दिल आया जब दूसरे पर

विनोद एक निजी नौन बैंकिंग कंपनी में एजेंट था, इसलिए उस का घर आने का कोई निश्चित समय नहीं था. लेकिन जब भी उसे  घर लौटने में देर होती, वह पत्नी सुनीता को फोन कर के बता जरूर देता था.

26 दिसंबर, 2013 को भी विनोद एक परिचित के यहां जाने की बात कह कर घर से निकला था. जब लौटने में उसे देर होने लगी और उस का फोन नहीं आया तो सुनीता ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो पाई.

विनोद जिस कंपनी का एजेंट था, वह कंपनी आकर्षक ब्याज पर लोगों के पैसे जमा कराती थी. सुनीता ने यह सोच कर दोबारा फोन नहीं मिलाया कि वह किसी ग्राहक के साथ मीटिंग में होगा. जब काफी देर हो गई और न विनोद का फोन आया, न वह खुद आया तो सुनीता ने एक बार फिर फोन मिलाया. इस बार भी उस का फोन बंद था. अब तक रात के 10 बज गए थे. इतनी देर तक विनोद बिना बताए कभी बाहर नहीं रहा था.

यही सोच कर सुनीता को पति की चिंता सताने लगी. जिस आदमी से मिलने की बात कह कर विनोद घर से निकला था, सुनीता उसे जानती थी. वह उस आदमी के घर गई तो पता चला कि विनोद उस के पास आया तो था, लेकिन थोड़ी देर बाद ही चला गया था. उस के यहां से जाने के बाद वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था.

सुनीता ने बच्चों को तो खाना खिला कर सुला दिया था, लेकिन पति की वजह से उस ने खुद खाना नहीं खाया था. पति की चिंता में उस की भूखप्यास मर चुकी थी. किसी अनहोनी की आशंका से उस के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे. व्याकुल होने के साथ उस की घबराहट भी बढ़ती जा रही थी. चारपाई पर बैठे हुए उस की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी थीं.

बाहर कैसी भी आहट होती, सुनीता लपक कर दरवाजे तक आ जाती. लेकिन दरवाजा खोलने के बाद जब उसे कोई नहीं दिखाई देता तो वह मायूस हो कर वापस चली जाती. सुनीता ने पति के दोस्तों और सभी संबंधियों को भी फोन कर के पूछ लिया था. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो रात 12 बजे के करीब वह कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंची और थानाप्रभारी को विनोद के गायब होने की सूचना दी.

सुनीता की रात जैसेतैसे कटी. पूरी रात बहनबहनोई विनोद के वापस आने का भरोसा देते रहे. उन्होंने भी अपने स्तर से विनोद के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी, लेकिन उन की भी कोशिश बेकार रही थी. विनोद का कहीं पता नहीं चला था.

विनोद का इस तरह लापता होना चिंता की ही नहीं, परेशानी की बात थी. सुबह होते ही सुनीता के बहनोई राकेश शर्मा को हाथरस के थाना मुरसान के गांव नगला धर्मा के निकट एक अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही राकेश शर्मा कुछ लोगों के साथ गांव नगला धर्मा के लिए रवाना हो गए. लेकिन उन के वहां पहुंचने तक पुलिस लाश को सील कर चुकी थी. उस के पूछने पर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया, वह लापता विनोद शर्मा से हूबहू मिलता था. इसलिए लाश की शिनाख्त के लिए वह पोस्टमार्टम हाउस जा पहुंचे. वहां देखने पर पता चला कि वह लाश विनोद शर्मा की ही थी.

लाश देख कर राकेश शर्मा सन्न रह गए. वह सिर थाम कर बैठ गए. यह खबर जब विनोद शर्मा के घर पहुंची तो वहां कोहराम मच गया. सुनीता का रोरो कर बुरा हाल था. पल भर में उस के घर पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया. पोस्टमार्टम के बाद देर शाम विनोद की लाश गांव आई तो घर वालों के साथ पूरा गांव रो पड़ा. गांव वालों ने पहले तो विनोद का अंतिम संस्कार किया, उस के बाद आगरा-अलीगढ़ राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

मृतक विनोद की पत्नी सुनीता की ओर से थाना मुरसान में विनोद शर्मा की हत्या का मुकदमा राजकुमार उर्फ डैनी के खिलाफ नामजद दर्ज कराया गया. सुनीता का कहना था कि 26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद डैनी के यहां जाने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने राजकुमार उर्फ डैनी के बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार वह फितरती प्रवृत्ति का आदमी था. वह सीडीओ औफिस से पेंशन आदि के काम कराने के बहाने लोगों को ठगता था.

सुनीता शर्मा ने पुलिस को बताया था कि डैनी ने जिला नगरीय विकास अभिकरण विभाग से कर्ज दिलाने के नाम पर उस के पति से 10-12 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. काम नहीं हुआ तो विनोद उस से अपने पैसे मांग रहा था. 2 दिन पहले इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा भी हुआ था. तब 26 दिसंबर को उस ने पैसे देने के लिए कहा था.

26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद राजकुमार उर्फ डैनी के घर जाने की बात कह कर घर से निकला था. बात पैसों के लेनदेन की थी, इसलिए डैनी पूरी तरह संदेह के घेरे में था. पुलिस ने राजकुमार उर्फ डैनी को उस के नबीपुर स्थित घर पर छापा मार कर हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर राजकुमार उर्फ डैनी से पूछताछ की गई तो उस के जवाबों से साफ हो गया कि डैनी शातिर दिमाग तो है, लेकिन इस ने विनोद शर्मा की हत्या नहीं की. इस के बाद पुलिस ने उसे घर पर रहने और बुलाने पर तुरंत थाने आने का निर्देश दे कर घर भेज दिया.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने कोशिश तो बहुत की, पर वह विनोद के हत्यारों तक पहुंच नहीं सके. धीरेधीरे 15 दिन बीत गए. तब पुलिस अधीक्षक और क्षेत्राधिकारी ने सलाहमशविरा कर के इस मामले की जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए एसओजी टीम के प्रभारी अशोक कुमार को भी लगा दिया.

अशोक कुमार ने सब से पहले विनोद शर्मा के मोबाइल नंबर की पिछले एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाईं. उन की नजर उस नंबर पर जम गईं, जिस नंबर पर विनोद ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर एक महिला का निकला.

एक तो नंबर महिला का था, दूसरे उसी पर विनोद की सब से ज्यादा बातें हुई थीं, इसलिए पुलिस को उस पर संदेह हुआ. इस के बाद पुलिस ने उस महिला के बारे में पता किया.महिला का नाम अंजलि था. वह गांव झींगुरा की रहने वाली थी. पुलिस ने छापा मार कर उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से विनोद की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना कर दिया.

लेकिन पुलिस के सामने वह कहां तक झूठ बोलती. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई बता दी. उस ने विनोद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर के अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए, जिन के साथ मिल कर उस ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था.

अंजलि जिला बुलंदशहर के गांव वाजिदपुर के रहने वाले मुन्नाबाबू की 4 बेटों पर एकलौती बेटी थी. करीब 10 साल पहले उस का विवाह जिला हाथरस के गांव झींगुरा के रहने वाले राजकुमार के छोटे बेटे अनीस के साथ हुआ था. राजकुमार का बड़ा बेटा पवन जयपुर में अपने फूफा के पास रह कर नौकरी करता था.

ससुराल और पति से अंजलि खुश थी. शादी के कुछ दिनों बाद अंजलि गर्भवती हुई तो उस का पति अनीस गांव के ही भीष्मपाल सिंह की हत्या के आरेप में जेल चला गया. पति के जेल जाने के बाद अंजलि अकेली पड़ गई. कुछ दिनों बाद उस ने बेटे को जन्म दिया. वह सोच रही थी कि कुछ दिनों में पति जेल से छूट कर घर आ जाएगा. लेकिन धीरेधीरे 7 साल बीत गए और अनीस छूट कर घर नहीं आया.

एक जवान औरत के लिए पति के बिना रहना आसान नहीं है. जब वह अकेली हो, तब परेशानी और बढ़ जाती है. लेकिन अंजलि इस उम्मीद में दिन काट रही थी कि आज नहीं तो कल, अनीस छूट कर आ ही जाएगा.

जिंदगी इंतजार में नहीं कटती. आदमी की तमाम जरूरतें होती हैं. उन्हें पूरी करने के लिए आदमी को तरहतरह के काम करने पड़ते हैं. अंजलि अकेली नहीं थी, उस का एक बेटा भी था. दोनों की जरूरतें पूरी करने के लिए काम करना जरूरी था. अंजलि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा कराने लगी.

अंजलि की उम्र 24-25 साल थी. उस की जवानी पूरे जोश पर थी. वह सुंदर तो थी ही, घर से बाहर कदम रखा तो मर्दों की नजरें उसे घूरने लगीं. क्योंकि सभी को पता था कि उस का पति जेल में है. अंजलि दूध पीती बच्ची नहीं थी कि मर्दों की निगाहों का मतलब न समझती. मन तो उस का भी करता था कि उन से नजरें मिलाए, लेकिन लोकलाज की वजह से वह अपनी इच्छा को दबाए रही.

एक दिन सहारा इंडिया के औफिस में बैठी अंजलि कुछ ऐसी ही सोच में डूबी थी कि साथ काम करने वाले विनोद शर्मा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अंजलि, किस सोच में डूबी हो?’’

‘‘कुछ नहीं, अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी.’’ अचकचा कर अंजलि ने जवाब दिया.

विनोद ने उस के बगल बैठ कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘परेशानी की बात तो है ही, फिर भी हिम्मत से काम लो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘ठीक तो तभी होगा, जब अनीस जेल से बाहर आए. पता नहीं वह कब बाहर आएगा. कभीकभी उस की बड़ी याद आती है.’’ अंजलि ने मायूसी से कहा.

‘‘हिम्मत मत हारो अंजलि. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’ विनोद ने उसे हिम्मत बंधाई.

विनोद अंजलि से करीब 20 साल बड़ा था. इस नाते अंजलि उस की बहुत इज्जत करती थी. विनोद उसे हमेशा उचित सलाह देता था. जरूरत पड़ने पर या देर होने पर वह अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के घर भी पहुंचा देता था. अंजलि को विनोद पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस से अपना हर सुखदुख बता देती थी.

विनोद जिला हाथरस के गांव बिजरौली के रहने वाले छेदालाल शर्मा का बेटा था. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. उम्र होने पर नजदीक के ही गांव जगीपुर के रहने वाले करन सिंह की बेटी सुनीता से उस की शादी हो गई थी.

तब विनोद बिजली फिंटिंग एवं मोटर वाइंडिंग का काम करता था. इस कमाई से वह खर्च भर के लिए कमा लेता था. इस तरह आराम से जिंदगी कट रही थी. धीरेधीरे वह 4 बेटों तथा 3 बेटियों का बाप बन गया. कुछ दिनों बाद उस ने बिजली का काम छोड़ कर सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा करने का काम शुरू कर दिया.

एजेंट का काम करते हुए ही अंजलि से विनोद की मुलाकात हुई थी. उसे जब अंजलि के बारे में पता चला तो उसे उस से सहानुभूति हो गई. फिर वह उस की हर तरह से मदद करने लगा. यही वजह थी कि अंजलि उसे अपने कमरे पर आनेजाने देने लगी. हाथरस में उस ने अपने रहने के लिए एक कमरा ले रखा था.

घर परिवार के साथ रहने पर अकेलापन उतना परेशान नहीं करता, जितना अकेले रहने पर करता है. अंजलि हाथरस में अकेली रहने लगी तो उसे पति की कमी और ज्यादा खलने लगी. दिन तो कामधाम में बीत जाता था, लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. मानसिक और शारीरिक बेचैनी उसे परेशान कर देती.

उन दिनों हाथरस में अंजलि का सब से करीबी विनोद ही था. वह उस के कमरे पर भी आताजाता था. अपनी बेचैनी कम करने के लिए वह विनोद से हर तरह की बातें कर लेती थी. धीरेधीरे दोनों आपस में इस तरह खुल गए कि उन्हें एकदूसरे के सामने तन खोलने में भी संकोच नहीं रहा. विनोद से संबंध बनने के बाद अंजलि की बेचैनी काफी हद तक कम हो गई.

एक बार अंजलि का संकोच खत्म हुआ तो फिर यह रोज का खेल बन गया. विनोद और उस की उम्र में 20 साल का अंतर था. अंजलि जवान थी तो विनोद अधेड़. अंजलि ने उस से मजबूरी में संबंध बनाए थे. लेकिन अब उस की मजबूरी भी खत्म हो गई थी और संकोच भी. इसलिए उस ने नया हमउम्र साथी ढूंढ़ लिया. उस का नाम था सत्येंद्र, जो थोड़ा अपराधी प्रवृत्ति का था.

सत्येंद्र हाथरस के ही गांव चंदपा के रहने वाले भूमिराज शर्मा का बेटा था. उस की गांव में ही बिल्डिंग मैटेरियल्स की दुकान थी. उसी के साथ उस ने दवाओं की भी दुकान खोल रखी थी. वह शादीशुदा था और उस के बच्चे भी थे.

सत्येंद्र विनोद से संपन्न भी था और हृष्टपुष्ट भी. उम्र में भी वह विनोद से कम था. अंजलि अकसर सत्येंद्र के घर के सामने से गुजरती थी. अंजलि कभी पैसा जमा कराने के चक्कर में उस से मिली तो बात शारीरिक संबंधों तक जा पहुंची. इस के बाद तो जब देखो, तब सत्येंद्र अंजलि के कमरे पर पड़ा रहने लगा.

सत्येंद्र से संबंध बना कर अंजलि ने विनोद से दूरी बना ली. जबकि विनोद उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. अंजलि विनोद से जितना दूर जाने की कोशिश कर रही थी, विनोद उस के उतना ही नजदीक आने की कोशिश कर रहा था. वह फोन तथा एसएमएस कर के अंजलि से उस के पास आने को कहता, जबकि अंजलि उसे भाव नहीं दे रही थी.

अंजलि विनोद का नंबर देख कर ही फोन काट देती थी. क्योंकि अब उसे उस में जरा भी रुचि नहीं रह गई थी. सत्येंद्र ने सहारा इंडिया का उस का काम बंद करवा कर उस का पूरा खर्च उठाने लगा था. एक तरह से अब वह उस की रखैल बन कर रह रही थी.

विनोद को पता नहीं था कि अंजलि किसी और की रखैल बन गई है. यही वजह थी कि वह पहले की ही तरह उस से मिलना चाहता था. अंजलि ने मना किया तो वह उस पर दबाव बनाने लगा, जो अंजलि को पसंद नहीं आया. उस ने इस बात की शिकायत सत्येंद्र से कर दी. सत्येंद्र भला कैसे चाहता कि कोई और उस की प्रेमिका से मिले.

सत्येंद्र अंजलि के प्यार में आकंठ डूबा था. उस की प्रेमिका को कोई परेशान करे, यह वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. यही वजह थी कि उस ने विनोद को अंजलि के रास्ते से हटाने का निश्चय कर लिया. इस के बाद उस ने बगल के गांव खेड़ा परसौली के रहने वाले संजीव पाठक के साथ मिल कर विनोद को खत्म करने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने अंजलि को भी शामिल किया.

संजीव आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. उस पर कई मामले चल रहे थे. सत्येंद्र शर्मा से उस की अच्छी मित्रता थी. पूरी योजना तैयार कर के तीनों 26 दिसंबर, 2013 को हाथरस पहुंच गए.

हाथरस से ही अंजलि ने विनोद को फोन कर के आरपीएम स्कूल के निकट मिलने के लिए बुलाया. विनोद उस समय पैसों के सिलसिले में राजकुमार के यहां जा रहा था. अंजलि का फोन आने के बाद यहां से वह सीधे हाथरस स्थित आरपीएम स्कूल जा पहुंचा.

विनोद खुश था कि महीनों बाद आज वह अपनी प्रेमिका से मिलेगा. वह वहां पहुंचा तो अंजलि सत्येंद्र शर्मा एवं संजीव पाठक के साथ इंतजार करती मिली. सहारा इंडिया में पैसा जमा कराने की चर्चा करते हुए सभी अंजलि के कमरे पर आ गए.

कमरे पर बातचीत के दौरान संजीव ने विनोद को पकड़ लिया तो सत्येंद्र ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कस दिया. कुछ देर छटपटा कर विनोद शांत हो गया. विनोद की लाश को ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. इस बीच सत्येंद्र और संजीव पाठक ने अंजलि से शारीरिक संबंध भी बनाए. अंधेरा होते ही उन्होंने विनोद की लाश को मारुति वैन में डाला और मथुरा रोड पर चल पड़े.

कुछ दूर जा कर गांव नगला धर्मा के निकट वीरान जगह देख कर उन्होंने लाश को फेंक दिया और अपनेअपने घर चले गए. विनोद की मोटरसाइकिल उन्होंने मथुरा रोड पर एक गेस्टहाउस के पास खड़ी कर दी थी.

अंजलि के बयान के आधार पर पुलिस ने 1 जनवरी, 2014 को सत्येंद्र शर्मा और संजीव पाठक को हत्या में प्रयुक्त मारुति वैन नंबर डीएल6सी1687 के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने भी विनोद की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जिला जेल अलीगढ़ भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 3

7 नवंबर को भी प्रियंका ने सुरेंद्र को नींद की गोलियों वाला दूध पीने को दिया. लेकिन उस रात सुरेंद्र कुछ नशे में था, इसलिए उस ने दूध पीने के बजाय चारपाई के नीचे रख दिया. सुरेंद्र खर्राटे भरने लगा तो प्रियंका ने समझा कि नींद की गोलियों का असर है. फलस्वरूप उस ने अपने प्रेमी करन को बुला लिया और उस के साथ दूसरे कमरे में चली गई.

आधी रात में लघुशंका के लिए सुरेंद्र की नींद खुली तो प्रियंका बैड पर नहीं थी. वह कमरे से बाहर आया तो पास वाले कमरे का दरवाजा बंद था और भीतर से चूडिय़ों के खनकने और मस्ती की दबीदबी आवाजें गूंज रही थी. कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब जल रहा था. दरवाजे में झिर्री थी.

सुरेंद्र ने झिर्री से आंख लगा कर देखा तो प्रियंका और करन एकदूसरे में समाए थे. सुरेंद्र का खून खौल उठा. उस ने दरवाजे को जोर से धकेला तो वह खुल गया. सुरेंद्र को अचानक अंदर आया देख प्रियंका और करन हक्केबक्के रह गए. दोनों कपड़े ठीक कर पाते, उस के पहले ही सुरेंद्र प्रियंका को जानवरों की तरह पीटने लगा.

करन से न रहा गया तो उस ने पिटाई का विरोध किया. इस पर सुरेंद्र और करन में गालीगलौज व मारपीट होने लगी. उसी समय प्रियंका ने प्रेमी करन को उकसाया, “आज इस बाधा को खत्म कर दो. न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.”

प्रियंका के उकसाने पर करन ने सुरेंद्र को जमीन पर पटक दिया और दोनों ने मिल कर सुरेंद्र का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सुरेंद्र के दाहिने हाथ में उस का नाम लिखा था. उसे मिटाने के लिए करन ने कुल्हाड़ी से उस का दाहिना हाथ काट डाला. इस के बाद वह हाथ और खून सनी कुल्हाड़ी गांव के किनारे से बहने वाली सेंगुर नदी में फेंक आया. लौट कर उस ने प्रियंका के साथ मिल कर लाश को चादर में लपेटा और कमरे में ही बंद कर दिया.

सुबह प्रियंका ने पड़ोसियों और अपने जेठ रघुराज को बताया कि कल सुरेंद्र मूसानगर कस्बा कुछ सामान लेने गया था, लेकिन वापस नहीं आया. रघुराज ने उस की खोज शुरू की. लेकिन कहीं उस का कुछ पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद था.  प्रियंका भी पति के लिए बेचैन थी. वह बारबार घर वालों पर दबाव डाल रही थी कि जैसे भी हो, वे लोग उन की खोज करें. जबकि सुरेंद्र की लाश घर के अंदर ही कमरे में पड़ी थी. प्रियंका और करन को उसे ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला था.

