वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 4

बेटे के जाते ही मंजू और सन्नी अपनी हसरतें पूरी करने लगे, लेकिन मैकेनिक की दुकान बंद होने की वजह से रविंद्र जल्द ही वापस लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा नहीं खुला, फिर वह गली में जा कर खड़ा हो गया.

रविंद्र के दोस्त सन्नी से थे मां के संबंध

उधर दरवाजा खटखटाने पर मंजू और सन्नी की कामलीला में व्यवधान पड़ गया. फटाफट दोनों ने कपड़े पहने और सन्नी दरवाजा खोल कर चला गया. सन्नी रविंद्र को नहीं देख सका. अपने घर से सन्नी को निकलता देख रविंद्र का माथा घूम गया. वह समझ गया कि उस की मां के साथ सन्नी का जरूर कोई चक्कर चल रहा है.

उस ने उसी समय तय कर लिया कि वह सन्नी को सबक सिखा कर रहेगा. उस ने यह बात अपने भाई सुनील को बताई तो सुनील का भी सन्नी के प्रति खून खौल उठा. दोनों भाइयों ने सन्नी के खिलाफ योजना बना ली. इस योजना में रविंद्र ने अपने दोस्त हिमांशु को भी शामिल कर लिया. उसी दिन शाम को रविंद्र ने सन्नी से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि वह इस समय मुंडका में है.

योजना को अंजाम देने के लिए रविंद्र, हिमांशु और सुनील को ले कर मुंडका पहुंच गया. सन्नी उन्हें वहीं मिल गया. सन्नी के साथ उन्होंने एक जगह बैठ कर शराब पी. सन्नी पर जब थोड़ा नशा चढ़ गया तो उसी दौरान तीनों ने सन्नी की जम कर पिटाई की और रविंद्र ने उस की जेब से उस का मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस व अन्य कागजात निकाल लिए.

रविंद्र ने सन्नी को जिन्दा जलाने के लिए उसी की मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उसी के ऊपर छिडक़ दिया. लेकिन सुनील ने उसे आग लगाने से रोक दिया. सुनील ने यह कहते हुए भाई को समझा दिया कि अभी इस के लिए इतनी ही सजा काफी है. अगर यह अब भी नहीं मानेगा तो इसे दुनिया से ही मिटा देंगे. उसी वक्त मौका मिलते ही सन्नी वहां से खेतों की तरफ भाग गया. सन्नी की बाइक ले कर रविंद्र, सुनील और हिमांशु अपने घर चले गए.

सन्नी रात भर खेतों में ही रहा. डर की वजह से वह घर तक नहीं गया. सुबह होने पर वह अपने घर गया और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के अपने साथ घटी घटना की जानकारी दी. तब पुलिस ने सन्नी को रोहिणी के डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती कराया और रविंद्र, सुनील व हिमांशु के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सन्नी को फंसाने की रची थी साजिश

14 जुलाई 2015 को सुबह 6 बजे के करीब रविंद्र नित्य क्रिया के लिए घर से निकला, तभी उस ने रास्ते में संतोष की 6 साल की बेटी निशा को अकेली जाते हुए देखा. वह भी नित्य क्रिया के लिए जा रही थी. उसे अकेली देख कर उस का शैतानी दिमाग जाग उठा. उस ने उस बच्ची को 10 रुपए दिए और किसी बहाने से उसे वहां से 50 मीटर की दूरी पर स्थित निर्माणाधीन इमारत में ले गया.

वह इमारत खाली पड़ी थी. नादान बच्ची उस के इरादों को नहीं समझ पाई. उस ने अन्य बच्चों की तरह निशा के साथ भी कुकर्म कर के उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. शातिर दिमाग रविंद्र ने इस बच्ची के मामले में सन्नी को फंसाने के लिए सन्नी का ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य कागजात उसी इमारत की दूसरी मंजिल पर डाल दिए, ताकि पुलिस सन्नी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दे.

रविंद्र ने सन्नी को फंसाने का जाल तो अच्छी तरह बिछाया था, पर अपने जाल में वह खुद फंस जाएगा, ऐसा उस ने नहीं सोचा था. आखिर वह पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया. रविंद्र से पूछताछ के बाद डीसीपी भी हैरान रह गए कि यह एक के बाद एक 40 वारदातें करता गया और पुलिस को पता तक नहीं चला. अगर यह क्रूर हत्यारा अब भी नहीं पकड़ा जाता तो न मालूम कितने और बच्चों को अपना निशाना बनाता.

बहरहाल, पुलिस ने 17 जुलाई को रविंद्र को रोहिणी जिला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के समक्ष पेश किया. रविंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह लगभग 40 बच्चों को अपना शिकार बना कर उन की हत्या कर चुका है. ये सारी वारदातें उस ने दिल्ली के अलावा दूसरे राज्यों में भी की थीं.

घटनास्थल का सत्यापन और केस से संबंधित सबूत जुटाने के लिए उस से और ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए पुलिस ने कोर्ट से उस का 7 दिनों का रिमांड मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.

रिमांड मिलने के बाद पुलिस रविंद्र को उन जगहों पर ले गई, जहांजहां उस ने वारदातों को अंजाम दिया था. रविंद्र ने पुलिस को अलगअलग जगहों पर ले जा कर 27 केसों की पुष्टि करा दी. बाकी केसों के बारे में उसे खुद को ध्यान नहीं रहा कि उस ने कहां वारदात की थी.

तमाम लाशें हो चुकी थीं डैमेज

जिन जगहों पर वारदात कराने की उस ने पुष्टि कराई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के थाने में संपर्क किया तो पता चला कि उन में से केवल 15 केसों की ही अलगअलग थानों में रिपोर्ट दर्ज हुई थी. पुलिस किसी और बच्चे की लाश बरामद नहीं कर पाई. इस की वजह यह थी कि उसे वारदात को अंजाम दिए काफी दिन बीत चुके थे, जिस से अनुमान यही लगाया गया कि बच्चों की लाशें जंगली जानवरों द्वारा या अन्य वजह से नष्ट हो गईं.

जैसेजैसे सीरियल किलर रविंद्र की क्रूरता के खुलासे लोगों को पता लगते गए, उन का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. दिल्ली और आसपास के क्षेत्र के जिन गायब हुए बच्चों का कोई सुराग नहीं लग रहा था, उन के मांबाप भी यही सोचने लगे कि कहीं उन का बच्चा भी रविंद्र का शिकार तो नहीं हो गया. वे भी थाना बेगमपुर पहुंचने लगे.

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रिमांड अवधि खत्म होने से पहले पुलिस ने 23 जुलाई, 2015 को जब रविंद्र को फिर से न्यायालय में पेश किया तो उसे देखने के लिए कोर्ट में और कोर्ट से बाहर तमाम लोग जमा हो गए. वे सभी गुस्से से भरे थे. वे उसे जनता के सुपुर्द करने की मांग करने लगे, ताकि उस क्रूर हत्यारे को अपने हाथों से सजा दे सकें. भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उसे कोर्ट में पेश किया गया.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने रविंद्र को जेल भेजने के आदेश दिए. पुलिस जब उसे कोर्ट से बाहर ले जा रही थी, तभी वकीलों ने रविंद्र पर हमला कर उस की पिटाई शुरू कर दी. बड़ी मशक्कत से पुलिस ने उसे बचाया.

बहरहाल रविंद्र को जानने वाले सभी लोग उस के कारनामे से आश्चर्यचकित थे. सीधासादा दिखने वाला रविंद्र इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, ऐसी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

केस में 24 गवाह हुए पेश

जांच अधिकारी इंसपेक्टर जगमंदर दहिया उस के केसों से संबंधित ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटा कर इस केस की चार्जशीट रोहिणी न्यायालय में पेश की. कोर्ट में यह केस 8 साल तक चला. दोनों पक्षों ने अपने गवाह प्रस्तुत किए. कुल 24 गवाह पेश हुए. इन में मुख्य गवाह बने टेलीफोन औपरेटर मुकुल कुमार. यह सीपीसीआर (पुलिस मुख्यालय) में तैनात थे.

रोहिणी न्यायालय के एडिशनल सेशन जज सुनील कुमार की अदालत में इस केस की अंतिम बहस हुई. अभियोजन पक्ष की ओर से राज्य के विशेष पीपीएलडी विनीत दहिया, काजल सिंघल (डीसीडब्ल्यू में सलाहकार) तथा बचाव पक्ष की तरफ से वकील अभिषेक श्रीवास्तव नियुक्त हुए.

अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में कहा, “मी लार्ड, दोषी ने पीडि़ता के साथ जघन्य अपराध किया जो किसी अमानवीय और शैतानी से कम नहीं. निशा 6 साल की अबोध बालिका थी. ऐसी बच्ची से कोई इंसान इतना घिनौना कृत्य करे, यह उम्मीद नहीं की जा सकती. बलात्कार फिर गला घोंट कर हत्या.

“मी लार्ड, आरोपी 8 साल से जेल में है यह सुधर गया होगा, यह कहना सोचना गलत होगा. इसे अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है. इस ने लगभग 40 मासूम बच्चों और बच्चियों की जान ली है. उन का यौन शोषण भी किया. इसे मृत्युदंड से कम सजा नहीं दी जानी चाहिए. इस ने निशा के साथ वासनापूर्ति की, फिर उसे बेरहमी से मार डाला, यह दया का पात्र हरगिज नहीं हो सकता.”

बचाव पक्ष ने अपील की, “मी लार्ड, इस की गरीबी ने इसे उद्दंड बनाया. यह 8 साल से जेल में है, इस के आचरण पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई. जेल अधिकारी से रिकौर्ड मांगा गया, यह सुधर गया है. अब यह समाज के लिए खतरा नहीं है. इसे कम सजा दे कर समाज में सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए. यह अभी 30 साल का है. इस को अपने मांबाप की देखभाल भी करनी है.”

मरते दम तक जेल में रहने की मिली सजा

दोनों पक्षों की दलीलें सुन लेने के बाद 6 मई, 2023 को माननीय न्यायाधीश सुनील कुमार ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा—

“रविंद्र कुमार पुत्र ब्रह्मानंद को बच्चों के यौन शोषण में पोक्सो ऐक्ट 6 की धारा में दोषी पाया गया. यह व्यक्ति रेप, हत्या, बच्चों को अगवा करने, सबूत नष्ट करने में दोषी ठहराया जाता है. चूंकि यह साइको क्रिमिनल है, इसलिए इसे मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता. भादंवि की धारा 302 के तहत यह मृत्यु तक जेल में रहेगा, इसे दंड के रूप में 10 हजार रुपए का जुरमाना देना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह का दंड और भुगतना होगा.

“दफा 363 आईपीसी में इसे 7 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना न देने पर 3 माह का कठोर दंड भुगतना होगा. दफा 366 आईपीसी में 10 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना अदा न करने पर 3 महीने का अतिरिक्त दंड भुगतना होगा. धारा 201 आईपीसी में इसे 7 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुरमाना अदा करना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह की सजा काटनी होगी.

“चूंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर है, इस के पास चलअचल संपत्ति भी नहीं है, यह गरीब है और किसी भी तरह से जुरमाने की रकम नहीं दे सकेगा, यह मान कर यह कोर्ट उपधारा (4) राज्य के तरह आवेदन करती है कि निशा के मांबाप को जिला विशेष सेवा प्राधिकरण उचित जांच के बाद मुआवजे की राशि 15 लाख रुपए 2 माह के भीतर अदा करे, जिस से बेटी को खो देने की क्षतिपूर्ति हो सके.”

न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद पुलिस ने कटघरे से बाहर निकले मुजरिम रविंद्र कुमार को तुरंत कस्टडी में ले लिया और उसे रोहिणी जेल पहुंचा दिया.

न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद निशा के मातापिता फैसले से संतुष्ट दिखे. उन्होंने ऐतिहासिक फैसले की भूरिभूरि प्रशंसा की.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 4

जब सुमिक्षा का कहीं पता नहीं चला तो बुद्धिविलास कालोनी वालों के साथ थाना सिकंदरा पहुंचा और थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह से मिल कर सुमिक्षा की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने भी सुमिक्षा की तलाश शुरू की. थानाप्रभारी ने अर्चना से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में वह उन के सवालों का जवाब देने के बजाय बेटी को ढूंढ़ कर लाने की बात ज्यादा कर रही थी. वह कालोनी की औरतों के साथ थाने भी गई और वहां धमकी दी कि अगर उस की बेटी नहीं मिलती तो वह कुछ भी कर गुजरेगी.

मामला गंभीर था. पुलिस को सुमिक्षा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. थानाप्रभारी आशीश कुमार सिंह ने मंदिर और परिसर में बने बुद्धिविलास के घर का भी निरीक्षण किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि अर्चना गायब बच्ची की सौतेली मां है. इस के अलावा उस की हरकतें भी उन्हें अजीब और संदिग्ध लगी थीं.

थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह को लग रहा था कि लड़की के गायब होने के पीछे उस की सौतेली मां का ही हाथ है. क्योंकि पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया था कि पति के जाने के बाद उस ने खुद गेट बंद कर के ताला लगा दिया था. ऐसे में उतनी छोटी बच्ची ऊंची दीवारें फांद कर बाहर नहीं जा सकती थी.

थानाप्रभारी ने कालोनी वालों से अर्चना के व्यवहार के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि अर्चना सुमिक्षा को बहुत परेशान करती थी. वह नहीं चाहती थी कि सौतेली बेटी उस के साथ रहे. पुलिस को बुद्धिविलास पर भी शक हो रहा था कि पत्नी के साथ वह भी मिला हो सकता है. लेकिन उस की हालत देख कर पुलिस का यह शक जल्दी ही दूर हो गया.

पुलिस को अर्चना पर पूरा शक था. लेकिन सुबूत न होने की वजह से उस पर हाथ नहीं डाल पा रही थी. यह भी निश्चित था कि अगर अर्चना ने सुमिक्षा की हत्या की थी तो लाश घर में ही कहीं छिपा रखी थी. इसलिए पुलिस ने डौग स्क्वायड भी बुलाया. लेकिन डौग स्क्वायड भी सुमिक्षा की लाश का पता नहीं लगा सके.

सुमिक्षा की गुमशुदगी की सूचना पा कर बुद्धिविलास के 2 भतीजे देवेंद्र और विकास भी आ गए थे. उन्होंने भी अर्चना से सुमिक्षा के बारे में पूछा, लेकिन उस ने उन्हें भी कुछ नहीं बताया. इस के बाद उस ने पुलिस को बताया कि एक ज्योतिषी ने उसे बताया है कि सुमिक्षा मथुरा में है. पुलिस की एक टीम मथुरा भी गई, लेकिन सुमिक्षा उन्हें वहां कहां मिलती. अगले दिन उस ने कहा कि उसे सपना आया है कि सुमिक्षा हाथरस में है. पुलिस टीम हाथरस भी गई.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि सुमिक्षा को अर्चना ने ही गायब किया है. इसलिए पुलिस उस पर दबाव बनाने लगी. पुलिस के बढ़ते दबाव से डर कर अर्चना ने फोन कर के अपने पिता रमेश मिश्रा को बुला लिया और मौका मिलते ही रात में उन्हें बता दिया कि उस ने सुमिक्षा की हत्या कर दी है और घर के पास गड्ढा खोद कर उसे दफना दिया है.

बेटी के इस खुलासे से रमेश मिश्रा बुरी तरह डर गए. जैसेतैसे रात बिता कर सवेरा होते ही वह बेटे को ले कर राजामंडी रेवले स्टेशन पर पहुंच गए. वह अपने बेटे को इस झंझट से बचाना चाहते थे. उन का बेटे को इस तरह गुपचुप तरीके से ले कर निकल जाना संदेह पैदा कर रहा था.

देवेंद्र और विकास ने राजा मंडी स्टेशन जा कर उन्हें उस समय घेर लिया, जब वह गाड़ी में बैठ चुके थे. वे उन्हें घर ले आए. शिवपूजन से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह तो सो गया था, इसलिए उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं मालूम, लेकिन दीदी ने उस से कहा है कि पहले दिन उस ने पुलिस को जो बताया था, वही बात सब को बताना. वह सब से वही कहेगा.

24 सितंबर को सीओ हरिपर्वत अशोक कुमार सिंह ने बुद्धिविलास से कहा कि वह अर्चना के साथ सख्ती करे और बेटे की कसम दिला कर सचाई बताने को कहे. इस के बाद बुद्धिविलास ने अर्चना को मंदिर में देवी के सामने खड़ी कर के कहा कि वह बेटे के सिर पर हाथ रख कर कहे कि उसे सुमिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता तो वह मान लेगा कि वह सच बोल रही है.

बेटे की कसम खाने की बात आई तो अर्चना टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुमिक्षा को बेहोश कर के जीवित ही गड्ढा खोद कर गाड़ दिया है.

सच्चाई जान कर बुद्धिविलास ने सिर पीट लिया. इस के बाद उस ने फोन कर के थाना सिकंदरा को सूचना दे दी. थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ तुरंत मंदिर आ पहुंचे. उन्होंने गड्ढा खुदवा कर लाश निकलवाई तो लाश देख कर कालोनी की औरतें ही नहीं, आदमी भी रो पड़े.

मासूम बच्ची की लाश की स्थिति देख कर भीड़ बेकाबू हो गई और बुद्धिविलास सहित घर के सभी लोगों की पिटाई कर दी. पुलिस किसी तरह बचा कर अर्चना को महिला थाने ले आई. अर्चना का मैडिकल बड़े ही गुपचुप रूप से कराया गया. कालोनी की औरतें उसे मारने को तैयार थीं.

25 सितंबर को भारी पुलिस सुरक्षा में अर्चना को स्पेशल सीजेएम कृष्णचंद पांडेय की अदालत में पेश किया गया. उन्होंने उसे जेल भेज दिया. अदालत में मौजूद महिलाओं ने भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद अर्चना के मुंह में स्याही पोत दी.

अजय कौशिक और उन की पत्नी संध्या का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी अहसास होता कि सौतेली मां अर्चना हत्यारिन भी हो सकती है तो वह बच्ची सुमिक्षा को अपने पास ही रख लेते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 4

इस के बाद हरमीत ने बुलेट मोटरसाइकिल की मांग शुरू कर दी. उस की इच्छा के अनुसार जय सिंह ने उस की मनपसंद की मोटरसाइकिल दिला दी. हरमीत के पास सब कुछ था. पिता पैसा लगा रहे थे और आजादियां भी दे रहे थे. इस से अच्छी किस्मत क्या हो सकती थी. हरमीत को यह सब आसान लग रहा था. उस की ख्वाहिशों को पंख लगते जा रहे थे. अब वह नई कार की मांग करने लगा.

ऐसे में जय सिंह विरोध कर के समझाने की कोशिश करते तो वह एक ही बात कहता, ‘‘मैं सौतेला हूं, इसलिए मेरी बात नहीं मान रहे हैं.’’

जय सिंह उसे प्यार से समझाते, ‘‘ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. हरमीत तुम मेरे बेटे हो. तुम अपना आचरण सही कर लोगे तो सारी शिकायतें अपने आप ही दूर हो जाएंगी. प्रौब्लम यह है कि तुम कुछ समझना ही नहीं चाहते.’’

बेटे की जिद पर जय सिंह ने कार भी दिला दी. हरमीत ने जिंदगी में पिता की कमाई का स्वाद ही चखा था, इसलिए चीजों की कद्र कम करता था. कभी शराब का नशा तो कभी लापरवाही के चलते कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हो गई. बेटे की हरकतों से जय सिंह अपने पुराने निर्णयों पर पछता रहे थे.

जय सिंह अनीता से भी बेटे को समझाने के लिए कहते थे. वह भले ही अनीता से अलग रहते थे, परंतु समय समय पर उस की तरहतरह से मदद करते रहते थे. उस के पास रह रहे अपने बेटे पारस और पहले पति के बेटे लक्की को भी उन्होंने महंगी महंगी मोटरसाइकिलें दिलाई थीं. दोनों उन से मिलने भी आया करते थे. जय सिंह दिल के अच्छे आदमी थे. वह चाहते थे कि सब हंसीखुशी से रहें.

बस, हरमीत से ही वह परेशान थे. बिगड़े आचरण ने हरमीत को जिद्दी बना दिया था. शराब के अलावा वह स्मैक जैसे खतरनाक नशे भी करने लगा था. उसे इस लत से निकालने के लिए जय सिंह ने एक नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती कराया था, परंतु इस का कोई लाभ नहीं हुआ था. उस के आचरण से हर कोई दुखी था. हरमीत हरजीत कौर को फूटी आंख नहीं पसंद करता था. वह जब भी मायके आती थी, वह उस से झगड़ता रहता था.

अक्टूबर के दूसरे सप्ताह की बात थी. जय सिंह को विश्वास हो गया कि बेटा अब किसी भी हाल में सुधरने वाला नहीं है. उसे ले कर वह अक्सर परेशान रहते थे. काफी सोचविचार कर उन्होंने अपनी संपत्ति के बंटवारे का निर्णय कर लिया. उन्होंने सोचा कि बेटे को बढि़या फ्लैट दिला कर उसे घर बसाने के लिए आजाद छोड़ देंगे और बेटी को उस का हिस्सा दे देंगे.

जय सिंह का यह निर्णय हरमीत को पसंद नहीं आया. हरमीत का मानना था कि हरजीत तो गोद ली हुई है, जबकि वह पिता का खून है, ऐसे में हरजीत का हक कैसे हो सकता है. दीपावली का त्यौहार आ रहा था. हरजीत चाहती थी कि उस का प्रसव देहरादून में हो. इसलिए जय सिंह ने उसे अपने पास बुलवा लिया था. सभी चाहते थे कि पूरा परिवार दीपावली भी साथ मना ले और डिलीवरी भी हो जाए.

हरजीत के आने से हरमीत का माथा ठनका. उसे लगा कि हो न हो, अब संपत्ति दो हिस्सों में बंट जाएगी. इस से उस के मन में नफरत और बढ़ गई. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी संपत्ति को किसी भी हाल में बंटने नहीं देगा. जबकि जय सिंह के जिंदा रहते यह संभव नहीं था. होता वही, जो जय सिंह चाहते.

हरमीत दिनरात इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि पिता की संपत्ति का अकेला मालिक कैसे बना जाए. वह हमेशा घंटों इसी बारे में सोचता रहता. अंत में उस ने सब की हत्या करने का खतरनाक निर्णय ले लिया. उस के पास 10 इंची लंबा रामपुरी चाकू पहले से ही था.

21 अक्टूबर को हरमीत अंसारी मार्ग पर चाकू की धार तेज कराने गया, लेकिन दुकानदार ने मना कर दिया. हरमीत अपनी संपत्ति से जुड़े हर शख्स को निपटाना चाहता था. उस ने अपने जीजा अरविंदर को भी फोन कर के दीपावली पर देहरादून आने को कहा था, लेकिन अरविंदर ने काम की अधिकता होने के चलते आने से मना कर दिया था.

दीपावली से एक दिन पहले हरजीत कौर ने मोबाइल की इच्छा जाहिर की तो जय सिंह ने उसे 25 हजार रुपए का मोबाइल फोन दिला दिया. इस पर हरमीत भड़क उठा और उस ने भी मोबाइल की मांग की, ‘‘मुझे भी इसी तरह का महंगा मोबाइल फोन चाहिए.’’

‘‘तेरी हर मांग तो पूरी की है, उस का नतीजा क्या निकला है, सोचा है कभी तू ने.’’ जय सिंह ने उसे झिड़क दिया.

‘‘जब यह मोबाइल ले सकती है तो मुझे क्यों नहीं दिला सकते. मैं भी बेटा हूं आप का.’’

‘‘बेटा है, लेकिन नालायक. लायक बन जा, मोबाइल क्या पूरी मोबाइल कंपनी दिला दूंगा तुझे.’’ जय सिंह ने कहा.

इस बात को ले कर घर में तनातनी हो गई तो कुलवंत कौर ने पति को समझाया. उस के बाद वह नरम हो कर बोले, ‘‘ठीक है, दीपावली के बाद तुझे भी ऐसा ही मोबाइल दिला दूंगा.’’

बात सिर्फ मोबाइल की नहीं थी. हरमीत के दिमाग में तो पहले ही बहुत कुछ पक चुका था. मोबाइल ने तो आग में घी का काम किया था. उस के दिल में प्रतिशोध की आग दहक रही थी. अपने निकम्मेपन और गलत आचरण की वजह से उसे लगने लगा था कि पिता सब कुछ बेटी को दे कर एक दिन उसे बाहर का रास्ता दिखा देंगे. यह नौबत कभी भी आ सकती थी. इसलिए किसी भी सूरत में वह अपने निर्णय पर अमल करना चाहता था.

हरमीत ने सोचा कि शराब पी कर वारदात करने में आसानी रहेगी. शराब की एक बोतल ला कर उस ने घर में रख दी. 23 अक्टूबर को पूरा शहर दीपावली का त्योहार मना रहा था.

जय सिंह उन लोगों में से थे, जो सभी से बना कर चलते हैं. मोहल्ले में उन की किसी से अनबन नहीं थी. हर कोई उन के व्यवहार का कायल था. उन का सभी के यहां आनाजाना था. दीपावली की शाम को भी वह आसपड़ोस में सब के यहां गए और दीपावली की बधाई दी. रात में नाती और नातिन के साथ पटाखे भी चलाए. हरमीत भी साथ रहा. तब कोई नहीं जानता था कि इस खुशी के बाद सहन न होने वाला दुख आने वाला है.

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 4

चादर में लिपटी मिली साहनी की लाश

चूंकि मामला मासूम बच्ची की गुमशुदगी का था. उस के साथ दरिंदगी जैसी घटना घटित न हो जाए, इसलिए कोतवाल विमलेश कुमार बिना देरी के आवश्यक पुलिस बल के साथ सिरसा दोगड़ी गांव पहुंच गए और बच्ची की खोज शुरू कर दी. परिवार व गांव के युवक भी पुलिस के साथ हो लिए.

पुलिस ने गांव के बाहर खेतखलिहान, बागबगीचा, कुआंतालाब तथा नदीनहर किनारे झाडिय़ों में बच्ची की खोज की. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस ने गांव के कुछ संदिग्ध घरों की तलाशी भी ली. कई नवयुवकों से सख्ती से पूछताछ भी की. परंतु साहनी का पता नहीं चला.

रात 12 बजे के बाद कोतवाल विमलेश कुमार पुलिसकर्मियों व अश्वनी के घर वालों के साथ साहनी की खोज करते गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास पहुंचे. वहां उन्हें केले की झाडिय़ों के बीच सफेद चादर में लिपटी कोई वस्तु दिखाई दी. सहयोगी पुलिसकर्मियों ने जब चादर हटाई तो सभी की आंखें फटी रह गईं. चादर में लिपटी एक बच्ची की लाश थी.

इस लाश को जब अश्वनी ने देखा तो वह फफक पड़ा और कोतवाल साहब को बताया कि लाश उस की बेटी साहनी की है. कोतवाल ने साहनी मर्डर केस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सवेरा होतेहोते एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा डीएसपी रवींद्र गौतम भी घटनास्थल आ गए. अब तक गांव में भी सनसनी फैल गई थी, अत: सैकड़ों लोग वहां जुट गए थे.

राधा को बेटी की हत्या की खबर लगी तो वह बदहवास हालत में घटनास्थल पर पहुंची और बेटी के शव के पास विलाप करने लगी. ओमप्रकाश भी नातिन का शव देख कर रो पड़े. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों को समझा कर किसी तरह शव से अलग किया फिर जांच में जुट गए.

मृतक बच्ची की उम्र 5 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे. देखने से लग रहा था कि उस की हत्या नाक-मुंह दबा कर की गई थी. क्योंकि नाक से खून निकला था. ऐसा भी लग रहा था कि बच्ची की हत्या कहीं और की गई और फिर शव को चादर में लपेट कर वहां फेंका गया. चादर पर खून लगा था. जांच से यह भी अनुमान लगाया गया कि उस के साथ दरिंदगी नहीं की गई थी. जांच के बाद पुलिस अधिकारियों ने बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, उरई भिजवा दिया.

दादा ने जताया बहू पर शक

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद मृतका के पिता अश्वनी दुबे तथा दादा ओमप्रकाश से पूछताछ की. ओमप्रकाश ने बताया कि नातिन की हत्या का भेद उस की बहू राधा के पेट में छिपा है. यदि राधा से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी.

“भला एक मां अपनी मासूम बच्ची की हत्या क्यों करेगी?” पुलिस अधिकारियों ने पूछा.

“साहब, पड़ोसी युवक नेत्रपाल सिंह का हमारे घर आनाजाना था. वह बच्चों को टौफी, बिस्कुट खिलाता था. मना करने के बावजूद नहीं मानता था. उस ने बहू को भी अपने जाल में फंसा लिया था. मुझे शक है कि इन दोनों ने ही कोई खेला किया है.”

यह जानकारी पाते ही डीएसपी रविंद्र गौतम ने पुलिस टीम के साथ नेत्रपाल सिंह व राधा को उन के घर से हिरासत में ले लिया और थाना माधौगढ़ ले आए. थाने में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मासूम साहनी हत्याकांड का जुर्म कुबूल कर लिया.

नेत्रपाल सिंह ने बताया कि पड़ोसी अश्वनी के घर उस का आनाजाना था. घर आतेजाते अश्वनी की पत्नी राधा और उस के बीच नाजायज संबंध बन गए. 4 अप्रैल, 2023 की दोपहर उस ने शराब पी, फिर नशे की हालत में वह राधा के घर पहुंच गया.

राधा उस समय घर में अकेली थी. राधा का पति खेत पर था और बच्चे दादा की झोपड़ी में थे. राधा को अकेली पा कर उस की कामाग्नि भडक़ उठी. उस ने राधा को बांहों में भरा और चारपाई पर लिटा दिया. मस्ती के आलम में उन्होंने दरवाजा भी बंद नहीं किया.

भेद खुलने के डर से की हत्या

राधा के बिस्तर पर वह वासना की आग बुझा ही रहा था कि तभी राधा की बेटी साहनी आ गई. उस ने दोनों को उस हालत में देखा तो वह चीखने लगी. राधा को लगा उस की बेटी उस का भांडा फोड़ देगी. अत: उस ने उसे पकड़ लिया और उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

नेत्रपाल सिंह नशे में था. उसे भी लगा कि भेद खुल जाएगा. वह भी उस के पास पहुंचा और फिर मुंह नाक दबा कर साहनी को मार डाला. इस के बाद यह अपराध छिपाने के लिए उन दोनों ने साहनी की लाश को सफेद चादर में लपेटा और गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास फेंक दिया.

चूंकि दोनों ने साहनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: कोतवाल ने मृतका के दादा ओमप्रकाश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत नेत्रपाल सिंह व उस की प्रेमिका राधा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

7 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने आरोपी नेत्रपाल सिंह व राधा को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरिंदे दोस्त : दोस्ती पर कलंक

मध्य प्रदेश के जिला खरगोन का एक कस्बा है बोरावां. यह कस्बा यहां के फार्मेसी कालेज के लिए मशहूर है. हौस्टल युक्त फार्मेसी कालेज के  मालिक हैं मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण यादव. इंदौर निवासी अंकित राठौर, जिला धार का अक्षय जोशी और जिला खंडवा के पंधाना का रहने वाला विशाल चौधरी इसी फार्मेसी कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. बीफार्मा के ये तीनों छात्र अच्छे दोस्त थे और कालेज के ही हौस्टल में रहते थे.

बोरावां से 7 किलोमीटर दूर स्थित ओझरा गांव की काजल भी इसी कालेज की बीफार्मा की छात्रा थी. वह अपने घर से कालेज आतीजाती थी. एक ही कालेज में साथ पढ़ने की वजह से अंकित से उस की अच्छी दोस्ती थी. अक्षय और विशाल भी अंकित के सहपाठी थे, इसलिए उन से काजल के भी अच्छे संबंध थे. लेकिन अंकित उस के कुछ ज्यादा ही निकट था. कह सकते हैं कि दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.

इन सभी छात्रों का यह आखिरी साल था, जिस की परीक्षा 20 मई से 31 मई, 2014 के बीच होनी थी. चूंकि इस फार्मेसी कालेज में बीफार्मा तक ही पढ़ाई संभव थी, इसलिए परीक्षा के बाद सभी छात्रछात्राओं को अपनेअपने घर चले जाना था. काजल एमफार्मा करना चाहती थी. इस के लिए उस ने पुणे जाने का मन बना रखा था. इस बारे में उस ने अपने पिता से बात भी कर ली थी.

काजल और अंकित की निकटता की बात किसी से छिपी नहीं थी. अन्य छात्रों के साथ दोनों कई बार बाहर घूमने भी गए थे. दोनों की रोजाना कालेज में तो मुलाकात होती ही थी, कभीकभी छुट्टी के दिन अंकित काजल के ओझरा स्थित घर भी आ जाता था. काजल बालिग थी और समझदार भी. दोनों चूंकि सहपाठी थे, इसलिए घर वाले भी अंकित के आने पर आपत्ति नहीं करते थे.

10 मई को शनिवार था. उस दिन काजल और उस के मातापिता को एक मांगलिक समारोह में शामिल होने के लिए इंदौर जाना था. 11 बजे जब जाने की तैयारी हो गई तो काजल ने पिता से कहा, ‘‘पापा, आप दोनों चले जाइए, एग्जाम सिर पर हैं, मुझे पढ़ाई करनी है.’’

काजल के पिता को बेटी की बात ठीक लगी. वह काजल को घर पर छोड़ कर पत्नी के साथ इंदौर के लिए निकल गए. उन के जाने के बाद काजल पढ़ाई में लग गई.

लगभग साढ़े 12 बजे अंकित राठौर काजल के घर आया. उस के साथ अक्षय जोशी और विशाल चौधरी भी थे. आरोप के अनुसार, काजल इन लोगों के इरादे से अनजान थी. बातों के दौरान अंकित ने अचानक काजल को दबोच लिया. उस का इरादा भांप कर काजल ने विरोध करते हुए धमकी दी, ‘‘मुझे छोड़ो, वरना मैं शोर मचा दूंगी.’’

‘‘तुम शोर तो तब मचाओगी, जब शोर मचाने लायक रहोगी.’’ कह कर अंकित ने आगे बढ़ कर उस का मुंह दबा दिया. इस के बाद तीनों ने उसे गिरा दिया और मुंह दबाए दबाए ही उस के साथ बड़ी दरिंदगी से दुष्कर्म किया.

चूंकि काजल तीनों को पहचानती थी, इसलिए उस का जिंदा रहना उन के लिए खतरनाक साबित हो सकता था. इसलिए अंकित और उस के साथियों ने तय किया कि इसे मार दिया जाए. अंकित काजल के यहां पहले भी आताजाता रहा था, इसलिए वह उस के घर के कोनेकोने से परिचित था.

अंकित दौड़ कर कोने में पड़ा पलंग का पाया उठा लाया और उसे काजल के सिर पर दे मारा. उसी एक वार में वह बेहोश हो गई तो अंकित किचन में गया और वहां रखा मिट्टी के तेल का डिब्बा उठा लाया. उस ने उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाला तो संयोग से काजल को होश आ गया. वह जान बख्श देने की मिन्नतें करने लगी, लेकिन अब अंकित और उस के साथियों को काजल की नहीं, अपनी चिंता थी.

उन्होंने उस की मिन्नतों पर ध्यान न दे कर माचिस की तीली जला कर उस के ऊपर फेंक दी. मिट्टी का तेल पड़ा होने की वजह से काजल जलने लगी.  आग की जलन से वह चिल्लाई तो पड़ोस में रहने वाले सतीश यादव के कानों में उस की चीखने की आवाज पड़ी. उस समय वह खाना खा रहे थे. वह खाना छोड़ कर बाहर आए और दौड़ कर काजल के चाचा को बुला लाए. उन्हें साथ ले कर वह छत पर चढ़े तो वह उन्हें एक लड़का खड़ा दिखाई दिया.

वहां से उन्होंने जो मंजर देखा था, वह बड़ा ही भयावह था. उस समय उन के पास इतना समय नहीं था कि वे उस युवक से कुछ पूछते. सतीश यादव काजल के चाचा के साथ सीढि़यों से तेजी से नीचे की ओर भागे. उन के साथसाथ वह युवक भी नीचे आ गया. दोनों आग बुझाने की कोशिश करने लगे तो युवक भी उन की मदद करने लगा.

काजल की चीखपुकार सुन कर अब तक आसपड़ोस के काफी लोग एकत्र हो गए थे. काजल की हालत देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. वह बुरी तरह जली हुई थी. उस के शरीर का कोई भी अंग जलने से नहीं बचा था. उस के तन पर एक धागा तक नहीं बचा था. यह सब कैसे हुआ, लोग इधरउधर ताकझांक कर रहे थे कि तभी कुछ लोगों ने देखा कि 2 युवक भागने की कोशिश में हैं.

एक तो वे लड़के गांव के नहीं थे, दूसरे उन की हरकतें संदिग्ध लगीं, इसलिए गांव वालों ने उन्हें पकड़ लिया. पूछताछ में दोनों लड़के गांव वालों के सवालों का ठीक से जवाब नहीं दे सके तो गांव वालों ने उन की पिटाई शुरू कर दी.

घटना की सूचना थाना ओझरा पुलिस को देने के साथसाथ काजल के मातापिता को भी दी गई थी. उस समय तक वे कसराबाद से 20 किलोमीटर आगे पहुंच गए थे. वे वहीं से लौट पड़े. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही थाना ओझरा के थानाप्रभारी गिरीश जेजुलकर पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने तुरंत वाहन की व्यवस्था कराई और बुरी तरह जली काजल को इलाज के लिए खरगोन भिजवाया.

काजल को ले जाने जाने वाली गाड़ी में ही अंकित भी बैठा था. तब तक लोगों को पता नहीं था कि पकड़े गए दोनों लड़कों के साथ यह भी था. लेकिन जब कसराबाद पहुंचे तो पता चला कि यह भी उन्हीं के साथ था तो उसे भी पुलिस के हवाले कर दिया गया.

काजल 96 प्रतिशत जली थी, इसलिए खरगोन अस्पताल ने प्राथमिक चिकित्सा के बाद उसे इंदौर के चोइथराम अस्पताल ले जाने को कहा. काजल को चोइथराम अस्पताल पहुंचाया गया. चूंकि यह बर्न केस था और काजल 96 प्रतिशत जली थी. उस के बचने की संभावना न के बराबर थी, इसलिए उस का जल्दी से जल्दी बयान लेना जरूरी था. अस्पताल प्रशासन ने इस बात की सूचना तुरंत स्थानीय थाना राजेंद्रनगर पुलिस को दे दी.  स्थिति गंभीर थी, इसलिए थाना पुलिस तुरंत तहसीलदार को ले कर काजल का बयान लेने अस्पताल पहुंच गई.

तहसीलदार को दिए अपने बयान में काजल ने बताया था कि मातापिता और भाई के चले जाने के बाद वह घर में अकेली रह गई थी. परीक्षा नजदीक होने की वजह से वह अपनी पढ़ाई में लगी थी. दोपहर को पीछे का दरवाजा खटखटाया गया तो उस ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर अंकित राठौर अक्षय जोशी और विशाल चौधरी के साथ खड़ा था.

चूंकि तीनों लड़के काजल के साथ पढ़ते थे और उन में अंकित उस का घनिष्ठ दोस्त होने की वजह से उस के घर भी आताजाता रहा था, इसलिए अकेली होने के बावजूद उस ने उन तीनों को अंदर आने दिया. उसे लगा, परीक्षा नजदीक होने की वजह से वे उस से कुछ पूछने समझने आए होंगे.

लेकिन अंकित और उस के साथियों का इरादा कुछ और ही था. अंदर आते ही उन्होंने उसे दबोच लिया तो उसे उन के इरादे का पता चला. उन के इस इरादे से वह घबरा गई. उस ने विरोध करते हुए शोर मचाने की धमकी दी तो उन्होंने उस का मुंह दबा दिया.

दबोचने के बाद तीनों ने बारीबारी से उस के साथ दुष्कर्म किया. चूंकि वह उन्हें पहचानती थी, इसलिए उसे खत्म करने के इरादे से पहले तो उन्होंने उस के सिर पर पलंग के पाये से वार किया. इस वार से वह गिर कर बेहोश हो गई. लेकिन जब उन लोगों ने उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाला तो उसे होश आ गया.

वह जान बख्श देने के लिए गिड़गिड़ाई, लेकिन वे उसे जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिए उन पर ध्यान कर के अंकित ने आग लगा दी. आग की जलन से वह चीखी चिल्लाई तो अलगबगल के लोग आ गए और आग बुझा कर उसे अस्पताल पहुंचाया.

काजल के साथ दुष्कर्म कर के जलाने वाले तीनों आरोपी पकड़े जा चुके थे. चोइथराम अस्पताल के डाक्टरों ने काजल को बचाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन उन की यह कोशिश सफल नहीं हुई और अगले दिन यानी 11 मई की सुबह 8 बजे उस ने दम तोड़ दिया.

उस के मरते ही मातापिता की हालत खराब हो गई. मां तो बेहोश हो कर गिर पड़ी. काजल जब से अस्पताल में भरती हुई थी, तब से पिता को याद करते हुए मिलने आने वाले रिश्तेदारों से वह कह रही थी कि पापा को बुला दो, मगर पिता बेटी से मिलने की हिम्मत नहीं कर सके. बेटी की मौत पर वह बिलखबिलख कर रो रहे थे कि अगर एक बार बेटी से मिल लेते तो शायद उसे संतोष हो जाता.

पुलिस ने अपनी काररवाई निपटा कर काजल के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था. उसी दिन उस की लाश का पोस्टमार्टम हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार वह बुरी तरह जली थी. यहां तक कि उस के अंदर तक के अंग जल गए थे. वह सेकेंड और थर्ड डिग्री के बीच यानी 96 प्रतिशत जली थी. जलने की कुल 6 डिग्रियां होती हैं. छठी डिग्री में शरीर राख हो जाता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार काजल और हत्यारों के बीच संघर्ष के भी निशान पाए गए थे. हत्यारों ने पलंग के पाये से जो वार किया था, उस से करपटी, सिर के सामने और अंदरूनी हिस्से की ज्यादातर हड्डियां टूट गई थीं. उस के साथ बड़ी ही दरिंदगी से दुष्कर्म किया गया था, जिस से गुप्तांग ही नहीं, गर्भाशय भी जख्मी हो गया था.

पोस्टमार्टम के बाद काजल का शव घर वालों को सौंप दिया गया. घर वालों ने ओझरा ले जा कर उसी दिन देर शाम नर्मदा नदी के किनारे गांव नावड़ातोड़ी के पास अंतिम संस्कार कर दिया. इंदौर के थाना राजेंद्रनगर पुलिस ने जो काररवाई की थी, उस की फाइल थाना ओझरा पुलिस को भेज दी थी, क्योंकि पूरे प्रकरण की रिपोर्ट वहीं दर्ज थी.

काजल के साथ दुष्कर्म और उसे जला कर मारने के आरोप में पकड़े गए आरोपियों से जब थाना ओझरा पुलिस ने पूछताछ की तो पहले अक्षय और विशाल ने अंकित को पहचानने से ही इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो दोनों ने कहा कि जब ये सब हुआ वे दोनों घर के बाहर खड़े थे. अंकित भी कुछ इसी तरह की बातें करता रहा. तीनों ही बारबार बयान बदलते रहे.

अंत में पुलिस की सख्ती पर अंकित और उस के दोस्तों ने स्वीकार कर लिया कि इस पूरी वारदात को उन्होंने ही अंजाम दिया था. वारदात को अंजाम देने के लिए वे काजल के घर लगभग आधा घंटा रुके थे.

पूछताछ में अंकित राठौर, विशाल चौधरी और अक्षय जोशी ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार अंकित इंदौर के ही कुशवाहनगर के रहने वाले सुनील राठौर का बेटा था. सुनील राठौर की पिछले साल जून में मौत हो चुकी थी. पिता की मौत के बाद उस के साथ घर में मां संध्या और बहन नंदिनी रह गई थी. नंदिनी किसी कंपनी में नौकरी करती थी. उसी की कमाई से घर का खर्च चल रहा था. मांबेटी को उम्मीद थी कि अंकित पढ़लिख कर दोनों का सहारा बनेगा, लेकिन इस घटना से दोनों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

अंकित की बीफार्मा की पढ़ाई का यह अंतिम साल था. 31 मई को उस का अंतिम पेपर था. वैसे तो वह सीधासादा छात्र था. इस के पहले उस ने कभी कोई वारदात भी नहीं की थी. वह पढ़ने में तो ठीकठाक था ही, कालेज में होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक व खेल प्रतियोगिताओं में भी भाग लेता रहता था. अच्छे प्रदर्शन के लिए उसे स्पोर्ट्समैन औफ द ईयर का अवार्ड भी मिला था. इस के पहले उसी की ही नहीं, उस के साथियों अक्षय और विशाल की भी कालेज से कोई शिकायत नहीं हुई थी.

अंकित का साथी अक्षय जोशी बांकानेर के रहने वाले राजेंद्र जोशी का बेटा था. राजेंद्र जोशी गांव में ही दुर्गा मंदिर के पुजारी थे तो मां घर संभालने के साथसाथ घर चलाने में पति की मदद के लिए टिफिन सेंटर चलाती थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद पतिपत्नी बेटे को पढ़ा कर उस का भविष्य सुधारना चाहते थे. लेकिन बेटा अब दुष्कर्म और हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहा है.

विशाल चौधरी जिला खंडवा के पंधाना के रहने वाले अनिल चौधरी का बेटा था. उन की किराना की दुकान थी. पत्नी लता चौधरी सुभाषचंद्र बोस वार्ड-5 से कांग्रेस के समर्थन से पार्षद हैं. वह ठीकठाक घर से है. इसलिए शहर के नामचीन रामचंद्र नामड़ा स्कूल से उस ने 12वीं तक पढ़ाई की थी.

विशाल का बीफार्मा का यह अंतिम साल था. कुछ दिनों पहले वह घर भी आया था, लेकिन परीक्षा की वजह से वह जल्दी वापस आ गया था. वापस आ कर उस ने जो किया, उस की वजह से परीक्षा शुरू होने से पहले ही जेल चला गया.

अंकित ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार काजल अंकित की घनिष्ठ मित्र थी. इस के बावजूद वह उस से दूरी बना कर रहती थी. जबकि वह काजल से हर तरह के संबंध बनाना चाहता था. लेकिन वह काजल से जैसे संबंध बनाना चाहता उस के लिए उस ने उसे कभी मौका ही नहीं दिया.

काजल और अंकित का कालेज का यह अंतिम साल था. 31 मई को अंतिम पेपर दे कर अंकित हौस्टल छोड़ कर इंदौर चला जाता. जबकि वह इंदौर वापस जाने से पहले एक बार काजल को पा लेना चाहता था. उस ने किसी से सुना था कि अगर किसी लड़की को दिल से निकालना हो तो उस से शारीरिक संबंध बना लो.

ओझरा से इंदौर 130 किलोमीटर दूर था. एक बार इंदौर जाने के बाद सिर्फ काजल से मिलने आना अंकित के लिए संभव नहीं था. अगर वह आ भी जाता तो कोई जरूरी नहीं कि काजल से उस की मुलाकात हो ही जाती या फिर उसे अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिल ही जाता. यही सब सोच कर उस ने अपनी इच्छा पूरी करने का निश्चय कर लिया था. उसे पता था कि वह काजल के साथ अकेला जबरदस्ती नहीं कर सकता, इसलिए उस ने अपने दोस्तों अक्षय और विशाल से बात की.

मौजमजा के चक्कर में वे भी तैयार हो गए. इस के बाद तीनों योजना बना कर मौके की तलाश में काजल के घर का चक्कर लगाने लगे. 10 मई की दोपहर काजल के मातापिता बेटे के साथ मांगलिक समारोह में भाग लेने के लिए घर से निकले तो काजल को अकेली पा कर उन्हें मनमर्जी करने का मौका मिल गया.   चूंकि काजल उन तीनों को पहचानती थी, इसलिए उन्होंने उसे खत्म करने के लिए पहले उस पर पलंग के पाये से वार किया. और जब वह बेहोश हो गई तो उसे जलाने के लिए मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी.

पूछताछ पूरी कर के पुलिस ने सुबूत के लिए तीनों के कपड़े उतरवा लिए थे. इस के बाद मैडिकल जांच करा कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच ओझरा पुलिस कर रही थी.

यह मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज के सामने पहुंचा तो उन्होंने कहा कि वह खुद इस मामले की जांच पर नजर रखेंगे. दूसरी ओर घर वालों का कहना है कि उन के बच्चों को गलत फंसाया गया है. अंकित के घर वालों ने 14 फरवरी वैलेंटाइन डे पर गोवा में खिंचाए गए कुछ फोटो भी अदालत में पेश किए हैं, जिन में काजल अपने इन दोस्तों के साथ है. उन का कहना है कि काजल अंकित से प्रेम करती थी और उस के साथ शादी करना चाहती थी. उन का यह भी कहना है कि चोइथराम अस्पताल में काजल ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने आग लगा कर आत्महत्या की है.

अगर मान लिया जाए कि काजल ने आत्महत्या की है तो क्या उस के साथ दरिंदगी से जो दुष्कर्म हुआ है, उसे भी उस ने खुद कराया है. बहरहाल, सभी आरोपी अभी जेल में हैं. घर वालों के आग्रह पर कोर्ट ने उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी है, जिस से अगर वे निर्दोष साबित होते हैं तो उन का भविष्य बरबाद न हो.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. काजल परिवर्तित नाम है.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 4

अलबत्ता विनीत को यह जरूर पता थी कि गोवा पुलिस महेंद्र और कामिनी की तलाश में है. वह चूंकि कई मामलों में महेंद्र का साथ दे चुका था अत: उसे खुद के फंसने का भी डर था. वह चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को इस शर्त पर महेंद्र और कामिनी का पता बताने को तैयार हो गया कि वे लोग उस के बारे में न तो पुलिस को बताएंगे और न उसे कुछ कहेंगे.

चंद्रप्रकाश का निशाना सागर दंपति थे न कि विनीत. अत: चंद्रप्रकाश ने उस की यह शर्त स्वीकार कर ली. विनीत ने उन्हें बताया कि महेंद्र और कामिनी मेरठ में किराए के एक मकान में रह रहे हैं. उस ने उन का पता भी बता दिया.

यह जानकारी मिलने के बाद चंद्रप्रकाश अपने कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों को साथ ले कर मेरठ पहुंचे. उन के साथ 1-2 लोग महेंद्र और कामिनी को पहचानने वाले भी थे. मेरठ पहुंच कर ये लोग एसपी सिटी से मिले. चंद्रप्रकाश ने एसपी सिटी को पूरी बात बता कर महेंद्र और कामिनी का पता दे दिया.

एसपी सिटी ने तुरंत काररवाई करते हुए पुलिस की एक छापामार पार्टी महेंद्र सागर के घर भेज दी. फलस्वरूप महेंद्र और कामिनी पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. महेंद्र के घर की तलाशी लेने पर पुलिस को गोवा में कत्ल की गई सोनम का पर्स, 2 सलवारसूट और गोवा से छपने वाले अखबार टाइम्स वीकेंडर के एक अंक की 2 प्रतियां भी मिलीं.

अखबार की इन प्रतियों में पतिपत्नी दोनों के फोटो और इन्हें पकड़वाने वाले को 20 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा छपी थी. बरामद सामान सहित पुलिस दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के एसएसपी औफिस ले गई. जहां उन से विस्तार से पूछताछ की गई.

महेंद्र और कामिनी दोनों ही बहुत तेज थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. शुरू में दोनों ने पुलिस को भ्रमित करने का भरपूर प्रयास किया. लेकिन पुलिस के पास चूंकि उन के खिलाफ  पर्याप्त सुबूत थे, इसलिए उन्हें सच्चाई पर आना ही पड़ा.

भारत के सब से अच्छे 5 स्कूलों में से एक में शिक्षा प्राप्त और कई साल अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर रह चुके महेंद्र सागर और दिल्ली के एक सुप्रसिद्ध कालेज से शिक्षा प्राप्त कामिनी के उत्थान और पतन की कहानी पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग कर अपने संस्कारों से अलगथलग ऐशओआराम की जिंदगी जीने की चाह में भटके एक ऐसे दंपति की कहानी थी, जिस का उद्देश्य ऐशोआराम और वैभवता से परिपूर्ण जिंदगी जीने के अलावा कुछ नहीं था.

इस के लिए उन्हें कुछ भी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. चाहे बात ईमान बेचने की हो, इंसानियत को ठेंगे पर रखने की हो या पैसे के लिए शरीर बेचने की.

अतिसंपन्न परिवार के महत्त्वाकांक्षी युवक महेंद्र सागर ने नैनीताल के एक प्रसिद्ध कानवेंट स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद दिल्ली आ कर उच्चशिक्षा प्राप्त की थी. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान ही उस की मुलाकात प्रभावशाली व्यक्तित्व की अत्यंत खूबसूरत युवती कामिनी से हुई. पहली ही मुलाकात में उस ने कामिनी के लिए अपने दिलोदिमाग के सारे दरवाजे खोल दिए थे.

महेंद्र के व्यक्तित्व में भी कुछ ऐसा था जो पहली नजर में ही कामिनी की आंखों में उतर गया था. उस दिन के बाद महेंद्र और कामिनी आए दिन मिलने लगे. जल्दी ही वे दोनों एकदूसरे के प्यार में आकंठ डूब गए. प्रेम डगर पर साथसाथ चलते हुए ही उन्होंने जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का फैसला किया.

कामिनी से शादी करने के बाद महेंद्र उस के साथ अमेरिका चला गया. वहां उस के करीबी रिश्तेदार रहते थे. अमेरिका जा कर महेंद्र ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया. लेकिन किन्हीं कारणों से वह कंप्यूटर इंजीनियर की डिग्री प्राप्त नहीं कर सका. उस के और कामिनी के 8 साल अमेरिका में ही गुजरे.

8 साल अमेरिका में रहने के बाद महेंद्र और कामिनी के मन और जीवन में पश्चिमी सभ्यता रचबस गई थी. उन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने अमेरिका प्रवास के दौरान अपनी जिंदगी खूब शानोशौकत और ऐशोआराम से गुजारी थी. वहीं रहते वे 2 बच्चों के मांबाप बने.

महेंद्र और कामिनी को तो अमेरिका पसंद था लेकिन अमेरिका को वे दोनों पसंद नहीं आए. कारण क्या रहे, यह तो वही जाने, लेकिन दोनों को अमेरिका छोड़ कर स्वदेश लौटना पड़ा. महेंद्र और कामिनी दिल्ली लौट तो आए, लेकिन यहां आ कर भी अपनी शाही आदतों को न बदल सके. उन्होंने वही ठाठ और ऐशोआराम बनाए रखने का प्रयास किया जो अमेरिका में थे. लेकिन आय के साधन न होने की वजह से खर्चे कैसे पूरे होते? फलस्वरूप हेराफेरी ही एक विकल्प बचा.

फलस्वरूप महेंद्र और कामिनी ने हाईसोसाइटी की जिंदगी जीने की चाह में पतन की पगडंडी पर पांव रख दिया. महेंद्र ने हालांकि एक कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी जौइन कर ली थी लेकिन उस नौकरी से जितना पैसा मिलता था, उस से उन का 10 दिन का खर्च भी पूरा नहीं होता था.

लोगों को जाल में फंसाने के लिए महेंद्र के पास दिमाग था, वाकपटुता थी, विदेशी शैली में बोली जाने वाली धाराप्रवाह अंगरेजी थी. बचीखुची कमी कामिनी की खूबसूरती, चित्ताकर्षक व्यक्तित्व और बेलौस अदाएं पूरा कर सकती थीं. महेंद्र और कामिनी रहनसहन और अदाओं के हिसाब से हाईक्लास के लोग थे. अत: उन्होंने अपने लिए हाईक्लास में ही जगह बनानी शुरू की.

हाई सोसाइटी के बीच हाई स्टेटस मेंटेन कर के लोगों को आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है, यह बात दोनों अच्छी तरह जानते थे. जब महेंद्र और कामिनी का उच्चस्तरीय सर्किल बन गया तो उन्होंने लोगों को विभिन्न तरीकों से ठगना शुरू कर दिया.

सागर दंपति अमेरिका में रहे थे. सोच में वे दिल्ली वालों से सैकड़ों कदम आगे थे. शारीरिक संबंध उन के लिए महज एंटरटेन की चीज थी. इसलिए महेंद्र और कामिनी दिल्ली में 2-3 सैक्स क्लबों के सदस्य बन गए थे ताकि अमीरजादों को अपनी खूबसूरती और अदाओं के जाल में फांस कर मनमाफिक उल्लू बनाया जा सके.

दरअसल, कोठियों, फार्महाउसों और दक्षिण दिल्ली के 1-2 गुमनाम होटलों में कई ऐसे क्लब चलते थे, जहां बिना जोड़े के कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. इन क्लबों में पर्चियों या कार की चाबियों से लौटरी निकाल कर मौजमस्ती के लिए पत्नियां बदली जाती थीं.

जाहिर है ऐसे क्लबों में अत्याधुनिक या रिश्तों की जगह सैक्स को महत्त्वपूर्ण समझने वाले पतिपत्नी ही जाते थे. इन क्लबों में कितने ऐसे अविवाहित युवक भी मौजमस्ती के लिए जाते थे जो अपनी किसी गर्लफ्रैंड या कालगर्ल्स को साथ ले जाते थे. उस के बदले उन्हें किसी न किसी की पत्नी भोगने को मिल जाती थी. महेंद्र और कामिनी सेक्स क्लबों में ऐसे ही अमीरजादों को ढूंढते थे.

पत्नी पर दांव : एक और द्रोपदी

दिलीप को पता था कि उस के गुरू पं. भगवती प्रसाद चौबे सवेरेसवेरे मोहल्ले के नाई से मालिश करवाते थे. उस वक्त वह फुरसत में होते थे, इसलिए उन से बातचीत की जा सकती थी. वह चोटी के वकील थे. उन की बैठक में पहुंच कर दिलीप ने नमस्ते किया तो वह मुसकुराए. उन्होंने दिलीप को देखते ही पूछा, “आओ दिलीप बेटा, सुबहसुबह कैसे?”

“बाबूजी, मैं ने वकालत तो शुरू कर दी है, पर मेरी मां कहती हैं कि इस पेशे में झूठ बहुत बोलना पड़ता है, जिस से चरित्रहीनता आ जाती है.”

“बेटे, हर झूठ, झूठ नहीं होता. हमें देखना होता है कि क्या, किस से, कहां और क्यों बोला जा रहा है और कितना बोला जा रहा है.”

“यानी झूठ कई तरह के होते हैं?”

“यही तो समझने की बात है. मिसाल के तौर पर एक फौजदारी अदालत में पुलिस ने एक नाजायज तमंचा रखने पर अभियुक्त को न्यायालय में पेश कर दिया. पुलिस ने 4 चश्मदीद गवाह पेश किए, जिन्होंने अभियुक्त के पास से पिस्तौल की बरामदगी की पक्की गवाही दी. जबकि अभियुक्त ने अपने वकील को बताया है कि रंजिश की वजह से उस पर झूठा मुकदमा बनाया गया है और गवाह पुलिस के दबाव से झूठी गवाही दे रहे है. वकील साहब जिरह करते करते थक गए, पर कोई गवाह सच नहीं बोला.”

“इस का मतलब बेगुनाह गया जेल.” दिलीप ने कहा.

“अब या तो वकील यह नाइंसाफी देखता रहे या फिर इस की कुछ काट कर के अभियुक्त को बचा ले.”

“बाबूजी, ऐसी स्थिति में भला क्या हो सकता है?”

“हो क्यों नहीं सकता.” भगवतीप्रसाद चौबे बोले, “वकील को जैसे का तैसा जवाब देना चाहिए, मतलब उसे भी 4 झूठे गवाह पेश करने चाहिए. यह झूठ चूंकि सच उगलवाने के लिए बोला जाएगा, इसलिए झूठ नहीं कहलाएगा. क्योंकि इस से किसी निर्दोष की जान बचेगी.”

“ऐसा भी होता है क्या?” दिलीप ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.

“ज्यादातर मामलों में ऐसा ही करना पड़ता है, वरना हमारी तो वकालत ही बंद हो जाएगी.”

चौबे साहब से बात कर के दिलीप जब वापस अपने औफिस पहुंचा तो वहां करीब 60 साल की उम्र वाला एक व्यक्ति बैठा था. अभिवादन करने के बाद उस ने कहा, “वकील साहब, मेरा एक औरत भगाने का मुकदमा है. आप उस की पैरवी कर दीजिए. फीस जो आप कहेंगे, मिल जाएगी.”

“यह तो बहुत गंभीर केस है, इस के लिए किसी सीनियर वकील की सेवाएं लो. मैं तो अभी बहुत जूनियर हूं.”

“उन लोगों के पास हो कर यहां आया हूं. सब ने इनकार कर दिया है. मेरा यह केस अब आप को ही लडऩा होगा. वकील साहब मैं आप को दोगुनी फीस दूंगा.”

दिलीप ने उस के कागजात, गवाहों के बयान, एफआईआर तथा डाक्टरी रिपोर्ट देख कर उस के बारे में पूरी जानकारी ली. उस व्यक्ति ने इस मुकदमे के बारे जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

रायबरेली जिले में एक कस्बा है बछरावां. वहां से 4 किलोमीटर दूर ठाकुरों का एक गांव था, जिस के प्रधान थे रंजीत सिंह. उन का एक बेटा था बिच्छू सिंह, जो 22 साल का दबंग व रंगीला नौजवान था. वह खूब शराब पीता था और अपने साथियों के साथ जुआ खेलने के अलावा मेलेठेले में अपनी पसंद का शिकार करता था.

इसी गांव का एक पुरवा था राधेग्राम, जहां गरीब खेतिहर मजदूर रहते थे. इसी पुरवा में आसरे नाम का एक 20 साल का लडक़ा रहता था. इस के पास थोड़ी खेती की जमीन थी, बाकी वह मेहनतमजदूरी कर के अपना काम चला लेता था. राधा से उस की नईनई शादी हुई थी. राधा एक सुंदर सुशील लडक़ी थी. उसने एक गाय पाला रखी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ आमदनी हो जाती थी.

बिच्छू सिंह के गुर्गों ने जब उसे राधा की सुंदरता के बारे में बताया तो बिच्छू सिंह उसे पाने के लिए अपने अवारा साथियों से सलाह करने लगा. उस ने आसरे को अपने खेतों पर डबल मजदूरी पर काम दे दिया और उस के साथ देसी शराब के ठेके पर भी जाने लगा. वहां वह एक बोतल शराब और एक प्लेट मछली ले कर उस के साथ खातापीता.

कुछ दिनों बाद बिच्छू सिंह ने आसरे से कहा, “का रे आसरे, ताश खेलना जानता है? हमारे सब साथी तो रात में ताश खेलते है.”

“छोटे ठाकुर, हम तो ताश कभी देखे भी नहीं, भला खेलेंगे क्या?”

“लो कर लो बात, इतना बड़ा हो गया और ताश खेलना भी नहीं जानता. चल मैं तुझे सिखाता हूं. पहले तू ताश के पत्ते पहचान ले, बाकी खेल देख कर खुद ही सीख जाएगा.”

इस तरह छोटे ठाकुर ने आसरे को न केवल शराब का आदी बना दिया, बल्कि जुआ खेलना भी सिखा दिया. वह आसरे के साथ ऐसी तिकड़म से जुआ खेलता कि आसरे हर बार 100-200 रुपए जीत कर नशे की हालत में घर जाता और पत्नी से छोटे ठाकुर की बहुत तारीफ करता.

एक दिन राधा ने उसे समझाया, “देखो जी, शराब व जुआ बहुत बुरी चीज है. इस से घर बरबाद हो जाते हैं. महाभारत का युद्ध इसी जुए के कारण हुआ था.”

“मैं क्या तुम्हें बेवकूफ लगता हूं? मुझे जिस काम में फायदा नजर आएगा, वही करूंगा न, तुझे तो पूरा पैसा देता हूं.” आसरे ने गुस्से में जवाब दिया.

“मुझे हराम का पैसा नहीं चाहिए. बरकत ईमानदारी के पैसे से होती है. वैसे भी शराब से तुम्हारा शरीर खराब हो रहा है.”

“तू बड़े आदमियों को नहीं जानती. वे मुझे अपना दोस्त कहते हैं. चल खाना दे, बड़े जोर की भूख लगी है.”

एक दिन छोटे ठाकुर ने आसरे से कहा, “आज हम तुम्हारे घर ताश खेलने चलेंगे. वहीं शराब भी चलेगी.”

आसरे तैयार हो गया और सब को साथ ले कर अपने घर आ गया. सब ने बाहरी कोठरी में अड्डा जमाया. छोटे ठाकुर ने बोतल खोली और आसरे की पत्नी से कुछ नमकीन मांगी. जब वह चना ले कर आई तो बिच्छू सिंह ने कहा, “तेरी पत्नी तो हीरोइन है आसरे. बहुत किस्मत वाला है. बोल मेरी पत्नी से बदलेगा.”

इस फूहड़ मजाक पर सब जोरजोर से हंसने लगे. राधा जल्दी से अंदर चली गई. जुआ शुरू हुआ. उस दिन आसरे हारने लगा. जब उस के सारे पैसे खत्म हो गए तो छोटे ठाकुर ने खेलने के लिए उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. जब आसरे उन्हें भी हार गया तो उस ने कहा,”छोटे ठाकुर, अब हमारे पल्ले कुछ नहीं बचा. खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.”

“तू घबरा मत, मैं हूं ना. अभी भी तू हारी हुई अपनी सारी रकम जीत सकता है.”

“वह कैसे?”

“एक तगड़ा दाव खेल जा, सब कुछ तेरा.”

“कैसे खेलूं ठाकुर, मेरे पल्ले तो अब कुछ है नहीं.”

“जैसे महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया था, उसी तरह तू भी लगा दे पत्नी को दांव पर, पत्नी का तो कुछ नहीं होगा. ढेर सारा पैसा जरूर आ जाएगा.”

एक तो आसरे पहले ही नशे में था, ऊपर से ठाकुर ने उसे चढ़ा दिया. कुछ सोचने के बाद वह उस दांव को खेलने के लिए राजी हो गया. इस बार खेल बड़ा था. वही हुआ, जो ठाकुर चाहता था. आसरे अपनी पत्नी हार गया.

उस के हारते ही ठाकुर के तेवर बदल गए. उस ने गुर्रा कर कहा, “अब राधा मेरी हो गई. तेरा उस पर कोई अधिकार नहीं रहा. रात को इसे खेतों वाले मकान पर पहुंचा देना, नहीं तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.”

इस के बाद वे भी चले गए, आसरे मुंह लटकाए बाहर बैठा सोचता रहा कि पत्नी को कैसे बचाए. काफी देर बाद जब वह घर के अंदर आया तो राधा गायब थी. उस ने चारों ओर ढूंढा, ठाकुर से पूछा, पर राधा का कुछ पता नहीं चला.

राधा के बारे में जैसे ही ठाकुर को पता चला, उस ने साइकिलों से अपने आदमी थाने चौकी व रेलवे स्टेशन की ओर दौड़ाए और खुद बसअड्डे जा पहुंचा. वहीं उस ने राधा को एक तैयार बस में बैठे देख लिया.

वह भी उस बस में चढ़ गया और राधा से बहुत प्यार एवं इज्जत से बोला, “राधा, तुम ख्वाहमख्वाह नाराज हो कर चली आईं. अरे हम तो रामलीला की तरह महाभारत लीला खेल रहे थे. भला आजकल के जमाने में कोई पत्नी को संपत्ति समझ कर जुआ खेल सकता है? पुलिस हमारी हड्डी पसली तोड़ देगी. चलो घर चलो, मजाक को मजाक ही समझा करो.”

लेकिन राधा इन चिकनीचुपड़ी बातों में नहीं आई. उस ने साफसाफ कहा, “ठाकुर, तुम नीचे उतरो, वरना हम शोर मचा कर सामने खड़ी पुलिस को बुला लेंगे.”

ठाकुर बाजी हार कर बस से नीचे उतर आया, बस चली गई. रास्ते में एक शरीफ आदमी मिला तो उस ने राधा के सिर पर हाथ रख कर उस की मदद की जिम्मेदारी ली. राधा के पिता के उम्र का वह आदमी अगले स्टाप पर उसे फुसला कर अपने घर ले गया.

“बेटी, तुम आराम करो. खानापानी कर लो. अभी रात हो गई. सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा. और हां, दरवाजा अंदर से बंद कर लेना.”

राधा ने ऐसा ही किया. परंतु राधा के कान तब खड़े हुए, जब वह व्यक्ति अपनी पत्नी से कहने लगा, “तुम्हारे भाई की शादी कहीं नहीं हो रही है. उस के लिए एक दुलहन ले कर आया हूं. सुबह को इसे तेरे गांव ले जा कर साले से इस की शादी करा दूंगा. लडक़ी अच्छी है, लगता है घर से भागी है.”

सुन कर राधा सन्न रह गई. जिस पर विश्वास किया, वही दामन चाक करने को तैयार था. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी, उस में सलाखें भी नहीं लगी थीं. राधा धीरे से उस खिडक़ी से बाहर आई और रात भर सडक़ पकड़ कर चलती रही. उसे कुछ पता नहीं था कि वह कहां है और किधर जा रही है.

भोर होतेहोते वह एक गांव में पहुंची, जहां लोगों ने उस अजनबी महिला को देख कर चोर समझ लिया, वे उसे ले कर प्रधान के पास पहुंचे, “वीरजी, यह महिला गांव की नहीं है. चुपकेचुपके गांव में घुस रही थी. हम इसे पकड़ लाए. कोई चोर लगती है. घरों का भेद जान कर यह अपने साथियों को इशारे से बुला लेगी.”

वीरजी को लडक़ी परेशान व थकी हुई लगी. उस ने पूछा “भूखी हो?”

“हां, लेकिन मैं चोर नहीं, बल्कि एक दुखयारी औरत हूं. मेरे पीछे बदमाश पड़े हैं और मेरी इज्जत खतरे में है. आप मेरी मदद कर के मुझे मेरे पिता के घर पहुंचा दीजिए.”

वीरजी ने उस से उस के पिता का पता पूछा. फिर कहा कि वह थोड़ा आराम कर ले, कुछ खापी ले. उसे उस के घर पहुंचा दिया जाएगा. अब उसे डरने की जरूरत नहीं है. वीरजी ने राधा की कदकाठी और उम्र देखी तो उस के मुंह में पानी आ गया. उस ने सोचा कि क्यों न इसे पुत्तनबाई के हाथ बेच दिया जाए. वहां से अच्छे पैसे मिल जाएंगे, साथ ही वहां उस का आनाजाना भी होता रहेगा.

राधा थकी थी. नाश्ता कर के लेटी तो उसे नींद आ गई. उस की आंख खुली तो देखा वीरजी पास खड़ा उसे ललचाई नजरों से देख रहा है. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी तो वीरजी बोले, “बेटी, बस का समय हो गया है. मैं तुम्हें जगाने आया था. चलो, पास ही बस स्टाप है, वहीं से बस पकड़ लेंगे.”

राधा अपनी साड़ी ठीक कर के तैयार हो गई. दोनों बसस्टाप पर आ गए. बस आई तो वह वीरजी के साथ बस में बैठ गई. अब वह बहुत चौकन्नी थी. उसे वीरजी अच्छा आदमी नहीं लग रहा था. बस जब फर्रुखाबाद बस अड्डे पर पहुंची तो वीरजी ने राधा को बस से उतारा और बाहर की ओर ले कर चल दिया. वहीं फाटक पर एक सिपाही ड्यूटी पर था.

राधा जोर से चिल्लाई तो सिपाही ने पास आ कर पूछा, “क्या बात है, क्यों शोर मचा रही है?”

“यह आदमी मुझे घर से भगा कर कहीं खतरे की जगह ले जा रहा है. आप मेरी मदद कीजिए.”

वीरजी ने पासा पलटते देखा तो धीरे से वहां से खिसक गया. राधा के इशारे पर सिपाही ने उसे रोक लिया और दोनों को सीधे पुलिस थाने ले गया. राधा ने वहां अपना पूरा हाल बताया तो थानेदार ने रिपोर्ट लिख कर वीरजी को लौकअप में डाल दिया और राधा को डाक्टरी मुआएने के लिए भेज दिया.

बाद में राधा तो अपने पिता के घर पहुंच गई, परंतु वीरजी को मजिस्ट्रेट ने जेल भेज दिया. वीरजी ने अपने घर वालों को बुला कर जमानत कराई और सीधे रायबरेली पहुंच कर दिलीप के पास पहुंचा. चूंकि मुकदमा इसी जिले का था, इसलिए फर्रुखाबाद थाने ने बछरावां थाने को तफतीश के लिए कागजात भेज दिए. मुकदमा यहीं चलना था.

बछरावां के थानेदार ने बिच्छू सिंह से ले कर वीरजी तक सभी को इस मुकदमे में मुलजिम बनाया और न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दी. चूंकि मुकदमा भादंवि की धारा 365, 366 के अंतर्गत था, इसलिए निचली अदालत ने इसे सेशन कोर्ट के सुपुर्द कर दिया. जब इस न्यायालय में काररवाई शुरु हुई तो सब से पहले सरकारी वकील ने अभियुक्तों को न्यायालय में हाजिर किया.

उस के बाद अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोग पढ़ा और बताया कि इसे सिद्ध करने के लिए वकील साहब क्या साक्ष्य पेश करेंगे. न्यायालय ने कागजात और अभियोग को देखते हुए दिलीप से इस पर बहस करने को कहा, पर दिलीप ने इनकार कर दिया.

इस के बाद जज ने अभियुक्तों पर धारा 365, 366, 368 का अभियोग लगाया तो अभियुक्तों ने यह आरोप मानने से इनकार करते हुए मुकदमा लडऩे की प्रार्थना की. इस पर जज साहब ने अगली तारीख पर अभियोजन पक्ष को साक्ष्य पेश करने को कहा. साथ ही उन के गवाहों को सम्मान जारी कर के बुलाया गया.

अगली तारीख पर सरकारी वकील ने 3 गवाह व अन्य सबूत न्यायालय में पेश किए, जिन से दिलीप ने एक ही प्रश्न पूछा, “क्या आप ने देखा था कि राधा अपने घर से बिच्छू सिंह के साथ जबरदस्ती ले जाई जा रही थी?”

“जी नहीं, मुझे गांव में पता चला था.” गवाह ने जवाब दिया.

“आप राधा को पहचानते हैं?” दिलीप का अगला सवाल था.

“जी हां, उसे गांव में देखा था.”

“बताइए, न्यायालय में हाजिर 4 महिलाओं में राधा कौन है?” दिलीप ने पूछा.

गवाहों ने राधा को नहीं पहचाना.

“आप बिच्छू सिंह और वीरजी को इस अदालत में 10 आदमियों के बीच में पहचान सकते हैं?”

“जी हां.”

लेकिन उन्होंने 3 गलतियां करने के बाद भी उन्हें नहीं पहचाना.

सरकारी गवाह जब पूरे उतर गए तो दिलीप ने बचाव में कोई गवाह पेश नहीं किया. इस के बाद मुकदमा बहस में पहुंच गया. बहस में सरकारी वकील ने कहा, “सर, औरत चूंकि 18 साल से अधिक उम्र की है, इसलिए यह अपहरण का मुकदमा बनता है.”

वकील एक पल रुक कर बोला, “पहली बात तो यह कि बिच्छू सिंह ने बुरी नीयत से आसरे से राधा को जुए के दांव पर लगवाया और उसे चालाकी से जीत कर अपने खेतों वाले घर पर जबरन बुलाया. यह बात गवाही से साबित हो चुकी है.

दूसरे शेष 2 अभियुक्तों, जिन में वीरजी भी शामिल हैं, ने राधा को बुरी नीयत से अपनेअपने घरों में बंद कर के रखा, जो कानूनन उतना ही बड़ा जुर्म है, जितना अपहरण. इतना ही नहीं, राधा को शादी के लिए मजबूर करना भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है.”

सरकारी वकील ने आखिर में कहा कि गवाहों और राधा द्वारा यह आरोप पूरी तरह सिद्ध कर दिए गए हैं कि इन लोगों ने कानूनी अपराध तो किया ही है, एक महिला के साथ दुर्व्यवहार भी किया है, जो एक सामाजिक अपराध है. इसलिए इन्हें सख्त सजा दी जाए.”

इस के बाद दिलीप ने अपना बचाव पक्ष रखा, “सर, मैं सच्चाई से पूरा खुलासा करना चाहता हूं ताकि न्यायालय को न्याय करने में आसानी रहे.”

आरोपियों की ओर देख कर दिलीप ने कहना शुरू किया, “पहली बात तो यह कि अपहरण का आरोप साबित नहीं हो सका कि बिच्छू सिंह ने राधा को उस के घर से भगाया था. वह उसे बसअड्डे पर मिली थी, वहां भी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई. वीरजी राधा को उस के पिता के घर ले जा रहा था. वह पुलिस को देख कर डर कर भागा, जो अपराध नहीं है.

“वीरजी के मन की बात सरकारी वकील नहीं साबित कर सके. लिहाजा वही माना जाए, जो उस ने राधा से चलते समय कहा. दूसरे न तो गवाहों ने यह नहीं कहा और न ही राधा ने दुर्व्यवहार की शिकायत की. यह सरकारी वकील का अनुमान ही हो सकता है. तीसरे आसरे को धोखा दे कर जुआ खिलाया गया और शराब पिला कर राधा को दांव पर लगवाया गया. अत: उस की भी गलती सिद्ध नहीं हुई.”

अंत में दिलीप ने कहा, “सर, निवेदन है कि अभियुक्तों को बेगुनाह मानते हुए इज्जत के साथ दोषमुक्त कर दिया जाए.”

अगली तारीख पर जज साहब ने सभी अभियुक्तों को मुक्त कर दिया, पर बिच्छू सिंह को धोखाधड़ी के इलजाम में 6 महीने की सजा बामशक्कत सुनाई गई.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 3

रविंद्र ने 6 साल की बच्ची को बनाया था पहला शिकार

सन 2008 की बात है. उस समय रविंद्र करीब 17 साल का था. एक बार वह आधी रात को दोस्तों से फारिग हो कर अपने घर लौट रहा था. उस ने कराला में एक झुग्गी के बाहर मांबाप के साथ सो रही बच्ची को देखा. उस बच्ची की उम्र कोई 6 साल थी.

उस बच्ची को देख कर रविंद्र की कामवासना जाग उठी. वह चुपके से गहरी नींद में सो रही उस बच्ची को उठा ले गया. बच्ची के मांबाप को पता ही नहीं चला कि उन की बेटी उन के पास से गायब हो चुकी है. रविंद्र उस बच्ची को सूखी नहर की तरफ ले गया. जैसे ही उस ने उस बच्ची को जमीन पर लिटाया वह जाग गई.

खुद को सुनसान और अंधेरे में देख कर वह डर गई. वहां उस के मांबाप की जगह एक अनजान आदमी था. वह रोने लगी तो रविंद्र ने डराधमका कर उसे चुप करा दिया. उस के बाद उस ने उस के साथ कुकर्म किया. बच्ची दर्द से चिल्लाने लगी तो उस ने उस का मुंह दबा दिया. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गई. भेद खुलने के डर से उस ने बच्ची की गला दबा कर हत्या कर दी और अपने घर चला गया.

अगली सुबह झुग्गी के बाहर सो रहे दंपति को जब अपनी बेटी गायब मिली तो वह उसे खोजने लगे. उसी दौरान उन्हें सूखी नहर में बेटी की लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे वहां पहुंचे. इस मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, लेकिन पुलिस केस को नहीं खोल सकी.

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केस न खुलने से रविंद्र की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सन 2009 में बाहरी दिल्ली के ही विजय विहार, रोहिणी इलाके से 6- 7 साल के एक लडक़े को बहलाफुसला कर वह सुनसान जगह पर ले गया और कुकर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी. इस मामले को भी पुलिस नहीं खोल सकी.

रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

उस के पिता ब्रह्मानंद का दिल्ली आने के बाद अपने गांव जाना नहीं हो पाता था, लेकिन रविंद्र कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. खानदान के और लोग भी दिल्ली और नोएडा चले आए थे. रविंद्र जब भी गांव जाता, गंज डुंडवारा के पास गांव नूरपुर में अपनी मौसी मुन्नी देवी के यहां ठहरता था. वहीं पास के ही बिरारपुर गांव में उस की बुआ कृपा देवी का घर था. कभीकभी वह उन के यहां भी चला जाता था.

उस की हैवानियत वहां भी जाग उठी तो उस ने वहां भी अलगअलग समय पर 2 बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. अब तक रविंद्र सैक्स एडिक्ट हो चुका था. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह अपने शिकार को तलाशता रहता. बच्चे उस का शिकार आसानी से बन जाते थे, इसलिए वे उस का सौफ्ट टारगेट बन जाते थे. ज्यादातर वह झुग्गीझोपडिय़ों या गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाता था, ताकि वे लोग ज्यादा कानूनी काररवाई न कर सकें.

इस तरह उस ने दिल्ली के निहाल विहार, मुंडका, कंझावला, बादली, शालीमार बाग, नरेला, विजय विहार, अलीपुर के अलावा हरियाणा के बहादुरगढ़, फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के सिकंदराऊ, अलीगढ़ आदि जगहों पर 6 से 9 साल के करीब 40 लडक़ेलड़कियों को अपना निशाना बनाया. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह कुकर्म के बाद हर बच्चे की हत्या कर देता था. ज्यादातर के साथ उस ने मारने के बाद कुकर्म किया था.

पहली बार दोस्त के साथ हुआ गिरफ्तार

उस ने कई बच्चों की लाशें ऐसी जगहों पर डाली थीं कि पुलिस भी उन्हें बरामद नहीं कर सकी. 4 जून  को उस ने अपने दोस्त राहुल के साथ अपनी ही बस्ती जैन नगर के कृष्ण कुमार के 6 साल के बेटे शिबू को सोते हुए उठा लिया. दोनों उसे आधा किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर ले गए और उस के साथ कुकर्म किया.

राहुल नाई था. वह अपने साथ उस्तरा भी ले गया था. बाद में उस ने उसी उस्तरे से उस का गला काट कर लाश सूखे गटर में डाल दी थी. बच्चे को गटर में डालते हुए उन्हें किसी ने देख लिया था. उन दोनों ने तो यही समझा था कि शिबू मर चुका है, लेकिन वह जीवित था. अगले दिन जब खोजबीन हुई तो वह सूखे गटर में पड़ा मिला.

जिस शख्स ने रविंद्र और राहुल को देखा था, उसी ने अगले दिन पुलिस को सब बता दिया. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने रविंद्र और राहुल को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

रविंद्र जिस सन्नी के साथ ट्रेलर पर हैल्परी करता था, उसी सन्नी के रविंद्र की मां मंजू से अवैध संबंध थे. रविंद्र के जेल जाने के बाद मंजू परेशान हो गई. वह बेटे की जमानत की कोशिश में लग गई. कहसुन कर उस ने सन्नी के पिता सुरेंद्र से बेटे की जमानत करवा ली. लिहाजा 20 मई, 2015 को रविंद्र जेल से बाहर आ गया.

बात 13 जुलाई की है. मंजू अपने घर में अकेली थी. उस ने फोन कर के अपने प्रेमी सन्नी को घर पर बुला लिया. दोनों अपनी हसरतें पूरी करते, अचानक रविंद्र घर आ गया था. सन्नी उस समय मंजू से बातें कर रहा था. इसलिए रविंद्र को उस पर कोई शक वगैरह नहीं हुआ. रविंद्र के आने के बाद मंजू और सन्नी की योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही थी.

बेटे को बाहर भेजने के लिए मंजू ने घर में पड़ा टेप रिकौर्डर रविंद्र को देते हुए कहा कि वह उसे ठीक करा लाए. मां के कहने पर रविंद्र टेप रिकौर्डर ठीक कराने चला गया.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 3

इस के बाद अर्चना अपनेआप ही ससुराल आ गई. आने पर जब उसे पता चला कि उस के जाने के बाद से सुमिक्षा संध्या के यहां रह रही है तो उस ने बुद्धिविलास से कहा कि अपनी बेटी को दूसरे के घर भेजने की क्या जरूरत थी. वह उसे तुरंत घर ले आए.

बुद्धिविलास सुमिक्षा को लेने संध्या के घर गया तो वह अपने घर आने को तैयार नहीं थी. संध्या पिता की मरजी के बगैर बच्ची को कैसे रोक सकती थीं, इसलिए उन्होंने सुमिक्षा को समझाबुझा कर उस के साथ भेज दिया.

उसी बीच बुद्धिविलास ने सुमिक्षा के नाम 50 हजार की एक एफडी कराई तो अर्चना को लगा कि बुद्धिविलास अपना सब कुछ सुमिक्षा को ही दे देगा. अगर ऐसा हुआ तो उस के बेटे का क्या होगा.

इस के बाद अर्चना ने बुद्धिविलास से कहसुन कर अपने छोटे भाई शिवपूजन को पढ़ने के लिए अपने पास बुला लिया. अर्चना ने उस का दाखिला आगरा में गौतम ऋषि इंटर कालेज में छठीं कक्षा में करवा दिया. शिवपूजन के आने से सुमिक्षा की परेशानी और बढ़ गई. अब भाईबहन, दोनों सुमिक्षा को परेशान करने लगे. भाई के आने से अर्चना के इरादे को और मजबूती मिली. मन ही मन वह सुमिक्षा से छुटकारा पाने की योजना बनाने लगी.

जब उस की योजना बन गई तो वह बुद्धिविलास के बाहर जाने का इंतजार करने लगी. योजनानुसार उस ने सुमिक्षा के प्रति अपना व्यवहार पूरी तरह बदल लिया था. वह सुमिक्षा से इस तरह प्यार का नाटक करने लगी, जैसे एक मां करती है. बुद्धिविलास को इस से हैरानी तो हुई, लेकिन सोचा शायद मायके वालों ने समझाया हो, इसलिए उसे सद्बुद्धि आ गई है.

एक दिन सुमिक्षा ने कोई शरारत की तो अर्चना ने कहा, ‘‘अब तुम बहुत शरारती हो गई हो. अगर तुम्हारा यही हाल रहा तो मैं तुम्हें गांव भेज दूंगी.’’

ऐसा अर्चना ने योजनानुसार कहा था. लेकिन सुमिक्षा डर गई. क्योंकि वह गांव नहीं जाना चाहती थी. अर्चना भी उसे गांव नहीं भेजना चाहती थी. यह तो उस की योजना का एक हिस्सा था. वह चाहती थी कि सुमिक्षा सब से बताए कि मम्मी उसे गांव भेज रही हैं. अपनी इस साजिश में अर्चना सफल भी रही. सुमिक्षा ने यह बात सांध्या कौशिक को बताई. उन्हें लगा कि अर्चना ने उसे डराने के लिए ऐसा कहा होगा. इसलिए उन्होंने उसे आश्वस्त किया कि वह डरे न, उसे कोई गांव नहीं भेजेगा.

एक दिन बुद्धिविलास ने कहा कि उन्हें मूर्तियों के लिए मुकुट खरीदने मथुरा जाना है तो अर्चना की आंखों में चमक आ गई. वह अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी करने लगी. पहला काम तो उस ने यह किया कि अपने आवास के पास खाली पड़ी जमीन में कई गड्ढे खोद डाले. दोपहर में बुद्धिविलास खाना खाने आया तो उन गड्ढों को देख कर पूछा, ‘‘अरे इतने गड्ढे क्यों खोद डाले हैं?’’

‘‘पेड़ लगाने हैं, इसीलिए खोदे हैं.’’ अर्चना ने कहा.

अर्चना की इस बात पर बुद्धिविलास को हैरानी हुई कि अचानक इस के मन में पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई. यही सोच कर उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे मन में अचानक पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई?’’

‘‘टीवी में देखा था. उसी में देख कर सोचा कि मैं भी अपने घर के आसपास पेड़ लगा दूं तो हराभरा रहेगा.’’

21 सितंबर को बुद्धिविलास को मथुरा जाना था. उस से एक दिन पहले यानी 20 सितंबर को अर्चना ने सुमिक्षा से कहा कि वह संध्या से कह देगी कि अगले दिन वह उन के घर नहीं आ पाएगी. जब यह बात सुमिक्षा ने संध्या से कही तो उस ने पूछ लिया कि क्यों नहीं आएगी तो सुमिक्षा ने कहा कि उसे नहीं मालूम, मम्मी ने ऐसा कहने को कहा है.

अगले दिन 21 सितंबर को बुद्धिविलास 10 बजे के आसपास मथुरा के लिए निकल गया. पति के जाते ही अर्चना ने मंदिर परिसर का बाहरी गेट बंद कर के अंदर से ताला लगा दिया. इस के बाद रसोई में जा कर मैगी बनाई और सुमिक्षा को खाने के लिए दे कर खुद गड्ढा खोदने लगी.

भाई ने पूछा कि वह गड्ढा क्यों खोद रही है तो उस ने कहा, ‘‘तू अंदर जा कर सो जा, मैं क्या कर रही हूं, इस बात पर ध्यान न दे.’’

शिवपूजन जा कर सो गया. अर्चना ने साढ़े 3 फुट गहरा गड्ढा खोद डाला. गड्ढा खोद कर अर्चना अंदर पहुंची तो देखा सुमिक्षा बेहोश पड़ी थी. दरअसल उस ने मैगी में नशीली दवा मिला दी थी, इसलिए मैगी खा कर सुमिक्षा बेहोश हो गई थी.

अर्चना ने बेहोश पड़ी सुमिक्षा के दोनों हाथ पीछे बांध कर मुंह और नाक में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद ऊपर से पौलीथिन लपेट कर उसे उठाया और गड्ढे में लेटा कर ऊपर से 2 थैली नमक डाल कर गड्ढे को ढक दिया. नमक उस ने इसलिए डाला था, ताकि लाश जल्दी गल जाए.

किसी को संदेह न हो, अर्चना ने गड्ढे के ऊपर पत्थर रख कर हवन कुंड बना दिया और उस के पास तुलसी का एक पेड़ लगा दिया. बुद्धिविलास के आने से पहले उस ने वहां दिया जला कर तमाम अगरबत्तियां भी सुलगा दीं.

शाम 7 बजे के आसपास बुद्धिविलास ने आते ही सुमिक्षा को आवाज दी. सुमिक्षा कहां से बोलती. उसे तो अर्चना ने ऐसी जगह भेज दिया था, जहां से कोई लौट कर नहीं आता. अर्चना ने कहा, ‘‘वह तो सुबह से ही गायब है.’’

‘‘क्या… सुबह से गायब है? तुम ने उसे ढूंढ़ा भी नहीं?’’ बुद्धिविलास थोड़ा गुस्से में बोला.

‘‘मुझे पता था, तुम यही कहोगे. तुम ने कैसे सोच लिया कि मैं ने उसे ढूंढ़ा नहीं. मैं ने सब जगह जा कर उसे ढूंढ़ा है, लेकिन किसी से पूछा नहीं. क्योंकि सब यही कहते कि सौतेली मां हूं, इसलिए मैं ने ही गायब कर दिया है. जब तुम इस तरह कह रहे हो तो दूसरे क्यों नहीं कहेंगे?’’ अर्चना ने रोते हुए कहा.

बुद्धिविलास उठा और पैर पटकते हुए घर से निकल गया. सीधे वह संध्या कौशिक के घर पहुंचा. जब उस ने उन से सुमिक्षा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘सुमिक्षा तो मुझ से कह गई थी कि आज वह मेरे घर नहीं आ पाएगी.’’

सुमिक्षा और कहीं नहीं जा सकती थी. साफ हो गया कि वह गायब हो गई है. थोड़ी ही देर में यह बात पूरी कालोनी में फैल गई. सभी एकदूसरे से पूछने लगे. इस से यह बात साबित हो गई कि सभी को सुमिक्षा से सहानुभूति थी. सभी उस की तलाश में लग गए. बुद्धिविलास पागलों की तरह अपना सिर पीट रहा था.