से मेरी बात कराओ?’’ मुकेश ने घबराई हुई आवाज में काल करने वाले से एक साथ कई सारे सवाल पूछे.

‘‘हम बहुत खतरनाक लोग हैं. तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है, उस से बात भी करा देंगे. लेकिन तुम कल तक पैसों का इंतजाम कर लो.’’ काल करने वाले ने यह कह कर फोन काट दिया. पहले सुमन और इस के बाद मुकेश के पास आए फोन से यह साफ हो गया था कि आदि का अपहरण हो गया है. लेकिन यह पता नहीं चला था अपहर्त्ता कौन हैं? वे 2 करोड़ रुपए की रकम मांग रहे थे, जो मुकेश की हैसियत से बहुत ज्यादा थी. काफी सोचविचार के बाद मुकेश ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया और जबलपुर के संजीवनी नगर पुलिस थाने पहुंच कर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

बच्चे के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने का पता चलने पर पुलिस अधिकारी धनवंतरी नगर में मुकेश लांबा के घर पहुंचे और घर वालों से पूछताछ कर बालक आदि की तलाश में जुट गए. दूसरे दिन 16 अक्तूबर को मुकेश के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने उस से रकम के बारे में पूछा. मुकेश ने उन से कहा कि उस के पास 2 करोड़ रुपए नहीं हैं. वह मुश्किल से 8-10 लाख रुपए का इंतजाम कर सकता है. अपहर्त्ताओं ने कहा कि 2 करोड़ नहीं दे सकते, तो कुछ कम दे देना लेकिन 8-10 लाख से कुछ नहीं होगा. हम तुम्हें शाम को दोबारा फोन करेंगे, तब तक पैसों का इंतजाम कर लेना.

मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बातें पुलिस को बता दीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस नंबर से मुकेश के पास अपहर्त्ताओं का फोन आया था. अपहर्त्ताओं ने तब तक 3 बार फोन किए थे. ये फोन एक ही नंबर से किए गए थे. उसी दिन शाम को चौथी बार अपहर्त्ताओं का मुकेश के मोबाइल पर फिर फोन आया. मुकेश ने मिन्नतें करते हुए कहा कि मुश्किल से 8 लाख रुपए का इंतजाम हुआ है. ये पैसे तुम ले लो और मेरे बेटे को लौटा दो. मुकेश ने कहा कि बेटे से मेरी एक बार बात तो करा दो. मुकेश के अनुरोध पर अपहर्त्ताओं ने आदि से उस की बात कराई. मोबाइल पर आदि रोतीबिलखती आवाज में कह रहा था, ‘‘पापा, इन की बात मान लो. ये लोग बहुत खतरनाक हैं, मुझे मार डालेंगे.’’

बेटे की आवाज सुन कर मुकेश को कुछ संतोष हुआ. मुकेश के काफी गिड़गिड़ाने पर अपहर्त्ता 8 लाख रुपए ले कर आदि को छोड़ने पर राजी हो गए. अपहर्त्ताओं ने मुकेश को उसी रात जबलपुर में पनागर से सिरोहा मार्ग पर एक जगह नाले के पास पैसों का बैग रख आने को कहा और यह भरोसा दिया कि पैसे मिलने के आधे घंटे बाद बच्चे को तुम्हारे घर के पास छोड़ देंगे. अपहर्त्ताओं के 8 लाख रुपए लेने पर राजी हो जाने पर मुकेश को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. वह सोचने लगे कि यह बात पुलिस को बताए या नहीं. सोचविचार के बाद उन्होंने तय किया कि पुलिस को बताने में ही भलाई है, क्योंकि बेटे की वापसी का पुलिस को बाद में पता चलेगा, तो वे कई तरह के सवाल पूछेंगे. इसलिए मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बात पुलिस को बता दी.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में बातचीत कर फैसला किया कि मुकेश को 8 लाख रुपए एक बैग में ले कर तय जगह पर भेजा जाए. इस दौरान पुलिस दूर से निगरानी करती रहेगी. अपहर्त्ता जब पैसों का बैग लेने आएंगे, तो उन्हें वहीं से पकड़ लिया जाएगा. उस रात तय समय और तय जगह पर मुकेश ने 8 लाख रुपयों से भरा बैग रख दिया. कहा जाता है कि इस दौरान आसपास पुलिस निगरानी कर रही थी. इस के बावजूद अपहर्त्ता पैसों का वह बैग ले गए और पुलिस को कुछ पता नहीं चल सका. इधर, पैसों का बैग तय जगह पर छोड़ आने के बाद मुकेश और उस के घरवाले आदित्य के घर लौटने का इंतजार करते रहे. हरेक आहट पर उन की नजरें घर के गेट पर टिक जातीं.

घर में मौजूद एक भी आदमी सो नहीं सका. पूरी रात बेचैनी से गुजर गई, लेकिन आदि नहीं आया. मुकेश समझ नहीं पा रहे थे कि बेटा आदि वापस क्यों नहीं आया? अपहर्त्ताओं ने अपना वादा क्यों नहीं निभाया? क्या अपहर्त्ताओं को 8 लाख रुपए कम लगे या उन्होंने आदि को मार डाला? 17 अक्तूबर को आदित्य का अपहरण हुए तीसरा दिन हो गया था. पैसे भी चले गए थे और बेटा भी वापस नहीं आया तो मुकेश अपहर्त्ताओं के मोबाइल नंबर पर काल करने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नंबर नहीं मिल रहा था. मुकेश के साथ उन की पत्नी और बेटी मायूस हो गए. उन की आंखों से आंसू सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे. अब तो केवल अपहर्त्ताओं के फोन पर ही उम्मीद टिकी हुई थी.

पुलिस को भी मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लेने के बावजूद अपहर्त्ताओं का पताठिकाना नहीं मिल पाया था. अधिकारियों को इस बात पर भी ताज्जुब हो रहा था कि अपहर्त्ता मौके पर मौजूद पुलिस वालों को चकमा दे कर रकम से भरा बैग ले कर कैसे और कब निकल गए? जांचपड़ताल में मिले कुछ सुराग के आधार पर पुलिस ने 17 अक्तूबर की रात एक शराब की दुकान के पास 3 लोगों को नशे की हालत में पकड़ा. इन में राहुल उर्फ मोनू विश्वकर्मा, मलय राय और करण जग्गी शामिल थे. ये तीनों जबलपुर के अधारताल थाना इलाके के महाराजपुर के रहने वाले थे. पुलिस ने इन से सख्ती से पूछताछ की, तो आदित्य के अपहरण का मामला खुल गया. पूछताछ के दौरान पुलिस अधिकारियों को उस समय गहरा झटका लगा, जब राहुल और मलय ने बताया कि आदि को अपहरण के दूसरे ही दिन यानी 16 अक्तूबर को ही मार दिया था.

आदि को मारने का कारण रहा कि उस ने एक अपहर्त्ता राहुल को मास्क हटने पर पहचान लिया था. राहुल मुकेश लांबा को अच्छी तरह जानता था और उन के घर कई बार आजा चुका था. अपहर्त्ताओं ने 16 अक्तूबर को मुकेश से आदि की जो बात कराई थी, वह मोबाइल में रिकौर्ड की हुई थी. आदि को वे उस से पहले ही मार चुक थे. अपहर्त्ताओं की निशानदेही पर पुलिस ने 18 अक्तूबर, 2020 को पनागर के पास जलगांव नहर से आदि का शव बरामद कर लिया. उस के मुंह पर गमछा बंधा हुआ था. शव बरामद होने के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों का अधारताल इलाके में जुलूस निकाला.

उसी दिन पुलिस हिरासत में मुख्य आरोपी राहुल विश्वकर्मा की तबियत बिगड़ गई. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कराया, लेकिन कुछ समय बाद ही उस की मौत हो गई. आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

राहुल और मलय दोस्त थे. राहुल मोबाइल इंजीनियर था. वह एक मोबाइल की दुकान पर काम करता था. वह मौका मिलने पर लूट, चोरी आदि भी करता था. मलय भी अपराधी किस्म का युवक था. वह भी चोरीलूट जैसे अपराध करता था. लौकडाउन में कामधंधे बंद होने से इन दोनों के सामने भी पैसों का संकट आ गया. राहुल पर पहले से ही लोगों की उधारी चढ़ी हुई थी. लौकडाउन में कर्ज और बढ़ गया. परेशान राहुल ने मलय के साथ मिल कर कोई बड़ा हाथ मारने की योजना बनाई. राहुल ने उसे बताया कि वह धनवंतरी नगर के रहने वाले माइनिंग कारोबारी मुकेश लांबा को जानता है. उन के पास मोटी दौलत है. वह कई बार उन के घर भी आजा चुका है. उन के बेटे का अपहरण कर मोटी रकम वसूली जा सकती है.

मलय को यह बात जंच गई. दोनों ने सोचविचार के बाद इस योजना में अपने एक अपराधी दोस्त करण जग्गी को भी शामिल कर लिया. तीनों ने योजना बना कर मुकेश लांबा के घर की रैकी करनी शुरू की. इस के लिए राहुल ने अपने दोस्त से जरूरी काम के लिए कार मांग ली थी. 15 अक्तूबर, 2020 की शाम जब वे तीनों स्विफ्ट कार से मुकेश के घर की रैकी करने आए तो राहुल को आदित्य नजर आ गया. उन्होंने उसी समय उन्होंने आदी का अपहरण कर लिया. योजना के तहत ही राहुल व मलय ने आदि के अपहरण से 3 दिन पहले 12 अक्तूबर को बेलखाडू में एक आदमी से मोबाइल लूटा था.

इसी मोबाइल नंबर से वे मुकेश लांबा और उस की पत्नी को फोन कर फिरौती मांगते रहे. चूंकि राहुल मोबाइल इंजीनियर था, इसलिए उस ने उस मोबाइल में ऐसी कारस्तानी कर दी कि पुलिस उस की लोकेशन ट्रेस नहीं कर पा रही थी. 16 अक्तूबर को राहुल के चेहरे से मास्क हट गया तो आदि ने उसे पहचान लिया और कहा कि अंकल आप तो हमारे घर आतेजाते हो. आदि की ये बातें सुन कर राहुल और उस के साथियों ने सोचा कि पैसा ले कर इसे छोड़ दिया तो यह हमें पकड़वा देगा. इसलिए उन्होंने उसी दिन गमछे से गला घोंट कर आदि की हत्या कर दी. इस के बाद जलगांव नहर में उस का शव फेंक आए.

अपराधी इतने शातिर रहे कि आदि की हत्या के बाद भी उस के पिता से फिरौती मांगते रहे. हत्या से पहले उन्होंने आदि की आवाज मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. यही रिकौर्डिंग अपहर्त्ताओं ने 16 अक्तूबर को मुकेश को सुनवाई थी. राहुल और मलय 16 अक्तूबर की रात पुलिस को चकमा दे कर पनागर मार्ग पर नाले के पास मुकेश की ओर से रखे गए 8 लाख रुपए का बैग भी ले गए. अगले दिन उन्होंने अपने तीसरे साथी करण से कहा कि बच्चा भाग गया. इस कारण पैसा नहीं मिल सका. यह झूठ बोल कर राहुल और मलय ने 8 लाख रुपए का आपस में बंटवारा कर लिया.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 7 लाख 66 हजार रुपए और अपहरण व शव फेंकने के काम ली गई 2 कार, एक बाइक और एक स्कूटी जब्त कर ली. इस के अलावा 12 अक्तूबर को लूटे गए मोबाइल सहित 2 अन्य मोबाइल भी बरामद कर लिए. मुख्य आरोपी 30 वर्षीय राहुल की पुलिस हिरासत में तबीयत बिगड़ने और बाद में अस्पताल में मौत हो जाने के मामले में सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए. 3 डाक्टरों के पैनल ने प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट उमेश सोनी की मौजूदगी में राहुल के शव का पोस्टमार्टम किया. इस दौरान वीडियोग्राफी भी कराई गई.

पोस्टमार्टम के बाद मजिस्ट्रैट ने राहुल के बड़े भाई सोनू विश्वकर्मा और दूसरे घर वालों के बयान दर्ज किए. राहुल का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. राहुल के भाई का कहना था कि पुलिस ने कानून अपने हाथ में लिया और पिटाई से उस की मौत हुई. आदि के अपहरण-मौत के मामले में पुलिस पर लापरवाही के आरोप लगे हैं. तमाम सूचनाएं दिए जाने के बावजूद पुलिस अपहर्त्ताओं की लोकेशन ट्रेस नहीं कर सकी. अपराधी पुलिस की मौजूदगी में ही फिरौती के 8 लाख रुपए ले गए. आदि को तलाश करने के बजाय पुलिस उस के अपहरण के दूसरे दिन जबलपुर आए डीजीपी की अगवानी में जुटी रही.

इस वारदात के विरोध में 18 अक्तूबर को धनवंतरी नगर व्यापारी संघ और महाराणा प्रताप मंडल के नेताओं ने मार्केट बंद कर सांकेतिक धरना प्रदर्शन भी किए. मासूम आदि की मौत से उस के घर की सारी खुशियां छिन गई हैं. पिता की भविष्य की उम्मीदें चकनाचूर हो गईं. मां सुमन रात को सोते हुए बैठ जाती है और उसी समय बेटे के लिए दहाड़ें मार कर रोती है. बहन रितु अब किसे राखी बांधेगी? एक अपराधी तो चला गया. हालांकि उस की मौत के कारणों की जांच हो रही है. लेकिन दूसरे अपराधियों को कानून क्या सजा देगा. Crime News

Social Stories in Hindi : फरजी हार्ट स्पैशलिस्ट औपरेशन दनादन 7 मौतें

Social Stories in Hindi : गांवदेहात की गलीमोहल्ले में दुकान खोल कर बैठे झोलाछाप डाक्टरों के बारे में आप ने सुना होगा, लेकिन मध्य प्रदेश के जानेमाने मिशन अस्पताल में एक ऐसा फरजी कार्डियोलौजिस्ट पकड़ में आया है, जो न केवल हार्ट के मरीजों का इलाज कर रहा था, बल्कि दनादन सर्जरी भी करता था. जिला प्रशासन की नींद तब टूटी, जब इस की वजह से 7 मरीजों की मौत हो गई. आखिर कैसे चल रहा था इस का गोरखधंधा? 

13 जनवरी, 2025 की शाम को नवी कुरैशी की अम्मी रहीसा बेगम के सीने में दर्द उठा तो आननफानन में उन्हें मध्य प्रदेश के दमोह में स्थित सरकारी अस्पताल ले जाया गया. हालत सीरियस होने पर वहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार कर उन्हें किसी प्राइवेट अस्पताल में हार्ट स्पैशलिस्ट को दिखाने की सलाह दे कर रेफर कर दिया. हार्ट का मामला था, लिहाजा नवी अपनी अम्मी को ले कर शहर के मिशन अस्पताल पहुंच गए. वहां ड्यूटी पर तैनात जो डाक्टर थे, उन्होंने शुरुआती जांच कर नवी से कहा, ”देखिए, पेशेंट को हार्ट अटैक आया है, इन्हें 72 घंटे इनवैस्टीगेशन में रखना होगा.’’

डाक्टर की बात सुन कर नवी घबरा गए. नवी कुरैशी को पता था कि एक साल पहले भी अम्मी को अटैक आया था, पर वह इलाज से ठीक हो गई थीं. ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने एक परची पर जांच लिखते हुए 50 हजार रुपए काउंटर पर जमा करवाने के निर्देश दिए. दूसरे दिन 14 जनवरी को उन की एंजियोग्राफी की गई तथा ईको की जांच के बाद डाक्टर ने नवी से कहा, ”मामला सीरियस है, पेशेंट की 2 नसें ब्लौक हो गई हैं, एक 92 परसेंट तो दूसरी 80 परसेंट तक. इन की सर्जरी करनी पड़ेगी, पैसों का इंतजाम कर लीजिए.’’

नवी ने जब डाक्टर से ईको की जांच रिपोर्ट मांगी तो उन्होंने नहीं दी. 2 दिन पैसों के इंतजाम में चक्कर काटने के बाद हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर से मिले तो उन्होंने कहा कि ब्लौकेज है और इस का हल केवल औपरेशन है. 2 दिन बाद यानी 16 जनवरी को रहीसा  की एंजियोप्लास्टी हुई, जिस के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. मिशन अस्पताल में डा. एन. जौन कैम के द्वारा किए गए औपरेशन के दौरान नवी की अम्मी रहीसा की मौत हो गई. मिशन अस्पताल द्वारा दी गई डिस्चार्ज स्लिप पर 63 साल की रहीसा बेगम की मौत हार्टअटैक से होनी बताई गई थी.

यही वजह थी कि नवी के फेमिली वालों ने डैडबौडी का पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया और डैडबौडी ले कर घर आ गए. इसी तरह दमोह के पटेरा में रहने वाले 68 साल के मंगल सिंह राजपूत को 3 फरवरी, 2025 की सुबह 6 बजे सीने में दर्द हुआ था. उन का छोटा बेटा जितेंद्र तुरंत उन्हें मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा तो डाक्टर ने सामान्य चैकअप के बाद जितेंद्र से कहा, ”इन्हें मेजर अटैक आया है, तुरंत हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी. पैसों का बंदोबस्त कर लीजिए.’’

”लेकिन डाक्टर साहब, अभी तो हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है.’’ घबराते हुए जितेंद्र बोला.

”इन का आयुष्मान कार्ड है क्या? यदि हो तो केवल जांच का पैसा लगेगा और  औपरेशन हो जाएगा.’’ डाक्टर ने कहा.

”हां साहब, आयुष्मान कार्ड तो है, मंगा लेते हैं घर से. आप औपरेशन की तैयारी कर लीजिए.’’ जितेंद्र ने इतना कह कर अपने बड़े भाई धर्मेंद्र को फोन कर के बता दिया कि पापा की हार्ट सर्जरी होनी है, आप तुरंत आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल आ जाओ. इस के बाद सुबह करीब 11 बजे धर्मेंद्र आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल पहुंचे, तब तक मंगल सिंह की सर्जरी हो चुकी थी. उस समय वह होश में थे, उन्होंने आंखें खोल कर हम से इशारे से बातचीत की, इसी दौरान अचानक वे तड़पने लगे तो डाक्टर और मौजूद स्टाफ ने घर वालों को वार्ड से बाहर कर दिया.

मंगल सिंह के दोनों बेटे और भतीजे शीशे से अंदर झांक रहे थे. अस्पताल का स्टाफ उन का सीना दबा रहा था. डाक्टरों ने बाहर से दवा मंगवाई, कुछ देर बाद स्टाफ ने कोरे कागज पर दस्तखत करवाते हुए कहा कि मरीज को वेंटिलेटर पर रखना है. अस्पताल में शाम 4 बजे तक वेंटिलेटर पर रख कर मरीज का इलाज चलता रहा. जब मंगल सिंह के बेटों ने वहां मौजूद कर्मचारियों से पूछा, तब उन्होंने बताया कि आप के मरीज की तो मौत हो चुकी है. इस के बाद कागजात तैयार कर अस्पताल प्रबंधन ने मंगल सिंह की डैडबौडी घर वालों के सुपुर्द कर दी.

 

 

इसी तरह सत्येंद्र सिंह राठौर निवासी लाडनबाग, हथना (दमोह), इजराइल खान, निवासी डा. पसारी के पास (दमोह), बुधा अहिरवाल निवासी बरतलाई, पटेरा (दमोह) भी मिशन अस्पताल में जा कर मौत का शिकार हुए. दमोह के मिशन अस्पताल में हार्ट सर्जरी को ले कर हुए एक बड़े खुलासे में एक युवक की हिम्मत काम आई. यदि युवक पहल नहीं करता तो शायद यह फरजी डाक्टर और भी कई लोगों की जान ले सकता था. मामले का खुलासा तब हुआ, जब दमोह जिले के बरी गांव का रहने वाला कृष्ण कुमार पटेल अपने दादा आशाराम पटेल को सीने में दर्द के इलाज के लिए 29 जनवरी, 2025 को मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा

वहां पहुंचने पर उसे बताया गया कि 50 हजार रुपए जमा करो, उस के बाद ही डाक्टर आ कर मरीज की जांच करेंगे. इस के बाद फेमिली वालों ने तुरंत ही अस्पताल में पैसे जमा कराए. तब कहीं डा. एन. जौन केम ने दादाजी का चैकअप किया और एंजियोग्राफी करने के बाद बताया गया कि आशाराम पटेल को मेजर ब्लौकेज है और उन की सर्जरी करनी पड़ेगी. जब कृष्ण कुमार ने रिपोर्ट और जांच के वीडियो मांगे तो डाक्टर से उन की बहस हो गई. डाक्टर ने कोई भी रिपोर्ट और वीडियो देने से मना कर दिया. इस के बाद कृष्ण कुमार को संदेह हुआ कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लेकिन उस समय उस ने दादाजी को वहां से डिस्चार्ज करा कर जबलपुर ले जाना उचित समझा.

जबलपुर में एक निजी अस्पताल में उन की जांच कराई तो पता चला कि इतने ब्लौकेज नहीं हैं, जितने दमोह में बताए जा रहे थे. वहां पर एंजियोप्लास्टी कराने के बाद वह दमोह आ गए. फिर उस ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट दीपक तिवारी से मुलाकात की तथा पूरे साक्ष्य एकत्र करने के बाद उन्होंने मानव अधिकार आयोग, एसपी तथा डीएम साहब से मामले की शिकायत की. लेकिन पुलिस ने समय पर न तो मामला दर्ज किया और न ही आरोपी डाक्टर के खिलाफ कोई जांच की. पुलिस जांच करती या आरोपी डाक्टर पर कोई केस दर्ज करती, इस के पहले ही डाक्टर अस्पताल छोड़ कर फरार हो गया.

इसी बीच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने जब प्रशासन को नोटिस जारी किए तब आननफानन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन ने कथित डाक्टर के खिलाफ कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई.

प्रयागराज में पकड़ा गया फरजी डाक्टर

इस पूरे मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. बताया जाता है कि डा. मुकेश जैन पहले नरसिंहपुर जिले में सिविल सर्जन के पद पर पदस्थ रह चुके हैं. उस दौरान फरजी डा. एन. जौन केम ने वहां पर अपनी प्रैक्टिस चालू की थी. वहीं पर दोनों का परिचय हुआ था. शायद इसी वजह से सीएमएचओ ने समय पर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. लेकिन जैसे ही मानव अधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया तो मजबूरन सीएमएचओ को फरजी डाक्टर के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराना पड़ा.

दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक के 3 महीने में मिशन असपताल में हुई 7 मौतों के मामले में जब डाक्टर पर एफआईआर दर्ज हुई तो दमोह जिले के एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने डाक्टर को पकडऩे के लिए एक टीम गठित कर साइबर टीम की मदद ली. फरजी डाक्टर की मोबाइल लोकेशन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मिली. 7 अप्रैल की शाम करीब 4 बजे टीम प्रयागराज पहुंची तो आरोपी का मोबाइल बंद मिला. इधर, दमोह साइबर टीम के राकेश अठया और सौरभ टंडन लगातार डाक्टर की लोकेशन ट्रैस कर रहे थे. लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम प्रयागराज पहुंच गई और स्थानीय पुलिस की मदद से औद्योगिक थाना क्षेत्र इलाके में ओमेक्स अदनानी बिल्डिंग के एक फ्लैट में छिपे डा. एन. जौन कैम को गिरफ्तार कर लिया.

दमोह ले जा कर एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने उस से सघन पूछताछ की. नरेंद्र विक्रमादित्य उर्फ डा. नरेंद्र जौन केम को पुलिस रिमांड पर ले कर उस के गृह निवास कानपुर पहुंची, जहां से कई चौंकाने वाले सच निकल कर सामने आए. एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने बताया, ”नरेंद्र जौन केम के निवास से कई फरजी दस्तावेज मिले हैं, जिस में आधार कार्ड, कई तरह की स्टैंप और कई तरह के फरजी डाक्यूमेंट्स शामिल थे. हालांकि उस के पिता के मुताबिक आरोपी डाक्टर का संपर्क ज्यादातर उस के परिवार से नहीं रहा. वह अपने घर बहुत कम आताजाता था.’’