2 दिनों तक सुरेंद्र की लाश घर में पड़ी रही, जिस के कारण दुर्गंध फैलने लगी. यह देख कर दोनों ने गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का फैसला किया. 9 नवंबर की रात 11 बजे जब गांव के लोग सो गए तो करन और प्रियंका ने सुरेंद्र की लाश को घर से बाहर निकाला और साइकिल पर रख कर खेतों की ओर चल दिए.

उन के गांव के बाहर पहुंचते ही कुत्ते तेज आवाज में भौंकने लगे. इस से दोनों घबरा गए. लोग जाग जाते तो उन के पकड़े जाने का डर था. इसलिए वे लाश को खेत की मेड़ पर फेंक कर घर लौट आए. 10 नवंबर की सुबह गांव के लोग दिशामैदान गए तो उन्होंने खेत की मेड़ पर हाथ कटी लाश देखी. इस से गांव भर में हडक़ंप मच गया.

रघुराज भी लाश देखने गया. लाश देखते ही वह रो पड़ा, क्योंकि लाश उस के छोटे भाई सुरेंद्र की थी. खबर पा कर प्रियंका भी पहुंची और त्रियाचरित्र दिखाते हुए बिलखबिलख कर रोने लगी.

रघुराज ने थाना मूसानगर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह और सीओ नरेशचंद्र वर्मा पुलिस बल के साथ आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्या 2 दिन पूर्व कहीं दूसरी जगह की गई थी और शिनाख्त मिटाने के लिए हाथ काट कर कहीं और फेंका गया था. यह अनुमान इसलिए लगाया गया, क्योंकि रघुराज के अनुसार, सुरेंद्र के हाथ पर नाम लिखा था.

चूंकि लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र की लाश को पोस्टमार्टम के लिए माती भेज दिया. सीओ नरेशचंद्र वर्मा ने मृतक के भाई रघुराज और पत्नी प्रियंका से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि मृतक सुरेंद्र सूरत में नौकरी करता था और करवाचौथ पर घर आया था. वह घर का सामान लेने मूसानगर गया था. लेकिन लौट कर नहीं आया. उन्होंने यह भी बताया कि मृतक की गांव में न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा. पता नहीं उसे किस ने मार डाला.

नरेशचंद्र वर्मा ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कर के हत्यारों को गिरफ्तार करें. तेजतर्रार इंसपेक्टर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपनी जांच की शुरुआत प्रियंका से शुरू की. लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने कई अपराधियों को भी पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा न हो सका. धीरेधीरे डेढ़ महीने बीत गए, लेकिन हत्यारे के बारे में कुछ भी पता न चल सका. निराश हो कर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

29 दिसंबर  को एक मुखबिर थाना मूसानगर पहुंचा और उस ने जितेंद्र कुमार सिंह को बताया कि वह यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन सुरेंद्र की हत्या का राज उस के घर में ही छिपा है. अगर उस की पत्नी प्रियंका और उस के भतीजे करन से पूछताछ की जाए तो हत्या का रहस्य खुल सकता है. क्योंकि करन और प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के जितेंद्र कुमार सिंह ने प्रियंका और करन को हिरासत में ले लिया. थाना पहुंचते ही प्रियंका का चेहरा पीला पड़ गया. थोड़ी सी सख्ती में प्रियंका टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका के टूटते ही करन ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

करन की निशानदेही पर पुलिस ने सेंगुर नदी से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी बरामद कर ली. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सुरेंद्र का कटा हाथ बरामद नहीं हो सका. प्रियंका ने बताया कि उस के पति सुरेंद्र ने उसे करन के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, इसलिए दोनों ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया था.

चूंकि प्रियंका व करन ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रघुराज को वादी बना कर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर प्रियंका व करन को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को दोनों को माती की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. आलोक अपने नाना के घर रह रहा है, जबकि मासूम अंशिका मां के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 3

शैफी मोहम्मद उर्फ शैफिया अपने 2 भाइयों अकबर, छोटा और 2 बहनों अकबरी तथा अन्ना के साथ रहता था. उस के बहन भाई सयाने हुए तो एकएक कर के उस ने सभी की शादियां कर दीं. पिता का इंतकाल हो चुका था, इसलिए यह जिम्मेदारी उसे ही निभानी पड़ी थी. उस की पत्नी रेशमा 3 बच्चों को जन्म दे कर चल बसी थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए घर वालों के कहने पर उस ने दूसरी शादी कर ली.

दूसरी शादी उस ने एटा के थाना जलेसर के गांव ताज खेरिया के रहने वाले इमरान हुसैन की बड़ी बेटी जरीना से की थी. वह कुंवारी थी, इसलिए वह अपने ही जैसे किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. लेकिन पिता की हैसियत उस के इस सपने का रोड़ा बन गई. शैफी का परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा संपन्न था, इसीलिए इमरान हुसैन ने उम्र में बड़े और 3 बच्चों के बाद शैफी से उस का निकाह कर दिया था.

शैफी अधेड़ था, जबकि जरीना लड़की. जरीना के जवान होतेहोते शैफी बूढ़ा हो गया. एक बूढ़ा आदमी किसी जवान की इच्छा कैसे पूरी कर सकता है. ऐसा ही कुछ जरीना के साथ भी था. शैफी कभी भी जरीना की इच्छा पूरी नहीं कर सका. अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही जरीना वकील के साथ भाग निकली थी.

दिन, महीने और साल गुजर गए. धीरेधीरे ढाई साल बीत गए. शैफी के घर वाले जरीना को भूलने लगे थे कि तभी उन्हें उस का सुराग मिल गया था.

इसलामनगर की ही रहने वाली सबीना की शादी हाथरस में हुई थी. एक दिन हाथरस की साप्ताहिक हाट में खरीदारी करती हुई जरीना पर उस की नजर पड़ गई थी. उस समय वकील भी उस के साथ था. जरीना को देख कर सबीना चौंकी. क्योंकि इसलामनगर वालों को लगने लगा था कि जरीना शायद मर गई है. वह छिपछिप कर जरीना का पीछा करते हुए उस के कमरे तक जा पहुंची.

सबीना ने यह बात इसलामनगर में रहने वाले अपने भाइयों को बताई तो उन्होंने जरीना के हाथरस में होने की बात शैफी तक पहुंचा दी. शैफी मोहम्मद को जब पता चला कि जरीना वकील के साथ हाथरस में है तो वह सीधे थाना एत्माद्दौला जा पहुंचा. इस के बाद पुलिस को ले कर वकील के कमरे पर गया. शैफी ने वकील की जम कर पिटाई की और जरीना से अपने साथ चलने को कहा.

लेकिन जरीना ने शैफी के साथ आगरा जाने से मना कर दिया तो सभी को हैरानी हुई. पुलिस ने जबरदस्ती करनी चाही तो जरीना ने अपने और वकील के कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र दिखा दिया. थाना पुलिस चुपचाप लौट आई. शैफी बौखला उठा. शैफी ने जरीना को धमकी दी कि वह ऐसे हालात कर देगा कि वह वकील की भी नहीं रहेगी.

हाथरस से लौट कर शैफी ने भाई फुर्रा और पहली पत्नी के बेटे शमशेर के साथ मिल कर जरीना को सबक सिखाने की योजना बना डाली. फुर्रा और शैफी इस बात से बेहद क्षुब्ध थे कि एक अदना सा लौंडा उन के जैसे प्रभावशाली आदमी के घर की औरत को भगा ले गया. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

इस के बाद योजना पर काम शुरू हो गया. सब से पहले शैफी ने अपनी बड़ी बेटी हसीना को फोन कर के जरीना के बारे में बता कर उस के पास आने जाने को कहा. इस के बाद हसीना शौहर के साथ जरीना के पास आने जाने ही नहीं लगी, बल्कि उस के यहां कईकई दिनों तक रुकने भी लगी.

हसीना ही नहीं, शमशेर और जरीना के अपने बच्चे भी उस के पास हाथरस आनेजाने लगे. इसी आनेजाने में वकील और शमशेर की अच्छी पटने लगी. इधर वकील की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी. इसलिए उस ने शमशेर से कहीं अच्छी जगह काम दिलाने को कहा. वकील अच्छा मोटर मैकेनिक था, लेकिन जहां वह काम करता था, वहां ज्यादा काम नहीं आता था, इसलिए उस की ढंग की कमाई नहीं हो पाती थी.

शमशेर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. वकील तो पुरानी बातें भूल चुका था, लेकिन शैफी, शमशेर और फुर्रा को उस समय का इंतजार था, जब वह वकील को ठिकाने लगा कर बदनामी का बदला ले सकें.

जुलाई में हसीना के बच्चे की मौत होने की वजह से जरीना उस के यहां चली गई तो घर में वकील अकेला ही रह गया. 25 जुलाई की सुबह शमशेर ने वकील को फोन किया कि अगर वह शाम को कोटला रोड आ जाए तो वह उस की मुलाकात एक वर्कशौप के मैनेजर से करा दे.

वकील को ठीकठाक काम की तलाश थी, इसलिए वह रात 8 बजे के आसपास कोटला रोड पहुंच गया. वकील से बातचीत होने के बाद शमशेर, पिता और चाचा को साथ ले कर हाथरस के लिए रवाना हो गया. 7 बजे के आसपास सभी कोटला रोड पहुंच कर वकील का इंतजार करने लगे. जै

से ही वकील वहां पहुंचा, शमशेर ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं शराब की बोतल ले कर आया हूं. आओ पहले मूड बना लेते हैं, उस के बाद मैनेजर से मिलने चलते हैं.’’

शराब की बोतल देख कर वकील से भी नहीं रहा गया और वह शमशेर के पीछेपीछे चल पड़ा. नजदीक ही घना जंगल था. जंगल में अंदर जाने के बजाय वहीं पत्थर पर दोनों बैठ गए. अंधेरा हो ही चुका था. शमशेर ने 2 पैग बनाए. वकील ने गिलास उठा कर जैसे ही मुंह से लगाया, शैफी ने पीछे से आ कर उस के सिर पर भारी पत्थर पटक दिया. पत्थर इतना भारी था कि उसी एक वार में वकील की मौत हो गई.

वकील की मौत के बाद उस की जेब का सारा सामान निकाल कर उसे वहीं बंबे के पास फेंक दिया. उस की शिनाख्त न हो सके, इसलिए उस के चेहरे को उसी पत्थर से कुचल दिया. नफरत की आग में जल रहे शैफी ने उस के पुरुषांग पर जूते से कई ठोकरें मारीं, जिस से वह क्षतिग्रस्त हो गया.

अब तक रात के 9 बज गए थे. तीनों वकील के शव को घसीट कर बंबे के पानी में फेंक देना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें किसी वाहन के आने की आवाज सुनाई दी तो वे लाश को वहीं छोड़ कर भाग निकले. शैफी ने वकील का मोबाइल और रुपए वहीं बंबे में फेंक दिया था.

काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जरीना इस मामले में शामिल नहीं थी. क्योंकि उस के मोबाइल की लोकेशन मथुरा के मांट की ही थी. जरीना की लगभग एक सप्ताह से शमशेर, फुर्रा और शैफी से बात भी नहीं हुई थी. इस से पुलिस ने उसे छोड़ दिया. बाकी अभियुक्तों को पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 3

25 वर्षीया शानू हुस्न की साक्षात मूर्ति थी. दिलफेंक स्वभाव का जसवीर उस दिन के बाद किसी न किसी बहाने उस के घर जाने लगा. शानू को समझते देर नहीं लगी कि जसवीर उस की खूबसूरती का दीवाना हो चुका है और वह उस से नजदीकियां बढ़ाने को बेताब है.

बातों ही बातों में शानू जान गई कि जसवीर मोटा असामी है. उसे लगा कि अगर किसी तरह वह उस की बातों में आ गया तो वह उस के पैसों पर न केवल पूरी जिंदगी ऐश करेगी, बल्कि उस की जायदाद की मालकिन भी बन सकती है. यह सोच कर उस ने जसवीर की उम्र की परवाह न कर के उस से प्रेम में डूबी मीठीमीठी बातें करने लगी.

शानू ने निकटता बढ़ाने के लिए अपना मोबाइल नंबर जसवीर को दे दिया. फिर जसवीर शानू से फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच अंतरंग संबंध बन गए.

जसवीर ने सूखा छावनी में हरिओम के घर में एक कमरा किराए पर ले रखा था. वहां उस का एक दोस्त पिंकू रहता था. पिंकू के साथ वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा करता था. शानू से मिलने के लिए यह जगह एकदम सुरक्षित थी. जसवीर जब भी बरेली आता, शानू को फोन कर के वहीं बुला लेता.

जब शानू को विश्वास हो गया कि जसवीर पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुका है और अब वह उस से हर जायजनाजायज मांगे पूरी करवा सकती है तो एक दिन प्यार के हसीन पलों के बीच उस ने जसवीर के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया. जसवीर को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उस ने शानू को आगोश में लेते हुए शादी के लिए हां कर दी. लेकिन उस ने यह भी कहा कि शादी के पहले उसे अपनी पत्नी गुरप्रीत को रास्ते से हटाना होगा.

शानू जसवीर के मुंह से पत्नी की हत्या के बाद शादी की बात सुन कर खुश हो गई. इस के बाद वह जब भी जसवीर से मिलती, उस के ऊपर शादी के लिए दबाव जरूर डालती.

सितंबर में किसी तरह गुरप्रीत को पता चल गया कि जसवीर का संबंध बरेली की किसी लडक़ी से है तो वह उस पर उस लडक़ी से संबंध तोडऩे के लिए दबाव डालने लगी. लेकिन जसवीर तो उसे ही रास्ते से हटाना चाहता था. इसलिए उस ने गुरप्रीत की हत्या की तैयारी कर ली. वह पिंकू उर्फ महेंद्र के साथ शानू से मिलने जौहरपुर गया. पिंकू जसवीर की हर बात का राजदार था.

शानू को ले कर वे सीबीगंज के परसाखेड़ा इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचे, जहां तीनों ने गुरप्रीत को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. वहां से घर लौट कर जसवीर मौके की तलाश में लग गया. गुरप्रीत को विश्वास में लेने के लिए अब वह उस से प्यार से पेश आने लगा. जसवीर का बदला व्यवहार देख कर मासूम गुरप्रीत को लगा कि शायद जसवीर की अक्ल ठिकाने आ गई है. वह उस की बातों पर विश्वास करने लगी.

21 नवंबर को जसवीर ने गुरप्रीत से बच्चों से मिलने के लिए शहर चलने को कहा तो बच्चों से मिलने के लिए लालायित गुरप्रीत उस के साथ चलने को तैयार हो गई. इस के बाद जसवीर ने पिंकू को फोन कर के बता दिया कि वह कल गुरप्रीत को ले कर शहर आएगा, इसलिए वह उस की हत्या की पूरी तैयारी कर ले.

22 नवंबर को भी जसवीर ने सुबह पिंकू को फोन किया. इस के बाद अपनी योजना के अनुसार, वह सुबह 10 बजे गुरप्रीत को ले कर घर से निकला और फतेहगंज पश्चिमी होता हुआ मिलक पहुंचा. वहां जसवीर की मामी रहती थीं. कुछ देर वहां रुक कर वह फतेहगंज और सीबीगंज होता हुआ अपने बच्चों के पास छावनी हार्डमैन पहुंचा.

गुरप्रीत को बच्चों के पास छोड़ कर वह सूखा छावनी में पिंकू से मिला और उस से कहा कि वह शाम 6 बजे गुरप्रीत को अपनी मोटरसाइकिल से ले कर सोहरा होता हुआ घर की ओर जाएगा, वह नत्थू मुखिया के खेतों के पास उस से मिले. उसी सुनसान जगह पर गुरप्रीत की हत्या करनी है.

पिंकू को गुरप्रीत की हत्या की योजना समझा कर जसवीर बच्चों के पास लौट आया. शाम 6 बजे वह गुरप्रीत के साथ वापस घर जाने के लिए निकला तो रास्ते में फतेहगंज पश्चिमी चौराहे पर रुका. वहां उस ने कृष्णा से गन्ने के रुपए लिए. उसी बीच पिंकू पहले से तय योजना के अनुसार, अगरास जाने वाले रास्ते से कैथोला बेनीराम गांव के बाहर नत्थू मुखिया के खेतों के पास पहुंच गया और जसवीर के आने का इंतजार करने लगा.

जसवीर वहां पहुंचा तो पिंकू ने उसे हाथ दे कर रोक लिया. जसवीर ने गुरप्रीत को मोटरसाइकिल से उतरने के लिए कहा. अपनी हत्या से अनजान गुरप्रीत मोटरसाइकिल से उतर कर खड़ी हो गई. इस के बाद जसवीर ने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और कमर में खोंसा तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही गुरप्रीत गिर कर तड़पने लगी. इस के बाद पिंकू ने तमंचा निकाला और गुरप्रीत के सीने में गोली मार दी.

इस के बाद पहले से तय योजना के अनुसार, पिंकू ने अपने तमंचे में दोबारा गोली भरी और जसवीर के कान के पास लगा कर गोली चला दी, ताकि पुलिस के सामने वह खुद को निर्दोष बता कर गुरप्रीत की हत्या का आरोप अपने पुराने दुश्मन नबी बख्श पर लगा सके. इस के लिए उस ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. जब पुलिस ने नबी बख्श को नहीं पकड़ा तो उस ने पेट के पास तमंचा सटा कर गोली मारी और थाने पहुंच गया. लेकिन पुलिस के सामने उस की यह चालाकी भी काम नहीं आई और वह पकड़ा गया.

अनिल कुमार सिरोही ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस का तमंचा नत्थू मुखिया के खेत के पास से बरामद कर लिया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मुकदमे में पिंकू और शानू का नाम भी जोड़ दिया है. शानू को धारा 120बी का अभियुक्त बनाया गया है.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पिंकू और शानू को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. इस बीच अनिल कुमार सिरोही का तबादला हो गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 3

स्कूल में छुट्टी होने की वजह से गवेंद्र पत्नी से मिलने आगरा पहुंच गया. उस का वहां आना प्रेमलता को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. रात का खाना खा कर वह सो गया.

अचानक उस की आंख खुली तो उस ने प्रेमलता को मोबाइल पर किसी से हंसहंस कर बात करते पाया. उस की बातचीत सुन कर पता चला कि वह किसी बबलू से बातें कर रही थी. उस ने फोन काटा तो गवेंद्र ने पूछा, “यह बबलू कौन है, जिस से तुम इतनी रात को बातें कर रही थी?”

“यहीं पड़ोस में रहता है. उस से किसी काम के लिए कहा था, उसी के बारे में बात कर रही थी.”

“उस के बारे में तुम सुबह भी तो पूछ सकती थी.”

“अभी पूछ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.” प्रेमलता ने तमक कर कहा.

इस के बाद गवेंद्र को नींद नहीं आई. सुबह दोनों में बबलू को ले कर खूब झगड़ा हुआ. बबलू को पता नहीं था कि गवेंद्र अभी गया नहीं है, इसलिए जब दोनों में झगड़ा हो रहा था तो वह प्रेमलता के कमरे पर आ पहुंचा. उसे देख कर गवेंद्र ने पूछा, “तो तुम्हीं बबलू हो?”

गवेंद्र के इस सवाल पर बबलू सिटपिटा गया. घबराहट में बोला, “जी, हम ही बबलू हैं. पिंकी दीदी से कुछ काम था, इसलिए आ गया. जरूरत पडऩे पर कुछ मदद कर देता हूं.”

“कोई अपनी दीदी से देर रात को बातें नहीं करता. बबलू यह सब ठीक नहीं है. मेरे खयाल से तुम्हारा यहां आनाजाना ठीक नहीं है. इन की मदद के लिए मैं हूं न.”

गवेंद्र ने बबलू को दरवाजे से वापस कर दिया. प्रेमलता को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. इसलिए उस ने तय कर लिया कि अब उसे किसी भी तरह गवेंद्र से छुटकारा पाना है. दूसरी ओर गवेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह प्रेमलता के बारे में पिता को बताए या न बताए. उसे लगा कि यह पतिपत्नी के बीच मामला है, इस में पिता को बता कर परेशान करना ठीक नहीं है.

इस तरह रामसेवक को कुछ पता नहीं चला. बच्चों की छुट्टियां पड़ गईं तो गवेंद्र ने बच्चों को आगरा पहुंचा दिया. इस बीच बबलू के साथसाथ उस के दोस्तों विनयकांत और सर्वेंद्र का भी प्रेमलता के यहां आनाजाना हो गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उसी कालेज से बीएमएस कर रहे थे. वहां रहते हुए उमंग और तमन्ना भी बबलू से हिलमिल गए थे.

एक दिन सभी ताजमहल देखने गए, जहां बबलू ने प्रेमलता के साथ फोटो खिंचवाए. इस तरह उन के प्यार का एक प्रमाण भी हो गया. इस के बाद तय हुआ कि गवेंद्र को रास्ते से हटा कर दोनों शादी कर लेंगे. यही नहीं, उस ने पूरी तैयारी भी कर ली. अब उसे मौके की तलाश थी.

30 नवंबर को प्रेमलता ने गवेंद्र को फोन किया तो पता चला कि रामसेवक वोट डालने गांव गए हैं. खेतों की बुवाई भी करानी है, इसलिए वह खेतों की बुवाई कराने तक गांव में ही रहेंगे. प्रेमलता ने बबलू से कहा कि गवेंद्र को निबटाने का यह अच्छा मौका है. बबलू ने अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत को दोस्ती के नाम पर साथ देने के लिए राजी कर लिया. इस तरह गवेंद्र की हत्या की पूरी तैयारी हो गई.

31 दिसंबर, 2015 को प्रेमलता बच्चों के साथ कीरतपुर आ गई. उसे देख कर गवेंद्र ने कहा, “फोन कर देती तो मैं बच्चों को लेने आ जाता.”

“मैं ने फोन इसलिए नहीं किया कि यहां आ कर घर भी देख लूंगी और तुम से भी मिल लूंगी.” प्रेमलता ने कहा.

योजना के अनुसार, 4 दिसंबर, 2015 को बबलू अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ मैनपुरी आ गया. कीरतपुर में ही उस का एक दोस्त रहता था, वे उसी के घर ठहर गए. उन का खाना प्रेमलता ने ही उमंग के हाथों भिजवाया था.

5 दिसंबर को गवेंद्र अपनी स्कूल की ड्यूटी कर के घर आया तो प्रेमलता उसे काफी बेचैन लगी. गवेंद्र ने पूछा तो प्रेमलता ने कहा, “मैं आगरा में रहती हूं तो तुम्हारी और बच्चों की चिंता लगी रहती है.”

गवेंद्र ने कहा, “कुछ दिनों की ही तो बात है. पढ़ाई पूरी होने पर मैनपुरी के आसपास नौकरी की कोशिश की जाएगी.”

प्रेमलता की इन बातों से गवेंद्र का मन साफ हो गया. उसे क्या पता था कि अब उस की जिंदगी कुछ ही घंटों की बची है. रात का खाना बना कर प्रेमलता ने सब को खिलाया. गवेंद्र को खाना खातेखाते ही नींद आने लगी. वह बिस्तर पर जा कर सो गया. प्रेमलता ने बच्चों को भी सुला दिया. जब मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया तो उस ने बबलू को फोन कर के आने को कहा.

बबलू तो तैयार ही बैठा था. वह अपने दोनों साथियों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ आ पहुंचा. प्रेमलता उन्हें उस कमरे में ले गई, जहां गवेंद्र सो रहा था. प्रेमलता ने गवेंद्र को खाने में नींद की गोलियां दे कर सुला दिया था, इसलिए सभी उस की ओर से निङ्क्षश्चत थे.

बबलू गवेंद्र का गला दबाने लगा तो वह जाग गया. उस के विरोध में हुए शोर से दूसरे कमरे में सो रहे उमंग की नींद टूट गई. शोर क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए वह उस कमरे में आया तो देखा 4 लोग उस के पापा को दबोचे हुए थे. लेकिन तब तक गवेंद्र मर चुका था.

उमंग को देख कर सभी के होश उड़ गए. जो जहां था, वहीं खड़ा रह गया. अबब की नजरें उमंग पर टिकी थीं. बबलू एकदम से बोला, “यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई, इस ने जो देखा है, किसी से भी बता सकता है. अब इसे भी खत्म करना होगा.”

“नहीं, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता. तुम लोग लाश को इसी तरह पड़ी रहने दो. मैं इसे भी संभाल लूंगी और लाश को भी संभाल लूंगी. आगे क्या करना है, यह तुम मुझ पर छोड़ दो.” प्रेमलता ने कहा.

इस के बाद बबलू, सर्वेंद्र और विनयकांत चले गए. उन के जाने के बाद प्रेमलता बेटे को डराती रही कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा. अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे भी मार देगी. सवेरा होने पर प्रेमलता ने रोरो कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर के बताया कि गवेंद्र ने आत्महत्या कर ली है. इस के बाद खुद ही थाने जा कर पति की आत्महत्या की सूचना दे दी.

बबलू को उमंग से तो खतरा था ही, ताजमहल में उस ने प्रेमलता के साथ जो फोटो ङ्क्षखचवाए थे, उन से भी वह पकड़ा जा सकता था. इसीलिए वह उन के बारे में पता करने थाने आ गया और पकड़ा गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उमंग से डर रहे थे, इसलिए उन्होंने उस का अपहरण करना चाहा, लेकिन रामसेवक को इस की भनक लग गई तो उन्होंने इस बात की जानकारी थाना विछवां के थानाप्रभारी जी.पी. गौतम को दे दी. जी.पी. गौतम ने उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी.

पूछताछ के बाद बबलू और प्रेमलता को जेल भेज दिया गया है. फरार सर्वेंद्र और विनयकांत की पुलिस तलाश कर रही है.

मनोहर सिंह यादव ने इस मामले का खुलासा मात्र 9 दिनों में कर दिया. इस से खुश हो कर एसएसपी ने उन्हें 5 हजार रुपए ईनाम दिया है. रेनू और मंसूर अहमद ने जिस तरह सूझबूझ से पकड़वाया, इस के लिए उन्हें भी ढाईढाई हजार रुपए ईनाम दिया गया है.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 2

अर्चना भले ही नहीं चाहती थी कि सुमिक्षा वहां रहे, लेकिन अब तो उसे वहीं रहना था. आखिर वही हुआ, जैसा ऊषा ने कहा था. अर्चना पूरी तरह वैसी सौतेली मां निकली, जैसा सौतेली मांओं के बारे में कहा जाता है. मां के व्यवहार से परेशान मासूम सुमिक्षा अकसर मंदिर के बरामदे में उदास बैठी रहती.

एक तो कालोनी की महिलाओं को पता चल गया था कि सुमिक्षा मंदिर के पुजारी बुद्धिविलास की पहली पत्नी की बेटी है, दूसरे उस में ऐसा न जाने क्या आकर्षण था कि हर महिला उस की ओर आकर्षित हो जाती थी.

सुमिक्षा के आने के बाद अर्चना को बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने सुचित रखा. भाई के पैदा होने से सुमिक्षा का ध्यान मां की ओर से हट कर भाई पर जम गया. वह भाई के साथ अपना दिल बहलाने लगी. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद अर्चना और क्रूर हो गई.

मंदिर के पास ही बनी मातृछाया बिल्डिंग में रहने वाले दवा व्यापारी अजय कौशिक की पत्नी संध्या कौशिक भी पूजापाठ के लिए मंदिर आती रहती थीं. एक दिन संध्या पूजापाठ कर के मंदिर के सीढि़यां उतर रही थीं तो सीढि़यों पर उन्हें रोती हुई सुमिक्षा मिल गई. उन्होंने रोने की वजह पूछी तो सुमिक्षा ने बताया कि मम्मी ने मारा है.

संध्या को पता था कि सुमिक्षा की मां अर्चना सौतेली है, जो उसे परेशान करती है. इसलिए उन्हें सुमिक्षा पर दया आ गई और वह बुद्धिविलास से पूछ कर उसे अपने घर ले गईं. उस दिन सुमिक्षा ने अपनी प्यारीप्यारी बातों से संध्या का मन मोह लिया. इस के बाद पता नहीं क्यों उन के मन में आया कि अगर वह सुमिक्षा को अपना लें तो उन के बेटों को एक प्यारी सी बहन मिल जाएगी.

शाम को बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले गया, पर संध्या की ममता सुमिक्षा के साथ जुड़ चुकी थी. उस दिन के बाद संध्या को सुमिक्षा अपनी बेटी सी लगने लगी. मन की बात जब उन्होंने अपने पति अजय कौशिक से कही तो वह सोच में पड़ गए. पराई बेटी के प्रति पत्नी के मोह ने उन्हें चिंता में डाल दिया था. वह जानते थे कि संध्या को एक बेटी की कमी खलती है, लेकिन दूसरे की बेटी के प्रति इतना प्यार उन की समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन के बाद संध्या अक्सर सुमिक्षा को अपने घर ले आने लगी. इस बीच उन्होंने महसूस किया कि सुमिक्षा काफी बुद्धिमान है. अगर इसे कायदे से पढ़ायालिखाया जाए तो आगे चल कर यह कुछ कर सकती है.

लगातार आते रहने से मासूम सुमिक्षा ने अजय कौशिक के दिल में भी अपने लिए जगह बना ली. अब वह उन के घर को अपना घर समझने लगी और कौशिक दंपति को मम्मीपापा कहने लगी. संध्या ने उस का नया नाम बिट्टू रख दिया. कालोनी वालों को भी पता चल गया कि संध्या सुमिक्षा को बेटी की तरह मानती हैं.

संध्या ने बुद्धिविलास से कहा कि वह सुमिक्षा को पढ़ाना चाहती हैं. अगर वह बुरा न माने तो वह उस का दाखिला करा दें. बुद्धिविलास को भला क्यों बुरा लगता. बेटी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इस से अच्छा और क्या हो सकता था. उस ने हामी भर दी तो भागदौड़ कर के अजय कौशिक ने सुमिक्षा का दाखिला आगरा के जानेमाने कान्वेंट स्कूल सेंट फ्रांसिस स्कूल में करा दिया.

सुमिक्षा स्कूल जाने लगी. स्कूल में सभी को यही लगता था कि वह अजय कौशिक की बेटी है. सुमिक्षा को पढ़ाई में दिलचस्पी थी, उस की राइटिंग भी बहुत अच्छी थी. अजय कौशिक ने सुमिक्षा का ट्यूशन भी कालोनी की टीचर विजय कुलश्रेष्ठ के यहां लगवा दिया था. सुमिक्षा अक्सर संध्या से सौतेली मां के अत्याचारों के बारे में बताती रहती थी.

सुमिक्षा का एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना अर्चना को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था. सौतेली बेटी के प्रति लोगों का स्नेह उस के मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा था. उस ने यह भी महसूस किया था कि बुद्धिविलास अभी भी अपनी पहली पत्नी को भुला नहीं पाया है. उसे लगता था कि जब तक सुमिक्षा उस के साथ रहेगी, तब तक वह पहली पत्नी को भुला भी नहीं पाएगा. इसलिए वह किसी भी तरह सुमिक्षा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी.

इस के बाद अर्चना सुमिक्षा को पहले से ज्यादा परेशान करने लगी. डर की वजह से सुमिक्षा पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती थी. लेकिन कालोनी की अन्य औरतों को जब पता चला कि अर्चना इधर सुमिक्षा को कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी है तो उन्होंने इस बात की शिकायत बुद्धिविलास से कर दी.

जब बुद्धिविलास को पता चला कि अर्चना सुमिक्षा को परेशान करती है तो वह बेचैन हो उठा. वह बेटी के लिए ही उसे ब्याह कर लाया था. गुस्से में उस ने अर्चना की पिटाई कर दी.

पति की इस हरकत से अर्चना को बहुत गुस्सा आया. सुमिक्षा से वह वैसे ही नफरत करती थी, इस घटना से उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह सुमिक्षा से छुटकारा पा कर ही चैन की सांस लेगी. इस के बाद वह पति से नाराज हो कर मायके चली गई.

अर्चना के जाने के बाद संध्या सुमिक्षा को अपने घर ले गई. जब सुमिक्षा संध्या के घर महीने भर से ज्यादा रह गई तो संध्या का मन हुआ कि वह सुमिक्षा को कानूनी तौर पर गोद ले लें. इस के लिए उन्होंने बुद्धिविलास से बात की, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.

दूसरी ओर अर्चना मायके पहुंची तो घर वालों की लगा कि वह घूमने आई होगी. लेकिन जब अर्चना ने कहा कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी तो रमेश मिश्रा ने कहा, ‘‘बेटी की शादी कर के मांबाप यह सोच लेते हैं कि वे उस से मुक्त हो गए. मैं भी तुम से मुक्त हो चुका हूं. इसलिए अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है.’’

मायके में अर्चना को कोई कामधाम तो करना नहीं होता था, इसलिए अपना समय वह टीवी पर आने वाले धारावाहिक देख कर बिताती थी. उन में कुछ आपराधिक कहानियों वाले धारावाहिक भी थे. उन्हीं में से कोई धारावाहिक देख कर उस ने सौतेली बेटी सुमिक्षा से छुटकारा पाने का उपाय खोज लिया.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 2

जब अच्छी आमदनी होने लगी तो गौहर ने अपना खुद का जरदोजी का कारखाना खोल लिया. लगभग 5 महीने से जावेद उसी के कारखाने में काम करता था. जावेद फर्रूखाबाद के मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था. उस के परिवार में पिता नियामतुल्ला के अलावा मां शाहीन बेगम, 3 भाई अजहर, आवेद व उबैद और 4 बहनें थीं. 3 बहनों का निकाह हो चुका था. जबकि सब से छोटी बहन रुखसाना (परिवर्तित नाम) अविवाहित थी.

जावेद ने अपने काम और व्यवहार से जल्द ही गौहर का विश्वास हासिल कर लिया. दोनों के बीच जल्द ही अच्छीभली दोस्ती हो गई. जावेद ने फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने की बात गौहर के दिमाग में डाली तो उसे उस की बात जम गई. वैसे भी फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर होता था. यह काम करने वालों की वहां कोई कमी नहीं थी.

समय पर अच्छा काम होने की लालसा में गौहर ने जावेद को फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने का जिम्मा सौंप दिया. इस के लिए उस ने अपनी होंडा बाइक भी जावेद को दे दी. इस के बाद जावेद जयपुर से गौहर से जरदोजी का काम ले कर फर्रूखाबाद में करने वालों को बांटने लगा. काम पूरा होने पर जावेद पूरा माल जयपुर पहुंचवा देता था. काम पूरा हो जाता तो गौहर कारीगरों को देने वाली रकम उसे दे देता. काम अच्छा चलने लगा, तो गौहर और जावेद की उम्मीदों को नए पंख लग गए.

काम के चक्कर में गौहर भी फर्रूखाबाद आनेजाने लगा. वह जावेद के घर पर ही रुकता था. हालांकि उस के मामा आफाक उर्फ हद्दू फर्रूखाबाद में असगर रोड पर रहते थे. वह उन के घर जा कर मामा व ननिहाल वालों से मिल तो आता था लेकिन वहां रुकता नहीं था.

गौहर करीबकरीब हर हफ्ते ही फर्रूखाबाद आता था. जावेद के घरवालों से उस की खूब पटती थी. वैसे भी उसी की वजह से जावेद का काम अच्छा चल रहा था. घर पर जावेद की छोटी बहन रुखसाना ही ऐसी थी जो मेहमानों की खातिरतवज्जो करती थी.

गौहर के बारबार आने से उस से रुखसाना का ही ज्यादा वास्ता पड़ता था. इसी वजह से रुखसाना उस से काफी खुल गई थी. वह उस से बात करते मुसकराती रहती थी. उस की मुसकराहट और अल्हड़ता गौहर को मन भाने लगी थी. कामधंधे के चक्कर में गौहर की शादी की उम्र भले ही निकल गई थी, लेकिन वह था तो कुंवारा ही.

रुखसाना को देख कर उस के अरमान मचल उठे थे. अचानक ही उसे सारी दुनिया उसे अच्छी लगने लगी थी. धीरेधीरे रुखसाना उस की चाहत बन गई. रुखसाना जब भी उस के सामने आती तो वह उसे एकटक निहारता रह जाता. वह क्या बोलती क्या कहती, उसे सुध ही नहीं रहती थी. जब रुखसाना ने उसे इस स्थिति में देखा तो वह झेंपने लगी. लेकिन जल्द ही उसे गौहर की इस हालत की असलियत पता चल गई.

धीरेधीरे वह भी गौहर की चाहत के बारे में जान गई. गौहर कोई बात कहता या उस के साथ शरारत करता, तो वह शर्म से दोहरी हो जाती थी. मुंह से शब्द नहीं निकलते थे और वह वहां से मंदमंद मुसकराते हुए चली जाती थी. रुखसाना भी दिल से गौहर को अपना मान चुकी थी. इस बात को गौहर भी महसूस करने लगा था कि रुखसाना भी उसे दिल से चाहने लगी है.

दोनों एकदूसरे से दूर होते तो उन के दिल तड़प उठते और पास होते तो दिल को सुकून मिलता, आंखों को ठंडक पहुंचती. दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात कहने को आतुर थे, लेकिन पहल नहीं कर पा रहे थे.

इस बार जब गौहर आया तो उसे मौका भी मिल गया. उस दिन घर में कम लोग थे, वे भी दोपहर का खाना खाने के बाद सो गए थे. जबकि गौहर ऊपरी मंजिल पर टीवी देख रहा था. उसे अकेला बैठा देख रुखसाना भी वहां पहुंच गई. वह भी गौहर के साथ बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगी. उस समय गौहर एक रोमांटिक फिल्म देख रहा था. फिल्म में कोई रोमांटिक सीन आता तो दोनों कनखियों से एकदूसरे को देखने लगते, उन के होंठ मुसकरा उठते. यह क्रम काफी देर यूं ही चलता रहा.

कुछ देर बाद गौहर ने बेड पर लेट कर अपना सिर रुखसाना की गोद में रख दिया. उस की इस अप्रत्याशित हरकत से वह पल भर के लिए चौंकी, लेकिन जब उस ने गौहर की आंखों में प्यार का सागर उमड़ते देखा तो वह विरोध न कर सकी. इस शरारत पर उस ने गौहर से पूछा, ‘‘तुम ने किस अधिकार से मेरी गोद में अपना सिर रख दिया?’’

गौहर उस की आंखों की गहराइयों में उतरते हुए बोला, ‘‘यह सवाल तुम अपने दिल से क्यों नहीं पूछतीं, जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.’’

‘‘अधिकार तुम जता रहे हो, और पूछूं मैं अपने दिल से?’’ रुखसाना थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘कोई जबरदस्ती है, मैं क्यों पूछूं अपने दिल से? तुम्हें बताना हो तो बताओ, नहीं तो मेरे ठेंगे से.’’ रुखसाना गौहर को ठेंगा दिखा कर दूसरी ओर देखने लगी.

गौहर जानता था कि रुखसाना नाराजगी का नाटक कर रही है, जबकि हकीकत में वह अपने दिल का हाल बयां कर देना चाहती है. गौहर यह भी जानता था कि इस के लिए पहल उसे ही करनी होगी. इसलिए वह उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘रुखसाना, मैं तुम से प्यार करता हूं, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार. मुझे यह भी मालूम है कि तुम भी मुझे दिल से चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही हो. इसी प्यार के नाते मैं तुम पर अधिकार जता रहा था.’’

गौहर ने रुखसाना के जिस हाथ को अपने हाथों में ले रखा था, वह उस हाथ को उस के हाथों सहित अपने सीने पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं जानती हूं, तुम ने प्यार के अधिकार से ही ऐसा किया है, लेकिन तुम प्यार की बात जुबां पर नहीं ला रहे थे. तुम से प्यार का इजहार करवाने के लिए ही मैं ने तुम्हें उकसाया था ताकि तुम अपने दिल की बात बेहिचक कह सको. गौहर… आई लव यू टू.’’

रुखसाना ने उस के प्यार को स्वीकार कर के जवाब में प्यार के मीठे बोल बोले तो गौहर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ कर खुशी से झूम उठे. प्यार की खुशी में दोनों के तनमन मिले तो तन की गरमी का वेग बढ़ गया. नतीजतन वे उस राह पर उतर गए जो सामाजिक नजरिए से सही नहीं होती. लेकिन उन दोनों को इस की फिक्र नहीं थी. दुनिया से बेपरवाह हो कर दोनों प्यार की उस नदी में बह गए जिस का कोई छोर नहीं होता.

मन के साथ तन का मिलन हुआ तो उन के चेहरों पर अजीब सी खुशी झलकने लगी. उस दिन के बाद तो यह खुशी अकसर उन के चेहरों पर नजर आने लगी. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के पास उस के कमरे में आ जाती और दोनों मनचाही करते. मस्ती का खजाना लुटाने के बाद वह अपने कमरे में चली जाती. इस की किसी को कानोेंकान खबर तक नहीं होती.

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 2

राधा भी बह गई नेत्रपाल के प्यार में

जब वह मुसकान बिखेरती हुई रसोई में गई तो उस की मतवाली चाल देख कर नेत्रपाल का दिल जोरों से धडक़नें लगा. कुछ देर में राधा 2 कप चाय और बिस्कुट ले आई.

चाय पीतेपीते नेत्रपाल ने पूछा, “भाभी, एक बात पूछूं, तुम्हारी आंखों में मुझे एक उदासी सी तैरती दिखती है. तुम भैया के साथ खुश तो हो न..?”

राधा ने घूर कर नेत्रपाल को देखा, “यह खयाल तुम्हारे मन में कैसे आया?”

“बस यूं ही आ गया. तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर मुझे उदासी अच्छी नहीं लगती.”

“माना मैं उदास रहती हूं. अब बताओ, मेरी उदासी दूर करने को तुम क्या कर सकते हो?” अप्रत्याशित सवाल पूछ कर राधा ने अपनी नशीली आंखों से उसे देखा.

“तुम्हें खुश करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.” नेत्रपाल सिंह ने भी कह दिया.

“अच्छा!” राधा ने आंखें नचाईं, “औरत को खुश कैसे रखा जाता है, यह जानते भी हो?”

“भाभी, तुम बताओगी तो जान जाऊंगा. आखिर तुम मेरी प्यारी भाभी हो, इस जहां में सब से अच्छी. सब से सुंदर.” नेत्रपाल ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया.

राधा ने अपनी तारीफ, अपनी खूबसूरती के ऐसे बोल पहली बार सुने थे. नारी सुलभ कमजोरी उस पर हावी होने लगी. उस ने कस कर नेत्रपाल सिंह का हाथ पकड़ लिया, “हाथ पकड़ कर कभी छोड़ोगे तो नहीं?”

“कभी नहीं भाभी. मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.” कह कर उस ने राधा को अपनी बांहों में भर लिया. राधा भी उस से लिपट गई. नेत्रपाल ने राधा के शरीर से छेड़छाड़ शुरू की तो राधा का मन भी बेकाबू होने लगा. लेकिन वह उचित समय न था, अपनी ख्वाहिशों में मस्ती भरने का. अत: वह नेत्रपाल की बांहों से छिटक गई.

फिर कामुक निगाहों से उसे देखती हुई बोली, “अभी जाओ, कोई आ जाएगा. रात को आना. मैं जानवरों वाले बाड़े में तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

झोपड़ी में हुआ पहला मिलन

नेत्रपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने अपने कपड़े दुरुस्त किए. इधरउधर नजर दौड़ाई, फिर राधा के घर से बाहर निकल आया.

उस शाम राधा ने जल्दीजल्दी खाना खिला कर बच्चों को सुला दिया. ससुर ओमप्रकाश खेत से आते ही अपनी घासफूस की बनी झोपड़ी में चले गए. वहीं उन्होंने खाना खाया. राधा के पति अश्वनी की उस दिन तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. अत: वह भी दवा खा कर बिस्तर पर पड़ते ही सो गया.

राधा ने जल्दीजल्दी रसोई का काम निपटाया और घर का मुख्य दरवाजा बाहर से बंद कर बगल में बने जानवरों के बाड़े में पहुंच गई. फिर वह नेत्रपाल का इंतजार करने लगी. रात के 10 बजतेबजते सिरसा दोगड़ी गांव में सन्नाटा छा गया था.  सब के दरवाजे बंद हो चुके थे. तभी एक साया अश्वनी के जानवरों वाले बाड़े के बाहर दिखाई दिया. उस ने बाड़े के दरवाजे को ढकेला तो वह खुल गया. अंदर मौजूद राधा ने साए को अंदर खींच कर दरवाजा बंद कर लिया. वह नेत्रपाल ही था.

बाड़े के अंदर आते ही नेत्रपाल ने राधा को अपनी बांहों में भरा और दोनों जमीन पर लुढक़ गए. नेत्रपाल ने राधा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाहट की, “सब सो गए?”

“हां, लेकिन ससुर का पता नहीं, कब जाग जाएं. हमारे पास बहुत कम वक्त है. बेटा उठ गया तो रोने लगेगा.”

हसरतें पूरी करने की चाहत से दोनों सराबोर थे. उन के शरीर भी मिलन को बेताब थे. अत: जल्दी ही दोनों एकदूसरे में समा गए. फिर तो असीम सुख प्राप्त करने के बाद ही वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उस रात को नेत्रपाल के लिए यह पहला स्त्री सुख था, इसलिए वह देर तक राधा को चूमता रहा. राधा के लिए यह पहला मनमुताबिक सुख था. इसलिए वह उस के बाल सहलाती रही. उस के सीने को अंगुलियों से हरारत देती रही. उस रात के बाद राधा और नेत्रपाल जैसे एक जिस्म दो जान हो गए.

उन के अवैध संबंध जारी रहे

अश्वनी तथा उस के पिता ओमप्रकाश सुबह खाना खाने के बाद खेत पर चले जाते थे. फिर शाम को ही आते. दोपहर को राधा अकेली होती थी. दोपहर का सन्नाटा होते ही नेत्रपाल उस के घर में घुस जाता. दोनों की देह एकदूजे से लिपटती, फिर शरीर का कामज्वर उतारने के बाद ही अलग होती.

राधा का जीवन अब मस्ती से भर गया था. वह पूरी तरह अवैध संबंधों के दलदल में फंस चुकी थी. वह पति की उपेक्षा भी करने लगी थी. अश्वनी समझता था कि राधा बच्चों के पालनपोषण व घर के काम में इतनी थक जाती है जिस से वह उस का ध्यान नहीं रख पाती.

नेत्रपाल सिंह जहां राधा से प्यार करता था, वहीं उस के बच्चों को भी दुलारता था और खिलाता पिलाता था. वह जब भी घर आता, बच्चों को बिस्कुट, नमकीन, चिप्स, कुरकुरे आदि जरूर लाता. इन चीजों को पा कर बच्चे खुश हो जाते. राधा की बेटी व बेटा नेत्रपाल को चाचा कह कर बुलाते थे. हालांकि अश्वनी नेत्रपाल का घर आना तथा बच्चों को सामान ला कर देना पसंद नहीं करता था.

नेत्रपाल शातिर दिमाग था. वह खुद तो शराबी था ही, उस ने राधा के पति अश्वनी को भी शराब का चस्का लगा दिया था. सप्ताह में एक या दो बार वह शराब की बोतल ले कर अश्वनी के घर आ जाता फिर थकान मिटाने का बहाना कर उसे शराब पीने को प्रेरित करता. अश्वनी भी नानुकुर के बाद राजी हो जाता. साथसाथ शराब पीने से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

नेत्रपाल के अकसर अश्वनी के घर में घुसे रहने पर आसपड़ोस को शक होने लगा तो चौपाल पर दोनों के संबंधों की चर्चाएं होने लगीं. कनबतियां एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंचीं और बात ओमप्रकाश के कानों तक पहुंच गई.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 2

जरीना के घर वालों ने शैफी से उस की शादी उस की संपन्नता की वजह से की थी. शैफी 3 बच्चों का बाप था, जबकि जरीना कुंवारी थी. जरीना भले ही शैफी के 7 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह शैफी से न कभी तन से संतुष्ट हुई, न मन से. उस ने अपनी जवानी कसमाहट में निकाल दी थी. उस की भावना का जो ज्वार उफान मारता था, शैफी कभी उसे शांत नहीं कर पाया था.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. शैफी ने पहली पत्नी से पैदा हुई संतानों का विवाह कर दिया. बड़ी बेटी हसीना का विवाह उस ने मथुरा के मांट कस्बे में किया तो बड़े बेटे शमशेर का विवाह आगरा के ही बाईपुर में किया था.

जरीना शैफी की पहली पत्नी के बेटे शमशेर को अपनी पत्नी के साथ कमरे में सोते देखती तो उस के मन में आता कि अगर उस का विवाह किसी हमउम्र के साथ हुआ होता तो वह भी इसी तरह उस के साथ कमरे में लेटी होती. ऐसा ही कुछ सोचतेसोचते उस की नजर घर के सामने रहने वाले हनीफ खां के बेटे वकील पर पड़ी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था.

वकील और उस की उम्र का अंतर इसी बात से लगाया जा सकता है कि जरीना की शादी के 2 साल बाद वकील पैदा हुआ था. वकील उम्र के उस दौर से गुजर रहा था, जब औरतें बहुत आकर्षित करती हैं. इस उम्र में अच्छेबुरे और रिश्तेनातों का भी खयाल नहीं रहता. आदमी की यह उम्र जल्द ही भटका देने वाली होती हैं.

जरीना की नजरें वकील पर पड़ीं तो उस ने उसे हुस्न के लटकेझटके दिखाने शुरू किए. महिला देह के आकर्षण में बंधे वकील को भटकते देर नहीं लगी. जरीना की देह को पाने के लिए उस का मन मचल उठा. पिता की मौत के बाद वकील के भाइयों ने घर का बंटवारा कर लिया था. वकील के हिस्से में भी एक कमरा आया था, जिस में वह अकेला ही रहता था. वही कमरा वकील और जरीना के मिलने का साधन बना.

पिता की मौत के बाद वकील का कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं रहा था तो शैफी ने उस के खानेपीने की व्यवस्था अपने यहां करवा दी थी. कभी वह उन के घर जा कर खाना खा लेता था तो कभी जरीना उस के कमरे पर जा कर खाना दे आती थी. ऐसे ही पलों में दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा था और परिणामस्वरूप उन के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

दोनों मौके का फायदा उठा रहे थे. कोई उन पर शक भी नहीं करता था. इस की वजह दोनों की उम्र का अंतर था. जरीना की उम्र वकील की उम्र से दोगुनी से अधिक थी. दोनों मांबेटे जैसे लगते थे.

धीरेधीरे महीनों बीत गए. जरीना को प्रेमी से छिपछिप कर मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह प्रेमी के साथ खुल कर मौजमजा करना चाहती थी. शैफी उस की जो इच्छाएं पूरी नहीं कर सका था, अब वह अपने आशिक के साथ पूरी कर लेना चाहती थी. लेकिन यह तभी संभव था, जब दोनों साथ रहें.

जरीना वैसे भी शैफी से बुरी तरह ऊब चुकी थी. इसी का नतीजा था कि उस ने अपनी आधी से भी कम उम्र के प्रेमी वकील के साथ भागने का निश्चय कर लिया. अपने शरीर के आकर्षण की बदौलत उस ने प्रेमी वकील को इस के लिए भी राजी कर लिया. वकील अकेला तो था ही, शायद इसीलिए जरीना ने जब उस से भागने को कहा तो वह खुशीखुशी तैयार हो गया.

योजना बनी और फिर उसी योजना के अनुसार एक दिन हैदराबाद जाने की बात कह कर वकील अपने कमरे पर ताला लगा कर जरूरत का सारा सामान अपने साथ ले कर चला गया.

वकील ने घर में भले ही हैदराबाद बताया था, लेकिन वह हाथरस गया था, जहां पहले ही उस ने मोहल्ला वालापट्टी में कमरा किराए पर ले रखा था. आगरा वाले कमरे का सामान उस ने वहां पहुंचा दिया. वह अपने साथ ऐसा कोई सामान नहीं ले गया था, जिस से लोग उस पर शक करते. वकील के जाने के 15 दिनों बाद अचानक एक दिन जरीना भी घर से गायब हो गई.

जरीना का इस तरह अचानक घर से गायब हो जाना हैरानी वाली बात थी. 7 बच्चों की मां जरीना के बेटे बेटियों में 2 की तो शादी भी हो चुकी थी. सालभर पहले वह नानी भी बन चुकी थी, इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि किसी के प्रेम में पागल हो कर वह पति और बच्चों को छोड़ कर भाग गई होगी. 45-50 वर्षीया जरीना का अपने शौहर शैफी से कोई झगड़ा वगैरह भी नहीं हुआ था. वह किसी पराई औरत के प्यार में पागल भी नहीं था कि घर में किसी तरह का क्लेश रहा हो.

पूरे परिवार ने जरीना को कहांकहां नहीं खोजा, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. शैफी उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना एत्माद्दौला के मोहल्ला इसलामनगर का रहने वाला था. मोहल्ले में उस की गिनती एक तरह से संपन्न और प्रभावशाली लोगों में होती थी. इसलिए दुख की इस घड़ी में पूरा मोहल्ला उस के साथ था. जरीना की खोजखबर में सभी उस की मदद कर रहे थे.

कई दिन बीत गए और जरीना का कुछ पता नहीं चला तो मोहल्ले के कुछ वरिष्ठ और प्रभावशाली लोगों के साथ वह थाना एत्माद्दौला पहुंच गया. थाना पुलिस ने जरीना की गुमशुदगी दर्ज कर ली और कहा कि वह तो जरीना को तलाश करेगी ही, वह खुद भी उस की तलाश करता रहे. यह 4 साल पहले की बात है.

पुलिस को जरीना की क्या चिंता थी, जो उस के पीछे भागती. लेकिन शैफी की तो पत्नी थी, इसलिए वह लगातार उस की तलाश करता रहा. अगर जरीना अपना मोबाइल फोन साथ ले गई होती तो उस के लोकेशन के आधार पर थाना पुलिस शायद उस का पता लगा लेती. लेकिन जरीना का फोन उस के बैड पर पड़ा मिला था.

दिन, हफ्ते, महीने ही नहीं, पूरे ढाई साल गुजर गए, जरीना का कुछ पता नहीं चला. वह जिंदा है या मर गई, इस बात का भी कुछ पता नहीं चला था. उस का इस तरह रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना मोहल्ले वालों के लिए हैरानी की बात थी.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 2

इसी पूछताछ में पुलिस को पता चला कि नुसरत रईस की चौथी बीवी थी. रईस ने पहला निकाह अमरोहा की शबाना से किया था. उसे तलाक दे कर रईस ने गुइयाबाग निवासी नरगिस से दूसरा निकाह किया था. कुछ दिनों साथ रख कर रईस ने उसे भी छोड़ दिया था. इस के बाद रईस ने लालबाग निवासी रानी से निकाह किया. उसे भी छोड़ कर उस ने 8 साल पहले नुसरतजहां से निकाह किया, जिस से उसे 3 बच्चे थे.

पुलिस ने मृतक रईस मंसूरी के फोन नंबर को सॢवलांस पर लगाया तो वह बंद आ रहा था. लेकिन जांच में पता चला कि उस के फोन की अंतिम लोकेशन 15 दिसंबर की शाम को उसी इलाके में थी, जहां आलम रहता था. इस से यह तो पता चल रहा था कि रईस आलम के यहां गया था, लेकिन वहां जाने के बाद उस का फोन बंद क्यों हो गया? पुलिस को यही पता लगाना था.

पुलिस टीम बखलान के रहने वाले आलम के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. अनिल कुमार वर्मा ने आलम से रईस की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो वह यही कहता रहा कि उस के यहां इनवर्टर लगाने के बाद रईस चला गया था. इस के बाद वह कहां गया, उसे पता नहीं. वह खुद को बेकुसूर बता रहा था.

पूछताछ के दौरान ही एसएसआई मनोज कुमार सिंह को मुखबिर से पता चला कि मृतक रईस के आलम की बहन से नाजायज संबंध थे. यह बात उन्होंने अनिल कुमार वर्मा को बता दी. जिस तरह क्रूरता से रईस की लाश के टुकड़े कर के उस के गुप्तांग को काट कर फेंक दिया गया था, उस से अनिल कुमार वर्मा को लग रहा था कि हत्या के पीछे प्रेमप्रसंग का मामला है.

मनोज कुमार सिंह की बात ने उन के शक को पुख्ता कर दिया. उन्हें लगा कि आलम झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से थोड़ी सख्ती की तो वह सारी सच्चाई बताने को तैयार हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रईस मंसूरी की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आलम से पूछताछ में रईस मंसूरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

रईस मंसूरी और आलम के पिता जमा खां आपस में अच्छे दोस्त थे. कहा जाता है कि दोनों बिजली की लाइनों का तार चोरी किया करते थे. चोरी किए तार से जो पैसा मिलता था, उसे वे आपस में बांट लेते थे. इसी काम से वे अपनेअपने परिवारों को पाल रहे थे. लेकिन जमा खां की पत्नी को जानकारी नहीं थी कि उस का पति बिजली के तार चोरी करता है. उसे तो जमा खां ने यही बताया था कि वह इलैक्ट्रिशियन है.

करीब 15 साल पहले की बात है. रईस और जमा खां काशीपुर की तरफ बिजली के तार काटने गए थे. जमा खां ने पत्नी को बताया था कि उसे काशीपुर में बिजली फिटिंग का एक बड़ा काम मिला है, रईस के साथ वह उस काम को करने जा रहा है. उस की पत्नी रईस को जानती थी, क्योंकि वह उस के यहां आताजाता रहता था. उस ने कहा था कि वह वहां से कई दिनों बाद लौटेगा. लेकिन वह वहां से जिंदा नहीं लौट सका.

दरअसल, हुआ यह कि जब दोनों रात को काशीपुर के जंगल में 11 हजार वोल्ट की लाइन के तार काट रहे थे, तभी जमा खां को बिजली ने करंट मार दिया. वह खंभे से नीचे गिरा और उस की मौत हो गई. दोस्त को मरा देख कर रईस डर गया. कहीं वह पुलिस के चक्कर में न फंस जाए, वह उसे वहीं छोड़ कर घर चला आया.

अगले दिन लोगों ने खेत में लाश देखी तो इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो लाश के पास बिजली के तार काटने के औजार देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह बिजली के तार काटने वाला चोर है और बिजली के करंट की चपेट में आ कर मर गया है. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश का पोस्टमार्टम कराया और शिनाख्त न होने के बाद अज्ञात मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

इस के बाद एक दिन जमा खां की पत्नी को बाजार में रईस मिला तो वह उसे देख कर चौंकी, क्योंकि उस का पति तो रईस के साथ काम करने काशीपुर गया था. तसलीमा ने उस से पति के बारे में पूछा तो रईस ने बताया कि उस की एक हादसे में मौत हो गई है.

पति की मौत की बात सुन कर तसलीमा चौंकी, “यह तुम क्या कह रहे हो, यह नहीं हो सकता?”

“मैं सच कह रहा हूं भाभी, करंट लगने से जमा खां की मौत हो गई है.” रईस ने कहा.

“यह कैसे और कहां हो गया? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?” तसलीमा ने पूछा.

“हम दोनों बिजली का तार काटने काशीपुर गए थे. वहीं तार काटते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का करंट लग गया, जिस से वह खंबे से नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई.” रईस ने बताया.

“मेरे पति चोर नहीं थे, वह तो इलैक्ट्रिशियन थे. तुम झूठ बोल रहे हो.” तसलीमा रोते हुए बोली.

“नहीं भाभी, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. उन्होंने तुम्हें बताया होगा कि वह इलैक्ट्रिशियन हैं. हकीकत में हम दोनों तार काट कर बेचा करते थे.” रईस ने कहा.

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं हो रहा. मैं काशीपुर जा कर वहां की पुलिस से मिलूंगी.” तसलीमा ने कहा.

“तुम वहां जाना चाहती हो तो जरूर जाओ. लेकिन वहां जा कर तुम खुद भी फंस सकती हो. वहां की पुलिस ने जब जमा खां की लाश बरामद की थी, तब उस के साथ तार काटने के औजार भी मिले थे. जब तुम वहां जाओगी, पुलिस तुम से कहेगी कि एक चोर की बीवी हो कर तुम ने पुलिस को इस की खबर क्यों नहीं दी?” रईस ने उसे डराने के लिए कहा.

तसलीमा सीधीसादी औरत थी. वह रईस की बातों से डर कर काशीपुर नहीं गई और पति की मौत का गम सीने में दबा कर रहने लगी. उस समय उस का बेटा आलम 13 साल का था.