बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 3

रमाकांती ने भले ही पति के शक को झूठा करार दिया था, लेकिन उस के मन में यह बात हमेशा घूमती रहती थी. एक दिन रामचंद्र थोड़ा जल्दी घर आ गया. उसे बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि रमाकांती बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ बेटे ने जवाब दिया.

रामचंद्र कमरे पर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उस के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है. उसने दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा सूरज ने खोला. उस समय वह सिर्फ लुंगी पहने था. अचानक रामचंद्र को देख कर उस की घिग्घी बंध गई. रामंचद्र फुर्ती से कमरे में घुसा तो रमाकांती को जिस हालत में देखा, उस का खून खौल उठा.

रमाकांती बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. रामचंद्र ने आगे बढ़ कर चादर खींची तो उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. रामचंद्र उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर तू यह गुल खिला रही है?’’

रंगेहाथों से पकड़े जाने पर रमाकांती और सूरज का चेहरा सफेद पड़ गया. रमाकांती ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए की माफी मांगने लगी, जबकि सूरज मौका देख कर भाग गया. रामचंद्र ने उसे माफ करने के बजाय उस की जम कर पिटाई की. इस के बाद

रमाकांती और सूरज कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब उन से दूरियां बर्दाश्त नहीं हुई तो वे पहले की ही तरह फिर चोरीछिपे मिलने लगे. अब रामचंद्र को पत्नी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए आए दिन दोनों में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

रामचंद्र ने चुपचाप अंबाला के बल्लूपुर में दूसरा कमरा किराए पर ले लिया और परिवार के साथ उसी में रहने चला गया. लेकिन रमाकांती ने अपने आशिक सूरज को अपना वह ठिकाना भी बता दिया था, इसलिए सूरज वहां भी उस से मिलने जाने पहुंचने लगा.

रमाकांती पूरी तरह सूरज के रंग में रंग चुकी थी. वह उसी के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. उसे इस की भी फिक्र नहीं थी कि उस के जाने के बाद उस के बच्चों का क्या होगा? वह अपने इस नाजायज संबंध में डूब कर इस कदर अंधी हो चुकी थी कि उस के अलावा उसे कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

वह सूरज के साथ भागने के चक्कर में रहने लगी. उस के व्यवहार और हरकतों से रामचंद्र को उस के मन की बात का पता चल गया, इसलिए उस ने फैक्ट्री जाना बंद कर दिया. वह हर समय रमाकांती को अपनी नजरों के सामने रखने लगा. जब कई दिन बीत गए और रामचंद्र फैक्ट्री नहीं गया तो एक दिन रमाकांती ने कहा, ‘‘तुम फैक्ट्री जाओ, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. क्यों मेरी वजह से अपनी रोज की दिहाड़ी को लात मार रहे हो?’’

रामचंद्र किसी भी हाल में फैक्ट्री जाने को तैयार नहीं था. रमाकांती भी कम नहीं थी, इसलिए उस ने किसी तरह रामचंद्र को विश्वास में ले कर फैक्ट्री जाने को राजी कर लिया. रामचंद्र फैक्ट्री चला गया तो रमाकांती ने सूरज को उस के जाने की खबर दे दी.

थोड़ी देर में सूरज किसी की मोटरसाइकिल ले कर रमाकांती के कमरे पर पहुंच गया. रमाकांती अपने सामान का बैग ले कर उस की मोटरसाइकिल पर बैठने लगी तो उस के बच्चे उसे घेर कर शोर मचाने लगे, ‘‘सूरज अंकल, हमारी मम्मी को भगा कर ले जा रहे हैं.’’

बच्चों का शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. सूरज और रमाकांती को देख कर ही वे सारा माजरा समझ गए. उन्होंने रमाकांती को मोटरसाइकिल से उतार कर कमरे के अंदर भेज दिया और सूरज को भगा दिया. इस के बाद रामचंद्र को इस बात की सूचना दे दी.

कुछ देर में रामचंद्र आ गया. पड़ोसियों ने उसे समझाया कि वह अपनी पत्नी को ले कर यहां से चला जाए अन्यथा किसी दिन बेमौत मारा जाएगा. इस के बाद रामचंद्र ने सारा सामान पैक किया और रमाकांती तथा बच्चों को ले कर रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां से वह ट्रेन से चंडीगढ़ गया, जहां से वह चंडीगढ़लखनऊ सुपरफास्ट ट्रेन से हरदोई आ गया.

22 अगस्त की सुबह 7 बजे वह हरदोई स्टेशन पर उतरा. वहां से उस ने आटो किया और परिवार के साथ बिलग्राम चुंगी पर पहुंचा. वहां उस ने एक कबाड़ी की दुकान से डेढ़ सौ रुपए का बांका खरीदा, जिसे उस ने अपनी पीठ पर बनियान के नीचे छिपा लिया. उस के ऊपर उस ने अपना बैग टांग लिया, जिस से वह किसी को नजर नहीं आया. वहीं से एक दुकान से उस ने मीठी गटियां खरीदी और बस से अपने गांव हैबतपुर आ गया.

मकान का दरवाजा खोल कर सब अंदर पहुंचे. कुछ देर बाद बच्चे बाहर खेलने चले गए तो रमाकांती घर की साफसफाई करने लगी. उस समय लगभग 12 बज रहे थे. रामचंद्र ने रमाकांती को बुलाया और चारपाई पर बगल में बैठा कर गटियां खाने को दीं. इसी के साथ वह उस से हंसहंस कर बातें करने लगा.

रात भर जागने की वजह से रमाकांती को नींद आ गई. वह चारपाई पर लेट कर सो गई. उस के सोते ही रामचंद्र ने पीठ पर छिपा कर रखा बांका आहिस्ता से निकाला और पूरी ताकत से रमाकांती की गर्दन पर वार कर दिया. एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग हो गया.

रमाकांती को मौत के घाट उतार कर रामचंद्र एक हाथ में रमाकांती का सिर और दूसरे हाथ में रक्तरंजित बांका ले कर थाना बिलग्राम की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस के घर से निकलते वक्त गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो पूरे गांव में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने यह बात चौकीदार कमलेश को बताई तो उस ने इस की सूचना फोन द्वारा थानाकोतवाली बिलग्राम को दे दी.

रामचंद्र 2 किलोमीटर दूर पुंसेड़ा गांव तक ही पहुंचा था कि सीओ बिलग्राम विजय त्रिपाठी वहां पहुंच गए. उन्होंने रामचंद्र से सिर और बांका देने को कहा तो उस ने कहा कि वह दोनों चीजें सिर्फ कोतवाल को ही देगा.

कुछ देर में इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह भी वहां पहुंच गए. रामचंद्र ने रमाकांती का सिर और हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित बांका उन के हवाले कर दिया. इस के बाद रामचंद्र को हिरासत में ले लिया गया.  कोतवाली ला कर रामचंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने रमाकांती की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. इस के बाद चौकीदार कमलेश की ओर से रामचंद्र के खिलाफ उस की पत्नी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

23 अगस्त को रामचंद्र को सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 30 अगस्त को रामचंद्र ने दोपहर 12 बजे के करीब जिला कारागार की अपनी बैरक के बाहर अंगौछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

इस तरह एक औरत की चरित्रहीनता की वजह से एक भरापूरा परिवार बरबाद हो गया. उसी की वजह से बच्चे अनाथों की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

अमीर बनने की चाहत – भाग 3

इंसान की ख्वाहिशें आसमान को छूती हों तो उसे अपनी प्रगति बहुत छोटी नजर आती है. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था. उस के पास अपनी एक सैकेंड हैंड कार थी. इसी दौरान उस की दोस्ती संदीप से हो गई. संदीप मूलरूप से मेरठ जनपद के कस्बा लावड़ का रहने वाला था और गाजियाबाद में किराए पर रहता था. वह एक इंस्टीट्यूट में बच्चों को कोङ्क्षचग देता था. वह भी अमीर बनने के सपने देखता था.

2 इंसानों की सोच यदि समान हों तो उन के ताल्लुकात गहरे होते देर नहीं लगती. दीपक व संदीप की दोस्ती भी वक्त के साथ गहरा गई. दोनों जब भी साथ बैठते, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की बात करते. दीपक अपनी प्लेसमेंट एजेंसी खोलना चाहता था. जबकि संदीप की ख्वाहिश थी कि उस का अपना कोङ्क्षचग सैंटर हो. इन कामों के लिए मोटी रकम चाहिए थी, लेकिन दोनों में से किसी के पास पैसा नहीं था. कमउम्र में ही वे बड़ी महत्वाकांक्षाओं के शिकार थे.

एक दिन दोनों साथ बैठे तो दीपक बोला, “कभी हमारे भी सुनहरे दिन आएंगे क्या?”

“इतना सीरियस क्यों है भाई, यह तो इंसान के अपने हाथ में है.” संदीप ने शांत लहजे में कहा तो दीपक मन मसोसते हुए बोला, “अपने हाथ में होता तो कब का बड़ा आदमी बन जाता. कभीकभी मन करता है कि कोई बड़ा हाथ मार कर एक ही झटके में जिंदगी संवार दूं.”

“अब की है तूने काम की बात. सोचता तो मैं भी यही हूं. तू कहे तो कुछ ऐसा करें, जिस से सारे संकट जड़ से मिट जाएं.”

संदीप ने कहा तो दीपक बोला, “दोनों मिल कर कुछ बड़ा प्लान करते हैं. इस शहर में बड़ेबड़े रईस हैं, वे किस काम आएंगे.”

“वे क्या हमें आ कर पैसा देंगे?” संदीप ने पूछा.

“बिलकुल देंगे, लेने का हुनर आना चाहिए.”

“मतलब?”

“इतना भोला भी मत बन, अरे जब हम किसी के जिगर के टुकड़े को कब्जे में लेंगे, तो वह खुद ही तो आ कर पैसा देगा.”

दीपक का आशय समझते ही संदीप की आंखों में चमक आ गई.

“ठीक है, कुछ ऐसा प्लान करते हैं कि किसी का अपहरण कर के मोटी रकम वसूल कर ली जाए.”

“इस के लिए हमें बहुत सोचना होगा.” संदीप ने कहा.

उस दिन के बाद दोनों का फितरती दिमाग सरपट दौडऩे लगा. अगले कुछ दिनों में ही दोनों ने किसी रईस आदमी के बच्चे का अपहरण करने की योजना बना ली. दोनों इस काम को बेहद चतुराई से करना चाहते थे. वे क्राइम के सीरियलों और ऐसी फिल्मों के शौकीन थे, जिन की पटकथा पुलिस को चौंका देने वाली होती थी. शहर के बारे में उन्हें अच्छी जानकारी थी.

उन दोनों ने अपने शिकार की तलाश के लिए वीवीआईपी सोसाइटी का चुनाव कर लिया. योजना के तहत उन्होंने अगस्त महीने में वहां फ्लैट किराए पर ले लिया. इस दौरान दोनों अपना कामधंधा छोड़ कर भविष्य के सपने बुनने लगे. उन के पास अब आमदनी का कोई जरिया नहीं था. दोनों कमउम्र में ही अंजाम की परवाह किए बिना गलत राह पर चल निकले थे.

संदीप अपने घर से आजाद था, जबकि दीपक अपनी मां के नियंत्रण से बाहर था. सोसायटी में रहते हुए उन्होंने अपने सौफ्ट टारगेट की तलाश शुरू कर दी. वे घूमतेफिरते और मैदान में जा कर बच्चों का क्रिकेट देखते और उन के साथ खुद भी क्रिकेट खेलते. जयकरन को क्रिकेट का जुनून था. पढ़ाई के बाद उस का ज्यादातर वक्त क्रिकेट में ही बीतता था. जयकरन किशोर था, लेकिन वह अपने से बड़ी उम्र के लडक़ों से भी दोस्ती करने का इच्छुक रहता था.

क्रिकेट के मैदान में ही उस की मुलाकात दीपक व संदीप से हुई. इस के बाद उन की अकसर बातेंमुलाकातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में बातोंबातों में दोनों ने जयकरन का फैमिलीग्राउंड जान लिया. उम्र का बड़ा फांसला होने के बावजूद तीनों दोस्त बन गए.

दीपक व संदीप को जयकरन सब से अच्छा शिकार लगा. उन्हें लगा कि उस के पिता शेयर कारोबारी हैं और मां डाक्टर, इसलिए वे मुंहमांगी मोटी रकम दे देंगे. इस बात को दिमाग में रख कर उन्होंने जयकरन से मेलजोल बढ़ाया और बाद में उस के सहारे उस के घर में भी एंट्री कर ली.

अपनी मीठीमीठी बातों और भोलेपन के नाटक से उन्होंने विवेक व अमिता से भी मुलाकात कर ली. कालोनी के अन्य लोगों से भी वे घुलमिल कर रहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन पर किसी को जरा भी शक हो. दरअसल वे अपना काम पूरी प्लानिंग के साथ करना चाहते थे. कुछ इस तरह की पुलिस उन की परछाईं भी न छू सके.

दीपक व संदीप की नजरों में सोसाइटी के यूं तो कई बच्चे थे. लेकिन उन्होंने मन ही मन सोच लिया कि जयकरन को विश्वास में ले कर आसानी से उस का अपहरण किया जा सकता है. दोनों ने विचारविमर्श कर के तय कर लिया कि एक दिन वे जयकरन का अपहरण कर के उस के पिता से फिरौती की मोटी रकम वसूल करेंगे. वे इस बारे में दिनरात सोचते रहते थे.

बड़ा भाई किसी आदर्श की तरह होता है. दीपक को भी मेहनत, लगन और ईमानदारी की ङ्क्षजदगी से अपने छोटे भाइयों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उलटा. उस ने बिट्टू को भी अपनी प्लानिंग बता कर उसे अपने साथ मिला लिया.

इस दौरान उन्होंने एक बदमाश के माध्यम से 3 अवैध पिस्तौलों का इंतजाम भी कर लिया. दीपक ने अपने मोबाइल पर वाट्सएप का एक ग्रुप बना रखा था, जिस में जयकरन व कालोनी के कुछ अन्य किशोर भी शामिल थे. दीपक ने यह सब भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखने के लिए किया था.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 3

निरीक्षण का काम लगभग पूरा हो गया था. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय, हमारे एक्सपर्ट को अंगुलियों के कुछ निशान मिले हैं. वे निशान तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के भी हो सकते हैं. तुम दोनों के निशान छोड़ कर अन्य निशानों की जांच एक्सपर्ट को करनी पड़ेगी. तुम्हारी अंगुलियों के निशान हमें अभी नहीं चाहिए. हमारे सिपाही के आने पर तुम अपनी अंगुलियों के निशान दे देना. रोहिणी के निशान हम पोस्टमार्टम के समय ले लेंगे.”

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते रोहिणी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

प्रकाश राय अपने ही विचारों में खोए थे. ठीक से वह कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए वह चुपचाप सभी की बातें सुन रहे थे. बातचीत के दौरान सहज ही सबइंसपेक्टर दयाशंकर बोले, “एक साल पहले ऐसी ही एक घटना दिल्ली में घटी थी. पर अपराधी को उसी समय पकड़ लिया गया था.”

“जी,” एएसआई राजेंद्र सिंह ने कहा, “उस घटना में एक इमारत में अपराधी घुसा था. डुप्लीकेट चाबी से वह फ्लैट का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था कि पड़ोसी ने उसे देख लिया और वह पकड़ा गया. वह बंगलादेश का रहने वाला था. रफीक नाम था उस का.”

“घर में कौनकौन था?”

“घर की मालकिन और उस के 2 बच्चे.”

“और उस का पति कहां गया था?”

“वह सुबह सब्जी लाने मंडी गया था.”

“सब्जी लाने?” प्रकाश राय आश्चर्य से थोड़ा तेज आवाज में बोले, “और वह रविवार का दिन था क्या?”

“जी सर, रविवार ही था.”

“दयाशंकर, वह आदमी अंदर है या बाहर, पता करो.”

दिल्ली पुलिस से पता चला कि वह बाहर है. उसे 4 महीने की सजा हुई थी. इस समय वह नोएडा में ही रह रहा है और सेक्टर-62 की किसी फैक्ट्री में नौकरी करता है.

प्रकाश राय उत्साहित हो कर बोले, “अरे उसे पकड़ कर लाओ यहां, इस केस में उस का हाथ हो सकता है.”

फिर दयाशंकर की ओर देख कर बोले, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस केस में किसी न किसी ने अपराधी को इनफौर्मेशन दी होगी. रविवार को धनंजय सेक्टर-2 की मार्केट मीटमछली लाने जाता है और रोहिणी घर में अकेली होती है, यह बात जरूर किसी न किसी ने उसे बताई होगी. इन में उस इमारत का नारायण, भास्कर रणधीर, उस की औरत देविका, पेपरवाला, दूधवाला, कोई भी हो सकता है. कोई न कोई उस जैसे लोगों को खबर देता होगा, उस के बारे में पता करो.”

“ठीक है सर, हम पता करते हैं.”

“दयाशंकर, तुम अभी उस की तलाश में लग जाओ. इस केस में अगर उस का हाथ हुआ तो उस के पास बहुत माल है. तुम अपना स्टाफ ले कर निकल पड़ो. उस के हाथ लगते ही मुझे सूचित करो.”

दयाशंकर उसी वक्त सहयोगियों के साथ निकल पड़े. सीओ साहब भी चले गए. इस के बाद प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से कहा, “अगर वह आदमी इस मामले में शामिल हुआ तो कोई बात नहीं. पर वह इस मामले में शायद ही शामिल हो.”

“सर,” राजेंद्र सिंह ने कहा, “आप यह किस उम्मीद पर कह रहे हैं?”

“मान लो, वह सस्पेक्ट है और उस ने ही यह जुर्म किया है तो सवाल यह उठता है कि वह अंदर घुसा कैसे? गेट पर नारायण था. मान लो, नारायण थोड़ी देर को इधरउधर हो गया और वह अंदर हो गया तो भी पांचवें माले पर जा कर लौक खोल कर हत्या करने, अलमारी खोल कर सारा सामान समेटने और नीचे आने में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगा ही होगा. इतनी देर उस का वहां ठहरना संभव ही नहीं था.

दूसरी दृष्टि से विचार करो तो धनंजय जब नीचे आया, तब नारायण मौजूद था. धनंजय सवा 6 बजे नीचे आया था. उस के जाने के तुरंत बाद वह अंदर घुस नहीं सकता था, क्योंकि नारायण वहीं था. मान लो, वह 5-10 मिनट बाद अंदर घुसा और अपना काम किया तो धनंजय और उस का आमनासामना अवश्य होता, क्योंकि धनंजय 7 बजे के लगभग वापस आ गया था. उस वक्त भी नारायण नीचे ही मौजूद था. मगर न उस ने और न सीढ़ी साफ करने गए रणधीर ने उसे देखा. हत्यारा नया है, शातिर होता तो डीवीडी प्लेयर और रोहिणी का कीमती मोबाइल और लैपटौप न छोड़ता.”

इतने में फोन की घंटी बज उठी. प्रकाश राय ने फोन रिसीव किया, “हैलो, हां मैं प्रकाश राय. बोलो, शाबाश. किधर टकरा गया वह तुम से? कुछ मिला? ठीक है, तुम उसे सस्पेक्ट मान कर बंद कर दो. मैं तुम्हें फोन करता हूं बाद में.” प्रकाश राय ने फोन काट दिया. राजेंद्र सिंह ने अंदाजा लगाते हुए कहा, “रफीक को पकड़ लिया शायद?”

“हां,” प्रकाश राय ने शांत स्वर में कहा, “पुलिस ने उसे उस की फैक्ट्री के बाहर से पकड़ लिया है. सोचने वाली बात यह है कि जिस के पास इतने रुपए होंगे, वह नौकरी पर क्यों जाएगा?”

“लेकिन सर,” राजेंद्र सिंह ने अक्ल लगाई, “हत्यारा जो भी हो, वह नारायण के रहते अंदर गया कैसे?”

“2 ही बातें हो सकती हैं. अपराधी पाइप के सहारे छत पर चढ़ कर छिपा रहा हो या फिर अंदर का ही कोई व्यक्ति हो.”

प्रकाश राय ने कुछ सोचते हुए कहा, “कुछ भी हो, हमें नारायण और रणधीर पर नजर रखनी है. ये मुजरिम हो सकते हैं या खबर देने वाले. यह भी एक संभावना है कि हत्या का उद्देश्य चोरी न रहा हो, यानी जेवरात और नकदी उड़ा कर एक बहाना बनाया गया हो. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रोहिणी के गले में सोने का मंगलसूत्र, हाथ में 4 सोने की चूडिय़ां, कानों में झुमके और डे्रसिंग टेबल पर उस की कीमती कलाई घड़ी, कीमती मोबाइल फोन और लैपटौप अपराधी ज्यों का त्यों छोड़ गया था. नारायण या रणधीर ने किसी की मदद से यह कृत्य किया होता तो रोहिणी के शरीर के गहने और घर का सारा सामान चला गया होता. इतनी बड़ी इमारत में रहने वाला भी तो कोई हत्या कर सकता है.”

प्रकाश राय के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र सिंह गंभीर हो गए, क्योंकि ऐसी स्थिति में हत्यारे को अंदरबाहर आनेजाने की जरूरत ही नहीं थी. अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि सिपाही नरेश शर्मा प्रकाश राय के कमरे में घुसा. उसे देख कर प्रकाश राय ने पूछा,

“क्यों नरेश, कोई खास खबर?”

नरेश को प्रकाश राय ने धनंजय के घर में ही रणधीर पर नजर रखने की हिदायत दे दी थी. उसी क्षण से नरेश उस के पीछे लग गया था. दूसरे सिपाही देवनाथ को नारायण के पीछे प्रकाश राय पहले ही लगा चुके थे.

“साहब, खास कुछ भी नहीं है. आप के चले आने के बाद हाथ में एक बर्तन लिए वह बाहर निकला. मैकडोनाल्ड की गली से पीछे जा कर देशी दारू के ठेके पर उस ने एक गिलास चढ़ाई और फिर अपने घर आ कर सोया पड़ा है.”

“तुम खुद ठेके में गए थे?”

“नहीं साहब, मेरी जानपहचान का एक फेरीवाला अंदर गया था. अब भी वह रणधीर के घर पर नजर रखे हुए है. मैं आप को यही खबर देने आया था.”

“नरेश, तुम रणधीर पर कड़ी नजर रखो. मुझे उस पर पूरा शक है. मेरा अनुमान है कि रणधीर और नारायण आज शाम को किसी स्थान पर जरूर मिलेंगे.”

“ठीक है साहब.” कह कर नरेश चला गया. राजेंद्र सिंह को संबोधित करते हुए प्रकाश राय बोले, “आज रात उस बिल्डिंग पर कड़ी नजर रखनी है. अपने 4-5 सिपाही तैयार रखना. नारायण और रणधीर, दोनों साथी हुए तो रणधीर आज रात को सामान ठिकाने लगाने की कोशिश…”

प्रकाश राय अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने रिसीवर उठाया. दूसरी ओर से आवाज आई, “सर, मैं मिश्रा बोल रहा हूं.”

“हां, बोलो मिश्रा, क्या खबर है?”

“साहब, वह व्यापारी अभी तक घर में ही है और उस का औफिस नीचे ही है. उसे जो बिल्डिंग बेचनी है, उस के ग्राउंड फ्लोर पर ही उस का औफिस है.”

मिश्रा ने जिन सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हें प्रकाश राय समझ गए. व्यापारी का मतलब था नारायण, औफिस यानी घर और ग्राउंड फ्लोर औफिस का मतलब था नारायण ग्राउंड फ्लोर पर ही रहता था. मिश्रा की भाषा से ही प्रकाश राय समझ गए कि मिश्रा कई लोगों के सामने से बोल रहा था.

उन्होंने मिश्रा से कहा, “तुम वहीं ठहरो और अपने आदमियों केवहां पहुंचने तक रोके रहो. संभव हुआ तो मैं भी आऊंगा. कोई विशेष बात होने पर मुझे फोन करना.”

इस के बाद वह राजेंद्र सिंह से बोले, “तुम पोस्टमार्टम के बाद रोहिणी का शव विश्वास को जल्दी से जल्दी दिलाने की कोशिश करो.”

“यस सर.” कह कर राजेंद्र सिंह अपने स्टाफ के साथ निकल पड़े. अब प्रकाश राय अकेले थे और नए सिरे से रोहिणी मर्डर केस के बारे में सोचने लगे. एक सूत्र से दूसरा सूत्र जोड़ कर वह अपना जाल बिछाना चाहते थे. उन्होंने अपनी डायरी निकाली. उन्हें अपने कुछ महत्त्वपूर्ण आदमियों को फोन करने थे. वे समाज के जिम्मेदार लोग थे और इन से प्रकाश राय की अच्छी जानपहचान थी.

इन्हें प्रकाश राय ने विशेष मतलब से बुलाया था और एक जरूरी काम सौप दिया था.  इन्हें रोहिणी के दाहसंस्कार के समय शोकसंतप्त चेहरा बना कर लोगों की बातों को चुपचाप सुन कर उस की रिपोर्ट प्रकाश राय को देनी थी. मजे की बात यह थी कि ये लोग एकदूसरे को नहीं जानते थे.

अंतिम निवास विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए, “कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?”

“सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.”

“आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.”

“शनिवार को तो बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?”

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी से भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था.

“विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.”

“आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.”

“वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ.”

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं. यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 3

इन्हीं बातों से एरिन को लगा कि बंटी किसी वजह से परेशान रहता है. एक दिन उस ने उस की परेशानी की वजह पूछी तो बंटी ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से भारत घुमाने का वादा किया था शादी के बाद पूरा भारत घुमाऊंगा. लेकिन तमाम मेहनत के बाद भी पैसे जमा नहीं हो रहे हैं.’’

‘‘तुम्हें पैसों की चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम अपना काम अपने हिसाब से करो. मेरा मन जहां घूमने का होगा, मैं अकेली ही घूम आऊंगी. मेरे पास पैसे हैं.’’ एरिन ने कहा.

इस तरह एक बार बंटी की एरिन से डौलर झटकने की योजना विफल हो गई. बंटी के दोस्तों को पता था कि वह एरिन को बेवकूफ बना रहा है. इसलिए उस के ईर्ष्यालु दोस्त एरिन को उस से सतर्क करना चाहते थे. किसी दिन उस के किसी दोस्त को मौका मिला तो उस ने एरिन को सतर्क करते हुए बता दिया कि बंटी शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी है.  उस की पत्नी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है. उस ने उस से डौलर ऐंठने और उस के साथ विदेश जाने के लिए शादी की है.

इन बातों से एरिन को लगा कि सचमुच बंटी ने अपनी असलियत छिपा विदेश जाने और डौलर हड़पने के लिए उस से शादी की थी. एरिन ने जब इस बारे में बंटी से बात की तो वह बिफर उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हीं कहां दूध की धुली हो. तुम्हारी भी तो पहले शादी हो चुकी है. तुम्हारा भी तो बच्चा है. तुम ने भी तो मुझ से यह बात नहीं बताई.’’

एरिन की समझ में आ गया कि उस ने गलत आदमी से शादी कर ली है. वह इस बारे में कुछ करने की सोच रही थी कि तभी उसे यह भी पता चल गया कि बंटी एक आटो ड्राइवर की भी हत्या कर चुका है. उस ने उस की हत्या विदेशी लड़की से संबंध बनाने के लिए की थी. एरिन ने जब इस बात की शिकायत बंटी से की तो इस बार उस ने नाराज होने के बजाय उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘एरिन, जो हुआ, उसे मैं भूल गया हूं. मैं चाहता हूं कि तुम भी उसे मत याद करो. मैं तुम्हें शाहजहां की ही तरह मोहब्बत करता हूं, इसलिए तुम्हें खो देने के डर से ये बातें नहीं बताई थीं.’’

नाराज एरिन ने खुद को उस की बांहों से आजाद कर के कहा, ‘‘शादी और बेटे वाली तो कोई बात नहीं थी, लेकिन तुम किसी की हत्या भी कर सकते हो, यह बरदाश्त करने वाली बात नहीं है.’’

‘‘अच्छा, पहले तो तुम यह बताओ कि मेरे जाने के बाद तुम किनकिन लोगों से मिलती हो, तुम्हें यह सब कौन बताता है?’’

‘‘मेरा मन, मैं किसी से भी मिलूं तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले. अब यह साफ हो गया है कि तुम धोखेबाज हो, तुम पर विश्वास नहीं किया जा सकता.’’ एरिन गुस्से में बोली.

बंटी को लगा कि एरिन को नाराज करना ठीक नहीं है, क्योंकि अगर वह नाराज हो गई तो उस ने जो सोच कर शादी की है, वह पूरा नहीं होगा. इसलिए नरम पड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘एरिन, मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो गया था, इसलिए यह सब छिपा लिया था.’’

बंटी ने भले ही सफाई दे कर एरिन के मन में आए शक को दूर करना चाहा था, लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रह गई थी. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए, यह सोच कर बंटी एरिन से अमेरिका चलने को कहने लगा. लेकिन एरिन ने साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘मैं भारत में ही रहूंगी, क्योंकि मुझे यहां बहुत शांति मिलती है.’’

दरअसल, एरिन क्लीन आगरा की योजना बना रही थी. इस बारे में वह बार एसोसिएशन आगरा के कुछ सदस्यों से मिल कर बात भी चला रही थी. एरिन के मना करने और उस के काम शुरू करने की योजना के बारे में जान कर बंटी की समझ में आ गया कि अमेरिका जा कर लग्जरी गाडि़यों में घूमने का जो सपना उस ने पाल रखा था, अब वह पूरा होने वाला नहीं है. उसी बीच एरिन ने एनजीओ वाली नौकरी छोड़ दी. बंटी को एक झटका और लगा. वह तनाव में रहने लगा. एरिन अपनी योजना को साकार करने के लिए शहर के अनेक प्रतिष्ठित लोगों से मिल रही थी.

उसे यह सब बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. कहीं एरिन उस के हाथ से निकल न जाए, इसलिए बंटी उस पर प्रतिबंध लगाने लगा. एरिन बगावत पर उतर आई. क्योंकि बंटी ने उसे धोखा दिया था. वह धोखेबाज ही नहीं, कातिल भी था. एरिन लगातार इस बात पर विचार कर रही थी कि उसे क्या करना चाहिए.

परेशान एरिन मन की शांति के लिए घंटों मंदिर में बैठी रहती. वह अकसर देर से घर आती. ऐसे में बंटी जब उस से पूछता कि इतनी देर तक वह कहां रहती है तो एरिन कहती, ‘‘यह बताना जरूरी नहीं है.’’

बंटी उसे भारतीय पत्नी की तरह रखना चाहता था, इसलिए उसे खरीखोटी सुना कर बंदिश में रखने की कोशिश करने लगा. वह उसे धमका कर उस से डौलर ऐंठना चाहता था. लेकिन उस के पास डौलर कहां थे. अब तो उस का खर्च बंटी चलाता था या फिर उस के दोस्त कुछ पैसा भेजते थे. बंटी की हरकतों से तंग आ कर एरिन ने जब कहा कि अब वह उसे छोड़ कर चली जाएगी तो बंटी ने कहा, ‘‘तुम्हें शायद पता नहीं, मेरे हाथों में 3 हत्याओं की लकीरें हैं. 2 हत्याएं मैं कर ही चुका हूं. लगता है, तीसरी हत्या तुम्हारी होनी है.’’

बंटी की इस धमकी से एरिन कांप उठी. वह अपने वकील अश्विनी रावत से मिली और उन से कहा कि वह बंटी से छुटकारा चाहती है. यही नहीं, उस ने बंटी से अलग रहने के लिए राजपुर चुंगी, शम्साबाद रोड पर सतविंदर सिंह के मकान में किराए का कमरा भी ले लिया था. एरिन अलग रहने लगी तो बंटी ने भी उर्खरा रोड पर संजयनगर में अपने रहने के लिए राजू पचौरी के मकान में किराए का कमरा ले लिया. इस तरह दोनों अलगअलग रहने लगे.

एरिन के अलग रहने पर विदेश से जो भी उस के दोस्त आते थे, उस के साथ ही रहते थे. बंटी को यह अच्छा नहीं लगता था. उसे डर था कि कहीं एरिन उसे छोड़ कर अकेली ही अमेरिका न चली जाए. वह अकसर एरिन के कमरे पर जा कर उस से झगड़ा करने लगा. बंटी की हरकतों से परेशान हो कर एरिन थाना सदर के थानाप्रभारी पूरन सिंह मेहता से मिली और उन से शिकायत की कि बंटी उसे परेशान करता है. जान से मारने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगता है. वह पहले भी हत्याएं कर चुका है, इसलिए उसे डर लगता है कि कहीं वह उस की भी हत्या न कर दे.

                                                                                                                                            क्रमशः

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 3

महाराजपुर पुलिस चौकी में कार्यरत जितने भी पुलिसकर्मी थे, उन्हें तुरंत वहां से पुलिस लाइंस में जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का आदेश दे दिया. पर फरार हुए स्पा मैनेजर और मालिकों की गिरफ्तारी के लिए टीमें नियुक्त कर के छापेमारी कर रही थीं.

समाज में गंदगी फैलाने वाले ऐसे लोगों को कानून के कटघरे में खड़ा कर के जेल पहुंचाना ही पुलिस का उद्ïदेश्य था. देखना है ये फरार हुए अभियुक्त कब तक पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेलते हैं.

यह मामला अभी चल ही रहा था, ताजा भी था कि उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद में एक और सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. हुआ यूं कि सीओ (सिटी) संजय मिश्रा अपने औफिस में बैठे. तभी उन्होंने अपने एक मुखबिर को फोन लगा लिया, “हैलो करीम, क्या कह रहे हो?”

“गुड मार्निंग साहब.” दूसरी ओर से करीम की आवाज उभरी, “आजकल खाली हूं साहब, जेब से कडक़ा हो गया हूं, कोई काम बताइए न?”

“करीम, कुछ दिनों से मुझे होटल राधाकृष्णा के विषय में उलटीसीधी बातें सुनने को मिल रही हैं.”

करीम ने तुरंत कहा, “हां साहब, सुना तो मैं ने भी है कि राधाकृष्णा में गरम गोश्त का धंधा होता है. आप कहें तो मैं पता लगाऊं?”

“खाली हो तो यही काम कर लो, खर्चापानी निकल जाएगा तुम्हारा.” संजय मिश्रा ने कहा.

“मैं आज शाम को ही मालूम कर लूंगा.” करीम चहक कर बोला, “आप को अच्छी खबर ही दूंगा साहब.”

“ठीक है.” कह कर संजय मिश्रा ने बात खत्म की.

उधर करीम शाम होने का इंतजार करने लगा. करीम 25-26 साल का युवक था. वह स्मार्ट था, रंगत भी गोरी थी. वह पुलिस के लिए मुखबिरी करता था. सीओ सिटी से बात होने के बाद उस ने शाम को व्हाइट शर्ट और ब्राऊन रंग की जींस पहनी. बालों को संवारा और पैदल ही होटल राधाकृष्णा की तरफ चल पड़ा.

राधाकृष्णा होटल में पहुंच कर वह बार काउंटर पर पहुंच गया, वहां मौजूद सर्विस बौय से उस ने लार्ज व्हिस्की का पैग मांगा. सर्विस बौय पैग बनाने लगा तो करीम धीरे से बोला, “यार, यहां शराब ही मिलती है क्या, उस के साथ कुछ चटपटा माल नहीं मिलता?”

“मिलता है जनाब.” सर्विस बौय पैग उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, “भुने काजू हैं, चटपटी नमकीन है, बौयल एग्स हैं.”

करीम मुसकराया, “यह नहीं यार, तनमन को तृप्त कर दे. कुछ ऐसा चटपटा सामान जो…”

“ओह समझा!” सर्विस बौय आगे को झुक कर मुसकराया, “आप गरम गोश्त की बात कर रहे हैं.”

“ठीक समझे, शराब के साथ शबाब हो तो तबियत फडक़ा फाइट हो जाती है.”

“आप रिसैप्शन काउंटर पर जाइए, वहां रंगीन एलबम है. उस में आप को एक से बढ़ कर एक फुलझडिय़ां मिल जाएंगी.”

“वाह!” करीम ने दोनों हाथ कंधे पर ले जा कर अंगड़ाई ली, “रेट वेट मालूम है तुम्हें?”

“नहीं, यह मैनेजर ही बता देंगे.” सर्विस बौय ने हंस कर कहा, “ऐसी गरम आइटम की कीमत नहीं पूछी जाती, दिल को भा जाए तो दिलफेंक लोग लाखों लुटा देते हैं.”

करीम हंसा, “आदमी दिलचस्प हो तुम.”

सर्विस बौय मुसकराने लगा. करीम ने पैग का बिल दिया और गिलास ले कर वह रिसैप्शन पर आ गया.

रिसैप्शन पर बैठे मोटे से व्यक्ति ने आंखों पर चढ़ा चश्मा ऊंचा कर के करीम को देखा, “फरमाइए जनाब, रूम चाहिए क्या?”

“अकेला हूं,” करीम ने होंठों को गोल किया, “शादी भी नहीं हुई है. रूम ले कर क्या करूंगा. कोई पार्टनर दिलवाएंगे तो रूम लेने का मजा है.”

“पार्टनर भी मिल जाएगा सर.” मैनेजर ने दाईं आंख दबा कर कहा, “एलबम देखेंगे आप.”

“दिखाइए, कोई पसंद आ जाएगी तो रात यहीं गुजार लूंगा.”

मैनेजर ने एलबम निकाल कर दिखाई, उस में अनेक खूबसूरत महिलाओं के फोटो लगे थे. करीम ने एक फोटो पर अंगुली रख कर उस का रेट पूछा.

“3 हजार चार्ज है इस हसीना का, हमारे होटल की शान इसी नगीना से है. यह रूबी है. पसंद हो तो बुलाऊंï?”

“रूम का चार्ज इसी में शामिल है या अलग से देना होगा?”

“यह आधा घंटे का चार्ज है, इस में कमरा हम देंगे आप को. यदि आप पूरी रात मौज करना चाहते हैं तो 7 हजार रुपया लगेगा. 5 लडक़ी के, 2 रूम चार्ज.”

“मैं रात भर रुकूंगा, लेकिन आज नहीं. आप कल के लिए रुबी को कहीं बुक नहीं करेंगे. यह एडवांस हजार रुपया रखिए.”

करीम ने कहने के बाद पर्स से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर रिसैप्शन पर रख दिए. फिर वह होटल से बाहर आ गया. उस ने तुरंत सीओ संजय मिश्रा को फोन कर के सारी जानकारी दे दी.

संजय मिश्रा ने दूसरे दिन शनिवार 27 मई, 2023 को सुबह ही दक्षिण टोला सराय लखसी थाना और महिला थाने की पुलिस को कोतवाली में लिया. उन्हें यहां बुलाने का मकसद समझाने के बाद वह पुलिस बल, जिन में महिला कांस्टेबल भी थी, को साथ ले कर रोडवेज बस अड्ïडे के पास स्थित होटल राधाकृष्णा में छापा डाल दिया.

पुलिस को देख वहां भगदड़ मच गई. होटल मैनेजर को काबू कर लिया गया. ऊपर के फस्र्ट फ्लोर पर बने बहुत से कमरे अंदर से बंद थे. उन्हें खटखटा कर महिला पुलिस को आगे कर दिया गया. सीओ संजय मिश्रा ने ऊंची आवाज में आदेश दिया, “यहां पुलिस ने रेड डाली है. बंद कमरों में मौजूद महिलाएं पुरुष अपने कपड़े ठीक कर के बाहर आ जाएं.”

थोड़ी देर में बंद कमरों से महिलाएं मुंह ढंक कर बाहर आ गईं. हर महिला के साथ एक पुरुष भी था. टोटल 14 महिलाएं और मैनेजर सहित 16 पुरुष वहां से हिरासत में लिए गए. कमरों की तलाशी में आपत्तिजनक सामान भी बरामद हुआ, उसे सीलमोहर कर के कब्जे में ले लिया गया.

सभी पकड़े गए अनैतिक देह में लिप्त पुरुष और महिलाओं को कोतवाली में लाया गया. पुलिस उन से विस्तार से पूछताछ कर के कानूनी काररवाई में लग गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में करीम व जगदीश उर्फ जग्गी परिवर्तित नाम हैं.

तीन साल बाद खुला रहस्य

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 2

एक दिन सूरज रमाकांती के कमरे पर पहुंचा तो उस समय वह अकेली थी. कमरे के बाहर से ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, भाई साहब घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस समय वह घर पर नहीं होते, फिर भी पूछ रहे हो?’’ रमाकांती ने सूरज की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो वह इस तरह झेंप गया, जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय में आया था. उस ने झेंप मिटाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को बड़ी जल्दी पहचान लेती हैं देवरजी.’’ रमाकांती ने इठलाते हुए कहा, ‘‘अंदर आ कर बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

सूरज पलंग पर बैठते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, तुम ने मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह तो बताओ कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’’

‘‘अगर बुरा लगा होता तो तुम्हें अंदर बुला कर चाय क्यों पिलाती?’’ रमाकांती ने एक आंख दबा कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाभी?’’ सूरज ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा.

‘‘कहो,’’ रमाकांती तिरछी नजरों से उसे घूरते हुए बोली, ‘‘अपनों की बात का भी कोई बुरा मानता है.’’

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. इसीलिए मेरा मन तुम्हें बारबार देखने को मचलता रहता है.’’

‘‘भला मुझ में ऐसी कौन सी बात है, जो तुम्हारा मन मुझे बारबार देखने को मचलता है.’’ रमाकांती ने तिरछी चितवन का तीर चलाते हुए कहा.

‘‘यह पूछो कि तुम में क्या नहीं है. हिरनी जैसी चंचल आंखें, उन में थोड़ी उदासी, गठा हुआ बदन और होंठों पर अप्सराओं जैसी मादक मुसकान,’’ सूरज ने मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘काश, तुम मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं तुम्हें रानी बना कर रखता.’’

‘‘यह सब कहने की बातें हैं देवरजी. पहले ‘वह’ भी ऐसा ही कहते थे. सारे मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ रमाकांती ने ताना मारा.

‘‘मैं भाई साहब की तरह नहीं हूं. उन्हें तुम्हारी कद्र करना ही नहीं आता,’’ सूरज ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘उन्हें तुम्हारे सुख की जरा भी परवाह नहीं रहती. वह सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ रमाकांती ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

‘‘भाभी, इंसान की आंखों से ही उस के दिल की बात का पता चल जाता है. मुझे तुम्हारी आंखों से ही तुम्हारे दिल के दर्द का पता चल गया है.’’

सूरज की इन बातों से रमाकांती को मजा आने लगा था. इसी चक्कर में वह चाय भी बनाना भूल गई. अचानक खयाल आया तो बोली, ‘‘तुम्हारी बातों में पड़ कर मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई. अब मैं चलता हूं.’’ कह कर सूरज चला तो गया, लेकिन रमाकांती की हसरतों को हवा दे गया.

रमाकांती अब सूरज की चढ़ती जवानी के सपने देखने लगी. दूसरी ओर सूरज भी उसे अपनी कल्पनाओं की रानी बनाने लगा. इस के बाद सूरज और रमाकांती के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया. सूरज जब भी रमाकांती के कमरे पर आता, उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. ऐसे में एक दिन रमाकांती ने उसे टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो इतना खयाल रहता है, कभी भाभी की खुशी के बारे में भी सोचते हो?’’

अपनी बात कह कर रमाकांती एक आंख दबा कर मुसकराई तो सूरज उस का इशारा समझ गया कि वह क्या चाहती है. बात यहां तक पहुंच गई तो वह उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सूरज ऐसे समय पर रमाकांती के कमरे पर पहुंचा, जब उस के बच्चे कमरे पर नहीं थे. आसपास के कमरों में रहने वाले भी इधरउधर थे. उस के कमरे में आते ही रमाकांती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज यह मत पूछना कि भाई साहब हैं या नहीं? मुझे पता है कि तुम यहां क्यों आए हो.’’

‘‘तुम्हीं ने तो बुलाया था?’’ सूरज हंस कर बोला.

‘‘अरे, मैं ने तुम्हें कब बुलाया?’’

सूरज आगे बढ़ कर बोला, ‘‘अच्छा भाभी, सचसच बताना, जब भी मैं तुम से बात करता हूं, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे बुलाती है या नहीं?’’

इतना कह कर सूरज ने रमाकांती का हाथ पकड़ लिया और अपना मुंह उस के मंह के पास ले जा कर बोला, ‘‘उन्हीं के बुलाने पर आया हूं.’’

‘‘दिल की बात कहने का अंदाज तो तुम्हारा बहुत अच्छा है,’’ रमाकांती ने प्यार से उस के गाल पर चपत लगा कर कहा, ‘‘हाथ छोड़ो तो चाय बना कर लाऊं.’’

‘‘इस तनहाई में चाय पीने का नहीं, कुछ और ही पीने का मन हो रहा है. बोलो पिलाओगी न?’’

‘‘मैं ने कब मना किया है,’’ रमाकांती ने अपना सिर उस के सीने पर रख कर कहा, ‘‘पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

रमाकांती का खुला आमंत्रण पा कर सूरज की बांछें खिल उठीं. इस के बाद वहां जो हुआ, वह किसी भी लिहाज से सही नहीं था. रमाकांती की जिस्म की आग ने सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

उस दिन के बाद इस का सिलसिला सा चल निकला. जब भी मौका मिलता, सूरज और रमाकांती एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन इस के लिए सूरज को रमाकांती के कमरे पर आना पड़ता था.

रामचंद्र की गैरमौजूदगी में सूरज का रमाकांती के कमरे पर बारबार आना आसपड़ोस वालों को अखरने लगा. उन की समझ में आ गया कि सूरज और रमकांती के बीच गलत संबंध है. इन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी तो उड़तेउड़ते यह बात रामचंद्र के कानों तक भी पहुंची. लेकिन उसे इस बात पर यकीन नहीं हुआ.

जब लोग रामचंद्र पर ताने कसने लगे तो एक दिन उस ने रमाकांती से पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में सूरज यहां आता है?’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है बच्चों से मिलने के लिए.’’ रमाकांती ने कहा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मोहल्ले वाले तुम दोनों को ले कर तरहतरह की बातें कर हैं?’’

‘‘लोगों का क्या, वे किसी को खुश थोड़े ही देख सकते हैं, इसीलिए मनगढ़ंत कहानी रचते रहते हैं. तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा नीच काम कर सकती हूं?’’ रमाकांती ने सवाल किया तो रामचंद्र शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उसने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया.

लेकिन सच्चाई को कितना भी छिपाया जाए, वह छिपती नहीं. रामचंद्र को शक तो हो ही गया था, एकदो बार उस ने पत्नी की पिटाई भी की, लेकिन रमाकांती हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि उस का शक झूठा है.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 2

इमारत के चारों और घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने खन्ना से पूछा, “ये कमरे किस के है?”

“सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .”

“कितने वाचमैन हैं?”

“2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.”

“इन के खाने की छुट्टी?”

“वो तो सर, ये अपनी सुविधा के अनुसार खाने जाते हैं. वैसे भी यह समस्या पहली शिफ्ट में आती है. ज्यादातर ये अपना खाना साथ लाते हैं. इसी कमरे में वे खाना खाते हैं. तब तक हम यहां के स्वीपर को गेट पर बैठा देते हैं.”

“दोनों के नाम क्या हैं और इन के घर कहां है?”

“कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.”

“अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?”

“एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.”

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर आ गए. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए.

प्रकाश राय देविका के बारे में सोच रहे थे. वह सभी के घर में आजा सकती थी. वाचमैन जरूरी काम के बिना किसी फ्लैट में जा नहीं सकते थे. नारायण जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. लेकिन उस से पूछताछ करने पर प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट ले आने जाते और लौटते देखा था बस.

“अच्छा नारायण, धनंजय साहब के जाने के बाद तुम यहीं थे क्या? यहां से कहीं नहीं गए?”

“साहब, मैं यहां से वहां राउंड मार रहा था और नीचे की लाइन बंद कर रहा था. रणधीर ने पंप चालू किया या नहीं, यह

देखने भी गया था.”

“यानी इस दौरान कोई ऊपर जा सकता था?”

“साहब, आप जो कह रहे हैं, वह संभव है.”

“अच्छा नारायण, सुबह तुम ने किसी अनजान आदमी को बाहर जाते तो नहीं देखा?”

“साहब, मेरे रहते कोई अंदर गया ही नहीं तो बाहर कैसे…?”

“सुनो नारायण, रात को ही कोई अंदर आ गया होगा या किसी के यहां मेहमान के रूप में आया होगा तो…?”

नारायण चुप हो गया. उसे अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा. कुछ सोच कर बोला, “साहब, दूध वाला और पेपर वाला, ये दोनों आए थे. गनपत दूध वाला जब आया था, धनंजय साहब घर में ही थे. उन्होंने ही दूध लिया होगा. उस के जाने के बाद ही वह मीट लेने चले गए थे. वह ‘ए’ विंग के 7 फ्लैटों में दूध सप्लाई करता है, बाकी के सभी लोग 9 बजे डेयरी की गाड़ी से दूध लेते हैं.”

“पेपरवाला नरेश धनंजय साहब के जाने के बाद आया था. 2-3 मिनट में ही वह लौट गया था. सिर्फ एक व्यक्ति मुझे याद है रणधीर. धनंजय साहब के जाने के बाद रणधीर सफाईवाला झाडू और प्लास्टिक की बाल्टी ले कर सीढिय़ां साफ करने गया था. धनंजय साहब के लौटने से पहले नीचे आ कर वह ‘बी’ इमारत मे चला गया था.”

“ठीक है नारायण.” कह कर प्रकाश राय ने इशारे से सिपाही को पास बुला कर कहा, “तुम किसी बहाने से बाहर जाओ और थोड़ी देर बाद लौट कर नारायण से गप्पें मारते हुए रणधीर के बारे में कुछ पता लगाने की कोशिश करो.”

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रखते हुए और सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, “धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिलेगा तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर ही रहूंगा. आओ, अंदर चलते हैं.”

अंदर फिंगरप्रिंट्स वाले प्रिंट्स की तलाश में लगे थे और फोटोग्राफर फोटो खींच रहा था. प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. फिर वह कमरे का निरीक्षण करने लगे. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग कर जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना.

प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. सबइंसपेक्टर दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखा और फिर धनंजय से कहा, “मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?”

धनंजय ने एक बार प्रकाश राय को और फिर दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, “मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?”

प्रकाश राय ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट को प्रश्नभरी नजरों से देखा. एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. कहीं कोई उलटपुलट नहीं की गई थी.

पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में धनंजय से पूछा, “धनंजय, तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?”

“रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.”

“इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?”

“नहीं साहब, कल शनिवार था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.”

“कारण?”

“अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने के लिए जाने वाले थे.” कहते हुए उस ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. धनंजय सही कह रहा था. राजेंद्र सिंह को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, “राजेंद्र सिंह, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.”

इस के बाद गैलरी में आ कर प्रकाश राय ने इशारे से एक सिपाही को बुला कर दबी आवाज में कहा, “तुम नीचे जा कर रणधीर से बातें करो और किसी बहाने से उस के घर में जा कर देखो, कहीं कुछ सामान दिखाई देता है क्या? रणधीर संदिग्ध है. बात करतेकरते उस से कहो कि साहब को नारायण पर शक है. वह जरूर कुछ न कुछ बताएगा.”

सिपाही के रवाना होते ही प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी, सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?”

“साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.”

“तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?”

“जी सर.”

इतने में सचमुच आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे. सक्सेना ने फोन कर के उन से कहा था कि रोहिणी सीरियस है. सक्सेना ने दिल्ली में रह रहे रोहिणी के मातापिता को भी खबर कर दी थी.

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 2

कलुवा ने इस मारपीट की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई तो पुलिस ने बंटी को पकड़ कर जेल भेज दिया. बाद में उस के ससुर ने उसे जमानत पर जेल से बाहर निकलवाया. कलुवा ने बंटी के साथ जो किया था, उस से बंटी को लगा कि सांद्रा से संबंध बनने के बाद वह घमंडी हो गया है. इसलिए उस ने मन ही मन तय किया कि वह कलुवा को सबक सिखा कर उस का घमंड तोड़ कर ही रहेगा. इस के अलावा उस का यह भी सोचना था कि अगर कलुवा नहीं रहेगा तो सांद्रा उस से दोस्ती कर लेगी.

5 दिसंबर, 2008 की रात काफी ठंड थी. होटल हावर्ड पार्क प्लाजा के सामने कलुवा खड़ा अपनी विदेशी सवारियों का इंतजार कर रहा था. तभी बंटी ने आ कर अचानक उस पर चाकू से हमला कर दिया. उस के साथी उसे बचा पाते, उस के पहले ही बंटी ने उस पर इतने वार कर दिए कि उस ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया. इस के बाद कलुवा की हत्या के आरोप में उसे जेल भेज दिया गया. बंटी की इस हरकत से नाराज हो कर जहां मांबाप ने उसे घर से निकाल दिया, वहीं बेटी और नाती के भविष्य की चिंता में उस के ससुर ने काफी दौड़धूप कर के उसे एक बार फिर जमानत पर जेल से बाहर निकलवाया.

जेल से बाहर आ कर बंटी एक बार फिर अपने काम पर लग गया. लेकिन अब वह हमेशा इस फिराक में लगा रहता था कि किसी विदेशी लड़की से उस का चक्कर चल जाए. लेकिन इस में एक समस्या यह थी कि अगर उस का किसी विदेशी लड़की से चक्कर चल भी जाता तो वह उस से शादी नहीं कर सकता था, क्योंकि घर में उस की पत्नी और एक बेटा तो था ही, दूसरा बच्चा भी होने वाला था. पत्नी और बच्चों के रहते वह दूसरी शादी कतई नहीं कर सकता था. फिर उस के ससुर भी उस की काफी मदद कर रहे थे. उन्होंने उस के लिए एक प्लौट भी खरीद दिया था. ऐसे में ही एक दिन अचानक उस की पत्नी भावना की सीढि़यों से गिर कर मौत हो गई.

लोगों का कहना है कि बंटी ने खुद ऊपर से पत्नी को धक्का दे दिया था. लेकिन परिस्थितियां ऐसी थीं कि उस के ससुर ने इसे स्वाभाविक मौत माना और दामाद के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. इस तरह पत्नी से उस ने छुटकारा पा लिया. भावना की रहस्यमय मौत के बाद अब वह आराम से दूसरी शादी कर सकता था. इस के लिए वह हमेशा किसी विदेशी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के चक्कर में लग गया. शायद इसीलिए वह विदेशी लड़कियों का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखता था.

एरिन के साथ भी वह ऐसा ही कर रहा था. ताजमहल दिखाते हुए वह उस के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही घूम रहा था. अगले दिन एरिन और उस के साथियों को फतेहपुर सीकरी जाना था. बंटी सुबहसुबह ही अपना आटो ले कर होटल ग्रीन पार्क पहुंच गया. एरिन को प्रभावित करने के लिए उस ने बाजार से नाश्ता भी खरीद लिया था. उस ने एरिन के कमरे की घंटी बजाई तो झट दरवाजा खुल गया. क्योंकि तय समय के अनुसार एरिन और उस के साथियों को पता था कि आटो वाला ही होगा.

उस ने एरिन के सामने साथ लाया नाश्ता खोल कर रखा तो वह  उसे देखती रह गई. उस की इस अदा पर एरिन निहाल सी हो गई थी. अपनी परंपरा के हिसाब से उस ने उसे चूमते हुए कहा, ‘‘तुम इंडियन सचमुच बहुत अच्छे और प्यार करने वाले होते हो.’’

एरिन ने ऐसा क्यों किया, यह तो वही जाने. लेकिन बंटी को लगा कि एरिन उस के सपनों को अवश्य सच कर सकती है. फिर तो वह पूरी लगन से उस की सेवा में लग गया. उसे घुमाने से ले कर उस के खानेपीने तक का पूरा खयाल रखने लगा.

आखिर बंटी को अपनी इस सेवा का फल मिल ही गया. उस ने अपनी सेवा की बदौलत एरिन के दिल में अपने चाहत पैदा कर दी. एरिन को बंटी भा गया था, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस तरह मोहब्बत की राह पर दोनों का पहला कदम पड़ गया. बंटी की तो खुशी का ठिकाना नहीं था. कब से वह इसी कोशिश में लगा था. अब उस की कोशिश सफल होती नजर आ रही थी.

एरिन और उस के दोस्तों को आगरा आए 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. वे दूसरी जगहों पर जाना चाहते थे, लेकिन एरिन आगरा में ही रुकना चाहती थी, इसलिए उस से दोस्तों के साथ जाने से कर दिया. शायद उसे बंटी से प्यार हो गया था. खर्च की उसे चिंता नहीं थी, क्योंकि जिस एनजीओ में वह काम करती थी, वहां से उस का वेतन अभी भी मिल रहा था, वे उस का वेतन बैंक में डाल देते थे, जिसे एरिन यहां निकाल लेती थी.

12 अक्तूबर, 2013 को एरिन का वीजा खत्म हो रहा था. लेकिन वह अमेरिका की भागदौड़ वाली जिंदगी को छोड़ कर भारत की शांत जिंदगी जीना चाहती थी. इसलिए वह होटल छोड़ कर बंटी के साथ उस की पत्नी की तरह रहने लगी थी. क्योंकि उसे लगता था कि बंटी भी उसे उतना ही प्यार करता है, जितना शाहजहां मुमताज को करता था.

कुछ ही दिनों में एरिन बंटी से कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया. तब उसे पता नहीं था कि बंटी का अतीत कैसा है. बंटी भी उस से शादी करने के लिए उतावला था. इसलिए उस ने भी एरिन के बारे में पता किए बगैर शादी का निर्णय ले लिया.

बंटी खुश था कि एक अमीर विदेशी लड़की उस से शादी करने को तैयार है. यानी अब उस का सपना सच होने वाला है. उसे उम्मीद थी कि शादी के बाद एरिन उसे अपने साथ अमेरिका ले जाएगी, जहां वह खूब डौलर कमाएगा और लंबी सी गाड़ी में घूमेगा.

एरिन को पता नहीं था कि वह बंटी से शादी कर के आग के दरिया में कूद रही है. वह भारत में रहना चाहती थी, जबकि उस का वीजा खत्म हो रहा था. उस का वीजा खत्म होता और उसे अमेरिका वापस जाना पड़ता, उस के पहले ही 11 सितंबर, 2013 को उस ने अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) के यहां कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन कर दिया. इस के बाद 12 अक्तूबर, 2013 को महावीर शर्मा, सविता जोशी, पवन जोशी की उपस्थिति में एरिन माइकल विलिंगर और बंटी शर्मा की शादी हो गई. इस तरह बंटी और एरिन पतिपत्नी बन गए. इस के बाद 15 अक्तूबर, 2013 को एरिन ने होटल ग्रीन पार्क में वैदिक रीतिरिवाज से शादी कर के अपना नाम काजल रख लिया. शादी के बाद उस ने पार्टी भी दी.

बंटी और एरिन की शादी की जानकारी अन्य लोगों को हुई तो वे चौंके. क्योंकि वे जानते थे कि बंटी ने एरिन का पैसा हड़पने के लिए उसे प्यार के जाल में फांस कर उस से शादी की है. इसलिए उन लोगों को एरिन को ले कर चिंता होने लगी, क्योंकि बंटी की फितरत के बारे में उन्हें पता था. बंटी ने एरिन से वादा किया था कि शादी के बाद वह उसे पूरा भारत घुमाएगा, लेकिन एकएक कर के दिन बीत रहे थे और बंटी कहीं जाने का नाम नहीं ले रहा था. वह सुबह आटो ले कर निकल जाता तो देर रात थकामांदा घर आता. उसे सिर्फ एक बात की चिंता थी कि एरिन के डौलर उस के हाथ कैसे लगें. उस की यह फितरत उस की बातों से भी झलकती थी.

                                                                                                                                           क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 2

इस सनसनीखेज मामले की जांच में तत्परता दिखाना बहुत जरूरी था. क्योंकि अपहर्ता जयकरन को नुकसान पहुंचा सकते थे. दोपहर होतेहोते पुलिस को जयकरन के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. उस से पता चला कि उस की अंतिम लोकेशन दिल्ली-मेरठ रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र में थी. इस के बाद मोबाइल बंद हो गया था.

जबकि जयकरन के मोबाइल से फिरौती के लिए जो काल की गई थी, वह वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर गालंद क्षेत्र से की गई थी. मोबाइल से सिर्फ एक वही काल हुई थी. इस के बाद मोबाइल बंद कर दिया गया था. इस का मतलब अपहर्ता बेहद चालाक थे. उन्होंने फिरौती के लिए न सिर्फ जयकरन के फोन का इस्तेमाल किया था, बल्कि स्थान भी बदल दिया था. संदिग्ध गतिविधियों के चलते पुलिस ने दीपक को रडार पर ले लिया.

उस के मोबाइल की जांच से पता चला कि वह मोदीनगर क्षेत्र का रहने वाला था. जांच के दौरान यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के साथ राजनगर स्थित छोटे बच्चों के रौयल किड्स प्ले स्कूल में रहता था. उस की मां चूंकि स्कूल में ही कर्मचारी थी, इसलिए इस परिवार को स्कूल में रहने के लिए जगह मिली हुई थी.

पुलिस को दीपक के 2 और नजदीकियों के ठिकाने पता चले. इन में एक था संदीप. उस के मोबाइल की लोकेशन जयकरन के मोबाइल की लोकेशन से मैच हो रही थी. संदीप के बारे में पुलिस तत्काल कोई खास जानकारी नहीं जुटा सकी. शक में मजबूती आते ही पुलिस सतर्क हो गई. अगर दीपक ही अपहर्ता था तो यह भी संभव था कि उस ने जयकरन को स्कूल स्थित घर पर ही छिपा कर रखा हो.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श कर के अविलंब स्कूल में दबिश डालने का निर्णय लिया. एसपी अजयपाल शर्मा के नेतृत्व वाली टीम रौयल किड्स स्कूल पहुंची. उस वक्त दोपहर के 3 बजे थे. स्कूल के बच्चों की छुट्टी हो चुकी थी. अचानक पुलिस को वहां आया देख स्कूल की संचालिका रिचा सूद सकते में आ गईं. पुलिस को दीपक की मां अनीता भी वहीं मिल गईं. दीपक के बारे में पूछताछ करने पर वह बुरी तरह घबरा गईं.

“दीपक कहां है?” पुलिस ने पूछा.

“घर पर.” बताते हुए उस ने स्कूल कैंपस में पीछे की तरफ इशारा कर के बताया. वहां क्वार्टर बना हुआ था. पुलिस दनदनाती हुई वहां पहुंची तो वहां पहुंचते ही वह हुआ, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. घर के अंदर से अचानक गोलियां चलनी शुरू हो गईं.

संभवत: क्वार्टर में मौजूद लोगों को अपनी घेराबंदी का अंदाजा हो गया था. इस पर पुलिसकॢमयों ने भी हथियार थाम कर पोजीशन ले ली. कुछ मिनटों तक दोनों तरफ से रुकरुक कर कई राउंड गोलियां चलीं. इस से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई और लोग एकत्र हो गए. पुलिसकॢमयों की निगाहें क्वार्टर पर जमी थीं. तभी ट्रैक सूट पहने एक युवक ने तेजी से क्वार्टर का दरवाजा खोला और बिजली जैसी फुरती से फायरिंग करता हुआ भागा. पुलिस ने उसे चेतावनी दी, “रुक जाओ, वरना गोली मार देंगे.”

युवक ने एक पल के लिए पीछे पलट कर देखा और फिर भागने लगा. इस पर पुलिस ने एक गोली उस के बाएं पैर पर दाग दी. गोली लगते ही वह नीचे गिर गया. उस के गिरते ही पुलिसकॢमयों ने उसे घेर लिया. पुलिस को उम्मीद थी कि वह दीपक होगा, लेकिन उस ने अपना नाम संदीप बताया.

“जयकरन कहां है?” जवाब में उस ने घर की तरफ इशारा कर दिया. पुलिस हथियार तान कर घर के अंदर दाखिल हुई, तो भौचक्की रह गई. पिस्टल से लैश 2 और युवक वहां मौजूद थे. लेकिन वह घबराए हुए थे. जयकरन एक कोने में बैठा थरथर कांप रहा था. उस के हाथपैर बंधे हुए थे.

पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्त में ले कर जयकरन को बंधनमुक्त कराया. अपहर्ताओं को गिरफ्तार कर के जयकरन को सकुशल बरामद करना पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी थी. मौके से गिरफ्तार किए गए दोनों युवकों में एक दीपक व दूसरा उस का छोटा भाई बिट्टू था. उन के कब्जे से पुलिस ने तीन पिस्टल, उन के मोबाइल व जयकरन का मोबाइल भी बरामद कर लिया. बेटे की बरामदगी की सूचना पर विवेक महाजन और उन की पत्नी भी मुठभेड़स्थल पर आ गए. जयकरन बहुत डरासहमा था. इस बीच पुलिस घायल युवक संदीप को अस्पताल ले गई.

पुलिस दीपक व बिट्टू को थाने ले आई. पुलिस ने डरीसहमी स्कूल संचालिका रिचा सूद, दीपक की मां अनीता और उस के सब से छोटे भाई आयुष को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार युवकों व घायल संदीप से विस्तृत पूछताछ की गई तो राह से भटके युवाओं द्वारा रचित अपराध की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

दीपक का प्लेसमेंट एजेंसी का कमीशन पर आधारित काम था. उस के परिवार में मां अनीता के अलावा उस के छोटे भाई बिट्टू व आयुष थे. दीपक के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी. अनीता मेहनती और हिम्मती महिला थीं. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए छोटीमोटी नौकरियां कर के बेटों को इस उम्मीद में पढ़ायालिखाया कि वे जिम्मेदारियां उठा कर घर को संभाल लेंगे. लेकिन इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है.

अनीता ने आॢथक तंगियां भी देखी थीं और जमाने की कठोरता भी. वह मोदीनगर की भूपेंद्र कालोनी में रहती थीं. बाद में उन्होंने रौयल किड्स स्कूल में नौकरी कर ली थी. स्कूल परिसर में ही बने क्वार्टर में उन के रहने का भी इंतजाम हो गया तो वह तीनों बेटों के साथ वहां चली आईं. वहां आ कर दीपक ने एक कंपनी में कमीशन के आधार पर काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह काम उसे छोटा लगता था.