
आसिफ खान को मादीपुर से वजीराबाद आए हुए 3 साल बीत चुके थे लेकिन मेहताब और उस के भाइयों द्वारा की गई पिटाई को वह भुला नहीं सका था. जब भी वह उस घटना को याद करता, अपमान का जख्म फिर से ताजा हो जाता था.
मादीपुर उस के यहां से काफी दूर था. वह अब कोई ऐसा जरिया ढूंढने लगा जिस से मेहताब उस की मनमुताबिक जगह पर आ जाए, जहां वह उसे अच्छी तरह से सबक सिखा सके.
इस काम के लिए उसे परवीन जहां ही सही लगी. उसे विश्वास था कि परवीन उस के बताए किसी काम को करने से मना नहीं करेगी. इस साल जुलाई के महीने में उस ने मेहताब से बदला लेने की बात परवीन जहां को बताई. तब परवीन ने उसे भरोसा दिया कि वह हर तरह से उस की सहायता करने को तैयार है. परवीन की बात सुन कर आसिफ ने एक योजना बनाई.
योजना के अनुसार उस ने बिहार के तौहीर नाम के व्यक्ति के नाम से बने फरजी वोटर आईडी से आइडिया कंपनी का सिमकार्ड ले लिया. वह कार्ड अपने मोबाइल फोन में डाल कर परवीन को दे दिया. इस के अलावा उस ने अपने दुश्मन मेहताब का फोन नंबर उसे देते हुए कहा कि वह किसी भी तरह से मेहताब को अपने रूपजाल में फांस ले. इस के लिए उस ने परवीन को 5 हजार रुपए भी दिए.
परवीन के लिए यह काम बहुत आसान था. उस ने अगले दिन दोपहर के समय मेहताब को मिस काल की. मेहताब उस समय खाली था. बात शुरू हुई तो मेहताब को भी परवीन की बातों में दिलच्सपी आने लगी. उसे उस की बातें अच्छी लगने लगीं.
अगले दिन रात के समय परवीन जहां ने मेहताब को फिर फोन किया. चूंकि दोनों का परिचय हो चुका था इसलिए इधरउधर की बातें करते हुए परवीन बातों का दायरा बढ़ाने लगी. मेहताब भी अविवाहित था. वह उस की बातों के आधार पर ही उस के रूपसौंदर्य की कल्पना करने लगा. इस तरह दोनों के बीच अब रोजाना बातें होने लगीं.
परवीन उस से जल्द मुलाकात कर अपने हुस्न का दीदार करा देना चाहती थी. इसलिए एक दिन उन्होंने पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर-1 पर मुलाकात करने की योजना बना ली.
मेहताब मादीपुर से पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक पर पहुंच चुका था. वहां पहुंचने पर उसे कोई महिला दिखाई नहीं दी. वह इधरउधर देखने लगा कि कहीं परवीन आड़ में तो नहीं खड़ी है. इधरउधर नजर दौड़ाने के बाद वह नहीं दिखी तो उस ने परवीन को फोन किया. परवीन ने बताया कि वह अभी रास्ते में है. 5 मिनट में पंजाबी बाग पहुंच जाएगी. मेहताब वहीं पर खड़ा परवीन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगा.
वह मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं परवीन कैसी शक्लोसूरत की होगी. कुछ देर बाद उसे मेट्रो स्टेशन से उतर कर एक महिला आती दिखाई दी जो गेट नंबर-1 की सीढि़यों के पास आ कर रुक गई. कढ़ाईदार जामुनी रंग का सूट पहने वह महिला बहुत सुंदर थी. अब मेहताब सोचने लगा कि पता नहीं यह परवीन है या कोई और.
पुष्टि करने के लिए उस ने उसी समय अपने फोन से परवीन का नंबर मिलाया. घंटी बजने के बाद उस महिला ने अपने हाथ में थामे छोटे पर्स से मोबाइल निकाला और बात करने लगी.
यह देख कर मेहताब खुश हो गया क्योंकि परवीन की जैसी कल्पना उस ने अपने दिमाग में की थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत निकली. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा पड़े.
वहां कुछ देर बात करने के बाद मेहताब उसे पंजाबी बाग के एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां उस ने उस की खूब खातिरदारी की. पहली मुलाकात से दोनों ही खुश थे. दोनों ने वहां खूब बातें कीं. इस के बाद परवीन वहां से मेट्रो द्वारा घर लौट गई.
मेहताब से मिलने के बाद परवीन को विश्वास हो गया कि वह अपने मकसद में सफल हो जाएगी. घर लौटने के बाद उस ने आसिफ को सारी बातें बता दीं.
परवीन जहां से मिलने के बाद मेहताब के दिल की धड़कनें और तेज हो गईं. अब तो जब भी उसे फुरसत होती वह परवीन जहां का नंबर मिला देता. फिर उन की काफी देर तक बातें होती रहतीं. इस तरह दिन में कई कई बार वह फोन पर बतियाते.
उन के बीच बातों का दायरा बढ़ता गया. वे एकांत में भी मिलने लगे जिस से उन के बीच की दूरियां भी मिट गईं. यानी उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. इस के बाद उन के बीच यह सिलसिला चलता रहा.
परवीन ने अपने हुस्न के जाल में मेहताब को पूरी तरह काबू कर लिया था. मेहताब को यह बात पता नहीं थी कि परवीन का असली मकसद क्या है. वह उसे अपनी प्रेमिका समझता था.
जुलाई, 2014 के अंतिम सप्ताह में परवीन ने आसिफ से कहा, ‘‘मछली जाल में फंस गई है. अब यह बताओ उस का शिकार कब और कहां करना है?’’
‘‘परवीन, अभी 29 जुलाई को ईद है. ऐसा करते हैं ईद के बाद तुम उसे शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन ले आना. वहां से हम उसे कहीं और ले जाएंगे.’’ आसिफ ने उसे बताया.
आसिफ खान ने मेहताब से बदला लेने की पूरी योजना बना ली. योजना में उस ने अपने दोस्त जाहिद उर्फ सलमान और शाहरुख को भी शामिल कर लिया.
3 अगस्त, 2014 को योजना के अनुसार परवीन जहां ने मेहताब को सुबह 10 बजे फोन कर के शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पर मिलने के लिए बुलाया. मेहताब उस से मिलने के लिए तैयार हो गया. उस ने कहा कि वह एकडेढ़ बजे तक शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंच जाएगा. परवीन ने यह बात आसिफ खान को बता दी.
आसिफ ने योजना के अनुसार, अपनी सैंट्रो कार में एक रस्सी का टुकड़ा और जूट की बोरी रख ली. इस के बाद उस ने शाहरुख को अपने घर बुलाया. शाहरुख उस के पास पहुंच गया तो उसे कार में बिठा कर वह जाहिद के घर की तरफ चल दिया. जाहिद को उस के घर से बुला कर उसे भी कार में बिठा लिया. दोनों दोस्तों को ले कर वह दोपहर साढ़े 12 बजे शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंच गया.
परवीन जहां शास्त्री पार्क में रहती ही थी. वह भी उधर से मेट्रो स्टेशन पहुंच गई. वह मेहताब से फोन द्वारा संपर्क बनाए हुए थी. करीब डेढ़ बजे मेहताब शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंचा. परवीन भी मेट्रो स्टेशन पहुंच गई. वह मेहताब से बातें करते हुए उसे स्टेशन से नीचे उतार कर आसिफ की कार के पास ले आई. जैसे ही मेहताब कार के नजदीक पहुंचा जाहिद और शाहरुख ने उसे कार में खींच कर उस का मुंह दबोच लिया. फिर तमंचा दिखा कर उसे चुप रहने को कहा.
आसिफ ने तुरंत कार चला दी. इस से पहले उस ने परवीन का मोबाइल अपने पास रख लिया था. वह तेज गति से कार चलाता हुआ मेरठ की तरफ निकल गया. रास्ते में शाहरुख और जाहिद ने मेहताब की बहुत पिटाई की. मेरठ से निकलते ही आसिफ पिछली सीट पर आ गया और जाहिद कार चलाने लगा.
आसिफ के दिल में बदले की चिंगारी सुलग रही थी. उस ने अपने हाथों से मेहताब की पिटाई करनी शुरू कर दी. मेहताब के शरीर पर तमाम गंभीर चोटें आई थीं जिस से उसे बहुत दर्द हो रहा था. दर्द उस की सहनशक्ति से बाहर हो गया तो उस ने चिल्लाना शुरू कर दिया. उसी दौरान आसिफ ने कार में रखे रस्सी के टुकड़े से उस का गला घोंट दिया.
मेहताब की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश कार में पहले से रखी जूट की बोरी में डाल दी और जिस रस्सी से गला घोंटा था, उस से बोरी का मुंह बांध दिया. उन्होंने खतौली के पास से गुजर रही गंगनहर में वह बोरी डाल दी. वहीं पर उन्होंने मेहताब और परवीन के मोबाइल फोन भी फेंक दिए. लाश ठिकाने लगा कर वे सभी अपने घर लौट आए.
मेहताब से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 13 सितंबर को ही उस के साथियों जाहिद उर्फ सलमान, शाहरुख और परवीन जहां को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 14 सितंबर को उन्हें तीसहजारी न्यायालय में पेश कर उन का 3 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.
रिमांड अवधि में पुलिस उन्हें खतौली ले गई और गोताखोरों के माध्यम से मेहताब की लाश ढूंढनी शुरू कर दी. कई किलोमीटर तक गोताखोर उस की लाश ढूंढते रहे लेकिन लाश नहीं मिली.
16 सितंबर को सभी आरोपियों को फिर से न्यायालय में पेश किया जहां से आसिफ को एक दिन के पुलिस रिमांड पर दे कर अन्य अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस ने आसिफ की निशानदेही पर उस की सैंट्रो कार भी बरामद कर ली.
आसिफ से विस्तार से पूछताछ करने के बाद न्यायालय में पेश कर उसे भी जेल भेज दिया. कथा लिखने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजीव विमल कर रहे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मुमताज परिवर्तित नाम है.
मादीपुर के चौकी इंचार्ज पवन कुमार दहिया के नेतृत्व में 13 सितंबर को एक पुलिस टीम आसिफ खान के वजीराबाद गांव स्थित घर रवाना कर दी. आसिफ खान घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले लिया. थाने पहुंच कर पुलिस ने मेहताब खान की गुमशुदगी के बारे में उस से पूछताछ की.
आसिफ खान पहले तो मेहताब के बारे में अनभिज्ञता जताते हुए पुलिस को गुमराह करता रहा लेकिन पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उसे सच्चाई बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने बताया कि उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर के लाश गंगनहर में फेंक दी थी.
उस ने अपने चचेरे भाई की हत्या क्यों की? पूछने पर आसिफ ने पुलिस को मेहताब की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.
सन 2011 में आसिफ का भतीजा रवीश खान जब मेहताब की चचेरी बहन मुमताज को भगा कर ले गया तो मेहताब और उस के भाइयों ने आसिफ खान की जम कर पिटाई की थी. उस समय मोहल्ले के ही तमाम तमाशबीन उस के घर के सामने खड़े थे.
आसिफ खान भी प्रौपर्टी डीलर था. उस की भी क्षेत्र में अच्छी जानपहचान और इज्जत थी. मोहल्ले वालों के सामने पिटाई होने पर वह खुद को अपमानित महसूस कर रहा था.
इस बेइज्जती के तीर ने आसिफ के दिल को इतना जख्मी कर दिया कि उस ने उसी समय तय कर लिया कि वह मेहताब से इस का बदला जरूर लेगा. इस घटना के 15-20 दिनों बाद आसिफ ने मादीपुर वाला मकान बेच कर दिल्ली के वजीराबाद गांव में एक मकान खरीद लिया और वहीं पर प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगा.
वजीराबाद गांव में आसिफ के घर के पास ही जाहिद उर्फ सलमान रहता था. पड़ोस में रहने की वजह से आसिफ की जाहिद से दोस्ती हो गई. बाद में वह आसिफ के साथ ही प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगा. मादीपुर छोड़ने के बाद भी आसिफ मेहराज से मिले अपमान को नहीं भूला था. उसी दौरान जाहिद की मार्फत आसिफ की शाहरुख से मुलाकात हुई.
शाहरुख दिल्ली के शास्त्री पार्क इलाके का रहने वाला था. उस की ताले बेचने की दुकान थी. शाहरुख जाहिद का दोस्त था. तीनों साथसाथ खातेपीते थे. खाते पीते समय आसिफ अपने मन की टीस दोस्तों से जाहिर कर देता था.
एक बार की बात है. आसिफ खजूरी खास से कार द्वारा अपने घर लौट रहा था. उस ने वजीराबाद पुल के पास यमुना घाट पर एक महिला बैठी देखी. 28-30 साल की वह महिला बहुत खूबसूरत थी. वह महिला एकदम अकेली थी. उसे देख कर आसिफ अचानक रुक गया और कार को सड़क किनारे खड़ी कर के उसे निहारने लगा. वहां खड़े खड़े यह सोचने लगा कि आखिर यह महिला नदी के घाट पर अकेली क्यों बैठी है?
कुछ देर बाद आसिफ खुद ही उस के पास पहुंच गया. उसे देख कर वह महिला घबराई नहीं बल्कि वह पानी की ओर टकटकी लगाए बैठी रही. आसिफ ने उस से पूछा, ‘‘मैडम, मैं काफी देर से देख रहा हूं कि आप इस सुनसान जगह पर अकेली बैठी हैं. वैसे तो मुझे पूछने का कोई हक नहीं, फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि आप यहां किसलिए बैठी हैं?’’
‘‘मैं बहुत दुखी और परेशान हूं. इस दुनियादारी से ऊब चुकी हूं इसलिए अपनी जीवनलीला खत्म करने के लिए यहां आई हूं.’’ वह महिला बोली.
आसिफ खान समझ गया कि यह महिला खुदकुशी करने आई है. वह उसे समझाते हुए बोला, ‘‘मैडम, खुदकुशी किसी समस्या का समाधान नहीं है. जिंदगी में तमाम तरह की समस्याएं आती हैं तो ऐसा नहीं कि हम समस्याओं का हल ढूंढने के बजाय आत्महत्या का रास्ता अपनाएं. यदि आप मुझे अपनी समस्या बताएंगी तो हो सकता है कि मैं आप की कोई हेल्प कर सकूं.’’
आसिफ के पूछने पर उस महिला ने अपना नाम परवीन जहां बताया. उस ने बताया कि करीब 3 साल पहले उस के पति की मौत हो गई. उस के पास एक बेटा और एक बेटी है जिन्हें वह भजनपुरा में अपनी एक जानकार के पास छोड़ आई है. पति के मरने के बाद जैसे तैसे कर के वह अपना और बच्चों का पेट भर रही थी. लेकिन अब उस के सामने भूखों मरने की हालत हो गई है.
आसिफ ने परवीन को समझा बुझा कर कार में बिठाया और अपने घर ले गया. पति के साथ एक अनजान महिला को देख कर आसिफ की पत्नी चौंक गई. उस ने पति से पूछा तो आसिफ ने उसे परवीन की सच्चाई बता दी.
सब से पहले आसिफ ने परवीन को खाना खिलाया और बाद में उसे भजनपुरा छोड़ आया. उस समय उस ने परवीन को खर्चे आदि के लिए एक हजार रुपए भी दे दिए थे.
परवीन तो अपनी जीवनलीला समाप्त करने जा रही थी. एक अनजान आदमी ने उसे बचा कर एक नई जिंदगी दी. आसिफ की इस दरियादिली की वह तहेदिल से शुक्रगुजार थी. आसिफ की परवीन जहां से हमदर्दी तो थी ही, इस के अलावा वह उस की खूबसूरती पर फिदा भी हो गया था. इसलिए वह उस से नजदीकी बनाना चाहता था.
आसिफ को परवीन के ठिकाने का पता लग चुका था, इसलिए वह समय निकाल कर उस से मुलाकात करने लगा. उधर परवीन भी बेसहारा थी. उस का झुकाव भी आसिफ की तरफ बढ़ता गया. नतीजतन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. वह परवीन को आर्थिक सहयोग करता रहा. भजनपुरा वाले कमरे पर आसिफ परवीन से चोरीछिपे ही मिल पाता था. वह अब ऐसा ठिकाना ढूंढने लगा जहां उसे उस से मिलने में असुविधा न हो.
यही सोच कर आसिफ ने परवीन को शास्त्री पार्क की गली नंबर-2 में एक कमरा किराए पर दिलवा दिया, जहां पर वह अपने दोनों बच्चों के साथ रहने लगी. कमरे का किराया और परवीन के घर का खर्चा आसिफ ही उठाता था. शास्त्री पार्क के कमरे में आसिफ और परवीन की रासलीला बिना किसी डर के चलती रही.
पश्चिमी दिल्ली के मादीपुर इलाके में रहने वाला 28 वर्षीय मेहताब प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह रात 9-10 बजे तक अकसर घर आ जाता था. 3 अगस्त, 2014 को नियत समय पर न तो वह घर आया और न ही उस का फोन मिल रहा था. इस से घर वाले बहुत परेशान हो गए. बड़े भाई मेहराज खान ने मेहताब के जानने वाले कई लोगों को फोन किया लेकिन किसी से भी उस के बारे में जानकारी नहीं मिली.
उस समय आधी रात बीत चुकी थी. इतनी रात में उसे कहां ढूंढा जाए, यह बात वह समझ नहीं पा रहे थे. मेहताब की चिंता में घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. अगले दिन 4 अगस्त को मेहराज खान पुलिस चौकी मादीपुर पहुंच गया. चौकी इंचार्ज पवन कुमार दहिया को छोटे भाई के गायब होने की बात बता कर उस की गुमशुदगी लिखा दी.
मेहताब की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद चौकी इंचार्ज पवन कुमार दहिया ने इस की जांच हेडकांस्टेबल सतीश कुमार को करने के निर्देश दिए. सतीश कुमार ने सब से पहले मेहताब का हुलिया बताते हुए गुमशुदगी की सूचना दिल्ली के समस्त थानों में वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी. इस के बाद उन्होंने आसपास के अस्पतालों में भी संपर्क कर यह जानने की कोशिश की कि करीब 28 साल का कोई दुर्घटना का शिकार व्यक्ति दाखिल तो नहीं हुआ है.
उन्होंने मेहताब के घर वालों से भी बात की और पूछा कि मेहताब का किसी से कोई लड़ाईझगड़ा तो नहीं चल रहा. घर वालों ने पुलिस को बता दिया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी.
पुलिस अपने तरीके से मेहताब को तलाशती रही. उसे गायब हुए महीना से ज्यादा बीत चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. मेहताब के घर वाले पुलिस पर अंगुली उठाने लगे.
उन्होंने पंजाबी बाग इलाके के एसीपी हरचरण वर्मा से मुलाकात कर मेहताब खान के गायब होने और जांच अधिकारी की निष्क्रियता की बात बताई. मादीपुर पुलिस चौकी थाना पंजाबी बाग के अंतर्गत आती है. इसलिए एसीपी हरचरण वर्मा ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश पंजाबी बाग के थानाप्रभारी ईश्वर सिंह को दिए.
मेहराज की शिकायत पर 12 सितंबर, 2014 को पंजाबी बाग थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 (अपहरण) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया गया और जांच एसआई अनूप कुमार को सौंप दी गई.
मेहताब के महीने भर से गायब होने की जानकारी पश्चिमी दिल्ली के अतिरिक्त आयुक्त रणवीर सिंह को मिली तो उन्होंने एसीपी हरचरण वर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर राजीव विमल, एसआई पवन कुमार दहिया, अनूप कुमार, हेडकांस्टेबल सतीश कुमार, सुजीत, कुलदीप, महिला कांस्टेबल अंजूबाला आदि को शामिल किया गया.
रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस ने मेहताब के फोन की कालडिटेल्स निकलवाई. कालडिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि जिस दिन मेहताब गायब हुआ था, उसी दिन उस के मोबाइल पर आइडिया कंपनी के एक नंबर से सुबह साढ़े 10 बजे काल आई थी.
इस के अलावा इसी नंबर पर मेहताब की 10-15 बार रोजाना बात होती थी. इस से यह लगा कि मेहताब के उस व्यक्ति से नजदीकी संबंध रहे होंगे तभी तो उस से इतनी बात होती थी.
पुलिस अब उस शख्स से मिलना चाहती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर को मिलाया तो वह भी स्विच्ड औफ मिला. संबंधित फोन कंपनी से फोनधारक का पता निकलवाया तो पता चला कि वह नंबर बिहार के तौहीर नाम के व्यक्ति की आईडी पर लिया गया था और यह नंबर 28 जून को एक्टिवेट हुआ था. पुलिस ने जब जांच की तो बिहार का यह पता फरजी पाया गया.
इस जांच में पुलिस टीम को यह भी जानकारी मिली कि उक्त फोन नंबर 86750501491**** आईएमईआई नंबर के फोन में चल रहा था. पुलिस टीम ने अब यह जानने की कोशिश की कि इस आईएमईआई नंबर के फोन में 28 जून, 2014 से पहले किस नंबर का सिम एक्टिव था.
पुलिस टीम इस काम में दिनरात एक करते हुए जुटी हुई थी. टीम को जांच में यह पता लग गया कि 28 जून से पहले उस फोन में किस नंबर का सिम काम कर रहा था. जांच में पता चला कि वह नंबर दिल्ली के वजीराबाद गांव के रहने वाले आसिफ खान पुत्र ईनाम खान के नाम से लिया गया था.
आसिफ खान से पूछताछ करने के बाद पुलिस उस शख्स तक पहुंच सकती थी जिस की मेहताब खान से रोजाना 10-15 बार बातें होती थीं. आसिफ के पास जाने से पहले इंसपेक्टर राजीव विमल ने मेहताब के भाई मेहराज से पूछा कि क्या वह वजीराबाद गांव में रहने वाले किसी आसिफ खान नाम के व्यक्ति को जानता है?
आसिफ का नाम सुनते ही मेहराज चौंक गया. आसिफ को भला वह कैसे भूल सकता था. उस ने आसिफ की पूरी कहानी इंसपेक्टर राजीव विमल को सुना दी. उस से पता चला कि मेहताब आसिफ खान का दूर के रिश्ते का चचेरा भाई है. आसिफ पहले मादीपुर में ही रहता था.
करीब 3 साल पहले की बात है. मेहताब के चचेरे भाई शाने आलम की बहन मुमताज का आसिफ के भतीजे रवीश खान से चक्कर चल गया था. कुछ दिनों बाद वह मुमताज को ले कर भाग गया. यह बात मेहताब और उस के भाइयों को पता चली तो वे सब शिकायत करने आसिफ खान के घर पहुंचे. शाने आलम और मेहताब गुस्से में थे. शिकायत के दौरान ही दोनों ओर से गरमागरमी हो गई. तब उन लोगों ने आसिफ खान की जम कर पिटाई की.
जिस तरह मोहल्ले में आसिफ की बेइज्जती हुई उसे देखते हुए उस ने वहां रहने का विचार ही छोड़ दिया. उस ने अपना मादीपुर का मकान बेच दिया और दिल्ली के ही वजीराबाद गांव में मकान खरीद कर रहने लगा. वहीं पर वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करने लगा. तब से वह वजीराबाद में ही रह रहा है. उधर मुमताज और रवीश खान ने भी निकाह कर लिया.
मेहराज से बात करने के बाद इंसपेक्टर राजीव विमल को लगा कि कहीं अपमान का बदला लेने के लिए आसिफ ने मेहताब के साथ कोई साजिश तो नहीं रची.
बलवंत के अलग होते ही मिली उर्फ एंजल राय पूरी तरह से आजाद हो गई. वह इंदौर के बड़े बड़े मौल में जाती और वहां बड़े घरों के लड़कों को फांस कर उन्हें खुश करती. बदले में उन से मोटी रकम ऐंठती. इस तरह वह हाईप्रोफाइल कालगर्ल बन गई. धीरेधीरे तमाम लड़के उस के परमानेंट ग्राहक बन गए, जिस से अब उसे मौल के भी चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे.
लेकिन छोटी ग्वालटोली में जहां वह रहती थी, वहां उस के ग्राहकों को आनेजाने में असुविधा होती थी, इसलिए उस ने सुखलिया के वीड़ानगर, प्राइम सिटी में एक बढि़या फ्लैट किराए पर ले लिया. अब वह अपने ग्राहकों को अय्याशी के लिए इसी फ्लैट पर बुलाने लगी.
अकेली औरत पर लोग वैसे भी तरहतरह की शंकाएं करते हैं. अगर उस के यहां आनेजाने वालों का तांता लगा हो तो आसपास वालों को अंगुली उठाते देर नहीं लगती. यह बात मिली को पता थी, इसलिए उसे एक ऐसे साथी की जरूरत थी, जो उस के साथ रह सके. उस ने तलाश की तो जल्दी ही उसे एक ऐसा साथी मिल गया. नीमच से नौकरी की तलाश में इंदौर आए नंदकिशोर से उस की मुलाकात हुई तो उस ने उसे अपने साथ रख लिया. इस तरह उसे एक साथी मिल गया.
इस के बाद मिली ने इंदौर के अरबिट मौल में चलने वाले पब में डांसर की नौकरी कर ली. वहां से उसे वेतन तो मिलता ही था, ग्राहक भी आसानी से मिल जाते थे. सतीश ततवादी से भी उस की मुलाकात इसी पब में हुई थी. सतीश इस पब में अक्सर शराब पीने आता था.
मिली के अनुसार सतीश शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था, इसलिए उस की नजरें मिली पर जम गई थीं. मिली को ऐसे लोगों की जरूरत ही रहती थी, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस के बाद सतीश अकसर मिली के फ्लैट पर जाने लगा, जहां वह मोटी रकम खर्च कर के शराब और शबाब का आनंद लेने लगा.
मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले सतीश ततवादी एमबीए कर के नौकरी की तलाश में इंदौर आया तो वहां उसे सैटिसफैक्शन फर्नीचर कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी. सूझबूझ और मेहनत से काम करने की बदौलत सतीश को जल्दी ही ठीकठाक वेतन तो मिलने ही लगा था, कंपनी ने तमाम सुविधाएं भी दे दी थीं.
सतीश को ठीकइाक वेतन मिलने लगा तो सतीश ने इंदौर की सिंगापुर सुपरसिटी जैसी पौश कालोनी में घर खरीद लिया और पूरे परिवार के साथ उसी में रहने लगा. मधुभाषी और मिलनसार होने की वजह से सतीश जल्दी ही मालिकों का ही नहीं, साथ काम करने वाले कर्मचारियों का भी चहेता बन गया था.
सतीश मिली के रूपजाल और अदाओं में कुछ इस तरह उलझा कि अक्सर शाम को उस के फ्लैट पर जाने लगा. यह बात मिली के साथ रहने वाले नंदकिशोर को अच्छी नहीं लगती थी, क्योंकि मिली अब उसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आ रही थी. वह उस से शादी करना चाहता था. यही वजह थी कि सतीश अब उसे फूटी आंख नहीं सुहाता था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा.
दूसरी ओर मिली को भी नंदकिशोर की सच्चाई का पता चल गया था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. मिली को कहीं से पता चल गया था कि नंदकिशोर शादीशुदा ही नहीं है, बल्कि 3 बच्चों का बाप भी है. भला ऐसे आदमी से वह कैसे शादी करती. लेकिन उस से पीछा छुड़ाना मिली के लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि वह उस की सारी पोलपट्टी जानता था.
नंदकिशोर को सतीश से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने उस की हत्या का इरादा बना लिया. लेकिन यह काम मिली की मदद के बिना नहीं हो सकता था. इसलिए उस ने अपने मन की बात मिली से कही. इस अपराध में नंदकिशोर का साथ देने के लिए मिली तैयार हो गई, क्योंकि वह नंदकिशोर से छुटकारा पाना चाहती थी.
उस का सोचना था कि सतीश की हत्या के आरोप में नंदकिशोर जेल चला जाएगा तो उसे अपने आप नंदकिशोर से छुटकारा मिल जाएगा. यही सोच कर उस ने नंदकिशोर के साथ मिल कर सतीश की हत्या की योजना बना डाली.
योजना के अनुसार, 20 अगस्त, 2014 को मिली ने सतीश को फोन कर के अपने घर बुला लिया. सतीश को ऐसे मौके की हमेशा तलाश रहती थी, इसलिए मिली की ओर से दावत मिलते ही वह शराब की बोतल और खानेपीने का सामान ले कर घर में मीटिंग की बात बता कर मिली के घर अय्याशी करने पहुंच गया.
नंदकिशोर को वह पहचानता ही था. मिली ने सतीश को उसे अपना भाई बता रखा था. सतीश के पहुंचते ही शराब की बोतल खुल गई और पीनापिलाना शुरू हो गया. सतीश को नशा चढ़ा तो उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस शैतान को शांत करने के लिए वह मिली से छेड़छाड़ करने लगा.
नंदकिशोर सतीश से वैसे ही नफरत करता था. उस दिन वह उसे खत्म करने की योजना बनाए बैठा था. इसलिए उस ने सतीश को दबोच लिया. योजना के अनुसार उस ने सतीश को ज्यादा शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया था, इसलिए वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं था. उस ने पायजामे का नाड़ा सतीश के गले में लपेट कर कसना शुरू कर दिया.
नंदकिशोर सतीश का गला घोंट रहा था तो शातिर मिली अपनी योजना के अनुसार मोबाइल से उस की वीडियो रिकौर्डिंग कर रही थी. सतीश की मौत हो गई तो लाश को ठिकाने लगाने के लिए नंदकिशोर ने उसे कंबल में लेपट कर रस्सी से बांध दिया. इस के बाद लाश को उठा कर नीचे लाने के बजाय उस ने उसे सीढि़यों के पास रख कर पैर से लुढ़का दिया.
मिली ने नंदकिशोर की इस हरकत की भी वीडियो रिकौर्डिंग कर ली थी. मिली ने यह वीडियो रिकौर्डिंग इसलिए की थी कि वह इसे पुलिस को दिखा कर नंदकिशोर को जेल भिजवा देगी.
इस के बाद उन्होंने सतीश की लाश को उसी की वैगनआर कार में रखा और धर्मपुरी (सांवरे क्षेत्र) उज्जैन होते हुए आगे बढ़ गए. लाश उन्होंने नागदा जंक्शन के थाना बिरमाग्राम के गांव डाबरी में एक पुलिया के पास फेंक दी थी. एक टोल नाके पर टैक्स देने की वजह से उन की कार का नंबर नोट हो गया था. इस के बाद उन्होंने कार की दोनों नंबर प्लेटें तोड़ कर फेंक दी थीं.
बिना नंबर की कार से वे सड़क से नहीं जा सकते थे. इसलिए वे जंगल के रास्ते से नीमच पहुंचे. सतीश का पर्स उन्होंने पहले ही निकाल लिया था. पैसे नंदकिशोर ने अपनी जेब में रख लिए. एटीएम तथा पेनकार्ड इंद्रानगर स्थित अपने घर में रख दिए. बाकी के कागज, खाली पर्स, घड़ी और मोबाइल फोन रास्ते में एक नदी में फेंक दिए.
रिमांड के दौरान पुलिस ने नीमच स्थित नंदकिशोर के घर से सतीश का एटीएम और पेनकार्ड बरामद कर लिया था. मिली ने सतीश की हत्या का जो वीडियो रिकौर्डिंग की थी, सुबूत के लिए पुलिस ने उस की सीडी बनवा ली थी. दूसरे को फंसाने के लिए अपराध में साथ देने वाली मिली को शायद यह पता नहीं था कि अपराध में साथ देने वाला भी अपराधी माना जाता है.
पुलिससिया काररवाई पर नजर रखने के लिए नंदकिशोर और मिली रोज अखबार पढ़ते थे. धीरेधीरे उन के पैसे खत्म हो गए तो वे इंदौर पैसे लेने जा रहे थे, तभी पकड़े गए. रिमांड अवधि खत्म होने पर दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
सतीश के घर वाले उस की मौत से दुखी तो हैं ही, जिस तरह से वह मारा गया, उस से शर्मिंदा भी हैं. सभी अंदर ही अंदर घुट रहे हैं कि आसपड़ोस वालों को कैसे मुंह दिखाएं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
नागदा पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि इंदौर से धर्मपुरी, उज्जैन और नीमच हो कर नागदा जंक्शन तक कई टोल नाके पड़ते थे. इन नाकों पर सतीश की वैगनआर का नंबर तो दर्ज था, पर फुटेज साफ नहीं थी. इस इलाके में काफी अफीम पैदा होती है, इसलिए यहां स्मग्लर सक्रिय रहते हैं. ये लोग टोल नाके से बचने के लिए जंगल के रास्तों से निकल जाते हैं. अगर सतीश की कार ऐसे किसी रास्ते से गई होती तो टोल नाके पर उस का नंबर दर्ज नहीं होता.
पुलिस की सब से बड़ी परेशानी यह थी कि उसे सतीश की वैगनआर नहीं मिल रही थी. जबकि इस बात की पूरी संभावना थी कि हत्या के बाद हत्यारों ने उसे कहीं न कहीं जरूर छोड़ा होगा. दूसरे सतीश की हत्या का कारण भी पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था.
29 अगस्त को गणेश चतुर्थी थी. त्योहार की वजह से उस दिन इंदौर के बाजारों में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. त्योहार की ही वजह से पुलिस ने जगहजगह चैकिंग नाके लगा रखे थे. एक नाके से एक वैगनआर गुजरी तो पुलिस ने उसे चैकिंग के लिए रोक लिया. कार में 30 साल के आसपास का एक युवक और 24-25 साल की एक युवती बैठी थी. पुलिस देख कर दोनों सकपका गए. जांच में पता चला कि चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. ऊपर से कार की आगे और पीछे की दोनों नबर प्लेटें भी गायब थीं.
पूछताछ में जब दोनों ठीक से जवाब नहीं दे सके तो उन्हें थाने ले आया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो युवक ने अपना नाम नंदकिशोर और युवती ने अपना नाम मिली उर्फ एंजल राय बताया. वैगनआर कार के गायब होने की जानकारी सभी थानों की पुलिस को थी, इसलिए बिना नंबर की वैगनआर पर सवार नंदकिशोर और मिली से थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने जब उस कार के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के बता दिया कि यह कार सतीश ततवादी की है, जिस की हत्या हो चुकी है.
इस के बाद कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने सतीश ततवादी की वैगनआर मिलने की सूचना थाना नागदा पुलिस को दी तो थाना नागदा की एक पुलिस टीम थाना लसूडि़या पहुंची और नंदकिशोर तथा मिली उर्फ एंजल राय को हिरासत में ले कर थाना नागदा ले गई.
थाना नागदा में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में नंदकिशोर और मिली से सतीश ततवादी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो नंदकिशोर ने तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन मिली ने मुसकराते हुए अपना अपराध स्वीकार कर के सतीश की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. मिली द्वारा सुनाई गई सतीश ततवादी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी.
मध्य प्रदेश के बैतूल की रहने वाली मिली के 11 साल की होते होते उस के मातापिता एकएक कर के गुजर गए थे. मातापिता की मौत के बाद उस का ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो उसे सहारा देता. इसलिए उसे किसी ने अनाथाश्रम पहुंचा दिया, वहां से वह भोपाल के चाइल्ड केयर सेंटर आ गई.
वहीं से मिली ने पढ़ाई की और डांस सीखा. डांस में उस ने अच्छी तरह महारत हासिल कर ली तो उस ने इसे ही रोजीरोटी का जरिया बनाना चाहा. वह टीवी देखती ही रहती थी. उन दिनों सोनी चैनल पर डांस का रियलटी शो बूगीवूगी आता था. डांस सीखने वालों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था. इस के अलावा अन्य लोग भी इस कार्यक्रम में काफी रुचि लेते थे. खास कर बच्चे इसे बहुत पसंद करते थे. मिली भी डांस सीख रही थी. इसलिए वह भी इस कार्यक्रम को देखती थी.
मिली खूबसूरत और आकर्षक तो थी ही, चंचल और तेजतर्रार भी थी. उस की भी इच्छा बूगीवूगी में भाग लेने की होती थी. यही वजह थी कि उस ने अपने नृत्य के कुछ चित्रों के साथ फार्म भर कर बूगीवूगी में भेज दिया. वह सुंदर भी थी और डांस में पारंगत भी, बूगीबूगी में उस का चयन हो गया. अब तक मिली 18 साल की हो चुकी थी.
वह मुंबई पहुंच गई. बूगीवूगी में उस ने अपना ऐसा जौहर दिखाया कि उस साल की वह ‘विनर’ घोषित की गई.
मिली मुंबई में ही रह कर काम तलाश करने लगी. लेकिन उसे कहीं चांस नहीं मिला. धीरेधीरे पैसे खत्म हो गए और कहीं काम नहीं मिला तो वह इंदौर वापस आ गई. बूगीबूगी का विनर होने पर उसे जो पैसे इनाम में मिले थे, वह मुंबई में ही काम की तलाश में खर्च हो गए थे. अब वह बच्ची भी नहीं रही थी कि चाइल्ड केयर सेंटर में रह लेती. इसलिए इंदौर आ कर सब से पहले उस ने ग्वालटोली मोहल्ले में किराए पर मकान ले कर रहने की व्यवस्था की. इस के बाद गुजरबसर के लिए वह बच्चों तथा लड़कियों को डांस सिखाने लगी. इस काम से उस की ठीकठाक कमाई होने लगी, जिस से वह ठाठ से रहने लगी.
मिली अब तक जवान हो चुकी थी. लेकिन उस का कोई ऐसा अपना नहीं था, जिस से वह अपना सुखदुख बांट सकती. अकेली होने की वजह से कभीकभी उसे घुटन सी होने लगती थी. अब उसे एक ऐसे साथी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो उस की भावनाओं को समझे और उस की हर तरह से मदद भी करे. उस की यह तलाश जल्दी ही पूरी हुई. उसे साथी के रूप में बलवंत सिंह तोमर मिल गया. बलवंत अच्छा आदमी था. इसलिए मिली ने उस से प्यार ही नहीं किया, बल्कि उसे जीवनसाथी भी बना लिया.
लेकिन ज्यादा दिनों तक बलवंत सिंह तोमर की मिली से निभ नहीं पाई. इस की वजह यह थी कि मिली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. डांस कार्यक्रम में भाग लेने की वजह से उस की सोच तो बदल ही गई थी, रहनसहन भी बदल गया था. इसलिए उस के खर्च भी अनापशनाप हो गए थे, जो अब डांस सिखाने से पूरे नहीं हो रहे थे. ऐसे में पैसे कमाने के उस ने अन्य रास्ते खोज लिए. निश्चित था, वे रास्ते ठीक नहीं रहे होंगे, इसलिए बलवंत ने उस से किनारा कर लिया.
इंदौर के निपानिया स्थित ‘सैटिसफैक्शन फर्नीचर’ बहुत बड़ा फर्नीचर शोरूम है. इंदौर के ही लोटस विला, सुपर सिटी निवासी सतीश ततवादी इसी फर्नीचर शोरूम में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तैनात थे, मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव का होने की वजह से उन के साथ के कर्मचारी उन की बड़ी इज्जत करते थे. उन के परिवार में मातापिता और 2 भाइयों के अलावा पत्नी श्रेया और 14 साल की बेटी ईशा को मिलाकर 7 सदस्य थे. उन का पूरा परिवार एक साथ रहता था.
20 अगस्त को सतीश ततवादी घर पर लंच कर के अपनी कार से शोरूम पर जाने के लिए निकले. जातेजाते उन्होंने पत्नी श्रेया से कहा, ‘‘आज फैक्ट्री में एक मीटिंग है, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. हो सकता है 10, साढ़े 10 बज जाएं.’’
रात को साढ़े 10 बजे तक सतीश घर नहीं लौटे तो श्रेया ने फोन किया, लेकिन फोन पति के बजाय किसी और ने रिसीव किया. श्रेया की आवाज सुन कर उस ने कहा, ‘‘मैं साहब का पीए मुकाती बोल रहा हूं. साहब अभी बिजी हैं. हम लोग इस वक्त उज्जैन में हैं, बाद में बात करना.’’
श्रेया की बात सुने बिना ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह बात श्रेया को इसलिए अजीब लगी, क्योंकि सतीश का कोई पीए नहीं था. उन्होंने दोबारा फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद घर वालों ने दर्जनों बार सतीश का नंबर मिलाया, पर वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.
इस से परिवार के सभी लोगों के मन में तरहतरह की शंकाए सिर उठाने लगीं. वजह यह कि न तो सतीश ने उज्जैन जाने के बारे में कुछ बताया था और न कभी वह अपना मोबाइल बंद रखते थे.
रात भर फोन मिलाते रहने के बावजूद सतीश से किसी की बात नहीं हुई. ततवादी परिवार की वह रात आंखोंआंखों में कटी. जैसेतैसे रात गुजरी. सुबह होते ही सतीश के पिता रामकृष्ण ततवादी अपने दोनों बेटों संतोष और संजय को साथ ले कर अपने क्षेत्र के थाना लसूडि़या जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार को सारी बात बता कर सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सतीश फैक्ट्री में होने वाली किसी मीटिंग में शामिल होने की बात कह कर घर से निकले थे.
थानाप्रभारी श्री गहरवार ने उन लोगों को यह आश्वासन दे कर घर लौटा दिया कि वह इस मामले की जांच पूरी तत्परता से करेंगे. श्री गहरवार छानबीन के लिए अपनी टीम के साथ फर्नीचर की उस फैक्ट्री में गए. वहां के कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि वहां ऐसी कोई मीटिंग थी ही नहीं, साथ ही यह भी कि उस दिन सतीश वहां आए ही नहीं थे. इस का मतलब सतीश झूठ बोल कर घर से निकले थे और उन के साथ कोई घटना घट गई थी.
थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने थाने लौट कर सतीश ततवादी के हुलिए सहित यह सूचना जिले के सभी थानों को भेज दी.
21 अगस्त, 2014 की सुबह थाना बिरलाग्राम के गांव डाबरी का एक आदमी जंगल की ओर गया तो उस ने पुलिया के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश कंबल में लिपटी हुई थी. वह व्यक्ति दौड़ादौड़ा थाना बिरलाग्राम गया और यह बात थानाप्रभारी नरेंद्र यादव को बताई.
नरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ जिस समय घटनास्थल पर पहुंचे, उस समय साढ़े 11 बजे थे. सूचना सही थी. मृतक 40-41 साल का हट्टाकट्टा व्यक्ति था. पुलिस ने लाश के आसपास का सारा इलाका छान मारा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.
मृतक के शव से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. अलबत्ता पहचान के लिए पुलिस ने लाश के फोटो जरूर करा लिए थे. इस के बाद थानाप्रभारी नरेंद्र यादव ने अन्य थानों में पहचान के लिए लाश के फोटो वाट्सएप पर भिजवा दिए.
थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने वाट्सएप पर आया लाश का फोटो देखा तो सतीश के भाई संजय और संतोष को थाने बुला लिया. दोनों भाइयों ने थानाप्रभारी के मोबाइल पर आया लाश का फोटो देखा तो चीखचीख कर रोने लगे. वह उन के भाई सतीश की लाश का फोटो था. थानाप्रभारी ने उन्हें बताया कि वह फोटो जिला नागदा जंक्शन के थाना बिरलाग्राम से आया है. अत: लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें वहीं जाना होगा.
सतीश के पिता रामकृष्ण अपने दोनों बेटों संजय और संतोष को साथ ले कर किराए की कार से थाना बिरलाग्राम जा पहुंचे. वहां से वह पुलिस के साथ नागदा जंक्शन गए. तब तक लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. बापबेटों ने शव को पहचान लिया. लाश सतीश की ही थी. लिखापढ़ी के बाद लाश रामकृष्ण ततवादी को सौंप दी गई. इस के बाद सतीश की हत्या का केस थाना बिरलाग्राम में दर्ज हो गया था.
सतीश के शव को इंदौर लाया गया तो उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. पूरे सेक्टर में सन्नाटा छाया था. सतीश की पत्नी श्रेया और बेटी ईशा अर्द्धबेहोशी के आलम में थीं. बहरहाल, उसी दिन सतीश का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
सतीश की हत्या की खबर मिलने के बाद थाना बिरलाग्राम और थाना लसूडि़या की पुलिस मिल कर जांचपड़ताल में लग गई. इस के लिए पुलिस ने सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. सतीश ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन इंदौर जिले के गांव छोटा धर्मपुरी, उज्जैन, नीमच और नागदा की आ रही थी. यानी घटना के दिन वह नंबर कई जगहों पर रहा था.
चूंकि सतीश अपनी वैगनआर कार से गए थे, इसलिए पुलिस ने टोल नाकों से फुटेज निकलवा कर चेक की. लेकिन रात के अंधेरे की वजह से फुटेज में कुछ भी साफ नजर नहीं आया.
सतीश की काल डिटेल्स में 2 आखिरी नंबर संदिग्ध थे. नागदा पुलिस ने साइबर क्राइम सेल उज्जैन से उन नंबरों की जांच कराई तो उन में एक नंबर छोटी ग्वालटोली इंदौर में रहने वाली मिली उर्फ एंजल राय का निकला. थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने मिली उर्फ एंजल राय के पते पर छानबीन की तो वह लापता मिली. मतलब उस ने अपना ठिकाना बदल लिया था. नरेंद्र सिंह ने यह सूचना नागदा पुलिस को दे दी.