वेब सीरीज : MOHREY

Web series in Hindi : मुकुल अभयंकर द्वारा निर्देशित वेब सीरीज मोहरे(MOHREY) क्राइम और थ्रिलर की शैली में बनाई गई है. सीरीज एक ऐसे पुलिस अधिकारी की कहानी है, जो क्रिमिनल्स को पकडऩे के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल देता है.

लेखक: चारुदत्ता भगत, आदित्य पारुलेकर, निर्देशक: मुकुल अभयंकर, ओटीटी: एमएक्स प्लेयर

कलाकार: जावेद जाफरी, नीरज काबी, गायत्री भारद्वाज, सुचित्रा पिल्लई, आशिम गुलाटी, पुलकित मकोल, प्रदन्या मोटघरे, अमित सिंह, शैलेश दातार और नेहा बाम इस वेब सीरीज के टाइटल से ही पता चलता है कि इस में क्या दिखाया गया होगा. किसी भी फिल्म या सीरीज को अच्छा बनाने के लिए अच्छी स्क्रिप्ट के साथ अच्छे और प्रभावित करने वाले डायलौग का होना जरूरी है. पर मोहरेमें यही बात खटकती है. 

सीरीज की कहानी और डायलौग लिखने वाले मुकुल अभयंकर और उन के सहायक चारुदत्त भागवत एवं आदित्य पारुलेकर ने सीरीज को अच्छी बनाने के लिए मेहनत तो बहुत की है, पर ये लेखक सीरीज को जमा नहीं पाए. सीरीज जगहजगह खिंचती सी लगती है.

एपिसोड नंबर 1

सीरीज की कहानी को रोमांचक और दिलचस्प बनाने की कोशिश तो की गई है. शायद इसीलिए सीरीज के शुरुआत में ही कबड्डी के कप्तान की पीटपीट कर हत्या करते हुए दिखाया गया है. यही घटना डौन बास्को का परिचय कराती है. डौन बास्को की भूमिका जानेमाने कलाकार जावेद जाफरी ने की है. वैसे तो जावेद की पहचान हास्य भूमिकाओं के लिए है, पर इस सीरीज में उसे विलेन बनाया गया है. शायद इसीलिए उस ने विलेन की भूमिका भी कौमेडियन की तरह ही निभाई है. 

डौन बास्को ने कबड्डी टीम के हारने के लिए 50 करोड़ लगाए थे. लेकिन टीम जीत जाती है, जिस से उस के 50 करोड़ रुपए डूब गए थे. इसीलिए वह कबड्ïडी टीम के कैप्टन सुनील दरपत की पिटाई करवा रहा था. उस ने कप्तान सुनील दलपत को जिंदा ही कोफीन में बंद करवा दिया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. बास्को का कोफीन का बिजनैस तो था ही, दवा की भी एक कंपनी थी. इस के बाद अर्जुन नाम का एक सबइंसपेक्टर सुनील दलपत की तलाश में बास्को के यहां आता है और उस से सुनील के बारे में पूछताछ करता है. यहीं पर अर्जुन की बहस बास्को के खास आदमी रजा से होती है, पर बास्को उसे शांत करा देता है. 

एसआई अर्जुन का रोल करने वाला असीम गुलाटी पुलिस अधिकारी कम बास्को का नौकर लगता है. सीरीज में पुलिस की भूमिका करने वाला एक भी व्यक्ति में पुलिस वाला व्यक्तित्त्व दिखाई नहीं देता. रजा की भूमिका करने वाला अमित सिंह खुद को हर वक्त डौन दिखाने की कोशिश करता रहता है, जिस से वह और भी ज्यादा खराब लगता है. क्योंकि उसे देख कर साफ लगता है कि उस में बनावटीपन है. यही बात पूरी सीरीज में खटकती है.

इस के बाद कलाकृतियों (पेंटिंग) के एक एग्जीबिशन के दौरान मुख्यमंत्री आते हैं तो पत्रकार राकेश जैन उन से कप्तान सुनील दलपत के बारे में पूछते हैं, पर सीएम बहाना देते हैं. तभी सीएम पर हमला होता है. इस घटना में मुख्यमंत्री के सारे गार्ड मारे जाते हैं, पर मुख्यमंत्री बच जाते हैं. पर इस बात का किसी को पता नहीं होता. इस में पत्रकार अश्मि घायल हो जाती है. 

सीरीज में मुख्यमंत्री की भूमिका शैलेश दातार ने की है. अपनी इस भूमिका में वह कहीं से भी फिट नहीं बैठता. एक राजनेता जिस तरह काइयां और होशियार दिखाई देता है, वैसा उस में कुछ भी नहीं दिखाई देता. वह एक व्यापारी जैसा लगता है. ऐसा ही पत्रकार अश्मि की भूमिका करने वाली प्रदन्या मोटघरे के साथ भी है. वह कहीं से भी रिपोर्टर नहीं लगती. उसे देख कर लगता है कि वह किसी इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा है.

मुख्यमंत्री के मरने की खबर से उपमुख्यमंत्री जोशी सीएम बनने की तैयारी में लग जाता है. इसी बीच माइकल नाम का एसआई अश्मि से मुख्यमंत्री पर हुए अटैक के बारे में पूछने आता है. माइकल अश्मि को पसंद आ जाता है, इसलिए वह उस से और भी बातें करने लगती है. एसआई माइकल की भूमिका पुलकित मकोल ने की है, जो पुलिस अधिकारी कम लल्लू ज्यादा लगता है. मुख्यमंत्री की हत्या कराने का आरोप बास्को पर लगता है. खुद को निर्दोष बताने के लिए वह प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहा था तो राकेश जैन उस से कुछ ऐसे सवाल करते हैं, जिन से चिढ़ कर वह प्रैस कौन्फ्रैंस खत्म कर देता है. तभी टीवी पर मुख्यमंत्री का इंटरव्यू आता दिखाई देता है. इस से सभी को पता चलता है कि सीएम जीवित हैं.

डिप्टी सीएम जोशी बास्को से मिलने आता है और उस से कहता है कि सीएम बच कैसे गया? तब बास्को कहता है कि उस की रिकार्डिंग उस के पास है. यहां पता चलता है कि सीएम को बचाने वाला भी बास्को था और मरवाने वाला भी वही था. दूसरी ओर अश्मि का मकान मालिक उसे मकान खाली करने को कहता है तो वह एक महिला शेरिल के यहां शिफ्ट हो जाती है. शेरिल बेकरी चलाती थी और अकेली ही रहती थी.  उस के पूरे परिवार को मार कर जला दिया गया था. शेरिल का रोल सुचित्रा पिल्लई ने किया है. मंझी हुई अभिनेत्री होने के कारण उस ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. न्याय तो अपनी भूमिका के साथ जावेद जाफरी ने भी किया है, पर उस की भमिका में कौमेडियन वाला पुट आ गया है.

डौन बास्को (MOHREY) से नाराज सीएम उसे औकात में लाने के लिए जब्बार नाम के पुलिस अधिकारी को दिल्ली से बुलाता है, जो बास्को का पुराना दुश्मन था. जब्बार टास्क फोर्स का गठन करता है, जिस में 5 लोगों के नाम थे. जब्बार का रोल नीरज काबी ने किया है. वैसे तो नीरज काबी अच्छा कलाकार है, पर एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी जैसा उस का व्यक्तित्व दिखाई नहीं देता. इसी बीच पत्रकार राकेश जैन को रजा ट्रेन से गिरा कर मार देता है. टास्क फोर्स में अर्जुन का भी नाम था, पर जब्बार उसे निकाल देता है और उसे गद्ïदार कहता है, जिस से नाराज हो कर अर्जुन उस पर हाथ उठा देता है.

एपिसोड नंबर 2

दूसरे एपिसोड की शुरुआत में दिखाया जाता है कि अर्जुन को जेल में कुछ लोग पीट रहे हैं. यह सजा उसे जब्बार पर हाथ उठाने के लिए मिली थी. उसे नौकरी से भी निकाल दिया गया था. आगे अन्ना नाम का आदमी बास्को को बताता है कि जब्बार वापस आ गया है. इस से बास्को तनाव में आ जाता है. वही यह भी बताता है कि अर्जुन ने उसे मारा है, जिस से उसे नौकरी से हटा कर जेल भेज दिया गया है. बास्को अर्जुन को अपनी वकील रिचेल के माध्यम से बाहर निकलवाता है तो अर्जुन उस के लिए काम करने लगता है. जब्बार अर्जुन की जगह माइकल को अपनी टीम में रखता है, जो मुख्यमंत्री के किलर को गोली मार देता है, जबकि पुलिस उसे जिंदा पकडऩा चाहती थी. अश्मि को जब राकेश जैन की मौत का पता चलता है तो वह जान जाती है कि यह एक्सीडेंट नहीं मर्डर था.

अर्जुन को रिचेल पसंद आ गई थी. बास्को शिरेल से मिलने आता है तो पता चलता है कि वह बास्को की बहन है, पर शिरेल बास्को से बहुत नाराज थी. यह नाराजगी क्यों थी, यह आगे पता चलेगा. दूसरी ओर जब्बार माइकल के बारे में जांच करवाता है, ताकि उस पर भरोसा किया जा सके. दूसरी ओर बास्को अर्जुन को भड़का कर अपनी टीम में शामिल कर लेता है.

एपिसोड नंबर 3

तीसरे एपिसोड की शुरुआत में हम देखते हैं कि बास्को अर्जुन को बताता है कि सुनील दलपत को उसी ने मारा है, जिसे सभी ढूंढ रहे हैं. यह कह कर बास्को हंसने लगता है, जिस से अर्जुन को लगता है कि वह मजाक कर रहा है. दूसरी ओर अश्मि शेरली से पूछती है कि उस के परिवार के साथ क्या हुआ था? शेरली बताती है कि उस के पति को मार दिया गया था और घर में आग लगा दी गई थी, जिस में उस के दोनों बेटे भानु और आदित्य मर गए थे.

दूसरी ओर सीएम जब्बार से कहता है कि अर्जुन जब्बार से मिल गया है, जबकि वह उस का कुछ नहीं कर पा रहा है. जब्बार अपने औफिस आता है और माइकल की परीक्षा लेता है, जिस में वह पास हो जाता है. तब जब्बार को लगता है कि वह उस पर आंख मूंद कर भरोसा कर सकता है. इस के बाद जब्बार बास्को के यहां जा कर उसे धमकी देता है कि वह किसी भी हालत में बच नहीं पाएगा. रिचेल अर्जुन को बताती है कि उसे बास्को की फार्मा कंपनी में नौकरी मिल गई है. पर वह रहेगा बास्को के साथ ही. बास्को ने रजा को फोन किया तो वह अर्जुन के साथ अड्ïडे पर पहुंच जाता है. बास्को अन्ना से सुनील की लाश को दफनाने को कहता है तो रजा अर्जुन को अपने धंधे के बारे में समझाता है. 

इसी के साथ शेरिल रात को कब्रिस्तान के पास से जा रही थी, तभी वह कुछ लोगों को कोफीन सहित एक आदमी को दफनाते देखती है. यह बात वह अश्मि को बताती है तो अश्मि फोन कर के माइकल को बुला लेती है. माइकल कौफीन निकलवा कर देखता है, जिस में किसी अन्य की लाश थी. जबकि इन लोगों को लगा था कि उस में सुनील की लाश है. जबकि बास्को ने सुनील की लाश उस कौफीन से पहले ही गायब करा दी थी. अब सुनील की लाश को ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी अन्ना रजा को सौंपता है. अन्ना की भूमिका यहां विनोद जयवंत ने की है. विनोद ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करने की कोशिश तो की है, पर शायद डायरेक्टर ने करने नहीं दी.  

आगे के दृश्य में दिखाया जाता है कि शेरिल से एक आदमी मिलने आता है, जो अर्जुन था. उन की बातों से पता चलता है कि अर्जुन शेरिल का बड़ा बेटा भानु था, जिसे उस ने आग से बचा कर पति के दोस्त के पास भेज दिया था. अर्जुन के बारे में कोई कुछ नहीं जानता. सभी यही जानते हैं कि वह एक डकैत का बेटा है. इसीलिए जब्बार ने उसे बेइज्जत किया था.

एपिसोड नंबर 4

चौथे एपिसोड के शुरुआत में दिखाया जाता है कि शेरिल अर्जुन को बास्को से दूर रहने के लिए कहती है. पर अर्जुन के पीछे जब्बार पड़ा था, इसलिए वह मजबूरन बास्को का साथ दे रहा था. यहीं पता चलता है कि शेरिल के घर आग बास्को ने ही लगाई थी और उस के पति को मार दिया था. इसीलिए शेरिल बास्को से नफरत करती थी. यह सुन कर अर्जुन चिल्लाता है, जिसे सुन कर अश्मि ऊपर आने लगती है. तब अर्जुन मुंह छिपा कर भाग जाता है. सीएम का आदमी आ कर उन्हें बताता है कि जोशी 20 विधायक ले कर गायब है. इस का मतलब यह था कि अब वह कभी भी उन्हें हटा कर सीएम बन सकता है. 

यह जान कर सीएम के होश उड़ जाते हैं. तब वह बास्को से मिल कर अपनी कुरसी बचाने की गुजारिश करता है. इस के लिए सीएम उसे 200 एकड़ जमीन गिफ्ट करता है, साथ ही इस के लिए भी राजी हो जाता है कि जब्बार को वापस भेज देगा. आगे अर्जुन रिचेल से मिलता है. रिचेल ने ही अर्जुन को जेल से निकलवाया था. उस ने सीरीज में वकील की भूमिका की थी. उस का असली नाम गायत्री भारद्वाज है. वह सुंदर तो है, पर उस का काम सुंदर नहीं है. अर्जुन और रिचेल एक रेस्टोरेंट में बैठ कर काफी बातें करते हैं. यहीं रिचेल अर्जुन को अपने घर समय बिताने के लिए बुलाती है. तभी बास्को का फोन आने से अर्जुन चला जाता है.

रजा शेरिल से मिलने आता है और कहता है कि वह उसे अपनी मां की तरह मानता है. उसी समय वहां बास्को आ जाता है. शेरिल बास्को की बेइज्जती कर देती है, जिस से बास्को का हाथ उठ जाता है, लेकिन रजा उसे पकड़ लेता है और ले कर चला जाता है. बास्को अर्जुन से कहता है कि उसे जोशी और उन एमएलए को ढूंढना होगा, क्योंकि उस ने वादा कर लिया है कि वह कैसे भी सीएम की कुरसी बचाएगा. अर्जुन कहता है कि जोशी जहां भी होगा, वहां शराब और लड़कियां खूब जा रही होंगी. यह सुन कर बास्को अर्जुन की तारीफ करता है, जो रजा को अच्छा नहीं लगता.

आगे सुनील दलपत के दोस्त उस का फोन ला कर उस की पत्नी को दे कर बताते हैं कि उन्हें यह फोन स्पोट्र्स रूम से मिला था. वह यह बात पुलिस वालों को बताती है. पुलिस आती, उस के पहले वहां रजा पहुंच जाता है और सुनील दलपत की पत्नी को मार कर फोन ले कर चला जाता है. दलपत की पत्नी की भूमिका संध्या भारद्वाज ने की है. वह बहुत कम समय के लिए सीरीज में दिखाई दी हैं, इसलिए उस के काम के बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं होगा.

पुलिस आती है तो उसे वहां सुनील की पत्नी और उस के पिता की लाशें मिलती हैं. रजा वहां से सीधे रिचेल के घर जाता है, क्योंकि उस के पास रिचेल के घर की दूसरी चाबी थी. वह उस के लिए चौकलेट भी ले कर आया था. इस का मतलब था कि रजा रिचेल से प्यार करता था. आगे जोशी दिखाई देता है, जो लड़कियों के साथ मजे कर रहा था. एक लड़की अर्जुन को फोन करती है कि वह काम पर लग गई है. इस का मतलब उन लड़कियों को अर्जुन ने भेजा था. दूसरी ओर रजा देखता है कि रिचेल के फोन पर अर्जुन का फोन आया है. वह मैसेज भी देखता है. अब उसे जलन होने लगती है कि अर्जुन यहां भी आ गया.

एपिसोड नंबर 5

पांचवें एपिसोड की शुरुआत सीएम की प्रैस कौन्फ्रैंस से होती है. मीडिया वाले उन से पूछ रहे थे कि जोशी उन के विधायक ले कर गायब है, क्या उन की सरकार जाने वाली है

सीएम मुसकराते हुए जवाब देते हैं कि जोशी जल्दी ही वापस आ जाएगा. आगे जोशी 2 लड़कियों के साथ एंजौय करता दिखाई देता है. लड़कियां उसे ताकत की दवा खिला रही होती हैं. सीरीज में इस दृश्य को जिस तरह रोमांटिक दिखाना चाहिए था, वैसा कुछ भी नहीं है. यह दृश्य एकदम नाटकीय और बनावटी लगता है, इसलिए दर्शक इस का आनंद नहीं उठा पाते. अर्जुन रिचेल के घर जाता है, जहां दोनों खूब हंसहंस कर बातें करते हैं.

उधर दवा खाने के बाद जोशी की मौत हो जाती है, जिसे देख कर एक विधायक घबरा जाता है. वह सीएम को फोन करता है तो सीएम कहता है कि वह सभी विधायकों को ले कर वापस आ जाए, उन्हें कुछ नहीं होगा. यह बात जोशी की मौत के मामले की जांच करने आया जब्बार सुन लेता है, जिस से उसे पता चल जाता है कि यह सब सीएम ने करवाया है. सीएम जब्बार को फोन कर के कहता है कि जोशी की मौत नेचुरल लगनी चाहिए. तब जोशी को होटल की ऊपरी मंजिल से नीचे फेंक दिया जाता है और कहा जाता है कि विधायकों के वापस चले जाने से जोशी ने शर्म से सुसाइड कर लिया है.

दूसरी ओर अर्जुन और रिचेल डेट करते हुए आपस में खूब बातें करते हैं. उस समय रिचेल के घर में रजा भी मौजूद था और कबर्ड से उन्हें देख रहा था. रिचेल और अर्जुन शारीरिक संबंध बनाने वाले होते हैं, लेकिन रजा से यह देखा नहीं जाता तो वह वहां आई एक बिल्ली को मार देता है और फ्लावर पौट तोड़ देता है. तब रिचेल का मूड औफ हो जाता है और दोनों कुछ कर नहीं पाते.

माइकल जोशी को पोस्टमार्टम के लिए ले जा रहा होता है तब उस के पास अश्मि का फोन आता है. वह उसे जोशी की खबर कवर करने के लिए बुला लेता है. आगे जब्बार को जोशी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलती है तो उसे पता चलता है कि जोशी की मौत ताकत की दवा खाने से हुई थी. जब्बार जब उस दवा के बारे में पता करता है तो जानकारी मिलती है कि वह दवा बास्को की कंपनी में बनती है. उधर बास्को उन दोनों लड़कियों को छिपाना चाहता था, जो जोशी के साथ होटल में थीं. इस से वह सीएम को ब्लैकमेल करना चाहता था. साथ ही वह जोशी की उस रात वाली वीडियो वायरल करवा देता है, जिस से सीएम की पार्टी की बदनामी होती है. 

सीएम दोनों लड़कियों को मरवा देता है. फिर वीडियो के बारे में बास्को से पूछता है तो वह मना कर देता है. आगे बास्को रजा से सुनील के फोन के बारे में पूछता है तो रजा बताता है कि फोन तो गायब हो गया है. बास्को उसे खूब धमकाता है और उसे बेइज्जत करते हुए कहता है कि अगर वह फोन पुलिस के हाथ लग गया तो सब खत्म हो जाएगा. जब्बार को सीएम की बातों से लगता है कि वह कोई गेम खेल रहा है.

एपिसोड नंबर 6

छठे एपिसोड की शुरुआत में हम देखते हैं कि सीएम जब्बार को खूब खरीखोटी सुनाता है तो जब्बार 7 दिन का समय मांगता है और कहता है कि वह एक सप्ताह में बास्को के गले तक पहुंच जाएगा. आगे प्रैस कौन्फ्रैंस में सीएम मीडियाकर्मियों से कहता है कि यह जो खूनखराबा हो रहे हैं, इन की जांच जब्बार साहब कर रहे हैं. यह एक सप्ताह में इस का खुलासा कर देंगे. दूसरी ओर बास्को को कहीं से जोशी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में पता चल जाता है. तब वह अन्ना से सुनील की लाश के बारे में पूछता है कि उसे ठिकाने लगा दिया या नहीं? फिर वह सीएम का इंटरव्यू देखता है और उसे फोन करता है कि उस ने तो जब्बार को वापस भेजने को कहा था, जबकि उस ने तो उसे एक सप्ताह का टाइम और दे दिया. 

तब सीएम बास्को की बेइज्जती कर के कहता है कि एक सप्ताह में भी वह उस का कुछ नहीं कर पाएगा और उस के बाद वह उसे वापस भेज देगा. बास्को अर्जुन को डांटता है कि वह उन लड़कियों को नहीं संभाल पाया और किसी ने उन्हें मार दिया. तब अर्जुन कहता है कि जब्बार ने उन्हें नहीं मरवाया. क्योंकि उस के लिए तो वे सबूत थीं. बास्को की समझ में यह बात आ जाती है. आगे रिचेल को घर की सफाई में एक फोन मिलता है, जिसे देख कर वह चौंक जाती है. 

यह सुनील का वही फोन था, जिसे रजा रख कर भूल गया था. पर रिचेल को यह नहीं पता था. वह अर्जुन को बुलाती है और उस फोन के बारे में बताती है. फोन खुलने पर अर्जुन जान जाता है कि यह फोन सुनील दलपत का है, इसलिए वह उसे ले जा कर बास्को को दे देता है. फोन पा कर बास्को खुश हो जाता है. 

दूसरी ओर जब्बार को माइकल 

पर शक होता है कि यह बास्को से मिला है. इस के लिए वह अपने शागिर्द चौहान से उस पर नजर रखने को कहता है कि यह किसकिस से मिलता है. डीसीपी चौहान की भूमिका पंकज विष्णुपूलकर ने की है.  माइकल अश्मि से मिलने जाता है, तभी वहां रिचेल आ जाती है, जो माइकल की बेस्ट फ्रैंड थी. दोनों ही अनाथाश्रम में एक साथ पलेबढ़े थे. वह माइकल से लिपट जाती है. चौहान दूर से यह सब देख रहा था. वह यह सब जब्बार को बताता है तो जब्बार माइकल को बुला कर तमाम सवाल करता है. फिर कहता है कि बगल के कमरे में एक आदमी है, जिसे वह मार दे तो उसे उस पर विश्वास हो जाएगा. 

