नीरव मोदी और माल्या के भी गुरु निकले ये ठग – भाग 3

पूछताछ और जांच में जो फरजी 3 हजार कंपनियां पता चली हैं, उन में 800 ऐसी कंपनियों के बारे में जानकारी मिली है, जिन्हें किन्हीं कारणों से अभी तक जीएसटी नंबर नहीं मिल पाया है. जिन फरजी कंपनियों की जानकारी मिली है, वह देश के अलगअलग पतों पर बनाई गई थीं.

इस मामले को ले कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने वित्त मंत्रालय दिल्ली में बैठक की. मुख्यमंत्री ने पुलिस, एसटीएफ, जीएसटी, इंटेलिजेंस के बड़े अधिकारियों के साथ बैठक कर जांच में तेजी लाने और आरोपियों के खिलाफ सख्त काररवाई करने को कहा. दिल्ली में हुई बैठक में केंद्रीय जीएसटी समेत अन्य एजेंसियों के अधिकारी भी शामिल हुए थे.

टेरर फंडिंग और हवाला ऐंगल से जांच

फरजी कागजों के सहारे असली जीएसटी नंबर ले कर कंपनी बनाने वाले मामले में पुलिस व एजेंसियों की जांच टेरर फंडिंग और हवाला के ऐंगल से भी की जा रही है. आशंका जाहिर की जा रही है कि इस में कई कारोबारियों सहित अन्य लोगों की भी संलिप्तता है. फरजी कंपनियों के जरिए काले धन को सफेद किया जा रहा था. टेरर फंडिंग और हवाला की जांच से जुड़ी हुई एजेंसी की मामले पर पैनी नजर है.

नोएडा सेक्टर-20 थाने की पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के कब्जे से अब तक 12 लाख 66 हजार रुपए नगद, 3,088 फरजी तैयार की गई जीएसटी फर्म की सूची, 32 मोबाइल फोन, 24 कंप्यूटर सिस्टम, 4 लैपटाप, 3 हार्ड डिस्क, 118 फरजी आधार कार्ड, 140 पैन कार्ड, फरजी बिल, 3 लग्जरी कारें बरामद की हैं.

पुलिस ने जीएसटी घोटालेबाज यासीन शेख और अश्विनी पांडेय, आकाश सैनी, विशाल, राजीव, अतुल सेंगर, दीपक मुरजानी और विनीता को गौतमबुद्ध नगर के सीजेएम कोर्ट में पेश कर 10 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया गया. सेंट्रल नोएडा के डीसीपी हरीश चंद्र अब यूपी एसटीएफ की नोएडा यूनिट के अधिकारियों के साथ इस घोटाले की जांच को आगे बढ़ा रही हैं.

उन के बाकी साथियों की तलाश की जा रही है और जीएसटी विभाग के साथ केंद्रीय एजेंसियां जांच में सहयोग कर रही हैं.

इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का खेल आखिर है क्या

इस खेल को एक उदाहरण के साथ समझाते हैं. मान लीजिए, एक व्यापारी रवि कुमार हैं. उन्होंने 100 रुपए का माल खरीदा, जिस पर उन्होंने 18 रुपए का जीएसटी पेमेंट दिखाया. अब आगे 150 रुपए में वही माल बेचा गया. जिस पर जीएसटी 27 रुपए होता है. लेकिन, 18 रुपए पहले ही पेमेंट कर चुका है. ऐसे में अब रवि कुमार को 9 रुपए ही जमा करने हैं. जबकि व्यापारी पिछले ट्रांजैक्शन के 18 रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) अप्लाई कर के भुगतान लेगा.

कुछ इसी तरह से फरजी कंपनियों के लाखों के ट्रांजैक्शन दिखा कर जालसाज आईटीसी अप्लाई कर के पेमेंट लेते रहे. जीएसटी डिपार्टमेंट को धोखाधड़ी का पता इसलिए नहीं चला, क्योंकि इस चेन में कई कंपनी रहती थीं. सब से आखिरी की कंपनी डिफाल्टर दिखाई जाती थी. बस शेल कंपनियां बना कर उन के नाम से फरजी इनवायस बना कर सरकार से जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट वसूल कर करोड़ों का नुकसान करने वाले इस गिरोह की यही थ्योरी थी.

चैक करें कि आप के पैन कार्ड पर तो नहीं चल रही कोई फरजी कंपनी

जब हम किसी आपूर्तिकर्ता या विक्रेता से कोई माल या सेवा लेते हैं तो उस की ओर से हमें एक जीएसटी बिल दिया जाता है. इस बिल में खरीदार और विक्रेता की पहचान, उत्पाद का नाम, विवरण, खरीदी गई वस्तुओं/सेवाओं की मात्रा/आपूर्तिकर्ता का विवरण, खरीद की तारीख, छूट आदि सहित सभी जानकारियां शामिल होती हैं. ये तो रही जीएसटी बिल की जानकारी. अब आप को बताते हैं कि नकली और असली जीएसटी बिल के बीच अंतर कैसे किया जा सकता है.

नकली जीएसटी बिल की पहचान करने के लिए आप को कुछ स्टेप्स फालो करने की जरूरत होगी. इस के लिए आप बिल पर लिखे इनवाइस नंबर, जीएसटीआईएन और एचएसएन/एसएसी कोड की मदद से बिल के असली या नकली होने की पहचान कर सकते हैं. नीचे दिए गए बिंदुओं से पता चल जाएगा कि ये असली है या फिर नहीं.

जीएसटी बिल पर लिखे 15 अंकों के जीएसटीआईएन नंबर को सरकार के जीएसटी पोर्टल पर चैक करें. सप्लायर के वैध नाम और पते का जीएसटी बिल से मिलान करें. ध्यान दें कि जीएसटी बिल पर लिखा गया इनवाइस नंबर किसी पुराने बिल से कौपी तो नहीं किया गया है. ये देखें कि जीएसटी बिल में कर राशि सहित सही चालान मूल्य का उल्लेख है या नहीं.

अगर आप को ऊपर सुझाए गए उपायों से पता लगता है कि क्रेता द्वारा दिया गया जीएसटी बिल नकली है तो इस की शिकायत करें. इस के लिए आप contact.gstcouncil@gov.in, gst.actionroom@gov.in, helpdesk@gst.gov.in, cbecmitra.helpdesk@icegate. gov.in पर मेल शेयर कर सकते हैं. इस के अलावा आप टोलफ्री नंबर 1800 12002, 011-23094160/61/62, 011-23094168169, 011-23762656, 0124-4688999 पर काल भी कर सकते हैं. वहीं आप सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल @askGST_GoI/@cbic_india पर भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

यह जानना बेहद आसान है कि आप के नाम से कोई शेल कंपनी तो नहीं चल रही है और वो किसी तरह का जीएसटी स्कैम तो नहीं कर रही है. इस के लिए आप को services.gst.gov.in वेबसाइट पर जा कर अपने पैन कार्ड संबंधी जानकारी भरनी होगी, जिस से पता चल जाएगा कि आप के पैन कार्ड के आधार पर कोई कंपनी बनी है या नहीं.

जिन लोगों को शक है कि उन के पैन कार्ड का गलत इस्तेमाल हुआ है तो वे जीएसटी की वेबसाइट पर जा कर अपने पैनकार्ड की डिटेल्स को डाल कर पता कर सकते हैं कि उन के नाम से कोई फर्म या कंपनी देश के किसी हिस्से में पंजीकृत तो नहीं है.

—शक्ति मोहन अवस्थी (एडिशनल डीसीपी, नोएडा)

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 2

दोनों कारें जिस तेजी से आई थीं, उसी तेजी से वहां से चलीं तो तकरीबन 15 मिनट बाद वे नजदीक के थाना सदर बाजार आ कर रुकीं. कार में सवार सभी लोग नीचे उतरे और उस युवक को नीचे उतार कर हवालात में डाल दिया. थाने में उस युवक के बैग और पर्स की तलाशी ली गई तो उस में से भारतीय सेना के गोपनीय दस्तावेज, राष्ट्रीय महत्व की कई गुप्त सूचनाएं, पहचान पत्र, बरेली व बिहार के पतों के वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, दिल्ली मैट्रो का ट्रैवलर कार्ड, भारत समेत 3 देशों की करेंसी, एटीएम कार्ड, 16 जीबी के पैनड्राइव और सिमकार्ड आदि चीजें मिलीं.

पुलिस ने उस के खिलाफ 3/9 औफिशियल सीक्रेट एक्ट, 14 विदेशी एक्ट व आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 380, 420, 411 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दरअसल, जिस युवक को पकड़ कर पुलिस लाई थी, वह कोई और नहीं, आसमा का शौहर मोहम्मद कलाम था. उसे पकडऩे वाली थाने की पुलिस नहीं, स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एसपी शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव और सीओ अमित कुमार के नेतृत्व वाली टीम थी. कलाम कई महीने से एसटीएफ और खुफियां एजेंसियों के टौप सीक्रेट मिशन के टौप टारगेट पर था.

उस का नाम मोहम्मद कलाम नहीं, मोहम्मद एजाज था. वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सॢवसेज इंटेलीजैंस (आईएसआई) का उत्तर प्रदेश में अब तक का सब से बड़ा एजेंट था और बड़ी होशियारी से अपने मिशन को अंजाम दे रहा था. बेहद शातिराना अंदाज वाला एजाज मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था. पहचान बदल कर उस ने हिंदुस्तान में ऐसी कामयाब पैठ बनाई थी कि आसमा से निकाह तक कर लिया था. अपने मिशन के लिए वह पूरी तरह प्रशिक्षित था. 3 भाषाओं पर उस की अच्छी पकड़ थी और हाईटैक टैक्नोलौजी के जरिए अपने आकाओं से बराबर संपर्क में रहता था. उस के मंसूबे बेहद खतरनाक थे.

औपचारिक पूछताछ के बाद एजाज के मंसूबों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए एसटीएफ की एक टीम उसे ले कर बरेली उस के घर पहुंची और छापा मार कर उस के घर की तलाशी ले कर कंप्यूटर, डाटा कार्ड, कई वीडियो कैसेट, हिंदी उर्दू की कुछ किताबें और कुछ जरूरी कागजात बरामद किए.

आसमा को जब पता चला कि उस का शौहर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट है तो उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ. उस के रिश्ते का आईना चटक कर बिखर गया. आसपड़ोस के लोग भी हैरान थे कि जो शख्स उन के बीच नेकियां दिखा कर सादगी से रह रहा था, वह देश का दुश्मन था.

आईएसआई एजेंट की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी. सन 2012 के बाद पहली बार कोई पाकिस्तान एजेंट पकड़ा गया था. यह खबर सुॢखयां बनने के बाद खुफिया एजेंसियों तक पहुंच गईं. एजाज से पूछताछ की गई तो उस ने हर सवाल का नपातुला जवाब दिया, जैसे वह ऐसे हालातों के लिए भी तैयार था.

उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश किया जाना जरूरी था, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उसे स्पैशल जज संजय सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

एजाज से विस्तृत पूछताछ की जानी जरूरी थी, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उस के रिमांड की अरजी दाखिल की तो अदालत ने उसे 7 दिनों के रिमांड पर दे दिया. पुलिस एजाज को थाने ले आई, जहां पूछताछ के लिए एक टीम का गठन पहले ही कर लिया गया था. इस टीम में इंटेलीजैंस ब्यूरो के स्थानीय एडिशनल डायरेक्टर एस.के. सिंह , एसपी स्वप्निल ममगई, सीओ वीर कुमार, आर्मी इंटेलीजैंस के मेजर मोती कुमार, थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी गजेंद्रपाल सिंह व सबइंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को शामिल किया गया था.

इस के अलावा एसटीएफ, स्थानीय पुलिस, राज्य व केंद्रीय इंटेलीजैंस ब्यूरो, आर्मी इंटेलीजैंस, मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, सीओ (अभिसूचना) वी.के. शर्मा, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच व उत्तराखंड इंटेलीजैंस ने भी एजाज से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में एजाज ने तमाम चौंकाने वाले राज उगले. एजाज की जड़ें बहुत गहरी थीं. वह 3 सालों के कौंट्रैक्ट पर भारत आया आईएसआई का बेहद खास मोहरा था.

अपने मिशन के जुनून में उस ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस के निशाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, एनसीआर के जिले और उत्तराखंड था. मिशन की कामयाबी के लिए वह आसमा जैसी भोलीभाली युवती की जिंदगी से भी खेल गया था. इस बीच उस ने एक और युवती को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस के आईएसआई का एजेंट बनने से ले कर भारत आने और पहचान बदल कर रहने तक का हर पहलू चौंकाने वाला था.

मोहम्मद एजाज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद शहर के तारामंडी चौक निवासी मोहम्मद इशहाक का बेटा था. आॢथक रूप से समृद्ध इशहाक एग्रीकल्चरल रिसर्च सैंटर में नौकरी करते थे. हालांकि सन 2004 में उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 5 बेटे अशफाक, मुश्तियाक, फहद, एजाज, इश्तियाक तथा 3 बेटियां शबनम, शहजाद और शाजिदा थीं.

एजाज के सभी भाई वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी व प्रोसैङ्क्षसग का काम करते थे. हाईस्कूल पास एजाज भी इसी काम में लग गया था. पंजाबी और उर्दू भाषा उसे आती थी. इशहाक के परिवार के संपर्क कई नामी हस्तियों से थे. उस के भाई सरकार के लिए भी फोटोग्राफी करते थे, शायद इसी वजह से उन के संबंध बड़े लोगों से थे. देखने में सीधासादा दिखने वाला एजाज तेजतर्रार युवक था.

पाकिस्तान में एक दर्जन से भी ज्यादा आतंकी व कट्टर संगठन आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं. ऐसे संगठनों को उसी के जरिए देशीविदेशी आॢथक मदद मिलती है. इन संगठनों का काम किसी न किसी तरीके से भारत में अराजकता और ज्यादा से ज्यादा तबाही फैलाना होता है. सैन्य छावनियां उस के निशाने पर होती हैं.

आईएसआई का आतंकी संगठनों के क्रियाकलापों और उन के प्रशिक्षण केंद्रों तक में सीधा दखल होता है. उस के अपने प्रशिक्षक भी वहां होते हैं. आतंकियों के अलावा वह अपने जासूस भी तैयार करती है, जिन्हें मोहरा बना कर आईएसआई अपने मकसद पूरा करती है. इस के पीछे उस की सोच बदनामी से बचना होता है. सीधेसादे लोगों की उन्हें कभी धर्म के नाम पर तो कभी पैसे का लालच दे कर बरगलाया जाता है. झूठे वीडियो दिखाए जाते हैं कि भारत में मुसलमानों पर किस तरह अत्याचार हो रहा है. नई उम्र के लडक़ों को तरजीह दे कर उन्हें बहलाफुसला कर प्रशिक्षण केंद्रों तक लाया जाता है. भटके युवाओं के लिए उन के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.

सन 2012 में एजाज की जानपहचान आईएसआई के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्हें वह काम का युवक लगा तो उन्होंने उसे अपने साथ शामिल कर के एक साल तक गहन प्रशिक्षण दिया. यह प्रशिक्षण उस ने एसपी सलीम की देखरेख में लिया. उसे जासूसी के गुर सिखाए गए, भारत के रहनसहन के बारे में बताया गया.

यही नहीं, भारत की सैन्य गतिविधियों की जानकारी बारीकी से दी गई. उसे समझाया गया कि सेना में बिग्रेड, यूनिट व कमांड में क्या फर्क है. औपरेशन ङ्क्षवग कौन सी होती है, आर्मी औफिसर के रैंक और स्टार के बारे में बताया गया. आर्मी यूनिट के अफसरों के पदों के बारे में भी समझाया गया, ताकि वह अफसर का बैच देख कर उस के पद को जान सके.

बदचलन बीवी और दगाबाज दोस्त

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बिछवां के गांव मधुपुरी के रहने वाले परशुराम का परिवार बढ़ने से खर्च तो बढ़ गया था, लेकिन कमाई उतनी की उतनी ही थी. पतिपत्नी थे ही, 3-3 बच्चों की पढ़ाईलिखाई, कपड़ेलत्ते और खानाखर्च अब खेती की कमाई से पूरा नहीं होता था. गांव में हर कोशिश कर के जब इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो उस ने किसी शहर जाने की सोची.

गांव के तमाम लोग दिल्ली में रहते थे. उन की माली हालत परशुराम को ठीकठाक लगती थी, इसलिए उस ने सोचा कि वह भी दिल्ली चला जाएगा. उस ने अपने एक दोस्त से बात की और दिल्ली आ गया. यह करीब 10 साल पहले की बात है. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने वह नौकरी छोड़ दी और अपने एक परिचित के यहां गाजियाबाद चला गया. क्योंकि वहां ज्यादा पैसे की नौकरी मिल रही थी.

गाजियाबाद की जिस कंपनी में परशुराम नौकरी करता था, उसी में खोड़ा गांव का रहने वाला भारत सिंह भी नौकरी करता था. एक साथ नौकरी करने की वजह से दोनों की अक्सर मुलाकात हो जाती थी. कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई. भारत सिंह की शादी नहीं हुई थी, इसलिए उसे कोई चिंताफिक्र नहीं रहती थी. वह मौज से रहता था.

परशुराम की बीवी और बच्चे गांव में रहते थे, इसलिए उन्हें ले कर वह परेशान रहता था. उस ने सोचा कि अगर बीवीबच्चे साथ रहें तो उसे खानापानी भी समय से मिल जाएगा और वह निश्चिंत भी रहेगा. शहर में रह कर बच्चे भी ठीक से पढ़ लेंगे. उस ने भारत सिंह से किराए का मकान दिलाने को कहा तो उस ने अपने पड़ोस में उसे मकान दिला दिया.

मकान मिल गया तो परशुराम अपना परिवार ले आया. भारत सिंह परशुराम का दोस्त था, दूसरे उसी ने उसे मकान दिलाया था, इसलिए परशुराम ने उसे एक दिन अपने घर खाने पर बुलाया. खाना खाने के बाद भारत सिंह खाने की तारीफ करने लगा तो परशुराम की पत्नी शारदा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप मेरे खाने की इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं?’’

‘‘क्यों…?’’ भारत सिंह ने पूछा.

‘‘कहते हैं, खाने वाला खाने की तारीफ इसलिए करता है कि उसे फिर से खाने पर बुलाया जाए.’’

‘‘लेकिन मैं तो बिना बुलाए ही आने वालों में हूं. आप को एक बात बताऊं भाभीजी, आदमी बड़ा चटोरा होता है. जहां का खाना उस के मुंह लग जाता है, वह वहां बारबार जाता है. मेरे मुंह आप का बनाया खाना लग गया है, इसलिए जब मन होगा, मैं यहां आ जाऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

शारदा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी तो आप का ही घर है. जब मन हो, आ जाना.’’

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं, मैं अकेला आदमी हूं. ज्यादातर बाहर ही खाता हूं. घर का खाना इसी तरह कभीकभार ही नसीब होता है. इसलिए जब कभी इस तरह का खाना मिलता है तो इच्छा तृप्त हो जाती है.’’ भारत सिंह ने थोड़ा उदास हो कर कहा.

‘‘मैं तो कहूंगी, तुम भी शादी कर लो. रोज दोनों जून घर का खाना खाओ. इच्छा भी तृप्त होगी और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. अपने दोस्त को देखो और खुद को देखो. खैर, जब तक खाना बनाने वाली नहीं आती, तब तक जब कभी घर का खाना खाने का मन हो, अपने दोस्त के साथ चले आना. इतने लोगों का खाना बनाती ही हूं, तुम्हारा भी बना दूंगी.’’ शारदा ने कहा.

उस दिन के बाद भारत सिंह परशुराम के यहां अक्सर जाने लगा. अकेले होने की वजह से भारत सिंह के ऊपर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं, इसलिए वह ठाठ से रहता था. कभीकभार पार्टी भी कर लेता था. उस पार्टी में परशुराम को भी शामिल करता था. पीनेपिलाने के बाद खाने की बात आती तो परशुराम कहता, ‘‘अब बाहर खाना खाने कहां जाओगे. चलो तुम्हारी भाभी ने खाना बनाया ही होगा, वहीं खा लेना.’’

इसी तरह आनेजाने में स्त्रीसुख से वंचित भारत सिंह को शारदा अच्छी लगने लगी. इस के बाद वह कुछ ज्यादा ही परशुराम के यहां आनेजाने लगा. वह जब भी परशुराम के यहां आता, खाली हाथ नहीं आता. खानेपीने की ढेर सारी चीजें ले कर आता. वह बातें तो अच्छीअच्छी करता ही था, शारदा पर दिल आ जाने की वजह से उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगा था, इसलिए शारदा को उस का आना अच्छा लगने लगा था.

परशुराम में एक आदत यह थी कि वह शराब देख कर पागल हो जाता था. अगर उसे शराब मिल जाए तो वह तब तक पीता रहता था, जब तक बेहोश नहीं हो जाता था. उस स्थिति में भारत शारदा से कहता, ‘‘भाभी, मैं इसे मना करता हूं कि तू इतनी मत पिया कर, लेकिन यह मानता ही नहीं. पहली बात तो इसे पीनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि यह बालबच्चों वाला है, इस के ऊपर तमाम जिम्मेदारियां हैं. रही बात मेरी तो मेरे ऊपर कौन जिम्मेदारी है. फिर मेरा कोई मन बहलाने वाला भी तो नहीं है. अकेले में घुटन सी होने लगती है तो पी लेता हूं. शराब पीने से जल्दी नींद आ जाती है.’’

‘‘अगर कोई मन बहलाने वाला मिल जाए तो आप पीना छोड़ दोगे? क्योंकि आप नहीं पिएंगे तो यह भी नहीं पिएंगे. यह पीते तो आप के साथ ही हैं,’’ शारदा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं रोज कहां पीता हूं. मैं तो साथ मिलने पर ही पीता हूं. अगर आप कह दें तो मैं बिलकुल शराब नहीं पीऊंगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

‘‘शराब कोई अच्छी चीज तो है नहीं, मैं तो यही चाहूंगी कि न आप पिएं और न अपने दोस्त को पिलाएं. यही पैसा किसी और चीज में खर्च करें, जो आप लोगों के काम आए.’’ शरदा ने समझाते हुए कहा.

शारदा को प्रभावित करने के लिए भारत सिंह ने सचमुच शराब पीना छोड़ दिया. लेकिन परशुराम नहीं माना. एक दिन शराब पी कर परशुराम लुढ़का पड़ा था तो भारत सिंह ने कहा, ‘‘भाभी, ऐसे पति से क्या फायदा, जो पत्नी के सुखदुख, हंसीखुशी का खयाल न रखे.’’

‘‘क्या करूं भइया, सब भाग्य की बात है. मेरे भाग्य में ऐसा ही पति लिखा था. एक आप हैं. मैं आप की कोई नहीं, फिर भी आप मेरा इतना खयाल रखते हैं. जिस की खयाल रखने की जिम्मेदारी है, वह शराब पी कर लुढ़का पड़ा है.’’

‘‘भाभी, ऐसा मत कहो कि मैं आप का कोई नहीं. कुछ रिश्ते बनाए जाते हैं तो कुछ अपनेआप बन जाते हैं. अपने आप बने रिश्ते भी कम मजबूत नहीं होते. बात तो मन से मानने वाली है. आप भले ही मुझे अपना न मानें, लेकिन मैं आप को अपनी मानता हूं. आप मुझे कितना मानती हैं, यह आप जानें,’’ भारत सिंह ने शारदा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘आप को क्या लगता है? मैं भी आप को उतना ही मानती हूं, जितना आप मानते हैं. अब आप समझ न पाएं तो मैं क्या करूं.’’ शारदा ने नजरें नीची कर के कहा.

शारदा का इतना कहना था कि भारत सिंह ने उस का एक हाथ थाम लिया. उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘आज लगा कि मेरा भी कोई है. अब मैं अकेला नहीं रहा. भाभी, सही बात तो यह है कि मैं आप को अपनी समझने लगा हूं. इधर कुछ दिनों से आप हर पल मेरे खयालों में बसी रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि आप मेरे दिल की बात समझेंगी.’’

‘‘मैं आप के दोस्त की पत्नी हूं,’’ शारदा ने अपना हाथ छुड़ाए बगैर कहा, ‘‘क्या यह सब अच्छा लगेगा.’’

‘‘भाभी, अच्छा लगे या खराब, अब मैं आप के बिना नहीं रह सकता. अगर आप ने मना कर दिया तो कल से मेरा भी वही हाल होगा, जो परशुराम का है. क्योंकि आप नहीं मिलीं तो मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा. इस के बाद बेचैनी दूर करने के लिए शराब का ही सहारा लेना होगा.’’ भारत सिंह ने कहा.

भारत सिंह के स्पर्श ने शारदा की धड़कन बढ़ा दी थी. इन बातों से लगा कि अब उस का खुद पर काबू नहीं रह गया है. वह विरोध तो पहले ही नहीं कर रही थी, भारत सिंह की बातें सुन कर नजरें झुका लीं. उस की इस अदा से उसे समझते देर नहीं लगी कि शारदा भी वही चाहती है जो वह चाहता है.

दरअसल, शारदा का दिल भारत सिंह पर तभी डोल गया था, जब उसे पता चला था कि उस ने शादी नहीं की. वह अच्छाखासा कमाता था, जबकि खाने वाला कोई नहीं था. शारदा ने सोचा था कि अगर इसे वह फांस ले तो वह अपनी कमाई उस पर लुटाने लगेगा. और सचमुच उस ने उसे अपने रूप के जादू से फांस लिया था.

भारत सिंह ने शारदा से कहा था कि वह उन लोगों में नहीं है, जो मजा ले कर चले जाते हैं. वह उस के हर सुखदुख में उस का साथ देगा. भारत सिंह की इन्हीं कसमों और वादों पर विश्वास कर के शारदा ने उसे अपनी देह सौंप दी थी.

भारत सिंह से संबंध बनाने के बाद उदास और परेशान रहने वाली शारदा में अपनेआप बदलाव आने लगे थे. उस का रहनसहन भी काफी बदल गया था. भारत सिंह उसे ढंग के कपड़ेलत्ते तो ला कर देता ही था, खर्च के लिए पैसे भी देता था. इसलिए उस ने परशुराम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया था. अब वह उस से कुछ मांगती भी नहीं थी.

पत्नी में आए बदलाव से परशुराम हैरान तो था, लेकिन वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. जब बदलाव कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगे तो उस ने पत्नी पर नजर रखनी शुरू की. तब उस ने देखा कि पत्नी उस के दोस्त से कुछ ज्यादा घुलमिल ही नहीं गई, बल्कि उस का खयाल भी उस से ज्यादा रखने लगी है.

परशुराम इतना भी बेवकूफ नहीं था, जो इस का मतलब न समझता. बदलाव का मतलब समझते ही उस ने शारदा से कहा, ‘‘इधर भारत सिंह कुछ ज्यादा ही हमारे घर नहीं आने लगा है?’’

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है, तुम्हीं उसे घर लाते हो. अगर कभी तुम्हारे न रहने पर आ जाता है तो उसे घर में बैठाना ही नहीं पड़ेगा, बल्कि चायपानी भी पिलानी पड़ेगी. अब इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ शारदा ने तुनक कर कहा.

शारदा ने पति से बहाना तो बना दिया, लेकिन इस के बाद वह खुद भी सतर्क हो गई और भारत सिंह को भी सतर्क कर दिया. पर ऐसे संबंध कितने भी छिपाए जाएं, छिपते नहीं हैं. कुछ पड़ोसियों ने भी जब उस की अनुपस्थिति में भारत सिंह के घर आने की शिकायत की तो परशुराम छुट्टी ले कर पत्नी की चौकीदारी करने लगा.

भारत सिंह से भी उस ने कई बार कहा कि वह जो कर रहा है, वह ठीक नहीं है. तब भारत सिंह ने हंस कर यही कहा कि जैसा वह सोच रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है. वह बेकार ही शक करता है. शारदा को वह भाभी कहता ही नहीं है, बल्कि उसी तरह सम्मान भी देता है.

पत्नी भी कसम खा रही थी और दोस्त भी. जबकि परशुराम को अब तक पूरा विश्वास हो गया था कि दोनों के बीच गलत संबंध है. लेकिन उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं था कि वह दोनों के सामने दावे के साथ कह सकता. लेकिन जब एक दिन उस ने शारदा के बक्से में नईनई साडि़यां देखी तो हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी साडि़यां तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘तुम ने तो ला कर दीं नहीं, फिर क्यों पूछ रहे हो?’’ शारदा ने कहा.

‘‘मैं यही तो जानना चाहता हूं कि तुम्हें ये साडि़यां किस ने ला कर दी हैं?’’

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो. यही न कि ये साडि़यां भारत सिंह ने ला कर दी हैं?’’ शारदा थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘अगर उसी ने ला कर दी हैं तो तुम क्या कर लोगे?’’

परशुराम सन्न रह गया. वह समझ गया कि यह लेनेदेने का खेल इस तरह चल रहा है. उस ने पहले तो शारदा की जम कर पिटाई की, उस के बाद घर का सामान समेटने लगा. शारदा ने पूछा, ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘हम गांव चल रहे हैं.’’ परशुराम ने कहा.

परशुराम ने कहा ही नहीं, बल्कि जहां नौकरी करता था, वहां से अपना हिसाबकिताब करा कर गांव चला गया. गांव में परशुराम तो अपने कामधाम में लग गया, लेकिन शारदा भारत सिंह के लिए बेचैन रहने लगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने उसे फोन किया कि वह उस के बिना नहीं रह सकती.

भारत सिंह भी उस के लिए उसी की तरह तड़प रहा था, इसलिए उस ने उसे आने का आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि उस से मिलने उस के गांव पहुंच भी गया. परशुराम से मिल कर उस ने कहा कि उस से जो गलती हुई है, उस के लिए वह माफी मांगने आया है.  इस तरह होशियारी से एक बार फिर भारत सिंह ने परशुराम की सहानुभूति प्राप्त कर ली. इस के बाद उस का जब मन होता, वह परशुराम से मिलने के बहाने गांव पहुंच जाता.

शुरूशुरू में तो परशुराम सतर्क रहा, लेकिन जब उसे लगा कि भारत सिंह सचमुच सुधर गया है तो वह उस की ओर से लापरवाह हो गया. इस के बाद शारदा और भारत सिंह फिर मिलने लगे.  गांव वालों को शक हुआ तो उन्हें भारत सिंह का आना खराब लगने लगा. लोगों ने परशुराम को टोका तो उसे होश आया. भारत सिंह को ले कर गांव में लोग परशुराम के बेटों का भी मजाक उड़ाते थे. इन सब बातों से दुखी हो कर परशुराम ने गुस्से से कहा, ‘‘भारत, तुम क्यों हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ गए हो. क्यों आते हो हमारे घर, आखिर हमारा तुम्हारा रिश्ता क्या है?’’

भारत सिंह तो कुछ नहीं बोला, पर पति की इस बात पर शारदा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘घर आए मेहमान से कोई इस तरह बात करता है. अगर यह हमारे यहां आता है तो क्या गलत करता है. कान खोल कर सुन लो, यह इसी तरह आता रहेगा, देखती हूं कौन रोकता है.’’

शारदा के तेवर देख कर परशुराम डर गया, लेकिन दोनों की यह बातचीत सुन कर पड़ोसी आ गए. उन्होंने भारत सिंह को लताड़ा तो उस ने वहां से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन परेशानी यह थी कि शारदा उस के बिना रह नहीं सकती थी, इसलिए जब उसे पता चला कि 15 मई को परशुराम किसी शादी में जाने वाला है तो उस ने फोन कर के यह बात भारत सिंह को बता दी.

15 मई को परशुराम दोनों बेटों के साथ शादी में चला गया. उस के जाते ही भारत सिंह गांव वालों की नजरें बचा कर शाम को उस के घर जा पहुंचा. प्रेमी के लिए शारदा ने बढि़या खाना पहले से ही बना कर रख लिया था. पहले दोनों ने खाना खाया, उस के बाद मौजमस्ती में लग गए.

दोनों मस्ती में इस तरह डूब गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला. रात 1 बजे के करीब परशुराम लौटा तो दोनों बेटे घेर में सोने चले गए, जबकि परशुराम ने हाथ डाल कर बाहर से दरवाजे की कुंडी खोली और घर के अंदर आ गया. अंदर आंगन में पड़ी चारपाई पर शारदा और भारत सिंह रंगरलियां मना रहे थे.

पत्नी और दोस्त को उस हालत में देख कर परशुराम का खून खौल उठा. कोने में रखी लाठी उठा कर वह दोनों को पीटने लगा. उस की इस पिटाई से दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी आ गए. मामला गंभीर होते देख परशुराम भाग खड़ा हुआ.

शारदा और भारत सिंह की हालत गंभीर थी. गांव वालों ने दोनों को जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सैफई रैफर कर दिया.

18 मई को शारदा ने दम तोड़ दिया. गांव वालों के अनुसार शारदा की मौत की सूचना उन्होंने थाना बिछवां पुलिस को दे दी थी. लेकिन शाम तक पुलिस नहीं आई तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.  जब कहीं से शारदा की मौत की जानकारी पुलिस अधीक्षक श्रीकांत को हुई तो उन्होंने थाना बिछवां के थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर को फटकार लगा कर इस मामले की तत्परता से जांच करने को कहा.

थाना बिछवां पुलिस गांव मधुपुरी पहुंची तो शारदा की चिता ठंडी पड़ चुकी थी. इस के बाद चौकीदार की ओर से परशुराम के खिलाफ अपराध संख्या 119/2014 पर भादंवि की धारा 308, 304, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में जगहजगह छापेमारी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप परशुराम बसअड्डे से पकड़ में आ गया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि शारदा मर गई अच्छा ही हुआ. भारत सिंह भी मर जाता तो और अच्छा होता. उस ने जो किया है, उस से बदचलन बीवियों और धोखेबाज दोस्तों को सबक मिलेगा.

पूछताछ के बाद पुलिस ने परशुराम को मैनपुरी की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. भारत सिंह का इलाज चल रहा था. थानाप्रभारी वी.पी. सिंह तोमर का तबादला हो चुका था. अब इस मामले की जांच नए थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह कर रहे थे.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 2

मामला इज्जत का था, इसलिए अनोखेलाल से रहा नहीं गया. न चाहते हुए भी उस ने पूजा से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा और ओमवीर का क्या चक्कर है?’’

एकाएक बाप के इस सवाल से पूजा घबरा गई. उस का कलेजा धड़कने लगा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘मैं समझी नहीं पापा.’’

‘‘देखो बेटा, ओमवीर हमारे दुश्मन का बेटा है. उस के बाप ने हमारे ताऊ की हत्या की है. इसलिए तुम्हारा उस से दूर रहना ही ठीक रहेगा.’’

पिता की इन बातों से पूजा समझ गई कि आगे का रास्ता कांटों भरा है. पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए अनोखेलाल को लगा कि बेटी उस के कहने का मतलब समझ गई है. वह निश्चिंत हो गया. लेकिन पूजा को अब परिवार से ज्यादा ओमवीर प्रिय लगने लगा था. ओमवीर मिला तो उस ने कहा, ‘‘ओमवीर अगर तुम अपनी मोहब्बत को पाना चाहते हो तो कोई कामधाम करो, जिस से वक्तजरूरत हम कहीं लुकछिप कर रह सकें. अगर इसी तरह घूमते रहे तो मुझे खो दोगे. और हां, पापा को कहीं से हमारे मिलनेजुलने का पता चल गया है. इसलिए अब बहुत संभल कर मिलना.’’

इस के बाद ओमवीर काम के लिए इधरउधर हाथपैर मारने लगा. क्योंकि अपने प्यार को पाने के लिए उस पर जुनून सवार था. आसपास उसे कोई काम नहीं मिला तो उस ने सूरत में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन किया. उस का वह दोस्त वहां किसी कपड़े की फैक्ट्री में नौकरी करता था. ओमवीर ने उस से कोई काम दिलाने को कहा तो उस ने उसे सूरत बुला लिया. ओमवीर जानता था कि गांव में रहते हुए वह पूजा को कभी नहीं पा सकेगा. क्योंकि पूजा के घर वालों से उस की ऐसी दुश्मनी थी कि कभी सुलह हो ही नहीं सकती थी. इसलिए पूजा को पाने के लिए उसे भगा कर ले जाना पड़ेगा.

यही वजह थी कि वह दोस्त के कहने पर सूरत चला गया. पूजा ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह उस के लौटने का इंतजार करेगी. इसलिए ओमवीर निश्चिंत हो कर चला गया था.

दोस्त ने सूरत में ओमवीर को काम दिला दिया था. वह वहां आराम से नौकरी करने लगा था. दूसरेतीसरे दिन वह फोन से पूजा से बात कर लेता था. कुछ दिनों तक तो यह सिलसिला ठीकठाक चलता रहा, लेकिन धीरेधीरे पूजा की ओर से आने वाले फोन कम होने लगे. ओमवीर उसे फोन करता तो बातचीत से उसे लगता कि पूजा अब पहले की तरह उस से बात नहीं करती. उसे बात करने के बजाय फोन काटने में ज्यादा रुचि रहती है. कुछ दिनों बाद पूजा का फोन स्विच औफ बताने लगा.

ओमवीर परेशान हो उठा. पूजा का फोन बंद हो गया था. उस ने उसे अपना नया नंबर भी नहीं दिया था. उसे लगा, पूजा किसी परेशानी में पड़ गई है. अब उसे सूरत आने का पछतावा होने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि पूजा उस से बात नहीं कर रही है. उसी बीच गांव गया एक लड़का सूरत आया तो ओमवीर ने उस से गांव का हालचाल पूछा. इस के बाद उस ने पूजा के बारे में पूछा तो उस लड़के ने कहा, ‘‘वह तो मजे में है. मस्ती में घूम रही है.’’

पूजा मजे में है, मस्ती में घूम रही है, यह बात ओमवीर के गले नहीं उतरी. उस के बिना पूजा मजे में कैसे रह सकती है? क्योंकि उस के सूरत आते समय पूजा कह रही थी कि वह उस से दूर रह कर जी नहीं पाएगी. तरहतरह की बातें सोच कर ओमवीर को लगा कि अब यहां उस का रहना ठीक नहीं है. अगर वह यहां रहा तो उस का प्यार उस का नहीं रहेगा.

यही सोच कर ओमवीर लगीलगाई नौकरी छोड़ कर गांव वापस आ गया. घर वालों से उस ने बताया कि वह छुट्टी ले कर आया है. जबकि वह नौकरी छोड़ कर आया था.

अगले ही दिन वह पूजा से मिलने के लिए स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. पूजा उसे देख कर हैरान रह गई. वह सहेलियों के साथ थी, इसलिए ओमवीर ने उस से सिर्फ यही कहा था कि वह शाम को तालाब पर उस का इंतजार करेगा. अगर वह तालाब पर नहीं आएगी तो वह उस के घर पहुंच जाएगा.

पूजा बिना कुछ कहे चली गई. पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर को गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका था. उसे अहसास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. अब उसे शाम का इंतजार था. उसे पता था कि पूजा उस के जुनूनी प्यार को बखूबी जानती है, इसलिए शाम को तालाब पर आएगी जरूर. किसी तरह दिन बिता कर शाम होते ही वह तालाब पर पहुंच गया. थोड़ी देर में पूजा आती दिखाई दी तो उस ने राहत की सांसें ली. आते ही पूजा ने पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’

‘‘यह क्या, पहले तो तुम्हें यह पूछना चाहिए कि मैं वापस क्यों आ गया?’’

‘‘मैं ने नहीं पूछा तो चलो तुम खुद ही बता दो.’’ पूजा ने कहा.

‘‘तुम ने अपना पुराना नंबर बंद कर दिया और नया नंबर नहीं दिया तो मजबूर हो कर मुझे वापस आना पड़ा.’’ कह कर ओमवीर ने पूजा का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए तुम अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ कर चले आए. तुम तो जानते ही हो कि इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा है. मैं पढ़ाई में लगी हूं. फिलहाल फालतू की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘क्या कहा, मेरा प्यार अब फालतू की बात हो गया. तुम्हारी ही वजह से मैं सूरत में पड़ा था और तुम्हारी ही वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़ आया हूं. अब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है. लगता है, तुम बदल गई हो?’’

‘‘तुम ने तो पढ़ाई छोड़ दी है, इसलिए पढ़ाई के महत्त्व को तुम समझ नहीं सकते. लेकिन मुझे पढ़ाई के महत्त्व का पता है. इसलिए मैं अभी फालतू की बातों में पड़ कर डिस्टर्ब नहीं होना चाहती.’’

‘‘मेरे प्यार का क्या होगा?’’ ओमवीर ने पूछा तो पूजा बोली, ‘‘पहले पढ़ाई, उस के बाद प्यार. वैसे भी हमारे और तुम्हारे यहां से दुश्मनी है. मेरे घर वाले कतई नहीं चाहेंगे कि मैं तुम से संबंध रखूं.’’

ओमवीर समझ गया कि अब यह पहले वाली पूजा नहीं रही. यह बदल गई है. इस बदलाव के पीछे जरूर कोई राज है. पूजा जाने लगी तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब मिलोगी?’’

‘‘तुम्हें सूरत जा कर अपनी नौकरी करनी चाहिए,’’ पूजा ने कहा, ‘‘यहां मेरे पीछे नहीं घूमना चाहिए.’’

ओमवीर के गांव आने से अनोखेलाल परेशान हो उठा था. क्योंकि वह जानता था कि अब गांव वाले फिर पूजा और ओमवीर को ले कर तरहतरह की चर्चाएं करेंगे.

दूसरी ओर ओमवीर इस बात को ले कर परेशान था कि पूजा उस की उपेक्षा क्यों कर रही है. इस के समाधान के लिए एक दिन उस ने पूजा को फिर घेरा. तब पूजा ने कहा, ‘‘मुझे अपनी पढ़ाई की चिंता है और तुम्हें अपने प्यार की पड़ी है. तुम्हारे इस प्यार से पेट भरने वाला नहीं है. भूखे पेट प्यार भी अच्छा नहीं लगता. मेरी तुम से यही प्रार्थना है कि तुम अपने काम से काम रखो और मुझे अपना काम करने दो.’’

पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पूजा बदल क्यों गई? अचानक उसे खयाल आया कि कहीं पूजा किसी दूसरे से तो प्यार नहीं करने लगी. इस के बाद वह अपने हिसाब से इस बारे में पता करने लगा. थोड़े प्रयास के बाद उसे पता चला कि पूजा का अब अल्लीपुर के योगेंद्र से चक्कर चल रहा है.

नीरव मोदी और माल्या के भी गुरु निकले ये ठग – भाग 2

इस टीम का दूसरा प्रमुख सदस्य है मोहम्मद यासीन शेख. संदीप मुरजानी प्रथम टीम का अहम किरदार था. यासीन शेख फर्म रजिस्टर्ड कराने की टेक्नोलौजी और उस फर्म का जीएसटी बनाने की प्रक्रिया का विशेषज्ञ है. यह पहले मुंबई में वेबसाइट तैयार करने का काम करता था. यह अपने साथ कुछ युवकों को रखता था, जिन्हें समयसमय पर ट्रेनिंग देता था. इस के द्वारा जस्ट डायल के माध्यम से डेटा ले कर फरजी तरीके से फर्म बनाई जाती थी.

इसी गिरोह में गिरफ्तार हुआ विशाल भी प्रथम टीम का प्रमुख सदस्य था. यह अनपढ़ एवं नशा करने वाले लोगों को रुपयों का लालच दे कर एवं भ्रमित कर अपने फरजी नंबरों को आधार कार्ड में अपडेट कराने का कार्य करता है.

आकाश भी पहली टीम का प्रमुख सदस्य था. यह अशिक्षित एवं नशा करने वाले लोगों को रुपयों का लालच दे कर एवं भ्रमित कर अपने फरजी नंबरों को आधार कार्ड में अपडेट कराने का काम करता है.

राजीव पहली टीम का ऐसा सदस्य था, जो बिना माल के आदानप्रदान किए ही अपने सहयोगी अतुल सेंगर के साथ औन डिमांड फरजी बिल तैयार करता और विक्रय करता था. अतुल सेंगर राजीव के कहने पर ही फरजी बिल तैयार करने का काम करता था.

अश्विनी पांडेय टीम के नंबर 2 सदस्य मोहम्मद यासीन शेख के संपर्क में रह कर फरजी फर्म के लिए फरजी बैंक अकाउंट खुलवाता था. वह एक खाता खुलवाने का 10 हजार रुपया लेता है.

विनीता मुरजानी पेशे से सीए थी और पहली टीम के लीडर और इस स्कैम के मास्टरमाइंड दीपक मुरजानी की पत्नी है. वह पहली टीम द्वारा तैयार की गई फरजी फर्म जीएसटी नंबर सहित को बेचने वाली टीम के द्वारा संचालित फरजी फर्म में, फरजी बिलों को लगा कर जीएसटी रिफंड (आईटीसी इनपुट टैक्स क्रेडिट) से होने वाली इनकम का लेखाजोखा रखती थी और टीम के सदस्यों का उन का कमीशन व खर्चे आदि के प्रबंधन का काम करती थी.

रिक्शे और ठेले वालों के नाम पर फरजी कंपनियां

अब जानते हैं कि ये पूरा गिरोह कैसे इस स्कैम को अंजाम देता था. पूरा गिरोह दिल्ली के मधु विहार, शाहदरा और पीतमपुरा से औफिस संचालित करता रहा था. हांलांकि इन के और भी कई औफिस होने की बात कही जा रही है, जिस का खुलासा जल्द होने की उम्मीद है. ये गिरोह 2 टीमों में काम करता था. पहली टीम के सदस्यों का काम अनपढ़ व कम जागरूक लोगों के पैन कार्ड और आधार कार्ड हासिल करना होता था.

पहले वे जस्ट डायल के माध्यम से डेटा कलेक्ट करते थे. इस के अलावा बाजार में कई ऐसी फर्म भी हैं जो अवैध तरीके से डाटा बेचने का काम करती हैं. इन कंपनियों से भी डाटा खरीदा गया. फिर टीम के सदस्य ऐसे लोगों की तलाश करते थे, जिन के पैन कार्ड और आधार कार्ड का इस्तेमाल कर फरजी कंपनी बनाई जा सके. इस के लिए वे कालोनियों में ऐसे बेरोजगार व नशेड़ी लोगों को फंसाते थे. जो उन्हें रेंट एग्रीमेंट और बिजली के बिल दे सकें. खरीदे गए डाटा के पैन व आधार का इस्तेमाल कर के एक कागजी कंपनी बना ली जाती.

फरजी कंपनी बनाते समय रेंट एग्रीमेंट, आधार आदि का इस्तेमाल किया जाता. जिन लोगों से रेंट एग्रीमेंट खरीदे जाते, उन के नाम पर नया सिम कार्ड भी ले लिया जाता था, ताकि उन के मोबाइल पर ओटीपी आए तो उसे ले कर हर जगह दर्ज करने में परेशानी न हो.

आधार कार्ड, पैन कार्ड, रेंट एग्रीमेंट, इलेक्ट्रिसिटी बिल आदि का उपयोग कर जीएसटी नंबर सहित फरजी फर्म (कंपनी) तैयार कर हो जाती थी. उस के बाद बैंक अकाउंट से ले कर ठगी के लिए जरूरी सभी कागजात भी तैयार कर लिए जाते थे. यह सब काम गिरोह के लोगों के बीच बंटा हुआ था.

अब दूसरी टीम फरजी कंपनी की पहली टीम से खरीद करती थी. कंपनियों को 3 से 4 लाख रुपए नकद में खरीदा जाता था. फिर फरजी बिल का उपयोग कर जीएसटी रिफंड (आईटीसी इनपुट टैक्स क्रेडिट) के रूप में सरकार से करोड़ों रुपए प्राप्त कर लिए जाते थे. इस तरह हर कंपनी के लिए हर महीने 2-3 करोड़ रुपए का ई-बिल जेनरेट करते थे.

15 महीने यूज करते थे फरजी कंपनी को

ये गिरोह फरजी कंपनी बनाने और इस के जरिए क्रेडिट इनपुट ले कर सरकार को चूना लगाने में कितना एक्सपर्ट थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गिरोह के सरगना दीपक मुरजानी और उस की पत्नी विनीता ने यासीन शेख के साथ ठगी का संगठित गिरोह बना कर पिछले साल पहली कंपनी जून, 2022 में रजिस्टर्ड कराई थी.

इस के बाद महज 11 महीने के भीतर तीनों ने करीब 3 हजार कंपनियां कागजों में खड़ी कर दीं. यासीन ने अपने ड्राइवर और नौकर को भी कईकई कंपनियों का मालिक बना दिया. इस गिरोह में 50 से 100 लोगों के शामिल होने की आशंका है. खास बात यह है कि दीपक, विनीता और यासीन को छोड़ कर कम ही लोग ऐसे थे जो एकदूसरे को जानते थे.

पुलिस ने जब शुरुआती जांच की थी तो एम.एस. ट्रेडर्स, अरोरा इंटरप्राइजेज, डी.के. ट्रेडर्स, एम.एम. इंटरप्राइजेज, कोरिया इंटरप्राइजेज, रतन ट्रेडर्स, मनोज ट्रेडर्स, विपुल ट्रेडर्स, पटेल ट्रेडर्स और अर्चना ट्रेडर्स नाम की फर्मों की जांच की गई थी. ज्यादातर कंपनियां कपड़े के इंपोर्ट, एक्सपोर्ट, लोहे के सामान, खिलौने, तेल, चिप्स, अचार और प्लास्टिक का सामान बनाने के लिए पंजीकृत की गई थीं. लेकिन जांच में कहीं भी कोई कंपनी धरातल पर नहीं मिली थी.

इसीलिए पुलिस को शक हुआ और कडिय़ों से कडियां जोड़ते हुए पुलिस पूरी स्कैम की जड़ तक पहुंच गई. पूछताछ में खुलासा हुआ कि आरोपी एक कंपनी से एक महीने में 10 से 20 करोड़ रुपए की फरजी बिलिंग दिखा रहे थे. 25 कंपनियों में एक महीने के अंदर 50 करोड़ की जीएसटी बिलिंग दिखाई गई.

इस के अलावा गिरोह के लोग फरजी कंपनियों को महज 15 महीने तक ही ठगी के लिए इस्तेमाल करते थे. इन कंपनियों का पता ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से तैयार होता था. आरोपी किराने की दुकान चलाने वाले और आढ़ती तक को उन की मांग पर फरजी जीएसटी बिल दे रहे थे. इस से वे टैक्स अधिकारियों से बच जाते थे.

जांच में सामने आया है कि दीपक मुरजानी ने अपनी सीए पत्नी विनीता के दिमाग की उपज से खड़े किए इस ठगी के साम्राज्य के लिए इस साल के अंत तक 4 हजार शेल कंपनियां रजिस्टर्ड कराने का लक्ष्य बनाया हुआ था. ज्यादातर फर्म और कंपनी 3 से साढ़े 4 लाख रुपए के बीच में बेची गईं. फरजी कंपनियों में जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया.

3 हजार फरजी कंपनियों से 15 हजार करोड़ का चूना

पुलिस की गिरफ्त में आए जालसाजों ने फरजी फर्म बना कर जीएसटी रिफंड आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) प्राप्त कर सरकार को अब तक करीब 15 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया. उस में जांच के आधार पर पुलिस आंछित गोयल, प्रदीप गोयल, अर्चित, मयूर उफ मणि नागपाल, चारू नागपाल, रोहित नागपाल, दीपक सिंघल व अन्य की तलाश कर रही है.

नोएडा पुलिस की 4 टीमें प्रकाश में आए लोगों के अलावा अज्ञात आरोपियों को पकडऩे के लिए देश के अलगअलग हिस्से में दबिश दे रही हैं.

15 हजार करोड़ के जीएसटी घोटाले की जांच के दौरान पुलिस को ऐसे कई लोग मिल रहे हैं कि उन के पैन कार्ड का गलत इस्तेमाल किया गया. उत्तराखंड के एक पीडि़त के पैन कार्ड का गलत इस्तेमाल कर खोली गई कंपनी से तो 150 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन कर लिया है. इस का पता तब चला, जब एक काल में व्यक्ति ने बताया कि जीएसटी नोटिस मिलने के बाद उन्हें इस की जानकारी हुई.

हैरानी की बात है कि ठेली वाले से ले कर इंजीनियर और डाक्टर जैसे पेशे से जुड़े लोगों के नाम से फरजी कंपनियां खोली गई थीं और उन्हें इस की भनक तक नहीं थी.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 1

बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.

सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”

“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.

“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”

इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”

“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”

“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”

“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”

“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”

“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”

“मैं मेहनत के जरिए तुम्हें खुशियां दे कर एक अच्छा शौहर बनने की कोशिश कर रहा हूं.”

“लेकिन हम तो खुश हैं. ऐसे वक्त पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है कलाम. मैं चाहती हूं कि नए मेहमान के आने तक तुम कहीं भी आनाजाना बंद कर दो.” आसमा ने कलाम का हाथ थाम कर कहा.

“ठीक है, मैं 2 दिन बाद लौट कर आऊंगा तो फिर कहीं नहीं जाऊंगा.” कलाम ने कहा और वहां से उठ कर कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा.

आसमा और कलाम उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दीवानखाना चौराहे के पास मोहल्ला शाहबाद में वसीम उल्लाह के एक पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर किराए पर रहते थे. उन की ङ्क्षजदगी बेहद साधारण थी. आसमा दिल की अच्छी थी और कलाम आसपड़ोस में सभी से घुलमिल कर रहता था. दिखावे की जिंदगी से उसे परहेज था. उस की आदतों और व्यवहार की लोग तारीफें किया करते थे.

कलाम शादियों की वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करता था. फोटोग्राफी उस का शौक था और पेशा भी. कलाम बिहार का रहने वाला था. एक साल पहले उस की मुलाकात बिहार के ही आरा जनपद के गांव अजीमाबाद की रहने वाली आसमा से हुई तो दोनों आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिलों में उतर गए.

आसमा का परिवार बेहद साधारण था. कलाम ने आसमा के साथ दुनिया बसाने की उम्मीदों में निकाह की पेशकस की तो आसमा के पिता शमशेर मना नहीं कर सके. कलाम अच्छा लडक़ा था. कलाम ने बताया था कि उस के परिवार में कोई नहीं है, वह दुनिया में अकेला है. दोनों की रजामंदी के बाद अक्तूबर, 2014 में उन का निकाह कर दिया गया था.

निकाह के बाद कलाम घरजंवाई बन कर 2 महीने शमशेर के घर रहा. इस के बाद वह आसमा को ले कर बरेली आ गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. घर चलाने के लिए उस ने वीडियोग्राफी करने वालों के साथ वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम शुरू कर दिया.

मुलाकात के दौरान कम वक्त में ही किसी को अपना बना लेने का हुनर कलाम को अच्छी तरह आता था. वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाता था. कलाम लोगों की मदद भी कर दिया करता था. यही वजह थी कि हर कोई उस की नेकियों का कायल था. काम का सिलसिला बता कर कलाम अकसर बाहर आताजाता रहता था. 26 नवंबर, 2015 को भी कलाम आसमा से मेरठ जाने की बात कह कर घर से निकला था.

उम्मीदें और विश्वास करना हर इंसान की फितरत है, लेकिन आने वाले कल में यह अंदाजा किसी को नहीं होता कि उस की उम्मीदें पूरी होंगी और विश्वास का वजूद कायम रहेगा. वक्त और हालात कब करवट ले ले, इस बात कोई नहीं जानता. कलाम आसमा का शौहर था. उस के निकाह को भी एक साल बीत चुका था. खुशियां उस की धडक़नों में बिखरी हुई थीं, लेकिन वह अपने शौहर की बहुत सी हकीकतों से वाकिफ नहीं थी.

आसमा नहीं जानती थी कि वक्त के साथ उस की जिंदगी का नाजुक रिश्ता आंखों को आंसुओं से तर कर के तपते रेगिस्तान की गरम रेत पर पड़ कर दिल पर भी छाले देने वाला है. ऐसे छाले जिन का कोई मरहम नहीं होगा, वह दर्द की एक अनचाही सौगात दे जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद का कैंट रेलवे स्टेशन आर्मी एरिया से एकदम सटा है. वहां पहुंचने के सभी रास्ते इसी एरिया से गुजरते हैं. चौबीसों घंटे लोगों की आवाजाही का सिलसिला जारी रहता है. 27 नवंबर की दोपहर तकरीबन 3 बजे का वक्त था. सफेद रंग की 2 कारें तेजी से स्टेशन के एकदम सामने आ कर रुकीं. दोनों कारों में बैठे लोग बिजली की सी फुरती से उतरे. उन में से कुछ लोगों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे.

हथियारबंद लोग तो टिकट काउंटर के आसपास ही रुक गए, जबकि बगैर हथियार वाले 5 लोग गलियारे को पार करते हुए प्लेटफौर्म पर पहुंच गए. वहां तमाम लोग मौजूद थे और काफी चहलपहल थी. उन लोगों ने अपनी नजरों को खास अंदाज में चारों ओर इस तरह दौड़ाया, जैसे उन्हें किसी की तलाश हो. तभी उन में से एक अपने साथियों से मुखातिब हुआ, “हमारा मकसद पूरा होगा क्या?”

“बिलकुल सर, आज हमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.” उन में से एक ने आत्मविश्वास भरे लहजे में बोला.

“ठीक है.” उसी दौरान उन सभी की नजरें प्लेटफौर्म पर बने एक टी स्टाल की ओट ले कर बेफिक्री भरे अंदाज में खड़े एक युवक पर जा कर ठहर गईं. वह स्मार्ट सा नौजवान था. उस ने ब्लैक कलर का ट्राउजर और उसी से मिलतीजुलती हाईनेक वुलन जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक लैपटौप वाला बैग झूल रहा था. उसे देख कर आने वाले सभी लोगों ने एकदूसरे से थोड़ा दूरियां बनाईं और फिर आहिस्ताआहिस्ता चल कर उस के इर्दगिर्द फैल गए. युवक की नजरें उन से चार हुईं, लेकिन उस ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया और जेब से मोबाइल निकाल कर उस के कीपैड पर अंगुलियां चलाने लगा.

उन लोगों के हावभाव देख कर शायद उस युवक को अहसास हो गया कि वे उसी की तरफ आ रहे हैं. वे जैसे ही उस के नजदीक पहुंचे, वह युवक आगे बढ़ा. लेकिन तभी उन लोगों में से एक शख्स बोला, “रुकिए मिस्टर.”

“जी फरमाइए.” उस ने पलट कर बेपरवाही से कहा.

“तुम्हें तो दिल्ली जाना है?”

“जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं. क्या आप मुझे जानते हैं?”

“हम तो तुम्हारे साए से भी वाकिफ हैं मियां. लेकिन दुख इस बात का है कि आप से पहले मिल नहीं सके.” एक दूसरे शख्स ने आगे आ कर उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा तो वह युवक असमंजस में पड़ गया.

वैसे तो वे सभी बेहद चालाकी से उस के नजदीक आए थे, लेकिन वह उन से तेज निकला. पलक झपकते ही हिरन सी तेजी से उस ने छलांग लगा दी. बाजी पलट सकती है, शायद यह बात आने वालों को पहले से पता थी. इसलिए वे सब भी होशियार थे. उन में से एक ने चंद कदम दौड़ कर फुरती से उसे पकड़ लिया. पकड़ मजबूत थी, इसलिए कोशिश के बावजूद वह युवक हिल नहीं सका. युवक अपनी बेबसी पर छटपटा कर रह गया. तुरंत उस की तलाशी ली गई. उस का बैग, पर्स व मोबाइल उन लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया.

“कोई वैपन तो नहीं है?” किसी ने पूछा तो तलाशी लेने वाले ने कहा, “नहीं सर.”

आननफानन में वे उसे खींच कर स्टेशन के बाहर लाए और फुरती से कार में धकेल कर खुद भी कार में बैठे और जिस तरह तेजी से आए थे, उसी तरह चले गए. यह सब फिल्मी अंदाज में हुआ था. लोगों की भीड़ भी जमा हो गई थी, लेकिन उन लोगों के हथियार देख कर कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना अमांपुर के गांव टिकुरिया के रहने वाले अनोखेलाल की पत्नी बेटी को जनम दे कर गुजर गई थी. सब  इस बात को ले कर परेशान थे कि उस नवजात बच्ची को कौन संभालेगा. लेकिन उस बच्ची की जिम्मेदारी अनोखेलाल की बहन ने ले ली तो उसे अपने अन्य बच्चों की चिंता हुई. उस के 3 बच्चे और थे. जिन में सब से बड़ी बेटी अनिता थी तो उस के बाद बेटा सुनील तो उस से छोटी पूजा.

पत्नी की मौत के बाद बड़ी बेटी अनिता ने घर संभाल लिया था. अपनी जिम्मेदारी निभाने में उस की पढ़ाई जरूर छूट गई थी, लेकिन भाईबहनों की ओर से उस ने बाप को निश्चिंत कर दिया था. घरपरिवार संभालने के चक्कर में बड़ी बेटी की पढ़ाई छूट ही गई थी. अब अनोखेलाल सुनील और पूजा को खूब पढ़ाना चाहता था.

पूजा खूबसूरत थी ही, पढ़ाई में भी ठीकठाक थी. उस का व्यवहार भी बहुत अच्छा था, इसलिए उस से घर वाले ही नहीं, सभी खुश रहते थे. समय के साथ अनोखेलाल पत्नी का दुख भूलने लगा था. अब उस का एक ही उद्देश्य रह गया था कि किसी तरह बच्चों की जिंदगी संवर जाए. बाप बच्चों का कितना भी खयाल रखे, मां की बराबरी कतई नहीं कर सकता. इस की वजह यह होती है कि पिता को घर के बाहर के भी काम देखने पड़ते हैं.

अनोखेलाल की छोटी बेटी पूजा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. वह पढ़लिख कर अध्यापिका बनना चाहती थी. इस के लिए वह मेहनत भी खूब कर रही थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह मोहब्बत के जाल में ऐसी उलझी कि उस का सपना ही नहीं टूटा, बल्कि जिंदगी से ही हाथ धो बैठी.

गांव का ही रहने वाला ओमवीर अचानक पूजा की जिंदगी में आ गया. जबकि ओमवीर और पूजा के घर वालों के बीच बरसों से दुश्मनी चली आ रही थी.

ओमवीर के पिता नेम सिंह ने पूजा के दादा गंगा सिंह (अनोखेलाल के ताऊ) की हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में वह जेल भी गया था. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था. इतनी बड़ी दुश्मनी होने के बावजूद पूजा ओमवीर को दिल दे बैठी थी.

स्कूल आतेजाते जब कभी पूजा दिखाई दे जाती, ओमवीर उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. क्योंकि पूजा उसे बहुत अच्छी लगती थी. शुरूशुरू में तो पूजा ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो दुश्मन के बेटे के लिए जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा का दिल धड़क उठा. इस के बाद वह भी अपने पीछेपीछे आने वाले ओमवीर को पलटपलट कर देखने ही नहीं लगी, बल्कि नजर मिलने पर मुसकराने भी लगी.

गांव से स्कूल का रास्ता खेतों के बीच से होने की वजह से लगभग सुनसान रहता था. इसलिए गांव की लड़कियां एक साथ स्कूल जाती थीं. लड़कियों के साथ होने की वजह से ओमवीर को पूजा से अपने दिल की बात कहने का मौका नहीं मिलता था. लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. ओमवीर पूजा के पीछे पड़ा ही था. पूजा के मन में भी उस के लिए चाहत जाग उठी थी.

पूजा को भी पता था कि वह सहेलियों के साथ रहेगी तो ओमवीर से उस की बात कभी नहीं हो सकेगी. उस से बात करने के लिए ही एक दिन वह घर से थोड़ा देर से निकली. वह जैसे ही गांव से बाहर निकली, ओमवीर उस के पीछेपीछे चल पड़ा. खेतों के बीच सुनसान जगह देख कर ओमवीर उस के पास जा कर बोला, ‘‘आज तुम अकेली ही स्कूल जा रही हो?’’

पूजा का दिल धड़क उठा. उस ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे थोड़ी देर हो गई, इसलिए बाकी सब चली गईं.’’

‘‘पूजा, मुझे तुम से कुछ कहना था?’’ ओमवीर ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं क्या कहना चाहता हूं?’’ ओमवीर ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं? तुम कितने दिनों से मेरे पीछे पड़े हो. कोई लड़का किसी लड़की के पीछे क्यों पड़ता है, इतना तो मुझे भी पता है.’’ पूजा ने बेबाकी से कहा तो ओमवीर में भी हिम्मत आ गई. उस ने कहा, ‘‘क्या करूं, तुम मुझे इतनी अच्छी लगती हो कि मन यही करता है कि हर वक्त तुम्हीं को देखता रहूं.’’

‘‘तो देखो न, मना किस ने किया है.’’ पूजा ढि़ठाई से बोली.

‘‘सिर्फ देखने से ही मन नहीं भरता. पूजा, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. इस के लिए भी मैं ने कहां मना किया है. भई तुम्हारा मन है, वह किसी से भी प्यार कर सकता है.’’ कह कर पूजा हंस पड़ी तो ओमवीर को भी हंसी भी आ गई.

इस तरह दोनों ने जो चाहा था, वह पूरा हो गया. दोनों खुशीखुशी स्कूल चले गए. इस के बाद तो दोनों अकसर गांव के लड़केलड़कियों का साथ छोड़ कर खेतों के बीच मिलने लगे. इन मुलाकातों के साथ उन का प्यार बढ़ता गया. तब न पूजा को इस बात की चिंता थी और न ही ओमवीर को कि उन के इस प्यार का अंजाम क्या होगा? हर चिंता से मुक्त दोनों अपनी प्यारभरी दुनिया में डूबे रहते.

चोरीछिपे होने वाली मुलाकातों से दोनों दिनोंदिन करीब आते जा रहे थे. एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. उसी बीच अनोखेलाल ने अनिता की शादी कर दी तो घर की सारी जिम्मेदारी पूजा पर आ गई. पूजा ने घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अनोखेलाल का भी कहना था कि अगर पढ़लिख कर वह कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी संवर जाएगी अन्यथा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए वह उस की शादी कर देगा.

पूजा पढ़ रही थी, जबकि ओमवीर ने पढ़ाई छोड़ दी थी. उस का बड़ा भाई मुकेश बाप के साथ खेती के कामों में उस की मदद करता था. पढ़ाई छोड़ कर ओमवीर को भी लगने लगा कि उसे भी कुछ करना चाहिए. क्योंकि वह पूजा को दीवानगी की हद तक प्यार करता था. और पूजा उसे तभी मिल सकती थी, जब वह उस के लायक बन जाए. इस के लिए वह भी पिता के साथ लग गया. उस ने पूजा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. इसलिए वह उस की खातिर कुछ भी करने को तैयार था.

संयोग से उसी बीच किसी दिन गांव के किसी आदमी ने पूजा को ओमवीर के साथ देखा तो उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने यह बात अनोखेलाल को बताई तो वह भी हैरान रह गया. अपनी इस होनहार बेटी से उसे इस तरह की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. दुश्मन के बेटे से अपनी बेटी का मिलनाजुलना वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. उस ने अपनी आंखों से कुछ देखा नहीं था, इसलिए वह पूजा से सीधे कुछ कह भी नहीं सकता था. फिर गांव में तो इस तरह की चर्चाएं होती ही रहती हैं.

नीरव मोदी और माल्या के भी गुरु निकले ये ठग – भाग 1

बात 10 मई, 2023 की है. गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के एडीशनल डीसीपी शक्ति मोहन अवस्थी अपने औफिस में बैठे एक फाइल को देख रहे थे, तभी उन के कमरे में पत्रकार संदीप कुमार पहुंचे. वह नोएडा फिल्म सिटी सेक्टर-10 में स्थित एक मीडिया संस्थान से जुड़े थे. पत्रकार को देखते ही उन्होंने अपने सामने रखी फाइल को एक तरफ सरका कर मुसकराते हुए कहा, “आइए संदीपजी.”

उन से हाथ मिलाने के बाद संदीप कुमार कुरसी पर बैठ गए तो एडिशनल डीसीपी बोले, “क्या लेंगे चाय या कौफी और आज हमारी कैसे याद आ गई?”

“बस सर, एक गिलास पानी पिलवा दीजिए. एक मुसीबत में पड़ गया हूं इसीलिए आप की मदद लेने के लिए आना पड़ा.”

“ऐसी क्या प्राब्लम आ गई संदीपजी, आप लोग तो दूसरों की मदद करते हो. ऐसी कौन सी परेशानी है, जिस के लिए हमारी मदद की जरूरत पड़ गई.” एडीसीपी शक्ति मोहन ने कहा.

“सर, प्राब्लम तो बहुत छोटी सी थी, लेकिन अब बड़ी हो गई है…”

संदीप कुमार ने एडिशनल डीसीपी से मुलाकात कर के जो कुछ बताया, उसे सुन कर अवस्थी के कान खड़े हो गए. उन्होंने उसी वक्त सेक्टर-20 थाने के एसएचओ मनोज कुमार सिंह को फोन कर के कुछ दिशानिर्देश दिए और इस मामले की जांच के लिए विशेष टीम गठित करने का आदेश दिया.

दरअसल ये मामला ही ऐसा था. संदीप कुमार का पैन कार्ड कुछ समय पहले कहीं गिर गया था. इस मामले में उन्होंने पैन कार्ड गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कर डुप्लीकेट कार्ड तो बनवा लिया, लेकिन इस दौरान उन्हें पता चला कि उन के पैन कार्ड का इस्तेमाल कर 2 फरजी कंपनियां चलाई जा रही हैं.

एक कंपनी पंजाब के लुधियाना में और दूसरी महाराष्ट्र के सोलापुर में चलाई जा रही है. उन के पास कोई ऐसी अथौरिटी तो थी नहीं कि वे आगे की जांच कर पाते कि वे कंपनियां किस की हैं और उन में क्या चल रहा है. लिहाजा उन्होंने इसी की शिकायत के लिए एडीसीपी शक्ति मोहन अवस्थी से मदद मांगी थी.

टीमों में बंटे हुए थे घोटालेबाज

एडीसीपी के निर्देश पर थाना सेक्टर-20 में शिकायत कर के मामले की जांचपड़ताल शुरू कर दी गई. एसीपी (नोएडा सेंट्रल) रजनीश वर्मा की निगरानी में नोएडा सेक्टर-20 थाने के एसएचओ मनोज कुमार सिंह ने साइबर एक्सपर्ट के साथ आर्थिक और जालसाजी से जुड़े अपराधों की जांच में महारथ हासिल करने वाले पुलिसकर्मियों की टीम तैयार की.

इस टीम ने अपने काम की शुरुआत की रजिस्ट्रार औफ कंपनीज के डाटा खंगालने से. सब से पहले उन 2 कंपनियों का डाटा हासिल किया गया, जो संदीप सिंह के पैन कार्ड पर बनी थी और लुधियाना व सोलापुर में थी. पुलिस की एक टीम इन दोनों पतों पर पहुंची तो जानकारी मिली कि इन दोनों पतों पर कोई कंपनी या उस का दफ्तर ही नहीं है.

इस जानकारी के सामने आते ही पुलिस के कान खडे हो गए और इन कंपनियों का पूरा डाटा, आर्थिक लेनदेन की जानकारी बैंकों और संबंधित विभागों से निकाली गई. जल्द ही पुलिस के सामने वे नाम और बैंक खाते भी आ गए, जिन में इन दोनों कंपनियों के नाम से कागजी लेनदेन तो हो रहे थे, मगर इस कंपनी को चलाने वाले और उन के द्वारा संचालित किए जा रहे बैंक खातों को खंगाला गया तो धीरेधीरे कडिय़ां जुडऩी शुरू हो गईं.

करीब 20 दिनों तक पुलिस की कई टीमें अलगअलग विभागों से दस्तावेज हासिल कर जांच को आगे बढ़ाती रहीं. पुलिस के पास इस दौरान इतनी जानकारी एकत्र हो चुकी थी कि अब आगे बढऩे से पहले उन लोगों को दबोचना जरूरी था, जिन का चेहरा इस गोरखधंधे में सामने आ चुका था. एसएचओ मनोज कुमार सिंह और एसीपी रमेश चंद्र पांडे ने एडीशनल डीसीपी शक्ति मोहन और डीसीपी हरीश चंद्र को यह बात बताई.

डीसीपी हरीश चंद्र के सामने जो जानकारी थी, वो ऐसी थी कि उस पर पुलिस एक्शन की शुरुआत तो कर सकते थी, लेकिन उस की जांच को मुकाम पर पहुंचाने के लिए न जाने कितने विभागों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी. लेकिन इस पूरे गोरखधंधे से मुंह भी तो नहीं फेरा जा सकता था. लिहाजा उन्होंने गौतमबुद्ध नगर पुलिस कमिश्नरेट की मुखिया पुलिस आयुक्त लक्ष्मी सिंह के सामने पेश हो कर इस पूरे मामले की जानकारी दी.

पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह का नाम पुलिस के उन अधिकारियों में शुमार हैं, जो बड़े से बड़े कठोर फैसले लेने के लिए जानी जाती हैं. पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह को जैसे ही फरजी कंपनियों के इस रैकेट की जानकारी मिली उन्होंने सेंट्रल नोएडा जोन के डीसीपी हरीश चंद्र, एडीशनल डीसीपी शक्ति मोहन अवस्थी, एसीपी रजनीश वर्मा और एसएचओ सेक्टर-20 मनोज कुमार सिंह को अपने औफिस में बुला कर उन की ब्रीफिंग की. उन्होंने अधिकारियों को हिदायत दी कि कई टीमें बना कर इन सभी कंपनियों पर एक साथ काररवाई की जाए.

पुलिस आयुक्त की तरफ से हरी झंडी मिल चुकी थी सबूत पहले ही एकत्र हो चुके थे, टीमें तैयार होने में ज्यादा देर नहीं लगी.

डेढ़ दरजन टीमों ने की विभिन्न शहरों में छापेमारी

2 जून, 2023 नोएडा के सेक्टर-20 थाने से पुलिस की करीब डेढ़ दरजन पुलिस टीमें एक साथ नोएडा ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद व दिल्ली की अलगअलग लोकेशन के लिए निकलीं. पूरे एनसीआर में पुलिस की टीमों ने छापेमारी की. पुलिस ने कुल 8 लोगों को पकड़ा. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, उन में दिल्ली के रहने वाले दीपक मुरजानी और उस की सीए पत्नी विनीता मुरजानी सब से प्रमुख थे. इन के अलावा यासीन शेख दूसरा प्रमुख व्यक्ति था.

उस के अलावा 5 अन्य लोगों में साहिबाबाद के आकाश सैनी, हाथरस के अतुल सेंगर, नोएडा की अवनी, दिल्ली के ही विशाल और राजीव को दिल्ली के मधु विहार स्थित उन के कार्यालय से गिरफ्तार किया गया. इन सभी लोगों के घर व औफिसों की तलाशी में जो भी दस्तावेज और बैंक के खातों की डिटेल मिली, उन्हें जब्त कर लिया गया.

पुलिस की जांचपड़ताल और पूछताछ के बाद देश में जीएसटी रिफंड के जरिए साइबर अपराध के एक ऐसे खेल का खुलासा हुआ, जिस से सरकार को अब तक 15 हजार करोड़ रुपए की चपत लगाई जा चुकी है. पुलिस ने इस से पहले कभी भी आर्थिक अपराध के ऐसे साइबर मामले का खुलासा नहीं किया था. पूछताछ में खुलासा हुआ कि 15 हजार करोड़ रुपए के इस महाघोटाले में शामिल करीब 3 हजार फरजी फर्म ‘कागजी’यानी शेल कंपनियां थीं. जो लोग पकड़े गए, उन से 6 लाख 35 हजार लोगों के पैन कार्ड का डाटा मिला था, जिस से ये कंपनी रजिस्टर्ड कराते थे.

फरजी कंपनी बना कर ये गिरोह सरकार को चूना लगाता था. फरजी बिल का उपयोग कर जीएसटी रिफंड आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) के रूप में सरकार से करोड़ों रुपए प्राप्त कर लिए जाते थे. इस तरह हर कंपनी के लिए हर महीने 2-3 करोड़ रुपए का ई-बिल जेनरेट करते थे. इस तरह इन लोगों ने पिछले डेढ़ साल में करीब 15 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया.

नोएडा सेक्टर-20 थाना पुलिस ने पत्रकार संदीप कुमार की शिकायत पर आधारित मुकदमे को जालसाजी, साइबर अपराध, अमानत में खयानत, चोरी और ठगी की संगीन धाराओं में परिवर्तित कर सभी आरोपियों से कड़ी पूछताछ शुरू कर दी. जिस के बाद हैरान कर देने वाले एक घोटाले की कहानी सामने आई—

गैंग के सभी सदस्यों के बंटे हुए थे काम

जीएसटी रैकेट के इस गड़बड़ घोटाले की कहानी को पूरा समझने के लिए पहले उन किरदारों के बारे में जानना जरूरी है, जो इस घोटाले को अंजाम दे रहे थे. उन का क्या काम था और वे कैसे इस पूरे औपरेशन को अंजाम देते थे.

संदीप मुरजानी नाम का शख्स इस पूरे रैकेट का मास्टरमाइंड है. यह गैंग को संचालित करता था. इस पूरे रैकेट को 2 टीमें मिल कर अंजाम देती थीं. संदीप मुरजानी पहली टीम का लीडर होता था. वह फरजी दस्तावेज, आधार कार्ड, पैन कार्ड, रेंट एग्रीमेंट, इलेक्ट्रिसिटी बिल आदि की व्यवस्था कर के उन से फरजी फर्म और जीएसटी नंबर तैयार कराता था.

तैयार की गई फरजी फर्म को बेचने के लिए क्लाइंट तलाश करने का काम दूसरी टीम करती थी. वह मोटी रकम ले कर फर्म बेच देता था. इन फर्मों में फरजी पैन कार्ड लिंक होते थे और उस पैन कार्ड से जीएसटी नंबर बनाए जाते थे.

दूसरी बीवी का खूनी खेल – भाग 3

टेलर से बात करने के बाद पुलिस टीम नूरपूर बेहटा गांव पहुंच गई. वहां पता चला कि कल्लू का दूसरा नाम संतोष है. घर पर सब उसे कल्लू कहते थे. घर पर संतोष की पत्नी और पिता मिले. घर वालों को जैसे ही पता लगा कि संतोष का मर्डर हो गया है तो घर में कोहराम मच गया. सभी रोने लगे.

उस की पत्नी राजकुमारी ने सीधे आरोप लगाया कि उन की हत्या में रिंकी तिवारी और रिंकू मिश्रा का हाथ है. बाद में घर वाले भी मोर्चरी पहुंच गए. वहां राजकुमारी ने लाश की पहचान अपने पति संतोष उर्फ कल्लू के रूप में की.

चूंकि राजकुमारी ने पति की हत्या का आरोप रिंकू मिश्रा और रिंकी पर लगाया था, इसलिए लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उन्हें तलाशना शुरू कर दिया. एक सप्ताह की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने रिंकी तिवारी और रिंकू मिश्रा को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब उन से संतोष कुमार उर्फ कल्लू की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन्होंने संतोष की हत्या की जो कहानी बताई, वह रिश्तों की मर्यादा को तारतार करती नजर आई.

उम्र में दो गुने बड़े संतोष के साथ पतिपत्नी के संबंध निभाते रिंकी को यह पता चल चुका था कि संतोष के पास अब बहुत पैसा नहीं है. उस ने जिस मकसद से उस के साथ शादी की थी, वह मकसद उसे पूरा होता नजर नहीं आ रहा था. इसलिए वह धीरेधीरे संतोष से किनारा करने लगी थी. संतोष के प्रति उस की दिलचस्पी भी खत्म हो चुकी थी.

इस के अलावा रिंकू ने संतोष से एक लाख 60 हजार रुपए उधार लिए थे. संतोष ने जब उस से अपने पैसे मांगे तो वह पैसे लौटाने में आनाकानी करने लगा था. लगातार तकाजा करने से रिंकू भी परेशान रहने लगा था.  इसी बीच रिंकू और रिंकी के बीच अवैध संबंध भी बन चुके थे. इस बात की भनक संतोष को लग चुकी थी. इसलिए संतोष ने रिंकू से कह दिया था कि उस के पैसे लौटाने के बाद वह ढाबा छोड़ कर चला जाए.

वहीं दूसरी तरफ रिंकी और रिंकू अपनी अलग योजना बना चुके थे. रिंकी ने रिंकू से कहा, ‘‘संतोष, अब तुम से अपने पैसे मांग रहा है. इस से बचने का एक ही रास्ता है कि उसे रास्ते से हटा दिया जाए.’’

‘‘पर तुम ने तो उस के साथ शादी की है.’’ रिंकू बोला.

‘‘मुझे क्या पता था कि वह कंगाल हो चुका है. मैं ने तो सुना था कि वह 50-60 लाख का आदमी है. रिंकू तुम्हें पता नहीं, अब वह हमारे ऊपर शक भी करने लगा है. उस ने मेरी नाक में दम कर रखा है. मैं उस से अब बहुत परेशान हो गई हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, हम उसे रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ इतना कह कर रिंकू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया.

योजना के मुताबिक 17 मार्च, 2014 की रात को रिंकू और संतोष ने साथ बैठ कर शराब पी. जब संतोष काफी नशे में हो गया तो रिंकू और रिंकी उसे लखनऊ-फैजाबाद रोड पर एक अधबने मकान में ले गए और रिंकू ने धक्का दे कर संतोष को गिरा दिया. ज्यादा नशे में होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सका.  उस के गिरते ही रिंकू उस के ऊपर चढ़ कर बैठ गया. उसी दौरान रिंकू ने मौजे से संतोष का गला घोंट दिया. उस की हत्या करने के बाद दोनों वहां से भाग निकले.

दोनों को पता था कि पुलिस लाश की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. ऐसे में वह लोग बच जाएंगे लेकिन कमीज पर लगे लेवल के सहारे पुलिस हत्या के इस मामले को सुलझाने में सफल हो गई. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

शहरी चकाचौंध में फंस कर संतोष ने अपना घरपरिवार और खेती छोड़ कर शहर में रहना शुरू किया. यही चकाचौंध और बीवी से की गई बेवफाई उस की जान की दुश्मन बनी.

जेल जाते समय रिंकी और रिंकू खुद को बेकुसूर बता रहे थे. उन की सच्चाई को परखने का काम अदालत करेगी. जो लोग शहर की चकाचौंध देख कर, शहर की तरफ भागते हैं उन्हें देखना चाहिए कि शहरी आकर्षण में कुछ बुराइयां भी हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पिता को रास ना आया बेटी का प्यार