
चंद्रलोक कालोनी चौराहा इंदौर का पौश इलाका है. यहां की 4 लेन पर स्थित एक बहुमंजिला बिल्डिंग रवि अपार्टमेंट के भूतल पर इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड का औफिस है. इस औफिस में इंटेक्स के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रभारी ताहिर हुसैन डार बैठते थे. 24 जून, 2014 को करीब साढ़े 12 बजे भी ताहिर हुसैन रोजाना की तरह अपने औफिस में बैठे थे.
उसी समय इंटेक्स का एक पुराना एजेंट गोविंद वर्मा कंपनी के औफिस आया और अपने परिचित कर्मचारियों को हाय हैलो करता हुआ ताहिर हुसैन के केबिन में चला गया. गोविंद चूंकि वहां अकसर आता रहता था, इसलिए कंपनी के सभी 18 कर्मचारी उसे अच्छी तरह जानते थे.
गोविंद जब ताहिर हुसैन के केबिन में पहुंचा तो वहां एक आदमी पहले ही बैठा हुआ था. अतिरिक्त कुरसी एक ही थी जिस पर पहले आया व्यक्ति बैठा था. गोविंद को आया देख ताहिर हुसैन ने घंटी बजा कर औफिस बौय संजू को बुलाया और उस से कुरसी लाने को कहा. संजू कुरसी लेने चला गया.
उसी वक्त केबिन में तेज धमाके की आवाज के साथ चीख की आवाज उभरी. इस से बाहर बैठे कर्मचारियों ने समझा कि ताहिर साहब के केबिन में कंप्यूटर का सीपीयू फट गया होगा. इसी बीच कुरसी ले कर आए संजू ने केबिन का दरवाजा अंदर की ओर धकेला तो गोविंद हाथ में तमंचा लिए बाहर निकला. उस के साथ एक आदमी और भी था.
बाहर निकलते ही गोविंद ने तमंचा लहराते हुए कहा, ‘‘अगर कोई बीच में आया तो बेमौत मारा जाएगा.’’ इस के साथ ही उस ने एक फायर भी कर दिया. उस के तमंचे से निकली गोली शीशे के मुख्य द्वार को भेद कर बाहर निकल गई.
गोविंद का यह रूप देख सभी कर्मचारी बुरी तरह डर गए. डर के मारे कई कर्मचारी तो अपनी मेजों के नीचे छिप गए थे. ताहिर हुसैन के पास जो आदमी पहले से बैठा था, वह गोविंद का ही साथी था और उस के साथ ही बाहर आ गया था. उस के हाथ में भी तमंचा था. गोविंद और उस का साथी कांच का मुख्य द्वार खोल कर बाहर निकल गए.
गोविंद और उस के साथी के बाहर जाते ही कंपनी के कर्मचारी केबिन की ओर दौड़े. केबिन में खून से लथपथ ताहिर हुसैन फर्श पर पड़े कराह रहे थे. उन्हें कंधे में गोली लगी थी जो पार निकल गई थी. कंपनी के कर्मचारी उन्हें निजी वाहन से पास के सीएचएल अस्पताल में ले गए. जहां तुरंत उन का इलाज शुरू कर दिया गया. इस बीच इस मामले की सूचना थाना पलासिया को दे दी गई थी.
खबर मिलते ही पलासिया के थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह सबइंसपेक्टर के.एन. सिंह व 2 हवलदारों के साथ मौका ए वारदात पर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी.
चूंकि वारदात कंपनी के एक बड़े अधिकारी के साथ हुई थी इसलिए थोड़ी देर में वहां पुलिस वालों की अच्छी भली भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी मौके पर बुला लिया था. पुलिस की एक टीम ने घटनास्थल का मुआयना किया और दूसरी टीम सीएचएल अस्पताल पहुंच गई ताकि ताहिर हुसैन का बयान लिया जा सके. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं थे.
ताहिर हुसैन डार मूलत: कश्मीर के जिला श्रीनगर के गांव सोनवार के रहने वाले थे. उन के बड़े भाई शब्बीर और पिता गुलाम मोहम्मद डार सोनवार में अपना प्रोवीजनल स्टोर चलाते थे. ताहिर ने इंदौर स्थित इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में 3 साल पहले बतौर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रभारी के रूप में पद संभाला था. यहां वह अपनी पत्नी नाजनीन और डेढ़ वर्षीय बेटे अयान के साथ निपानिया टाउनशिप स्थित नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 428 में रहते थे. उन के मातापिता कश्मीर स्थित अपने गांव में ही रह रहे थे.
खुशमिजाज और मिलनसार स्वभाव के ताहिर हुसैन की पत्नी नाजनीन भी कश्मीर की ही रहने वाली थीं. उन के पिता जबलपुर के बिजली विभाग में औडीटर थे, जिस की वजह से उन का पूरा परिवार ग्वालियर शिफ्ट हो गया था. नाजनीन ने दिल्ली में पढ़ाई की थी, उस के बाद वह सीए की पढ़ाई के लिए भोपाल आ गई थीं. उस समय ताहिर हुसैन भोपाल में अपनी बुआ के बेटे डा. रईस खान के कोहेफिजा स्थित घर पर रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे.
भोपाल में ही नाजनीन और ताहिर हुसैन की मुलाकात हुई. दोनों हमवतन भी थे और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक भी. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर दोस्ती. वक्त के साथ दोस्ती प्यार में बदली और बात शादी तक जा पहुचीं. इस शादी में दोनों के ही परिवारों को कोई ऐतराज नहीं था.
भोपाल से एमबीए करने के बाद ताहिर हुसैन को चंडीगढ़ की एक टायर कंपनी में जौब मिल गया तो वह चंडीगढ़ चले गए. लेकिन वहां उन्हें ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ा. इसी बीच उन्हें मोबाइल कंपनी इंटेक्स की इंदौर स्थित ब्रांच इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में नौकरी मिल गई थी. इस ब्रांच में उन्हें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया. यह 3 साल पहले की बात है.
इंदौर में नौकरी करते हुए ही ताहिर हुसैन ने नाजनीन से शादी की. शादी के लिए दोनों के परिवार इंदौर में ही एकत्र हुए. शादी के बाद ताहिर हुसैन ने निपानिया टाउनशिप की नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग में फ्लैट ले लिया था और पत्नी के साथ वहीं रहने लगे थे. शादी के करीब डेढ़ साल बाद नाजनीन अयान की मां बनी. बेटे के जन्म के बाद नाजनीन और ताहिर हुसैन खूब खुश थे.
ताहिर हुसैन का काम था, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलगअलग शहरों में लोगों को इंटेक्स मोबाइल की फेंचाइजी देना. इस के लिए वसूली जाने वाली रकम और एजेंट का कमीशन वही तय करते थे. कंपनी के काम के अधिकार प्राप्त लोग जितना अधिक काम देते थे, उन्हें उसी हिसाब से कमीशन दिया जाता था. ये सारे अधिकार ताहिर हुसैन के पास थे.
गोविंद वर्मा ने इंदौर के यशवंत प्लाजा, स्टेशन रोड के भूतल पर साईंनाथ मोबाइल सेंटर के नाम से सर्विस सेंटर खोल रखा था. यह सेंटर गोविंद की बहन नीतू के नाम पर था. गोविंद के पास यूं तो कई मोबाइल कंपनियों की फेंचाइजी थी, लेकिन उसे सब से ज्यादा लाभ इंटेक्स से होता था1
ताहिर हुसैन को कुछ महीने पहले जब गोविंद वर्मा द्वारा इंटेक्स के नाम पर हेराफेरी किए जाने की बात पता चली तो उन्होंने उसे दी गई फे्रंचाइजी वापस ले ली. यह बात गोविंद को अच्छी नहीं लगी. उस ने कई बार इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड के औफिस जा कर इस बारे में ताहिर हुसैन से बात की. फे्रंचाइजी वापस लिए जाने के बावजूद ताहिर हुसैन उस से पूर्ववत ही बात करते थे. उन के औफिस के कर्मचारी भी गोविंद से पहले की तरह ही पेश आते थे.
अलबत्ता ताहिर हुसैन ने उसे पुन: फ्रेंचाइजी देने से साफ इनकार कर दिया था. इस से गोविंद काफी बौखलाया हुआ था. उस की बौखलाहट की वजह यह भी थी कि ताहिर हुसैन ने उस की फे्रंचाइजी समाप्त करने की वजह और उस की हेराफेरी की रिपोर्ट अपने दिल्ली स्थित हेड औफिस को भेज दी थी और कंपनी ने उसे हमेशा के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दिया था. हालांकि गोविंद की हर कोशिश बेकार गई थी, इस के बावजूद वह ताहिर हुसैन से मिलने उन के औफिस आता रहता था.
जब गोविंद को लगा कि अब कुछ नहीं होने वाला है तो उस ने ताहिर हुसैन से बदला लेने की एक खतरनाक योजना बनाई. इस के लिए उस ने न केवल 2 तमंचों की व्यवस्था की बल्कि अपने एक दोस्त राजेंद्र वर्मा को भी लालच दे कर अपनी येजना में शामिल कर लिया. 24 जून को राजेंद्र और गोविंद दोनों ही ताहिर हुसैन के औफिस आए थे और उन्होंने ही इस घटना को अंजाम दिया था. ये बातें पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आई.
पुलिस ने गोविंद और उस के दोस्त के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर के दोनों की तलाश शुरू कर दी थी. बाद में जब उसी शाम ताहिर हुसैन की मृत्यु हो गई तो इस मामले को हत्या की धारा में तबदील कर दिया गया.
उधर पति की हत्या की बात सुन कर नाजनीन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. उस की तो दुनिया ही उजड़ गई थी. इंदौर में उस का अपना भी कोई नहीं था जो उसे संभालता. खबर मिलने पर उसी रात भोपाल से ताहिर के फुफेरे भाई डा. रईस खान और उन की पत्नी नाहिदा इंदौर पहुंचे और उन्होंने नाजनीन को संभाला. उसी रात नाजनीन के मातापिता भी जबलपुर से इंदौर पहुंच गए थे.
श्रीनगर से ताहिर हुसैन के बुजुर्ग मातापिता का आना संभव नहीं था. विचारविमर्श के बाद डा. रईस खान और नाजनीन के पिता ने तय किया कि ताहिर के शव को श्रीनगर ही ले जाएं. उन के आग्रह पर अस्पताल के डाक्टरों ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अगले 2 दिनों तक शव खराब न हो. अंतत: 26 जून को ताहिर हुसैन के शव को वायु मार्ग से श्रीनगर ले जाया गया, वहां से सड़क मार्ग से उन के गांव सोनवार. उसी दिन उन्हें सुपुर्द ए खाक भी कर दिया गया.
उधर पुलिस गोविंद को खोज रही थी जबकि उस का कोई पता नहीं चल रहा था. वह अपने विजय नगर स्थित घर से फरार था. उस पर दबाव बनाने के लिए पुलिस उस के पिता और बहन नीतू को थाने उठा लाई. इस का नतीजा यह हुआ कि 29 जून की रात 10 बजे गोविंद अपने एक दोस्त मयूर के साथ थाना पलासिया पहुंचा और दोनों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस वक्त दोनों नशे में चूर थे. थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह उस वक्त थाने में नहीं थे.
उन्हें सूचना दी गई तो वह तत्काल थाने पहुंच गए. शिवपाल सिंह ने दोनों को हवालात से निकलवा कर पूछताछ की तो मयूर ने बताया कि घटना वाले दिन वह गोविंद के साथ नहीं था. उसे तो गोविंद चाकू की नोक पर धमका कर थाने लाया है. उस का कहना था कि हत्या के समय गोविंद के साथ वह नहीं बल्कि भूरा था.
पूछताछ में गोविंद ने ताहिर हुसैन की हत्या की वजह बताते हुए कहा कि उस ने इंटेक्स की फे्रंचाइजी के बूते पर ही यशवंत प्लाजा के ग्राउंड फ्लोर पर 20 हजार रुपए किराए पर दुकान ली थी. साथ ही 3 लाख रुपए कर्ज ले कर पूरा सेटअप भी तैयार किया था. लेकिन जब फ्रेंचाइजी वापस ले ली गई तो उस का पूरा धंधा चौपट हो गया. इस के लिए वह 3 महीने तक ताहिर हुसैन के पास चक्कर लगाता रहा, लेकिन वह नहीं माने. इस से उसे बहुत गुस्सा आया और उस ने उन्हें ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.
गोविंद ने हत्या की बात जरूर कुबूल ली थी, लेकिन वह अभी भी झूठ बोल रहा था. उस ने जहां तमंचा छिपाने की बात बताई थी वहां तमंचा भी नहीं मिला था. अलबत्ता पुलिस ने यह जरूर पता कर लिया था कि घटना के समय उस के साथ राजेंद्र वर्मा था. गोविंद से वह तमंचा बरामद करना जरूरी था जिस से उस ने ताहिर हुसैन की हत्या की थी. इसलिए 30 जून को पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के उस का 6 दिन का पुलिस कस्टडी रिमांड ले लिया.
अगले दिन शिवपाल कुशवाह को एक मुखबिर से सूचना मिली कि गोविंद का साथी राजेंद्र वर्मा ग्वालियर की अशोक कालोनी में रहने वाले अपने भाई के यहां छिपा हुआ है. शिवपाल सिंह ग्वालियर में तैनात रह चुके थे. उन्होंने उसी समय ग्वालियर के उस क्षेत्र के थानाप्रभारी को फोन कर के कहा कि वह ग्वालियर पहुंच रहे हैं. तब तक राजेंद्र वर्मा के भाई के घर पर ध्यान रखें.
शिवपाल सिंह की टीम ने उसी दिन ग्वालियर जा कर राजेंद्र वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. राजेंद्र को इंदौर ला कर पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार किया कि वह गोविंद के साथ न केवल इंटेक्स के औफिस गया था बल्कि ताहिर हुसैन पर गोली भी उसी ने चलाई थी. यह बात चौंकाने वाली इसलिए थी क्योंकि गोविंद के अनुसार ताहिर हुसैन पर गोली उस ने चलाई थी.
जब यह बात राजेंद्र से पूछी गई तो वह बोला, ‘‘गोविंद मुझे बचाने के लिए मेरा जुर्म स्वीकार रहा है.’’ वह ऐसा क्यों कर रहा है, यह पूछने पर राजेंद्र ने बताया कि गोविंद ने जब उसे इस योजना में शामिल किया था तो वादा किया था कि कहीं भी उस का नाम नहीं आने देगा. अगर नाम आ भी गया तो वह उस का जुर्म अपने सिर ले लेगा.
गोविंद, राजेंद्र और मयूर से पूछताछ में यह बात साबित हो गई कि मयूर इस मामले में कहीं शामिल नहीं था. गोविंद उसे पैसे दे कर और शराब पिला कर थाने लाया था ताकि वह ताहिर हुसैन की हत्या का जुर्म अपने सिर ले ले. इस सिलसिले में एक बेकुसूर को फंसाने की साजिश के लिए गोविंद के खिलाफ एक केस और दर्ज किया गया. मयूर को पुलिस ने छोड़ दिया.
गोविंद और राजेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने 5 जुलाई को उन के घर के पास बहने वाले गंदे नाले के किनारे वाली झाडि़यों से वे दोनों तमंचे भी बरामद कर लिए जिन्हें वारदात में इस्तेमाल किया गया था. साथ ही उन की वे दोनों मोटरसाइकिल भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लीं जिस पर बैठ कर वे इंटेक्स के औफिस गए थे.
गोविंद और राजेंद्र से पूछताछ में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इन लोगों ने ताहिर हुसैन की हत्या की योजना परदेसीपुरा स्थित बमचक बाबा के आश्रम में बैठ कर बनाई थी इस योजना में गोविंद और राजेंद्र के अलावा नंदनगर का शिवम उर्फ भैय्यू तथा नंदनगर का ही उमाशंकर उर्फ भूरा भी शामिल थे.
भैय्यू और भूरा अपराधी प्रवृत्ति के थे. इन दोनों ने ही गोविंद को खरगौन के एक व्यक्ति से 2 तमंचे खरीदवाए थे. घटना वाले दिन गोविंद और राजेंद्र के साथ ये दोनों भी इंटेक्स के औफिस गए थे. लेकिन भैय्यू और भूरा अंदर न जा कर मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़े रहे थे. हत्या के बाद ये चारों जने मोटर साइकिलों पर बैठ कर फरार हो गए थे. गोविंद ने भैय्यू और भूरा को 50-50 हजार रुपए दिए थे. साथ ही यह आश्वासन भी कि उन का नाम कहीं नहीं आएगा.
यह भी पता चला कि घटना वाले दिन भी ये चारों बमचक बाबा के आश्रम में एकत्र हुए थे और फूलप्रूफ योजना बनाने के बाद वहीं से इंटेक्स के औफिस गए थे. वहां गोविंद और राजेंद्र अंदर गए और ताहिर हुसैन की हत्या कर के बाहर आ गए. इस के बाद चारों वहां से फरार हो गए थे. हकीकत पता चलने पर पुलिस ने शिवम उर्फ भैय्यू को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उमाशंकर उर्फ भूरा पुलिस के हाथ नहीं आया.
पुलिस ने 10 जुलाई, 2014 को गोविंद, राजेंद्र और शिवम उर्फ भैय्यू को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुखबिर की सूचना पर उमाशंकर उर्फ भूरा को भी 18 जुलाई, 2014 को गिरफ्तार कर पूछताछ के बाद जेल भेज दिया.
अगर इस पूरे मामले को देखा जाए तो गोविंद की बददिमागी ही उभर कर सामने आती है. उन की भूल थी तो सिर्फ यह कि फे्रंचाइजी खत्म होने के बाद भी उन्होंने गोविंद को अपने केबिन में आने से कभी नहीं रोका. बदमजगी होने के बाद भी वह उसे सम्मान से अपने सामने बैठाते और चाय पिलाते रहे.
बहरहाल, ताहिर हुसैन नहीं रहे. उन के न रहने से जहां उन की पत्नी नाजनीन की दुनिया उजड़ गई, वहीं उन के बूढ़े मांबाप का सहारा भी छिन गया. देखना यह है कि कानून गोविंद और उस के साथियों को क्या सजा देता है.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
अनुज वहीं खड़ा रहा और महेंद्र बाहर चला गया. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथों में बीयर की 2 बोतलें थीं. वह एक बोतल अनुज को देते हुए बोला, ‘‘नशा उतरने लगा है. एकएक बीयर और पीते हैं. उस के बाद थोड़ी देर यहां रुक कर वापस चलेंगे.’’
अनुज पर थोड़ाबहुत नशा हावी था. उसी की झोंक में महेंद्र के कहने से वह बीयर पी गया. उसे क्या पता था कि उस बीयर में उस की मौत का सामान है. बीयर पीने के बाद जैसे ही अनुज को नशा चढ़ना शुरू हुआ, महेंद्र उसे डिस्कोथेक के बाहर ले आया और कार में बिठा दिया. वहां से वह अनुज को अंजुना तट की जगह कोलबा बीच पर ले गया.
कोलबा बीच 9 बजे के बाद सुनसान हो जाता है. अनुज नशे में भी था और जहर भी अपना असर दिखाने लगा था. महेंद्र उस से बोला, ‘‘कैसे मर्द हो यार, जरा सी बीयर पी कर झूमने लगे. इतने नशे में सोनम और कामिनी के सामने जाना ठीक नहीं है. यह कोलबा बीच है. यहां रोशनी में समुद्र की लहरों में नहाने का मजा ही कुछ और है. चलो, थोड़ी देर नहाते हैं. नहाने से नशा उतर जाएगा. इस के बाद वापस चलेंगे.’’
अनुज नशे में तो था ही. उसे महेंद्र की बात सही लगी. उस के कहने पर उस ने उस का दिया हुआ स्विमिंग सूट पहन लिया और उस के साथ झूमती हुई समुद्र की लहरों में उतर गया. महेंद्र सागर अपनी योजना के अनुरूप स्विमिंग सूट पहले ही साथ लाया था.
महेंद्र अपनी योजना के अनुसार अनुज को कोलबा बीच पर समुद्र की उछलती लहरों में ले गया और उस के नशे का लाभ उठा कर उसे डुबो कर मार डाला. इस तरह अनुज को ठिकाने लगा कर महेंद्र जब अंजुना बीच पर कामिनी और सोनम के पास लौटा तो रात के सवा 11 बज चुके थे. सोनम काफी परेशान थी. कामिनी ने नाटकीय अंदाज में महेंद्र को डांटते हुए पूछा, ‘‘कहां गए थे तुम लोग? और अनुज कहां है?…सोनम कब से परेशान हो रही है.’’
‘‘परेशान मत हो.’’ महेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘सुनोगी तो तुम भी खुश हो जाओगी और सोनम भी. मैं इन लोगों के ठहरने का इंतजाम कर के आ रहा हूं. अब ये हमारे साथ रहेंगे, 2 दिन. कल का जाना कैंसल. इन्हें मुंबई से शिरडी और महाबलेश्वर जाना था. वहां का प्रोग्राम गोवा में एडजस्ट हो गया. अनुज ने मुंबई और दिल्ली फोन कर के बता दिया है.’’
‘‘वाव…’’ कामिनी खुश होते हुए बोली, ‘‘अनुज कहां है?’’
‘‘अनुज मेरे साथ था. वह हमारा इंतजार कर रहा है. हम लोग जरा डिस्कोथेक में रुक गए थे. मैं ने कहा भी, पर वह बोला थोड़ी देर और ठहरो. देर हो रही थी, सो मैं उसे छोड़ कर इधर आ गया. वह थोड़ी देर में यहीं आ जाएगा. चलो, तब तक होटल से इन लोगों का सामान ले आते हैं. अनुज ने कहा है, होटल का बिल चुका कर बता देना कि हम जा रहे हैं.’’
सोनम को अजीब भी लगा और गोवा में 2 दिन रुकने की बात सुन कर कुछकुछ अच्छा भी. लेकिन यह अनुज का फैसला था और वह वहां था नहीं, इसलिए वह कह भी क्या सकती थी.
कामिनी और महेंद्र सोनम को साथ ले कर होटल पहुंचे और होटल का बिल चुकाने के बाद अनुज और सोनम का सारा सामान आल्टो में रख कर लौट आए. सोनम ने होटल कर्मचारियों को बता दिया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं, अब वे उन्हीं के साथ रहेंगे.
महेंद्र और कामिनी सोनम को साथ ले कर काफी देर इधरउधर घुमाते रहे. इसी बीच कामिनी ने एक जगह कार से उतर कर आइसक्रीम खरीदी और सोनम वाली आइसक्रीम में जहर मिला दिया. आइसक्रीम खाने के बाद सोनम पर जहर का असर होने लगा.
सोनम को आइसक्रीम खिलाने के बाद कामिनी और महेंद्र अंजुना तट पर एक जगह एकांत में पहुंचे. तब तक सोनम पर जहर पूरी तरह असर कर चुका था. सुनसान जगह कार रोक कर कामिनी ने सोनम के कपड़े उतारे और उसे स्विमिंग सूट पहना दिया. इस के बाद उन्होंने अर्द्धबेहोशी की हालत में उसे उठा कर समुद्र में फेंक दिया.
इस तरह अनुज और सोनम को ठिकाने लगाने के बाद महेंद्र और कामिनी उन का सामान ले कर अपने घर चले गए. बाद में समुद्र की लहरों में लुढ़कती हुई सोनम और अनुज की लाशें किनारे आ लगी थीं. अगले दिन दोनों लाशें अलगअलग थानों की पुलिस को मिल गई थीं.
उधर महेंद्र और कामिनी ने सोनम और अनुज के सामान से मिले रुपए और अन्य सामान अपने पास रख लिया और उन के लाखों के गहने बेच दिए.
बाद में जब गोवा पुलिस को पता चला कि मृतक अनुज और सोनम के साथ अंतिम दिन महेंद्र सागर और कामिनी को देखा गया था तो उस ने उन की तलाश शुरू की. इस पर महेंद्र और कामिनी गोवा छोड़ कर दिल्ली आ गए. काफी समय वे लोग दिल्ली में रहे और फिर मेरठ चले गए थे.
महेंद्र और कामिनी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद मेरठ पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना गोवा पुलिस को दे दी. गोवा पुलिस मेरठ आ कर उन दोनों को ट्रांजिट वारंट पर गोवा ले गई.
—कथा एक सत्य घटना पर आधारित
खाना खाने के बाद वे चारों फिर बीच पर आ गए. अनुज और सोनम को गोवा के रहने वालों, वहां के रीतिरिवाजों और विदेशी सैलानियों की बातें बतातेबताते लगभग 3 बज गए. बातें चल ही रही थीं कि अचानक महेंद्र सागर कुछ सोचते हुए अनुज से बोला, ‘‘ये अपने ड्राइवर को किस बात की सजा दे रहे हो आप?’’
‘‘मतलब?’’ अनुज ने चौंकते हुए पूछा तो महेंद्र बोला, ‘‘मतलब यह कि आप लोग हनीमून पर आए हो, औफिस की ड्यूटी करने नहीं. ऊपर से हमारे जैसे निठल्ले दोस्त मिल गए. सुबह से दोपहर हो गई. दोपहर से शाम हो जाएगी और फिर रात. वक्त का पता तक नहीं चलेगा. ड्राइवर गाड़ी में बैठा कोसता रहेगा, आप लोगों को भी और हमें भी.’’
महेंद्र की बात सुन कामिनी खिलखिला कर हंस पड़ी. सोनम ने शरमा कर मुंह फेर लिया. अनुज के होठों पर भी भावभीनी मुसकराहट उभर आई. वह कुछ जवाब देता, इस से पहले ही महेंद्र उस की ओर देख कर बोला, ‘‘जाओ, गाड़ी वापस भेज दो. घूमने के लिए हमारे पास अपनी आल्टो है. हम आप को होटल में छोड़ कर आएंगे.’’
अनुज को महेंद्र की बात सही लगी. वह पार्किंग में गया और ड्राइवर को गाड़ी ले जाने को कह कर वापस लौट आया.
शाम को सूरज ढलने के बाद ज्योंज्यों रात का अंधेरा गोवा की धरती पर उतरने लगता है, त्योंत्यों वहां की रंगीनी और मौजमस्ती शबाब में आनी शुरू हो जाती है. होटल रेस्तरां, पबों, डिस्कोथेक और शराबखानों से ले कर समुद्र तटों तक को रंगीन रोशनियां अपनी बांहों में समेट लेती हैं. लगता है, जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो.
महेंद्र और कामिनी के साथ अनुज और सोनम का वह दिन खूब मस्ती में गुजरा था. दिन भर घूमते रहने की वजह से हल्कीहल्की थकान थी फिर भी उन का मन उन दोनों को छोड़ कर जाने का नहीं कर रहा था. रात को 8 बजे जब वे चारों अंजुना तट पर बैठे बातें कर रहे थे तो महेंद्र ने अनुज को उठाते हुए उस ओर इशारा कर के कहा जिधर समुद्र की लहरें शोर करते हुए किनारे से अठखेलियां कर रही थीं, ‘‘इन दोनों को छोड़ो, ये दोनों अपनी मस्ती में हैं. चलो, हम उधर बैठते हैं.’’
अनुज ने मुड़ कर मुसकराते हुए एक नजर सोनम पर डाली और महेंद्र के साथ उस ओर बढ़ गया, जिधर महेंद्र ने इशारा किया था. उसे क्या मालूम था कि वह अपनी सोनम को अंतिम बार देख रहा है.
अनुज को शोर मचाती लहरों के पास ले जा कर महेंद्र उस से बोला, ‘‘देखो ये लहरें कितनी मस्ती में झूम रही हैं. इन लहरों की शोखियों से अपने लिए थोड़ी सी मस्ती चुराने ही तो लोग गोवा आते हैं. हमारे देश की सब से मदमस्त जगह है गोवा. इस गोवा के भी 2 रूप हैं. एक वो जो तुम 2 दिन से देख रहे हो और एक वो जो अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा.’’
‘‘क्या दिखाओगे?’’ अनुज ने मासूमियत से मुसकराते हुए पूछा तो महेंद्र शरारत भरी नजरों से उस की ओर देख कर बोला, ‘‘डिस्को. दिल्ली में भी गए हो डिस्को में?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘जाते भी तो कोई फायदा नहीं था. दिल्ली के डिस्कोथेक मैं ने देखे हैं. वहां वह मस्ती और रंगीनी नहीं है जो होनी चाहिए.’’ महेंद्र जुबान से लक्ष्य पर बाण साधते हुए बोला, ‘‘गोवा के डिस्कोथेक की बात ही अलग है. रंगीन रोशनियों में नहाए देशीविदेशी जोड़ों को मदमस्त म्यूजिक की ताल पर थिरकते देखोगे तो लगेगा जैसे इंद्र के अखाड़े में आ गए हो. 15-16 साल से ले कर 25 तक हर उम्र की लड़कियां साथ देने के लिए मिल जाती हैं. देशी चाहो तो देशी और विदेशी चाहो तो विदेशी. बस बात इतनी सी है कि वहां बीवियों को साथ ले कर नहीं जा सकते.’’
‘‘नहीं, मैं सोनम को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा. वैसे भी ऐसी जगहों में मेरी कोई रुचि नहीं है.’’ अनुज ने इनकार किया तो महेंद्र प्यार से उस का हाथ थामते हुए बोला, ‘‘क्या बच्चों वाली बातें करते हो यार. ऐसे मौके रोजरोज थोड़े ही आते हैं. …मुझे देखो, मैं गोवा में रहते हुए भी नहीं जा पाता. तुम्हारे बहाने मुझे भी मौका मिल जाएगा. थोड़ी देर की तो बात है. ये लोग यहीं बैठी रहेंगी. वैसे भी जब 2 औरतें आपस में बात करती हैं तो उन्हें पता नहीं रहता कि एक घंटा गुजरा या चार?’’
‘‘नहीं सोनम बुरा मान जाएगी.’’ अनुज ने कहा तो महेंद्र उस के कान के पास मुंह ले जा कर बोला, जैसे कोई गोपनीय बात कर रहा हो, ‘‘बुरा तो कामिनी भी मान जाएगी. लेकिन हम उन्हें पता ही नहीं चलने देंगे.’’
अनुज सोनम को छोड़ कर जाना नहीं चाहता था. लेकिन महेंद्र सागर ने उसे अपनी बातों के जाल में ऐसा उलझाया कि वह चाह कर भी इनकार नहीं कर सका. वह मान गया तो महेंद्र बोला, ‘‘तुम यहीं ठहरो, मैं उन लोगों से बहाना बना कर आता हूं.’’
‘‘बहाने की क्या जरूरत है, मैं सोनम से कह देता हूं थोड़ी देर में लौट आएंगे.’’ अनुज ने कहा तो महेंद्र बोला, ‘‘और अगर साथ चलने की जिद पकड़ ली तो सारा मजा किरकिरा नहीं हो जाएगा? …नहीं मेरे दोस्त, तुम यहीं ठहरो, मैं उन दोनों को पट्टी पढ़ा कर आता हूं.’’
अनुज आगे कुछ बोलता इस से पहले ही महेंद्र कामिनी और सोनम की ओर बढ़ गया. वे दोनों बातों में मशगूल थीं. महेंद्र ने उन से कहा, ‘‘हम लोग एक घंटे में लौट कर आते हैं, तब तक तुम लोग यहां का नजारा देखो.’’
उसी वक्त उस ने कामिनी को विशेष इशारा करते हुए कहा, ‘‘कामिनी, ध्यान रखना सोनम जरा भी बोर न होने पाए.’’
इस के बाद महेंद्र अनुज को वहां से एक बीयर बार में ले गया और उस के मना करतेकरते भी जिद कर के उसे बीयर पिला दी. अनुज ने पहले कभी बीयर नहीं पी थी. एक बीयर में ही उसे नशा हो गया. बीयर पिलाने के बाद महेंद्र अनुज को एक डिस्कोथेक में ले गया. वहां उन दोनों ने एकडेढ़ घंटा गुजारा. जब नशा हलका होने लगा तो अनुज को सोनम की याद आई. उस ने महेंद्र से वापस चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘तुम 5 मिनट ठहरो, मैं आता हूं.’
रात में सभी सो गए, जबकि हरमीत अपने कमरे में जागता रहा. सब के सो जाने के बाद उस ने शराब पी. वह हत्याओं के बारे में सोचने लगा. शराब के नशे के चलते करीब 12 बजे उस की आंख लग गई. दिमाग में चूंकि हत्या का भूत सवार था, इसलिए 3 बजे आंख खुल गई. हरमीत ने एक बार फिर शराब पी और 4 बजे के करीब जय सिंह बाथरूम जाने के लिए उठे तो उसे आहट से पता चल गया.
उस ने ठान लिया कि अब वह एकएक को मार कर ही रहेगा. जय सिंह बाथरूम से वापस आए तो अचानक हरमीत उन के कमरे में पहुंच गया और चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगा.
बेटे का यह रूप देख कर जय सिंह हक्केबक्के रह गए. उन्होंने बचाव के लिए हाथ उठाए तो उस ने हाथों पर भी चाकू मारे. उम्र का तकाजा था, जय सिंह ज्यादा विरोध नहीं कर सके. हरमीत ने पेट से ले कर गर्दन तक कई वार किए तो लहूलुहान हो कर वह दरवाजे के पास गिर गए और दम तोड़ दिया. पिता की हत्या करने के बाद उसे घबराहट होने लगी तो वह अपने कमरे में गया और शराब का एक पैग बना कर पिया.
उस के सिर पर खून सवार था. इस के बाद वह ड्राइंगरूम कम बेडरूम में पहुंचा और वहां सो रही कुलवंत कौर पर हमला बोल दिया. जागने पर वह हरमीत से भिड़ गईं. मामूली संघर्ष के बाद उस ने उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. उसी बेडरूम में हरजीत भी अपने दोनों बच्चों के साथ सो रही थी. हरमीत ने अगला निशाना उसे बनाया. गर्भवती होने के कारण वह ज्यादा विरोध नहीं कर सकी.
उस की 3 साल की मासूम बेटी सुखमणि को भी उस ने मार दिया. उसी बीच 6 साल के कंवलजीत की आंख खुल गई तो वह बिस्तर से उतर कर रोता हुआ भागा. हरमीत किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने भागते कंवलजीत की पीठ पर 2 वार किए. दोनों ही वार हलके थे. वह 2 सोफों के बीच छिप कर रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘प्लीज मामा, मुझे मत मारो.’’
हरमीत कंवलजीत को प्यार तो करता था, परंतु उस वक्त वह भी उसे अपना दुश्मन नजर आ रहा था. अचानक उसे ख्याल आया कि कंवलजीत को जिंदा छोड़ कर अपने पक्ष में गवाह बनाया जा सकता है कि हत्याएं किसी और ने की हैं. मन में यह ख्याल आते ही उस ने कंवलजीत से गुर्राकर कहा, ‘‘रोना बंद कर और मेरी बात सुन. तुझ से कोई पूछे तो बताना कि 3 नकाबपोश लोगों ने ये हत्याएं की हैं. तू ने सच बताया तो तेरा भी यही हाल करूंगा.’’
कंवलजीत थरथर कांप रहा था, उस ने रोते हुए कहा, ‘‘ठीक है मामा, मैं ऐसा ही कहूंगा. मुझे मत मारो.’’
हरमीत ने उसे छोड़ दिया. लेकिन डर की वजह से वह वहीं छिपा रहा. हरमीत ने सोचा कि सुबह लेगों को बताएगा कि 3 नकाबपोश बदमाशों ने पूरे परिवार की हत्या की है. गवाह के तौर पर वह कंवलजीत को सामने कर देगा. कहानी को सच बनाने के लिए उस ने अपने हाथ पर चाकू मार लिया.
घर में खून का दरिया बहाने वाले का अपना थोड़ा खून बहा तो उस ने हाथ पर रूमाल बांध लिया. अपनी खून सनी कमीज उस ने उतार कर रख दी और चाकू भी फेंक दिया. हरमीत अपने कमरे में गया और एक बार और शराब पी. नशा अधिक होने के चलते हरमीत आगे की कोई प्लानिंग नहीं कर सका. उसे किसी अंजाम की परवाह भी नहीं रही. इसी बीच वह सो गया.
सुबह नौकरानी आई तो वह हड़बड़ा कर उठा और राजो को टालने की कोशिश की. परंतु वह दोबारा आई तो वह सिर पकड़ कर बरामदे में बैठ गया. लोग आए तो कंवलजीत भी बाहर आ गया. लोगों के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया. पुलिस को भी उस ने हरमीत द्वारा समझाई गई बात ही बताई, लेकिन पिता के आने पर उस का डर कम हुआ तो उस ने सच बता दिया.
इस के बाद निर्दयी हरमीत को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उस की मां अनीता और भाई को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन हत्या या षडयंत्र में उन का कोई हाथ नहीं निकला. जांच के लिए हरमीत के फिंगरप्रिंट व खून का नमूना ले कर प्रयोगशाला भिजवा दिया, ताकि घटनास्थल पर मिले सुबूतों से उस का मिलान किया जा सके.
पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी हरमीत की कू्ररता चौंका गई. जय सिंह के शरीर पर 24, कुलवंत के शरीर पर 9, हरजीत के शरीर पर 7 और सुखमणि के शरीर पर चाकू के 5 घाव पाए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार हरजीत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का था.
अगले दिन लक्खीबाग श्मशान घाट पर गमगीन माहौल में सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. हत्याओं के चश्मदीद गवाह मासूम कंवलजीत के बाल मन पर डरावने मंजर का गहरा असर पड़ा था. वह गुमशुम था. हरमीत के प्रति लोगों में गुस्सा था. हर कोई उसे कोस रहा था, जबकि हरमीत को इन हत्याओं का कोई अफसोस नहीं था.
पुलिस ने गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में उस के खिलाफ धारा 316 भी लगा दी थी. पुलिस ने उसे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया. उसे देखने के लिए अदालत में काफी भीड़ लगी थी. लोगों के गुस्से को देखते हुए सुरक्षा की काफी व्यवस्था थी. इस के बावजूद लोगों ने उसे पीटने का प्रयास किया. अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
अपनी बिगड़ैल प्रवृत्ति, संपत्ति के लालच व नफरत में हरमीत इतना अंधा हो गया कि अपनों का ही हत्यारा बन बैठा. कथा लिखे जाने तक वह सलाखों के पीछे था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
जब अमीर लोगों में पैठ बन गई तो महेंद्र सागर ने दिल्ली में अपना जाल फैलाने के बाद ठगी के कुछ और रास्ते निकालने शुरू किए. अपनी नई योजना के तहत उस ने और कामिनी ने दिल्ली और गुड़गांव के कई लोगों और कंपनियों से लाखों ठगे. यहां तक इन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय बैंकों को भी मोटा चूना लगाया. इसी पैसे से इन्होंने लग्जरी कार भी खरीदी और ठाठबाट भी बनाए.
जब दिल्ली और गुड़गांव के लेनदार महेंद्र को ज्यादा तंग करने लगे तो वह पत्नी और बच्चों के साथ चुपचाप गोवा चला गया. गोवा पहुंच कर भी महेंद्र और कामिनी ने वही सब किया, जो वे दिल्ली में करते रहे थे. वहां उन्होंने अपनी ठगी का शिकार पर्यटकों को बनाना शुरू किया. पैसे वाले लोगों को फंसाने के लिए महेंद्र और कामिनी वहां भी सैक्स क्लबों के मेंबर बन गए.
दरअसल कामिनी इतनी सुंदर और विशिष्ट व्यक्तित्व की स्वामिनी थी कि एक बार बाहों में आने के बाद कोई भी उस से मिलन का मोह नहीं छोड़ सकता था. लेकिन जो एक बार उस के जाल में फंस जाता था, वह बिना सब कुछ लुटाए नहीं बच सकता था.
महेंद्र ने कितने ही लोगों को पत्नी की आड़ ले कर लूटा था. कभीकभी पैसा न होने की स्थिति में वह अपनी खूबसूरत पत्नी को पैसे के लिए किसी अमीर के पास भेजने से भी नहीं हिचकता था.
महेंद्र ने गोवा में किराए का मकान ले लिया था और उस में लौज चलाने लगा था. लौज क्या यह उस का और कामिनी का ठगी का अड्डा था, जहां वह अंजुना बीच, बामा बीच और बैगेटर बीच आदि से पैसे वाले पर्यटकों को फंसा कर लाते थे और इस ढंग से उस की जेब खाली कराते थे कि वह किसी से कह तक न सके.
जब अनुज और सोनम अंजुना बीच पर घूम रहे थे तो महेंद्र और कामिनी की नजर उन पर पड़ी. नवविवाहित जोड़ा था. ऊपर से सोनम भारीभरकम सोने के गहने पहने थी. महेंद्र और कामिनी ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे को इशारा कर के बताया कि शिकार सामने है.
अनुज और सोनम पैर फैलाए आराम से रेत पर बैठे उछलउछल कर पर्यटकों का अभिनंदन करती लहरों को देख रहे थे. तभी वहां से गुजरते महेंद्र और कामिनी पल भर के लिए रुके. रूपसी कामिनी ने अनुज को बड़ी अजीब सी नजरों से इस तरह देखा, जैसे पहचानने का प्रयास कर रही हो. अनुज और सोनम को बड़ा अजीब लगा. वह कुछ कहतेपूछते इस से पहले ही कामिनी ने अनुज की ओर बढ़ते हुए मुसकरा कर पूछा, ‘‘आप को कहीं देखा है, लेकिन याद नहीं आ रहा. कहां से आए हैं आप?’’
कामिनी की बातों में शालीनता भी थी और अपनापन भी. अनुज ने सीधे स्वभाव कह दिया, ‘‘दिल्ली से.’’
दिल्ली का नाम सुन कर कामिनी के चेहरे पर खुशी के भाव झलकने लगे. वह अनुज और सोनम के पास रेत पर बैठते हुए बोली, ‘‘हम भी दिल्ली से ही हैं. परदेस में कोई अपना मिल जाए तो कितना अच्छा लगता है. आप लोग हनीमून मनाने आए हो न?’’
सोनम ने बिना कुछ कहे शरमाते हुए हां में गरदन हिलाई तो कामिनी ने अपनापन दर्शाते हुए कहा, ‘‘चलो, अच्छा हुआ आप लोग मिल गए. आप लोग तो पहली बार गोवा आए हो न?’’
‘‘हां, कल शाम को ही यहां पहुंचे हैं. गोवा वाकई बहुत खूबसूरत जगह है.’’ अनुज ने कहा तो कामिनी ने थोड़ी दूरी पर खड़े महेंद्र को आवाज दी, ‘‘ऐ…इधर आओ न. देखो, ये लोग दिल्ली से आए हैं.’’
फिर वह अनुज और सोनम की ओर देखते हुए बोली, ‘‘गोवा वाकई बहुत खूबसूरत जगह है. प्रेमियों का स्वर्ग कहा जाता है इसे. लेकिन पहली बार आने वाले लोग यहां के खूबसूरत नजारों का पूरा आनंद नहीं उठा पाते. मालूम नहीं होता न, कौन जगह कहां है. खैर, हम दिखाएंगे आप लोगों को गोवा की असली सुंदरता.’’
महेंद्र पास आ गया तो कामिनी ने उस से अनुज और सोनम का परिचय कराया. वह भी उन लोगों के पास बैठ गया. कहीं दूरदराज की जगह पर अपने शहर, कस्बे या गांव का कोई व्यक्ति मिल जाए तो वाकई बहुत अच्छा लगता है. अनुज और सोनम को भी महेंद्र व कामिनी का मिलना अच्छा लगा. बातचीत शक्लोसूरत और व्यवहार से महेंद्र और कामिनी उच्चशिक्षा प्राप्त तथा किसी संपन्न परिवार के लग रहे थे.
बातों का दौर चला तो उन दोनों ने अनुज और सोनम से जरा सी देर में दोस्ती गांठ ली. कामिनी तो स्वयं को दिल्ली की बता कर अनुज को अपना भाई तक कह चुकी थी. महेंद्र को जब पता चला कि सोनम सिरसा से है तो उस ने खुद को हरियाणा का रहने वाला बताते हुए उसे बहन कहना शुरू कर दिया.
महेंद्र और कामिनी दिल्ली और हरियाणा के बारे में सब कुछ जानते थे. उन की बातों से अनुज और सोनम को पूरा विश्वास हो गया कि हरियाणा और दिल्ली से उन का गहरा संबंध है. जब उन दोनों ने अनुज और सोनम को यह बता कर कि वे लोग 8 साल अमेरिका में रह कर आए हैं, वहां की बातें सुनाईं तो वे और भी ज्यादा प्रभावित हुए. अमेरिका से उच्च शिक्षा की डिग्री ले कर आया कोई कंप्यूटर इंजीनियर इतना सरल हृदय और मिलनसार हो सकता है, ये बात वे सोच भी नहीं सकते थे.
उस दिन शाम तक का समय उन्होंने महेंद्र और कामिनी के साथ अंजुना बीच और गोवा की खूबसूरत वादियों में बिताया. सब ने एक अच्छे होटल में खाना भी साथसाथ खाया. शाम को जब दोनों जोड़े अलग हुए तो कामिनी शरमा कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप लोगों के साथ मजा आ गया. इतने अच्छे दोस्त बड़े नसीब से मिलते हैं. रात को हम आप को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. लेकिन कल यहीं मिलना. गोवा की कुछ खास चीजें दिखाएंगे.’’
अगले दिन अनुज और सोनम महेंद्र सागर और कामिनी से फिर अंजुना तट पर मिले. चारों ने समुद्र की लहरों और बीच की रेत में घंटों मस्ती की. फिर किनारे के एक रेस्तरां में जा कर साथसाथ खाना खाया. उस समय अनुज और सोनम कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि इतने प्यार से पेश आने वाले और बातोंबातों में अपनों जैसी घनिष्ठता दिखाने वाले महेंद्र और कामिनी उन के लिए मौत का जाल बुन चुके हैं. वह खाना उन की जिंदगी का अंतिम आहार है और उन का हनीमून टूर चंद घंटों बाद मौत के सफर में बदलने जा रहा है.
बेटे के जाते ही मंजू और सन्नी अपनी हसरतें पूरी करने लगे, लेकिन मैकेनिक की दुकान बंद होने की वजह से रविंद्र जल्द ही वापस लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा नहीं खुला, फिर वह गली में जा कर खड़ा हो गया.
रविंद्र के दोस्त सन्नी से थे मां के संबंध
उधर दरवाजा खटखटाने पर मंजू और सन्नी की कामलीला में व्यवधान पड़ गया. फटाफट दोनों ने कपड़े पहने और सन्नी दरवाजा खोल कर चला गया. सन्नी रविंद्र को नहीं देख सका. अपने घर से सन्नी को निकलता देख रविंद्र का माथा घूम गया. वह समझ गया कि उस की मां के साथ सन्नी का जरूर कोई चक्कर चल रहा है.
उस ने उसी समय तय कर लिया कि वह सन्नी को सबक सिखा कर रहेगा. उस ने यह बात अपने भाई सुनील को बताई तो सुनील का भी सन्नी के प्रति खून खौल उठा. दोनों भाइयों ने सन्नी के खिलाफ योजना बना ली. इस योजना में रविंद्र ने अपने दोस्त हिमांशु को भी शामिल कर लिया. उसी दिन शाम को रविंद्र ने सन्नी से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि वह इस समय मुंडका में है.
योजना को अंजाम देने के लिए रविंद्र, हिमांशु और सुनील को ले कर मुंडका पहुंच गया. सन्नी उन्हें वहीं मिल गया. सन्नी के साथ उन्होंने एक जगह बैठ कर शराब पी. सन्नी पर जब थोड़ा नशा चढ़ गया तो उसी दौरान तीनों ने सन्नी की जम कर पिटाई की और रविंद्र ने उस की जेब से उस का मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस व अन्य कागजात निकाल लिए.
रविंद्र ने सन्नी को जिन्दा जलाने के लिए उसी की मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उसी के ऊपर छिडक़ दिया. लेकिन सुनील ने उसे आग लगाने से रोक दिया. सुनील ने यह कहते हुए भाई को समझा दिया कि अभी इस के लिए इतनी ही सजा काफी है. अगर यह अब भी नहीं मानेगा तो इसे दुनिया से ही मिटा देंगे. उसी वक्त मौका मिलते ही सन्नी वहां से खेतों की तरफ भाग गया. सन्नी की बाइक ले कर रविंद्र, सुनील और हिमांशु अपने घर चले गए.
सन्नी रात भर खेतों में ही रहा. डर की वजह से वह घर तक नहीं गया. सुबह होने पर वह अपने घर गया और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के अपने साथ घटी घटना की जानकारी दी. तब पुलिस ने सन्नी को रोहिणी के डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती कराया और रविंद्र, सुनील व हिमांशु के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.
सन्नी को फंसाने की रची थी साजिश
14 जुलाई 2015 को सुबह 6 बजे के करीब रविंद्र नित्य क्रिया के लिए घर से निकला, तभी उस ने रास्ते में संतोष की 6 साल की बेटी निशा को अकेली जाते हुए देखा. वह भी नित्य क्रिया के लिए जा रही थी. उसे अकेली देख कर उस का शैतानी दिमाग जाग उठा. उस ने उस बच्ची को 10 रुपए दिए और किसी बहाने से उसे वहां से 50 मीटर की दूरी पर स्थित निर्माणाधीन इमारत में ले गया.
वह इमारत खाली पड़ी थी. नादान बच्ची उस के इरादों को नहीं समझ पाई. उस ने अन्य बच्चों की तरह निशा के साथ भी कुकर्म कर के उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. शातिर दिमाग रविंद्र ने इस बच्ची के मामले में सन्नी को फंसाने के लिए सन्नी का ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य कागजात उसी इमारत की दूसरी मंजिल पर डाल दिए, ताकि पुलिस सन्नी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दे.
रविंद्र ने सन्नी को फंसाने का जाल तो अच्छी तरह बिछाया था, पर अपने जाल में वह खुद फंस जाएगा, ऐसा उस ने नहीं सोचा था. आखिर वह पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया. रविंद्र से पूछताछ के बाद डीसीपी भी हैरान रह गए कि यह एक के बाद एक 40 वारदातें करता गया और पुलिस को पता तक नहीं चला. अगर यह क्रूर हत्यारा अब भी नहीं पकड़ा जाता तो न मालूम कितने और बच्चों को अपना निशाना बनाता.
बहरहाल, पुलिस ने 17 जुलाई को रविंद्र को रोहिणी जिला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के समक्ष पेश किया. रविंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह लगभग 40 बच्चों को अपना शिकार बना कर उन की हत्या कर चुका है. ये सारी वारदातें उस ने दिल्ली के अलावा दूसरे राज्यों में भी की थीं.
घटनास्थल का सत्यापन और केस से संबंधित सबूत जुटाने के लिए उस से और ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए पुलिस ने कोर्ट से उस का 7 दिनों का रिमांड मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.
रिमांड मिलने के बाद पुलिस रविंद्र को उन जगहों पर ले गई, जहांजहां उस ने वारदातों को अंजाम दिया था. रविंद्र ने पुलिस को अलगअलग जगहों पर ले जा कर 27 केसों की पुष्टि करा दी. बाकी केसों के बारे में उसे खुद को ध्यान नहीं रहा कि उस ने कहां वारदात की थी.
तमाम लाशें हो चुकी थीं डैमेज
जिन जगहों पर वारदात कराने की उस ने पुष्टि कराई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के थाने में संपर्क किया तो पता चला कि उन में से केवल 15 केसों की ही अलगअलग थानों में रिपोर्ट दर्ज हुई थी. पुलिस किसी और बच्चे की लाश बरामद नहीं कर पाई. इस की वजह यह थी कि उसे वारदात को अंजाम दिए काफी दिन बीत चुके थे, जिस से अनुमान यही लगाया गया कि बच्चों की लाशें जंगली जानवरों द्वारा या अन्य वजह से नष्ट हो गईं.
जैसेजैसे सीरियल किलर रविंद्र की क्रूरता के खुलासे लोगों को पता लगते गए, उन का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. दिल्ली और आसपास के क्षेत्र के जिन गायब हुए बच्चों का कोई सुराग नहीं लग रहा था, उन के मांबाप भी यही सोचने लगे कि कहीं उन का बच्चा भी रविंद्र का शिकार तो नहीं हो गया. वे भी थाना बेगमपुर पहुंचने लगे.
रिमांड अवधि खत्म होने से पहले पुलिस ने 23 जुलाई, 2015 को जब रविंद्र को फिर से न्यायालय में पेश किया तो उसे देखने के लिए कोर्ट में और कोर्ट से बाहर तमाम लोग जमा हो गए. वे सभी गुस्से से भरे थे. वे उसे जनता के सुपुर्द करने की मांग करने लगे, ताकि उस क्रूर हत्यारे को अपने हाथों से सजा दे सकें. भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उसे कोर्ट में पेश किया गया.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने रविंद्र को जेल भेजने के आदेश दिए. पुलिस जब उसे कोर्ट से बाहर ले जा रही थी, तभी वकीलों ने रविंद्र पर हमला कर उस की पिटाई शुरू कर दी. बड़ी मशक्कत से पुलिस ने उसे बचाया.
बहरहाल रविंद्र को जानने वाले सभी लोग उस के कारनामे से आश्चर्यचकित थे. सीधासादा दिखने वाला रविंद्र इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, ऐसी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.
केस में 24 गवाह हुए पेश
जांच अधिकारी इंसपेक्टर जगमंदर दहिया उस के केसों से संबंधित ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटा कर इस केस की चार्जशीट रोहिणी न्यायालय में पेश की. कोर्ट में यह केस 8 साल तक चला. दोनों पक्षों ने अपने गवाह प्रस्तुत किए. कुल 24 गवाह पेश हुए. इन में मुख्य गवाह बने टेलीफोन औपरेटर मुकुल कुमार. यह सीपीसीआर (पुलिस मुख्यालय) में तैनात थे.
रोहिणी न्यायालय के एडिशनल सेशन जज सुनील कुमार की अदालत में इस केस की अंतिम बहस हुई. अभियोजन पक्ष की ओर से राज्य के विशेष पीपीएलडी विनीत दहिया, काजल सिंघल (डीसीडब्ल्यू में सलाहकार) तथा बचाव पक्ष की तरफ से वकील अभिषेक श्रीवास्तव नियुक्त हुए.
अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में कहा, “मी लार्ड, दोषी ने पीडि़ता के साथ जघन्य अपराध किया जो किसी अमानवीय और शैतानी से कम नहीं. निशा 6 साल की अबोध बालिका थी. ऐसी बच्ची से कोई इंसान इतना घिनौना कृत्य करे, यह उम्मीद नहीं की जा सकती. बलात्कार फिर गला घोंट कर हत्या.
“मी लार्ड, आरोपी 8 साल से जेल में है यह सुधर गया होगा, यह कहना सोचना गलत होगा. इसे अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है. इस ने लगभग 40 मासूम बच्चों और बच्चियों की जान ली है. उन का यौन शोषण भी किया. इसे मृत्युदंड से कम सजा नहीं दी जानी चाहिए. इस ने निशा के साथ वासनापूर्ति की, फिर उसे बेरहमी से मार डाला, यह दया का पात्र हरगिज नहीं हो सकता.”
बचाव पक्ष ने अपील की, “मी लार्ड, इस की गरीबी ने इसे उद्दंड बनाया. यह 8 साल से जेल में है, इस के आचरण पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई. जेल अधिकारी से रिकौर्ड मांगा गया, यह सुधर गया है. अब यह समाज के लिए खतरा नहीं है. इसे कम सजा दे कर समाज में सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए. यह अभी 30 साल का है. इस को अपने मांबाप की देखभाल भी करनी है.”
मरते दम तक जेल में रहने की मिली सजा
दोनों पक्षों की दलीलें सुन लेने के बाद 6 मई, 2023 को माननीय न्यायाधीश सुनील कुमार ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा—
“रविंद्र कुमार पुत्र ब्रह्मानंद को बच्चों के यौन शोषण में पोक्सो ऐक्ट 6 की धारा में दोषी पाया गया. यह व्यक्ति रेप, हत्या, बच्चों को अगवा करने, सबूत नष्ट करने में दोषी ठहराया जाता है. चूंकि यह साइको क्रिमिनल है, इसलिए इसे मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता. भादंवि की धारा 302 के तहत यह मृत्यु तक जेल में रहेगा, इसे दंड के रूप में 10 हजार रुपए का जुरमाना देना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह का दंड और भुगतना होगा.
“दफा 363 आईपीसी में इसे 7 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना न देने पर 3 माह का कठोर दंड भुगतना होगा. दफा 366 आईपीसी में 10 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना अदा न करने पर 3 महीने का अतिरिक्त दंड भुगतना होगा. धारा 201 आईपीसी में इसे 7 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुरमाना अदा करना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह की सजा काटनी होगी.
“चूंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर है, इस के पास चलअचल संपत्ति भी नहीं है, यह गरीब है और किसी भी तरह से जुरमाने की रकम नहीं दे सकेगा, यह मान कर यह कोर्ट उपधारा (4) राज्य के तरह आवेदन करती है कि निशा के मांबाप को जिला विशेष सेवा प्राधिकरण उचित जांच के बाद मुआवजे की राशि 15 लाख रुपए 2 माह के भीतर अदा करे, जिस से बेटी को खो देने की क्षतिपूर्ति हो सके.”
न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद पुलिस ने कटघरे से बाहर निकले मुजरिम रविंद्र कुमार को तुरंत कस्टडी में ले लिया और उसे रोहिणी जेल पहुंचा दिया.
न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद निशा के मातापिता फैसले से संतुष्ट दिखे. उन्होंने ऐतिहासिक फैसले की भूरिभूरि प्रशंसा की.
जब सुमिक्षा का कहीं पता नहीं चला तो बुद्धिविलास कालोनी वालों के साथ थाना सिकंदरा पहुंचा और थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह से मिल कर सुमिक्षा की गुमशुदगी दर्ज करा दी.
पुलिस ने भी सुमिक्षा की तलाश शुरू की. थानाप्रभारी ने अर्चना से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में वह उन के सवालों का जवाब देने के बजाय बेटी को ढूंढ़ कर लाने की बात ज्यादा कर रही थी. वह कालोनी की औरतों के साथ थाने भी गई और वहां धमकी दी कि अगर उस की बेटी नहीं मिलती तो वह कुछ भी कर गुजरेगी.
मामला गंभीर था. पुलिस को सुमिक्षा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. थानाप्रभारी आशीश कुमार सिंह ने मंदिर और परिसर में बने बुद्धिविलास के घर का भी निरीक्षण किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि अर्चना गायब बच्ची की सौतेली मां है. इस के अलावा उस की हरकतें भी उन्हें अजीब और संदिग्ध लगी थीं.
थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह को लग रहा था कि लड़की के गायब होने के पीछे उस की सौतेली मां का ही हाथ है. क्योंकि पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया था कि पति के जाने के बाद उस ने खुद गेट बंद कर के ताला लगा दिया था. ऐसे में उतनी छोटी बच्ची ऊंची दीवारें फांद कर बाहर नहीं जा सकती थी.
थानाप्रभारी ने कालोनी वालों से अर्चना के व्यवहार के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि अर्चना सुमिक्षा को बहुत परेशान करती थी. वह नहीं चाहती थी कि सौतेली बेटी उस के साथ रहे. पुलिस को बुद्धिविलास पर भी शक हो रहा था कि पत्नी के साथ वह भी मिला हो सकता है. लेकिन उस की हालत देख कर पुलिस का यह शक जल्दी ही दूर हो गया.
पुलिस को अर्चना पर पूरा शक था. लेकिन सुबूत न होने की वजह से उस पर हाथ नहीं डाल पा रही थी. यह भी निश्चित था कि अगर अर्चना ने सुमिक्षा की हत्या की थी तो लाश घर में ही कहीं छिपा रखी थी. इसलिए पुलिस ने डौग स्क्वायड भी बुलाया. लेकिन डौग स्क्वायड भी सुमिक्षा की लाश का पता नहीं लगा सके.
सुमिक्षा की गुमशुदगी की सूचना पा कर बुद्धिविलास के 2 भतीजे देवेंद्र और विकास भी आ गए थे. उन्होंने भी अर्चना से सुमिक्षा के बारे में पूछा, लेकिन उस ने उन्हें भी कुछ नहीं बताया. इस के बाद उस ने पुलिस को बताया कि एक ज्योतिषी ने उसे बताया है कि सुमिक्षा मथुरा में है. पुलिस की एक टीम मथुरा भी गई, लेकिन सुमिक्षा उन्हें वहां कहां मिलती. अगले दिन उस ने कहा कि उसे सपना आया है कि सुमिक्षा हाथरस में है. पुलिस टीम हाथरस भी गई.
पुलिस को पूरा विश्वास था कि सुमिक्षा को अर्चना ने ही गायब किया है. इसलिए पुलिस उस पर दबाव बनाने लगी. पुलिस के बढ़ते दबाव से डर कर अर्चना ने फोन कर के अपने पिता रमेश मिश्रा को बुला लिया और मौका मिलते ही रात में उन्हें बता दिया कि उस ने सुमिक्षा की हत्या कर दी है और घर के पास गड्ढा खोद कर उसे दफना दिया है.
बेटी के इस खुलासे से रमेश मिश्रा बुरी तरह डर गए. जैसेतैसे रात बिता कर सवेरा होते ही वह बेटे को ले कर राजामंडी रेवले स्टेशन पर पहुंच गए. वह अपने बेटे को इस झंझट से बचाना चाहते थे. उन का बेटे को इस तरह गुपचुप तरीके से ले कर निकल जाना संदेह पैदा कर रहा था.
देवेंद्र और विकास ने राजा मंडी स्टेशन जा कर उन्हें उस समय घेर लिया, जब वह गाड़ी में बैठ चुके थे. वे उन्हें घर ले आए. शिवपूजन से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह तो सो गया था, इसलिए उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं मालूम, लेकिन दीदी ने उस से कहा है कि पहले दिन उस ने पुलिस को जो बताया था, वही बात सब को बताना. वह सब से वही कहेगा.
24 सितंबर को सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह ने बुद्धिविलास से कहा कि वह अर्चना के साथ सख्ती करे और बेटे की कसम दिला कर सचाई बताने को कहे. इस के बाद बुद्धिविलास ने अर्चना को मंदिर में देवी के सामने खड़ी कर के कहा कि वह बेटे के सिर पर हाथ रख कर कहे कि उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता तो वह मान लेगा कि वह सच बोल रही है.
बेटे की कसम खाने की बात आई तो अर्चना टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुमिक्षा को बेहोश कर के जीवित ही गड्ढा खोद कर गाड़ दिया है.
सच्चाई जान कर बुद्धिविलास ने सिर पीट लिया. इस के बाद उस ने फोन कर के थाना सिकंदरा को सूचना दे दी. थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ तुरंत मंदिर आ पहुंचे. उन्होंने गड्ढा खुदवा कर लाश निकलवाई तो लाश देख कर कालोनी की औरतें ही नहीं, आदमी भी रो पड़े.
मासूम बच्ची की लाश की स्थिति देख कर भीड़ बेकाबू हो गई और बुद्धिविलास सहित घर के सभी लोगों की पिटाई कर दी. पुलिस किसी तरह बचा कर अर्चना को महिला थाने ले आई. अर्चना का मैडिकल बड़े ही गुपचुप रूप से कराया गया. कालोनी की औरतें उसे मारने को तैयार थीं.
25 सितंबर को भारी पुलिस सुरक्षा में अर्चना को स्पेशल सीजेएम कृष्णचंद पांडेय की अदालत में पेश किया गया. उन्होंने उसे जेल भेज दिया. अदालत में मौजूद महिलाओं ने भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद अर्चना के मुंह में स्याही पोत दी.
अजय कौशिक और उन की पत्नी संध्या का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी अहसास होता कि सौतेली मां अर्चना हत्यारिन भी हो सकती है तो वह बच्ची सुमिक्षा को अपने पास ही रख लेते.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
इस के बाद हरमीत ने बुलेट मोटरसाइकिल की मांग शुरू कर दी. उस की इच्छा के अनुसार जय सिंह ने उस की मनपसंद की मोटरसाइकिल दिला दी. हरमीत के पास सब कुछ था. पिता पैसा लगा रहे थे और आजादियां भी दे रहे थे. इस से अच्छी किस्मत क्या हो सकती थी. हरमीत को यह सब आसान लग रहा था. उस की ख्वाहिशों को पंख लगते जा रहे थे. अब वह नई कार की मांग करने लगा.
ऐसे में जय सिंह विरोध कर के समझाने की कोशिश करते तो वह एक ही बात कहता, ‘‘मैं सौतेला हूं, इसलिए मेरी बात नहीं मान रहे हैं.’’
जय सिंह उसे प्यार से समझाते, ‘‘ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. हरमीत तुम मेरे बेटे हो. तुम अपना आचरण सही कर लोगे तो सारी शिकायतें अपने आप ही दूर हो जाएंगी. प्रौब्लम यह है कि तुम कुछ समझना ही नहीं चाहते.’’
बेटे की जिद पर जय सिंह ने कार भी दिला दी. हरमीत ने जिंदगी में पिता की कमाई का स्वाद ही चखा था, इसलिए चीजों की कद्र कम करता था. कभी शराब का नशा तो कभी लापरवाही के चलते कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हो गई. बेटे की हरकतों से जय सिंह अपने पुराने निर्णयों पर पछता रहे थे.
जय सिंह अनीता से भी बेटे को समझाने के लिए कहते थे. वह भले ही अनीता से अलग रहते थे, परंतु समय समय पर उस की तरहतरह से मदद करते रहते थे. उस के पास रह रहे अपने बेटे पारस और पहले पति के बेटे लक्की को भी उन्होंने महंगी महंगी मोटरसाइकिलें दिलाई थीं. दोनों उन से मिलने भी आया करते थे. जय सिंह दिल के अच्छे आदमी थे. वह चाहते थे कि सब हंसीखुशी से रहें.
बस, हरमीत से ही वह परेशान थे. बिगड़े आचरण ने हरमीत को जिद्दी बना दिया था. शराब के अलावा वह स्मैक जैसे खतरनाक नशे भी करने लगा था. उसे इस लत से निकालने के लिए जय सिंह ने एक नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती कराया था, परंतु इस का कोई लाभ नहीं हुआ था. उस के आचरण से हर कोई दुखी था. हरमीत हरजीत कौर को फूटी आंख नहीं पसंद करता था. वह जब भी मायके आती थी, वह उस से झगड़ता रहता था.
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह की बात थी. जय सिंह को विश्वास हो गया कि बेटा अब किसी भी हाल में सुधरने वाला नहीं है. उसे ले कर वह अक्सर परेशान रहते थे. काफी सोचविचार कर उन्होंने अपनी संपत्ति के बंटवारे का निर्णय कर लिया. उन्होंने सोचा कि बेटे को बढि़या फ्लैट दिला कर उसे घर बसाने के लिए आजाद छोड़ देंगे और बेटी को उस का हिस्सा दे देंगे.
जय सिंह का यह निर्णय हरमीत को पसंद नहीं आया. हरमीत का मानना था कि हरजीत तो गोद ली हुई है, जबकि वह पिता का खून है, ऐसे में हरजीत का हक कैसे हो सकता है. दीपावली का त्यौहार आ रहा था. हरजीत चाहती थी कि उस का प्रसव देहरादून में हो. इसलिए जय सिंह ने उसे अपने पास बुलवा लिया था. सभी चाहते थे कि पूरा परिवार दीपावली भी साथ मना ले और डिलीवरी भी हो जाए.
हरजीत के आने से हरमीत का माथा ठनका. उसे लगा कि हो न हो, अब संपत्ति दो हिस्सों में बंट जाएगी. इस से उस के मन में नफरत और बढ़ गई. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी संपत्ति को किसी भी हाल में बंटने नहीं देगा. जबकि जय सिंह के जिंदा रहते यह संभव नहीं था. होता वही, जो जय सिंह चाहते.
हरमीत दिनरात इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि पिता की संपत्ति का अकेला मालिक कैसे बना जाए. वह हमेशा घंटों इसी बारे में सोचता रहता. अंत में उस ने सब की हत्या करने का खतरनाक निर्णय ले लिया. उस के पास 10 इंची लंबा रामपुरी चाकू पहले से ही था.
21 अक्टूबर को हरमीत अंसारी मार्ग पर चाकू की धार तेज कराने गया, लेकिन दुकानदार ने मना कर दिया. हरमीत अपनी संपत्ति से जुड़े हर शख्स को निपटाना चाहता था. उस ने अपने जीजा अरविंदर को भी फोन कर के दीपावली पर देहरादून आने को कहा था, लेकिन अरविंदर ने काम की अधिकता होने के चलते आने से मना कर दिया था.
दीपावली से एक दिन पहले हरजीत कौर ने मोबाइल की इच्छा जाहिर की तो जय सिंह ने उसे 25 हजार रुपए का मोबाइल फोन दिला दिया. इस पर हरमीत भड़क उठा और उस ने भी मोबाइल की मांग की, ‘‘मुझे भी इसी तरह का महंगा मोबाइल फोन चाहिए.’’
‘‘तेरी हर मांग तो पूरी की है, उस का नतीजा क्या निकला है, सोचा है कभी तू ने.’’ जय सिंह ने उसे झिड़क दिया.
‘‘जब यह मोबाइल ले सकती है तो मुझे क्यों नहीं दिला सकते. मैं भी बेटा हूं आप का.’’
‘‘बेटा है, लेकिन नालायक. लायक बन जा, मोबाइल क्या पूरी मोबाइल कंपनी दिला दूंगा तुझे.’’ जय सिंह ने कहा.
इस बात को ले कर घर में तनातनी हो गई तो कुलवंत कौर ने पति को समझाया. उस के बाद वह नरम हो कर बोले, ‘‘ठीक है, दीपावली के बाद तुझे भी ऐसा ही मोबाइल दिला दूंगा.’’
बात सिर्फ मोबाइल की नहीं थी. हरमीत के दिमाग में तो पहले ही बहुत कुछ पक चुका था. मोबाइल ने तो आग में घी का काम किया था. उस के दिल में प्रतिशोध की आग दहक रही थी. अपने निकम्मेपन और गलत आचरण की वजह से उसे लगने लगा था कि पिता सब कुछ बेटी को दे कर एक दिन उसे बाहर का रास्ता दिखा देंगे. यह नौबत कभी भी आ सकती थी. इसलिए किसी भी सूरत में वह अपने निर्णय पर अमल करना चाहता था.
हरमीत ने सोचा कि शराब पी कर वारदात करने में आसानी रहेगी. शराब की एक बोतल ला कर उस ने घर में रख दी. 23 अक्टूबर को पूरा शहर दीपावली का त्योहार मना रहा था.
जय सिंह उन लोगों में से थे, जो सभी से बना कर चलते हैं. मोहल्ले में उन की किसी से अनबन नहीं थी. हर कोई उन के व्यवहार का कायल था. उन का सभी के यहां आनाजाना था. दीपावली की शाम को भी वह आसपड़ोस में सब के यहां गए और दीपावली की बधाई दी. रात में नाती और नातिन के साथ पटाखे भी चलाए. हरमीत भी साथ रहा. तब कोई नहीं जानता था कि इस खुशी के बाद सहन न होने वाला दुख आने वाला है.
चादर में लिपटी मिली साहनी की लाश
चूंकि मामला मासूम बच्ची की गुमशुदगी का था. उस के साथ दरिंदगी जैसी घटना घटित न हो जाए, इसलिए कोतवाल विमलेश कुमार बिना देरी के आवश्यक पुलिस बल के साथ सिरसा दोगड़ी गांव पहुंच गए और बच्ची की खोज शुरू कर दी. परिवार व गांव के युवक भी पुलिस के साथ हो लिए.
पुलिस ने गांव के बाहर खेतखलिहान, बागबगीचा, कुआंतालाब तथा नदीनहर किनारे झाडिय़ों में बच्ची की खोज की. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस ने गांव के कुछ संदिग्ध घरों की तलाशी भी ली. कई नवयुवकों से सख्ती से पूछताछ भी की. परंतु साहनी का पता नहीं चला.
रात 12 बजे के बाद कोतवाल विमलेश कुमार पुलिसकर्मियों व अश्वनी के घर वालों के साथ साहनी की खोज करते गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास पहुंचे. वहां उन्हें केले की झाडिय़ों के बीच सफेद चादर में लिपटी कोई वस्तु दिखाई दी. सहयोगी पुलिसकर्मियों ने जब चादर हटाई तो सभी की आंखें फटी रह गईं. चादर में लिपटी एक बच्ची की लाश थी.
इस लाश को जब अश्वनी ने देखा तो वह फफक पड़ा और कोतवाल साहब को बताया कि लाश उस की बेटी साहनी की है. कोतवाल ने साहनी मर्डर केस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सवेरा होतेहोते एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा डीएसपी रवींद्र गौतम भी घटनास्थल आ गए. अब तक गांव में भी सनसनी फैल गई थी, अत: सैकड़ों लोग वहां जुट गए थे.
राधा को बेटी की हत्या की खबर लगी तो वह बदहवास हालत में घटनास्थल पर पहुंची और बेटी के शव के पास विलाप करने लगी. ओमप्रकाश भी नातिन का शव देख कर रो पड़े. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों को समझा कर किसी तरह शव से अलग किया फिर जांच में जुट गए.
मृतक बच्ची की उम्र 5 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे. देखने से लग रहा था कि उस की हत्या नाक-मुंह दबा कर की गई थी. क्योंकि नाक से खून निकला था. ऐसा भी लग रहा था कि बच्ची की हत्या कहीं और की गई और फिर शव को चादर में लपेट कर वहां फेंका गया. चादर पर खून लगा था. जांच से यह भी अनुमान लगाया गया कि उस के साथ दरिंदगी नहीं की गई थी. जांच के बाद पुलिस अधिकारियों ने बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, उरई भिजवा दिया.
दादा ने जताया बहू पर शक
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद मृतका के पिता अश्वनी दुबे तथा दादा ओमप्रकाश से पूछताछ की. ओमप्रकाश ने बताया कि नातिन की हत्या का भेद उस की बहू राधा के पेट में छिपा है. यदि राधा से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी.
“भला एक मां अपनी मासूम बच्ची की हत्या क्यों करेगी?” पुलिस अधिकारियों ने पूछा.
“साहब, पड़ोसी युवक नेत्रपाल सिंह का हमारे घर आनाजाना था. वह बच्चों को टौफी, बिस्कुट खिलाता था. मना करने के बावजूद नहीं मानता था. उस ने बहू को भी अपने जाल में फंसा लिया था. मुझे शक है कि इन दोनों ने ही कोई खेला किया है.”
यह जानकारी पाते ही डीएसपी रविंद्र गौतम ने पुलिस टीम के साथ नेत्रपाल सिंह व राधा को उन के घर से हिरासत में ले लिया और थाना माधौगढ़ ले आए. थाने में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मासूम साहनी हत्याकांड का जुर्म कुबूल कर लिया.
नेत्रपाल सिंह ने बताया कि पड़ोसी अश्वनी के घर उस का आनाजाना था. घर आतेजाते अश्वनी की पत्नी राधा और उस के बीच नाजायज संबंध बन गए. 4 अप्रैल, 2023 की दोपहर उस ने शराब पी, फिर नशे की हालत में वह राधा के घर पहुंच गया.
राधा उस समय घर में अकेली थी. राधा का पति खेत पर था और बच्चे दादा की झोपड़ी में थे. राधा को अकेली पा कर उस की कामाग्नि भडक़ उठी. उस ने राधा को बांहों में भरा और चारपाई पर लिटा दिया. मस्ती के आलम में उन्होंने दरवाजा भी बंद नहीं किया.
भेद खुलने के डर से की हत्या
राधा के बिस्तर पर वह वासना की आग बुझा ही रहा था कि तभी राधा की बेटी साहनी आ गई. उस ने दोनों को उस हालत में देखा तो वह चीखने लगी. राधा को लगा उस की बेटी उस का भांडा फोड़ देगी. अत: उस ने उसे पकड़ लिया और उस के मुंह पर हाथ रख दिया.
नेत्रपाल सिंह नशे में था. उसे भी लगा कि भेद खुल जाएगा. वह भी उस के पास पहुंचा और फिर मुंह नाक दबा कर साहनी को मार डाला. इस के बाद यह अपराध छिपाने के लिए उन दोनों ने साहनी की लाश को सफेद चादर में लपेटा और गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास फेंक दिया.
चूंकि दोनों ने साहनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: कोतवाल ने मृतका के दादा ओमप्रकाश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत नेत्रपाल सिंह व उस की प्रेमिका राधा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.
7 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने आरोपी नेत्रपाल सिंह व राधा को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित