आनंद का आनंद लोक : किरण बनी शिकार – भाग 1

जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…

ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर.

2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी.

अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी  बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा.

दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई.

राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए. 8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा.

सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी.

सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया.

आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की.

शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था.

आनंद की तलाश में घर में घुस  आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था.

सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था.

अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था.

आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था.

दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई.

दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था. चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की.

आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके.

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 3

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’

कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर

दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’

इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’

हत्या कर कृष्णा हो गया फरार

दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 3

मामला हत्या का ही लग रहा था. इस की जानकारी दोनों सिपाहियों ने थानाप्रभारी ऋषिपाल सिंह को दी. यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

टीम में महिला पुलिसकर्मी भी थीं. ऋषिपाल सिंह ने बारीकी से घटनास्थल का मुआयना किया. आसपास के लोगों से पूछताछ की. महिला पुलिस शबनम पर नजर रखे हुए थी. थानाप्रभारी को शबनम के बयानों में साजिश की बू आ रही थी.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए बदायूं जिला मुख्यालय भेज दिया. यह बात 4 जुलाई, 2022 की सुबह 10 बजे की है. शबनम लगातार बिजली का करंट लगने की रट लगाए हुए थी. वह पति के गम में विलाप कर रही थी. तीनों बच्चों का रोनाधोना देख मौके पर उपस्थित अन्य लोगों की भी आंखें नम हो गई थीं.

जांच में पुलिस को शबनम और सलीम के अवैध संबंधों की जानकारी मिल गई. पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव जाने के बाद शबनम को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

थाने ले जा कर उस से पूछताछ की, तब वह पुलिस के सवालों में उलझ गई. सलीम के साथ संबंध के सवालों के आधेअधूरे जवाब ही दे पाई.

आखिर में वह टूट गई और उस ने पति की हत्या का जुर्म स्वीकार लिया. हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए उस ने घटना की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार है—

शबनम उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के थाना जरीफनगर के अंतर्गत गांव परड़वा की रहने वाली थी. करीब 10 साल पहले उस का निकाह इसलामनगर से 4 किलोमीटर दूर मऊकलां गांव के रहने वाले शरीफ के साथ हुआ था. शरीफ बढ़ई था जो दिल्ली में काम करता था.

ससुराल में शबनम के दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. वह एक के बाद एक 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. 3 बच्चों का बाप बन जाने के बाद शरीफ पर पैसा कमाने की धुन सवार हो गई.

काम के कारण शरीफ का अधिकतर समय दिल्ली में ही बीतता था. वह 1-2 माह में ही घर आता था. शबनम में भी उस की रुचि कम होती जा रही थी. कभीकभार ही वह दिल्ली से घर आता था. शबनम जवान थी. पति की दूरी उसे बहुत अखरती थी. उस का दिन तो कट जाता था लेकिन रातें करवटें बदलते कटती थीं.

30 साल की शबनम अपनी वासना को काबू में नहीं रख पाई. पति का प्रेम नहीं मिला तो उस की नजदीकियां सलीम से बढ़ गईं, जो उस के घर के पास ही रहता था. सलीम के साथ अब उस की हर रात सुहागरात जैसी होने लगी थी.

जिंदगी में सलीम के आने से वह खुश रहने लगी, लेकिन ज्यादा दिनों तक उन दोनों के संबंध छिपे नहीं रह सके. उस के पति शरीफ को इस बारे में मालूम हो गया. यह बात शरीफ को बहुत बुरी लगी. तब गुस्से में वह बीवी की पिटाई करने लगा. ऐसे में शबनम की जिंदगी नरक हो गई. एक तरफ सैक्स की भूख थी, दूसरी तरफ पति का अत्याचार और उपेक्षा. इसी कारण शबनम ने एक दिन पति को ही रास्ते से हटाने की तरकीब निकाली.

इस काम में शबनम ने अपने प्रेमी सलीम की मदद ली. सलीम ने गूगल और यूट्यूब से वीडियो देख कर बिजली के करंट से शरीफ को मारने का उपाय सुझाया. उस ने बताया कि इस तरह से किसी की मौत होती है, तब उसे दुर्घटना समझा जाता है. पति को रास्ते से हटाने का शबनम को यह तरीका सही लगा. फिर उसे दिल्ली से घर बुला लिया. उस से प्रेम का नाटक किया.

पति के आने पर शबनम ने सेवइयां पकाईं. पति की सेवइयों में उस ने नशे की गोलियां पीस कर मिला दीं. ये गोलियां उसे सलीम ने ला कर दी थीं. सेवइयां खा कर शरीफ कुछ देर बाद लेट गया.

जैसे ही वह बेहोश हुआ, शबनम ने चैक करने के लिए हाथ पर एक डंडा मारा. डंडा लगने के बावजूद शरीफ ने कोई हरकत नहीं की, तब उस ने प्रेमी सलीम को फोन कर के बुलाया.

सलीम पीछे के दरवाजे से दीवार पर चढ़ कर घर में उतर आया. उस समय रात के लगभग 11 बजे थे. पहले तो शबनम और सलीम ने वासना का खेल खेला. फिर दोनों ने शरीफ को चारपाई से उतार कर इनवर्टर के पास जमीन पर लिटा दिया.

सलीम अपने साथ बिजली का तार भी लाया था. उसे शरीफ के शरीर पर लपेट कर करंट लगा दिया. उस की जीभ बाहर निकल आई. तब शबनम ने छुरी से उस की जीभ काटी और फिर उस का मुंह क्विक फिक्स से चिपका दिया.

बाद में डंडे मार कर चैक किया कि शरीफ की जान निकली है या नहीं. इसी बीच उस के छोटे बेटे की आंखें खुल गईं. सलीम को देखते ही वह बोल पड़ा, ‘‘चाचा कैसे आए?’’

सलीम ने कहा, ‘‘तेरे पापा को करंट लग गया है.’’

दरअसल, उस रात शबनम बच्चों को नशे की गोलियां देना भूल गई थी. तब तक आधी रात हो चुकी थी. काम हो जाने के बाद शबनम ने सलीम के लिए मुख्य दरवाजा खोल दिया और वह चला गया.

इस के बाद शबनम ने सब से पहले अपने जेवरात व नकदी की अलगअलग पोटली बना कर संदूक में ऊपर ही हिफाजत से रख लीं. उस के बाद सब से पहले अपनी एक ननद को डरतेडरते फोन किया. कुछ ही देर में सभी रिश्तेदार एकत्र हो गए.

शबनम ने अपने मायके भी फोन कर दिया. सुबह ही उस के मांपिता, चारों भाईबहन और 2 बहनोई आ गए. मौका लगते ही उस ने जेवर व नकदी दोनों पोटलियां पूरी बात समझा कर अपनी बहन को सौंप दीं.

शबनम से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शबनम के प्रेमी सलीम को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी ऋषिपाल सिंह ने घटना की पूरी जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

एसपी (देहात) सिद्धार्थ वर्मा ने भी थाने आ कर दोनों से अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने जिला मुख्यालय पर प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के सामने केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने मृतक के भाई इरफान की तहरीर पर शबनम और सलीम के खिलाफ 4 जुलाई, 2022 को भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दोनों को 5 जुलाई, 2022 को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 3

वक्त आगे बढ़ रहा था पर नरगिस के गलीमोहल्ले वालों में नरगिस और रशीद के संबंधों की बात फैल गई थी. इकबाल चूंकि रिक्शा चला कर देर रात को लौटता था इसलिए उसे भाभी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. एक दिन एक पड़ोसी ने उस से कहा, ‘‘इकबाल, तुम अपनी भाभी पर नजर रखो. कहीं किसी दिन वह बच्चों को छोड़ कर भाग गई तो बच्चे तुम्हारे गले पड़ जाएंगे.’’ यह सुन कर इकबाल चिंतित हो उठा. उस ने उस पड़ोसी से पूछताछ की तो उसे भाभी की सच्चाई पता चली.

यह बात इकबाल को पसंद नहीं आई. उस ने नरगिस को समझाने की कोशिश की तो नरगिस ने घूर कर उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भाई की मौत के बाद तुम ने कभी जानने की कोशिश की कि मैं किस हाल में रहती हूं, बल्कि घर की जिम्मेदारी उठाने के बजाय तुम ने मुझे अकेला छोड़ दिया. बेहतर यही है कि तुम मेरी जिंदगी में टांग मत अड़ाओ.’’

इकबाल के पास इसका कोई जवाब नहीं था. अब नरगिस के मन में एक ही ख्वाहिश थी और वह यह थी कि रशीद की रखैल से अब बीवी कैसे बने. वह रशीद को बताती कि उस के मोहल्ले वाले और देवर उस के खिलाफ हो रहे हैं. तब रशीद उसे समझाता कि जमाना तो कुछ न कुछ कहता ही है. हमें जमाने से लड़ना थोड़े ही है. रशीद की बातों से नरगिस को समझ में आने लगा था कि वह उसे सिर्फ इस्तेमाल कर रहा है. वह रिश्ते के प्रति गंभीर नहीं है और न ही उस का उस से निकाह करने का ही कोई इरादा है. इधर रशीद सोच रहा था कि वह नरगिस से मोहब्बत करता है और बदले में उस का खर्चा उठाता है. इतना ही बहुत है. दोनों के बीच की कशमकश रिश्ते में खटास ला रही थी. अब तो नरगिस उसे शिकोहाबाद जाने से भी रोकती थी.

इसी बीच रशीद की बीवी को भनक लग गई कि उस के शौहर ने फिरोजाबाद में भी कोई औरत रखी हुई है. यह जानकारी मिलते ही सलमा परेशान हो गई और एक दिन जब रशीद घर आया तो उस ने साफ कह दिया कि वह अपने मायके चली जाएगी और मांबाप को सब कुछ बता देगी. सलमा की इस धमकी से रशीद परेशान हो गया. वह दो नावों पर सवार था. अब उसे डूबने से डर लगने लगा. नरगिस इतनी करीब आ चुकी थी कि उसे छोड़ना भी मुश्किल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इधर नरगिस ने भी तय कर लिया कि वह सलमा को रशीद की जिंदगी से निकाल देगी. एक दिन उस ने रशीद से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहुत हो गया. अब तुम्हें फैसला करना ही होगा.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ रशीद चौंकते हुए बोला.

‘‘आखिर मैं कब तक तुम्हारी रखैल बन कर रहूंगी. सलमा को तलाक दो और मुझ से निकाह करो.’’ नरगिस अपनी बातों पर जोर देते हुए बोली. रशीद को नरगिस की यह बात इतनी बुरी लगी कि उस ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘आगे से कभी सलमा को तलाक देने की बात मुंह से मत निकालना.’’

नरगिस को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘तुम ने मुझे मारने की हिम्मत की. अब मैं भी बताती हूं कि या तो मुझ से निकाह करो वरना मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

रशीद नरगिस की धमकी से डर गया कि कहीं यह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज न करा दे. वह किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था. इसलिए उस ने अपना व्यवहार सामान्य कर के उसे समझाया. पर मन ही मन उस ने उस से छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. वह इस का उपाय ढूंढने लगा. रशीद ने अब नरगिस से मिलनाजुलना कम कर दिया. वह दुकान बंद कर के किराए के कमरे पर आने के बजाए शिकोहाबाद स्थित अपने घर चला जाता था. नरगिस के पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देता था. नरगिस रशीद को खोना नहीं चाहता थी क्योंकि वह घर चलाने के पैसे जो देता रहता था.

नरगिस से अवैध संबंधों की बात रशीद की ससुराल तक पहुंच गई थी. अब रशीद को बदनामी से भी डर लगने लगा. वह समझ गया कि इस की वजह से समाज और रिश्तेदारी में उस की बेइज्जती हो सकती है इसलिए नरगिस नाम के कांटे को जीवन से जल्द निकालने का उस ने फैसला ले लिया. इस के बाद किसी न किसी बात को ले कर उस का नरगिस से झगड़ा होने लगा.

तनाव की वजह से उस का धंधा भी चौपट हो चुका था. जिस मकान को उस ने नरगिस को किराए पर दिलाया था, वहां के आसपड़ोस वालों को भी दोनों के झगड़े की जानकारी हो चुकी थी, पर कोई भी उन के मामले में दखल नहीं देता था. जिस मकान में नरगिस रहती थी, वह अधबना था. मकान मालिक वहां नहीं रहता था.

12 दिसंबर, 2016 को दुकान बंद कर के रशीद नरगिस के पास कमरे पर पहुंचा. खाना खाने के बाद नरगिस ने पूछा, ‘‘तुम ने फैसला कर लिया?’’ ‘‘कैसा फैसला? देखो नरगिस, मैं तुम जैसी औरत के लिए अपने बीवीबच्चों को हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ वह दृढ़ता से बोला.

‘‘मुझ जैसी औरत….आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? पहले तो बड़ीबड़ी बातें करते थे. इस का मतलब यह हुआ कि अब तक तुम केवल मेरा इस्तेमाल कर रहे थे. ठीक है, अब देखना मैं क्या करती हूं.’’ कह कर जैसे ही वह उठने लगी, रशीद ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया और झट से उस के सीने पर बैठ गया.

वह उस का गला तब तक दबाए रहा जब तक वह मर नहीं गई. कुछ ही देर में नरगिस की लाश सामने थी और जुनून उतर चुका था. पुलिस का डर उसे सताने लगा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह उसे अधबने कमरे में ले गया और उस पर वहां मौजूद प्लास्टिक की बोरियां डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह वहां से फरार हो गया.

कुछ देर बाद गश्ती सिपाही वहां से गुजर रहे थे तो मकान से धुआं निकलता देख वे मकान के अंदर चले गए. तब मामला दूसरा ही सामने आया.

रशीद से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 28 दिसंबर, 2016 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.?

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 2

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 2

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.

नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है.

लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया.

फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे.

उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 2

इसलामनगर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर दहगवां एक विकसित गांव है, जो कस्बे का रूप ले चुका है. दहगवां बदायूं जिले के ही थाना जरीफनगर के अंतर्गत आता है. इसे नगर पंचायत का दरजा मिल चुका है. पहली बार वहां चेयरमैन चुना जाना है. दहगवां से करीब 7 किलोमीटर दूर गांव परड़या है.

यहीं शबनम का भरापूरा परिवार रहता है. संभ्रांत लोगों में उन की गिनती होती है.

शबनम की शादी के बाद से ही उस के परिजन परेशान रहने लगे थे. आए दिन शबनम का पति और ससुरलवालों से झगड़े निपटाए जाते थे. शबनम की जिद के चलते शरीफ को 4 साल दहगवां में किराए का मकान ले कर रहना पड़ा था. तब लोग उन पर काफी तंज कसा करते थे.

शरीफ ने एक दिन शबनम को घर ला कर समझाने की कोशिश की. शरीफ और उस के घर वालों ने उसे काफी समझाया. यहां तक कि पंचायत हुई, लेकिन पंचायत में भी कोई खास समाधान नहीं निकल पाया.

आखिरकार, शरीफ शबनम को उस के मायके में ही छोड़ कर दिल्ली चला गया. कुछ दिन बाद शबनम बच्चे को ले कर अपनी ससुराल इसलामनगर पहुंची और ताला तोड़ कर रहने लगी. तब शबनम ने शरीफ से फोन पर माफी मांगते हुए नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की बात कही. साथ ही वादा किया कि वह आइंदा सलीम से कोई संबंध नहीं रखेगी.

पत्नी की बात सुन कर शरीफ ने उसे माफ तो कर दिया, साथ ही बच्चों के भविष्य के लिए सही रास्ते पर चलने को कहा. शबनम ने भी वादा करते हुए कहा कि ऐसा ही होगा. वह पुरानी बातों को दिमाग से निकाल दे और हम लोग मेहनत कर अधूरे मकान को पूरा करेंगे. पत्नी की बात पर यकीन करने के अलावा शरीफ के पास और कोई रास्ता भी नहीं था.

शबनम के इस माफीनामे और पति के प्रति वफादारी में कितनी सच्चाई थी, इस का पता तो तब चला जब शबनम ने सलीम से मिलनेजुलने का तरीका बदल लिया.

दोनों के मकान के उत्तरी दीवार की ओर कई प्लौट खाली थे. काफीकाफी दूरी पर इक्कादुक्का मकान बने थे. प्लौटों की तरफ से शबनम के कमरे के आंगन की दीवार काफी नीची थी. इस दीवार पर ही बांस प्लास्टिक का टटिया टिकाया हुआ था.

दीवार और टटिया के बीच के गैप को बरसाती पन्नी से ढंक दिया गया था. सलीम को शबनम के घर में  घुसने का यह एक गुप्त रास्ता मिल गया था, जिस का फायदा सलीम उठाने लगा था. वह उस रास्ते से रात में किसी समय शबनम के घर में घुस जाता था. फिर बेफिक्र हो कर दोनों अपने जिस्म की आग शांत करते थे. फिर सलीम उसी रास्ते से अपने घर चला जाता था.

उत्तरी दीवार से घर में उतरने में आ रही दिक्कत को दूर करने के लिए शबनम ने सीमेंट के खाली कट्टों में मिट्टी भर कर दीवार से सटा कर रख दिए थे.

मिलने से पहले शबनम अपने बच्चों को नींद की गोलियां खिला देती थी. उस के बाद सलीम को मोबाइल से खबर कर देती थी. सलीम पीछे के रास्ते से रात में शबनम के घर में घुस जाता था. दोनों रंगरलियां मनाते फिर सलीम मिट्टी से भरे कट्टे पर चढ़ कर इधरउधर देखता हुआ अपने घर चला जाता था.

सलीम दिखने में भले ही आकर्षक नहीं था. रंग गहरा सांवला था, जिसे काला भी कहा जा सकता है. भोंडा सा चेहरा, कदकाठी भी सामान्य से कम थी, लेकिन शरीरिक कसावट किसी भी औरत को आकर्षित करने के लिए काफी थी. सलीम में सैक्स के प्रति अधिक रुचि को देखते हुए वह उसे सैक्सी घोड़ा कहा करती थी.

शबनम से पहले मोहल्ले की एक और महिला से भी सलीम का प्रेम संबंध था. वह बिरादरी के अख्तर की पत्नी को भगा ले गया था. दोनों एक ही बिरादरी के थे, जिस के कारण मामला रफादफा हो गया. कुछ दिन साथ रखने के बाद महिला को उस के पति के हवाले कर दिया था.

जब सलीम और शबनम वासना की बयार में बहे जा रहे थे. उन पर किसी भी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी. उन के मन में केवल आशंका थी तो यह कि शरीफ के आने या उस की जानकारी होने पर उन की मौजमस्ती में कभी भी खलल पड़ सकती है. यही सोच कर दोनों ने एक योजना बनाई.

योजना के मुताबिक शबनम ने 3 जुलाई, 2022 को सुबहसुबह पति शरीफ को फोन किया. कलपती आवाज में बोली कि बड़े बेटे की तबीयत खराब है. वह जिस हालत में है तुरंत घर आ जाएं. बेटे की तबीयत खराब की खबर सुनते ही शरीफ घबरा गया और उसी दिन शाम के 6 बजे के करीब घर आ गया. घर आ कर देखा तो बेटा ठीकठाक था. वह खेलकूद रहा था.

इस तरह अचानक बुलाने पर उस ने नाराजगी जताई. शबनम ने नाराज पति को बांहों में भर कर उस की नाराजगी दूर करने की कोशिश की. कुछ हद तक इस में उसे सफलता मिल गई.

काफी दिनों बाद पत्नी से मिलने पर शरीफ शबनम की बाहों में समा गया. उस का गुस्सा दूर हो गया. जब बच्चों ने दरवाजा खटखटाया, तब उस ने शबनम को खुद से अलग किया.

शरीफ इसलामनगर पंचायत से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर मऊकलां गांव का मूल निवासी था. वह सैफी यानी बढ़ई समुदाय के रहमान खानदान में 5 भाइयों में एक था. उस्मान, मेहरबान, एहसान, इरफान और शरीफ सभी भाई फरनीचर बनाने का काम जानते थे.

पांचों भाइयों ने 50 से 100 गज तक के प्लौट ले कर इसलामनगर में अपनेअपने घर बना लिए थे. उन के बीच आपसी मेलजोल था. एक भाई गांव में ही रहता था. दूसरा भाई इरफान इसलामनगर में डीजे संचालक के यहां मजदूरी करता है, जिस के चलते वह देर रात तक ही घर लौट पाता था. 3 भाई दिल्ली में अलगअलग जगहों पर काम करते हैं.

शबनम ने 3 जुलाई की आधी रात को ही करीब 2 बजे शरीफ के बड़े भाई उस्मान को फोन किया. उस ने नींद में आननफानन में घबराहट के साथ फोन रिसीव किया. सिसकियां भरते हुए शबनम ने बताया कि आप के भाई को बिजली ने पकड़ लिया है और उन की मौत हो गई है.

इतना बताने के बाद उस की सिसकियां थोड़ी कम हो गईं. फिर उस ने धीमी गमगीन आवाज में करंट लगने की पूरी घटना का जिक्र किया. उस ने बताया कि रात के एक बजे जब आंखें खुलीं, तब उस ने शरीफ को अपनी चारपाई पर नहीं पाया. कमरे में नजर दौड़ाने पर शरीफ को इनवर्टर के तारों से चिपका देखा.

शरीफ को बिजली का करंट लगने की बात सुन कर उस्मान को गहरा सदमा लगा. साथ ही उसे आश्चर्य हुआ कि यह खबर उस ने पड़ोस में रह रहे इरफान को क्यों नहीं दी. वैसे इस की जानकारी उस ने अपने सभी भाइयों और रिश्तेदारों को भी दे दी.

आश्चर्य की बात यह भी थी कि इरफान की पत्नी फरहीन घर पर ही थी, लेकिन उसे पड़ोस में रहने वाले देवर शरीफ की मृत्यु की भनक तक न लगी.

उस्मान भागाभागा शरीफ के घर आया. वहां इरफान की पत्नी फरहीन से मालूम हुआ कि रात के करीब 12 बजे उसे किवाड़ों पर आहट महसूस हुई थी. उस की नींद से आंखें खुलीं. वह समझ नहीं पाई. उस ने तुरंत यह जान कर दरवाजा खोल दिया कि शायद उस का पति इरफान आया हो. किंतु उस ने सलीम को शरीफ के घर से जाते हुए देखा.

शरीफ की अचानक मौत से घर में मातम का माहौल बन गया था. सभी रोने लगे थे. बच्चे एक कोने में गुमसुम बैठे थे. सुबह होते ही शबनम के घर काफी भीड़ जमा हो गई थी. शरीफ की लाश देख कर हर कोई हत्या होने की ही आशंका जाहिर कर रहा था. जबकि शबनम हर किसी से एक ही बात कह रही थी कि रात में पता नहीं वह किसी समय इनवर्टर में कुछ करने लगे और उस के तार से चिपक गए. बिजली करंट से उन की मौत हो गई.

इस हादसे की सूचना शरीफ के भाई इरफान ने पुलिस को दी. थाने से 2 सिपाही आए और मौका मुआयना किया. उन्होंने पाया कि शरीफ के शरीर में चोट और करंट के कई जगह निशान हैं.

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 1

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 1

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 1

सलीम जब अपने बिस्तर पर लेटा, तब उस की आंखों के सामने शबनम का चेहरा घूम गया. उस का मुंह बिचका कर बोलना, आंखों से इशारे करना और मांसल देह बारबार नजरों के सामने एक पिक्चर की तरह उस के मस्तिष्क में घूम रहा था. उस की आंखों से नींद गायब थी.

उस के दिमाग से उस की चंचल आंखें, अदाएं और मादकता के साथ मटकती देह हट ही नहीं रही थी. पहली मुलाकात में ही शबनम उस के दिल में उतर गई थी. वह उस से दोबारा मिलने के लिए बेचैन हो गया था.

दरअसल, सलीम का शबनम से आमनासामना पहली बार तब हुआ था, जब वह उस के मकान के एकदम पीछे अपने पति शरीफ और 3 बच्चों के साथ काफी समय से रह रही थी. उन का मकान उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में इसलाम नगर के मोहल्ला मुस्तफाबाद में है. सलीम का मकान नया, मगर अधबना है. करीब 40 गज के इस मकान से सटा ही शरीफ का मकान है.

विवाहित और 3 बच्चों का बाप सलीम 4 भाई हैं. वे मूलरूप से इसलाम नगर से करीब 25 किलोमीटर दूर आटा नामक गांव के रहने वाले हैं. वह गांव बहजोई हाईवे पर है. सलीम इसलाम नगर में पिछले 6 सालों से रह रहा था.

बात इसी साल सर्दियों के दिनों की है. सलीम के बच्चे छत पर धूप में गेंद से खेल से रहे थे. खेलतेखेलते उन की गेंद उछलती हुई शरीफ की छत पर चली गई. वहां से लुढ़कती गेंद बरसाती पन्नी के बनाए गए छप्परनुमा टटिया पर जा गिरी.

इस बारे में बच्चों ने सलीम को बताया और गेंद लाने को कहा. छत तो दोनों की मिली हुई थी, लेकिन शरीफ ने कमरे के आगे आंगन में बांसों से टटिया बना कर छत के आगे डाल ली थी.

सलीम ने शरीफ की छत पर जा कर लंबे बांस से गेंद निकालने की कोशिश की. लेकिन गेंद फिसल पर शरीफ के घर में चली गई. तब सलीम ने छत से आवाज दी, लेकिन उस के घर से कोई जवाब नहीं आया. फिर वह अपनी छत से नीचे उतर कर सड़क के रास्ते से शरीफ के घर जा पहुंचा.

शरीफ के मुख्य दरवाजे से पहले उस के भाई इरफान का मकान है.

इस तरह शरीफ के घर में कोई भी दाखिल होने पर उस की जानकारी पहले इरफान के परिवार को हो जाती है. सलीम जब शरीफ के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा, तब इरफान की पत्नी फरहीन पूछ बैठी, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘शरीफ भाई से,’’ सलीम तुरंत बोला. इस पर फरहीन बेरुखी से बोली, ‘‘शरीफ घर पर नहीं है.’’

तभी शरीफ की पत्नी शबनम खुले दरवाजे का परदा हटाती हुई बाहर निकली. वह बोली, ‘‘हां, बताओ क्या बात है?’’

सलीम की नजर जैसे ही शबनम पर पड़ी, वह अपने होशोहवास खो बैठा. उसे टकटकी बांधे देखने लगा. शबनम ने जब दोबारा सवाल किया तब खयालों में खोए सलीम का ध्यान टूटा. हकलाता हुआ बोला, ‘‘जी..जी… वो भाभीजी! बात यह है कि बच्चों की गेंद आप के घर में आ गई है. वही लेने आया हूं.’’

शबनम कुछ बोले बगैर तेजी से पलटती हुई अंदर चली गई. सलीम उस के पलटने के अंदाज को देखता रह गया. कुछ पल में ही शबनम ने गेंद ला कर सलीम को पकड़ा दी और तिरछी नजर डालते हुए शिकायती लहजे में बोली, ‘‘बच्चों को हिदायत कर देना कि गेंद मेरे घर में दोबारा नहीं आने पाए.’’

सलीम कुछ नहीं बोला. सिर्फ उसे घूरता रहा. जबकि शबनम एकदम से तल्ख लहजे में बोली, ‘‘घूरते क्यों हो? कभी औरत नहीं देखी क्या? अबकी बार गेंद घर में आई तो नहीं दूंगी…’’

सलीम कुटिल मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘भाभीजी, कैसी बातें कर रही हैं, इस गेंद को भी रख लो. पड़ोसियों का तो हक बहुत होता है. …और आप जैसी पड़ोसी हो तो बात ही कुछ और है.’’

‘‘आप जैसी का मतलब?’’ शबनम बोली.

‘‘आप जैसी का मतलब मदमस्त..’’ यह बात सलीम ने शबनम के एकदम कान के पास जा कर बोली. शबनम कुछ नहीं बोली. आंखें चौड़ी कीं और तेजी से पलटती हुई परदे के पीछे चली गई. दरवाजा भी बंद कर लिया. सलीम गेंद ले कर अपने घर चला आया.

कई दिन गुजर गए, लेकिन उस दिन की शबनम की छोटी सी मुलाकात को सलीम भूल नहीं पा रहा था. वह इसी फिराक में रहने लगा कि शबनम बाजार वगैरह कब जाती है?

इसलाम नगर का मोहल्ला मुस्तफाबाद नई आबादी में शामिल है. यहां से मार्केट काफी दूरी पर है. एक दिन उस ने शबनम को हाथ में थैला लिए बाजार की तरफ जाते देख लिया. वह चुपके से उस के पीछे हो लिया. कुछ दूरी पर चलता हुआ बाजार की भीड़ में शामिल हो गया, लेकिन नजर शबनम पर गड़ाए रहा.

संयोग से दोनों एक दुकान के पास टकरा गए. सलीम तुरंत बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी आप? अकेली हैं? लाइए, भारी थैला मुझे पकड़ा दीजिए.’’

शबनम ने पहले की तरह ही कुछ बोले बगैर अपना थैला उसे पकड़ा दिया और साथसाथ चलने लगी. कुछ कदम चलने के बाद सलीम ने ही टोका, ‘‘आप नाराज हैं क्या? कुछ बोल नहीं रहीं.’’

‘‘आखिर में पड़ोसियों का हक होता है, देखो तुम पर हक जता रही हूं. तुम काम आ रहे हो,’’ बोलती हुई शबनम मुसकराई.

‘‘समोसा चाट खानी है?’’ सलीम बोला.

‘‘सस्ते में निपटाना चाहते हो. कबाब खिलाओ तब जानें,’’ शबनम ने कहा.

‘‘अरे कबाब क्या चीज है, चलिए उसी के मजे लेते हैं.’’ सलीम बोला.

उस के बाद दोनों ने बाजार में मजे में कबाब खाए और घर आ गए. उस के बाद दोनों का सिलसिला चल पड़ा. वे बाजार में मिलनेजुलने लगे. समय मिलता तो इकट्ठे समय गुजारते हुए एकदूसरे के मन की बातें करने लगे.

इस बीच सलीम शबनम की सुंदरता की तारीफ करता और शबनम अपनी ऊबी हुई जिंदगी का रोना रोती. तब वह उसे सुनहरी जिंदगी के सपने दिखाते हुए हिम्मत बंधाता.

जल्द ही दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. पति की उपेक्षा के चलते शबनम कामेच्छा की आग में तपी हुई थी, जबकि सलीम शबनम के यौवन को देख कर वासना की पूर्ति की चाहत के खयालों में डूबा रहने लगा था. एक सच तो यह भी था कि दोनों एकांत की ताक में रहने लगे थे. संयोग से एक रोज वह मौका भी मिल गया और दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

दूसरी तरफ सलीम और शबनम का घर और बाजार एक साथ आनाजाना पड़ोसियों की आंखों में चुभने लगा. इस की शिकायत शबनम की ससुराल वाले और पति शरीफ तक पहुंची. तब शरीफ के घर वाले उस पर निगरानी रखने लगे.

शरीफ बढ़ई का काम करने दिल्ली जाता, तब वह अपने घर वालों से सलीम और शबनम के संबंध के बारे में जानकारी लेता रहता था. वह फोन पर ही शबनम को डांटताफटकारता रहता था. इस तरह घर में कलह होने लगी. शरीफ से झगड़ा होने पर शबनम मायके चली जाती थी.

अकसर मायके वाले समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज देते. इस बीच शबनम का सलीम से मेलजोल बना रहा. दोनों एकदूसरे से जुदा होने को तैयार नहीं थे. शरीफ कमाई कर के खर्च करने के लिए जितनी रकम शबनम को देता, उस में सामान्य तौर पर खानपान या दूसरी जरूरतें ही पूरी हो पाती थीं. सलीम के संपर्क में आने पर शबनम के रहनसहन में तब्दीली आ गई थी.

उन दिनों इसलामनगर में स्थित शाह सदरुद्दीन रहमतुल्ला अलेह का उर्स चल रहा था. दरगाह पर चादर चढ़ाने वालों का तांता लगा था. इसलामनगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से लोग सदरुद्दीन के मजार में गहरी आस्था रखते हैं.

बात पहली जून, 2022 की है. शबनम और सलीम भी वहां आए हुए थे. उन्हें शबनम के भाई ने एक साथ देख लिया था. इस की जानकारी उस ने तुरंत शरीफ को दे दी. वह सीधा दरगाह पर ही पहुंच गया. आव देखा न ताव, मेले में ही उस ने सलीम को खूब खरीखोटी सुनाई.

होहल्ला होने पर सलीम वहां से चला आया. जबकि शरीफ शबनम को डांटताफटकारता घर आया.

अगले रोज 2 जून की सुबह वह शबनम और बच्चों को ले कर अपने गांव चला गया.  शबनम के 4 भाई अनीस, जुगनू, नूरुद्दीन और नफीस का गांव में काफी रुतबा था. उन की 5 बहनों में से 4 का विवाह हो चुका था. 3 अन्य बहनें ठीकठाक रह रही थीं.