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SEO Keywords: social media account hacking

साइबर क्राइम में आईपीसी और आईटी एक्ट के तहत सजा के प्रावधान

साइबर क्राइम में आईपीसी और आईटी एक्ट के तहत सजा के प्रावधान

आज का युग कंप्यूटर और इंटरनेट का युग है. कंप्यूटर की मदद के बिना किसी बड़े काम की कल्पना करना भी मुश्किल है. ऐसे में अपराधी भी तकनीक के सहारे हाईटेक हो रहे हैं. वे जुर्म करने के लिए कंप्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज और वल्र्ड वाइड वेब आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं.

औनलाइन ठगी या चोरी भी इसी श्रेणी का अहम गुनाह होता है. किसी की वेबसाइट को हैक करना या सिस्टम डेटा को चुराना ये सभी तरीके साइबर क्राइम की श्रेणी में आते हैं. साइबर क्राइम सुरक्षा और जांच एजेंसियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. इसलिए आप को समझना होगा कि साइबर अपराध क्या है, इस की रोकथाम के लिए क्या कानून हैं और उस में सजा के क्या प्रावधान हैं?

साइबर क्राइम को ले कर सख्त कानून

भारत में साइबर क्राइम के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है. सरकार ऐसे मामलों को ले कर बहुत गंभीर है. भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं. मगर इसी श्रेणी के कई मामलों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कापीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी काररवाई की जा सकती है.

कई मामलों में लागू होता है आईटी कानून

साइबर क्राइम के कुछ मामलों में आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आईटी नियम 2011 के तहत भी काररवाई की जाती है. इस कानून में निर्दोष लोगों को साजिशों से बचाने के इतंजाम भी हैं. लेकिन कंप्यूटर, इंटरनेट और दूरसंचार इस्तेमाल करने वालों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि उन से जानेअनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है.

हैकिंग: धाराएं और सजा

किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफार्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना हैकिंग कहलाता है. यह उस सिस्टम की फिजिकल एक्सेस और रिमोट एक्सेस के जरिए भी हो सकती है. जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के दौरान उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो. अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है तो भी घुसपैठ करना साइबर क्राइम के तहत आता है, जिस के लिए सजा का प्रावधान है. आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66, आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत अपराध साबित होने पर 3 साल तक की जेल या 5 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.

जानकारी या डेटा चोरी

किसी व्यक्ति, संस्थान या संगठन आदि के किसी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा या सूचनाओं की चोरी करना भी साइबर क्राइम है. अगर किसी संस्थान या संगठन के अंदरूनी डेटा तक आप की पहुंच है, लेकिन आप अपनी उस जायज पहुंच का इस्तेमाल संगठन की इजाजत के बिना, उस के नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं तो वह भी इसी अपराध के दायरे में आएगा.

काल सेंटर्स या लोगों की जानकारी रखने वाले संगठनों में इस तरह की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं. ऐसे मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी), आईपीसी की धारा 379, 405, 420 और कापीराइट कानून के तहत दोष साबित होने पर अपराध की गंभीरता के हिसाब से 3 साल तक की जेल या 2 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.

वायरस, स्पाईवेयर फैलाना

अकसर कंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर को हटाने पर लोग ध्यान नहीं देते हैं. उन के सिस्टम से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं. हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाईफाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैल जाते हैं. वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी एक इंडस्ट्री है, जिन के खिलाफ वक्तवक्त पर कड़ी काररवाई होती रही है.

लेकिन आम लोग भी कानून के दायरे में आ सकते हैं. अगर उन की लापरवाही से किसी के सिस्टम में कोई खतरनाक वायरस पहुंच जाए और बड़ा नुकसान कर दे. इस तरह के केस में आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66, आईपीसी की धारा 268 और देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरस पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लगाई जाती है. दोष सिद्ध होने पर साइबर वार और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्रकैद का प्रावधान है. जबकि अन्य मामलों में 3 साल तक की जेल या जुरमाना हो सकता है.

पहचान की चोरी

किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं वगैरह का इस्तेमाल करना भी साइबर अपराध है. यदि कोई इंसान दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ईकामर्स ट्रांजैक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रौनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करके शौपिंग या धन की निकासी करता है तो वह इस अपराध में शामिल हो जाता है. जब आप किसी दूसरे शख्स के नाम पर या उस की पहचान का आभास देते हुए कोई जुर्म करते हैं या उस का नाजायज फायदा उठाते हैं तो यह जुर्म आइडेंटिटी थेफ्ट के दायरे में आता है. ऐसा करने वाले पर आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी), आईपीसी की धारा 419 लगाए जाने का प्रावधान है. जिस में दोष साबित होने पर 3 साल तक की जेल या एक लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.

ईमेल स्पूफिंग और फ्रौड

अकसर आप के इनबौक्स या स्पैम बौक्स में कई तरह के ईनाम देने वाले या बिजनैस पार्टनर बनाने वाले या फिर लौटरी निकलने वाले मेल आते हैं. ये सभी मेल किसी दूसरे शख्स के ईमेल या फरजी ईमेल आईडी के जरिए किए जाते हैं. किसी दूसरे के ईमेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ईमेल भेजना इसी अपराध की श्रेणी में आता है.

हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस, स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फरजी ईमेल का इस्तेमाल अधिक होता है. ऐसा काम करने वाले अपराधियों का मकसद ईमेल पाने वाले को धोखा दे कर उस की गोपनीय जानकारी हासिल करना होता है. ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ईकामर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं. इस तरह के मामलों में आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी, आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी, आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465 लगाए जाने का प्रावधान है. दोष साबित होने पर 3 साल तक की जेल या जुरमाना हो सकता है.

इंटरनेट के माध्यम से अश्लीलता का व्यापार भी खूब फलफूल रहा है. ऐसे में पोर्नोग्राफी एक बड़ा कारोबार बन गई है. जिस के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, औडियो और सामग्री आती है, जो यौन, यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो. ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रौनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिए प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है.

दूसरों के नग्न या अश्लील वीडियो तैयार करने वाले या ऐसा एमएमएस बनाने वाले या इलेक्ट्रौनिक माध्यमों से इन्हें दूसरों तक पहुंचाने वाले और किसी को उस की मरजी के खिलाफ अश्लील संदेश भेजने वाले लोग इसी कानून के दायरे में आते हैं.

पोर्नोग्राफी प्रकाशित करना और इलेक्ट्रौनिक जरियों से दूसरों तक पहुंचाना अवैध है, लेकिन उसे देखना, पढऩा या सुनना अवैध नहीं माना जाता. जबकि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध माना जाता है.

इस के तहत आने वाले मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 67 (ए), आईपीसी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509 के तहत सजा का प्रावधान है. जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर 5 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है लेकिन दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा 7 साल तक बढ़ सकती है.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी

बच्चों के साथ पेश आने वाले मामलों पर कानून और भी ज्यादा सख्त है. बच्चों को सैक्सुअल एक्ट में शामिल करना या नग्न दिखाना या इलेक्ट्रौनिक फार्मेट में कोई सामग्री प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना भी इसी कानून के तहत आता है. बल्कि भारतीय कानून के मुताबिक जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह भी गैरकानूनी माना जाता है.

बच्चों को बहलाफुसला कर संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उन के साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकौर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसी के तहत आते हैं. इस कानून में 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चों की श्रेणी में माना जाता है.

ऐसे मामलों में आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 67 (बी), आईपीसी की धाराएं 292, 293, 294, 500, 506 और 509 के तहत सजा का प्रावधान है. पहले अपराध पर 5 साल की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है. लेकिन दूसरे अपराध पर 7 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.

बच्चों और महिलाओं को तंग करना

आज के दौर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स खूब चलन में हैं. ऐसे में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ईमेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले अकसर सामने आते हैं. इन आधुनिक तरीकों से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर अपराध के दायरे में ही आता है. किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना, नफरत फैलाना या बदनाम करना भी इसी श्रेणी का अपराध है.

इस तरह के केस में आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए) के तहत सजा का प्रावधान है. दोष साबित होने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है.

-डा. रामअवतार शर्मा

एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट औफ इंडिया

Posted on July 15, 2023July 17, 2023Author सुनील वर्माCategories साइबर क्राइमTags अनजाने लिंक, अवैध गतिविधियां, अवैध चीजें खरीदना, एचटीटीपीएस, एपी फाइल इंस्टाल, औनलाइन ठगी, औनलाइन डेटिंग, औनलाइन धोखाधड़ी, औनलाइन फ्रौड, औनलाइन साइबर क्राइम, कापीराइट, क्लिक, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, जालसाज, टू फैक्टर, डाटा लीक, डीसीपी प्रशांत गौतम, डेटा चोरी, दिल्ली पुलिस, पब्लिक डोमेन, फरजी प्रोफाइल बनाना, फिशिंग, फिशिंग वेबपेज, मल्टी फैक्टर आथेंटिकेशन, मालवेयर, मोबाइल हैकर्स, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, शातिर अपराधी, साइबर, साइबर अपराध, साइबर क्राइम, साइबर क्राइम अपराधी, साइबर क्राइम पुलिस, साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, साइबर क्राइम स्टोरी, साइबर ठग, साइबर ठगी, साइबर धोखाधड़ी, साइबर फ्रॉड, साइबर बुलिंग, साइबर सेल, साइबरबुलिंग, साइबरस्टाकिंग, सूचना प्रौद्योगिकी (आईपीसी) अधिनियम, सेकस्टिंग, सोशल मीडिया अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट हैक, स्पैमिंग, हेल्पलाइन नंबर 1930, हैकर, हैकिंगLeave a comment
साइबर अपराधी अब बच नहीं पाएंगे – डीसीपी स्पैशल सेल

साइबर अपराधी अब बच नहीं पाएंगे – डीसीपी स्पैशल सेल

दिल्ली पुलिस की नजर में साइबर अपराध किस तरह के हैं, जिसे ले कर उन के पास शिकायतें मिलती हैं?

मूलत: साइबर अपराधी की श्रेणी इस प्रकार है—

सोशल मीडिया क्राइम: सोशल मीडिया पर फरजी प्रोफाइल बनाने के लिए आम वेबसाइट/ऐप जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डइन आदि प्रयोग किए जाते हैं. साइबरस्टाकिंग, साइबरबुलिंग, हैकिंग, सेकस्टिंग, अवैध चीजें खरीदना, फरजी प्रोफाइल बनाना, नकली औनलाइन दोस्ती सोशल मीडिया साइबर क्राइम के कुछ उदाहरण हैं.

औनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी साइबर क्राइम: इस में औनलाइन धोखाधड़ी के विभन्न रूप शामिल हैं, जैसे फिशिंग घोटाले, पहचान की चोरी, अग्रिम शुल्क धोखाधड़ी, औनलाइन नीलामी धोखाधड़ी और निवेश धोखाधड़ी.

दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराध से निपटने के लिए क्या इंतजाम किए हैं?

साइबर क्राइम सेल/यूनिट व साइबर थानों की स्थापना की गई है. साइबर क्राइम दर्ज करने की प्रक्रिया मजबूत की गई है जैसे एनसीआरपी पोर्टल, व www.cybercrime.gov.in

औनलाइन वित्तीय साइबर धोखाधड़ी हेल्पलाइन 1930.

एनसीआरपी पोर्टल पर शिकायत का क्लस्टर एनालिसिस कर के नए साइबर क्राइम करने के तरीकों की रणनीति तैयार की जाती है. साइबर क्राइम के उभरते हौटस्पौट की पहचान कर के उन के खिलाफ संयुक्त अभियान किया जाता है. अन्य एजेंसियों जैसे एफआईयू, एसएफआईयू, ईडी के सहयोग से क्रौस बौर्डर साइबर क्राइम पर अंकुश लगाया जाता है.

24 घंटों के अंदर साइबर वित्तीय धोखाधड़ी की एफआईआर व शिकायतें बैंकों के पास नियमित रूप से पहुंच रही हैं. आईएफएसओ यूनिट द्वारा 1930 हेल्पलाइन पर साइबर वित्तीय धोखाधड़ी की लौगबुक का कार्य पूरा हो गया है और लौग जेनरेट होने शुरू हो गए हैं.

बैंकों को अवकाश के दिनों में निर्बाध रूप से सेवा प्रदान करने के विषय में और साइबर वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित शिकायत की प्राप्ति व धोखाधड़ी वाले धन को अवरुद्ध करने के लिए 1930 पर काल प्राप्त करने के बीच के अंतराल को कम करने के विषय में आई4सी, एमएचए और आईएफएसओ यूनिट द्वारका, दिल्ली द्वारा विमर्श के लिए आरबीआई और बैंकों से गोष्ठी की गई व सभी बैंकों व वौलेट/एनपीसीआई को एक प्लेटफार्म पर ला कर कौमन काल सेंटर बनाने की सहमति बनी है, जिस का प्रपोजल तैयार किया जा रहा है.

साइबर क्राइम में शामिल मोबाइल नंबर व आईएमईआई की पहचान कर के उन को ब्लौक करने के लिए डिपार्टमेंट औफ टेलिकम्युनिकेशन की मदद ली जा रही है.

साइबर जागरुकता कार्यक्रम नियमित रूप से किए जाते हैं.

सभी पुलिसकर्मियों के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है.

साइबर फोरैंसिक प्रयोगशाला एनसीएफएल की स्थापना की गई है, जिस से फोरैंसिक/साइंटिफिक तफ्तीश की जा सके.

बीते सालों में कितने साइबर अपराधी पकड़ी गए हैं? उन पर कानून की किस धारा के तहत काररवाई होती है? साइबर अपराधी को किस तरह की सजा का प्रावधान है?

आईएफएसओ यूनिट द्वारा साल 2021 में 369, साल 2022 में 299 व साल 2023 में अब तक 157 साइबर अपराधी पकड़े गए हैं. जिन के खिलाफ आईटी ऐक्ट, आईपीसी व अन्य संबंधित ऐक्ट के तहत काररवाई की गई है. संबंधित धारा व ऐक्ट के तहत हर साइबर अपराधी की सजा का प्रावधान अलगअलग है.

साइबर अपराधी नएनए तरीके ईजाद कर ले रहे हैं, उसे रोकने या उस पर नजर रखने के लिए दिल्ली पुलिस की क्या तैयारी है?

एनसीआरपी पोर्टल पर शिकायत का क्लस्टर एनालिसस कर के नए साइबर क्राइम करने के तरीकों से निपटने की रणनीति तैयार की जाती है. साइबर क्राइम के उभरते हौटस्पौट की पहचान कर के उन के खिलाफ संयुक्त अभियान किया जाता है.

क्या दिल्ली पुलिस के पास सौफ्टवेयर डेवलपरों की टीम है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं?

पुलिस मुख्यालय व जिला मुख्यालय में वीडियो एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, फेशियल रिकग्निशन सिस्टम आदि की सुविधा वाले कमांड ऐंड कंट्रोल सेंटर की स्थापना ‘सेफ सिटी प्रोजेक्ट’ के तहत की जा रही है.

‘सेफ सिटी प्रोजेक्ट’ के तहत निवारक और उपचारात्मक काररवाइयों के लिए वीडियो का और विश्लेषण और काररवाई योग चेतावनियां/अलर्ट तैयार किया जाएगा.

साइबर क्राइम द्वारा वसूली की रकम या खाते में सेंधमारी कर हड़पी गई राशि को वापस दिलवाने के तरीके क्या हैं?

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अध्याय 34 के अंतर्गत साइबर क्राइम द्वारा वसूली की रकम या खाते में सेंधमारी कर हड़पी गई राशि की वापसी का प्रावधान है. लेकिन संबंधित बैंक या पुलिस को इस की सूचना दी जानी चाहिए.

सामान्य नागरिकों को पुलिस द्वारा ऐहतियात बरतने के लिए किस तरह की जानकारी दी जाती है?

पुलिस नागरिकों को मजबूत पासवर्ड रखने, सुरक्षित औनलाइन अभ्यास करने, सुरक्षित औनलाइन खरीदारी और बैंकिंग प्रथाओं पर मार्गदर्शन प्रदान करने जैसे विश्वसनीय वेबसाइटों और भुगतान गेटवे का उपयोग करने, सुरक्षित वेबसाइट संकेतकों (जैसे एचटीटीपीएस) की जांच करने और नियमित रूप से वित्तीय लेनदेन की निगरानी करने की सलाह देती है.