डाक्टर के दस्तावेजों से पता चला कि उस ने दार्जिलिंग मैडिकल कालेज से  एमबीबीएस की पढ़ाई की थी और पहले ही अटेंप्ट में उस का पीएमटी निकल गया था. इस के बाद उस ने पहली बार नोएडा में प्रैक्टिस शुरू की थी. लेकिन 2013 में उस के द्वारा उपचार में कोताही और फरजीवाड़ा सामने आने के बाद इंडियन मैडिकल एसोसिएशन ने 2014 से 2019 तक उस का रजिस्ट्रैशन कैंसिल कर दिया था. इस अवधि में उस ने हैदराबाद तथा कई अन्य जगहों पर भी अलगअलग नाम से प्रैक्टिस की थी. उस के पिता ने पुलिस को बताया कि नरेंद्र पढऩे में शुरू से ही बहुत होशियार था और लंदन की जार्जिस यूनिवर्सिटी के डा. एन. जौन केम से काफी प्रभावित था. वह उन्हें अपना आदर्श मानता था, इसलिए उन के नाम पर इस ने अपना नाम नरेंद्र जौन केम रख लिया.

पुलिस को उस के घर से कई रिसर्च पेपर भी बरामद हुए. उस के घर में एक पूरी की पूरी लैब बनी हुई थी. वहां से पुलिस ने कई सारी फरजी डिग्रियां और दस्तावेज बरामद किए. जो रिसर्च पेपर बरामद किए गए, उस में इस ने संपादन भी किया. घर से जो चीजें बरामद हुईं, वे फरजी पाई गईं. उस ने पूछताछ में भी यह बात कबूल की. नरेंद्र विक्रमादित्य 2004 से ले कर 2009 तक यूएस में रहा और वहां से इस ने एमडी की डिग्री करने की बात कही है. वह अभी भी इस बात पर कायम है कि उस की सभी डिग्रियां असली हैं. लेकिन अभी तक की जांच में इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है. इस संबंध में पुलिस संबंधित यूनिवर्सिटीज और मैडिकल कालेज से संपर्क कर कर रही है.

पुलिस को जांच में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिस से कि पता चल सके कि इस ने बाहर के मैडिकल कालेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की हो. इस ने केवल एमबीबीएस किया है. उस के बाद की इस की सभी डिग्रियां फरजी हैं. सीएमएचओ मुकेश जैन ने फरवरी माह में मिशन अस्पताल में हुई सभी सर्जरी और डाक्टर्स की जानकारी अस्पताल मैनेजमेंट से मांगी थी, लेकिन अस्पताल मैनेजमेंट ने डा. नरेंद्र जौन केम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. इस की रिपोर्ट 5 मार्च, 2025 को दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर को दी गई थी.

दूसरी बार फिर मिशन अस्पताल से डाक्टर के डाक्यूमेंट मांगे गए, तब जो डाक्यूमेंट दिए, उस में बताया गया कि आरोपी डाक्टर ने कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमडी की डिग्री की है और कार्डियोलौजी की डिग्री पुडुचेरी से की है. सभी डाक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सागर मैडिकल कालेज को पत्र लिखा, लेकिन उन का जवाब आया कि वहां कार्डियोलौजिस्ट नहीं है. इसलिए जबलपुर मैडिकल कालेज से जांच की मांग कीजिए. इस के बाद 4 अप्रैल, 2025 को जबलपुर मैडिकल कालेज टीम को जांच के लिए पत्र लिखा गया.

सीएमएचओ मुकेश जैन ने बताया, मैडिकल कालेज जबलपुर की टीम ने जब डाक्टर की डिग्री की जांच की तो उस में पुडुचेरी विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर थे. इस बात का सत्यापन करने के लिए जब टीम ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर चैक किए तो डिग्री में मौजूद हस्ताक्षर और ओरिजिनल हस्ताक्षर में अंतर मिला. इस से स्पष्ट हो गया कि आरोपी डाक्टर की कार्डियोलौजिस्ट की डिग्री फरजी है.

अस्पताल पर ऐसे कसा शिकंजा

नियमानुसार मध्य प्रदेश में प्रैक्टिस करने के लिए डाक्टर को एमपी सरकार के स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रैशन कराना आवश्यक होता है, लेकिन एमपी में डा. कैम रजिस्टर्ड नहीं है. उस के जो दस्तावेज मिले हैं, उस में उस ने आंध्र प्रदेश का रजिस्ट्रैशन लगाया है, लेकिन आंध्र प्रदेश के मैडिकल बोर्ड में भी उस के रजिस्ट्रैशन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं पाए गए हैं. मध्य प्रदेश के दमोह में फरजी डाक्टर द्वारा की गई हार्ट सर्जरी और उस से जुड़ी 7 मौतों के मामले में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  के सदस्य प्रियांक कानूनगो 16 अप्रैल, 2025 को दमोह पहुंचे. आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने मृतकों के फेमिली वालों से मुलाकात कर जिला प्रशासन और खासतौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए.

उन्होंने कहा कि जो तथ्य सामने आए हैं, उन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन की लापरवाही स्पष्ट रूप से उजागर हो रही है. इस फरजी डाक्टर ने दिसंबर 2024 को दमोह के मिशन अस्पताल में फरजी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति पाई. इस दौरान अस्पताल ने उसे ठीक से जांच किए बिना 8 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन देने का कौन्ट्रैक्ट भी किया. चौंकाने वाली बात यह है कि यह अस्पताल सरकार की आयुष्मान भारत स्कीम के तहत गरीबों का इलाज भी करता था. ऐसे में फरजी डाक्टर ने सार्वजनिक फंड्स का लंबे समय तक नुकसान किया और अस्पताल प्रशासन को इस की भनक तक नहीं लगी.

आरोपित डाक्टर ने लंदन के कार्डियोलौजिस्ट डा. एन. जौन कैम के नाम पर ढाई महीने में 15 हार्ट औपरेशन किए. साल 2024 के दिसंबर महीने से फरवरी 2025 के बीच हुए इन औपरेशनों में 7 मरीजों की मौत हो गई.  इस बात का खुलासा तब हुआ, जब एक मरीज के फेमिली वालों को शक हुआ, फिर उन्होंने शिकायत की. इस के बाद मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंचा.

कौन हैं असली प्रोफेसर जौन कैम?

बीते कई दिनों से देश की सुर्खियों में रहने वाला दमोह का मिशन अस्पताल दरअसल ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित है. इसी अस्पताल के प्रबंधन ने बिना किसी जांचपड़ताल के एक हार्ट स्पैशलिस्ट की सेवाएं लेनी शुरू कर दीं. प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के सख्त निर्देश के बाद हुई काररवाई को अंजाम देते हुए स्वास्थ्य विभाग ने मिशन अस्प्ताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया है. जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन ने बताया कि मिशन अस्पताल के लाइसेंस की अवधि 31 मार्च 2025 तक थी.

नियमानुसार अस्पताल को लाइसेंस रिन्यूवल के लिए पोर्टल पर अप्लाई करना था, मिशन अस्प्ताल ने अप्लाई भी किया था, लेकिन उस मेंकमियां पाई गईं, जिस वजह से अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया गया है. डा. जैन के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिए गए हैं कि 3 दिनों के भीतर वो यहां एडमिट मरीजों को डिस्चार्ज कर दे और यदि गंभीर मरीज हैं तो उन्हें जिला अस्पताल में दाखिल कराएं. दमोह में 7 मरीजों की जान का दुश्मन बना नरेंद्र विक्रमादित्य यादव एक फरजी डाक्टर ही नहीं है, बल्कि वह बड़ा शातिर बदमाश भी है. उस ने जिस विदेशी डाक्टर की पहचान चुराई, वह असल में प्रोफेसर जौन कैम हैं.

जौन कैम लंदन के सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल कार्डियोलौजी के एमेरिटस प्रोफेसर हैं. फरजी एन जौन कैम (नरेंद्र विक्रमादित्य यादव) की सच्चाई सामने आने के बाद फैक्ट चेक वेबसाइट बूम ने असली जौन कैम से मामले को ले कर बात की तो उन्होंने कहा, ”नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उन की पहचान का दुरुपयोग कर रहा था.’’ वह उन के njohncamm.com नाम से एक वेबसाइट भी चलाता था और @njohncamm नाम से उस का एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल भी था. हालांकि, अब इसे सस्पेंड कर दिया गया है.

फरजी डा. एन जौन कैम जो वेबसाइट चलाता था, उस पर कई बड़े दावे किए गए हैं. वेबसाइट के अनुसार उस ने एमबीबीएस और एमडी की डिग्री भारत से की है. वहीं, 2001 में सेंट जौर्ज हौस्पिटल लंदन (यूके) से एमआरसीपी (Member, Royal College of Physicians) की डिग्री पूरी की. 2002 में सेंट जार्जेस हौस्पिटल, लंदन में इंटरवेंशनल कार्डियोलौजिस्ट के रूप में जौइन किया और प्रशिक्षण लिया. इस के बाद ब्रिटिश हार्ट एसोसिएशन की सदस्यता मिली और फिर उसे ब्रिटिश मैडिकल जर्नल में समीक्षा बोर्ड का संपादक नियुक्त किया गया. 2004 में आरएफयूएमएस नार्थ शिकागो में डा. जेफरी बी लैकियर के अंडर में फेलोशिप भी पूरी की. साथ ही अब तक प्राइमरी एंजियोप्लास्टी समेत 18 हजार से अधिक जटिल कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी की हैं.

करीब 5 साल पहले एक ट्विटर अकाउंट के जरिए यह पहचान चोरी सामने आई थी, जिस में आरोपी ने खुद को डा. जौन कैम बता कर कई विवादास्पद राजनीतिक बयान दिए थे. मिशन अस्पताल में हुई 7 मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि फरजी दस्तावेजों के जरिए कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था. इस आधार पर पुलिस ने 9 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. दमोह के एएसपी संदीप मिश्रा ने  बताया, ”मिशन अस्पताल में जिस कैथलैब को सील किया गया था, जब उस की जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा गठित टीम ने की तो पाया कि कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था.

जिला अस्पताल में पदस्थ डा. अखिलेश दुबे के फरजी हस्ताक्षर कर के कैथलैब संचालन की अनुमति बनाई गई थी. जिस में कुछ मरीजों की एंजियोग्राफी एवं एंजियोप्लास्टी करना पाया गया.’’

स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई शिकायत के आधार पर कोतवाली में बीएनएस की धारा 318 (4), 336 (2), 340 (2), 105, 3, 5 मध्य प्रदेश उपचार एवं रूजोपचार अधिनियम रजिस्ट्रीकरण एवं अधिज्ञापन अधिनियम 1973 एवं नियम 1997 2021 की धारा 12 के तहत केस दर्ज किया गया. जिन 9 लोगों को मामले में आरोपी बनाया गया है, उन में असीम, फ्रैंक हैरिसन, इंदु, जीवन, रोशन, कदीर यूसुफ, डा. अजय लाल, संजीव लैंबर्ट तथा विजय लैंबर्ट के नाम शामिल हैं. मिशन अस्पताल में फरजी डिग्री के सहारे कार्डियोलौजिस्ट बन कर मरीजों की जान से खेलने वाले डा. नरेंद्र यादव को 7 अप्रैल, 2025 को प्रयागराज से गिरफ्तार करने के बाद 18 अप्रैल की दोपहर जिला कोर्ट में पेश किया गया.

इस दौरान डाक्टर के वकील सचिन नायक ने आरोपी के जब्त मोबाइल के लिए कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि मेरे मुवक्किल का फोन वापस दिलाया जाए, ताकि वह वकील की फीस दे सके. इस पर सहायक लोक अभियोजक एडीपीओ संजय रावत ने कहा कि मोबाइल की अभी फोरैंसिक जांच होनी है. इस के बाद कोर्ट ने यह मांग खारिज कर दी और आरोपी डाक्टर को 5 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया. उसे पहले 5 दिन और फिर 4 दिन की रिमांड पर लिया. कथा लिखने तक आरोपी तथाकथित डा. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डा. एन जौन कैम से पुलिस पूछताछ कर रही थी.

दिल्ली में पकड़ी गई 12वीं पास फरजी डाक्टर

देश के फरजी झोलाछाप डाक्टर केवल गांवकस्बों में ही नहीं हैं, महानगर भी इन से अछूते नहीं हैं. अप्रैल 2025 में देश की राजधानी दिल्ली में एक फरजी महिला डाक्टर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. फरजी डाक्टर दिल्ली की संगम विहार कालोनी में रहने वाली किरण श्रीवास्तव है, जिस की उम्र 48 साल है. जांच में पाया गया कि महिला डाक्टर सिर्फ 12वीं पास है और उस ने मैडिकल दस्तावेजों में जालसाजी कर के फरजी बीएएमएस डिग्री बिहार से हासिल की दिखाई. उस के आधार पर क्लीनिक खोल लिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी आदित्य गौतम ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि विकास नगर रणहौला में रहने वाले रमेश कुमार ने इस फरजी डाक्टर के खिलाफ केस दर्ज कराया था. शिकायत में कहा गया कि 2009 में रमेश की गर्भवती पत्नी को पेट दर्द की समस्या थी, जिस के कारण उस ने महिला डाक्टर के पास उसे क्लीनिक में भरती कराया था. फरजी डाक्टर ने पत्नी को क्लीनिक में भरती कर इलाज किया और डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन पेट दर्द से छुटकारा नहीं मिल सका. रमेश ने अपनी पत्नी को दोबारा क्लीनिक में भरती कराया तो डाक्टर ने कहा कि महिला की सर्जरी करानी होगी.

उक्त महिला डाक्टर ने पत्नी की सर्जरी की और उसे घर भेज दिया. कुछ दिनों बाद पत्नी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और इलाज के दौरान उस ने दम तोड़ दिया. रमेश ने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. जांच में पता चला कि महिला के पास किसी तरह की वैध डिग्री नहीं थी. उस ने बीएएमएस की जाली डिग्री बनवाई थी और उसी के आधार पर क्लीनिक खोला था. पुलिस ने इस मामले में तथाकथित महिला डा. किरण श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिनों में उसे जमानत भी मिल गई. जमानत मिलने के बाद फरजी महिला डाक्टर कोर्ट में हाजिर नहीं हुई तो 2016 में अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. सूचना के आधार पर पुलिस ने ग्रेटर कैलाश-2 में छापेमारी कर आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में किरण श्रीवास्तव ने बताया कि साल 2005-06 में वह दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में एक डाक्टर के पास असिस्टेंट के रूप में काम करती थी. उस क्लीनिक में उस ने बेसिक इलाज करना सीख लिया था. इस के बाद उस ने बीएएमएस की फरजी डिग्री ले कर अपना क्लीनिक रणहौला में खोल लिया, जहां वो स्त्रीरोग संबंधी रोगों का इलाज किया करती थी.

ओटी टेक्नीशियन कराता था महिलाओं की डिलीवरी

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ओटी टेक्नीशियन ने खुद को डाक्टर बता कर 14 महिलाओं की सीजेरियन डिलीवरी कर डाली. 15वें औपरेशन में महिला की मौत हो गई, तब उस की असलियत सामने आई. इस का पता चलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. गुस्साए फेमिली वालों ने अस्पताल में हंगामा किया. शुरुआती जांच में पता चला कि अस्पताल संचालक पतिपत्नी नारमल डिलीवरी को जटिल बता कर पेशेंट को डराते थे. कहते थे कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, फिर सर्जन के नाम पर ओटी टेक्नीशियन को बुला कर औपरेशन करवा कर पैसे भी वसूल करते थे.

चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि अस्पताल भी बिना लाइसेंस के चल रहा था. यहां कोई भी डिग्रीधारी डाक्टर नहीं था. बांसगांव गोहली बसंत निवासी 28 साल की रेनू की दूसरी डिलीवरी होनी थी. 27 अप्रैल, 2025 की शाम को उसे प्रसव पीड़ा हुई तो रेनू के पति दिनेश कुमार ने इस की सूचना गांव की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री से मिला. आशा दीदी ने सरकारी एंबुलेंस की मदद से रविवार शाम करीब 4 बजे सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में उसे भरती कराया. 2 घंटे लगातार इलाज होने के बाद डिलीवरी नहीं हुई तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर ने उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया.

मगर आशा दीदी गंगोत्री ने रेनू को जिला अस्पताल न ले जा कर बघराई में स्थित श्री गोविंद हौस्पिटल में ले जा कर भरती करा दिया. यहां पर बघराई गांव निवासी अस्पताल संचालक अमरीश राय और उस की पत्नी ने फेमिली वालों को डराया. कहा कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, जल्द से जल्द डिलीवरी करानी पड़ेगी. यह सुन कर फेमिली वाले डर गए और औपरेशन के लिए राजी हो गए. पतिपत्नी ने रात 9 बजे ओटी टेक्नीशियन पन्नालाल को बुलाया और मरीज के घर वालों से कहा, ”यही हमारे अस्पताल के सर्जन हैं.’’

इस के बाद ओटी टेक्नीशियन ने औपरेशन किया, महिला ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन इस के बाद उस की तबीयत बिगडऩे लगी. प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगीं. दूसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह हौस्पिटल का वही टेक्नीशियन मरीज को कार से ले कर दूसरे अस्पताल में भरती कराने निकल गया. इस बीच ज्यादा खून बहने से रास्ते में ही रेनू ने दम तोड़ दिया. यह खबर मिलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. मामला उजागर होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने श्री गोविंद हौस्पिटल पर काररवाई के बाद खजनी इलाके के अवैध तरीके से संचालित श्री हरि मैडिकल सेंटर को भी सील कर दिया.

वहीं लापरवाही से औपरेशन कर प्रसूता की मौत के मामले में 3 आरोपियों गगहा जगरनाथपुर निवासी कथित डा. पन्नालाल दास, उस के बेटे नीरज और गोहली बसंत की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री देवी को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया है. Social Stories in Hindi

Social Stories in Hindi : बीवी बनकर ठगने वाली कॉलगर्ल की सच्चाई क्या थी

Social Stories in Hindi : नादिर मोटे ब्याज पर पैसे देता था और वसूलने के लिए गुंडे रखता था. लेकिन अंबर के चक्कर में वह 5 लाख गवां बैठा. अंबर गलत नहीं थी. उस ने तो अपने हिस्से की ईमानदारी निभाई थी जबकि नादिर ने…

नादिर, गुलशन इकबाल के एक शानदार मकान में रहता था. उस के पास बहुत पैसा था. वह कोई काम नहीं करता था. बस, जरूरतमंद लोगों को पैसे ब्याज पर देता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी थी और उस से बहुत आराम से गुजारा होता था. नादिर का कहना था कि यही उस का बिजनैस है और बिजनैस से मुनाफा लेना कोई बुरी बात नहीं है. कर्ज के तौर पर दिए गए पैसों का ब्याज वह हर महीने वसूल करता था. नादिर ने पैसे वसूल करने के लिए कुछ कारिंदे भी रखे हुए थे. अगर कोई आदमी पैसे देने में आनाकानी करता था तो कारिंदे गुंडागर्दी पर उतर आते थे, कर्जदार के हाथपैर तोड़ देते थे और कभीकभी गोलियां भी मार देते थे.

नादिर ने आसपास के थानेदारों को पटा रखा था. एक दिन नादिर का दोस्त अकरम अपने एक परिचित युवक नोमान को ले कर उस के पास आया. नोमान एक शरीफ आदमी लग रहा था. उस के चेहरे से दुख और परेशानी झलक रही थी. अकरम ने नादिर से नोमान का परिचय कराया और कहा, ‘‘नादिर भाई, ये आजकल कुछ परेशानी में फंसे हुए हैं. आप इन की मदद कर दीजिए. नोमान आप का पैसा जल्द वापस कर देंगे. इन का होजरी का कारोबार है.’’

‘अच्छा, कितने पैसों की जरूरत है आप को?’’ नादिर ने पूछा. नोमान ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मुझे 5 लाख की जरूरत है. मैं ने आज तक किसी से कर्ज नहीं लिया, लेकिन इस बार मजबूर हो गया हूं.’’

‘‘लेकिन अकरम,’’ नादिर ने अपने दोस्त की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘इस बंदे की जमानत कौन लेगा?’’

‘‘नादिर साहब,’’ नोमान बोला, ‘‘मैं एक शरीफ आदमी हूं. सदर में मेरी दुकान और अल आजम स्क्वायर में मेरा फ्लैट है. मैं आप के पैसे ले कर कहीं भागूंगा नहीं.’’

‘‘आप भाग ही नहीं सकते,’’ नादिर हंसते हुए बोला, ‘‘खैर, 5 लाख के लिए आप को हर महीने 50 हजार ब्याज देना पड़ेगा, आप को मंजूर है?’’

नोमान ने 50 हजार ब्याज देने से इनकार कर दिया. लेकिन अकरम के कहने पर नादिर 30 हजार महीना ब्याज पर राजी हो गया. नादिर ने कहा कि ब्याज की रकम कम करना उस के नियम के खिलाफ है लेकिन नोमान एक अच्छा आदमी लग रहा है, इसलिए इतनी छूट दे दी. नादिर के दोस्त अकरम ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मैं ने आप दोनों को मिलवा दिया है. अब जो भी मामला है, वह आप दोनों का है. आप हर तरह से तसल्ली करने के बाद इन्हें पैसा दें. फिर इन्होंने मूल रकम या ब्याज दिया या नहीं या आप ने इन के साथ कोई ज्यादती की, मुझे इस से कोई लेनादेना नहीं. आगे आप दोनों जानें.’’

‘‘ठीक है यार, मैं तुझ पर कोई इलजाम नहीं लगाऊंगा. अब यह मेरा मामला है, लेकिन मैं नोमान का मकान जरूर देखूंगा.’’ नादिर ने अकरम से कहा.

नोमान तुरंत बोला, ‘‘क्यों नहीं नादिर भाई, आप जब चाहें मकान देख लें बल्कि आप शुक्रवार को आ जाएं, मैं घर पर ही रहूंगा. दोनों एक साथ बैठ कर चाय पिएंगे.’’

अपनी संतुष्टि के लिए नादिर शुक्रवार को नोमान का घर देखने पहुंच गया. नोमान का फ्लैट बहुत अच्छा था. नोमान ने नादिर को देख कर फौरन फ्लैट का दरवाजा खोल दिया और कहा, ‘‘वेलकम नादिर भाई, मैं तो समझ रहा था कि शायद आप ने यूं ही कह दिया. आप तशरीफ नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों नहीं आऊंगा. हमारे धंधे में जबान की बहुत अहमियत होती है. जो कह दिया, सो कह दिया.’’ नादिर बोला.

नोमान ने नादिर को ड्राइंगरूम में बिठा दिया. नादिर को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि उस का पैसा कहीं नहीं जाएगा. वैसे भी नोमान शरीफ आदमी दिखाई दे रहा था.

‘‘माफ करना नादिर भाई, आज बेगम घर पर नहीं हैं, इसलिए आप को मेरे हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.’’

‘‘अरे, इस की जरूरत नहीं है,’’ नादिर बोला.

‘‘यह तो हो ही नहीं सकता,’’ नोमान ने कहा, ‘‘मैं अभी हाजिर हुआ.’’

नोमान अंदर किचेन की तरफ चला गया. इस दौरान नादिर फ्लैट का निरीक्षण करता रहा. चाय और नमकीन आदि से निपटने के बाद नोमान ने पूछा, ‘‘तो फिर आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘ठीक है,’’ नादिर ने हामी भरी, ‘‘मुझे आप की तरफ से इत्मीनान हो गया है. मैं कल आऊंगा पैसे ले कर.’’

नोमान ने उस का शुक्रिया अदा किया और कहा, ‘‘यकीन करें, अगर इतनी जरूरत न होती तो मैं कभी पैसे नहीं लेता.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ नादिर मुसकरा दिया, ‘‘हम जैसों को जरूरत में ही याद किया जाता है. अब मैं चलता हूं.’’

नादिर अपने घर वापस आ गया. उस ने अपने दोस्त अकरम को फोन कर दिया, जिस ने नोमान का परिचय कराया था, ‘‘हां भाई, मुझे बंदा ठीक लगा. घर भी देख लिया है उस का. उसे कल पैसे दे दूंगा.’’

दूसरे दिन शाम को नादिर 5 लाख रुपए ले कर नोमान के घर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक युवती ने दरवाजा खोला. वह एक सुंदर औरत थी. नादिर के अंदाज के अनुसार उस की उम्र 28-30 साल थी. वह प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देख रही थी.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा, ‘‘मेरा नाम नादिर है.’’

‘‘ओह! आप नादिर साहब हैं. नोमान ने मुझे आप के बारे में बताया था. मैं उन की मिसेज अंबर हूं. आप अंदर आ जाएं. नोमान शावर ले रहे हैं. मैं उन्हें बता देती हूं.’’

नादिर अंदर जा कर बैठ गया, उसी ड्राइंगरूम में जहां कल बैठा था. नोमान की पत्नी अंदर चली गई. नादिर को वह स्त्री बहुत अच्छी लगी थी. वैसे तो वह बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी, लेकिन उस में एक खास किस्म की कशिश जरूर थी. नादिर ने बहुत कम औरतों में ऐसा आकर्षण देखा था. कुछ देर बाद नोमान की पत्नी अंबर चाय आदि ले कर आई और नादिर से बोली, ‘‘ये लें, चाय पिएं. नोमान आ रहे हैं.’’

वैसे तो अंबर चाय दे कर चली गई थी, लेकिन नादिर के लिए वह अभी तक उसी ड्राइंगरूम में थी. उस के बदन की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था. नादिर उस स्त्री से बहुत प्रभावित हुआ. कुछ देर बाद नोमान नहा कर आ गया. दोनों ने बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया. नादिर बोला, ‘‘नोमान, मैं तुम्हारे 5 लाख रुपए ले आया हूं.’’

फिर उस ने अपनी जेब से नोटों की गड्डी निकाल कर मेज पर रख दी.

नोमान ने कहा, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, मैं अभी आया.’’

‘‘तुम कहां चल दिए,’’ नादिर ने पूछा.

‘‘पहचान पत्र की फोटो कौपी लेने,’’ नोमान ने बताया.

‘‘अरे, रहने दो,’’ नादिर बेतकल्लुफी से बोला, ‘‘उस की जरूरत नहीं है.’’

फिर कुछ देर बाद वह चला गया. नादिर लड़कियों और औरतों का शिकारी था. उसे अंदाजा हो गया था कि नोमान की पत्नी अंबर को हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. उस ने अंबर की आंखों के इशारे देख लिए थे, जो बहुत सामान्य लगते थे, लेकिन नादिर जैसे लोगों के लिए इतना ही बहुत था. नादिर को एक महीने तक इंतजार करना था. उस ने नोमान से कहा था, ‘‘आप मेरे पास आने का कष्ट न करें. मैं स्वयं ही ब्याज की किस्त लेने आ जाया करूंगा. कुछ गपशप भी हो जाएगी और चाय भी चलती रहेगी.’’

ब्याज की किस्त वसूल करने के सिलसिले में नादिर बहुत कठोर था. वह मोहलत देने का विरोधी था. अगर वह मोहलत देता भी था, तो रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करता था. नादिर के साथ उस के गुंडे भी होते थे, इसलिए कोई इनकार नहीं करता था. नादिर अपने समय पर नोमान के घर ब्याज की रकम लेने के लिए पहुंच गया. नोमान किसी काम से बाहर गया हुआ था. घर पर सिर्फ उस की बीवी थी. उस ने नादिर को प्रेमपूर्वक घर के अंदर बुला लिया. फिर उस के लिए चाय बना कर ले आई और खुद भी उस के सामने बैठ गई. चाय पीने के दौरान उस ने कहा, ‘‘नादिर साहब, अगर इस बार नोमान को पैसे देने में कुछ देर हो जाए तो बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों, खैरियत तो है?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘कहां खैरियत, मेरी अम्मी बीमार हैं. नोमान ने इस बार के पैसे उन के इलाज में लगा दिए,’’ अंबर ने बताया.

‘‘अरे चलें, कोई बात नहीं, उस से कह देना फिक्र न करे.’’

‘‘नोमान कह रहे थे कि आप रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करते हैं,’’ नोमान की पत्नी बोली.

‘‘अरे, उस की फिक्र न करें. ऐसा होता तो है लेकिन यह उसूल, नियम सब के साथ नहीं होता. अपने लोगों को छूट देनी पड़ती है,’’ नादिर ने अपने लोगों पर खास जोर दिया.

नोमान की पत्नी अंबर मुसकरा दी. उस की मुसकराहट देख कर नादिर का दिल खुश हो गया. फिर चाय की प्याली समेटते हुए अंबर का हाथ नादिर के हाथ से टकरा गया. नादिर के पूरे वजूद में जैसे करंट सा दौड़ गया.

‘‘मुझे पैसों की ऐसी कोई जल्दी नहीं है,’’ नादिर ने चलते हुए कहा, ‘‘और नोमान को जुरमाना देने की भी जरूरत नहीं है.’’

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, हमारा कितना खयाल रखते हैं,’’ अंबर गंभीरता से बोली. नादिर मदहोशी जैसी स्थिति में अपने घर वापस आ गया. शुरुआत हो गई थी. वह सोचने लगा काश! नोमान के पास कभी पैसे न हों और वह इसी तरह उस के घर जाता रहे. 10 दिन गुजर गए. नोमान की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. नादिर सोचने लगा, ‘हो सकता है उस की सास की तबीयत ज्यादा खराब हो गई हो या कुछ इसी तरह की बात हो.’

नादिर स्थिति जानने के बहाने नोमान के फ्लैट पर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक अजनबी आदमी ने दरवाजा खोला और प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देखने लगा.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा.

‘‘नोमान?’’ उस ने आश्चर्य से दोहराया, फिर तत्काल बोला, ‘‘अच्छा, आप शायद पिछले किराएदार की बात कर रहे हैं.’’

‘‘पिछला किराएदार?’’ नादिर को बड़ा आश्चर्य हुआ.

‘‘जी भाई, वह तो 3 दिन हुए फ्लैट खाली कर के चले गए,’’ उस ने बताया.

‘‘कहां गए हैं?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘सौरी, मुझे यह नहीं मालूम,’’ उस ने जवाब दिया. नादिर गुस्से से कांपता हुआ उस बिल्डिंग से बाहर आ गया. यह पहला मौका था कि किसी ने उस को इस तरह धोखा दिया था. उस ने एस्टेट एजेंट से मालूम करने की कोशिश की लेकिन वह भी यह नहीं बता सका कि नोमान ने कहां मकान लिया. नादिर के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. अगर नोमान की बीवी अंबर उस के हाथ लग जाती तो फिर यह कोई नुकसानदायक सौदा नहीं होता. लेकिन कमबख्त नोमान तो अपनी पत्नी और सामान के साथ गायब था. नोमान ने यह भी नहीं बताया था कि सदर में उस की दुकान कहां है. फिर भी वह पूरे सदर में उस को तलाश करेगा. बस, यही एक सहारा था. लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि वहां नोमान मिल जाएगा.

ऐसा ही हुआ भी, सदर में नोमान नहीं मिला. लेकिन नादिर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने नोमान की तलाश जारी रखी. वह सोच रहा था कि नोमान कभी न कभी तो मिलेगा ही, शहर को छोड़ कर कहां जाएगा. फिर एक दिन आखिर नोमान की पत्नी अंबर मिल ही गई. वह एक स्टोर से कुछ सामान खरीद रही थी. नादिर उस के बराबर में जा कर खड़ा हो गया. अंबर ने चौंक कर नादिर की तरफ देखा, ‘‘आप नादिर हैं न?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं नादिर हूं और तुम्हारा पति कहां है?’’

‘‘पति? कौन पति?’’ अंबर ने आश्चर्य से पूछा.

नादिर बोला, ‘‘मैं नोमान की बात कर रहा हूं.’’

‘‘वह मेरा पति नहीं है,’’ अंबर बोली.

‘‘क्या?’’ नादिर हैरान रह गया, ‘‘तो फिर कौन है?’’

‘‘बाहर आएं, बताती हूं,’’ अंबर बोली.

वह नादिर को ले कर स्टोर से बाहर आ गई.

‘‘हां, अब बताओ, तुम क्या कह रही थीं?’’ नादिर ने कहा.

‘‘मैं कह रही थी कि नोमान मेरा पति नहीं बल्कि कोई भी नहीं है. उस ने मुझे इस नाटक के लिए किराए पर लिया था. मैं एक कालगर्ल हूं. मेरा तो यही काम है. उस ने मुझे 25 हजार रुपए दिए थे. नोमान ने मुझ से कहा था कि मुझे उस की बीवी का रोल करना है. मैं ने अपनी ड्यूटी की. उस से मेहनताना लिया, खेल खत्म. उस का रास्ता अलग, मेरा अलग.’’

‘‘क्या तुम मुझे उस समय नहीं बता सकती थीं कि तुम उस की बीवी होने का नाटक कर रही हो?’’ नादिर ने गुस्से से पूछा.

‘‘नादिर साहब, हर धंधे का अपनाअपना उसूल होता है. मैं ने उसे जबान दी थी, फिर आप को यह सब कैसे बताती?’’ अंबर बोली.

‘‘अब वह कहां है?’’ नादिर बोला.

‘‘यह मैं नहीं जानती. मैं ने उस से अपना मेहनताना ले लिया था, अब वह कहीं भी जाए. मेरा उस से कोई लेनादेना नहीं है. हां, आप भी मेरा मोबाइल नंबर ले लें, अगर कभी आप को मेरी जरूरत पड़ जाए तो मैं हाजिर हो जाऊंगी.’’

नादिर अपने आप पर लानत भेजता हुआ घर वापस चला गया. आज जिंदगी में पहली बार उस ने बुरी तरह धोखा खाया था. और वह भी ऐसा जिस की चोट बरसों महसूस होती रहेगी. आखिर 5 लाख कम तो नहीं होते. Social Stories in Hindi

 

MP News : मसाज सेंटर की आड़ में सैक्स रैकेट, कई खुलासे एक साथ

MP News : यह सच है कि लौकडाउन में जब लोगों को रोजीरोटी के लाले पड़ रहे थे, तब कुछ लोग मजबूर लड़कियों का सहारा ले कर स्पा के नाम पर सैक्स के धंधे में मोटी कमाई कर रहे थे. भोपाल का ‘लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा’ भी ऐसा ही था. लेकिन…

देह व्यापार ही इकलौता ऐसा धंधा है, जिस ने लौकडाउन की बंदिश हटते ही काफी कम समय में अपनी पुरानी ऊंचाई को छूने में सफलता हासिल की है. गलियों में चलने वाले छोटेछोटे अंधेरे कमरों वाले चकलाघरों से ले कर सैक्स के हाईप्रोफाइल मसाज सैंटरों पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ी. भोपाल क्राइम ब्रांच के एएसपी गोपाल धाकड़ को तेजी से बढ़ते इस कारोबार के बारे में शहर के अलगअलग इलाकों की सूचनाएं मिल रही थीं. सब से अधिक शिकायतें कोलार स्थित एस.के.प्लाजा बिल्डिंग में संचालित ‘लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा’ के बारे में थीं, जहां मसाज के नाम पर देह का कारोबार कराए जाने की खबर थी.

एएसपी गोपाल धाकड़ ने इस दुकान पर नजर रखने के लिए अपने कुछ खास मुखबिरों को लगा दिया था. कुछ ही दिन में इन मुखबिरों ने उन्हें जानकारी दी कि इस स्पा के बारे में मिली शिकायत सही है. यहां बड़े पैमाने पर ग्राहकों को मसाज के नाम पर सैक्स सर्विस दी जा रही है. एएसपी धाकड़ ने टीआई क्राइम ब्रांच थाना अजय मिश्रा की एक टीम को इस के खुलासे की जिम्मेदारी सौंप दी. पुलिस को पहले ही जानकारी मिल चुकी थी कि इस स्पा में या तो केवल पुराने और भरोसेमंद ग्राहकों को सैक्स सर्विस दी जाती है. अथवा नए ग्राहक को किसी पुराने ग्राहक के रेफरेंस पर लड़की उपलब्ध कराई जाती है. इसलिए एएसपी धाकड़ ने क्राइम ब्रांच के सब से स्मार्ट माने जाने वाले आरक्षक को पूरी ट्रैनिंग के साथ यहां भेजा.

2 दिसंबर को अपराह्न लगभग 4 बजे जब पुलिस टीम ने एस.के. प्लाजा के पास सुरक्षित दूरी पर पोजीशन ले ली, तब नकली ग्राहक बन कर जाने वाले आरक्षक ने स्पा में प्रवेश किया. काउंटर पर बैठे मैनेजर अनिल वर्मा ने वेलकम करते हुए पूछा कि उस की क्या सेवा कर सकता है.

‘‘यार, मसाज सैंटर में आदमी मछलियां पकड़ने तो आया नहीं होगा. जाहिर सी बात है कि आप के यहां मसाज करवाने आया हूं. सुना है आप की लड़कियां कमाल का मसाज देती हैं.’’ नकली ग्राहक ने पूरे विश्वास के साथ वहां बैठे युवक से कहा.

‘‘जी हां, ठीक सुना आप ने. हमारा सैंटर अपनी सर्विस क्वालिटी के लिए पूरे भोपाल में फेमस है. और आसपास के जिलों में भी.’’ मैनेजर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां सागर, विदिशा के लोग भी आते हैं.’’

‘‘बिलकुल सही. मैं सागर से हूं. मेरे एक दोस्त ने आप के स्पा का पता बताया था. वह कई बार आप के यहां आ चुका है. आई मीन जब भी भोपाल आता है तो वह आप की सर्विस लिए बिना नहीं जाता. और मजेदार बात तो यह है कि बंदे की अभीअभी शादी हुई है, वो भी लव मैरिज. मुझे लगा कि कुछ तो खास होगा आप के यहां जो बंदा नई बीवी छोड़ कर यहां  आता है.’’

शादी और नई बीवी वाली बात नकली ग्राहक ने इसलिए कही थी ताकि स्पा मैनेजर समझ जाए कि वो क्या चाहता है. नकली ग्राहक बन कर गए पुलिसकर्मी का यह तीर निशाने पर लगा. मैनेजर अनिल वर्मा सब भूल गया और उसे अपने किसी पुराने ग्राहक का खास आदमी समझ कर सीधे सैक्स सर्विस की बात करते हुए बोला, ‘‘सर देखिए, इस समय हमारे पास 3 लड़कियां हैं. नेपाली, भोपाली और कानपुरी. इन में से किस की सर्विस लेना पसंद करेंगे आप?

‘‘नेपाली की सर्विस तो कौमन है यार, हर शहर में मिल जाती हैं. नेपाली लोग शोर ज्यादा करते हैं, जो मुझे पसंद नहीं. भोपाली गर्ल की सर्विस तो मैं एमपी नगर के एक स्पा में कई बार टेस्ट कर चुका हूं. ये कानपुरी नाम कुछ नया लगता है.  इस की कुछ क्वालिटी है खास. क्या मैं फोटो देख सकता हूं?’’ नकली ग्राहक ने पूछा.

‘‘फोटो क्या सर, सामने देखिए न,’’ कहते हुए मैनेजर अनिल वर्मा ने काउंटर के नीचे लगा बटन दबा कर घंटी बजाई तो कुछ मिनट में अंदर से लगभग 21-22 साल की एक निहायत खूबसूरत और सैक्सी लुक वाली युवती बाहर आ कर खड़ी हो गई.

‘‘ये लीजिए सर, ये हैं मिस रानी. कानपुर वाली और हमारे यहां आने वाले कस्टमर्स की पहली पसंद भी. आप लकी हैं जो फ्री मिल गई. वरना इन के चाहने वाले खाली ही नहीं छोड़ते.’’

‘‘लगता है इसीलिए मेरा दोस्त आप की इतनी तारीफ करता है,’’ नकली ग्राहक ने मैनेजर का भरोसा जीतने के लिए एक और पासा फेंका.

‘‘सर, पेमेंट आप को पहले करना होगा.’’

‘‘ओके, कितना?’’

‘सर, एक हजार रुपया हमारे स्पा की एंट्री फीस है. 2 हजार इन की बेस प्राइस. कुल 3 हजार.’’

‘‘बेस प्राइस मतलब?’’

‘‘मतलब, सर जो होता है, बस उतना ही. इस के अलावा आप का कुछ स्पैशल शौक है तो रानी उस का चार्ज आप को अलग से बता देंगी.’’

‘‘बहुत स्मार्ट हो दोस्त तुम. ये लो 3 हजार. बाकी हम रानी से डील कर लेंगे, ठीक है न  रानी,’’ नकली ग्राहक ने रानी की तरफ देख कर कहा.

‘‘श्योर सर, आप को सर्विस दे कर मुझे खुशी होगी.’’ रानी ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया और उस का हाथ पकड़ कर अंदर बनी केबिन में ले गई, जहां मसाज टेबल नहीं डबल बैड पड़ा था.

‘‘इतना बड़ा बिस्तर, लगता है गु्रप सर्विस भी मिलती है यहां पर.’’

‘‘सब कुछ मिलता है यहां, आप आदेश तो करें. अभी 2 लड़कियां अपने कस्टमर के साथ व्यस्त हैं, फ्री होने वाली हैं. फिर कहेंगे तो आप को भी हम तीनों की गु्रप सर्विस मिल जाएगी.’’

‘‘अरे नहीं आज का दिन तो केवल रानी के नाम.’’ नकली ग्राहक बने पुलिसकर्मी ने रानी को मक्खन लगाया. 2 लड़कियां अपने ग्राहकों को इस समय सर्विस दे रही हैं, यह जान कर उस ने तुरंत कुछ दूरी पर खड़ी अपनी टीम को सिग्नल दे दिया. कुछ ही देर में क्राइम ब्रांच के टीआई अजय मिश्रा अपनी टीम ले कर लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा में दाखिल हो गए. आननफानन में बंद कमरों से 2 ग्राहकों को अलगअलग 2 युवतियों के संग आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया गया. इस के अलावा बिस्तर पर पडे़ यूज और अनयूज कंडोम आदि भी जब्त कर लिए गए.

दबिश के दौरान पुलिस ने स्पा से 21 वर्षीय नेपाली लड़की कोयल, भोपाल निवासी 20 वर्षीय शबनम और कानपुर की 21 साल की रानी के अलावा बैरागढ़ निवासी हितेश लीलानी और नरेंद्र सिरवानी को गिरफ्तार कर लिया जो शबनम और कोयल के साथ यौनाचार में लिप्त थे. पुलिस ने तलाशी के दौरान स्पा से भारी मात्रा में बीयर की खाली कैन और यूज किए हुए कंडोम बरामद कर मैनेजर अनिल वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस के बाद देह धंधे में आई तीनों युवतियों की कहानी इस प्रकार सामने आई.

नेपाली युवती कोयल पति की मौत के बाद काम की तलाश में भोपाल के माता मंदिर इलाके में रहने वाले अपने एक परिचित के घर आई थी. स्पा में मैनेजर का काम करने वाला अनिल वर्मा का उस इलाके में आनाजाना था. जब उस की नजर कोयल पर पड़ी और जानकारी मिली कि वह काम की तलाश में है तो अनिल ने कोयल को अपने स्पा में काम करने का औफर दिया. कोयल तैयार हो गई तो पहले ही दिन मैनेजर ने उसे बता दिया कि हम केवल मसाज का काम करते हैं, लकिन अगर कोई ग्राहक सैक्स की मांग करे तो तुम समझ लेना. इस में काफी पैसा मिलेगा जिस में से बड़ा हिस्सा तुम्हारा होगा.

चूंकि कोयल को काम की जरूरत थी और लौकडाउन के कारण कहीं दूसरी जगह काम नहीं मिल रहा था, इसलिए वह स्पा में मसाज और सैक्स सर्विस गर्ल के रूप में काम करने लगी थी. भोपाल की शबनम को उस के पति ने छोड़ दिया था. शबनम केवल 20 साल की थी और दूसरे एक युवक के साथ रहती थी. जानकारी के अनुसार शबनम के इस काम की जानकारी उस के साथ रहने वाले युवक को भी थी, लेकिन वह इस से होने वाली मोटी कमाई को देख कर शबनम को खुद भी ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को सर्विस देने की सलाह देता था. कानपुर की रानी कई सालों से कालगर्ल के तौर पर काम कर रही थी.

उसे स्पा के मालिक ने स्पैशली अपने यहां ग्राहकों को सर्विस देने के लिए बुलाया था. रानी को इस व्यापार की एक्सपर्ट माना जाता था, इसलिए उस की फीस भी ज्यादा थी. इस संबंध में एएसपी गोपाल धाकड़ ने बताया कि इस स्पा के बारे में काफी दिनों से शिकायत मिल रही थी, जिस के लिए हम ने नकली ग्राहक भेज कर यहां काररवाई कर 3 युवतियों और 2 ग्राहकों के अलावा मैनेजर को भी गिरफ्तार किया.

Crime News : जंगल में ले जाकर किया कत्ल फिर पहचान मिटाने को शव जलाया

Crime News : किसी भी महिला के जब पैर बहक जाते हैं तो वह बेहया हो जाती है. केशरबाई तो जवानी की दहलीज पर चढ़ते ही बहक गई थी. मांबाप ने उस की शादी भी कर दी, लेकिन शादी के बाद केशरबाई ने जो गुल खिलाए, उन का यह नतीजा निकला कि…

26 नवंबर, 2020 की दोपहर का समय था. धार क्राइम ब्रांच एवं साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय कुछ पुराने मामलों के आरोपियों तक पहुंचने के लिए धूल चढ़ी फाइलों से जूझ रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक खास मुखबिर के नंबर से घंटी बज उठी. इस मुखबिर को उन्होंने बेहद खास जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए उस मुखबिर की फोन काल को उन्होंने तुरंत रिसीव किया. मुखबिर ने उन्हें एक खास सूचना दी थी. सूचना पाते ही संतोष पांडेय के चेहरे पर मुसकान तैर गई, उस के बाद उन्होंने मुखबिर से मिली खबर के बारे में पूरी जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह और दूसरे अधिकारियों को दी. फिर उन से मिले निर्देश के बाद कुछ ही देर में अपनी टीम ले कर मागौद चौराहे पर जा कर डट गए.

दरअसल, धार पुलिस को लंबे समय से गंधवानी थाना इलाके में हुई एक हत्या के आरोपी गोविंद की तलाश थी. एसपी ने गोविंद की गिरफ्तारी पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था. गोविंद को पकड़ने की जिम्मेदारी जिस टीम को सौंपी गई थी, उस में धार साइबर सेल के प्रमुख संतोष पांडेय और उन का स्टाफ भी शामिल था. इसलिए उस रोज जब मुखबिर ने गोविंद के मोटरसाइकिल से मागौद आने की जानकारी पांडेयजी को दी तो उन्होंने इस ईनामी आरोपी को पकड़ने मागौद चौराहे पर अपना जाल बिछा दिया. मुखबिर की सूचना गलत नहीं थी. कुछ ही घंटों के बाद पांडेय ने एक बिना नंबर की मोटरसाइकिल पर सवार युवक को तेजी से मागौद की तरफ आते देखा तो उन्होंने उसे घेरने के लिए अपनी टीम को इशारा किया, लेकिन संयोग से मोटरसाइकिल सवार की नजर पुलिस पर पड़ गई.

इसलिए खतरा भांप कर उस ने तेजी से मोटरसाइकिल राजगढ़ की तरफ मोड़ दी. संतोष पांडेय इस स्थिति के लिए पहले से ही तैयार थे सो गोविंद के वापस मुड़ कर भागते ही वे अपनी टीम के साथ उस के पीछे लग गए. दूसरी तरफ इस स्थिति की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को दी गई तो उन के निर्देश पर एसडीपीओ (सरदारपुर) ऐश्वर्य शास्त्री और राजगढ़ टीआई मगन सिंह वास्केल ने रोड पर आगे की तरफ से घेराबंदी कर दी थी. इसलिए दोनों तरफ से पुलिस से घिर जाने पर गोविंद ने मोटरसाइकिल खेतों की तरफ मोड़ कर भागने की कोशिश की, मगर साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय और उन की टीम उसे दबोचने में कामयाब हो ही गई. पुलिस ने उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से एक कट्टा, जिंदा कारतूस और चोरी की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

चूंकि केशरबाई भील नाम की जिस महिला की हत्या के आरोप में गोविंद को गिरफ्तार किया गया था, उस में केशरबाई की हत्या में शामिल गोविंद का साथी सोहन वास्केल निवासी उदियापुर को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. इसलिए पूछताछ के दौरान गोविंद ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपनी प्रेमिका और रखैल केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार निकली—

कुक्षी थाना इलाके के एक गांव की रहने वाली केशरबाई को सिगरेट, शराब और सैक्स की लत किशोर उम्र में ही लग गई थी. संयोग से उस का रूप भी कुछ ऐसा दिया था कि उसे नजर भर कर देखने वाले घायल हो ही जाते थे. इसलिए शौक पूरा करने के लिए उसे अपने रूप का उपयोग करने में भी कोई गुरेज नहीं थी. केशरबाई की हरकतों से चिंतित उस के मातापिता ने छोटी उम्र में ही उस की शादी कर दी, लेकिन एक पुरुष से केशरबाई का मन भरने वाला नहीं था. इसलिए शादी के बाद भी उस ने अपने शौक पर लगाम लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी. जिस के चलते पति से होने वाले विवादों से तंग आ कर उस ने पति का घर छोड़ कर बच्चों के साथ अलग दुनिया बसा ली.

केशरबाई जानती थी की उस की सुंदरता उसे कभी भूखा नहीं मरने देगी. ऐसा हुआ भी, केशरबाई पति को छोड़ कर भी अपने सभी शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी बसर करने लगी. पति से अलग रहते हुए केशरबाई को इस बात का अनुभव हो चुका था कि मर्द की पहली जरूरत एक जवान औरत ही होती है. इसलिए उस ने ऐसे लोगों की तलाश कर उन्हें बड़ी रकम के बदले शादी के नाम पर दुलहन उपलब्ध करवाने का काम शुरू कर दिया, जिन की किसी कारण से शादी नहीं हो पा रही थी. उस ने आसपास के गांव में रहने वाली गरीब परिवार की जरूरतमंद युवतियों के अलावा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं से दोस्ती कर ली थी जो केशरबाई के कहने पर कुछ पैसों के बदले में चंद दिनों के लिए किसी भी युवक की नकली दुलहन बनने को तैयार हो जाती थीं.

केशरबाई जरूरतमंद लोगों से बड़ी रकम ले कर उस में से कुछ पैसे संबंधित युवती को दे कर उस की शादी युवक से करवा देती, जिस के बाद युवती कुछ रातों तक युवक को दुलहन का सुख देने के बाद किसी बहाने से मायके वापस आ कर गायब हो जाती थी. इस पर लोग यदि केशरबाई से शिकायत करते या अपना पैसा वापस मांगते तो वह उन्हें बलात्कार के आरोप में फंसाने की धमकी दे कर चुप करा देती. कहना नहीं होगा कि इन्हीं सब के चलते केशरबाई ने इस काम में खूब नाम और दाम कमाया. गांव उदियापुर निवासी सोहन वास्केल की केशरबाई से अच्छी पटती थी. उस का केशरबाई के यहां अकसर आनाजाना था जिस से वह केशरबाई के सभी कामों से परिचित भी था. सोहन की दोस्ती गांव सनावदा के रहने वाले गोविंद बागरी से थी.

गोविंद आपराधिक और अय्याशी प्रवृत्ति का था. उस ने भी इलाके में रहने वाली केशरबाई के चर्चे सुन रखे थे, इसलिए जब उसे पता चला कि सोहन की केशरबाई के संग अच्छी दोस्ती है तो उस ने सोहन से अपनी दोस्ती भी केशरबाई से करवा देने के लिए कहा. सोहन को भला क्या ऐतराज हो सकता था, इसलिए उस ने एक रोज गोविंद की मुलाकात केशरबाई से करवा दी. गोविंद केशरबाई की खूबसूरती देखते ही उस का दीवाना हो गया. इस पर जब उसे पता चला कि केशरबाई शराब पीने की भी शौकीन है तो वह 2 दिन बाद ही शराब की दरजन भर बोतलें ले कर केशरबाई के पास पहुंच गया. मर्द की नजर भांपने में केशरबाई कभी गलती नहीं करती थी. वह समझ गई कि गोविंद उस से क्या चाहता है, इसलिए उस ने उस रात गोविंद को शराब के साथ अपने रूप के नशे में भी गले तक डुबो दिया.

वास्तव में केशरबाई ने यह सब एक योजना के तहत किया था. केशरबाई को इस बात की जानकारी लग गई थी कि गोविंद न केवल पैसे वाला आदमी है बल्कि हेकड़ भी है. उस के खिलाफ कई थानों में अनेक मामले भी दर्ज हैं. इसलिए केशरबाई गोविंद से दोस्ती कर उस का उपयोग अपनी नकली दुलहन के कारोबार में करना चाहती थी. ताकि गोविंद ऐसे लोगों से उसे बचा सके जो शादी के नाम पर ठगे जाने के बाद केशरबाई से विवाद करने उस के दरवाजे पर भीड़ लगाए रहते थे. केशरबाई के रूप का दीवाना हो कर गोविंद उस के इस काम में मदद करने लगा तो इस का एक कारण यह भी था कि इस काम में केशरबाई के हाथ बड़ी रकम आती थी और गोविंद का सोचना था कि वह केशरबाई की मदद कर के उस की नजदीकी तो हासिल करता ही रहेगा.

साथ ही साथ इस रकम में से भी वह अपनी हिस्सेदारी तय कर लेगा. इसलिए उस ने केशरबाई के सामने दीवाना होने का नाटक किया और अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़ कर केशरबाई के संग जा कर सेंधवा में रहने लगा. लेकिन केशरबाई के पैसों पर ऐश करने का गोविंद का सपना चकनाचूर हो गया. केशरबाई फरजी शादी में ठगे पैसों में गोविंद को हाथ भी लगाने नहीं देती थी, उलटे घर का खर्च भी गोविंद से मांगती थी. गोविंद फंस गया था. केशरबाई के रूप का नशा उस के दिमाग से उतर गया. वह समझ गया कि केशरबाई बड़ी शातिर है. इतना नहीं, केशरबाई परिवार का खर्च तो गोविंद से मांगती थी, ऊपर से अपनी अय्याशी के लिए दूसरे युवकों को खुलेआम घर बुलाती थी.

गोविंद इस पर ऐतराज करता तो वह साफ बोल देती कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं, जो अकेले तुम्हारे बिस्तर पर सोऊं. मेरा अपना बिस्तर है और मैं जिसे चाहूं उसे अपने साथ सुला सकती हूं. गोविंद ने उसे अपनी ताकत से दबाना चाहा तो केशरबाई ने जल्द ही उसे इस बात का अहसास भी करवा दिया कि केशरबाई को वह अपनी ताकत से नहीं दबा सकता. कहना नहीं होगा कि सब मिला कर गोविंद केशरबाई नाम की इस खूबसूरत बला के कांटों में उलझ कर रह गया था. इसी बीच एक और घटना घटी. हुआ यह कि गंधवानी थाना सीमा के बोरडाबरा गांव में सोहन के एक परिचित दिनेश भिलाला को शादी के लिए एक लड़की की जरूरत थी.

चूंकि बोरडाबरा गांव अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए पूरे इलाके में कुख्यात है, इसलिए कोई भी भला आदमी अपनी बेटी को बोरडाबरा में रहने वाले युवक से ब्याहना पसंद नहीं करता. दिनेश भिलाला भी यहां रहने वाले खूंखार आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में से एक था, इसलिए उम्र गुजर जाने के बाद भी उसे शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही थी. उस ने अपनी यह समस्या सोहन के सामने रखी तो सोहन ने केशरबाई के माध्यम से उस की शादी करवा देने का भरोसा दिलाया. सोहन जानता था कि केशरबाई शादी के नाम पर ठगी का खेल करती है. उस की लड़कियां शादी के कुछ दिन बाद पति के घर से मालपैसा समेट कर फरार हो जाती हैं.

लेकिन उसे भरोसा था कि चूंकि केशरबाई उस की परिचित है, इसलिए वह उस के कहने पर ईमानदारी से दिनेश के लिए किसी अच्छी लड़की का इंतजाम करवा देगी. केशरबाई ने ऐसा किया भी. सोहन के कहने पर उस ने 80 हजार रुपए के बदले में दिनेश भिलाला की शादी एक बेहद खूबसूरत युवती से करवा दी. लेकिन सोहन का यह सोचना कि केशरबाई उसे धोखा नहीं देगी, गलत साबित हुआ. शादी के बाद वह युवती 15 दिन तक तो दिनेश भिलाला के साथ उस की पत्नी बन कर रही, उस के बाद केशरबाई  के इशारे पर वह दिनेश के बिस्तर से उतर कर वापस आने के बाद कहीं गायब हो गई. पत्नी के भाग जाने की बात दिनेश को पता चली तो उस ने सीधे जा कर सोहन का गला पकड़ लिया. उस का कहना था कि या तो पत्नी को उस के पास भेजो या फिर शादी के नाम पर उस से लिया गया पैसा 80 हजार मय खर्च के वापस करो.

सोहन ने इस बारे में केशरबाई से बात की तो उस ने साफ  मना कर दिया. उस का कहना था कि मेरी जिम्मेदारी शादी करवाने की थी, लड़की को दिनेश के गले बांध कर रखने की नहीं. लड़की कहां गई, इस का उसे पता नहीं और न ही वह दिनेश को उस का पैसा वापस करेगी. लेकिन दिनेश इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था. उस ने सोहन के साथसाथ केशरबाई और उस के आशिक गोविंद को भी धमकी दी कि अगर 10 दिन में उस की पत्नी वापस नहीं आई तो 11वें दिन उस का पैसा वापस कर देना. और अगर यह भी नहीं कर सकते तो फिर तीनों मरने के लिए तैयार रहना. बोरडाबरा का आदमी खालीपीली धमकी नहीं देता. वह सचमुच ऐसा कर सकता है, यह सोच कर सोहन और गोविंद दोनों के प्राण गले में अटक गए.

केशरबाई के संग अय्याशी के चक्कर में जान पर बन आई तो सोहन और गोविंद दोनों उस से बचने का रास्ता सोचने लगे. पहली अक्तूबर, 2020 को गंधवानी थाना इलाके के अवल्दमान गांव निवासी एक आदमी ने थाने आ कर गांव में प्राथमिक स्कूल के पास किसी महिला की अधजली लाश पड़ी होने की खबर दी. अवल्दामान गांव अपराध के लिए कुख्यात बोरडाबरा गांव के नजदीक है, इसलिए गंधवानी टीआई को लगा कि यह बोरडाबरा के बदमाशों का ही काम होगा. लगभग 30 वर्षीय महिला के शरीर पर धारदार हथियार के घाव भी थे, इसलिए मामला सीधेसीधे हत्या का प्रतीक होने पर टीआई गंधवानी ने इस बात की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को देने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए इंदौर भेज दिया.

मामला गंभीर था क्योंकि आमतौर पर लोग पहचान छिपाने के लिए शव को जलाते हैं, ताकि उस की पहचान न हो सके. लेकिन इस मामले में अजीब बात यह थी कि हत्यारों ने युवती का धड़ तो जला दिया था लेकिन चेहरा पूरी तरह से सुरक्षित था. ऐसा प्रतीक होता था मानो हत्यारे खुद यह चाहते हों कि  शव की शिनाख्त आसानी से हो जाए. ऐसा हुआ भी. मृतका के चेहरे और हाथ पर बने एक निशान ने उस की पहचान केशरबाई भील के रूप में हो गई जो पति को छोड़ कर अपने प्रेमी गोविंद के साथ रह रही थी. मामला रहस्यमयी था, इसलिए एसपी (धार) ने एडीशनल एसपी देवेंद्र पाटीदार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

जिस में पता चला कि मृतका को घटना से 1-2 दिन पहले सोहन के साथ मोटरसाइकिल पर घूमते देखा गया था. सोहन अपने घर से गायब था, इसलिए उस पर शक गहराने के बाद पुलिस ने उस की घेराबंदी कर लाश मिलने के 3 दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस में पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन बाद में गोविंद के साथ मिल कर केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. सोहन को पुलिस उठा कर ले गई है, इस बात की जानकारी लगते ही गोविंद भी गांव से गायब हो गया था. इसलिए जब काफी प्रयास के बाद उसे पकड़ने में सफलता नहीं मिली, तब टीम में साइबर सेल को शामिल किया गया.

कहना नहीं होगा कि जिम्मेदारी मिलते ही प्रभारी संतोष पांडेय की टीम सक्रिय हो गई और हत्या के 2 महीने बाद आखिर साइबर सेल टीम ने फरार आरोपी गोविंद को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने केशरबाई की हत्या खेरवा के जगंल में ले जा कर की थी. जहां से उन्होंने लाश को अवल्दामान गांव में ला कर इस तरह जलाया था कि उस की पहचान हो जाए. अवल्दामान गांव बोरडाबरा के नजदीक है. बोरडाबरा में रहने वाले दिनेश ने केशरबाई को जान से मारने की धमकी दी है यह बात कई लोगों को मालूम थी. इसलिए आरोपियों का सोचना था कि अवल्दामान में लाश मिलने से पुलिस दिनेश भिलाला को हत्यारा मान कर उसे जेल भेज देगी, जिस से सोहन और गोविंद आराम से रह सकेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और असली गुनहगार पकड़े गए.

 

Tantric Stories : मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए भाई ने दी बहन की बलि

Tantric Stories : कलावती गुप्ता अपने बेटे की बीमारी ठीक कराने के लिए तांत्रिक सर्वजीत कहार के पास जाती थी. उसे क्या पता था कि तांत्रिक और उस के पास आने वाले लोग एक दिन उसी की बलि चढ़ा देंगे.

ठाणे जिले के अंतर्गत आता है वसई का धानीव बाग गांव. 17 नवंबर, 2013 को यहां से सोपारा फाटा की तरफ जानेवाले रास्ते के किनारे झाडि़यों में एक अंजान महिला की लाश पड़ी मिली. इस सिरविहीन लाश के पास एक गाउन और एक गद्दी पड़ी हुई थी. धानीव गांव के लोगों को जब झाडि़यों में बिना सिर वाली लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो तमाम गांव वाले वहां पहुंच गए. गांव वालों ने यह जानकारी मुखिया अविनाश पाटिल को दी तो वह भी वहां आ गए.

गांव का मुखिया होने के नाते अविनाश पाटिल ने फोन कर के महिला की लाश मिलने की जानकारी थाना वालीव पुलिस को दे दी. सुबहसुबह खबर मिलते ही वालीव के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर राजेंद्र मोहिते पुलिस टीम के साथ मुखिया द्वारा बताई उस जगह पर पहुंच गए, जिस जगह पर लाश पड़ी थी. राजेंद्र मोहिते ने वहां का बारीकी से निरीक्षण किया तो वहां काफी मात्रा में खून फैला हुआ था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. वहीं पर एक चौकी के पास पूजा का कुछ सामान भी रखा था. इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि किसी तांत्रिक वगैरह ने सिद्धि साधना या अन्य काम के लिए महिला की बलि चढ़ाई होगी.

महिला की गरदन को उन्होंने आसपास काफी तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने अपर पुलिस अधिक्षक संग्राम सिंह निशाणदार और उपविभागीय अधिकारी प्रशांत देशपांडे को फोन द्वारा इस की जानकारी दी. उक्त दोनों अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. चूंकि मृतका का सिर नहीं मिल पा रहा था, इसलिए घटनास्थल पर मौजूद लोगों में से कोई भी उस अधेड़ उम्र की शिनाख्त नहीं कर सका. बहरहाल, पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को जे.जे. अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया और उच्चाधिकारियों के निर्देश पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और अन्य धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

महिला की हत्या क्यों और किस ने की, यह पता लगाने के लिए उस की शिनाख्त होनी जरूरी थी. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में सहायक पुलिस इंसपेक्टर आव्हाड तायडे, सहायक सबइंसपेक्टर प्रकाश सावंत, हवलदार सुभाष गोइलकर, पुलिस नायक अशोक चव्हाण, कांस्टेबल अनवर, मनोज चव्हाण, शिवा पाटिल, 2 महिला कांस्टेबल फड और पाटिल को शामिल किया गया.

पुलिस टीम लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश में लग गई. सब से पहले टीम ने सिरविहीन महिला की लाश के फोटो मुंबई के समस्त थानों में भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में इस कदकाठी की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस के अलावा उन्होंने पूरे जिले में सार्वजनिक जगहों पर महिला की शिनाख्त के संबंध में पैंफ्लेट भी चिपकवा दिए. पुलिस टीम को इस केस पर काम करते हुए करीब 3 हफ्ते बीत गए, लेकिन लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी.

8 दिसंबर, 2013 को उदय गुप्ता नाम का एक व्यक्ति भिवंडी के शांतीनगर थाने पहुंचा. उस ने बताया कि उस की मां कलावती गुप्ता पिछले महीने की 17 तारीख से लापता है. शांति नगर थाने के नोटिस बोर्ड पर वालीव थाना क्षेत्र में मिली एक अज्ञात महिला की सिरविहीन लाश की फोटो लगी हुई थी. इसलिए थानाप्रभारी ने उदय गुप्ता से कहा, ‘‘पिछले महीने वालीव थाना क्षेत्र में एक अज्ञात महिला की लाश मिली थी, जिस का फोटो नोटिस बोर्ड पर लगा हुआ है. आप उस फोटो को देख लीजिए.’’

उदय गुप्ता तुरंत नोटिस बोर्ड के पास गया और वहां लगे फोटो को देखने लगा. उन में एक फोटो पर उस की नजर पड़ी. उस फोटो को देख कर उदय गुप्ता रोआंसा हो गया. क्योंकि उस की मां फोटो में दिखाई दे रही महिला की कद काठी से मिलतीजुलती थी और वैसे ही कपड़े पहने हुए थी. उस तसवीर के नीचे वालीव थाने का फोन नंबर लिखा था. उदय गुप्ता तुरंत वालीव थाने जा कर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते से मिला और अपनी मां के गायब होने की बात बताई. राजेंद्र मोहिते उदय गुप्ता को जे.जे. अस्पताल ले गए.

मोर्चरी में रखी लाश और उस के कपड़े जब उदय गुप्ता को दिखाए गए तो वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने लाश की पहचान अपनी मां कलावती गुप्ता के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. उदय गुप्ता ने यह सूचना अपने पिता रामआसरे गुप्ता को दे दी थी. खबर मिलते ही वह वालीव थाने पहुंच गए थे. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते ने घर वालों से पूछा कि कलावती गुप्ता जब घर से निकली थी तो उस के साथ कौन था. उदय ने बताया, ‘‘उस दिन मां एक परिचित रामधनी यादव के साथ गई थी. उस के बाद वह वापस नहीं लौटी. हम ने रामधनी से पूछा भी था, लेकिन उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था.’’

रामधनी यादव सांताकु्रज क्षेत्र स्थित गांव देवी में रहता था. पुलिस टीम ने पूछताछ के लिए रामधनी यादव को उठा लिया. उस से कलावती गुप्ता की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाई गई थी और इस में कई और लोग शामिल थे. उस से की गई पूछताछ में कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाए जाने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. 55 वर्षीया कलावती गुप्ता मुंबई के सांताकु्रज (पूर्व) के वाकोला पाइप लाइन के पास गांवदेवी में रहती थी. उस के 2 बेटे थे उदय गुप्ता और राधेश्याम गुप्ता. राधेश्याम विकलांग था और अकसर बीमार रहता था. बेटे की वजह से कलावती काफी चिंतित रहती थी. एक दिन पास के ही रहने वाले रामधनी ने उसे सांताकु्रज की एअर इंडिया कालोनी क्षेत्र के कालिना में रहने वाले ओझा सर्वजीत कहार के बारे में बताया.

बेटा ठीक हो जाए, इसलिए वह रामधनी के साथ ओझा के पास गई. इस के बाद तो वह हर मंगलवार और रविवार को रामधनी के साथ उस तांत्रिक के पास जाने लगी. सिर्फ कलावती का बेटा ही नहीं, बल्कि रामधनी की बीवी भी बीमार रहती थी. रामधनी उसे भी उस तांत्रिक के पास ले जाता था. रामधनी का एक भाई था गुलाब शंकर यादव. गुलाब की बीवी बहुत तेजतर्रार थी. वह किसी न किसी बात को ले कर अकसर उस से झगड़ती रहती थी. जिस से घर में क्लेश रहता था. घर का क्लेश किसी तरह खत्म हो जाए, इस के लिए गुलाब भी उस तांत्रिक के पास जाता था.

एक दिन तांत्रिक Tantric Stories सर्वजीत कहार ने रामधनी और गुलाब को सलाह दी कि अगर वह किसी इंसान की बलि चढ़ा देंगे तो सारी मुसीबतें हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. दोनों भाई अपने घर में सुखशांति चाहते थे, लेकिन बलि किस की चढ़ाएं, यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. इसी बीच उन के दिमाग में विचार आया कि कलावती की ही बलि क्यों न चढ़ा दी जाए. कलावती सीधीसादी औरत थी, साथ ही वह खुद भी तांत्रिक के पास जाती थी. इसलिए वह उन्हें आसान शिकार लगी. यह बात उन लोगों ने तांत्रिक से बताई. चूंकि बलि देना तांत्रिक के बस की बात नहीं थी, इसलिए उस ने अपने फुफेरे भाई सत्यनारायण, उस के बेटे पंकज नारायण और श्यामसुंदर से बात की तो वे यह काम करने के लिए तैयार हो गए.

15 नवंबर, 2013 को सांताकु्रज के वाकोला इलाके में रहने वाले गुलाब शंकर यादव के घर तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर, सत्यनारायण, पंकज और रामधनी ने एक मीटिंग कर के योजना बनाई कि कलावती की कब और कहां बलि देनी है. उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए मुंबई से काफी दूर नालासोपारा के वसई इलाके में स्थित मातामंदिर को चुना. इसी के साथ तांत्रिक ने रामधनी को पूजा के सामान की लिस्ट भी बनवा दी. अगले दिन 16 नवंबर, 2013 को रामधनी कलावती गुप्ता के घर पहुंच गया. उस ने उस से कहा कि अगर उसे अपने बेटे की तबीयत हमेशा के लिए ठीक करनी है तो आज नालासोपारा स्थित माता के मंदिर में होने वाली पूजा में शामिल होना पड़ेगा. यह पूजा तांत्रिक सर्वजीत ही कर रहे हैं. बेटे की खातिर कलावती तुरंत रामधनी के साथ चलने को तैयार हो गई. रामधनी कलावती को ले कर पहले अपने भाई गुलाब यादव के घर गया.

वहां योजना में शामिल अन्य लोग भी बैठे थे. कलावती को देख कर वे लोग खुश हो गए और पूजा का सामान और कलावती को ले कर सीधे नालासोपारा स्थित मंदिर पहुंच गए. वहां पहुंच कर ओझा ने एक गद्दी डाल कर उस पर पूजा का सारा सामान रख कर मां काली की पूजा करनी शुरू कर दी. उस ने कलावती के हाथ में भी एक सुलगती हुई अगरबत्ती दे दी तो वह भी पूजा करने लगी. थोड़ी देर में तांत्रिक इस तरह से नाटक करने लगा, जैसे उस के अंदर देवी का आगमन हो गया हो. वहां मौजूद अन्य लोग तांत्रिक के सामने हाथ जोड़ कर अपनीअपनी तकलीफें दूर करने को कहने लगे. रामधनी ने कलावती से कहा कि वह भी सिर झुका कर देवी से अपनी परेशानी दूर करने को कहे. भोलीभाली कलावती को क्या पता था कि सिर झुकाने के बहाने उस की बलि चढ़ाई जाएगी.

उस ने जैसे ही तांत्रिक के चरणों में सिर झुकाया, श्यामसुंदर गुप्ता ने पीछे से उस के बाल कस कर पकड़ते हुए चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. चाकू लगते ही कलावती खून से लथपथ हो कर तड़पने लगी. वहां मौजूद अन्य लोगों ने उसे कस कर दबोच लिया और उसी चाकू से उस की गरदन काट कर धड़ से अलग कर दी. कलावती की बलि चढ़ा कर रामधनी और उस का भाई खुश हो रहे थे कि अब उन के यहां की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी. वे कलावती की कटी गरदन को वहां से दूर डालना चाहते थे, ताकि उस की लाश की शिनाख्त न हो सके. उन लोगों ने उस की गरदन को अपने साथ लाई गई काले रंग की प्लास्टिक की थैली में रख लिया. तत्पश्चात वह थैली मुंबई अहमदाबाद राजमार्ग पर स्थित वासाडया ब्रिज से नीचे पानी में फेंक दी.

रामधनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने कलावती गुप्ता की हत्या में शामिल रहे अन्य अभियुक्तों, तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर जवाहर गुप्ता, सत्यनारायण और पंकज को भी गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर कलावती का सिर, हत्या में प्रयुक्त चाकू और अन्य सुबूत बरामद कर लिए. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. ढोंगी Tantric Stories तांत्रिक, पाखंडी आए दिन लोगों को अपने चंगुल में फांसते रहते हैं. इन के चंगुल में फंस कर अनेक परिवार बर्बाद हो चुके हैं. ऐसे तांत्रिकों, पाखंडियों पर शिकंजा कसने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने जादूटोना प्रतिबंध विधेयक पारित किया था.

यह विधेयक पिछले 18 सालों से विवादों से घिरा हुआ था. लेकिन इस बिल को पारित हुए एक दिन भी नहीं बीता था कि 55 वर्षीय कलावती गुप्ता की बलि चढ़ा दी गई. सरकार को चाहिए कि इस बिल को सख्ती के साथ अमल में लाए, ताकि तांत्रिकों, पाखंडियों पर अंकुश लग सके.