स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू)

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 5

नौवें एपिसोड में सादिक कादरी का जनाजा ले जाने के साथ वेब सीरीज शुरू होती है. जिस के बाद पठान गैंग डर के साए में जीने लगता है. उसे हाजी मकबूल समझाता है कि पिछली बार दोस्त और उस की पत्नी को मारने के बाद बंबई जल रही थी, इस बार तो सादिक कादरी जो दारा कादरी का भाई है, उसे मारा है.

पठान गिरोह ऐसा बोलने पर हाजी मकबूल को अश्लील गालियां देते हुए अपने रिश्ते खत्म कर लेता है. हाजी मकबूल यहां से निकल कर दारा कादरी से मिल जाता है. वह सादिक कादरी को मारने वाले गन्या सुर्वे के सारे राज को उजागर कर देता है.

दूसरी तरफ इंसपेक्टर रणवीर मलिक पर सीनियर अधिकारियों का दबाव बनता है. वह बंबई में हो रहे गैंगवार के चलते मर्डर को ले कर उन्हें फटकारता है. जिस के बाद इंसपेक्टर मलिक और दारा कादरी के बीच मुलाकात होती है. इस दौरान दारा कादरी और इंसपेक्टर के बीच गन्या सुर्वे के एनकाउंटर की पटकथा लिखी जाती है.

अन्ना को मारते हुए डायरेक्टर ने 2 से 3 मिनट में खात्मा होते हुए दिखा दिया. पठान और उस के करीबी को निपटा दिया जाता है. यहां से हारून नाम का एक गुर्गा जो पठान के लिए काम करता है, वह बच कर भाग जाता है. जिस की आड़ में कहानी को लंबा किया जाता है.

वह भाग कर पुलिस अधिकारियों से मदद मांगता है, जिस के बाद दारा और अब्दुल्ला तय करते हैं कि जेल के भीतर उस को मारा जाए. कहानी अगले सीन की तरफ शिफ्ट की जाती है. जहां अधेड़ उम्र का आदमी एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने जा रहा होता है, तभी वहां नए किरदार की एंट्री के रूप में उस का प्रेमी आ जाता है. उस का नाम छोटा बब्बन होता है.

रियल लाइफ में गैंगस्टर छोटा राजन के कैरेक्टर से प्रभावित है. यह भूमिका आदित्य रावल ने निभाई है. दोनों को रंगेहाथ पकड़ने के बाद वह आवेश में आ कर प्रेमिका को गोली मार देता है. यहां भी जबरिया सीन खींचा गया. गोली मारने वाला प्रेमी वापस आ कर संबंध बनाने जा रहे व्यक्ति की भी गोली मार कर हत्या कर देता है.

हत्या के बाद वह गणेश महोत्सव में नाचने लगता है. दारा कादरी के लिए छोटा बब्बन काम का मोहरा लगता है. वह हारून को जेल के भीतर निपटाने के लिए उसे बुलाता है. इस के साथ ही एपिसोड खत्म हो जाता है.

एपिसोड का आखिरी पड़ाव दसवें एपिसोड से शुरू तो होता है लेकिन डायरेक्टर की तरफ से पटकथा भटकती नजर आती है. यहां छोटा बब्बन के दोस्त के रूप में एंट्री होती है. दूसरी तरफ मलिक और पुलिस कमिश्नर के बीच कलह दिखाई गई है. कमिश्नर दारा कादरी को गिरफ्तार करने का दबाव बनाता है.

पुलिस कमिश्नर का रोल कन्नन अरुणाचलम ने निभाया है. यहां मलिक कंफ्यूज रहता है. डायरेक्टर ने कमिश्नर के रूप में जिस कलाकार को चुना, वह रोल में काफी अनफिट नजर आया. जबकि वह काफी सीनियर कलाकार है. डायरेक्टर ने उस से अनुभव का लाभ ही नहीं लिया. कमिश्नर और मलिक के बीच हौट टौक के लिए भी डायरेक्टर ने लोकेशन बहुत गलत चुनी.

हारून धक्का दे कर वहां से भाग निकलता है. इस के बाद अगले सीन में छोटा बब्बन ने हारून पर पिस्तौल तान रखी है. यहां डायरेक्टर फिर बैकग्राउंड एक्टिविटी को अपने नियंत्रण में नहीं कर सके. इस कारण कुछ देर के लिए वेब सीरीज हलकी होती नजर आई.

बब्बन गोली मार देता है और अदालत से बाहर निकलते हुए कार में बैठने के बाद पुलिस वालों ही उस की कार को धक्का लगाते हुए दिखाते हैं. इस के बाद दारा कादरी वेब सीरीज के आखिरी विलेन अजीम पठान को मार देता है.

फिर कहानी एपिसोड के पहले सीन की तरफ शिफ्ट हो जाती है. दारा कादरी पूरे परिवार के साथ दुबई जाने का फैसला करता है. लेकिन पिता के मना करने पर हबीबा इंडिया में रह जाती है. दारा कादरी दुबई चला जाता है. उस के जाने के बाद हबीबा काम संभालने लगती है.

एपिसोड के अंत में सस्पेंस वाला मर्डर दिखाया गया है, जो चाय की दुकान में काम करने वाला नाबालिग लड़का शौच के लिए बैठे व्यक्ति को गोली मार देता है. वह बच्चा ऐसा करने के बाद हबीबा से कहता है काम हो गया. यहां सीरीज ही खत्म हो जाती है.

सिगरेट के विज्ञापनों से अपना करिअर शुरू करने वाले केके मेनन ‘बंबई मेरी जान’ में अहम किरदार निभा रहे हैं. भारत के केरल शहर में जन्मे मेनन तेलुगु भाषा के अलावा गुजराती, तमिल और मराठी फिल्मों में काम कर चुके हैं.

बौलीवुड और टेलीविजन इंडस्ट्रीज में मेनन नाम नया नहीं है. नेगेटिव रोल वह कई फिल्मों में काम किया है. मेनन की उम्र 57 साल हो चुकी है. बंगाली निवेदिता भट्टाचार्य के साथ उस ने शादी की है. हालांकि निवेदिता का जन्म लखनऊ में हुआ है. दोनों की मुलाकात थिएटर ग्रुप से जुड़ने के दौरान हुई थी. निवेदिता भट्टाचार्य इंडियन टेलीविजन में और बौलीवुड में 2000 के दशक से ऐक्टिव है.

निवेदिता भट्टाचार्य ने अपने फिल्मी करिअर में तकरीबन 8 फिल्मों में काम किया है. जिन में ‘डर द माल’, ‘भय’ 2017 में ‘शुभ मंगल सावधान’ आई थी. निवेदिता की आखिरी फिल्म 2023 में ‘द वैक्सीन वार’ रही है. टीवी जगत की बात करें तो करीबन डेढ़ दरजन से ज्यादा टीवी सीरियलों में वह काम कर चुकी है. उस का चर्चित सीरियल 1997 में ‘क्या बात है’ काफी चर्चित रहा था.

टीवी शो में निगेटिव पौजिटिव दोनों तरह के चरित्र पर उन्होंने काम किया. फिल्मी दुनिया में भी इसे अच्छे कलाकारों की सूची में माना जाता है. ‘बंबई मेरी जान’ वेब सीरीज में निवेदिता का किरदार पहले 5 एपिसोड तक तो ठीक था, लेकिन इन के अभिनय में लगता है डायरेक्टर ने अपना दिमाग जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया है. जिस में सारे सीन इमोशन से भरे हैं.

यहां तक कि सामान्य दिखने वाली जगह पर भी निवेदिता के चेहरे पर एक्सप्रेशन के नाम पर सिर्फ मुसकान ही रही है. उस के लाइफ पार्टनर मेनन ने पहला प्ले नसीरूद्दीन शाह के साथ ‘महात्मा बनाम गांधी’ में किया था. केतन मेहता के चर्चित टीवी सीरियल में युवा प्रधानमंत्री की भूमिका निभाने के बाद वह बौलीवुड के डायरेक्टरों की निगाह में आया था. मेनन फिल्म जगत में तब चर्चित हो गया, जब उस ने ‘भोपाल एक्सप्रेस’ में लीड भूमिका निभाई. उसे अनुराग कश्यप का साथ मिला. लेकिन जिस फिल्म में काम किया वह सेंसर बंदिशों के चलते अटक गई.

मेनन को फिल्मफेयर और आईफा का पुरस्कार 2014 में मिल चुका है. उस की भूमिका की चर्चा भारतीय नौसेना के पीएनएस विक्रांत को ले कर बनी फिल्म में भी हुई थी. यह फिल्म 1971 के युद्ध के दौरान निगरानी के लिए रवाना किए गए पनडुब्बी विक्रांत की उपलब्धि पर बनी थी. इसी पनडुब्बी में सवार सैन्य अधिकारी बने केके मेनन ने महत्त्वपूर्ण रोल निभाया था.

विक्रांत ने पाकिस्तान की पनडुब्बी गाजी को चारों खाने चित किया था. ‘बंबई मेरी जान’ से पहले हौट स्टार की वेब शृंखला ‘स्पैशल आप्स’ में हिम्मत सिंह के किरदार को निभाने के बाद ओटीटी इंडस्ट्री में अपनी आवश्यकता बता दी थी. इस वेब सीरीज में उस ने रा के एक अधिकारी की भूमिका निभाई थी.

मेनन ने ‘सरकार’ फिल्म में अमिताभ बच्चन के बेटे की नेगेटिव भूमिका भी निभाई थी, जिस में वह दर्शकों को अपने समय में बांधे रखने में बहुत ज्यादा कामयाब हुआ था. ‘बंबई मेरी जान’ में केके मेनन ने इस्माइल कादरी की भूमिका निभाई. वेब सीरीज अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित है, लेकिन दाऊद इब्राहिम नाम की जगह डायरेक्टर ने उस को दारा कादरी बताया है. दारा कादरी का पिता इस्माइल कादरी है, जो पुलिस का अधिकारी है.

सौरभ सचदेवा

यूं तो सौरभ सचदेवा की शुरुआत बौलीवुड में 2016 से हुई थी, लेकिन ख्याति ओटीटी में रिलीज ‘सेक्रेड गेम्स’ से मिली. फिर वह ओटीटी के लिए जानामाना चेहरा बन गया है. यह नेटफ्लिक्स में 2018 में प्रदर्शित हुई थी, जिस में सुलेमान ईसा का महत्त्वपूर्ण किरदार उस ने निभाया था. ‘बंबई मेरी जान’ में वह हाजी मकबूल बना है.

सभी एपिसोड में हाजी मकबूल के रूप में सौरभ सचदेवा का अभिनय दर्शकों को देखने को मिलेगा. सचदेवा ऐक्टिंग के जानदार कोच भी है. उस ने वरुण धवन, जैकलीन फर्नांडीज समेत कई अन्य कलाकारों को अभिनय का हुनर सिखाया है. वह अपना थिएटर ग्रुप भी चलाता है.

विवान भटेना और शिव पंडित

कलाकार शिव पंडित भी चर्चा में है. उस ने रणवीर मलिक की भूमिका निभाई है. शिव पंडित रेडियो जौकी के अलावा मंच होस्टिंग करने और मौडलिंग भी करते हैं. वह कलाकार गायत्री पंडित का भाई है. उस ने ‘देसी बौयज’, ‘बौस’ समेत कई फिल्मों में सहायक निर्देशक का काम किया. फिल्म इंडस्ट्री में शिव पंडित को ज्यादा संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं पड़ी.

उस ने 2011 से फिल्म इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया था. इसी तरह टीवी कलाकार विवान भटेना ने दारा के दोस्त अब्दुल्ला का महत्त्वपूर्ण रोल निभाया है. भटेना एकता कपूर के होम प्रोडक्शन बालाजी प्रोडक्शन का चर्चित चेहरा हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में उस ने शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘चक दे इंडिया’ से करिअर की शुरुआत की थी. इस के अलावा विवान भटेना सलमान खान के होम प्रोडक्शन में बनी फिल्म ‘हीरो’ और आमिर खान की चर्चित ‘तलाश’ फिल्म में भी काम कर के लोकप्रियता हासिल कर चुका है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 4

छठवें एपिसोड की शुरुआत दारा कादरी के दोस्त को अस्पताल में दिखाने से शुरू होती है. वह कान में दारा को नाम बताने के बाद दम तोड़ देता है. इस के बाद इस्माइल कादरी आ कर दारा को अपराध छोड़ कर सामान्य जीवन जीने की सलाह देता है. जिस के जवाब में दारा कहता है कि आप अपने दोस्त के खूनी को स्टेशन छोड़ने जा सकते हैं पर मैं ऐसा नहीं कर सकता. यहां जबरिया डायरेक्टर ने पितापुत्र के बीच भावनात्मक इमोशनल वाला सीन क्रिएट करते हुए दर्शकों को बोझिल कर दिया.

दारा कादरी का गिरोह मौत के बाद ऐक्शन में आता है. वह पठान गिरोह के लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतारने लग जाते हैं. पठान अपने भांजों को ले कर यहांवहां छिपाने लगता है. दोनों वेब सीरीज में शूटर दिखाए गए हैं. इस के बावजूद हाथ में गन ले कर दारा कादरी से बच कर भागते हुए फिल्माया गया. बाहर निगरानी कर रहे दारा के आदमी उन्हें दबोच लेते हैं.

यहां दोनों की क्रूरता के साथ हत्या करते हुए डायरेक्टर ने फिल्माया है. नासिर को नंगा कर के उस के कूल्हे पर धारदार हथियार से वार कर के मर्डर का सीन फिल्माया है. इस के बाद दारा के नाम का दबदबा बंबई में बढ़ जाता है. यहां दारा कादरी की तरक्की को दिखाया जाने लगता है. उसे दुबई में शेखों से मुलाकात के जरिए शक्तिशाली बनते हुए दिखाया गया है.

सातवें एपिसोड में कहानी फिर इस्माइल कादरी पर जबरिया पलटाई जाती है. वह अपनी पत्नी से कहता है कि इन सब हराम की दौलत के बीच में मेरे ईमान का दम घुटता है. जिस के बाद वह किराए के कमरे में रहने के लिए चला जाता है.

डायरेक्टर ने कादरी के बड़े बेटे सादिक कादरी की शादी के जरिए एक बार फिर वेब सीरीज के टाइम को बढ़ाने में बिना मतलब कोशिश की. भावनात्मक रूप से दारा कादरी को हीरो बनाने की कोशिश पितापुत्र के बीच डायलौग डाल कर ऐसा किया गया.

इसी दरमियान दारा के बड़े भाई सादिक, जिस की भूमिका जितिन गुलाटी ने निभाई है. दारा अपने साथ दुबई अकसर अब्दुल्ला को लाना और ले जाना पसंद करता था. उस का कहना था कि वह उस की पत्नी का खयाल रखे. इसलिए वह आवेश में पत्नी से अलग हो कर चकलाघर आनेजाने लगता है. कहानी एक बार फिर परी पटेल पर लौट कर आती है. वह दारा की माशूका दिखाई गई है.

वेब सीरीज में उन के शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाए गए हैं. उसी वक्त दारा का बड़ा भाई भी शारीरिक संबंध पत्नी के साथ बनाते हुए दिखाया गया है. सादिक की पत्नी का अभिनय करने वाली कलाकार की जानकारी गुप्त रखी गई है. क्योंकि उस ने वेब सीरीज में न्यूड सीन किया है. यहां कलाकार को पैसों के लिए नग्नता परोसे जाने के कारण दर्शक काफी मायूस होंगे.

सादिक पर फिल्माया गया यह सैक्स सीन देख कर दर्शकों को 2 मिनट पोर्न मूवी देखने जैसा अहसास बेहूदा डायरेक्टर ने प्रस्तुत किया है. यह देखने के लिए दर्शकों को भी काफी साहस की आवश्यकता होगी.

अधिकांश सीन चकलाघर और सादिक की बीवी के जरिए परोस कर यहां डायरेक्टर ने खुलेआम नंगई को परोसा है. एपिसोड के अंत में गन्या सुर्वे के रूप में नए कलाकार की एंट्री होती है. यह रोल सुमित व्यास ने निभाया है. उस की पर्सनैल्टी को देखते हुए किरदार के रूप में अनफिट नजर आ रहा है. जबकि वास्तविकता में गन्या सुर्वे का नाम यह शूटर था. वह अंडरवर्ल्ड में सुपारी ले कर मर्डर करने का काम करता था.

एपिसोड के आखिर में डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए दिखाया गया है. उस के बाजू में गरदन रेतने के बाद अचेत लड़की इसी कुरसी पर बैठी है. वहां बच्चा भी टेबल पर सिर रख कर पड़ा हुआ दिखाया गया.

तीसरी लाश जमीन पर पड़ी हुई थी. इस के अलावा एक व्यक्ति सिसकियां लेते हुए दिखाया गया. उसे गन्या सुर्वे गोली मार देता है. डायरेक्टर ने यह सीन वेब सीरीज में क्यों और किन कारणों से लिया, सस्पेंस खुल ही नहीं पाता.

आठवें एपिसोड की शुरुआत गन्या सुर्वे के इंट्रो से शुरू होती है. उस के सामने पठान गैंग बैठा होता है. पठान गैंग की तरफ से दारा कादरी को मारने की सुपारी 10 लाख रुपए में उसे देता है. वह चुप हो कर अपनी डिमांड एक करोड़ रुपए बोलता है. उस का कहना होता है कि वह केवल दारा कादरी को नहीं, बल्कि उस के पूरे खानदान को खत्म कर देगा.

वेब सीरीज के आठवें भाग में इमोशनल ड्रामा जबरिया भरा गया है. दुबई से दारा कादरी तोहफे ले कर अपनी माशूका के घर पहुंचता है. वहां उस के पिता के साथ दारा कादरी से शादी को ले कर बहस चल रही होती है. तब वहां आ कर दारा कादरी उसे अपने साथ चलने के लिए कहता है.

विरोध करने पर माशूका के पिता का गला दबोच लेता है. यह बात उस की माशूका को नागवार गुजरती है. वह दारा कादरी से संबंध तोड़ लेती है. इस के बाद सादिक कादरी का सीन एपिसोड में आता है. वह शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाया जाता है, जिस के बाद दारा कादरी मायूस बैठा दिखाया गया.

वह अपने पिता के पास पहुंचता है. उस का कहना होता है कि घर वापस चले, क्योंकि सादिक कादरी अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी महिलाओं के साथ संबंध बना रहा है. इस बात पर इस्माइल कादरी विरोध कर घर जाने से इंकार कर देता है.

इधर, गन्या सुर्वे सुपारी ले कर उन की हत्या करने की योजना बना रहा होता है. वह सादिक कादरी को पहले निशाना बनाने की तैयारी करता है, जिस के लिए वह सादिक कादरी की प्रेमिका की सहेली को अपना मोहरा बनाता है. उसे पैसों का लालच दे कर उस के आने पर खबर देने के लिए बोलता है.

तभी सादिक कादरी पत्नी से झगड़ कर प्रेमिका के पास पहुंचता है. यह खबर प्रेमिका की सहेली गन्या सुर्वे को पहुंचा देती है. वह दोनों का पीछा करने के बाद गोलियां बरसा कर दोनों को मार देता है. यहां डायरेक्टर फिल्मांकन के दौरान पात्रों को दिशा में खड़ा कराना भूल गया.

जब गोलियां बरसाई जाती हैं, तब ड्राइविंग सीट पर सादिक कादरी होता है. वहीं बाएं वाली सीट पर उस की प्रेमिका होती है. गोली चलती दाहिनी तरफ से है लेकिन बाएं तरफ बैठी सादिक की प्रेमिका को लगती है. फिर सादिक कार से उतर कर बाईं तरफ जाता है तो फिर गोलियां बरसाते हुए उस को मारा जाता है. यहां डायरेक्टर दिशा के अभाव में चूक गया है.

मुठभेड़ में दारा कादरी के कुछ लोग मारे जाते हैं. दारा कादरी, अब्दुला और दारा का छोटा भाई अज्जू कादरी को दिखाया जाता है. तीनों मिल कर गन्या सुर्वे के गुर्गों को भगाभगा कर मारते हैं. उधर, हबीबा भी पिता को ले कर दारा कादरी के घर पहुंच जाती है. यहां आठवां एपिसोड खत्म हो जाता है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 3

भाईबहन के रिश्ते का नहीं रखा लिहाज

डायरेक्टर और लेखक ने मिल कर धर्म की आड़ के सहारे दारा कादरी को हीरो बनाने की नाकाम कोशिश भी की. दारा अपने भाइयों और साथियों के सहारे नया गैंग बना लेता है. वह रंगदारी टैक्स मांगने वाला गिरोह बना कर काम करने लगता है. यह बात पठान गैंग को पता चलती है तो उस की तलाश में निकलते हैं. यह दिखाते हुए भी डायरेक्टर ने यहां फिर एक चूक की है.

दरअसल, पठान का इसी वेब सीरीज में ताकतवर नेटवर्क दिखाया गया लेकिन दारा को पकड़ने में गैंग को एक दिन से ज्यादा का वक्त लग जाता है. यहां डायरेक्टर कहानी के जुड़ाव को बनाए रखने में असफल साबित दिखे. एपिसोड के अंत में इस्माइल कादरी की तरफ फिल्म फिर मोड़ी जाती है.

यहां पठान गिरोह के लोग उस के बेटे को अपराध जगत में उन के खिलाफ खड़ा करने का आरोप लगा कर उसे कोसते हुए दिखाई दिए, जिस के बाद भनभनाया इस्माइल कादरी पत्नी पर गुस्सा उतारता है. वेब सीरीज में मुसलिम समाज के भाईबहन वाले रिश्ते को जाहिलियत दिखाते हुए डायरेक्टर ने काफी बुरी मानसिकता के साथ पेश किया है.

मुसलिम समाज में परदा प्रथा काफी पहले से है. वहां भाईबहन के बीच संवाद गालीगलौज भरा दिखाया गया है. घर पर इस्माइल कादरी और उस की पत्नी के बीच हुई कलह की बात हबीबा अपने भाई दारा कादरी को बता देती है. यह बात सुनने के बाद वह अपने पिता की बेइज्जती का बदला लेने के लिए पठान गैंग को मारने के निकल पड़ता है, जहां पठान गैंग के लोग भी उसे मारने की योजना बना कर बाहर निकल रहे होते हैं. तभी वहां दोनों गिरोहों का आमनासामना दिखाया गया है.

इस सीन में दारा कादरी गैंग के 6 सदस्य दिखाए गए हैं, जो सैंकड़ों शराब की बोतलें पठान गिरोह पर बरसा देते हैं. यह सब कुछ दृश्य पठान गिरोह के अखाड़े में फिल्माया गया है. पठान गिरोह के लोग अखाड़े से भाग जाते हैं. उन के जाने के बाद दारा कादरी अखाड़े को जला देता है. चौथे एपिसोड में रोमांच पैदा कर के दर्शकों को जबरिया पांचवें में जाने के लिए इस्माइल कादरी का सहारा डायरेक्टर ने लिया है.

पांचवें एपिसोड की शुरुआत हाजी मस्तान, पठान और अन्ना की रिहाई से शुरू होती है. यहां पठान का छोटा भाई दारा कादरी के आतंक को बयां कर रहा होता है. तब पठान का बड़ा भाई उसे अभद्र गालीगलौज करते हुए कोसता है. इस के बाद कहानी में इस्माइल कादरी की फिर एंट्री होती है. उस से हाजी मकबूल कहता है कि पठान गिरोह उस के बेटे दारा कादरी को मारना चाहता है.

यदि उसे बचाना है तो समझाए और माफी मांगने के लिए बोले, जिस के बाद पिता के कहने पर बेटा मांडवली के लिए राजी हो जाता है. वह और उस के गुरगे पठान गिरोह के लिए काम करने लग जाते हैं. कहानी को लंबा करने के लिए यहां उन्हें काम करते हुए काफी सीन जबरदस्ती घुसेड़े हैं. इसे देख कर लगता है कि डायरेक्टर के पास कंटेंट शूट की कमी हो गई थी.

अचानक दारा कादरी के भाइयों और पठान गैंग की बेइज्जती से तंग आ कर बदला लेने की योजना बनाते हैं. यह जब सोच रहे होते हैं तब दारा कादरी और अब्दुला बिल्डर से रंगदारी टैक्स मांगने गए होते हैं. इसी दरमियान दारा कादरी का भाई उस कस्टम अधिकारी जिस को गिरोह पैसा देता है उसे न दे कर दूसरे को वह रकम दे देता है. जिस कारण वहां विवाद की स्थिति बनती दिखाई गई है.

दारा अपने भाइयों की गलती छिपाने के लिए पठान गैंग को बताए बिना बिल्डर से वसूली रकम उस कस्टम अधिकारी को दे देता है, जिसे पहले दिया जाना था. इस बात की भनक हाजी मकबूल और पठान को लग जाती है और उसे गद्दार मान कर अब्दुल्ला के हाथों उसे पिटवाया जाता है. यहां डायरेक्टर ने फिर कहानी को जबरिया लंबा करने का प्रयास किया.

पठान गिरोह से अलग हो कर दारा कादरी अपना गैंग चलाने लगता है. इस बात से नाराज हो कर हाजी मकबूल सुपारी दे देता है. उस की हत्या की जिम्मेदारी अब्दुल्ला को दी जाती है. यहां डायरेक्टर एक बार फिर बड़ी चूक करते हैं. अब्दुला को काम सौंपने के बाद उस को मारने की भी सुपारी हाजी मकबूल पठान के भांजों को दे देता है, लेकिन उस का हत्या का इरादा बदल जाता है और उन में गहरी दोस्ती हो जाती है.

अब्दुल्ला और दारा कादरी का गठबंधन होते ही पठान गिरोह की शामत आ जाती है. दोनों के बीच आपसी मुठभेड़ में पठान गिरोह के बहुत सारे गुर्गों के मर्डर हो जाते हैं. हाजी मकबूल के लिए एक प्रैस उस के पक्ष में रिपोर्टिंग करता है, जिस के जरिए वह अपराधी होने के बावजूद उसे गरीबों का मसीहा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

अभद्रता और फूहड़ता को जम कर दिखाया

यहां भी जबरिया कहानी को लंबा खींचने के लिए दारा कादरी के दोस्त की जिंदगी पर फोकस करता है. अभद्रता और फूहड़ शब्दों के साथ दारा कादरी के दोस्त की शादी के वक्त डायलौग डाले गए हैं. उस वक्त दारा कादरी की बहन और दोस्त की पत्नी मौजूद होती है. इस वक्त के फिल्माए गए सारे दृश्य परिवार के साथ आप कभी नहीं देख सकते. इसे देख कर लगता है कि यह डायरेक्शन किसी कम पढ़ेलिखे गंवार ने किया है.

दूसरी तरफ पठान के भांजे आरिफ और नासिर शराब के अहाते में बैठ कर शराब पी रहे होते हैं. उन्हें जिस अखबार के टुकड़े पर चखना दिया जाता है, उस में हाजी मकबूल और दारा कादरी के प्रतिद्वंदी बाजार में आने वाली बात छपी होती है. यह पढ़ने के बाद दोनों दारा कादरी के दोस्त को ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़ते हैं.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि डायरेक्टर ने अपने विचारों को दर्शकों को थोपा है. अमूमन इस पैटर्न को कई फिल्मों में पहले ही आजमाया जा चुका है. दोनों शूटर दारा कादरी के दोस्त के घर पहुंच कर उस के सामने ही उस की बीवी का बलात्कार करते हैं. इस दौरान भी अभद्र और कानों को चुभने वाली अश्लील गालियों की भरमार डायरेक्टर डाल दी हैं. इस से यह जाहिर होता है कि डायरेक्टर शायद इसी माहौल में पलाबढ़ा हे.

कहानी बढ़ाने के लिए अधमरे दोस्त को सागर में ले जा कर फेंकने का सीन दिखाया है. जबकि डायरेक्टर बलात्कार वाली जगह पर ही मर्डर का सीन रख सकते थे. कहानी यहां भी खत्म नहीं होती और फिल्मी स्टाइल में दारा कादरी का दोस्त समंदर से बाहर आता है. यहां डायरेक्टर एपिसोड को विराम दे देता है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 3

स्कूली और कालेज की पढ़ाई दिल्ली में पूरी करने के बाद वह मुंबई आई, फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने की कोशिश करने के सिलसिले में वन बीएचके की दमघोंटू हवा में अकेले रहने लगी, तब उन्हें जो अनुभव मिले, वह फिल्म में जस के तस उतार दिए.

विवाहित रुचिका का कहना है कि महानगर में सफलता और आमदनी के आनंद की विक्षिप्त दौड़ है. इस ने अलगाव जन्म दिया है. वह अपने पति को लेखन के लिए प्रेरणास्रोत बताती है. अपनी पहली फिल्म का निर्देशन करने से पहले रुचिका ने टेलीविजन उद्योग में काम करने का अनुभव प्राप्त किया.

रुचिका का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों की अराजक और रैकेट से भरी जीवनशैली के बारे में लिखने के लिए आकर्षित होती है. निर्देशन की शुरुआत फिल्म “चुटकन की महाभारत’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

वैसे फिल्म निर्माण और उस से जुड़ी पूरी प्रक्रिया उस के लिए अलग थी. उस ने कठिन तरीके से सीखा और पहली फिल्म “आइसलैंड सिटी (हिंदी)’ का विचार 2008-09 के दौरान पूरा हुआ. इस की बदौलत वह 2012 में स्क्रीनराइटर्स लैब, वेनिस और फिल्म बाजार (गोवा) का भी हिस्सा बनी. फिर 2015 में 72वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फेडोरा की विजेता बन गई.

राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा बनाई गई 110 मिनट तक चलने वाले आइसलैंड सिटी में विनय पाठक, ब्रिक लेन फेम तनिष्ठा चैटर्जी और अमृता सुभाष जैसे मंझे हुए कलाकारों की भूमिकाएं थीं. क्राइम थ्रिलर ‘दहाड़’ में रीमा कागती और रुचिका ओबेराय कहानी कहने के बदलते चेहरे और ओटीटी स्पेस में भारतीय मूल के प्रभाव को बेहतरीन तरीके से नहीं दर्शा पाई हैं.

इस बारे में रुचिका ने उन चुनौतियों के बारे में बताया, जिस में कहानी को प्रामाणिक बनाना, प्रामाणिक स्थान ढूंढना, बोली के साथ प्रदर्शन को बेहतर बनाना था. साथ ही यह सुनिश्चित करना भी था कि हम इसे स्क्रीन पर एक कदम आगे ले जा कर लेखन के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

रीमा कागती

डिगबोई, असम की मूल निवासी रीमा कागती फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखिका है. उस ने हिंदी की पहली फिल्म “हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड निर्देशित की थी. उस के बाद नियो-नोयर, तलाश और ऐतिहासिक फिल्म ड्रामा “गोल्ड  (2018) का निर्देशन भी किया. इसी बीच उस ने जोया अख्तर के साथ मिल कर अक्तूबर, 2015 में “टाइगर बेबी फिल्म्स’ नाम की एक फिल्म और वेब स्टूडियो की स्थापना कर ली.

उस ने फरहान अख्तर (दिल चाहता है), (लक्ष्य), आशुतोष गोवारिकर (लगान), हनी ईरानी (अरमान) और मीरा नायर (वैनिटी फेयर) सहित कई प्रमुख निर्देशकों के साथ सहायक निर्देशक के रूप में भी काम किया है. इस से पहले वह एक्सेल एंटरटेनमेंट की सहयोगी रही है. उस की हाल की फिल्म “गोल्ड’ भी है, जो आजादी के बाद भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक के बारे में है.

विजय वर्मा

‘दहाड़’ के सीरियल किलर की भूमिका में जान डालने की कोशिश करने वाले विजय वर्मा के बारे में यह कहना गलत नहीं हागा कि उस ने यहां तक पहुंचने में काफी संघर्ष किया है. इस दौर में मुश्किलों के कई पापड़ बेले. कई बार हार का सामना करना पड़ा, फिर भी अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए हरसंभव कोशिश जारी रखी. …और फिर उस ने “गैंग औफ घोस्ट्स’, “पिंक’ और “मानसून शूटआउट’ जैसी फिल्में कीं.

हालांकि जबरदस्त पहचान “गली बौय’ फिल्म से मिली. “डार्लिंग्स’ के बाद तो वह एक स्टार बन गया. अब स्थिति यह बन गई है कि वह हर फिल्ममेकर की पसंद बन गया है. हाल ही में उस ने करीना कपूर के साथ भी सीरीज की है. उस की खास पहचान वेब सीरीज के लिए भी बन चुकी है. फिल्मों के भी औफर मिल रहे हैं. फिल्म तक पहुंचने की कहानी भी अपने आप में किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है.

ऐक्टिंग के लिए वह घर से भाग गया था. इस कारण उन के पिता हाल तक काफी नाराज थे. उसे ऐक्टर बनने में किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला. पिता चाहते थे कि बेटा बिजनैस में साथ आ जाए. हैदराबाद के रहने वाले विजय वर्मा का न तो कोई फिल्मी कनेक्शन रहा और न ही कोई गौडफादर. वह पिता के साथ बिजनैस नहीं करना चाहते थे.

फिल्मों में प्रवेश के दौर में छोटीमोटी नौकरियां करने लगा. पेट्रोल पंप पर काम किया, पेट्रो कार्ड्स बेचे, सिम कार्ड बेच कर पैसे कमाए. काल सेंटर में नौकरी की. थोड़े पैसे जमा कर इवेंट मैनेजमेंट का कोर्स किया. उस फील्ड में भी काम करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.

ऐक्टिंग के बारे में विजय वर्मा ने बताया कि उसे इस का चस्का तब लग गया था, जब वह दोस्तों के साथ फिल्में देखता था और उन के सींस की ऐक्टिंग किया करता था. ऐक्टिंग का काम तो नहीं मिला, लेकिन हैदराबाद की एक बेकरी के लिए मौडलिंग का काम जरूर मिला. बाद में घर वालों को बताए बगैर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट औफ इंडिया में अप्लाई कर दिया और सिलेक्ट हो गया.

पुणे में रह कर 2 साल की पढ़ाई पूरी की. उस के बाद काम की तलाश में मुंबई चला गया. पहला अभिनय का काम राज निदिमोरु और कृष्णा डीके की लघु फिल्म “शोर’ में मिला, जिसे फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया और उस साल न्यूयार्क में एमआईएएसी समारोह में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार जीता.

सोहम शाह

हिंदी सिनेमा और वेब सीरीज का एक चिरपरिचित नाम सोहम शाह का भी है. वह फिल्म निर्माता और उद्योगपति भी है. उस ने 2009 में फिल्म “बाबर’ के साथ अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की, जिस में उस की भूमिका के लिए 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म “शिप औफ थीसियस’ के साथ चुना गया. इस शुरुआत के बाद शाह ने तलवार (2015) और “सिमरन’ (2017) में “अभिनय’ किया. उन की फिल्म “तुंबाड’ को भारी आलोचनात्मक प्रशंसा मिली.

सोहम शाह श्रीगंगानगर (राजस्थान) का रहने वाला है. अपना रियल एस्टेट का व्यवसाय है. फिल्में बनाने के लिए मुंबई चला आया था. कंटेंट फिल्म बनाने के लिए उस ने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस रीसायकलवाला फिल्म्स शुरू किया है. उस की पहली फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित “शिप औफ थीसियस’ थी. इस फिल्म में उस ने एक सामाजिक रूप से अंजान स्टौक ब्रोकर की भूमिका निभाई थी. उस ने “शिप औफ थीसियस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्माता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था.

इस के बाद उसे मेघना गुलजार की “तलवार’ में एक पुलिस वाले की भूमिका की पेशकश की गई, जो 2008 के नोएडा दोहरे हत्याकांड पर आधारित थी. 2017 में शाह को हंसल मेहता की “सिमरन’ में कंगना रनौत के साथ कास्ट किया गया था. जिस प्रोजेक्ट पर शाह ने 6-7 साल तक काम किया. उस का अब तक का सब से महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “तुंबाड’ रहा है. यह 12 अक्तूबर, 2018 को रिलीज हुआ और इसे आलोचकों और दर्शकों से समान रूप से प्रशंसा मिली.

उस की बहुचर्चित फिल्म “तुंबाड’ है, जिस का दूसरा भाग आने वाला है. इसे शाह खास नयापन लिए कहानी वाली फिल्म बताते हैं.

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 3

गरिमा तरपड़े के रिकमंडेशन पर तेलगी को स्टैंप पेपर वेंडर का लाइसैंस मिल जाता है. गरिमा तलपड़े का रोल भावना बलसावर ने निभाया है. इस के बाद तेलगी का नंबर 2 का यह धंधा तेजी से चल पड़ता है. लेकिन बाद में गरिमा तलपड़े से विवाद हो जाता है तो वह उस की पार्टी को देने वाला फंड रोक देता है.

कस्टम अधिकारी उसे समझाता भी है कि ऐसा करने से उस का नुकसान हो सकता है, पर वह नहीं मानता, जिस का खामियाजा उसे जेल जा कर भुगतना पड़ता है. कस्टम अधिकारी का रोल निखिल रत्नापारखी ने किया है. गरिमा तलपड़े नकली स्टैंप पेपर का मामला विधानसभा में उठाती है, जिस की वजह से जांच बैठा दी जाती है. परिणामस्वरूप तेलगी को जेल तो जाना ही पड़ता है, उस का स्टैंप पेपर का लाइसैंस भी कैंसिल हो जाता है.

जेल में उस की मुलाकात अब्दुल से होती है, जहां वह एक नया बिजनैस प्लान करता है, क्योंकि जेल जाने के बाद उस का धंधा बंद हो गया था. इस बीच तेलगी ने अपने लिए मकान और गाड़ी खरीद ली थी.

चौथे एपीसोड में शौकतभाई तेलगी की जमानत करा देता है, पर उसे नफीसा और दीया से दूर रहने को कहता है. पर तेलगी दोनों को अपने घर ले आता है. इस के बाद वह नासिक जा कर अब्दुल से मिलता है, जहां दोनों नए बिजनैस के बारे में विचार करते हैं.

नासिक में जिस इंडियन सिक्योरिटी प्रैस में स्टैंप पेपर छपते हैं, वहां की पुरानी मशीनें खोल कर अन्य कंपनियों को बेचनी थीं. तेलगी वहां के मैनेजर को पटा कर अपना बिजनैस शुरू करना चाहता था, पर वह बहुत ही सख्त और ईमानदार था.

तेलगी रिजेक्ट स्टैंप पेपर के साथ अच्छे स्टैंप पेपर निकलवाना चाहता है. पर जब बात नहीं बनती तो वह पौलिटिशियन से मिल कर प्रैस में अपने आदमी मधुसूदन मिश्रा को मैनेजर बनवा देता है और प्रैस की एक मशीन के सारे पार्ट्स खरीद कर अपना प्रैस लगा लेता है. वह प्लेट भी बदलवा कर निकलवा लेता है, साथ ही कागज और स्याही भी हासिल कर लेता है.

फिर तो तेलगी का धंधा चल निकलता है, लेकिन वह जितने जोरों पर अपना धंधा चलाना चाहता था, उस तरह उस का धंधा नहीं चल रहा होता.

चूहा बन कर रहा तेलगी

वह पूरे भारत में अपने स्टैंप पेपर बेचना चाहता था. इस के लिए वह मैनेजर मधुसूदन मिश्रा से कहता है कि वह अपनी मशीन कुछ दिनों के लिए खराब कर दे, जिस से देश में स्टैंप पेपर की कमी हो जाएगी तो उस के स्टैंप पेपर धड़ल्ले से बिकेंगे.

मैनेजर मधुसूदन मिश्रा की भूमिका विवेक मिश्रा ने की है. पहले तो मैनेजर तैयार नहीं होता, पर तेलगी उसे तैयार कर लेता है. इस तरह तेलगी पैसे कमाता नहीं, बनाता था. इन्हीं पैसों से उस ने खानपुर में अपनी अम्मी के लिए बहुत बड़ा मकान बनवाया था, जबकि वह दिखावा पसंद नहीं करता था.

पांचवें एपीसोड में तेलगी के स्टैंप पेपर खूब बिक रहे होते हैं. तेलगी कस्टम अफसर के पास एक फ्लौपी भेजता है, जिस में आई लव यू वायरस होता है, जो स्टैंप पेपर के आर्डर में गड़बड़ी कर देता है, जिस से जहां 30 हजार स्टैंप पेपर जाने होते हैं, वहां 3 हजार पहुंचते हैं और जहां 3 हजार जाने होते हैं, वहां 30 हजार स्टैंप पेपर पहुंच जाते हैं.

सरकार सारे ट्रक वापस बुला लेती है. जिस से देश में स्टैंप पेपर की तंगी हो जाती है. तेलगी की एक मशीन इस मांग को पूरा नहीं कर पाती तो इंडिया सिक्योरिटी प्रैस की मशीनें फिर खराब होने लगती हैं. तमाम पौलिटिशियन और नीचे से ले कर ऊपर तक सारे पुलिस अधिकारी तेलगी के दोस्त होते हैं.

तुकाराम की एनजीओ के जो 2 लड़के तेलगी के यहां काम कर रहे होते हैं, उन में से सुलेमान चोरी से स्टैंप पेपर बेचने लगता है. तेलगी को पता चलता है तो वह उसे खूब मारता है. सुलेमान का रोल यूसुफ मोहम्मद ने किया है.

इस बीच नई पार्टी सत्ता में आती है तो उस के आदमी पुलिस की मदद से तेलगी की फैक्ट्री में तोड़फोड़ कर देते हैं. इस के बाद तेलगी नई पार्टी के नेता जाधव को पार्टनर बना लेता है और उस के गोडाउन में काम करने लगता है. जाधव की भूमिका भरत दाभोलकर ने की है. इस की वजह यह थी कि तेलगी चूहा बन कर रहना चाहता था. जिस से जाहिर न हो सके कि वह कितने पैसे कमाता है. इस के अलावा जाधव के यहां काम करने से पुलिस प्रोटेक्शन भी मिलता रहेगा.

इस जीत का जश्न मनाने तेलगी एक दिन बार में जाता है, जहां बार डांसर पर करीब 90 लाख रुपए उड़ा देता है. यह खबर अखबारों में छप जाती है. होटल के कमरे में तेलगी सुबह उस बार डांसर के साथ उठता है तो उस के पास पुलिस अधिकारियों, नेताओं और बिजनैस पार्टनर के फोन आने लगते हैं, जो अपना हिस्सा मांग रहे होते हैं.

क्योंकि तेलगी अब चूहा नहीं रहा. सभी को पता चल जाता है कि उस के पास बहुत पैसा है. इस के आगे कहानी अगले सीजन में आएगी, जो जल्द ही रिलीज होने वाली है.

गगनदेव रियार

गगनदेव रियार मूलरूप से थिएटर कलाकार है. इस समय उसे स्कैम 2003 में अब्दुल करीम तेलगी की भूमिका निभाने के लिए जाना जाने लगा है. इस के अलावा गगनदेव ने “सोनचिरैया’ और सीरीज “ए सूटेबल बौय’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया है. उस के पास 15 सालों से अधिक का थिएटर अनुभव है. उस ने स्वर्गीय पंडित सत्यदेव दुबे, सुनील शानबाग, रंजीत कपूर, पूर्व नरेश और अतुल कुमार जैसी कई थिएटर हस्तियों के साथ काम किया है.

गगनदेव मूलरूप से पंजाब के पठानकोट का रहने वाला है. गगनदेव पंजाब के पठानकोट में 1992 में पैदा हुआ था. उस का पालनपोषण और शिक्षा वहीं हुई है. अब तक वह पूरी दुनिया में अपना प्रदर्शन कर चुका है. उस ने “स्टोरीज इन ए सांग’, “ओके टाटा बाय बाय’, “रावणलीला’ और “पिया बहरूपिया’ जैसे लोकप्रिय नाटकों में अभिनय किया है. उसे युवा थिएटर पेशेवरों के लिए प्रतिष्ठित विनोद दोशी फेलोशिप पुरस्कार 2013 से भी सम्मानित किया गया था.

उस ने “पिया बहरूपिया’ (शेक्सपियर के ट्वेल्थ नाइट का हिंदी रूपांतरण) में सर टोबी बेल्व के किरदार के लिए साल 2014 में सहायक अभिनेता का मेटा पुरस्कार हासिल किया था. गगनदेव को सोनी लिव की वेब सीरीज “स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’ से प्रसिद्धि मिली, जो कर्नाटक के खानपुर में पैदा हुए एक फल विक्रेता अब्दुल करीम तेलगी के जीवन और भारत के सब से बड़े घोटालों में से एक मास्टरमाइंड बनने की जीवनयात्रा पर आधारित है.

सना अमीन शेख

सना अमीन शेख एक भारतीय अभिनेत्री और रेडियो जौकी है, जो मुख्यरूप से हिंदी टेलीविजन शो और फिल्मों में दिखाई देती है. सना मुंबई से है. उस के परदादा अशरफ खान गुजराती थिएटर में एक अभिनेता और गायक थे. उस ने फिल्म निर्माता महबूब खान की फिल्म “रोटी’ में कथावाचक की भूमिका निभाई थी.

साल 2016 में उस ने एजाज शेख से शादी की, पर 2022 में उस का तलाक हो गया. सना 2004 से रेडियो मिर्ची 98.3 में आरजे के रूप में काम कर रही है. एक दिन क्लास में मिर्ची सुनते हुए उस ने एक आरजे को श्रीताओं को रेडियो जौकी बनने के लिए औडिशन के लिए आमंत्रित करते हुए सुना.

एक सफल औडिशन के बाद में उसे तुरंत आरजे के रूप में स्टेशन में शामिल होने लिए कहा गया. उस ने मिर्ची लव, इश्क एफएम के साथ और खूबसूरत सना के साथ और टीआरपी-टेलीविजन, रेडियो पर आरजे शो की मेजबानी की है.

सना ने एक बाल कलाकार के रूप में अभिनय शुरू किया और जीटीवी पर “हसरतें’ में युवा सावी की भूमिका निभाई. साल 1995 में डीडी चैनल पर धारावाहिक “जुनून’ में वैशाली का किरदार निभाया. 2009 में वह एक बार उभरी और मुख्य भूमिकाओं में से एक भूमिका निभाने के लिए प्रसिद्ध हुई.

डिज्नी चैनल इंडिया ओरिजनल सीरीज “क्या मस्त है लाइफ’ में रितु शाह के बाद धारावाहिक “जीत जाएंगे हम’ में मुख्य अभिनेत्री के रूप में सुमन की भूमिका निभाई. इस के बाद “मेरा नाम करेगी रोशन’ और “मन की आवाज’, “ससुराल सिमर का’ और “गुस्ताख दिल’ के अलावा 30 से अधिक धारावाहिकों में काम किया.

रोहित शेट्टी की फिल्म “सिंघम’ में अभिनय किया है. इस के अलावा हंसल मेहता की वेब सीरीज “स्कैम 2003’ में अब्दुल करीम तेलगी की पत्नी की भूमिका निभा कर प्रसिद्धि पा रही है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 2

तारतम्य का दिखा अभाव

पुलिस टीम को देख कर ट्रक ड्राइवर और कादरी का साला भागते हैं. लेकिन कुछ दूर ड्राइवर पुलिस के हत्थे लग जाता है. वहीं कादरी का साला जीजा के घर पहुंच जाता है. वह पुलिस से बचने के लिए जीजा से मदद मांगता है. कादरी उसे फटकारते हुए डांटता है तो कादरी की पत्नी सकीना कादरी को रोकती है. उस के कहने पर इस्माइल कादरी उसे स्टेशन पर ट्रेन में बैठा कर लौट रहा होता है तो उसे 2 कांस्टेबल ऐसा करते हुए देख लेते हैं.

यहां इस पूरे वाकए का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि केके मेनन उन्हीं 2 साथियों में से एक साथी के सामने झूठ बोलने वाले अभिनय को सही तरीके से नहीं निभा सका. यहां भी मेनन से ज्यादा डायरेक्टर की कमजोरी उजागर होती है. क्योंकि मेनन तो परिपक्व कलाकार है और उसे पता भी होता है कि यहां डायरेक्टर की चूक है. लगता है उस की अक्ल खाली हो गई. यहां वेब सीरीज के डायरेक्टर सुजीत सौदागर ने फिर जबरिया सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की है.

दरअसल, कादरी का साला स्पैशल टीम के एक अधिकारी का मर्डर कर चुका होता है, जिस के बाद वह अपने जीजा के पास मदद मांगने जाता है. यह बात डाइरेक्टर तब उजागर करता है, जब टीम का दूसरा साथी पूछताछ के लिए उसे थाने ले कर आता है. फ्लैशबैक में मर्डर करते वक्त साले की शर्ट खून में भीग जाती है.

लेकिन जब वह जीजा के सामने दिखाया गया तो उस की शर्ट से खून गायब होता है. उस के बाद जांच करने वाली टीम खून से सनी शर्ट कादरी के घर से बरामद करती है. कुल मिला कर कहानी यह है कि वेब सीरीज के डायरेक्टर इस पूरे घटनाक्रम में तारतम्य मिलाने में कामयाब नहीं हो सके.

तीसरे एपिसोड की शुरुआत अचानक इमोशनल सीन से डायरेक्टर सुजीत सौदागर करते हैं. दूसरे एपिसोड में शहीद हुए पुलिस अधिकारी की पत्नी की आड़ में जबरिया फिर इमोशनल सीन क्रिएट किया गया. वह विधवा महिला कादरी को तमाचा मारती है. इस के बाद इस्माइल कादरी को सदमे में जाता हुआ दिखाया गया. जबकि वेब सीरीज वास्तविकता के आधार पर होती है.

इसी एपिसोड में केंद्रीय गृहमंत्री बने कर्मवीर चौधरी अपने अफसर से पठान दस्ते को बंद करने के लिए बोलते हैं. केंद्रीय गृहमंत्री के पूरे वेब सीरीज में कुछ गिनेचुने सीन ही हैं. इस के अलावा हाजी मकबूल के जरिए फिर इस्माइल कादरी को लालच देने वाला सीन दिखाया गया. जबकि वह तो अपने ही विभाग की अंदरूनी जांच में बुरी तरह से फंस चुका था.

इस्माइल कादरी सस्पेंड होने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम की तलाश में पहुंचता है. यहां उसे सिक्योरिटी गार्ड का काम मिल जाता है. अगले दिन जब वह कास्ट्यूम पहन कर पहुंचता है तो सुपरवाइजर नौकरी पर रखने से इंकार कर देता है. इस एपिसोड के एक हिस्से में भी डायरेक्टर की विफलता साफ दिखती है.

इस्माइल कादरी और उस का परिवार गरीबी से जूझ रहा होता है तभी ईद के मौके पर कुरबानी के लिए बकरा न खरीद पाने की वजह से कादरी का बेटा दोस्तों और भाइयों के साथ मिल कर बकरा चुरा लेते हैं, जिस के बाद बकरे का मालिक उन का पीछा करता है. लेकिन वह उसे पकड़ नहीं पाता है. बकरे के साइज और बच्चे के कद में अंतर देख कर दर्शक भी हंसेंगे. इस्माइल कादरी को कंफर्म हो जाता है कि बकरा चुराने में दारा कादरी की यह शरारत है तो वह बीच में खड़ा कर के उसे पुलिस बेल्ट से पीटने लगता है.

यहां हम यह बात इसलिए छेड़ रहे हैं क्योंकि इस्माइल कादरी वेब सीरीज में सस्पेंड हो चुका होता है. फिर पुलिस की बेल्ट कहां से आई. अपनी थोड़ी सी भी अक्ल लगा कर डायरेक्टर को यह छोटीछोटी जानकारियां जुटा लेनी चाहिए थीं. इतना ही नहीं, जब बच्चे को मार रहे होते हैं तो उस के चेहरे पर दर्द और पीड़ा का भाव डायरेक्टर पैदा ही नहीं कर सका. मार खाने के बावजूद बच्चे को पिता के साथ बहस करते हुए दिखाया गया.

हाजी मकबूल ईदी के जरिए इस्माइल कादरी के घर तोहफे भेजता है, जिसे वह तो नहीं स्वीकारता है, लेकिन पत्नी बच्चों की खुशी के लिए उसे राजी कर लेती है. फिर फिल्म में डायरेक्टर की तरफ से बेसिर पैर का नया रोमांच पैदा किया जाता है.

दूसरे एपिसोड में भगाया गया साला यहां सामने आ जाता है. उसे कब और कहां से पकड़ा गया, डायरेक्टर यह बताने में कामयाब नहीं हुआ. उस साले का मर्डर पठान के गुर्गे कर देते हैं. उस से पहले हाजी मकबूल शर्त रखता है कि उस के साथ मिल कर काम करना होगा.

चौथा एपिसोड भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद देश में बने हालात की तरफ मुड़ने लगता है. यहां इमरजेंसी की घोषणा को मुद्दा बना कर कहानी एक बार फिर गैंगस्टर पठान हाजी मकबूल और अन्ना पर घुमाई जाती है. उन्हें जेल में डालने वाला सीन दर्शकों के सामने परोसा जाता है.

यह दिखाते वक्त वेब सीरीज डायरेक्टर की मानसिक परिपक्वता की कमी उजागर होती है. तीनों गैंगस्टरों को जब जेल में डालने के लिए औफिसर अरेस्ट करने आता है तो उन के गुर्गों को छोड़ने का सीन दिखाया गया है. जबकि इमरजेंसी हालात को देखते हुए पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने वाले शिव पंडित जो वेब सीरीज बनी, उस में वे मलिक बने हुए हैं. उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकते थे.

लेकिन वेब सीरीज में डायरेक्टर ने उसे अपने विवेक के अनुसार काल्पनिक बना दिया. फिर कुछ ही देर बाद इस्माइल कादरी के तीनों बेटों की एंट्री होती है. अब उन्हें नौजवान दिखाया गया है. उन्हें लोगों को बेवकूफ बना कर चोरी करना और टोपी घुमाने वाला दिखाया जाता है.

कहानी को एक नया ट्विस्ट देने के लिए बेहूदा और बदतमीज डायरेक्टर ने इस में कुछ गंदे और भद्दे डायलौग का भी इस्तेमाल किया जाता है. राडो घड़ी बेचने की वारदात को डायरेक्टर ने बेहद हलके तरीके से फिल्माया है. घड़ी के बदले में दारा के गुर्गें ग्राहकों को अपनी बातों में फंसा लेते हैं. इसी दरमियान उस में पत्थर रख देते हैं. इसी तरह के सीन 4 से 5 बार आप को दिखने को मिलेगी.

डायरेक्टर ने दूसरी बड़ी तकनीकी चूक यह भी की है कि सारे सीन एक ही जगह पर फिल्माए गए हैं. जबकि ऐसा बारबार होने पर वह गली पूरी तरह से बदनाम हो जानी चाहिए थी. इस के बाद दारा कादरी से एक मौलाना कहता है कि मसजिद को चंदा देने के लिए वह कोशिश करे. जिस के लिए वह तैयार हो जाता है और दारा कादरी मसजिद की मरम्मत के नाम पर चंदा वसूली करता हुआ दिखाया जाता है.

इस में गालीगलौज के साथ उस की ऐक्टिविटी आगे दिखाई जाती है. यहां से दारा कादरी के दहशत के सफर की शुरुआत दिखाई गई है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 2

शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, ‘दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

इस सीरियल किलर की कहानी में कई ड्रामा हैं. इसी के तहत दहेज, लड़कियों पर शादी का दबाव बनाता परिवार, उसे बोझ साबित करते लोगों पर सटीक प्रहार हैं. ये सब साइड में हैं, जो आप को समझ आएगा, लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, यह खोजतेखोजते आप को 8 एपिसोड यानी साढ़े 7 घंटे का इंतजार करना होगा, जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. डायरेक्टर ने यहां पका दिया है.

8 के बजाए अगर 6 एपिसोड में इस कहानी को कसा जाता तो ये सीरीज और भी पैनी हो सकती थी. राजस्थानी पृष्ठभूमि में रची इस कहानी में कलाकारों द्वारा स्थानीय भाषा की पकड़ दिखाई नहीं दी. उन की भाषा हरियाणवी सी लगने लगती है. कलाकारों की भाषा बारबार खटकती है.

ढंग से नहीं दहाड़ सकीं सोनाक्षी

पूरी सीरीज में सब से बारीक काम विजय वर्मा ने किया है. दरअसल, डायरेक्टर ने सीरीज में गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा जैसे कलाकारों को उस स्तर पर जा कर इस्तेमाल ही नहीं किया गया है, जहां वह कुछ नया या कमाल कर पाएं. गुलशन देवैया सीरीज में बस अंजलि भाटी के मोहपाश में बंधा उस की थ्योरीज सुनता रहता है.

अंजलि, जिस के साथ बारबार जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है, पर खुद अपने थाने में अपने सीनियर देवीलाल सिंह पर चिल्ला पड़ती है. पारगी को तो वह नाम से बुलाती है. कहानी के ये सारे पहलू इसे काफी कमजोर बनाते हैं. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करिअर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उस का कोई भी नया अंदाज या पहलू परदे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’ उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.

निर्देशक रीमा कागती के साथसाथ जोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर है. जहां जोया अख्तर को ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और गली बौय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

चूंकि ‘दहाड़’ बौलीवुड वेब सीरीज है तो इस में प्रोपेगैंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. ‘दहाड़’ जब शुरू होती है तो आप को पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा कितनी घटिया हो सकती है.

अंजलि भाटी बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पांव नहीं छूती, क्योंकि वह कहती है कि उस के बाप ने ऐसा करने से मना किया है. उसे एक दलित थानेदार के किरदार में दिखाया गया है, जिसे विभाग में ही नहीं, हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

एक दलित एसआई, जो बिना हेलमेट बुलेट दौड़ाती फिरती है. वह हेलमेट नहीं पहनने का गलत संदेश देती दिख रही है. अंजलि की ऐक्टिंग इस में एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ी टाइप की है. सीरीज में ठाकुरों की एक लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिंदू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं. हिंदू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है.

यह वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है. इस में यह बताने की कोशिश की गई है कि लव जिहाद कुछ होता ही नहीं है. मुसलिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियां स्वेच्छा से पड़ती हैं. सब से बड़ा प्रोपेगैंडा है कि हिंदू कार्यकताओं और हिंदू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना.

जाति का किया है अपमान

इस में दिखाया गया है कि एक हिंदूवादी विधायक और उस के कार्यकर्ता जहांतहां उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुसलिमों के खिलाफ हिंसा करते हैं और पुलिस के काम में बाधा डालते हैं. वेब सीरीज में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं. यह आदमी दरजनों लड़कियों को फंसा कर उन के साथ बलात्कार करता है और उन की हत्या कर देता है. जानबूझ कर बारबार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है, जो डायरेक्टर की ओछी मानसिकता को जाहिर करता है.

विलेन का पिता अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) पुलिस थानेदार को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वह उसे नीची जाति का समझता है. फिर वह संविधान के डायलौग मारती हुई रेड मारने के लिए उस के घर में घुस जाती है.

क्या आप ने वास्तविक जिंदगी में कहीं ऐसा होते हुए देखा है? फिल्म का जो सब से अच्छा किरदार दिखाया गया है वो एक मुसलिम होता है. अंजलि किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उस के पास ही जाती है, उस ने उसे पढ़ाया होता है. इस तरह जहां विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुसलिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है. इस में कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए. इस में यही किया गया है.

वेब सीरीज में अंजलि को पूजापाठ करने से दूर भागते दिखाया गया है. क्या यह भी अपमानजनक नहीं है? इस वेब सीरीज में लड़के लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है. इस से लगता है कि शायद डायरेक्टर को भी ऐसे रिश्ते में रहना पसंद होगा. इस से समाज में गलत संदेश जाता है.

इस की कहानी स्लो है, जिस से पूरी सीरीज काफी सुस्त दिखती है. स्क्रिप्ट के चलते कहानी बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ती है, जिस से थ्रिलर और सस्पेंस का फील ही कई बार खत्म हो जाता है. वहीं सीरीज को एडिटिंग टेबल पर और वक्त मिलना चाहिए था, जिस से एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी.

सीरीज में बैंकग्राउंड म्यूजिक पर भी और मेहनत हो सकती थी. ‘दहाड़’ देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि निर्देशक रीमा का जादू इस में दिखा ही नहीं है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ‘दहाड़’ को हरगिज नहीं देखना चाहिए. इसे तब देखा जा सकता है, जब आप के पास कोई और कंटेंट देखने का आप्शन नहीं है.

रुचिका ओबेराय

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़ाई करने वाली रुचिका ओबेराय की पहचान ‘लस्ट स्टोरी’ और ‘आइलैंड सिटी’ से बन चुकी है. इन में रुचिका ने महानगरीय शहर को परदे पर बेहतर ढंग से उतारा. रुचिका ओबेराय के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ थी.

वह भले ही अभी तक एक घरेलू नाम नहीं हैं, लेकिन रुचिका ओबेराय बौलीवुड की सब से रोमांचक प्रतिभाओं में से एक है. उस की पहली और एकमात्र फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ को बौलीवुड फिल्म कहना इस का विस्तार होगा.

उस के बाद उस ने नेटफ्लिक्स की ‘लस्ट स्टोरीज’ को लिखा, जो जोया अख्तर द्वारा निर्देशित की गई थी. यह फिल्म गरिमा और शालीनता से भरपूर थी. नील भूपालम और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस लघु फिल्म में मौन रहते हुए अपने भीतर के संघर्ष से निपटाने की कहानी को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म के कथानक में अपने महानगरीय जीवन के अनुभव को समेटने की असफल कोशिश की गई है. उस ने बताया कि कैसे शहर अपनी असमानताओं में क्रूर है?

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 2

तेलगी की डिग्री से प्रभावित हो कर शौकतभाई उसे अपने यहां काम करने के लिए मुंबई बुला लेता है. शौकतभाई की भूमिका तलत अजीज ने की है. वह गजल गायक भी है. शौकतभाई से मुलाकात के बाद तेलगी अपने घर जाता है और यह बात वह अपनी मां और भाई से बताता है. उस के पिता की मौत हो चुकी है.

तेलगी ने चलाया शातिर दिमाग

अब्दुल करीम तेलगी शौकतभाई के पास खाली जेब मुंबई पहुंच जाता है. वहां उस का होटल का बिजनैस था, लेकिन उस का यह बिजनैस खास नहीं चल रहा होता. तेलगी यहां अपना दिमाग लगाता है और टैक्सी, पान की दुकान वालों को ही नहीं वड़ापाव वालों तक को उन के होटल का कार्ड दे कर आता है. टैक्सी वालों को ग्राहक लाने पर 5 रुपए कमीशन देता है.

इस तरह शौकतभाई का होटल चल निकलता है. इस बीच शौकतभाई की बेटी नफीसा तेलगी को पसंद आ जाती है. नफीसा का रोल सना अमीन शेख ने निभाया है. वह सुंदर भी है और अपनी भूमिका में अच्छी भी लगती है. शौकतभाई दोनों का निकाह करा देते हैं. इस के अलावा उस की एक और बेटी है दीया.

ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में तेलगी गल्फ देश चला जाता है, जहां 7 सालों तक रहता है, लेकिन परिवार की याद आती है तो मुंबई वापस आ जाता है और यहां फरजी दस्तावेज तैयार कर के लोगों को गल्फ और यूएई जैसे देशों में भेजने लगता है. लेकिन इस फरजीवाड़े में पकड़ा जाता है. थाने में उस की जम कर ठुकाई होती है.

इंसपेक्टर मधुकर डोंबे की भूमिका नंदू माधव ने की है. पर एक इंसपेक्टर किस तरह काम करता है, यह वह ठीक से कर नहीं पाया. इसे डायरेक्टर की कमी कही जा सकती है. क्योंकि अभिनेता तो उसी तरह काम करता है, जैसा डायरेक्टर कराता है.

थाने में तेलगी को उस के जैसा ही एक आदमी मिलता है कौशल झवेरी. वह भी उस के साथ पिट रहा होता है. कौशल का रोल हेमंग व्यास ने निभाया है. यहीं तेलगी और कौशल अच्छे दोस्त बन जाते हैं. शौकतभाई तेलगी की जमानत करा देता है और उस से पुलिस रिकौर्ड से अपना नाम निकलवाने के लिए कहता है.

इस के लिए वह उसे एक वकील के पास भेजता है. वकील बहुत ज्यादा पैसे मांगता है, पर तेलगी यहां उस वकील को अपनी बातों में फंसा कर उसी से पैसे भरवा कर अपना काम करवा लेता है कि वह उस का काम करवा कर फेमस हो जाएगा और अपने नेटवर्क का यूज कर के वह उसे खूब क्लाइंट दिलवाएगा, फिर वह खूब पैसे कमाएगा.

वैसे यह सीन ओवर लगता है, क्योंकि एक वकील अपने पैसे खर्च कर के भला किसी क्लाइंट का काम क्यों कराएगा? पर डायरेक्टर की समझ की बात है. शायद वह तेलगी को कुछ ज्यादा ही सयाना दिखाना चाहता था. इसलिए उस ने ऐसा किया है. पर इस सीन पर दर्शकों को हंसी ही आएगी.

क्लर्क से मिल कर बनाया नया प्लान

तेलगी के इस टैलेंट को देख कर कौशल उस से खूब प्रभावित होता है और अपना बिजनैस पार्टनर बना लेता है. इस के बाद कौशल तेलगी को अपना बिजनैस मौडल समझाता है कि जब भी कोई कंपनी बड़े अमाउंट में शेयर खरीदती है तो उस का शेयर सर्टिफिकेट इशू होता है.

फिर जब भी कोई शेयर मार्केट में ये शेयर खरीदता है तो ये शेयर सर्टिफिकेट उसे ट्रांसफर होता है, जिस के ऊपर एक स्टैंप लगाया जाता है और उस पर एक साइन होता है. यह प्रोसेस सिर्फ 5 बार होता है, जिस के बाद ये शेयर सर्टिफिकेट किसी काम के नहीं रहते. इन्हें डेड शेयर सर्टिफिकेट कहा जाता है. इस के बाद नया शेयर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. अब इन डेड सर्टिफिकेट की कंपनी को कोई जरूरत नहीं रहती. जिस के बाद कंपनी इन्हें गोडाउन में स्टोर कर के रख देती है.

कौशल कंपनी के क्लर्क से मिल कर इन डेड शेयर सर्टिफिकेट को निकलवा लेता था और कैमिकल की मदद से स्टैंप और साइन को हटा कर स्टौक एक्सचेंज में जा कर इन्हें सस्ते दामों में बेच देता था, जिस से वह महीने में 15 हजार तक कमा लेता था. लेकिन बाद में पता चला कि कोलकाता गैंग उस से भी कम प्राइस में बेच रहा है.

तेलगी और कौशल मोनोपोली मेनटेन करने के लिए नुकसान में भी स्टैंप बेचने का प्लान बनाते हैं और ओल्ड कस्टम हाउस जहां कोलकाता गैंग का बिजनैस होता है, वहां जा कर क्लर्क के साथ अपनी डील फाइनल करते हैं.

वह क्लर्क अगले दिन स्टैंप के साथ कुछ स्टैंप पेपर भी देता है. यह देख कर कौशल उस पर गुस्सा होता है. यह सब चल रहा होता है कि कोलकाता गैंग उन पर हमला कर देता है और सभी को खूब मारता है. तभी तेलगी की नजर एक आदमी पर पड़ती है, जो स्टैंप पेपर ले रहा होता है और स्टैंप फेंक देता है.

अगले दिन वह क्लर्क से मिलने जाता है तो क्लर्क उस पर भड़क उठता है, क्योंकि वह बड़ी मुश्किल से वह स्टैंप और स्टैंप पेपर ले कर आया था. इस पर तेलगी उसे समझाता है कि मार तो सभी ने खाई है. इस के बाद वह पूछता है कि वह आदमी स्टैंप क्यों फेंक रहा था और स्टैंप पेपर क्यों कलेक्ट कर रहा था.

तब वह क्लर्क बताता है कि वे सारे स्टैंप पेपर थे और स्टैंप से स्टैंप पेपर का बिजनैस कहीं बड़ा और फायदेमंद है. तेलगी उस क्लर्क से सारी इन्फौर्मेशन लेता है, जिस से उस के दिमाग में एक और बिजनैस प्लान आता है और वह कौशल को समझाता है कि सरकार हर साल 33 हजार करोड़ स्टैंप पेपर से कमाती है, जिस में से 80 प्रतिशत स्टैंप पेपर मुंबई से और 10 प्रतिशत महाराष्ट्र से और बाकी 10 प्रतिशत अन्य सब जगहों से मिला कर आता है.

अगर वह केवल मुंबई के स्टैंप पेपर में एक प्रतिशत का भी हिस्सा ले लेता है तो 70 से 80 करोड़ रुपया कमाया जा सकता है और इसी प्लान के साथ तेलगी और कौशल अपना नया बिजनैस शुरू करते हैं.

दूसरे एपीसोड के शुरुआत में दिखाया गया है कि वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के वैश्वीकरण के कारण देश काफी आर्थिक प्रगति कर रहा होता है. लेकिन उसी दौरान बाबरी मसजिद विध्वंस के कारण मुंबई में दंगे हो रहे होते हैं तो दूसरी ओर तेलगी अपने साथी कौशल के साथ मिल कर नकली स्टैंप पेपर खपाने की योजना बना रहा होता है.

वह एक प्रैस में नकली स्टैंप पेपर छपवाता है और वाणी बंदर रेलवे स्टेशन के पहले पुणे से छप कर आने वाले ओरिजनल स्टैंप पेपर चोरी करवा कर उस की जगह नकली स्टैंप पेपर रखवा देता है, लेकिन उस ने जैसा सोचा था, उस हिसाब से वह स्टैंप पेपर बेच नहीं पाता.

नेता ने भी किया तेलगी को सहयोग

तब वह पुलिस से सांठगांठ करता है और स्टैंप पेपर वेंडर का लाइसेंस लेने के लिए विधायक तुकाराम से मिलता है, लेकिन वह भी उस का काम नहीं करवा पाता. विधायक तुकाराम का रोल समीर धर्माधिकारी ने किया है. इस बीच उस का अपने साथी कौशल से झगड़ा हो जाता है, क्योंकि तेलगी का ही नाम हो रहा था और उसे कोई नहीं जानता. इस झगड़े के बाद कौशल उसे छोड़ कर चला जाता है.

तीसरे एपीसोड में तेलगी स्टैंप पेपर वेंडर के लाइसैंस के लिए एक बार फिर विधायक तुकाराम से मिलता है और चुनाव के लिए उसे मोटी रकम देने के लिए कहता है. तब विधायक तुकाराम उसे गरिमा तलपड़े से मिलवाने यूनाइटेड शक्ति पार्टी के हैडऔफिस ले जाता है.