एहसान के बदले मिली मौत – भाग 3

डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे.

सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’

यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’

खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’

कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत आ गई कि वह झटके से बाहर आ गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दिया.

इस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.

डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी.

10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.

पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया.

16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.

कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी.

पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.

खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोग विलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया.

एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 2

सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करते करते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.

अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने.

डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’

डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी.

वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.

तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी.

वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’

‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.

‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.

‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’

सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी.

अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोने हीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.

ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.

उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.

डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली.

इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है.

डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 1

तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वह ‘मिस जर्मनी’ के खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंग अंग का कोई जवाब नहीं था.

आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिन ‘मिस जर्मनी’ का ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’

एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के अांसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’

ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’

एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट.

उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?

ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़के लड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’

‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’

मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज न रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं.

वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थित ‘नरीम्बर्ग विला क्लीनिक’ में जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.

सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगी?

वह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.

बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक.

कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशा निराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.

कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा.

इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’

ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’

नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’

अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

ततजाना बस इतना ही कह पाई.

सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग आ गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुई.

लूट फार एडवेंचर

एक लाश ने लिया प्रतिशोध

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल?

लूट फार एडवेंचर – भाग 5

तीनों कमा चुके थे 50-50 करोड़

“मेरे हिस्से लगभग 22 लाख रुपए आए थे. मैं उन पैसों को ले कर महानगर में आ गया. यहां आ कर यहां के एक पिछड़े इलाके में एक जिम खोल लिया. यह इस पिछड़े इलाके का एकमात्र जिम था, अत: जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया और काफी चलने लगा. धीरेधीरे मैं ने शहर के और इलाकों में भी अपने जिम की ब्रांचेें खोल दीं. प्रसिद्धि के साथसाथ बिजनैस भी अच्छा बढ़ गया. आज लगभग हर बड़े शहर में हमारे जिम की ब्रांच है.

“आज 7 सालों के बाद मेरी चलअचल संपत्ति की कीमत 50 करोड़ से अधिक है. मैं ने अपने सभी वेंचर्स का नाम गेलार्ड रखा है. आज तुम जहां बैठे हो, उस का मालिक भी मैं ही हूं.” जगन ने बताया.

“मैं उस घटना के बाद एक इंडस्ट्रियल एरिया में चला गया. जहां मैं ने देखा कि ज्यादातर इंडस्ट्री में खेती के बाद निकले हुए हस्क यानी भूसे को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते है. लेकिन किसानों को पेमेंट 15-20 दिन बाद ही मिल पाता था. इस से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी. मैं ने किसानों से सस्ता भूसा तत्काल पेमेंट का खरीदा. फिर उसे इंडस्ट्री में सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस में निश्चित प्रौफिट तो था ही, साथ ही पैसा भी सुरक्षित रिसाइकल हो रहा था. आज मैं उस इलाके में भूसा किंग के नाम से जाना जाता हूं.

पिछले दिनों मैं ने भूसे को कंप्रेस्ड कर कोयले जैसा ईंधन बनाने की फैक्ट्री भी डाल ली है, जिस से काफी मटेरियल एक्सपोर्ट भी होता है. मुझे बैंक में की गई एडवेंचर से लगभग 22 लाख रुपए मिले थे. आज मैं भी लगभग 50 करोड़ की संपत्ति का मालिक हूं.” छगन ने अपने बारे में बताया.

“मैं भी बचने के लिए एक छोटे से गांव में आ गया. वहां पर सब्जियों की पैदावार भरपूर होती थी, लेकिन सडक़ से काफी अंदर होने के कारण सब्जियों की ढुलाई का साधन पर्याप्त समय पर न मिल पाने के कारण काफी सब्जियां नष्ट करनी पड़ती थी. जिस से उन्हें काफी नुकसान होता था. मैं ने अपने पैसों से एक सेकेंडहैंड ट्रक खरीद कर सब्जियों की शहरों में ढुलाई शुरू कर दी.

आज मैं आसपास के लगभग 20 गांवों से फल व सब्जियां अलगअलग माल्स, स्टार रेटेड होटल्स और मार्किट में सप्लाई करता हूं. मेरे पास आज लगभग 40 बड़े लोडिंग व्हीकल्स हैं और अब मैं अर्थ मूविंग मतलब खुदाई की बड़ी मशीनें भी खरीद कर बड़ेबड़े कौन्ट्रैक्ट लेता हूं. मैं भी कुल जमा 50 करोड़ की हैसियत रखता हूं.” मगन ने बताया.

“मतलब हम अपने इस मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहे?” जगन ने सब के बीच प्रश्न रखा.

“हां ऐसा कह सकते हैं. हालांकि हम ने यह काम सिर्फ एडवेंचर के लिए किया था, मगर इस ने हमारी जिंदगी ही बदल दी.” छगन बोला.

“बिलकुल ठीक. लोग आज भी उन एडवेंचरस लूट को याद करते हैं. क्या जोश था यार.” मगन भी सहमत होते हुए बोला,

“आज यकीन नहीं होता अपने आप पर.”

उन के एडवेंर की मीडिया में हुई खूब प्रशंसा

“हम ने जो एडवेंचर किया था, वह अधूरा था. उस समय कुछ मजबूरियां थीं इस कारण उसे पूरा नहीं कर सकते थे. मगर अब कर सकते हैं.” जगन चाय की चुस्कियों के साथ बोला.

“मतलब एक और अडवेंचरस लूट? नहीं भाई, अब मुझ से नहीं होगा. अब उतनी तेजी और चुस्तीफुरती नहीं रही.” मगन बोला.

“मुझे तो वैसे ही शुगर की प्राब्लम हो गई है. सांसें तो जल्दी ही उखड़ जाती हैं आजकल.” छगन भी मगन से सहमत होते हुए बोला

“नहींनहीं, तुम लोग गलत समझ रहे हो. इस बार लूटना नहीं है. लूट का पैसा वापस बैंकों को लौटाना है. मैं इस बोझ के साथ मरना नहीं चाहता कि हम ने अपने स्वार्थ के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लूटा. आज हम तीनों स्थापित हैं और इस कंडीशन में हैं कि उन पैसों को बिना किसी आपत्ति के वापस लौटा सकते हैं.” जगन बोला.

“सच कहते हो जगन. कभीकभी जब मैं यह सब सोचता हूं तो लगता है हम ने गलत ही किया. और यह ख्याल मुझे अंदर तक कचोटता है.” मगन बोला.

“मगर दोस्तो, यह सब इतना आसान भी नहीं है. लूटते समय जितना साहस दिखाया थी, उस से ज्यादा दिलेरी की जरूरत अभी पड़ेगी. दूसरा लोगों को हमारा नाम भी पता चल जाएगा. उस समय लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी सोचना आवश्यक है. इस का असर हमारे जमे जमाए बिजनैस पर भी पड़ सकता है.” छगन ने अपने विचार रखें.

“मैं ने यह सब सोच रखा है दोस्तों. जिस तरह हम ने लूट के समय अपना चेहरा ढंका था, उसी तरह पैसे लौटाते समय हम अपना नाम व पहचान गुप्त ही रखेंगे. सब से बड़ी बात पैसा लौटाने की सूचना अकेले बैंक मैनेजर्स को न दे कर पुलिस, कलेक्टर और यथासंभव न्यूजपेपर्स व चैनल्स वालों को भी देंगे.” जगन बोला .

“अच्छा विचार है. अगर हमारी पहचान गुप्त रहती है तो हम यह एडवेंचर भी करना चाहेंगे.” मगन बोला.

“बिलकुल,” छगन भी सहमति दिखाते हुए बोला.

“योजना यह है कि हम ने बैंकों से लूट का जितना पैसा अपने पास रखा है, उतना ही पैसा हम अलगअलग लौक किए हुए सूटकेस में रख कर रेलवे के क्लौकरूम में रख देंगे.

“क्लौकरूम वाले बिना रिजर्वेशन टिकट के सामान नहीं रखते हैं. अत: हमें किसी फरजी नाम से रिजर्वेशन करवाना होगा. यह रिजर्वेशन हम टिकट विंडो से ही करवाएंगे. इस से मिले पीएनआर नंबर के बेस पर हम क्लौकरूम में सामान आसानी से रख पाएंगे.

“सामान रखते समय क्लौकरूम का क्लर्क पहचान पत्र मांग सकता है. इस के लिए 3 आधार कार्ड को ग्राफ्टिंग मेथड से एक बना कर नया आधार कार्ड तैयार कर लेंगे.” जगन बता रहा था.

“मतलब नंबर किसी और का, नाम किसी और का और पता किसी तीसरे का?” मगन ने पूछा.

“बिलकुल सही. मैं जिम में एंट्री लेते समय कस्टमर का आधार कार्ड लेता हूं. मैं उन में से ही किसी पुराने ग्राहक के आधार कार्ड की फोटोकौपी निकलवा लूंगा. बाकी 2 आधार कार्ड का इंतजाम तुम्हारे डाटाबेस में से करना ताकि इन्क्वायरी के समय किसी एक प्रतिष्ठान पर शक ना जाए.

क्लौकरूम में सामान जमा करते समय हम अपने चेहरे कवर रखेंगे ताकि स्टेशन के कैमरों में हमारा चेहरा दिखाई न पड़े. सामान्यत: क्लौकरूम में कोई भी व्यक्ति 7 दिनों तक हमारे सामान को लावारिस नहीं मानता है.

क्लौकरूम में सामान जमा करने के बाद इस की सूचना स्पीड पोस्ट के माध्यम से कलेक्टर, एसपी, बैंक मैनेजर और न्यूजपेपर व चैनल्स को दे देंगे. यहां इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि यह सूचना कंप्यूटर के प्रिंटर से न निकाल कर हाथों से लिखी होगी. ताकि कंप्यूटर प्रिंटर की आईपी के द्वारा हम लोग सुरक्षित रहें.” जगन बोला.

20 दिनों के बाद तीनों दोस्त एक बार फिर गेलार्ड कैफे में पार्टी कर रहे थे. सभी न्यूजपेपर्स और चैनल्स पर उन के एडवेंचर की कहानियां सुनाई जा रही थीं.

लूट फार एडवेंचर – भाग 4

तीनों बैंकों का कर लिया चुनाव

“चलो, अभी हमारे पास एक महीने का समय है. इस बीच हम उन बैंकों की पहचान कर लेते हैं, जो हमारी उम्मीद के मुताबिक कैश रखते हैं.” जगन बोला.

“मैं ऐसी बैंकों की पहचान कर चुका हूं जो कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो मेंटेन करते ही हैं.” लगभग 15 दिनों के बाद जब तीनों मिले तो छगन बोला.

“कहां पर है ये बैंक?” जगन ने पूछा.

“एक ब्रांच कृषि उपज मंडी समिति की है. दूसरी ब्रांच इंडस्ट्रियल एरिया की है और तीसरी बैंक वह है जहां पर ज्यादातर सरकारी पैसा जमा होता है.” छगन ने बताया.

“वैरी गुड छगन, मैं भी इन तीनों बैंकों के बारे में ही सोच रहा था.” जगन भी सहमत होते हुए बोला.

“सब से बड़ी बात यह कि तीनों ही बैंकों के बंद होने के समय में आधे आधे घंटे का अंतर है. इंडस्ट्रियल एरिया वाली ब्रांच सुबह 9 बजे खुलती है और ग्राहकों के लिए 3 बजे बंद होती है. सरकारी लेनदेन वाली ब्रांच साढ़े 3 बजे और कृषि उपज मंडी समिति वाली ब्रांच 4 बजे बंद होती है,” छगन ने बताया.

“मतलब हमें अपना ऐक्शन ढाई बजे चालू करना होगा और ज्यादा से ज्यादा साढ़े 4 बजे तक खत्म करना ही होगा.” जगन बोला

“मगर रहमत तो गाड़ी खराब होने की सूचना तो तुरंत दे देगा. ऐसे में अगर समय रहते मैकेनिक आ गया तो क्या होगा? बिना गाड़ी के तो एडवेंचर पूरा नहीं होगा न.” मगन बोला.

“रहमत को गाड़ी खराबी की सूचना और बाकी की औपचारिकताएं पूरी करते करते 4-5 पांच घंटे तो लग ही जाएंगे. तब तक हम वैन को उड़ा चुके होंगे. सरकारी तंत्र में कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर निर्णय नहीं ले सकता है. हमें इसी लूप होल का फायदा उठाना है.” जगन ने समझाया.

“वाह जगन, तुम्हारी स्टडी सौलिड और स्ट्रांग है.” मगन तारीफ करते हुए बोला.

“मैं ने अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए 15 जून की तारीख सोची है.” जगन बोला.

“मगर आज तो 20 मई ही है. 15 जून की तारीख क्यों सोची? इस के पीछे कोई कारण है क्या?” मगन ने पूछा.

“हां, कई कारण हैं. एक तो हम इस बीच के समय में बैंक के स्टाफ की ऐक्टिविटीज अच्छी तरह से नोट कर सकेंगे. और जो ज्यादा ऐक्टिव दिखाई पड़ेंगे उन्हें कंट्रोल करने की तरकीबें भी निकाल सकेंगे.

“दूसरा गरमी अभी ही इतनी बढ़ गई है उस समय तो अपने चरम पर होगी. इसी कारण एसी को सुचारु रूप से चलाने के लिए फ्रंट के शीशे के दरवाजे पहले से बंद होंगे. ऐसे में हमें स्टाफ और ग्राहकों को अंदर ही कंट्रोल करने में आसानी होगी. आने वाले ग्राहक भी बाहर ही रोके जा सकेंगे. तीसरा उस दिन सोमवार भी है. जैसा हम ने प्लान किया था. और चौथा, यह याद रखने के लिए सब से आसान दिन है. क्योंकि यह साल के बीचोबीच का दिन है. याद रहे 7 साल बाद हमें इसी दिन गेलार्ड कैफे में मिलना है.” जगन उत्साहित होते हुए बोला.

“15 जून साल के बीचोबीच का दिन कैसे हो सकता है?” छगन ने हैरानी से पूछा.

“साल का छठा महीना और उस के बीच का दिन. सीधा सा गणित.” जगन ने मुसकराते हुए समझाया.

“बहुत सही और आसान कैलकुलेशन.” मगन बोला, “अच्छा, अब हम 14 जून की शाम को ही मिलेंगे. अपनी चुनी हुई बैंकों के स्टाफ की ऐक्टिविटीज पर नजर रखते हैं तब तक.”

हिम्मत करने वालों की जीत होती है. अभी यही बात उन तीनों पर लागू हो रही थी. उन के सभी पांसे सही पड़ रहे थे. सभी कुछ उन की योजना के मुताबिक ही चल रहा था. 10 जून को ही रहमत कि बीवी डिलीवरी के लिए अपने सासससुर के पास चली गई.

14 जून की रात को ही जगन ने बाजार में मिलने वाली साड़ी की सस्ती फाल ले कर कैश वैन के साइलैंसर में घुसा कर उसे जाम कर दिया. इस से पहले वह अपनी डुप्लीकेट चाबी से वैन का इग्नीशियन चैक कर चुका था. मतलब साफ था चाबी अपना काम बराबर कर रही थी.

और 15 जून को वह सब हो गया, जो इन तीनों के अलावा किसी ने कल्पना में भी नहीं की होगी. हालांकि थोड़ाबहुत विरोध अवश्य हुआ, मगर इन तीनों ने अपनी तुरत बुद्धि और साहस के बल पर विपरीत परिस्थियों का सामना करते हुए उस दुष्कर कार्य को कर ही दिया.

तीनों बैंकों से कुल मिला कर लगभग 65 लाख की लूट हुई थी. किसी भी बैंक में 21 लाख से कम की रकम नहीं थी, जो इन तीनों की कल्पना के अनुरूप ही थी. तीनों लूट के बाद एकदूसरे से अनजान अलगअलग शहर में चले गए.

पहली प्लानिंग में मिले 65 लाख रुपए

दूसरे दिन देश के सभी अखबारों और न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ इस दुस्साहसी घटनाओं का ही जिक्र था. पुलिस और प्रशासन अपनी नाकामी से हाथ मल रही थी. लंबे समय तक लोगों के होंठों पर इस घटना का बखान था. तीनों का मिशन सफल रहा. एक स्वनिर्धारित एडवेंचरस टास्क उन्होंने पूरा कर सब को चौंका दिया.

7 साल बाद. वही तारीख 15 जून समय शाम के 7 बजे. गेलार्ड कैफे के सामने एक मर्सिडीज गाड़ी आ कर खड़ी हुई. उस में से शानदार सूट और सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए छगन उतरा. कुछ ही मिनट बाद फोर्ड की एक बड़ी सी गाड़ी आई. उतरने वाला शख्स मगन था, जो अपने चिरपरिचित महंगी जींस और शर्ट पहने था. लगभग 15 मिनट इंतजार करने के बाद भी जब जगन नहीं आया तो दोनों निराश भाव से कैफे के अंदर चले गए.

“हमें टाइम मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाने वाला जगन खुद ही लेट हो गया.” छगन बोला.

“कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया हो. क्योंकि कैश वैन का ड्राइवर उसे ही पहचानता था. यह संभव है कि वैन की बरामदगी के बाद उस ने जगन का हुलिया पुलिस को बता दिया हो.” मगन ने शंका जाहिर की.

“यदि ऐसा है तो हमें भी तुरंत ही यहां से निकलना चाहिए. बहुत संभव है कि जगन ने पुलिस को हमारे यहां आने की सूचना भी दे दी हो.” छगन चिंतित स्वर में बोला.

7 साल बाद मिले तीनों दोस्त

अभी छगन और मगन बातें कर ही रहे थे कि वेटर ने आ कर उन दोनों को एक परची दी. परची में लिखा था, “सामने वाला केबिन हम लोगों के लिए बुक है उसी में आ जाओ.”

“अरे जगन तो हम से पहले ही यहां पहुंच चुका है. चलो, उसी केबिन में चलते हैं.” छगन खुश होते हुए बोला.

“आओ दोस्तों.” दोनों को देखते ही जगन गर्मजोशी से बोल पड़ा. तीनों एकदूसरे को देख कर बहुत खुश थे.

“सुनाओ अपने 7 साल की प्रोग्रेस.” छगन मुसकराते हुए बोला.

लक्ष्मण रेखा लांघने का परिणाम

हत्यारी लाश : खुला कत्ल का राज

फुरकान अपने दादा इरफान के सामने आ कर खड़ा हुआ तो उस की आंखें चमक रही थीं, सांसों से शराब की बदबू आ  रही थी और चेहरे पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी. फालिज के शिकार बूढ़े इरफान को फुरकान की आदतें अच्छी नहीं लगती थीं. उन्होंने उसे न जाने कितनी बार समझाया था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

बूढ़े अपाहिज इरफान का फुरकान के अलावा अपना कोई नहीं था. इसलिए वह फुरकान की हर बात मानने को मजबूर थे. इरफान काफी दौलतमंद आदमी थे. उन्होंने जो कमाया था अक्लमंदी से काम लेते हुए उसे रियल एस्टेट में लगाया था. उन्हें हर महीने कई मकानों और दुकानों का मोटा किराया मिल रहा था. करोड़ों रुपए की प्रौपर्टी लाखों रुपए महीना दे रही थी. रहने के लिए शानदार बंगला, कई गाडि़यां और नौकर थे.

इरफान के बेटे इमरान और बहू की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. संयोग से उस दिन फुरकान अपने दादा के पास घर में रुक गया था. तब उस की उम्र 10-11 साल थी. इरफान ने किसी तरह बेटे बहू की मौत के गम को बरदाश्त किया. इमरान उन की एकलौती संतान थी. फुरकान चूंकि उन का एकलौता बेटा था. इसलिए लेदे कर फुरकान का ही उन का एकमात्र सहारा रह गया था. वह पोते की परवरिश करने लगे. उन्होंने उसे कभी मांबाप की कमी महसूस नहीं होने दी.

लेकिन इतना सब करने और अच्छी शिक्षा दिलाने के बावजूद फुरकान ने जवानी में गलत राह पकड़ ली. एक दिन इरफान के मैनेजर सलीम ने जब उन्हें बताया कि फुरकान साहब अय्याशी कर रहे हैं तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘कैसी अय्याशी?’’

‘‘वह शराब पी कर लड़कियों के साथ घूमते हैं.’’ सलीम ने झिझकते हुए कहा.

यह ऐसी खबर थी जिस ने इरफान को तोड़ कर रख दिया था और जब उन्होंने खुद फुरकान को नशे में देखा तो यह सदमा बरदाश्त नहीं कर पाए और फालिज का शिकार हो गए. उन के शरीर का ऊपरी हिस्सा तो ठीक था, लेकिन निचला बिलकुल बेकार हो गया था.

इरफान खूबसूरती से सजे अपने कमरे में साफसुथरे बिस्तर पर लेटे रहते थे. एक नौकर हर वक्त उन की सेवा में लगा रहता था. उन्हीं के कमरे की दीवार में एक तिजोरी लगी थी, जिस में हमेशा लाखों रुपए नकद रखे रहते थे. इस के अलावा घर के सोनेचांदी के सारे गहने तथा लाखों रुपए के बांड भी उसी तिजोरी में रहते थे.

इरफान फुरकान को समझा ही रहे थे कि उन की बात अनसुनी करते हुए उस ने उन के हाथ से चाबी छीन ली और तिजोरी की ओर बढ़ा. बस उस के बाद फुरकान की ही नहीं, इरफान की भी हत्या हो गई थी.

दोपहर होतेहोते फुरकान और इरफान की हत्या को ले कर तरहतरह के अनुमान लगाए जा रहे थे. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि उन दादा पोते की हत्या किस ने की.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत 11 बजे हुई थी. तो फुरकान की हत्या उस के 15 मिनट बाद. घर की नौकरानी का कहना था कि 11 बजे के करीब फुरकान अपने दादा के कमरे में गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था.

15 मिनट बाद उस ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो बुरी तरह से घबरा गई. उस ने जोरजोर से दरवाजे पर दस्तक दी, जब अंदर से दरवाजा नहीं खुला तो उस ने निकट की पुलिस चौकी पर जा कर इस बात की सूचना दी. कुछ पुलिस वाले उसी समय उस के साथ आ गए.  दरवाजा तोड़ा गया तो कमरे में दादापोते की लाशें पड़ी थीं.

इरफान की लाश बिस्तर पर थी, फुरकान की लाश तिजोरी के पास पड़ी थी जबकि उस की पीठ पर गोलियां लगी थीं. तिजोरी खुली थी, जो पूरी तरह से खाली थी.  इरफान के हाथ में एक पिस्तौल फंसा था. उस का चैंबर खाली था. उसी पिस्तौल की गोलियां फुरकान के शरीर में धंसी थीं.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत हार्ट अटैक से हुई थी. कमरे की खिड़की खुली थी. अनुमान लगाया गया कि कातिल उसी खिड़की से दाखिल हुआ था. फुरकान को गोलियां मार कर उस ने पिस्तौल पहले ही मर चुके इरफान के हाथ में फंसा दी थी. उस के बाद वह तिजोरी साफ कर के भाग गया था. अब पुलिस को पता लगाना था कि यह सब किस ने किया था?

उस घर में दादापोते के अलावा 2 अन्य लोग रहते थे. उन में एक घर की नौकरानी नसरीन थी तो दूसरा इरफान का मैनेजर सलीम. दोनों को ही कोठी में एकएक कमरा मिला हुआ था. पुलिस को शक था, कातिल उन्हीं दोनों में से एक हो सकता था.

मैनेजर सलीम के अनुसार एक दिन पहले फुरकान ने किसी बात को ले कर नसरीन को थप्पड़ मारा था. 2 दिन पहले उस ने नसरीन को कोठी के गेट पर किसी बाहरी आदमी से बातें करते देखा था. सलीम ने बताया कि उस समय उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन घटना के बाद उसे उस पर शक हो रहा है. शायद उसी ने हत्यारे को रास्ता दिखाया होगा.

पुलिस की पूछताछ में नसरीन ने कहा, ‘‘जिस से मैं बात कर रही थी. वह मेरा शौहर था. वह कोई कामधाम नहीं करता. इधरउधर से जुगाड़ कर के किसी तरह जिंदगी गुजार रहा है.’’

‘‘तुम्हीं ने इरफान के कमरे की खिड़की खोली थी, जिस से वह अंदर आया था.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं उस के लिए खिड़की क्यों खोलूंगी?’’

‘‘बकवास मत करो. सचसच बताओ.’’ थानाप्रभारी ने डांटा, ‘‘वरना हम दूसरे ढंग से सच्चाई उगलवाएंगे. सचसच बता, क्या हुआ था?’’

नसरीन रोते हुए बोली, ‘‘साहब, हम गरीबी से तंग आ चुके हैं. मेरे पति ने मुझ से कहा कि मैं उसे साहब के कमरे के बारे में बताऊं.’’

‘‘तुम्हें पता था कि इरफान साहब की तिजोरी में क्याक्या रखा है?’’

‘‘जी साहब, मुझे पता था.’’ नसरीन बोली, ‘‘साहब के कहने पर मैं ने कई बार तिजोरी खोली थी.’’

‘‘क्यों?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब को जब किसी चीज की जरूरत होती थी तो वह मुझ से कह देते थे.’’

‘‘और तुम ने साहब के भरोसे का यह बदला दिया कि फुरकान को जान से मरवा दिया.’’

‘‘मैं नहीं जानती थी कि वह खून भी कर देगा.’’ नसरीन ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा था कि तिजोरी की चाबियां साहब के तकिए के नीचे होती हैं. तुम उन चाबियों से तिजोरी खोल कर जरूरत भर के पैसे निकाल कर खिड़की के रास्ते भाग जाना.’’

‘‘और उस ने भागने से पहले फुरकान को गोलियां मार दीं. शायद फुरकान ने उसे चोरी करते हुए देख लिया था. तू ने अपने शौहर को यह भी बताया था कि फुरकान अपने पास पिस्तौल रखता है?’’

‘‘मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था,’’ नसरीन ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि वह पैसे ले कर भाग जाएगा. लेकिन उस ने एक खून कर दिया.’’

‘‘अब यह बता, इस समय वह कहां होगा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘घर में ही होगा और कहां जाएगा?’’ नसरीन ने बताया.

‘‘चल हमारे साथ, बता कहां है तेरा घर?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

नसरीन थानाप्रभारी को ले कर उस के घर पहुंची तो उस का शौहर कहीं भागने के लिए अपना सामान समेट रहा था. पुलिस ने उसे तुरंत पकड़ लिया. इरफान की तिजोरी से चोरी गए रुपए और बांड उस के  पास से बरामद हो गए.’’

नसरीन के शौहर सफदर को थाने लाया गया. थाने में उस ने हंगामा मचा दिया. रोरो कर कहने लगा कि उस ने कोई खून नहीं किया है.

‘‘तो फिर खून किस ने किया है. किस ने फुरकान को गोलियां मारी हैं?’’ थानाप्रभारी ने उसे जोर से डांटा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब. मैं जब कमरे में पहुंचा था तो फुरकान साहब तिजोरी के पास पड़े थे. उन की पीठ से खून बह रहा था. तिजोरी खुली पड़ी थी.’’ सफदर ने रोते हुए कहा.

‘‘और तुम तिजोरी का सारा माल ले कर भाग निकले?’’

‘‘जी साहब, मैं ने सिर्फ यही गुनाह किया है. मैं ने चोरी की है, इस कत्ल से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘तो फिर उसे किस ने मारा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मैं क्या बताऊं साहब,’’ सफदर ने जोरजोर से रोते हुए कहा. ‘‘मैं ने सिर्फ चोरी की है. हत्या से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’

पुलिस को सफदर की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. खूनी वही हो सकता था क्योंकि उस कमरे में उस के अलावा और कोई गया ही नहीं था. नकद और बांड भी उसी के पास से बरामद हुए थे. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अदालत के लिए भी यह सीधासादा मामला था. सब कुछ बिलकुल स्पष्ट था. सफदर की बीवी नसरीन ने उस के कमरे में आने के लिए खिड़की खोल दी थी. वह कमरे में आया और बूढ़े अपाहिज इरफान से जबरदस्ती तिजोरी की चाबी ली और पिस्तौल कब्जे में ले लिया. उस ने तिजोरी खोली, तभी फुरकान कमरे में पहुंच गया.

सफदर ने बौखलाहट में उसे गोलियां मार दीं और पिस्तौल इरफान के हाथ में फंसा कर सारा माल ले कर भाग गया. उसे अंदाजा नहीं था कि इरफान की भी मौत हो चुकी है.

लेकिन यह मुकदमा उस वक्त दिलचस्प बन गया, जब मैडिकल बोर्ड के डाक्टर ने अपना बयान दिया. उस ने अदालत को बताया, ‘‘जनाबे आली, सफदर नाम का आदमी चोरी का तो मुजरिम है, लेकिन कत्ल का नहीं है.’’

‘‘बहुत खूब. तो फिर यह कत्ल किस ने किया?’’ सरकारी वकील ने पूछा.

‘‘खुद मरने वाले इरफान साहब यानी फुरकान के दादा ने.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सरकारी वकील चौंका, ‘‘यह कैसे हो सकता है? आप को मालूम है इरफान साहब की मौत कब हुई थी?’’

‘‘जी जनाब, ठीक 11 बजे उन्हें दिल का तेज दौरा पड़ा था, जिस में वह बच नहीं सके.’’

‘‘और फुरकान को गोलियां किस वक्त मारी गईं?’’

‘‘11 बज कर 15 मिनट पर.’’

‘‘यानी आप कहना चाहते हैं कि इरफान साहब ने अपनी मौत के 15 मिनट बाद अपने पोते का खून कर दिया?’’

‘‘जी जनाब, बिलकुल ऐसा ही हुआ है.’’

जज ने कहा, ‘‘क्या आप को अंदाजा है कि आप अदालत में अपना बयान दर्ज करा रहे हैं?’’

‘‘जी जनाब.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं यह जानता हूं और अपनी इस बात को सिद्ध करना चाहता हूं.’’

अदालत ने डाक्टर को आगे बोलने की इजाजत दे दी तो डाक्टर ने कहा, ‘‘जनाबे आली, पूरी कहानी इस तरह बनती है कि फुरकान अपने बूढ़े और अपाहिज दादा के कमरे में दाखिल होता है और उन से पैसों की मांग करता है. इरफान साहब उस की हरकतों से वैसे ही परेशान थे, इसलिए वह पैसे देने से मना कर देते हैं.’’

डाक्टर ने आगे कहा, ‘‘तब फुरकान उन से तिजोरी की चाबी छीन लेता है और तिजोरी के पास जा कर तिजोरी खोलने लगता है. इरफान साहब को उस की इस हरकत पर इतना गुस्सा आता है कि वह अपने पास रखी पिस्तौल उठा लेते हैं. तभी उन्हें दिमागी दबाव और सदमे की वजह से दिल का खतरनाक दौरा पड़ता है और उन की मौत हो जाती है.’’

‘‘और अपनी मौत के बाद वह फुरकान का खून कर देते हैं.’’ सरकारी वकील ने व्यंग्य से कहा.

‘‘जी जनाब, यह खून 15 मिनट बाद हुआ है.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘उस बीच फुरकान तिजोरी में रखी चीजों का निरीक्षण करता रहा होगा, क्योंकि वह जानता था कि उस कमरे में कोई और नहीं आ सकता. 15 मिनट बाद मृत इरफान साहब ने गोलियां चला कर अपने पोते फुरकान का खून कर दिया. इत्तेफाक से उसी समय बदकिस्मती से सफदर खुली हुई खिड़की से अंदर आया. उस के लिए मैदान साफ था. वह तिजोरी से नकद और बांड ले कर भाग गया.’’

‘‘सवाल फिर वही है कि मौत के बाद खून किस तरह किया गया?’’ सरकारी वकील ने कहा.

‘‘एक कीमियाई अमल जनाबेआली.’’ डाक्टर ने कहा. ‘‘जो मौत के बाद होने लगता है. जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन तेज गरमी थी. 11 बजे से पहले लाइट भी चली गई थी. इसलिए जब इरफान साहब की मौत हुई तो तापमान अधिक होने के कारण यह अमल बहुत तेजी से हो गया.’’

‘‘इस अमल में मरने वाले की हड्डियां सिकुड़ने लगती हैं. चूंकि पिस्तौल पहले से ही इरफान साहब के हाथ में दबी थी, इसलिए सिकुड़ती हुई उंगलियों ने पिस्तौल का ट्रिगर दबा दिया. निशाना चूंकि लगा हुआ था, इसलिए गोलियां सीधी फुरकान की पीठ में घुस गईं और वह मर गया. इस घटना की पूरी कहानी यही है.’’

मामला एकदम उलट गया था. डाक्टर की रिपोर्ट और बयान ने पूरा मामला उलट दिया था. नसरीन के शौहर सफदर को सिर्फ चोरी के जुर्म में एक साल की सजा सुनाई गई क्योंकि कत्ल के इल्जाम में उस की बेगुनाही साबित हो चुकी थी.

अदालत में बयान देने वाला डाक्टर अपने फ्लैट में इरफान के मैनेजर सलीम के सामने बैठा कह रहा था, ‘‘देखा, मेरा कमाल.’’

‘‘सच डाक्टर, इसे कहते हैं किस्मत की मेहरबानी.’’ सलीम ने बगल में रखे ब्रीफकेस की ओर इशारा कर के कहा. ‘‘इस में इरफान साहब के करोड़ों रुपए व गहने मौजूद हैं. आप की जानकारी सचमुच मेरे बड़े काम आई.’’

‘‘अब तुम मुझे पूरी बात बताओ.’’ डाक्टर ने कहा.

सलीम मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई खास बात नहीं है. मुझे नसरीन ने बता दिया था कि तिजोरी में क्याक्या रखा है. उस ने जानबूझ कर खिड़की खुली छोड़ दी थी. खिड़की उस ने अपने शौहर सफदर के लिए खोली थी, लेकिन उस का फायदा उठाया मैं ने.

‘‘बहरहाल उस दिन मैं खिड़की के रास्ते कमरे में दाखिल होने वाला था कि मुझे फुरकान आता दिखाई दे गया. मैं रुक गया. तभी फुरकान ने इरफान से जबरदस्ती चाबी छीनी और तिजोरी की ओर बढ़ा. इधर फुरकान ने तिजोरी खोली और उधर इरफान साहब ने पिस्तौल निकाल कर उसे निशाने पर ले लिया. यह सारा घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने हो रहा था. मैं ने इरफान साहब को दिल का तेज दौरा पड़ते और मरते अपनी आंखों से देखा. लेकिन मेरा खयाल था कि वह सिर्फ बेहोश हुए थे.

‘‘बहरहाल, यह मेरे लिए बहुत बढि़या मौका था. मैं तुरंत कमरे में दाखिल हुआ. उस वक्त फुरकान तिजोरी खोले उस में रखी दौलत को देख रहा था. मैं ने धीरे से इरफान साहब की अंगुलियों से पिस्तौल निकाली और फुरकान को गोलियां मार कर पिस्तौल फिर इरफान साहब की अंगुलियों में फंसा दी. आप की बताई जानकारी मेरे काम आ गई. इस के बाद मैं ने बांड और कुछ रुपए छोड़ कर बाकी सब अपने ब्रीफकेस में रखा और खामोशी से खिड़की से बाहर आ गया. अब यह सब कुछ हमारा है. ईमानदारी से हम इसे आधाआधा बांट लेंगे, लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.’’

‘‘वो क्या?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘जब यह साबित हो चुका था कि फुरकान का खून नसरीन के शौहर सफदर ने किया है, तो फिर आप ने इस कीमियाई अमल की कहानी द्वारा उसे बचा क्यों लिया?’’

‘‘इसलिए कि मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर मसीहा होता है, जल्लाद नहीं. शुरूशुरू में तो मैं भी तुम्हारे साथ था लेकिन जब मैं ने नसरीन और सफदर की आंखों में आंसू देखे तो मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ और उसे मैडिकल ग्राउंड पर बचा लिया. उस के बाद मैं असली कहानी की तलाश में था कि आखिर हुआ क्या था. खुदा का शुक्र है कि तुम ने अपनी जुबान से अपना जुर्म कबूल कर लिया.’’

सलीम ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तो अब आप मुझ से खेल खेल रहे हैं. लेकिन आप के पास क्या सुबूत है कि मैं ने आप से यह सब बातें कहीं थीं?’’

‘‘सुबूत यह है कि तुम्हारी कही हर बात मैं ने रिकौर्ड कर ली है. यही नहीं, दूसरे कमरे में बैठे इंसपेक्टर ने भी तुम्हारी एकएक बात सुन ली है.’’ डाक्टर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘याद रखो, बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है, अच्छा नहीं.’’