माइकल उस आदमी को गोली मार देता है. वह आदमी कोई और नहीं, बास्को का खास आदमी अन्ना था. तब जब्बार कहता है कि अब उसे उस पर विश्वास हो गया है. अब वह कहीं भी जा सकता है. माइकल चर्च जाने की बात करता है, क्योंकि उस ने किसी को बेमतलब जान से मारा था. माइकल चर्च जाता है, जहां उस की बगल में बास्को बैठा था. माइकल अन्ना को मारने के लिए माफी मांगता है तो बास्को कहता है कि कभीकभी विश्वास दिलाने के लिए अपनों को भी मारना पड़ता है.

एपिसोड नंबर 7

सातवें एपिसोड के शुरू में दिखाया जाता है कि माइकल सचमुच में बास्को से मिला था. उसी ने माइकल को पढ़ालिखा कर पुलिस अफसर बनवाया था. सुनील का फोन खुलता है तो उस की लोकेशन रिचेल के घर की मिलती है. जब्बार अपनी टीम के साथ रिचेल के घर पहुंच जाता है और वारंट दिखा कर उस के घर की तलाशी लेता है. पर घर में उन्हें कुछ नहीं मिलता. तब जब्बार अर्जुन और रिचेल के कपड़े उतरवा कर उन की तलाशी लेता है. रिचेल इस बात से नाराज हो कर केस करने की धमकी देती है. 

जब्बार गुस्सा हो कर चला जाता है. तभी माइकल वहां आता है और रिचेल से कहता है कि जब्बार से पंगा लेना ठीक नहीं है. तब अर्जुन और माइकल में बहस होने लगती है. रिचेल नाराज हो कर दोनों को भगा देती है. बास्को के सामने अन्ना की लाश रखी थी. बास्को उदास था. रजा कहता है कि वह माइकल को गोली मार देगा, क्योंकि उस ने अन्ना को मारा है. बास्को उसे रोकता है और सुनील के फोन के बारे में पूछता है. अर्जुन फोन निकाल कर देता है. यहां पता चलता है कि फोन रिचेल के कबर्ड से मिला था. पुलिस के आने से पहले अर्जुन ने उसे छिपा दिया था. 

गुस्सा हो कर बास्को रजा को मारने लगता है कि वह रिचेल के फ्लैट पर क्यों गया था? बास्को के हावभाव देख कर लगता है कि रिचेल उस की कुछ लगती है. वह रजा से रिचेल के फ्लैट की चाबी ले कर उसे धक्के मार कर भगा देता है. अर्जुन बास्को से बताता है कि जब्बार ने रिचेल के घर की तलाशी तो ली ही, उन के कपड़े भी उतरवाए. यह जान कर बास्को को बहुत गुस्सा आता है और वह जब्बार के घर जा कर उस से कहता है कि उस ने फिर कभी रिचेल के करीब जाने की कोशिश की तो वह उसे जान से मार देगा. जब्बार उस से कहता है कि रिचेल उस की कुछ लगती है क्या? उस के साथ उसे बहुत मजा आता होगा. तब बास्को उस के मुंह पर थूक चला जाता है. जब्बार उस थूक को इकट्ठा कर के उस का डीएनए टेस्ट कराता है.

दूसरी ओर रजा फ्रीजर खोल कर कहता है कि यही बास्को की बरबादी का कारण बनेगा. वह सीएम को एक वीडियो भेज कर उन से मिलने जाता है. वीडियो में दोनों लड़कियां मरी पड़ी थीं और सुनील की लाश भी फ्रीजर में रखी थी. मुख्यमंत्री उसे मिलने के लिए बुलाते हैं तो वह कहता है कि वह बास्को को मारना चाहते हैं न, वह भी उन्हें मारना चाहता है. तब पता चलता है कि रजा ने ही दोनों लड़कियों को मारा था.  सीएम कहते हैं कि वह बास्को के साथ ही रहे और अगला बास्को वही बनेगा. रजा चला जाता है तो सीएम अपने सेक्रेटरी से कहता है कि इन लोगों का कोई वजूद नहीं है. बस इन से अपना काम निकलवाते रहो.

एपिसोड नंबर 8

आठवें एपिसोड के शुरू में हम देखते हैं कि डीसीपी चौहान और लेडी कांस्टेबल रिचेल के घर आते हैं और उस दिन के लिए उस से माफी मांगते हैं कि उस दिन उन्हें उस के कपड़े नहीं उतरवाने चाहिए थे. लेडी कांस्टेबल वाशरूम चली जाती है रिचेल का डीएनए लेने के लिए. वह उस का बाल ले लेती है. तब पता चलता है कि उन्हें जब्बार ने ही भेजा था. जब्बार बास्को और रिचेल का डीएनए टेस्ट कराने को कहता है.  इस के आगे हम देखते हैं कि लोग एक लेखक का इंटरव्यू ले रहे थे, जिस ने अपनी किताब में गैंगवार और गैंगस्टर के बारे में लिखा था. लोग उन से पूछते हैं कि इस में उस ने बास्को का नाम क्यों नहीं लिखा? तब कोई कहता है कि बास्को ने ही तो यह किताब छपवाई है. 

आगे रजा बास्को से मिलने आता है और उस से माफी मांगता है. पहले बास्को उस की खूब बेइज्जती करता है, फिर साथ रख लेता है. तब अर्जुन को पता चलता है कि रजा को बास्को ने बचाया था, जब उस का पिता मर गया था और मां भाग निकली थी. यह सुन कर अर्जुन को लगता है कि कहीं यह उस का छोटा भाई आदित्य तो नहीं है. वह सीधे अपनी मां शेरिल के पास जाता है और पूछता है कि उसे लगता नहीं कि उस का छोटा भाई जिंदा है? पर शेरिल मना कर देती है. 

अर्जुन रिचेल के बारे में कहता है कि वह उसे पसंद है. इस पर शेरिल कहती है कि वह माइकल के साथ यहां आ चुकी है. तभी अश्मि आ जाती है तो अर्जुन चुपके से चला जाता है. अश्मि वह किताब पढऩे लगती है, जिस में लिखा था कि शेरिल का पति गैंगस्टर था. जबकि शेरिल ने उसे बताया था कि वह बहुत शरीफ थे. अश्मि इस बारे में पता करती है. उसे कुछ फोटो भी मिलते हैं. वह घर आ रही होती है, तभी बास्को के आदमी उसे उठा ले जाते हैं. 

बास्को उस से कहता है कि वह उस के साथ कुछ नहीं करेगा. बस, उस ने उसे यह बताने के लिए बुलाया है कि जब्बार कोई दूध का धुला नहीं है. उस ने उस के पिता को मारा था. बात सामने आने पर उस का ट्रांसफर हो गया था. सीएम ने उसे फिर बुला लिया है. उस ने उस के आदमी अन्ना को माइकल से मरवा दिया है. जब्बार रिचेल को अननोन नंबर से फोन कर के कहता है कि वह उस के पिता जैसा है और उस से मिलना चाहता है. यह सुन कर रिचेल रोने लगती है. 

अश्मि घर पहुंचती है और शेरिल को बताती है कि माइकल भी खूनी है और जब्बार भी. शेरिल वे फोटो देखती है, जो अश्मि ने इकट्ठा किए थे. शेरिल के होश उड़ जाते हैं. उधर रिचेल माइकल को बुला कर कहती है कि उसे उस के परिवार के बारे में पता चल सकता है. बस, वह यह पता कर के बताए कि वह फोन कहां से आया था. तभी वहां अर्जुन आ जाता है और रिचेल से पूछता है कि वह कहां गायब थी? उसे उस ने कितने फोन किए हैं. माइकल को देख कर अर्जुन को बुरा लगता है. पर माइकल उस से कहता है कि शायद रिचेल को उस के परिवार के बारे में पता चल सकता है. इतना कह कर माइकल चला जाता है. 

दूसरी ओर अश्मि टीवी पर आती है और कहती है कि उसे उस के सोर्स से पता चला है कि जब्बार ने भी कई खून किए हैं. यह समाचार सीएम भी देख रहा था. वह जब्बार से कहता है कि अब वह जांच रोक दे, क्योंकि उसे उस की बुराई करनी होगी. इस के लिए जब्बार उसे रोकता है और कहता है कि वह बास्को को उठाना चाहता है, क्योंकि उसी की कंपनी की दवा से डिप्टी सीएम जोशी की मौत हुई थी. अश्मि घर आती है तो माइकल उस से कहता है कि उसे यह सब टीवी पर कहने की क्या जरूरत थी. 

तब गुस्से में अश्मि कहती है कि उस ने भी तो मर्डर किया है. माइकल पूछता है कि उसे कहां से पता चला तो शेरिल कहती है कि कल इसे बास्को के आदमी उठा कर ले गए थे. वहीं पता चला होगा. माइकल बास्को को फोन कर के कहता है कि उसे अश्मि से यह सब बताने की क्या जरूरत थी. बास्को कहता है कि रजा लौट आया है, लेकिन अब उसे उस पर भरोसा नहीं है. शेरिल अश्मि से कहती है कि उसे यह सब नहीं करना चाहिए था. तब अश्मि वह किताब दिखा कर शेरिल से कहती है कि उस ने तो कहा था कि उस का परिवार मारा गया था, पर इस में तो लिखा है कि वह गैंग का हिस्सा थे और गैंगवार में मारे गए थे.

यह देख कर शेरिल के होश उड़ गए. गुस्से में वह अश्मि को अपने घर से जाने के लिए कहती है कि जब उसे उस पर विश्वास नहीं है तो वह उस के यहां रहने लायक नहीं है. आगे रजा रिचेल के घर जाता है और कहता है कि वह उस से प्यार करता है. उसे उस के साथ चलना होगा. सीएम बास्को को पकडऩे वाला है. अब अगला बास्को वही बनेगा. 

रिचेल उस के साथ जाने से मना करती है तो रजा खुद की कनपटी पर पिस्तौल रख कर गोली मारने की धमकी देता है. बास्को खूब शराब पीता है. उसी समय शिरेल आ कर उसे खूब खरीखोटी सुनाने लगती है कि उस का पति सिर्फ उस का ड्राइवर था. जबकि सभी उसे उस की गैंग का हिस्सा बना रहे हैं. शेरिल उसे तमाचा मार कर चली जाती है. बास्को खूब हंसता है और अर्जुन से कहता है कि इसे लगता है कि इस का पूरा परिवार खत्म हो गया है, पर मैं ने उस आग से इस के एक बेटे को बचा लिया था. 

अर्जुन पूछता है कि वह कौन है? तब बास्को कहता है कि वह उस के लिए ही काम करता है. इतना कह कर बास्को सो जाता है. इस के बाद रजा और माइकल दिखाई देते हैं यानी उन्हीं दोनों में एक अर्जुन का भाई हो सकता है.

नीरज काबी

सीरीज में जब्बार की भूमिका निभाने वाले नीरज काबी का जन्म 12 मार्च, 1968 को बिहार के जमशेदपुर में हुआ था, जो अब झारखंड में है. उस ने स्कूली पढ़ाई लोयोला स्कूल से की थी. इस के बाद उस ने सिंबायोसिस कालेज, पुणे से कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा किया था. नीरज के पिता का नाम तुषार काबी तो मां का नाम जरीन काबी है. उस का एक भाई पार्थ काबी है तो एक बहन राधिका विरदी है. उस का विवाह फैशन डिजाइनर दीपिका कोस्टा से हुआ है. उस की एक बेटी शताक्षी काबी है.

नीरज काबी एक अभिनेता, निर्देशकप्रशिक्षक है, जो प्रदर्शन, निर्देशन, प्रशिक्षण और अनुसंधान में शामिल थिएटर और फिल्म रेजीडेंसी बनाने की दिशा में काम कर रहा है. पिछले 2 दशकों से वह प्रसिद्ध राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रंगमंच और फिल्म निर्देशकों के साथ एक पेशेवर अभिनेता के रूप में काम कर रहा है. नीरज ने 1996 से अभिनेताओं, बच्चों और अन्य उद्योगों के लिए रंगमंच और अभिनय कार्यशालाओं का आयोजन करने के लिए पूरे देश की यात्रा की है. उस ने 1998 से मुंबई में एक पेशेवर थिएटर अभिनेता के रूप में काम करना शुरू किया था. उस ने अनेक नाटकों में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं. 

उस ने फ्रांस के जीन जैक्स बेलोट और एरिक बिग्नर, इजरायल के गिल एलन, यूएसए के रेने मिग्लियाचियो, भारत के अतुल कुमार, रेहान इंजीनियर और नसीरुद्दीन शाह जैसे अंतरराष्ट्रीय और भारतीय निर्देशकों के साथ काम किया है. सिनेमा में नीरज काबी ने 1997 से काम करना शुरू किया था. फिल्म में काम पाने के लिए उस ने बहुत संघर्ष किया है. फिल्म इंडस्ट्री में तमाम नौकरियां करने के बाद उसे काम मिलना शुरू हुआ था. काम मिलने के बाद नीरज काबी को अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं.

सुचित्रा पिल्लई 

इस वेब सीरीज (MOHREY) में शेरिल की भूमिका निभाने वाली सुचित्रा पिल्लई का जन्म 27 अगस्त, 1970 को केरल के अर्नाकुलम में हुआ था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने मुंबई के बांद्रा स्थित फादर कांसेकाओ रौड्रिक्स कालेज आफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रौनिक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, पर इंजीनियरिंग के बजाय उस ने कला में अपना करिअर चुना. पढ़ाई पूरी होते ही वह लंदन चली गई, जहां बच्चों के थिएटर से जुड़ गई. साल 1993 से उस ने फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया. उसे एक फ्रांसीसी फिल्म ले प्रिक्स डी उन फेमेमें पहली भूमिका के साथसाथ अंगरेजी फिल्म गुरु इन सेवनमें एक भूमिका की पेशकश की गई. 

वहां कई फिल्मों में काम करने के बाद सुचित्रा मुंबई आ गई और वीजे की नौकरी करने लगी. वह पहली बार अपाचे इंडियन और फिर दिल चीज है क्याके म्यूजिक वीडियो में दिखाई दी. फिर उस ने टीवी शो में काम करना शुरू किया. सुचित्रा ने हौलीवुड की फिल्मों में भी अभिनय किया है. सुचित्रा ने साल 2017 में द लौंग आइलैंड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलऔर द मिलान इंटरनेशनल फिल्ममेकर्स फेस्टिवलमें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड जीता है. उस ने अब तक 25 फिल्मों, 15 टीवी शो में तथा 10 वेब सीरीज में काम किया है. 

साल 2001 में उस ने एल्बम मेरे लिएमें एक गाना गा कर गायक के रूप में शुरुआत की. इस के बाद उस ने कुछ और गाने भी गाए हैं. वह अपनी आवाज में डबिंग भी करती है. सुचित्रा जब 20 साल की थी, तब उस ने पवन मलिक से शादी की थी और फिर तलाक ले लिया था. 

साल 2005 में उस ने डेनमार्क के इंजीनियर लार्स केजेल्डसन से शादी की. लार्स से उस की मुलाकात एक कौमन फ्रैंड के घर हुई थी. उस की एक बेटी भी है.

 

वेबसीरीज : SHOW TIME

फिल्म इंडस्ट्री में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है, जैसे राजनीति, कास्टिंग काउच, नेपोटिज्म और भी न जाने क्याक्या? बेव सीरीज ‘शो टाइम’ में बौलीवुड की दुनिया, प्रोडक्शन हाउस और वहां काम करने के तरीके को डिटेल से दिखाया गया है.

कलाकार: इमरान हाशमी, महिमा मकवाना, नसीरुद्दीन शाह, श्रिया सरन, विजय राज, मौनी राय, विशाल वशिष्ठ आदि

निर्देशक: मिहिर देसाई, अर्चित कुमार, निर्माता: करण जौहर, लेखक: जेहान हांडा, प्लेटफार्म: डिज्नी प्लस हौटस्टार.

साल 2020 में कोविड काल के बाद फिल्म इंडस्ट्री के अंदर और बाहर में बहुत कुछ बदला है. जो गासिप मुंह दबा कर की जाती थीं, वो अब सोशल मीडिया के जरिए खुल कर बाहर आने लगी हैं. टैबलायड्स के ब्लैक गासिप्स की तरह कुछ कलाकार सोशल मीडिया में नाम लिए बिना इंडस्ट्री और साथी कलाकारों की आलोचना करते रहते हैं. नेपोटिज्म और इनसाइडर-आउटसाइड की बहस भी अकसर सोशल मीडिया में छाई रहती है. और तो और, रिश्वत दे कर फिल्मों के रिव्यूज प्रभावित करने के आरोप तो अब खुल कर लगने लगे हैं. साउथ फिल्मों का दबदबा और बौलीवुड के खत्म होने की कहानियां अकसर सुनने को मिलती हैं.

साउथ ने दर्शकों की नब्ज पकड़ ली है और बौलीवुड अभी भी स्टारडम के मकडज़ाल में उलझा है, ये बातें भी रहती हैं. करण जौहर निर्मित वेब सीरीज ‘शो टाइम’ सोशल मीडिया की ऐसी ही सारी बहसों, किस्सेकहानियों और हैशटैग्स का स्क्रीन अडाप्टेशन है, जिन के निशाने पर वह खुद भी रह चुके हैं. सीरीज ‘शो टाइम’ फिल्म इंडस्ट्री के अंदर होने वाली केकड़ा पौलिटिक्स को भी दिखाती है.

एपिसोड नंबर-1

वेब सीरीज ‘शो टाइम’ में रघु खन्ना (इमरान हाशमी), दिग्गज फिल्ममेकर और विक्ट्री स्टूडियोज के मालिक विक्टर खन्ना (नसीरुद्ïदीन शाह) का बेटा है. कमर्शियल फिल्मों का सफल प्रोड्यूसर है, जो 100 करोड़ की फिल्में देने के लिए जाना जाता है, मगर कंटेंट के लिए उस की फिल्मों की आलोचना भी खूब होती है. फिल्म की कामयाबी के लिए वो हर तरह का हथकंडा अपनाता है. उस के काम का सब से बड़ा आलोचक उस का पिता विक्टर खन्ना ही है, जिसे बेटे रघु खन्ना की कमर्शियल फिल्में बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. रघु भी पिता के ओल्ड स्कूल विचारों को पसंद नहीं करता, जिस के चलते दोनों बापबेटे में टकराव होता रहता है. विक्टर खन्ना को प्रोस्टेट कैंसर है. कहानी एक नामी फिल्म स्टूडियो विक्ट्री के इर्दगिर्द बुनी गई है.

स्टूडियो मालिक विक्टर खन्ना अपने जमाने के हिट रोमांटिक फिल्ममेकर रहा है. वह फिल्में बनाना अपना धंधा नहीं, धर्म मानता है, लेकिन उस की पिछली कुछ फिल्में बौक्स औफिस पर नहीं चलीं तो कमान उस के बेटे रघु खन्ना (इमरान हाशमी) के हाथों में सौंपी गई है. रघु का मंत्र है कि कंटेंट कैसा भी हो, बस पैसा बनना चाहिए, उस के लिए ब्लौकबस्टर की परिभाषा है, 2 घंटे फिल्म देखो, खाओ, पीयो, खिसको. इसलिए रघु समीक्षकों को पैसे खिला कर स्टार रेटिंग खरीदता है, लेकिन एक नईनवेली पत्रकार महिका नंदी (महिमा मकवाना) उस की फिल्म की बैंड बजा देती है.

सीरीज ‘शो टाइम’ के 3 डायलौग हैं, जिसे पढऩे के बाद आप इस की मूल कहानी से वाकिफ हो जाएंगे. पहला इमरान हाशमी का, ‘मुझे पता है सब कुछ मुझे खैरात में मिला है. फिर भी मैं ने इस स्टूडियो को दिनरात एक कर के इस मुकाम तक पहुंचा हूं.’

दूसरा डायलौग है महिमा मकवाना का, ‘इन्हें देख कर तो नेपोटिज्म भी शरमा जाए.’

तीसरा डायलौग है नसीरुद्दीन शाह का, ‘सिनेमा धंधा नहीं, धर्म है हमारा.’

अपना विक्ट्री स्टूडियो एक उभरती हुई फिल्म जर्नलिस्ट महिका नंदी (महिमा मकवाना) के नाम कर के एक दिन विक्टर खन्ना सुसाइड कर लेता है.

महिका विक्टर खन्ना की नातिन है. महिका की मां विक्टर खन्ना की पहली पत्नी की बेटी है यानी विक्टर खन्ना रिश्ते में महिका नंदी का नाना होता है. विक्टर अपनी नातिन महिका की स्वच्छ पत्रकारिता से बहुत प्रभावित था, विक्टर को महिका पर पूरा यकीन था कि वह उस के नामी स्टूडियो विक्ट्री का नाम बदनाम नहीं होने देगी. यहां पर पहले एपिसोड का अंत हो जाता है.

एपिसोड नंबर-2

दूसरे एपिसोड की शुरुआत होती है. विक्टर ने अपनी पहली पत्नी को बेटा न हो पाने के कारण छोड़ दिया था. इसीलिए दूसरी पत्नी (लिलेट दुबे) के बेटे रघु को अपना लेता है, महिका की मां ने यह राज छिपा कर रखा था. एक आउटसाइडर को इंडस्ट्री के सब से बड़े विक्ट्री स्टूडियोज की कमान मिल जाने और रघु के सड़क पर आ जाने की घटना ग्लैमर इंडस्ट्री की सुर्खियां बन जाती हैं. महिका नंदी को स्टूडियो इसी शर्त पर मिला है कि वो कंटेंट प्रधान फिल्में बना कर विक्ट्री स्टूडियो की पुरानी शोहरत को वापस ले कर आएगी. खुद महिका इसी तरह के सिनेमा की पक्षधर है. मगर, रघु चुप बैठने वाला नहीं है, वो किसी भी हाल में विक्ट्री स्टूडियोज को धूल चटा कर अपना खुद का स्टूडियो खड़ा करना चाहता है.

एंटरटेनमेंट के बाजार में बैठे दुकानदारों के तिकड़म और पैंतरे दिखाने के इरादे से बुनी गई कहानी की शुरुआत ही एक एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट से होती है. सिनेमा का कीड़ा दिल में ले कर मुंबई आई एक जर्नलिस्ट महिका नंदी को इंडस्ट्री के टौप प्रोड्यूसर रघु खन्ना (इमरान हाशमी) की फिल्म को 4 स्टार रिव्यू देने के लिए महंगे ‘गिफ्ट’ का औफर मिला है, लेकिन वह अपने वायरल रिव्यू में फिल्म की धज्जियां उड़ा देती है. और यहां से कहानी बननी शुरू होती है.

