रंगबाज सीजन 2 Review : गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की कहानी – भाग 2

एपिसोड- 3

एपिसोड नंबर 3 का नाम धंधे का गणित दिया गया है. इस में लेखक और निर्देशक ने एक नाबालिग बच्चे के हाथ में जो राजा फोगाट का बेटा है, उसे पिस्तौल थमाने वाला बेतुका सीन दिखाया है, जो अनुचित दृश्य है.

इस के अलावा राजा फोगाट अपने बेटे को और पत्नी को गंदीगंदी गालियां देता और फिर नाबालिग बच्चे से पिस्तौल को चलाता हुआ दिखाया गया है, जो कहीं से कहीं तक भी दिखाया जाना बिलकुल भी जरूरी नहीं था.

अगले दृश्य में अमरपाल, जयराम गोदारा और बलराम राठी एकएक कर के राजा फोगट के आदमियों को मारते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस के बाद वे तीनों राजा फोगट के उस आदमी को भी जान से मार डालते हैं, जिसे राजा फोगट ने अमरपाल को मारने के लिए कहा था.

अमरपाल फिर से जेल चला जाता है, जहां से पैरोल पर वह अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए आता है. सरकार की ओर से अमरपाल को अनुप्रिया चौधरी से मिलने को कहा जाता है कि यह आप की मदद करना चाहती है, बदले में तुम्हें उसे संरक्षण देना होगा. अनुप्रिया की भूमिका गुल पनाग ने निभाई है.

उस के बाद अनुप्रिया चौधरी (गुल पनाग) की एंट्री होती है. वह अमरपाल से कहती है कि आप मुझे मेरे कर्जदारों से बचा लो, बदले में मैं बाहर रह कर भी आप के वे सब काम करूंगी जो आप के आदमी कभी भी नहीं कर सकते. उस के बाद अमरपाल को वापस जेल ले जाते हुए दिखाया गया है और अमरपाल सिंह की मां को अपनी बहू रुक्मिणी से गले लग कर रोते हुए दिखाया गया है और फिर एपिसोड समाप्त हो जाता है.

gul-panag-rangbaaz

इस एपिसोड में एक दृश्य से दूसरे दृश्य में जाने की उत्सुकता जो दर्शकों के मन में रहती है, वह लगातार भटकती हुई दिखाई दे रही है. कहीं का सीन कहीं जोड़ कर कहानी को अनेक बार भ्रमित सा किया गया है.

एपिसोड- 4

वेब सीरीज के चौथे एपिसोड का नाम ओवर ऐंड आउट रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में बलराम राठी की मृत्यु पर शोकसभा हो रही है, तभी वहां पर आ कर राजा फोगाट अमरपाल सिंह को गाली देते हुए दिखता है. तभी वहां पर अमरपाल सिंह की पत्नी रुक्मिणी आ कर बलराम राठी की पत्नी को सांत्वना देती है और राजा फोगट की गाली शालीनता के साथ ईंट के जवाब में पत्थर ठोक कर कहती है तो वहां से राजा फोगट गुस्से से चला जाता है.

अगले दृश्य में अमरपाल सिंह जेल में होता है, जेल का संतरी अखबार उस के कमरे के दरवाजे के बाहर छोड़ कर जाता है. अमरपाल अखबार के पहले पृष्ठ पर अपनी फोटो और खबर देख कर अखबार को फेंक देता है.

यहां पर लेखक और निर्देशक से एक बड़ी चूक हुई है कि वे इस बात को दर्शकों के पास ले कर आने में कामयाब नहीं हो सके कि आखिर वह खबर क्या और कौन सी थी, जिसे देखते ही अमरपाल सिंह ने अखबार फेंक डाला था.

उस के अगले दृश्य में अनुप्रिया चौधरी (गुल पनाग) की कहानी सामने आती है कि कितने कम समय में उस ने शेयर मार्केट में बुलंदियां हासिल की थीं. एमबीए करने के बाद वह शेयर मार्केट में कैसे छा गई थी और फिर उस का ग्राफ कैसे एकदम नीचे गिर गया था.

फिर अमरपाल का शराब के धंधे का पैसा हवाला में दिया जाता है. इस के अलावा वह बेशुमार दौलत अमरपाल सिंह अपने एक साथी अजय सिंह के माध्यम से अनुप्रिया चौधरी को शेयर मार्केट में लगाने दे देता था.

अनुप्रिया को इस बात का पता नहीं चलता कि इस में अमरपाल का पैसा भी लगा है. इस बीच अनुप्रिया ऊंची उड़ान भरना चाहती थी, लेकिन शेयर मार्केट में 5 लाख करोड़ रुपए डूब गए. अब जिन लोगों ने पैसे लगाए थे, वे आए दिन अनुप्रिया चौधरी को मारने की धमकी देने लगे थे.

अगले दृश्य में एसपी संजय सिंह मीणा (जीशान अय्यूब) और राणा फोगाट की मुलाकात को दिखाया गया है. यहां पर राजा फोगट के मुंह से धाराप्रवाह गालियां दी गई हैं, जिसे दूसरे तरीके से दिखाया जा सकता था. राजा फोगट कहता है कि मैं खुद अमरपाल को मारूंगा, क्योंकि उस को मारना आप लोगों और नेताओं के बस की बात नहीं है.

यहीं पर मुख्यमंत्री को गृहमंत्री अहलावत को डांटते दिखाया गया है. उस के बाद गृहमंत्री अहलावत और गैंगस्टर राजा फोगाट की मुलाकात होती है, जिस में एक अपराधी (राजा फोगट) एक गृहमंत्री से ऐसे बात करता है, जैसे गृहमंत्री उस का एक गुलाम हो. एक गैंगस्टर प्रदेश के मुख्यमंत्री को सरेआम धमकी देता है.

अगले सीन में करण चड्ढा जो राजा फोगट का खास आदमी है और उस के शराब के काम को देखता है. करण चड्ढा कोकीन और बड़ी उम्र की औरतों का शौकीन है, जो बार में अनुप्रिया चौधरी (गुल पनाग) को देख कर फिदा हो जाता है. फिर अनुप्रिया चौधरी और करण चड्ढा हमबिस्तर होते हैं. अनुप्रिया वहां पर करण चड्ढा की जासूसी करती है.

यहीं पर अमरपाल को नागौर जेल से अजमेर जेल शिफ्ट कराते समय सरकार और पुलिस द्वारा एनकाउंटर का प्रोगाम बनाया जाता है, लेकिन अमरपाल पुलिस वालों को नशे के लड्डू खिला कर वहां से अनुप्रिया चौधरी के साथ फरार हो जाता है. इस फरार होने के पीछे एसपी संजय मीणा का हाथ होता है.

अमरपाल सिंह के फरार होने पर राज्य सरकार की ओर से स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया जाता है, जो अमरपाल सिंह को पकडऩे और मारने के लिए गठित की जाती है. इस का मुखिया सरकार की ओर से एसपी संजय मीणा को बनाया जाता है.

कुल मिला कर यह एपिसोड भी साधारण सा दिखता है, जिस में सभी कलाकारों का अभिनय औसत नजर आता है.

एपिसोड- 5

सीरीज के पांचवें एपिसोड का नाम ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ है. पहले सीन में एसपी संजय मीणा अपने साथियों के साथ अमरपाल को पकडऩे की प्लानिंग करता है. एसपी संजय मीणा फाइलें खोजने लगता है और जयराम गोदारा की क्राइम फाइल देखने लगता है. इस के बाद एपिसोड की कास्टिंग आरंभ हो जाती है.

अगले दृश्य में जयराम गोदारा और अमरपाल बातें करते हैं. उस के बाद वे दोनों विधायक मदन सिंह के पास जाते हैं और मदन सिंह अमरपाल को कुछ बड़ा करने को कहता है. उस के बाद के दृश्य में एक नेता नागौर में जनसभा को संबोधित कर रहा है.

‘शहर लखोट’ रिव्यू : विश्वासघात और धोखे का खौफनाक शहर – भाग 1

कलाकार:  चंदन राय, चंदन राय सान्याल, कुब्रा सैत, मनु ऋषि चड्ढा, प्रियांशु पेन्युली, श्रुति मेनन, मंजरी पुपला, आशीष थपलियाल, ज्ञान प्रकाश, गौरव कोठारी, श्रुति जौली, संजय शिव नारायण आदि.

निर्देशक: नवदीप सिंह

निर्माता: औफरोड फिल्म्स,

संगीतकार: शिवांश जिंदल

छायांकन: विशाल विट्ठल

लेखक: नवदीप सिंह और देविका भगत

प्लेटफार्म: अमेजन प्राइम वीडियो

एपिसोड: 8

अमेजन प्राइम वीडियो पर दिखाई जाने वाली वेब सीरीज ‘शहर लखोट’ (Shehar Lakhot) है तो आपराधिक, लेकिन अब तक आ चुकी वेब सीरीजों से यह थोड़ा हट कर है. इस वेब सीरीज (Web Series)  में वह सब लाने की कोशिश की गई है, जिस की वजह से कभी ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका (Manohar Kahaniyan) देश की नंबर वन पत्रिका थी. लेकिन अपराध कथाओं के साथ दिक्कत यह है कि हर बार वह नया स्वाद मांगती है, जबकि ‘शहर लखोट’ में वही नहीं है.

वेब सीरीज ‘शहर लखोट’ नवदीप सिंह (Navdeep Singh) ने देविका भगत (Devika Bhagat) के साथ मिल कर लिखी है. लेकिन इस में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो पहले नहीं देखा गया है. इस अपराध कथा का मुख्य आधार खनन माफिया है. इस की पटकथा को इस तरह लिखा गया है कि इस में सब कुछ दिखाने की कोशिश की गई है. लेकिन इस में कोई भी ऐसा सीन नहीं है, जिस पर दर्शकों की नजर गड़े या प्रभावित करे या सोचने को मजबूर करे.

सीरीज में पुलिस विभाग को तो माफिया और नेताओं का नौकर बना दिया गया है. यहां तक कि थाने का इंसपेक्टर नेता के लिए एक दूसरे नेता की हत्या तक कर देता है, जो सत्य से एकदम परे लगता है. इतना ही नहीं, बाद में पुलिस इंसपेक्टर भी मार दिया जाता है और पुलिस सब कुछ जानते हुए भी उसे गुमशुदा घोषित करने की कोशिश करती है.

इन बातों से सीरीज नाटक लगती है. जबकि दर्शक सत्य के साथ सस्पेंस भी देखना चाहते हैं. लेकिन इस सीरीज में न सस्पेंस है और न ही सत्य. जिन लोगों ने ‘मनोहर कहानियां’ पढ़ी है, उन्हें पता है कि अपराध कथाएं क्या होती हैं और कैसी कथाएं देखने या पढऩे में अच्छी लगती हैं.

अगर शहर लखोट के लेखकों ने ‘मनोहर कहानियां’ ध्यान से पढ़ी होती तो शायद उन्हें समझ होती कि दर्शक क्या चाहता है. पूरी सीरीज देख लेने के बाद भी पता नहीं चलता कि लेखक कहना या दिखाना क्या चाहते हैं. न पुलिस की भूमिका सशक्त लगती है न माफिया की और न नेता की. सारा कुछ गड्डमड्ड हो गया है.

कहानी का नायक हर जगह पिटता नजर आता है. वह न परिवार के लिए कुछ कर पाता है और न अपने बौस के लिए और न अपने लिए. अंत में निराश हो कर लौट जाता है. नेताओं की भूमिका भी कहीं खास नजर नहीं आती. खनन माफिया आधी हिंदी और आधी अंगरेजी में अटका रहता है. यह भी साफ नहीं हो पाता कि वह करता क्या है और करना क्या चाहता है?

इस में अभिनय करने वाला कोई भी कलाकार दर्शकों को न तो अपने अभिनय से प्रभावित कर पाता है और न ही बोली, भाषा या डायलौग से. सब से दुखद तो यह है कि कहानी में कोई चौंकाने वाला खुलासा नहीं होता, जिस का दर्शकों को इंतजार रहता है. इस सीरीज में सब से बड़ी कमी यह है कि इस के हर किरदार में सिर्फ ऐब ही ऐब है.

कोई भी ऐसा कलाकार नहीं है, जिस में कोई अच्छाई नजर आती हो. यह भी पता नहीं चलता कि हीरो कौन है और खलनायक कौन. ऐसी वेब सीरीज को देखना समय नष्ट करना है. हमारे खयाल से तो इसे न ही देखा जाए तो अच्छा रहेगा.

एपीसोड-1

पहले एपीसोड की शुरुआत शहर लखोट से होती है, जहां शहर के बाहर खेल रहे बच्चों को एक लाश दिखाई देती है. इस के बाद गुरुग्राम के एक गैंगस्टर का औफिस दिखाया जाता है, जहां देव यानी देवेंद्र सिंह तोमर उस के लिए काम करता है. देव की भूमिका प्रियांशु पिनयुल ने की है. वह अपनी भूमिका में न हीरो नजर आता है और न खलनायक. जहां भी जाता है, केवल पिटता ही है.

गैंगस्टर उसे शहर लखोट जाने को कहता है, अपने क्लाइंट कैरव सिंह की मदद के लिए. कैरव का रोल चंदन राय सान्याल ने किया है. वह अपनी पूरी भूमिका में नाटक करता नजर आया है, जबकि सीरीज में उस का महत्त्वपूर्ण रोल है. दरअसल, वहां के आदिवासी आंदोलन कर रहे होते हैं. देव को इस से छुटकारा दिलाने के लिए लखोट भेजा जाता है. देव बहुत दिनों से लखोट नहीं गया था, इसलिए वहां अपना रौब दिखाने के लिए अपने बौस की फाच्र्युनर मांगता है.

priyanshu-shehar-lakhot

फाच्र्युनर गैंगस्टर की रखैल पिंकी की थी. देव फाच्र्युनर ले कर लखोट स्थित माइनिंग पर जाता है, जहां कक्षदारों का लीडर विकास प्रोटेस्ट कर रहा होता है. विकास की भूमिका में चंदन राय है, जो कहीं से लीडर नजर नहीं आता. देव पैसा ले कर विकास से आंदोलन खत्म करने को कहता है, पर विकास इस के लिए साफ मना कर देता है. इस के बाद कैरव सिंह अपने कुत्ते को गोली मार देता है.

लखोट थाने के एसएचओ राजबीर सिंह रंगोट से उसे फेंकने को कहता है. इस के लिए राजबीर सिंह खुद को बहुत अपमानित महसूस करता है. इंसपेक्टर राजबीर सिंह रंगोट का रोल मनु ऋषि चड्ढा ने किया है. उस में कहीं भी पुलिसिया रौब नजर नहीं आता. वह नेताओं और गुंडों का नौकर बन कर रह गया है. कैरव सिंह विकास को अपने घर समझौता करने के लिए बुलाता है, पर विकास अपनी बात पर अडिग रहता है.

देव अपने पिता से मिलने उन के औफिस जाता है, जहां उस की अपने बड़े भाई जयंत से लड़ाई हो जाती है. यहां पता चलता है कि 10 साल पहले देव ने किसी का कत्ल किया था, जिस की वजह से उस के घर वालों ने उस से रिश्ता खत्म कर लिया था और इंसपेक्टर राजबीर भी उसे पसंद नहीं करता.

देव अपने पिता से मिलने घर जाता है, जहां उस की भाभी विदुषी उसे देख कर बहुत खुश होती है. पर पापा आज भी उस से बहुत नाराज हैं. पापा उसे घर से निकाल देते हैं तो वह घर के बाहर खड़ा रहता है. देव के पापा की भूमिका ज्ञान प्रकाश ने की है तो विदुषी की भूमिका में श्रुति जौली हैं.

तभी कुछ गुंडे उस के भाई जयंत को पैसों के लिए मारते हैं. देव कुछ कहने के बजाय अपनी पूर्व प्रेमिका संध्या के घर चला जाता है. संध्या का रोल श्रुति मेनन ने किया है. यहां पता चलता है कि देव ने जो 10 साल पहले हत्या की थी, वह संध्या के लिए ही की थी. क्योंकि जिस का कत्ल हुआ था, वह संध्या को छेड़ रहा था.

रंगबाज सीजन 2 Review : गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की कहानी – भाग 1

निर्देशक: भाव धूलिया

संगीतकार: राबी अब्राहम

प्रोड्ïयूसर: राकेश भगवानी

लेखक: सिद्धार्थ मिश्रा

प्रोडक्शन: जार पिक्चर

एपिसोड-9

कलाकार: जिमी शेरगिल, सुशांत सिंह, गुल पनाग, रणवीर शौरी, रवि किशन, तिग्मांशु धूलिया, साकिब सलीम, स्पृहा जोशी, हर्ष छाया, महिमा मकवाना, सचिन पाठक आदि

एपीसोड- 1

क्राइम थ्रिलर ‘रंगबाज फिर से’ (Rangbaaz Phir se) का पहला एपीसोड जैसे ही शुरू होता है, इस के पहले दृश्य में बड़े पुल पर एक बस आती दिखाई देती है. 2 ग्रामीण दिखाई देते हैं. वे बस को जबरन रुकवा कर उस में सवार हो जाते हैं और बस में बैठे लोगों पर अपने साथ लाई पिस्टल से गोलियों की बौछार करने लगते हैं. अगले ही कुछ समय में पता चलता है कि बीकानेर से नागौर जाने वाली बस में 40 लागों की गोली मार कर हत्या कर दी गई है.

अगली खबर जयपुर से आती है, जहां राजपूतों के सम्मेलन में बम धमाका हो जाता है. राजपूतों और जाटों में आपसी टकराव की खबरें राज्य के सभी जगहों से आने लगती हैं. इस घटना में गैंगस्टर अमरपाल का नाम आता है. सरकार राजस्थान प्रदेश के सब से बड़े गैंगस्टर अमरपाल सिंह से बात कर उसे आत्मसमर्पण को कहती है. बदले में उसे चुनाव का टिकट देने का वादा भी किया जाता है. अमरपाल सिंह की भूमिका जिमी शेरगिल (Jimmy Shergill) ने निभाई है.

पुलिस अमरपाल सिंह को जेल में बाइज्जत ले जा कर उस से कहती है कि कुछ चाहिए तो बताना हुकुम. उस के बाद राजस्थान की पृष्ठभूमि में राजस्थान के इतिहास और राजपूतों व जाटों के संघर्ष की गाथा का वर्णन किया गया है.

इस के बाद कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है, जहां पर अमरपाल सिंह का छात्र जीवन, यार दोस्तों के साथ दारूबाजी और फिर कालेज के चुनाव में उस का अध्यक्ष बनना आदि दिखाया जाता है.

अगले दृश्य में यह भी दिखाया गया है कि अमरपाल सिंह एक मेधावी छात्र है और वह आईपीएस बनना चाहता है. इसी बीच जाट समुदाय के एक गैंगस्टर जयराम गोदारा को दिखाया गया है. उस की दोस्ती की कहानी के पीछे उसे अमरपाल द्वारा बचाया जाना है. जयराम गोदारा के किरदार में सुशांत सिंह है.

उस के बाद अमरपाल का विवाह रुक्मिणी से हो जाता है, जहां पर राजपूत समाज अमरपाल को एक गांव में घोड़ी चढऩे पर मना कर देते हैं, क्योंकि अमरपाल के पिता ने एक गैर राजपूत की लड़की से विवाह किया था. यहां पर एक बार जयराम गोदरा आ कर राजपूतों को धमकाता है, अमरपाल सिंह को घोड़ी चढ़वाता है. रुक्मिणी की भूमिका स्पृहा जोशी ने निभाई है.

rangbaaz-gangster-anandpal-story

उस के बाद अमरपाल सिंह को एक बड़ा नेता प्रधान का चुनाव लडऩे को कहता है. उन दिनों वहां पर रविराम बलौटिया की प्रधानी में एकछत्र राज था. अमरपाल सिंह और रविराम बलौटिया के बीच चुनाव में जयराम गोदरा (जाट गैंगस्टर) काफी मदद करता है, लेकिन अमरपाल सिंह की 377 और रविराम बलौटिया को 379 वोट मिलते हैं. इस तरह अमरपाल सिंह 2 वोट से चुनाव हार जाता है.

उस के बाद रविराम बलौटिया एक षड्यंत्र के तहत अमरपाल सिंह को जेल भिजवा देता है, जहां पुलिस द्वारा अमरपाल पर कई तरह के अत्याचार किए जाते हैं. इस के बाद एक पुलिस अधिकारी संजय सिंह मीणा, जो एक आईपीएस अधिकारी है, को एक चाल चलता दिखाया गया है. संजय सिंह मीणा की भूमिका में जीशान अय्यूब है.

एपिसोड- 2

इस एपिसोड की शुरुआत में गृहमंत्री अहलावत अपने अधिकारी से कहता है कि चुनाव आने वाले हैं. आचार संहिता लगने से पहले शिलान्यास के कार्यक्रम करने का प्रोग्राम बनाइए.

अगले दृश्य में अमरपाल सिंह को, बलराम राठी और अन्य कैदियों को जेल में टीवी देखते और चिकन खाते, शराब पीते हुए दिखाया गया है. शराब पीने के बाद अमरपाल बाथरूम में जाता है. पीछे से एक अन्य कैदी उस के ऊपर गोलियों की बौछार कर देता है.

बलराम राठी उसे पीछे से पकड़ लेता है और इस तरह अमरपाल की जान बचा कर बलराम राठी मर जाता है. गोलियों की आवाज सुन कर काफी संख्या में जेल के सिपाही आ जाते हैं.

इस बीच अमरपाल उसे दबोच लेता है, जिस ने उस पर गोलियां चलाई थीं. और इतने सारे पुलिस के जवानों के होने के बावजूद अमरपाल गला घोंट कर उस कैदी को मार डालता है. इस के बाद अमरपाल को कैदियों की पोशाक पहने एक कमरे में कैद कर दिया जाता है.

उस के आगे की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. अमरपाल और बलराम राठी बात करते दिखते हैं. यह जेल का दृश्य है, जहां पर अमरपाल अपनी बेटी वैशाली उर्फ चीकू को याद करता दिखता है. वैशाली उर्फ चीकू की भूमिका महिमा मकवाना ने निभाई है.

काला चश्मा और उस के ऊपर काला हैट लगाए अमरपाल एकदम फिल्मी हीरो की तरह दिखता है. अगले दृश्य में जयराम गोदारा के घर दिखता है, जहां पर उस के पिता उसे उलाहना देते हुए कहते हैं कि एक जाट हो कर वह राजपूत अमरपाल सिंह के साथ क्यों है? जयराम गोदारा अपनी पत्नी से बात करता है, उस से कहता है कि उसे चीकू अपनी बेटी की तरह लगती है.

sharad-kelkar-in-rangbaaz-phirse

अगले सीन में राजा फोगाट औरतों का डांस देखते और अय्याशी करते हुए दिख रहा है. अमरपाल सिंह की बेटी का जन्मदिन भव्य तरीके से मनाया जा रहा होता है, जहां पर कुछ लोग फायरिंग कर देते हैं. भगदड़ मच जाती है, अमरपाल और उस के दोनों साथी जयराम गोदारा और बलराम राठी रुक्मिणी और चीकू को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देते हैं.

उस के बाद आटोमेटिक राइफलों से सारे हमलावरों पर गोलियों की बौछार कर देता है, कुछ मारे जाते हैं और कुछ बचते बचाते हुए भाग जाते हैं.

अमरपाल अपनी पत्नी से कहता है कि चीकू को यहां से बाहर भेजना होगा, तभी वह सुरक्षित रह सकती है. जयराम गोदारा चीकू को एक हौस्टल में ले जा कर उस का एडमिशन करवा देता है.

अगले दृश्य में राजा फोगाट के एक साथी की बेटी की शादी होती दिखाई गई है. राजा फोगाट दुलहन को अपनी ओर से उपहार देता है और अपने साथी से कहता है कि अब अमरपाल सिंह का जल्दी काम तमाम कर दो.

अगले दृश्य में गृहमंत्री अहलावत को मुख्यमंत्री डांटते हुए दिखते हैं. उस के बाद राजा फोगाट की मुलाकात गृहमंत्री अहलावत से होती है. कहानी आगे बढ़ती है और राजा फोगाट का आदमी करण चड्ढा अनुप्रिया को देखते ही उस पर फिदा हो जाता है. दोनों को हमबिस्तर होते हुए भी दिखाया जाता है. शरद केलकर राजा फोगाट के रोल में है.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो

‘किलर सूप’ रिव्यू : मनोज वाजपेयी और कोंकणा सेन की डार्क थ्रिलर कॉमेडी

आर्या सीजन 3 : माफिया क्वीन बनी सुष्मिता सेन की जोरदार वापसी

वेब सीरीज रिव्यू : हंटर टूटेगा नहीं, तोड़ेगा

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 4

यशराज फिल्म्स को जारी किए गए लीगल नोटिस में दस्तगीर परिवार ने कहा था कि यह कहानी उन के पिता गुलाम दस्तगीर की कहानी है, इस पर फिल्म बनाने का अधिकार उन्होंने पहले ही स्माल बौक्स प्रोडक्शन कंपनी को दे दिया था.

शादाब दस्तगीर ने कहा, ”आधेअधूरे फैक्ट्स के साथ सीरीज ‘द रेलवे मेन’ के 4 एपिसोड बना दिए. आखिरी एपिसोड में बताया गया कि स्टेशन मास्टर श्मशान तक पहुंच जाते हैं, जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है, हमारे पिता तो खुद चल कर घर तक आए थे.

”वाईआरएफ ने हमारे परिवार से मिलना तक उचित नहीं समझा. अगर निर्माता और निर्देशक हमारे परिवार से मिलते तो हम उन्हें बेहद दिलचस्प और करीबी तथ्यों से अवगत करवा देते. इसलिए यह वेब सीरीज उन के पिता की छवि को दर्शकों के सामने सही ढंग से पेश नहीं करती.’’

नोटिस के जवाब में यशराज फिल्म्स की ओर से दस्तगीर परिवार को कहा गया कि पब्लिक डोमेन से मिली जानकारी का इस्तेमाल कर के यह फिल्म बनाई गई है. 50 सेकेंड के टीजर के आधार पर यह कैसे कह सकते हैं कि इस से आप के पिता या परिवार की छवि को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है?

साथ ही यह तत्कालीन डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट गुलाम दस्तगीर की बायोपिक नहीं है. वहीं, जुलाई 2021 में राइट्स किसी अन्य प्रोडक्शन हाउस को दिए जाने पर जवाब मिला कि यह सीरीज उस से पहले ही बन कर तैयार हो गई थी. इसलिए यशराज फिल्म्स और नेटफ्लिक्स ने किसी भी तरह का कोई उल्लंघन नहीं किया.

हालांकि, अब पूरी सीरीज रिलीज होने पर दस्तगीर परिवार ने निर्माता यशराज फिल्म्स पर मुकदमा करने और अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है.

तत्कालीन डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट गुलाम दस्तगीर के बेटे शादाब ने तथ्यहीन करार दिया, शादाब दस्तगीर ने कहा कि ‘द रेलवे मेन’ वेब सीरीज में अहम किरदार उन के पिता (गुलाम दस्तगीर) की है. भूमिका को दबाने के लिए कल्पनातीत किरदारों को खड़ा किया गया.

मसलन, इमाद (बाबिल खान) नाम का किरदार हकीकत में कभी नहीं था. आखिर रेलवे में जौइनिंग के पहले बिना ट्रेनिंग के किस को सिग्नल ठीक करने भेजा जाएगा और इंजन चलाने दिया जाएगा? वहीं स्टेशन पर एक्सप्रैस बैंडिट (दिव्येंदु शर्मा) जैसा कोई चोर शख्स नहीं था. जहरीली गैस की वजह से गुलाम दस्तगीर बीमार रहने लगे थे.

हादसे के 4 साल बाद यानी 1988 में गुलाम दस्तगीर ने रिटायरमेंट ले लिया था. उन का ज्यादातर समय अस्पतालों के चक्कर काटते ही बीता. बता दें कि साल 2003 में परिवार के मुखिया और भोपाल गैस त्रासदी के हीरो गुलाम दस्तगीर की मौत हो गई थी. गैस त्रासदी से हवा में फैले जहर ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उस के घाव भर नहीं सके हैं. गैस पीडि़तों की आने वाली पीढिय़ां तक तमाम बीमारियों से जूझ रही हैं.

भोपाल गैस हादसे के जिम्मेदार आरोपियों को कभी सजा नहीं हुई. उस वक्त यूसीसी के अध्यक्ष वारेन एंडरसन मामले का मुख्य आरोपी था. लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुआ. पहली फरवरी, 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया. सितंबर 2014 में एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई.

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ का संगीत सेम स्लाटर का कोई दम नहीं रखता. छायांकन भी रुबैस का कुछ खास नहीं है, गैस त्रासदी के असली हीरो रेलवे कर्मियों की कहानी सत्यता से बहुत दूर दिखती है. बेहतर होता असली हीरो गुलाम दस्तगीर जैसे पात्रों पर वेब सीरीज बनाते.

आर. माधवन

‘थ्री इडियट’ फिल्म में फोटोग्राफी का शौक रखने वाले आर. माधवन को शायद ही कोई भूल सकता है. उस का पूरा नाम रंगनाथन माधवन है, लेकिन उसे आर. माधवन के नाम से जाना जाता है. वह सिर्फ अभिनेता ही नहीं, बल्कि लेखक, निर्देशक और निर्माता भी है. माधवन के द्वारा बनाई गई हाल में एक फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. यह कहें कि अपने करिअर के दौरान माधवन को एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 4 दक्षिण फिल्मफेयर पुरस्कार और एक तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार हासिल हुए हैं.

माधवन ने मणिरत्नम की रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘अलाई पेयुथे’ में अभिनय कर के तमिल सिनेमा में पहचान बनाई थी. 2001 की 2 सब से ज्यादा कमाई करने वाली तमिल फिल्मों ‘मिन्नाले’ और ‘दम दम दम’ में यादगार भूमिकाओं के साथ एक रोमांटिक हीरो के रूप में अपनी छवि बना ली थी.

इस के बाद उस ने ‘कन्नथिल मुथामित्तल’ (2002), ‘रन’ (2002), ‘जेजे’ (2003) और ‘एथिर्री’ (2004) जैसी फिल्मों से और अधिक महत्त्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता हासिल की.

2000 के दशक के मध्य में माधवन की हिंदी में यादगार फिल्मों में राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’ (2006), मणिरत्नम की बायोपिक ‘गुरु’ (2007) और कौमेडी ड्रामा ‘3 इडियट्स’ (2009) थीं.

बौक्स औफिस पर हिट ‘तनु वेड्स मनु’ (2011) और ‘वेट्टई’ (2012) में दिखाई देने के बाद माधवन ने अभिनय से ब्रेक ले लिया. हालांकि उस की वापसी वाली फिल्में, रोमांटिक कौमेडी-ड्रामा ‘तनु वेड्स मनु रिटन्र्स’ (2015), द्विभाषी स्पोट्र्स ड्रामा ‘इरुधि सुत्रु’ (2016) और क्राइम फिल्म ‘विक्रम वेधा’ (2017) थी.

केके मेनन

‘द रेलवे मेन’ में रेलवे स्टेशन के इंचार्ज की भूमिका में केके मेनन है. उस का किरदार इफ्तखार सिद्दीकी का है. वह भारतीय सिनेमा का एक जानापहचाना अभिनेता है.

