बाहुबली धनंजय सिंह की धमक बरकरार – भाग 2

दरअसल, उस रोज उत्तर प्रदेश पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली थी कि 50 हजार के ईनामी वांटेड क्रिमिनल धनंजय सिंह 3 अन्य लोगों के साथ भदोही-मिर्जापुर रोड पर बने एक पैट्रोल पंप पर डकैती डालने वाला है. पुलिस के लिए यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि तब धनंजय सिंह एक हत्या के आरोप में फरार चल रहा था और उस ने एक ऐसा गैंग बना बना रखा था, जो लूटपाट, डकैती, अपहरण, रंगदारी आदि को बड़ी आसानी से अंजाम दे देता था.

एनकाउंटर की वाहवाही में नप गए 34 पुलिसकर्मी

उस गैंग द्वारा 17 अक्तूबर, 1998 की रात में धावा बोलने की सूचना थी. पुलिस मौके पर पूरे दलबल के साथ पहुंच गई थी. गैंग के लोग भी आ गए. दोनों ओर से जम कर फायरिंग हुई. इस एनकाउंटर में साढ़े 11 बजे के करीब पुलिस ने सभी को मार गिराया. उस के बाद पुलिस ने दावा किया कि मारे गए 4 लोगों में एक धनंजय सिंह है.

यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. पुलिस को भदोही एनकाउंटर में बाहुबली धनंजय सिंह को मार गिराने की काफी वाहवाही मिली. किंतु पुलिस का यह दावा तब गलत साबित हो गया, जब कुछ महीने बाद फरवरी 1999 में धनंजय सिंह एक केस के सिलसिले में पुलिस के सामने आ धमका.

दरअसल, पुलिस के इस दावे के बाद धनंजय करीब 4 महीने तक अपनी मौत पर खामोश बना रहा. किंतु जब भदोही एनकाउंटर का सच सामने आया, तब सवाल उठा कि धनंजय की जगह पुलिस ने किस का एनकाउंटर कर दिया था? इस सवाल का जवाब इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से मिला. उस रिपोर्ट के अनुसार जिस दिन पुलिस ने वह एनकाउंटर किया था, उसी दिन भदोही में सीपीएम के कार्यकर्ता फूलचंद यादव ने शिकायत दर्ज करवाई थी. रिपोर्ट में लिखवाया था कि पुलिस जिसे धनंजय सिंह बता रही है, वह उन का भतीजा ओमप्रकाश यादव है.

उन्होंने पुलिस को यह बात बताई, लेकिन पुलिस ने उन की बात नहीं सुनी. ओमप्रकाश यादव समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता था. उन दिनों मुलायम सिंह यादव सदन में विपक्ष के नेता थे. उन्होंने राज्य सरकार पर दबाव बनाया. इस के बाद जांच के आदेश दिए गए और फिर मानवाधिकार आयोग की जांच बैठी.

फिर क्या था, उस एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर ही मुकदमा दर्ज हो गया. इस केस की सुनवाई भदोही की स्थानीय अदालत में अभी भी जारी है. इस तरह धनंजय सिंह की दबंगई बनी रही, उलटे पुलिस का ही रिकौर्ड बिगड़ गया.

दल बदलबदल कर बने विधायक और सांसद

धनंजय सिंह की राजनीति की शुरुआत दिवंगत रामविलास पासवान की नई बनी लोक जनशक्ति पार्टी से 2002 में हुई थी. तब धनंजय सिंह ने पार्टी के टिकट पर जौनपुर की रारी विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जब धनंजय ने जौनपुर की राजनीति में कदम रखा, उस वक्त वहां विनोद नाटे नाम के एक दबंग बाहुबली नेता हुआ करते थे.

विनोद के प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें नामी बदमाश मुन्ना बजरंगी का भी गुरु कहा जाता था. वह जौनपुर से चुनाव लडऩा चाहते थे और उन्होंने यहां की रारी विधानसभा क्षेत्र से जीतने के लिए काफी मेहनत भी की थी, लेकिन एक सडक़ दुर्घटना में अचानक उन की मृत्यु हो गई.

फिर धनंजय उन की तसवीर को सीने से लगा कर पूरे इलाके में घूमा. इस के बाद धीरेधीरे धनंजय का राजनीतिक कद बढ़ता गया. साल 2004 में कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर धनंजय सिंह ने लोकसभा का चुनाव लड़ा.

हालांकि, इस बार उस की किस्मत ने साथ नहीं दिया और हिस्से में हार मिली. इस के बाद साल 2007 में धनंजय ने पार्टी बदल ली और जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो कर फिर दोबारा रारी से विधायक बनने में सफलता हासिल की.

एक साल बाद ही धनंजय ने फिर से पार्टी बदल ली और बसपा का दामन थाम लिया. 2009 में पहली बार उस ने बसपा के टिकट से लोकसभा चुनाव जीता. परिसीमन के बाद रारी के स्थान पर बनी मल्हनी विधानसभा से पिता राजदेव सिंह को विधायक बनाने में मदद की.

पत्नी के चलते अस्त हो गया राजनीतिक करिअर

कहते हैं कि मर्द की तरक्की में पत्नी की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन उस की वजह से कई बार मर्द कितना कमजोर बन जाता है, यह धनंजय सिंह के अलावा और कोई नहीं समझ सकता. उस की दूसरी पत्नी के कारनामे की सजा उसे भी भुगतनी पड़ी. उस के बाद उस का राजनीतिक ग्राफ जो गिरना शुरू हुआ वह आज तक नहीं उठ पा रहा है.

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3 शादियां रचाने वाले धनंजय सिंह की पहली पत्नी मीनू सिंह की मौत शादी के 9 महीने बाद ही संदिग्ध हालत में हो गई थी. वह पटना जिले की रहने वाली थी. उस की लाश धनंजय सिंह के लखनऊ स्थित गोमती नगर वाले घर में मिली थी.

उस के बाद धनंजय ने डा. जागृति सिंह से दूसरी शादी की. वह दिल्ली के ही एक अस्पताल में डेंटिस्ट थी. शादी के बाद 2012 में दिल्ली स्थित साउथ एवेन्यू के सांसद आवास में रहने आ गई थी. उस पर नवंबर 2013 में घरेलू नौकरानी की हत्या का आरोप लग गया था. इस का प्रमाण पुलिस को सीसीटीवी फुटेज से मिला था. इस मामले में धनंजय सिंह पर भी सबूत मिटाने के आरोप लगे थे. बाद में पत्नी से तलाक हो गया, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी पार्टी से धनंजय को निष्काषित कर दिया. न केवल सांसदी जाती रही, बल्कि पत्नी के अपराध में साथ देने के आरोप में जेल भी जाना पड़ा.

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उस के बाद से धंनजय सिंह का राजनीतिक पतन शुरू हो गया. हालांकि उस ने अपनी खोई प्रतिष्ठा पाने के लिए साल 2012 के चुनाव में पत्नी डा. जागृति सिंह को विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़ा किया, लेकिन वह हार गई. सपा के पारस नाथ यादव ने उसे 31,502 वोटों के अंतर से हरा दिया. कुछ दिन बाद ही जागृति अपनी नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर ली गई. इस मामले के चलते राजनीतिक करिअर को बचाने के मकसद से धनंजय ने जागृति से तलाक ले लिया.

उस के बाद 2014 में लोकसभा और 2017 में विधानसभा में भी जौनपुर से खुद हाथ आजमाया, लेकिन दोनों चुनावों में धनंजय सिंह की करारी हार हुई.

चुनावों में मिली लगातार हार

बताते हैं कि 2017 में विधानसभा चुनाव में हार मुलायम सिंह की वजह से मिली. उस चुनाव में पारिवारिक विवाद से नाराज मुलायम सिंह चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ 2 जगह ही गए थे. जिन में से एक जौनपुर का मलहनी विधानसभा क्षेत्र भी था. उन्होंने मंच से सपा के प्रत्याशी बाहुबली नेता पारसनाथ यादव के पक्ष में प्रचार करते हुए सिर्फ इतना कहा कि ‘हम पारस के लिए आए हैं, आप लोग इन्हें जिताएं.’

इस के बाद पूरा खेल पलट गया. बताते हैं कि जो सीट धनंजय के कब्जे में जाती दिख रही थी वो पारस यादव को मिल गई. 2014 में धनंजय को लोकसभा चुनाव में जहां केवल 64 हजार वोट मिले, वहीं कुल पड़े वोटों का 6 फीसदी ही था. 2017 में मल्हनी सीट से निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था. तब पारसनाथ यादव ने 21,210 वोटों से हरा दिया था.

हालांकि पारसनाथ की आकस्मिक मौत होने के बाद 2020 में उपचुनाव हुआ. उस में धनंजय सिंह ने उम्मीदवारी की, किंतु पारसनाथ के बेटे लकी यादव ने धनंजय सिंह को हरा दिया. यहां तक कि इस साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 में भी धनंजय सिंह को हार का सामना भी करना पड़ा है. इस बार उस ने जेडीयू के टिकट से चुनाव लड़ा था. यानी कि 2009 के बाद धनंजय को एक भी चुनाव में जीत नहीं मिल पाई.

                                                                                                                                         क्रमशः

आतंक के ग्लैमर में फंसा सैफुल्ला

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से मध्य प्रदेश पुलिस की सूचना पर लखनऊ में आतंकी सैफुल्ला मारा गया, उसे राजनीतिक नफानुकसान से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है. सैफुल्ला की कहानी से पता चलता है कि हद से अधिक धार्मिक दिखने वाले लोगों के पीछे कुछ न कुछ राज अवश्य हो सकता है. धर्म के नाम पर लोग दूसरों पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं. ऐसे में धर्म की आड़ में आतंक को फैलाना आसान हो गया है. अगर बच्चा आक्रामक लड़ाईझगड़े वाले वीडियो गेम्स और फिल्मों को देखने में रुचि ले रहा है तो घर वालों को सचेत हो जाना चाहिए. यह किसी बीमार मानसिकता की वजह से हो सकता है.

मातापिता बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने बुढ़ापे का सहारा बनाना चाहते हैं. अगर बच्चे गलत राह पर चल पड़ते हैं तो यही कहा जाता है कि मातापिता ने सही शिक्षा नहीं दी. जबकि कोई मांबाप नहीं चाहता कि उस का बेटा गलत राह पर जाए. हालात और मजबूरियां सैफुल्ला जैसे युवाओं को आतंक के ग्लैमर से जोड़ देती हैं.

धर्म की शिक्षा इस में सब से बड़ा रोल अदा करती है. धर्म के नाम पर अगले जन्म, स्वर्ग और नरक का भ्रम किसी को भी गुमराह कर सकता है. सैफुल्ला आतंकवाद और धर्म के फेर में कुछ इस कदर उलझ गया था कि मौत ही उस से पीछा छुड़ा पाई. कानपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार का सैफुल्ला भी अन्य युवाओं जैसा ही था.

सैफुल्ला का परिवार उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की जाजमऊ कालोनी के मनोहरनगर में रहता था. उस के पिता सरताज कानपुर की एक टेनरी (चमड़े की फैक्ट्री) में नौकरी करते थे. उन के 2 बेटे खालिद और मुजाहिद भी यही काम करते थे. उन की एक बेटी भी थी. 4 बच्चों में सैफुल्ला तीसरे नंबर पर था.

सैफुल्ला के पिता सरताज 6 भाई हैं, जिन में नूर अहमद, ममनून, सरताज और मंसूर मनोहरनगर में ही रहते थे. बाकी 2 भाई नसीम और इकबाल तिवारीपुर में रहते है. सैफुल्ला बचपन से ही पढ़ने में अच्छा था. जाजमऊ के जेपीआरएन इंटरकालेज से उस ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. इंटर में उस ने 80 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे.

सन 2015 में उस ने मनोहरलाल डिग्री कालेज में बीकौम में दाखिला लिया. इसी बीच उस की मां सरताज बेगम का निधन हो गया तो वह पूरी तरह से आजाद हो गया. घरपरिवार के साथ उस के संबंध खत्म से हो गए. उसे एक लड़की से प्रेम हो गया, जिसे ले कर घर में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

सैफुल्ला के पिता चाहते थे कि वह नौकरी करे, जिस से घरपरिवार को कुछ मदद मिल सके. पिता की बात का असर सैफुल्ला पर बिलकुल नहीं हो रहा था. जब तक वह पढ़ रहा था, घर वालों को कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उस के पढ़ाई छोड़ते ही घर वाले उस से नौकरी करने के लिए कहने लगे थे. जबकि सैफुल्ला को पिता और भाइयों की तरह काम करना पसंद नहीं था.

वह कुछ अलग करना चाहता था. अब तक वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो चुका था. सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के साथ वह आतंकवाद से जुड़ने लगा था. फेसबुक और तमाम अन्य साइटों के जरिए आतंकवाद की खबरें, उस की विचारधारा को पढ़ता था.

यहीं से सैफुल्ला धर्म के कट्टरवाद से जुड़ने लगा. ऐसे में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के कारनामे उसे प्रेरित करने लगे. टीवी और इंटरनेट पर उसे वीडियो गेम्स खेलना पसंद था. इन में लड़ाईझगड़े और मारपीट वाले गेम्स उसे बहुत पसंद थे.शार्ट कौंबैट यानी नजदीकी लड़ाई वाले गेम्स उसे खास पसंद थे. वह यूट्यूब पर ऐसे गेम्स खूब देखता था. इस तरह की अमेरिकी फिल्में भी उसे खूब पसंद थीं. यूट्यूब के जरिए ही उस ने पिस्टल खोलना और जोड़ना सीखा.

कानपुर में रहते हुए सैफुल्ला कई लोगों से मिल चुका था, जो आतंकवाद को जेहाद और आजादी की लड़ाई से जोड़ कर देखते थे. वह आतंक फैलाने वालों की एक टीम तैयार करने के मिशन पर लग गया. फेसबुक पर तमाम तरह के पेज बना कर वह ऐसे युवाओं को खुद से जोड़ने लगा, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. सैफुल्ला ऐसे लोगों के मन में नफरत के भाव भी पैदा करने लगा था. उस का मकसद था युवाओं को खुद से जोड़ना और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन की राह पर चलते हुए भारत में भी उसी तरह का संगठन खड़ा करना. युवाओं को वह सुविधाजनक लग्जरी लाइफ और मोटी कमाई का झांसा दे कर खुद से जोड़ने लगा था.

कानपुर में लोग सैफुल्ला का पहचानते थे, इसलिए इस तरह के काम के लिए उस का कानपुर से बाहर जाना जरूरी था. आखिर एक दिन वह घर छोड़ कर भाग गया. घर वालों ने भी उस के बारे में पता नहीं किया. उस ने इस के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को चुना. वहां मुसलिम आबादी भी ठीकठाक है और प्रदेश तथा शहरों से सीधा जुड़ा हुआ भी है. इन सब खूबियों के कारण लखनऊ उस के निशाने पर आ गया.

नवंबर 2016 में सैफुल्ला लखनऊ के काकोरी थाने की हाजी कालोनी में बादशाह खान का मकान 3 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले लिया. यह जगह शहर के ठाकुरगंज इलाके से पूरी तरह से सटी हुई है, जिस से वह शहर और गांव दोनों के बीच रह सकता था. यहां से कहीं भी भागना आसान था.

बादशाह खान का मकान सैफुल्ला को किराए पर पड़ोस में रहने वाले कयूम ने दिलाया था. वह मदरसा चलाता था. बादशाह खान दुबई में नौकरी करता था. उस की पत्नी आयशा और परिवार मलिहाबाद में रहता था. मकान को किराए पर लेते समय उस ने खुद को खुद्दार और कौम के प्रति वफादार बताया था.

सैफुल्ला ने कहा था कि वह मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ अपनी कौम के बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना चाहता है. अपने खर्च के बारे में उस ने बताया था कि वह कम फीस पर बच्चों को कंप्यूटर के जरिए आत्मनिर्भर बनाने का काम करता है.इसी से सैफुल्ला ने अपना खर्च चलाने की बात कही थी.

उस की दिनचर्या ऐसी थी कि कोई भी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. अपनी दिनचर्या का पूरा चार्ट बना कर उस ने कमरे की दीवारों पर लगा रखा था. वह सुबह 4 बजे उठ जाता था खुद को फिट रखने के लिए. वह पांचों वक्त नमाज पढ़ता था. कुरआन के अनुवाद तफ्सीर पढ़ता था. वह पूरी तरह से धर्म में रचबस गया था. हजरत मोहम्मद साहब के वचनों हदीस पर अमल करता था. अपना खाना वह खुद पकाता था. दोपहर 3 बजे उस का लंच होता था. शरीयत से जुड़ी किताबें पढ़ता था. रात 10 बजे तक सो जाता था.

रमजान के दिनों में वह पूरी तरह से उस में डूब जाता था. वह बिना देखे कुरआन की हिब्ज पढ़ता था. वह खुद को पूरी तरह से मोहम्मद साहब के वचनों पर चलने वाला मानता था. उसे करीब से देखने वाला समझता था कि इस से अच्छा लड़का कोई दुनिया में नहीं हो सकता. हाजी कालोनी के जिस मकान में सैफुल्ला रहता था, उस में कुल 4 कमरे थे. मकान के दाएं हिस्से में महबूब नामक एक और किराएदार अपने परिवार के साथ रहता था. बाईं ओर के कमरे में महबूब का एक और साथी रहता था. इस के आगे दोनों के किचन थे. दाईं ओर का कमरा खाली पड़ा था और उस के आगे भी बाथरूम और किचन बने थे.

असल में बादशाह खान ने अपने इस मकान को कुछ इस तरह से बनवाया था कि कई परिवार एक साथ किराए पर रह सकें. कोई किसी से परेशान न हो, ऐसे में सब के रास्ते, स्टोररूम और बाथरूम अलगअलग थे. मकान खुली जगह पर था, इसलिए चोरीडकैती से बचने के लिए सुरक्षा के पूरे उपाय किए गए थे. सैफुल्ला ने किराए पर लेते समय इन खूबियों को ध्यान में रखा था और उसे यह जगह भा गई थी.

सैफुल्ला को यह जगह काफी मुफीद लगी थी. जैसे यह उसी के लिए ही तैयार की गई हो. वह समय पर किराया देता था. अपने आसपास वालों से वह कम ही बातचीत करता था. ज्यादा समय वह अपने कंप्यूटर पर देता था. इस में वह सब से ज्यादा यूट्यूब देखता था, जिस में आईएसआईएस से जुड़ी जानकारियों पर ज्यादा ध्यान देता था.

7 मार्च, 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर रेलगाड़ी में बम धमाका हुआ. वहां पुलिस को बम धमाके से जुड़े कुछ परचे मिले, जिस में लिखा था, ‘हम भारत आ चुके हैं—आईएस’. यह संदेश पढ़ने के बाद भारत की सभी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस सक्रिय हो गई. ट्रेन में हुआ बम धमाका बहुत शक्तिशाली नहीं था, जिस से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था.

पर यह संदेश सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नींद उड़ाने वाला था. पुलिस जांच में पता चला कि यह काम भारत में काम करने वाले किसी खुरासान ग्रुप का है, जो सीधे तौर पर आईएस की गतिविधियों से जुड़ा हुआ नहीं है, पर उस से प्रभावित हो कर उसी तरह के काम कर रहा है. यह खुरासान ग्रुप तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का एक हिस्सा है, जो आईएस से जुड़ा है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने जब पकड़े गए 3 आतंकवादियों से पूछताछ की तो कानपुर की केडीए कालोनी में रहने वाले दानिश अख्तर उर्फ जफर, अलीगढ़ के इंदिरानगर निवासी सैयद मीर हुसैन हमजा और कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले आतिश ने माना कि वे 3 साल से सैफुल्ला को जानते हैं. वह उन्हें वीडियो दिखा कर कहता था, ‘एक वे हैं और एक हम. कौम के लिए हमें भी कुछ करना होगा.’

उन्होंने बताया था कि सैफुल्ला का इरादा भारत में कई जगह बम विस्फोट करने का है. इस जानकारी के बाद पुलिस को सैफुल्ला की जानकारी और लोकेशन दोनों ही मिल गई थी. इस के बाद पुलिस ने दोपहर करीब ढाई बजे सैफुल्ला के घर पर दस्तक दी. लखनऊ की पुलिस पूरी तरह से अलर्ट थी. उस के साथ एटीएस के साथ एसटीएफ भी थी.

सैकड़ों की संख्या में पुलिस और दूसरे सुरक्षा बलों ने घर को घेर लिया था. आसपास रहने वालों को जब पता चला कि सैफुल्ला आतंकवादी है और मध्य प्रदेश में हुए बम विस्फोट में उस का हाथ है तो सभी दंग रह गए. सुरक्षा बलों ने पूरे 10 घंटे तक घर को घेरे रखा. वे सैफुल्ला को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, पर वह नहीं माना.

घर के अंदर से सैफुल्ला पुलिस पर गोलियां चलाता रहा. ऐसे में रात करीब 2 बजे पुलिस ने लोहे के गेट को फाड़ कर उस पर गोलियां चलाईं. तब जा कर वह मरा. पुलिस को उस के कमरे के पास से .32 बोर की 8 पिस्तौलें, 630 जिंदा कारतूस, 45 ग्राम सोना और 4 सिमकार्ड मिले.

इस के साथ डेढ़ लाख रुपए नकद, एटीएम कार्ड, किताबें, काला झंडा, विदेशी मुद्रा रियाल, आतिफ के नाम का पैनकार्ड और यूपी78 सीपी 9704 नंबर की डिसकवर मोटरसाइकिल मिली. इस के अलावा बम बनाने का सामान, वाकीटाकी फोन के 2 सेट और अन्य सामग्री भी मिली.

पुलिस को उस के कमरे से 3 पासपोर्ट भी मिले, जो सैफुल्ला, दानिश और आतिफ के नाम के थे. आतिफ सऊदी अरब हो आया था. बाकी दोनों ने कोई यात्रा इन पासपोर्ट से नहीं की थी. सैफुल्ला का ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट मनोहरनगर के पते पर ही बने थे, जहां उस का परिवार रहता था.

सैफुल्ला के आतंकी होने और पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने की खबर जब उस के पिता सरताज अहमद को मिली, तब वह समझ पाए कि उन का बेटा क्या कर रहा था. पुलिस ने जब उन से शव लेने और उसे दफनाने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि सैफुल्ला ने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उस का जनाजा निकले.

वह गद्दार था. उस के शव को ले कर वह अपना ईमान खराब नहीं करेंगे.  इस के बाद पुलिस ने सैफुल्ला को लखनऊ के ही ऐशबाग कब्रगाह में दफना दिया था.

सैफुल्ला की कहानी किसी भी ऐसे युवक के लिए सीख देने वाली हो सकती है कि आतंक की पाठशाला में पढ़ाई करना किस अंजाम तक पहुंचा सकता है. ऐसे शहरी या गांव के लोगों के लिए भी सीख देने वाली हो सकती है, जिन के आसपास रहने वाला इस तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो.

आतंकवाद का ग्लैमर दूर से देखने में अच्छा लग सकता है, पर उस का करीबी होना बदबूदार गंदगी की तरह होता है. धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोग मासूम युवाओं को गुमराह करते हैं. सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों को प्रभावित करना आसान होता है.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा और उन के घर वाले होशियार रहें, जिस से उन के घर में कोई सैफुल्ला न बन सके. बच्चे आतंकवादी नहीं होते, उन्हें धर्म पर काम करने वाले कट्टरपंथी लोग आतंक से जोड़ देते हैं. पैसे कमाने और बाहुबली बनने का शौक बच्चों को आतंक के राह पर ले जाता है.

प्यार में जब पति ने अड़ाई टांग – भाग 1

गाजियाबाद शहर के नंदग्राम थाने में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर सूचना दी कि नंदग्राम में एक व्यक्ति ने गोली मार कर खुद को घायल कर लिया है, उसे इलाज के लिए एमएमजी अस्पताल में भरती करवाया गया है. उस वक्त रात के 3 बज रहे थे.  सूचना मिलते ही नंदग्राम थाने के एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी तुरंत 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर एमएमजी अस्पताल के लिए खाना हो गए. वह अस्पताल पहुंचे तो मालूम हुआ कि उस घायल व्यक्ति की हालत काफी नाजुक थी, इसलिए उसे यूपी से दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है. यह घटना 4 मार्च, 2023 की है.

एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में आ गए. यहां उन्हें बताया गया कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई है. श्री त्रिपाठी भारी मन से उस व्यक्ति की लाश का निरीक्षण किया तो चौंक पड़े. उस व्यक्ति के बाईं कनपटी पर गोली का गहरा जख्म था. गोली बाईं कनपटी पर चलाई गई थी, जो उस के सिर के दाहिनी ओर से निकल गई थी. यह देखने से अनुमान लगाया गया कि यह व्यक्ति लेफ्ट हैंडर रहा है.

कनपटी पर मारी थी गोली

लाश के पास एक युवक और एक महिला बैठे रो रहे थे. एसएचओ त्रिपाठी ने युवक के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘इस की मौत का मुझे गहरा दुख है. क्या तुम इस के बेटे हो?’’

“जी नहीं.’’ वह युवक उठ कर सुबकते हुए बोला, ‘‘यह मेरे चाचा कपिल कुमार थे.’’

“ओह!’’ श्री त्रिपाठी ने युवक के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे चाचा लेफ्ट टेंडर थे?’’

“नहीं साहब, मेरे चाचा अपने दाहिने हाथ से सारा काम करते थे.’’

श्री त्रिपाठी के माथे पर बल पड़ गए. उन्होंने फिर से लाश का जख्म देखा. गोली बाईं कनपटी पर ही सटा कर चलाई गई थी. ऐसा कोई दाहिने हाथ से हर काम करने वाला व्यक्ति कभी नहीं कर सकता था. स्पष्ट था कि गोली मृतक ने स्वयं नहीं चलाई है, यानी इसे किसी दूसरे व्यक्ति ने गोली मारी है. सीधेसीधे यह हत्या का केस था.

“अपने चाचा का नाम, पता नोट करवाओ.’’ एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी ने बेभीर स्वर में कहा और साथ आए कांस्टेबल सोनू मावी को नामपता नोट करने का हुक्म दे कर वह कुछ दूरी पर चले गए. उन्होंने इस संदिग्ध घटना की जानकारी डीसीपी निपुण अग्रवाल और एसीपी आलोक दुबे को दे दी. अधिकारियों को यहां आने में समय लग सकता था. श्री त्रिपाठी ने मृतक के भतीजे से घटना की जानकारी लेने के लिए

उस से पूछा, ‘‘तुम्हें इस घटना की जानकारी कैसे हुई?’’

उस युवक का नाम सचिन था. आसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, मैं कस्बा फलावदा, मेरठ में रहता हूं. रात को मैं जब अपने कमरे में सो रहा था, मेरे मोबाइल की घंटी बजी तो मेरी नींद टूट गई. इतनी रात को कौन फोन कर रहा है, यह जानने के लिए मैं ने मोबाइल उठाया तो उस पर मेरी चाची शिवानी का नंबर था. चाची शिवानी ने मुझे बताया कि चाचा कपिल ने खुद को गोली मार ली है.

“मैं ने तुरंत घर के लोगों को यह बात बताई और बाइक से नंदग्राम के लिए निकल पड़ा. रास्ते में ही चाची से मालूम हुआ कि चाचा को दिल्ली जीटीबी अस्पताल में रेफर कर दिया गया है, इसलिए मैं सीधा यहां आ गया. यहां डाक्टरों ने चाचा को मृत घोषित कर दिया था.’’