महिका के रिव्यू के बावजूद रघु की फिल्म ‘प्यार डेंजरस’ बौक्स औफिस पर धुआंधार कमाई कर रही है. बापबेटे विक्टर और रघु के इस क्लैश में महिका की एंट्री एक सरप्राइज ट्विस्ट से होती है. यह ट्विस्ट वैसे तो हिंदी सिनेमा में एक रुटीन फिल्मी स्टाइल में आता है, मगर इस का लौजिक ये है कि कल तक इंडस्ट्री में आउटसाइडर रहा अगर एक व्यक्ति किस्मत से अचानक इनसाइडर बन जाए तो क्या होगा?

विक्ट्री स्टूडियोज की कमान अब महिका के हाथों में है. कल तक इंडस्ट्री पर सवाल खड़े कर रही महिका नंदी अब खुद इस का हिस्सा है और इस आउटसाइडर लड़की की नजर से आप को इंडस्ट्री की पैंतरेबाजी और कारोबार देखने को मिलते हैं. रघु खन्ना अब अपना अलग स्टूडियो प्रोडक्शन हाउस खड़ा कर रहा है. महिका को अब अपना विक्ट्री स्टूडियो संभालने के लिए रघु खन्ना से ही टकराना है. महिका नंदी को रघु का चैलेंज है कि 100 करोड़ कमा कर फिल्म से दिखाओ. इस चैलेंज को स्वीकार कर महिका जुट जाती है अपने काम में और रघु उस की राह में रोड़े अटकाने लग जाता है. यहां पर दूसरा एपिसोड पूरा हो जाता है.

एपिसोड नंबर 3-4

‘शो टाइम’ सीरीज के 2 एपिसोड तक जो थोड़ी अच्छे एंटरटेनमेंट की आस जगती है, वह तीसरे और चौथे एपिसोड में कोई खास दम नहीं दिखा पाती. तीसरे और चौथे एपिसोड में दिखाया गया है कि सुपरस्टार अरमान सिंह (राजीव खंडेलवाल) जो कल तक रघु के अंडर फिल्म कर रहा था, अब महिका नंदी से डील कर रहा है. उस की एक्ट्रैस पत्नी (श्रिया सरन) कमबैक प्लान कर रही है, मगर उसे एक अच्छे औफर की तलाश है.

महिका का स्पैशल फ्रेंड पृथ्वी (विशाल वशिष्ठ) जो रघु के अंडर विक्ट्री स्टूडियोज में काम कर रहा था. अब अपनी एक फिल्म लिखना चाहता है. रघु खन्ना अपनी गर्लफ्रेंड (मौनी राय) को एक फिल्म देने का वादा कर चुका था, मगर विक्ट्री स्टूडियोज से निकलने के बाद अब पलटी मार रहा है और एक बिजनैसमैन है (विजय राज) जो अपने बेटे को लांच करने के बदले खुद की अलग कंपनी बनाने चले रघु को मदद करना चाहता है. वेब सीरीज ‘शो टाइम’ के पहले सीजन का पहला पार्ट 4 एपिसोड में है और करीब 40-40 मिनट लंबे इन एपिसोड में काफी कुछ चल रहा है और इस में रियल बौलीवुड के मेटा-रेफरेंस बहुत मजेदार हैं.

करण जौहर ने टाइगर श्रौफ के साथ एक प्रोजेक्ट अनाउंस किया था ‘स्क्रू ढीला’, जो फिलहाल डब्बा बंद है. ‘शो टाइम’ में ‘स्क्रू ढीला’ नाम की एक फिल्म का जिक्र कई बार आता है.

बिजनैस करने वाली फिल्म बनाम अवार्ड दिलाने वाली फिल्म, फिल्मों के पीछे चल रहे दिमाग और एंटरटेनमेंट में मीडिया का छौंक भी लगता दिखता है. शोटाइम का स्क्रीनप्ले और संवाद कैसे हैं? फिल्मी दुनिया का सूरतेहाल दिखाती सीरीज ‘शो टाइम’ के फिलहाल 4 ही एपिसोडस रिलीज किए गए हैं. बाकी एपिसोड्स बाद में रिलीज किए जाएंगे. सीरीज के क्रिएटर सुमित राय हैं, जो करण जौहर की ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’ और ‘गहराइयां’ फिल्मों की लेखन टीम का हिस्सा रहे हैं.

‘शो टाइम’ का स्क्रीनप्ले भी सुमित राय ने लारा चांदनी के साथ मिल कर लिखा है. संवाद जेहान हांडा और करण श्रीकांत शर्मा ने लिखे हैं. मिहिर देसाई और अर्चित कुमार निर्देशित सीरीज एक झटके से शुरू होती है और 2 एपिसोड तक भागतीदौड़ती रहती है. तीसरे और चौथे एपिसोड में यह रफ्तार धीमी पड़ जाती है.

‘शो टाइम’ के लेखन में साफगोई है, विभिन्न किरदारों के जरिए इंडस्ट्री के अंदर की ही सडऩ को दिखाने में लेखन टीम ने जरा भी संकोच नहीं किया है. फिल्मों में रोल्स को ले कर होने वाली सौदेबाजी एकदूसरे के रोल हथियाने की साजिशें, कलाकारों को लालच दे कर कनविंस करना, सफलता के लिए नामी निर्माता के साथ संबंध बनाना, मौकापरस्ती… स्क्रीनप्ले में इन्हें पिरोया गया है. सीरीज अपनी रफ्तार में कुछ ऐसे मौके खोती नजर आती है, जो इस के असर को गहरा बना सकते थे. इन में से एक नसीरुद्ïदीन शाह और इमरान हाशमी के बीच बहस का दृश्य है. इन दोनों के बीच फिल्म मेकिंग को ले कर वादविवाद को हलके में निपटा दिया गया. यह बहस और गहन हो सकती थी, जिस में नसीरुद्ïदीन जैसे समर्थ कलाकार के अभिनय के कुछ और रंग देखने को मिलते.

‘द डर्टी पिक्चर’ के बाद नसीरुद्दीन शाह और इमरान हाशमी की दूसरी स्क्रीन प्रेजेंस है. फिल्म इंडस्ट्री के चर्चित चेहरों का कैमियो सीरीज के लुक को वास्तविकता देता है. लिहाजा दृश्यों को बाधित नहीं करता.

विक्टर खन्ना के सुसाइड करने के बाद उन की मौत पर धर्मेंद्र, प्रेम चोपड़ा, जितेंद्र को टीवी पर चल रही न्यूज के जरिए दिखाया गया है. जाह्नवी कपूर, हंसल मेहता, नितेश तिवारी, मृणाल ठाकुर, वासन बाला, मनीष मल्होत्रा… कहानी की जरूरत के हिसाब से आते हैं. सीरीज ‘शो टाइम’ में गालियों का भरपूर इस्तेमाल है, जो इंडस्ट्री का एक पहलू ही है. गालियां भी इतनी अश्लील कि कानों पर हाथ रखने को मजबूर होना पड़े. ऐसीऐसी गंदी गालियां दे कर पता नहीं क्या कहना चाहते हैं. सभ्य परिवार के सदस्य एक साथ बैठ कर ‘शो टाइम’ सीरीज नहीं देख सकते, ऐसी गालियां सुन कर सड़कछाप लोग भी शरमा जाएं. डायलौग्स में भी कटाक्ष की कमी नहीं है. ऐसे कटाक्ष पुराने जमाने में सास, ननद वगैरह नई बहू के साथ किया करती थीं. जो अब सीरीज में आजमाया गया लगता है.

रघु खन्ना का असिस्टेंट आयुष्मान खुराना को कनविंस करने के लिए फोन पर कहता है कि सोशल इशू के भी दृश्य कहानी में डाल देंगे.

इमरान हाशमी

इमरान हाशमी का जन्म 24 मार्च, 1979 को पुलगांव, महाराष्ट्र में हुआ था. उस  का निक नेम एमी, सीरियल किसर है. इमरान हाशमी एक मुसलिम और ईसाई (कैथोलिक) परिवार से ताल्लुक रखता है. इमरान हाशमी अपने पिता की ओर से एक मुसलिम है और मां की ओर से एक ईसाई है. इमरान हाशमी के पिता का नाम अनवर हाशमी है, जो एक बिजनैसमैन और कलाकार भी हैं. जिन्होंने 1968 की फिल्म ‘बहारों की मंजिल’ में अभिनय किया था. उन की माता का नाम माहेरा हाशमी है, माहेरा भी अभिनेत्री रह चुकी हैं. साल 2016 में कैंसर की वजह से माहेरा हाशमी का निधन हो चुका है.

माहेरा हाशमी डायरेक्टर महेश भट्ट की बहन थीं. इमरान हाशमी का एक भाई भी है, जिन का नाम केलविन हाशमी है. हाशमी निर्देशक मोहित सूरी का चचेरे भाई है, जिस के साथ उस ने कई फिल्मों में काम किया है. उस के अन्य चचेरे भाईबहन अभिनेत्री पूजा भट्ट और आलिया भट्ट हैं, जबकि एक अन्य चचेरा भाई राहुल भट्ट है. इमरान ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के जमनाबाई नर्सी स्कूल से की थी और उस के बाद उस ने मुंबई के ही सिडेन्हम कालेज औफ कौमर्स ऐंड साइंस से बीकौम की डिग्री हासिल की. इमरान हाशमी को बचपन से ही अभिनय में काफी दिलचस्पी थी. बचपन में उस ने कई विज्ञापनों में काम किया था.

इमरान हाशमी ने अपने करिअर की शुरुआत बिपाशा बसु और डिनो मोरिया अभिनीत फिल्म ‘राज’ 2002 में सहायक निर्देशक के रूप में शुरू की थी. बौलीवुड में अभिनेता के रूप में इमरान हाशमी को अमीषा पटेल के साथ फिल्म ‘ये जिंदगी का सफर’ (2001) के लिए साइन किया गया था. लेकिन बाद में उसे अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि फिल्म के निर्माताओं को लगा कि वह इस भूमिका के लिए फिट नहीं है. बाद में साल 2003 में बौलीवुड फिल्म ‘फुटपाथ’ में अभिनेता आफताब शिवदासानी, राहुल देव और अभिनेत्री बिपाशा बसु के साथ उस ने अपने करिअर की शुरुआत की. फिल्म व्यावसायिक तौर पर असफल रही, लेकिन फिल्म में इमरान के अभिनय को लोगों ने पसंद किया.

वर्ष 2005 में फिल्म ‘मर्डर’ में उस के विलन किरदार के लिए उसे स्क्रीन पुरस्कार से नवाजा गया. फिल्म ‘गैंगस्टर’ में उन की नकारात्मक भूमिका के लिए उसे 2007 फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इमरान के फिल्मी सफर के दौरान कभी भी उस का नाम किसी भी अभिनेत्री के साथ नहीं जोड़ा गया. वह हमेशा इन सब विवादों से दूरी बनाए रखना पसंद करता है. इमरान हाशमी अपनी प्रेमिका परवीन साहनी के साथ 6 साल से अधिक रिलेशनशिप के बाद साल 2006 में इसलामिक रीतिरिवाजों के साथ शादी के बंधन में बंध गया.

साल 2010 में परवीन साहनी ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अयान हाशमी है. इमरान के जीवन में सब से कठिन दौर उस वक्त आया, जब उसे पता चला कि उन के 4 साल के बेटे को कैंसर है, जिस के बाद उन की एक किताब भी छपी थी जिस का नाम है ‘द किस औफ लाइफ’. इस किताब में उस के बेटे के इलाज के दौरान का पूरा सफर बयां किया गया है.

राजीव खंडेलवाल

राजीव खंडेलवाल का जन्म 16 अक्तूबर, 1975 को गुलाबी नगर जयपुर (राजस्थान) के एक आम मारवाड़ी परिवार में हुआ था. राजीव खंडेलवाल ने टीवी और बौलीवुड दोनों ही इंडस्ट्रीज में बेहतरीन काम किया है. उस के पिता भारतीय सेना में कर्नल थे. राजीव अपने 3 भाइयों में सब से छोटा है. राजीव खंडेलवाल ने अपनी स्कूल की पढ़ाई जयपुर से ही की थी. बाद में उस ने ग्रैजुएशन हैदराबाद से किया और अपने करिअर की शुरुआत एक मौडल के तौर पर की. लंबे समय तक बतौर मौडल विज्ञापनों में काम करने के बाद राजीव खंडेलवाल ने टीवी जगत की ओर रुख किया.

उस ने अपना डेब्यू बतौर टीवी अभिनेता साल 1998 में एक टीवी सीरियल ‘बनफूल’ से किया था, इस शो में राजीव महाराज के रोल में नजर आया था, लेकिन राजीव खंडेलवाल को घरघर में पहचान सीरियल ‘क्या हादसा क्या हकीकत’ से साल 2002 में मिली. इस सीरियल ने उसे घरघर में अपनी एक अलग पहचान दिलाई. इस के बाद राजीव खंडेलवाल पापुलर शो ‘कहीं तो होगा’ में लीड रोल करता नजर आया.

टीवी सीरियल्स में काम के दौरान साल 2008 में राजीव खंडेलवाल ने फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाई और फिल्म ‘आमिर’ से फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू किया. इस के बाद राजीव खंडेलवाल ने बौलीवुड की फिल्म ‘शैतान’, ‘साउंडट्रैक’, ‘विल यू मैरी मी’, ‘टेबल नंबर 21’ और ‘इश्क एक्चुअली’ कीं. लेकिन इन में से कोई भी दर्शकों को इंप्रेस नहीं कर पाई.

राजीव खंडेलवाल, काजोल स्टारर ‘सलाम वेंकी’ में भी नजर आया था, लेकिन ये फिल्म भी बौक्स औफिस पर फ्लौप रही. राजीव खंडेलवाल बौलीवुड में फ्लौप हुआ, फिर टीवी पर कमबैक भी ठीक नहीं रहा तो उस ने ओटीटी का रुख किया. वह शाहिद कपूर केसाथ उस की फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ में नजर आया था. इस फिल्म में राजीव का निगेटिव किरदार था और फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था. अब वह वेब सीरीज ‘शो टाइम’ में सुपरस्टार अरमान सिंह के रोल में है. राजीव खंडेलवाल की पर्सनल लाइफ की बात की जाए तो उस ने साल 2011 में 7 फरवरी को अपनी लौंग टर्म गर्लफ्रेंड मंजरी कम्तिकार से शादी की थी.

महिमा मकवाना

महिमा मकवाना का जन्म 5 अगस्त, 1999 के दिन मुंबई में एक चाल में हुआ था. महिमा के पिता राजमिस्त्री थे. इस कारण कह सकते हैं कि महिमा मकवाना ने एक गरीब घर में जन्म लिया था. गरीबी में जन्मी पली और बढ़ी महिमा मकवाना आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. यह सब कुछ हुआ उस की मेहनत के बलबूते पर. टीवी की दुनिया में वह ऐसा नाम बन चुकी है, जो घरघर में पहचानी जाती है. बता दें कि महिमा का बचपन मुंबई में ही गुजरा और उस की पढ़ाईलिखाई भी मायानगरी में ही हुई.

महिमा मकवाना जब महज 5 माह की थी, उस वक्त उन के पिता का निधन हो गया था. महिमा और उस के बड़े भाई को मां ने पालापोसा, महिमा ने अपनी पढ़ाईलिखाई मैरी इमैकुलेट गल्र्स हाईस्कूल में की. इस के बाद उस ने मास मीडिया में बैचलर डिग्री ली. महिमा मकवाना ने बचपन में ही टीवी की दुनिया में काम करना शुरू कर दिया था. दरअसल, सब से पहले महिमा मकवाना ‘मिले जब हम तुम’ और ‘बालिका वधू’ में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट नजर आई थी. हालांकि महिमा ने बतौर एक्ट्रैस सीरियल ‘मोहे रंग दे’ से टीवी की दुनिया में डेब्यू किया था.

बता दें कि महिमा मकवाना को शोहरत मिली सीरियल ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ से. जिस के बाद वह ‘रचना’ नाम से घरघर में पहचानी जाने लगी. इस के अलावा महिमा मकवाना ‘सीआईडी’, ‘आहट’, ‘मिले जब हम तुम’ और ‘झांसी की रानी’ में नजर आ चुकी है. गौरतलब है कि महिमा मकवाना अपनी अदाकारी का जादू बड़े परदे पर भी दिखा चुकी है. उस ने तेलुगु फिल्म ‘वेंकटपुरम’ से फिल्म डेब्यू किया था. इस के बाद वह शार्टफिल्म ‘टेकर’ में नजर आई.

महिमा ने सलमान खान की फिल्म ‘अंतिम: द फाइनल ट्रुथ’ से बौलीवुड डेब्यू किया था. महिमा मकवाना वेब सीरीज की दुनिया में भी अपना नाम रोशन कर चुकी है. सब से पहले वह ‘रंगबाज सीजन 2’ में नजर आई थी. इस के बाद उस ने ‘फ्लैश’ में भी काम किया. महिमा कई म्यूजिक वीडियोज में भी एक्ट कर चुकी है.

हीरामंडी: द डायमंड बाजार (Review)

संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) एक मंझा हुआ निर्माता, निर्देशक और संगीतकार है. उस ने एक दरजन से अधिक फिल्में बनाई हैं या उन में निर्देशक की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उस की पिछले दिनों नेटफ्लिक्स (Netflix) पर पहली (Web Series) वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ (Heeramandi) प्रदर्शित हुई.

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, मनीषा कोइराला, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शर्मिन सहगल, संजीदा शेख, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन, फरदीन खान, ताहा शाह बदुशा

निर्देशक: संजय लीला भंसाली

संवाद: दिव्य निधि

कहानी: मोइन बेग

छायांकन: सुदीप चटर्जी

ओटीटी: नेटफ्लिक्स

एपिसोड: 8

8 एपिसोड में आई यह वेब सीरीज एक दरजन से अधिक फिल्मी कलाकारों और 2 दरजन से अधिक सहयोगी पात्रों से भरी हुई है. इस कारण कई जगह वेब सीरीज पर भटकाव देखने को मिला है.

पहले एपिसोड से ले कर उस के  क्लाईमैक्स तक पूरी वेब सीरीज महिला प्रधान रही है. इस में तवायफों की लाइफस्टाइल दिखाई गई है. यह वेब सीरीज मुंबई के भायखला में रहने वाले मोइन बेग (Moin Beg) की किताब ‘हीरामंडी’ से प्रभावित हो कर बनाई गई है.

किताब में आजादी से पूर्व वेश्यालयों में रहने वाली महिलाओं के अंगरेजों के खिलाफ बगावत के पैटर्न पर उसे बताया गया है. आजादी के बाद हुए विभाजन में मोइन बेग का परिवार लाहौर में जा कर बस गया है. बहरहाल, भंसाली ने डिसक्लेमर में यह बता दिया है कि यह फिक्शन हो सकता है.

यह वेब सीरीज कई भाषाओं में प्रदर्शित की गई है. लेकिन, भंसाली ने इसे मुसलिम प्रधान बनाने की भरसक कोशिश की है. जबकि वास्तविकता में अखंड भारत में हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई सभी रहते थे. वेब सीरीज अच्छे संगीत, संवाद और अभिनय की कमी से जूझती दिखी.

ओटीटी में अपने साथसाथ संजय लीला भंसाली ने अपनी भांजी की बौलीवुड में लौंचिंग की है. इस के अलावा भंसाली ने बौलीवुड में हाशिए पर चल रहे 3 कलाकारों शेखर सुमन, मनीषा कोइराला (Manisha Koirala) और फरीदा जलाल को मौका दिया है.

पूरी वेब सीरीज काफी धीमी है, इस कारण वह दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सकी. ओटीटी का दर्शक फूहड़ संवाद और अश्लीलता देखने का आदी हो चुका है. इन्हीं कमजोरियों से भरी यह वेब सीरीज ओटीटी के नियमित दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई.

एपिसोड-1

नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित हीरामंडी वेब सीरीज ख्वाबगाह और शाही महल के आसपास केंद्रित है. इस की शुरुआत सोनाक्षी सिन्हा से होती है. इस में उन्हें रिहाना आपा के नाम से जाना जाता है. सोनाक्षी सिन्हा वेब सीरीज में उर्दू के भारी शब्दों के उच्चारण में कमजोर साबित हुई. वह मल्लिका जान का बेटा बेच देती है. यह बेटा नवाब जुल्फिकार और मल्लिका जान का होता है. इस बात से नाराज मल्लिका जान विरोध करते हुए रिहाना आपा के पास जाती है.

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इस दृश्य के बाद निर्मातानिर्देशक वेब सीरीज को अचानक 25 साल आगे ले जाते हैं. जहां मल्लिका जान और जुल्फिकार का पात्र बदल जाता है. इस कारण ओटीटी का दर्शक कुछ देर के लिए भ्रम की स्थिति में रहता है. पहले एपिसोड में हुए इस धोखे से दर्शकों को निराशा हाथ लगती है. मल्लिका जान का अभिनय मनीषा कोइराला और जुल्फिकार का किरदार शेखर सुमन निभाने लगते हैं.

एपिसोड-2

संजय लीला भंसाली ने पहले ही एपिसोड में पूरी वेब सीरीज के लगभग सारे पात्र दिखा दिए हैं. इस में मल्लिका की बेटी आलमजेब है. यह भूमिका संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सेगल ने निभाई है. मल्लिका जान की दूसरी बेटी बिबो जान है. इस की भूमिका अदिति राव हैदरी कर रही है.

वेब सीरीज में मल्लिका की बहन वहीदा बनी है, जिस के रोल में संजीदा शेख है. ख्वाबगाह में काम करने वाली तवायफ लज्जो है, जिस का किरदार रिचा चड्ढा ने निभाया है. उस के प्रेमी के रूप में जोरावर है, यह रोल आद्यान सुमन ने किया है. बिबो जान के प्रेमी वली साहब फरीदन खान बने हैं. आलमजेब के प्रेमी ताजदार, ताजदार की मां कुदेसिया बेगम की भूमिका में फरीदा जलाल हैं.

इस के अलावा आधा दरजन अन्य कलाकारों को एकएक कर के संजय लीला भंसाली ने ओटीटी के दर्शकों के सामने परोस दिया है. धीमा संगीत, डायलौग की कमी, थ्रिलर और सस्पेंस की कमी से जूझ रही वेब सीरीज का पहला एपिसोड काफी लंबा बना दिया गया है. इस कारण ओटीटी के दर्शकों को दूसरे एपिसोड में भी वह आगे ले जा पाने में कामयाब होती नहीं नजर आई.

कई जगहों पर स्टोरी को कनेक्ट करने में संजय लीला भंसाली की चूक दिखाई दी. ब्रिटिश एसपी कार्टराइट यह भूमिका जासन शाह ने निभाई है, उस ने मल्लिका जान के जलसे के आमंत्रण को ठुकराने से नाराज हो कर उस के साथ समलैंगिक संबंध भी बनाए. उस्ताद की भूमिका में इंद्रेश मलिक है.

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डायरेक्टर संजय लीला भंसाली दूसरे एपिसोड में एक बार फिर सोनाक्षी सिन्हा यानी रिहाना आपा के पास पहुंचता है. यह पहले एपिसोड में अचानक गायब होती है. उसे मनीषा कोइराला जो पहले एपिसोड में मल्लिका होती है, वह उस का तकिए से मुंह दबा कर कत्ल कर देती है.

उस के बाद वह जुल्फिकार की मदद से रिहाना आपा को फांसी के फंदे पर लटका देती है. ऐसा करते हुए रिहाना आपा की बेटी खिड़की से देख लेती है. वह बच्ची कहां भेजी गई, यह पहले और दूसरे एपिसोड में साफ नहीं होता.

इधर, नवाब जुल्फिकार ब्रिटिश पुलिस से सौदा कर के रिहाना आपा के खिलाफ मिले सबूतों की फाइल को खरीद लेता है. शाही महल से ख्वाहगाह में रिहाना आपा की बरसी से शुरू हुई वेब सीरीज ताजदार के अधूरे प्यार जो हीरामंडी के आलमजेब से होता है, उस को दिखाया गया है.

‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘गोलियों की रासलीला राम लीला’, ‘सांवरिया’ जैसी रोमांटिक फिल्में बना चुके भंसाली ताजदार और आलमजेब के प्यार को प्रदर्शित करने में बेहद नाकाम साबित हुआ है. मल्लिका की बहन वहीदा की बेटी का रोल जबरिया दूसरे वेब सीरीज में डाला गया. इसी तरह नवाब के बेटे जोरावर और लज्जो के प्यार की तड़प भी संजय लीला भंसाली प्रदर्शित करने में नाकाम साबित हुआ है.

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लज्जो नवाब के बेटे की शादी से नाराज रहती है. जोरावर अली खान की शादी में लज्जो को मुजरे के लिए बुलाया जाता है. यहां उस को गाल पर तमाचा मार देता है. तब वहां उस के पिता के सामने मल्लिका जान बताती है कि वह उस का बेटा है. यह एक बेहतरीन सीन बनाया जा सकता था. लेकिन, संगीत, संवाद की कमी और खासतौर पर कैमरे के मूवमेंट की कमी यहां साफ दिखाई दी.

दूसरे एपिसोड का यह सर्वाधिक चर्चित पल था, जिस को भंसाली ने बहुत हलके में बना दिया. मुजरे के बाद लज्जो की मौत हो जाती है. उस ने कब जहर पिया, यह भंसाली दिखा ही नहीं पाए. यहां सरप्राइज बोलें या फिर दर्शकों के साथ फिर धोखा करने वाली बात भंसाली ने की है. वह सोनाक्षी सिन्हा के दूसरे रोल के रूप में फरीदन की एंट्री कर देता है, जो रिहाना आपा की बेटी होती है.

एपिसोड-3

वेब सीरीज का तीसरा एपिसोड जुल्फिकार और मल्लिका के प्रेम से शुरू होता है. उस की बहन वहीदा उस से ख्वाहगाह चाहिए होता है, जिसे रिहाना आपा को नवाब सामी ने उसे दिया था. जिस के कब्जे को ले कर उस की पत्नी और बेटे कोर्ट में केस लड़ते हैं.

संजय लीला भंसाली जो सेट बनाने के लिए काफी चर्चित है, वह यहां पर कोर्ट रूम बनाने में चूक गया. यहां की लोकेशन को भी उस ने झूमर लगा कर कोठा बनाने की कोशिश कर दी. वेब सीरीज में कई जगह सस्पेंस को सही तरीके से प्रस्तुत करने में वह कामयाब नहीं हो सका.

संजय लीला भंसाली ने सेट, ड्रैस, कौस्ट्यूम और मेकअप में भारी खर्च किया. लेकिन वह स्टोरी कंटेंट को मजबूत बनाने में सफल नहीं हो सका.

इस एपिसोड में संजय लीला भंसाली जैसा चर्चित निर्देशक टीवी सीरियल जैसा नजर आया. उस ने मल्लिका, फरीदन, आलस्टेयर कार्टराइज, उस्ताद, आलमजेब, ताजदार और जुल्फिकार की आड़ में एकता कपूर के सीरियल जैसा अहसास कराया. यह एपिसोड ओटीटी पर प्रदर्शित होने वाली वेब सीरीज का अहसास ही नहीं करा सका.

तीसरे एपिसोड में मल्लिका की फरीदन से रंजिश, मल्लिका और कार्टराइट की दुश्मनी के किस्से काफी बिखरे हुए दिखाए हैं. ओटीटी का दर्शक फूहड़ता देखने का आदी हो चुका है, लेकिन कोठा कल्चर दिखाने में संजय लीला भंसाली कामयाब नहीं हो सका. यह दिखाने के नाम पर सिर्फ डबल मीनिंग शब्द परोस कर दर्शकों को काफी भटकाया.

मौजूदा दौर में फूहड़ता आम फिल्मों में देखने मिलती है. यह बात भूल कर भंसाली ने थिएटर वाली सोच के साथ बनाई वेब सीरीज को ओटीटी पर परोस दिया. तीसरा एपिसोड पुरुष किरदारों से दूर सिर्फ महिला किरदारों के आसपास ही फोकस रहा.

एपिसोड-4

वेब सीरीज का चौथा एपिसोड वली से शुरू होता है, जो बिबो जान के मुजरा बंद करने का ऐलान करने के बाद फरीदन के पास जाना शुरू कर देता है. फरीदन के ख्वाबगाह के सामने मल्लिका का शाही महल होता है. यहां अकसर मुजरा होता है, उस के बावजूद संगीत की वेब सीरीज में काफी कमी नजर आई.

वेब सीरीज में मल्लिका के बग्घी चलाने वाले इकबाल और उस के घर में खाना बनाने वाले फत्तो की बेटी सायमा के बीच प्रेम प्रसंग चलता है. वह उस को वाजिद अली को बेचने के लिए पेशगी ले लेती है, जिस को चुकाने के लिए इकबाल जुआ खेलने लग जाता है. उसे ब्रिटिश पुलिस एक रेड में पकड़ लेती है. उस को छुड़ाने के लिए मल्लिका से उस की बेटी आलमजेब सौदा करती है.

वहीं एसपी कार्टराइट उसे मल्लिका जान के खिलाफ गवाही देने के लिए बोलता है. दूसरी तरफ वहीदा की बेटी शमा के पास आने वाले नवाब उस के मुरीद हो जाते हैं. इधर, बिबो जान की आड़ में संजय लीला भंसाली ने देशभक्ति को परोसने की बहुत कमजोर कड़ी पेश की है.

पूरी वेब सीरीज के हर एपिसोड में अंगरेज तो दिखे लेकिन उन के खिलाफ होने वाली बगावत की कहानी दिखाई नहीं दी. इस के अलावा अंगरेजों के जुल्मों को संजय लीला भंसाली पेश नहीं कर सका. बिबो जान अंगरेजों के खिलाफ मुखबिरी करती है. सिर्फ यह बात पेश कर के हीरामंडी की लड़ाई को साबित करने का प्रयास किया गया.

बिबो जान ब्रिटिश पुलिस के आईजी एंडरसन को ट्रैप कर लेती है. वह उस के जरिए मुखबिरी करने का काम करती है. चौथे एपिसोड में आलमजेब, एंडरसन, सायमा, कार्टराइट, मल्लिका, फरीदन, बिबो जान के आसपास कई हिस्सों में बिखरी वेब सीरीज की कहानी दर्शकों को भटकाने का काम करती है.

एपिसोड- 5

वेब सीरीज के पांचवें एपिसोड में मल्लिका जान का शाही महल सूना हो जाता है. इधर, ख्वाबगाह में फरीदन के जरिए अंगरेज और नवाब एकजुट होने लगते हैं. ऐसा करने के पहले आलमजेब को ताजदार के पास फरीदन भेज देती है. उसे यह पता होता है कि शाही महल के भीतर क्या चल रहा है.

आलमजेब को अपने यहां पा कर ताजदार उसे अपने दूसरे ठिकाने पर ले जाता है. उधर, मल्लिका की बहन वहीदा उस फाइल का राज फरीदन से उजागर कर देती है, जो उस ने जमीन में दफना कर सुरक्षित रखा था. उस के बदले में वह फरीदन से सौदा करती है. फरीदन चाहती है कि वह लाहौर के एसपी कार्टराइट को सौंप कर उसे गिरफ्तार करा दे.

वेब सीरीज कई जगह भटकती है, उस में मल्लिका ईद के दिन नवाब अशफाक के बेटे ताजदार की बहू, जो हीरामंडी की रानी मल्लिका की बेटी आलमजेब है, बता देती है. आलमजेब और ताजदार के रिश्तों के चलते अंगरेजों के खिलाफ चलाया जा रहा स्वदेशी आंदोलन प्रभावित होने लगता है. वहीं नवाब जुल्फिकार फरीदन के खिलाफ सबूत जुटा कर मल्लिका को देती है, जिसे ले कर वह फरीदन के पास जाती है.

इस के बाद फरीदन वह फाइल कार्टराइट को नहीं देती है. मल्लिका की बग्घी चलाने वाले इकबाल को कार्टराइट छोड़ देता है. आईजी के कहने पर हथियारों का एक जखीरा रखा जाता है, जिस को आंदोलनकारी उठा ले जाते हैं.

यह सब कुछ उस दिन होता है, जिस दिन नवाब अशफाक के यहां आयोजित पार्टी में सारे अंगरेज अफसर जुटे रहते हैं. यह बात उस पार्टी में पहुंची फरीदन को पता चल जाती है. जानकारी को वह कार्टराइज के जरिए फरीदन लीक कर देती है.

जब पुलिस रेड मारती है, तब उसे छिपाते हुए आलमजेब पकड़ी जाती है. उसे पता होता है कि ताजदार अंगरेजों के खिलाफ आंदोलन में बहुत बड़े नेटवर्क में काम करता है. इस के बावजूद वह इल्जाम अपने सिर पर ले लेती है.

वेब सीरीज के इस एपिसोड में कई जगह सस्पेंस बनाया जा सकता था. इस के अलावा यहां कई जगह अच्छे डायलौग की कमी भी दर्शकों को खली. वेब सीरीज में कोई तड़का मसाला दर्शकों को नहीं मिला.

एपिसोड-6 और 7

वेब सीरीज के 6वें-7वें एपिसोड में आलमजेब को छुड़ाने के लिए मल्लिका पहुंचती है. वह कार्टराइट के कार्यालय में जा कर प्रस्ताव रखती है. वह उस की टेबल पर सो जाती है. फिर अंगरेज मिल कर मल्लिका के साथ गैंगरेप करते हैं.

यहां संजय लीला भंसाली की कमजोरी साफ दिखती है. वह दर्शकों को रोमांच और कामुकता वाले भाव ही पैदा नहीं कर सका. अलबत्ता पूरी वेब सीरीज में महंगे लहंगे और उर्दू के शब्दों में तवायफ और जान जैसे शब्दों को भारी मात्रा में परोसा गया है. फिल्म परिवार के साथ देखी जा सकती है.

लेकिन उस के साइड इफेक्ट के लिए भी परिवार को तैयार रहना चाहिए क्योंकि वेब सीरीज देखने के बाद हो सकता है कि आप का बच्चा आप से बोले, ”मल्लिका जान, आपा को समझाइए वह तवायफों की रवायतें तोड़ रही हैं.’’

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कल तक मम्मी बोलने वाला बच्चा आप से अम्मीजान, फूफी और आपा न बोलने लग जाए. इसलिए वेब सीरीज को पारिवारिक नहीं कहा जा सकता. वेब सीरीज में महिलाओं के प्रति बहुत ज्यादा घृणा का भाव पैदा किया गया है. कई जगह महिलाओं को सिर्फ शारीरिक उपभोग वाला सामान ही दर्शाया गया है.

जब फरीदन को पता चलता है कि एसपी कार्टराइट ने अपने 4 साथियों की मदद से गैंगरेप किया है तो वह मल्लिका का साथ देने लगती है. इधर, ताजदार और आलमजेब का निकाह करने को उस की दादी कुदेसिया तैयार हो जाती है.

वहीं इस बात से नाराज उस का पिता अशफाक बलूच एसपी कार्टराइट से मुखबिरी कर देता है. वह बता देता है कि उस का बेटा अंगरेजों के खिलाफ चल रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है. जिस कारण उसे शादी वाले दिन पुलिस आ कर उठा ले जाती है. वहां थर्ड डिग्री पूछताछ में उस की मौत हो जाती है.

एपिसोड-8

वेब सीरीज का अंतिम एपिसोड बिबोजान और आलमजेब से शुरू होता है. बिबोजान अंगरेजों की पिटाई में मारे गए ताजदार की कब्र में आलमजेब को ले जाती है.

इधर अंगरेज बताते हैं कि ताजदार की मौत के पीछे मल्लिका जान का हाथ है. वह नवाबों के बेटे को बिगाडऩे के लिए ब्रिटिश के खिलाफ आंदोलन करने वाले लोगों को पैसा मुहैया करा रही है.

उधर, फरीदन और मल्लिका के बीच शाही महल पर कब्जा करने के लिए चल रही जंग का डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने बेहद सामान्य तरीके से पटाक्षेप करा दिया.

मल्लिका शाही महल की चाबी फरीदन को सौंप देती है. लेकिन वह लेने के लिए तैयार नहीं होती. वहीं बिबो जान शाही महल में अंगरेजों के खिलाफ आंदोलन करने वाले सत्याग्रहियों को छिपाने के लिए ले कर आती है, जिसे मल्लिका देख लेती है और उसे छिपाने नहीं खुल कर मदद करने का ऐलान कर देती है.

दूसरी तरफ फरीदन के पास जाने वाले वली साहब अंगरेजों के खिलाफ बगावत के लिए तैयार नहीं होते. उधर अंगरेजों के खिलाफ लडऩे और बोलने से बचने के लिए लाहौर समेत अन्य प्रांतों के नवाब हीरामंडी से किनारा कर लेते हैं. इस कारण हीरामंडी में आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक होती है.

संजय लीला भंसाली इस पीड़ा को दर्शकों को समझाने में नाकाम साबित हुए. इतना ही नहीं अंगरेजों की साजिश का भी नहीं बता सका. अलबत्ता आईजी को हनीट्रैप करने वाली बिबो जान उन्हें गोली मार देती है. जिस के बाद उसे अंगरेज गिरफ्तार कर लेते हैं. उसे अंगरेज गोली मारने की सजा देते हैं.

वेब सीरीज में अंगरेजों की यातनाओं से संबंधित किस्सों की कमी दर्शकों को आगे खलेगी. वेब सीरीज में यह साफ नहीं हो सका कि आलमजेब जो गर्भवती हुई, उस का क्या हुआ. हीरामंडी में आगे क्या हुआ.

आलमजेब के जरिए डायरेक्टर भंसाली ने अचानक वेब सीरीज के विलेन एसपी कार्टराइट की हत्या की अचानक योजना बना दी. ओटीटी पर मारधाड़, सैक्स, फूहड़ डायलौग के बजाय अंतिम पटाक्षेप आजादी के नाम पर बने गीत से होती है, जिस से यह तो साफ है कि दूसरा सीजन आएगा, लेकिन उसे ओटीटी के नियमित दर्शक शायद नहीं मिलेंगे.

संजय लीला भंसाली

पद्मश्री सम्मानित 61 वर्षीय संजय लीला भंसाली बौलीवुड का जाना माना डायरेक्टर है. साल 1996 में ‘खामोशी’ फिल्म के जरिए बौलीवुड में उस की एंट्री हुई थी. भंसाली का नाम फिल्म डायरेक्टर के अलावा अच्छे संगीतकार के लिए भी लिया जाता है. हालांकि इस से पहले विधु विनोद चोपड़ा के साथ सहायक निर्देशक की भूमिका में 1989 में प्रदर्शित फिल्म ‘परिंदा’ में काम किया था.

इस के बाद ‘1942 ए लव स्टोरी’ फिल्म लिख कर उस में असिस्टेंट कोरियाग्राफर का महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. इस फिल्म ने गीत के कारण काफी चर्चा बटोरी थी. यह फिल्म 1994 में प्रदर्शित हुई थी. उस के भंसाली प्रोडक्शन जिस में बौलीवुड का हर छोटाबड़ा कलाकर उन के साथ काम करने का मौका चाहता है.

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भंसाली को बौलीवुड में तब बहुत ज्यादा पहचान मिली, जब उस ने सलमान खान और ऐशवर्या राय अभिनीत फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ बनाई. यह फिल्म 1999 में बनी थी, जिस में उस ने हर वर्ग के दर्शकों का दिल जीता था.

इसी फिल्म के बाद संजय लीला भंसाली भारत के बौलीवुड का चमकता सितारा बन गया. उस ने नैशनल फिल्म अवार्ड के अलावा एक दरजन से अधिक फिल्म संगीत के क्षेत्र से जुड़े अवार्ड हासिल किए.

भंसाली का परिवार गुजरात से महाराष्ट्र में आ कर रहने लगा था. संजय लीला भंसाली जैन समाज से है और वह अपनी मां को बेहद प्यार करता है. इस कारण उस ने अपनी मां का नाम लीला अपने नाम और सरनेम के बीच रखना शुरू किया. भंसाली ने महिलाओं की भावनाओं पर केंद्रित कई फिल्में बनाई हैं. संजय लीला भंसाली ने कोठा कल्चर पर केंद्रित ‘हीरामंडी’ पहली फिल्म नहीं बनाई है.

इस से पहले वह फेमस उपन्यास ‘देवदास’ पर भी वर्ष 2002 में फिल्म बना चुका है. इस फिल्म से भंसाली को विश्व पटल पर ख्याति मिली थी. खासतौर पर कोठा कल्चर को ले कर कई बौलीवुड डायरेक्टरों ने फिल्में बनाई हैं, जिस में भारत की सब से चर्चित मूवी ‘पाकीजा’ रही है. उस के गीत और उस में किए गए प्रयोगों की मिसाल को अब तक तोडऩे में कोई कामयाब नहीं हो सका है. लेकिन कोठा कल्चर पर सर्वाधिक फिल्में बनाने का रिकौर्ड अब तक संजय लीला भंसाली के पास ही है.

उस ने ‘देवदास’ के बाद ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ भी बनाई है. ये दोनों फिल्में सिनेमाघरों, मल्टीप्लेक्स में चर्चित हुई थी. अब कोठा कल्चर पर ही भंसाली की ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ आई है.

ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित और काल्पनिक कहानी के जरिए संजय लीला भंसाली ‘पद्मावत’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म बना कर कई बार विवादों में आ चुका है. इन दोनों फिल्मों को ले कर उसे अलगअलग सामाजिक संगठनों का भारी विरोध भी झेलना पड़ा था.

शर्मिन सहगल

नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ में एक पात्र है आलमजेब, वह फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की भांजी शर्मिन सहगल है. यह नाम कोई बड़ा नहीं है, जिस कारण इसे नेपोटिज्म यानी भाई भतीजावाद कहा जा सकता है. जबकि इसी वेब सीरीज में आलमजेब की सहेली सायमा का चेहरा और उस का अभिनय अच्छा होने के बावजूद वेब सीरीज में उसे अचानक गायब किया गया.

संजय लीला भंसाली नेपोटिज्म को ले कर पहले भी सुर्खियों में आ चुका है. उस की बहन बेला भंसाली सहगल को निर्देशक बनाने के लिए शिरीन फरहाद की फिल्म की स्क्रिप्ट संजय लीला भंसाली ने लिखी थी. यह फिल्म 2012 में प्रदर्शित हुई थी. यह फिल्म शर्लिन सहगल को डेब्यू करने के लिए ही बनाई थी.

शर्मिन सहगल का जन्म सितंबर, 1995 में मुंबई में हुआ है. उस की शादी अमन मेहता के साथ 2023 में हुई थी. बोस्टन यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने वाला अमन मेहता टोरेंट फार्मास्युटिक्ल्स कंपनी में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है. उस के पिता सुधीर मेहता और चाचा समीर मेहता हैं.

इस कंपनी को ब्लूमबर्ग मीडिया हाउस ने 2024 में 53 हजार 800 करोड़ रुपए की कंपनी लांभाश बताया था. पिता दीपक सहगल और मां बेला सहगल हैं.

शर्मिन सहगल अपने मामा की एक अन्य 2015 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में भी उन का साथ दे चुकी है. नेपोटिज्म पर घिरने पर ‘हीरामंडी’ फिल्म में ब्रिटिश एसपी एलेक्स कार्टराइट की भूमिका निभाने वाले कलाकार जेसन शाह बचाव करता नजर आया, जबकि शर्मिन सहगल की बायोपिक से वह एक्सपोज हो रही है.

अदिति राव हैदरी

वेब सीरीज में तीसरी महत्त्वपूर्ण भूमिका फिल्म अभिनेत्री अदिति राव हैदरी ने निभाई है. वह बिबो जान का किरदार निभा रही है. तेलंगाना के हैदराबाद में जन्मी अदिति राव भरत नाट्यम की नृत्यांगना भी है. इस कारण उसे ‘हीरामंडी’ में भंसाली प्रोडक्शन ने अवसर दिया है. पिता एहसान हैदरी और मां विद्या राव हैं.

दोनों मातापिता ठुमरी और दादरा शैलियों के लिए काफी लोकप्रिय हैं. पिता का निधन 2013 में हुआ था. पिता शाही वंश से ताल्लुकात रखते थे. उस का जन्म 28 अक्टूबर, 1986 को हुआ है. इस से पहले अदिति राव हैदरी ने 2016 में प्रदर्शित ‘वजीर’ और ‘मर्डर’ फिल्म में भूमिका निभाई है.

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संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ फिल्म में भी वह काम कर चुकी है. जिस कारण दोनों को काम करने में कोई कठिनाई सामने नहीं आई. इस के अलावा ‘हीरामंडी’ में ठुमरी, दादरा प्रस्तुति देने में उसे कोई दिक्कत भी नहीं हुई.

उस की ‘हीरामंडी’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद उस का किरदार काफी सीमित रखा गया. अदिति राव हैदरी की पहले सत्यदीप मिश्रा के साथ शादी हुई थी. शादी 21 साल की उम्र में हुई थी. पति सिविल सर्वेंट और पेशे से वकील भी था. हालांकि यह रिश्ता लंबे समय तक बरकरार नहीं रह सका. अब उस की दक्षिण भारत के कलाकार सिद्धार्थ के साथ रिश्तों की खबर चल रही है. वह अदिति राव हैदरी से उम्र में 7 साल बड़ा भी है.

मनीषा कोइराला

संजय लीला भंसाली के होम प्रोडक्शन में बनी ‘हीरामंडी’ वेब सीरीज में मुख्य किरदार नेपाली मूल की अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने निभाई है. वह इस वेब सीरीज में मल्लिका जान का रोल निभा रही है. वह तवायफों के गिरोह की मुखिया होती है. मनीषा कोइराला अभिनय के क्षेत्र में काफी रसूख रखती है. लेकिन कैंसर के कारण वह कई सालों से बौलीवुड से दूर हो गई थी.

इतना ही नहीं, उस ने बीच में अध्यात्म का रास्ता भी अपना लिया था. मनीषा कोइराला के पिता प्रकाश कोइराला हैं जोकि नेपाली राजनीति में सक्रिय थे. उस के दादा नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. कोइराला काफी चर्चित रहे थे. मनीषा का जन्म 16 अगस्त, 1970 को हुआ था.

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पारिवारिक बैकग्राउंड मजबूत होने के बावजूद मनीषा कोइराला ने अपनी पहचान कलाकार के रूप में खुद बनाई है. मनीषा की शादी नेपाली कारोबारी सम्राट दहल के साथ 2010 में हुई थी. हालांकि यह रिश्ता सिर्फ 2 साल रह सका और 2012 में तलाक हो गया.

मनीषा कोइराला की पहली फिल्म सुभाष घई के बैनर तले बनी ‘सौदागर’ थी. यह फिल्म 1991 में बनी थी. इस से पहले कोइराला ने 1989 में नेपाली फिल्म इंडस्ट्री में ‘फेरी भेटौला’ में काम किया था. मनीषा कोइराला 2020 के बाद बौलीवुड में दिखाई नहीं दे रही थी. वह 50 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी है. इस के अलावा 2 दरजन से अधिक फिल्मों में उन का अपरोक्ष रूप से सहयोग भी रहा है.

संजय लीला भंसाली ने मनीषा कोइराला को ओटीटी के जरिए लांच करने का प्रयास किया. उस के साथ एसपी औफिस में गैंगरेप भी फिल्माया गया. अब तक ऐसे दृश्य से कोइराला ने कोई समझौता नहीं किया था. लेकिन, उम्र के इस पड़ाव में आ कर अब उसे हालात के अनुसार समझौता करना पड़ा है.

हीरामंडी वेब सीरीज में 2 दरजन से अधिक कलाकार हैं. इस में कई कलाकारों को एक बार फिर फिल्म जगत की मुख्यधारा में लाने का प्रयास संजय लीला भंसाली की तरफ से किया गया है. वेब सीरीज में फरदीन खान, शेखर सुमन के अलावा फरीदा जलाल को मौका दिया गया है.

इन तीनों कलाकारों में से फरीदा जलाल के अलावा कोई अन्य पात्र दर्शक की नजर में खरा नहीं उतरा है. शेखर सुमन ने बग्घी के भीतर मल्लिका जान के साथ इंटीमेंट होने का सीन दिया है. यह काफी सतही होने के चलते ओटीटी के दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका.

इसी तरह फरदीन खान जो वली साहब का किरदार निभा रहा है, उस ने भी इंटीमेट वाले सीन तो फिल्माए, लेकिन वह दूरदूर तक ओटीटी के दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका. जबकि पूरी वेब सीरीज कोठा कल्चर पर बनी है.

हीरामंडी आखिर क्यों है प्रसिद्ध

संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज आने के बाद कलाकारों से ज्यादा लोग हीरामंडी के बारे में सर्च कर रहे हैं. हीरामंडी इस वक्त पाकिस्तान के लाहौर शहर में स्थित है और यह इलाका वेश्यावृत्ति के लिए जाना जाता है. यह पहले अखंड भारत का हिस्सा थी. दशकों से यहां महिलाओं का राज रहा है.

पहले यहां से जुड़ी महिलाओं ने इस को संगीत शिक्षा केंद्र बनाने का निर्णय लिया था, जिस के लिए नवाबों ने कई तरह की पहल भी की थी. यहां बाकायदा हर काम की एक रिवायत थी, जिस का पालन नवाब करते थे.

यह रिवायत कई बार समाज और लोगों के बीच चर्चा का विषय भी बनती थी. जिस कारण यहां 15वीं और 16वीं शताब्दी में महिलाओं को पाश्चात्य संगीत सिखाने के लिए मुगल अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से ले कर आते थे. जिन्हें हीरामंडी के उस्ताद प्रशिक्षित करने का काम करते थे. यह पूरी तरह से संगठित हो कर किया जाता था.

हीरामंडी को बाजार बनाने के लिए अंगरेजों ने कई तरह की चालाकियां भी की थी. क्योंकि अंगरेज हर हिस्से पर अपना नियंत्रण चाहते थे. लेकिन वेश्यालय उन के काबू में नहीं आ पा रहे थे. यहां अमूमन ठुमरी, गजल और मुजरा होता था. जिस कारण अंगरेजों ने यह पेश करने वाली तवायफों से गीत रिकौर्ड कर के उन की आवाज को विश्व स्तर पर ले जाने का लालच दिया था.

बहरहाल, इस चालाकी में हीरामंडी की कोई भी तवायफ नहीं फंसी. 5 शताब्दी बीत जाने के बावजूद आज भी यह परंपरा यहां बनी हुई है. अब यहां पर संगीत सामग्रियों जैसे गिटार, तबला जैसे कई अन्य साज के सामान बेचने की दुकाने हैं.

हीरामंडी को ले कर ब्रिटेन के कई अखबारों में भी स्टोरी आ चुकी है. अखंड भारत में 1843 से 1844 के बीच इस का नाम हीरामंडी पड़ा. इस के पीछे भी बहुत रोचक कहानी है. वह यह है कि 1843 में हीरा सिंह डोगरा यहां के प्रधान बने. यह डोगरा जाति अभी भी पाकिस्तान और भारत में मौजूद है.

हीरा सिंह डोगरा ने यहां अनाजों की मंडी खुलवाई थी. उस वक्त अनाज व्यापारियों को कारोबार के लिए जगह की आवश्यकता थी. जब वह खुली तो उसे अंगरेज हीरा सिंह दी मंडी बोलते थे.

हीरा सिंह डोगरा सुनियोजित तरीके से काम कर रहे थे. इस कारण अंगरेजों ने उन का तख्तापलट भी करा दिया था. यहां कई देशों के कारोबारी आतेजाते थे. दिन में वे कारोबार करते थे और रात को उन का मन बहलाने के लिए तवायफें गीतसंगीत प्रस्तुत करती थीं. अहमद शाह अब्दाली ने जब लाहौर पर कब्जा किया तो उसे वेश्यावृत्ति का अड्डा बना दिया. यह आज भी बदस्तूर जारी है.

‘रंगबाज : डर की राजनीति’ – वेब सीरीज रिव्यू

‘रंगबाज’ के तीसरे सीजन यानी अब तक के आखिरी सीजन ‘रंगबाज – डर की राजनीति’(Rangbaaz – Dar Ki Rajniti)  बिहार के बाहुबली गैंगस्टर (Gangster) और नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन (Bahubali Mohammad Shahabuddin) की असली जिंदगी से प्रेरित है.

लेखक: सिद्धार्थ मिश्रा,

निर्देशक: सचिन पाठक, नवदीप सिंह,

निर्माता: अजय जी राय,

ओटीटी: जी 5

कलाकार : विनीत कुमार सिंह, आकांक्षा सिंह, विजय मौर्या, राजेश तैलंग, प्रशांत नारायणा, गीतांजलि कुलकर्णी, सुधानवा देशपांडे, सोहम मजूमदार और अशोक पाठक

राजनीति पर आधारित (Web Series) वेब सीरीज ‘रंगबाज’ के अब तक 2 सीजन हम पाठकों के लिए प्रस्तुत कर चुके हैं,  ‘रंगबाज’ के पहले सीजन में साकिब सलीम, दूसरे सीजन में जिमी शेरगिल ने सच्ची घटनाओं पर आधारित बाहुबलियों का किरदार निभाया है. अब हम पाठकों के लिए तीसरा सीजन ले कर आए हैं, जिस में विनीत कुमार सिंह (Vineet Kumar Singh) ने बाहुबली शहाबुद्दीन का किरदार निभाया है.

कहने के लिए तो यह वास्तविक कहानी बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुदीन, लालू यादव (Lalu Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के किरदारों पर आधारित है, लेकिन वेब सीरीज रोचक, दिलचस्प अंदाज में लिखी गई है.

गैंगस्टर और नेता मोहम्मद शहाबुदीन 1990 में पहली बार जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत कर विधायक बना था. 1995 में उस ने जनता दल के टिकट पर मैदान में उतर कर एक बार फिर से जीत दर्ज की. इस के केवल एक साल के बाद वह सीवान से सांसद भी बन गया था. इस बाहुबली गैंगस्टर ने 1996, 1998, 1999 और 2004 में लगातार 6 बार इस सीट से जीत दर्ज की थी.

आप बिलकुल ही गलत हैं, क्योंकि मोहम्मद शहाबुद्दीन बिहार के उन अपराधियों में से था, जिस का 80 के दशक में उदय हुआ था. इस का जन्म 10 मई, 1967 को प्रतापपुर, जिला सीवान, बिहार में हुआ था. शहाबुद्दीन की शादी 18 नवंबर, 1991 को हिना शहाब से हुई थी और उस के 3 बच्चे हैं, जिन में 2 बेटियां व एक बेटा है. बेटे का नाम ओसामा है.

पहला एपिसोड

एपिसोड नंबर एक का नाम शक्ति रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में एक युवक और युवती ट्रेन की पटरी पर आत्महत्या के इरादे से बैठे हुए हैं, तभी ट्रेन उन के ठीक सामने आ जाती है. उस के बाद सांसद हारुन शाह अली बेग के आदमी रास्ते से एक मजिस्ट्रैट का अपहरण कर उसे सांसद शाह अली बेग के सामने ले कर आ जाते हैं, जहां पर शाह अली बेग (विनीत कुमार सिंह) का दरबार लगा हुआ है.

वहां पर बाहुबली सांसद युवक और युवती से उन की इच्छा जानने के बाद दोनों परिवार की मौजूदगी में मजिस्ट्रैट को धमकाते हुए दोनों का विवाह करा देता है. उस के बाद अगले दृश्य में बिहार की राजनीति का आरंभ से अंत तक का पूरा वर्णन चित्रित किया गया है कि कैसे बिहार की राजनीति जातियुद्ध में उलझी रही थी.

उस के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन दिखाया गया है, जिस के बाद बिहार की राजनीति में 2 नेता उभरते हैं, जिन में से एक एक हैं लखन राय जोकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव से मिलता जुलता किरदार है और जिसे विजय मौर्य ने निभाया है. जबकि दूसरा नेता मुकुल कुमार है, जो नीतीश कुमार से मिलताजुलता किरदार है और इस किरदार को राजेश तैलंग ने अभिनीत किया है.

अगले दृश्य में लखन राय की मुलाकात मुकुल कुमार से दिखाई गई है, जिस में मुकुल कुमार सारी शर्तें सीटों के बंटवारे के लिए मान लेते हैं, लेकिन मुकुल कुमार एक शर्त रखते हैं कि विधायकों की लिस्ट में हारुन शाह अली बेग का नाम नहीं होना चाहिए.

अगले दृश्य में मुकुल कहेर (राजेश तैलंग) पुलिस अधिकारी राघव कुमार (प्रशांत नारायणा) को शाह अली बेग के अपराधों के खुलासे के लिए आदेश देते हैं.

पुलिस रिकौर्ड में अपराधी हारुन शाह अली बेग की अपराध की फाइलें खंगालनी शुरू होती हैं, जहां पर अपराधों की फेहरिस्त काफी लंबी है, मगर गवाह कोई नहीं है. उस के बाद अभिल्या देवी दिखाई देती है, जिस से कहानी फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. अभिल्या देवी का बेटा और शाह अली बेग बचपन में दोस्त होते हैं.

इस एपिसोड में एक ऐसा चित्रण किया गया है, जो गले नहीं उतर पाता. बच्चा हारुन शाह अली जब अपने हिंदू दोस्त के साथ स्कूल से अपने घर लौट रहा होता है, तब मुसलिम इलाकों में हिंदू गुंडे तबाही मचा रहे होते हैं.

फिर वे तथाकथित हिंदू गुंडे हारुन शाह अली की जान के पीछे पड़ जाते हैं. लेकिन उस के हिंदू दोस्त की मां उसे अपने घर में पनाह दे कर बचा लेती है. यहां पर इस वेब सीरीज की कहानी को एकदम से पलट कर रख दिया गया है.

अगले दृश्यों में शाह अली बेग और उस के हिंदू दोस्त को बड़ा दिखाया गया है. एक अन्य दृश्य में जब शाह अली बेग के वालिद अपने विदेश से आए हुए बेटे से शाह अली बेग को भी अपने साथ विदेश ले जाने और नौकरी या व्यापार करने को बोला जाता है तो हारुन शाह अली बेग अपने अब्बा से पूछता है कि वहां पर किसी ने यदि मेरी दुकान जला दी तो?

इसी कारण वह अपराधी बन जाता है, ये सब देखने में काफी बचकाना लगता है. नैरेटिव ये फैलाने की कोशिश की गई है कि केवल हिंदू गुंडों की वजह से मुसलिम अपराधी बनते हैं. वैसे भी कई फिल्मों में हम दंगों की वजह से मुसलिमों को अपराधी बनते भी देख चुके हैं.

फिर हारुन शाह अली बेग अपने दोस्त दीपू के लिए लड्डू खरीदने जगदंबा स्वीट शौप में जाता है तो वहां गुंडे एक युवती को छेड़ते हैं. इस बात पर गुस्सा हो कर शाह अली बेग सभी गुडों की जम कर पिटाई कर देता है और फिर दीपू को छोडऩे रेलवे स्टेशन आता है.

रेलवे स्टेशन पर जब शाह अली बेग वापस अपनी मोटरसाइकिल के पास आता है तो वहां पर वही गुंडे उसे पकड़ लेते हैं और अपने बौस के पास ले कर जाते हैं. बौस उसे अपने गिरोह में शामिल कर उस से एक खून करवाता है.

उस के बाद फ्लैशबैक में एक बार फिर हारुन शाह अली बेग को बचपन में अपने दोस्त दीपू के साथ दिखाया गया है, जहां उस की दुकान जलती हुई दिखाई गई है और पुलिस का दारोगा उसे गंदी गंदी गालियां दे कर कान पकड़ कर उठक बैठक करवाता है.

उस के अगले दृश्य में लखन राय और मुकुल कहेर मिल कर एक महागठबंधन का ऐलान करते हैं, जबकि सांसद हारुन शाह अली बेग एक कत्ल के जुर्म में जेल में बंद है.

अगले सीन में अभिल्या देवी जेल में लिटिल बाबू से मिलने आती है और कहती है कि आप का बेटा ब्रजेशो वापस आना चाहता है. इस एपिसोड में यह बात समझ में नहीं आई है कि ये लिटिल बाबू कौन है और उस की हारुन शाह अली बेग से क्या दुश्मनी है. अभिल्या देवी भी लिटिल बाबू को कहती है कि सब ठीक हो जाएगा. आप को और हमें अब शाह अली बेग से डर कर नहीं, बल्कि डट कर मुकाबला करना होगा.

तभी अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी प्रशांत नारायण (राघव कुमार) को फोन करती है कि छोटे बाबू और ब्रजेश कोर्ट में शाह अली बेग केस में गवाही देने को तैयार हैं.

इस एपिसोड में लेखक और निर्देशक कहानी को स्थिर नहीं रख पाए हैं. बीचबीच में अलगअलग दृश्य दिखाए गए हैं. दर्शक समझ ही नहीं पा रहा है कि आखिर असली कहानी क्या है? लेखन और निर्देशन की नजर से यह एपिसोड काफी कमजोर साबित हुआ है.

दूसरा एपिसोड

दूसरे एपिसोड का नाम सम्मान रखा गया है. पहले दृश्य में शाह अली बेग एक कैन में ज्वलनशील पदार्थ ले कर एक घर में आग लगा रहा है.

उस के अगले सीन में ब्रजेश अपने घर में छिपा बैठा है, तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है. ब्रजेश दरवाजा खोलता है तो पत्रकार पुलिस को ले कर ब्रजेश से मिलवाता है. फिर बिहार की पृष्ठभूमि दिखाई गई है. एक स्थान पर दशरथ सिंह की नेमप्लेट लगी हुई है, तभी वहां पर लाल सलाम वाले यानी कि नक्सली अपना झंडा गाडऩे आते हैं तो वहां हारुन शाह अली बेग अकेला आ कर उन्हें धमका कर भगा देता है.

उस के बाद मुख्यमंत्री लखन राय अपनी भैंस को चारा खिलाता और फिर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करता दिखाया गया है. उस के बाद दीपू फोन कर के हारुन को जन्मदिन की बधाई देता है.

एक बात यहां पर गले से नहीं उतर पा रही है कि जिन नक्सलियों के मुकाबले के लिए बिहार पुलिस और यहां तक कि देश की पैरा मिलिट्री फोर्स भी घबराती हैं, उन्हें एक निहत्था हारुन शाह अली बेग अकेला धमकी दे कर भगा देता है. यह लेखक और निर्देशक की सचमुच एक बहुत कमजोर कड़ी रही है.

शाह अली बेग कुछ सोच रहा है. उस के बाद वह विद्यार्थी जीवन में फ्लैशबैक में चला जाता है और कालेज की लाइब्रेरी में अपनी प्रेमिका हिना साहेब (आकांक्षा सिंह) से अपने प्रेम का इजहार करता है.

उस के अगले दृश्य में शाद अली बेग अपने घर में फ्रिज और कूलर ले कर आता है. अब्बू के पूछने पर वह कहता है कि यह गुप्ताजी ने भिजवाए हैं. अब्बू कहते हैं कि रंगदारी का सामान हमें नहीं चाहिए. इसे सम्मान नहीं, बल्कि हराम कहते हैं.

एपिसोड के अगले दृश्य में होटल बंद होने वाला है, लेकिन होटल मालिक और वेटर शाह अली बेग और उस की प्रेमिका हिना की खिदमत करते नजर आते हैं. शाह अली बेग अपनी प्रेमिका से अपनी शादी की बात करता है.

तभी फिर अगला दृश्य आ जाता है, जहां पर शाह अली बेग व्यापारियों और प्रतिष्ठित लोगों से रंगदारी वसूल कर गैंगस्टर दशरथ सिंह को एक बड़ी रकम देता है. गुप्ता उसे भी काफी रकम देता है. शाह अली बेग उस से कहता है कि क्या हम चुनाव नहीं लड़ सकते. इस पर गैंगस्टर और उस के साथी जोरजोर से हंसने लगते हैं और गैंगस्टर शाह अली बेग के गाल थपथपाता हुआ चला जाता है.

शाह अली बेग को अपनी प्रेमिका की बातें और चुनाव लडऩे की बात पर गैंगस्टर और उस के गुर्गों की हंसी की आवाज सुनाई देती है, अपने अब्बा की वही बातें याद आने लगती हैं. यहां पर ध्यान देने वाली बात एक और है कि जिस के लिए शाह अली बेग रंगदारी का काम करता है, जिस के बारे में शाह अली बेग ने अपने अब्बा से गुप्ता का परिचय दिया था, वह शख्स और गैंगस्टर वास्तव में धीमान का विधायक दशरथ सिंह है, जो एक बड़ा जमींदार है.

यहां पर वेब सीरीज के लेखक ने इतिहास का ज्ञान बघारते हुए यह दिखाने का प्रयास किया है कि जो पहले जमींदार हुआ करते थे, वही बाद में नेता बन गए. लेखक को शायद ये पता नहीं कि क्या लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या सुशील मोदी जमींदारों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है.

उस के बाद के दृश्य में शाह अली बेग लखन राय के पास जाता है और धीवान से विधायक का चुनाव लडऩे की बात करता है.

उस के बाद चुनाव होता है और धीवान विधानसभा शाह अली बेग 350 वोटों से बाहुबली दशरथ सिंह को हरा देता है. इस चुनाव में बूथ कैप्चरिंग से ले कर हत्याएं, आगजनी और चारों ओर फायरिंग का भयानक मंजर दिखाया गया है.

फिर शाह अली बेग लखन राय को मुख्यमंत्री बनाने के लिए विधानसभा के विधायकों को एक होटल में बंधक बना लेता है और फिर शाह अली बेग की सहायता से लखन राय बिहार का मुख्यमंत्री बन जाता है. पुलिस अधिकारी प्रशांत नारायणा गवाह ब्रजेशो के पास आ कर उसे तसल्ली देता है कि तुम सुरक्षित हो तुम बस शाह अली बेग के खिलाफ गवाही दे दो.

शाह अली बेग अपने वकील के साथ फिर केस के सिलसिले में बात करता दिखाई देता है. उस के बाद अतीत के चित्र सामने आने लगते हैं और इस तरह यह दूसरा एपिसोड भी समाप्त हो जाता है. इस एपिसोड में भी लेखक कहानी के सीक्वेंस को स्थिर करने में नाकाम रहा है, कलाकारों का अभिनय भी औसत दरजे का है.

तीसरा एपिसोड

वेब सीरीज ‘रंगबाज डर की राजनीति’ के तीसरे एपिसोड का नाम परछाई रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में 2010 का साल दिखाया गया है. सरकारी गवाह ब्रजेशो को पुलिस पूरी सुरक्षा से गवाही देने के लिए सरकारी वकील से बातचीत करने और शाह अली बेग के विरुद्ध केस मजबूत करने ले जा रही है.

उधर शाह अली उस की पत्नी हिना उसे गलत काम न करने के लिए समझाती है और इसी के साथ एपिसोड शुरू हो जाता है. गैंगस्टर और बाहुबली विधायक अपने विधायक आवास में अपनी पत्नी हिना और अपने बेटे सलाभ के साथ आता है.

अगले सीन में शाह अली बेग अपनी बहन फातिमा की शादी के लिए पैसे और साडिय़ां अपनी वालिदा (मां) को देता है. तभी उस के वालिद आ जाते हैं और शाह अली बेग से कहते हैं कि तुम अपनी विधायकी करो, बेटी का निकाह वह अपने बेटे की सहायता से कर रहे हैं. इस पर शाह अली बेग अपने को तिरस्कृत महसूस करता है.

शाह अली बेग के बचपन का हिंदू दोस्त दीपू वामपंथी दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो कर भाषण दे रहा है. तभी वहां उस का एक साथी उसे नक्सली नेता कृष्णा से मिलवाता है. कृष्णा दीपू को बताता है कि तुम अच्छा भाषण देते हो, लेकिन धीवान में हारुन शाह के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. उस का मुकाबला हम लाठीडंडों से कैसे कर सकते हैं, क्या तुम उसे जानते हो?

यह सुन कर दीपू (सोहम मजूमदार) सोच में पड़ जाता है. अगले दृश्य में भारतीय लोकतंत्र का विधानसभा के भीतर एक मजाक या कहें कि बिहार या अन्य प्रदेशों में अपराधियों के राजनीतिकरण पर कटाक्ष किया गया है. विपक्ष का नेता बिहार के मुख्यमंत्री लखन राय पर सीधासीधा आरोप लगा रहा है कि कैसे एक हत्या, अपहरण, लूट, रंगदारी, भूमि माफिया को सरकार अपना खुला संरक्षण दे रही है. जिस के बारे में विपक्ष का नेता सदन में अपना बयान दे रहा है.

वहीं विधायक हारुन शाद अली बेग भी सदन में बैठा हुआ है. इस का चित्रण और अच्छी तरीके से हो सकता था, लेकिन लेखक और निर्देशक यहां पर भी सही रूप प्रस्तुत करने में नाकाम रहे हैं.

इस के अगले सीन में बाहुबली विधायक हारुन शाह की बहन फातिमा का निकाह हो रहा है. वहां पर हारुन शाह अपने आप को अकेला महसूस कर रहा है. उस की पत्नी हिना उसे गलत काम करने से रोकने के लिए समझा रही है जिस पर वह गुस्सा हो कर वहां से निकल जाता है.

हारुन शाह अपने आदमियों से नक्सली नेता कृष्णा का मर्डर करवा देता है. दीपेश उर्फ दीपू के साथी दीपू को कृष्णा के कत्ल की जानकारी देते हुए बताते हैं कि हारुन शाह अली बेग ने कृष्णा का मर्डर इसलिए करा दिया, क्योंकि कृष्णा धीवान से चुनाव लडऩे वाला था.

इस के बाद सीधे 2010 का साल दिखाया गया है, जहां पर फ्लैशबैक में अभिल्या देवी कोर्ट में आई विटनैस बृजेशो का इंतजार कर रहा है. न्यूज में दिखाया जा रहा है कि बिहार तेजाब कांड का अहम गवाह आज कोर्ट में पेश होने वाला है, लेकिन आखिर वह कौन है, जिस के नाम का खुलासा न ही सरकार न ही पुलिस कर रही है.

कोर्ट में पुलिस अधिकारी राघव कुमार भी पूरी सुरक्षा के साथ पुलिस के साथ उपस्थित है. तभी अगले दृश्य में मुख्य गवाह पुलिस जीप में पूरी सुरक्षा के साथ आता दिखाई दे रहा है. वह अपने पिता लिटिलू बाबू से बात कर रहा होता है, तभी एक बड़ा ट्रक आ कर ब्रजेशो की जीप को रौंद कर उस को मार डालता है. पुलिस अधिकारी राघव कुमार अभिल्या देवी को बताता है कि ब्रजेशो की जीप को ट्रक ने उड़ा दिया तो अभिल्या देवी गश खा कर गिर जाती है.

एपिसोड के अगले दृश्य में मुख्यमंत्री लखन राय अपने विधायको, मंत्रियों और कार्यकर्ताओं के लिए मीट पकाता दिखाया गया है. तभी वहां शाह अली बेग आ कर लखन राय के पैर छूता है. लखन राय उसे अकेले में ले जा कर कहता है कि शाह अली बेग इस बार तुम सांसद की तैयारी करो. फंड इकट्ठा करने का पूरा जिम्मा तुम्हारा रहेगा, हमें पूरी 54 सीट चाहिए.

इस पर शाह अली बेग कहता है, टिकट का बंटवारा मैं करूंगा और लखन राय मान जाता है. उस के बाद हर जगह शाह अली बेग दूसरे नेताओं को दरकिनार कर अपनी मरजी से टिकट बंटवारे की घोषणा कर देता है. इस के अगले सीन में दीपेश धीवान से अपनी चुनावी गतिविधि शुरू कर देता है.

इस के बाद लखन राय और शाह अली बेग की मुलाकात दिखाई गई है, जिस में लखन राय शाह अली बेग को कहता कि उस ने उम्मीदवारों की लिस्ट केवल उसी के कहने पर फाइनल की है और मुकुल कहेर भी नई पार्टी बना रहा है, इसलिए सभी सीटों पर जीत होनी चाहिए.

शाह अली बेग उसे विश्वास दिलाता है कि हम सभी सीट जीत जाएंगे. लखन राय कहता है कि इस बार धीवान से एक नया नाम दीपेश का आ रहा है. तुम्हारा दोस्त रहा है, उस का भी ध्यान रखना.

अगले दृश्य में दीपेश की महिला मित्र गीता भी दीपेश का चुनाव प्रचार करने उस के पास आ जाती है. अभिल्या दोनों को खाना खिला कर बहुत खुश होती है. अगले दृश्य में दीपेश एक जनसभा को संबोधित करता दिखाया गया, जहां पर वह लोगों से कहता है कि धीवान से अपराधीकरण की राजनीति को वह खत्म कर देगा, यदि उस का साथ जनता निडर हो कर दे सके. तभी वहां पर दीपेश का गोलियां मार कर मर्डर कर दिया जाता है. मर्डर किस ने किया, यह नहीं दिखाया जाता.

यदि ‘रंगबाज: डर की राजनीति’ के तीसरे एपिसोड का पूरी तरह विश्लेषण करें तो लेखक और निर्देशक ने हारुन शाह अली बेग के महिमामंडन के सिवाय और कुछ भी नहीं किया है.

माना कि वेब सीरीज किसी एक गैंगस्टर से प्रभावित है, लेकिन जो अन्य चरित्र हैं उन को भी कम से कम थोड़ा स्थान अवश्य मिलना जरूरी होता है. इस लिहाज से यह एपिसोड एकदम से देखने योग्य तक नहीं है. यहां तक कि एपिसोड का नाम परछाई रखा गया है.

चौथा एपिसोड

चौथे एपिसोड का नाम ‘साम, दाम, दंड, भेद’ के नाम से रखा गया है. जाहिर है इस में इन चारों शब्दों का धड़ल्ले से उपयोग भी किया गया है. पहले दृश्य में हारुन शाह के खिलाफ गवाही देने आए ब्रजेशो के शव को पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए ले जाता दिखाया गया है.

अगले दृश्य में लखन राय हारुन शाह को कह रहा है कि हम मना किए थे, मगर फिर भी तुम ने यह कांड कर डाला. जानते हो न तुम, अब हिंदुस्तान बदल चुका है. इस पर हारुन शाह कहता है कि यहां अभी भी हमारा ही राज चलता है. लखन राय कहता है कि दीपेश की हत्या को जनता के बीच राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया है. अब जनता और प्रैस दोनों को तुम्हीं को संभालना है.

अगले सीन में कमरे में हारुन शाह और उस की बीवी हिना शहाब बैठी है. हिना सवालिया निगाह से उसे देखती है तो वह कमरे से बाहर चला जाता है और अपनी गाड़ी ले कर सीधे दीपेश के घर पहुंच जाता है, जहां पर उस की शोकसभा हो रही होती है.

वहां पर दीपेश की महिला मित्र गीता हारुन शाह को फटकारती है और वहां से चले जाने को कहती है, उस के बाद हारुन शाह मृतक दीपेश की मां अभिल्या देवी के पास जा कर उस के पांव छूता है तो अभिल्या देवी गुस्से से हारुन शाह को कस कर एक थप्पड़ मार देती है.

हारुन शाह से पत्रकार दीपेश मर्डर के बारे में सवालजवाब करते हैं कि सारा दोष आप के ऊपर लगाया जा रहा है तो हारुन शाह अली बेग कहता है कि दीपू तो मेरा बचपन का दोस्त था, मेरा भाई था, उस की हत्या उस की पार्टी के लोगों द्वारा ही की गई है. हम अब एकएक को चुनचुन कर खोज निकालेंगे.

यहां पर लेखक और निर्देशक की कमी साफसाफ दिखाई दे रही है कि दीपेश कम्युनिस्ट पार्टी से था और नक्सली उस के साथ थे, जो एक इशारे पर उस के लिए हमेशा मर मिटने तैयार रहते थे. जब हारुन शाह वहां शोकसभा में आया, उस का विरोध केवल दीपेश की महिला मित्र गीता और उस की मां अभिल्य देवी द्वारा करते दिखाया गया, यह बात बिलकुल भी गले से नहीं उतर पाती.

पुलिस अधिकारी राघव कुमार का तबादला धीवां में हो गया है, जहां डीएसपी निशांत सिंह राघव कुमार को सांसद हारुन शाह से मिलवाता है. हारुन शाह राधव कुमार को हरसंभव सहायता मसलन उस की पत्नी की नौकरी या उस के बच्चों के अच्छे स्कूल में दाखिले की बात कहता है तो पुलिस अधिकारी राघव कुमार उस के झांसे में नहीं आता.

अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी राघव कुमार से मिलती है तो राघव कुमार कहता है कि शाह अली बेग के खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार ही नहीं है. अब तो शाह अली बेग केंद्रीय मंत्री भी बनने जा रहा है. इस के बाद अभिल्या देवी अपने बेटे दीपू की फोटो दिखा कर लोगों से गवाही देने की प्रार्थना करती है, लेकिन सब उस का मजाक सा बनाते दिखाए दे रहे हैं.

लखन राय और हारुन शेख तीसरा मोर्चे के लिए अपने उम्मीदवारों का नाम मीडिया को दे रहे हैं, जिस में प्रजातांत्रिक पार्टी के गृहमंत्री के रूप में हारुन शाह अली बेग का नाम है. तभी मुकुल कहेर लखन राय के चारा घोटाले का काला चिट्ठा मीडिया के सामने खोल देता है.

लखन राय को इस्तीफा देना पड़ता है और जेल जाने से पहले वह अपनी पत्नी को बिहार का मुख्यमंत्री बना देता है. फूलमती देवी यानी कि राबड़ी देवी. अगले दृश्य में हारुन शाह एक नए स्कूल का उद्घाटन करते हुए बिहार में अस्पताल खोलने घोषणा कर देता है.

जिस जमीन पर अस्पताल खोलने की घोषणा होती है, वह जमीन व्यापारी संगठन की होती है, जिस में छोटे बाबू विरोध करता है तो हारुन शाह के आदमी छोटे बाबू की पिटाई कर देते हैं. इस पर उन का बेटा उन पर तेजाब फेंक देता है. जब यह बात हारुन शाह को पता चलती है तो वह खुद आ कर छोटे बाबू पुलिस में केस दर्ज करता है तो उलटे ही उस के ऊपर मर्डर का केस दर्ज हो जाता है और पुलिस उसे पकड़ कर जेल ले जाती है.

अगला दृश्य वर्ष 2010 का दिखाया जाता है, जहां छोटे बाबू के दोनों बेटों का पोस्टमार्टम कर के पुलिस लाश परिजनों को दे देती है. बूढ़ा बाप छोटे बाबू जेल से आ कर अपने दोनों बेटों का अंतिम संस्कार करता है. वहां पर उस समय अभिल्या देवी और पुलिस अधिकारी राघव कुमार जो अब प्रमोशन पा कर उच्च अधिकारी बन चुके हैं, उपस्थित रहते हैं.

इस एपिसोड में लेखक और निर्देशक ने फ्लैशबैक में एक ही कहानी को बारबार दिखाने की कोशिश रोमांच पैदा करने के लिए की तो है, मगर इस में वह नाकाम रहे हैं. उलटा दर्शक बारबार एक ही सीन देख कर बोर हो जाता है. प्रदर्शन की बात की जाए तो इस में सभी कलाकारों ने केवल औसत दरजे का प्रदर्शन किया है. एक विशेष छाप छोडऩे में सभी कलाकार नाकाम रहे हैं.

पांचवां एपिसोड

‘रंगबाज: डर की राजनीति’ के पांचवें एपिसोड का नाम प्रतिशोध रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में ब्रजेश कुमार सोशल मीडिया पर अपनी वीडियो डालता है, जिस में वह सरकार, पुलिस और समाज को संबोधित कर रहा है.

सरकारी वकील मीडिया के सामने बयान देते हुए कहता है कि माननीय अदालत ने ब्रजेश कुमार के बयान का सही मानते हुए हारुन शाह की जमानत याचिका खारिज कर दी है और भविष्य में चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगा दिया है.

अगले दृश्य में पुलिस अधिकारी अभिल्या देवी को फोन पर केस फिर से शुरू होने की बधाई देता है. मुख्यमंत्री मुकुल कहेर राघव कुमार से बात करता है और कहता है कि अब हारुन शाह अली बेग किसी भी सूरत में बचना नहीं चाहिए. अगले दृश्य में पुलिस अधिकारी राघव कुमार अपनी पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह के घर जाता है और उसे कहता है कि अब तुम्हारा वक्त खत्म हो गया, उसे गिरफ्तार कर लेता है.

हारुन शाह राघव कुमार को धमका देता है कि तुम ने अभी तक सबक नहीं लिया. अगले दृश्य में आकाश में चील उड़ती दिखाई गई है.

2001 का साल दिखाया गया है. हिना हारुन शाह से कहती है कि अब हमारा बेटा सलाम इस घर में नहीं रह सकता. उसे कहीं बाहर भेजना पड़ेगा. हारुन शाह चुपचाप आकाश की ओर देखता है, जहां पर कई चीलें उड़ती दिखाई पड़ती हैं.

अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी राघव कुमार से और तेजाब कांड के अखबार की खबर दिखा कर कहती है कि इस केस में जिस के बेटों को तेजाब से जिंदा जला दिया गया, उस के पिता को ही झूठे केस में जेल भेज दिया गया है. राघव बाबू, आप यह पुलिस का वरदी उतार कर रख दीजिए, आप वरदी पहनने के काबिल नहीं रहे.

जेल में तेजाब कांड में गिरफ्तार छोटे बाबू और पुलिस अधिकारी राघव कुमार की मुलाकात दिखाई गई है. राघव कुमार छोटे बाबू को दिलासा दिलाते हुए कहता है कि आप अपना स्टेटमेंट दीजिए, हम आप के साथ हैं. उस के बाद हारुन शाह को उस अस्पताल में दिखाया गया है जो उस के द्वारा बनवाया गया था, जहां पर लोग हारुन शाह को आशीर्वाद दे रहे हैं और हारुन शाह जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं.

अगले सीन में पुलिस अधिकारी राघव कुमार हारुन शाह को गिरफ्तार करने उस के घर पर जाता है और गिरफ्तारी का वारंट दिखाता है तो हारुन शाह का गुंडा उस वारंट को सब के सामने फाड़ देता है. जब राघव कुमार हारुन शाह को गिरफ्तार करना चाहता है तो हारुन शाह सरेआम पुलिस अधिकारी राघव कुमार के गाल पर थप्पड़ जड़ देता है. सब लोग हक्केबक्के रह जाते हैं.

उस के बाद राघव कुमार अपने घर पर उदास बैठा है. उस की पत्नी पूछती है तो वह बताता है कि उस हरामजादे ने मेरी अधीनस्थ पुलिस के सामने मुझे थप्पड़ मारा. अब मैं कल औफिस किस मुंह से जा पाऊंगा. राघव कुमार की पत्नी कहती है कि तुम इस तरह से मुंह छिपा कर कब तक बैठोगे, तुम्हें आज और अभी अपने औफिस जा कर परिस्थिति का सामना करना चाहिए.

पुलिस अधिकारी राघव कुमार अपने औफिस पहुंचता है तो उस के अधिकारी कहते हैं कि हम सब आप के साथ हैं. राघव कुमार अपनी पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह के घर पर जाने की प्लानिंग करता है तो तभी धीवां का कलेक्टर उसे रोकता है तो राघव कुमार कलेक्टर को कमरे में बंद कर के सीधा पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह की कोठी पर जाता है.

डीएसपी निशांत सिंह इस गोपनीय बात की खबर हारुन शाह को दे कर कहता है कि कोठी से निकल कर भाग जाओ क्योंकि राघव कुमार का इरादा काफी खतरनाक है. लेकिन हारुन शाह पुलिस मुकाबले के लिए तैयार हो जाता है. दोनों और से काफी देर तक गोलियां चलने, बम फटने और मुकाबले में बदमाशों और पुलिस फोर्स के आदमियों को मरते हुए दिखाया गया है.

आखिरकार पुलिस टीम जीत जाती है, लेकिन हारुन शाह अपनी पत्नी, बेटे और विश्वस्त गुंडों के साथ वहां से भाग निकलने में कामयाब हो जाता है. इस दृश्य में निर्देशक की ओर से गोलियों के साथसाथ गंदीगंदी गालियों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया है, जो वेब सीरीज के स्तर का और भी गिराती नजर आ रही है.

अगले दृश्य में हारुन शाह अपनी पत्नी और बेटे के साथ नेपाल में छिप कर रहता दिखाया गया है. हारुन कहता है कि सलाम बेटा को अब हम अपने भाई शमशुद्दीन के पास दुबई भेज देते हैं. फिर पटना का सीन दिखाया गया है, जहां मुख्यमंत्री लखन राय को चारा घोटाले में जमानत मिल गई है.

लखन राय अपनी पत्नी फूलमती, बच्चों और साले शंभू के साथ खाना खा रहा है. लखन राय शंभू यानी अपने साले से कहता है कि इस बीच तुम काफी गुल खिला दिए हो. अपनी औकात में रहो.

अगले दृश्य में हारुन शाह और हिना को दिखाया गया है, जिस में वह हारुन शाह से कहती है कि अब लखन राय के पास तुम मत जाना, उसे खुद ही अपने पास आने हो. तभी लखन राय वहां आ जाता है और उस से माफी मांगते हुए कहता है कि फूलमती अकेले काम नहीं संभाल पा रही है, इसलिए तुम हमारे साथ रहो, हमारा साथ दो. हारुन लखन राय के सामने अपनी 4 शर्तें रखता है.

पहला पार्टी में उपाध्यक्ष पद, दूसरा उम्मीदवारों का चयन वह करेगा. तीसरा, शंभू कहीं भी नजर नहीं आना चाहिए और चौथा उस के बाद अगला दृश्य आ जाता है, जिस में पुलिस अधिकारी राघव कुमार का ट्रांसफर दिखाया गया है. मतलब चौथी शर्त हारुन शाह की यही थी.

अगले दृश्य में राघव कुमार से मिलने अभिल्या देवी आती है और राघव कुमार की बेटी प्रज्ञा को अपने बेटे दीपू की एक किताब उपहार के रूप में देती है. हारुन शाह का एक विजयी जुलूस दिखाया गया है, फिर वह एक विशाल जनसभा का संबोधित कर रहा है. जिस में वह कह रहा है कि शेर से जीतना है तो सिर्फ घायल करने से कुछ नहीं होगा या तो मार दो या फिर इंतजार करो, शेर फिर वापस आएगा और चुन चुन कर अपना शिकार करेगा.

इस एपिसोड का यदि विश्लेषण किया जाए तो एक सीन में बाहुबली और गुंडे सांसद द्वारा एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को सरेआम थप्पड़ मारता दिखाया गया है, जोकि लेखकनिर्देशक ने अपनी वेब सीरीज की टीआरपी बढ़ाने के लिए जबरदस्ती डाला है.

वास्तव में यह सीन हमारी व्यवस्था के मुंह पर एक तमाचा है. एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को यदि इस प्रकार जिल्लत का सामना करना पड़े तो इस से अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है?

दूसरा जो पुलिस अधिकारी डीएसपी निशांत सिंह गुंडे सांसद के साथ मिला हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है. यदि लेखक और निर्देशक पुलिस अधिकारी राघव कुमार के स्थान पर डीएसपी निशांत सिंह के साथ कुछ इस प्रकार का व्यवहार करता दिखाते तो यह दृश्य दर्शकों को काफी लुभा सकता था.

छठा एपिसोड

आखिरी एपिसोड का नाम चक्रव्यूह रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में मुकुल को बिहार राज्य के मुख्यमंत्री बनते दिखाया गया है, जिस में वह जनता से कई वादे करते और मीडिया से बात करते दिखाया गया है.

राघव कुमार अपने शस्त्रों व अन्य सामग्री का विवरण लेते दिखाई दे रहे है. जिस में जब उन्हें पता चलता है कि हथियार, बेल्ट, टोपियां और और बुलेटनप्रूफ जैकेट काफी कम मात्रा में हैं तो वह उन की डिमांड करने का आदेश आदेश देते हैं.

अगले दृश्य में मुकुल राय मुख्यमंत्री पुलिस अधिकारी राघव कुमार को तत्काल प्रभाव से डीजीपी की पोस्ट पर दे देते हैं और कहते हैं कि डीजीपी राघव कुमार अब सभी हिस्ट्रीशीटर और आप को परेशान करने वाला सांसद हारुन शाह, जिस से मैं ने भी पुराना हिसाब करना है, उन सभी पर सख्त से सख्त कारवाई होनी चाहिए.

अगले दृश्य में हारुन शाह अली बेग दिल्ली में अपनी पत्नी हिना के साथ बैठ कर बातें करता दिखाई दे रहा है. जिस में वह हिना को बता रहा है कि जब मैं ने शिक्षा नीति पर अपनी बात संसद में रखी तो सभी मेरा विरोध करने लगे थे, लेकिन जब मैं ने प्राइमरी से ऊपर बालिका शिक्षा और शौचालय के बारे में बोलना शुरू किया तो सब के सब दंग रह गए.

राघव कुमार अपने पुलिस अधिकारियों को हारुन शाह के विरुद्ध दर्ज हुए केसों की फाइल निकलवाता है, जिस में एक केस में 2 पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज किया गया था.

राघव कुमार अपनी प्लानिंग के तहत अपराध शाखा की एक महिला अधिकारी डीएसपी ज्योति वर्मा को दिल्ली हारुन शाह को गिरफ्तार करने भेज देता है. महिला अधिकारी के सामने विवश हो कर हारुन शाह गिरफ्तार हो जाता है.

नेता लखन राय जेल में हारुन शाह से मिलने जाता है और उस से कहता है कि इस बार चुनाव का गणित सब गड़बड़ा गया है. धीवां का टिकट भी मुकुल के पाले में है क्योंकि तुम चुनाव लड़ ही नहीं सकते. हारुन शाह कहता है कि घीवां का टिकट हमारे पाले मैं ही रहेगा क्योंकि मेरा अस्तित्व ही चुनाव पर है. यदि यही कट गया तो मेरी जड़ ही खत्म हो जाएगी. इसलिए धीवां से विधायक का चुनाव मेरी पत्नी हिना शहाब लड़ेगी.

अगले दृश्य में पुलिस जो हारुन शाह के साथ जेल में थी, सब सकपका जाते हैं क्योंकि हारुन शाह ने डाक्टर के साथ षडयंत्र रच कर अपना बीपी 200-110 करवा दिया था. हारुन शाह को डाक्टर के कहने पर हौस्पिटल में शिफ्ट कर दिया जाता है क्योंकि इतने अधिक बीपी में ब्रेन हेमरेज का खतरा हो सकता था.

हारुन शाह से अस्पताल में मिलने उस के समर्थक आते हैं तो वह उन से कहता है कि यहां आने के लिए मेरे पास और दूसरा तरीका ही नहीं था. उस की पत्नी भी उस से मिलने वहां पर आती है जिसे वह प्यार से सना कहता है.

हारुन शाह अपनी पत्नी को धीवां से चुनाव लडऩे और आगे की रणनीति के बारे में समझाता है. तभी एक पुलिस अधिकारी जो हारुन शाह का सुरक्षा अधिकारी होता है. वह उस से कहता है, ”सर, अब मैं कुछ नहीं कर सकता. अब आप को फिर से जेल शिफ्ट होना पड़ेगा. क्योंकि एक बड़ा कांड हो गया है.’’

हारुन शाह सुरक्षा अधिकारी से फोन ले कर अपने शागिर्द बदमाश मनोज सिंह को डांटता कि यह उस ने क्या कर डाला? मनोज सिंह कहता है, साहेब, राजनंदन जैसे टुच्चे पत्रकार ने आप को अंदर करवा दिया, मैं ये भला कैसे देख सकता था. इसलिए मैं ने उसे मार डाला.

हारुन शाह उस से कहता है कि वह अंडरग्राउंड हो जाए, इसी में हम सब की भलाई है. हारुन शाह एक बार फिर हौस्पिटल से जेल शिफ्ट कर दिया जाता है. पुलिस हिना साहेब के घर तलाशी करती है और पुलिस अधिकारी उस से कहता है कि मैडम राजनंदन पत्रकार हत्याकांड में मनोज सिंह नामजद है, इसलिए उसे जितनी जल्दी पकड़ा जाए तो अच्छा है. नहीं तो आप के सांसद पति हारुन शाह के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

हिना फोन कर के हारुन शाह को पूछती है कि पत्रकार राजनंदन को आप मरवाए हैं तो हारुन शाह कहता है कि जंगल में सभी शिकार करने को निकलते हैं, लेकिन उस का शिकार नहीं होगा, जिस पर ताकत होगी. उस के बाद एक ओर हिना अपना चुनाव प्रचार करती दिखाई गई है तो दूसरी ओर अभिल्या देवी जनता को हारुन शाह के काले कारनामे बताती है.

उस के बाद हिना हारुन शाह को फोन कर के कहती है कि यदि मेरी वजह से तुम चुनाव हार गए तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. हारुन शाह कहता है कि तुम मेरा चांद हो, तुम्हें कोई नहीं हरा सकता.

उस के बाद जेल का अधिकारी जेल में बंद हारुन शाह की तारीफों के कसीदे पढ़ते हुए कहता है कि साहेब मेरे 3 बेटियां और एक बेटा है. आप के खोले गए धीवां में कालेज के कारण ही मेरी एक बेटी मैडिकल की पढ़ाई पटना में कर रही है और मेरे सारे बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर पाए हैं. आप को प्रणाम.

उस के बाद महागठबंधन की जीत हो जाती है. लखन राय और मुकुल आपस में मिल कर पद को बांट लेते हैं. मुकुल मुख्यमंत्री तो उपमुख्यमंत्री, वित्त और सिंचाई विभाग लखन राय के पास आ जाता है.

समाचार सुनाई देता है कि 5 सालों से कैद में रह रहे हारुन शाह की पत्नी धीवां से भारी मतों से चुनाव जीत गई है. हिना हारुन शाह से मिलने जेल जाती है तो हारुन कहता है कि आप जीत गई न! अब अपने आप को संभालो. कहीं विपक्षी आप की जीत से बौखला गए तो गजब हो जाएगा.

उस के अगले दृश्य में मुख्यमंत्री मुकुल पुलिस डीजीपी राघव कुमार से कहता है कि अब हथौड़ा मारने का वक्त आ गया है, चूकना मत. समाचार टीवी में आ रहा है जिस में सरकारी वकील मीडिया से वह रहा है कि हारुन शाह के केस में कोर्ट ने 13 तारीख को फैसला देना है, जो हमारे पक्ष में होगा.

तभी फ्लैशबैक में हारुन शाह अपने विश्वस्त साथियों से पार्टी के चुनाव चिह्नï पर नहीं, बल्कि निर्दलीय लडऩे को कहता है जिस में ये सभी विधायक जीत जाते हैं. हिना लखन राय से अब कहती है कि ये सभी विधायक आप की पार्टी के नहीं हैं. इन का किसी भी पार्टी में विलय हो सकता है, पर एक शर्त है. तब लखन राय कहता है कि शर्त यही है न कि साहेब को जेल से बाहर करवाना है. लखन राय शर्त मान लेता है और केंद्र मैं अपनी शक्ति दिखा कर तिकड़म से हारुन शाह को जेल से जमानत दिलवा देता है.

अगले दृश्य में मुख्यमंत्री मुकुल राय सत्यनारायण की कथा कर रहे हैं. पूजापाठ हो रहा है. राघव कुमार मुख्यमंत्री से अकेले में मिल कर पूछता है, सर आप की क्या विवशता थी? मुकुल कहता है उस की बीवी विधायक का चुनाव जीत गई. उस के पास 8 निर्दलीय विधायकों का समर्थन था. हमारी सरकार गिर जाती, इसलिए हमें अचानक चार्जशीट बदल कर यह फैसला लेना पड़ा, उसे जमानत देनी पड़ी.

पुलिस डीजीपी राघव कुमार कहता है, सर, मैं आप की राजनीतिक विवशता को अब काफी समझ चुका हूं. मैं अपनी आंखों के सामने हारुन शाह को खुले सांड की तरह घूमता नहीं देख सकता. मैं उसे सरेआम गोली मार दूंगा. सर, मैं अपनी नौकरी छोडऩा चाहता हूं.

मुकुल राय उसे समझाता है कि अभी राजनीतिक परेशानी है. सरकार चलने दीजिए, आप नौकरी क्यों छोड़ेंगे, देखते हैं आगे उस का कुछ इलाज करेंगे. राघव कुमार विवशता से अपना सिर नीचे किए वहां से चला जाता है.

अभिल्या देवी जेल में छोटे बाबू से मिल कर कहती है कि मैं ने जीवन में कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहा, न ही किया. मगर हमारे साथ इतना अन्याय क्यों? जिस देश का प्रशासन गांधी की बात नहीं मानता, वहां पर लड़ाई खत्म ही करनी होगी. हमें लोग पागल समझते हैं, पागल कहते हैं.

लोग हारुन शाह के जेल से आने पर जश्न कर रहे हैं. हारुन की पत्नी हिना फोन पर कहती है कि आप की आगवानी के लिए मैं ने बेटे सलाम को भी बुलवा लिया है. बाहर आने के बाद सब से पहले आप उसे देखेंगे. अगले दृश्य में आकाश में बहुत सारी चीलें उड़ती हुई दिखाई दे रही हैं, जोकि अपशकुन का प्रतीक होता है.

लोग हारुन शाह का बेसब्री से स्वागत कर रहे हैं. उस के जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं. पुलिस सुरक्षा में हारुन शाह को जेल से बाहर लोगों के बीच लाया जा रहा है, तभी छोटे बाबू ‘साहब साहब’ पुकारता है तो पुलिस उसे पीछे धकेलती है. इस पर हारुन शाह कहता है कि उसे आने दो, मुझ से मिलने दो.

छोटे बाबू हारुन शाह के पास आ कर कहता है कि साहेब हमें माफ कर दो, हमें आप से माफी मांग कर प्रायश्चित करना है. यह कह कर वह हारुन शाह के कदमों में गिर जाता है.

हारुन शाह भारी भीड़ का अभिवादन कर रहा होता है तभी छोटे बाबू हारुन शाह को चाकू से गोद देता है. हारुन शाह जमीन पर गिर जाता है, मगर छोटे बाबू उस के गिरने पर बेहोश होने पर भी नहीं थमता. वह मृत पड़े हारुन शाह को पागलों की तरह चाकुओं से गोदता रहता है, जिस से हारुन शाह मर जाता है.

हिना देखती है कि पुलिस उस के पति हारुन शाह की मृत देह को स्ट्रेचर पर ला रही है. यह सब मंजर आश्चर्यचकित हो कर मुख्यमंत्री मुकुल, लखन राय और पुलिस डीजीपी राघव देख रहे हैं. अभिल्या देवी किताब को अपनी छाती पर रख कर आंसू बहा रही है. लोग छोटे बाबू को मार रहे हैं.

अगले दृश्य में हिना शहाब और उस का बेटा सलाम हारुन शाह की कब्र पर दुुआ करते और फूल चढ़ाते दिखाई दे रहे हैं और फिर आखिरी एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

यदि छठेें और आखिरी एपिसोड का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो एक बात सामने आती है कि भले ही एपिसोड में लेखक और निर्देशक ने शाह अली बेग यानी शहाबुद्दीन का अंत कोरोना पीडि़त के रूप में नहीं बल्कि छोटे बाबू द्वारा उस की चाकुओं से हत्या दिखाई हो मगर यह बात गले नहीं उतर पाती है.

इस एपिसोड में हारुन शाह को विकास पुरुष बताया गया है, जिस में एक पुलिस वाला उसे बताता है कि कैसे उस की बेटियां और बेटा उसी के खोले कालेज में पढ़ पाई थी, वो अपनी बीवी को बताता है कि कैसे उस ने संसद में महिला शिक्षा पर जोरदार भाषण दिया. फिर समझाता है कि इन मुद्दों पर बोलने के लिए उसे संसद में पहुंचना होगा और वहां तक जाने के लिए ये सब करना पड़ता है. अभिनय की दृष्टि से सभी कलाकारों का अभिनय औसत दर्जे का रहा है.

यदि पूरी वेब सीरीज का विश्लेषण किया जाए तो यह बात सामने आती है कि आजकल वेब सीरीज बनाने वालों को विषय और कहानी ही नहीं मिल पा रही है. आज हमारे समाज और देश में ऐसे कई विषय मौजूद भी हैं, जिन के ऊपर अच्छीअच्छी वेब सीरीज बनाई जा सकती हैं.

विनीत कुमार सिंह

विनीत कुमार सिंह का जन्म 15 जनवरी, 1980 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था. बचपन में वह अव्वल दरजे का छात्र रहा है. विनीत सीपीएमटी टौपर है और वह आयुर्वेद में एक एमडी (डाक्टर औफ मेडिसन) के साथ एक लाइसेंस प्राप्त चिकित्सक है. ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रखने से पहले विनीत राज्य स्तरीय बास्केट बाल के खिलाड़ी भी रह चुके हैं.

विनीत मुंबई सुपरस्टार टैलेंट हंट में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इस शो को जीतने के बाद विनीत की मुलाकात ऐक्टर-निर्देशक महेश मांजरेकर से हुई. महेश मांजरेकर ने विनीत को फिल्म ‘पिताह’ में रोल औफर किया. हालांकि यह फिल्म फ्लौप साबित हुई. इस के बाद विनीत ने महेश मांजरेकर के साथ फिल्म ‘विरुद्ध’ और ‘देह’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करना शुरू कर दिया.

वर्ष 2007 में निर्देशन छोड़ कर एक बार फिर विनीत ने अपनी ऐक्टिंग पर ध्यान देना शुरू कर दिया और भोजपुरी टीवी शो करने लगे. उस ने एक मराठी फिल्म ‘सिटी औफ गोल्ड’ में भी काम किया.

इस के बाद उस ने निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में भी काम किया. उस ने ‘बौंबे टाकीज’ और ‘अग्ली’ फिल्म में भी काम किया. वर्ष 2016 में विनीत फिल्म ‘बौलीवुड डायरीज’ में राइमा सेन के अपोजिट नजर आया था.

वर्ष 2018 में विनीत बतौर लीड ऐक्टर ‘मुक्काबाज’ में दिखाई दिया. इस फिल्म में उस ने एक बौक्सर की भूमिका निभाई थी. विनीत को सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दास देव’ के लिए भी काफी सराहा गया. विनीत कुमार सिंह ने 29 नवंबर, 2021 को लंबे समय से उस की प्रेमिका रही रुचिरा घोरमारे से विवाह किया है.

आकांक्षा सिंह

अभिनेत्री आकांक्षा सिंह का जन्म 30 जुलाई, 1990 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. इस के पिता का नाम ज्ञान प्रकाश सिंह और माताजी का नाम रेणु सेठ है. इन के भाई का नाम हर्षवर्धन सिंह, बहन का नाम चयनिका सिंह और इन के पति का नाम कुणाल सैनी है. आकांक्षा सिंह ने अभिनय को अपने करिअर के रूप में चुना, क्योंकि उस की मां भी एक थिएटर कलाकार थीं.

आकांक्षा सिंह ने 7 दिसंबर, 2014 को जयपुर में कुणाल सैनी के साथ राजस्थानी रीतिरिवाजों के अनुसार करीबी दोस्तों और परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में शादी की थी. कुणाल सैनी एक मार्केटिंग प्रोफेशनल है.

आकांक्षा सिंह ने वर्ष 2012 में टेलीविजन शो ‘ना बोले तुम ना मैं ने कुछ कहा’ से अपने अभिनय की शुरुआत की. उस ने कुणाल करण कपूर से सामने 2 बच्चों वाली विधवा मेघा व्यास भटनागर की भूमिका निभाई. उन्होंने अपने प्रदर्शन के लिए फ्रैश न्यू फेस फीमेल के लिए इंडियन टेली अवार्ड न्यू फेस जीता. आकांक्षा सिंह ने वर्ष 2017 में हिंदी फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुलहनिया’ से अपने करिअर की शुरुआत की.

सन 2017 में ही आकांक्षा सिंह ने सुमंत के साथ मल्ली रावा के साथ अपना तेलुगू डेब्यू किया. वर्ष 2018 में आकांक्षा नागार्जुन के साथ अपनी दूसरी तेलुगू फिल्म ‘देवदास’ में नजर आई थी.

सन 2018 में ही वह 2 लघु फिल्मों ‘मेथी के लड्डू’, और ‘कैद’ में भी दिखाई दी थी. आकांक्षा सिंह ने 2019 में फिल्म ‘पैलवान’ के साथ ही अभिनेता सुदीप के साथ कन्नड़ फिल्म में शुरुआत की. यह फिल्म 5 भाषाओं में रिलीज की गई थी और बौक्स औफिस पर औसत हिट रही थी. वर्ष 2021 में आकांक्षा सिंह ने तेलुगू वेब सीरीज ‘परंपरा’ से अपना वेब डेब्यू किया. इस का प्रीमियर डिज्नी प्लस हौटस्टार पर हुआ.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स

डेंजरस : बिपाशा और करण सिंह ग्रोवर का डिजिटल डेब्यू

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 5

रा अधिकारी से भी ली मदद

नफीसा कमरे से निकल रही थी, तभी पुलिस आ जाती है. उनेजा का आदमी पुलिस पर गोली चला देता है. पुलिस उसे मार देती है. उनेजा नफीसा को जाने के लिए कह कर पुलिस पर फायरिंग करने लगती है. पर तभी तारा आ जाती है और उनेजा को गोली मार देती है.

कबीर नफीसा के पीछे भागता है. पर नफीसा अस्पताल के कमरे में छिप गई थी, जहां वह टीवी पर देखती है कि जरार के मातापिता ने उसे बहुत पहले छोड़ दिया था. वह सही में आतंकवादी है.

इस के बाद वह कबीर से मिलती है और बता देती है कि जरार उस का ढाका में इंतजार कर रहा है. वह सब कुछ कर सकती है, पर अपने देश को धोखा नहीं दे सकती. वह जरार को पकडऩे के लिए कहती है.

इस के लिए वह पुलिस की मदद करने को भी तैयार हो जाती है. पर तारा कहती है कि यह संभव नहीं है, क्योंकि इस के लिए सीमा पार औपरेशन करना होगा और इस के लिए सेना और रा का अप्रूवल चाहिए.

कबीर तारा को रा से अप्रूवल लेने के लिए मना लेता है. तारा रा के अधिकारी से बात करती है. अधिकारी कहता है कि इस के लिए मिनिस्ट्री से बात करनी होगी. जरार बारबार नफीसा को फोन कर रहा होता है. कबीर रफीक के आदमी से कहलवा देता है कि नफीसा आ रही है. नफीसा की जरार से भी बात करवा दी जाती है, जिस से उसे शक न हो.

पुलिस कमिश्नर जयदीप मिनिस्टर से इस औपरेशन के लिए बात करते हैं. होम मिनिस्टर हां तो कर देता है, पर शर्त रखता है कि अगर कबीर वहां पकड़ा जाता है तो वह उसे जानने से मना कर देंगे, क्योंकि ऐसे में उन्हें दूसरे देशों को जवाब देना पड़ता है.

जयदीप कबीर से कहता है कि उसे कैसे भी वहां से जिंदा वापस आना होगा, क्योंकि वह उस जैसे जिंदादिल अफसर को खोना नहीं चाहते. इस के बाद तारा कबीर को बांग्लादेश में अपने रा अफसर जगताप के बारे में बताती है, जो विक्रम और तारा के साथ ट्रेनिंग में था. जगताप ही वहां कबीर की मदद करने वाला था.

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सातवां एपिसोड

इस आखिरी एपिसोड में नफीसा जरार से कहती है कि वह बहुत जल्द ढाका के रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली है. कबीर और राणा भी बांग्लादेश के लिए निकल जाते हैं, जहां जगताप से मिलेंगे. तारा जगताप को फोन कर के बताती है कि ट्रेन ढाका स्टेशन पर पहुंचने वाली है, इसीलिए वह कबीर और राणा को ले कर जल्दी वहां पहुंचे.

तीनों एक कार से ढाका रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो जाते हैं. जरार रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाता है. ट्रेन आने पर वह नफीसा को ढूंढने लगता है, पर नफीसा उसे ट्रेन में कहीं दिखाई नहीं देती. तभी जरार की नजर कबीर पर पड़ती है, जो उसे ही देख रहा था. पीछे से जगताप और राणा भी आ जाते हैं.

दोनों एकदूसरे पर पिस्तौल तान देते हैं और फिर रेलवे स्टेशन पर शूटआउट शुरू हो जाता है. तभी रफीक को पता चल जाता है कि नफीसा पुलिस से मिल चुकी है और वह यहां नहीं आ रही है. यह बात जरार को बताई जाती है तो वह जान बचा कर वहां से भागता है. इस के बाद बांग्लादेश की सेना आ जाती है. राणा और जगताप भी वहां से भाग लेते हैं.

जरार अपनी गाड़ी से भाग रहा होता है तो कबीर किसी की गाड़ी ले कर उस का पीछा करता है और एक जगह वह जरार की गाड़ी को उड़ा देता है. दोनों के बीच खूब फाइटिंग होती है.

कबीर जरार को खूब मारता है. वह उसे जान से मार देता, उस के पहले ही जगताप और राणा आ जाते हैं और उसे पकड़ लेते हैं. फिर जरार को पकड़ कर अपने साथ ले जाते हैं.

दूसरी ओर यह बात बांग्लादेश की मिनिस्ट्री तक पहुंच जाती है, जहां एक मिनिस्टर कबीर, जगताप और राणा को पकडऩे का आदेश दे देती है. कबीर, जगताप और राणा जरार को ले कर एक सुरक्षित जगह पहुंच जाते हैं.

जगताप अपने अधिकारी से बात करता है तो वह कहता है कि वे किसी भी तरह जरार को ले कर सीमा पार कर लें अन्यथा किसी भी समय बांग्लादेश आर्मी उन तक पहुंच सकती है.

जरार कबीर से कहता है कि वह भी एक मुसलिम है, उसे तो उस का साथ देना चाहिए. तब कबीर कहता है कि शायद उस ने अच्छे से कुरान नहीं पढ़ी, वरना वह इतने मासूमों की जान नहीं लेता. एक सच्चा इंसान वही है, जो देश की सेवा करे न कि मासूम लोगों को मारे. तुम लोगों को तो रफीक जैसे लोग भड़का देते हैं और तुम निकल जाते हो शहादत देने.

इस के आगे जगताप अपने साथियों के साथ जरार को एक गाड़ी में ले कर सीमा की ओर चलता है, तभी बांग्लादेश आर्मी उन का पीछा करती है. जगताप ने अपने अधिकारी से बात कर ली थी कि वे गेट नंबर 5 से निकलेंगे, इसलिए इंडियन आर्मी से कह दें कि वह गेट खुला रखेगी. उन्हें केवल बांग्लादेश की सीमा के गेट को ही तोडऩा होगा.

जगताप जैसेतैसे कर के सीमा पर पहुंच जाता है. बांग्लादेश की सीमा पर वहां की आर्मी उस पर फायरिंग करती है, जबकि जगताप साथियों और जरार सहित भारत की सीमा में आ जाता है.

कबीर तारा से मिल कर बहुत खुश होता है. इस के बाद नफीसा की बात जरार से कराई जाती है. नफीसा मुसलिम धर्म के बारे में बहुत सारी बातें कर के जरार से कहती है कि अगर तुम्हें सच्चा मुसलमान देखना है तो कबीर को देखो, जो अपने देश के लिए जान भी दे सकता है. तुम एक आतंकवादी हो, जिस ने अपने देश को धोखा दिया है. इसलिए वह उसे कभी माफ नहीं करेगी. वह यह भी नहीं चाहेगी कि उस का जो बच्चा पैदा होगा, उसे लोग एक आतंकवादी की औलाद कहें.

यहीं पर जगताप के पास फोन आता है कि रफीक को काठमांडू में देखा गया है. जगताप कहता है कि जंग की तो अभी शुरुआत हुई है. जंग का अंत तो अभी बाकी है. यहीं पर यह वेब सीरीज खत्म होती है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा

16 जनवरी, 1985 को एक पंजाबी हिंदू परिवार में पैदा हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा के पिता का नाम सुनील मल्होत्रा तो मां का नाम रीमा मल्होत्रा है. उस का एक भाई भी है हर्ष. उस का परिवार दिल्ली में रहता है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा की शिक्षा दिल्ली के अलकनंदा स्थित डौन बोस्को स्कूल और नेवल पब्लिक स्कूल में हुई. इस के बाद उस ने दिल्ली के शहीद भगत सिंह कालेज से ग्रैजुएशन किया.

उस ने 18 साल की उम्र में अपने करिअर की शुरुआत मौडलिंग से की थी. इस में वह सफल भी रहा. उसे मौडलिंग पसंद नहीं आई तो 4 साल बाद उस ने इसे छोडऩे का फैसला किया.

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मल्होत्रा ने अपने करिअर की शुरुआत साल 2006 में टीवी धारावाहिक ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान’ से की, जिस में उस ने जयचंद की भूमिका निभाई थी. वह फिल्मों में काम करना चाहता था, इसलिए साल 2010 में फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में करण जौहर के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम किया.

साल 2012 में उस ने करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट आफ ईयर’ में प्रमुख भूमिका के साथ अभिनय की शुरुआत की, जिस के लिए वह बेस्ट मेल डेब्यू के लिए फिल्मफेयर के लिए नामांकित भी हुआ था. इस फिल्म में उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की थी.

एक साल तक स्क्रीन से गायब रहने के बाद साल 2014 में मल्होत्रा परिणीति चोपड़ा के साथ फिल्म ‘हंसी तो फंसी’ में दिखाई दिया. मोहित सूरी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘एक विलेन’ में उस ने एक क्रूर अपराधी की भूमिका की, जो बौक्स औफिस पर सफल रही.

इस के बाद ‘ब्रदर्स’ आई, जिस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. फिल्म ‘कपूर एंड संस’ आई, जिस में फवाद खान और आलिया भट्ट के साथ काम किया. फिल्म भी सफल रही और उस के अभिनय की तारीफ भी खूब हुई.

इस के बाद उस की जितनी भी फिल्में आईं, उन्हें खास सफलता नहीं मिली. कोरोना काल में प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई उस की फिल्म ‘शेरशाह’ सब से ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म रही. इस के लिए उसे फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था.

वैदेही परशुराम

वैदेही परशुराम का जन्म मुंबई में पहली फरवरी, 1992 को हुआ था. वह वहीं पर पलीबढ़ी. उस ने अपनी पढ़ाई मुंबई के इंडियन एजुकेशन सोसायटी के इंग्लिश मीडियम स्कूल से की है. मुंबई का रामनिरंजन आनंदीलाल पोद्दार कालेज औफ कामर्स एंड इकोनौमिक्स उन का जूनियर कालेज था. उस ने अंगरेजी साहित्य सहित अन्य विषयों से ग्रैजुएशन करने के बाद मुंबई के न्यू ला कालेज से एलएलबी किया.

वैदेही एक नृत्यांगना भी है. वह इस्कान, नृत्यांजलि  चिल्ड्रेन क्लब, मराठा मंदिर, शारदा संगीत विद्यालय आदि द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में जीत हासिल कर चुकी है.

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वैदेही को नाचनेगाने का बहुत शौक है. उसे नालंदा नृत्य अनुसंधान केंद्र द्वारा नृत्य निपुण पुरस्कार, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर पुरस्कार आदि जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं.

उस ने अपने करिअर की शुरुआत साल 2010 में मराठी टीवी फिल्म ‘वेद लबी जीवा’ से की थी. साल 2016 में उस ने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘वजीर’ में एक छोटी सी भूमिका भी निभाई थी.

उस के पिता वैभव परशुराम वकील हैं तो मां सुनंदा घर संभालती हैं. उस का एक भाई विक्रांत है. वैदेही अभी अविवाहित है.

वैदेही एक मराठी अभिनेत्री है. उस ने ‘वेद लबी जीवा’, ‘कोंकसस्थ’, ‘वजीर और वृंदावन’, ‘आकाश थोसर’, ‘सत्या मांजरेकर’, ‘संस्कृति बालगुडे’, ‘शुभम किरोडियन’ और ‘मयूरेश पेम’ जैसी मराठी फिल्मों में अभिनय किया है. ‘सिंबा’ और ‘जोंबिवली’ उस की 2 अन्य फिल्में भी हैं.

वैदेही अपनी आकर्षक तसवीरों से फैंस को घायल करती रहती है. अभी वह मराठी फिल्म ‘जग्गु अणि जायुलिएट’ में दिखाई दी थी. उस ने वेब सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ में भी अभिनय किया है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 4

अगले दिन कबीर पुलिस हैडक्वार्टर में राणा से मिलता है, जो उसे बताता है कि इस टास्क फोर्स की लीडर तारा शेट्टी है. कबीर तारा से मिलता है और अपने अंतिम व्यवहार के लिए माफी मांगता है.

आगे जरार अपनी बीवी नफीसा से कहता है कि वह काम के सिलसिले में गोवा जा रहा है. अगले दृश्य में जरार अपने भाई शेखू के साथ गोवा पहुंच जाता है, जहां वह सईद से मिलता है. सईद उसे 2 लड़कों से मिलवाता है, जिन में से एक का नाम इमरान और दूसरे का शोएब होता है. ये दोनों जरार के मिशन में उस की मदद करने वाले थे.

जरार अपने प्लान के बारे में बता कर कहता है कि इमरान और शोएब बम बनाने का सामान लाएंगे, जबकि शेखू एक आदमी से जा कर पैसे ले आएगा, जिस से बम बनाने का सामान खरीदा जाएगा.

प्लान के अनुसार शेखू शोएब और इमरान को पैसे ला कर दे देता है, जिस से इमरान और शोएब बम बनाने के लिए कील वगैरह खरीदने जाते हैं. रास्ते में दोनों एक रेस्टोरेंट से खाना लेते हैं, तभी इमरान एक फूल वाली लड़की के प्यार में पड़ जाता है.

राणा को पता चलता है कि जरार को गोवा में देखा गया है. अगले दिन कबीर और तारा की टीम गोवा पहुंच जाती है, जहां वे गोल्डी के अड्डे के बाहर खड़े थे. यह टीम मारपीट कर के गोल्डी को पकड़ लेती है. तब गोल्डी बताता है कि उस ने शेखू को 10 लाख रुपए दिए हैं, लेकिन वे नकली नोट थे. इस से पता चलता है कि जरार गोवा में बड़ा बम धमाका करने वाला था. गोल्डी का रोल अभिनेता सुनील रोड्रिक्स ने किया है.

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पांचवां एपिसोड

पांचवें एपिसोड की शुरुआत में जरार अपनी पत्नी नफीसा से फोन पर बात कर के जल्दी वापस आने के लिए कहता है. इस के बाद बम बना कर बैग में रख कर वह प्लान के अनुसार जहां ब्लास्ट करना था, वहां रखने के लिए तैयार होता है.

चलते समय वह अपने भाई शेखू से कहता है कि वह उसे रेलवे स्टेशन पर मिलेगा. अगर वह उसे नहीं मिला तो समझ लेना कि जरार मारा गया या पुलिस ने उसे पकड़ लिया. वह अकेला ही वहां से चला जाए. जरार बम वाला बैग ले कर चल पड़ता है.

उधर हार्डवेयर की दुकान वाला जब पैसे बैंक में जमा कराने जाता है तो पता चलता है कि ये रुपए तो नकली हैं. इस के बाद तारा उस हार्डवेयर की दुकान पर पहुंच जाती है.

पूछताछ में वहां जरार के लड़कों के बारे में पता चलता है. तारा सीसीटीवी से उन लड़कों के फोटो निकाल कर कबीर के पास भेज देती है. कबीर उस रेस्टोरेंट वाले के पास जाता है, क्योंकि वहां से भी नकली नोट मिलने की खबर मिली थी. कबीर उसे लड़कों के फोटो दिखाता है तो उस ने बताया कि ये लड़के उस के यहां आए थे. कबीर ने उस से कहा कि अगर ये लड़के फिर आएं तो उसे इन्फार्म जरूर करे.

आगे तारा क्लू के लिए एक दूसरी हार्डवेयर की दुकान पर जाती है. पर वहां सीसीटीवी कैमरा नहीं था, इसलिए वह सामने के कैफे में जाती है कि शायद वहां कोई सीसीटीवी हो. आगे जरार के लड़के सईद को गाड़ी में छोड़ कर उसी रेस्टोरेंट में खाना लेने जाते हैं. तब रेस्टोरेंट वाला फोन से इस की सूचना कबीर को दे देता है.

तारा कैफे में सीसीटीवी देखने जा रही थी, तभी वहां जरार दिखाई देता है, जो एक मेज के सामने बैठा था. उस ने अपना बम वाला बैग चुपके से टेबल के नीचे रख दिया था. तभी कबीर राणा को फोन करता है कि जरार के लड़के मिल गए हैं.

राणा तारा को कबीर की बात बता कर वहां से निकलता है. उसी के बाद जरार भी अपना बैग रेस्टोरेंट में छोड़ कर चला जाता है.

आगे शेखू जैसे ही एक जगह पर बम रख कर चलता है, एक पुलिस वाला उस की फोटो से उसे पहचान लेता है. तभी तारा और राणा वहां पहुंच जाते हैं. राणा बम का बैग उठा कर समुद्र में फेंक देता है. शेखू पुलिस वाले से खुद को छुड़ा कर भागता है तो तारा और राणा उस का पीछा करते हैं.

दूसरी ओर कबीर रेस्टोरेंट पहुंचता है तो सईद उसे पहचान लेता है और उस पर गोली चला कर लड़कों से भागने को कहता है. कबीर सईद को गोली मार देता है. लड़के भागते हैं तो कबीर उन का पीछा कर के पकड़ लेता है.

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मांबाप ने भी नहीं ली बच्चों की लाशें

दूसरी ओर जरार का कैफे में रखा बम फट जाता है, जिस से बहुत लोग मारे जाते हैं. शेखू पुलिस से बचने के लिए भागता है तो रोड पर एक गाड़ी उसे टक्कर मार देती है और उस की तुरंत मौत हो जाती है.

आगे जरार ट्रेन में अपने भाई का इंतजार करता है. पर वह नहीं आता. उनेजा आ कर बताती है कि उस का भाई मारा गया. जरार रोने लगता है. वह ट्रेन से चला जाता है.

कबीर उन लड़कों से पूछताछ करता है. पूछताछ में पता चला कि वे सईद के पास काम मांगने आए थे, सईद ने उन्हें गलत काम पर लगा दिया था. वे जरार और उस के भाई की सारी सच्चाई बता देते हैं.

पुलिस नफीसा की अम्मी को पकड़ कर थाने ले आती है. यहां आगे दिखाया जाता है कि कानपुर में अंसारी नाम के एक आदमी को टीवी पर न्यूज देख कर पता चलता है कि शेखू नाम का आतंकी मारा गया है. यह देख कर वह रोने लगता है. फिर वह पुलिस को फोन कर के बताता है कि गोवा में जो आतंकी मारा गया है, वह उन का बेटा है.

इस के बाद 15 साल पहले का सीन दिखाया जाता है, जिस में जरार और शेखू अपने चाचा के साथ फिल्म देखने गए थे. तब उस थिएटर के सामने दंगा हो जाता है. अंसारी अपने भाई और बच्चों को गाड़ी में बैठा कर घर ले आता है.

जरार के चाचा अपने लेबर और फैक्ट्री के कागज तथा पैसे बचा कर लाने फैक्ट्री जाते हैं. थोड़ी देर बाद एक आदमी अंसारी को बताता है कि फैक्ट्री में आग लगा दी गई है. अंसारी फैक्ट्री की ओर भागता है. जरार भी पीछेपीछे जाता है, जहां वह देखता है कि उस के चाचा मार दिए गए हैं. यह खबर सुन कर जरार टूट जाता है.

इस के बाद जरार की मुलाकात रफीक से होती है, जो उसे भारत के खिलाफ भड़काता है. आगे दिखाया जाता है कि शेखू के मातापिता शेखू की लाश देखने गए हैं. पुलिस जब उन से कहती है कि औपचारिक काररवाई के बाद लाश उन्हें सौंप दी जाएगी तो जरार की मां लाश लेने से मना करते हुए कहती है कि जरार और शेखू उस के लिए उसी दिन मर गए थे, जिस दिन वे उसे छोड़ कर गए थे.

इस के बाद पुलिस नफीसा की मां को नफीसा और जरार का फोटो दिखा कर पूछती है कि ये कहां हैं? तब नफीसा की मां बताती है कि ये तो दरभंगा में रहते हैं.

छठा एपिसोड

छठवें एपिसोड की शुरुआत में कबीर जरार के घर जा कर नफीसा से पूछताछ करता है कि जरार कहां है? नफीसा कहती है कि वह किसी जरार को नहीं जानती. उस के पति का नाम हैदर है, जिस का इत्र का कारोबार है.

इस पर कबीर नफीसा को बताता है कि उस का पति एक आतंकवादी है, जिस का नाम जरार है. उस ने भारत में बम ब्लास्ट कर के न जाने कितने मासूमों की जान ली है. फिर कबीर नफीसा की बात उस की मां से करवाता है. जब नफीसा को पता चलता है कि जरार और उस के पिता आतंकवादी हैं तो वह बेहोश हो कर गिर जाती है.

तभी सुंदर वन का दृश्य दिखाया जाता है, जहां सलामत नाम का आदमी जरार को सीमा पार कराने की बात कहता है यानी जरार देश छोड़ कर भाग रहा था. सलामत का रोल हर्ष शर्मा ने किया है.

सलामत जरार को सुरंग के माध्यम से बांग्लादेश पहुंचा देता है, जहां रफीक मिल कर उसे गले लगा लेता है और साथ मिल कर काम करने को कहता है. पर जरार कहता है कि वह नफीसा के बिना कहीं नहीं जाएगा. पहले नफीसा बांग्लादेश आएगी, उस के बाद वह आगे काम करेगा.

आगे दरभंगा के अस्पताल में नफीसा को भरती कराया जाता है, जहां पता चलता है कि नफीसा गर्भवती है. इस के बाद उनेजा नर्स बन कर अपने एक आदमी को रोगी बना कर अस्पताल में नफीसा से मिलती है और जरार से उस की बात कराती है.

इस बातचीत में जरार नफीसा को बांग्लादेश आने के लिए राजी कर लेता है. उनेजा नफीसा को बुरका पहनने के लिए देते हुए कहती है कि अस्पताल के पीछे एक लाल रंग की कार खड़ी है. वह किसी तरह कार तक पहुंच जाए. उस के बाद वह कार उसे कोलकाता पहुंचा देगी, जहां से उसे बांग्लादेश भेज दिया जाएगा.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 3

तीसरा एपिसोड

एपिसोड की शुरुआत में एक मुसलिम औरत अपनी बच्ची का फोटो दिखा कर पूछ रही होती है कि किसी ने इस बच्ची को देखा है क्या? एक आदमी बताता है कि ऊपर कुछ लोग रहते हैं उन से जा कर पूछो, शायद उन्हें पता हो. तब वह औरत ऊपर जा कर पूछती है और चली जाती है.

वह औरत पुलिस वाली थी, जो कबीर और विक्रम से मिली हुई थी. वह उन्हें जरार के लोगों के बारे में बता देती है. तब विक्रम और कबीर अपनी टीम के साथ उन लोगों को पकडऩे के लिए वहां जाते हैं, तभी जरार भी अपने लोगों से मिलने वहां आता है.

जब उस के साथी उसे बताते हैं कि एक औरत अपनी बच्ची के बारे मे पूछने आई थी. जरार को शक होता है और वह खिड़की से बाहर झांकता है तो उसे पुलिस दिखाई देती है. वह समझ गया कि पुलिस ने उसे घेर लिया है.

आगे मकान का गेट खटखटाया जाता है. दरवाजा खोल कर जरार के साथी गोली चला देते हैं, जिस में एक पुलिस वाला मारा जाता है. जरार खिड़की का शीशा तोड़ कर बाहर खड़े पुलिस वालों पर गोली चलाने लगता है. विक्रम मकान के अंदर आतंकियों को मारने लगता है.

इस तरह पुलिस टीम आतंकियों पर हावी हो जाती है. तभी जरार का एक साथी उसे वहां से भागने को कहता है, क्योंकि मकसद पूरा करने के लिए उस का जिंदा रहना जरूरी था. जरार चुपके से भागता है. पुलिस वाले जरार के सभी साथियों को मार देते हैं.

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आतंकी की गोली का निशाना बन जाता है पुलिस अधिकारी

विक्रम जरार का पीछा करता है. थोड़ी दूर जा कर एक मकान में दोनों में मारपीट होती है. दूसरी ओर कबीर शादाब को पकड़ लेता है. विक्रम जरार को खूब मारता है. इस के बाद वह अपनी पिस्तौल उठाने जाता है, तभी जरार एक बच्चे को देख कर उस का गला पकड़ लेता है.

विक्रम को अपनी पिस्तौल जरार की ओर फेंकनी पड़ती है, वरना जरार उस बच्चे को मार देता. मौका देख कर जरार विक्रम की पिस्तौल उठा कर उसे गोली मार देता है. गोली की आवाज सुन कर कबीर विक्रम के पास पहुंचता है, तब तक जरार वहां से भाग चुका था.

कबीर उसे ढ़ूंढ़ता हुआ छत पर पहुंचता है. दोनों के बीच गोलीबारी शुरू हो जाती है. जरार भागता हुआ एक कारखाने में पहुंचता है, जहां जरार एक गैस सिलेंडर को ब्लास्ट कर के अपने भाई शेखू के साथ बाइक से भाग जाता है और कबीर देखता रह जाता है.

आगे कबीर शादाब के पास पहुंचता है और गुस्से में उसे मारने लगता है, क्योंकि उसी की वजह से एक पुलिस अधिकारी को गोली लगी थी. तब राणा उसे रोकता है. उसी समय तारा वहां पहुंचती है और उस की कबीर से जोरदार बहस होती है. क्योंकि उसे बताए बगैर ही वे लोग आतंकियों को पकडऩे चले आए थे.

शादाब से पुलिस को सभी आतंकियों के बारे में पता चल जाता है. यहीं पर एक पुलिस वाला कबीर से आ कर बताता है कि विक्रम सर अब इस दुनिया में नहीं रहे. कबीर और पुलिस कमिश्नर जयदीप अस्पताल पहुंचते हैं, जहां विक्रम की पत्नी श्रुति लाश के पास बैठी रो रही थी.

कबीर यह सब देख कर टूट जाता है, क्योंकि विक्रम उस का काफी करीबी था और वह उसे अपना परिवार मानता था.

दूसरी ओर सईद के घर पर टीवी पर समाचार चल रहा था, जिस में दिखाया जा रहा था कि 3 आतंकवादियों को मार दिया गया है और एक आतंकवादी को पकड़ लिया गया है. नफीसा के पिता थोड़ी चिंता में पड़ जाते हैं कि जरार को तो कुछ नहीं हो गया.

आगे जरार अपने भाई शेखू के साथ ट्रेन से दिल्ली से बाहर जा रहा था. तभी ट्रेन में ही उनैजा नाम की महिला उस के लीडर रफीक से उस की बात कराती है, जो जरार और शेखू को छिप जाने के लिए कहता है. जरार उनैजा से पैसे ले कर बिहार में अंडरग्राउंड हो जाता है. उनैजा की भूमिका श्रुति पंवार ने की है.

आगे मंत्रीजी कमिश्नर जयदीप को बुला कर कहते हैं कि जो कुछ भी हुआ है, ठीक नहीं हुआ है. जयदीप कबीर को बुला कर कहते हैं कि उस का डिपार्टमेंट बदल दिया गया है. फिर कुछ दिनों बाद का सीन दिखाया जाता है कि जरार नफीसा को फोन करता है.

चौथा एपिसोड

एपिसोड के शुरुआत में कुछ दिनों पहले का सीन दिखाया जाता है, जिस में विक्रम और कबीर अपने परिवार के साथ पार्क में इंजौय कर रहे थे. इस के बाद दिखाया जाता है कि पति की मौत के बाद श्रुति का रोरो कर बुरा हाल है. कबीर उसे सांत्वना देता है कि अब उसे इसी तरह जीना है.

आगे एक साल पुराना सीन दिखाया जाता है. यहां एक बार फिर जरार दिखाई देता है, जब वह टूरिस्ट बन कर जयपुर गया था. वह जयपुर में काफी जगहों पर घूमता है.

उस का लीडर रफीक उस से संकेत में पूछता है कि ब्लास्ट की तैयारी हो गई क्या? क्योंकि आजकल पुलिस कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. जरार आश्वासन देता है कि वह चिंता न करे, इस बार भी मिशन कामयाब होगा.

इस के बाद रफीक जरार से पूछता है कि उस की सईद की बेटी नफीसा से बात होती है क्या? जरार मना करता है तो वह कहता है कि लड़कियों से दूर रहना ही ठीक है, क्योंकि लड़कियां लक्ष्य से भटकाती हैं और अकसर पकड़े जाने का डर रहता है.

इस के बाद जरार नफीसा से फोन पर बात करता है यानी वह नफीसा से प्यार करता था और वह यह नहीं चाहता था कि उस के लीडर को उस के प्यार का पता चले. इस के बाद वह अपनी घड़ी देखता है. उसी समय जयपुर में भी 5 बम ब्लास्ट होते हैं. इस तरह जयपुर में जरार का मिशन कामयाब होता है.

कबीर टीवी पर समाचार देखता है कि जयपुर में 5 बम ब्लास्ट हुए हैं. उसे लगता है कि यह काम जरार का ही हो सकता है. वह जयपुर पहुंच जाता है और वहां एक पुलिस अधिकारी से मिल कर वहां के बम ब्लास्ट की इन्वैस्टिगेशन करता है, लेकिन कबीर को इस सब की परमिशन नहीं थी. वह यह काम डिपार्टमेंट की चोरी विक्रम की मौत का बदला लेने के लिए कर रहा था.

इस के आगे दिखाया जाता है कि जरार और नफीसा की शादी हो रही थी और दूसरी ओर कबीर जयपुर में हुए बम ब्लास्ट के एवीडेंस कलेक्ट कर रहा था.

आतंकियों ने किया नकली करेंसी का इस्तेमाल

कुछ दिन बाद पुलिस कमिश्नर जयदीप कबीर को फोन कर के कहते हैं कि उन्हें पता है कि वह जयपुर बम ब्लास्ट के बारे में पता कर रहा है. यह सब प्रोटोकोल के खिलाफ है. वह उसे दिल्ली बुला लेते हैं.

कबीर दिल्ली आ कर इन्वैस्टिगेशन की फाइल उन्हें दिखा कर कहता है कि ये सारे ब्लास्ट जरार के ही किए हुए हैं, इसलिए बिहार जा कर उसे पकडऩा होगा.

आगे कुछ महीने पहले बिहार के दरभंगा का सीन दिखाया जाता है, जहां जरार की बात रफीक से होती है. रफीक को जरार की शादी का पता चल गया था, जिस के लिए वह उसे बधाई देता है और जरार को गोवा में बम ब्लास्ट के मिशन के बारे बताता है.

उधर पुलिस कमिश्नर जयदीप बताते हैं कि मिनिस्ट्री एक टास्क फोर्स बना रही है, जिस के लिए उन्होंने कबीर का नाम दिया है. यह सुन कर कबीर थैंक्यू कह कर कमिश्नर को गले लगा लेता है.