दूदानी का काला कारनामा जिसने सबको हिला दिया – भाग 2

पुलिस के निशाने पर आने के बाद अभिनेत्री ममता कुलकर्णी अपनी सफाई में बहुत कुछ कह चुकी है, मसलन मुझे आश्चर्य है कि मेरा नाम ड्रग तस्करी से जोड़ा जा रहा है, लेकिन दूदानी के साथ उजागर हुए नए रिश्तों ने एक बार फिर ममता और विक्की को कटघरे में खड़ा कर दिया है. अब जबकि सुभाष दूदानी अपने भतीजे रवि दूदानी के साथ गिरफ्त में आ गया है तो पुलिस को ममता और विक्की की भी बेसब्री से तलाश है.

जानकार सूत्रों की मानें तो सुभाष दूदानी की गिरफ्तारी के बाद इस बात का भी खुलासा हुआ है कि राजस्थान के पुष्कर में अकसर होने वाली रेव पार्टियों में मेंड्रेक्स की सप्लाई भी दूदानी द्वारा ही की जा रही थी. इस में कोई शक नहीं कि पुलिस ने रेव पार्टियों में नशेबाज पर्यटकों की धरपकड़ तो की, लेकिन नशे की सप्लाई के स्रोत को खंगालने में पूरी कोताही बरती.

दूदानी से पूछताछ में नशीली दवाओं के कारोबार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितनी लंबीचौड़ी चेन का खुलासा हुआ है, वह स्तब्ध करने वाला है. दिलचस्प बात यह है कि इन का नेटवर्क यूके, यूएस और दक्षिणी अफ्रीका समेत कई देशों में फैला हुआ है. यानी उदयपुर जैसे शांत शहर से नशे की इतनी बड़ी खेप भारत के विभिन्न इलाकों के अलावा नाइजीरिया और मंगोलिया आदि देशों तक जा रही थी.

नशे के जहरीले कारोबार की बखिया उधेड़ने में जुटी डीआरडीआई की टीम ने सुभाष दूदानी से संपर्क रखने वाले मुंबई निवासी परमेश्वर व्यास और अतुल म्हात्रे को भी दबोच लिया है. जानकार सूत्रों के मुताबिक परमेश्वर व्यास पिछले 20 सालों से सुभाष दूदानी का मित्र होने के अलावा उस का वित्तीय और रासायनिक सलाहकार बना हुआ था. म्हात्रे से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार किया है कि वो कैमिकल इंजीनियर होने के नाते ड्रग्स के निर्माण के लिए तकनीकी सलाह देता था.

इस खुलासे के रहस्यों का पिटारा तो बहुत बड़ा है, लेकिन फिलहाल डीआरडीआई ने उदयपुर के इर्दगिर्द वह ‘स्वर्ण गलियारा’ खोज लिया है, जिसे सुभाष दूदानी ने अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के कथित पति विक्की गोस्वामी की मदद से मेंड्रेक्स सरीखी नशीली ड्रग की तस्करी का ट्रांजिट पौइंट बना दिया था. सुभाष दूदानी द्वारा केक और टैबलेट्स की शक्ल में तैयार की गई ड्रग्स को निर्विघ्न रूप से विदेशों में अपने कारोबारी संपर्कों तक भेजा जाना था.

इस के खुलासे से जो बातें पता चली हैं, उस से जाहिर होता है कि उस का इरादा खुफिया एजेंसियों की चौकसी को अंडरएस्टीमेट कर के अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकने का था. इसी मुगालते में दूदानी द्वारा ड्रग्स की तस्करी को पुलिस की निगाहों से बचाने के लिए मौकड्रिल की जा रही थी.

पूछताछ में दूदानी ने बताया कि ड्रग्स बनाने की मशीनरी को समुद्री रास्ते से आयात किए जाने के दौरान ही उसे यह उपाय सूझा था. यानी एक तरफ ड्रग्स तैयार की जा रही थी तो दूसरी तरफ समुद्री रास्ते से सीमेंट और लाइम स्टोन पाउडर केक की शक्ल में बाहर भेजा जा रहा था.

यह मौकड्रिल खुफिया एजेंसियों के अफसरों को भ्रम में डालने के लिए थी ताकि जब भी वह ड्रग्स को केक की शक्ल में भेजे तो यह भ्रम ड्रग्स कारोबार को परदेदारी का अचूक हथियार बना रहे. इस योजना के तहत ही सुभाष दूदानी अडानी पोर्ट से 2 बार दिखावटी केक भेजने के बाद एक बार 5 मीट्रिक टन नशीली गोलियां भेजने में सफल भी रहा था. इस निर्विघ्न मौकड्रिल ने उस के हौसले बुलंद कर दिए थे.

इसी के चलते इस बार वह 24 टन की तैयारशुदा नशीली खेप भेजने की तैयारी में था. पूछताछ में सुभाष दूदानी ने बताया कि यह आखिरी खेप थी. इस के बाद उदयपुर की फैक्ट्री को बंद कर दिया जाता. उधर राजस्व अधिकारियों का कहना है कि ड्रग्स की यह बड़ी खेप अगर विदेशों में पहुंच जाती तो सुभाष दूदानी को लागत का चार गुना मुनाफा मिल जाता. इस के बाद संभवत: उसे कुछ करने की जरूरत नहीं रह जाती.

डीआरआई टीम ने जब फैक्ट्री पर छापा मारा, तब तक सारी मशीनें उखाड़ी जा चुकी थीं. कलपुर्जे अलगअलग कर के कबाड़ के भाव बेचे जा चुके थे. इस तोड़फोड़ का किसी को पता तक नहीं चला था. जेसीबी मशीन चला कर मशीनरी की बुनियाद तक को बराबर कर दिया गया था. सब कुछ नेस्तनाबूद करने का काम सिर्फ घोईदा फैक्ट्री में ही हो पाया था. गुडली और कलड़वास का माल भेजने के बाद वहां भी फैक्ट्रियों का भी नामोनिशान मिटा दिया जाता था, लेकिन उस से पहले ही दूदानी के काले कारनामों का परदाफाश हो गया.

दिलचस्प बात यह है कि इन फैक्ट्रियों की बुनियाद सन औप्टिकल और सीडी बनाने के नाम पर डाली गई थी. लेकिन सौ करोड़ की लागत की फैक्ट्रियों में कुछ दिन ही उत्पादन हो पाया. धंधे में आई मंदी के कारण इस काम को बंद करना पड़ा.

इस काम के लिए सुभाष दूदानी इंडियन ओवरसीज बैंक से 21 करोड़ का कर्ज ले चुका था, लेकिन भुगतान का सिलसिला कुछ समय तक ही चला. बाद में नुकसान बता कर दूदानी ने रकम चुकाने से इनकार कर दिया था. नतीजतन बैंक फैक्ट्री को सीज कर के नीलामी की तैयारी कर रहा था. लेकिन बैंक अधिकारी उस समय हैरान रह गए जब उन्हें सीज फैक्ट्री में काला कारोबार चलने की खबर मिली.

बहरहाल, सुभाष दूदानी शिकंजे में आया भी तो इसी वजह से. सीबीआई इंडियन ओवरसीज बैंक के कर्ज अदायगी के मामले में पहले ही सुभाष दूदानी के मुंबई स्थित ठिकाने पर छापा मार चुकी थी. उस ने यह काररवाई बैंक की शिकायत पर की थी.

शिकायत में कहा गया था कि दूदानी ने कर्ज में ली गई रकम निश्चित उद्देश्य पर खर्च करने के बजाय इधरउधर कर दी है. जिन कार्यों में रकम का निवेश बताया गया है, उस के कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. बैंक अधिकारियों ने माल निर्यात के बिलों और बिल्टियों को भी संदिग्ध बताया था. यह भी एक वजह रही कि सीबीआई के संदेह के घेरे में आ जाने के कारण सुभाष दूदानी बचा हुआ तैयारशुदा माल निर्यात करने में विफल रहा.

सुभाष दूदानी को विदेशों में ड्रग्स भेजने के तरीके और ठौरठिकानों का मशविरा भी दुबई का तस्कर लियोन देता था. पकड़ा गया माल मोजांबिक और मालवाई भिजवाना था. सूत्रों की मानें तो वर्ष 2004-05 के दरमियान दूदानी ने दुनिया में प्लेनेट औप्टिकल डिस्क बनाने का प्लांट लगाया था. इस प्लांट से उस ने काफी पैसा कमाया. नतीजतन उत्कर्ष के उस दौर में उसे प्रमुख उद्योगपति का सम्मान भी मिला. किंतु वर्ष 2010 में उस का धंधा चौपट हो गया.

तबाही के इस दौर में ही उस की मुलाकात लियोन से हुई थी. दूदानी को नशे के काले कारोबार में धकेलने का काम भी उसी ने किया. लियोन का उसे दिया गया व्यावसायिक मंत्र था ‘कौडि़यों के खर्च में करोड़ों का मुनाफा कमाओ’. उसी ने दूदानी का ज्ञानार्जन किया कि मेथाक्यूलिन से ड्रग्स कैसे बनाई जाती है.

दूदानी का काला कारनामा जिसने सबको हिला दिया – भाग 1

2016 के अप्रैल माह में जब महाराष्ट्र की ठाणे पुलिस ने सोलापुर में एक फार्मा कंपनी ‘एवान लाइफ साइंसेज लिमिटेड’ पर छापा मार कर तकरीबन 2 हजार करोड़ की नशीली ड्रग एफिड्रिन की 20 करोड़ की खेप बरामद की थी तो आरोपियों में गुजरे जमाने की अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के तथाकथित पति अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्कर विक्की गोस्वामी का नाम सामने आया था.

इस मामले में जांच के बाद जून 2016 में इस रैकेट के सरगना मनोज जैन समेत 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. तब पुलिस ने कल्पना तक नहीं की थी कि इस रैकेट के तार राजस्थान के शहर उदयपुर से भी जुड़े हो सकते हैं. ज्ञातव्य हो कि एफिड्रिन का इस्तेमाल एक्सटेसी जैसी उच्चकोटि की नशीली टैबलेट बनाने में किया जाता है. कनाडा और अमेरिका के छात्रों और खिलाडि़यों के बीच इस की मांग ज्यादा है.

केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के खुफिया निदेशालय डीआरडीआई ने जब मध्य अक्तूबर में उदयपुर जिले के कलड़वास औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्ट्री के गोदाम पर छापा मार कर लगभग 7 हजार करोड़ रुपए मूल्य की तकरीबन 24 टन नशीली ड्रग्स मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन की गोलियां बरामद कीं तो राज्य की वसुंधरा सरकार के होश फाख्ता हो गए. इसे अब तक की दुनिया की सब से बड़ी बरामदगी बताया गया है. राज्य सरकार में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया इसी शहर के रहने वाले हैं. अपने शहर में इतने बड़े रैकेट के खुलासे से वह स्तब्ध हैं.

घटना से जुड़े 2 बड़े खुलासों ने मुंबई अंडरवर्ल्ड को भी हैरानी में डाल दिया है. पहला यह कि समाजसेवी का मुखौटा ओढ़ कर सुभाष दूदानी और उस के भतीजे रवि दूदानी ने न केवल नशे का इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया बल्कि अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहीम सरपरस्ती भी हासिल कर ली. और दूसरा यह कि इस रैकेट के दूसरे सिरे की डोर 90 के दशक की खूबसूरत, बोल्ड और सैक्स सिंबल कही जाने वाली अभिनेत्री ममता कुलकर्णी और उस के कथित प्रेमी विक्की गोस्वामी ने थाम रखी थी. डीआरडीआई के दावे को सही मानें तो ममता कुलकर्णी इंटरनेशनल ड्रग्स सिंडिकेट में भी शामिल है.

ममता कुलकर्णी और विक्की गोस्वामी के साथ सुभाष दूदानी की कारोबारी डोर जुड़ने की कहानी को समझने के लिए हमें नब्बे के दशक की शुरुआत में जाना होगा. उन दिनों विक्की गोस्वामी जब शराब तस्करी के धंधे में उलझा हुआ था, तभी उस की मुलाकात विपिन पांचाल नाम के शख्स से हुई. उस ने विक्की को ड्रग कारोबार की अहमियत समझाते हुए उस का परिचय मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन से करवाया. इस के बाद वह विपिन पांचाल के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा करने लगा.

1993 में जब पांचाल पकड़ा गया तो कारोबार की पूरी बागडोर विक्की के हाथों में आ गई. विक्की ने मुंबई में पैर जमा कर इस कारोबार को पंख लगा दिए. ड्रग्स के कारोबार के चलते उस ने पहले तो अंडरवर्ल्ड में अपनी पैठ बनाई, फिर अपने बूते पर डौन दाऊद इब्राहीम तथा छोटा राजन से करीबी रिश्ते कायम कर लिए.

हाईप्रोफाइल पार्टियों की जान समझी जाने वाली मेंड्रेक्स की सप्लाई के दम पर उस ने कई फिल्मी हस्तियों से अपने नजदीकी ताल्लुकात बना लिए. इसी दौरान विक्की की जानपहचान ममता कुलकर्णी से हुई. दोनों के बीच कुछ ऐसी पटरी बैठी कि जल्दी ही दोनों रिलेशनशिप में साथसाथ रहने लगे. यहां द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट का हवाला देना जरूरी होगा, जिस में कहा गया था कि नब्बे के दशक की शुरुआत के साथ ही हाईप्रोफाइल तबके में ड्रग पार्टियां सब से चर्चित सेनेरियो बन चुकी थीं.

दिलचस्प बात यह है कि यह वह दौर था, जब ममता और विक्की गोस्वामी मुंबई की हाईप्रोफाइल पार्टियों में दूदानी द्वारा निर्मित ड्रग्स टैबलेट सप्लाई करते थे. कहा जाता है कि इस खेल को निर्विघ्न बनाए रखने में गुजरात के 4 वरिष्ठ अधिकारियों की भी पूरी शह थी.

सुभाष दूदानी ड्रग कारोबार में कैसे आया, इस की शुरुआत भी नब्बे के दशक में हुई थी. दूदानी ने अपनी कारोबारी शुरुआत फिल्म ‘विकल्प’ के निर्माण से की, लेकिन फिल्म फ्लौप हो गई. अलबत्ता फिल्म निर्माण से उस के परिचय के दायरे में नामचीन फिल्मी हस्तियां जरूर आ गईं. उन में ममता कुलकर्णी भी शामिल थी. कहते हैं, ममता कुलकर्णी ने ही उस की मुलाकात विक्की गोस्वामी से कराई. तब तक विक्की गोस्वामी जांबिया शिफ्ट हो चुका था और कुछ रसूखदार लोगों की मदद से मेंड्रेक्स बनाने की फैक्ट्री लगाने की फिराक में था. लेकिन बात नहीं बनी.

इस बीच वह पुलिस की निगाहों में चढ़ चुका था. इसी वजह से उस ने फैक्ट्री लगाने का इरादा छोड़ दिया और साथ ही जांबिया भी. जांबिया से भाग कर उस ने दुबई में पनाह ले ली. इस बीच वह सिर्फ इतना ही कर सका कि उस ने मेंड्रेक्स बनाने की पूरी योजना सुभाष दूदानी के हवाले कर दी.

कहा तो यहां तक जाता है कि दूदानी को मेंड्रेक्स की सप्लाई चेन उपलब्ध कराना भी विक्की गोस्वामी का ही काम था. फिलहाल भले ही ममता कुलकर्णी और विक्की गोस्वामी का ठिकाना केन्या में बताया जाता है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगर दूदानी के कारोबार में लगातार बरकत हुई है तो उस की वजह विक्की और ममता कुलकर्णी के साथ उस का गठजोड़ है.

जिस समय दूदानी डीआरडीआई की गिरफ्त में आया, उस दौरान वह सप्लाई को सुलभ बनाने के लिए एक नया प्रयोग कर रहा था. उस ने सोचा था कि ड्रग्स को अगर केक की शक्ल में बना कर भेजा जाए तो संदेह की गुंजाइश कम हो सकती है. लेकिन वह अपनी योजना पर अमल कर पाता, इस से पहले ही वह डीआरडीआई की गिरफ्त में आ गया. सूत्रों के मुताबिक, जब्त किया गया 24 टन माल केक के रूप में बाहर भेजने की तैयारी थी. इसे मोजांबिक और मालवाई भेजा जाना था.

ड्रग तस्करी के कारोबार के लिए दूदानी के 3 ठिकाने थे मुंबई, दुबई और उदयपुर. उदयपुर उस का स्थाई निवास होने के कारण मेंड्रेक्स के निर्माण और तस्करी के लिहाज से सर्वाधिक सुरक्षित था. सुभाष दूदानी को मेंड्रेक्स बनाने का मशविरा दुबई के तस्कर लियोन ने भी दिया था. लियोन ने इस काम में तकनीकी मदद के लिए उसे सीरिया निवासी एक डाक्टर से भी मिलवाया था.

वह डाक्टर सुभाष दूदानी के मकसद में काफी मददगार साबित हुआ. लियोन ने दूदानी को मेंड्रेक्स बनाने का रासायनिक फार्मूला तो दिया ही, साथ ही 10 करोड़ की मशीनें लगाने के लिए फाइनेंसर से भी मिलवा दिया. लियोन का मशविरा दूदानी को इसलिए भी पसंद आया था, क्योंकि उस के कहे मुताबिक मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन ड्रग्स खाड़ी देशों और यूके में सब से ज्यादा प्रचलित ड्रग हैं. लियोन का कहना था कि भले ही इस का उत्पादन खर्चीला है, लेकिन इस में मुनाफा भारीभरकम मिलता है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 3

दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.

इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.

लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.

कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.

इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.

सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.

इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.

सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.

चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?

अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 2

थाना यरवदा पुलिस ने उसी समय नैना का हुलिया बता कर पुणे के सभी थानों को उन की गुमशुदगी की सूचना दे दी. 9 अक्तूबर, 2009 को किसी व्यक्ति ने पुणे के थाना खेड़ पुलिस को सूचना दी कि राजगुरुनगर के वनविभाग परिसर में जारेवाड़ी फाटे के पास गंदे नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना खेड़ पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

लाश देख कर पुलिस को यह अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि यरवदा पुलिस ने जिस युवती की गुमशुदगी की सूचना दी है, यह लाश उसी की हो सकती है. थाना खेड़ पुलिस ने इस बात की जानकारी थाना यरवदा पुलिस को दी तो थाना यरवदा पुलिस अभिजीत को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई. अभिजीत के साथ उस के कुछ रिश्तेदार भी थे.

लाश का चेहरा भले ही बुरी तरह कुचला था, लेकिन लाश देखते ही अभिजीत ही नहीं, उन के साथ आए रिश्तेदार भी फूटफूट कर रोने लगे. इस का मतलब वह लाश नैना की ही थी. लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस नैना के हत्यारों तक पहुंच पाती. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

नौकरी करने वाली हर लड़की बैग और मोबाइल रखती है. बैग में छोटीमोटी जरूरत की चीजों के अलावा डेबिटक्रेडिट कार्ड भी होते हैं. पूछताछ में पता चला कि इस सब के अलावा नैना सोने की चूडि़यां, बाली और मंगलसूत्र पहने थी. उस का मोबाइल और बैग तो गायब ही था, वह जो गहने पहने थी, वे सब भी गायब थे. इस से पुलिस को यही लगा कि किसी ने लूट के लिए उस की हत्या कर दी है.

लेकिन जब नैना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो मामला ही उलट गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नैना के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि नैना की हत्या लूट के लिए नहीं, बल्कि दुष्कर्म के बाद की गई थी, जिस से दुष्कर्मियों का अपराध उजागर न हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नैना पुजारी के अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और लूट का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी. यह ऐसी घटना थी, जिस ने सब को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी ओर उन महिलाओं के मन में भी डर समा गया था, जो नौकरी करती हैं. क्योंकि किसी के साथ भी ऐसा हो सकता था.

पुलिस ने नैना के हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच उन की कंपनी से शुरू की. पूछताछ में पता चला कि उस दिन नैना बस से घर नहीं गई थीं. पुलिस को यह भी पता चला कि नैना के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले गए थे. पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई तो उस में जो फोटो मिले, उस के आधार पर पुलिस योगेश से पूछताछ करने उस के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. आखिर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2009 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने साथियों के नाम भी बता दिए. इस के बाद पुलिस ने महेश ठाकुर, राजेश चौधरी और विश्वास कदम को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में चारों ने नैना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म और लूट के बाद उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने नैना का सारा सामान चारों से बरामद कर लिया. इस मामले के खुलासे के बाद कंपनी में ही काम करने वालों द्वारा इस तरह का अपराध करने से लड़कियों और महिलाओं के मन में डर समा गया कि जब साथ काम करने वाले ही इस तरह का काम कर सकते हैं तो वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी. नौकरी करने वाली हर महिला को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी थी. इस बात को ले कर धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. एक ओर धरनाप्रदर्शन हो रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस अपना काम कर रही थी. पूछताछ कर के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने जांच पूरी कर के 12 जनवरी, 2010 को चारों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी थी. इस के बाद न्यायाधीश श्री एस.एम. पोडिलिकार ने चारों का नारको टेस्ट कराया और इस केस को लड़ने के लिए हर्षद निंबालकर को सरकारी वकील नियुक्त किया. पुलिस को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक चश्मदीद गवाह की जरूरत थी. पुलिस ने राजेश चौधरी से बात की तो वह वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया. इस तरह 4 लोगों में राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन गया तो 3 अभियुक्त ही बचे.

इस केस की सुनवाई चल रही थी, तभी एक घटना घट गई. इस मामले का मुख्य अभियुक्त योगेश राऊत 30 अप्रैल, 2011 को फरार हो गया. हुआ यह कि उस ने जेल प्रशासन से शिकायत की कि उस के शरीर में खुजली हो रही है. उसे जेल के अस्पताल में दिखाया गया, लेकिन वहां उसे कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद उसे पुणे के ससून अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे भरती करा दिया. उसी बीच टायलेट जाने के बहाने वह पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग निकला.

पैसे उस के पास थे ही, इसलिए जब वह अस्पताल से बाहर आया तो उसे भाग कर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, उस ने यह काम योजना बना कर किया था. इसलिए जब वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती हुआ तो उस का भाई उस से मिलने आया.

उसी दौरान उस ने योगेश को खर्च के लिए 4 हजार रुपए दे दिए थे. इसलिए अस्पताल से निकलते ही योगेश ने औटो पकड़ा और दौड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से टे्रन पकड़ कर वह गुजरात के सूरत शहर चला गया. उसे यह शहर छिपने के लिए ठीक नहीं लगा तो वह वहां से दिल्ली चला गया.

 

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 1

9 मई, 2017 को पुणे के सैशन कोर्ट के जज श्री एल.एल. येनकर की अदालत में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि वह 8 साल पुराने एक बहुत ज्यादा चर्चित नैना पुजारी के अपहरण, गैंगरेप, लूट और मर्डर के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले थे. चूंकि यह बहुत ही चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वालों के अलावा अन्य लोगों को इस मामले में काफी रुचि थी.

अभियुक्तों को एक दिन पहले यानी 8 मई को सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की लंबी बहस के बाद दोषी करार दे दिया गया था, इसलिए निश्चित हो चुका था कि उन्हें इस मामले में सजा होनी ही होनी है. अब लोग यह जानना चाहते थे कि इंसान के रूप में हैवान कहे जाने वाले उन दरिंदों को क्या सजा मिलती है.

ठीक समय पर जज श्री एल.एल. येनकर अदालत में आ कर बैठे तो अदालत में सजा को ले कर चल रही खुसुरफुसुर बंद हो गई थी. जज के बैठते ही पेशकार ने फैसले की फाइल उन के आगे खिसका दी थी. जज साहब ने एक नजर फाइल पर डाली. उस के बाद अदालत में उपस्थित वकीलों, आम लोगों और अभियुक्तों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने फाइल का पेज पलटा. जज साहब ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए हम पहले इस पूरे मामले को जान लें कि नैना पुजारी के साथ कैसे और क्या हुआ था?

7 अक्तूबर, 2009 की शाम पुणे के खराड़ी स्थित सौफ्टवेयर कंपनी सिनकोन में काम करने वाली नैना पुजारी ड्यूटी खत्म कर के शाम 8 बजे घर जाने के लिए बाहर निकलीं तो अंधेरा हो चुका था. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक निकल जाती थीं लेकिन उस दिन काम की वजह से उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. शायद इसीलिए कंपनी से निकलते समय उन्होंने पति अभिजीत को फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं.

महिला कर्मचारियों को कंपनी से निकलने में देर हो जाती थी तो घर पहुंचाने की व्यवस्था कंपनी करती थी. इस के लिए कंपनी ने कैब और बसें लगा रखी थीं. लेकिन उस दिन कोई कैब नहीं थी, इसलिए नैना घर जाने के लिए बस का इंतजार करने लगीं. बस आती, उस के पहले ही उन के सामने एक कार आ खड़ी हुई.

वह कार योगेश राऊत की थी. वह कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था. नैना उसे पहचानती थीं, इसलिए जब योगेश ने बैठने के लिए कहा तो नैना उस में बैठ गईं. वह कार में बैठीं तो योगेश के अलावा उस में 2 लोग और बैठे थे. उन के नाम थे महेश ठाकुर और विश्वास कदम. ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे. महेश ठाकुर जरूरत पड़ने पर यानी बदली पर कंपनी की गाड़ी चलाता था तो विश्वास कदम सुरक्षागार्ड था.

ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे, इसलिए नैना ने कोई ऐतराज नहीं किया. लेकिन जब कार चली तो योगेश उन्हें उन के घर की ओर ले जाने के बजाय राजगुरुनगर, बाघोली की ओर ले जाने लगा. उन्होंने उसे टोका तो योगेश ने उन की बात पर पहले तो ध्यान ही नहीं दिया. जब तक ध्यान दिया, तब तक कार काफी आगे निकल चुकी थी.

नैना ने जब उस से पूछा कि वह कार इधर क्यों लाया है तो उस ने कहा कि इधर से वह अपने एक साथी को ले कर उसे उस के घर पहुंचा देगा. उस ने वहीं से फोन कर के अपने साथी राजेश चौधरी को बुलाया और उसे बैठा कर कार खेड़ की ओर मोड़ दी तो नैना को शंका हुई.

नैना ने योगेश को डांटते हुए वापस चलने को कहा तो योगेश के साथियों ने उन्हें दबोच कर चाकू की नोक पर चुप बैठी रहने को कहा. नैना ने उन के इरादों को भांप लिया. वह छोड़ देने के लिए रोनेगिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन भला वे उसे क्यों छोड़ते. वे तो न जाने कब से दांव लगाए बैठे थे. उस दिन उन्हें मौका मिल गया था. चाकू की नोक पर सभी ने चलती कार में ही बारीबारी से उन के साथ दुष्कर्म किया. इस के बाद एक सुनसान जगह पर कार रोक कर नैना का एटीएम कार्ड छीन कर उस से 61 हजार रुपए निकाले. पिन उन्होंने चाकू की नोक पर उन से पूछ ली थी.

नैना इन पापियों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर उन्हें उस पर जरा भी दया नहीं आई. उन लोगों ने उन के साथ जो किया था, किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ सकते थे. क्योंकि उन के जिंदा रहने पर सभी पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से उन्होंने स्कार्फ से गला घोंट कर उन की हत्या तो की ही, लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए पत्थर से उन के सिर को बुरी तरह कुचल दिया. इस के बाद जंगल में लाश फेंक कर सभी भाग खड़े हुए.

दूसरी ओर समय पर नैना घर नहीं पहुंचीं तो उन के पति अभिजीत को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि कंपनी से निकलते समय उन्होंने फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं. पति ने नैना के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद था, इसलिए उन की बात नैना से नहीं हो सकी. फोन बंद होने से अभिजीत परेशान हो गए. इस के बाद उन्होंने औफिस फोन किया. वहां से तो वह निकल चुकी थीं, इसलिए वहां से कहा गया कि नैना तो यहां से कब की जा चुकी हैं.

इस के बाद अभिजीत ने वहांवहां फोन कर के नैना के बारे में पता किया, जहांजहां उन के जाने की संभावना हो सकती थी. जैसेजैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन की चिंता और परेशानी बढ़ती जा रही थी. सब जगह उन्होंने फोन कर लिए थे. कहीं से भी नैना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अभिजीत की समझ में नहीं आ रहा था कि नैना ने सीधे घर आने को कहा था तो बिना बताए रास्ते से कहां चली गईं. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अब तक उन के कई रिश्तेदार भी आ गए थे. रात साढ़े 9 बजे कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना यरवदा जा कर थानाप्रभारी से मिल कर उन्होंने पत्नी नैना के घर न आने की बात बता कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

आवारगी में गंवाई जान – भाग 3

रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था.

रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई.

अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया.

रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा.

रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर ट्रेन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ा.

शायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडंजे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी.

कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया था.

इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

—कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

आवारगी में गंवाई जान – भाग 2

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…

पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था.

नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई.

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी.

पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर आ गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था.

रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी.

तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया.

एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने आ गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी न किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा.

मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी. उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

आवारगी में गंवाई जान – भाग 1

रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी. सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है.

राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे.

लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले ने ‘हैलो’ कहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार आ जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं आ कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’

अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया? बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी.

उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार आ पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था.

2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान न जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई.

तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

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अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

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3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

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अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

फरीदाबाद में भी मस्ती की पार्टी

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं.

फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं.

बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं.

फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी.

बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था.

अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे.

आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे.

इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया.

होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई.

अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया. आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी.

प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था.

रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे.

आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए.

तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं.

आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया.

कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा.

साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं.

लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया.

पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए.

लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती.

इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी.  संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था.

इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी.

प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया.

यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ.  वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे.

हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे.

थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया.

हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई.

थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया. उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया.

पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था.