“तुम्हारी चाची शिवानी ने तुम्हें बताया कि तुम्हारे चाचा ने आत्महत्या कर ली है, लेकिन मेरा अनुमान है यह सुसाइड नहीं बल्कि हत्या का मामला है. क्या तुम बता सकते हो, तुम्हारे चाचा को कौन गोली मार सकता है?’’

सच की तलाश में जुटी पुलिस

इस खुलासे से सचिन चौंक पड़ा. उस ने हैरत से एसएचओ त्रिपाठी की ओर देखा और बोला, ‘‘चाचा कपिल तो बहुत सज्जन आदमी थे साहब, उन की तो किसी से दुश्मनी भी नहीं थी.’’

“तुम्हारी चाची और चाचा के बीच कोई अनबन चल रही हो, ऐसा कुछ तुम्हें मालूम है?’’

“पतिपत्नी के बीच हर घर में थोड़ी बहुत खटपट होती ही रहती है साहब. दोनों के बीच कोई बड़ा झगड़ा तो कभी नहीं हुआ और न चाची कभी रूठ कर अपने मायके गईं. मैं अकसर चाचा के घर आताजाता रहता हूं, वहां सब कुछ सामान्य दिखाई देता था. यदि चाचा की हत्या का शक आप को है तो मेरी प्रार्थना है कि आप इस केस की गहराई से जांच करें.’’

“वह तो मैं करूंगा ही, तुम्हारी चाची का भी बयान मुझे लेना पड़ेगा. चूंकि अभी वह बयान देने की स्थिति में नहीं है, उस से बाद में बात की जाएगी.’’ श्री त्रिपाठी ने कहा और दूसरी आवश्यक काररवाई निपटाने में लग गए. करीब एक घंटे बाद गाजियाबाद से डीसीपी निपुण अग्रवाल और एसीपी आलोक दुबे अस्पताल में आ गए. दोनों अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण करने के बाद यही शंका प्रकट की कि कपिल ने आत्महत्या नहीं की है, उस की हत्या की गई है.

एसीपी आलोक दुबे ने अपने निर्देशन में इस मामले की गहनता से जांच करने के लिए थाना नंदग्राम के एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस में एसआई हरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल सगीर खान, कांस्टेबल सोनू मावी आदि को शामिल किया गया. कागजी काररवाई पूरी कर के कपिल की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. निर्देश देने के बाद पुलिस अधिकारी वापस चले गए.

कपिल के पैतृक गांव फलावदा से उस के कई रिश्तेदार जीटीबी अस्पताल आ गए थे. सभी कपिल की पत्नी शिवानी को अपने साथ ले कर नंदग्राम लौट गए. उन के साथ एसएचओ श्री त्रिपाठी भी नंदग्राम के लिए निकले. उन्हें उस जगह की जांच करनी थी, जहां कपिल द्वारा गोली मार कर आत्महत्या करने की बात शिवानी ने बताई थी. वह देखना चाहते थे कि कपिल की पत्नी शिवानी की बात में कितनी सच्चाई है.

घटनास्थल पर मिले कुछ सबूत

कपिल कुमार कस्बा फलावदा, जिला मेरठ का मूल निवासी था. उस के पिता बलवीर सिंह की मृत्यु हो चुकी थी. कपिल कुछ साल पहले काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के शहर गाजियाबाद के नंदग्राम में आ कर रहने लगा था.  नंदग्राम में वह अपनी पत्नी शिवानी उर्फ सीमा और 2 बेटों के साथ कुंदन सिंह रावत के मकान में किराए पर रहता था. कपिल हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति था. उस के परिवार में भी किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी. अपनी पत्नी और बच्चों को खुश रखने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ता था.

बाहुबली धनंजय सिंह की धमक बरकरार – भाग 1

विकिपीडिया और लोकसभा में दर्ज जानकारी के अनुसार, धनंजय सिंह का जन्म जौनपुर के एक गांव में 16 जुलाई, 1975 को एक क्षत्रिय (राजपूत) परिवार में हुआ था. जौनपुर और उस के गांव बंसपा के लोगों की मानें तो दबंगई धनंजय में बचपन से कूटकूट कर भरी थी, जिसे शुरुआती दिनों में लोग उस की निडरता और जातीय असर के नजरिए से देखते थे.

स्कूली जीवन में अन्य छात्रों की तुलना में धनंजय के तेवर अलग थे. बातबात में झगड़ पडऩे की आदत से स्कूल के शिक्षक तक परेशान रहते थे. उन दिनों वह लखनऊ के महर्षि विद्या मंदिर में पढ़ता था. बताते हैं कि उन्हीं दिनों उस पर एक शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या का आरोप तब लग गया था, जब वह 1990 में हाईस्कूल में पढ़ रहा था. हालांकि इस की जांच में आरोप साबित नहीं हो पाया था.

उस के बाद उस ने जौनपुर के तिलकधारी सिंह इंटर कालेज में पढ़ाई की. उस दौरान भी एक युवक की हत्या का आरोप उस पर लग गया. उस मामले में तब पुलिस ने पकड़ लिया था. जिस का अंजाम यह हुआ कि इंटरमीडिएट की 3 परीक्षाएं पुलिस हिरासत में देनी पड़ीं.

इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद धनंजय लखनऊ आ गया. कालेज में उस की दोस्ती अभय सिंह से हुई और पढ़ाई के साथ राजनीति शुरू हो गई. धनंजय के साथ सजातीय 3 और लोग एकजुट हो गए. वे अभय सिंह, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह थे. जाति के नाम पर उन की एकजुटता होने से यूनिवर्सिटी में वर्चस्व बढ़ गया और वे एक दबंग गुट के रूप में लोकप्रिय हो गए.

उन दिनों हबीबुल्ला हौस्टल इन तीनों की दबंगई से चर्चा में आ गया था. जब भी कहीं कोई छोटेबड़े अपराध की वारदात होती, तब हबीबुल्ला हौस्टल का नाम पहले आता था और खोज धनंजय सिंह की होती थी. चाकू मारने से ले कर किडनैपिंग और गोली चलाने की घटनाओं में पुलिस की नजर हौस्टल में रह रहे धनंजय सिंह पर टिक जाती थी.

…और शुरू हो गया गुंडा टैक्स

धनंजय सिंह ने करिअर बनाने के लिए ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया. रेलवे के ठेके के लिए बाकायदा एक गुट बना लिया.इस गुट का रेलवे के ठेकों में दखल बढ़ा. हालांकि गुट की दिलचस्पी ठेके लेने में नहीं रहती थी, बल्कि टेंडर या नीलामी की बोली मैनेज करवाने का काम ये लोग करवाते वे. जिसे ठेका मिल जाता था, उस से रंगदारी टैक्स वसूलते थे. इसे वे शौर्ट फार्म में जीटी (गुंडा टैक्स) बोलते थे.

बताते हैं कि उन दिनों माफियाओं के लिए रेलवे का ठेका आमदनी का बड़ा जरिया होता था. रेलवे में स्क्रैप की नीलामी होती थी. उस के ढेर में अंदाजा लगाना मुश्किल होता था कि क्या माल है और उस की वैल्यू क्या होगी? रेलवे वाले अंदाजे से कीमत तय करते थे और उस पर बोली लगती थी. माफिया उस बोली को मैनेज करवाते थे और उस के बदले ‘जीटी’ लेते थे.

जीटी वसूली में नंबर-1 था लखनऊ के चारबाग का रहने वाला अजीत सिंह, जिस की 2004 में एक एक्सीडेंट में मौत हो गई. अजीत सिंह पूर्वांचल के किसी माफिया को पैर नहीं जमाने देना चाहता था, लेकिन अभय सिंह और धनंजय सिंह किसी तरह उस में शामिल हो गए और धीरेधीरे इन्होंने अपने पांव जमा लिए.

इंजीनियर की हत्या में आया नाम

इसी बीच एक हत्या की वारदात हो गई. 1997 में बन रहे डा. अंबेडकर पार्क से जुड़े लोकनिर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या हो गई, जिस में धनंजय का नाम आया. इस का असर यह हुआ कि यूनिवर्सिटी से निकलने तक धनंजय पर कुल 12 मुकदमे लद गए. उन मुकदमों में धमकाने, किडनैपिंग से ले कर हत्या तक के मामले थे. वह वारदात साल 1997 में हुई थी.

तब गोपाल शरण अपनी मारुति 800 कार से औफिस जा रहे थे. बाइक से आए 2 बदमाशों ने उन की कार को ओवरटेक किया और सामने से आ कर गोली मार दी थी. गाड़ी सडक़ किनारे बाउंड्री से जा टकराई और बुरी तरह से दुर्घटनाग्रस्त हो गई. गोपाल शरण की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी. गोली चलाने वाले दोनों बदमाशों में धनंजय नहीं था, लेकिन साजिश रचने का आरोप उसी पर लगा. घटना के बाद धनंजय फरार हो गया. पुलिस ने उस पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

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धनंजय सिंह के फरार होने पर रेलवे की वसूली का पैसा अभय सिंह के पास आने लगा था. उसी पैसे के बंटवारे को ले कर अभय और धनंजय के बीच अनबन शुरू हो गई. उन्हीं दिनों उन के साथ काम करने वाले अभिषेक की हत्या हो गई. धनंजय ने उस की हत्या का जिम्मेदार अभय को ठहराते हुए उस की हत्या का बदला नहीं लेने का आरोप लगा दिया. इसे ले कर धनंजय और अभय के बीच काफी तकरार हो गई. स्थिति ऐसी बन गई कि दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए.

एक अंतराल के बाद धनंजय सिंह की अभय सिंह से बनारस में मुठभेड़ हो गई. बात 5 अक्तूबर, 2002 की है. तब धनंजय सिंह विधायक बन चुका था. बनारस से गुजरते समय उस के काफिले पर अचानक हमला हो गया. इसे बनारस का पहला ओपन शूटआउट कहा जाता है. टकसाल सिनेमा के सामने हुई इस मुठभेड़ में धनंजय सिंह का सामना अभय सिंह से हो गया था. दोनों तरफ से जम कर गोलियां चलीं. धनंजय के गनर और सचिव समेत 4 लोग घायल हुए. बाद में धनंजय ने अभय सिंह के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी.

धनंजय सिंह की पहचान एक बाहुबली नेता की है, जिस ने अपराध की दुनिया से गुजर कर ही राजनीति में कदम रखा. यह अलग बात है कि राजनीति में उस की छवि एक लोकप्रिय राजनेता जैसी नहीं बन पाई, लेकिन उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में सभी दलों के मुखिया मानते हैं कि राजनीति में धनंजय सिंह की खास धमक बरकरार है.

करीब 23 साल पहले यूपी पुलिस ने जिस धनंजय सिंह को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था, वह आज भी पुलिस की आंखों में धूल झोंकता हुआ चुनाव मैदान में सीना ताने खड़ा हो जाता है तो कभी वह क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्ïघाटन करता नजर आ जाता है. वह हत्या, डकैती, लूट, रंगदारी, धमकी, फिरौती समेत कई आपराधिक मामले में लिप्त होने के बावजूद जनता का सिरमौर बनता रहा है.

उस के आपराधिक गतिविधियों की कहानी भले ही 1990 से स्कूली जीवन से ही शुरू हो गई हो, लेकिन 17 अक्तूबर, 1998 की रात जो कुछ हुआ, उस में धनंजय का बाल भी बांका नहीं हुआ, उलटे 34 पुलिसकर्मियों पर ही मुकदमा दर्ज हो गया.

                                                                                                                                             क्रमशः

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 3

एक दिन उस की पड़ोस में रहने वाली मुसर्रत का शौहर कोरोना काल में बीमारी से ग्रस्त हो कर चारपाई से लग गया. मुसर्रत ने निशा से अपने शौहर को ठीक करने का उपाय पूछा तो निशा ने गहरी सांस छोड़ते हुए गंभीर स्वर में कहा, “मुसर्रत अब तेरा शौहर ठीक नहीं होगा, तू बेवा हो जाएगी.”

इतना सुनते ही मुसर्रत को लगा कि वह गिर पड़ेगी. उस ने जल्दी से दीवार पकड़ ली और थके कदमों से घर लौट आई. तीसरे दिन ही उस के शौहर की मौत हो गई. निशा की भविष्यवाणी सटीक थी. इस के बाद तो निशा को सब सिद्ध तांत्रिक का दरजा देने लगे.

दूसरी सटीक भविष्यवाणी तो हैरान करने वाली थी. मुसर्रत अपनी बेटी का निकाह करने वाली थी. निशा ने उसे पहले ही चेता दिया, “मुसर्रत, तू बेटी का निकाह मत कर, तेरी बेटी का कुछ ही दिन में तलाक हो जाएगा.”

मुसर्रत ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उस ने बेटी का निकाह कर दिया. ताज्जुब! थोड़े ही दिनों में मुसर्रत की बेटी को उस के शौहर ने तलाक दे दिया और बेटी मायके में आ कर बैठ गई.

निशा की जिंदगी में आया सऊद फैजी

मुसर्रत के लिए निशा द्वारा की गई दोनों भविष्यवाणियां हालांकि दुखदाई थीं, लेकिन वह बिलकुल सही साबित हुई थीं, इसलिए वह निशा की सिद्धि से प्रभावित हो कर उस की मुरीद बन गई. यही नहीं, उस का बेटा साद भी निशा का भक्त बन गया.

निशा खुद को अब बहुत ऊंची तांत्रिक समझने लगी थी. उस पर पैसा बरस रहा था, लेकिन घर में शौहर और बच्चों से वह दूर होती आ रही थी. उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में सऊद फैजी ने कदम रखा. वह पार्षद रह चुका था, उसे 36 साल की निशा की देह में ऐसी कशिश दिखाई दी कि वह उस के घर के चक्कर काटने लगा.

रोजरोज आने से निशा का झुकाव उस की ओर होने लगा. वह सऊद फैजी के प्रेम में उलझ गई. सऊद फैजी जवान था और जोशीला भी था. एक दिन एकांत में उस ने निशा को बाहुपाश में जकड़ लिया. निशा ने कोई विरोध नहीं किया, उस ने अपने आप को सऊद फैजी की बांहों में सौंप दिया.

निशा को पहली बार परपुरुष का सामीप्य और शारीरिक सुख मिला था. सऊद फैजी उस के शौहर शाहिद से ज्यादा दमदार था, इसलिए वह सऊद फैजी की दीवानी हो गई. सऊद फैजी पार्षद रह चुका था, उस की दूर तक पहुंच थी. उस ने बेधडक़ निशा के घर में डेरा डाल दिया. एक प्रकार से निशा उस की बीवी बन गई और सऊद फैजी उस का शौहर.

शाहिद बेग को यह सहन नहीं हुआ. उसे मोहल्ले में बेइज्जती महसूस होने लगी तो उस ने अपना घर छोड़ कर अलग रहने का मन बना लिया. जाते वक्त उस ने निशा से अपने बेटे मेराब और बेटी कोनेन को साथ ले जाने की बात कही तो निशा भडक़ गई, “शाहिद, ये बच्चे मैं ने अपनी कोख में 9 महीने रख कर खून से सींचे हैं. इन पर तुम्हारा उतना अधिकार नहीं है, जितना मेरा है. मैं ये बच्चे तुम्हें हरगिज नहीं दूंगी.”

शाहिद निराश हो कर अपने साले दानिश के पास रहने चला गया. दानिश खान अपनी बहन निशा की करतूतों से अंजान नहीं था. वह जानता था शाहिद नेक और शरीफ इंसान है, उसे शाहिद के साथ निशा की ज्यादतियों पर गुस्सा आया तो उस ने निशा को जा कर खरीखोटी सुनाईं, लेकिन निशा को अब अपनी जिंदगी में किसी का दखल पसंद नहीं था. उस ने भाई दानिश को भी दुत्कार कर भगा दिया. इस के बाद निशा खुल कर सऊद फैजी के साथ रहने लगी.

प्रेमी की खातिर बच्चों को मरवाया

कुछ दिनों बाद निशा को अपने दोनों बच्चे भी काल नजर आने लगे थे. वह शाहिद बेग की निशानी थे. जो अब उस की मौजमस्ती में रुकावट बनने लगे थे. उन के रहते वह खुल कर सऊद की बांहों में नहीं झूल सकती थी. उस ने दोनों बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए एक दिन मुसर्रत से कहा, “मुसर्रत, मुझे ख्वाब में दिखाई दिया है कि खैरनगर में भयंकर तबाही आने वाली है. खैरनगर में लाशों का अंबार लग जाएगा. मैं यहां अमन कायम रखने के लिए अपने बच्चों की कुरबानी देना चाहती हूं.”

“आप अपने बच्चों की कुरबानी देंगी. यह तो बहुत कठोर फैसला है आप का.” मुसर्रत चौंक कर बोली.

“खैरनगर की सलामती मेरे बच्चों से ज्यादा जरूरी है मुसर्रत. तुम्हें मेरा साथ देना होगा, नहीं दोगी तो आने वाले जलजले में तुम्हारा बेटा साद पहले मारा जाएगा.”

“मैं आप का साथ दूंगी,” मुसर्रत घबरा कर जल्दी से बोली, “मेरा बेटा भी साथ देगा. आप सऊद भाईजान को, मेरी देवरानी कोसर और आरिफ को भी इस नेक काम में शामिल करने के लिए मना लें.”

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निशा ने सऊद फैजी, कोसर और आरिफ को इस कुरबानी के लिए तैयार कर लिया और इन जल्लादों ने निशा के सामने ही उस के बेटे मेराब और बेटी कोनेन की हत्या कर दी, जिस का निशा ने कोतवाली में बयान कर के अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. कातिल मां निशा के द्वारा बताए पते पर दबिश दे कर पुलिस ने मुसर्रत, साद, कोसर और आरिफ को गिरफ्तार कर लिया.

सऊद फैजी फरार हो गया था. सीओ अमित राय ने उसे पकडऩे के लिए उस के परिजनों को उठवा कर कोतवाली में बिठा लिया तो मजबूर हो कर सऊद फैजी ने आत्मसमर्पण कर दिया. इन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी लगा कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया.

शाहिद बेग के बेटे का शव रोहटा थाना क्षेत्र के पूठरवास के पास गंगनहर से निकाला गया था, वहीं पर गोताखोरों ने दूसरे दिन कोनेन की तलाश की तो उस का शव भी मिल गया. उसे भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

दोनों बच्चों का पोस्टमार्टम हो गया तो उन के शव उन के पिता शाहिद बेग को सौंप दिए गए. शाहिद बैग ने अपने जिगर के टुकड़ों को सुपुर्दएखाक किया तो वह फूटफूट कर रो रहा था. दानिश खान उस के पीछे खड़ा था. उस की आंखें भीगी हुई थीं और होंठ क्रोध से फडफ़ड़ा रहे थे. वह चाहता था, इन बच्चों की कातिल मां निशा और उस के प्रेमी सऊद को कानून फांसी की सजा दे.

कथा लिखे जाने तक पुलिस शाहिद बेग के उन 3 बच्चों के लापता होने की जांच कर रही थी. पुलिस को संदेह है कि निशा ने उन तीनों की भी हत्या कर दी है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित तथ्यों का नाट्य रूपांतरण है.

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 2

पुलिस निशा को साथ ले कर गंग नहर पहुंच गई. शाहिद और दानिश खान भी साथ में थे. तथाकथित तांत्रिक निशा उन्हें उस स्थान पर ले गई, जहां लाशें फेंकी गई थीं. गंगनहर में गोताखोरों को उतारा गया. काफी तलाश करने के बाद 11 साल के लडक़े मेराब की लाश मिल गई.

लडक़ी कोनेन की लाश काफी ढूंढने पर भी नहीं मिली. शायद वह बह कर कहीं दूर चली गई थी. मेराब की लाश पानी में पड़ी होने के कारण काफी फूल गई थी. आवश्यक काररवाई निपटाने के बाद मेराब की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया.

एसएसपी रोहित सिंह सजवाण ने बच्चों की हत्या करने वाले बाकी हत्यारों को पकडऩे के लिए पुलिस की 2 टीमें बना दीं, इस का नेतृत्व कोतवाली सीओ अमित राय को सौंपा गया. निशा ने मुसर्रत, कौसर, साद, आरिफ और प्रेमी सऊद फैजी के पतेठिकाने बता दिए. उन लोगों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें रवाना कर दी गईं.

निशा के अब्बाअम्मी पहले देहली गेट के पटेल नगर में रहते थे. अब ये लोग हापुड़ चुंगी में स्थित इकबाल नगर में रहने आ गए थे. निशा बचपन से सुंदर थी. उस का रंग दूध में केसर मिले जैसा था, जब उस पर जवानी का उफान चढ़ा तो उस के अंगअंग में निखार आ गया. उस के पुष्ट उभार किसी भी पुरुष के दिल की धडक़नें बढ़ा सकते थे.

हिरणी जैसी आंखें, सुतवा नाक और संतरों की फांक जैसे गुलाबी होंठ मनचलों को रुक कर एक बार उसे जी भर कर देखने को विवश कर देते थे. जब वह खिलखिला कर हंसती थी तो उस के मोतियों जैसे दांतों की पक्तियां चमकने लगती थीं.

2001 में हुआ शाहिद से निकाह

हया और शरम का निशा से कोसों दूर का वास्ता था, वह किसी भी पुरुष से हंसहंस कर बातें करने लगती थी. सामने वाले को लगता था कि यह मछली उस के कांटे में उलझ गई है, जबकि यह उस की भूल ही होती थी. निशा वह चिकनी मछली थी, जो किसी के हाथ नहीं आती है. निशा की बेबाक हरकतों का पता उस के अब्बू को भी था.

निशा की बेलगाम जवानी को एक ठौर चाहिए था, समाज में निशा कहीं उन की नाक न कटवा दे. यही सोच कर उस के अब्बू ने उस के लिए शाहिद बेग को चुन लिया और उस के साथ उस का निकाह कर दिया. निशा को दुलहन के रूप में पा कर शाहिद बेग बहुत खुश हुआ. शाहिद भी हंसमुख प्रवृत्ति का था. वह एक जूता बनाने वाली कंपनी में नौकरी करता था. हसीन बीवी पा कर शाहिद बेग अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाया. उस ने निशा की छोटी से छोटी फरमाइश का पूरा खयाल रखा, शौहर का पूरा प्यार उसे दिया.

शौहर का भरपूर प्यार पा कर निशा पूर्णरूप से उसे समर्पित हो गई. एकएक कर के उस ने शाहिद बेग को 5 बच्चों का बाप बना दिया. परिवार बढ़ा तो घर के खर्चे भी बढ़ गए. अब एक सीमित आय में इतने बड़े परिवार की गुजरबसर नहीं हो सकती थी, इस के लिए शाहिद परेशान रहने लगा. निशा शौहर को परेशान देख कर खुद परेशान हो गई, वह इस परेशानी से निकलने की राह तलाशने लगी.

निशा ने खोली तंत्रमंत्र की दुकान

निशा को याद था कि एक बार उस की अम्मी उसे किसी तांत्रिक के पास ले कर गई थीं. अम्मी के साथ पड़ोस की सायरा चाची थी. सायरा का बेटा हामिद आवारा किस्म का था, वह चोरी, छीनाझपटी आदि काम करता था. कभी पुलिस उसे तलाशती हुई चौखट पर आती थी, कभी कोई पड़ोसी शिकायत ले कर आता था कि हामिद ने उस की बकरी खोल कर कसाई को बेच दी है.

सायरा परेशान थी, बेटे का मोह हर मां को होता है. वह हामिद का दिमाग दुरुस्त करवाने के चक्कर में मेरी अम्मी को ले कर उस पहुंचे हुए तांत्रिक के पास आई थी. तांत्रिक ने सायरा चाची से तंत्रमंत्र करने की एवज में 5 हजार रुपए ठग लिए थे. चूंकि उस तांत्रिक का कोई उपाय हामिद को सही रास्ते पर नहीं ला पाया था. इसलिए यही कहा जाएगा कि उस ने सायरा चाची के 5 हजार रुपए ठग लिए थे.

निशा के दिमाग में यही धंधा जम गया. उस ने अपनी बैठक वाला कमरा तंत्रमंत्र की दुकान चलाने के लिए ठीक कर लिया और आसपास में प्रचार कर आई कि वह किसी भी तरह की भूतप्रेत और चोरी की समस्याओं का तंत्रमंत्र से निदान कर सकती है.

दूसरे दिन आसपास की कुछ महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर उस के पास आईं. निशा ने उन की समस्याएं एकएक कर के सुनीं. झाडफ़ूंक कर के किसी को अभिमंत्रित जल पिलाया, किसी पर छिडक़ाव किया. किसी को चाटने के लिए भभूत दी.

यह सत्य है कि 2-4 पर ऐसी क्रियाएं की जाएं तो उन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता ही है. 4 में से एक खुद को भलाचंगा समझने लगता है. इस का श्रेय निशा को मिलने लगा तो उस के यहां भीड़ बढऩे लगी. वह बहुत कम रुपए ले कर लोगों की समस्या ठीक करने का ढोंग करती. उस की दुकान चल निकली. शाम तक वह हजार-2 हजार रुपए इकट्ïठा कर लेती थी. इस से उस की आर्थिक परेशानी ठीक होती चली गई.

निशा की पूरी कोशिश होती थी कि शाहिद के जाने और आने के बीच ही उस का तंत्रमंत्र का धंधा सिमट जाए, लेकिन उस के तंत्रमंत्र का प्रचार इतना फैल गया था कि कुछ महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर रात 9-10 बजे तक उस का दरवाजा खटखटाने लगीं तो शाहिद को इस से कोफ्त होने लगी. लेकिन घर में पैसा आ रहा था, इसलिए वह मन मार कर चुप लगा गया. निशा अब रात 10 बजे तक बैठक में समस्याएं ले कर आने वाले पीडि़तों से घिरी रहने लगी.

3 बच्चे नहीं मिले आज तक

देखतेदेखते कब 5 साल निकल गए, पता ही नहीं चला. इन सालों में निशा तंत्रमंत्र के काम में इतनी गहराई से डूब गई कि रातदिन उस का दिलोदिमाग तंत्रमंत्र के विषय में ही सोचता रहता. अब निशा ने अपने शौहर शाहिद पर ध्यान देना लगभग बंद कर दिया था. पत्नी की बेरुखी से शाहिद बेग खुद को तन्हा महसूस करने लगा. वह गुमसुम और उदास रहने लगा. काम पर जाना और घर आ कर जो कुछ पका मिलता, खा कर सो जाना ही उस की दिनचर्चा बन गई.

इसी बीच एक ऐसी घटना घट गई, जिस ने शाहिद बेग को पूरी तरह तोड़ कर रख दिया. उस के 3 बच्चे घर के बाहर से गायब हो गए. शाहिद ने अपने साले दानिश खान के साथ उन बच्चों की बहुत तलाश की. पुलिस में रिपोर्ट भी लिखवाई, लेकिन बच्चे नहीं मिले. उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया, किसी की कुछ समझ में नहीं आया.

समय गुजरने लगा. बच्चों के लापता होने का निशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह पहले की तरह पूरे जुनून में डूबी अपनी तंत्र विद्या की दुकान चलाती रही.

                                                                                                                                           क्रमशः

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 1

बात 22 मार्च, 2023 की है. मेरठ शहर के थाना दिल्ली गेट के एसएचओ ऋषिपाल औफिस में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी 2 युवक उन के पास आए. दोनों के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. उन्होंने एसएचओ साहब को सलाम कहा तो ने उन्हें सामने पड़ी कुरसियों पर बैठने का इशारा किया. दोनों बैठ गए. कपड़ों और चेहरों से दोनों मुसलमान दिखाई पड़ रहे थे.

“कहिए, थाने में आप का कैसे आना हुआ?” एसएचओ ऋषिपाल ने पूछा.

“साहब, मेरा नाम शाहिद बेग है.” एक छरहरे बदन का युवक अपना परिचय देते हुए बोला, “मेरे साथ मेरा साला दानिश खान है. मैं आप के पास अपने 2 बच्चों के गुम हो जाने की फरियाद ले कर आया हूं. मुझे शक है कि मेरे दोनों बच्चे कत्ल कर दिए गए हैं.”

कत्ल की बात सुन कर ऋषिपाल चौंक गए, वह कुरसी पर झुकते हुए बोले, “आप को यह शक क्यों और कैसे है कि आप के बच्चों का कत्ल कर दिया गया है?”

“साहब, निशा ने मेरे 3 बच्चों को पहले भी मार डाला था. अब मेरे बेटे मेराब और बेटी कोनेन की भी उस ने हत्या कर दी है.”

“निशा…यह कौन है?”

“मेरी बीवी है साहब, एक नंबर की मक्कार, चालबाज और फरेबी औरत है. ढोंगी तांत्रिक का लबादा ओढ़ कर वह लोगों को बेवकूफ बना रही है, तंत्रमंत्र के नाम पर उस ने अपनी पांचों औलादों की बलि चढ़ा दी है. मेरे बच्चे परसों शाम से गायब हैं…”

मामला काफी संगीन नजर आ रहा था. एसएचओ के चेहरे पर गंभीरता फैल गई. उन्होंने शाहिद बेग के चेहरे को ध्यान से देखा, वह काफी परेशान और दुखी दिखाई पड़ रहा था.

“शाहिद बेग, मुझे सारी बात विस्तार से बताओ.”

“साहब, मेरा निकाह सन 2001 में निशा के साथ हुआ था. वह शुरूशुरू में बहुत नेक और शांत स्वभाव की थी. वह मेरे 5 बच्चों की मां बनी, तब तक सब कुछ सामान्य चलता रहा. बाद में निशा में तेजी से परिवर्तन आ गया. वह खुद को तांत्रिक बताने लगी. उस की बातों में अनेक अनपढ़, गरीब लोग आ गए. मेरे घर पर लोगों का जमावड़ा लगने लगा. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. वह कहती, “मैं तुम्हारे घर की खुशहाली के लिए सिद्धि प्राप्त करने की कोशिश कर रही हूं. तुम देखना कि मैं तुम्हें दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बना दूंगी.

“वह घर में अजीबअजीब तंत्रमंत्र के टोटके करने लगी, उस की हरकतों से परेशान हो कर मैं ने घर छोड़ दिया. मैं बच्चों को साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने बच्चे मेरे हवाले नहीं किए. कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे 3 बच्चे गायब हो गए हैं. मै ने निशा से मिल कर बच्चों की बाबत पूछा तो वह तरहतरह के बहाने बनाने लगी. कभी कहती कि वह पीर बाबा के मुरीद बन कर घर से चले गए, कभी कहती कि अजमेर शरीफ में उस से बिछुड़ गए.

“मैं तब चुप लगा गया. अब उस मक्कार औरत ने मेरा बेटा और बेटी को गायब कर दिया है. मुझे किसी ने बताया है कि निशा ने तांत्रिक शक्ति पाने के लिए मेरे बच्चों की बलि चढ़ा दी है. साहब, आप उस सिरफिरी औरत को कोतवाली ला कर पूछताछ कीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.”

एसएचओ ऋषिपाल ने शाहिद बेग की बातों को गंभीरता से सुना. उन्होंने साथ में आए दानिश खान की तरफ देखा, “दानिश खान, आप को अपने जीजा की बातों में कितनी सच्चाई नजर आती है?”

“यह हकीकत बयां कर रहे हैं साहब. मुझे निशा को अपनी बहन कहते हुए भी शरम आती है. उस ने मेरे मासूम भांजेभांजियों का कत्ल किया है, उसे गिरफ्तार कर के सख्त से सख्त सजा दीजिए.”

“ठीक है. मैं निशा को यहां बुला कर पूछताछ करता हूं. आप अपनी एफआईआर दर्ज करवा दीजिए.” एसएचओ ने बड़ी गंभीरता से इस मामले को लिया. उन्होंने तुरंत निशा को पकड़ कर लाने के लिए एक पुलिस टीम खैर नगर भेज दी. इस की सूचना उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

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दोनों बच्चों की हत्या की

पुलिस टीम निशा को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. जब उसे एसएचओ के सामने लाया गया तो वह जरा भी भयभीत नहीं थी. उस ने साड़ी ब्लाउज पहन रखा था, पूरे शृंगार से सजीधजी हुई थी. वह शान से आ कर उन के सामने तन कर खड़ी हो गई. उस ने एसएचओ के चेहरे पर नजरें जमा कर उपेक्षा से पूछा, “मुझे यहां क्यों बुलाया है कोतवाल साहब, आप जानते नहीं, मैं कौन हूं?”

एसएचओ उस की बेबाकी पर चौंके. वह इतनी बेफिक्री से बातें किस दम पर कर रही है, यह जानना जरूरी था. लेकिन उस से पहले वह उस से उस के बच्चों के विषय में जान लेना जरूरी समझते थे. उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा, “तेरा बेटा मेराब और बेटी कोनेन कहां है?”

“उन दोनों को तो मैं ने खैरनगर की सलामती के लिए कुरबान कर दिया है.” निशा उसी लापरवाही भरे अंदाज में बोली, “जिस प्रकार युद्ध में अमन (शांति) के लिए मोघ्याल राजा राहिब सिद्ध दत्त ने अपने बच्चे का सिर कलम कर दिया था, उसी तर्ज पर मैं ने भी खैरनगर में अमन के लिए अपने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. यदि मैं ऐसा नहीं करती तो पूरा खैरनगर तबाह और बरबाद हो जाता. वहां लाशों के ढेर लग जाते.” वह बोली.

एसएचओ ऋषिपाल ऊपर से नीचे तक हिल गए. एक मां अपने जिगर के टुकड़ों को अपने हाथों से हलाक कर सकती है, वह सपने में भी नहीं सोच सकते थे. यह औरत बड़ी बेशरमी से अपना गुनाह खैरनगर में अमन लाने के नाम पर थोप रही है. या तो यह अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर और मक्कार है. कुछ सोच कर उन्होंने पास में खड़ी महिला सिपाही से कहा, “मुझे लगता है, इस का दिमागी पेच ढीला हो गया है. जरा इस का दिमाग दुरुस्त तो करो.”

महिला सिपाही एसएचओ साहब का इशारा समझ गई. एसएचओ उठ कर बाहर आ गए. वह उस कक्ष में आए, जहां उन्होंने शाहिद बेग और उस के साले दानिश खान को बिठाया हुआ था. वे दोनों अमित राय को देख कर खड़े हो गए.

“आप लोग सही कह रहे थे.” ऋषिपाल गंभीर स्वर में बोले, “निशा तुम्हारे दोनों बच्चों की बलि चढ़ा चुकी है. उस ने बताया है कि खैरनगर को तबाह होने से बचाने के लिए उस ने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. हकीकत उगलवाने के लिए उस से पूछताछ चल रही है.”

शाहिद और दानिश खान बच्चों के कत्ल की पुष्टि हो जाने पर सकते में आ गए. शाहिद फूटफूट कर रोने लगा. एसएचओ ने उस का कंधा थपथपा कर कहा, “निशा की सरकारी खातिरदारी की जा रही है. अभी वह बता देगी कि बच्चे कत्ल किए गए हैं तो उन की लाश कहां हैं.”

10 मिनट बाद वह शाहिद बेग और दानिश खान को साथ ले कर उसी कमरे में आ गए, जहां निशा से पूछताछ की जा रही थी. निशा पूरी तरह टूट गई थी, वह चीखते हुए कह रही थी, “रुक जाइए, मुझे मत मारिए, मैं सब बता दूंगी.”

ऋषिपाल ने महिला कांस्टेबल को हाथ रोकने का इशारा किया और निशा को घूरते हुए पूछा, “बोलो, तुम ने दोनों बच्चों का क्या किया?

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“म… मैं ने उन दोनों को अपनी जिंदगी से दूर करने के लिए अपने प्रेमी सऊद फैजी, आरिफ कोसर, मुसर्रत बेगम और उस के बेटे साद को अमनचैन के नाम पर उकसाया. उन लोगों ने दोनों बच्चों मेराब और कोनेन को पहले रजाईगद्ïदे रखने वाले संदूक में हाथपांव बांध कर बंद कर दिया. 2 घंटे तक बंद रखने के बाद भी उन के प्राण नहीं निकले तो सऊद फैजी ने दोनों को जहर के इंजेक्शन लगा दिए. इस से छोटी कोनेन तो मर गई, मेराब नहीं मरा. तब उस का गला घोंटा गया. वह मर गया तो हम लोगों ने उन की लाशें गंगनहर में फेंक दी.”

“तू मां नहीं, मां के नाम पर कलंक है, तूने मेरे पांचों बच्चों की अंधविश्वास में हत्या की है. तुझे फांसी होनी चाहिए.” शाहिदबेग गुस्से से चीख पड़ा.

गंगनहर में हुई लाशों की तलाश

एसएचओ ने उसे शांत करवा कर बाहर भेज दिया. उन्होंने मां द्वारा अंधविश्वास में 2 बच्चों की हत्या करने की सूचनाएसएसपी रोहित सिंह सजवाण, एसपी (सिटी) पीयूष सिंह और सीओ अमित राय को दे दी तो ये तीनों पुलिस अधिकारी भीथाने पहुंच गए.

                                                                                                                                          क्रमशः

प्यार के लिए दबंगई कहां तक जायज

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के लाइनपार इलाके के रहने वाले महावीर सिंह सैनी के परिवार में उस की पत्नी शारदा के अलावा एक बेटा अंकित और 3 बेटियां थीं. 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर की बेटी पूनम 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी. महावीर राजमिस्त्री था. रोजाना की तरह 10 दिसंबर, 2016 को भी वह अपने काम पर चला गया था. बेटा अंकित ट्यूशन पढ़ने गया था. घर पर शारदा और उस की बेटी पूनम ही थी. सुबह करीब 10 बजे जब शारदा नहाने के लिए बाथरूम में गई तब पूनम घर के काम निपटा रही थी. शारदा को बाथरूम में घुसे 5-10 मिनट ही हुए थे कि उस ने चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुनीं. चीख उस की बेटी पूनम की थी.

चीख सुन कर शारदा घबरा गई. उस ने बड़ी फुरती से कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर निकली तो देखा पूनम आग की लपटों से घिरी थी. उस के शरीर पर आग लगी थी. शोर मचाते हुए वह पूनम के कपड़ों की आग बुझाने में लग गई. उस की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. किसी तरह उन्होंने बुझाई. तब तक पूनम काफी झुलस चुकी थी और बेहोश थी. आननफानन में लोग उसे राजकीय जिला चिकित्सालय ले गए. बेटी के शरीर के कपड़ों में लगी आग बुझाने की कोशिश में शारदा के हाथ भी झुलस गए थे.

अस्पताल से इस मामले की सूचना पुलिस को दे दी गई. कुछ ही देर में थाना मझोला के थानाप्रभारी नवरत्न गौतम पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. खबर मिलने पर पूनम के पिता महावीर भी अस्पताल आ गए. डाक्टरों के इलाज के बाद पूनम होश में आ गई थी. पूनम के बयान लेने जरूरी थे. इसलिए पुलिस ने इलाके के मजिस्ट्रैट को सूचना दे कर अस्पताल बुलवा लिया.

पुलिस और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में पूनम ने बताया कि शिवदत्त ने उस के ऊपर केरोसिन डाल कर आग लगाई थी. उस के साथ उस के पिता महीलाल भी थे. शिवदत्त पूनम के घर के पास चामुंडा वाली गली में रहता था. पता चला कि वह पूनम से एकतरफा प्यार करता था.

थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मामला मुरादाबाद शहर का ही था इसलिए तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे और एएसपी डा. यशवीर सिंह जिला अस्पताल पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने पूनम का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की.

तब तक पूनम की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों ने उसे किसी दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह दी. पूनम के घर वालों ने उसे दिल्ली ले जाने को कहा तो जिला अस्पताल से पूनम को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया.

महावीर की तहरीर पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली. चूंकि पूनम ने शिवदत्त और उस के पिता पर आरोप लगाया था, इसलिए पुलिस ने शिवदत्त के घर दबिश दी पर उस के घर कोई नहीं मिला. पुलिस संभावित जगहों पर उन्हें तलाश करने लगी, पर दोनों बापबेटों में से कोई भी पुलिस के हत्थे नहीं लगा.

उधर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती पूरम की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. उस की हालत बिगड़ती जा रही थी. बर्न विभाग के डाक्टरों की टीम पूनम को बचाने में लगी हुई थी पर उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. आखिर 10 दिसंबर की रात को ही पूनम ने दम तोड़ दिया.

अगले दिन जवान बेटी की हृदयविदारक मौत की खबर जब उस के मोहल्ले वालों को मिली तो पूरे मोहल्ले में जैसे मातम छा गया. आरोपी को अभी तक गिरफ्तार न किए जाने से लोग आक्रोशित थे. कहीं लोगों का गुस्सा भड़क न जाए इसलिए उस इलाके में भारी तादाद में पुलिस तैनात कर दी गई.

रविवार होने की वजह से पूनम की लाश का पोस्टमार्टम सोमवार 12 दिसंबर को हुआ. दोपहर बाद उस की लाश दिल्ली से मुरादाबाद लाई गई. पुलिस मोहल्ले के गणमान्य लोगों से बात कर के माहौल को सामान्य बनाए रही. अंतिम संस्कार के समय भी भारी मात्रा में पुलिस थी.

उधर पुलिस की कई टीमें आरोपियों को तलाशने में जुटी हुई थीं. जांच टीमों पर एसएसपी का भारी दबाव था. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. 12 दिसंबर को पुलिस ने शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरफ्तार होने के बाद लोगों का गुस्सा शांत हुआ.

थाने ला कर एसएसपी और एएसपी के सामने थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने अभियुक्त से पूछताछ की तो पहले तो वह पुलिस को बेवकूफ बनाने की कोशिश करता रहा पर उस का यह झूठ ज्यादा देर तक पुलिस के सामने नहीं टिक सका. उस ने पूनम को जलाने का अपराध स्वीकार कर उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

जिला मुरादाबाद के लाइनपार इलाके में मंडी समिति गेट के सामने की बस्ती में रहने वाला महावीर सिंह अपने राजगीर के काम से परिवार का पालनपोषण कर रहा था. इसी की कमाई से वह 2 बेटियों की शादी कर चुका था. पूनम 9वीं की पढ़ाई के साथ महिलाओं के कपड़े सिलती थी. घर के पास ही उस ने बुटीक खोल रखा था.

उस के घर के पास ही महीलाल का मकान था. महीलाल का बेटा शिवदत्त बदमाश प्रवृत्ति का था. उस की दोस्ती मंडी समिति के पास स्थित बिजलीघर में तैनात कर्मचारियों के साथ थी. उन्हीं की वजह से उसे ट्रांसफार्मर रखने के लिए बनाए जाने वाले चबूतरों का ठेका मिल जाता था.

चूंकि शिवदत्त का पड़ोसी महावीर राजमिस्त्री था, इसलिए उसी के द्वारा वह चबूतरे बनवा देता था. इस से कुछ पैसे शिवदत्त को बच जाते थे. काम की वजह से शिवदत्त का महावीर के घर आनाजाना शुरू हो गया था. महावीर की छोटी बेटी पूनम पर शिवदत्त की नजर पहले से ही थी. जब भी वह घर से निकलती तो वह उसे ताड़ता रहता था. पर पूनम ने उसे लिफ्ट नहीं दी. जब शिवदत्त का पूनम के घर आनाजाना शुरू हो गया तो उस ने पूनम के नजदीक पहुंचने की कोशिश की.

जब वह पूनम को ज्यादा ही परेशान करने लगा तो एक दिन पूनम ने इस की शिकायत अपनी मां से कर दी. इस के बाद शारदा ने यह बात पति को बताई तो महावीर ने शिवदत्त के पिता महीलाल से शिकायत करने के साथ शिवदत्त से बातचीत बंद कर दी. इस के अलावा उस ने अपने घर आने को भी उसे साफ मना कर दिया.

शिवदत्त दबंग था. महावीर द्वारा उस के पिता से शिकायत करने की बात उसे बहुत बुरी लगी. वह पूरी तरह से दादागिरी पर उतर आया और अब पूनम को खुले रूप से धमकी देने लगा कि वह उस से शादी करे नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. महावीर ने फिर से महीलाल से शिकायत की. इस बार महीलाल ने अपने बेटे शिवदत्त का ही पक्ष लिया.

महावीर कोई लड़ाईझगड़ा नहीं करना चाहता था. बात बढ़ाने के बजाय वह चुप हो कर बैठ गया. महावीर के रिश्तेदारों और मोहल्ले के कुछ लोगों ने उस से थाने में शिकायत करने का सुझाव दिया पर बेटी की बदनामी को देखते हुए वह थाने नहीं गया. महावीर के चुप होने के बाद शिवदत्त का हौसला और बढ़ गया. वह पूनम को और ज्यादा तंग करने लगा. इतना ही नहीं, वह कई बार पूनम के घर तमंचा ले कर भी पहुंचा.

हर बार वह उस से शादी करने की धमकी देता. घटना से एक दिन पहले भी वह पूनम के घर गया. तमंचा निकाल कर उस ने धमकी दी कि वह शादी के लिए अभी भी मान जाए वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहे. 10 दिसंबर को शिवदत्त फिर से पूनम के घर जा धमका. उस दिन वह अपने साथ एक केन में केरोसिन भी ले गया था. पूनम उस समय घर में झाड़ू लगा रही थी, तभी उस ने उस पर केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी और वहां से भाग गया.

शिवदत्त से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है. तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे का कहना था कि इस मामले में शिवदत्त के अलावा और कोई दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी कानूनी काररवाई की जाएगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर