
निक उछल कर खिड़की की चौखट पर चढ़ गया. फिर पाइप पर लटक कर वह धीरेधीरे विलियम के औफिस की तरफ बढ़ने लगा. वह सोच रहा था कि अगर किसी ने उसे इस तरह लटकते देख लिया तो बचना मुश्किल होगा. इस से बड़ा खतरा एक और भी था. दरअसल एडगर के फ्लैट की खिड़की पर पाइप का सिरा 6 फुट अंदर था, जबकि विलियम के औफिस की खिड़की का छज्जा डेढ़-2 फुट चौड़ा था.
अगर पाइप छज्जे से हट जाता तो उस की हड्डियों का चूरा हो सकता था. तीसरी मंजिल से गिर कर बचना असंभव था. इसलिए वह बहुत सावधानी से बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था, ताकि पाइप को झटका न लगे और वह अपनी जगह पर टिका रहे.
आखिर वह दूसरे किनारे पर पहुंच गया. पाइप छोड़ कर वह छज्जे से लटक गया. ऊपर चढ़ने में उसे कोई खास मुश्किल नहीं हुई. यह उस की खुशकिस्मती थी कि खिड़की अंदर से बंद नहीं थी. अंदर पहुंच कर निक ने फूली सांसें दुरुस्त कीं, फिर कमरे का निरीक्षण करने लगा. इस के लिए उस ने अपनी पेंसिल टौर्च निकाल ली थी.
यह एक कमरे का औफिस था. दीवार में अलमारियां बनी हुई थीं, जिन में कानून की ढेरों किताबें रखी थीं.एक तरफ फाइल कैबिनेट थी. एक लोहे की तिजोरी लगी थी. निक वेल्वेट ने पहले दराजों की तलाशी ली, फिर तिजोरी पर ध्यान दिया. वालकाट कंपनी की तिजोरी का मेक देख कर निक खुश हो गया. इसे खोलना उस के बाएं हाथ का खेल था. वह अपने सामान के साथ तिजोरी पर झुक गया.
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3 मिनट में उस ने तिजोरी खोल ली. तिजोरी में कई खास केसेज की फाइलें रखी हुई थीं. एक खाने में उसे लिपस्टिक भी मिल गई. उस ने उसे संभाल कर जेब में रखा, फिर उसी खाने में रखी एक फाइल उठा कर पढ़ने लगा. यह किसी के कत्ल का केस था. निक को यह केस खासा दिलचस्प लगा. वह देर तक फाइल देखता रहा, पढ़ता रहा. फिर उस ने फाइल वहीं रख कर तिजोरी बंद कर दी और खिड़की से निकल कर जिस रास्ते आया था, उसी रास्ते वापसी का सफर तय करने लगा.
वह एडगर की खिड़की से करीब 4 फुट दूर था कि एक कार गली में दाखिल हुई. कार की छत पर जलने वाली नीली लाल बत्ती बता रही थी कि वह पुलिस की पैट्रोलिंग कार थी. कार गली में ठीक पाइप के नीचे रुक गई. निक को अपनी सांस रुकती हुई लगी. उस ने नीचे झांक कर देखा, 2 पुलिस वाले कार से निकल आए थे. उन में से एक के हाथ में रिवाल्वर था.
उन्होंने निक वेल्वेट को देख लिया था. एक ने चीख कर कुछ कहा पर निक की समझ में नहीं आया. एक पुलिस वाला इमारत के दरवाजे की तरफ दौड़ा. निक तेजी से आगे बढ़ने लगा, 4 फुट का फासला उसे इस वक्त जैसे 4 मील का लग रहा था. पाइप को झटके लग रहे थे. उसे डर था कि दूसरी खिड़की के छज्जे से पाइप सरक न जाए.
आखिरकार वह खिड़की तक पहुंच गया. उस ने जैसे ही पाइप को छोड़ा, एक जोरदार झटका लगा. दफ्तर वाली खिड़की के छज्जे से पाइप हट गया और वह नीचे गिरने लगा. निक चौखट पर चढ़ चुका था. उस ने जैसे ही कमरे में छलांग लगाई, गली में पाइप के गिरने की आवाज आई. पाइप शायद पुलिस की कार पर गिरा था.
निक वेल्वेट यूं ही दरवाजा बंद कर के फ्लैट से बाहर निकला तो नीचे सीढि़यों पर भारी कदमों की आवाज सुनाई दी. पुलिस वाले तेजतेज कदमों से ऊपर आ रहे थे. निक ने इधरउधर देखा और फौरन ऊपर जाने वाले जीने की तरफ दौड़ पड़ा. वहां से तीसरी इमारत में पहुंच कर पीछे के जीने से होता हुआ वह अपनी कार तक पहुंच गया. फिर उस ने इंजिन स्टार्ट कर तेजी से एक तरफ गाड़ी दौड़ा दी. अब वह पुलिस की पहुंच से बाहर था.
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मिस स्वीटी और निक वेल्वेट की मुलाकात एक रेस्टोरेंट में हुई. निक के साथ ग्लोरिया भी थी. बातचीत के बाद निक ने जेब से लिपस्टिक निकाल कर स्वीटी को थमाते हुए कहा, ‘‘अच्छे से चैक कर लो, वही लिपस्टिक है न?’’
‘‘हां, बिलकुल वही है. बहुत बहुत शुक्रिया. तुम ने मुझे बड़ी मुसीबत से बचा लिया.’’ स्वीटी ने लिपस्टिक को ध्यान से देख कर कहा.
‘‘अब की बार तुम बच गई, लेकिन आइंदा ऐसी हरकत मत करना, वरना…’’ निक ने बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘…वरना क्या?’’ स्वीटी ने उलझन भरी नजरों से निक की ओर देखते हुए कहा.
‘‘वरना यह भी हो सकता है कि फांसी का फंदा तुम्हारे गले में फिट हो जाए.’’ निक रूखे स्वर में बोला.
स्वीटी का चेहरा एकदम उतर गया. कुछ पल वह निक को देखती रही, फिर बिना कुछ कहे उठ खड़ी हुई और रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई.
‘‘क्या मामला था निक?’’ ग्लोरिया ने पूछा तो निक बोला, ‘‘यह लिपस्टिक सुबूत के तौर पर एक कत्ल के मुकदमे में पेश होने वाली थी. अगर यह अदालत तक पहुंच जाती तो स्वीटी को सजा ए मौत नहीं तो उम्रकैद जरूर हो सकती थी.’’
‘‘मैं समझी नहीं.’’
‘‘बात दरअसल यह है कि स्वीटी जेम्स नाम के एक आदमी से मोहब्बत करती थी. बहुत दिनों बाद राज खुला कि उस की दोस्त क्लारा भी जेम्स को चाहती थी. एक रात जब स्वीटी जेम्स के घर पहुंची तो वहां कोई भी नहीं था. वहां उसे ड्रेसिंग टेबल पर क्लारा का एक खत मिल गया, जो जेम्स के नाम था.
उन दोनों ने किसी और जगह मुलाकात का प्रोग्राम बनाया था. स्वीटी जल कर रह गई. उस ने गुस्से में पर्स से लिपस्टिक निकाली और जेम्स की तसवीर पर, जो ड्रेसिंग टेबल पर रखी थी, कई आड़ीतिरछी लकीरें खींच दीं. तसवीर को उस ने क्रौस भी कर दिया.
‘‘यह लिपस्टिक प्रोडक्शन मैनेजर ने उसे उसी दिन दी थी, जो बदहवासी में उस ने ड्रेसिंग टेबल पर फेंक दी और पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. इत्तफाक से थोड़ी देर बाद क्लारा वहां पहुंच गई. उस ने लिपस्टिक उठा कर अपने पर्स में डाली और वहां से चली गई.
‘‘उसी रात किसी ने जेम्स को कत्ल कर दिया. पुलिस के ख्याल में कातिल वही था, जिस ने लिपस्टिक से जेम्स की तसवीर पर क्रौस का निशान लगाया था. पुलिस को इस लिपस्टिक की तलाश थी, ताकि उस के मालिक का पता लगाया जा सके. जेम्स के भाई ने विलियम को वकील किया, विलियम को इस लिपस्टिक की तलाश थी, ताकि इसे सुबूत के तौर पर अदालत में पेश कर सके.
‘‘विलियम को स्वीटी पर शक था. किसी तरह उसे पता चल गया था कि स्वीटी को भी उस लिपस्टिक की तलाश है. उसे यह मालूम हो गया था कि वही लिपस्टिक मिस क्लारा के कब्जे में है. उसे यह भी पता चल गया था कि स्वीटी मेरे जरिए वह लिपस्टिक हासिल करना चाहती है. इस के बाद उस ने मेरे पीछे अपने आदमी लगा दिए.
‘‘मैं जैसे ही क्लारा के घर से लिपस्टिक चुरा कर निकला, विलियम के आदमियों ने मुझे घेर लिया और मुझे बेहोश कर के लिपस्टिक ले उड़े. गनीमत यही थी कि मुझे उस की गाड़ी का नंबर याद रह गया था. फिर मैं ने तुम्हारे जरिए उस गाड़ी के मालिक के बारे में मालूमात हासिल की और पिछली रात जुगाड़ कर उस के दफ्तर में जा घुसा, जहां से यह लिपस्टिक हासिल की.
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‘‘उस के दफ्तर में कत्ल के केस की एक फाइल मुझे दिखी, मैं ने उसे पढ़ा तो पता चला कि कत्ल किसी और ने किया था, पर विलियम और जेम्स का भाई जेम्स के कत्ल का इल्जाम स्वीटी पर लगा कर उसे फंसाना चाहते थे. वे उसी लिपस्टिक को सुबूत के तौर पर स्वीटी के खिलाफ पेश करना चाहते थे.
‘‘लेबोरेटरी टेस्ट से जब यह साबित हो जाता कि जेम्स की तसवीर पर लकीरें स्वीटी की लिपस्टिक से लगाई गई थीं तो उन के लिए यह प्रूव करना मुश्किल नहीं था कि नफरत और जलन की भावना से तैश में आ कर पहले उस ने उस की तसवीर बिगाड़ी, फिर उसे कत्ल कर दिया. यह स्वीटी की खुशकिस्मती थी कि वह लिपस्टिक मुझे मिल गई थी.’’
‘‘ओह तो यह चक्कर था.’’ ग्लोरिया ने ताज्जुब से कहा.
‘‘यह चक्कर तो अब खत्म हो गया, पर इस बार मुझे बहुत पापड़ बेलने पड़े. मेरी जान तक खतरे में पड़ गई.’’
बातचीत के बाद दोनों रेस्टोरेंट से निकल कर दरिया के किनारे सैर को निकल गए.
क्लारा ने पिछले दिन उसे बताया था कि उस के कमरे में बिना उस की इजाजत कोई नहीं आ सकता, इसीलिए निक ने यह रिस्क लिया था. क्लारा को ठीक से लिटाने के बाद उस ने कमरे का दरवाजा बंद किया और उस की ड्रेसिंग टेबल की तलाशी लेनी शुरू कर दी. ‘लीलाली’ वाली जामुनी रंग की लिपस्टिक ड्रेसिंग टेबल की दराज में मिल गई. उस ने लिपस्टिक का केस और पुराने टिकट की डिबिया अपने पास संभाल कर रख ली. पैसों को उस ने हाथ भी नहीं लगाया. वह चाहता तो 3 लाख डौलर ले सकता था, पर यह उस के उसूल के खिलाफ था.
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नीचे आ कर वह बिना किसी रुकावट के अपनी कार तक पहुंच गया. जब वह कार में बैठ रहा था तो क्लारा की मेड सैंड्रा ने उस की ओर देख कर हाथ हिलाया. उस ने भी खुशदिली से हाथ हिला कर कार स्टार्ट कर दी. गार्ड्स ने भी फौरन गेट खोल दिया. निक आराम से गाड़ी बाहर निकाल ले गया.
करीब 2-3 मील का फासला तय करने के बाद निक ने एक मोड़ पर गाड़ी घुमाई ही थी कि अचानक एक तेज रफ्तार कार ने पीछे से आ कर उस का रास्ता रोक दिया. निक ने फुरती से ब्रेक लगाया. इस के पहले कि निक संभल पाता, आने वाली गाड़ी से 2 आदमी उतरे और उस के दाईं और बाईं ओर खड़े हो गए. तीसरा आदमी स्टीयरिंग पर बैठा था. उन की सूरत देखते ही निक समझ गया कि मामला गड़बड़ है.
निक ने सोचा कि कहीं क्लारा की बेहोशी का राज तो नहीं खुल गया. हो सकता है उसी के आदमी पीछे आ गए हों. लेकिन उस ने यह खयाल दिमाग से निकाल दिया, क्योंकि क्लारा को इतनी जल्दी होश आना मुमकिन नहीं था.
आगेपीछे सड़क बिलकुल वीरान पड़ी थी. जो आदमी निक के पास खड़ा था, वह खिड़की पर झुका, उस के हाथ में भारी रिवाल्वर था. उस का दूसरा साथी भी पिस्तौल निकाल चुका था.
‘‘कौन हो तुम लोग, क्या चाहते हो?’’ निक ने पूछा.
‘‘मेरी तरफ देखो, मैं बताता हूं कि हम कौन हैं?’’ एक आदमी ने कहा तो निक ने गरदन घुमा कर उस की तरफ देखा. तभी उस के सिर पर जोरों से रिवाल्वर का दस्ता पड़ा और उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.
होश में आते ही निक वेल्वेट ने अपनी जेबें टटोलीं. उस की जेबों में सब चीजें मौजूद थीं सिवाय ‘लीलाली’ वाली उस लिपस्टिक के, जिसे वह क्लारा के पास से चुरा कर लाया था. वह सोचने लगा, ‘अगर ये लुटेरे थे तो इन्हें लिपस्टिक में क्या दिलचस्पी हो सकती थी? जेब में करीब 4 हजार डौलर थे, घड़ी थी, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं लिया था.’
उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 7 बज रहे थे. इस का मतलब वह करीब 2 घंटे बेहोश रहा था. वह सिर सहला ही रहा था कि अचानक दिमाग में धमाका सा हुआ. उसे उस गाड़ी का नंबर याद रह गया था, जिस ने रास्ता रोका था. उस ने जल्दी से वह नंबर अपनी डायरी में नोट किया और गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की वह रात सिर की सिंकाई में गुजरी.
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निक की जिंदगी का यह पहला मौका था, जब कोई उसे इस तरह चूना लगा गया था. उन लोगों के बारे में सोचसोच कर उस का दिमाग थक गया, पर कुछ समझ में नहीं आया. इस का मतलब वह लिपस्टिक बहुत महत्त्व की थी.
दूसरे दिन सुबह नाश्ते के बाद वह सीधा मोटर व्हीकल रजिस्ट्रेशन के औफिस पहुंच गया. नंबर से पता चला कि वह गाड़ी किसी विलियम के नाम पर रजिस्टर्ड थी. यह जानकारी जुटा कर वह एक रेस्टोरेंट में घुस गया. वहां सुकून से बैठ कर उस ने ग्लोरिया को रेस्टोरेंट में आने को कहा. कौफी का और्डर दे कर वह उस की राह देखने लगा. ग्लोरिया 5-7 मिनट में पहुंच गई. निक ने उस से कहा, ‘‘ग्लोरिया, मुझे तुम से एक काम लेना है.’’
‘‘मैं पहले ही समझ गई थी कि कोई गड़बड़ है. इसलिए मैं लंच ब्रेक तक छुट्टी ले कर आई हूं.’’
‘‘यह तुम ने ठीक किया,’’ निक ने एक कागज उसे देते हुए कहा, ‘‘यह किसी विलियम का पता है. इस के बारे में पूरी मालूमात कर के आओ. मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. मेरा खयाल है कि तुम 12 बजे तक लौट आओगी.’’
‘‘ठीक है, अगर घर न आ सकी तो 12 बजे तक तुम्हें फोन कर दूंगी.’’ ग्लोरिया ने वादा किया.
कौफी पीने के बाद दोनों रेस्टोरेंट से निकल गए.
करीब 12 बजे फोन की घंटी बजी. निक ने लपक कर फोन उठाया. फोन ग्लोरिया का ही था. वह अपने औफिस से बोल रही थी. वह बोली, ‘‘मैं ने विलियम के बारे में मालूम कर लिया है. वह एक बड़ा वकील है और आमतौर पर क्रिमिनल केस लेता है. उस के 2 असिस्टेंट भी हैं, जो उस के साथ ही रहते हैं. इत्तफाक से मैं उन दोनों को भी देख चुकी हूं.’’
ग्लोरिया ने उन दोनों का हुलिया भी बयान कर दिया.
‘‘गुड.’’ निक ने मुसकराते हुए कहा. हुलिए के हिसाब से वे दोनों वही थे, जिन्होंने उस की कार रोकी थी. तीसरे को वह इसलिए नहीं देख सका था, क्योंकि वह कार के अंदर ही बैठा था. उस ने ग्लोरिया को शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘तुम ने काफी बड़ा काम कर दिखाया है.’’
निक ने टेलीफोन डायरैक्टरी के जरिए विलियम के औफिस का पता मालूम कर लिया. फिर वह फ्लैट से निकल गया. विलियम का औफिस एक तंग सी गली में तीसरी मंजिल पर था. निक ने कुछ आगे जा कर गली के मोड़ पर गाड़ी रोकी और पैदल ही विलियम के औफिस के ठीक सामने वाली इमारत में घुस गया. यह उस की खुशकिस्मती थी कि इस इमारत में रिहायशी फ्लैट थे. तीसरी मंजिल पर वह उस फ्लैट के दरवाजे पर रुक गया, जो गली के पार विलियम के दफ्तर के ठीक सामने था.
निक ने उस फ्लैट का दरवाजा खटखटाया. करीब 2 मिनट बाद दरवाजा खुला. दरवाजा खोलने वाला एक खस्ताहाल आदमी था, जिस ने पुराने मैले से कपडे़ पहन रखे थे. उसे देख कर निक समझ गया कि वह बड़ी गरीबी में दिन गुजार रहा है.
‘‘मिस्टर निक्सन?’’ निक ने सवालिया अंदाज में पूछा.
‘‘नहीं, मेरा नाम एडगर है.’’ उस ने जवाब दिया.
‘‘माफ करना मिस्टर एडगर, क्या तुम मुझे अंदर आने को नहीं कहोगे?’’ कहते हुए निक ने जेब से पर्स निकाला और उस में से 10 डौलर निकाले. डौलर देख कर एडगर की आंखों में चमक आ गई. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘अरे आओ अंदर, मिस्टर…’’
निक ने अंदर आते ही नोट उस के हाथ में दे दिया. एडगर ने झट से दरवाजा बंद कर दिया. निक कमरा देखने लगा. फर्श पर फटापुराना कालीन बिछा था. फरनीचर काफी पुराना और सस्ता सा था. वह सिटिंग रूम था. निक दूसरे कमरे में गया, जिस की एक खिड़की सड़क पर खुलती थी. खिड़की पर मैला सा परदा पड़ा हुआ था. उस कमरे में एक बेड और अलमारी के सिवाय कुछ नहीं था.
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निक ने खिड़की का परदा उठा कर बाहर देखा. सामने ही विलियम के दफ्तर की खुली खिड़की थी. उस के औफिस में 4 लोग बैठे थे. उन में से 2 तो वही थे, जो उसे चोट पहुंचा कर लिपस्टिक ले गए थे. टेबल के पीछे रिवाल्विंग चेयर पर एक अजनबी आदमी बैठा था. वही शायद विलियम था.
निक एडगर की तरफ देख कर बोला, ‘‘तुम्हारी हालत बहुत खराब दिख रही है.’’
‘‘मैं एक रेस्टोरेंट में वेटर था, पर शराब की लत की वजह से मेरी नौकरी चली गई. 2 महीने से बेकार हूं. 2 दिनों से कुछ खाया भी नहीं है. तुम ने मेरी बड़ी मदद कर दी है.’’
‘‘निक्सन, मेरे बचपन के दोस्त का नाम है. 20 साल पहले उस से मेरी आखिरी मुलाकात इसी फ्लैट में हुई थी. पर अब वह यहां नहीं रहता. उसे कहीं और ढूंढने जाना होगा.’’
‘‘मुझे अफसोस है, तुम्हारे दोस्त से तुम्हारी मुलाकात नहीं हो सकी.’’
‘‘लेकिन मैं कुछ और ही सोच कर परेशान हूं. मैं ने यह जाने बगैर कि मेरा दोस्त यहां है या नहीं, अपने 2 दोस्तों को पुरानी यादें ताजा करने के लिए उन्हें भी यहां बुला लिया. आज रात वे यहां पहुंचने वाले हैं. हम यहां पुरानी यादें ताजा करना चाहते थे. पर सब गड़बड़ हो गया.’’ निक ने उदासी भरे स्वर में कहा.
‘‘अगर तुम्हारे दोस्त यहां आने वाले हैं तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है. मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करूंगा.’’ एडगर ने खुशीखुशी कहा.
‘‘गुड. क्या यह मुमकिन है कि हम तीनों दोस्त यहां मस्ती करें और तुम आज रात कहीं दूसरी जगह चले जाओ. मेरा मतलब है कि किसी होटल वगैरह में. बात दरअसल यह…’’
‘‘मैं समझ गया.’’ एडगर ने कहा, ‘‘दोस्तों के बीच अजनबी का क्या काम?’’ एडगर ने चापलूसी से कहा. निक ने 50 डौलर उसे थमाए तो मारे खुशी के उस के हाथ कांपने लगे. वह जल्दी से बोला, ‘‘यह लो चाबी, मैं जा रहा हूं. बहुत भूख लगी है. मैं कल दोपहर बाद फ्लैट पर आऊंगा. तुम ताला लगा कर चाबी पड़ोस में दे देना. अगर खुला भी छोड़ दोगे तो कोई बात नहीं. क्योंकि कुछ जाने का डर नहीं है.’’
एडगर ने चाबी निक को थमाई और खुद बाहर निकल गया. उसे डर था कि कहीं वह पैसे वापस न मांग ले.
निक उस की सादगी पर मुसकराया. उसे उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी काम बन जाएगा. एडगर के जाने के बाद वह भी फ्लैट से बाहर निकल गया.
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इस इमारत में निक वेल्वेट की वापसी रात को साढ़े 11 बजे हुई. उस वक्त इलाके में पूरी तरह सन्नाटा छा चुका था. किसी किसी इमारत में हलकी सी रोशनी थी. इस बार भी निक ने अपनी गाड़ी फ्लैट से दूर ही खड़ी की थी. उस ने गाड़ी में से एक बंडल उठाया, जिस में 5-5 फुट के लोहे के 6 चूड़ीदार पाइप थे. ये पाइप निक ने आज दिन में ही खरीदे थे.
उस ने फ्लैट में पहुंच कर खिड़की खोल कर बाहर देखा. सड़क सुनसान थी. सामने वाली इमारत भी अंधेरे में डूबी थी. विलियम के औफिस में भी अंधेरा था. निक देर तक उस औफिस की खिड़की को ध्यान से देखता रहा. उस ने कुरसी पर बैठ कर एक सिगरेट सुलगा ली.
रात के करीब डेढ़ बजे उस ने पाइप निकाले और उन्हें सौकिट की मदद से जोड़ने लगा. हर पाइप में चूडि़यां थीं, इसलिए सब आसानी से जुड़ गए. इस तरह 30 फुट लंबा पाइप तैयार हो गया.
निक ने कमरे के बीच का दरवाजा भी खोल लिया था. पाइप तैयार होने के बाद उस ने ध्यान से बाहर देखा, कहीं कोई हलचल नहीं थी. अब मंसूबे पर काम करने का वक्त आ गया था. उस ने पाइप खिड़की से बाहर निकाला. एक इंच मोटा पाइप धीरेधीरे बाहर निकलने लगा. उसे संभालने के लिए निक को बहुत ताकत लगानी पड़ रही थी, जैसे तैसे उस ने पाइप का दूसरा सिरा विलियम के औफिस के छज्जे पर टिका दिया. फिर उस ने पाइप को अच्छे से सेट कर के एक बार फिर नीचे देखा. नीचे बिलकुल सन्नाटा था.
यह बात निक ने दिन में ही नोट कर ली थी कि गली करीब 20 फुट चौड़ी है. फिर भी उस ने सावधानी के लिए 30 फुट का पाइप लिया था. विलियम के औफिस तक पहुंचने का उसे बस यही एक रास्ता समझ में आया था. क्योंकि दिन में वह देख चुका था कि इमारत में 2-3 वर्दीवाले बंदूकधारी गार्ड्स रहते हैं और रात के वक्त उन्हें धोखा दे कर इमारत में दाखिल होना मुमकिन नहीं है. वह जो कर रहा था, उस में रिस्क तो था, पर रिस्क लिए बिना काम होना संभव नहीं था.
क्लारा के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद निक ने स्वीटी के बारे में मालूमात की. वह वाकई कौस्मेटिक बनाने वाली कंपनी के रिसर्च डिपार्टमेंट में थी और प्रोडक्शन मैनेजर मिस्टर जैक्सन से उस का रोमांस चल रहा था. यह भी सच था कि कंपनी लीलाली नाम की एक नई लिपस्टिक बाजार में लाने वाली थी. इस से यह बात निश्चित हो गई कि स्वीटी झूठ नहीं बोल रही थी.
उसी रात निक ने अपने स्टोर में रखे ट्रंक में से टिकटों वाला एलबम निकाला. उस ने उन में से कुछ खास टिकट निकाले. उसे यकीन था कि ये टिकट क्लारा से मिलने का जरिया बनेंगे.
दूसरे दिन ग्लोरिया के दफ्तर जाने के बाद उस ने क्लारा को फोन किया. फोन किसी औरत ने उठाते ही कहा, ‘‘मिस्टर रेंबो स्मिथ बाहर गए हैं. एक हफ्ते बाद आएंगे.’’
निक जल्दी से बोला, ‘‘असल में मुझे उन की बेटी क्लारा से बात करनी है.’’
उधर से पूछा गया, ‘‘आप को मिस क्लारा से किसलिए मिलना है?’’
‘‘मेरे पास डाक टिकट के कुछ अनमोल नमूने हैं. इसी सिलसिले में मिस क्लारा से मिलना चाहता हूं.’’
‘‘एक मिनट होल्ड करें प्लीज.’’ दूसरी तरफ से कहा गया, फिर फोन में आवाज आई, ‘‘यस प्लीज.’’
‘‘मिस क्लारा, मैं जैकब बोल रहा हूं. मेरे पास डाक के कुछ नायाब टिकट हैं. मेरे दोस्त ने सलाह दी है कि मैं आप को दिखाऊं.’’ निक ने जल्दी से कहा.
‘‘किन देशों के टिकट हैं तुम्हारे पास?’’
‘‘मेरे पास ईरान, इराक और बहावलपुर रियासत के अलावा कई देशों के टिकट हैं.’’
‘‘मैं तुम्हारा कलेक्शन देखना पसंद करूंगी, शाम को मेरे घर आ जाओ.’’ क्लारा की आवाज में उत्साह था.
‘‘शाम को मुझे इन्हीं टिकटों के संबंध में किसी और क्लाइंट से मिलना है. फिलहाल मैं फ्री हूं.’’
‘‘ठीक है, अभी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं.’’
निक ने डाक टिकट संभाल कर लिफाफे में रखे और क्लारा के घर के लिए रवाना हो गया. रास्ता करीब 40 मिनट का था. वह क्लारा के घर पहुंच गया. गेट पर 2 हथियारबंद गार्ड खड़े थे. निक ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो उन्होंने उसे उस शानदार इमारत के अंदर जाने की इजाजत दे दी.
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निक ने अपनी कार आगे बढ़ा दी. करीब 50 कमरों की वह इमारत बहुत बड़ी और शानदार थी. बाहर शानदार लौन था. उस ने अपनी गाड़ी पोर्च के करीब रोक दी.
अधेड़ उम्र की एक औरत दरवाजा खोल कर बाहर आई और निक को अपने साथ अंदर ले गई. एक बड़ा कारीडोर पार कर के वह उस औरत के साथ शानदार लंबेचौड़े ड्राइंगरूम में पहुंचा और एक आरामदेह सोफे पर बैठ गया. करीब 5 मिनट बाद क्लारा ड्राइंगरूम में दाखिल हुई. उस ने खुलाखुला सा महीन कपड़े का गाउन पहन रखा था.
वह आते ही बोली, ‘‘माफ करना मिस्टर जैकब, मेरा आज कहीं जाने का इरादा नहीं था. जब घर में रहती हूं तो हलकीफुलकी ड्रेस पहनना पसंद करती हूं.’’
क्लारा उस के सामने बैठ गई. निक ने उस के हुस्न से आंखें चुराईं. दोनों की बातचीत शुरू हुई तो निक को जल्द ही अंदाजा हो गया कि डाक टिकटों के बारे में उसे बहुत अच्छी जानकारी है. अभी वे लोग बातें कर ही रहे थे कि 10-12 छोटे बड़े बच्चे दौड़ते हुए ड्राइंगरूम में आ गए और शोर मचाने लगे. शोर इतना ज्यादा था कि बात करना मुश्किल था.
‘‘माइ गौड, मैं तो तंग आ गई डैडी के इन रिश्तेदारों से.’’ क्लारा ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया.
‘‘क्या ये तुम्हारे डैडी के रिश्तेदार हैं?’’ निक ने हैरत से बच्चों को देखते हुए पूछा.
‘‘डैडी के रिश्तेदारों के बच्चे हैं. वह महीने में 2 बार अपने तमाम रिश्तेदारों को घर पर इनवाइट करते हैं. यहां उन पर कोई पाबंदी नहीं रहती. मिस्टर जैकब, मेरा खयाल है, हम लोग मेरे कमरे में चल कर बैठें तो बेहतर होगा. ये लोग हमें चैन से बातें करने नहीं देंगे.’’
निक ने अपने एलबम संभाले और क्लारा के साथ ऊपर उस के कमरे में आ गया. उस का कमरा कीमती चीजों से भरा हुआ था, लेकिन साफसुथरा नहीं था. ड्रेसिंग टेबल पर मेकअप का सामान बिखरा पड़ा था. कमरे की अस्तव्यस्त हालत देखते हुए उस ने कहा, ‘‘लगता है, तुम्हारे नौकर ठीक से काम नहीं करते.’’
क्लारा झेंपते हुए बोली, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं अपने कमरे में किसी को नहीं आने देती. मेरी इजाजत के बिना यहां कोई कदम भी नहीं रख सकता. अपनी बात करूं तो मुझे कमरा ठीक करने का टाइम नहीं मिलता.’’
निक मुसकरा कर पलंग पर बैठ गया. उस ने एक एलबम खोला और क्लारा को टिकट दिखाते हुए उन के बारे में बताने लगा. एलबम के तीसरे पन्ने में बहावलपुर रियासत के टिकट लगे थे. उन्हें देख कर क्लारा की आंखें चमकने लगीं. टिकट पर कुदरती मंजर के बीच एक बैलगाड़ी की तसवीर थी, जिस में आगे एक किसान बैठा था और पीछे गोद में बच्चा लिए एक औरत लकडि़यों पर बैठी थी. क्लारा ने टिकट देखते हुए कहा, ‘‘मैं यह टिकट लेना पसंद करूंगी. इस की कीमत बताओ.’’
‘‘मुझे अफसोस है, इस टिकट का सौदा हो चुका है. मैं बहावलपुर के 2 टिकट और दिखाता हूं.’’ निक ने पेज पलटते हुए कहा.
वह क्लारा को शाह ईरान की उलटी तसवीर वाला टिकट भी दिखाना चाहता था, पर उसे याद आया कि वह उस टिकट वाला एलबम तो घर भूल आया है. क्लारा शाह ईरान का उलटी तसवीर वाला टिकट किसी भी कीमत पर खरीदना चाहती थी. निक ने उस से कहा, ‘‘अगर मुझे कल शाम का टाइम दो तो मैं तुम्हारे लिए शाह ईरान का टिकट जरूर ले कर आऊंगा.’’
‘‘उस टिकट के लिए मैं तुम्हें मुंहमांगी कीमत दूंगी. याद रखना, कल शाम 5 बजे मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’
‘‘निश्चिंत रहिए, मैं पहुंच जाऊंगा.’’ निक ने कहा.
‘‘तुम बेहिचक आ जाना, मैं गेट पर कह दूंगी. तुम्हें कोई नहीं रोकेगा.’’ क्लारा ने कहा.
निक जब क्लारा के घर से निकला तो उस के होठों पर हलकी मुसकराहट थी.
दूसरे दिन निक ठीक 5 बजे क्लारा के घर पहुंचा. इस बार किसी ने उसे नहीं रोका. क्लारा उसे ड्राइंगरूम के दरवाजे पर ही मिल गई. आज वह बड़े सलीके के कपड़े पहने हुई थी और बहुत अच्छी लग रही थी. उस के कमरे में पहुंच कर निक सोफे पर बैठ गया. उस से थोड़ी दूरी पर बैठते हुए क्लारा ने पूछा, ‘‘टिकट लाए हो?’’
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‘‘हां,’’ कहते हुए निक ने जेब से एक लिफाफा निकाल कर उस के सामने रख दिया. क्लारा ने बड़ी सावधानी से लिफाफे से टिकट निकाला. वह ईरान के शाह का वही टिकट था, जिस पर उस की उलटी तसवीर छपी थी. टिकट देख कर क्लारा का चेहरा चमक उठा. वह देर तक टिकट को देखती रही. फिर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए सुबह ही रकम का बंदोबस्त कर लिया था. उस ने उठ कर अलमारी से नोटों की मोटी सी गड्डी निकाल कर निक के सामने रख दी.’’
‘‘आज मैं तुम्हारे लिए एक और अनमोल चीज ले कर आया हूं.’’ निक ने मुसकराते हुए जेब से एक छोटी सी डिबिया निकालते हुए कहा, ‘‘यह एक अनोखा टिकट है. इस में प्राचीन सभ्यता को बताया गया है. पूरी दुनिया में यह बस एक ही टिकट है. मैं इसे तुम्हें सिर्फ दिखाने के लिए लाया हूं.’’
निक वेल्वेट ने डिबिया खोल कर क्लारा की तरफ बढ़ा दी. डिबिया में एक बहुत ही पुराना डाक टिकट रखा था. उस ने क्लारा को चेताया, ‘‘यह बहुत पुराना है, जर्जर हालत में. हाथ मत लगाना. इस में एक अजीब सी महक है, सूंघ कर देखो. खास बात यह है कि इस की प्रिंटिंग में जो स्याही इस्तेमाल की गई थी, उस में खुशबू थी, जो आज तक बरकरार है.’’
क्लारा टिकट देख कर हैरान थी. डिबिया को नाक के करीब ले जा कर वह उसे सूंघने लगी. एक मीठी सी खुशबू उस के नथुनों से टकराई तो उस ने 2-3 बार सूंघा. जरा सी देर में वह बैठेबैठे लहराने लगी और फिर बेहोश हो कर वहीं लेट गई. निक के होठों पर मुसकान आ गई. क्लोरोफार्म में डूबे टिकट ने अपना काम कर दिया था.
निक वेल्वेट रात को एक क्लब से दूसरे क्लब में मारा मारा फिर रहा था. इस की वजह ऐश करना नहीं, बल्कि ग्लोरिया से उस की लड़ाई हो जाना थी. दरअसल ग्लोरिया ने निक को किसी लड़की के साथ तनहाई में रंगे हाथों पकड़ लिया था. तभी से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. इसी चक्कर में निक देर रात तब घर लौटता था, जब ग्लोरिया सो चुकी होती थी. सुबह को वह उस के उठने से पहले ही निकल जाता था. यह लड़ाई का तीसरा दिन था. निक बाहर अकेले खाना खाखा कर तंग आ चुका था.
उस दिन वह एक शानदार रेस्टोरेंट में बैठा खाना खा रहा था कि एक खूबसूरत लड़की उस से इजाजत ले कर उस के सामने आ बैठी. उस ने नीले रंग का चुस्त लिबास पहन रखा था.
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद लड़की ने उस से कहा, ‘‘मेरा नाम स्वीटी है मिस्टर निक वेल्वेट. मुझे आप के बारे में जैक्सन वड्स ने बताया था और आप से मिलने की सलाह दी थी. मैं बहुत परेशानी में हूं. आप की मदद की सख्त जरूरत है.’’
‘‘कैसी मदद? तुम मेरे बारे में क्या जानती हो?’’
‘‘मैं समझी थी कि जैक्सन का नाम सुन कर आप समझ जाएंगे, आप उन के लिए काम कर चुके हैं.’’
‘‘तुम मेरी शर्तों के बारे में जानती हो?’’ निक ने कहा तो वह बोली, ‘‘हां, आप किसी कीमती चीज को हाथ नहीं लगाते. ऐतिहासिक और राजनैतिक महत्त्व की कोई चीज भी नहीं चुराते. आप की फीस 25 हजार डौलर है, जो आप एडवांस में लेते हैं. मैं यह भी जानती हूं कि आप उसूलों के पक्के हैं.’’
निक ने उस लड़की को गौर से देखा, वह 24-25 साल की खूबसूरत लड़की थी. उस के चेहरे पर हलकी सी परेशानी थी.
निक ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कैसी मदद चाहिए? किस चीज की चोरी कराना चाहती हो?’’
‘‘एक लिपस्टिक की.’’ लड़की बोली.
‘‘बस एक लिपस्टिक…’’ निक ने हैरत से पूछा.
‘‘बात कुछ अजीब सी है, पर मेरे लिए यह बड़ी बात है, मेरी परेशानी भी समझ सकते हो. मैं काफी देर से तुम्हारा पीछा कर रही थी. अब जा कर तुम से बात करने का मौका मिला है.’’
पलभर रुक कर लड़की ने आगे कहा, ‘‘दरअसल मैं परफ्यूम और कौस्मेटिक बनाने वाली एक बड़ी कंपनी में काम करती हूं. मेरी कंपनी ‘लीलाली’ के नाम से एक नया प्रोडक्ट बाजार में लाने वाली है. यह प्रोडक्ट एक लिपस्टिक है, जो कई रंगों के अलावा हलके शेड्स में भी तैयार की जा रही है. मैं कंपनी के रिसर्च विभाग में काम करती हूं. अभी इस नए प्रोडक्ट को बाजार में आने में एक महीना बाकी है. माल की काफी बड़ी खेप तैयार हो चुकी है. एडवरटाइजमेंट भी शुरू हो गया है.
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‘‘चंद रोज पहले कंपनी के प्रोडक्शन मैनेजर ने इसी स्टाक में से एक लिपस्टिक मुझे गिफ्ट कर दी थी. यह गैरकानूनी और उसूल के खिलाफ हरकत थी, पर उस वक्त मुझे यह बात समझ में नहीं आई. उसूली तौर पर कोई चीज मार्केट में आने से पहले कंपनी से बाहर नहीं जानी चाहिए, पर प्रोडक्शन मैनेजर मेरी मोहब्बत में कुछ ज्यादा इमोशनल हो गया और यह गलत काम कर बैठा. उस ने चोरीछिपे एक लिपस्टिक मुझे गिफ्ट कर दी.
‘‘पता नहीं कैसे एक बड़े अफसर और डिपार्टमेंट को यह बात पता चल गई कि एक लिपस्टिक कंपनी से बाहर जा चुकी है. अभी तक किसी ने प्रोडक्शन मैनेजर पर शक नहीं किया है, लेकिन अगर हमारे नाम सामने आ गए तो हमें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. मुमकिन है गैरकानूनी काम करने की वजह से मैनेजर को पुलिस के हवाले कर दिया जाए.’’
‘‘पर इस मसले में मैं कहां फिट होता हूं?’’ निक ने कहा.
‘‘प्रौब्लम यह है कि मेरी एक दोस्त है क्लारा. कुछ दिनों पहले क्लारा ही वह लिपस्टिक मेरे घर से ले कर गई थी. अगर इस प्रोडक्ट का नाम भी लीक हो गया तो कंपनी को लाखों डौलर का नुकसान उठाना पड़ेगा. क्लारा एक करोड़पति बाप की बेटी है और मेरी बहुत अच्छी दोस्त है. मैं लिपस्टिक वापस मांग कर उसे नाराज नहीं करना चाहती. पर वह लिपस्टिक मैं हर कीमत पर वापस पाना चाहती हूं. 2 दिन पहले मैं ने मैनेजर जैक्सन से इस बात का जिक्र किया तो उस ने तुम्हारा नाम बताया. मेरा दोस्त प्रोडक्शन मैनेजर तुम्हारी फीस देने को तैयार है.’’ कह कर स्वीटी चुप हो गई.
‘‘ठीक है, इस लिपस्टिक की कोई खास पहचान है?’’
‘‘इस नाम की कोई और लिपस्टिक बाजार में मौजूद नहीं है. यह एक जामुनी शेड की लिपस्टिक है, जिस के ढक्कन पर खूबसूरती के लिए हीरे की तरह एक छोटा सा नगीना जड़ा है. यह इमिटेशन नगीना हर लिपस्टिक पर है और उस के नीचे आर्टिस्टिक ढंग से ‘लीलाली’ लिखा हुआ है,’’ स्वीटी ने बताया.
‘‘इस के लिए तुम मुझे कितना वक्त दोगी?’’ निक ने पूछा.
‘‘ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ता, इस से ज्यादा देर हमारे लिए बहुत खतरनाक होगी. मैं तुम्हें क्लारा का पता दे देती हूं, तुम उस पते को आसानी से ढूंढ सकते हो.’’
स्वीटी ने क्लारा का पता और फोन नंबर लिख कर निक को देते हुए बताया कि वह 6 बजे के बाद घर पर ही होती है. उसे कभी भी फोन कर सकते हो.
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जाने से पहले स्वीटी ने एक मोटा सा लिफाफा निक वेल्वेट को सौंप दिया. उसी वक्त निक की नजर गेट पर पड़ी, जहां ग्लोरिया एक युवक के साथ दाखिल हो रही थी. चेहरे से ही वह बदमाश नजर आ रहा था. निक का खून खौल उठा. ग्लोरिया की नजर निक पर पड़ी तो वह एक पल के लिए ठिठक गई. फिर नजरें चुरा कर आगे बढ़ गई.
स्वीटी से इजाजत ले कर निक उठ खड़ा हुआ और तेजी से ग्लोरिया की तरफ बढ़ा. वह उस के पास जा कर बोला, ‘‘तुम इस वक्त यहां? और यह साहब कौन हैं?’’
‘‘तुम मनमानी करते फिरो. किसी के साथ भी ऐश करते रहो और मैं कहीं न जाऊं? मैं अपने दोस्त के साथ आई हूं. तुम्हें कोई ऐतराज है?’’
निक ग्लोरिया का हाथ पकड़ कर अपनी मेज की तरफ बढ़ गया. उस युवक ने बीच में आना चाहा तो निक ने उसे जोर का धक्का दे कर अलग हटा दिया. फिर ग्लोरिया से बोला, ‘‘आई एम सौरी, अब ऐसी भूल नहीं होगी. प्लीज मुझे माफ कर दो और लड़ाई भूल जाओ.’’
ग्लोरिया कुछ पल चुप रही, फिर मुसकरा कर निक के साथ उस की टेबल पर आ गई. निक ने ग्लोरिया को स्वीटी से मिलवाया. कुछ देर बैठ कर दोनों घर के लिए निकल पड़े. निक खुश था, क्योंकि ग्लोरिया से लड़ाई खत्म हो गई थी.
क्लारा का बाप रेंबो स्मिथ काफी मशहूर और बहुत दौलतमंद आदमी था. वह मेक्सिको में तेल के 4 कुओं का मालिक था. साथ ही कई बड़ी कंपनियों का प्रेसीडेंट भी. क्लारा की उम्र 22-23 साल थी, वह स्वीटी की क्लासफेलो और अच्छी दोस्त थी. क्लारा को उस के बाप ने पूरी आजादी दे रखी थी. वह जो चाहती थी, करती थी. मां न होने की वजह से बाप के बेजा लाड़ ने उसे बिगाड़ दिया था.
दिन भर उस की निगरानी करने के बाद निक इस नतीजे पर पहुंचा कि उस से मिलना आसान नहीं है. वह अजनबियों को अपने करीब नहीं आने देती थी. न ही हर किसी से बात करती थी. उस की हिफाजत के भी अच्छे इंतजाम थे. लेकिन निक ने उस की एक कमजोरी ढूंढ निकाली. उसे पता चला कि क्लारा को डाक टिकट जमा करने का शौक है. शौक क्या जुनून है.
एक जमाने में निक को भी डाक टिकट जमा करने का शौक था. यह क्लारा से मिलने का अच्छा बहाना हो सकता था. निक के पास डाक टिकट के कुछ नायाब और अनमोल नमूने थे, जिन की मुंहमांगी कीमत मिल सकती थी. एक टिकट तो भूतपूर्व शाह ईरान के जमाने का था, जिस पर शाह ईरान की तसवीर उलटी छपी थी. इस के अलावा एक और बहुत कीमती टिकट था. उसी टिकट जैसा एक टिकट न्यूयार्क में ढाई लाख डौलर में बिका था.
खाने के थोड़ी देर बाद वही दुबली पतली खूबसूरत लड़की कमरे में आई, जो थोड़ी देर पहले शादा के साथ डोली में आई थी. उस का हुलिया एकदम बदला हुआ था. खूबसूरत टाइट सूट, सलीके से काढ़े गए बाल, हलका सा मेकअप, पर उस के चेहरे पर उदासी और बेबसी पहले से ज्यादा बढ़ गई थी. उस के पीछे बुलडौग की शक्ल का एक नौकर था. उस ने कड़े लहजे में लड़की से कहा, ‘‘साहब के पास बैठ कर इन की खिदमत करो.’’
अपनी बात कह कर कुछ कमीनगी से मुसकराता हुआ बाहर चला गया. लड़की डरी सहमी सी पलंग पर बैठ गई.
मैं ने लड़की की तरफ देखा. वह डर से कांप रही थी. मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, घबराओ मत. तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होगा. तुम आराम से बैठो और बताओ कि तुम कौन हो?’’
वही पुरानी कहानी थी, गरीब बाप ने पैसे की खातिर बेटी को शादा के हाथों बेच दिया था. उस का नाम कमला था. मुझे शादा की यह खातिरदारी किसी जाल की तरह लग रही थी. मैं लड़की से इधरउधर की बातें करने लगा. उसी वक्त कोठी के पोर्च में किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई. मैं ने खिड़की का परदा हटा कर देखा और फिर से बिस्तर पर लेट गया. मैं ने कमला से कहा, ‘‘कमला, अब भेडि़या आ रहा है.’’
वह और ज्यादा डर गई. मैं ने रिवाल्वर हाथ में थाम लिया. कमला ने घबरा कर पूछा, ‘‘अब क्या होगा?’’
मैं ने उसे दिलासा दिया, ‘‘तुम घबराओ मत, मैं हूं. तुम इस अलमारी के पीछे छिप जाओ.’’
अब तक कमला मुझ से खुल गई थी. वह चुपचाप अलमारी के पीछे छिप गई. मैं रिवाल्वर हाथ में थाम कर कंबल ओढ़ कर बैठ गया. चंद लम्हे बाद दरवाजा खुला. नौकर और श्याम कमरे के अंदर आ गए. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आओ श्याम, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.’’
मुझे देख कर श्याम को गहरा झटका लगा. उस के साथ शादा और मुच्छड भी थे. शादा ने गुस्से से पूछा, ‘‘लड़की कहां है?’’
मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लड़की की फिक्र मत करो, वह यहीं है. उसे बीच में लाए बिना जो प्रोग्राम तय करना है, मुझ से करो.’’
‘‘कैसा प्रोग्राम?’’
‘‘वही प्रोग्राम, जो तुम ने अनिल के साथ बनाया था. तुम ने उसे बेहिसाब शराब पिलाई थी न? यहां तक कि बेचारे को उठा कर गाड़ी में बैठाना पड़ा था.’’ मेरा लहजा और अंदाज बेहद सख्त था, जो उन्हें परेशान कर रहा था.
शादा ने श्याम के कान में कुछ कहा और मुलाजिम के साथ बाहर निकल गई. श्याम ने सिगरेट जलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या चाहते हैं आप?’’
‘‘तुम्हारी गिरफ्तारी.’’
‘‘कोई और बात करो.’’
‘‘मुझे कोई और बात नहीं आती.’’
‘‘मैं तुम्हें 5 हजार दूंगा.’’
‘‘5 लाख भी नहीं चाहिए.’’
‘‘मैं आप को एक बंदे की गिरफ्तारी भी दूंगा, वह इकबाले जुर्म भी कर लेगा.’’ उस ने धीमे लहजे में कहा.
‘‘मुझे जिस को गिरफ्तार करना है, वह मेरे सामने है.’’ एकाएक श्याम की आंखें गुस्से से चमकने लगीं. वह अचानक मुझ पर झपटा, मैं उसे मारना नहीं चाहता था, मैं ने उस के पैरों पर गोली चलाई, जो उस के घुटने को छूती हुई निकल गई. श्याम पूरी ताकत से मुझ से टकराया, मेरा सिर जोरों से दीवार से जा लगा. आंखों के आगे सितारे नाचने लगे.
मेरा कंधा पहले से चोटिल था. उस पर जबरदस्त मार पड़ी. मेरा सारा बदन झनझना गया. उस का दूसरा वार ज्यादा खतरनाक था. जबकि मेरा एक हाथ सिरे से काम नहीं कर रहा था. रिवाल्वर हाथ से गिर गई. उस के हाथ में पता नहीं कहां से बिजली का एक तार आ गया. उस ने उसे मेरी गदर्न में लपेट कर कसना शुरू किया. मैं ने गला छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर नाकाम रहा.
गोली की आवाज ने भगदड़ मचा दी थी. दरवाजा जोर से भड़भड़ाया जा रहा था. जिसे श्याम ने बंद कर दिया था. मेरा दम घुट रहा था. मेरे गले से खर्रखर्र की आवाजें निकल रही थी. तार का दबाव बढ़ता जा रहा था. तभी कमला एकदम से अलमारी के पीछे से चीखती हुई बाहर निकली और तांबे का एक वजनी गुलदान उठा कर पूरी ताकत से श्याम के सिर पर दे मारा.
श्याम कराह कर बाजू में गिरा. उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. गुलदान की चोट लगने के बाद श्याम को संभलने का मौका नहीं मिला. एक मिनट में मेरे घूंसों और ठोकरों ने उस के कसबल निकाल दिए. जब श्याम बिलकुल ढेर हो गया तो कमला दौड़ कर किसी बच्ची की तरह मेरे कंधे से आ लगी.
उधर दरवाजे पर अब जोर के धक्के लग रहे थे. मैं ने कमला को श्याम पर नजर रखने को कहा और खिड़की से कूद कर बाहर निकल गया. मैं ने इमरान खां को आवाज दी तो वह अपने अमले के साथ पहुंच गया. हम सब कमरे में पहुंचे. श्याम और शादा की गिरफ्तारी के बाद यह बात साफ हो गई कि अनिल को मौत के घाट उतारने का सारा इंतजाम इसी सफेद कोठी में किया गया था.
शादा की अनिल से अच्छी पहचान थी. अनिल ने अपना हमदर्द समझ कर मुसीबत में शादा के यहां पनाह ली थी. पर उस ने धोखा दे कर उसे कातिलों के हाथों में सौंप दिया था. बिलकुल उसी तरह, जैसे उस ने मुझे पनाह दे कर श्याम को बुलवा लिया था.
अभी भी कहानी के कुछ हिस्से अंधेरे में थे. 3-4 दिनों में सारी सच्चाइयों के साथ पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई. श्याम का एक साथी अर्जुन सिंह सरकारी गवाह बन गया. उस के बयान से मेरे सारे अंदेशे सच साबित हुए.
कहानी की शुरुआत तब हुई, जब रत्ना को पता चला कि उस का मंगेतर श्याम किसी अंगे्रज लड़की में दिलचस्पी ले रहा है. उन दोनों को कई बार साथ देखा गया था. रत्ना श्याम को दिलोजान से प्यार करती थी.
किसी दूसरी लड़की की बात सुन कर वह बहुत दुखी हुई. जब अफवाहें ज्यादा जोर पकड़ने लगीं तो उस ने श्याम पर निगरानी रखनी शुरू कर दी. किसी तरह श्याम को यह बात पता चल गई. इसलिए वह रत्ना के डलहौजी आने पर सावधान हो जाता था. पर रत्ना तय कर चुकी थी कि वह सच्चाई जान कर रहेगी. मौत के पहले वह श्याम को दिखाने के लिए लाहौर स्थित अपने हौस्टल चली गई थी. एक रोज वहां रुक कर वह चुपचाप डलहौजी वापस आ गई.
उसे पता चला कि आज श्याम अपनी नई महबूबा से मूनलाइट क्लब में मिलेगा. यह पता चलने पर वह भी शाम को क्लब पहुंच गई. वहां उस ने श्याम को उस की अंगरेज महबूबा के साथ रंगरलियां मनाते देखा तो उस का पारा चढ़ गया. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.
बहुत ज्यादा दुखी हो कर रत्ना ने यह सोच कर कि उस धोखेबाज आदमी से वह ताल्लुक खत्म कर लेगी, वहां से लौटने का फैसला किया. लेकिन तभी उस पर श्याम की नजर पड़ गई. माजरा समझते ही वह दौड़ कर उस के पास आया. वह रत्ना जैसी खूबसूरत, दौलतमंद और पढ़ीलिखी लड़की को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था.
श्याम उस के पीछे दौड़ा और उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर रत्ना हकीकत जान चुकी थी. वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उस के शुभचिंतकों ने उसे पहले ही सब बता दिया था.
श्याम ने जब बात बिगड़ती देखी तो जबरदस्ती उसे अपने साथ गाड़ी में ले गया. रत्ना उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती थी. श्याम उसे मनाने के लिए उसे अपने फ्लैट पर ले गया. वहां दोनों में खासी तकरार हुई. इस झगड़े से श्याम को अंदाजा हो गया कि उस ने रत्ना को हमेशा के लिए खो दिया है. अब यह मंगनी टूट जाएगी. रत्ना किसी कीमत पर उस से शादी नहीं करेगी.
बस, यहीं से रत्ना की बदकिस्मती की शुरुआत हो गई. श्याम के इरादे खतरनाक हो गए. उस ने रत्ना को डराया धमकाया, मारापीटा. फिर गुस्से में हैवान बने श्याम ने रत्ना की इज्जत तारतार कर डाली. लुटीपिटी हालत में रत्ना मांबाप के सामने नहीं जाना चाहती थी. श्याम के चंगुल से छूटते ही वह दूसरी मंजिल की खिड़की से नीचे कूद गई. नीचे पक्का फर्श था. रत्ना के सिर में गहरी चोटें आईं और वह बेहोश हो गई.
श्याम ने अपने राजदार दोस्तों के साथ मिल कर दम तोड़ती रत्ना को कार में डाला और रात 11 बजे उस के घर के सामने डाल आया. तब तक रत्ना दम तोड़ चुकी थी. अनिल सिन्हा इस जुर्म का चश्मदीद गवाह था. दरअसल जिस वक्त रत्ना और श्याम मूनलाइट क्लब की लौबी में झगड़ रहे थे, अनिल वहीं खड़ा था. एक खूबसूरत लड़की को इस तरह लड़ते देख उस की दिलचस्पी बढ़ गई थी. वैसे भी वह रत्ना को थोड़ाबहुत जानता था.
दरअसल, जिस बैंक में वह काम करता था, वहां रत्ना का एकाउंट था. वह अकसर बैंक आती रहती थी. उसे यह भी पता था कि वह डा. प्रकाश की बेटी है. जब श्याम खींचतान कर रत्ना को कार में बिठा रहा था, अनिल को लगा, उसे रत्ना की टोह लेनी चाहिए. यही सोच कर उस ने अपनी गाड़ी फासला रखते हुए श्याम की कार के पीछे लगा दी. बड़ी होशियारी से पीछा करते हुए वह श्याम के फ्लैट तक पहुंच गया.
रत्ना और श्याम के फ्लैट में जाने के कुछ देर बाद वह भी ऊपर पहुंच गया और एक छज्जे के सहारे उस फ्लैट की बालकनी में उतर गया. उसे लग रहा था कि उस लड़की के साथ कुछ गलत हो रहा है. बंद खिड़की की हलकी सी दरार से अंदर का थोड़ा सा मंजर दिख रहा था. अंदर से रत्ना के रोने की आवाज आ रही थी. साथ ही गुस्से और दुख से बोलने की आवाजें भी, जिस से पता चल रहा था कि उस के साथ कितना बड़ा जुल्म हो चुका है.
तभी उस ने रत्ना को बाजू की खिड़की से नीचे कूदते देखा. इस दिल दहलाने वाले हादसे को देख कर उस की चीख निकल गई. जरा सी गलती से वह उसी वक्त श्याम की नजर में आ गया. श्याम के इशारे पर उस के खतरनाक गुंडे उस के पीछे लग गए.
जैसे ही उस की कार बड़ी सड़क पर पहुंची, अर्जुन सिंह और उस का साथी जीप ले कर उस के पीछे लग गए. जिंदगी और मौत की दौड़ काफी लंबी चली. आखिर उस ने अपनी कार एक बंद गली में छोड़ी और एक तंग गली से लंबा चक्कर काट कर रात 11 बजे हांफता कांपता घर पहुंचा.
वह यह देख कर हैरान रह गया कि श्याम के आदमी वहां पहले से मौजूद थे. दरअसल मौकाएवारदात पर उसे पहचान लिया गया था. इस से अनिल को लग रहा था कि उस की जान को खतरा है. उस ने पुलिस से संपर्क करना चाहा, पर नाकाम रहा. तभी न जाने कैसे उस के दिमाग में मेरा नाम आ गया. उस ने मुझे अमृतसर फोन कर के अपनी परेशानी बताई, पर बात पूरी न हो सकी.
दूसरे दिन सवेरे अमजद की साइकिल ले कर वह मुंह छिपा कर पीछे के रास्ते से पनाह की तलाश में सफेद कोठी पहुंचा. उसे मदद की उम्मीद वहां ले गई थी. शादा से उस के पुराने ताल्लुकात थे. उसे उम्मीद थी कि शादा उस की मदद करेगी.
उस को इस बात का जरा भी गुमान नहीं था कि शादा के श्याम से बहुत गहरे रिश्ते हैं. उस ने श्याम को बुलवा लिया. तब तक वह काफी हद तक आश्वस्त हो गया था कि शादा उस की पूरी मदद करेगी.
उस ने शादा के घर से मुझे दूसरा फोन किया था और बताया था कि वह अमृतसर आ रहा है. यही उस की आखिरी आवाज थी, जो मैं ने सुनी थी. उस के बाद वह दुश्मनों के चंगुल में फंस गया. उस की पनाहगाह उस की कत्लगाह बन गई. श्याम और उस के गुंडे साथियों ने पहले अनिल को खूब मारापीटा और फिर जबरदस्ती उसे अंधाधुंध शराब पिलाई. उस की कार वे लोग पहले ही हासिल कर चुके थे.
बेहोश अधमरे अनिल को उस की कार में डाल दिया गया और उस की कार कैंट रोड के एक खतरनाक मोड़ से खाई में लुढ़का दी गई. दोहरे कत्ल की इस संगीन वारदात के बड़े मुलजिम श्याम को सजाएमौत हुई. उस के 3 साथियों को 10-10 साल की सजा सुनाई गई. एक दो को हल्की सजाएं हुईं. शादा पर भी पेशा कराने के जुर्म में काररवाई हुई.
इस केस में मैं उस मासूम लड़की कमला को कभी न भूल सका. उस की बहादुरी ने मेरी जान बचाई थी. शायद उस ने मेरी शराफत और मोहब्बत का सिला इस तरह दिया था. इस केस में मैं ने उसे अलग कर के महफूज हाथों में सौंप दिया था, ताकि वह इज्जत से जिंदगी गुजार सके.
हम डा. प्रकाश के घर से निकल आए. मौसम काफी ठंडा था. रात के 8 बजे थे. उसी वक्त पास में एक लाल रंग की कार मोड़ काट कर आगे बढ़ गई. उस की ड्राइविंग सीट पर श्याम बैठा था. कुछ सोच कर मैं ने इमरान खां से फासला रख कर उस का पीछा करने को कहा. लाल रंग की वह कार मूनलाइट क्लब के सामने जा कर रुकी.
इस क्लब के ज्यादा मेंबर अंगरेज फौजी या अमीरों के लड़के थे. क्लब में काफी रश रहता था. इमरान खां ने मुझे बताया कि अनिल के कागजात में इस क्लब की मेंबरशिप का कार्ड भी था. हम दोनों अंदर क्लब में पहुंचे. अंदर काफी शोरशराबा था. लोग वहां की डांसरों के साथ डांस कर रहे थे. अंदर तंबाकू का धुआं और शराब की बू भरी थी.
मेरी नजर श्याम पर पड़ी. वह एक अंगरेज लड़की से हंसहंस कर बातें कर रहा था. उस के चेहरे पर गम की हलकी सी भी निशानी नहीं थी. वह उस श्याम से एकदम अलग लग रहा था, जिसे हम ने थोड़ी देर पहले देखा था. क्लब का मैनेजर इमरान का दोस्त था. उसे देख कर वह हमारे पास आया और हमें अपने कमरे में ले गया. दरवाजे के शीशे से श्याम साफ दिख रहा था.
मैं ने मैनेजर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘इस का नाम श्याम है, अमीर घर का लड़का है.’’
‘‘इस के बारे में और कुछ बताइए. कोई वाकया, कोई झगड़ा या और कुछ.’’
वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘हां, कुछ दिनों पहले एक वाकया हुआ था. क्लब की लौबी में श्याम का एक लड़की से झगड़ा हुआ था. झगड़ा क्या तकरार हो रही थी. वह लड़की बिफरी हुई बाहर जा रही थी. जबकि श्याम मिन्नतें कर के उसे रोक रहा था. इस पर लड़की ने चीख कर गुस्से में कहा था, ‘तुम बहुत नीच इनसान हो, मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती.’ इस के बाद दोनों एकदूसरे से उलझते बाहर चले गए थे.’’
मैनेजर की इत्तला काबिले गौर थी. मैनेजर ने सोच कर जो दिन बताया था, वह अनिल की मौत के एक दिन पहले का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘उस लड़की के बारे में कुछ बताओ, जिस से झगड़ा हो रहा था.’’
‘‘वह लड़की गोरी, खूबसूरत, लंबे बालों वाली थी और पहली बार क्लब आई थी. लहजे और अंदाज से वह उस की गर्लफ्रैंड लगती थी. क्लब में उसे शायद किसी और के साथ देख कर आपा खो बैठी थी. वह भले घर की शालीन लड़की थी.’’
इमरान खां ने कोट की जेब से रत्ना की फोटो निकाल मैनेजर को दिखाई. वह फोटो देखते ही बोल उठा, ‘‘हां, यही है वह लड़की, एकदम वही.’’
कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया. अगर मैनेजर के मुताबिक वह लड़की रत्ना ही थी तो निस्संदेह अनिल और रत्ना के साथ जरूर कोई हादसा पेश आया था. धीरेन पर से मेरा शक हट चुका था. पता नहीं क्यों श्याम शुरू से ही मुझे कुछ रहस्यमय लग रहा था. उस की आंखों में शातिराना चमक थी. क्लब में उसे बदले अंदाज में देख कर तो उस के प्रति मेरी सोच ही बदल गई थी.
क्योंकि मैनेजर के अनुसार जिस रोज श्याम क्लब की लौबी में रत्ना से झगड़ रहा था, उसी दिन उस का कत्ल हुआ था. मैं ने कहानी की कडि़यां मिलानी शुरू कीं. श्याम को किसी और लड़की के साथ देख कर रत्ना और उस की लड़ाई हुई होगी. जिस का अंजाम रत्ना की मौत के रूप में सामने आया. फिर अगले दिन अनिल वाला हादसा हो गया. निस्संदेह उलझा हुआ मसला था.
अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे. एक तो यह कि श्याम को गिरफ्तार कर के कड़ाई से पूछताछ की जाए और दूसरा यह कि खामोशी से तफ्तीश कर मुलजिम के इर्दगिर्द शिकंजा कस कर उसे पकड़ा जाए.
दो दिन बाद की बात है. मैं इमरान खां के साथ थाने में बैठा था. एक अधेड़ उम्र का अमजद नाम का व्यक्ति मुझ से मिलने आया. उसे इमरान खां ने बुलवाया था. वह उन्हीं रामबाबू के घर काम करता था, जिन की कोठी के एक हिस्से में अनिल किराए पर रहता था. कभीकभी अमजद अनिल के लिए भी चायनाश्ता बना देता था. साथ ही उस के छोटेमोटे काम भी कर देता था. उस से अनिल के बारे में पूरी जानकारी मिल सकती थी. इस के लिए इमरान खां ने उसे थाने बुला लिया था.
बातचीत हुई तो अमजद ने बताया, ‘‘उस दिन इतवार था. अनिल साहब रात करीब 11 बजे घर लौटे. चाय के बारे में पूछने के लिए मैं उन के कमरे में गया. अचानक मेरी निगाह गैराज में चली गई. मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि उन की कार गैराज में नहीं थी. उस वक्त अनिल गली में खुलने वाली खिड़की के पास खड़े थे और खासे परेशान व घबराए हुए से गली में कुछ देख रहे थे. मैं ने चाय के लिए पूछा तो कहने लगे, ‘हां…हां, चाय बना लो, जाओ जल्दी.’
‘‘जब मैं चाय ले कर आया तो वह किसी दूसरे शहर फोन कर रहे थे. आवाज रुंधी थी, एकाध जुमला भी मैं ने सुना था. वह कह रहे थे, ‘मैं खतरा महसूस कर रहा हूं, क्या आप यहां आ सकते हैं?’ उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ लोग मेरे पीछे लगे हैं.
‘‘यह सुन कर मैं परेशान हो गया. कुछ पूछने की हिम्मत न हुई, मैं अपने कमरे में आ गया. पर नींद नहीं आई. मैं बारबार खिड़की से झांकता रहा. उस वक्त एक सफेद वैगन घर के सामने खड़ी थी. सुबह अजान के वक्त अनिल साहब ने मुझे बुलाया. कमरा सिगरेट के टुकड़ों से भरा पड़ा था. उस वक्त मैं साइकिल पर दूध लेने जा रहा था. उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘तुम अपनी साइकिल और चादर मुझे दे दो. मुझे एक जरूरी काम से कहीं जाना है.’’
‘‘साहब, अगर कोई खतरा हो तो पुलिस को खबर कर दें?’’
मैं ने कहा तो वह बोले, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. बस एक आदमी से पीछा छुड़ाना है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं. तुम अपनी साइकिल गली नंबर 14 की सफेद कोठी के सामने से ले लेना.’’
इस के बाद अनिल साहब मेरी साइकिल ले कर चले गए थे.
‘‘मैं एक, डेढ़ घंटे बाद सफेद कोठी के सामने से अपनी साइकिल ले आया और उसी दिन रात को एक्सीडेंट में अनिल साहब चल बसे. वह बहुत अच्छे इनसान थे.’’ अमजद ने रुंधे लहजे में अपनी बात खत्म की.
मैं ने अमजद से पूछा, ‘‘तुम जानते हो, सफेद कोठी में कौन रहता है?’’
‘‘हां, वहां शादा रहती है. वह अच्छी औरत नहीं है. वहां सब अय्याश और आवारा मर्द लोग आते हैं.’’
‘‘क्या अनिल भी वहां जाता था?’’ मैं ने पूछा तो उस ने हिचकते हुए कहा, ‘‘पहले कभीकभी जाते थे. लेकिन पिछले 5-6 महीने से मैं ने उन्हें उधर जाते नहीं देखा था.’’
अमजद से काफी अच्छी जानकारी मिल गई. सोचने के लिए कई मुद्दे भी मिल गए. एक बात साफ हो गई थी कि इस मामले में श्याम का हाथ जरूर था और अगर अनिल शादा के यहां जाने के बाद मारा गया था तो वह भी इस जुर्म से जुड़ी थी. इन सब सवालों के जवाब शादा के यहां गली नंबर 14 की सफेद कोठी से मिल सकते थे.
मैं इस इलाके में अजनबी था. वहां मुझे कोई नहीं पहचानता था. इसलिए सफेद कोठी में जाने की जिम्मेदारी मुझ पर आई. इस के लिए मैं ने हुलिया बदल लिया. मैं ने पहाड़ी लिबास पहना. सिर पर रंगीन टोपी, साथ ही एक देसी रिवाल्वर भी कमीज के नीचे रख लिया. मैं शादा के यहां उसी तरह जाना चाहता था, जिस तरह अनिल गया था.
जब मैं सफेद कोठी में पहुंचा तो एक मूंछों वाले हट्टेकट्टे आदमी ने मुझे रोक लिया. मैं ने शादा से मिलने को कहा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इत्तफाक से उसी वक्त चार कहार एक डोली ले कर वहां पहुंच गए. उन दिनों डलहौजी में सवारी के लिए लकड़ी की बनी डोली आम थी.
डोली से एक गोरीचिट्टी मोटी सी औरत उतरी. उस की उम्र करीब 40-42 साल रही होगी. वही शादा थी. उस के साथ 14-15 साल की एक दुबलीपतली खूबसूरत लड़की भी थी, जो डरीसहमी सी शादा के पीछे खड़ी थी. मैं ने कहा, ‘‘शादाजी, मुझे आप से जरूरी काम है.’’
उस ने कड़े तेवरों से पूछा, ‘‘कैसा काम?’’
मैं ने घबराए अंदाज में कहा, ‘‘मैं बैंक औफिसर अनिल का दोस्त हूं. मुझे आप की पनाह की जरूरत है.’’
अनिल का नाम सुन कर शादा के चेहरे की बेरुखी हवा हो गई. अपने पीछे आने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई. मुझे सजे सजाए खूबसूरत ड्राइंगरूम में बैठा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों आए हो?’’
‘‘शादाजी, अनिल की तरह कुछ लोग मेरे पीछे पड़ गए हैं, वे मेरी जान लेना चाहते हैं. मैं उन्हें बड़ी मुश्किल से चकमा दे कर यहां तक पहुंचा हूं. अनिल ने मुझ से कहा था कि कोई मुश्किल पड़े तो शादाजी के पास चले जाना.’’
वह मुझे हैरत से देखते हुए बोली, ‘‘किन आदमियों की बात कर रहे हो तुम?’’
मैं ने कहा, ‘‘श्याम के आदमी हैं.’’
अंधेरे में चलाया मेरा तीन निशाने पर लगा. उस ने पहलू बदला, उस की आंखों में उलझन थी. बहरहाल वह अपनी कैफियत छिपाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है, अनिल ने कभी तुम्हारा जिक्र नहीं किया था.’’
मैं ने अपनी गोलमोल बातों से उस का शुबहा दूर करने की कोशिश की. ताबड़तोड़ अनिल के हवाले दिए. कुछ हद तक मुतमुइन हो कर वह मुझे वहीं छोड़ कर अंदर चली गई. शायद वह कहीं टेलीफोन कर रही थी. मैं सूरतेहाल का सामना करने को तैयार था. क्योंकि उस वक्त सफेद कोठी पूरी तरह पुलिस की निगरानी में थी. मैं ने इमरान खां को भी कह रखा था कि फायर होते ही अमले के साथ कोठी पर धावा बोल देना.
थोड़ी देर में शादा वापस लौट आई. कहने लगी, ‘‘अगर तुम अनिल के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त हुए. अपनी हिफाजत की फिक्र मुझ पर छोड़ दो. श्याम वगैरह बड़े खतरनाक लोग हैं. पर हम सब संभाल लेंगे.’’
मैं साफतौर पर महसूस कर रहा था कि फोन करने के बाद उस कर रवैया बहुत नरम और दोस्ताना हो गया था. वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘तुम कमरे में जाओ और फ्रैश हो कर आराम करो. वहां कपड़े भी रखे हैं. अभी मेरे कुछ मिलने वाले आए हुए हैं. मैं उन के साथ मसरूफ हूं. खाना वगैरह मैं भिजवा दूंगी.’’
मैं कमरे में आ गया. बड़ा शानदार कमरा था. उस से लगा साफसुथरा बाथरूम था. वहां एक सलवारकमीज टंगी थी. मैं ने जी भर कर गरम पानी से नहाया और कपड़े पहन कर लेट गया. कुछ देर में गरम खाना आ गया. मछली, कबाब, बिरयानी. मैं ने डरडर कर सूंघसूंघ कर खाना खाया कि कहीं खाने में लंबा लिटाने का इंतजाम न हो. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था.
पता चला कि उन की बेटी रत्ना देवी 2 रोज पहले ही तेज बुखार में बे्रन हैमरेज होने से मर गई थी. यह एक सनसनीखेज खबर थी, क्योंकि उस की मौत के 24 घंटे बाद ही अनिल के साथ हादसा पेश आया था. अनिल के शब्द मेरे दिमाग में घूमने लगे, ‘‘अगर मुझे कुछ हो गया तो इस की वजह रत्ना देवी वाला मामला होगा. रत्ना देवी डा. प्रकाश की बेटी है.’’
अनिल मुझ से अपनी पूरी बात नहीं कह पाया था. पता नहीं, वह आगे क्या कहना चाहता था. ऐसी क्या मुश्किल थी कि उस ने मुझे रात को फोन किया था और फिर बाद में मिलने पर विस्तार से बताने को कहा था.
मेरा दिमाग उलझ गया. डा. प्रकाश से मिलना जरूरी हो गया था. मेरे मुंह से पूरी बात सुन कर इंसपेक्टर इमरान खां को भी शक हो रहा था कि यह हादसा हुआ नहीं, बल्कि करवाया गया है. पहले इस हादसे की वजह अनिल का नशे में होना माना गया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से भी उस के नशे में होने की पुष्टि हुई थी. फिर शराब की बोतल भी उस की कार में मिली थी.
इस से सोचा गया था कि नशे में वह कार पर कंट्रोल नहीं रख पाया होगा और कार खाई में जा गिरी होगी. उस के मिलनेजुलने वालों के मुताबिक कई दिनों से वह कुछ परेशान था. एक घंटे बाद हम दोनों अधेड़ उम्र के डा. प्रकाश के सामने बैठे थे. डा. प्रकाश का बेटा धीरेन भी वहां मौजूद था. दोनों थोड़े नरवस लग रहे थे.
अनिल के बारे में पूछने पर दोनों ने उसे जानने से साफ इनकार कर दिया. रत्ना के बारे में बताया कि वह लाहौर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी के दूसरे साल में थी. उस की मंगनी हो चुकी थी. इस साल उस की शादी करने का इरादा था. अच्छीभली सेहतमंद लड़की थी. कुछ दिनों पहले बुखार आया, घर की दवा दी तो तबीयत संभल गई.
छुट्टियां खत्म होने की वजह से वापस लाहौर हौस्टल चली गई. एक ही दिन कालेज गई. उस की तबीयत फिर बिगड़ गई, जिस से डलहौजी वापस आना पड़ा. उसे तेज बुखार था. रात को जब तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और नाक से खून बहने लगा तो उसे अस्पताल ले जाने के बारे में सोचा. लेकिन इस से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.
ज्यादा सवाल करने पर धीरेन भड़क उठा. हम वहां से लौट आए. पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि वे लोग कुछ छिपा रहे हैं. डाक्टर के मुताबिक बे्रन हैमरेज से मौत हुई थी. पर मुझे शक था कि रत्ना की मौत के पीछे कोई राज था. उन लोगों के अनुसार मरने के एक दिन पहले वह कालेज गई थी. अब शायद वहां से ही कुछ पता चल सके.
जब मैं ने इमरान खां को इस बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘नवाज साहब, रत्ना देवी के एक प्रोफेसर डा. लाल यहां रहते हैं. आजकल वह यहीं हैं. आप चाहें तो हम उन से मिल सकते हैं. मेरी अच्छी पहचान है उन से.’’
यह सोच कर कि क्या पता कोई सुराग मिल जाए, मैं ने उन से मिलने के लिए हां कर दी.
डा. लाल की कोठी बहुत खूबसूरत थी. वह एक समझदार इंसान लगे. रत्ना की मौत के बारे में सुन कर उन्होंने बड़ा अफसोस और रंज जाहिर किया. उन्होंने बताया कि मौत के एक दिन पहले वह कालेज आई थी. उस ने क्लास में मुझ से कुछ सवाल भी पूछे थे. वह पूरी तरह सेहतमंद थी.
राजदारी का वादा लेने के बाद उन्होंने जो बताया, बड़ा हैरान कर देने वाला था. डा. लाल ने बताया, ‘‘नवाज साहब, रत्ना बीमारी से नहीं मरी, बल्कि उसे कत्ल किया गया था. यहां तक कि उस की आबरू भी खराब की गई थी. अस्पताल में उस का पोस्टमार्टम हुआ था, जिस में उस के साथ हुई ज्यादती की बात सामने आई थी. लेकिन बाद में डा. प्रकाश ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर के मामला दबा दिया था.
‘‘डा. प्रकाश ने अपनी और अपने खानदान की इज्जत बचाने के लिए इस सदमे को सह लिया और यह सोच कर चुप्पी साध ली कि जो होना था, वह हो गया. पर मुझे लगा, उन की सोच गलत है. अगर इस तरह केस दबा कर मुजरिम को छोड़ दिया गया तो वह फिर किसी की इज्जत से खेलेगा.’’
डा. लाल की बातों से मेरा ध्यान अनिल की तरफ गया. वह रंगीनमिजाज जवान था. पैसा खर्च कर के लड़कियों को फंसाने का शौकीन. मुझे इस मामले की कडि़यां आपस में मिलती लग रही थीं. मैं ने सोचा कि हो सकता है, रत्ना से उस का चक्कर चला हो और जज्बात में बह कर उस ने उस की इज्जत से खिलवाड़ कर के उस का कत्ल कर दिया हो. बाद में जब यह बात रत्ना के भाई और बाप को पता चली हो तो उन लोगों ने अनिल को ठिकाने लगा दिया हो.
मुझे एक अहम सुबूत याद आया. अनिल की गाड़ी ‘फर्स्ट गियर में थी यानी उस की गाड़ी खाई में गिरी नहीं, बल्कि गिराई गई थी. इंजन स्टार्ट कर के पहले गियर में डाल कर गाड़ी को छोड़ दिया गया था और वह खाई में जा गिरी थी.’
दूसरे दिन मैं और इमरान खां डा. प्रकाश की कोठी पर पहुंचे. डा. प्रकाश घर पर नहीं थे. उन के बेटे धीरेन से मुलाकात हुई. उस के साथ रत्ना का मंगेतर भी था. लंबा, खूबसूरत जवान. उस के चेहरे पर गम के गहरे साए थे. नाम था श्याम. धीरेन से उस के बहुत करीबी ताल्लुकात थे.
मैं ने श्याम को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया. मुझे धीरेन से अकेले में बात करनी थी. मैं ने खुल कर कहा, ‘‘धीरेन मुझे सच्चाई पता चल चुकी है. रत्ना स्वाभाविक मौत नहीं मरी है.’’
सुन कर उस का चेहरा जर्द हो गया. वह हकला कर बोला, ‘‘आप को गलत खबर मिली है.’’
मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘अब लगे हाथों यह भी बता दो कि अनिल के कत्ल में तुम्हारे साथ कौनकौन शामिल था?’’
इस पर वह एकदम से तमक कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप गलत समझ रहे हैं. मैं किसी अनिल को नहीं जानता. मेरी स्वर्गवासी बहन के साथ आप यह नाम जोड़ कर उस का अपमान मत करिए. अगर आप यह समझते हैं कि मेरी बहन का मुजरिम अनिल है तो यह गलत है. आप यकीन करें, मैं किसी अनिल को जानता तक नहीं, जबकि आप उस के कत्ल से मुझे जोड़ रहे हैं.’’
मैं ने सुकून से कहा, ‘‘धीरेन, तुम ऐक्टिंग काफी अच्छी कर लेते हो.’’
इस पर वह चीख कर बोला, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, ऐक्टिंग नहीं कर रहा हूं. मैं कसम खा कर कहता हूं कि मुझे नहीं मालूम कि उस ने मेरी बहन के साथ क्या किया, आप ही बताइए क्या किया उस ने?’’
उस के लहजे में सच्चाई थी. उस का गुस्सा भी अपनी जगह ठीक था. उस के चीखने की आवाज सुन कर श्याम ने अंदर झांका. मैं ने उस से जल्दी से कहा, ‘‘आप बाहर बैठिए, कुछ नहीं हुआ है.’’
फिर धीरेन की तरफ देखा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने दर्दभरे लहजे में पूछा, ‘‘यह अनिल का क्या मामला है?’’
मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तुम रत्ना की हकीकत बताओ, फिर तुम्हें सब कुछ बताऊंगा.’’
‘‘इंसपेक्टर साहब, आप यकीन करें, हम सिर्फ इतना जानते हैं कि इतवार के दिन शाम 4 बजे वह घर से निकली थी. इस के ठीक 7 घंटे बाद रात 11 बजे उस की लाश घर के दरवाजे पर पड़ी मिली थी. उस का जिस्म जख्मी था. नाक, सिर और कान से खून बह रहा था. उस का जिस्म दरिंदगी का जीताजागता नमूना था.’’
मैं ने उस की बात काटी, ‘‘मुझे सारी बात शुरू से बताओ.’’
उस ने दर्दभरी आवाज में कहना शुरू किया. ‘‘यह गलत है कि रत्ना बीमार थी, वह बिलकुल सेहतमंद थी. 2 रोज पहले वह कालेज गई थी, पर सिर्फ एक दिन वहां रुक कर डलहौजी लौट आई थी. हमें ताज्जुब हुआ, पर वह काफी समझदार थी. इसलिए किसी ने उस से कुछ नहीं कहा. फिर शाम 4 बजे वह कुछ काम के बारे में कह कर बाहर चली गई.
‘‘जब वह देर रात तक नहीं लौटी तो हम सब परेशान हो गए. हम ने उस की सहेलियों को फोन किया, पर कुछ पता नहीं लगा. मैं गाड़ी ले कर अस्पताल गया, वहां रत्ना के मिलनेजुलने वालों से पूछा, वहां भी कोई जानकारी नहीं मिली. दरबदर भटक कर जब मैं रात करीब पौने 11 बजे घर पहुंचा तो घर के गेट पर मेरी बदनसीब बहन की लाश पड़ी थी.’’
वह मुंह छिपा कर रोने लगा. कुछ देर रुक कर मैं ने उस से पूछा, ‘‘रत्ना और श्याम, मंगनी के बाद मिलतेजुलते थे? क्या दोनों इस रिश्ते से खुश थे?’’
‘‘हां, दोनों खुश थे. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मुलाकात भी होती रहती थी. श्याम उस पर जान छिड़कता था. आप से मेरी एक दरख्वास्त है कि एक शरीफ लड़की की इज्जत की पर्दापोशी रखिएगा. जब तक बेइंतहा जरूरी न हो, उस की आबरू लुटने की बात बाहर मत आने दीजिएगा.’’
उन दिनों मैं अमृतसर में तैनात था. मेरी रात की ड्यूटी थी. गजब की सरदी पड़ रही थी. उसी वक्त फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से तेज आवाज में कहा गया, ‘‘मैं अनिल बोल रहा हूं, डलहौजी से.’’
मुझे अचानक याद आ गया. अनिल सिन्हा बैंक में नौकरी करता था. पहले वह अमृतसर में तैनात था. बाद में ट्रांसफर हो कर डलहौजी चला गया था. एक मामले में मैं ने उस की मदद की थी. उस के बाद वह जब तब मेरे पास आने लगा था.
मैं ने उस से कहा, ‘‘कहो कैसे हो, बहुत दिनों बाद आवाज सुनाई दी?’’
कुछ पल सन्नाटा छाया रहा. किसी व्यस्त सड़क से गाडि़यों की आवाज आ रही थी. फिर अनिल की घबराई हुई आवाज आई, ‘‘नवाज साहब, मैं यहां एक मुश्किल में फंस गया हूं.’’
‘‘कैसी मुश्किल?’’
‘‘कुछ गड़बड़ हो गई है, कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, मुझे खतरा महसूस हो रहा है. आप यहां आ सकते हैं क्या?’’
मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं वहां कैसे आ सकता हूं? वैसे परेशानी क्या है? हौसला रखो और मुझे बताओ.’’
‘‘नवाज साहब, बड़ा उलझा हुआ मसला है, फोन पर बताना मुश्किल है. अगर मुझे कुछ हो गया तो…’’ उस की आवाज रुंध गई, ‘‘देखें…देखें…’’
मैं ने उसे समझाया, ‘‘अनिल, घबराओ मत, मुझे बताओ क्या कोई झगड़ा हो गया है या कोई और बात है?’’
‘‘झगड़ा ही समझें, अगर मुझे कुछ हो जाए तो इस की वजह… रत्ना देवी वाले मामले को समझें. रत्ना देवी डाक्टर प्रकाश की बेटी है. वे लोग…’’
अनिल इतना ही बोल पाया था कि लाइन कट गई. मैं सोच में पड़ गया. अनिल की अधूरी बात ने मुझे बेचैन कर दिया. फिर उस का कोई और फोन नहीं आया. मैं उस के लिए परेशान हो गया. अनिल हंसमुख, बातूनी, पढ़ालिखा, स्मार्ट शख्स था और थोड़ा रंगीनमिजाज भी. लड़कियों से वह बहुत जल्दी बेतकल्लुफ हो जाता था.
मैं अगले दिन तक उस के फोन का इंतजार करता रहा. अगले दिन उस का फोन आ गया.इस बार उस की आवाज में घबराहट नहीं थी. वह बोला, ‘‘सब ठीक है नवाज साहब, मैं अमृतसर आ रहा हूं. अभी थोड़ी देर में बस पकड़ने वाला हूं. दोपहर तक पहुंच जाऊंगा.’’
यह मेरी और अनिल की आखिरी बातचीत थी. उस के फोन के बाद मैं 2 दिनों तक उस की राह देखता रहा. मैं ने उस के घर से पता करवाया, पर वह अमृतसर पहुंचा ही नहीं था. मैं उस के घर गया, लेकिन उस के घर वालों को किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी.
मैं ने उन पर कोई बात जाहिर नहीं होने दी. मैं वापस थाने पहुंचा ही था कि अनिल का एक पड़ोसी घबराया हुआ उस की मौत की खबर ले कर आ गया. एक दिन पहले डलहौजी में उस की मौत हो गई थी. मैं वापस उस के घर पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. उस की मां बहनें पछाड़े खा रही थीं.
मेरी आंखों के सामने अनिल का जिंदगी से भरपूर चेहरा घूम गया, कानों में उस के आखिरी शब्द गूंजने लगे. पता चला, डलहौजी से तार आया था, उसी से उस की मौत की जानकारी मिली थी. मैं वहां से सीधे डीएसपी के दफ्तर पहुंचा. उन्हें सारी बात बताई और तार दिखाया.
उस में लिखा था, ‘अनिल कैंट रोड पर कार हादसे में मारा गया.’
लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. उस ने मुझ से फोन पर जो बातें कही थीं, उन से मुझे शक था कि उस का कत्ल हुआ था. डीएसपी से इजाजत ले कर दूसरे दिन मैं डलहौजी के लिए रवाना हो गया. मेरे साथ अनिल का बड़ा भाई और मामू भी थे.
उस वक्त डलहौजी में बर्फबारी हो रही थी. पुलिस थाने पहुंच कर पता चला कि पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश मुर्दाखाने में रखवा दी गई थी. वहां का एसएचओ इमरान खां काफी खुशमिजाज और मददगार था. उस से पता चला कि यह हादसा अनिल के नशे में होने की वजह से पेश आया था.
उस ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. होटल से जब वह घर वापस जा रहा था तो रास्ते में उस की कार बेकाबू हो कर एक खाई में जा गिरी. अनिल की मौत मौके पर ही हो गई. उस की कार में आग लग गई थी, जिस की वजह से उस की लाश के कई हिस्से भी जल गए थे. मैं इमरान खां को साथ ले कर मौकाएवारदात पर गया.
पता चला, अनिल के साथ यह हादसा 3 दिनों पहले रात के 9 बजे पेश आया था. जहां घटना घटी थी, वहां सड़क ढलानदार थी. एक तरफ ऊंचा पहाड़ और दूसरी तरफ कोई 3 सौ फुट गहरी खाई थी. खाई में पहाड़ी नाला बहता था. नाले के किनारे एक जली हुई नीले रंग की कार का ढांचा पड़ा था.
जहां से कार खाई में गिरी थी, वहां एक मोड़ था. हम ने उसी मोड़ के करीब से नीचे उतरना शुरू किया. रास्ते में इमरान खां ने गाड़ी से कुचले हुए पौधे दिखाए. गाड़ी उन से टकरा कर गुजरी थी. गाड़ी के साथ काफी चीजें जल चुकी थीं.
मैं ने मौके से जमीनी शहादतें ढूंढ़ने की कोशिश की. कार को हिलाडुला कर देखा तो पता लगा कि गाड़ी में पहला गियर लगा हुआ था. यह सोचने वाली बात थी कि गाड़ी जहां से लुढ़की थी, वह जगह ढलान थी. कोई भी ड्राइवर गाड़ी को तीसरे या दूसरे गियर में ही रखता, पहले गियर का वहां कोई काम नहीं था.
मैं ने गियर बदलने की कोशिश की, पर वह टस से मस नहीं हुआ. इस का मतलब यह था कि कार गिरने के बाद गियर नहीं बदला गया था. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता लगा कि करीबी बस्ती के लोग धमाके की आवाज सुन कर वहां पहुंचे थे. वहां एक शख्स को गाड़ी में जलते देख कर उन लोगों ने गाड़ी पर नाले का पानी डाला था. लेकिन इस से आग नहीं बुझ सकी. इस बीच 1-2 गाडि़यां भी रुक गई थीं. आग की लपटें कम होने पर जले हुए आदमी को गाड़ी से खींचा गया. तब तक वह मर चुका था.
मैं ने काररवाई करवा कर अनिल के भाई और मामू को लाश के साथ अमृतसर रवाना कर दिया और खुद उस लड़की रत्ना देवी की खोज में लग गया, जिस का जिक्र अनिल ने फोन पर किया था. मुझे लग रहा था कि डा. प्रकाश की बेटी रत्ना देवी का अनिल की मौत से कोई न कोई संबंध जरूर था. अनिल के औफिस में मालूमात करने पर किसी डा. प्रकाश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.
मैं ने उस के घर का पता लगाने का निश्चय किया. इस के लिए मैं और इमरान खां फोन डायरेक्टरी ले कर बैठ गए. डायरेक्टरी में डा. प्रकाश मिल गए. उन के पते में फोन नंबर भी मौजूद थे. मैं ने बारीबारी से हर डाक्टर को फोन कर के रत्ना देवी के बारे में पूछा. 3 जगह उलटे मुझ से पूछा गया, ‘‘कौन रत्ना देवी?’’
चौथे नंबर पर भारी आवाज में पूछा गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’
मैं ने फोन बंद कर दिया. मैं ने वह पता इमरान को दे कर डा. प्रकाश के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा. इमरान ने जल्दी ही मुझे रिपोर्ट दे दी. डा. प्रकाश मेहरा पौश एरिया ‘बलवन’ में रहते थे. उन के परिवार में एक बेटा, 2 बेटियां और बीवी सहित 5 सदस्य थे. उन की एक बेटी का नाम रत्ना देवी था.