मेनन ने छोटीछोटी भूमिकाएं निभा कर काफी लोकप्रियता हासिल की है.  विज्ञापनों से करिअर शुरू करने वाले मेनन ने 2007 में ‘लाइफ इन ए… मेट्रो’, ‘एनिमी’ (2013), और ‘रहस्य’ (2015) खास तरह के अय्याश और व्यभिचारी पति का किरदार निभा कर अलग पहचान बना ली थी.

2008 में, वह ‘ए फ्यू गुड मेन’ पर आधारित शौर्य में दिखाई दिया. उस में उस ने एक क्रूर सेना ब्रिगेडियर की भूमिका निभाई थी. 2009 में उस ने ‘द स्टोनमैन मर्डर्स’ में अभिनय किया, जहां उस ने स्टोनमैन सीरियल किलर की तलाश में एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई.

उस की चर्चित फिल्मों में ‘शाहिद’, ‘चालीस चौरासी’, ‘भिंडी बाजार’, ‘भेजा फ्राई 2’, ‘हुक या क्रुक’, ‘गुलाल’, ‘मुंबई मेरी जान’ आदि रही हैं.

बाबिल खान

इरफान खान के बेटे बाबिल खान ने कम उम्र में ही अपनी पहचान बना ली है. उस ने ‘कला’ (2022) के साथ बौलीवुड में अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म में उस के साथ तृप्ति डिमरी थी, जो बाद में ‘एनिमल’ से लोकप्रिय हो गई.

अपने करिअर की शुरुआत एक कैमरा सहायक के रूप में की. ‘द रेलवे मेन’ (2023) में उस के अभिनय को भी काफी पसंद किया गया. पिता इरफान की गिनती अगर बेहतर अभिनेता के रूप में होती है तो मां सुतापा सिकंदर एक चर्चित लेखिका हैं.

2023 में उसे नेटफ्लिक्स ओरिजिनल फिल्म ‘फ्राइडे नाइट प्लान’ में जूही चावला के बेटे सिद्धार्थ मेनन की भूमिका निभाते हुए देखा गया था. उस के बाद उसे यशराज फिल्म्स की वेब शृंखला ‘द रेलवे मेन’ में अभिनय का मौका मिला, जो भोपाल गैस त्रासदी की एक कहानी है. उस की भूमिका दिव्येंदु शर्मा, केके मेनन और आर. माधवन के साथ है. वह शुजीत सरकार की ‘द उमेश क्रौनिकल्स’ में अमिताभ बच्चन के साथ भी अभिनय करने वाला है.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 3

भोपाल की सड़कों पर बेतरतीब बिखरा हुआ सामान, जगहजगह इंसानों और जानवरों की लाशें ही लाशें पड़ी हुई थीं. दिसंबर में शादियों का सीजन शुरू हो जाता है तो टुल बाराती और बैंडबाजे वाले तक सड़कों पर मृत पड़े हुए थे.

जैसेतैसे वापस हिम्मत कर के मैं स्टेशन परिसर में दाखिल हुआ तो वहां भी कुछ ऐसा ही मंजर दिखा. यात्रियों के बैग, मुंह से झाग उगलते शव और चारों तरफ सन्नाटा. मतलब श्मशान घाट में तब्दील एक स्टेशन और लाशों में तब्दील लोग.

मैं जब अपने पिता की केबिन में घुसा तो एक अंकल जो शायद रेलवे कर्मचारी थे, वहां बैठे दिखे. मैं ने पता किया तो उन्होंने बताया कि आप के पिता (डिप्टी सुपरिटेंडेंट) की हालत ज्यादा खराब थी और वह बेहोश पड़े हुए थे तो रिलीफ टीम ने उन को एंबुलेंस से हमीदिया अस्पताल रेफर कर दिया.

इस के बाद साइकिल उठा कर मैं हमीदिया पहुंचा तो वहां भी लाशों और जिंदगी मौत के बीच जंग लड़ रहे लोगों को देख कर सिहर उठा. डाक्टरों पर जैसा बन पड़ रहा था, वैसा इलाज कर रहे थे, क्योंकि किसी को मालूम नहीं था कि हवा में उड़े जहर का सही इलाज क्या है?

अस्पताल परिसर में अपने लोगों को गंवाने वालों की हालत देख मैं हताश निराश घर लौट आया. घर में हम सभी लोग बेहद चिंतित थे, लेकिन देखा कि एकाएक पिताजी करीब सुबह साढ़े 11 बजे दरवाजे पर लडख़ड़ाते हुए आ गए. अस्पताल से उन को प्राथमिक उपचार दे कर घर के लिए रवाना कर दिया गया था. लेकिन जब हम ने देखा कि पिता की आंखों का एरिया फूल के कुप्पा और लाल हो चुका था और शरीर भी लगभग पूरी तरह जवाब दे चुका था. गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी.

बस, घर में घुसते ही वह सिर्फ इतना ही कह पाए ‘स्टेशन सुपरिटेंडेंट धुर्वे साहब भी नहीं रहे…’ दोपहर होतेहोते पूरे शहर को पता लग चुका था कि इस भयावह मंजर के पीछे कोई मिर्ची या गोभी की गंध नहीं, बल्कि कीटनाशक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस थी.

इस के कुछ दिन बाद थोड़ीबहुत सेहत ठीक होने पर खुद डिप्टी एसएस गुलाम दस्तगीर ने अपने परिवार में उस काली रात की खौफनाक दास्तां बयां की थी.

बेटे शादाब के मुताबिक, बेहद अनुशासनप्रिय और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित मेरे पिता 2 दिसंबर, 1984 की रात 12 बजे से पहले रेलवे स्टेशन भोपाल पहुंच चुके थे. और रोजाना की तरह ही अपने केबिन में डायरी मेंटेन करने लगे.

इसी दौरान, प्लेटफार्म पर भगदड़ जैसी आवाज सुनाई पड़ी. बाहर आ कर देखा तो चौतरफा हाहाकार मचा हुआ था. लोग एकदूसरे को रौंदते हुए आगे बढ़े जा रहे थे तो तमाम लोग मौके पर ढहे जा रहे थे. एक अजीब किस्म की गंध फैली हुई थी. लोग सांस नहीं ले पा रहे थे. देखतेदेखते भागते दौड़ते लोग लाशों में तब्दील होने लगे. कइयों के मुंह से झाग निकलने लगा और आंखें लाल हो गईं.

स्वयं के विवेक से फैसला नहीं लिया गया होता तो…

उधर, स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर मुंबई गोरखपुर एक्सप्रेस हजारों यात्रियों से लदी हुई खड़ी थी. ट्रेन का करीब 32 मिनट का हाल्ट था. गाड़ी में बैठे यात्रियों के बीच भी चीखपुकार मची हुई थी. यह देख पिता ने अपने कर्मचारी से ट्रेन का सिग्नल देने को कहा. लेकिन देखा कि सिग्नलमैन खुद मृत पड़ा हुआ था.

यही नहीं, तत्कालीन स्टेशन सुपरिटेंडेंट हरीश धुर्वे समेत तमाम रेलवे अधिकारी और कर्मचारियों की कुछ ही घंटों में मौत हो गई थी. वहीं, कुछ जान बचा कर स्टेशन से भाग निकले थे. ऐसे में गुलाम दस्तगीर खुद ही लोको पायलट के पास पहुंचे, लेकिन पायलट ने बिना किसी आधिकारिक आदेश के ट्रेन को आगे बढ़ाने से मना कर दिया.

यह देख खांसतेछींकते और हांफते डिप्टी एसएस गुलाम दस्तगीर ने दौड़दौड़ कर इंजन में बैठे लोको पायलट और ट्रेन के आखिरी छोर पर गार्ड को अपनी जवाबदारी पर हाथ से इंडेंट लिख कर दिया. लोको पायलट और गार्ड ने आशंका जताई कि तय समय से पहले ट्रेन को आगे बढ़ाने पर कोई दुर्घटना भी हो सकती है, लेकिन डिप्टी एसएस गुलाम ने कहा कि स्टेशन पर रहोगे तो हजारों यात्रियों की जान चली जाएगी.

आखिरकार, गुलाम दस्तगीर ने अपने जोखिम पर ट्रेन को रवाना करवाया. दस्तगीर ने भोपाल के दोनों ओर निकटतम बड़े रेलवे स्टेशनों इटारसी और विदिशा पर अपने सहयोगियों को संदेश भेजा और भोपाल की सीमा में दाखिल होने वाली ट्रेनों को रोकने के लिए कहा. आधिकारिक बाधाओं के बावजूद दस्तगीर अधिकारियों को ऐसा करने के लिए मनाने में कामयाब रहे.

बेटे शादाब बताते हैं, अकसर रेलवे कर्मचारी अपनी जेब में रुमाल रखते ही थे. उस रात मिथाइल आइसोसाइनेट रिसी तो किसी को कुछ पता नहीं था, लेकिन उस खतरनाक गंध से बचने के लिए लोगों ने अपनी मुंह और नाक को गीले कपड़े से ढंक लिया था.

यही नहीं, ट्रेन को अपने जोखिम पर स्टेशन से रवाना करने के बाद भी पिता नहीं रुके. उन्होंने पूरी रात गीले रुमाल की मदद से थोड़ीथोड़ी सांस ली और हांफते खांसते स्टेशन पर भागदौड़ कर के हजारों यात्रियों की जान बचाई. लेकिन हवा में घुले जहर ने आंखों को डैमेज करना शुरू कर दिया था.

दिवंगत गुलाम दस्तगीर कमोबेश एक गुमनाम नायक बने रहे. हालांकि, अब यानी 39 साल बाद त्रासदी की दास्तां बड़े रूप में चित्रित की गई है तो दस्तगीर परिवार इस बात से चिंतित और परेशान है कि उन के घर के दिवंगत मुखिया की भूमिका के साथ इस चित्रण में न्याय नहीं किया गया.

बातचीत में शादाब दस्तगीर कहते हैं, जिस तरह सर्वविदित है कि गैस त्रासदी का नाम लेने पर भोपाल का नाम ही लिया जाता है तो उस रात स्टेशन पर हजारों लोगों की जान बचाने वालों में हमारे पिता और रेलवे अधिकारी गुलाम दस्तगीर का ही नाम लिया जाएगा. लेकिन वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ के निर्माताओं ने इस गुमनाम हीरो का नाम बदल कर ‘इफ्तखार सिद्दीकी’ कर दिया.

2 दिसंबर, 2021 में ‘द रेलवे मेन’ का टीजर रिलीज होने पर भोपाल में रहने वाले दस्तगीर परिवार ने प्रोडक्शन हाउस यशराज फिल्म्स (वाईआरएफ) को कानूनी नोटिस भेजा. कहा कि सीरीज का मुख्य किरदार इफ्तखार सिद्दीकी (केके मेनन) का असल नाम ‘गुलाम दस्तगीर’ किया जाए. किसी फिल्म में फिक्शन चलता है, मगर फैक्ट से छेड़छाड़ नहीं, आप किसी की कुरबानी को इस तरह नजरअंदाज नहीं कर सकते.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 2

असल हीरो खो गया गुमनामी में

सन 1999 में महेश मथाई की फिल्म ‘भोपाल एक्सप्रैस’ आई थी, इस में एक अनूठा दृश्य होता है. एक बस्ती में खुले में ‘अमर अकबर एंथनी’ दिखाई जा रही है. प्रोजैक्टर की रोशनी परदे की ओर बह रही है. गीत चल रहा है, ‘शिरडी वाले साईंबाबा, आया है तेरे दर पे सवाली…’ साईंबाबा की मूर्ति में से नेत्र ज्योति निकलती है और नेत्रहीन निरूपा राय की आंखों में प्रवेश कर जाती है. उस की आंखों की रोशनी आ जाती है.

तभी इस आस्था भरने वाले प्रोजेक्टर के प्रकाश के कणों के साथ विषैली गैस का धुआं भी दर्शकों की तरफ बहता है. खौफनाक, क्रेग मेजिन (एचबीओ) की सीरीज ‘चर्नोबिल’ में भी एक ऐसा ही खौफनाक दृश्य होता है, जहां चर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में हादसा होता है.

उस का कोर रिएक्टर फट जाता है, रेडिएशन फैल जाता है. पास में फ्लैट्स बने होते हैं. रात को लोग, युवा, बच्चे, दंपति खाना खा कर घूमने निकले हैं, वे आसमान छू चुकी इस आग और काले धुएं को मौजमस्ती से पर्यटकों की तरह निहार रहे होते हैं और हंसीमजाक कर रहे होते हैं, सत्य से बिलकुल अंजान. एक युवती देखते हुए कहती है कि यह कितना सुंदर है न.

और उसी क्षण यूरेनियम रेडिएशन के हत्यारे कण हवा से उड़ कर उन के ऊपर गिर रहे होते हैं, उन की सांसों में अंदर जा रहे होते हैं, ऐसा ही ‘द रेलवे मेन’ में भी होता है, जहां अन्य यात्रियों के साथ वे 2 अनाथ बच्चे भी भोपाल स्टेशन पर बैठे हैं, जो पूर्व में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत गा कर हमारा मनोरंजन कर चुके होते हैं (इक रास्ता है जिंदगी, जो थम गए तो कुछ नहीं… कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है…) और जहरीली हवा उन की जान लेने को बढ़ रही होती है.

भोपाल एक्सप्रैस के अंत में नसीर के किरदार बशीर के शव पर क्रोध में भर कर रोने वाला केके का विस्फोटक दृश्य है, जिस में विजयराज भी फूटफूट कर रोता है. विचित्र संयोग कि केके उसी कहानी, उसी रेलवे स्टेशन, उसी कब्रिस्तान में फिल्म में होता है और इन्हीं जगहों पर ‘द रेलवे मेन’ में भी वापस पहुंचता है.

इस फिल्म और ‘द रेलवे मेन’ दोनों में एक कौमन शौट भी है, जहां एक महिला विषैली गैस से मर चुकी है और उस का जीवित बच्चा स्तन से दूध पी रहा है. बौलीवुड अभिनेता दिवंगत इरफान खान के बेटे बाबिल खान के करिअर का यह पहला सच्चा काम है. ‘कला’ उस का कमजोर परफारमेंस थी, जिसे ‘इरफान बायस’ के चलते सराहा गया.

‘द रेलवे मेन’ पहला प्रोजेक्ट है, जिस में बाबिल अपने पिता इरफान खान की वजह से नहीं, अपने फैशन और फोटो आप्स के लिए नहीं, बल्कि यंग लोको पायलट ईमाद रियाज के अपने किरदार की निष्ठा की वजह से अलग पहचान बनाता है.

दिव्येंदु के करिअर को इस पहले अपराधी के किरदार से अंत में थोड़ी गुडविल से दिल जीत जाता है. ‘द रेलवे मेन’ के किरदार इस तरह लिखे गए हैं और उन मूल्यों के लिए खड़े होते हैं कि उन्हें निभाने वाले ऐक्टर्स की ऐक्टिंग को फीता ले कर मापने आप नहीं बैठ सकते. कहानी अपने ही स्तर पर आप को अपनी गिरह में ले लेती है, लेकिन फिर भी इस में डीसेंट ऐक्टिंग जरूरी है.

मेरे लिए यह कोई जबरदस्त सीरीज नहीं है (जो होने की जरूरत भी नहीं है) लेकिन यह एक आलटाइम एंटरटेनिंग मिनी सीरीज है. ऐसी सीरीज जिस में कुछ सत्यता है, बाकी सब कुछ काल्पनिक सा है. हां, देखने में सीरीज जरूर ठीकठाक है. ऐसी धांसू भी नहीं कि जब दर्शक सीरीज देख कर उठेगा तो संतुष्ट महसूस करेगा.

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ भले ही भोपाल गैस त्रासदी के गुमनाम नायकों की कहानी बताई जा रही हो, लेकिन अपनी जान पर खेल कर हजारों रेल यात्रियों की जिंदगी बचाने वाला असल हीरो तो गुमनाम ही रह गया.

1984 की त्रासदी के नायक के योगदान का दुनिया जहान ने कोई खास जिक्र नहीं किया. अब 39 साल बाद किया भी तो असली नाम देने से ही कन्नी काट ली. यह कहते कहते शादाब थम से जाते हैं. सच तो यह है कि हम न जान लेने वालों को सजा दिला पाए और न जान बचाने वालों को शाबाशी…

ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर आई ‘द रेलवे मेन’ के डायलौग से भोपाल के कोफेहिजा में रहने वाले शादाब दस्तगीर काफी इत्तफाक रखते हैं. लेकिन वेब सीरीज की कहानी और किरदारों को ले कर वह पूरी तरह सहमत नहीं हैं.

करीब 50 साल के शादाब दस्तगीर 1984 में भोपाल रेलवे स्टेशन के डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट रहे दिवंगत गुलाम दस्तगीर के सब से छोटे बेटे हैं. शादाब का दावा है कि ‘द रेलवे मेन: द अनटोल्ड स्टोरी औफ भोपाल 1984’ में केके मेनन का किरदार पूरी तरह उन के पिता गुलाम दस्तगीर पर ही आधारित है.

क्या थी काली रात की हकीकत

1984 की उस काली रात (2-3 दिसंबर) की दास्तां सुनाते हुए शादाब बताते हैं कि उस साल मैं करीब 14 साल का था. पुराने भोपाल के एक घर में हमारा 5 सदस्यीय परिवार रहता था. 2 दिसंबर, 1984 की रात मां के साथ हम घर में 3 भाई थे. करीब 11 बजे पिता गुलाम दस्तगीर भोपाल रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए थे. तभी आधी रात को हमारे मोहल्ले में चीखपुकार मचने लगी.

बाहर जा कर देखा तो लोग इधरउधर भाग रहे थे और एक अजीब सी गंध नथुनों में घुसी जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि मानो किसी ने मिर्ची के गोदाम में आग लगा दी हो या फिर गोभी को बड़े पैमाने पर उबाला जा रहा हो.

गंध खतरनाक होती जा रही थी. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. किसी ने बताया कि ऊंचाई वाले स्थान पर जा कर ही जान बचाई जा सकती है. भागतेभागते हांफते मां और तीनों भाई तमाम लोगों की तरह जेल पहाड़ी पर पहुंचे, लेकिन रात भर पिता की चिंता सताती रही.

भोपाल की हवा में जहरीली गंध थमने के बाद सुबह मां के साथ हम तीनों भाई घर लौटे तो देखा कि पिता अपनी ड्यूटी से नहीं लौटे थे. अमूमन नाइट ड्यूटी खत्म करने के बाद पिता सुबह करीब साढ़े 8 बजे तक लौट आते थे. किसी अनहोनी की आशंका के चलते मैं अपने पिता को ढूंढने साइकिल से निकल पड़ा, लेकिन रास्ते का मंजर देख ठिठक गया.