काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 1

देश की राजधानी दिल्ली के बिलकुल पास स्थित उद्योगों व कौरपोरेट जगत में विश्वस्तरीय पहचान बना चुके नोएडा में छोटेबड़े रईसों की कोई कमी नहीं है. यहां के विभिन्न सैक्टरों में यूं तो एक से बढ़ कर एक कोठिया बनी हैं, लेकिन सैक्टर-51 स्थित एक बंगलेनुमा कोठी नंबर ए-10 पिछले कुछ समय से खासी चर्चाओं में थी. यह कोठी खास महज इसलिए नहीं थी कि उस की 3 मंजिला बनावट जुदा थी, बल्कि इसलिए कि वह उत्तर प्रदेश सरकार के एक ऐसे अफसर की कोठी थी, जिसे सारा देश उस के कारनामों के लिए जान गया था.

आसपास रहने वाले लोग तो चर्चा करते ही थे, उधर से गुजरने वाले लोग भी इस कोठी को अलग नजरिए से देखते थे. पहले वहां पर लालनीली बत्ती वाली गाडिय़ों का खूब आवागमन रहता था. इस के बावजूद कम लोग ही कोठी के अंदर जा पाते थे. तगड़ी कदकाठी वाला कोठी का मालिक पूरे रुआब से रहता था. वह आसपास के लोगों से बात तक नहीं करता था.

लेकिन पिछले चंद महीनों में इस कोठी की रौनक जाती रही. लग्जरी गाडिय़ां तो दूर गिनेचुने लोग ही वहां आतेजाते थे. लोगों का ध्यान भी इस कोठी की तरफ से हटना शुरू हो गया था, लेकिन 3 फरवरी, 2016 को न सिर्फ कोठी, बल्कि उस का मालिक भी एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. इस की वजह यह थी कि कोठी के मालिक को देश की सब से बड़ी जांच एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वैस्टीगेशन (सीबीआई) ने गिरफ्तार कर लिया था.

गिरफ्तार किए गए शख्स का नाम था यादव सिंह. नोएडा/ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रैसवे अथौरिटी का सस्पैंड चीफ इंजीनियर. वह सरकारी तंत्र का इतना बड़ा भ्रष्ट अफसर था कि उस के कारनामों ने बड़ेबड़े घपलों को भी मात दे दी थी. उस का रसूख और हैसियत ऐसी थी कि आला दर्जे के अधिकारी भी उस से एक मिनट की मुलाकात के लिए तरसते थे.

क्या नेता, क्या अधिकारी सब उस के आगेपीछे घूमते थे. यूं तो वह आरोपों और जांच के दायरे में कई बार घिरा, लेकिन उस की पकड़ इतनी मजबूत थी कि कभी उस का बाल भी बांका नहीं हो सका. वह जिसे चाहता था, अपनी अंगुलियों पर नचा देता था. लेकिन वक्त ने उस के रसूख को भी लील लिया.

सीबीआई की एंटीकरैप्शन व एसटीएफ विंग ने यादव सिंह को पूछताछ के लिए अपने लोधी रोड, दिल्ली स्थित हैड क्वार्टर बुलवाया, जहां पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. पहले से ही सुर्खियों में रहे यादव सिंह के खिलाफ यह बहुत बड़ी काररवाई थी.

अगले दिन सीबीआई टीम यादव को ले कर गाजियाबाद स्थित सीबीआई कोर्ट पहुंची तो वहां पहले से मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ थी. यादव सिंह का सीबीआई की गिरफ्त में होना ही बड़ी खबर थी. यादव सिंह सीबीआई की सफेद रंग की टवेरा कार से नीचे उतरा तो लोग उसे सही ढंग से देख पाए. वह काली पैंट, व्हाइट जैकेट और नीली कैप लगाए हुए था. वक्त की चाल का शिकार हुए यादव सिंह की हालत हारे हुए जुआरी जैसी थी.

गहमागहमी के बीच सीबीआई ने उसे विशेष जज जे. श्रीदेवी की अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 10 दिनों का रिमांड मांगा. प्राथमिक चार्जशीट के अध्ययन और कुछ देर चली सुनवाई के बाद अदालत ने उसे 6 दिनों के रिमांड पर सीबीआई को सौंप दिया. रिमांड स्वीकृत होते ही टीम उसे ले कर दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

काली कमाई से हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा करने वाला यादव सिंह सीबीआई के शिकंजे में कैसे आया? एक मामूली इंजीनियर अरबपति कैसे बन गया? इस के पीछे भी एक कहानी थी.

यादव सिंह मूलत: आगरा का रहने वाला था. मत्त्वकांक्षी यादव सिंह की परवरिश गरीबी में हुई थी. उस का ख्वाब था कि वह बड़ा आदमी बने. इतना बड़ा कि गरीबी उस के आसपास भी न मंडरा सके. उस ने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. इस के बाद सन 1980 में उस की नौकरी नोएडा आथौरिटी में लग गई.

इंसान जितना महत्त्वाकांक्षी होता है, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उस का दिमाग उतना ही तेज चलता है. यादव सिंह के कई साल नौकरी में बीत गए. इस बीच उस ने न सिर्फ अपने काम, बल्कि अथौरिटी के पूरे संचालन को अच्छी तरह से समझ लिया. सरकारी सिस्टम की उन बारीकियों को उस ने बारीकी से समझा, जहां अतिरिक्त आय के स्रोत थे.

बात सिर्फ इतनी नहीं थी. उस ने यह भी जान लिया था कि सरकारी तंत्र राजनीतिज्ञों के इशारों के गुलाम होते हैं. नौकरशाह का रसूख ऊपर तक हो तो वह खुल कर खेल सकता है. यादव सिंह इसी राह पर चला और छुटभैये नेताओं से शुरू हुआ उस का सफर एक दिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सत्ता के गलियारों तक जा पहुंचा.

इस का उसे फायदा तब मिला जब सन 1995 में एक दर्जन से ज्यादा इंजीनियरों को नजरअंदाज कर के उसे प्रोजैक्ट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया गया. यादव सिंह के पास इस पद के हिसाब से डिग्री नहीं थी, लेकिन राजनीतिज्ञों के संरक्षण की वजह से उसे डिग्री हासिल करने के लिए 3 साल का समय दिया गया. बिलकुल उसी तरह जैसे किसी को लाइसेंस देने से पहले ही बंदूक दे दी जाए. इस के बाद यादव सिंह खुल कर खेला. बाद में उस ने डिग्री भी हासिल कर ली.

तनख्वाह भले ही सीमित थी, पर यादव सिंह के ठाठबाट देखते ही बनते थे. उस की किस्मत तब और भी जोरों से जागी, जब सन 2002 में उसे चीफ मैंटीनेंश इंजीनियर के पद पर तैनात किया गया. अथौरिटी में यह बेहद महत्वपूर्ण और बड़ा पद था. अगले 9 सालों में यादव सिंह ने अपने नेटवर्क को भी मजबूत बनाया और मनमानी दौलत भी एकत्र की.

आलम यह था कि यादव सिंह ने नोएडा के ही सैक्टर-51 और सैक्टर-24 में 2 आलीशान कोठियां खड़ी कर ली थीं. इस के अलावा उस ने अपने परिवार के लिए आगरा में भी देवरी रोड पर बड़ी सी भव्य कोठी बनवा दी थी. इस कोठी में उस के बड़े भाई कपूर सिंह और उन का परिवार रहता था. यह आर्थिक हैसियत सिर्फ प्रत्यक्ष थी, जबकि वास्तव में हकीकत और भी बड़ी थी.

वक्त यादव सिंह का साथ दे रहा था. वह जैसा चाहता था, ठीक वैसा ही होता था. उन दिनों प्रदेश में बसपा की मायावती सरकार थी. यादव सिंह सरकार में मजबूत पकड़ बना चुका था. वह मुख्यमंत्री मायावती तक अपनी पहुंच बताता था. अथौरिटी में चीफ मैंटीनेंस इंजीनियर के और भी पद थे, पर उस ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर के सभी पद न केवल खत्म करा दिए, बल्कि अपने लिए इंजीनियर इन चीफ का पद सृजित करा लिया.

यादव सिंह के पास दौलत, ताकत और पहुंच सभी कुछ था. आला अधिकारियों से ले कर राजनैतिक आकाओं की उस पर नजरें इनायत थीं. यादव सिंह को किसी ने कहा कि अगर वह तिलक लगाए और सोना पहने तो समृद्धि और भी बढ़ जाएगी. उस ने ऐसा ही किया. उस के माथे पर तिलक के साथ गले में सोने की चेन और हाथों की अंगुलियों में हीरे जडि़त सोने की कई अंगूठियां दमकने लगीं. सिस्टम पर पकड़ होने की वजह से बसपा सरकार में यादव सिंह की तूती बोलती थी.

विरोधी सहकर्मियों ने उसे हटाने के लिए एक बार प्लानिंग भी की, लेकिन यादव सिंह सब पर भारी पड़ा और अपनी ताकत से विरोधियों को आईना दिखा दिया. वे लोग पद पर होते हुए भी काम के लिए तरस गए. यादव सिंह के परिवार में उस की पत्नी कुसुमलता के अलावा बेटा सन्नी और 2 बेटियां थीं करुणा और गरिमा.

सन 2011 से यादव सिंह के खिलाफ घोटाले की आवाज उठनी शुरू हुई. बाद में नवंबर महीने में बीजेपी सांसद किरीट सोमैया ने यादव सिंह के खिलाफ 950 करोड़ का घोटाला उजागर किया. यह बात अलग थी कि यादव सिंह पर तत्काल इस का कोई असर नहीं हुआ. यादव सिंह का सफर बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार से शुरू हो कर सन 2012 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार तक आ गया था.

अपमान के बदले : तिहरा हत्याकांड

रामप्रकाश जैसे ही घर के पीछे की ओर गया, पीछे से रामपाल ने आ कर बड़े भाई को अकेले में पा कर लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “भइया, आज मैं आप से बड़े भइया राजकुमार के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं.”

“अंबर (रामपाल को घर में सभी अंबर कहते थे) तुम्हारे और बड़े भइया के बीच हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है, अब क्या हो गया?” रामप्रकाश ने पलट कर जवाब में कहा.

“पहले तो वह कह रहे थे कि मेरी शादी में सारा खर्च वह करेंगे. लेकिन गहने बनवाने लगे तो 40 हजार रुपए मुझ से ले लिए. उस समय मैं ने ङ्क्षपटू से 70 हजार रुपए ले कर उस में से 40 हजार रुपए उन्हें दिए थे. अब वह अपने पैसे मांग रहा है. मैं ने भइया से कुछ रुपए देने को कहा तो उन्होंने मुझे गाली दे कर भगा दिया.”

“अंबर, तुम भइया का स्वभाव अच्छी तरह जानते हो. उन की आदत ही ऐसी है. इस में नाराज होने की कोई बात नहीं है.”

रामप्रकाश ने छोटे भाई रामपाल को समझाने के उद्देश्य से कह.

लेकिन रामपाल समझने के बजाय रामप्रकाश को भी बड़े भाई राजकुमार के खिलाफ भडक़ाते हुए बोला, “तुम भइया को जितना सीधा समझते हो, वह उतने सीधे हैं नहीं. तुम तो उन की ओर से आंखें मूंदे हुए हो, इसलिए उन की बुराई तुम्हें दिखाई नहीं देती. गांव वाले क्या कहते हैं, तुम्हें पता है? पूरे गांव में चर्चा है कि रंजना भाभी और बड़े भइया के बीच गलत संबंध है.”

रामपाल का इतना कहना था कि रामप्रकाश को गुस्सा आ गया. वह थोड़ी ऊंची आवाज में बोला, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है अंबर, तुम झूठ कह रहे हो. भइया ऐसा काम नहीं कर सकते. उन पर इस तरह का घिनौना आरोप लगा कर तुम मेरी नजरों में गिर गए.”

“अगर तुम सच देखना चाहते हो तो जब बड़े भइया तुम्हें और आशा भाभी को किसी रिश्तेदार के यहां भेजें तो रात में अचानक आ कर तुम देख लेना, बड़े भइया और भाभी रंजना एक साथ मिलेंगी.” रामपाल ने ने भी थोड़ी ऊंची आवाज में कहा. छोटे भाई उस की इस बात से नाराज हो कर पैर पटकता हुआ रामप्रकाश चला गया. उस के पीछेपीछे रामपाल भी चला गया.

रामपाल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना माल के गांव थावर में अपने बड़े भाइयों राजकुमार और रामप्रकाश के साथ रहता था. राजकुमार मूलरूप से लखनऊ के ही थाना मलिहाबाद के गांव चौसझा का रहने वाला था. 20 साल पहले वह अपना गांव छोड़ कर थावर आ गया था और यहीं रहने लगा था. यहां वह अपनी क्लिनिक चलाता था. उस ने बीयूएमएस की डिग्री ले रखी थी.

उस की क्लिनिक ठीकठाक चलने लगी थी तो उस ने अपने दोनों भाइयों रामप्रकाश और रामपाल को भी यहीं बुला लिया था. इस तरह तीनों भाई एक साथ रहने लगे थे. राजकुमार ही पूरे परिवार की देखभाल करता था. उस के दोनों ही भाई उम्र में उस से काफी छोटे थे.

राजकुमार की शादी आशा के साथ हुई थी. शादी के कई सालों के बाद भी जब उसे खुद की कोई संतान नहीं हुई तो उस ने सन 2006 में अपनी साली रंजना की शादी अपने छोटे भाई रामप्रकाश से करा दी थी. शादी के बाद रंजना को 2 बेटे, 6 साल का तुषार, 3 साल का ईशान और 4 माह की एक बेटी अनिष्का थी. रंजना ब्यूटीपार्लर का कोर्स किए हुए थी, इसलिए राजकुमार ने उसे घर के ही एक कमरे में ब्यूटीपौर्लर खुलवा दिया था.

कुछ दिनों पहले राजकुमार ने अपने सब से छोटे भाई रामपाल की शादी कराई थी. उस की शादी में उन्होंने करीब एक लाख रुपए के गहने बनवाए थे. शादी के समय राजकुमार ने रामपाल से कहा था कि शादी के खर्च में वह भी कुछ मदद करे. तब राजपाल ने इधरउधर से पैसों का जुगाड़ कर के राजकुमार को दिए थे.

न जाने क्यों राजकुमार और उस की पत्नी आशा रामपाल को पसंद नहीं करते थे. रामपाल को इस बात का अहसास भी था. भाईभाभी के इस व्यवहार से उसे लगता था कि भइया मंझले भाई रामप्रकाश और उस की पत्नी रंजना को ही अपनी सारी जायदाद देंगे. रामपाल में कुछ बुरी आदतें थीं, जिस की वजह से उस ने कई लोगों से कर्ज ले रखा था. कर्ज चुकाने के लिए वह जब भी बड़े भाई राजकुमार से पैसे मांगता, वह उसे बेइज्जत कर के भगा देता था.

रामपाल ने मंझले भाई रामप्रकाश के मन में शंका का बीज डाल दिया था. एक दिन रामप्रकाश की रिश्तेदारी में शादी थी. राजकुमार ने अपनी पत्नी आशा से कहा कि वह रामप्रकाश और दोनों बेटों को ले कर शादी में चली जाए. आशा ने वैसा ही किया. रामप्रकाश ने अपनी पत्नी रंजना से भी शादी में चलने को कहा तो उस ने सुबह ब्यूटीपौर्लर खोलने का बहाना कर के शादी में जाने से मना कर दिया.

