Social Stories in Hindi : फरजी हार्ट स्पैशलिस्ट औपरेशन दनादन 7 मौतें

Social Stories in Hindi : गांवदेहात की गलीमोहल्ले में दुकान खोल कर बैठे झोलाछाप डाक्टरों के बारे में आप ने सुना होगा, लेकिन मध्य प्रदेश के जानेमाने मिशन अस्पताल में एक ऐसा फरजी कार्डियोलौजिस्ट पकड़ में आया है, जो न केवल हार्ट के मरीजों का इलाज कर रहा था, बल्कि दनादन सर्जरी भी करता था. जिला प्रशासन की नींद तब टूटी, जब इस की वजह से 7 मरीजों की मौत हो गई. आखिर कैसे चल रहा था इस का गोरखधंधा? 

13 जनवरी, 2025 की शाम को नवी कुरैशी की अम्मी रहीसा बेगम के सीने में दर्द उठा तो आननफानन में उन्हें मध्य प्रदेश के दमोह में स्थित सरकारी अस्पताल ले जाया गया. हालत सीरियस होने पर वहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार कर उन्हें किसी प्राइवेट अस्पताल में हार्ट स्पैशलिस्ट को दिखाने की सलाह दे कर रेफर कर दिया. हार्ट का मामला था, लिहाजा नवी अपनी अम्मी को ले कर शहर के मिशन अस्पताल पहुंच गए. वहां ड्यूटी पर तैनात जो डाक्टर थे, उन्होंने शुरुआती जांच कर नवी से कहा, ”देखिए, पेशेंट को हार्ट अटैक आया है, इन्हें 72 घंटे इनवैस्टीगेशन में रखना होगा.’’

डाक्टर की बात सुन कर नवी घबरा गए. नवी कुरैशी को पता था कि एक साल पहले भी अम्मी को अटैक आया था, पर वह इलाज से ठीक हो गई थीं. ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने एक परची पर जांच लिखते हुए 50 हजार रुपए काउंटर पर जमा करवाने के निर्देश दिए. दूसरे दिन 14 जनवरी को उन की एंजियोग्राफी की गई तथा ईको की जांच के बाद डाक्टर ने नवी से कहा, ”मामला सीरियस है, पेशेंट की 2 नसें ब्लौक हो गई हैं, एक 92 परसेंट तो दूसरी 80 परसेंट तक. इन की सर्जरी करनी पड़ेगी, पैसों का इंतजाम कर लीजिए.’’

नवी ने जब डाक्टर से ईको की जांच रिपोर्ट मांगी तो उन्होंने नहीं दी. 2 दिन पैसों के इंतजाम में चक्कर काटने के बाद हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर से मिले तो उन्होंने कहा कि ब्लौकेज है और इस का हल केवल औपरेशन है. 2 दिन बाद यानी 16 जनवरी को रहीसा  की एंजियोप्लास्टी हुई, जिस के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. मिशन अस्पताल में डा. एन. जौन कैम के द्वारा किए गए औपरेशन के दौरान नवी की अम्मी रहीसा की मौत हो गई. मिशन अस्पताल द्वारा दी गई डिस्चार्ज स्लिप पर 63 साल की रहीसा बेगम की मौत हार्टअटैक से होनी बताई गई थी.

यही वजह थी कि नवी के फेमिली वालों ने डैडबौडी का पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया और डैडबौडी ले कर घर आ गए. इसी तरह दमोह के पटेरा में रहने वाले 68 साल के मंगल सिंह राजपूत को 3 फरवरी, 2025 की सुबह 6 बजे सीने में दर्द हुआ था. उन का छोटा बेटा जितेंद्र तुरंत उन्हें मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा तो डाक्टर ने सामान्य चैकअप के बाद जितेंद्र से कहा, ”इन्हें मेजर अटैक आया है, तुरंत हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी. पैसों का बंदोबस्त कर लीजिए.’’

”लेकिन डाक्टर साहब, अभी तो हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है.’’ घबराते हुए जितेंद्र बोला.

”इन का आयुष्मान कार्ड है क्या? यदि हो तो केवल जांच का पैसा लगेगा और  औपरेशन हो जाएगा.’’ डाक्टर ने कहा.

”हां साहब, आयुष्मान कार्ड तो है, मंगा लेते हैं घर से. आप औपरेशन की तैयारी कर लीजिए.’’ जितेंद्र ने इतना कह कर अपने बड़े भाई धर्मेंद्र को फोन कर के बता दिया कि पापा की हार्ट सर्जरी होनी है, आप तुरंत आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल आ जाओ. इस के बाद सुबह करीब 11 बजे धर्मेंद्र आयुष्मान कार्ड ले कर अस्पताल पहुंचे, तब तक मंगल सिंह की सर्जरी हो चुकी थी. उस समय वह होश में थे, उन्होंने आंखें खोल कर हम से इशारे से बातचीत की, इसी दौरान अचानक वे तड़पने लगे तो डाक्टर और मौजूद स्टाफ ने घर वालों को वार्ड से बाहर कर दिया.

मंगल सिंह के दोनों बेटे और भतीजे शीशे से अंदर झांक रहे थे. अस्पताल का स्टाफ उन का सीना दबा रहा था. डाक्टरों ने बाहर से दवा मंगवाई, कुछ देर बाद स्टाफ ने कोरे कागज पर दस्तखत करवाते हुए कहा कि मरीज को वेंटिलेटर पर रखना है. अस्पताल में शाम 4 बजे तक वेंटिलेटर पर रख कर मरीज का इलाज चलता रहा. जब मंगल सिंह के बेटों ने वहां मौजूद कर्मचारियों से पूछा, तब उन्होंने बताया कि आप के मरीज की तो मौत हो चुकी है. इस के बाद कागजात तैयार कर अस्पताल प्रबंधन ने मंगल सिंह की डैडबौडी घर वालों के सुपुर्द कर दी.

 

 

इसी तरह सत्येंद्र सिंह राठौर निवासी लाडनबाग, हथना (दमोह), इजराइल खान, निवासी डा. पसारी के पास (दमोह), बुधा अहिरवाल निवासी बरतलाई, पटेरा (दमोह) भी मिशन अस्पताल में जा कर मौत का शिकार हुए. दमोह के मिशन अस्पताल में हार्ट सर्जरी को ले कर हुए एक बड़े खुलासे में एक युवक की हिम्मत काम आई. यदि युवक पहल नहीं करता तो शायद यह फरजी डाक्टर और भी कई लोगों की जान ले सकता था. मामले का खुलासा तब हुआ, जब दमोह जिले के बरी गांव का रहने वाला कृष्ण कुमार पटेल अपने दादा आशाराम पटेल को सीने में दर्द के इलाज के लिए 29 जनवरी, 2025 को मिशन अस्पताल ले कर पहुंचा

वहां पहुंचने पर उसे बताया गया कि 50 हजार रुपए जमा करो, उस के बाद ही डाक्टर आ कर मरीज की जांच करेंगे. इस के बाद फेमिली वालों ने तुरंत ही अस्पताल में पैसे जमा कराए. तब कहीं डा. एन. जौन केम ने दादाजी का चैकअप किया और एंजियोग्राफी करने के बाद बताया गया कि आशाराम पटेल को मेजर ब्लौकेज है और उन की सर्जरी करनी पड़ेगी. जब कृष्ण कुमार ने रिपोर्ट और जांच के वीडियो मांगे तो डाक्टर से उन की बहस हो गई. डाक्टर ने कोई भी रिपोर्ट और वीडियो देने से मना कर दिया. इस के बाद कृष्ण कुमार को संदेह हुआ कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लेकिन उस समय उस ने दादाजी को वहां से डिस्चार्ज करा कर जबलपुर ले जाना उचित समझा.

जबलपुर में एक निजी अस्पताल में उन की जांच कराई तो पता चला कि इतने ब्लौकेज नहीं हैं, जितने दमोह में बताए जा रहे थे. वहां पर एंजियोप्लास्टी कराने के बाद वह दमोह आ गए. फिर उस ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट दीपक तिवारी से मुलाकात की तथा पूरे साक्ष्य एकत्र करने के बाद उन्होंने मानव अधिकार आयोग, एसपी तथा डीएम साहब से मामले की शिकायत की. लेकिन पुलिस ने समय पर न तो मामला दर्ज किया और न ही आरोपी डाक्टर के खिलाफ कोई जांच की. पुलिस जांच करती या आरोपी डाक्टर पर कोई केस दर्ज करती, इस के पहले ही डाक्टर अस्पताल छोड़ कर फरार हो गया.

इसी बीच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने जब प्रशासन को नोटिस जारी किए तब आननफानन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन ने कथित डाक्टर के खिलाफ कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई.

प्रयागराज में पकड़ा गया फरजी डाक्टर

इस पूरे मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. बताया जाता है कि डा. मुकेश जैन पहले नरसिंहपुर जिले में सिविल सर्जन के पद पर पदस्थ रह चुके हैं. उस दौरान फरजी डा. एन. जौन केम ने वहां पर अपनी प्रैक्टिस चालू की थी. वहीं पर दोनों का परिचय हुआ था. शायद इसी वजह से सीएमएचओ ने समय पर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. लेकिन जैसे ही मानव अधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया तो मजबूरन सीएमएचओ को फरजी डाक्टर के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराना पड़ा.

दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक के 3 महीने में मिशन असपताल में हुई 7 मौतों के मामले में जब डाक्टर पर एफआईआर दर्ज हुई तो दमोह जिले के एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने डाक्टर को पकडऩे के लिए एक टीम गठित कर साइबर टीम की मदद ली. फरजी डाक्टर की मोबाइल लोकेशन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मिली. 7 अप्रैल की शाम करीब 4 बजे टीम प्रयागराज पहुंची तो आरोपी का मोबाइल बंद मिला. इधर, दमोह साइबर टीम के राकेश अठया और सौरभ टंडन लगातार डाक्टर की लोकेशन ट्रैस कर रहे थे. लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम प्रयागराज पहुंच गई और स्थानीय पुलिस की मदद से औद्योगिक थाना क्षेत्र इलाके में ओमेक्स अदनानी बिल्डिंग के एक फ्लैट में छिपे डा. एन. जौन कैम को गिरफ्तार कर लिया.

दमोह ले जा कर एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने उस से सघन पूछताछ की. नरेंद्र विक्रमादित्य उर्फ डा. नरेंद्र जौन केम को पुलिस रिमांड पर ले कर उस के गृह निवास कानपुर पहुंची, जहां से कई चौंकाने वाले सच निकल कर सामने आए. एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने बताया, ”नरेंद्र जौन केम के निवास से कई फरजी दस्तावेज मिले हैं, जिस में आधार कार्ड, कई तरह की स्टैंप और कई तरह के फरजी डाक्यूमेंट्स शामिल थे. हालांकि उस के पिता के मुताबिक आरोपी डाक्टर का संपर्क ज्यादातर उस के परिवार से नहीं रहा. वह अपने घर बहुत कम आताजाता था.’’

डाक्टर के दस्तावेजों से पता चला कि उस ने दार्जिलिंग मैडिकल कालेज से  एमबीबीएस की पढ़ाई की थी और पहले ही अटेंप्ट में उस का पीएमटी निकल गया था. इस के बाद उस ने पहली बार नोएडा में प्रैक्टिस शुरू की थी. लेकिन 2013 में उस के द्वारा उपचार में कोताही और फरजीवाड़ा सामने आने के बाद इंडियन मैडिकल एसोसिएशन ने 2014 से 2019 तक उस का रजिस्ट्रैशन कैंसिल कर दिया था. इस अवधि में उस ने हैदराबाद तथा कई अन्य जगहों पर भी अलगअलग नाम से प्रैक्टिस की थी. उस के पिता ने पुलिस को बताया कि नरेंद्र पढऩे में शुरू से ही बहुत होशियार था और लंदन की जार्जिस यूनिवर्सिटी के डा. एन. जौन केम से काफी प्रभावित था. वह उन्हें अपना आदर्श मानता था, इसलिए उन के नाम पर इस ने अपना नाम नरेंद्र जौन केम रख लिया.

पुलिस को उस के घर से कई रिसर्च पेपर भी बरामद हुए. उस के घर में एक पूरी की पूरी लैब बनी हुई थी. वहां से पुलिस ने कई सारी फरजी डिग्रियां और दस्तावेज बरामद किए. जो रिसर्च पेपर बरामद किए गए, उस में इस ने संपादन भी किया. घर से जो चीजें बरामद हुईं, वे फरजी पाई गईं. उस ने पूछताछ में भी यह बात कबूल की. नरेंद्र विक्रमादित्य 2004 से ले कर 2009 तक यूएस में रहा और वहां से इस ने एमडी की डिग्री करने की बात कही है. वह अभी भी इस बात पर कायम है कि उस की सभी डिग्रियां असली हैं. लेकिन अभी तक की जांच में इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है. इस संबंध में पुलिस संबंधित यूनिवर्सिटीज और मैडिकल कालेज से संपर्क कर कर रही है.

पुलिस को जांच में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिस से कि पता चल सके कि इस ने बाहर के मैडिकल कालेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की हो. इस ने केवल एमबीबीएस किया है. उस के बाद की इस की सभी डिग्रियां फरजी हैं. सीएमएचओ मुकेश जैन ने फरवरी माह में मिशन अस्पताल में हुई सभी सर्जरी और डाक्टर्स की जानकारी अस्पताल मैनेजमेंट से मांगी थी, लेकिन अस्पताल मैनेजमेंट ने डा. नरेंद्र जौन केम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. इस की रिपोर्ट 5 मार्च, 2025 को दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर को दी गई थी.

दूसरी बार फिर मिशन अस्पताल से डाक्टर के डाक्यूमेंट मांगे गए, तब जो डाक्यूमेंट दिए, उस में बताया गया कि आरोपी डाक्टर ने कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमडी की डिग्री की है और कार्डियोलौजी की डिग्री पुडुचेरी से की है. सभी डाक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सागर मैडिकल कालेज को पत्र लिखा, लेकिन उन का जवाब आया कि वहां कार्डियोलौजिस्ट नहीं है. इसलिए जबलपुर मैडिकल कालेज से जांच की मांग कीजिए. इस के बाद 4 अप्रैल, 2025 को जबलपुर मैडिकल कालेज टीम को जांच के लिए पत्र लिखा गया.

सीएमएचओ मुकेश जैन ने बताया, मैडिकल कालेज जबलपुर की टीम ने जब डाक्टर की डिग्री की जांच की तो उस में पुडुचेरी विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर थे. इस बात का सत्यापन करने के लिए जब टीम ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी के हस्ताक्षर चैक किए तो डिग्री में मौजूद हस्ताक्षर और ओरिजिनल हस्ताक्षर में अंतर मिला. इस से स्पष्ट हो गया कि आरोपी डाक्टर की कार्डियोलौजिस्ट की डिग्री फरजी है.

अस्पताल पर ऐसे कसा शिकंजा

नियमानुसार मध्य प्रदेश में प्रैक्टिस करने के लिए डाक्टर को एमपी सरकार के स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रैशन कराना आवश्यक होता है, लेकिन एमपी में डा. कैम रजिस्टर्ड नहीं है. उस के जो दस्तावेज मिले हैं, उस में उस ने आंध्र प्रदेश का रजिस्ट्रैशन लगाया है, लेकिन आंध्र प्रदेश के मैडिकल बोर्ड में भी उस के रजिस्ट्रैशन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं पाए गए हैं. मध्य प्रदेश के दमोह में फरजी डाक्टर द्वारा की गई हार्ट सर्जरी और उस से जुड़ी 7 मौतों के मामले में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  के सदस्य प्रियांक कानूनगो 16 अप्रैल, 2025 को दमोह पहुंचे. आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने मृतकों के फेमिली वालों से मुलाकात कर जिला प्रशासन और खासतौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए.

उन्होंने कहा कि जो तथ्य सामने आए हैं, उन में सीएमएचओ डा. मुकेश जैन की लापरवाही स्पष्ट रूप से उजागर हो रही है. इस फरजी डाक्टर ने दिसंबर 2024 को दमोह के मिशन अस्पताल में फरजी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति पाई. इस दौरान अस्पताल ने उसे ठीक से जांच किए बिना 8 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन देने का कौन्ट्रैक्ट भी किया. चौंकाने वाली बात यह है कि यह अस्पताल सरकार की आयुष्मान भारत स्कीम के तहत गरीबों का इलाज भी करता था. ऐसे में फरजी डाक्टर ने सार्वजनिक फंड्स का लंबे समय तक नुकसान किया और अस्पताल प्रशासन को इस की भनक तक नहीं लगी.

आरोपित डाक्टर ने लंदन के कार्डियोलौजिस्ट डा. एन. जौन कैम के नाम पर ढाई महीने में 15 हार्ट औपरेशन किए. साल 2024 के दिसंबर महीने से फरवरी 2025 के बीच हुए इन औपरेशनों में 7 मरीजों की मौत हो गई.  इस बात का खुलासा तब हुआ, जब एक मरीज के फेमिली वालों को शक हुआ, फिर उन्होंने शिकायत की. इस के बाद मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंचा.

कौन हैं असली प्रोफेसर जौन कैम?

बीते कई दिनों से देश की सुर्खियों में रहने वाला दमोह का मिशन अस्पताल दरअसल ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित है. इसी अस्पताल के प्रबंधन ने बिना किसी जांचपड़ताल के एक हार्ट स्पैशलिस्ट की सेवाएं लेनी शुरू कर दीं. प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के सख्त निर्देश के बाद हुई काररवाई को अंजाम देते हुए स्वास्थ्य विभाग ने मिशन अस्प्ताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया है. जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. मुकेश जैन ने बताया कि मिशन अस्पताल के लाइसेंस की अवधि 31 मार्च 2025 तक थी.

नियमानुसार अस्पताल को लाइसेंस रिन्यूवल के लिए पोर्टल पर अप्लाई करना था, मिशन अस्प्ताल ने अप्लाई भी किया था, लेकिन उस मेंकमियां पाई गईं, जिस वजह से अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया गया है. डा. जैन के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिए गए हैं कि 3 दिनों के भीतर वो यहां एडमिट मरीजों को डिस्चार्ज कर दे और यदि गंभीर मरीज हैं तो उन्हें जिला अस्पताल में दाखिल कराएं. दमोह में 7 मरीजों की जान का दुश्मन बना नरेंद्र विक्रमादित्य यादव एक फरजी डाक्टर ही नहीं है, बल्कि वह बड़ा शातिर बदमाश भी है. उस ने जिस विदेशी डाक्टर की पहचान चुराई, वह असल में प्रोफेसर जौन कैम हैं.

जौन कैम लंदन के सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल कार्डियोलौजी के एमेरिटस प्रोफेसर हैं. फरजी एन जौन कैम (नरेंद्र विक्रमादित्य यादव) की सच्चाई सामने आने के बाद फैक्ट चेक वेबसाइट बूम ने असली जौन कैम से मामले को ले कर बात की तो उन्होंने कहा, ”नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उन की पहचान का दुरुपयोग कर रहा था.’’ वह उन के njohncamm.com नाम से एक वेबसाइट भी चलाता था और @njohncamm नाम से उस का एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल भी था. हालांकि, अब इसे सस्पेंड कर दिया गया है.

फरजी डा. एन जौन कैम जो वेबसाइट चलाता था, उस पर कई बड़े दावे किए गए हैं. वेबसाइट के अनुसार उस ने एमबीबीएस और एमडी की डिग्री भारत से की है. वहीं, 2001 में सेंट जौर्ज हौस्पिटल लंदन (यूके) से एमआरसीपी (Member, Royal College of Physicians) की डिग्री पूरी की. 2002 में सेंट जार्जेस हौस्पिटल, लंदन में इंटरवेंशनल कार्डियोलौजिस्ट के रूप में जौइन किया और प्रशिक्षण लिया. इस के बाद ब्रिटिश हार्ट एसोसिएशन की सदस्यता मिली और फिर उसे ब्रिटिश मैडिकल जर्नल में समीक्षा बोर्ड का संपादक नियुक्त किया गया. 2004 में आरएफयूएमएस नार्थ शिकागो में डा. जेफरी बी लैकियर के अंडर में फेलोशिप भी पूरी की. साथ ही अब तक प्राइमरी एंजियोप्लास्टी समेत 18 हजार से अधिक जटिल कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी की हैं.

करीब 5 साल पहले एक ट्विटर अकाउंट के जरिए यह पहचान चोरी सामने आई थी, जिस में आरोपी ने खुद को डा. जौन कैम बता कर कई विवादास्पद राजनीतिक बयान दिए थे. मिशन अस्पताल में हुई 7 मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि फरजी दस्तावेजों के जरिए कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था. इस आधार पर पुलिस ने 9 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. दमोह के एएसपी संदीप मिश्रा ने  बताया, ”मिशन अस्पताल में जिस कैथलैब को सील किया गया था, जब उस की जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा गठित टीम ने की तो पाया कि कैथलैब का अवैध रूप से संचालन हो रहा था.

जिला अस्पताल में पदस्थ डा. अखिलेश दुबे के फरजी हस्ताक्षर कर के कैथलैब संचालन की अनुमति बनाई गई थी. जिस में कुछ मरीजों की एंजियोग्राफी एवं एंजियोप्लास्टी करना पाया गया.’’

स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई शिकायत के आधार पर कोतवाली में बीएनएस की धारा 318 (4), 336 (2), 340 (2), 105, 3, 5 मध्य प्रदेश उपचार एवं रूजोपचार अधिनियम रजिस्ट्रीकरण एवं अधिज्ञापन अधिनियम 1973 एवं नियम 1997 2021 की धारा 12 के तहत केस दर्ज किया गया. जिन 9 लोगों को मामले में आरोपी बनाया गया है, उन में असीम, फ्रैंक हैरिसन, इंदु, जीवन, रोशन, कदीर यूसुफ, डा. अजय लाल, संजीव लैंबर्ट तथा विजय लैंबर्ट के नाम शामिल हैं. मिशन अस्पताल में फरजी डिग्री के सहारे कार्डियोलौजिस्ट बन कर मरीजों की जान से खेलने वाले डा. नरेंद्र यादव को 7 अप्रैल, 2025 को प्रयागराज से गिरफ्तार करने के बाद 18 अप्रैल की दोपहर जिला कोर्ट में पेश किया गया.

इस दौरान डाक्टर के वकील सचिन नायक ने आरोपी के जब्त मोबाइल के लिए कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि मेरे मुवक्किल का फोन वापस दिलाया जाए, ताकि वह वकील की फीस दे सके. इस पर सहायक लोक अभियोजक एडीपीओ संजय रावत ने कहा कि मोबाइल की अभी फोरैंसिक जांच होनी है. इस के बाद कोर्ट ने यह मांग खारिज कर दी और आरोपी डाक्टर को 5 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया. उसे पहले 5 दिन और फिर 4 दिन की रिमांड पर लिया. कथा लिखने तक आरोपी तथाकथित डा. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डा. एन जौन कैम से पुलिस पूछताछ कर रही थी.

दिल्ली में पकड़ी गई 12वीं पास फरजी डाक्टर

देश के फरजी झोलाछाप डाक्टर केवल गांवकस्बों में ही नहीं हैं, महानगर भी इन से अछूते नहीं हैं. अप्रैल 2025 में देश की राजधानी दिल्ली में एक फरजी महिला डाक्टर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. फरजी डाक्टर दिल्ली की संगम विहार कालोनी में रहने वाली किरण श्रीवास्तव है, जिस की उम्र 48 साल है. जांच में पाया गया कि महिला डाक्टर सिर्फ 12वीं पास है और उस ने मैडिकल दस्तावेजों में जालसाजी कर के फरजी बीएएमएस डिग्री बिहार से हासिल की दिखाई. उस के आधार पर क्लीनिक खोल लिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी आदित्य गौतम ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि विकास नगर रणहौला में रहने वाले रमेश कुमार ने इस फरजी डाक्टर के खिलाफ केस दर्ज कराया था. शिकायत में कहा गया कि 2009 में रमेश की गर्भवती पत्नी को पेट दर्द की समस्या थी, जिस के कारण उस ने महिला डाक्टर के पास उसे क्लीनिक में भरती कराया था. फरजी डाक्टर ने पत्नी को क्लीनिक में भरती कर इलाज किया और डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन पेट दर्द से छुटकारा नहीं मिल सका. रमेश ने अपनी पत्नी को दोबारा क्लीनिक में भरती कराया तो डाक्टर ने कहा कि महिला की सर्जरी करानी होगी.

उक्त महिला डाक्टर ने पत्नी की सर्जरी की और उसे घर भेज दिया. कुछ दिनों बाद पत्नी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और इलाज के दौरान उस ने दम तोड़ दिया. रमेश ने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. जांच में पता चला कि महिला के पास किसी तरह की वैध डिग्री नहीं थी. उस ने बीएएमएस की जाली डिग्री बनवाई थी और उसी के आधार पर क्लीनिक खोला था. पुलिस ने इस मामले में तथाकथित महिला डा. किरण श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिनों में उसे जमानत भी मिल गई. जमानत मिलने के बाद फरजी महिला डाक्टर कोर्ट में हाजिर नहीं हुई तो 2016 में अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया.

दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया. सूचना के आधार पर पुलिस ने ग्रेटर कैलाश-2 में छापेमारी कर आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में किरण श्रीवास्तव ने बताया कि साल 2005-06 में वह दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में एक डाक्टर के पास असिस्टेंट के रूप में काम करती थी. उस क्लीनिक में उस ने बेसिक इलाज करना सीख लिया था. इस के बाद उस ने बीएएमएस की फरजी डिग्री ले कर अपना क्लीनिक रणहौला में खोल लिया, जहां वो स्त्रीरोग संबंधी रोगों का इलाज किया करती थी.

ओटी टेक्नीशियन कराता था महिलाओं की डिलीवरी

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ओटी टेक्नीशियन ने खुद को डाक्टर बता कर 14 महिलाओं की सीजेरियन डिलीवरी कर डाली. 15वें औपरेशन में महिला की मौत हो गई, तब उस की असलियत सामने आई. इस का पता चलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. गुस्साए फेमिली वालों ने अस्पताल में हंगामा किया. शुरुआती जांच में पता चला कि अस्पताल संचालक पतिपत्नी नारमल डिलीवरी को जटिल बता कर पेशेंट को डराते थे. कहते थे कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, फिर सर्जन के नाम पर ओटी टेक्नीशियन को बुला कर औपरेशन करवा कर पैसे भी वसूल करते थे.

चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि अस्पताल भी बिना लाइसेंस के चल रहा था. यहां कोई भी डिग्रीधारी डाक्टर नहीं था. बांसगांव गोहली बसंत निवासी 28 साल की रेनू की दूसरी डिलीवरी होनी थी. 27 अप्रैल, 2025 की शाम को उसे प्रसव पीड़ा हुई तो रेनू के पति दिनेश कुमार ने इस की सूचना गांव की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री से मिला. आशा दीदी ने सरकारी एंबुलेंस की मदद से रविवार शाम करीब 4 बजे सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में उसे भरती कराया. 2 घंटे लगातार इलाज होने के बाद डिलीवरी नहीं हुई तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर ने उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया.

मगर आशा दीदी गंगोत्री ने रेनू को जिला अस्पताल न ले जा कर बघराई में स्थित श्री गोविंद हौस्पिटल में ले जा कर भरती करा दिया. यहां पर बघराई गांव निवासी अस्पताल संचालक अमरीश राय और उस की पत्नी ने फेमिली वालों को डराया. कहा कि पेट में बच्चा टेढ़ा है, जल्द से जल्द डिलीवरी करानी पड़ेगी. यह सुन कर फेमिली वाले डर गए और औपरेशन के लिए राजी हो गए. पतिपत्नी ने रात 9 बजे ओटी टेक्नीशियन पन्नालाल को बुलाया और मरीज के घर वालों से कहा, ”यही हमारे अस्पताल के सर्जन हैं.’’

इस के बाद ओटी टेक्नीशियन ने औपरेशन किया, महिला ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन इस के बाद उस की तबीयत बिगडऩे लगी. प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगीं. दूसरे दिन 28 अप्रैल की सुबह हौस्पिटल का वही टेक्नीशियन मरीज को कार से ले कर दूसरे अस्पताल में भरती कराने निकल गया. इस बीच ज्यादा खून बहने से रास्ते में ही रेनू ने दम तोड़ दिया. यह खबर मिलते ही टेक्नीशियन और अस्पताल संचालक पतिपत्नी फरार हो गए. मामला उजागर होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने श्री गोविंद हौस्पिटल पर काररवाई के बाद खजनी इलाके के अवैध तरीके से संचालित श्री हरि मैडिकल सेंटर को भी सील कर दिया.

वहीं लापरवाही से औपरेशन कर प्रसूता की मौत के मामले में 3 आरोपियों गगहा जगरनाथपुर निवासी कथित डा. पन्नालाल दास, उस के बेटे नीरज और गोहली बसंत की आशा कार्यकर्ता गंगोत्री देवी को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया है. Social Stories in Hindi

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 3

आयुष्मान कार्ड किसी से न करें शेयर

डा. राकेश बोहरे  (चीफ मैडिकल एंड हेल्थ औफिसर) नरसिंहपुर

सरकार जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिन के जरिए मरीज को हौस्पिटल में एडमिट कर कैशलेस इलाज किया जाता है, लेकिन सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर धांधली भी कुछ प्राइवेट हौस्पिटलों द्वारा की जा रही है.

नैशनल हेल्थ अथौरिटी (एनएचए) आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम को ले कर पहले ही एंटी फ्रौड गाइडलाइंस जारी कर चुका है. इस के अलावा विभाग ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में भी नैशनल एंटी फ्रौड यूनिट (एनएएफयू) गठित की है, जो इस योजना से संबंधित फरजीवाड़े की राज्य स्तर पर निगरानी कर सकें. सरकार इस स्कीम को जीरो टेलरेंस अप्रोच के तहत लागू कर रही है.

इस योजना का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों को जरूरी दस्तावेजों को जमा करना पड़ता है और साथ ही उन्हें रोगी की औनबेड फोटो भेजनी पड़ती है. इस के अलावा इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए आधार बेस्ड वेरिफिकेशन भी किया जाता है.

गांवों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी अभी भी इतनी शिक्षित नहीं है कि वह सरकारी योजनाओं की जानकारी को पूरी तरह से समझ सके. जब किसी परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है तो घर वाले उसे उन प्राइवेट हौस्पिटल में ले जाते हैं, जहां उसे मुफ्त इलाज मिलता है.

मरीज का इलाज शुरू होते ही फारमेलिटी के नाम पर सभी दस्तावेज जमा करवा लिए जाते हैं. रोगी की गंभीर हालत का खतरा दिखा कर कई बार जांच और दवाइयों के नाम पर कुछ रुपए भी जमा करवा लिए जाते हैं. बाद में पता चलता है कि प्राइवेट हौस्पिटल ने इलाज पर खर्च रुपयों से अधिक रुपए सरकारी खजाने से निकाल लिए.

आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार इलाज के लिए 5 लाख रुपए तक की मदद करती है. रोगी इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करा सकते हैं. इस के लिए सरकार के द्वारा 5 लाख रुपए तक की मदद की जाती है. कई दफा ठग रोगी की निजी जानकारियां चुरा कर इस स्कीम के तहत जालसाजी कर लेते हैं. इस के लिए उन की अस्पताल के साथ भी सांठगांठ रहती है.

इस से बचने के लिए अपनी निजी जानकारियों समेत इलाज से संबंधित जानकारियों को किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए. साथ ही यदि कोई प्राइवेट हौस्पिटल सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का मुफ्त लाभ देने में कोताही बरते या मरीज के परिवार से रुपए वसूले तो इस की शिकायत जरूर करनी चाहिए.

जिस तरह एटीएम कार्ड के जरिए साइबर फ्रौड की घटनाएं देश में बढ़ रही हैं, उसी तरह आजकल कुछ जालसाज भी लोगों को आयुष्मान कार्ड की आड़ में भी लूट रहे हैं.

ऐसे लोग प्राइवेट हौस्पिटल के डाक्टर्स के साथ मिल कर या कोई अन्य तरीकों से बीमा के पैसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ मैडिकल काउंसिल ने 5 ऐसे डाक्टरों को पकड़ा, जो कार्डधारकों की झूठी मैडिकल रिपोर्ट बनाते थे और फिर उन के आयुष्मान कार्ड से इलाज के नाम का बिल लगा कर मोटी रााशि निकाल लिया करते थे.

इन सभी डाक्टरों को निलंबित कर दिया गया है. ऐसे में आप के लिए भी जरूरी है कि आप कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि आप धोखाधड़ी से बच सकें.

अगर आप आयुष्मान योजना के कार्डधारक हैं तो आप को भूल कर भी किसी के साथ अपने इस कार्ड की डिटेल्स शेयर नहीं करनी चाहिए. आप के इस कार्ड का गलत इस्तेमाल कर के कोई भी इस से उपचार के बहाने पैसे निकाल सकता है.

कोशिश करें कि कार्ड को अपने पास ही रखें और जरूरत पड़ने पर अधिकारियों को ही इसे दें. अन्यथा आप के कार्ड की जानकारी ले कर कोई भी इस का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

अगर आप आयुष्मान कार्ड बनवा चुके हैं और आप को कस्टमर केयर बन कर कोई काल करता है और फिर आप से आप की बैंकिंग जानकारी अपडेट करने के लिए मांगता है तो आप को ऐसे काल्स से सावधान रहना है, क्योंकि ये जालसाज के काल्स होते हैं और ये आप को ठग सकते हैं.

जालसाज केवाईसी करवाने के नाम पर भी लोगों को ठग रहे हैं. इसलिए आप को ऐसे लोगों से सावधान रहना है, ये लोग आप को मैसेज, वाट्सऐप या ईमेल पर फरजी लिंक भेज कर भी चपत लगा सकते हैं.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 2

पुलिस को क्यों दर्ज करनी पड़ी रिपोर्ट

जानकारी में पता चला कि मैक्सकेयर हौस्पिटल द्वारा 2 बार में उस के कार्ड से लगभग 75 हजार रुपए निकाले गए हैं. यह जानकारी मिलते ही खालिद ने 2 अगस्त, 2022 को एसपी (भोपाल) से मिल कर मैक्सकेयर हौस्पिटल की धोखाधड़ी की शिकायत की, मगर कोई काररवाई नहीं हुई. हौस्पिटल संचालक डा. अल्ताफ मसूद  (Dr. Altaf Masood) के रसूख के चलते खालिद की शिकायत नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर दब गई.

तभी खालिद ने भोपाल के प्रसिद्ध वकील शारिक चौधरी (Advocate Shariq Choudhry) के बारे में सुना था कि वह लोगों की मदद करते हैं. एक दिन खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी से मुलाकात कर अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जानकारी उन्हें विस्तार से दी.

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तब एडवोकेट शारिक चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 156 के तहत माननीय न्यायाधीश संदीप कुमार नामदेव प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भोपाल की अदालत में परिवाद दायर किया. तब कोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को एसपी को आदेश दे कर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

भोपाल के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी निवासी 28 साल के खालिद अली की शिकायत पर भोपाल की तलैया पुलिस ने फतेहगढ़ स्थित मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल के संचालक अल्ताफ मसूद पर धोखाधड़ी,  फरजी दस्तावेज तैयार करने के मामले में केस दर्ज कर लिया.

एफआईआर के बाद तलैया पुलिस थाने के एसआई कर्मवीर सिंह जब जांच के लिए अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल संचालक वहां से गायब हो गया. एसआई शर्मा ने मौजूद स्टाफ से जोहान के इलाज संबंधी फाइल की जांच कर बयान दर्ज किए. जांच के दौरान इलाज करने वाला डाक्टर अस्पताल से नदारद मिला.

3 महीने तक मासूम को हौस्पिटल में भरती रखा गया, जिस में कई बार में दवाइयों और इलाज के नाम पर 3 लाख से अधिक रुपए वसूल लिए. खालिद जब भी बिल मांगता, अस्पताल प्रबंधन उसे टके सा जबाव दे देता, ”मरीज के डिस्चार्ज होने के समय पूरे बिल दे दिए जाएंगे, आप चिंता न करें.’‘

आखिरकार मासूम जोहान की मौत हो गई और बाद में पता लगा कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड से भी बच्चे के इलाज के नाम पर रकम सरकारी खजाने से ली गई है, जबकि खालिद के परिवार को इस की जानकारी नहीं दी गई थी. खालिद ने सब से पहले इस फरजीवाड़े की शिकायत पुलिस थाने में की तो सुनवाई नहीं हुई. तब जा कर कोर्ट में परिवाद दायर किया.

धोखाधड़ी का पता चलते ही खालिद ने सभी संबंधित सरकारी विभागों में इस की शिकायत की और आयुष्मान योजना के भोपाल औफिस से आए वेरीफिकेशन काल वालों को भी बताया कि उस ने अपने बेटे के इलाज का पूरा भुगतान कर दिया है. इस के बाद भी कहीं से कोई काररवाई नहीं हुई.

आखिरकार खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी के माध्यम से धोखाधड़ी का परिवाद कोर्ट में दायर कर दिया. इस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पुलिस को धारा 120बी, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. इस के बाद भोपाल की तलैया पुलिस थाने में अस्पताल के संचालक डा. अलताफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया.

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खालिद अली ने बताया कि डा. अल्ताफ मसूद सरकारी योजनाओं में जम कर भ्रष्टाचार कर रहा है और उस के खिलाफ शिकायतें भी हो रही हैं, मगर अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते उस पर कोई काररवाई नहीं होती है.

भोपाल की तलैया पुलिस ने आयुष्मान भारत योजना के औफिस को पत्र लिख कर जानकारी चाही है कि इस योजना का लाभ हासिल करने और इलाज के दौरान भुगतान के कौन से नियम हैं. कथा लिखे जाने तक डा. अल्ताफ मसूद पर कोई काररवाई नहीं हुई थी.

आयुष्मान कार्ड धारकों में मध्य प्रदेश अव्वल

‘आयुष्मान भारत योजना’ के सब से ज्यादा आयुष्मान कार्डधारक मध्य प्रदेश में ही हैं. यहीं पर सब से ज्यादा लापरवाही देखी जा रही है. कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में आयुष्मान के लिए जिला स्तर पर शिकायत निराकरण समितियों का गठन नहीं किया गया है.

आयुष्मान योजना में सूचना शिक्षा और संवाद का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया. कैग की पैन इंडिया औडिट रिपोर्ट में अनियमितताओं के सब से ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में ही हैं. मध्य प्रदेश में कई संदिग्ध कार्ड और मृत लोगों को भी लाभार्थी के रूप में रजिस्ट्रैशन की जानकारी पाई गई है.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में करीब 25 अस्पताल ऐसे हैं, जिन्होंने क्षमता से अधिक बैड आक्यूपेंसी दिखाई. यानी कि इन अस्पतालों ने एक दिन में बैड क्षमता से ज्यादा मरीजों की भरती दिखा कर क्लेम लिया है. भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में 20 मार्च, 2023 तक 100 बैड थे, लेकिन इस में 233 मरीजों को दिखाया गया.

कैग की रिपोर्ट में सरकारी अस्पताल समेत कुल 24 अस्पतालों के नाम शामिल हैं. कैग की रिपोर्ट में कहा गया डिफाल्टिंग अस्पतालों से होने वाली रिकवरी के मामले में मध्य प्रदेश के आंकड़े सब से खराब हैं.

आयुष्मान भारत योजना में 2022 में जबलपुर के एक निजी अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ का चूना लगाया था. इस अस्पताल ने मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म की तरह 4 हजार मरीजों को होटल में भरती कर के फरजी इलाज किया. अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था.

जबलपुर पुलिस की टीम ने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिल कर 26 अगस्त, 2022 को सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में छापा मारा था. उस समय अस्पताल के अलावा बाजू में होटल वेगा में भी छापा मारा गया था. जांच के दौरान होटल वेगा और अस्पताल में आयुष्मान कार्डधारी मरीज भरती पाए गए थे.

अस्पताल संचालक डा. दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी कुमार पाठक ने कई लोगों को फरजी मरीज बना कर यहां रखा था. होटल के कमरे में 3-3 लोग भरती पाए गए थे. अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था. इस के बाद पुलिस ने डाक्टर दंपति के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था और डाक्टर दंपति को जेल की हवा खानी पड़ी थी.

इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी जांच में यह खुलासा हुआ था कि आयुष्मान भारत योजना के तहत सेंट्रल इंडिया किडनी हौस्पिटल में 2 से ढाई साल में लगभग 4 हजार मरीजों का इलाज हुआ था, जिस के एवज में सरकार द्वारा तकरीबन साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान अस्पताल को किया गया था.

इस के साथ ही इस बात के भी दस्तावेज मिले हैं कि दूसरे राज्यों के मरीजों का उपचार भी सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में हुआ था, जोकि गैरकानूनी है.

एसआईटी ने सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों से भी पूछताछ की, जिस में कई कर्मचारियों ने बताया कि वह अस्पताल में आयुष्मान योजना का लाभ लेने वाले लोगों को भरती करवाते थे तो अस्पताल संचालक दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी पाठक बतौर कमीशन 5 हजार रुपए देते थे.

कमीशन लेने के लिए कर्मचारियों ने कई बार एक ही परिवार के लोगों को अलगअलग तारीखों में भरती किया था. उन के नाम पर आयुष्मान योजना का फरजी बिल लगा कर लाखों रुपए की वसूली की गई थी.

—कथा c, पीड़ित परिवार से बातचीत और पुलिस सूत्रों पर आधारित

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 1

3 महीने तक चले इलाज के दौरान डाक्टरों ने कई बार जोहान को ब्लड देने की मांग की, तब एक बार खालिद और एक बार दादा जाकिर अली ने भी उसे खून दिया था. जबकि 2 बार खालिद के परिचितों ने जोहान के लिए ब्लड डोनेट किया था.

मैक्सकेयर हौस्पिटल (Max care Hospital) के डाक्टरों का ध्यान जोहान की सेहत के बजाय रुपए वसूलने पर ज्यादा था, इसलिए जोहान की हालत में कोई सुधार नहीं आया. रुपए खर्च कर परिवार के लोग थक चुके थे.

परिवार के लोग जोहान की हालत देख कर चिंतित हो जाते थे, उस के शरीर में केवल हड्डी और चमड़ी ही बची थी. एक दिन खालिद ने अस्पताल की संचालक डाक्टर से सवाल किया, ”सर, हमारे लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं. आखिर बच्चे की हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? सुधार की जगह हमें गिरावट ही दिख रही है. डाक्टर साहब, उस की हालत कब सुधरेगी. अब तो हमारे पास पैसे भी नहीं बचे हैं.’‘

इस पर डाक्टर ने झल्ला कर जबाव दिया, ”हम लोग उस का इलाज कर रहे हैं न, पैसों की इतनी दिक्कत है तो किसी खैराती अस्पताल में जा कर उस का इलाज कराओ.’‘

जनवरी की वह रात बहुत सर्द थी. कमरे के अंदर भी हाथपांव ठंड की वजह से सुन्न हो रहे थे. मध्य प्रदेश के जिला भोपाल (Bhopal) के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले 28 वर्षीय खालिद अली का 3 महीने का बेटा जोहान भी ठंड की वजह से परेशान था, उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. अपनी अम्मी की बाजू में लेटे जोहान के बदन की गरमाहट से उस की अम्मी का बुरा हाल था. उस ने घड़ी देखी, उस समय रात के 2 बज रहे थे. सुबह होने में अभी काफी वक्त था. शौहर खालिद गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था.

परेशान हो कर वह बैड से उठी और बाजू के बैड पर सो रहे शौहर खालिद को झिंझोड़ते हुए बोली, ”जल्दी से उठिए, मुझे जोहान की तबीयत ठीक नहीं लग रही.’‘

”क्या हुआ, तुम मुझे सोने भी नहीं  देती?’‘खालिद ने आंखें मलते हुए लापरवाही से कहा.

”जोहान तेज बुखार से तप रहा है, उसे सर्दी भी है और उस की सांसें तेज चल रही हैं. जल्दी उठिए, उसे अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’‘जोहान की अम्मी बोली.

तब तक खालिद नींद से पूरी तरह जाग चुका था, उस ने उठ कर जोहान की नब्ज टटोली और बीवी से बोला, ”जल्दी से तैयार हो जाओ, जोहान को तुरंत अस्पताल ले जाना होगा.’‘

तब तक खालिद के अब्बू जाकिर अली भी जाग चुके थे. उन्हें जैसे ही पोते की तबीयत खराब के बारे में बताया गया तो वह भी चिंता में पड़ गए. तब तक खालिद ने एक परिचित आटोरिक्शा वाले को फोन कर दिया था. रिक्शा आतेआते सुबह के 4 बज चुके थे. दादा जाकिर ने अच्छी तरह समझाते हुए कहा, ”बेटा, जोहान को फतेहगढ़ के मैक्सकेयर अस्पताल ही ले कर जाना.’‘

”हां अब्बू, तुम चिंता मत करो, हम वहीं ले कर जा रहे हैं.’‘खालिद ने आटोरिक्शा में बैठते हुए कहा.

चंद मिनटों में ही खालिद अपनी बीवी और बीमार बेटे को ले कर फतेहगढ़ इलाके में स्थित बच्चों के मशहूर मैक्सकेयर चिल्ड्रन हौस्पिटल पहुंच गया. इमरजेंसी वार्ड से जोहान को आईसीयू में भरती करा दिया. यह बात 4 जनवरी, 2022 की है.

इस के पहले भी जोहान को सर्दी जुकाम होने पर 26 नवंबर, 2021 को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया गया था. उस समय जोहान को हौस्पिटल में 6 दिसंबर, 2021 तक भरती रखा गया था.

डाक्टरों ने बुखार के मरीज को 3 महीने क्यों किया भरती

जब खालिद ने पहली बार अपने बेटे को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया था, तभी उस ने हौस्पिटल के संचालक डा. अल्ताफ मसूद से कहा था, ”सर, मेरे पास आयुष्मान कार्ड है, क्या इलाज में यह काम आएगा?’‘

”देखिए, हमारा हौस्पिटल अभी आयुष्मान योजना के पैनल में शामिल नहीं है, लेकिन जल्द ही हो जाएगा. आप के बेटे की हालत नाजुक है, ऐसे में आप अभी पेमेंट कर दें, यदि आगे लाभ मिलेगा तो इलाज का पैसा आप को वापस मिल जाएगा.’‘

बात बेटे जोहान की सेहत की थी, इसलिए खालिद ने बिना देर किए इलाज और जांच के लिए करीब 37 हजार रुपए जमा कर दिए. 28 साल का खालिद अली अपने 3 महीने के बेटे जोहान की सेहत के लिए हमेशा सचेत रहता था. वह नहीं चाहता था कि उस के मासूम बेटे जोहान को किसी भी तरह की तकलीफ हो.

मैक्सकेयर हौस्पिटल के संचालक के कहने पर 4 जनवरी, 2022 से 17 जनवरी, 2022 तक जोहान मैक्सकेयर हौस्पिटल में एडमिट रहा. इस दौरान अस्पताल प्रबंधन ने  आयुष्मान कार्ड से फ्री इलाज न कर खालिद अली से पैसे जमा कराए थे.

लाखों रुपए लुटाने के बाद भी बेटे की हालत में सुधार होते न देख खालिद उसे पहले भोपाल के एम्स ले गए, वहां से डीआईजी बंगले के पास स्थित अस्पताल में भरती कराया गया. आखिरकार, चंद ही घंटों में मासूम जोहान को मृत घोषित कर दिया गया.

जोहान की मौत का सदमा खालिद की बीवी को सब से ज्यादा लगा. बेटे की मौत के बाद उसे ऐसा लगा जैसे उस का सब कुछ चला गया.

खालिद अली ने अपने 3 महीने के बेटे को इलाज के लिए जनवरी, 2022 में भोपाल के फतेहगढ़ इलाके में मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल में भरती कराया था. चूंकि खालिद के पास सरकार की आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojna) का आयुष्मान कार्ड था. लिहाजा उस ने अस्पताल संचालक से कार्ड के माध्यम से इलाज की गुहार लगाई थी. लेकिन अस्पताल संचालक ने आयुष्मान कार्ड (Ayushman Card) के जरिए इलाज करने से साफ मना कर दिया.

अस्पताल संचालक द्वारा उसे बताया गया कि अभी यह अस्पताल योजना का लाभ देने के लिए लिस्ट में शामिल नहीं है. जबकि खालिद से सारे दस्तावेज जमा करवा लिए गए थे. अस्पताल ने बाद में खालिद से 37 हजार रुपए जमा भी करवाए और इलाज के नाम पर लाखों रुपए की दवाइयां भी उस ने खरीदीं. इलाज और दवाओं के कोई बिल भी अस्पताल की ओर से नहीं दिए गए.

खालिद अली ने एलएलबी की पढ़ाई की थी और कानून की उसे जानकारी भी थी, लिहाजा हौस्पिटल द्वारा की गई धोखाधड़ी पर वह चुप नहीं बैठा. अखबारों में खालिद ने आयुष्मान कार्ड घोटाले की खबरें पढ़ीं तो खालिद को शक हुआ कि कहीं उस के साथ भी हौस्पिटल द्वारा फ्राड तो नहीं किया गया है. उस ने आयुष्मान भारत योजना के भोपाल औफिस में सूचना के अधिकार के तहत एक आरटीआई दाखिल कर अपने कार्ड से हुए भुगतान की जानकारी मांग ली.

एक दिन खालिद को आयुष्मान भारत योजना की ओर से वेरीफिकेशन काल आई. काल करने वाले ने खालिद से पूछा, ”क्या आप खालिद अली बोल रहे हैं?’‘

”हां, मैं खालिद अली ही बोल रहा हूं.’‘खालिद ने जबाव दिया.

”क्या आप के बच्चे का इलाज मैक्सकेयर हौस्पिटल में चल रहा है?’‘काल करने वाले ने पूछा.

”हां जी, इलाज तो चला था, मगर अब बेटे की मौत हो चुकी है.’‘खालिद ने बताया.

”क्या आप के बेटे का इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत फ्री हुआ था. अस्पताल ने रुपए तो नहीं लिए?’’

पैसे की बात सुनते ही खालिद सकते में आ गया और उस ने बताया, ”मगर हम ने तो इलाज के लिए पूरा बिल अस्पताल को दिया है.’‘

वेरीफिकेशन करने वाले ने बताया कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड के खाते से भी पैसे निकाले गए हैं.