किसी भी अनधिकृत गतिविधि के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर गोपनीयता सेटिंग्स के बारे में व्यक्तियों को शिक्षित करना, संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक रूप से साझा करने के जोखिम और फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार करते समय या अज्ञात व्यक्तियों के साथ औनलाइन बातचीत करते समय सतर्क रहने का महत्त्व, टू फैक्टर आथेंटिकेशन या मल्टी के उपयोग को प्रोत्साहित करना, फैक्टर आथेंटिकेशन जहां भी उपलब्ध हो. यह उपयोगकर्ताओं को उन के पासवर्ड के साथ एक पंजीकृत मोबाइल नंबर या ईमेल पर भेजे गए कोड जैसे एक अतिरिक्त सत्यापन कारक प्रदान करने की आवश्यकता के द्वारा सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जोड़ता है.

क्या साइबर अपराध की तहकीकात के दरम्यान पीडि़त के साथ भी काररवाई होती है?

जांच प्रक्रिया में सबूत इकट्ठा करने के लिए पीडि़त के डिजिटल उपकरणों, नेटवर्क लौग या अन्य प्रासंगिक जानकारी की जांच शामिल हो सकती है. यह साइबर अपराध की प्रकृति को समझने, संभावित कमजोरियों की पहचान करने और सबूत इकट्ठा करने के लिए किया जाता है, जिस का उपयोग मामले की जांच और अभियोजन में किया जा सकता है.

बदनाम करने के लिए वायरल किए गए वीडियो, औडियो या तसवीरों की फैक्ट चेकिंग का कोई तरीका ईजाद किया गया है?

फोरैंसिक विश्लेषण: मीडिया सामग्री की प्रामाणिकता और अखंडता का विश्लेषण करने के लिए उन्नत फोरैंसिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है. इस में डिजिटल फिंगरप्रिंट की जांच करना, हेरफेर के संकेतों की पहचान करना या छेड़छाड़ के संकेतों के लिए औडियो तरंगों का विश्लेषण करना शामिल हो सकता है.

जियोलोकेशन और टाइमस्टैंप वेरिफिकेशन: ओएसआईएनटी टूल्स का इस्तेमाल लोकेशन और टाइमस्टैंप को वेरिफाई करने के लिए किया जाता है. यह सामग्री के संदर्भ और सटीकता को स्थापित करने में मदद करता है.

विशेषज्ञ परामर्श: जटिल मामलों में, तथ्य जांचकर्ता अतिरिक्त अंतर्दृष्टि और विशेषज्ञता हासिल करने के लिए छवि फोरैंसिक, औडियो विश्लेषण या वीडियो संपादन जैसे क्षेत्रों में विषयवस्तु विशेषज्ञों या विशेषज्ञों से परामर्श कर सकते हैं.

इन सब के अलावा जागरुकता की जरूरत है. आजकल साइबर ठग बुजुर्गों को आसानी से अपना निशाना बना रहे हैं. यूटिलिटी कनेक्शन काटने, पेंशन अकाउंट को वेरिफाई करने, अस्पताल में अपौइंटमेंट लेने, उपकरण ठीक करवाने आदि के नाम पर खूब ठगी हो रही है.

यदि कोई आप से क्यूआर कोड स्कैन करवा रहा है तो सतर्क हो जाएं. प्लेस्टोर से फालतू के ऐप इंस्टाल करने से बचना चाहिए. इस के बजाय अस्पताल या संबंधित सर्विस की वेबसाइट पर जाएं.

अपने फोन को सुरक्षित रखने के लिए जैरूरी है कि फोन लौक के अलावा अपने वाट्सऐप, फेसबुक, गैलरी व दूसरे सोशल मीडिया ऐप में भी लौक अप्लाई करें. जिस से आप का फोन चोरी होने या दूसरी वजह से किसी और के हाथों में पहुंचे तो कोई भी आप की महत्त्वपूर्ण जानकारियों तक न पहुंच पाए. आप हमेशा जागरूक व सतर्क रहें.

Posted on July 14, 2023December 22, 2023Author उमेशचंद्र त्रिवेदीCategories साइबर क्राइमTags अनजाने लिंक, अवैध गतिविधियां, अवैध चीजें खरीदना, एचटीटीपीएस, एपी फाइल इंस्टाल, औनलाइन ठगी, औनलाइन डेटिंग, औनलाइन धोखाधड़ी, औनलाइन फ्रौड, औनलाइन साइबर क्राइम, कापीराइट, क्लिक, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, जालसाज, टू फैक्टर, डाटा लीक, डीसीपी प्रशांत गौतम, डेटा चोरी, दिल्ली पुलिस, पब्लिक डोमेन, फरजी प्रोफाइल बनाना, फिशिंग, फिशिंग वेबपेज, मल्टी फैक्टर आथेंटिकेशन, मालवेयर, मोबाइल हैकर्स, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, शातिर अपराधी, साइबर, साइबर अपराध, साइबर क्राइम, साइबर क्राइम अपराधी, साइबर क्राइम पुलिस, साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, साइबर क्राइम स्टोरी, साइबर ठग, साइबर ठगी, साइबर धोखाधड़ी, साइबर फ्रॉड, साइबर बुलिंग, साइबर सेल, साइबरबुलिंग, साइबरस्टाकिंग, सूचना प्रौद्योगिकी (आईपीसी) अधिनियम, सेकस्टिंग, सोशल मीडिया अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट हैक, स्पैमिंग, हेल्पलाइन नंबर 1930, हैकर, हैकिंगLeave a comment
साइबर अपराध से बचने के सुझाव और तरीके — प्रिया सांखला, साइबर व आईटी विशेषज्ञ

साइबर अपराध से बचने के सुझाव और तरीके — प्रिया सांखला, साइबर व आईटी विशेषज्ञ

अगर आप को साइबर क्राइम से बचना है या साइबर क्राइम के शिकार हो जाते हैं तो इस के कुछ टिप्स हम आप को दे रहे हैं, उन पर अमल कर लीजिए. यह एक ऐसा अपराध होता है, जिस में कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग किया जाता हैं और पूरी प्रक्रिया औनलाइन होती है.

इस के तहत हैकिंग, स्पैमिंग, डाटा लीक, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, डेटा चोरी, फिशिंग, कापीराइट, औनलाइन फ्रौड, लौटरी का झांसा दे कर ठगी, केवाईसी अपडेट का झांसा दे कर ठगी, औनलाइन डेटिंग, साइबर बुलिंग जैसी अवैध गतिविधियां होती हैं. आसान शब्दों में समझें तो इंटरनेट कंप्यूटर के माध्यम से किसी के निजी डेटा को बिना अनुमति के उस का गलत उपयोग करना ही साइबर क्राइम कहलाता है.

साइबर क्राइम से बचने के उपाय

अगर आप साइबर क्राइम से बचना चाहते हैं तो इस के लिए हम आप को कुछ उपाय बता रहे हैं, जिस से आप साइबर क्राइम से बच सकते हैं.

  1. अनजान लिंक पर क्लिक न करें. अकसर हर एक इंटरनेट यूजर को ऐसे ईमेल और मैसेज आते रहते हैं जिन पर अनजान लिंक मौजूद होते हैं. ऐसे में हमें इन ईमेल और मैसेज से सावधान रहना चाहिए और हमें इन ईमेल और मैसेज में मौजूद अनजान लिंक पर कभी भी क्लिक नहीं करना चाहिए.
  1. अनजान वेबसाइट पर ध्यान न दें. कभी भी किसी भी वेबसाइट को विजिट करते वक्त सब से पहले उस के एचटीटीपीएस पर ध्यान देना चाहिए. अगर वेबसाइट के लिंक में अंगरेजी में एचटीटीपीएस के बजाय एचटीटीपीए लिखा है तो हमें ऐसे वेबसाइट पर नहीं जाना चाहिए और अनजान वेबसाइट पर हमें भूल कर भी लौगिन नहीं करना चाहिए और निजी जानकारी को साझा नहीं करना चाहिए.
  1. थर्ड पार्टी ऐप सौफ्टवेयर को इंस्टाल न करें. अकसर हम किसी सौफ्टवेयर या ऐप्स को फ्री में इस्तेमाल करने के चक्कर में ऐसे थर्ड पार्टी ऐप्स सौफ्टवेयर को अपने कंप्यूटर या स्मार्टफोन मे इंस्टाल कर लेते हैं जो बिलकुल भी सुरक्षित नहीं होते हैं और इस से हमारा कंप्यूटर, स्मार्टफोन हैक हो सकता है. इसीलिए कभी भी किसी भी ऐसे थर्ड पार्टी ऐप्स सौफ्टवेयर को इंस्टाल मत कीजिए. ऐप्स को इंस्टाल करने के लिए सिर्फ प्लेस्टोर का उपयोग करें और किसी भी ऐप को अपने फोन की परमिशन देने से पहले यह जांचें कि क्या उस ऐप को उस स्पेसिफिक परमिशन की जरूरत है.

4. निजी जानकारी को निजी ही रखें. अकसर हम अपनी निजी जानकारी मसलन पूरा नाम, पिता का नाम, जन्म स्थान, पत्नी, बच्चे व मातापिता के नाम तथा उन की जन्मतिथि बैंक का नाम, गाड़ी का नंबर, घर का पता जैसी जानकारी सोशल मीडिया साइट्स पर पब्लिक कर देते हैं. ऐसा हमें कभी भी नहीं करना चाहिए. क्योंकि कोई भी अनजान व्यक्ति इस निजी जानकारी का गलत उपयोग कर सकता है.

  1. औनलाइन काम कर के पैसा कमाने की किसी भी स्कीम और लौटरी पर भरोसा न करें. अकसर हमें और हमारे आसपास मौजूद लोगों को ऐसे काल्स आते रहते हैं, जिन में औनलाइन स्कीम और लौटरी की बात की जाती है, पैसे देने का दावा करते हैं और उस के बदले आप से निजी जानकारी और पैसे मांगते हैं तो ऐसे चीजों के लालच में आ कर बिलकुल भी विश्वास नहीं करना चाहिए.
  1. अगर आप फ्री इंटरनेट के चककर में सार्वजनिक वाईफाई का उपयोग करते हैं. लेकिन याद रखें फ्री वाईफाई बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं. इस से आप का मोबाइल या सिस्टम हैक हो सकता है और आप का डेटा चुराया जा सकता है. इसीलिए कभी भी अगर फ्री वाईफाई का इस्तेमाल कर रहे हैं तब आप इस बात पर ध्यान दीजिएगा की वह वाईफाई नेटवर्क एक वैरीफाइड संस्था का हो.
  1. अपने ब्राउजर को अपडेट रखें. इंटरनेट का उपयोग करने के लिए ब्राउजर बेहद ही आवश्यक होता है. ऐसे में हमारे ब्राउजर में ऐसी कई सारी कमियां होती हैं, जिन से हैकर हमारे सिस्टम को हैक कर सकता है. इन्हीं कमियों को फिक्स करने के लिए ब्राउजर में अपडेट लाया जाता है. इसीलिए हमें अपने ब्राउजर को अपडेट रखना चाहिए.
  1. अगर हैकर्स आप को फोन कर के सिम को 4जी में अपग्रेड को करने के लिए जानकारी मांगे तो आप ऐसा बिलकुल भी न करें. आप को ऐसा फोन आए तो उस फोन नंबर की रिपोर्ट करें या साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर उस नंबर की सूचना दें.
  1. आजकल ईमेल के जरिए अकाउंट हैक के मामले ज्यादा आ रहे हैं. आप को औफिस या बैंक से संबंधित मेल आता है. उस मेल के नीचे एक लिंक रहता है जिसे क्लिक करने को कहा जाता है. क्लिक करते ही आप का बैंक अकाउंट खाली हो सकता है. साथ ही औफिस, पर्सनल चैट समेत कई अहम जानकारी हैक होने की आशंकाएं रहती हैं.

इन से बचने का आसान तरीका होता है कि आप 2 अलगअलग ईमेल अकाउंट बनाएं. एक अकाउंट जिस से आप सिर्फ वित्तीय लेनदेन के लिए इस्तेमाल करें. और एक अकाउंट ऐसा बनाएं जिसे आप सोशल नेटवर्किंग साइटों पर जब आप अपना अकाउंट बनाते हैं तब रजिस्ट्रेशन के समय उस ईमेल का उपयोग करें. क्योंकि ज्यादातर हैकर्स उसी मेल आईडी का इस्तेमाल करते हैं जो आप के सोशल अकाउंट पर होते हैं.

  1. सोशल मीडिया अकाउंट पर ऐसे लोग जिन के फ्रैंड लिस्ट में बहुत सारे दोस्त और परिवार के सदस्य आप से अपनी आर्थिक परिस्थिति को ले कर बातचीत करें और फिर जब उन्हें लगेगा कि आप उन की बातों में आ चुके हैं, आप अच्छे फ्रैंड बन गए हो तब वे आप से मदद के नाम पर पैसे या फिर जरूरी जानकारी जुटाने की कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों के बारे में उन लोगों से काल कर के वेरीफाई जरूर कर लें, जिन का उन्होंने रेफरेंस दिया है.
  1. औनलाइन फार्म भरने के कारण भी आप हैकर्स की गिरफ्त में आ सकते हैं. क्योंकि फार्म में हमें पूरी जानकारी देनी होती है साथ ही भुगतान के लिए बैंक डिटेल्स भी भरनी होती है. ऐसे में आप के वेब ब्राउजर पर जानकारी सेव होती रहती है. इसलिए कई बार इस के जरिए भी हैकर आप तक आसानी से पहुंच जाते हैं. जब भी आप औनलाइन फार्म भरें तो ऐसे में कभी भी वेब ब्राउजर पर आटो फिल औप्शन को नहीं अपनाना चाहिए. क्योंकि ये आप की सभी पर्सनल जानकारी को रख लेते हैं. इन जानकारियों में सीवीवी नंबर, बैंक खाता नंबर आदि हो सकता है.
  1. लौकडाउन के चलते बहुत से लोगों की नौकरी चली गई है. ऐसे में ये लोग तेजी से नौकरी खोजने का काम कर रहे हैं. ऐसे परेशान लोगों को ठगने के लिए बाजार में पूरा तंत्र खड़ा हो गया है. ऐसे ठग जौब रिक्रूटमेंट साइट से नौकरी तलाशने वालों की प्रोफाइल निकाल लेते हैं, जो शिकार बन सकते हैं, उन सभी को बल्क में मेल भेजा जाता है. फ्रौड करने वाले खुद को जौब कंसल्टेंट के तौर पर पेश करते हैं.

ये लोग अपनी फरजी वेबसाइट, अस्थायी दफ्तर दिखा कर लोगों से वौलेट या बैंक ट्रांसफर के जरिए रजिस्ट्रेशन फीस जमा करने के लिए कहते हैं. औनलाइन या टेलीफोन से इंटरव्यू कर लेते हैं. बाद में फरजी अप्वाइंटमेंट लेटर जारी कर देते हैं. औनलाइन पेमेंट के लिए लिंक भी देते हैं बस आप कंगाल हो जाते हैं.

समझना जरूरी है कि ज्यादातर कंपनियां अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर नौकरियां पोस्ट करती हैं. ऐसे संदेहास्पद मेल की जगह कंपनी के करिअर पेज पर जाएं. साइट पर सीधे अप्लाई करें. जौब पोर्टल पर सीवी पोस्ट करते हुए सुनिश्चित कर लें कि उस पर वह पोस्ट लिखी गई हो, जिस के लिए आवेदन कर रहे हैं. इस के रेस्पौंस में जो भी मेल मिलेगी, उस में उस पोस्ट का जिक्र होगा.

नौकरी तलाशने वालों से कोई भी कंपनी किसी भी चरण में पैसे जमा करने के लिए नहीं कहती है. इसलिए सिक्योरिटी डिपौजिट, रजिस्ट्रेशन या डाक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए फीस मांग रही कंपनी से तत्काल सावधान हो जाएं.

  1. ऐसे फोन नंबर से बचें जोकि अलग प्रकार के होते हैं. साइबर दोस्त के ट्वीट पर कहा गया है कि आप ऐसे नंबर से आने वाले नार्मल काल या फिर वाट्सऐप काल से बचे जिस नंबर के शुरुआत में +92 हो. क्योंकि इस नंबर से फोन उठाते ही आप की कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां लीक हो सकती हैं.
  1. सोशल मीडिया प्लेटफार्म और कस्टमर केयर हैंडल पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी पोस्ट करते समय सावधान रहें. धोखाधड़ी करने के लिए ठग द्वारा व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग किया जा सकता है.
  1. पासवर्ड रिकवरी सेटिंग में ऐसे प्रश्नों को नहीं रखें, जिन के बारे में आसानी से जवाब दिया जा सकता है अथवा जिन की पहचान आप के सोशल मीडिया खाते से की जा सकती है, जैसे जन्म तिथि, प्रथम विद्यालय का नाम आदि. औनलाइन साइबर क्राइम की शिकायत कैसे करें?

अगर आप के साथ औनलाइन किसी भी तरह का दुव्र्यवहार किया जा रहा हैं जैसे, औनलाइन कोई धमकी दे रहा है, किसी ने फ्रौड कर के आप के बैंक से पैसे लूट लिए हैं, आप के पर्सनल फोटो को सोशल मीडिया पर पब्लिक कर दिया है, औनलाइन फाइनेंशियल फ्रौड हुआ है या गलत नीयत से किसी ने आप की फेक प्रोफाइल बना ली है तो ऐसे मामलों में आप भारत सरकार की साइबर क्राइम वेबसाइट पर जा कर साइबर शिकायत कर सकते हैं. अगर आप को तुरंत साइबर कंप्लेंट करनी है तो इस के लिए 1930 नंबर पर काल कर सकते हैं.

Posted on July 11, 2023July 11, 2023Author सुनील वर्माCategories साइबर क्राइमTags अनजाने लिंक, अवैध गतिविधियां, एचटीटीपीए, एचटीटीपीएस, एपी फाइल इंस्टाल, औनलाइन ठगी, औनलाइन डेटिंग, औनलाइन धोखाधड़ी, औनलाइन फ्रौड, औनलाइन साइबर क्राइम, कापीराइट, केवाईसी अपडेट का झांसा दे कर ठगी, क्लिक, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, जालसाज, टू फैक्टर, डाटा लीक, डेटा चोरी, थर्ड पार्टी ऐप्स सौफ्टवेयर, पब्लिक डोमेन, फिशिंग, फिशिंग वेबपेज, मल्टी फैक्टर आथेंटिकेशन, मालवेयर, मोबाइल हैकर्स, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, लौटरी का झांसा दे कर ठगी, शातिर अपराधी, साइबर, साइबर अपराध, साइबर क्राइम, साइबर क्राइम अपराधी, साइबर क्राइम पुलिस, साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, साइबर क्राइम स्टोरी, साइबर ठग, साइबर ठगी, साइबर धोखाधड़ी, साइबर फ्रॉड, साइबर बुलिंग, साइबर सेल, सोशल मीडिया अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट हैक, स्पेसिफिक परमिशन, स्पैमिंग, हेल्पलाइन नंबर 1930, हैकर, हैकिंगLeave a comment
इस तरह बच सकते हैं साइबर अपराध से  — अजय तोमर, पुलिस कमिश्नर सूरत

इस तरह बच सकते हैं साइबर अपराध से — अजय तोमर, पुलिस कमिश्नर सूरत

अगर कोई यूजर किसी तरह के अनजाने लिंक पर क्लिक करता है तो सोशल मीडिया अकाउंट तो हैक होता ही है, साथ ही साथ मोबाइल के अंदर हैकर्स द्वारा या तो एपी की फाइल इंस्टाल कर दी जाती है या मालवेयर स्थापित कर दिया जाता है. अगर मालवेयर स्थापित कर दिया जाता है तो एपी की फाइल पर हैकर कंट्रोल कर लेता है. तब यूजर्स का मोबाइल पूरी तरह हैक हो जाता है.

कितना भी लाभदायक एप्लिकेशन बताया गया हो, जब तक आप पूरी तरह कन्फर्म न हों, उसे न तो डाउनलोड करें और न ही उसे स्वीकार करें. पहले तो हैकर्स एक लिंक भेज कर यूजर्स से कहते थे कि इस वीडियो में आप हैं. देखिए, आप कैसा बढिय़ा काम कर रहे हैं.

इस के बाद जैसे ही यूजर लिंक पर क्लिक करता था, उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लागिन पेज पर ले जाया जाता था और यूजर्स से उस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म की यूजर आईडी और पासवर्ड डालने को कहा जाता था. अगर कोई यूजर कुतूहलवश अपनी यूजर आईडी और पासवर्ड डाल देता था तो उस का सोशल मीडिया अकाउंट हैक हो जाता. इस के बाद हैकर्स द्वारा यूजर्स के सोशल मीडिया अकाउंट की ईमेल आईडी के साथ पासवर्ड, डीपी और इसी तरह मोबाइल नंबर बदल दिया जाता था. फिर यूजर चाहे जितनी कोशिश कर ले, उसे उस का सोशल मीडिया अकाउंट वापस नहीं मिलता था.

जबकि अब हैकर्स नई मोडस आपरेंडी अपनाते हैं. इस में हैकर्स द्वारा यूजर्स के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मैसेज भेजा जाता है, जिस में विषय होता है कि देखो कौन मर गया है या आप से जुड़ी ऐसी जानकारी भेजी जाती है, जो आप को आकर्षित करती है.

इस के साथ एक लिंक भी होती है. अकसर इस तरह की लिंक यूजर्स के परिचित या रिश्तेदार के नाम से भेजी जाती हैं, जिस से यूजर्स को यही लगता है कि उस के किसी परिचित की मौत हो गई है या परिचित ने कोई फायदे की लिंक भेजी है. उसी का यह वीडियो है.

फिर जैसे ही यूजर लिंक पर क्लिक करता है, उस की आईडी और पासवर्ड डालने को कहा जाता है. आईडी और पासवर्ड डालते ही यूजर का सारा कंट्रोल हैकर के हाथ में चला जाता है. इस के बाद उस के अकाउंट का दुरुपयोग शुरू हो जाता है. अगर भूल से भी कोई यूजर इस तरह के अनजाने लिंक पर क्लिक करता है तो सोशल मीडिया अकाउंट तो हैक होता ही है, साथ ही साथ मोबाइल के अंदर हैकर्स द्वारा या तो एपी की फाइल इंस्टाल कर दी जाती है या मालवेयर स्थापित कर दिया जाता है.

अगर मालवेयर स्थापित कर दिया जाता है तो एपी की फाइल पर हैकर कंट्रोल कर लेता है. तब यूजर्स का मोबाइल पूरी तरह हैक हो जाता है. इसी के साथ यूजर को अन्य दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कुछ मामलों में तो उस का बैंक अकाउंट तक खाली हो जाता है.

सोशल मीडिया अकाउंट को इस तरह सुरक्षित रखें

कुतूहल पैदा करने वाली और अराजकता फैलाने वाली इस तरह की लिंक से दूर रहें. क्योंकि क्लिक करने से आप एक फिशिंग वेबपेज या वेबसाइट पर चले जाएंगे. जो आप को अपना सोशल मीडिया लागिन पेज जैसा लगता है. जबकि वह एक बनावटी वेबपेज होता है.

सोशल मीडिया अकाउंट को सुरक्षित रखने के लिए मजबूत पासवर्ड में सामान्य रूप से संख्याएं, चिह्न और कैपिटल – स्माल अक्षरों का समावेश करना चाहिए. इस तरह पासवर्ड की लेंथ 10 से 15 अक्षर की होनी चाहिए. पर इस बात का भी ध्यान रखें कि पासवर्ड इतना जटिल भी न हो कि आप उसे याद न रख सकें. इस के अलावा किसी के सामने पासवर्ड का उपयोग न करें.

आज के समय में सोशल मीडिया की तरह ईमेल अकाउंट को सुरक्षित रखने का सब से महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ रास्ता है तो वह यह कि टू फैक्टर या मल्टी फैक्टर आथेंटिकेशन को एक्टिवेट करना है. जब भी कोई हैकर नई डिवाइस से आप के सोशल मीडिया अकाउंट में लागिन करने की कोशिश करता है तो मुख्य अकाउंट होल्डर को सोशल मीडिया कंपनी के सर्वर से एसएमएस अथवा ईमेल द्वारा एक पिन भेजी जाती है. जबकि हैकर के पास अकाउंट होल्डर के ईमेल और एसएमएस तक पहुंच नहीं होती. परिणामस्वरूप अकाउंट सुरक्षित रहता है

सोशल मीडिया होल्डर अकसर भूल जाते हैं कि उन का यूजरनेम, ईमेल और पासवर्ड इंटरनेट पर एक छोटी सी गलती के कारण बड़ी आसानी से पब्लिक डोमेन में चला जाता है. इंटरनेट पर आप की जानकारी पब्लिक डोमेन में न आए, इस के लिए लागिन अकाउंट से साइन आउट होना जरूरी है.

अगर व्यवसाय के सोशल मीडिया अकाउंट के लिए और अन्य क्लायंट के लिए एक ही ईमेल एड्रेस का उपयोग किया जा रहा है तो सोशल मीडिया अकाउंट हैक होते ही हैकर्स ईमेल अकाउंट तक कंट्रोल में ले सकता है. जिस से व्यवसाय की महत्त्वपूर्ण जानकारी व्यक्तिगत नहीं रह सकती और पब्लिक डोमेन में आ सकती है. इसलिए दोनों ईमेल एड्रेस अलग रखें.

पब्लिक वाईफाई और वायरलेस नेटवक्र्स पर सोशल मीडिया अकाउंट्स का उपयोग करते समय बहुत सावधानी रखें. क्योंकि इस में सुरक्षा का अभाव होता है और साइबर अपराधी इस का फायदा उठा सकते हैं और नेटवर्क से जुड़े यूजर्स को आसानी से अपना शिकार बना सकते हैं.

Posted on July 10, 2023July 10, 2023Author वीरेंद्र बहादुर सिंहCategories साइबर क्राइमTags अनजाने लिंक, एपी फाइल इंस्टाल, औनलाइन ठगी, औनलाइन धोखाधड़ी, क्लिक, जालसाज, टू फैक्टर, पब्लिक डोमेन, फिशिंग वेबपेज, मल्टी फैक्टर आथेंटिकेशन, मालवेयर, मोबाइल हैकर्स, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, शातिर अपराधी, साइबर, साइबर अपराध, साइबर क्राइम, साइबर क्राइम अपराधी, साइबर क्राइम पुलिस, साइबर क्राइम स्टोरी, साइबर ठग, साइबर ठगी, साइबर धोखाधड़ी, साइबर फ्रॉड, साइबर सेल, सोशल मीडिया अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट हैक, हेल्पलाइन नंबर 1930, हैकरLeave a comment
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