इस बात से रामप्रकाश की शंका यकीन में बदल गई. उसे रामपाल की बात सच लगी. वह भाभी आशा और दोनों बेटों को ले कर शादी में चला तो गया, लेकिन सभी को वहां छोड़ कर रात में चुपके से घर आ गया. घर पहुंच कर उस ने पत्नी रंजना और बड़े भाई राजकुमार को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. इस के बाद उसे पत्नी रंजना और बड़े भाई से नफरत हो गई.

इस के बाद वह बड़े भाई से बदला लेने के लिए छोटे भाई रामपाल से मिल गया. अपने अपमान का बदला लेने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े भाई की हत्या की योजना बना डाली. 5 नवंबर की रात करीब ढाई बजे रामपाल मोटरसाइकिल से थावर पहुंचा. योजना के अनुसार, रामप्रकाश ने घर का दरवाजा पहले से ही खोल रखा था. रामपाल घर में घुसा और क्लीनिक में हंसिया और बांका ले कर छिप गया.

इस के बाद रामप्रकाश ने पीठ में दर्द होने की बात कह कर रंजना को इंजेक्शन लाने के लिए कहा. रंजना जैसे ही उठ कर क्लीनिक की ओर गई, वहां छिपे रामपाल ने उसे पकड़ लिया और ब्यूटीपौर्लर वाले कमरे में घसीट ले गया. उस के पीछेपीछे रामप्रकाश भी वहां पहुंच गया. इस के बाद दोनों ने उसे खत्म कर दिया. इस के बाद दोनों पहली मंजिल पर गए, जहां राजकुमार पत्नी आशा के साथ सो रहा था.

दोनों ने पहले आशा पर वार किया. आशा की चीख से राजकुमार जाग गया तो दोनों उस पर टूट पड़े. जब रामपाल और रामप्रकाश को लगा कि दोनों मर गए हैं तो रामप्रकाश ने बांका और हंसिया घर के बाहर फेंक दिया और रामपाल को भाग जाने के लिए कहा. जब रामपाल भाग गया तो वह दरवाजा खोल कर चिल्लाने लगा कि घर में बदमाश घुस आए हैं.

शोर सुन कर गांव वाले इकट्ïठा हो गए. उस समय राजकुमार कराह रहा था, लेकिन अस्पताल ले जाते समय उस की मौत हो गई. रामप्रकाश ने गांव के ही 2 लोगों, राजाराम और प्रेमरैदास के खिलाफ हत्या का शक जताते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने जांच की तो नामजद लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर ने तो इस हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए पुलिस पर दबाव डाला तो गांव वालों ने भी सडक़ जाम कर के पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की.

तब लखनऊ के एसएसपी राजेश कुमार पांडेय ने थाना माल के थानाप्रभारी विनय तिवारी, एसएसआई गणेश तिवारी, क्राइम ब्रांच के भगवान ङ्क्षसह, अनिल ङ्क्षसह चंदेल और हमीदउल्ला की एक टीम बनाई, जिस का नेतृत्व मलिहाबाद के सीओ जावेद खान को सौंपा.

आखिर 4 दिनों के बाद 9 नवंबर को इस टीम ने राजकुमार, आशा और रंजना की हत्या के आरोप में राजकुमार के दोनों सगे भाई रामप्रकाश और रामपाल को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रामपाल और रामप्रकाश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

दरअसल, जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची थी तो वहां लूट का कोई सबूत नहीं मिला था. आसपड़ोस वालों ने बदमाशों के आनेजाने की भी आवाज नहीं सुनी थी. रामपाल जब वहां पहुंचा था तो उसे देख कर ही लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर आया है. उस के बाल भी गीले थे. नहाने वाली जगह पर भीगा तौलिया मौजूद था. उस पर खून के कुछ दाग भी लगे थे.

रामप्रकाश ने बताया था कि बदमाशों ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया था, लेकिन जब पुलिस ने गांव वालों से पूछा कि घर का दरवाजा किस ने खोला था तो कोई सामने नहीं आया. इस से पुलिस को लगा कि हत्या में घर वालों का ही हाथ है. बाद में पूछताछ में ये बातें सामने आ गईं.

पूछताछ में रामप्रकाश ने कहा, “मैं भाभी आशा को बहुत मानता था. वह हमें भी बेटे की तरह मानती थीं. रंजना उन की सगी छोटी बहन थी. उन्हें रंजना की हत्या में मेरे शामिल होने का पता चलता तो वह हमारे खिलाफ हो जातीं. रंजना ने जो किया था, मुझे उस बात से उस से चिढ़ हो गई थी. इस हालत में न चाहते हुए भी मुझे भाभी की हत्या करनी पड़ी.”

पूछताछ के बाद पुलिस ने रामपाल और रामप्रकाश को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था, कथा लिखे जाने तक दोनों भाई जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

एमबीए ठगों का जाल

समाज में ऐसे युवाओं की कमी नहीं है, जो आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित हो कर बहुत कम समय में सफलताओं की इमारत खड़ी करने के सपने देखते हैं. वे सोचते हैं कि उन के पास सभी भौतिक सुविधाएं और ढेर सारी दौलत हो. महत्त्वाकांक्षाओं की हवाएं जब उन के दिलोदिमाग में सनसनाती हैं तो सोच खुदबखुद इस की गुलाम हो जाती है. सोच की यह गुलामी उन्हें इसलिए बुरी भी नहीं लगती, क्योंकि इस से उन्हें ख्वाबों में कल्पनाओं के खूबसूरत महल नजर आने लगते हैं. रिहान भी कुछ ऐसी ही सोच का शिकार था.

एमबीए पास कंप्यूटर एक्सपर्ट रिहान का ख्वाब था कि किसी भी तरह उस के पास इतनी दौलत आ जाए कि जिंदगी ऐशोआराम से बीते. यह कैसे हो, इस के लिए वक्त के दरिया में तैराकी करते हुए वह दिनरात अपने दिमाग को दौड़ाता रहता था. कुछ विचार उसे सही नजर आए, मगर उन विचारों को क्रियान्वित करने के लिए पैसों की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. क्योंकि वह बेरोजगारी की गॢदश झेल रहा था. लिहाजा उन विचारों का उस के लिए कोई महत्त्व नहीं रहा.

फिलहाल उस के सामने सब से बड़ी समस्या पैसों की थी, इसलिए वह अपने लिए सही नौकरी तलाशने लगा. इस के लिए उस ने कई जगह हाथपैर मारे, लेकिन जब उसे मन मुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने सन 2014 में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी कर ली. यह कंपनी लोगों को विभिन्न बैंकों से लोन दिलाने का काम करती थी. इस के बदले वह लोन लेने वालों से तयशुदा कमीशन लेती थी.

रिहान उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर स्थित कोतवाली क्षेत्र की पुरानी तहसील मोहल्ले का रहने वाला था. उस के पिता अख्तर नवाज का कई सालों पहले इंतकाल हो गया था. पति की मौत के सदमे में मां का साया भी उस के सिर से उठ गया. रिहान उन का एकलौता बेटा था. बाद में उस के चाचा मजहर ने न सिर्फ उस की परवरिश की, बल्कि उन्होंने उसे बेहतर तालीम भी दिलाई.

रिहान लंबातगड़ा, आकर्षक कदकाठी का युवक था. उस का लाइफस्टाइल भी आधुनिक था. वह जितना कमाता था, उस से उस के महंगे शौक भी मुश्किल से पूरे होते थे. महत्त्वाकांक्षी होने के साथसाथ वह तेजतर्रार भी था. जिस फाइनैंस कंपनी में वह नौकरी कर रहा था, वहां काम करतेकरते उसे यह बात समझ में आ गई थी कि यह कंपनी पाकसाफ काम नहीं करती, बल्कि लोगों को सपनों में उलझा कर उन के साथ ठगी करती है.

एक दिन औफिस में उस के सामने जो वाकया पेश आया, उस से इस बात की पुष्टि तो हो ही गई, साथ ही उसे भी कुछ ऐसा ही काम करने की प्रेरणा मिल गई.

दरअसल, एक दिन औफिस में एक ग्राहक आ कर झगडऩे लगा. लोन पास कराने के लिए उस ने कंपनी को 25 हजार रुपए फाइल खर्च व अन्य खर्चों के नाम पर जमा कर दिए थे. इस के बावजूद भी कंपनी वाले उसे लोन नहीं दिला रहे थे. इस के लिए वह पहले भी कई बार औफिस के चक्कर लगा चुका था, लेकिन उस दिन वह गुस्से में दिखाई पड़ रहा था.

औफिस में आते ही वह रिसैप्शनिस्ट के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. फिर उस से मुखातिब होते हुए बोला, “आज तो मैं कुछ फैसला कर के ही जाऊंगा. पैसे लेने के बावजूद भी मुझे लोन नहीं दिलाया जा रहा, मेरा काम नहीं हो रहा है तो मेरे पैसे वापस करो.”

उस के तीखे तेवर देख कर रिसैप्शनिस्ट ने उसे समझाने की नाकाम कोशिश की, “सर, हम कोशिश कर रहे हैं.”

इस पर वह और भी भडक़ गया, “कोशिश तो आप कई महीनों से कर रहे हैं. बताओ उस का क्या नतीजा निकला? आप को पता है मैं पंजाब से यहां आताजाता हूं. कितने पैसे तो मैं किराए में ही खर्च कर चुका हूं, लेकिन आप लोग मेरी बात को समझ ही नहीं रहे.”

शोर सुन कर रिहान भी वहीं आ कर खड़ा हो गया था. ग्राहक को समझाते हुए रिसैप्शनिस्ट बोली, “सौरी सर, आज तो बौस यहां नहीं हैं.”

यह सुन रिहान को झटका लगा, क्योंकि कंपनी का बौस तो उस समय औफिस में बने अपनी केबिन में ही था.

रिसैप्शनिस्ट की बात से नाराज ग्राहक सख्ती से बोला, “मैं आज यहां से जाने वाला नहीं हूं. आप उन्हें अभी फोन मिलाइए और पूछिए कि मेरे पैसे कब मिलेंगे?”

“ओके सर,” उस के अडिय़ल रुख को देखते हुए रिसैप्शनिस्ट ने तुरंत ही टेबल पर रखे टेलीफोन का स्पीकर औन कर के एक नंबर डायल कर दिया. तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘उपभोक्ता का मोबाइल अभी स्विच औफ है. कृपया थोड़ी देर बाद डायल करें.’ इस के बाद रिसैप्शनिस्ट उस ग्राहक से शांत लहजे में बोली, “सर, आप फिर कभी आइए, अभी तो सर से बात नहीं हो पा रही है. मैं आप के सामने ही नंबर मिला रही हूं. उन का मोबाइल अभी बंद है.”

“ओजी ठीक है. मैं फिर आऊंगा और अब की बार अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा.” खड़े होते हुए वह पंजाबी लहजे में बोला और गुस्से से पैर पटकता हुआ औफिस से निकल गया.

यह सब देख कर रिहान सोच में पड़ गया. इस की वजह भी थी क्योंकि कंपनी के बौस उस समय औफिस में ही थे और दूसरे उन का मोबाइल कभी बंद ही नहीं रहता था. इस बात को भी वह अच्छी तरह से जानता था. जिज्ञासावश उस ने रिसैप्शनिस्ट से पूछा, “मैडम, बौस का मोबाइल तो कभी बंद नहीं रहता, फिर यह सब…”

उस की बात पर पहले वह खिलखिला कर हंसी, फिर रहस्यमय अंदाज में बोली, “रिहान अभी तुम नहीं समझोगे ये सब बातें.”

“मतलब… अब तो मैडम आप को बताना ही होगा.” रिहान ने जिद की.

उस की जिद पर रिसैप्शनिस्ट ने टेबल पर रखे फोन की तरफ इशारा करते हुए बताया, “रिहान, जब हम इस से बौस का नंबर डायल करते हैं तो हमेशा यही संदेश सुनने को मिलेगा. दरअसल बौस ने अपने मोबाइल में औटोमैटिक सौफ्टवेयर डाला हुआ है. ऐसे ग्राहकों से पीछा छुड़ाने के लिए यही तरीका अपनाना पड़ता है.”

इन सब बातों से रिहान का दिमाग घूम गया. वह तुरंत एक फाइल के बहाने बौस के केबिन में दाखिल हुआ. उस समय बौस फोन से किसी से बातें कर रहे थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि रिसैप्शनिस्ट जो कह रही थी, बिलकुल सच था.

उस दिन के बाद रिहान ने कंपनी के काम को और भी जिज्ञासा से समझना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में पूरी तरह उस की समझ में आ गया कि कंपनी वास्तव में लोगों को लोन दिलाने का ख्वाब दिखा कर ठगी का धंधा करती है. उस के दिमाग में विचार आया कि जिस तरह से यह कंपनी लोगों को बेवकूफ बना कर पैसे ठग रही है, इसी तरह से वह भी लाखों रुपए कमा सकता है.

कंपनी जिस तरह से लोगों को झांसे में लेती थी, उस तरीके को वह यहां काम करते हुए अच्छी तरह से जान गया था. वह इस काम की बारीकियों को भी समझ चुका था. इस कंपनी में सैयद बिलाल उर्फ समी मलिक व अब्दुल बारी भी नौकरी करते थे. ये दोनों युवक भी मेरठ के ही रहने वाले थे.

सैयद बिलाल तो उसी की तरह एमबीए पास था. रिहान के पास भी ऊंची तालीम थी. वह चाहता तो कोई अच्छी नौकरी या व्यवसाय कर सकता था, लेकिन उस का दिमाग गलत दिशा में दौडऩे लगा. उस ने मन ही मन सोच लिया कि वह भी अपनी खुद की ऐसी कंपनी खड़ी कर के करोड़ों रुपए कमाएगा.

इस मुद्दे पर रिहान अपने साथियों सैयद बिलाल और अब्दुल बारी से बात की तो वे भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गए. जल्दी ही ज्यादा पैसे कमाने के लालच में तीनों ने एक साथ उस फाइनैंस कंपनी से नौकरी छोड़ दी. लोगों को कंपनी के जाल में उलझाया जा सके, इस के लिए इंटरनेट वेबसाइट का रजिस्ट्रेशन जरूरी था. कंपनी को चूंकि धंधा ही ठगी का करना था, इसलिए वे रजिस्ट्रेशन अपने असली नाम से नहीं कराना चाहते थे.

रिहान ने आकाश ङ्क्षशदे के नाम से फरजी प्रमाणपत्र बनवाए और उन के माध्यम से एडिशन कारपोरेशन फाइनैंस डौट काम नाम की वेबसाइट बनवाई. इस के बाद उन्होंने शहर के वैस्टर्न कचहरी मार्ग पर कंपनी का एक औफिस भी खोल लिया. औफिस में उन्होंने जरूरी स्टाफ भी रख लिया. यह जनवरी, 2015 की बात थी.

उन्होंने वेबसाइट पर दावा किया कि कंपनी विभिन्न बैंकों से हर तरह के लोन दिलाती है. कंपनी का सब से आकर्षक औफर न्यूनतम 4 प्रतिशत ब्याज दर पर लोन दिलाने का था. समाज में ऐसे जरूरतमंद लोगों की कमी नहीं, जिन्हें लोन की जरूरत रहती है. कंपनी की वेबसाइट पर फरजी नामों से लिए गए मोबाइल नंबर भी दिए गए थे. उन्होंने वेबसाइट पर योजनाबद्ध तरीके से प्रचार किया था. इस का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन के पास लोगों के फोन आने शुरू हो गए.

फोनकत्र्ताओं से बेहद लुभावनी बातें की जातीं. उन से कहा जाता कि उन की कंपनी खुद भी लोन देती है और बैंकों से भी दिलाती है. चूंकि बैंकों के साथ उन का करार है, इसलिए उन के माध्यम से बैंक सस्ती ब्याज दरों पर लोन पास कर देती हैं. इन्हीं चिकनीचुपड़ी बातों में लोग फंसते गए. वे लोगों से फाइल चार्ज के नाम पर 5 से 25 हजार रुपए वसूलने लगे. लोगों को चूंकि बिना सख्त नियमों और आधेअधूरे कागजों के साथ मनचाहा लोन मिल जाने की उम्मीद होती थी, लिहाजा वह खुशीखुशी पैसे दे देते थे.

सपनों को बेचने का रिहान का यह धंधा ऐसा चमका कि उस की दुनिया ही बदल गई. फाइल चार्ज के नाम पर ही उन्होंने लाखों रुपए कमा लिए. इस के बाद उन्होंने धीरेधीरे कंपनी का नेटवर्क दूसरे राज्यों में फैलाना शुरू कर दिया. रिहान ने फरजी पहचानपत्रों के आधार पर बैंकों में भी खाते खुलवा लिए थे. उन्हीं खातों में वे लोगों से रकम जमा करवाते थे. उन्होंने जो वेबसाइट बनवाई थी, उस पर कंपनी का पता नहीं दिया था. वे फोन पर ही लोगों से बातें करते थे. उन की पूरी कोशिश यही होती थी कि पूरी काररवाई इंटरनेट के जरिए ही हो.

वे नजदीकी राज्यों के लोगों के बजाय उड़ीसा, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़, आसाम, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों के लोगों को ही अपने झांसे में लेने की कोशिश करते थे, ताकि ठगे जाने के बाद वे उन के औफिस के ज्यादा चक्कर न लगा सकें.

जिस शख्स के ये पैसे ठगते, वह शख्स बारबार इन के पास फोन करता तो वे अपने फोन नंबर बदल देते थे. ठगी का अहसास होने के बावजूद कोई चाहते हुए भी इन के औफिस नहीं आ पाता था, क्योंकि औफिस उन के यहां से काफी दूर था और जो कोई इन के औफिस में कभी आ भी जाता तो उसे कोई न कोई बहाना बना कर चलता कर दिया जाता था. जो लोग इन के ऊपर ज्यादा दबाव बनाते थे, उन में से जिन लोगों के बैंक में दिए जाने वाले कागजात पूरे होते थे, उन का लोन पास करा देते थे.

धंधे में चमक आई तो उन्होंने समाचार पत्रों में भी विज्ञापन देने शुरू कर दिए. इस का भी उन्हें फायदा मिला. कंपनी का धंधा बढऩे पर उन्होंने कई बैंकों में फरजी नामपतों पर एक दरजन से ज्यादा खाते खुलवा लिए. वे अलगअलग राज्यों के लोगों को पैसा जमा करने के लिए अलगअलग खाता नंबर देते थे. पैसे जमा होते ही वे तुरंत एटीएम कार्ड से निकाल लेते थे.

ग्राहकों को उन के काम पर भरोसा रहे, इसलिए दिखावे के लिए वे अलगअलग राज्यों के स्टांप पेपर और बैंकों के फरजी चैक टेबल रखते थे. जिन्हें दिखा कर वे ग्राहकों को आश्वस्त करते थे कि कई ग्राहकों के चेक उन के यहां तैयार रखे हैं. औफिस को उन्होंने इस ढंग से सुसज्जित किया था, जिस से लगे कि यह कोई बड़ी लोन कंपनी का औफिस है. इस बीच उन्होंने एक टेलीफोन कंपनी से सिम कार्ड बिक्री के लिए भी अनुबंध कर लिया. स्टाफ रखने में वे अधिकांश लड़कियों को प्राथमिकता देते थे, ताकि कोई ग्राहक उन से ज्यादा लड़ेझगड़े नहीं.

एक दिन 3 लोग कंपनी के औफिस पहुंचे. देखने और पहनावे से वे गुजराती लग रहे थे. रिसैप्शनिस्ट के पास पहुंचते ही एक ने कहा, “हमें प्रौपर्टी के लिए लोन चाहिए. हम लोग बहुत दूर से आए हैं.”

“आप लोग कहां से आए हैं?” रिसैप्शनिस्ट बोली.

“जी गुजरात से.” उन में से एक आदमी बोला.

“कितना लोन चाहिए आप को?” रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

“5 करोड़.” उस शख्स ने कहा तो रिसैप्शनिस्ट थोड़ा चकरा गई.

“इतना बड़ा लोन. इस का फाइल चार्ज भी काफी लगेगा.” वह बोली.

“कोई बात नहीं मैडम, जो भी चार्ज होगा हम देने को तैयार हैं.” कहने के साथ ही उस शख्स ने जेब में हाथ डाल कर 50 हजार रुपए की गड्डी निकाल कर रिसैप्शनिस्ट के सामने रख दी.

तभी रिसैप्शनिस्ट बोली, “नहींनहीं, अभी रहने दीजिए, यह तो बाद में जमा करना होगा. आप रुकिए, मैं आप को बौस से मिलवाती हूं.” कह कर वह केबिन में चली गई. इस के बाद उन तीनों गुजरातियों को भी बौस के औफिस में ले गई.

उस केबिन में रिहान और बिलाल बैठे थे. उन दोनों को जब पता चला कि मोटे लोन के लिए वे लोग गुजरात से उन के पास आए हैं तो वे बहुत खुश हुए. लोन लेने के लिए जो लोग आए थे, उन्होंने यह भी बता दिया था कि उन के कुछ पेपर कम पड़ सकते हैं.

बिलाल को जब विश्वास हो गया कि पार्टी पक्की है तो वह बोला, “पेपरों की आप फिक्र न करें, उन्हें हम पूरे करा देंगे. लेकिन पेपर तैयार करने से पहले आप को फाइल चार्ज वगैरह के पैसे पहले जमा कराने होंगे.”

“ठीक है, आप जितना बोलेंगे हम कर जमा कर देंगे.” उन में से एक ने कहा.बिलाल ने उन्हें एक सप्ताह के बाद अपने पेपरों के साथ आने को कहा. इस के बाद वे चले गए.

इसी बीच 2 नवंबर, 2015 को उन की कंपनी की वेबसाइट अचानक बंद हो गई. रिहान ने पहले इसे इंटरनेट व कंप्यूटर का कोई टैक्निकल फौल्ट समझा. कई घंटे बाद भी जब वह नहीं चली तो वे समझ गए कि यह वेब निर्माता कंपनी के स्तर से बंद हुई है. तब रिहान ने वेब निर्माता कंपनी के औफिस फोन किया. उन्होंने भी इसे टैक्निकल दिक्कत बताया.

वेबसाइट चल पाती, उस से पहले ही 3 नवंबर को पुलिस वहां दनदनाती हुई पहुंच गई. पुलिस को देख कर औफिस में बैठे सभी लोगों के होश फाख्ता हो गए. पुलिस टीम में वे लोग भी शरीक थे, जो गुजराती क्लाइंट बन कर उन के पास आए थे. रिहान समझ गया कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

पुलिस ने मौके से रिहान, बिलाल व अब्दुल बारी को गिरफ्तार कर लिया. औफिस की तलाशी ली गई तो वहां से 3 लैपटौप, 6 मोबाइल फोन, 2 लैंडलाइन फोन, 18 एटीएम कार्ड, 2 शौङ्क्षपग कार्ड, 6 पैन कार्ड, आधार कार्ड, 15 चैकबुक, विभिन्न राज्यों के लोगों के भरे हुए करीब साढ़े तीन सौ फार्म, 21 छोटीबड़ी मोहरें, कई राज्यों के स्टांप पेपर व अन्य कागजी सामग्री मिली.

पुलिस आरोपियों को बरामद सामान के साथ थाना सिविल लाइंस ले आई और उन से पूछताछ की. पूछताछ के दौरान उन्होंने इंटरनेट के जरिए ठगी का अपना सारा खेल पुलिस को बता दिया. पुलिस ने बेहद चतुराई से उन पर शिकंजा कसा था.

दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक के एक पत्र के आधार पर उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय में तैनात पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) मनोज कुमार झा ने मेरठ पुलिस को सितंबर महीने में इस संबंध में काररवाई करने के निर्देश दिए थे. एसएसपी डी.सी. दुबे ने मामले की जांच थाना सिविल लाइंस पुलिस को करने के निर्देश दिए, साथ ही उन्होंने साइबर यूनिट के प्रभारी कर्मवीर सिंह को भी इस काम में लगा दिया.

जांच में पता चला कि यह कंपनी वास्तव में लोगों के साथ ठगी का धंधा कर रही है. जो मोबाइल नंबर वेबसाइट पर दिए गए थे, जांच में वह भी फरजी आईडी प्रूफ पर लिए हुए पाए गए. जांचपड़ताल में वेबसाइट निर्माता कंपनी का पता भी लग गया. वह कंपनी मेरठ की ही थी. वेबसाइट रजिस्ट्रेशन के समय जो कागजात जमा किए थे, उन की जांच की तो वह भी फरजी पाए गए. वह कागजात आकाश शिंदे के नाम पर थे.

पुलिस को पता चल गया कि कंपनी का संचालन वैस्टर्न कचहरी रोड के एक कार्यालय से किया जा रहा है. जब साइबर युनिट प्रभारी कर्मवीर ङ्क्षसह को विश्वास हो गया कि कंपनी की बुनियाद फरजीवाड़े पर टिकी है तो उन्होंने अपनी जांच से पुलिस अधीक्षक (अपराध) टी.एस. ङ्क्षसह, पुलिस उपाधीक्षक एस. वीर कुमार को अवगत करा दिया.

पुख्ता जानकारी मिलने के बाद एसएसपी डी.सी. दुबे ने ठगों की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थाना सिविल लाइंस प्रभारी इकबाल अहमद कलीम, सबइंसपेक्टर महेश कुमार शर्मा, कर्मवीर ङ्क्षसह, कांस्टेबल अरङ्क्षवद कुमार, विजय कुमार, आनंद कुमार व उमेश वर्मा को शामिल किया गया.

एक दिन पुलिस टीम के 3 सदस्य छद्म गुजराती क्लाइंट बन कर उन के औफिस पहुंचे. सदस्यों ने औफिस में जो बात की, उस से पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग लोन दिलाने के नाम पर बहुत बड़ी ठगी कर रहे हैं. इस के बाद पुलिस ने उन ठगों की वेबसाइट ब्लौक करा दी और अगले दिन उन के औफिस में छापा मार दिया.

विस्तार से की गई पूछताछ में पता चला कि रिहान और उस के साथी लाखों रुपए की ठगी कर चुके हैं. अगले दिन पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

अच्छी डिग्री होने के बावजूद रिहान और उस के साथियों ने लोगों को ठगने की फितरती सोच बनाई थी, उसी सोच ने उन के भविष्य को चौपट कर दिया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुएं से गहरा दांपत्य का अविश्वास

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कोतवाली मोहनलालगंज के कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर  कमरुद्दीन सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे हेडमुहर्रिर को दिशानिर्देश दे रहे थे, तभी पास के गांव का ग्रामप्रधान रमाशंकर वहां पहुंचा. ग्रामप्रधान होने के नाते वह अक्सर कोतवाली आताजाता रहता था, इसलिए कोतवाली के सारे पुलिसकर्मी उसे पहचानते थे.

रमाशंकर ग्रामप्रधान होने के साथसाथ जमीन की खरीदफरोख्त यानी प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था, इसलिए इलाके में उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. सुबहसुबह उसे कोतवाली में देख कर पहरे पर तैनात संतरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी आज सुबहसुबह ही आ गए? कोई खास काम पड़ गया क्या?’’

‘‘हां, थोड़ी परेशानी वाली बात है, कोतवाल साहब बैठे हैं क्या?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूछा.

‘‘आप तो जानते हैं, कोतवाल साहब सुबहसुबह ही बैठ जाते हैं. जाइए, साहब बैठे हैं.’’ संतरी ने कहा.

रमाशंकर कोतवाली प्रभारी के औफिस की ओर बढ़ गया. कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन सिपाहियों को उस दिन का काम समझा रहे थे. तभी ग्रामप्रधान रमाशंकर ने उन्हें नमस्कार किया तो उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

वह कुर्सी पर बैठ तो गया, लेकिन बारबार करवट बदलता रहा. उसे उस तरह करवट बदलते देख कोतवाली प्रभारी को लगा कि  किसी वजह से यह कुछ ज्यादा ही परेशान है. उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी, आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रहे हो?’’

‘‘कोतवाल साहब, बात ही कुछ ऐसी है कि समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कहूं?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने कहा.

‘‘जो भी परेशानी हो, बताइए. इस में सोचनेसमझने की क्या बात है.’’ कोतवाली प्रभारी ने कहा.

‘‘साहब, मेरी पत्नी कल शाम से गायब है. पहले तो मैं ने सोचा था कि वह मायके गई होगी. लेकिन जब वहां फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं है.’’

‘‘आप पूरी बात बताइए कि यह सब कैसे और कब हुआ? उसी के बाद हम किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे.’’

‘‘कल शाम को मेरी पत्नी मंजूलता हमारे ड्राइवर रामकरन के साथ टाटा सफारी कार से खरीदारी के लिए मोहनलालगंज बाजार गई थी. बाजार पहुंच कर उस ने ड्राइवर से कार वापस ले जाने के लिए कहा. उस ने कहा था कि वहां से वह मायके जाना चाहती है. ड्राइवर लौट गया. रात को मैं ने ससुराल फोन किया कि अब तक वह वहां पहुंच गई होगी. लेकिन पता चला कि वह वहां नहीं पहुंची है.

‘‘इस के बाद मैं परेशान हो गया. इधरउधर पता किया. जब कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आप के पास चला आया.’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूरी बताई.

ग्रामप्रधान रमाशंकर की पत्नी मंजूलता का इस तरह अचानक गायब हो जाना हैरान करने वाली बात थी. वह कहीं बाहर की भी रहने वाली नहीं थी कि भटक गई हो. कोतवाली प्रभारी ने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘प्रधानजी, आप रिपोर्ट लिखा दीजिए. हम उस की तलाश करते हैं. आप भी तलाश करते रहिए. आप दोनों में लड़ाईझगड़ा तो नहीं हुआ था कि नाराज हो कर वह बिना बताए किसी रिश्तेदार के यहां चली गई हों. मोहनलालगंज बाजार से उन्हें कोई जबरदस्ती तो ले नहीं जा सकता.’’

पुलिस और रमाशंकर अपनेअपने हिसाब से मंजूलता की खोजबीन करते रहे. जब शाम तक उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो रमाशंकर के दोनों साले यानी मंजूलता के भाई त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश कोतवाली मोहनलालगंज पहुंचे. उन्होंने कोतवाली प्रभारी से अपने बहनोई रमाशंकर और ड्राइवर रामकरन के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा. उन का कहना था कि रमाशंकर और उस के ड्राइवर को पता है कि मंजू कहां है?

त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश का गांव शिवधर भी मोहनलालगंज कोतवाली के अंतर्गत आता था, जो मोहनलालगंज कस्बे से मात्र 3 किलोमीटर दूर था. उन्होंने अपनी बहन की शादी परसैनी गांव के मजरा रानीखेड़ा के रहने वाले रमाशंकर रावत के साथ सन 2002 में की थी.

इन 12 सालों में रमाशंकर ने खूब तरक्की कर ली थी. ग्रामप्रधान बनने के साथ ही उस ने जमीन की खरीदफरोख्त का काम शुरू कर दिया था, जिस से उस ने खूब पैसा कमाया था. इस की वजह यह थी कि लखनऊ से सटे होने की वजह से यहां की जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं.

रमाशंकर और मंजूलता के 3 बच्चे थे. सब से बड़ी बेटी शैली 10 साल की है, जो स्कूल जाती है. उस से छोटा बेटा शिवम 7 साल का है तो उस से छोटी बेटी राशि ढाई साल की. मंजू अपनी गृहस्थी में पूरी तरह से खुश थी. उसे इस बात की खुशी थी कि उस के अच्छे दिन आ गए थे.

ग्रामप्रधान बनने के साथ ही पति बड़ा आदमी बन गया था. लेकिन वह घर में कम समय दे पा रहा था. इस से मंजूलता को लगने लगा था कि वह पैसे के पीछे कुछ ज्यादा ही भाग रहा है. इस बात को ले कर दोनों में अक्सर कहासुनी भी होती रहती थी. इस की खास वजह यह थी कि मंजू को लगने लगा था कि उस के पति के संबंध कुछ अन्य औरतों से बन गए हैं.

मंजूलता के काम और बातव्यवहार से ससुराल के बाकी लोग बहुत खुश रहते थे. उस के ससुर पूर्णमासी रावत उसे बहुत मानते थे. उन का बेटा रमाशंकर तो अपने काम में व्यस्त रहता था, इसलिए घर की सारी जरूरतों का खयाल मंजूलता ही रखती थी. वह सासससुर की खूब सेवा करती थी, इसलिए उस के गायब होने से पतिपत्नी बहुत परेशान थे.

मंजूलता के भाइयों को रमाशंकर पर ही संदेह था. लेकिन कोई सुबूत न होने की वजह वे कुछ कर नहीं पा रहे थे. वे सिर्फ ड्राइवर रामकरन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे थे, जबकि कोतवाली प्रभारी इस के लिए तैयार नहीं थे.

जब कोतवाली प्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो सत्यप्रकाश क्षेत्राधिकारी राजेश यादव, एसपी (देहात) सौमित्र यादव तथा एसएसपी प्रवीण कुमार से मिला. उस का कहना था कि अगर रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन पर शिकंजा कसा जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. सत्यप्रकाश के कहने पर क्षेत्राधिकारी राजेश यादव ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

आखिर जब कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मंजूलता की हत्या कर दी गई है और उस की लाश को मऊ गांव के एक पुराने कुएं में डाल कर उसे पटवा दिया गया है.

ड्राइवर रामकरन के बयान के आधार पर लाश बरामद करने के लिए पुलिस को कुएं की खुदाई कराना जरूरी था. इस के लिए जेसीबी मशीन मंगाई गई. पूछताछ में रामकरन ने बताया था कि इस वारदात में मृतका मंजूलता का पति रमाशंकर और मऊ का रहने वाला केतन भी शामिल था.

केतन के घर के बगल में ही मुन्ना वाजपेई का पुराना मकान था. वह लखनऊ में रहते थे और एचएएल में नौकरी करते थे. उन्होंने अपना यह मकान बेच दिया था, जो अब पूरी तरह से खंडहर हो चुका था. उसी मकान के आंगन में एक कुआं था, जिस का उपयोग न होने की वजह से वह लगभग सूख चुका था.

रामकरन ने पुलिस को बताया था कि मंजूलता की हत्या कर के उस की लाश को उसी कुएं में फेंक कर ऊपर से मकान का मलबा डाल कर कुएं को पाट दिया गया था. लाश बरामद करने के लिए कोतवाली पुलिस ने मंजूलता के भाई और अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति में कुएं की खुदाई शुरू कराई.

रामकरन के बयान के आधार पर पुलिस को रमाशंकर को गिरफ्तार कर लेना चाहिए था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. दरअसल पुलिस मंजूलता की लाश बरामद कर के सुबूत के आधार पर उसे गिरफ्तार करना चाहती थी. क्योंकि वह ग्रामप्रधान था. उस की गिरफ्तारी पर गांव वाले बवाल कर सकते थे, इसलिए पुलिस सोचसमझ कर कदम उठा रही थी. अगर लाश कुएं से बरामद न होती तो रामकरन की बात झूठी भी हो सकती थी.

पुलिस ने 23 जून की रात एक बजे के आसपास कुएं की खुदाई शुरू कराई. जेसीबी कुएं को लगातार खोदती रही. कुएं का मलबा हटाने में करीब 15 घंटे का समय लगा. अब तक दूसरे दिन यानी 24 जून की दोपहर हो गई थी. कुएं की तली दिखाई देने लगी थी, लेकिन मंजूलता की लाश का कुछ अतापता नहीं था.

तमाशा देखने के लिए वहां गांव वाले इकट्ठा थे. जब उन्होंने देखा कि इतनी खुदाई होने पर भी लाश नहीं मिल रही है तो उन्हें लगा कि पुलिस ग्रामप्रधान को फंसाने के लिए नाटक कर रही है. उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने मोहनलालगंज कोतवाली के सामने एकत्र हो कर लखनऊरायबरेली रोड और मोहनलालगंज-गोसाईगंज रोड पर जाम लगाना शुरू कर दिया.

अब पुलिस दोहरी मुसीबत में फंस गई. एक ओर उसे मंजूलता की लाश बरामद करनी थी तो दूसरी ओर जाम लगा रहे गांव वालों को रोकना था.

जेसीबी का काम खत्म हो गया था. अब कुएं की खुदाई मजदूरों से कराई जा रही थी. मजदूर कुएं का मलबा बाल्टी से निकाल रहे थे. कुएं से जो कीचड़ निकल रहा था, उस से भयंकर बदबू आ रही थी, जिस की वजह से वहां खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. गरमी और धूप का भी बुरा हाल था. इस के बावजूद गांव वाले वहां जमा थे. 4 फुट चौड़े और करीब 40 फुट गहरे कुएं का जब सारा कीचड़ निकल गया तो मंजूलता की लाश दिखाई दे गई. लाश देख कर पुलिस की जान में जान आई.

लाश निकलते ही मंजूलता के मायके वाले ही नहीं, सासससुर और बच्चे बिलखने लगे. पुलिस ने घटनास्थल की अपनी काररवाई निबटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने मंजूलता के पति रमाशंकर को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद थाने आ कर रामकरन, रमाशंकर और केतन के खिलाफ मंजूलता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केतन को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. थाने ला कर तीनों से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह पतिपत्नी के बीच भरोसा टूटने वाली थी…

रमाशंकर को लगने लगा था कि उस की पत्नी के कुछ बाहरी लोगों से संबंध बन गए हैं, इसलिए वह उस की बात नहीं मानती. दूसरी ओर मंजूलता को लगता था कि रमाशंकर के संबंध अन्य औरतों से हो गए हैं, इसलिए वह उस की उपेक्षा करता है.

मंजूलता की हत्या की एक बड़ी वजह यह भी थी कि उस के नाम मऊ में 12 बिसवा जमीन थी, जो सड़क के किनारे थी. रमाशंकर उस जमीन को बेचना चाहता था, जबकि मंजू उस जमीन को बेचने को बिलकुल तैयार नहीं थी. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में अक्सर लड़ाईझगड़ा होता रहता था.

रमाशंकर जमीन बेचने के लिए जब मंजू पर ज्यादा दबाव बनाने लगा तो मंजू गुस्से से बोली, ‘‘तुम यह क्यों नहीं सोचते कि वह जमीन मेरे पिता ने मुझे दी है. वह मेरे लिए बहुत कीमती है. उसे मैं अपने जीते जी बिलकुल नहीं बेच सकती.’’

‘‘वह जमीन बड़ी अच्छी जगह पर है. अभी उस की कीमत ठीकठाक मिल जाएगी. उसी पैसे से हम तुम्हारे लिए दूसरी जगह जमीन खरीद देंगे.’’ रमाशंकर ने मंजूलता को समझाया.

‘‘तुम कुछ भी कहो, मैं ने कह दिया कि वह जमीन मैं नहीं बेचूंगी तो नहीं बेचूंगी.’’ मंजूलता गुस्से में बोली.

रमाशंकर जमीन की खरीदफरोख्त से ही गरीब से अमीर बना था, इसलिए उसे आदमी से ज्यादा जमीन की कीमत महत्व रखती थी. जबकि मंजू जमीन बेच कर पैसा कमाने के बजाय जमीन से जुड़ी अपनी भावनाओं को महत्व दे रही थी. जमीन की वजह से पतिपत्नी के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही थी. मंजू जिस तरह जिद पर अड़ी थी, उस से रमाशंकर को लगने लगा कि उस के पीछे कोई लगा है, जो उसे भड़का रहा है.

रमाशंकर को पत्नी के चरित्र पर संदेह हुआ तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. यह काम वह खुद तो कर नहीं सकता था, इसलिए उस ने मऊ गांव के रहने वाले केतन से बात की और 50 हजार रुपए में पत्नी की हत्या का ठेका दे दिया. इस के बाद 20 हजार नकद और 10 हजार का चेक एडवांस में दे दिया. 20 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा किया.

18 जून को रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन ने मंजू से कहा, ‘‘भाभीजी कुछ काम से मैं मोहनलालगंज बाजार जा रहा हूं. अगर आप को चलना हो तो आप भी चल सकती हैं.’’

घर के लड़ाईझगड़ों से परेशान मंजू ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए वह बाजार चली जाए तो मन बहल जाएगा. वैसे जाते हुए बाजार से कुछ खरीदारी भी कर लेगी, इसलिए वह उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को लौटते समय उस की कार में केतन भी बैठ गया. माधवखेड़ा गांव के मोड़ के पास जब कार पहुंची तो वहां सन्नाटा देख कर केतन और रामकरन ने गला दबा कर मंजूलता की हत्या कर दी. इस के बाद रामकरन ने फोन कर के इस बात की जानकारी रमाशंकर को दे दी.

इस के बाद लाश को डिग्गी में रख कर केतन कार ले कर अपने गांव मऊ चला गया. रात 2 बजे केतन ने लाश को अपने मकान के बगल खंडहर हो चुके मुन्ना वाजपेयी के मकान में बने पुराने कुएं में डाल दिया. अगले दिन सुबह रमाशंकर ने केतन की मदद से उस कुएं को खंडहर हो चुके मकान के मलबे से पटवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या करने से पहले मंजू को बेहोश किया गया था. उसे कोल्डड्रिंक में बेहोश होने की दवा पिलाई गई थी. उस के बाद उस का गला घोंटा गया था.

पोस्टमार्टम के बाद जब मंजूलता की लाश घर आई तो मायके वाले ही नहीं, उस के ससुर पूर्णमासी अपनी पत्नी कौशल्या और मंजू के बच्चों को ले कर लाश के पास पहुंचे. बहू की लाश देख कर वह फफक पड़े. उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘मंजू बहुत अच्छी बहू थी. जिस दिन से इस ने हमारे घर में कदम रखा था, हमारे दिन बदल गए थे. मेरे बेटे ने बहू की हत्या कर के मासूम बच्चों को बिना मां के कर दिया. ऐसे पापी को फांसी की सजा होनी चाहिए.’’

शायद यह पहला मौका रहा होगा, जब पिता ही अपने बेटे को फांसी की सजा देने की बात कर रहा था. बहू की लाश को मुखाग्नि देते हुए पूर्णमासी ने कहा, ‘‘मैं अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं करूंगा.’’

पूछताछ में रमाशंकर ने पुलिस को बताया था कि मंजू उस पर शक करती थी. उसे घर आने में देर हो जाती हो तो वह उस से तरहतरह के सवाल करती थी. उस का कहना था कि अगर वह उस की हत्या न करवाता तो वह उसे मरवा देती. क्योंकि उस के कुछ अन्य लोगों से संबंध हो गए थे.

कुछ भी रहा हो, रमाशंकर ने जो भी किया, वह ठीक नहीं था. शायद उसे पैसे और पहुंच का घमंड हो गया था. उस की पहुंच कुछ हद तक काम भी कर रही थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों की दखल ने उस का सारा काम बिगाड़ दिया. अब शायद उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा होगा. लेकिन इस से कुछ भी फायदा नहीं होगा. शक में उस ने अपना ही घर बरबाद कर दिया है.

अनोखे साइबर ठग : ट्रेजरी औफिसर बन उड़ाए करोड़ों

उत्तर प्रदेश के जिला बलिया के गांव मालदेपुर के रहने वाले राजकुमार उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा थे. उन की अधिकतर पोस्टिंग प्रयागराज जिले में ही रही, इसलिए वह शिवकुटी, प्रयागराज में ही अपने परिवार के साथ रह रहे थे. वह मार्च, 2023 में रिटायर हो गए थे.

रिटायर होने के बाद वह 18 मार्च, 2023 को अपनी पेंशन संबंधी मामले में प्रयागराज की कचहरी स्थित ट्रेजरी औफिस गए हुए थे. वहां ट्रेजरी अफसर अशोक कनौजिया से उन की औपचारिक मुलाकात हुई. कुछ गपशप और चाय पीनेपिलाने के बाद राजकुमार अपने घर वापस आ गए.

20 मार्च, 2023 की सुबह दरोगाजी राजकुमार के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की, “हैलो कौन?”

दूसरी तरफ से आवाज आई, “गुडमार्निंग सर.”

“गुडमार्निंग…गुडमार्निंग.”

“मैं ने आप को पहचाना नहीं.”

“जी, मैं ट्रेजरी औफिस से बोल रहा हूं.”

“अरे, अशोक बाबू आप?ï अभी हमारी मुलाकात परसों ही औफिस में हुई थी.”

“जी… जी, बहुत खूब. ठीक पहचाना आप ने. मैं ट्रेजरी आफिसर अशोक बाबू ही बोल रहा हूं.”

“अरे साहब, भला मैं आप को और आप की आवाज को कैसे भूल सकता हूं.”

बातचीत का सिलसिला जारी रहा.

राजकुमार बोले, “बताएं सरजी, कैसे याद किया?”

दूसरी तरफ से आवाज आई, “अरे सर, हमारा तो काम ही है आप लोगों की सेवा. हमें अपने सभी पेंशनरों का खयाल रखना पड़ता है. आप ने अपनी पेंशन के सभी कागज जमा करा दिए थे न?”

“जी, वो तो करा दिए थे. क्यों? क्या कागजों में कोई कमी रह गई है?”

“हां दरोगाजी, कुछ आवश्यक जानकारी आप को मुझे देनी होगी, जिस से मैं आप की पेंशन की फाइल कंप्लीट कर दूं ताकि बीच में आप की पेंशन नहीं रुके. अब आप के पेंशन और खाते का दोबारा वेरीफिकेशन किया जाएगा.”

“अब जैसा कि मैं आप से पूछता जाऊं, आप बताते जाएं. आप की नियुक्ति पुलिस विभाग में फलां सन में दिनांक

इतने….इतने… को हुई थी, आप फलां फलां जनपद में पोस्टेड रहे हैं. आप फलां तारीख को रिटायर हुए हैं.”

“जी…अशोक बाबू आप के द्वारा पूछी व दी गई जानकारी एकदम सही है.”

ट्रेजरी औफिसर के पास राजकुमार की पुलिस विभाग में भरती से ले कर रिटायरमेंट सहित सभी जानकारी डेट बाई डेट फुल डिटेल के साथ थी.

ट्रेजरी औफिसर उन से बातचीत कर सारी जानकारी देते व लेते रहे, जहां राजकुमार को बात समझ नहीं आ रही थी, पास ही बैठे अपने भतीजे से बात करवा देते थे, क्योंकि उन का पेंशन संबंधी वेरीफिकेशन चल रहा था. बीचबीच में अंगरेजी के कई कठिन शब्द ट्रेजरी आफीसर द्वारा पूछ लिए जा रहे थे, जिन का जवाब उन का भतीजा दे रहा था और ट्रेजरी औफिसर द्वारा पूछे जा रहे सवालों से संतुष्ट था.

“राजकुमारजी, आप का वेरीफिकेशन पूरा हुआ. अभी आप के मोबाइल पर ओटीपी का मैसेज आएगा, ओटीपी नंबर मुझे बताइएगा. ताकि आप की हर महीने की पेंशन सुचारू रूप से आप के खाते में आ सके.”

ठगों के झांसे में फंसे दरोगाजी

इतना कह कर राजकुमार ने अपना मोबाइल फोन दोबारा अपने भतीजे को थमा दिया और बोले, “देखो बेटा, ये क्या पूछ रहे हैं? कैसा मैसेज आएगा ओटीपी वगैरह का. मुझे इन सब की विशेष जानकारी नहीं है, तुम्हीं सोचसमझ कर सारी चीजें बताओ.”

“अरे चाचाजी, इस में सोचनासमझना क्या है, ट्रेजरी औफिसर आप के दोस्त हैं न? आप उन से मिल भी चुके हैं, इन के द्वारा जो भी जानकारी अपडेट की जा रही है सब सही भी है, बस ओटीपी नंबर देना है.”

“हां…हां, ठीक है तो बता दे उन्हें, मुझे ये सब नहीं आता. इस के पहले कभी पूछा नहीं गया अब स्मार्टफोन का जमाना है, घर बैठे सब कुछ औनलाइन हो जाता है. फिर भी मैं इतना नहीं जानता हूं, तुम मुझ से ज्यादा स्मार्ट हो, सो तुम्हीं इन्हें बताओ. मुझे ओटीपी सोटीपी की नालेज नहीं है.”

बहरहाल, बात आईगई हो गई. भतीजे ने फोन करने वाले ट्रेजरी औफिसर अशोक कनौजिया को ओटीपी वगैरह बता दिए.

उस के ठीक एक दिन बीत जाने के बाद यानी 21 मार्च को रिटायर्ड एसआई राजकुमार के मोबाइल पर बैंक से मैसेज आया कि 9 लाख 98 हजार रुपया उन के खाते से निकल चुका है. अब राजकुमार का सिर घूमने लगा. उन्होंने सब से पहले ट्रेजरी औफिसर अशोक कनौजिया को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, “हैलो कौन?

“अरे अशोक बाबू मैं, राजकुमार बोल रहा हूं.”

“हांहां, जी बताएं दारोगाजी?”

“अजी गजब हो गया, मेरे बैंक अकाउंट से 9 लाख 98 हजार रुपए निकल चुके हैं, जबकि मैं ने फूटी कौड़ी तक नहीं निकाली और न ही बैंक गया.”

“अरेअरे! तो इस में इतना घबराने वाली क्या बात है, मैं बस थोड़ी ही देर में पहुंच कर आप को सारी जानकारी देता हूं, आप निश्चिंत रहें.”

करीब आधे घंटे बाद उन के मोबाइल पर काल आई, “अरे राजकुमारजी, गलती से आप का पैसा दूसरे पेंशनर के खाते में चला गया. चिंता न करें, ऐसा तकनीकी खराबी के कारण हुआ. आप का सारा पैसा दोबारा एकदो दिन मैं आप के खाते में आ जाएगा.”

दरोगाजी की उड़ गई नींद

अभी एक दिन भी नहीं बीता था कि 22 मार्च को दोबारा 10 लाख 49 हजार रुपए उन के खाते से निकल गए. अब राजकुमार का सिर चकराने लगा. कुल मिला कर 3 दिन के अंदर उन के खाते से 20 लाख रुपए से ज्यादा निकाल लिए गए थे. उन्होंने फिर से आननफानन ट्रेजरी औफिसर को फोन लगाया और सारी बात बताई.

उधर से जवाब आया, “दारोगाजी, अभी मैं अपने गांव आया हूं, परसों प्रयागराज लौटूंगा तो देखता हूं कहां क्या मिस्टेक हो रही है. चिंता न करें आप, मैं वापस आते ही औफिस पहुंच कर सब कुछ ठीक कर दूंगा.”

राजकुमार की तो जैसे नींद उड़ गई थी. बात छोटीमोटीरकम की नहीं बल्कि 20 लाख से ज्यादा रुपयों की थी. लिहाजा अगले दिन ही राजकुमार प्रयागराज कचहरी डीएम औफिस कंपाउंड में स्थित कोषागार ट्रेजरी औफिस नियत समय से पहले ही पहुंच गए.

औफिस खुलते ही सीधे वह ट्रेजरी औफिसर अशोक कनौजिया के पास पहुंचे. दुआसलाम के बाद अशोक बाबू से बातचीत का सिलसिला जारी हुआ .

“अरे आइए, आइए बैठिए दरोगाजी, बताएं कैसे आना हुआ?”

इतना सुन कर राजकुमार बड़ी बुरी तरह चौंके, “आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं अशोक बाबू, एकएक पल की खबर है आप के पास और उलटे मुझ से ही पूछ रहे हैं कि कैसे आना हुआ?”

अब राजकुमार से ज्यादा चौंकने की बारी ट्रेजरी औफिसर की थी.

“कैसी बात कर रहे हैं दरोगाजी, किस खबर की बात कर रहे हैं आप?”

“अशोक बाबू, लगातार 3 दिन आप से बात हुई है. मेरे खाते से 20 लाख से ज्यादा रुपए निकल गए हैं, पूरी जानकारी आप ने फोन पर ली और दी, फिर भी पूछ रहे हैं. आप ने कहा था कि गांव से आने के बाद सब ठीक कर दूंगा, किसी दूसरे पेंशनर के खाते में आप का पैसा चला गया है.” राजकुमार ने एक सांस में कह दिया.

अब बुरी तरह से चौंकने की बारी अशोक बाबू समेत पूरे डिपार्टमेंट की थी. अशोक कनौजिया फौरन समझ गए कि दरोगाजी के साथ बहुत तगड़ा फ्रौड हुआ है. उन्होंने राजकुमार से वह मोबाइल नंबर लिया, जिस पर उन की बात होती थी, फिर अपना नंबर बताया और कहा, “दरोगाजी, न मेरी आप से फोन पर बात हुई और न ही मैं गांव गया था.”

“अब पूरी तरह विस्तार से बताएं, हुआ क्या है?”

साइबर ठगों ने उड़ाए 20 लाख

रुंधे गले से राजकुमार ने पूरी कहानी अशोक कनौजिया को बता दी, जिसे पूरा स्टाफ भी सुन रहा था. उन की सारी व्यथा सुनने के बाद बात पूरी तरह साफ हो गई थी कि वह बहुत बड़ी धोखाधड़ी यानी साइबर क्राइम का शिकार हो चुके थे. फौरन उन के खाते को खंगाला गया तो वास्तव में 20 लाख रुपए 3 दिन के भीतर साइबर अपराधियों ने उन के खाते से गायब कर दिए थे.

अशोक कनौजिया ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा, “दरोगाजी, आप के पास मेरा मोबाइल नंबर था. एक बार चैक तो कर लेते. आप जैसे पढ़ेलिखे लोग वो भी पुलिस विभाग से रिटायर्ड, कैसे इतना बड़ा गच्चा खा गए? एक बार आ कर औफिस में कंफर्म तो कर लेते. पहली बार में ही आप को यहां आना चाहिए था, जब आप की 10 लाख रुपए की भारीभरकम रकम निकली थी. बड़े अफसोस की बात है, आप के जीवन भर की जमापूंजी एक छोटी सी नादानी के कारण आप के अकाउंट से साइबर ठग ने निकाल ली. आखिर कैसे इतना बड़ा धोखा हो गया आप से?”

“क्या बताऊं अशोक बाबू, जब मैं 38 मार्च को आप से मुलाकात कर के घर चला गया था, उसी के ठीक तीसरे दिन उस धोखेबाज का फोन आया था. उस की आवाज हूबहू आप की आवाज से मिल रही थी, मैं ने सोचा कि आप ही मुझ से बात कर रहे हैं. इसे इत्तेफाक और मेरा दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि उस के पास जैसे मेरा पूरा रेकौर्ड था. मैं ने आप को ही समझ कर पूरी जानकारी देता गया और वह इतने कौन्फीडेंस के साथ बात कर रहा कि सिर्फ मैं ही नहीं, परिवार के सभी सदस्य उस के झांसे में आ गए.”

ट्रेजरी औफिसर और स्टाफ ने राजकुमार को सांत्वना और ढांढस बंधाते हुए साइबर सेल थाने जा कर उस साइबर क्रिमिनल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी. उस के खिलाफ मुकदमा लिखवाने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा था. सो लुटेपिटे और थकेहारे रिटायर्ड एसआई राजकुमार आईजी जोन औफिस स्थित साइबर क्राइम थाने पहुंचे, जहां उन की मुलाकात इंसपेक्टर राजीव कुमार तिवारी से हुई. रिटायर्ड एसआई राजकुमार ने उन्हें अपना परिचय देते हुए अपनी सारी व्यथा उन के सामने कह डाली.

साइबर क्राइम पुलिस आई हरकत में

इंसपेक्टर राजीव कुमार तिवारी ने राजकुमार से साइबर ठग का मोबाइल नंबर वगैरह नोट करते हुए आईपीसी की धारा 410, 420 के अलावा 66सी, डी आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. चूंकि मामला पुलिस विभाग के एक रिटायर्ड एसआई का था, जिसे साइबर ठग ने नहीं बख्शा. काफी शातिर ठग था जिस का हर हाल में परदाफाश करना था, सो राजकुमार से बोले, “राजकुमारजी, आप की हरसंभव मदद की जाएगी. हम अपराधियों को पाताल से भी निकाल लेंगे, ये मेरा वादा है.”

साइबर थाने में इसी तरह का केस सितंबर 2022 में भी आया था. मूलरूप से चंदौली जिले के कांवरनाथ बलुआ निवासी भोला चौधरी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल थे. वह प्रयागराज के खुल्दाबाद में रहते हैं. उन के रिटायर होने के बाद उन के खाते से भी 15 सितंबर, 2022 को 10 लाख रुपए साइबर अपराधियों ने निकाल लिए थे. उन्होंने 16 सितंबर, 2022 को साइबर क्राइम थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

राजकुमार की तहरीर ले कर साइबर थाने के इंचार्ज राजीव तिवारी सीधे सीओ अतुल यादव के पास पहुंचे और रिटायर्ड एसआई राजकुमार के साथ हुए साइबर फ्रौड का पूरा मामला बयान किया. जिसे सुनने के बाद फौरन सीओ अतुल यादव ने अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित की.

इस टीम में थाना इंचार्ज राजीव कुमार तिवारी, एसआई अनुज कुमार तिवारी, राघवेंद्र कुमार पांडेय, हैडकांस्टेबल सत्येश राय, कांस्टेबल रूप सिंह, लोकेश पटेल, प्रदीप कुमार यादव, अनुराग यादव, मुसलिम खां को शामिल किया गया.

पीडि़त राजकुमार द्वारा उपलब्ध कराए गए फोन नंबर को ट्रैकिंग के लिए सर्विलांस पर लगा दिया गया. पुलिस ने उस नंबर पर काल करनी चाही तो कभी नाट अवेलेबल तो कभी नाट रीचेबल तो कभी आउट औफ नेटवर्क कवरेज एरिया बताया जा रहा था.

पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जांच की कि उस नंबर से किनकिन लोगों से संपर्क किया गया. जांच टीम ने यह भी पता लगा लिया कि रिटायर्ड एसआई राजकुमार के खाते से रकम किनकिन अकाउंट में ट्रांसफर की गई थी. जानकारी मिली कि वह रकम पश्चिम बंगाल के बैंक खाते में ट्रांसफर की गई थी. फिर वह वहां से दूसरे खातों में भेजी गई.

साइबर क्राइम ब्रांच की एक टीम पश्चिम बंगाल पहुंच गई. वहां जा कर पता चला कि जिन लोगों के खातों में यह ठगी की रकम ट्रांसफर की गई थी, वे बेहद गरीब थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपना बैंक अकाउंट नंबर 20 हजार रुपए महीना अंकित को किराए पर दे रखा है. उन्हें नहीं पता कि अंकित उन के अकाउंट में क्या करता है. पुलिस टीम को किराए पर बैंक अकाउंट देने की जानकारी मिली थी.

बहरहाल, पुलिस को उन खाताधारकों से पता चला कि अंकित नार्थ 24 परगना के बैरकपुर में रहता है. पुलिस को उस का फोन नंबर भी मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगवा दिया. अंकित की काल डिटेल्स से भी पुलिस को कई और संदिग्ध फोन नंबर मिले. करीब 3 महीने तक जांच टीम साइबर अपराधियों की तलाश में जुटी रही.

आखिर मई, 2023 के तीसरे सप्ताह में पुलिस को साइबर अपराधियों तक पहुंचने में सफलता मिल गई और इस केस के 5 शातिर साइबर अपराधियों को झारखंड से गिरफ्तार कर लिया गया.

साइबर अपराधियों के गैंग का हुआ खुलासा

पूछताछ के दौरान पता चला कि गिरफ्तार साइबर ठग अब्दुल मतीन उर्फ मार्टिन (35) निवासी बारा, जिला देवघर, झारखंड जोकि इस गैंग का सरगना था और उस के साथी 29 वर्षीय अंकित अग्रवाल निवासी अलीगोत महल सदर बाजार, बैरकपुर जिला नार्थ चौबीस परगना, पश्चिम बंगाल, 25 वर्ष का बशारत अंसारी निवासी ग्राम संथाली सिमरा, जिला देवघर, झारखंड, एस.के. जीशान (25 वर्ष) न्यू टेंगरा रोड, सर्कस एवेन्यू कोलकाता पश्चिम बंगाल, विजय प्रसाद (25 वर्ष) निवासी गोविंदा खटीक रोड, सर्कस एवेन्यू, कोलकाता पश्चिम बंगाल थे.

इन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि कैसे रिटायर्ड कर्मचारियों को ओपन सोर्स से औनलाइन जानकारी कर के मोबाइल फोन पर ट्रेजरी औफिसर बन कर फोन करते थे और घटना को अंजाम देने के लिए अपने फोन नंबरों को ट्रूकालर पर ट्रेजरी अधिकारी के नाम से अपडेट कर रखे थे.

इन का पहला टारगेट पेंशन खाताधारक को नौकरी से संबंधित पूरी जानकारी जैसे नियुक्ति दिनांक, रिटायरमेंट की तारीख वगैरह बता कर पहले विश्वास में लेना होता था. उन्हें विश्वास में लेने यानी शीशे में पूरी तरह उतारने के बाद पेंशन खातों को औनलाइन वेरीफिकेशन के नाम पर गोपनीय दस्तावेजों ओटीपी को रिमोट एक्सेसिंग ऐप (एनीडेस्क, टीमव्यूवर आदि) के माध्यम से प्राप्त कर के पेंशनर के एकाउंट से औनलाइन बैंकिंग ऐप को डाउनलोड और चालू कर के रकम निकाल लेते थे.

जब साइबर क्राइम थाने की टीम ने गहराई से जानकारी जुटाई तो पाया कि इस पूरे मामले में झारखंड और पश्चिम बंगाल का गैंग शामिल है. साइबर ठगों से बरामद प्रयोग में किए जाने वाले मोबाइल सिमकार्ड, एटीएम कार्ड और मोबाइल नंबरों को तेलंगाना पुलिस और राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर जब सर्च किया गया तो पाया कि अभियुक्त अब्दुल मतीन और इस के गैंग के सदस्यों द्वारा 179 साइबर ठगी की वारदातें की गई हैं. पता चला कि करोड़ों रुपए की साइबर ठगी करने वाले इस गैंग के 12 लोग पहले ही विभिन्न राज्यों से गिरफ्तार हो चुके हैं. इस गैंग ने ज्यादातर पुलिस वालों को ही ट्रेजरी औफिसर बन कर ठगा.

जानकारी मिली कि साइबर गैंग के द्वारा पूरे देश में एक लंबे समय से रिटायर्ड कर्मचारियों से कई करोड़ रुपए की ठगी की गई है, जिस का मिलान अन्य प्रदेशों की जांच एजेंसियों से संपर्क स्थापित कर के किया जा रहा है. अभियुक्तों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे बैंक खातों को पुलिस अधिकारियों ने फ्रीज करा दिया है और इस खेल में शामिल अन्य लोगों की तलाश की जा रही है.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए साइबर ठगों से 9 मोबाइल फोन, 15 एटीएम कार्ड, 11 प्रीएक्टिवेटेड सिम कार्ड, स्मार्ट घड़ी आदि बरामदकिए. 23 मई, 2023 को पुलिस मुख्यालय प्रैस कौन्फ्रैंस कर घटना का खुलासा किया. गिरफ्तार अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

रिटायर्ड कर्मी भी ऐसे बचें साइबर ठगों से

रिटायर्ड कर्मी ट्रेजरी फ्रौड से बचने के लिए इन टिप्स को ध्यान से समझें—

ट्रेजरी विभाग की तरफ से फोन कर के पेंशनर्स से कोई जानकारी नहीं मांगी जाती, इसलिए इस डिपार्टमेंट के नाम से कोई काल करे तो उसे रिसीव न करें. यदि किसी पेंशनर को ट्रेजरी विभाग के कर्मचारियों से संपके करना है तो वह फोन करने के बजाय सीधे कार्यालय आएं, ताकि ठगी न हो सके. फोन पर बात करते हुए बैंक से जुड़ा कोई काम न करें, इस के बजाय कोई दिक्कत हो तो सीधे बैंक या ट्रेजरी कार्यालय में जाएं.

साइबर क्रिमिनल कई बार पैसों के ट्रांसफर कराने के नाम पर वेरिफिकेशन कोड मांग लेते हैं, इसलिए फोन पर ऐसी बात कभी न करें. अगर किसी के पेंशन खाते में दिक्कत आ भी रही है तो इस के लिए फोन न करें, इस के बजाय कार्यालय में आ कर ही बात करें.

सभी पेंशनर अपने मोबाइल नंबर को बैंक अकाउंट से अपडेट रखें और एटीएम कार्ड का पासवर्ड समयसमय पर बदलते रहें. पेंशनर कभी भी बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड डिटेल्स, आधार कार्ड या कोई जानकारी किसी को भी न बताएं. रिटायर होने के बाद बैंक में जा कर भी अपनी निजी जानकारी खुल कर न बताएं वरना वहां मौजूद शख्स भी फरजीवाड़ा कर सकता है.

किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें. ट्रेजरी फ्रौड से बचने के लिए जो रिटायर होने वाले अधिकारी व कर्मचारी हैं, वह किसी भी ट्रेजरी अधिकारी के फोन करने पर अपनी कोई भी गोपनीय जानकारी जैसे एटीएम पिन ओटीपी आदि शेयर न करें. वह फोन पर आए किसी भी लिंक पर क्लिक न करें, क्योंकि बैंक और ट्रेजरी औफिस से कोई भी जानकारी फोन के माध्यम से नहीं मांगी जाती है.

इस के बावजूद भी अगर फिर भी कोई इस तरह की साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो तत्काल 1930 पर काल करें तथा नजदीकी साइबर अपराध सेल या पुलिस थाने में संपर्कं करें.

—अतुल कुमार यादव

सीओ – साइबर क्राइम थाना, प्रयागराज

ड्राईफ्रूट्स से लाखों की ठगी

चेन्नै (तमिलनाडु) की लाइफ स्पाइस इंडिया प्रा.लि. के प्रतिनिधि नवीन कुमार झा 10 मई, 2023 को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के हरीपर्वत थाने पहुंचे. उन्होंने एसएचओ अरविंद कुमार से शिकायत की कि उन के साथ आगरा की फार्मर फ्रैश ड्राई फ्रूट्स एंड स्पाइस कंपनी ने धोखाधड़ी की है.

नवीन ने बताया कि उन्हें कंपनी ने 20 अप्रैल, 2023 को 15 टन मसालों की सप्लाई का आर्डर दिया था. इन मसालों की कीमत एक करोड़ रुपए के करीब थी. उन से माल भेजने के बाद पेमेंट देने की बात कही गई. इस पर 2 से 3 मई के बीच पूरा माल सप्लाई कर दिया गया. आगरा की कंपनी ने माल प्राप्ति के बाद भी वायदे के अनुसार 30 प्रतिशत भुगतान भी नहीं किया.

उस के द्वारा एकांउंटेंट की बीमारी का बहाना बना कर पूरा माल उतरवा लिया. जब उन्होंने 6 मई, 2023 को दिल्ली से आगरा आ कर संपर्क किया तो फर्म के औफिस और गोदाम पर ताले लटके मिले. कंपनी के लोगों के मोबाइल फोन भी बंद थे.

नवीन की तरह अल्केश शर्मा ने भी उसी कंपनी के खिलाफ शिकायत की. वह कर्नाटक में बेलगांव कंपनी के सेल्समैन थे. उन्होंने भी एसएचओ को बताया कि स्मार्ट कैश्यू एलएलपी की डायरेक्टर कविता शर्मा से एक ग्राहक ने संपर्क किया था. इस पर डायरेक्टर ने उन्हें आगरा जा कर फार्मर फ्रैश ड्राईफ्रूट्स ऐंड स्पाइस कंपनी के बारे में तहकीकात करने के लिए कहा था.

साइबर अपराधियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज

वह कंपनी द्वारा बताए पते पर गया जो संजय प्लेस के वृंदावन टावर में था. वहां उस की मुलाकात रीना और गुंजन से हुई. रीना ने खुद को कंपनी का डायरेक्टर बता कर सिद्धार्थ औफिस से करने का आर्डर दिया. इस तहकीकात से संतुष्ट हो कर उस की कंपनी ने 1000 किलोग्राम काजू का आर्डर ले लिया. तय कार्यक्रम के मुताबिक 8 अप्रैल, 2023 को 7 लाख 47 हजार 6 सौ रुपए का काजू बेलगांव से आगरा भेज दिया गया.

यह आर्डर कंपनी के स्टाफ सिद्धार्थ द्वारा मिला था. वायदे के मुताबिक काजू 13 अप्रैल, 2023 को आगरा के गोदाम पर पहुंच गया, लेकिन कंपनी द्वारा 24 घंटे में पेमेंट नहीं मिल पाया. उन से संपर्क करने पर कंपनी के कर्मचारियों के मोबाइल बंद मिले. उस के बाद आगरा आ कर कंपनी के औफिस पहुंचे, तब उन्हें औफिस और गोदाम पर ताला लगा मिला.

धोखाधड़ी के 2 मामले

जिस कंपनी के खिलाफ ये 2 शिकायतें मिली थीं, उस का औफिस संजय प्लेस स्थित वृंदावन टावर में सातवें फ्लोर पर था, जबकि गोदाम हरीपर्वत क्षेत्र में हलवाई की बगीची में बनाया गया था. एसएचओ अरविंद कुमार द्वारा अल्केश शर्मा और नवीन कुमार झा की शिकायतों पर कंपनी के 9 लोगों सौरभ पालीवाल, संदीप, ललित, अनिल, तान्या, रीना, राजवीर सिंह, संजय व प्रवीण गुप्ता के खिलाफ भादंवि की धारा 420/406 के तहत 2 मुकदमे दर्ज कर लिए गए.

एसएचओ ने करोड़ों की धोखाधड़ी के इस मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. दर्ज रिपोर्ट में सभी आरोपियों का पता दिल्ली एनसीआर गुरुग्राम का था. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस आयुक्त कमिश्नरेट, आगरा डा. प्रीतिंदर सिंह ने डीसीपी (सिटी) विकास कुमार के नेतृत्व में एसीपी (हरीपर्वत) के मार्गदर्शन में टीमें बनाई गईं. एक टीम थाना हरीपर्वत की, जबकि अन्य एसओजी और सर्विलांस की टीमें थीं. दोनों टीमों का सब से पहला काम फरार अभियुक्तों की गिरफ्तारी का था.

पुलिस ने किया लाखों का माल बरामद

साइबर धोखाधड़ी के 2 मुकदमे दर्ज होने के बाद दूसरे राज्यों से भी इसी तरह के शिकार हुए लोगों के फोन आने लगे. किसी से मखाना तो किसी से मेवे मंगाए गए थे. एसओजी प्रभारी कुलदीप दीक्षित और इंसपेक्टर अरविंद सिंह को मामले की छानबीन में पता चला कि यह कंपनी विभिन्न राज्यों की कई कंपनियों को चूना लगा चुकी है.

मुकदमे दर्ज होने के बाद पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला दिया. सफलता भी जल्द मिल गई. मुकदमा दर्ज होने के 2 दिन बाद ही 12 मई, 2023 को गिरोह का परदाफाश हो गया. इस मामले में मथुरा निवासी निदेशक सौरभ पालीवाल, संदीप गुर्जर, अमित, ललित समेत अलवर राजस्थान निवासी संजय और राजवीर संजय प्लेस के पास से गिरफ्तार कर लिए गए.

इन की निशानदेही पर उन के वेयरहाउस से 575 बोरे इलायची, जीरा, लौंग, 49 कार्टन जावित्री, 20 टन काजू, 8 विभिन्न बैंकों की चैकबुक, कई एटीएम कार्ड, 15 लिफाफाबंद सिमकार्ड, 4 फरजी आधार कार्ड, 2 फरजी वोटर आईडी कार्ड, एक फरजी एग्रीमेंट, एक फरजी मैडिकल सर्टिफिकेट, 10 गुरुग्राम के पते की मुहर व विजिटंग कार्ड बरामद किए.

पुलिस आयुक्त डा. प्रीतिंदर सिंह ने मीडिया को कंपनी के कारनामों का खुलासा करते हुए उस का काला चिट्ठा खोल कर रख दिया. उस के मुताबिक कंपनी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, महाराष्ट्र सहित अन्य दूसरे दक्षिण भारत के राज्यों के व्यापारियों से ड्राईफ्रूट्स (सूखे मेवे) एवं मसालों का सौदा कर करोड़ों रुपए की ठगी करती थी. इस के लिए कंपनी ने बाकायदा एक गिरोह बना रखा था.

इस कंपनी द्वारा ये बड़ेबड़े होलसेलर और बड़ी कंपनियों से ठगी करते थे. जांच से पता चला है कि सौरभ पालीवाल ऐसी ठगी के लगभग 100 कारनामे कर चुके थे. उन के काम करने के अनोखे तरीके के बारे में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

इस धंधे का मास्टरमाइंड सौरभ है, जिस ने कंपनी बनाने की योजना बनाई थी. इस तरह आगरा के संजय पैलेस पते से एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना ली गई, जिस के डायरेक्टर्स बनाए गए. फरजी डाक्यूमेंट्स लगाए गए. कंपनी के लिए जुटाए गए तमाम एग्रीमेंट्स जानबूझ कर फरजी बनाए गए, जिन में सौरभ ने अपनी पहचान छिपा ली थी. कंपनी की शुरुआत हो जाने पर उस के द्वारा छोटेछोटे कंसाइनमेंट लिए गए. उन के पेमेंट में कोई गड़बड़ी नहीं हुई. ऐसा करने पर दूसरी कंपनियों में उस की साख बन गई. पेमेंट टाइम से किया जाने लगा.

उस के बाद बारी आई बड़े कंसाइनमेंट लेने की. इस की योजना काफी सावधानी से की गई. कंपनियों पर विश्वास बनाए रखने पर अपने बचाव के तरीके भी अपनाए. आर्डर लेने के लिए वाट्सऐप मैसेजिंग का सहारा लिया और जैसे आर्डर मिल जाता और माल गोदाम तक पहुंच जाता, वे अपना नंबर ही बदल लेते थे यानी अपनी फरजी कंपनी से लाखों रुपए का चूना लगा दिया.

माल मंगा कर नहीं दिए पैसे

तमिलनाडु व कर्नाटक की कई बड़ी कंपनियों की बड़ी राशि ठगी जा चुकी थी. तमिलनाडु की कंपनी से एक करोड़ के मसाले मंगाए गए थे, जिस की सप्लाई 2 कंटेनरों से की गई थी. माल के आगरा पहुंचते ही उन से संपर्क खत्म कर लिया था. उन्हें कहा गया कि उन के एकाउंटेंट को हार्ट अटैक आ गया है. वे अस्पताल से ही बोल रहे हैं. इस समय हम आप को पेमेंट नहीं कर सकते.

तमिलनाडु की कंपनी वालों को यह माल भेजने में ही डेढ़ लाख रुपए खर्च हो गए थे. इसे देखते हुए कंपनी ने पेमेंट नहीं मिलने पर भी वापस मंगवाने के बजाय माल आगरा में उतरवा दिया था. इस के बाद कंपनी ने पेमेंट के लिए प्रयास करना शुरू किया, लेकिन कंपनी ने जिनजिन फोन नंबरों पर फोन किया, सभी स्विच्ड औफ मिले. यहां तक कि 7 लाख के करीब रकम का मिला चैक भी बाउंस हो गया.

इस तरह से तमिलनाडु की कंपनी को ठगे जाने का एहसास हो गया. मसाला व्यापारी के साथ सौरभ ने करीब एक करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की. उस के बाद ही तमिलनाडु और कर्नाटक की कंपनियों की तरफ से आगरा के थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई.

ड्राई फ्रूट्स और मसालों के कारोबार के नाम पर एक करोड़ से अधिक के साइबर धोखाधड़ी में मास्टरमाइंड सौरभ पालीवाल शेरगढ़, मथुरा का रहने वाला वह करोड़पति बनना चाहता था. इस के चलते उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर फरजी कंपनी बनाई थी.

मास्टरमाइंड सौरभ बीए फेल

पुलिस को हैरानी इस बात की हुई कि सौरभ बीए फेल था. उस के बाद उस ने आगे की कोई पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन कोरोना काल से पहले के साल 2019 में गुरुग्राम की एक दुकान से मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखा था. इस के बाद साल 2020 के अंत में गुरुग्राम में ही नैचुरल एसेनसन कंपनी में परचेज एक्जीक्यूटिव की नौकरी शुरू की थी.

उन दिनों लौकडाउन के चलते औनलाइन काम में तेजी आ गई थी. इस दौरान उस के संपर्क दिल्ली, गाजियाबाद, गुरुग्राम आदि के व्यापारियों से हो गए थे. हालांकि अगले साल 2021 में उस ने नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन तब तक वह औनलाइन काम का अनुभवी हो गया था. इस के बाद साल 2022 में वह एम.ए. ट्रेडिंग कंपनी में पर्चेज और सेल्स का काम करने लगा. साल के अंत में उस ने उसे भी छोड़ दिया और आगरा आ गया.

सौरभ के दिमाग में रातोंरात करोड़पति बनने का कीड़ा कुलबुलाता रहता था. वह जानता था कि उस का सपना नौकरी करते हुए कभी पूरा नहीं हो सकता है. मोटा पैसा किसी बिजनैस से ही बना सकता था. यही कारण है कि उस ने नौकरी की जगह अपना बिजनैस शुरू कर लिया. उस ने आगरा के संजय प्लेस स्थित वृंदावन टावर में सातवें फ्लोर पर जनवरी, 2022 में अपना औफिस खोल लिया.

इस का रजिस्ट्रैशन भी फरजी कागजों से करवाया. वह पार्टियों से डील करते समय एग्रीमेंट भी फरजी आधार कार्ड आदि से करने लगा. इस के पीछे उस की मंशा पहचान छिपाने की थी. सौरभ पालीवाल की ठग कंपनी में दूसरा नाम सिद्धार्थ का था. वह इस कंपनी का साझेदार डायरेक्टर था. अपने साथी राजवीर को उस ने मैंनेजिंग डायरेक्टर बनाया था.

सोशलसाइट के जरिए गूगल पर फार्मर फ्रैश ड्राई फूट्स ऐंड स्पाइस का खूब प्रचारप्रसार किया. शुरू में कंपनी ने अपनी साख बनाने के लिए एडवांस भुगतान का वादा किया. सौदा करने वाली कंपनियों को आश्वासन दिया कि 30 परसेंट माल पहुंचने पर व 70 परसेंट बाद में भुगतान कर दिया जाएगा.

साइबर अपराधी ने यूं जीता भरोसा

सौरभ ने पुलिस पूछताछ में बताया कि उस ने पहले छोटेछोटे आर्डर दे कर व्यापारियों का भरोसा जीता. इस के लिए उस ने पहले बदायूं से 30 हजार रुपए का मखाना मंगाया. उस व्यापारी का पेमेंट करने के बाद दोबारा करीब 2 लाख रुपए का मखाना मंगवाया, लेकिन पेमेंट नहीं किया.

इसी तरह से दिल्ली से 300 किलोग्राम काजू मंगवाया और पेमेंट कर दिया. इस के बाद 10 क्विंटल काजू मंगाया. दरभंगा से 10 क्विंटल मखाना, बिहार से 800 किलोग्राम, कर्नाटक से 10 क्विंटल काजू मंगाया, लेकिन उन का पेमेंट नहीं किया.

मास्टरमाइंड सौरभ बेंगलुरु सहित अन्य राज्यों से माल मंगाता रहा. उस ने काजू व्यापारियों से धोखाधड़ी की. वह छोटी डील का पेमेंट कर देता था, ताकि व्यापारियों का भरोसा हासिल कर सके. किंतु बाद में बड़े एमाउंट का आर्डर दे कर माल मंगाने के बाद वह पेमेंट नहीं करता था. जब व्यापारी पैसा मांगते थे, तब वह फोन नंबर बदल लेता था. इसी तरह वह लाखों रुपए की चीटिंग करता रहा.

धोखाधड़ी से लिया माल बेचा सस्ते में

सौरभ जहां खरीदे हुए माल का होलसेलर को पूरा पैसा पेमेंट नहीं करता था, वहीं उस माल पर अपनी फर्म का टैग लगा कर आगरा, गाजियाबाद और दिल्ली के व्यापारियों को सस्ते दामों में बेच देता था. अपने रेट के मुताबिक 360 रुपए किलोग्राम में नंबर वन का काजू और 380 रुपए किलोग्राम मखाना बेचने की जानकारी भी पुलिस को मिली है. माल खरीदने वाले व्यापारी पुलिस के निशाने पर हैं.

एक व्यापारी को पुलिस ने मुकदमे में वांछित भी किया है. साइबर अपराधी सौरभ ने अपनी कंपनी का गोदाम, जो थाना हरीपर्वत क्षेत्र में हलवाई बगीची में स्थित था, उसे अंतर्राज्यीय बस अड्ïडा (आईएसबीटी) शिफ्ट कर लिया था. यहां से दूसरे राज्य के प्रमुख शहरों के लिए सीधी बस सेवा है. यहां से माल को आसानी से दूसरे शहरों में खपाया जा सकता था. उसी की तैयारी चल रही थी, तभी पुलिस का छापा पड़ गया और सारा माल पकड़ा गया.

पुलिस ने जांच के दौरान इस कंपनी के सभी बैंक एकाउंट को सीज कर दिया है. कंपनी द्वारा चैक व कैश पेमेंट के माध्यम से जो भी डील की गई थी, उस की भी जानकारी जुटाई जा रही है. इस के अलावा इस कंपनी से जुड़े सभी लोगों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है.

चेन्नै (तमिलनाडु) की लाइफ स्पाइस इंडिया प्रा.लि. के प्रतिनिधि नवीन कुमार झा ने बताया कि फ्रौड कंपनी ने 10 टन जीरा, 500-500 किलोग्राम छोटी व बड़ी इलाइची, जावित्री व सौंफ सहित कुल 15 टन माल लिया था, जिस की कीमत करीब एक करोड़ रुपए थी. लगभग 7 लाख रुपए का जो चैक दिया था, वह भी बाउंस हो गया, क्योंकि खाते में इतना पैसा नहीं था.

बेलगांव की कंपनी के सेल्समैन अल्केश शर्मा ने बताया कि आगरा की फार्मर फ्रैश ड्राईफ्रूट्स ऐंड स्पाइस कंपनी ने उन से औनलाइन संपर्क किया था. अपनी कंपनी की डायरेक्टर के कहने पर वह आगरा इस कंपनी के औफिस में आए और उन्हें एक हजार किलोग्राम काजू सप्लाई का आर्डर दिया गया. इस काजू की कीमत लगभग साढ़े 7 लाख रुपए थी.

13 अप्रैल, 2023 को माल डिलीवर हो गया. वायदे के अनुसार 2 दिन में पेमेंट करना था. लेकिन इस के बाद सभी के नंबर बंद हो गए. औफिस व वेयरहाउस पर ताला लगा दिया गया. सौदा कर करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले 6 शातिर आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

इस पुलिस टीम में एसएचओ (हरीपर्वत) अरविंद कुमार, एसओजी प्रभारी कुलदीप दीक्षित, एसआई अनिल शर्मा, राजकुमार बालियान, मोहित सिंह, निशामक त्यागी, नितिन यादव, हैडकांस्टेबल वीरेंद्र सिंह, विपिन कुमार, मुकुल शर्मा, सुमित, कांस्टेबल राकुल, राजीव पाराशर, आमिर खान, मानवेंद्र उपाध्याय सभी एसओजी टीम, कांस्टेबल विश्वेंद्र सिंह, पंकज कुमार, गौतम चौधरी, अंकित कुमार सभी थाना हरीपर्वत शामिल थे. पकड़े गए सभी 6 आरोपियों को पुलिस ने न्यायालय के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया.

नोएडा पुलिस ने इनामी युवती को किया गिरफ्तार

आगरा में ड्राई फ्रूट्स कंपनी का फरजीवाड़ा सामने आने से 3 साल पहले नोएडा में 250 करोड़ की ठगी इसी तरह एक कंपनी द्वारा की गई थी. ठगी के बाद कंपनी फरार हो गई थी. देश के चर्चित घोटालों में शामिल इस ड्राईफ्रूट घोटाला मामले में नोएडा पुलिस ने एक बड़ी काररवाई करते हुए गैंग की सदस्य एक 30 वर्षीय युवती नीलकमल को गिरफ्तार किया है. इस युवती की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित था.

यह युवती आगरा के सिकंदरा की रहने वाली है. यह मोहित गोयल के लिए काम करती थी. नीलकमल साल 2020 से फरार चल रही थी. सेक्टर-63 थानाप्रभारी अमित मान ने बताया कि युवती आरोपी नीलकमल ने अपने साथियों के साथ मिल कर षडयंत्र के तहत थाना-58 क्षेत्र में एक अलीशान कार्यालय में दुबई ड्राईफ्रूट्स ऐंड स्पाइस हब के नाम से कंपनी खोली थी.

गैंग के सदस्यों ने संपूर्ण भारत व विदेश से ड्राईफू्रट के थोक विक्रेताओं से भारी मात्रा में अलगअलग तरह के कीमती ड्राईफ्रूट सप्लाई करने का आर्डर दिया. माल मिलने के बाद विक्रेताओं को माल की कुल रकम का एक बहुत छोटा हिस्सा दे कर बाकी रकम के फरजी चैक दिए थे.

इस दौरान गैंग के लोगों ने करीब 250 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी विभिन्न कंपनियों व थोक विक्रेताओं के साथ की थी. इस घोटाले का मास्टरमाइंड मोहित गोयल इस समय गौतमबुद्ध नगर की जेल में बंद है. इस मामले में नोएडा में 11 मुकदमे दर्ज हुए थे. कुल 17 आरोपी थे, इन में मोहित गोयल और उस का साथी ओमप्रकाश जांगिड़ सहित कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था.

तुरंत एफआईआर दर्ज कराएं

डिजिटल क्रांति के बाद अब ठगों ने भी ठगी का नया तरीका अपनाना शुरू कर दिया है. अब यह शातिर औफलाइन और औनलाइन दोनों तरीकों का साथसाथ इस्तेमाल कर रहे हैं. ये ठग औनलाइन फरजी कंपनी बना कर आलीशान औफिस खोलते हैं, ताकि व्यापारियों पर अच्छा प्रभाव जम सके. इस के बाद वह मार्किट में अपनी साख भी जमाने की कोशिश कर लेते हैं. फिर शुरू होता है उन का बड़ा गेम. ये धोखेबाज दूसरे राज्यों की कंपनी को बड़े आर्डर दे कर करोड़ों रुपए का माल ले कर तथा फरजी चैक दे कर रफूचक्कर हो जाते हैं.

साइबर ठग सौरभ पालीवाल ने यही किया. ऐसे धोखेबाजी से बचने के लिए जरूरी है कि व्यापारी बड़े और्डर के लालच में न फंसें. अपने माल का पूरा पैसा ले कर ही माल की डिलीवरी करें. इस के बावजूद भी यदि किसी के साथ धोखाधड़ी होती है तो बिना देर किए उस की रिपोर्ट नजदीकी थाने में दर्ज कराएं ताकि ऐसे धोखेबाजों के खिलाफ काररवाई की जा सके.

—डा. प्रीतिंदर सिंह (पुलिस आयुक्त, आगरा)

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 4

सितंबर महीने में एजाज की मुलाकात बरेली की रहने वाली एक अन्य युवती आबिदा (परिवॢतत नाम) से हुई तो उस ने उसे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. इस के पीछे भी उस का मकसद था. वह आसमा को हमेशा के लिए छोड़ कर उस युवती से निकाह कर के आगरा में अपना ठिकाना बनाना चाहता था. क्योंकि आगरा स्थित एयरबेस की सूचनाएं उसे जुटानी थीं.

आसमा उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. इस बोझ से भी वह छुटकारा पाना चाहता था. दिली मोहब्बत तो उसे नई महबूबा से भी नहीं थी. अपना कौंट्रैक्ट पूरा कर के फरवरी, 2016 में उसे पाकिस्तान चले जाना था.

अपने मिशन के तहत उस ने भारतीय वायुसेना द्वारा मिराज विमान की यमुना एक्सप्रेस वे पर की गई इमरजैंसी लैंडिंग  संबंधी वीडियो, बरेली छावनी स्थित विभिन्न इकाइयों की जानकारी, बरेली एयरबेस व सुखोई-30 फाइटर जैट की जानकारी, हरिद्वार, मेरठ छावनी सैन्य इकाइयों के स्कैच व उन के मूवमेंट आदि की जानकारी आईएसआई को उपलब्ध करा दी थी. भारत में होने वाली सांप्रदायिक घटनाओं की पूरी जानकारी भी वह पाकिस्तान भेजता था.

भारत में आतंकी गतिविधियों और जासूसी के मामलों में खुफिया एजेंसियां और स्पैशल टास्क फोर्स जांचपड़ताल में जुटी रहती हैं. इसी कड़ी में पुलिस महानिदेशक जगमोहन यादव को कुछ खुफिया सूचनाएं मिलीं तो उन्होंने एसटीएफ के आईजी सुजीत पांडेय को वह सूचनाएं दे दीं. उन्होंने उन से उन सूचनाओं पर काम करने को कहा. आईजी पांडेय ने वे सूचनाएं अधीनस्थों को निर्देशित कर दीं.

एसटीएफ के एसएसपी अमित पाठक ने प्रदेश भर की यूनिटों को सतर्क कर दिया. ये सूचनाएं पाकिस्तान में सोशल नेटवॄकग साइटों के जरिए संपर्क करने की थीं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसा एजेंट सक्रिय था, जो देश की रक्षा महत्त्व की सूचनाएं पाकिस्तान भेज रहा था. इस से खुफिया एजेंसियां, आर्मी इंटेलीजैंस आदि सतर्क हो गईं.

कई महीने तक बारीकी से पड़ताल की गई. इसी पड़ताल में कलाम पर नजर गई. उस की सोशल आईडी और मेल की जांच की गई. जब विश्वास हो गया कि कलाम पाकिस्तान से जुड़ा है और उस की गतिविधियां संदिग्ध हैं तो उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की बातचीत सुनी गई. इस सब से पता चला कि वह 3 भाषाएं जानता है और भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.

उस की जड़ों की गहराई तक पहुंचने के लिए उस के मोबाइल की डिटेल्स हासिल की गई तो उस की लोकेशन अलगअलग जिलों के अलावा दिल्ली की भी पाई गई. उस नंबर का इस्तेमाल वह पाकिस्तान में भी बातचीत के लिए कर रहा था. इसी दौरान पता चला कि उस का असली नाम एजाज है.

जब साफ हो गया कि उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं तो उसे दबोचने की योजना बनाई गई. उस के पीछे मुखबिरों को लगा दिया गया. जब पता चला कि वह महत्त्वपूर्ण दस्तावेज दिल्ली में अपने साथियों को पहुंचाने जाएगा, तो उस की लोकेशन पता की जाने लगी. सॢवलांस के जरिए उस की लोकेशन मेरठ की मिलनी शुरू हुई तो एसटीएफ ने बिना देरी किए टीम बना कर उसे दबोच लिया. एजाज बरामद दस्तावेजों को दिल्ली ले जा रहा था. गिरफ्तारी के बाद उस ने नपेतुले जवाब दे कर एसटीएफ को भी उलझा दिया, लेकिन रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में उस की परतें खुलने लगीं.

उस के परिवार के बड़े हस्तियों से रिश्तों का राज भी खुल गया. आईएसआई उसे अब तक 5 लाख 8 हजार रुपए दे चुकी थी. भारत में उस का खर्चा सीमित था और वह साधारण अंदाज में जीवनयापन कर रहा था, इसलिए दी गई रकम वह अपने परिवार को भिजवा चुका था. यह रकम उस के खाते में दुबई, सउदी अरब और जम्मूकश्मीर से ट्रांसफर की गई थी.

