यारों की बाहों में सुख की तलाश – भाग 3

एसएचओ रविंद्र वर्मा काररवाई निपटाने में लग गए. लाश का पंचनामा तैयार कर के और संदिग्ध चीजों को सीलमुहर करने के बाद एसएचओ ने लाश को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर वह थाने वापस आ गए, उन की टीम उन के साथ थी.

उत्तम मंडल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट 5 नवंबर को राजौरी गार्डन थाने की टेबल पर पहुंची तो उसे पढ़ कर एसएचओ हैरत से उछल पड़े. पास में ही एसआई मुकेश यादव बैठे एक फाइल देख रहे थे.

अपने साहब को यूं कुरसी से उछल कर खड़ा होते देख उन्होंने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या बात है सर, आप उत्तम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख कर हैरत में क्यों आ गए हैं?’’

‘‘मुकेश, डीसीपी साहब का तजुर्बा कमाल का निकला. उन्होंने उत्तम की बीवी काजल की कहानी का परसों बखिया उधेड़ कर कहा था कि कोई आदमी इतनी छोटी वजह पर फांसी लगा लेगा, यह संभव नहीं है.’’

‘‘लेकिन सर, उत्तम ने फांसी तो लगाई ही है. उस की लाश देखी है मैं ने, उस के गले पर फंदे के निशान दिखाई दे रहे थे.’’

‘‘मुकेश बाबू, अब उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी देख लो. उत्तम मंडल ने फांसी नहीं लगाई, उसे गला घोट कर मारा गया था और मारने के बाद फिर उस की लाश को फंदे पर लटकाया गया था.’’

‘‘क्या… यह क्या कह रहे हैं सर?’’ मुकेश ने हैरानी से कहा, ‘‘लाइए, मुझे दिखाइए पोस्टमार्टम रिपोर्ट.’’

एसएचओ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट एसआई मुकेश की ओर बढ़ा दी. एसआई मुकेश यादव ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखी तो उन की आंखें भी आश्चर्य से चौड़ी हो गईं.

‘‘कमाल है सर, उत्तम मंडल तो गला घोटे जाने से मरा है, उसे बाद में फांसी पर लटकाया गया.’’ मुकेश यादव हैरानी से बोले.

‘‘क्या लगता है मुकेश, यह काम किस का हो सकता है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘काजल पर शक जा रहा है सर, कोई बाहर का आदमी काजल द्वारा कपड़े उतारने छत पर जाने के दौरान घर में घुस कर मंडल का गला नहीं दबा सकता और यदि दबाएगा तो इतने कम समय में चुन्नी का फंदा बना कर उत्तम की लाश को पंखे से लटका नहीं सकेगा.’’

‘‘हां, लाश को उठा कर पंखे से लटकाने में आधे घंटे की मेहनत लग सकती है. बाहर का व्यक्ति इतने इत्मीनान से यह काम करने की हिम्मत एक ही सूरत में करेगा.’’

‘‘किस सूरत में?’’

‘‘अगर उस का काजल से कोई घनिष्ठ रिश्ता रहेगा, मतलब मृतक की पत्नी काजल से वह मिला होगा.’’

‘‘गुड.’’ श्री वर्मा मुसकरा पड़े, ‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं. उत्तम की लाश छत के पंखे से लटकाने में काजल का सहयोग किसी ने जरूर किया है. और ऐसा

सहयोग वही करेगा, जिसे काजल से लगाव होगा.’’

‘‘सर, यह भी हो सकता है कि खुद काजल ने अपने पति की हत्या की हो और फिर अपने जानकार को बुला कर लाश पंखे से लटका कर इसे आत्महत्या का रूप दिया हो.’’

‘‘बात एक ही है मुकेश. बाहर का व्यक्ति हत्या करे या काजल खुद हत्या करे, मकसद आपसी सहयोग से लाश को फंदे पर लटकाने का है. देखना है, वह बाहर का व्यक्ति काजल का हितैषी रहा है या प्रेमी?’’

‘‘प्रेमी ही होगा सर, मुझे यह मामला प्रेम संबंधों का लग रहा है. अगर काजल को यहां ला कर पूछताछ की जाए तो वह बता देगी कि उस का साथ किस ने दिया है.’’

‘‘मुकेश, सब से पहले तो यह सच्चाई उच्चाधिकारियों को बता कर उन की राय लेना आवश्यक है.’’ श्री वर्मा ने कहा तो एसआई मुकेश ने सहमति में सिर हिला दिया.

एसएचओ रविंद्र वर्मा ने डीसीपी घनश्याम बंसल को फोन कर के उत्तम मंडल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी देते हुए काजल पर अपना संदेह व्यक्त किया तो उन्होंने उन्हें अपने तरीके से कार्य करने की परमिशन देते हुए उन्हीं के सुपरविजन में एक टीम का गठन कर दिया.

इस टीम में एसएचओ रविंद्र वर्मा के अलावा इंसपेक्टर सुदेश नैन, एसआई मुकेश यादव, महिला हैडकांस्टेबल जया, मनजीत, संदीप और कांस्टेबल मनजीत को शामिल किया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उत्तम मंडल का गला दबा कर हत्या करने की बात सामने आ गई थी, इसलिए एसआई मुकेश यादव को वादी बन कर यह मामला भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया.

अब तक सूचना पा कर उत्तम मंडल के परिजन भी पूर्णिया (बिहार) से दिल्ली आ गए थे. उत्तम मंडल की पत्नी काजल, पिता गुलाय मंडल और उस के अन्य परिजनों को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में बुलवा कर उत्तम की लाश को उन के सुपुर्द कर के क्रियाकर्म की मंजूरी दे दी गई.

अभी तक एसएचओ वर्मा ने काजल या उस के घर वालों पर यह जाहिर नहीं होने दिया था कि उत्तम मंडल ने आत्महत्या नहीं की, उसे गला घोट कर मारा गया है. उसी शाम उत्तम मंडल का उस के घर वालों ने अंतिम संस्कार कर दिया.

एसएचओ वर्मा ने एक बात पर गौर किया कि खुद को उत्तम मंडल का पड़ोसी और गांव के रिश्ते से उत्तम मंडल का भाई बताने वाला राजेश हर मामले में आगे रहा था. उस की काजल के साथ खुसरफुसर होने की बात भी उन्होंने नोट कर ली थी.

उन्हें महसूस हुआ कि काजल और राजेश में कोई गहरा रिश्ता है, ऐसा रिश्ता तो उत्तम मंडल की हत्या की साजिश तक रच सकने में संकोच नहीं करेगा.

एसएचओ ने एसआई मुकेश यादव को मोहन सिंह के मकान पर भेज कर काजल और राजेश के गहरे रिश्ते की छानबीन करने का निर्देश दिया.

एसआई मुकेश यादव ने मोहन सिंह और आसपड़ोस से पूछताछ कर के जो मालूमात हासिल की, उस के अनुसार राजेश का काजल के घर में बहुत उठनाबैठना था. उत्तम मंडल की गैरमौजूदगी में भी वह कईकई घंटे उस के घर में घुसा रहता था. उस की यह घुसपैठ शक का कारण बनी.

श्री वर्मा ने 5 नवंबर, 2022 की शाम को काजल को थाने बुलवा लिया. काजल उस वक्त उत्तम की मौत में गमजदा होने का जबरदस्त नाटक कर रही थी. थाने में वह सुबक रही थी और उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे.

श्री वर्मा ने उसे सामने बिठा कर सख्ती से पूछताछ की तो वह कुछ ही देर में टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि राजेश के साथ मिल कर अपने पति की गला दबा कर हत्या की थी और उसे राजेश की सहायता से फंदे से लटकाया था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया काजल?’’ एसएचओ वर्मा ने गंभीर स्वर में प्रश्न किया.

‘‘सर, राजेश को ले कर उत्तम मुझ पर शक करता था. लेकिन खामोश रहता था. उत्तम ने मुझे परसों शाम राजेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था.

‘‘उस ने राजेश को और मुझे जलील करते हुए मेरी पिटाई की तो मैं ने गुस्से में राजेश को ललकारा कि वह मुझे प्यार करता है तो इसे रास्ते से हटा दे. राजेश ने तब उत्तम को नीचे गिरा दिया. मैं ने उस की छाती पर बैठ कर उस का गला दबा दिया तो वह थोड़ी देर छटपटाया, फिर उस की मौत हो गई.

‘‘हम ने सर गुस्से में ऐसा अपराध किया था. उत्तम की मौत हो जाने पर हम घबरा गए. राजेश ने मुझे सलाह दी कि अगर उत्तम को फंदे से लटका कर आत्महत्या करने की बात कही जाएगी तो पुलिस इसे सच मान लेगी. मैं ने राजेश की मदद की और मेरी चुन्नी और परदे को आपस में जोड़ कर उत्तम के गले में फंदा डाल कर पंखे से लटका दिया.

‘‘राजेश यह काम कर के वहां से चला गया तो मैं ने अपने मकान मालिक को जा कर बताया कि उत्तम ने फांसी लगा ली है. थोड़ी देर में मेरे रोने की आवाजें सुन कर राजेश दौड़ा आया और उस ने उत्तम की लाश को नीचे उतार लिया.’’

‘‘राजेश ने लाश क्यों उतारी, क्या तुम लोग नहीं जानते थे कि ऐसी अवस्था में यह पुलिस के काम में हस्तक्षेप करने जैसा अपराध होता है?’’

‘‘सर, राजेश ने मुझे बता दिया था कि वह लाश खुद नीचे उतार देगा, क्योंकि पुलिस लटकी हुई लाश की बहुत बारीकी से छानबीन करती है. लाश पंखे से लटकी रहती तो हम लोग फंस सकते थे.’’

‘‘राजेश के साथ तुम्हारे संबंध कब से हैं?’’ वर्मा ने गंभीर स्वर में पूछा.

‘‘6-7 महीने से.’’ काजल ने बताया, ‘‘राजेश ने मेरे पति को मोहन सिंह के मकान में कमरा दिलवाया था. उसी ने मेरे पति को फैक्ट्री में काम पर लगवाया था. मेरे पति उसे छोटा भाई मानते थे. राजेश शादीशुदा और 3 बेटियों और एक बेटे का बाप है, लेकिन उस की तभी से मुझ पर नजर थी, जब मैं ब्याह कर गांव में अपाहिज उत्तम के घर आई थी.

‘‘जब मैं पति के साथ दिल्ली आ गई तो राजेश अकसर मेरे घर आने लगा. मैं ने उस की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो मैं भी उस की ओर आकर्षित हो गई. हमारे बीच जल्दी ही संबंध बन गए. पति जब काम पर होता था, हम अपने जिस्म की प्यास बुझा लेते थे. उत्तम ने अगर उस दिन हमें आपत्तिजनक हालत में नहीं पकड़ा होता तो उस की हत्या भी नहीं होती.’’

काजल द्वारा उत्तम मंडल की गला दबा कर हत्या करने की बात स्वीकार कर लेने के बाद उसी रात राजेश को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में काजल को गरदन झुका कर बैठा देख वह समझ गया कि हत्या की बात वह कुबूल कर चुकी है, इसलिए उस ने चुपचाप इस हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस ने उन्हें दूसरे दिन अदालत में पेश कर के जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उत्तम मंडल की हत्या का मामला पुलिस ने 24 घंटे में हल कर दिया था. इस के लिए डीसीपी घनश्याम बंसल ने पूरी टीम को शाबाशी दी.

पति द्वारा सुख मिलने के बाद भी काजल ने परपुरुष से अवैध संबंध बनाए, जिस के कारण काजल को पति की हत्या करने जैसा संगीन अपराध करना पड़ा. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस के जेल चले जाने के बाद उस के बेटे का क्या होगा. फिलहाल उत्तम का बेटा अपने दादादादी के साथ पूर्णिया (बिहार) चला गया था.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरजाना के प्यार का समंदर – भाग 3

एक दिन दोपहर को फरजाना के बच्चे स्कूल गए थे. रईस सुबह ही काम पर चला गया था. गरमी के दिन थे. गली में सन्नाटा था. अमर सिंह ऐसे ही मौके की तलाश में था. वह धीरे से फरजाना के घर पहुंच गया. इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच अमर सिंह ने फरजाना का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

फरजाना ने इस का विरोध नहीं किया. मजबूत कदकाठी वाले अमर सिंह के हाथों का स्पर्श ही कुछ अलग था. फरजाना का हाथ अपने हाथ में ले कर अमर सुधबुध खो बैठा. अचानक फरजाना अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, अगर किसी ने देख लिया तो जानते हो कितनी बड़ी बदनामी होगी.’’

फरजाना की बात सुन कर अमर सिंह ने कहा, ‘‘यहां देख लेने का खतरा है तो अंदर कमरे में चलें.’’

‘‘नहींनहीं, आज नहीं, बच्चों के आने का टाइम हो गया है. वे किसी भी समय आ सकते हैं. फिर कभी अंदर चलेंगे.’’ फरजाना ने कहा तो अमर सिंह ने उस का हाथ छोड़ दिया. लेकिन वह मन ही मन खुश था, क्योंकि उसे फरजाना की तरफ से हरी झंडी मिल गई थी. इस के बाद मौका मिलते ही दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली.

दरअसल, रईस शराब का लती था. शराब पीपी कर उस का शरीर खोखला हो गया था. उस के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे अमर सिंह से मिली. इसलिए वह अमर की दीवानी बन गई और उस की बांहों का हार बन गई.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद फरजाना और अमर सिंह उसे बारबार दोहराने लगे. शौहर की आंखों में धूल झोंक कर फरजाना अमर सिंह के साथ मौजमस्ती करने लगी. अवैध संबंधों का यह सिलसिला फिर बढ़ता ही गया.

अवैध रिश्तों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को फरजाना और अमर सिंह के अवैध रिश्तों की भनक लग गई. उन्होंने यह बात रईस को बताई. लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने पड़ोसियों की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. क्योंकि उसे बीवी पर पूरा भरोसा था. जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. सही बात तो यह थी कि फरजाना शौहर को कुछ समझती ही नहीं थी.

रईस के भाई वाहिद को भी फरजाना और अमर सिंह के नाजायज संबंधों की जानकारी हो चुकी थी. उस ने फरजाना को समझाने की पूरी कोशिश की और खानदान की इज्जत की दुहाई भी दी. लेकिन मुंहफट फरजाना ने उसे ही नसीहत दे डाली कि वह अपने घर को संभाले, दूसरे के घर में ताकझांक न करे. कहीं ऐसा न हो कि बदनामी के दाग उस पर ही पड़ जाएं.

वाहिद फरजाना का इशारा समझ गया, इसलिए उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. फरजाना जानती थी कि उस का शौहर रईस सुबह घर से निकलने के बाद देर शाम ही घर लौटता है. और बच्चे स्कूल चले जाते हैं.

सूना घर पा कर ही वह अपने प्रेमी अमर सिंह को फोन कर घर बुला लेती, फिर दोनों रंगरलियां मनाते.

लेकिन सतर्कता बरतने के बावजूद एक दिन रईस ने अपनी बीवी को दोस्त अमर सिंह के साथ आपत्तिजनक स्थिति में अपने ही घर में रंगेहाथ पकड़ लिया. अमर सिंह ने जब रईस को देखा तो वह फुरती से वहां से भाग गया. रईस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. लेकिन उस ने फरजाना को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक अमर सिंह का फरजाना के घर आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से रईस की आंखों में धूल झोंक कर रंगरलियां मनाने लगे. रईस ज्यादा ताकझांक न करे, इस के लिए अमर सिंह उसे शराब और मीट का लालच देने लगा.

फरजाना ने अपने दोनो बेटों को भी पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया था. अमर सिंह भी बच्चों को पैसे और खानेपीने की चीजें ला कर देता रहता था, जिस से बच्चे अमर सिंह के घर में आने की बात अपने अब्बू को नहीं बताते थे.

एक रोज रईस अपने औजार थैले में डाल कर ठठिया कस्बा जाने की बात कह कर घर से निकला तो फरजाना ने अमर को फोन कर घर बुला लिया. उस ने आते ही फरजाना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया, तभी फरजाना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है,’’ कहते हुए अमर सिंह ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही मुझे तुम्हारा दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों का पता चलता है. जब मैं रईस के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ फरजाना ने इतना कह कर अमर का गाल चूम लिया.

अमर सिंह से भी रहा नहीं गया. उस ने फरजाना को बांहों में ले लिया और बिस्तर पर पहुंच गया. इस से पहले कि वे खेल शुरू कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का भूत उतर गया.

फरजाना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने शौहर को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ फरजाना हकलाते हुए बोली.

‘‘ठेकेदार ने काम शुरू ही नहीं कराया, इसलिए वापस आ गया.’’ कहते हुए रईस ने फरजाना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने अमर सिंह को देख कर उस का माथा ठनका. उस ने पूछा, ‘‘तुम घर के अंदर क्यों आए?’’

‘‘भाईजान, तुम से मिलने आया था. आज शाम घर में शराब पार्टी है. तुम्हें भी आना है.’’ अमर सिंह ने बहाना बनाया.

लेकिन रईस सब समझ गया. उस ने बीवी की तरफ देखा, वह घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे थे और आंखें झुकी हुई थीं. अमर सिंह भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था.

रईस उस से कुछ और पूछता, उस के पहले ही वह वहां से भाग गया. रईस ने दोनों की चोरी दोबारा पकड़ी थी. इसलिए इस बार उस ने बीवी को माफ नहीं किया और फरजाना की जम कर धुनाई की. अब वह फरजाना पर और ज्यादा निगाह रखने लगा था.

मगर फरजाना पर इस का विपरीत असर हुआ. वैसे भी वह पहले ही शौहर की परवाह नहीं करती थी, अब उस का डर बिल्कुल मन से निकल गया था. वह पूरी तरह बेशरमी पर उतर आई थी. शौहर की मौजूदगी में ही वह प्रेमी अमर सिंह से खुलेआम मिलने लगी.

रईस घर के बाहर बैठा रहता तो अमर सिंह उस के सामने ही घर के अंदर उस की बीवी के पास चला जाता. वह जानता था कि अमर सिंह और फरजाना उस से ज्यादा ताकतवर हैं, इसलिए वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. लाचार सा वह घर के बाहर ही बैठा रहता था.

फरजाना कभी उसे खानेपीने को पूछ लेती तो कभी उसे भूखा ही रखती. बीवी पर अब उस का कोई वश नहीं रह गया था. वह बेटों की दुहाई देते हुए बीवी को समझाता, पर फरजाना पर उस के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि वह और भी ज्यादा मनमानी करने लगी थी.

अपनी आंखों के सामने अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख रईस का धैर्य जवाब देने लगा था. अब उस से बीवी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. इस का परिणाम यह हुआ कि रईस पहले से अधिक शराब पीने लगा. वह जो कमाता, सब शराब पीने में ही उड़ा देता. शराब के नशे में वह फरजाना व अमर को गाली बकता.

फरजाना को शौहर की गाली बरदाश्त नहीं होती थी. वैसे भी फरजाना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर अमर सिंह भी चाहता था कि फरजाना जीवन भर उस के साथ रहे. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए दोनों रईस को ठिकाने लगाने की सोचने लगे.

21 दिसंबर, 2022 की रात 8 बजे रईस नशे में धुत हो कर घर आया तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने कुंडी खटखटाई, लेकिन फरजाना ने दरवाजा नहीं खोला. तब रईस फरजाना को भद्दीभद्दी गालियां बकने लगा.

शौहर की गालियां फरजाना को बरदाश्त नहीं हुईं. अमर सिंह उस समय फरजाना के घर पर ही था. उस ने गुस्से में अमर सिंह से कहा, ‘‘बाहर मेरा शौहर मुझे गालियां बक रहा है और तुम घर के अंदर दुम दबाए बैठे हो. कैसे आशिक हो तुम?’’

‘‘मैं कर ही क्या सकता हूं फरजाना?’’

‘‘तुम उस का मुंह हमेशा के लिए बंद क्यों नहीं कर देते. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

‘‘ठीक है. मैं तैयार हूूं. लेकिन तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘तुम्हारे लिए मैं साथ तो क्या कुरबान होने को भी तैयार हूं.’’

इसी समय लाइट गुल हो गई और गांव में घुप अंधेरा छा गया. उचित मौका देख कर अमर सिंह हाथ में कुल्हाड़ी तथा फरजाना हाथ में डंडा ले कर मुंह ढंक कर घर के बाहर आए. झोपड़ी के पास रईस आग ताप रहा था.

तभी पीछे से अमर सिंह ने कुल्हाड़ी का भरपूर वार रईस के सिर पर किया. कुल्हाड़ी के वार से रईस का सिर फट गया और वह वहीं ढेर हो गया. नफरत की आग में जल रही फरजाना ने भी डंडे से कई वार शौहर के सिर पर किए. इस के बाद फरजाना घर के अंदर चली गई और अमर सिंह कुल्हाड़ी के साथ फरार हो गया.

कुछ देर बाद फरजाना ने त्रियाचरित्र कर खून से लथपथ रईस के पास चीखने लगी. दिखावे के तौर पर वह उसे अस्पताल भी ले गई, लेकिन उस की सांसें तो पहले ही थम चुकी थीं.

24 दिसंबर, 2022 को पुलिस ने आरोपी अमर सिंह कुशवाहा तथा अदीबा बानो उर्फ फरजाना को पूछताछ के बाद कन्नौज की जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां-बाप के हत्यारे संदीप जैन को सजा-ए-मौत – भाग 3

संदीप खुश था कि उसे युवती से बात करने के लिए कुछ समय मिल गया था. उस की मां को संदीप घर की टायलेट में छोड़ कर जल्दी से दुकान में आ गया. संदीप के सामने खुद को अकेला पा कर वह लड़की सकुचाई हुई अपनी जगह पर सिमट कर बैठ गई.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ संदीप ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘सुधा!’’ वह हौले से बोली.

‘‘मुझे तुम पहली नजर में ही पसंद आ गई हो, क्या मुझ से दोस्ती करोगी?’’

‘‘जी.’’ वह घबरा कर बोली, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी.’’

‘‘मुझे अपना नंबर दे कर जाओ. अपनी स्वीकृति शाम तक बता देना.’’ संदीप ने कहने के बाद अपना मोबाइल उठा कर उस की तरफ बढ़ा दिया.

युवती ने उस के मोबाइल में अपना नंबर अपने नाम के साथ सेव कर दिया.

सुधा की मां वापस आ गई तो दोनों को छोड़ने संदीप दरवाजे तक आया.

‘‘आप बहुत अच्छे हैं.’’ सुधा धीरे से फुसफुसा कर बोली और तेजी से मां के पीछे बाहर निकल गई.

यह सुधा से संदीप की पहली मुलाकात थी. वह बहुत खुश था और मन में यह सोच भी लिया था कि यदि सुधा ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह उसे अन्य लड़कियों की तरह इस्तेमाल कर के छोड़ेगा नहीं, बल्कि उसे अपनी जीवनसंगिनी बना लेगा.

शाम होने तक संदीप बहुत उतावला और बेचैन रहा. उस की नजरें बारबार अपने मोबाइल की स्क्रीन पर चली जाती थीं. उसे सुधा के फोन का इंतजार था.

प्यार हुआ इकरार हुआ

रात के 8 बजे सुधा का नंबर स्क्रीन पर चमका तो संदीप ने धड़कते दिल से काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो सुधा, मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था. बोलो, क्या सोचा है तुम ने, क्या मुझे अपना दोस्त बनाओगी या…’’

‘‘अरे बाबा, सांस तो ले लो, इतनी बेसब्री क्यों दिखा रहे हो?’’ सुधा हंस पड़ी थी.

‘‘मेरे कान तुम्हारी ‘हां’ सुनने को तरस रहे हैं. बोलो, क्या कहती हो?’’ संदीप ने उतावले पन से पूछा.

‘‘संदीप, मैं तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा तो दूं लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘संदीप, मैं दूसरी जाति से हूं. हम माली हैं. पिताजी एग्रीकल्चर शौप पर 10 हजार की नौकरी करते हैं. तुम्हारे दुकान के बोर्ड पर मैं ने जैन वस्त्रालय का बोर्ड देखा था. जैनी और माली चल पाएगा, यही सोच कर मन में झिझक है.’’

‘‘आजकल जातपात को कौन देखता है सुधा… प्यार में अमीरगरीब का भेद भी नहीं चलता. तुम बेझिझक मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाओ, मेरी ओर से तुम्हें धोखा नहीं मिलेगा.’’

‘‘बात तुम्हारी नहीं, तुम्हारे मम्मीपापा की है संदीप…’’

‘‘उन की तुम चिंता मत करो.’’ संदीप जल्दी से बोला, ‘‘उन्हें मैं मना लूंगा.’’

संदीप ने आश्वासन दिया तो सुधा ने दोस्ती की हामी भर ली. उसी दिन से उन की दोस्ती शुरू हो गई. दोनों रेस्टोरेंट, पार्क और पिकनिक स्पौट पर मिलने लगे. यह दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. संदीप दिल खोल कर सुधा पर रुपए खर्च करने लगा.

उनके बीच की दूरियां भी एक दिन खत्म हो गईं. सुधा ने यह सोच कर अपने आप को संदीप के हवाले कर दिया कि वह उसे जरूर अपना लेगा. वह आश्वस्त थी, किंतु संदीप अपनी शादी की बात पिता से कहने में हिचक रहा था, वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि उस के पिता पुराने खयालों के दकियानूसी इंसान हैं. दूसरी जाति और वह भी गरीब लड़की से शादी करने की वह उसे इजाजत नहीं देंगे.

मांबाप ने सुधा से शादी करने का किया विरोध

संदीप ने यह बात अपनी मां के सामने रखने का मन बना लिया. उस ने सोचा कि यदि मां मान गईं तो पिता को अवश्य मना लेंगी.

एक दिन मौका देख कर संदीप ने मां सूरजी देवी के सामने अपनी बात रख दी, ‘‘मां मैं आप से एक बात करना चाहता हूं.’’

‘‘कौन सी बात बेटा?’’

‘‘मां, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है.’’ झिझकते हुए संदीप ने कहा.

सुनते ही सूरजी देवी भड़क गई, ‘‘खबरदार, जो इस घर में प्यारव्यार का नाम लिया तो, हमारे खानदान में यह सब नहीं चलता है.’’

‘‘आप पुराने खयालात की हैं मां, अब जमाना बदल गया है.’’ संदीप गंभीर हो कर बोला, ‘‘आप को मेरी खुशी का खयाल रखना चाहिए.’’

‘‘तेरी खुशियों का हम लोग पूरा खयाल रख रहे हैं संदीप. जो तू कहता है तेरे पिता वह करते हैं. लेकिन तेरी जायज मांग ही पूरी की जाएगी, यह प्यारप्यार की बातें इस घर में नहीं चलेगी.’’ सूरजी देवी गंभीर हो गईं, ‘‘मैं यह जानती हूं कि तू जवान हो गया है, मैं ने तेरे पिता से कह दिया है, वह तेरे लिए रिश्ता तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नहीं. मैं आप क ी पसंद से नहीं, अपनी पसंद से शादी करूंगा. इस घर में वह लड़की आएगी, जिसे मैं प्यार करता हूं.’’ संदीप भड़क कर बोला.

‘‘यह मेरे जीते जी नहीं होगा.’’ सूरजी देवी गुस्से में आ गईं.

‘‘देखता हूं कैसे नहीं होता.’’ संदीप चिल्ला कर बोला और पांव पटकता हुआ कमरे से निकल गया.

यह बात पत्नी द्वारा रावतमल को पता लगी तो वह गुस्से से आगबबूला हो गए. घर में महाभारत शुरू हो गई. कितने ही दिनों तक संदीप और उस के पिता में कहासुनी होती रही. रावतमल जैन ने उसे चेतावनी दी, ‘‘यदि संदीप अपनी मरजी से शादी करेगा तो उसे जमीनजायदाद से बेदखल कर दिया जाएगा.’’

संदीप को अपनी मौजमस्ती के लिए पिता से पैसे चाहिए थे. पिता के बाद वह उन की चलअचल संपत्ति का मालिक बनने के ख्वाब देखता आ रहा था, कहीं पिता उसे संपत्ति से बेदखल न कर दें, इसलिए उस ने प्रेमिका सुधा से मुंह मोड़ लिया.

रावतमल ने उस के लिए लड़की तलाश कर के उस की शादी कर दी. संदीप ने मन मार कर अपनी पत्नी संतोष कुमारी में रुचि ले कर सुधा की यादों पर मिट्टी डालनी शुरू कर दी. संतोष की जवान देह में वह कुछ ही समय तक डूबा रहा. जब संतोष एक बच्चे की मां बन गई तो संदीप ने फिर से दूसरी जवान युवतियों की ओर अपने पांव बढ़ा दिए. वह पिता की दौलत फिर से मौजमस्ती में उड़ाने लगा.

रावतमल जैन 80 वर्ष के हो गए थे. वह बेटे संदीप की ओर से दुखी रहते थे. संदीप 42 साल का होने को आया था, लेकिन उस ने अपनी जिम्मेदारियों को अभी तक नहीं समझा था. हर बार संदीप उन के आगे हाथ पसारता रहता था.

बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 3

घर की कलह जब बढ़ने लगी तो पूनम को अपने तथा अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. उस ने अमित से कहा कि बच्चे अब बड़े होने लगे हैं. उन्हें स्थाई रूप से अच्छे स्कूल में पढ़ाने की जरूरत है. उसे भी अपने भविष्य की चिंता है, इसलिए घर और जमीन में उसे आधा हिस्सा दे दो. मुंबई के 3 फ्लैटों में से एक उस के नाम तथा एक उस के बेटे अर्पित के नाम कर दो.

अमित खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘प्रौपर्टी तुम्हारे नाम कर दूं ताकि तुम उसे बेच कर बच्चों को अनाथ बना कर अपने प्रेमी के साथ फुर्र हो जाओ. जब तक बच्चे सयाने और समझदार नहीं हो जाते, तब तक किसी के नाम कुछ नहीं करूंगा. एक बात कान खोल कर और सुन लो. अब मेरा मन मुंबई से ऊब गया है. कारखाना बंद कर और फ्लैट बेच कर मैं ने बिंदकी में ही रहने का मन बना लिया है.’’

 

अमित गुप्ता चलते व्यापार को बंद नहीं करना चाहता था. उस ने फ्लैट बेचने की बात पूनम को डराने के लिए कही थी. लेकिन पूनम ने पति की बात को सच मान लिया और वह चिंतित हो उठी. उसे लगा अमित फ्लैट बेच कर सारा पैसा अपनी मां, विधवा बहन व अपनी प्रेमिका पर खर्च कर देगा. उसे और उस के बच्चों को कुछ हासिल नहीं होगा. अमित उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देगा और खुद प्रेमिका से शादी रचा लेगा.

वह ऐसा तानाबाना बुनेगी, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

जनवरी 2023 के दूसरे सप्ताह में एक रोज पूनम ने मुंबई से अपने प्रेमी अविनाश उर्फ उमेंद्र को फोन किया. मोबाइल फोन की स्क्रीन पर प्रेमिका पूनम का नंबर देख कर वह खुशी से झूम उठा. उस ने तुरंत काल रिसीव की और पूछा, ‘‘कैसी हो पूनम, सब ठीक तो है?’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है अविनाश. मैं बहुत परेशान हूं. मेरी रातों की नींद हराम हो गई है और दिन का चैन छिन गया है. तुम मेरे पति अमित को मार दो, तभी मुझे तसल्ली मिलेगी.’’

‘‘पूनम, अमित धनाढ्य व्यापारी है. उस की हत्या करना उतना आसान नहीं, जितना तुम समझती हो. उस की हत्या के लिए किसी हिस्ट्रीशीटर को सुपारी देनी होगी.’’

‘‘तो दो न सुपारी. मैं ने कब मना किया. जितना पैसा मांगोगे, मैं दूंगी. अविनाश तुम अपना बैंक का एकाउंट नंबर मुझे भेज दो. मैं कुछ पैसा तुम्हारे एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगी. यह पैसा निकाल कर तुम सुपारी किलर को दे देना.’’

7 लाख रुपए में बात तय हो गई तो 2 दिन बाद ही पूनम ने अविनाश के खाते में 85 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए. खाते में पैसे आ जाने के बाद अविनाश उर्फ उमेंद्र पूनम के जीजा रामखेलावन से मिला. फिर दोनों सुपारी किलर की तलाश में जुट गए. अविनाश ने हिस्ट्रीशीटर की तलाश शुरू की तो उसे अंकित सिंह उर्फ शेरा के बारे में पता चला. 22 वर्षीय अंकित उर्फ शेरा फतेहपुर जिले के औंग थाना के गांव वसावनपुर का रहने वाला था. फतेहपुर का वह हिस्ट्रीशीटर था.

अंकित उर्फ शेरा के गैंग में हरदेव नगर (कानपुर) बर्रा निवासी केशव गुप्ता, फतेहपुर जनपद के गांव चमनगंज निवासी मोहित और शीलू (दोनों सगे भाई), दुर्गागंज निवासी अंशुल पासवान शामिल थे. इन के साथ मिल कर शेरा वारदात को अंजाम देता था. अंकित सिंह उर्फ शेरा हत्या जैसे जघन्य अपराध की सुपारी भी लेता था.

अविनाश और रामखेलावन ने एक रोज शेरा से मुलाकात की और बिंदकी कस्बे के चर्चित उद्योगपति अमित गुप्ता की हत्या की सुपारी 7 लाख में दे दी. बयाना के तौर पर अविनाश ने उसे 80 हजार रुपए भी थमा दिए.

26 जनवरी, 2023 को अमित के चचेरे भाई अमन की शादी होनी तय थी. अमित ने पूनम से शादी समारोह में चलने को कहा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘तुम्हीं जाओ और खूब खुशियां मनाओ. मैं बच्चों के साथ बाद में आ जाऊंगी. वैसे भी वहां तुम्हारी ही पूछ है. मुझ से तो सब नफरत ही करते हैं.’’

योजनाबद्ध तरीके से करा दी पति की हत्या

शादी में न जाने को ले कर अमित और पूनम में जम कर तकरार हुई और नौबत मारपीट तक पहुंच गई. अमित रेलवे के 3 टिकट बुक करा कर लाया था. गुस्से में उस ने 2 टिकट फाड़ दिए. फिर वह ट्रेन से बिंदकी के लिए निकल गया.

20 जनवरी, 2023 की सुबह 10 बजे अमित अपने घर बिंदकी आ गया. उसे देख कर मांबहन की खुशी का ठिकाना न रहा. चचेरे भाई भी उस से गले लग कर मिले. पूनम व बच्चों के विषय में मां ने पूछा तो अमित ने बता दिया कि वह बाद में आएगी.

इधर अमित की पिटाई से पूनम के मन में अमित के प्रति नफरत और भड़क गई थी. उस ने अपने प्रेमी अविनाश व जीजा रामखेलावन से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि अमित बिंदकी पहुंच चुका है. 29 जनवरी की सुबह वह भी बच्चों के साथ बिंदकी आ जाएगी. 29 जनवरी की रात ही अमित का काम तमाम करना है. तुम सुपारी किलर को सब बता देना.

सिंदूर मिटाने का जुनून : अवैद्य संबंधों के चलते पति की हत्या – भाग 3

एक दिन सुलभ घर में अकेली थी. वह आंगन में खड़ी अपने बाल सुखा रही थी, तभी दीपक आ गया. उस दिन वह दीपक को कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सुलभ के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सुलभ का भी था. अपनी स्थिति को भांप कर सुलभ ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘तुम तो मुझे ऐसे देख रहे हो, जैसे पहली बार देखा है.’’

‘‘इस तरह अकेली तो पहली बार देख रहा हूं. इस के पहले तो चोरीचोरी देखना पड़ता था. आज खुल कर देखने का मौका मिला है. अब पता चला कि तुम कितनी खूबसूरत हो.’’

‘‘ऐसा क्या है मुझ में, जो मैं तुम्हें इतनी खूबसूरत लग रही हूं?’’ सुलभ ने दीपक की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है. मैं बड़ा नसीब वाला हूं, जिसे तुम्हारी खूबसूरती देखने का मौका मिला है.’’

‘‘वैसे आप हैं बहुत बातें बनाने वाले. बातों में उलझा कर आप मुझे फंसाना चाहते हैं. किसी की बीवी को फंसाने में तुम्हें डर नहीं लगता, ऐसा करते शरम नहीं आती?’’

‘‘कैसी शरम, खूबसूरत चीज को कौन नहीं पाना चाहता. अगर मैं तुम्हें पाना चाहता हूं तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ कह कर दीपक ने सुलभ को अपनी बांहों में भर लिया.

सुलभ कसमसाई भी और बनावटी विरोध भी जताया, लेकिन उस के बाद खुद को समर्पित कर दिया. दीपक ने उस दिन सुलभ को जो सुख दिया, उस से वह भावविभोर हो उठी. दीपक से असीम सुख पा कर सुलभ उस की दीवानी बन गई. वह यह भी भूल गई कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. ऐसे रिश्ते छिपे भी नहीं रहते. सत्येंद्र को भी इस की जानकारी हो गई. फिर तो वह सुलभ पर बरस पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारे बारे में क्या अनापशनाप सुन रहा हूं, मेरा नहीं तो कम से कम बच्चों का तो खयाल किया होता?’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बहाना चाहिए. मैं ने ऐसा क्या गलत कर डाला, जो लोग मेरे बारे में अनापशनाप बक रहे हैं?’’ सुलभ ने कहा.

‘‘मुझे पता चला है कि दीपक वक्तबेवक्त घर आता है. तुम उस से हंसहंस कर बातें करती हो. तुम्हारे दीपक के साथ नाजायज संबंध हैं. आखिर मेरी जिंदगी को नरक क्यों बना रही हो?’’

‘‘नरक तो तुम ने मेरी और बच्चों की जिंदगी बना रखी है. पत्नी और बच्चों को जो सुखसुविधा चाहिए, वह तुम ने कभी नहीं दी. तुम जो कमाते हो, शराब में उड़ा देते हो. दीपक हमारी मदद करता है तो उस पर इलजाम लगाते हो.’’

सुलभ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुरेंद्र का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह सुलभ को बेरहमी से पीटने लगा. पीटते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा खाती है और मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

इस के बाद यह रोज का नियम बन गया. देर रात सुरेंद्र नशे में धुत हो कर आता और बातबेबात सुलभ से मारपीट करता. दोनों बच्चे जय और पारस मां को बचाने आते तो वह उन्हें भी गालियां तो देता ही, उन की पिटाई भी कर देता. अब वह रातदिन नशे में डूबा रहने लगा था. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. वेतन कम मिलता तो वह ठेकेदार और मुंशी से भी लड़ने लगता.

रोजरोज की मारपीट से सुलभ और उस का बेटा जय आजिज आ चुका था. आखिर उन्होंने सत्येंद्र से छुटकारा पाने की योजना बना डाली. उस योजना में सुलभ ने अपने प्रेमी दीपक कठेरिया को भी शामिल कर लिया.

दीपक इसलिए योजना में शामिल हो गया था, क्योंकि सत्येंद्र उस के संबंधों में बाधक बन रहा था. सुलभ की पिटाई उसे भी चुभती थी. योजना के तहत दीपक मसवानपुर स्थित पवन औटो से एक लोहे की रौड खरीद लाया और मैडिकल स्टोर से एक पत्ता नशीली गोलियों को.

12 मई, 2017 को योजना के तहत सुलभ अपने मायके विशधन चली गई. अगले दिन रात 8 बजे सत्येंद्र घर आया तो उस की तबीयत ठीक नहीं थी. वह चारपाई पर लेट गया. तभी जय ने दीपक को बुला लिया. योजना के तहत जय ने जूस में नशीली गोलियां घोल कर पिता को पिता दीं.

कुछ देर बाद वह बेहोश हो गया तो दीपक और जय उसे उसी की मोटरसाइकिल पर बैठा कर अरमापुर स्टेट स्थित कैलाशनगर पुलिया पर ले गए.

वहां सन्नाटा पसरा था. दोनों ने सत्येंद्र को मोटरसाइकिल से उतारा और सड़क किनारे पुलिया के पास लिटा कर लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार किए, जिस से उस का सिर फट गया और वह तड़प कर मर गया. जय को पिता से इतनी नफरत थी कि उस ने सड़क के किनारे पड़ी सीमेंट की ईंट उठाई और उस के चेहरे को कुचल दिया. हत्या करने के बाद जय और दीपक पैदल ही घर आ गए.

18 मई, 2017 को पूछताछ के बाद थाना अरमापुर पुलिस ने अभियुक्त दीपक, जय और सुलभ को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का संग्राम : प्रेम के आगे हारा पति – भाग 3

कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.

पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.

लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’

यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.

प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.

हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.

घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.

प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.

संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.

वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.

यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.

लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.

उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.

उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’

बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.

कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.

रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.

जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.

उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’

‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.

प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’

प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.

इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.

21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.

प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.

उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.

प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.

सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.

थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हत्यारी पत्नी सपना : कानपुर में मारा पति और ससुर को – भाग 3

सुरेंद्र को अब असलियत पता चल चुकी थी कि राजकपूर सपना का रिश्तेदार नहीं, बल्कि प्रेमी है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह भी सपना पर डोरे डालने लगा और उसे ललचाई नजरों से देखने लगा.

एक दिन उस ने सपना से कहा, ‘‘भाभी, अगर तुम दोनों की असलियत का पता ऋषभ भैया व बाबूजी को चल जाए तो अंदाजा लगाओ कि उन पर क्या बीतेगी. उन की

इज्जत तो मिट्टी में ही मिल जाएगी. इस के अलावा तुम्हारा हाल क्या होगा, यह तुम समझ सकती हो.’’

सुरेंद्र सिंह की बात सुन कर सपना घबरा गई और गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘नहींनहीं, उन्हें कुछ मत बताना. मैं तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं. फिर चाहे धन हो या तन.’’

‘‘मुझे धन नहीं, तुम्हारा तन चाहिए. जिस तरह तुम अपने प्रेमी को खुश रखती हो उसी तरह मुझे भी खुश रखना होगा.’’

‘‘मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है,’’ कहते हुए सपना सुरेंद्र के गले लग गई.

इस के बाद सपना ने सुरेंद्र सिंह के साथ शारीरिक रिश्ता कायम कर लिया. अब सपना 2 प्रेमियों की बांहों में झूलने लगी.

राजकपूर का आनाजाना पड़ोसियों को भी खटकने लगा था. अत: उन्होंने किशोरचंद्र तिवारी व उस के बेटे के कान भर दिए. पड़ोसियों की बात सुन कर किशोरचंद्र का माथा ठनका, उन्हें भी दाल में कुछ काला नजर आया.

उन्होंने बहू सपना को प्यार से समझाया और राजकपूर जिसे वह रिश्तेदार बताती थी, उस के आने का विरोध जताया. ऋषभ ने सपना पर तीखे सवाल दागे, जिस से वह तिलमिला उठी. उन दोनों के बीच तीखी बहस भी हुई. किसी तरह किशोरचंद्र ने मामला शांत कराया.

विरोध व निगरानी के चलते राजकपूर का सपना की ससुराल आना व मिलन बंद हो गया. अब दोनों की बात फोन पर ही हो पाती. कभीकभी वह वीडियो कालिंग भी कर लेती या फिर वाट्सऐप के जरिए उस से जुड़ती थी.

सपना का प्रेमी से मिलन बंद हुआ तो वह तिलमिला उठी. उस ने सारा गुस्सा ससुर पर ही उतारा. अब उस ने ससुर की देखभाल कम कर दी तथा दवाई देने में भी लापरवाही बरतने लगी. क्योंकि ससुर किशोरचंद्र ने ही प्रेमी राज के आने का विरोध किया था और निगरानी करने लगा था. ऋषभ को भी किशोरचंद्र ने ही उकसाया था.

सपना सावधान इंडिया, क्राइम पैट्रोल जैसे सीरियल टीवी पर देखती थी. एक दिन उस ने किसी एपीसोड में देखा कि यदि किसी बीमार व्यक्ति को दवा की ओवरडोज दे दी जाए तो वह ठीक होने के बजाय अधिक बीमार हो सकता है और उस की मौत भी हो सकती है.

चूंकि सपना के ससुर किशोरचंद्र बीमार रहते थे. इसलिए सपना ने उन्हें दवा की ओवरडोज देने का प्लान बनाया.

अब शातिर सपना ने मौत का खूनी खेल शुरू किया. वह दिखावे के तौर पर ससुर की खूब सेवा करने लगी, लेकिन साथ ही शुगर की दवा की ओवरडोज भी देने लगी. सपना का नाजायज रिश्ता मैडिकल स्टोर चलाने वाले सुरेंद्र सिंह से पहले से ही था. तो वह उस के मार्फत कुछ ऐसी दवाएं भी मंगाने लगी जो फेफड़ों के लिए ज्यादा खतरनाक थीं.

इन दवाओं के देने से किशोरचंद्र गंभीर बीमार पड़ गए और जुलाई 2022 में उन का निधन हो गया. कोई जान ही नहीं पाया कि किशोरचंद्र की मौत कैसे हुई. सभी ने उन की मौत को सामान्य मौत समझा. ऋषभ स्वयं भी पत्नी के षडयंत्र से अनजान रहा.

पिता की मौत से ऋषभ तो दुखी था, लेकिन सपना मन ही मन खुश थी. कुछ दिन घर में गम का माहौल रहा. उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया. सपना अब पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई थी. अत: वह प्रेमी राज को फिर घर बुलाने लगी. उस की रंगरलियां फिर शुरू हो गईं. वह राजकपूर को उस दिन बुलाती, जब ऋषभ लखनऊ या दिल्ली चला जाता.

ससुर को निबटाने के बाद सपना ने चली दूसरी चाल

इन्हीं दिनों सपना ने एक नया ड्रामा शुरू कर दिया. उस ने ऋषभ से कहा कि वह मकान व लखनऊ वाले प्लौट में उसे भी नौमिनी बनाए. ससुर के खाते से मिलने वाली रकम में से आधा पैसा देने की डिमांड की. लेकिन ऋषभ ने उस की कोई भी डिमांड पूरी करने से साफ इंकार कर दिया. सपना ने तब फांसी लगा कर जान देने का नाटक किया, लेकिन ऋषभ पर इस का असर नहीं पड़ा.

अब प्रौपर्टी को ले कर आए दिन ऋषभ और सपना में झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बढ़ जाता कि दोनो में मारपीट तक हो जाती. एक दिन तो झगड़े के दौरान सपना ने कह भी दिया कि उस ने शादी उस से नहीं, उस की दौलत से की है. यह सुन कर ऋषभ का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था.

ऋषभ को अपने व्यवसाय के सिलसिले में उसे दिल्ली, लखनऊ व अन्य कई शहरों में जाना पड़ता था. अक्तूबर 2022 में उसे एक सप्ताह के लिए दिल्ली जाना पड़ा. पति दिल्ली चला गया तो सपना ने प्रेमी राज को घर बुला लिया. वह रात को भी वहीं रुकता और सपना के साथ रंगरलियां मनाता.

एक रात बिस्तर पर मिलन के दौरान सपना ने पूछा, ‘‘राज, इस तरह हम कब तक लुकाछिपी का खेल खेलते रहेंगे. क्या और कोई रास्ता नहीं है?’’

‘‘एक रास्ता है, तुम ऋषभ को छोड़ कर मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘पर मेरे पास दूसरा रास्ता भी है,’’ सपना ने आंखें नचाईं.

‘‘वह क्या है?’’ राजकपूर ने पूछा.

‘‘तुम ऋषभ को निपटा दो. उस के बाद मैं तुम्हारी हो जाऊंगी और उस की करोड़ों की प्रौपर्टी भी हमें मिल जाएगी. हम दोनों पूरी जिंदगी ऐश करेंगे.’’

सपना की बात सुन कर राजकपूर का हलक सूख गया. वह थूक गटक कर बोला, ‘‘यह काम अकेले नहीं हो सकता. किसी को साथ मिलाना होगा. उसे पैसों का लालच भी देना होगा.’’

‘‘तो डरते क्यों हो. दे दो न पैसों का लालच. सारा पैसा मैं तुम्हें दूंगी.’’

फिर पति की भी दे दी सुपारी लगभग एक सप्ताह बाद ऋषभ दिल्ली से वापस आया तो पड़ोसियों ने उसे बताया कि जितने दिन वह घर से बाहर रहा, उतने दिन एक युवक उस के घर अड्डा जमाए रहा. वह रात को भी घर में रुकता था.

यह सुन कर ऋषभ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. घर आ कर उस ने उस युवक के बारे में सपना से पूछा तो वह साफ मुकर गई.

ऋषभ ने जब सख्ती की तो सपना ने बताया कि वह युवक उस का रिश्तेदार तथा कालेज में साथ पढ़ने वाला राजकपूर था. ऋषभ समझ गया कि सपना के उस से नाजायज संबंध हैं. अत: उस रोज ऋषभ ने सपना के साथ खूब मारपीट की.

इस मारपीट ने आग में घी का काम किया. सपना ने पति की हत्या की सुपारी 3 लाख रुपए में अपने प्रेमी राजकपूर को दे दी. राजकपूर की भाभानगर (चकेरी) में ग्लास की दुकान थी. इस दुकान पर उस का एक विश्वासपात्र कर्मचारी था सत्येंद्र सिंह. वह भी रायपुर का ही रहने वाला था.

उस ने सत्येंद्र सिंह को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया. पैसों के लालच में सत्येंद्र सिंह अपने मालिक राजकपूर का साथ देने के लिए राजी हो गया. लगभग 50 हजार रुपया उस ने सपना से सत्येंद्र सिंह को दिलवा भी दिया.

इस के बाद राजकपूर और सत्येंद्र सिंह सपना के पति ऋषभ की हत्या करने के लिए उस का पीछा करने लगे. लखनऊ आतेजाते वे दोनों उस का पीछा करते, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिलता. आनेजाने की सूचना सपना ही प्रेमी को देती थी.

27 नवंबर, 2022 की सुबह सपना को पता चला कि शाम को उस का पति ऋषभ एक शादी समारोह में शामिल होने चकरपुर पंचायत घर जाएगा. उस ने इस की जानकारी अपने प्रेमी राजकपूर को दी और पति की स्कूटी का नंबर भी नोट करा दिया. सपना ने फोन पर राजकपूर से कहा कि आज उस का काम तमाम हो जाना चाहिए. इंतजार करतेकरते मैं थक चुकी हूं.

खून में डूबी ‘हिना’ : नफरत की अनूठी दास्तान – भाग 3

हिना अदनान से शादी के बाद भी हुक्का बार की नौकरी कर रही थी. अदनान को यह पसंद नहीं था. इस के अलावा हिना की आदतों को बदलने के लिए वह उसे कहीं भी आनेजाने से रोकने लगा. वह उसे एक अच्छी बीवी की तरह देखना चाहता था, पर हिना तो पूरी तरह बिगड़ चुकी थी. वह मनमानी कर रही थी, जबकि अदनान रोक रहा था. बस, दोनों में विवाद होने लगा, जिस से रिश्तों में खटास आने लगी.

आखिर एक दिन दोनों में काफी तकरार हो गई. परिणामस्वरूप दोनों अलग रहने लगे. पति से अलग होने के बाद हिना शराब भी पीने लगी. जल्दी ही उसे शराब की ऐसी लत लग गई कि वह शराब पीने के लिए दोस्तों के साथ कभी भी, कहीं भी जाने लगी. इस तरह दोस्तों के साथ रात बिताना उस के लिए आम बात हो गई.

हिना के जाने के बाद अदनान ने हिना को बताए बगैर दूसरी शादी कर ली. लेकिन इस तरह की बातें छिपी कहां रहती हैं, हिना को भी उस की शादी की जानकारी हो गई. चूंकि उस का हिना से तलाक नहीं हुआ था, इसलिए जानकारी होते ही उस ने अदनान के खिलाफ कोहना पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज करा दी. शिकायत दर्ज कराने की जानकारी अदनान को हुई तो उस ने माफी मांग कर किसी तरह उसे मना लिया.

अदनान ने माफी मांग कर किसी तरह हिना को मना तो लिया था, लेकिन वह जानता था कि हिना इतनी आसानी से उस का पीछा छोड़ने वाली नहीं है. वह उस की दूसरी शादी को कभी स्वीकार नहीं करेगी. हुआ भी यही, हिना ने साफसाफ कह दिया कि वह उसी के साथ जीना और मरना चाहती है. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उस का जीवन नरक बना देगी. हिना की इस धमकी से अदनान डर गया और परेशान रहने लगा.

दूसरी शादी कर के अदनान ने अपनी परेशानी बढ़ा ली थी. हिना लगातार उस से पैसों की डिमांड करती रहती थी, नईनई जगह घुमाने को कहती थी.

दूसरी तरफ अदनान की पत्नी को भी शक होने लगा था. उसे लगता था कि हिना के अभी भी उस के पति से संबंध हैं. दूसरी बीवी को किसी कीमत पर अदनान खोना नहीं चाहता था. ऐसा ही उस की बीवी के साथ भी था. यही वजह थी कि अदनान हिना को रास्ते से हटाने के बारे में सोचने लगा.

काफी सोचविचार कर आखिर अदनान ने हिना को खत्म करने का निर्णय ले लिया. यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था. इसलिए अपने दोस्तों खालिद और विक्की से बात की तो वे इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गए. फिर तीनों ने बैठ कर हिना को खत्म करने की योजना बना डाली. उसी  के तहत उस ने एक पिस्टल खरीदी.

योजना के मुताबिक, 4 जुलाई की शाम अदनान ने हिना को फोन किया और होटल में खाना खाने के लिए दरियाबाद बुलाया. उस के बुलाने पर हिना टैंपो से दरियाबाद पहुंच गई. घर से निकलते समय उस ने मां नीलिमा तलरेजा से कहा था कि वह दिल्ली जा रही है.

‘‘क्यों, दिल्ली क्यों जा रही है?’’ नीलिमा ने पूछा.

‘‘मम्मी, वहां थोड़ा काम है, मैं जल्दी ही आ जाऊंगी.’’

‘‘बेटी, तुम अपने काम के तरीके बदल लो, जमाना बहुत खराब है. देखो न, अखबारों में रोज तरहतरह की खबरें छपती रहती हैं. जिस तरह काम चल रहा है, चलने दो. हमें पैसे से ज्यादा तुम्हारी जरूरत है बेटी.’’ नीलिमा ने हिना को समझाते हुए कहा.

‘‘कहा न, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी. मम्मी, आप बेकार ही परेशान हो रही हैं. 2-4 दिनों की ही तो बात है. अपना खयाल रखना. खानेपीने का भी ध्यान रखना.’’ हिना ने कहा.

‘‘वैसे भी तू मेरी कहां सुनने वाली है. कभी सुना है कि आज ही सुनेगी. हमेशा से अपनी मरजी की करती आई है और आज भी करेगी. तू भी अपने खानेपीने का खयाल रखना और जल्दी से जल्दी वापस आ जाना.’’ नीलिमा ने हिना को समझाया.

नीलिमा हिना को समझा ही रही थीं कि वह घर से निकल गई. वह दरियाबाद पहुंची तो चौराहे पर अदनान कार लिए खड़ा था. उस के साथ खालिद और विक्की भी थे. हिना के आते ही अदनान ने कहा, ‘‘आज मौसम बड़ा सुहाना है, इसलिए चलो किसी ढाबे पर खाना खाते हैं.’’

अदनान के मन में क्या है, हिना को क्या पता था. इसलिए वह उन के साथ जाने को तैयार हो गई. सभी कार में बैठ गए. कार खालिद चला रहा था. कार कानपुर जाने वाली रोड पर चल पड़ी. रास्ते में चारों ने बीयर पी. रात 10 बजे के करीब कौशांबी के मूरतगंज स्थित एक ढाबे पर सब ने खाना खाया. खाना खाने के बाद चारों फिर चल पड़े. कार में बैठेबैठे ही हिना ने 2 सेल्फी ली और उन्हें फेसबुक पर पोस्ट कर दी. हलके नशे में हिना काफी खुश थी.

खालिद ही अभी भी कार चला रहा था. विक्की उस की बगल वाली सीट पर बैठा था. हिना और अदनान पिछली सीट पर बैठे थे. ढाबे से कुछ दूर जाने के बाद अदनान की वासना जाग उठी. उस ने हिना से शारीरिक संबंध बनाने की बात की तो उस ने मना कर दिया. इस के बाद उस ने चलती गाड़ी में ही उस के साथ जबरदस्ती की. इस के बाद विक्की और खालिद ने भी बारीबारी से जबरदस्ती की.

उन लोगों की इस हरकत से हिना बुरी तरह बौखला उठी और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी. हिना के चिल्लाने से अदनान और उस के साथी डर गए. कोई बवाल हो, उस के पहले ही अदनान ने झट से पिस्टल निकाली और हिना के माथे पर बीचोबीच रख कर गोली चला दी. उसी एक गोली में हिना ढेर हो गई.

इस के बावजूद अदनान को डर था कि कहीं हिना बच न जाए. आश्वस्त होने के लिए उस ने उस के गोली वाले घाव में चाकू डाल कर घुमा दिया. इस के बाद उस के दोनों मोबाइल फोन और पर्स ले लिया, ताकि उस की शिनाख्त न हो सके. लाश को उन्होंने वहां से थोड़ी दूर स्थित पन्नोई गांव के पास सड़क के किनारे फेंक दिया और इलाहाबाद लौट आए.

अदनान ने खालिद और विक्की को उस रात अपने घर पर ही रोक लिया था. रात तीनों ने एक साथ सोए थे. अगले दिन से तीनों रोजाना अखबारों में देखने लगे कि हिना की पहचान हुई या नहीं?

13 जुलाई को अखबारों में छपा कि लाश की शिनाख्त हो गई है तो तीनों के हाथपांव फूल गए. 14 जुलाई को तीनों अपनाअपना घर छोड़ कर मुंबई भाग गए. लाश की शिनाख्त होने के बाद कौशांबी पुलिस इलाहाबाद के मीरापुर पहुंची तो हिना की जिंदगी की सच्चाई सामने आ गई.

खुलासा होने के बाद पुलिस ने अज्ञात की जगह अदनान खान, खालिद और विक्की को नामजद आरोपी बना दिया. अदनान के दोनों साथियों खालिद और विक्की को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस उन के ठिकानों पर छापा मारने लगी, लेकिन वे नहीं मिले. कथा लिखे जाने तक उन की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

अदनान खान को पुलिस ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. उस की वह कार भी पुलिस ने बरामद कर लिया था, जिस में हिना की हत्या हुई थी. अदनान ने जो किया, शायद उसे उस के गुनाहों की सजा मिल जाए, लेकिन हिना ने समाज की वर्जनाओं को तोड़ कर खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी. हर रात आंखों में नए सपने सजाने वाली बिंदास हिना ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस की जिंदगी इस तरह छिन जाएगी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दामिनी चावला परिवर्तित नाम है.

साथ में राजीव वर्मा

पिता ही बन गया प्यार का दुश्मन

उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ की कोतवाली पट्टी का एक गांव है असुढ़ी. इसी गांव के रहने वाले भास्कर पांडेय का बेटा सौरभ प्रतापगढ़ शहर में रह कर बीकौम कर रहा था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज में गांव धनगढ़ सराय छिवलहां के रहने वाले राकेश कुमार सिंह की बेटी संजू सिंह भी बीएड कर रही थी. सौरभ और संजू आसपास के गांवों के रहने वाले थे, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. दोनों की यह जानपहचान जल्दी ही दोस्ती में बदली तो दोनों अकसर मिलनेजुलने लगे. लगातार मिलने से दोनों में प्यार हो गया. धीरेधीरे उन का प्यार बढ़ता गया. फिर तो यह हाल हो गया कि जब तक दोनों एकदूसरे को देख न लेते, बातचीत न कर लेते, उन्हें चैन न मिलता.

सौरभ और संजू का यह प्यार परवान चढ़ा तो उन्होंने साथसाथ जीनेमरने की कसमें ही नहीं खाईं, बल्कि निश्चय कर लिया कि कुछ भी हो, लोग कितना भी विरोध करें, वे शादी जरूर करेंगे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सच है, प्यार न तो जाति देखता है और न ही धर्म. संजू और सौरभ के साथ भी यही हुआ था. उन के प्यार को जमाने की नजर न लगे, उन्हें किसी तरह जुदा न कर दिया जाए, यह सोच कर उन्होंने शादी करने का फैसला ही नहीं किया, बल्कि पड़ोसी जिला इलाहाबाद जा कर पानदरीबा स्थित आर्यसमाज मंदिर में वहां की रीतिरिवाज के अनुसार विवाह कर लिया. यह 1 जुलाई, 2016 की बात है.

विवाह करने के बाद संजू अपने घर आ गई थी. उस के विवाह की भनक घर के किसी भी आदमी को नहीं लग पाई थी. शादी के बाद सौरभ आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चला गया. वहां वह पढ़ाई के साथसाथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था.

सौरभ के लखनऊ चले जाने के बाद संजू की उस से मोबाइल पर बातें जरूर हो रही थीं, लेकिन वह खुद को अकेली महसूस कर रही थी. उसे सौरभ की दूरी बहुत परेशान कर रही थी. संजू भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, इसलिए सौरभ ने आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर में उस का एमएड में रजिस्ट्रेशन करा दिया.

कानपुर आने के बाद संजू सौरभ के साथ रहने की जिद करने लगी और 18 सितंबर, 2016 को वह लखनऊ आ गई. सौरभ लखनऊ के आशियाना में रहता था. संजू उसी के साथ उस के कमरे पर रहने लगी.

आगे चल कर कोई परेशानी न हो, इस के लिए 20 सितंबर, 2016 को सौरभ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संजू के साथ कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद संजू के घर वालों को सौरभ के साथ उस की शादी का पता चल गया. चूंकि सौरभ उन की जाति का नहीं था, इसलिए पूरा परिवार आगबबूला हो उठा. बेटी द्वारा लिया गया यह निर्णय किसी को स्वीकार नहीं था. खास कर संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को.

बेटी की इस हरकत से वह काफी नाराज थे. जबकि सौरभ के घर वाले बेटे के इस प्यार के बारे में जानते तो थे ही, उन्हें संजू बहू के रूप में स्वीकार भी थी. संजू के पिता राकेश सिंह जनता इंटर कालेज उड़ैयाडीह के प्रधानाचार्य थे. ऐसे में अपनी इज्जत को ले कर वह काफी परेशान थे. किसी भी कीमत पर वह इस शादी के लिए तैयार नहीं थे.

बेटी की इस हरकत से वह काफी तनाव में रहने लगे थे. वैसे भी वह काफी उग्र स्वभाव के थे. यही कारण था कि उन के घर के अन्य लोग संजू का प्रेम विवाह चाह कर भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

संजू के लखनऊ आने के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहते हुए अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे थे और भविष्य के सपनों में खोए रहते थे. उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि एक ऐसा तूफान आने वाला है, जो उन की जिंदगी को झकझोर कर रख देगा.

सौरभ और संजू के दिन अच्छी तरह से कट रहे थे. लेकिन 10 अक्तूबर, 2016 को संजू के पिता राकेश कुमार सिंह अचानक सौरभ के कमरे पर आ धमके तो उन्हें देख कर पहले तो दोनों डरे, लेकिन जब उन्होंने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, उन्होंने उन्हें माफ कर दिया है तो दोनों को थोड़ी राहत मिली.

राकेश कुमार सिंह ने कहा, ‘‘बच्चो, तुम्हारी शादी से हमें कोई परेशानी नहीं है. जो होना था, वह हो गया है. अब हम चाहते हैं कि समाज के जो रीतिरिवाज हैं, उन का पालन किया जाए.’’

इस के बाद संजू और सौरभ को विश्वास में ले कर गांव में धूमधाम से दोनों की शादी की बात कह कर राकेश कुमार सिंह संजू को अपने साथ ले कर गांव लौट आए.

सौरभ भी खुश था कि चलो देर ही सही, उस के ससुरजी ने नाराजगी त्याग कर बेटी को और उसे अपना लिया है. लेकिन संजू के गांव जाने के बाद जब उस ने उस से बात करने की कोशिश की तो बात नहीं हो सकी. क्योंकि संजू को उस से बात नहीं करने दी जा रही थी.

संजू पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई थीं. एक तरह से उसे बंधक बना लिया गया था. 10 अक्तूबर, से 31 अक्तूबर, 2016 तक जब संजू से बात न हो पाई तो सौरभ अपनी ससुराल जा पहुंचा. लेकिन संजू से मिलने की कौन कहे, उसे घर पर रुकने तक नहीं दिया गया. उसे दुत्कार कर भगा दिया गया.

ऐसा कई बार हुआ तो सौरभ ने पत्नी को पाने के लिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से गुहार लगाई. इस का नतीजा यह निकला कि 3 नवंबर, 2016 को हाईकोर्ट ने संजू को उसे सौंपने का आदेश तो दे दिया, साथ ही हाईकोर्ट में भी पेश करने को कहा. लेकिन निर्धारित तारीख पर संजू को हाईकोर्ट में पेश नहीं किया गया.

इस के बाद पट्टी कोतवाली पुलिस ने राकेश कुमार सिंह को संजू के साथ थाने बुलाया, जहां हुई पंचायत में संजू अपने पिता के साथ जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार अपने पति सौरभ के साथ जाने की बात कर रही थी. उस का कहना था कि उस ने सौरभ को ही अपना सब कुछ मान लिया है, अब वह मरेगी तो उसी के साथ और जिएगी भी तो उसी के साथ.

थाने में हुई पंचायत में संजू के फैसले एवं हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राकेश कुमार सिंह पुलिस पर दबाव डलवा कर संजू को अपने साथ घर ले आए. जबकि सौरभ ने पुलिस को हाईकोर्ट का आदेश दिखाने के साथ कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र भी दिखाया था. लेकिन पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी थी.

30 अक्तूबर को दीपावली का त्यौहार था, जिस की वजह से कुछ नहीं हो सका. अगले दिन 31 अक्तूबर को पट्टी कोतवाली में सौरभ ने अपनी पत्नी संजू की जान का खतरा बताते हुए उस के पिता राकेश कुमार सिंह समेत 3 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर देते हुए न्याय की गुहार लगाई.

इस के अलावा सौरभ एसपी माधवप्रसाद वर्मा से मिला और उन्हें भी तहरीर दे कर पत्नी की जान बचाने की गुहार लगाई. एसपी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल संजू को सौरभ के सुपुर्द कराने के निर्देश दिए, बल्कि सौरभ की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर काररवाई करने का भी आदेश दिया.

उन के आदेश का यह असर हुआ कि पट्टी कोतवाली पुलिस ने 2 नवंबर, 2016 को सौरभ की तहरीर पर राकेश कुमार सिंह, उस के छोटे भाई धीरेंद्र सिंह और छोटे बेटे शुभम के खिलाफ अपराध संख्या 376/2016 पर भादंवि की धारा 368 के तहत मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन तुरंत कोई काररवाई नहीं की.

2 नवंबर को गांव धनगढ़ के लोगों से पट्टी पुलिस को पता चला कि संजू की मौत हो गई है तो पुलिस के हाथपांव फूल गए. पुलिस तुरंत गांव पहुंची और आननफानन संजू की लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही अपहरण के मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ कर नामजद लोगों की तलाश शुरू कर दी.

3 नवंबर, 2016 की सुबह संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को उड़ैयाडीह मोड़ से गिरफ्तार कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि संजू की मौत जहर से हुई थी. थाने ला कर राकेश कुमार सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि संजू ने उन की इज्जत से खिलवाड़ किया था, जिस की सजा जहर दे कर उस की हत्या कर के दी गई.

पूछताछ के बाद पटटी कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर राजकिशोर ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद वह संजू के चाचा धीरेंद्र सिंह तथा भाई शुभम की तलाश में लगे थे. कथा लिखे जाने तक दोनों पकड़े नहीं जा सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आखिर क्या था कमरा नंबर 104 का रहस्य

अमृतसर के सिटी सैंटर स्थित होटल सिंह इंटरनेशनल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दीपक से आने वाले युवक ने कहा था कि उसे ठहरने के लिए कमरा चाहिए तो उन्होंने रूम बौय को आवाज दे कर उसे कमरा दिखाने भेज दिया था. रूमबौय उस युवक को कमरा दिखाने फर्स्ट फ्लोर पर ले जाने लगा तो उस ने साथ आई युवती को स्वागतकक्ष में ही बैठा दिया था और खुद कमरा देखने चला गया था. युवक को कमरा पसंद आ गया तो दीपक ने एंट्री रजिस्टर उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, इस में आप अपना नामपता और फोन नंबर आदि लिख कर अपनी और मैडम की आईडी दे दीजिए. कमरे का किराया एक हजार रुपए प्रतिदिन होगा और नियम के अनुसार चैकआउट का समय दोपहर 12 बजे होगा.’’

दीपक से एंट्री रजिस्टर ले कर उस ने युवक ने अपना नाम रणवीर सिंह और साथ आई युवती को पत्नी बता कर उस का नाम मोनिका लिख दिया. पता उस ने 26-ए, नियर केवीएस मालवीय रोड, जयपुर, राजस्थान लिखा. मोबाइल नंबर- 8766711800 लिख कर अपनी और पत्नी मोनिका की आईडी दीपक के पास जमा करा दी. इस के बाद रूम बौय ने उन्हें होटल के कमरा नंबर 104 में पहुंचा दिया. यह 12 नवंबर, 2016 की बात है. उस समय शाम के यही कोई साढे़ 4 बज रहे थे.

कुछ देर आराम करने के बाद दोनों ने चायनाश्ता किया और स्वर्णमंदिर श्री हरमिंदर साहिब के दर्शन करने चले गए. लौट कर उन्होंने रात का खाना होटल से ही मंगवा कर खाया. अगले दिन यानी 13 नवंबर को दोनों सुबह 11 बजे घूमने के लिए निकले तो रात करीब साढ़े 8 बजे लौटे. खाना वगैरह खा कर वे सो गए तो अगले दिन यानी 14 नवंबर को दोनों में से न कोई बाहर आया और न चायनाश्ता या खाना मंगाया.

पूरा दिन बीत गया और उस कमरे में कोई हलचल नहीं हुई तो रात 10 बजे के करीब होटल मैनेजर दीपक यह पता करने के लिए कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि करीब 30 घंटे से इस कमरे से कोई बाहर नहीं निकला है.

दीपक ने दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं, लेकिन अंदर किसी तरह की हलचल नहीं हुई. उन्होंने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. अंदर उन्हें जो दिखाई दिया, वह परेशान करने वाला था. वह भाग कर नीचे आए और होटल के मालिक करनदीप सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘सरदारजी, कमरा नंबर 104 में एक लाश पड़ी है.’’

करनदीप सिंह फौरन होटल पहुंचे तो सारा स्टाफ कमरा नंबर 104 के सामने खड़ा था. उन्होंने देखा, कमरे के बैड पर 24-25 साल की एक युवती की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पूछने पर मैनेजर दीपक ने बताया, ‘‘यह युवती 2 दिनों पहले ही अपने पति रणवीर सिंह के साथ होटल में आई थी.’’

‘‘इस का पति कहां है?’’

‘‘13 नवंबर की रात से वह दिखाई नहीं दिया.’’ दीपक ने कहा.

इस के बाद करनदीप सिंह ने थाना रामबाग की बसअड्डा पुलिस चौकी को फोन कर के मुंशी संजीव कुमार को इस बात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चौकीइंचार्ज एएसआई सुशील कुमार पुलिस बल के साथ होटल सिंह इंटरनेशनल आ पहुंचे. होटल में लाश मिलने की सूचना उन्होंने थाना रामबाग के थानाप्रभारी, एसीपी और क्राइम टीम को भी दे दी थी.

उन्हीं की सूचना पर थाना रामबाग के थानाप्रभारी इंसपेक्टर दलविंदर कुमार, एसीपी (ईस्ट) गुरमेल सिंह भी होटल आ पहुंचे थे. पुलिस ने कमरे और लाश का निरीक्षण किया. बैड पर लाश पड़ी थी. उसी के पास रखी टेबल पर खून सनी एक हथौड़ी रखी थी. उसी टेबल पर पानी का जग और 2 गिलास रखे थे.

मृतका के सिर के पिछले हिस्से में गहरे घाव थे. चेहरे पर भी चोटों के गंभीर निशान थे, जो संभवत: हथौड़ी के वार से हुए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों के अनुसार, हत्यारा इतना चालाक था कि उस ने कमरे की इस तरह सफाई की थी कि कहीं भी उस की अंगुली के निशान नहीं मिले थे. हथौड़ी पर भी अंगुलियों के निशान नहीं थे.

चौकीइंचार्ज ने लाश को कब्जे में ले कर सारी काररवाई निपटाई और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर अपराध संख्या 460/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की 12 नवंबर से 15 नवंबर तक की फुटेज कब्जे में ले ली थी. रजिस्टर में दर्ज रणवीर और मोनिका का पता, फोन नंबर नोट कर के रणवीर द्वारा होटल में जमा कराई गई आईडी भी अपने कब्जे में ले ली.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या रणवीर ने ही की है, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने उस की तलाश के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई बलदेव सिंह, हैडकांस्टेबल बलविंदर सिंह, हीरा सिंह, बूटा सिंह, गुरचरण सिंह, गुरप्रीत सिंह, हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और कांस्टेबल रणजीत सिंह को शामिल किया.

होटल के रजिस्टर में रणवीर द्वारा लिखवाया गया मोबाइल नंबर चैक किया गया तो वह फरजी पाया गया. जयपुर भेजी गई पुलिस टीम ने लौट कर बताया कि होटल में रणवीर ने जो पता लिखाया था और जो आईडी दी थी, वे सब फरजी थीं. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज से मिले रणवीर और मोनिका के फोटो पंजाब और राजस्थान के सभी थानों को भेज कर कहा गया कि अगर इन के बारे में कोई जानकारी मिले तो सूचना दी जाए.

लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद शिनाख्त न होने की वजह से चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने अपने खर्चे से उस का अंतिम संस्कार करा दिया. लाख प्रयास के बाद भी रणवीर और मृतका के बारे में कोई जानकारी न मिलने से सुशील कुमार भी शांत हो गए.

लेकिन 8 दिसंबर, 2016 को अचानक बाड़मेर, राजस्थान के पुलिस अधीक्षक गगन सिंगला के औफिस से एक संदेश मिला, जिस में कहा गया था कि अमृतसर के होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में पत्नी भावना चौधरी की हत्या कर के फरार हुआ हत्यारा राजेंद्र चौधरी उन की हिरासत में है.

सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार अपने साथ हैडकांस्टेबल हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और बलविंदर सिंह को ले कर 9 दिसंबर को बाड़मेर पहुंच गए. थाना सदर के थानाप्रभारी जयराम चौधरी के सामने उन्होंने राजेंद्र चौधरी से शुरुआती पूछताछ कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ करने एवं सबूत जुटाने के लिए 10 दिसंबर, 2016 को उसे बाड़मेर के जेएमसी अंबिका सोलंकी बल्होत्रा की अदालत में पेश कर के 3 दिनों के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया.

राजेंद्र चौधरी उर्फ रणवीर सिंह को अमृतसर ला कर ड्यूटी मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के रिमांड पर लिया और पुलिस चौकी ला कर पूछताछ की गई तो होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में हुई युवती की हत्या के बारे में की गई पूछताछ में उस ने जो कहानी बताई, वह घरेलू कलह और संदेह के घेरे में कैद एक अविवेकी पुरुष की मानसिकता से जुड़ी कहानी थी.

राजेंद्र प्रकाश चौधरी राजस्थान के जिला बाड़मेर के सारणनगर-जालिया के रहने वाले तगाराम का बेटा था. राजेंद्र के अलावा उन की 2 संतानें और थीं, एक बेटा और एक बेटी. 12वीं करने के बाद राजेंद्र डिस्कौम कंपनी में इलैक्ट्रिशियन की नौकरी करने लगा था. पितापुत्र की कमाई से घर के खर्च आराम से चल जाते थे.

राजेंद्र की नौकरी लग गई तो घर वालों ने लड़की देख कर 10 जून, 2014 को भावना से उस की शादी कर दी. भावना बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन खराब भी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों सामान्य शक्लसूरत के थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को दिल से चाहते थे. पर इस में परेशानी तब खड़ी हुई, जब राजेंद्र पत्नी पर संदेह करने लगा.

दरअसल, भावना का हंसमुख स्वभाव ही उस के लिए दुश्मन बन गया. अपने इसी स्वभाव की वजह से वह हर किसी से हंसहंस कर बातें कर लेती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से घर वाले ही नहीं, बाहर वाले भी उसे पसंद करते थे. लेकिन राजेंद्र को उस का यह स्वभाव यानी हर किसी से हंसनाबोलना जरा भी पसंद नहीं था.

इसी बात को ले कर पहले तो थोड़ीबहुत कहासुनी होती रही, लेकिन धीरेधीरे इस कहासुनी ने झगड़े का रूप ले लिया. जब यह झगड़ा रोजरोज होने लगा तो राजेंद्र की मोहल्ले में बदनामी होने लगी. इस बदनामी से बचने के लिए उस ने घर छोड़ दिया और नेहरूनगर में किराए का मकान ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

राजेंद्र ने घर जरूर बदल लिया था, लेकिन न उस का स्वभाव बदला था और न भावना का. इसलिए घर वालों से अलग होने के बाद पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े और ज्यादा होने लगे. वह भावना को किसी से बातें करते देख लेता तो उस का खून खौल उठता. भावना लाख सफाई देती, लेकिन वह उस की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं करता था. इसी वजह से वह शराब भी पीने लगा.

एक दिन झगड़ा करने के बाद राजेंद्र ने शराब पी तो उस के दिमाग में आया कि ऐसी बेशर्म और बदचलन औरत को मौत के घाट उतार देना ही ठीक है. यह जब तक जिंदा रहेगी, उसे इसी तरह जिल्लत और बदनामी झेलनी पड़ेगी. बस इसी के बाद वह भावना की हत्या के बारे में सोचने लगा.

वह भावना की हत्या कुछ इस तरीके से करना चाहता था कि किसी भी सूरत में पकड़ा न जाए. इस के लिए वह साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भावना की हत्या के लिए आइडिया ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे आइडिया मिल गया. इस के बाद उस ने बाजार से एक सर्जिकल ब्लेड और हथौड़ी खरीद कर रख ली.

इस के बाद राजेंद्र ने साइबर कैफे से ही अपने और भावना के फरजी नाम रणवीर और मोनिका के नाम से पहचान पत्र बनाया. योजना के अनुसार, उस ने भावना से लड़ाईझगड़ा बंद कर दिया और उसे विश्वास में लेने के लिए प्यार से बातें करने लगा. फरजी पहचान पत्र से नया सिम खरीद कर उस ने भावना से कहा, ‘‘अब हमारे घर का झगड़ाक्लेश खत्म हो गया है, क्यों न हम कहीं घूमने चलें?’’

भावना को भला इस में क्या ऐतराज हो सकता था. वह तैयार हो गई तो 10 नवंबर, 2016 को फरजी पहचान पत्र से टिकट करा कर वह भावना के साथ अमृतसर आ गया. घर से चलते समय उस ने अपना मोबाइल फोन घर में ही खड़ी मोटरसाइकिल की डिक्की में रख दिया था, जिस से कभी कोई बात हो तो उस के फोन की लोकेशन घर की मिले.

अमृतसर में उस ने होटल सिंह इंटरनेशनल में कमरा नंबर 104 बुक कराया और उसी में भावना के साथ ठहर गया. 13 नवंबर को दिन में उस ने भावना को अमृतसर में घुमाया और रात 9 बजे लौट कर होटल के कमरे में ही शराब पीने बैठ गया. बातोंबातों में प्यार की दुहाई दे कर उस ने भावना को भी शराब पिला दी.

रात के 11 बजे के करीब राजेंद्र ने देखा कि भावना की नशे और नींद की खुमारी में आंखें बंद हो रही हैं तो पहले उस ने उसे पीटपीट कर अधमरा कर दिया. इस के बाद साथ लाई हथौड़ी से उस के सिर और चेहरे पर कई वार किए. वह बेहोश हो गई तो सर्जिकल ब्लेड से श्वांस नली काट दी.

भावना की हत्या करने के बाद उस ने कमरे में मौजूद एकएक चीज से अपनी अंगुलियों के निशान मिटाए. इस के बाद 12 बजे के करीब कमरे का दरवाजा बंद कर के वह होटल के बाहर निकल गया. रेलवे स्टेशन से उस ने ट्रेन पकड़ी और बाड़मेर पहुंच गया.

घर आने पर उसे पता चला कि उस की अनुपस्थिति में उस का साला देवेंद्र भावना के बारे में पता करने आया था. इस के बाद जब उस से भावना के बारे में पूछा गया तो सारी सच्चाई सामने आ गई और भावना की हत्या का राज खुल गया.

सबूत जुटाने के लिए राजेंद्र को 2 दिनों के रिमांड पर और लिया गया. इस बीच उस की निशानदेही पर उस के घर से सर्जिकल ब्लेड बरामद कर ली गई. हथौड़ी होटल के कमरे से बरामद ही हो चुकी थी, इसलिए 2 दिनों का रिमांड समाप्त होने पर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित