दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बेवर के गांव बर्रा के रहने वाले मुन्नालाल कठेरिया का दांपत्य  जीवन गुस्से की वजह से कभी भी  सुखमय नहीं रहा. गुस्से की ही वजह से आज वह अपनी तीसरी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में है. उस की पहली पत्नी की मौत हो गई थी तो उस के गुस्सैल स्वभाव से आजिज आ कर दूसरी पत्नी ने उस के साथ रहने से मना कर दिया था. काफी कोशिश कर के उस के भाई नरेश ने उस की तीसरी शादी औरैया के रमपुरा कटरा के रहने वाले डबली की बेटी सगुना से करा कर एक बार फिर उस की गृहस्थी आबाद करा दी थी.

डबली के 2 बेटे, उमेश और सतीश के अलावा एक बेटी सगुना थी. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे थे कि उसे अपनी एकलौती बेटी का ब्याह मुन्नालाल जैसे आदमी से करना पड़ा था, जिस की 2 शादियां पहले ही हो चुकी थीं. मांबाप की मजबूरी की वजह से सगुना कुर्बान हो गई थी. लेकिन मुन्नालाल से उसे कभी वह जुड़ाव नहीं हो सका था, जो पतिपत्नी में होता है. इस की वजह थी मुन्नालाल का गुस्सैल स्वभाव और उम्र में अंतर.

सगुना गरीब बाप की बेटी थी, इसलिए उसे पता था कि ब्याह के बाद अब उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका है. न चाहते हुए भी वह मुन्नालाल से जुड़ने की कोशिश करने लगी थी.  समय के साथ मुन्नालाल सगुना के 2 बच्चों अलकेश और अतुल का बाप बन गया. इस के बावजूद उस के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. बातबात में भड़क उठने वाले मुन्नालाल को गुस्सा चढ़ता तो उसे अच्छेबुरे का खयाल नहीं रहता.

ऐसे में सगुना का मन आहत होता रहता, क्योंकि मुन्नालाल गुस्से में गालीगलौज तो करता ही था, मारपीट करने में भी पीछे नहीं रहता था. सगुना ने जब इस बात की शिकायत मांबाप से की तो मांबाप ने ही नहीं, भाइयों ने भी साफसाफ कह दिया था कि अब उस का घर वही है और उसे अपनी तरह से संभालना है. हां, भाइयों ने इस बात का आश्वासन जरूर दिया था कि वे मुन्नालाल को समझाएंगे. इन बातों से साफ हो गया था कि चाहे जो भी हो, उसे हर हाल में मुन्नालाल के साथ ही रहना था.

चारों ओर से निराश सगुना मुन्नालाल में मन लगाने की कोशिश कर रही थी कि तभी अचानक एक दिन मायके से लौटते समय बेवर बसस्टैंड पर उस की मुलाकात गांव के ही रहने वाले बाबा से हो गई. गांव के रिश्ते से वह उस का देवर लगता था. वह बच्चों को ले कर टैंपो पकड़ने के लिए सड़क की ओर बढ़ रही थी, तभी बाबा ने उस के पास आ कर कहा था, ‘‘कहां से आ रही हो भाभी?’’

‘‘मां के यहां गई थी, वहीं से आ रही हूं.’’

‘‘मैं भी घर चल रहा हूं.’’ सगुना का बैग उठाते हुए बाबा ने कहा, ‘‘लाइए, अनुज को मुझे दे दीजिए.’’

बाबा ने सड़क पर आ कर टैंपो रुकवाया और सगुना के बगल में बैठ कर एक बच्चा उस की गोद में बैठा दिया और दूसरा अपनी गोद में बैठा लिया. टैंपो चला तो बाबा ने पूछा, ‘‘भाभी, आप मुन्नाभाई के साथ कैसे रह लेती हो?’’

‘‘मजबूरी है, क्या कर सकती हूं. इस के अलावा कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’ सगुना ने उदास हो कर कहा.

‘‘भाभी, आप जवान भी हैं और खूबसूरत भी. मुन्ना भाई जैसे आदमी को ले कर क्या बैठी हैं.’’

‘‘भैया, 2 बच्चों की मां को कौन पूछेगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो आप बहुत अच्छी लगती हैं.’’ बाबा ने कहा तो सगुना हैरानी से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं तो अच्छी लगती हैं. इस में मतलब की क्या बात?’’ बाबा ने कहा.

सगुना बेवकूफ नहीं थी कि अच्छी लगने का मतलब न समझती. लेकिन वह 2 बच्चों की मां थी तो बाबा कुंवारा था. हालांकि दोनों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. लेकिन एकाएक उस पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता था. फिर भी सगुना बाबा के बारे में सोचने को मजबूर हो गई थी.

बाबा गांव के ही मुलायम सिंह का बेटा था. वह दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. महीने-2 महीने पर गांव आता रहता था. शहर में रहने की वजह से वह बनठन कर रहता था, इसलिए मुन्नालाल जैसे लोग उसे शोहदा कहते थे. यही वजह थी कि एक दिन जब सगुना को बाबा से बात करते मुन्नालाल ने देख लिया तो बोला, ‘‘तुझे बात करने के लिए यही शोहदा मिला था. ऐसे लोगों को मुंह लगाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दिल्ली में कमाता है, इसलिए बनठन कर रहता है. मुझे तो उस में शोहदे वाले कोई लक्षण नहीं दिखाई देते.’’ सगुना ने कहा.

‘‘तू मुझ से ज्यादा जानती है क्या. मुझे पता है, वह क्या करता है और कैसे रहता है.’’

मुन्नालाल ने पत्नी को झिड़का तो सगुना चुप हो गई. वह जानती थी इस से बहस करना ठीक नहीं है. इसे कब गुस्सा आ जाए, पता नहीं. गुस्सा आ गया तो वह मारपीट भी कर सकता था. इसलिए बात बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो मोबाइल फोन लाने गए थे. उस का क्या हुआ?’’

‘‘ला दूंगा भई मोबाइल फोन. मैं भी चाहता हूं कि हमारे पास भी मोबाइल हो, लेकिन अभी पैसे नहीं हैं. कुछ दिन और रुको. पैसों की व्यवस्था कर के खरीद दूंगा.’’

सगुना को लगता था कि अगर उस के पास भी मोबाइल फोन हो तो घर बैठे वह मांबाप और भाइयों का हालचाल ले लेती. आज सब के पास तो मोबाइल है. मुन्नालाल जिस घर में रहता था, उसी के आधे हिस्से में उस का भाई नरेश पत्नी रामकली तथा 5 बच्चों के साथ रहता था. सगुना को जब कभी मांबाप का हालचाल लेना होता था, जेठ के घर जा कर फोन कर लेती थी.

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काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 3

यादव सिंह के खिलाफ सरकार ने तत्काल कोई काररवाई नहीं की थी. इस पर राजनीतिक दलों ने घेराबंदी शुरू की. जब सरकार पर सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ किया कि आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों की जांच रिपोर्ट आने के बाद सरकार यादव सिंह के खिलाफ कोई काररवाई करेगी. आखिर 8 दिसंबर को यादव सिंह समेत 3 लोगों को सस्पैंड कर दिया गया. यादव सिंह यह सोच कर बेफिक्र था कि इस बार भी वह पुराने फार्मूले अपना कर बच जाएगा.

लेकिन यादव सिंह का समय अनुकूल नहीं था. फिर भी उसे अपनी पहुंच और रसूख पर पूरा भरोसा था. उसे पूरी उम्मीद थी कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. लेकिन यादव सिंह के सितारे गर्दिश में थे. शायद उस का बिगड़ा खेल बन भी जाता, लेकिन सी बीच उत्तर प्रदेश के चर्चित सीनियर आईपीएस अमिताभ ठाकुर की पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ता डा. नूतन ठाकुर ने 11 दिसंबर को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी.

उन्होंने तर्क दिया कि यादव सिंह के यहां आयकर छापों में करोड़ों की अवैध संपत्ति के सुबूत मिले हैं. इसलिए उस के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए. अदालत ने 16 दिसंबर को सरकार से जवाब तलब किया तो सरकार ने इसी बीच 10 फरवरी को यादव सिंह के खिलाफ जांच करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस अमरनाथ वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया.

बाद में हुई सुनवाई में याची ने अदालत में तर्क दिया कि राज्य सरकार ने काररवाई करने के बजाय न्यायिक आयोग बना दिया. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि सूबे में पूर्व और मौजूदा सरकारों में ऊंची पहुंच रखने वाले यादव सिंह के मामले को रफादफा किया जा सके. आरोप लगाया गया कि सन 2002 से 2014 के बीच यादव सिंह करीब 2 हजार करोड़ की परियोजनाओं से ने बड़ी तादाद में अवैध संपत्ति अर्जित की. याची सीधे तौर पर सीबीआई जांच की मांग की.

इस पर कोर्ट ने एसआईटी से भी जानकारियां हासिल कीं. कई सुनवाइयों के बाद आखिर 16 जुलाई, 2015 की हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच के मुख्य न्यायमूर्ति डा. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति नारायण शुक्ल की खंडपीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. हाईकोर्ट ने कहा कि ‘हमारे मतानुसार इस मामले के हालात सीबीआई के सुपुर्द करने लायक हैं. क्योंकि इस में भ्रष्टचार का मामला बनता है.’

अदालत के हस्तक्षेप के बाद यादव सिंह की बचाव की तैयारियां धरी की धरी रह गई. उस के लिए यह बड़ी मुसीबत थी. इस बुरे वक्त में उस के नातेरिश्तेदारों से ले कर बड़े घरानों और नेताओं ने भी पल्ला झाड़ लिया था. वजह यह थी कि कोई भी जांच के लपेटे में नहीं आना चाहता था.

इस दौरान वह खुद भी सामने नहीं आया. आखिर हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामले में 30 जुलाई, 2015 को यादव सिंह व उस के साथियों के खिलाफ धारा 120बी, 409, 420, 466, 467, 469, 471 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. इस पूरे प्रकरण की जांच का जिम्मा एसटीएफ व एंटी करैप्शन विंग के सुपुर्द कर दिया गया. सीबीआई जानती थी कि यादव सिंह बड़ा खिलाड़ी है. इसलिए वह उसे बचने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी.

4 अगस्त, 2015 को सीबीआई की टीमों ने एक साथ दिल्ली, आगरा, नोएडा व फिरोजाबाद समेत 12 स्थानों पर छापेमारी की और यादव सिंह की 38 प्रौपर्टी का पता लगाने के साथ ही महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद कर लिए. सीबीआई की 14 सदस्यीय टीम ने यादव सिंह की कोठी में घंटों जांचपड़ताल की. आयकर विभाग ने भी सबूत एकत्र किए. अगले कुछ महीनों में जांच में जुटी सीबीआई ने धीरेधीरे टेंडर व जमीनों के आवंटन से जुड़ी 3 हजार फाइलों का जखीरा एकत्र कर लिया.

सीबीआई ने इस दौरान कई बार नोएडा अथौरिटी जा कर जांच की और टेंडर से जुड़ी मूल पत्रावलियों को जब्त किया. यादव सिंह ने सन 2002 से ले कर 1 दिसंबर, 2014 तक विभिन्न कार्यों के हजारों करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए थे. सन 2014 में तो महज 8 दिनों के भीतर उस ने 950 करोड़ रुपए के ठेके बांट दिए थे. यह भी साफ हो गया कि यादव सिंह के पास आय से अधिक संपत्ति है.

सीबीआई ने इस की भी जांच की कि 950 करोड़ के बड़े घोटाले में आखिर यादव सिंह बच कैसे गया? इस की नए सिरे से जांच हुई. सीबीआई ने बिल्डरों के ठिकानों पर छापेमारी की और दस्तावेज बरामद किए. इस में खुलासा हुआ कि यादव सिंह ने 5 फीसदी कमीशन के बदले टेंडर बांटे थे. 17 दिसंबर को सीबीआई ने नोएडा के सहायक परियोजना अभियंता रामेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. उस से कड़ी पूछताछ के बाद सुबूत जुटाए और उसे जेल भेज दिया गया.

इस बीच अथौरिटी से पता किया गया कि यादव सिंह को तैनाती के बाद से कुल कितना वेतन मिला. पता चला कि सैकड़ों करोड़ की प्रौपर्टी जुटाने वाले यादव सिंह को सन 1980 से निलंबन तक की अवधि में वेतन के रूप में 70 लाख रुपए दिए गए थे. सैकड़ों पत्रावलियों और छापेमारी में बरामद दस्तावेजों की जांच में भ्रष्टïाचार के पुख्ता सबूत मिले. जांच टीम ने सीबीआई के डायरेक्टर अनिल कुमार सिन्हा से विचारविमर्श के बाद यादव सिंह को गिरफ्तार करने का फैसला किया.

आखिरकार सीबीआई ने 3 फरवरी को यादव सिंह को अपने हैड क्वार्टर बुला कर गिरफ्तार कर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर सीबीआई ने यादव सिंह को पुन: अदालत में पेश किया और 5 दिनों का रिमांड और ले लिया. यादव सिंह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. फलस्वरूप सीबीआई को उस की रिमांड अवधि बढ़वानी पड़ी. 17 फरवरी को उसे पुन: अदालत पर पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. फिलहाल वह जेल में है.

कथा जांच एजेंसियों की कार्यवाई व जनचर्चाओं पर आधारित

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 2

अखिलेश सरकार आई तो यादव सिंह पर शिकंजा कसने की तैयारी की गई. 950 करोड़ के टेंडर घोटाले में अथौरिटी के चीफ इंजीनियर के खिलाफ 13 जून, 2012 को थाना सैक्टर-39 में विभिनन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस बार यादव सिंह को सस्पैंड कर दिया गया.

विरोधी खुश हुए कि यादव सिंह अब लपेटे में आ जाएगा, क्योंकि मामला काफी बड़ा था. लेकिन यह विरोधियों की सोच थी. उन की खुशफहमी को तब झटका लगा, जब यादव सिंह ने अपने दिमागी गणित का फार्मूला मौजूदा सरकार में भी चला दिया. सस्पैंड होने के बावजूद अथौरिटी में यादव सिंह का हस्तक्षेप बराबर बना रहा. बड़े आवंटनों में यादव सिंह की सहमति ली जाती थी. इस रसूख का नतीजा यह निकला कि नोएडा पुलिस ने यादव सिंह को इस मामले में क्लिीनचिट दे दी और अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.

फिर कभी इस घोटाले पर सवाल खड़ा न हो, इसलिए इस मामले की सीबीसीआईडी जांच भी हुई, लेकिन यादव सिंह इस में भी बच गया. कुछ महीनों की गर्दिशों के बाद यादव सिंह को न केवल बहाल कर दिया गया, बल्कि प्रमोशन भी मिला. उसे यमुना एक्सप्रेस वे अथौरिटी का चीफ इंजीनियर बना दिया गया.

एक बार फिर यादव सिंह को पंख लगे. वह अपने रसूख को बरकरार रख कर मजे से नौकरी करने लगा. इस के बाद एक तरह से उस की ताकत और भी बढ़ गई थी. अब उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. यादव सिंह औडी जैसी महंगी लग्जरी गाडिय़ा रखता था. लेकिन वह अपनी कारों पर सरकारी ड्राइवर नहीं रखता था.

यादव सिंह के रसूख का आलम यह था कि उस से मिलने के लिए लोग तरसते थे. वह कहीं किसी फंक्शन में जाता था तो बड़े अफसर और नेता उस के इर्दगिर्द मंडराते नजर आते थे. यादव सिंह का व्यवहार आला दर्जे के अधिकारी जैसा होता था. फंक्शन किसी का भी हो, लेकिन सारी रौनक यादव सिंह पर आ कर सिमट जाती थी. औफिस आने वाले बड़े बिल्डर और ठेकेदार सब से पहले यादव सिंह को खुश करते थे. अथौरिटी में वही होता था, जो यादव सिंह चाहता था. उस की मर्जी के बिना न कोई ठेका दे सकता था और न ही कोई छोटेबड़े आवंटन हो सकते थे. उस की खुशी और अनुमति दोनों के ही मायने होते थे. सरकारी लोगों को वह अपनी निजी जिंदगी से दूर ही रखता था.

यादव सिंह की दौलत पर किसी को कोई शक नहीं था, लेकिन उस की दौलत का दायरा कितना था, यह कोई नहीं जानता था. इस की भी वजह थी, क्योंकि मोटी डील वह अपने घर और होटलों में करता था. किसी की आर्थिक हैसियत का अंदाजा 2 तरीकों से ही होता है. पहला वह खुद जम कर उस का प्रदर्शन करे या फिर कोई दूसरा मय तथ्यों के उस का खुलासा कर दे. यादव सिंह के मामले में वक्त के साथ दूसरा तरीका अपनाया गया.

वह अकूत दौलत का मालिक है, यह बात 17 नवंबर, 2014 को तब पता चली, जब आयकर महानिदेशक (जांच) कृष्णा सैनी के निर्देश पर आयकर निदेशक (जांच) अशोक कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में आयकर विभाग की कई टीमों ने उस की नोएडा वाली कोठी सहित उस के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. इस से उन लोगों की गलतफहमी तो दूर हुई ही, जो उन्हें छोटामोटा अमीर समझते थे, आयकर विभाग भी बुरी तरह चौंक गया.

2 दिनों तक चली इस छापेमारी में यादव सिंह की करोड़ों की संपत्ति पकड़ में आई. प्रौपर्टी के कागजात व अन्य दस्तावेज कई सूटकेसों में भरे हुए थे. कोठी के बाहर खड़ी सफेद रंग की औडी कार की डिग्गी से ही 10 करोड़ रुपए नगद बरामद हुए. घर में रखी तिजोरियों और अलमारियों को खंगालने के साथ ही आयकर विभाग ने उन के कई बैंकों के लौकर भी खंगाले और वहां से संपत्तियों के पेपर्स के साथसाथ करीब 2 करोड़ रुपए के आभूषण बरामद किए. इन आभूषणों में 9 लखा हार, हीरे के कई सैट, हीरे जड़ाऊ कंगन और गहनों के गिफ्ट आदि थे. घर में ही गहनों का मिनी शोरूम बना था. उस के परिवार और नजदीकियों के नाम करोड़ों की संपत्तियां थीं.

यह बड़ी काररवाई थी. इस से यादव सिंह छटपटा गया. इस के चलते ही यह राज भी खुल गया कि यादव सिंह ने अपनी पत्नी को तलाक दे रखा था. इस की वजह भी पता चल गई. दरअसल यादव सिंह ने पत्नी व बच्चों के नाम पर कारोबारी घरानों के साथ मिल कर 30 से ज्यादा कपंनियां खड़ी कर दी थीं. इन कंपनियों में कुसुम गारमेंटï्स प्रा.लि., न्यू एरा सौफ्टवेयर, चाहत टैक्नौलोजी प्रा.लि., केएस अल्ट्राटैक प्रा.लि., क्विक इन्फौटैक सौल्यूशन प्रा.लि. व हिचकी क्रियेशंस प्रा.लि. प्रमुख थीं.

खास बात यह थी कि महज कुछ हजार से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही दिनों में करोड़ों के टर्नओवर तक पहुंच गई थीं. बताते हैं कि यादव सिंह ब्लैकमनी को कंपनियों में लगा कर उसे व्हाइट मनी बनाना चाहता था. वैसे यादव सिंह खुद इन कंपनियों के मालिक नहीं था. इन कंपनियों को उस ने सन 2006 से ही खड़ा करना शुरू कर दिया.

एक तरफ की काली कमाई दूसरी तरफ जा रही थी. कंपनियों में नोट गिनने की मशीनें थीं. करोड़ों रुपयों की शिफ्टिंग में निजी सुरक्षाकर्मियों का सहारा लिया जाता था. बात यहीं खत्म नहीं हुई. यादव सिंह के यहां से छापे में मिले आभूषणों के आंकलन और परख के लिए सर्राफों को बुलाया गया. आभूषणों को देख कर सर्राफों को भी पसीने आ गए, क्योंकि सभी जेवरात न केवल महंगे थे, बल्कि सौ फीसदी खरे थे.

यादव सिंह भ्रष्ष्टचार का मगरमच्छ बन कर सामने आया था. अपने पद पर रहते हुए उस ने अपने नाते रिश्तेदारों को धड़ाधड़ महंगे प्लाट आवंटित किए थे. आयकर विभाग ने यादव सिंह का पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था. इस सब के बावजूद यादव सिंह बेफिक्र था. इस की वजह थी उन की सियासी पकड़ और पहुंच. चर्चा होने लगी थी कि यादव सिंह आयकर विभाग को टैक्स चुका कर पाकसाफ बच जाएगा. क्योंकि आयकर विभाग को बरामद संपत्तियों, नगदी पर टैक्स से मतलब होता है. बहरहाल, आयकर विभाग ने अपनी जांच जारी रखी.

इसी जांच में पता चला कि यादव सिंह के परिवार के नाम जो कंपनियां थीं, उन का लेनदेन विदेशों में भी था. प्रवर्तन निदेशालय को इस से अवगत करा दिया गया. इसी बीच यादव सिंह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भ्रष्टïाचार के मामलों को ले कर बनाए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) के रडार पर वह आ गया. एसआईटी ने इस मामले को संज्ञान में ले कर काररवाई शुरू कर दी.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई

अमीर बनने की चाहत