पुलिस ने वेस्ट बंगाल में एजाज के संरक्षणदाता रहे मोहम्मद इरशाद, उस के बेटे अशफाक, उस के भाई इरफान और जहांगीर को भी नामजद कर लिया था. उन की तलाश में एक टीम हवाई जहाज से कोलकाता भेजी गई. तत्काल शिकंजा कस कर इरशाद, अशफाक और जहांगीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि इरफान हाथ नहीं आ सका.

रिमांड के दौरान अदालत की अनुमति ले कर एजाज की उस के घर एक पीसीओ से बात कराई गई. उस ने अपनी मां और बहनों से बातचीत की. इस बातचीत को बतौर सबूत रिकौर्ड कर के रख लिया गया. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने एजाज को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

एजाज से बरामद इलैक्ट्रौनिक यंत्रों को एफएसएल जांच के लिए सीबीआई की फोरैंसिक लैब भेज दिया गया. इस बीच आसमा के पिता बरेली पहुंचे और सामान के साथ बेटी को अपने साथ ले गए. आसमा का कहना था कि उसे पता नहीं था कि वह इस तरह धोखे का शिकार हो जाएगी. वह देश का बुरा चाहने वाले शौहर से अब कभी नहीं मिलेगी. वह कोख में पल रही उस की निशानी को जन्म तो देगी, लेकिन उसे अफसोस रहेगा कि वह ऐसे दुश्मन की निशानी है, जो मुल्क की तबाही के ख्वाब देख रहा था.

एसटीएफ ने आसमा और उस के पिता से भी पूछताछ की. एजाज के परिवार के पाकिस्तानी हस्तियों से रिश्तों से संबंधित रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी गई है. कथा लिखे जाने तक खुफिया एजेंसियां और एसटीएफ आईएसआई के भारत में फैले नेटवर्क को खत्म करने की कोशिश में लगी थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार का बदसूरत चेहरा

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 3

आईएसआई ने भारत में जासूसी करने के लिए उस से 3 सालों का कौंट्रैक्ट किया. इस के बदले उसे 50 हजार रुपए महीने देना तय हुआ. भारत में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की विभिन्न सैन्य व वायुसेना की इकाइयों से संबंधित गुप्त सूचनाएं, प्रतिबंधित महत्त्व के दस्तावेज और भारतीय सेना की गतिविधियों की सूचना एकत्र कर के आईएसआई को भेजना था.

इरादों को मजबूत कर के अपने मिशन को पूरा करने के लिए एजाज अपने पासपोर्ट के साथ कराची होते हुए 31 जनवरी, 2013 को ढाका पहुंचा. वहां उस की मुलाकात आईएसआई के एजेंट प्रोबीन से हुई. प्रोबीन ने उस से पाकिस्तानी पहचान संबंधी दस्तावेज हासिल कर के कहा, “जब मिशन पूरा कर के तुम वापस जाओगे, तब ये चीजें तुम्हें वापस मिल जाएंगी. वैसे मिशन को बड़ी होशियारी से अंजाम देना मियां, क्योंकि भारत की खुफिया एजेंसियां बहुत सतर्क रहती हैं.”

“फिक्र न कीजिए, मैं हर तरह से फिट हूं.” एजाज ने आत्मविश्वास से जवाब दिया.

प्रोबीन ने कुछ दिन उसे अपने पास रख कर सावधानी बरतने के गुर सिखाए. इस के बाद 9 फरवरी को नदी के रास्ते भारतबांग्लादेश सीमा पार करा दी. यहां उस की मुलाकात वेस्ट बंगाल के माटियाबुर्ज, साउथ चौबीस परगना निवासी इरशाद हुसैन से हुई. यहां उस ने कपड़ों की फेरी लगाने का काम किया और हिंदी सीखी. एजाज यहीं रह कर हिंदी लिखनेपढऩे और बोलने का पूरा अभ्यास किया.

इरशाद, उस का बेटा और 2 भाई आईएसआई के लिए काम करते थे. इरशाद ने उसे गोपनीय दस्तावेज पाकिस्तान भेजने के सारे गुर सिखाए. इस दौरान उसे नई पहचान देने के लिए उस का नाम मोहम्मद कलाम रख दिया गया. इसी नाम से उस के जूनियर हाईस्कूल के शैक्षिक प्रमाणपत्र बनवाए गए. उस का एक मतदाता पहचान पत्र व राशनकार्ड भी बनवाया गया, जिन के आधार पर सैंट्रल बैंक औफ इंडिया में उस का खाता खोलवा दिया गया. इन प्रमाण पत्रों पर उसे बिहार के नाड़ी गांव का निवासी बताया गया था.

नई पहचान के बाद वह बिहार के एक वीडियोग्राफर रईस के साथ काम करने लगा, क्योंकि यह काम वह पहले से जानता था. वीडियोग्राफी के काम से जुड़े रहने से उसे अपने मिशन में बेहद आसानी हो सकती थी. एजाज भारत के दिल्ली समेत कई इलाकों में घूमा. ऐसा कर के वह यहां की भौगोलिक स्थिति को समझना चाहता था. यहां आ कर उसे पता चला कि उस के जैसे तमाम जासूस हैं, लेकिन वे सब भारतीय हैं. उन के जरिए भी उसे काम लेने को कहा गया था.

उन्हीं के जरिए उस ने प्रमुख आर्मी एरिया का पता लगाया. आईएसआई जानना चाहती थी कि किनकिन छावनयिों में कौनकौन अधिकारी तैनात हैं. उन के व उन के परिवारों के कौंटैक्ट नंबर क्या हैं और आर्मीमैन किस तरह के अभ्यास करते हैं. यह सब इतना आसान नहीं था, लेकिन ट्रेङ्क्षनगशुदा होने के चलते एजाज ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया.

कौंट्रैक्ट के लिहाज से उसे भारत में फरवरी, 2016 तक रहना था. लोगों के बीच आसानी से घुलनेमिलने और मकान किराए पर लेने के लिए वह चाहता था कि गृहस्थी बसा ली जाए. इस से शक की गुंजाइश कम हो जाती. इसी बीच उस की मुलाकात आसमा से हुई तो उस ने उस से मोहब्बत का नाटक कर के निकाह कर लिया. आसमा के पिता शमशेर की किराने की दुकान थी. एजाज ने भी उन की दुकान संभाली. इस के साथ ही वह वीडियोग्राफी छोड़ कर फेरी लगा कर कपड़े बेचने का काम करने लगा.

जनवरी, 2015 में वह बरेली आ गया. बरेली में सेना और वायुसेना की बड़ी विंग है. उन पर उसे काम करना था. बरेली में उस ने फोटो स्टूडियो वालों के साथ दिखावे के लिए काम शुरू कर दिया. वह कंप्यूटर का मास्टर था. सही बात यह थी कि वह फोटो व वीडियोग्राफी की आड़ में जासूसी कर रहा था.

बरेली आ कर उस ने चंद महीनों में ही 3 ठिकाने बदल दिए. उस पर किसी भी तरह का शक न हो, इस के लिए उसे करना जरूरी था. बाद में उस ने 6 जून को शाहबाद में वसीम उल्लाह का मकान किराए पर ले लिया. अब उसे अपने काम में आसानी हो गई. उस के साथी उस के संपर्क में रहते थे और सूचनाओं का आदानप्रदान करते रहते थे.

वह फेसबुक, वाइबर, स्काईप, ईमेल के जरिए संपर्क में रहता था. वह औडियोवीडियो कौङ्क्षलग करता था. मोबाइल इंटरनेट के जरिए वह लाइव तसवीरें भी आईएसआई को दिखाता था. उस ने अलगअलग नामों से इंटरनेट पर अपने कई सोशल एकाउंट बना रखे थे. अपने पाकिस्तानी आकाओं से वह रात में 11 से 2 बजे के बीच संपर्क करता था. मेल में वह मैसेज लिख कर फोटो व वीडियो अटैच कर के ड्राफ्ट बौक्स में डाल देता था. उस की मेल आईडी का पासवर्ड आईएसआई के पास भी होता था. वे उस में से मैसेज निकाल लेते थे.

भारतीय एजेंसियां चूंकि संदिग्ध मेल पतों की निगरानी करती हैं. इसलिए इस से बचने के लिए वह ऐसे तरीके अपनाता था. उस के आका पाकिस्तानी सीमा पर बने एक्सचेंज से (वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल) तकनीक के जरिए बात करते थे. इस से नंबर तो भारत का शो होता था, लेकिन बात पाकिस्तान में होती थी. कलाम ने फेसबुक पर भी अपने एकाउंट बना रखे थे. अपने फेसबुक दोस्तों की लिस्ट में उस ने लड़कियों, कालेजों के छात्रों और पुलिसकॢमयों को जोड़ा था.

आसमा कभी उस की हकीकत नहीं जान पाई. उसे ख्वाबों में भी गुमान नहीं था कि उस का शौहर पाकिस्तानी जासूस है. वह 7 माह की गर्भवती थी. एजाज ने घर पर भी कंप्यूटर लगा रखा था, जिस पर वह शादियों की वीडियो मिक्सिंग के साथ इंटरनेट के जरिए सूचनाओं का आदानप्रदान करता था.

आसमा सीधीसादी अनपढ़ युवती थी. इन सब बातों को वह समझ नहीं पाती थी. डूंगल के जरिए वह हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करता था. उस का सब से ज्यादा संपर्क आईएसआई के एसपी सलीम से था. अपने मिशन के लिए वह आगरा, मथुरा, मेरठ, दिल्ली, लैंसडाउन, रुडक़ी, सहारनपुर, रानीखेत, हरिद्वार, शाहजहांपुर व लखनऊ तक जाता था. जाते समय वह आसमा से यही बताता था कि शादी में वीडियोग्राफी करने बाहर जा रहा है.

कई स्लीङ्क्षपग मौड्यूल्स उस के संपर्क में रहते थे. वे ऐसे लोग थे, जो हाईलाइट हुए बिना रुपयों के लालच में जानकारी जुटा कर उसे देते थे. शाहबाद में रहते हुए उस ने एक दलाल के माध्यम से अपना आधार कार्ड भी बनवा लिया था. एजाज हंसमुख स्वभाव का था. वह लोगों से खूब मिलजुल कर रहता था. उस की असलियत से हर कोई बेखबर था. खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए उस ने पासपोर्ट बनवाने की कोशिश भी शुरू कर दी थी.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 3

पहले तो ओमवीर को विश्वास नहीं हुआ. उसे हसीन सपने दिखाने वाली पूजा किसी दूसरे से कैसे प्यार कर सकती है? लेकिन जब उसे पूजा के बदले व्यवहार की याद आई तो गुस्से में वह पागल हो उठा. क्योंकि उस ने दिमाग में बैठा लिया था कि पूजा उस की है और उसी की रहेगी. वह किसी दूसरे की कैसे हो सकती है. अपनी यह बात कहने के लिए वह पूजा से मिलने का मौका तलाशने लगा. पूजा उसे मिली तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘‘पूजा, तुम ने मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर अच्छा नहीं किया. एक बात याद रखना, मैं तुम्हें किसी दूसरे की कतई नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने झटके से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आज के बाद अगर तुम ने मेरा रास्ता रोका तो ठीक नहीं होगा. मैं आज ही तुम्हारी शिकायत घर में करूंगी.’’

पूजा ने कहा ही नहीं, आ कर पिता से ओमवीर की शिकायत कर भी दी. अनोखेलाल ने ओमवीर की शिकायत नेम सिंह से की तो उस ने कहा, ‘‘तुम निश्चिंत रहो, मैं उसे समझा दूंगा.’’

नेम सिंह ने बेटे को समझाया जरूर, लेकिन उस के मन में क्या है, यह वह भी नहीं जान सका. ओमवीर प्रेमिका की बेवफाई की आग में जल रहा था. इस आग को शांत करने के लिए उस ने तय कर लिया कि अब वह उसे उस की बेवफाई की सजा जरूर देगा. उस का प्यार पूरी तरह नफरत में बदल चुका था. जबकि पूजा इस सब से बेखबर थी.

ओमवीर मौके की तलाश में था. 17 अक्तूबर, 2013 को वह पूजा के स्कूल जाने वाले रास्ते पर हंसिया ले कर खड़ा हो गया. पूजा अब निश्चिंत थी कि उस ने ओमवीर की शिकायत अपने पिता से कर दी है, इसलिए वह उस के रास्ते में नहीं आएगा. अनोखेलाल भी निश्चिंत था कि उस ने नेम सिंह से शिकायत कर दी है, इसलिए उस ने ओमवीर को डांटफटकार दिया होगा. जबकि ओमवीर अपनी जिद पर अड़ा था. नगला टिकुरिया से नगला भुलरिया तक जाने का रास्ता सुनसान रहता था. पूजा अपनी 2 सहेलियों के स्कूल जा रही थी. बीच रास्ते में आमेवीर ने उसे रोक कर कहा, ‘‘पूजा, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘यह क्या बदतमीजी है. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ पूजा ने गुस्से में कहा.

ओमवीर ने हंसिया लहराते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो काट कर रख दूंगा.’’

हंसिया देख कर पूजा की सहेलियां बगल हो गईं. इस के बाद ओमवीर पूजा को खेत में खींच ले गया. दोनों लड़कियों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? वे कुछ करने की सोच ही रही थीं कि उन्हे पूजा की चीख सुनाई दी. वे समझ गईं कि क्या हुआ है. दोनों कालेज की ओर भागीं.  कालेज पहुंच कर उन्होंने प्रिंसिपल को पूरी बात बताई. प्रिंसिपल ने तुरंत पुलिस को फोन किया.

दूसरी ओर आमेवीर ने पूजा पर हंसिए से वार किया तो वह जान की भीख मांगने लगी. लेकिन ओमवीर पर तो शैतान सवार था. उस ने पूजा की गर्दन पर लगातार कई वार किए. जब उसे लगा कि पूजा मर गई है तो वह भाग निकला.

थोड़ी ही देर में पूरे इलाके में खबर फैल गई कि एक लड़के ने किसी लड़की की हत्या कर दी है. लोग वहां पहुंचने लगे. सूचना पा कर थाना अमांपुर पुलिस भी आ गई. अनोखेलाल ने भी सुना कि किसी लड़की की हत्या कर दी गई है तो उत्सुकतावश वह भी वहां पहुंच गया. जब उस ने लाश देखी तो पता चला कि वह तो उस की बेटी पूजा है. वह सिर पीटपीट कर रोने लगा.

घटनास्थल पर आई पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतका इसी की कोई है. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थाना अमांपुर के थानाप्रभारी ने जब अनोखेलाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी पूजा है. जिस की हत्या गांव के ही ओमवीर ने की है. सूचना पा कर एसपी विनय कुमार यादव, एएसपी आर.एन. शर्मा और सीओ सरबजीत सिंह भी आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों से पूछताछ की तो लोगों ने बताया कि आरोपी ओमवीर के पिता नेम सिंह पर भी कत्ल का मुकदमा चल रहा है. इस समय वह जमानत पर छूट कर आया है. उस ने मृतका के दादा की हत्या की थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अनोखेलाल की ओर से थाना अमांपुर पुलिस ने पूजा की हत्या का मुकदमा ओमवीर, उस के भाई मुकेश तथा पिता नेम सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. पुलिस ने उसी दिन रात को ओमवीर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि मुकेश और नेम सिंह फरार हो गए थे. पूछताछ में ओमवीर ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या में प्रयुक्त हंसिया भी बरामद करा दिया था.

अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुखबिरों की मदद से पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2013 को लखीमपुर से मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया. उस से की गई पूछताछ के आधार नेम सिंह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इन दोनों को भी अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें भी जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित