गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 3

नौकरानी के गले में घुसेड़ दिया था कांच

आवाज सुन कर रेनू कमरे में आ गई. अम्माजी को निर्जीव बिस्तर पर पड़े देख उस ने तरुण से कहा, “ये तुम ने क्या किया?”

इस पर तरुण ने रेनू को दबोच लिया और मारपीट करते हुए टूटे हुए कांच से उस के शरीर पर वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. उस समय तरुण के सिर पर खून सवार हो चुका था. तरुण ने रेनू की हत्या करने के लिए उस के गले में शीशा फंसा दिया. मगर रेनू गिड़गिड़ाई और पेट में पल रहे बच्चे की दुहाई दी. इस पर तरुण ने रेनू को धमकी देते हुए कहा, “मेरा नाम अपनी जुबान पर हरगिज न लाना वरना तेरा भी यही अंजाम होगा.”

अपनी जान बचाने के लिए रेनू ने उस के कहे अनुसार हामी भर दी.

कमला देवी की हत्या तथा नकदी व जेवर लूटने के साथ ही नौकरानी रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल कर तरुण गोयल शाम 4 बजे घर से निकल गया. अम्माजी की हत्या व अपने साथ हुई मारपीट से रेनू बदहवास हो कर मूर्छित हो गई थी. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह उठी और रोते हुए पड़ोसी भाटियाजी को घटना की जानकारी दी.

इस पर शाम 5 बजे भाटियाजी ने फोन कर के शोभाजी को जानकारी देते हुए बताया, “आप लोगों के घर कोई घटना हो गई है, आप तुरंत घर चले आएं.”

इसी बीच किसी ने थाना उत्तर पुलिस को घटना की जानकारी दे दी. हत्या व लूट की सूचना मिलते ही तत्कालीन एसएचओ संजीव कुमार दुबे मय फोर्स के घटनास्थल पर पंहुच गए थे. तब तक वहां भीड़ एकत्र हो चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत करा दिया था.

घर पर घटना होने की जानकारी मिलते ही परिजन घबरा गए और मूवी बीच में ही छोड़ कर दौड़ेदौड़े घर आ गए. घर पर पुलिस व भीड़ देखते ही सभी के पसीने छूट गए. वे समझ गए कोई बड़ी घटना हो गई है. परिजन जब अम्माजी के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देखते ही सिर पकड़ कर बैठ गए. इस बीच पुलिस ने गंभीर रूप से घायल नौकरानी रेनू से पूछताछ कर उसे उपचार के लिए अस्पताल भिजवा दिया.

घटना से इलाके में मची सनसनी

इसी बीच एसएसपी आशीष तिवारी, तत्कालीन एसपी (सिटी) मुकेश चंद्र मिश्र व अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी आशीष तिवारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया. टीम ने मौके से जरूरी साक्ष्य जुटाए.

उन्होंने देखा कि कमला देवी की मौत हो चुकी थी. कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. अलमारी खुली पड़ी थी. वाश बेसिन का शीशा टूटा पड़ा था. मृतका के गले, छाती व पेट पर चोट के निशान थे. बैड के नीचे खून से सना तकिया पड़ा था. जरूरी काररवाई निपटाने के बाद कमला देवी के शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

इस संबंध में अर्पित जिंदल ने थाना उत्तर में रिपोर्ट दर्ज कराई. रिपोर्ट में कहा कि वह अपनी मां शोभा जिंदल, चचेरा भाई चंदन अग्रवाल, चचेरी बहन आस्था, आकांक्षा मित्तल, ताई सरिता अग्रवाल, भांजा अर्नव गोयल, अंशुमान मित्तल के साथ 3 से 6 बजे का शो देखने गए थे, तभी यह घटना घटी.

उन्होंने बताया कि घर में रखी नकदी करीब 70-75 हजार रुपए, सोनेे के जेवरात, चांदी के सिक्के व नोटों की गड्डी जो दादी संभाल कर रखती थीं, को कोई अज्ञात बदमाश घर में घुस कर दादी की हत्या कर लूट कर ले गया है, साथ ही नौकरानी को घायल कर गया.

शहर के व्यस्ततम और तंग गलियों वाले आर्यनगर में दिनदहाड़े दिल दहलाने वाली घटना से उस समय सनसनी फैल गई थी. आर्य नगर निवासी घटना को ले कर तरहतरह की अटकलें लगा रहे थे. कुछ का कहना था कि इस घटना में नौकरानी रेनू शर्मा का ही हाथ है. उसे आज ही घर व अम्माजी की देखरेख के लिए परिजन छोड़ गए थे. उन के जाने के बाद ही घटना हो गई.

रेनू ने अनजान के लिए घर का दरवाजा क्यों खोला? जितने मुंह उतनी बातें. गुस्साए लोगों को एसएसपी आशीष तिवारी ने भरोसा दिया कि इस जघन्य घटना का शीघ्र खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कड़ी सजा दिलाई जाएगी. पुलिस की 5 टीमें जुटीं जांच में

मुकदमा दर्ज होने के बाद एसएसपी आशीष तिवारी ने इस सनसनीखेज घटना के खुलासे के लिए एसओजी के साथ ही 3 थानों की 5 टीमें गठित कीं. पुलिस ने बदमाशों तक पहुंचने के लिए क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने के साथ ही आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

बताते चलें कि कोयला कारोबारी लोकेश जिंदल घटना से 15 दिन पहले व्यापार के सिलसिले में गुवाहाटी गए हुए थे. घर पर उन की पत्नी शोभा व बेटा अर्पित व मां कमला देवी थीं. अर्पित अपनी मां, चाचा व बुआ के परिवार के साथ मूवी देखने चला गया था. नौकरानी रेनू उन के यहां स्थाई रूप से काम नहीं करती थी. नौकरानी को जरूरत पडऩे पर बुलाया जाता था. बीचबीच में वह अपनी मरजी से आतीजाती थी. शुक्रवार को पिक्चर देखने जा रहे थे, इसलिए कमला देवी की देखभाल के लिए उसे बुला लिया था.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से घर की पूरी स्थिति का पता था. पुलिस समझ गई थी कि घटना को अंजाम परिचितों द्वारा ही दिया गया है. उन्हें इस बात की जानकारी थी कि परिजन पिक्चर देखने गए हैं. सीसीटीवी खंगालने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस को अगर उम्मीद थी तो नौकरानी रेनू शर्मा से ही थी. वही मौके की प्रत्यक्षदर्शी थी. घटना के तुरंत बाद पुलिस को पूछताछ में रेनू ने 2 बदमाशों द्वारा घटना किए जाने की बात बताई थी.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर घायल रेनू से पूछताछ शुरू की. उस समय तक रेनू पूरी तरह से सामान्य हो चुकी थी. रेनू ने पुलिस को बताया कि परिजनों के जाने के बाद लगभग सवा 2 बजे दरवाजे पर लगी घंटी किसी ने बजाई. जब उस ने दरवाजा खोला तो 2 लोग खड़े थे. अर्पित बाबूजी को पूछते हुए दोनों अंदर आ गए और अम्माजी के कमरे में जा कर उन के पास बैठ कर बातें करने लगे.”

रेनू ने बताया कि वह युवकों को नहीं जानती थी. अम्माजी ने मुझ से उन के लिए चाय बनाने को कहा. इस से मुझे लगा कि वे लोग घर वालों के परिचित हैं. मैं किचन में जा कर चाय बनाने लगी.

                                                                                                                                            क्रमशः

जिन्दा दफन की आंगन की किलकारी

जनवरी, 2014 को मुरादाबाद जिले के गुरेठा गांव में 2 व्यक्ति  पहुंचे. उन में से एक की गोद में एक बच्चा था. वह बोला, ‘‘तीर्थांकर महावीर मैडिकल कालेज में मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था. बच्ची मर गई है. अब इसे दफनाना है. दफनाने के लिए हमें फावड़ा चाहिए. हमें श्मशान बता दो, इस बच्ची को हम वहां दफना देंगे.’’

ऐसे दुख में लोग हर तरह से सहयोग करने की कोशिश करते हैं. इसलिए फावड़ा आदि ले कर गांव के कई लोग उन दोनों के साथ गांव के पास ही बहने वाली गांगन नदी की ओर चल दिए. गांव का एक आदमी दुकान से बच्ची के लिए कफन भी खरीद लाया.

गांगन नदी के आसपास के गांवों के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे स्थित श्मशान में करते थे. इसलिए वे भी बच्ची को कफन में लपेट कर नदी की तरफ चल दिए. नदी किनारे पहुंच कर गांव के एक आदमी ने बच्ची की लाश को दफनाने के लिए एक गड्ढा भी खोद दिया. वह उसे दफनाने ही वाले थे कि उसी समय बच्ची रोने लगी.

बच्ची के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए क्योंकि उस बच्ची को तो उन दोनों लोगों ने मरा हुआ बताया था. बच्ची के जीवित होने पर उस के पिता और साथ आए युवक को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घबरा रहे थे. उन के चेहरे देख कर गांव वालों को शक हो गया. वे समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

लिहाजा उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और हकीकत जानने की कोशिश करने लगे. लेकिन वे यही कहते रहे कि डाक्टर ने बच्ची को मृत बताया था. इस के बाद ही तो वे उसे दफनाने के लिए आए थे. यह बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही थी. शोरशराबा सुन कर आसपास खेतों में काम करने वाले लोग भी वहां पहुंच गए. भीड़ बढ़ती देख वे दोनों वहां से भागने का मौका ढूंढ़ने लगे. लोगों ने उन्हें दबोच लिया और उसी समय पाकबड़ा थाने में फोन कर दिया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजेंद्र यादव सबइंसपेक्टर सहदेव सिंह के साथ श्मशान घाट पहुंच गए. उन्होंने दोनों लोगों से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम राजेश और दूसरे ने दिनेश बताया. उन्होंने जब बच्ची को देखा तो वह जीवित थी. वह 5-6 दिनों की लग रही थी.

पता चला कि वह राजेश की बेटी है और दूसरा युवक उस का साला है. पास में ही तीर्थंकर महावीर मैडिकल कालेज था. पुलिस ने उस बच्ची को अविलंब मैडिकल कालेज में भरती करा दिया जिस से उस की जान बच सके.

डाक्टरों ने जब उस बच्ची को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि वह बच्ची वहीं पैदा हुई थी और उस की मां उस समय वहीं भरती थी. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची को उस का पिता राजेश जीवित अवस्था में ही ले गया था, उस के मरने का तो सवाल ही नहीं है.

मामला गंभीर लग रहा था इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र यादव को दे दी. उधर डाक्टरों ने भी बच्ची को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया. नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र भी थाना पाकबड़ा पहुंच गए. थानाप्रभारी ने उन के सामने राजेश से जब पूछताछ की तो बच्ची को जिंदा दफन करने की एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

राजेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के हाफिजगंज का रहने वाला था. वह मोटर मैकेनिक का काम करता था. पिता रामभरोसे को जब लगा कि राजेश अपना घर चलाने लायक हो गया है तो उन्होंने बरेली के ही नवाबगंज में रहने वाले मुक्ता प्रसाद की बेटी सुनीता से उस की शादी कर दी.

शादी हो जाने के बाद राजेश के खर्चे बढ़ गए थे इसलिए राजेश कहीं दूसरी जगह अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. इसी दौरान उत्तरांचल के रुद्रपुर शहर स्थित एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. उस फैक्ट्री में बाइकों की चेन बनती थीं.

कुछ दिनों बाद राजेश पत्नी सुनीता को भी रुद्रपुर ले गया. वहां हंसीखुशी के साथ उन का जीवन चल रहा था. इसी दौरान सुनीता गर्भवती हो गई. इस से पतिपत्नी दोनों ही खुश थे. पहली बार मां बनने पर महिला को कितनी खुशी होती है, इस बात को सुनीता महसूस कर रही थी. राजेश भी सुनीता की ठीक से देखभाल कर रहा था. सुनीता को 7 महीने चढ़ गए. अब सुनीता को कुछ परेशानी होने लगी थी. क्योंकि डाक्टर ने भी सुनीता को कुछ ऐहतियात बरतने की हिदायत दे रखी थी. सावधानी बरतने के बाद भी अचानक एक दिन सुनीता को प्रसव पीड़ा हुई.

जिस डाक्टर से सुनीता का इलाज चल रहा था, राजेश पत्नी को तुरंत उसी डाक्टर के पास ले गया. सुनीता का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने स्थिति गंभीर बताई क्योंकि सुनीता के पेट में 7 महीने का बच्चा था. यदि वह आठ साढ़े आठ महीने से ऊपर का होता तो डिलीवरी कराई जा सकती थी, समय से 2 महीने पहले डिलीवरी कराना उस डाक्टर की नजरों में मुनासिब नहीं था.

ऐसी हालत में सुनीता को किसी अच्छे अस्पताल या नर्सिंगहोम में ले जाना जरूरी था. रुद्रपुर में कई नर्सिंगहोम ऐसे थे जहां सुनीता को ले जाया जा सकता था लेकिन वे महंगे होने की वजह से राजेश के बजट से बाहर थे. लिहाजा वह पत्नी को ले कर मुरादाबाद आ गया और उसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करा दिया.

वहां 4 जनवरी, 2014 को सुनीता ने एक बेटी को जन्म दिया. बच्ची 7 महीने में पैदा हुई थी इसलिए वह बेहद कमजोर थी. उसे इनक्यूबेटर में रखा जाना बहुत जरूरी था लेकिन मैडिकल कालेज में जो इनक्यूबेटर थे, उन में पहले से ही दूसरे बच्चे रखे हुए थे.   ऐसी स्थिति में मैडिकल कालेज के जौइंट डाइरैक्टर डा. विपिन कुमार जैन ने राजेश को सलाह दी कि वह अपनी बच्ची को किसी अन्य नर्सिंगहोम या अस्पताल या फिर दिल्ली ले जाए. क्योंकि बच्ची की हालत ठीक नहीं है.

उधर इतनी कमजोर बच्ची को देख कर वार्ड में भरती मरीजों के तीमारदारों ने राजेश के मुंह पर ही कह दिया कि ये बच्ची बचेगी नहीं और यदि बच भी गई तो पूरी जिंदगी अपंग रहेगी. लेकिन राजेश ने उन की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

बेटी की जान बचाने के लिए राजेश उसे ले कर मुरादाबाद के साईं अस्पताल पहुंचा. राजेश के साथ उस का साला दिनेश भी था. साईं अस्पताल में बच्ची को भरती करने से पहले 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया. उस के पास उस समय इतने रुपए नहीं थे. राजेश ने अस्पतालकर्मियों से कहा भी कि वह पैसे बाद में जमा करा देगा, पहले बेटी का इलाज तो शुरू करो. लेकिन उस के अनुरोध को उन्होंने अनसुना कर दिया.

राजेश बेटी को हर हाल में बचाना चाहता था. इसलिए उस ने अपने कई सगेसंबंधियों और रिश्तेदारों को फोन कर के अपनी स्थिति बताई और उन से पैसे मांगे लेकिन किसी ने भी उस की सहायता करने के बजाए कोई न कोई बहाना बना दिया. राजेश बहुत परेशान हो गया था. ऐसी हालत में उस की समझ मेें नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चारों ओर से हताश हो चुके राजेश के कानों में तीमारदारों के शब्द गूंज रहे थे कि बच्ची जिंदा नहीं बचेगी और अगर बच भी गई तो विकलांग रहेगी. निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहे राजेश ने सोचा कि जब बच्ची पूरी जिंदगी विकलांग रहेगी तो इस की जान बचाने से क्या फायदा? इस से अच्छा तो यही है कि ये मर जाए.

इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

गड्ढा खोदने के लिए उन के पास कोई चीज नहीं थी इसलिए वह फावड़ा मांगने के लिए गुरेठा गांव पहुंचे. ऐसी हालत में गांव वालों ने उन की सहायता करना मुनासिब समझा और उन के साथ गांगन नदी के किनारे उस जगह पर पहुंच गए जहां लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था.

उस की नन्हीं सी जान की आंखें ठीक से खुली भी नहीं थीं. दुनियादारी से तो उसे कोई मतलब भी नहीं था. मां की गोद से पिता के मजबूत हाथों में वह इसलिए आई थी कि वह उस का इलाज कराएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि कन्यादान करने वाले हाथ ही उसे जिंदा दफनाने के लिए आगे बढ़ेंगे.

लेकिन जैसे ही उसे गड्ढे में ठंडी रेत पर लिटाया गया वह हाथपैर चलाते हुए जोरजोर से रोने लगी. जैसे वह रोतेरोते अपने जन्मदाता से पूछ रही हो कि मेरा कुसूर क्या है. मुझे मत मारो. एक दिन मैं ही तुम्हारा सहारा बनूंगी और घर में उजियारा फैलाऊंगी. लेकिन उस समय पिता की संवेदनशीलता नदारद हो चुकी थी.

अचानक बच्ची की आवाज सुन कर राजेश और दिनेश घबरा गए. वे सोचने लगे कि काश ये 2 मिनट और न रोती तो…

बहरहाल, उस की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए और उन्होंने पुलिस बुला ली. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने उस बच्ची को तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करवा दिया था. वहां उसे इनक्यूबेटर में रख दिया गया था. उस की हालत में भी सुधार होने लगा था.

उधर सुनीता को इस बात का पता नहीं था कि उस ने जिस बच्चे को जन्म दिया, उस की हत्या की कोशिश करने वाला उस का पति जेल में है. इलाके के लोगों को जब एक पिता के यमराज बनने की जानकारी हुई तो लोग बच्ची की लंबी उम्र के लिए दुआएं करने लगे. बच्ची के इलाज के लिए कई लोगों ने अस्पताल में पैसे भी जमा कराए लेकिन एक सप्ताह बाद ही उस बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

वैसे यहां एक बात बताना जरूरी है कि राजेश की नीयत बेटी की हत्या करने की नहीं थी बल्कि वह तो उस की सुरक्षा के लिए ही मैडिकल कालेज लाया था और मैडिकल कालेज के डाक्टर के कहने पर वह बेटी को ले कर कई अस्पतालों में घूमा भी. उस की मजबूरी यह थी कि इलाज के लिए उस के पास पैसे नहीं थे और जिन संबंधियों और रिश्तेदारों से उस ने मदद की गुहार लगाई, उन्होंने भी मुंह मोड़ लिया था, जिस से वह निराश और हताश हो चुका था.

अस्पताल के वार्ड में मरीजों के तीमारदारों ने बच्ची के बारे में गलत धारणाएं राजेश के मन में भर दी थीं. इन्हीं धारणाओं ने उसे यमराज बनने के लिए मजबूर किया. इन्हीं बातों ने उस की संवेदनशीलता को हर लिया था. कहते हैं कि मां का दूसरा रूप मामा होता है लेकिन उस समय दिनेश का दिल भी नहीं पसीजा था. वह भी कंस मामा बन गया था.

पिता से यमराज बनने के हालात राजेश के सामने चाहे जो भी रहे हों लेकिन इस में अकेला वही दोषी नहीं है. इस में दोष उन लोगों का भी है जिन्होंने उसे इस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर किया. वह इतना संवेदनहीन हो गया था कि जीवित बेटी को कब्र में रखते समय उस के हाथ तक नहीं कांपे.

बेटियों पर खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बेटे की चाहत में तमाम लोग उन्हें कोख में ही खत्म करा देते हैं. हम भले ही 21वीं सदी में पहुंचने की बात कर रहे हों लेकिन सोच अभी भी वही पुरानी है तभी तो भ्रूण हत्याओं में कमी नहीं आ रही. इस का उदाहरण यह है कि जहां सन 1990 में प्रति 1000 पुरुषों के अनुपात में 906 महिलाएं थीं, सन 2005 में इतने ही पुरुषों के अनुपात में केवल 836 महिलाएं रह गई थीं. बात 2014 की करें तो अब यह आंकड़ा 1000 पुरुषों पर 940 स्त्रियों का है.

कह सकते हैं कि लोगों में काफी हद तक जागृति आई है और भ्रूण हत्याओं का ग्राफ गिरा है. यह खुशी की बात है. लेकिन इस मामले को देख कर लगता है कि हमें अभी भी पुरुष की सोच को बदलने की जरूरत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 2

फैसले में सुनाई सजा ए मौत

पीडि़त व बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की दलीलों को गौर से सुनने के बाद अब फैसले की बारी थी. कोर्ट रूम में मौजूद सभी की नजरें न्यायाधीश पर टिकी हुई थीं. सामने रखी फाइल के पृष्ठों को पलटने के कुछ समय बाद विद्वान न्यायाधीश ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा-

“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट इस नतीजे पर पंहुची है कि सारे सबूत और एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी गवाह घर की नौकरानी रेनू शर्मा की अहम गवाही घटना को सच साबित करती है. दोष सिद्ध अपराधी तरुण गोयल जनपद मेरठ का मूल निवासी है. उस ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह मेरठ में सट्टे में पैसे हार गया था. उस के पिता से उस का कोई संबंध नहीं है. इसी कारण अपनी ससुराल फिरोजाबाद में आ गया था. फिरोजाबाद में उस के ससुरालीजनों ने उस का सहयोग किया.

“मृतका कमला देवी भी दोषसिद्ध अपराधी की पत्नी की नानी हैं और उन के यहां मुजरिम का सामान्य आवागमन था. घटना के दिन तरुण गोयल का पुत्र अर्नव गोयल व परिवार के अन्य सदस्य भी फिल्म देखने फिरोजाबाद के डीडी भारत सिनेमा में अर्पित जिंदल के परिवार के साथ गए थे. मृतका कमला देवी के घर पर अकेले रहने की जानकारी अपराधी को थी. इसी अवसर का लाभ उठा कर वह मृतका के घर गया.

“मुजरिम घरेलू नौकरानी रेनू शर्मा की मौजूदगी में मृतका के कमरे में लगभग सवा 2 बजे अपराह्न गया और 4 बजे के लगभग रेनू शर्मा ने उसे हाथ में पेचकस लिए तथा श्रीमती कमला देवी का शव बैड पर पड़ा देखा. इस के बाद उस ने रेनू शर्मा पर भी जान से मारने के आशय से वार किए ताकि कोई साक्ष्य शेष न रहे.

“मुजरिम तरुण गोयल का अपने मूल परिवार से कोई संबंध नहीं है. न्यायिक काररवाई के दौरान उस के परिवार का कोई सदस्य न्यायालय नहीं आया. अपने मूल परिवार से संबंध न होने के कारण उसे उस की ससुराल पक्ष द्वारा सहारा दिया गया.

“जिस परिवार द्वारा उसे सहारा दिया गया, उसी परिवार की वृद्ध महिला कमला देवी की लूट के आशय से पेचकस द्वारा वार कर के दर्द व पीड़ा दे कर नृशंस हत्या कर दी. यह परिस्थिति दर्शाती हैं कि रिहाई के बाद उस के सुधार की कोई संभावनाएं नहीं हैं.

“माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्णित विधि व्यवस्था में दिए गए दिशानिर्देशों को दृष्टिगत रखते हुए मृतका श्रीमती कमला देवी की जघन्य हत्या विरल से विरलतम श्रेणी का मामला है और इस के लिए दोषसिद्ध अपराधी तरुण गोयल मृत्युदंड पाने का अधिकारी है. उसे भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मृत्युदंड से दंडित किया जाता है और उसे फांसी पर तब तक लटकाया जाए, जब तक उस की मृत्यु न हो जाए. इस के अलावा उसे 20 हजार रुपए अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास और भोगेगा.

“इस के अलावा भादंवि की धारा 307 के तहत आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर भविष्यवर्ती परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भोगेगा. भादंवि की धारा 394 के अंतर्गत आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए अर्थदंड तथा इसे अदा न करने पर एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भोगेगा.

“भादंवि की धारा 411 के अंतर्गत 3 वर्ष कारावास और 5 हजार रुपए अर्थदंड, जिस के अदा न करने पर 3 माह का अतिरिक्त कारावास भोगेगा. भादंवि की धारा 506 के अंतर्गत 7 वर्ष कारावास और 5 हजार रुपए अर्थदंड, इसे अदा न करने पर 3 माह का अतिरित कारावास भोगेगा. दोषसिद्ध अपराधी की सभी सजाएं एक साथ चलेंगी.”

लोकेश जिंदल थे संपन्न व्यवसायी

आइए आप को बताते हैं कि एक साल पहले यह घटना कैसे हुई थी-

कांच की चूडिय़ों के लिए फिरोजाबाद शहर विश्व भर में प्रसिद्ध है. अब यहां चूडिय़ों के साथ ही कांच के अन्य सामान झाड़ (झूमर), लैंप, रंगबिरंगे खिलौने आदि भी बनाए जाने लगे हैं. आर्यनगर घनी आबादी वाला मोहल्ला है. आर्यनगर मोहल्ले की गली नंबर 9 में अपने पुश्तैनी मकान में कोयला व्यवसायी लोकेश जिंदल उर्फ बबली अपनी पत्नी शोभा, बेटे अर्पित व वृद्ध मां कमला देवी के साथ रहते थे.

असली कहानी एक साल पहले शुरू होती है. उस दिन शुक्रवार 1 अप्रैल, 2022 का दिन था. अर्पित अपनी मां, बुआ व चाचा के परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर से करीब 6 किलोमीटर दूर आसफाबाद स्थित डीडी भारत टाकीज में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का इवनिंग शो देखने गए थे.

घर पर 70 वर्षीय वृद्धा कमला देवी रह गई थीं. वह अस्वस्थ चल रही थीं. इसलिए जाने से पहले उन की देखभाल के लिए घर की नौकरानी रेनू शर्मा को फोन कर के बुला लिया था. अपराह्न 2 बजे रेनू घर आ गई थी. रेनू के आते ही सभी लोग घर से निकल गए थे.

रेनू को आए अभी मात्र 15 मिनट ही हुए थे कि डोरबैल बज उठी. घंटी की आवाज सुन कर नौकरानी रेनू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर तरुण गोयल खड़ा था. रेनू तरुण को अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि वह घर का दामाद था. तरुण रेनू से बिना कुछ बोले कमला देवी के कमरे में चला गया.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. कुछ देर बैठने के बाद तरुण ने रेनू को बुलाया और चाय बनाने के लिए कहा. उस ने रेनू से कहा, “अम्माजी सो रही हैं इसलिए चाय बना कर वहीं रख देना, मैं ले लूंगा.”

रेनू किचन में चाय बनाने चली गई.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. तरुण ने जैसे ही कमरे में रखी अलमारी को खोला. आहट सुन कर कमला देवी जाग गईं. इस पर कमला देवी ने टोकते हुए कहा, “कौन है?”

तभी तरुण ने कहा, “नानी सास, कोई नहीं, मैं हंू.”

उन्होंने तेज आवाज में कहा, “अलमारी क्यों खोल रहे हो?”

इस पर तरुण ने कमरे में रखे पेचकस से उन के गले, छाती व पेट पर वार करने शुरू कर दिए. अचानक हुए हमले से कमला देवी की चीख निकल गई. उन्होंने शोर मचाया इस पर तरुण ने वाशबेसिन का शीशे को तोड़ दिया और उस के कांच से कमला देवी पर हमला कर उन्हें लहूलुहान कर दिया. हमले से बैड की चादर खून से रंग गई.

                                                                                                                                                क्रमशः

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 1

25 अप्रैल, 2023 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायालय के कक्ष-6 में गहमागहमी कुछ अधिक ही दिखाई दे रही थी. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) आजाद सिंह की अदालत में साल 2022 में फिरोजाबाद नगर में हुए बहुचर्चित कमला देवी मर्डर व लूट के संबंध में फैसला आने वाला था.

पूरे न्यायालय परिसर में पुलिस और अधिवक्ताओं की भीड़ दिखाई दे रही थी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकार भी वहां उत्सुकता से फैसले का इंतजार कर रहे थे. क्योंकि फैसला आते ही उन्हें ब्रेकिंग न्यूज जो बनानी थी.

न्यायाधीश ने दोपहर साढ़े 12 बजे जैसे ही न्यायालय में प्रवेश किया तो वहां मौजूद सभी लोग सम्मानस्वरूप अपनी जगह पर खड़़े हो गए. न्यायाधीश के कुरसी पर बैठते ही अदालत में मौजूद लोगों ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया. कुरसी पर बैठते ही न्यायाधीश ने अदालत के रीडर को इस केस से संबंधित पत्रावली पेश करने का आदेश दिया. दोनों ही पक्षों के वकील न्यायालय कक्ष में मौजूद थे. आरोपी तरुण गोयल को जेल से अदालत लाया गया था.

वकीलों की हुई जोरदार बहस

न्यायाधीश ने विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा को अपनी दलीलें पेश करने को कहा. इस पर शासन की ओर से पैरवी करते हुए अजय कुमार शर्मा ने कहा कि वे अब तक माननीय न्यायालय में 6 गवाहों को पेश कर चुके हैं. इन में चश्मदीद गवाह घर की नौकरानी रेनू शर्मा की गवाही शेष है.

अब तक के गवाहों के बयानों व अन्य सबूतों से साफ जाहिर है कि कोर्ट के कटघरे में तरुण गोयल नाम का जो व्यक्ति खड़ा है, उस ने ही रुपयों व गहनों के लालच में अपनी नानी सास 70 वर्षीय कमला देवी की उन के घर में घुस कर नृशंस तरीके से हत्या की थी. साथ ही घटना के समय घर में मौजूद नौकरानी रेनू शर्मा द्वारा विरोध करने पर उसे भी गंभीर रूप से घायल कर दिया और नकदी व गहने लूट कर ले गया.

घटना के समय मृतका के घर वाले पिक्चर देखने गए थे. इस बात की जानकारी आरोपी को थी, क्योंकि आरोपी के घर वाले भी उन के साथ गए थे.

“ये आरोप गलत है हुजूर. मेरे मुवक्किल को झूठा फंसाया जा रहा है,” बचाव पक्ष के अधिवक्ता लियाकत अली (विधि सहायक) ने अभियुक्त का बचाव करते हुए कहा, “अभियुक्त और घटना की रिपोर्ट लिखाने वाले अर्पित जिंदल आपस में रिश्तेदार हैं. अभियुक्त सैनेट्री का बिजनैस करता है और अर्पित ने अभियुक्त से पैसे उधार लिए थे और अब वह सैनेट्री के पूरे बिजनैस पर कब्जा करना चाहता है. इसी कारण अभियुक्त को झूठा फंसाया गया है.”

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल का बचाव करते हुए कहा, “अभियुक्त से दर्शाई गई बरामदगी के समय रिपोर्टकर्ता अर्पित जिंदल घटनास्थल पर उपस्थित नहीं था. सर्वप्रथम घटना देखने वाले पड़ोसी भाटियाजी को परीक्षित नहीं कराया गया है. घटना में बरामदशुदा नोट (रुपए) आदि की द्वितीय प्रति नहीं बनाई गई है. साथ ही प्रथम सूचना रिपोर्टकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए नोट व जेवरात का मिलान नहीं होता है.

“अभियुक्त का इस घटना से कोई संबंध नहीं है. इस के साथ ही विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट को किसी गवाह से पुष्ट नहीं कराया गया है. घटना के समय अभियुक्त अपने बिजनैस के सिलसिले में मार्केट गया हुआ था. इस प्रकार अभियोजन अपने बयान को संदेह से परे सिद्ध करने में पूरी तरह असफल रहा है. इसलिए अदालत से गुजारिश की जाती है कि आरोप से अभियुक्त तरुण गोयल को दोषमुक्त किया जाए.”

“मी लार्ड, मेरे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि कमला देवी की नृशंस हत्या उन के दामाद तरुण गोयल ने जेवरात व रुपए लूटने के उद्देश्य से ही की थी. विरोध करने पर नौकरानी रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल कर दिया था.”

“अदालत का वक्त जाया न करें. आप के पास इस केस से संबंधित जो भी सबूत हैं, पेश किए जाएं,” न्यायाधीश ने आदेश दिया.

“मी लार्ड, मैं इस केस की एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह रेनू शर्मा को अदालत में पेश करने की अनुमति चाहता हंू,” पीडि़त की ओर से पैरवी कर रहे विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने अदालत से दरख्वास्त करते हुए कहा.

“इजाजत है,” न्यायाधीश ने कहा.

नौकरानी की रही अहम गवाही

रेनू शर्मा गवाह के कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. तभी विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने उस से पूछा, “रेनू शर्मा, क्या आप बता सकती हैं कि जिस दिन तुम्हारी मालकिन का मर्डर हुआ था, उस समय तुम क्या कर रही थीं और तुमने क्या देखा?”

“जी, सर. घटना पहली अप्रैल, 2022 की है. मुझे कमला देवी ने फोन कर के बुलाया था. मैं घर पर दोपहर 2 बजे पहुंच गई थी. उस समय घर के लोग पिक्चर देखने भारत टाकीज गए हुए थे. मुझ से यह कह कर गए थे कि हम लोग जा रहे हैं, हमारे पीछे अम्मा का ध्यान रखना. इन लोगों के जाने के बाद सवा 2 बजे तरुण गोयल वहां आए थे, जोकि अम्माजी के धेवते दामाद लगते हैं. मैं ने ही दरवाजा खोला था. मैं इन्हें पहले से ही जानती थी. जब यह आए तो सीधे अम्माजी के कमरे में चले गए.

“तरुण गोयल ने मुझ से कहा कि चाय बना लो. फिर मैं किचन में चाय बनाने चली गई. उन्होंने कहा कि चाय वहीं रख दो मैं ले जाऊंगा, अम्मा सो रही हैं. चाय बनाने के बाद मैं दूसरे रूम में आराम करने चली गई. घटना के समय मैं गर्भवती थी, लेकिन बाद में हुए एक हादसे में मेरे पेट का बच्चा खराब हो गया.

“तरुण को अम्मा की हत्या करते देखने पर मैं वहां पहुंची और मैं ने तरुण से कहा, ‘तुम ने यह क्या कर दिया?’ इस पर तरुण ने मुझ से कहा, ‘तू अपना मुंह बंद रख, नहीं तो मैं तुझे भी मार दूंगा.’ फिर तरुण ने मुझ से कहा कि तुझे जिंदा छोडऩा बेकार है. तरुण गोयल ने मेरे सिर, बाजुओं व गले पर शीशा मार दिया, जिस से मेरे भी चोटें आईं. इस घटना में मुझे भी मारा और अम्माजी को भी मारा, जिस से चारों तरफ कपड़ों पर, बिस्तरों पर खून फैल गया था. मेरी चुन्नी व सूट पर खून फैल गया था.

“तब मैं ने तरुण गोयल से कहा कि मुझे छोड़ दो मेरी क्या गलती है तो तरुण गोयल ने कहा कि तुझे कैसे छोड़ सकता हंू तू तो असली गवाह है और तू तो गवाही दे देगी. चोट लगने से मैं जमीन पर बेसुध हो कर गिर पड़ी. तरुण गोयल वहां से चला गया. जब मुझे होश आया तो किचन से ही छज्जे के लिए जो रास्ता है वहां से पड़ोसी अंकल भाटियाजी का घर दिखाई देता है, मैं ने उन्हें आवाज दे कर बुलाया.”

“औब्जेक्शन मी लार्ड,” बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा, “क्या रेनू यह बता सकती हैं कि घर के लोग कौन सा शो देखने गए थे?”

इस पर रेनू शर्मा ने कहा कि मुझे नहीं पता कि ये लोग फिल्म का कौन सा शो देखने गए थे, न मैं ने उन से पूछा था. क्योंकि मैं घर की नौकरानी थी, मालिक नहीं.

“मी लार्ड मैं अदालत से दरख्वास्त करता हंू कि कमला देवी की हत्या व लूट तथा रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल करने के आरोपी तरुण गोयल को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए.” सरकारी वकील अजय कुमार शर्मा इतना कह कर अपने स्थान पर बैठ गए.

                                                                                                                                         क्रमशः

फरेब के जाल में फंसी नीतू

पूरी न हुई ख्वाहिश

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले रीतेश का अपना छोटा सा टेंट का कारोबार था. जिस के  लिए उस ने अपने 3 मंजिला मकान के नीचे वाले हिस्से में गोदाम बना रखा था. पहली मंजिल पर पत्नी स्मिता और 6 साल के बेटे यथार्थ के साथ वह खुद रहता था तो दूसरी मंजिल उस ने किराए पर उठा रखी थी, जिस में मझोले अपनी पत्नी शारदा के साथ रहता था. वह भी छोटामोटा काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

रीतेश की पत्नी स्मिता कानपुर के मूलगंज स्थित नौगढ़ खोयामंडी की रहने वाली थी. उस ने कानपुर विश्वविद्यालय से बीए किया था. उस के अलावा उस की 2 बहने और 2 भाई थे. सभी की शादियां हो चुकी थीं. स्मिता सब से छोटी थी, इसलिए वह बहुत लाड़प्यार से पली थी. सयानी होने पर घर वालों ने उस की शादी लखनऊ के रहने वाले टेंट कारोबारी रीतेश से कर दी थी.

रीतेश का पूरा परिवार कारोबारी था, इसलिए पढ़लिख कर उस ने भी अपना अलग कारोबार कर लिया था. लखनऊ में उस का अपना 3 मंजिला मकान था. यही सब देख कर स्मिता के घर वालों को लगा था कि रीतेश से शादी होने पर उस का जीवन हंसीखुशी से गुजर जाएगा. स्मिता पढ़ीलिखी भी थी और सुंदर भी, इसलिए पहली ही नजर में रीतेश और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था.

रीतेश से शादी कर के स्मिता लखनऊ आ गई. शादी के बाद कुछ दिन तो दोनों के बढि़या गुजरे. लेकिन उस के बाद दोनों के संबंध बिगड़ने लगे. जहां पहले बातबात में प्यार बरसता था, अब बातबात में झगड़ा होने लगा. इस की सब से बड़ी वजह थी रीतेश की नशे की लत. वह किसी एक चीज का आदी नहीं था. वह नशे के लिए गांजा और शराब तो पीता ही था, कुछ न मिलने पर भांग भी खा लेता था.

पति की नशे की लत से जहां स्मिता असहज रहने लगी थी, वहीं रीतेश चिड़चिड़ा हो गया था. बिना नशा के वह रह नहीं सकता था, जबकि स्मिता उसे इन सब चीजों से दूर रहने को कहती थी. यही वजह थी कि रीतेश शाम को नशे में झूमता घर लौटता तो स्मिता टोंक देती. उस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगता. स्मिता ने पति को सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा.

शादी के 3 सालों बाद रीतेश के यहां एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने यथार्थ रखा. बेटा पैदा होने के बाद उस का ध्यान पत्नी की ओर से बिलकुल हट गया. अब वह सिर्फ बेटे को ही प्यार करता था.

रीतेश और स्मिता के स्वभाव में काफी अंतर था. जहां स्मिता खुशदिल और जीवन में आगे बढ़ने के सपने देखने वाली थी, वहीं रीतेश की सोच सिर्फ नशे तक सीमित थी. उसे जितनी चिंता नशे की होती थी, उतनी काम की भी नहीं होती थी. यही वजह थी कि शाम होते ही दोस्तों के साथ उस की महफिल जम जाती थी.

अब वह स्मिता से ठीक से बात भी नहीं करता था. शायद इसीलिए स्मिता कुछ कहती तो वह अनसुना कर देता था. अगर सुन भी लेता तो उसे पूरा नहीं करता था. पति की यह लापरवाही स्मिता को बहुत बुरी लगती थी. इस पर स्मिता को भी गुस्सा आ जाता था और पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा होने लगता था.

इधर वह दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा ही महफिल जमाने लगा था. इन महफिलों का असर उस के कारोबार पर ही नहीं, घरगृहस्थी पर भी पड़ रहा था. क्योंकि नशे के चक्कर में उस का ध्यान दोनों चीजों से हट गया था. स्मिता की बातों पर तो ध्यान देना उस ने पहले ही बंद कर दिया था. अब लड़ाईझगड़े की भी चिंता नहीं रहती थी, इसलिए वह मन का मालिक हो गया था.

इन बातों को ले कर उस की किराएदार शारदा भी हंसती थी. स्मिता देख रही थी कि उस के किराएदार कितने प्यार और समझदारी से रहते थे, जबकि वे हमेशा लड़तेझगड़ते रहते थे.

एक दिन स्मिता ने रीतेश से बासमती चावल लाने को कहा तो शाम को रीतेश नशे में लड़खड़ाता खाली हाथ घर आ गया. उस की इस हरकत से उसे गुस्सा आ गया. उस ने गुस्से में पैर पटकते हुए कहा, ‘‘कितना कहा था कि यथार्थ बिना चावल के खाना नहीं खा रहा है, फिर भी तुम हाथ झुलाते चले आए. 2 दिनों से बेटा चावल नहीं खा रहा है. लेकिन तुम्हें क्या, तुम ने तो अपना नशा कर ही लिया.’’

‘‘भई, काम के चक्कर में चावल के बारे में भूल गया. कल ला दूंगा. अब रात में तो चावल बनाना नहीं है.’’ रीतेश ने कहा.

‘‘काम के चक्कर में नहीं, यह क्यों नहीं कहते कि नशे के चक्कर में भूल गया. काम भूल जाते हो, जबकि नशा करना नहीं भूलते.’’

‘‘आखिर मेरे नशे से तुम्हें इतनी परेशानी क्यों है?’’ रीतेश ने झुंझला कर पूछा.

‘‘क्योंकि तुम नशे के चक्कर में काम भूल जाते हो. यही हाल रहा तो एक दिन तुम यह भी भूल जाओगे कि तुम्हारी बीवी और बच्चे भी हैं. नशे के चक्कर में तुम ने कारोबार तो बरबाद कर ही दिया है, धीरेधीरे घरगृहस्थी भी बरबाद कर दोगे. अपने साथ के लोगों को देखो, सभी ने कितनी तरक्की कर ली है. एक तुम हो, आगे जाने के बजाय पीछे चले गए हो.’’

‘‘मैं जैसा भी हूं, अब वैसा ही रहूंगा. अगर तुम्हें मुझ से परेशानी है तो तुम अपना रास्ता बदल सकती हो.’’ कह कर रीतेश दूसरे कमरे में चला गया.

‘‘आज तो तुम चावल लाए नहीं, अगर कल भी नहीं लाए तो खाना नहीं बनेगा.’’ कह कर स्मिता बिना कुछ खाए सोने वाले कमरे में चली गई. रीतेश से भी उस ने खाने के लिए नहीं कहा. उस ने कपड़े बदले और सोने के लिए लेट गई. यह 22 अप्रैल की बात है.

यथार्थ पहले ही सो चुका था. स्मिता भी सोने के लिए लेट गई थी. रीतेश आगे वाले कमरे में लेटा था. पत्नी की किचकिच से परेशान रीतेश को नींद नहीं आ रही थी. जब काफी प्रयास के बाद भी उसे नींद नहीं आई तो उस ने उठ कर एक बार फिर शराब पी कि शायद नशे की वजह से नींद आ जाए. लेकिन शराब पीने के बाद भी उसे नींद नहीं आई.

करवट बदलतेबदलते रीतेश परेशान हो गया तो उस का पत्नी के करीब जाने का मन होने लगा. वह नशे में तो था ही, इसलिए शायद वह यह भूल गया कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो पत्नी से लड़ाईझगड़ा हुआ है. वह उसे अपने करीब कैसे जाने देगी. वह उठा और लड़खड़ाते हुए स्मिता के कमरे में पहुंच गया.

खाली पेट स्मिता को भी नींद नहीं आ रही थी. इसलिए जैसे ही रीतेश ने उसे जगाने की गरज से उस के ऊपर हाथ रखा, वह गुस्से में चीखी, ‘‘खाने तो दिया नहीं, अब सोने भी नहीं दोगे.’’

पत्नी के इस तरह चीखने से रीतेश समझ गया कि यहां रुकने से कोई फायदा नहीं है. यहां समझौता के बजाय लड़ाईझगड़ा ही होगा. उसे भी क्रोध आ गया, लेकिन वह बिना कुछ कहे ही बाहर आ गया. बाहर खड़े हो कर वह सोचने लगा कि उस की औकात इतनी भी नहीं रही कि वह पत्नी के पास सो सके. पत्नी उसे पति नहीं, उठल्लू का चूल्हा समझने लगी है. यह अपने आप को समझती क्या है. इसे लाइन पर लाना ही होगा.

रीतेश स्मिता को सबक सिखाने के बारे में सोच रहा था कि तभी उस की नजर सामने रखे हथौड़े पर चली गई. हथौड़े पर नजर पड़ते ही उस का इरादा खतरनाक हो उठा. उस ने हथौड़ा उठाया और कमरे में वापस आ गया. स्मिता आंख बंद किए लेटी थी. उसे क्या पता कि यहां क्या होने जा रहा है, इसलिए वह उसी तरह चुपचाप लेटी रही. रीतेश ने उस की इस लापरवाही का फायदा उठाया और उस पर हथौड़े से वार कर के इस तरह उसे खत्म कर दिया कि वह चीख भी नहीं पाई.

कमरे में खून ही खून फैल गया था. बिस्तर भी खून से तर हो गया था. उस के भी कपड़े खराब हो गए थे. उस ने पहले तो अपने ही नहीं, स्मिता के भी कपड़े बदले. बिस्तर बदला. उस के बाद कमरा साफ किया. स्मिता की लाश उस ने चादर से ढक दी. उस ने सोचा कि सुबह जल्दी उठ कर वह लाश को ठिकाने लगा देगा. लेकिन पत्नी की हत्या करने के बाद उसे यह चिंता होने लगी कि अब वह बचे कैसे? यही सोचते-सोचते वह सो गया तो सुबह देर से आंखें खुलीं.

23 अप्रैल की सुबह रीतेश जागा तो रात का पूरा दृश्य उस की आंखों के आगे घूमने लगा. वह उठ कर बैठ गया और सोचने लगा कि अब स्मिता की लाश का क्या करे. तभी किराएदार मझोले की पत्नी शारदा किसी काम से ऊपर आई. रीतेश को बाहर वाले कमरे में परेशान बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है भाईसाहब, आप कुछ परेशान लग रहे हैं? यथार्थ की मम्मी अभी नहीं उठीं क्या?’’

‘‘उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह अभी सो रही हैं.’’ कह कर रीतेश ने शारदा को टाल दिया.

शारदा और उस के पति मझोले ने रात में रीतेश और स्मिता के बीच जो झगड़ा हुआ था, सुना था. उन का यह रोज का मसला था, इसलिए वे बीच में नहीं बोलते थे. लेकिन जब उन्होंने रीतेश को परेशान देखा और स्मिता उन्हें दिखाई नहीं दी तो उन्हें संदेह हुआ. लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं.

कुछ देर बाद रीतेश का 6 साल का बेटा यथार्थ उठा तो उस ने भी मां के बारे में पूछा. तब रीतेश ने कहा, ‘‘बेटा, उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. अभी तुम उन्हें जगाना मत.’’

उस ने यथार्थ को खाने के लिए बिस्कुट और साथ में चाय दी. बेटे को चायबिस्कुट दे कर वह नीचे गोदाम में चला गया. उस का वहां भी मन नहीं लगा. वह स्मिता की लाश को ले कर काफी परेशान था. वह सोच रहा था कि किसी तरह से रात हो जाए तो वह उसे ठिकाने लगा दे. लेकिन रात होने से पहले ही उस की पोल खुल गई.

यथार्थ अकेला ही इधरउधर खेल कर टाइम पास कर रहा था. कुछ देर के बाद शारदा फिर ऊपर आई. उस ने यथार्थ को अकेला खेलते देख कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी कहां है?’’

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. पापा ने कहा है कि उन्हें जगाना मत.’’ यथार्थ ने कहा.

शारदा को संदेह तो पहले ही था कि कुछ गड़बड़ है. यथार्थ की बात सुन कर उस का संदेह गहराया तो वह अंदर आ गई, जहां स्मिता सो रही थी. उस ने स्मिता को तो नहीं देखा, लेकिन इधरउधर देखा तो वहां उसे खून के छींटे दिखाई दिए. वह भाग कर नीचे आई और उस ने सारी बात पति को बता दी.

इस के बाद मझोले ने इस बात की सूचना सआदतगंज कोतवाली को दे दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी समर बहादुर यादव ने 2 सिपाहियों को मामले का पता लगाने के लिए भेज दिया. दोनों सिपाही रीतेश के घर पहुंचे तो उन्हें देख कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. लेकिन उस ने खुद को जल्दी से संभाल कर पूछा, ‘‘आप लोग यहां, कोई खास काम है क्या?’’

‘‘क्या तुम हमें बताओगे कि तुम्हारी पत्नी कहां है?’’ एक सिपाही ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी की तबीयत खराब है, वह सो रही है. आप लोगों को उस से क्या काम पड़ गया, जो आप लोग उस के बारे में पूछ रहे हैं?’’ रीतेश ने कहा.

पुलिस वाले उस की बात का जवाब देने के बजाय किराएदारों के इशारा करने पर स्मिता के कमरे की ओर चल पड़े. इस पर रीतेश सिपाहियों के आगे खड़ा हो गया और उन्हें ऊपर जाने से रोकने लगा.  लेकिन सिपाही उसे धकिया कर ऊपर चले गए. स्मिता चारपाई पर लेटी थी. उसे चादर ओढ़ाई हुई थी. उस के शरीर से किसी तरह की हरकत नहीं हो रही थी. ऐसे में सिपाहियों को भी शक हुआ तो उन्होंने ऊपर पड़ी चादर हटा दी.

स्मिता की खून से सनी लगभग अर्धनग्न लाश सामने आ गई. सिपाहियों ने रीतेश को दबोच लिया. इस के बाद सिपाहियों ने हत्या की सूचना थानाप्रभारी को दे दी. थानाप्रभारी समर बहादुर यादव ने इस बात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. थोड़ी ही देर में रीतेश के घर थानाप्रभारी समर बहादुर यादव के साथ क्षेत्राधिकारी राजकुमार अग्रवाल पहुंच गए.

यथार्थ मां की खून से लथपथ लाश देख कर रोने लगा. वह पुलिस को कुछ बताने लायक नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे बाहर भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने रीतेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने घटना की सूचना स्मिता के भाई राजू द्विवेदी को दी तो वह कानपुर से लखनऊ आ गया. उस के पहुंचने पर पुलिस ने उस की ओर से स्मिता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने रीतेश की निशानदेही पर वह हथौड़ा और ड्रम में छिपाए गए खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. यथार्थ को पुलिस ने उस के मामा के हवाले कर दिया. इस के बाद रीतेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है, लेकिन अब उस के इस पश्चाताप से क्या हो सकता है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रेशमा की हंसी ने बुलाई मौत

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के डीआईजी निवास के नजदीक गौतम नगर की गली नंबर-9 में नन्हे अपनी पत्नी रेशमा और ढाई साल के बेटे व मां के साथ 2 कमरों के मकान में रहता था. 8 मई, 2023 की रात 11 बजे की बात है. नन्हे के पड़ोस में रहने वाली नाजमा की रसोई के शेड पर रात के करीब 11 बजे कुछ गिरने की आवाज आई, जिस से रसोई के ऊपर की सीमेंट की चादरें तक टूट गईं. नाजमा समझी कि घर में चोर आ गए, उस ने अपने परिवार के लोगों को उठाया और जोर से ‘चोर…चोर’ कहते हुए शोर मचा दिया.

शोर सुन कर आसपास के घरों से लोग निकल आए. उन्होंने तभी देखा कि नन्हे अपनी पत्नी रेशमा के बाल पकड़ कर खींचता हुआ अपने घर में ले गया था. उधर नाजमा व अन्य लोगों ने देखा कि रसोई का शेड टूटा हुआ नीचे पड़ा है, वहां पर खून भी पड़ा था. इस के अलावा जिधर से नन्हे अपनी पत्नी रेशमा को घसीट कर ले गया था, वहां पर खून की बूंदें दिखाई दे रही थीं. इकट्ठा हुए लोग यह जानने के लिए नन्हे के घर पहुंच गए थे कि आखिर हुआ क्या है.

खून देख कर लोगों को हुआ शक

नन्हे के घर का गेट अंदर से बंद था. लोगों ने नन्हे को आवाज लगाई और गेट खोलने को कहा. नन्हे बोला कुछ नहीं हुआ मेरी पत्नी रेशमा ने गुस्से में अपनी कलाई की नस काट ली है, वह अस्पताल गई है. पड़ोसी नाजमा ने आवाज दी, ‘‘नन्हे गेट तो खोल, तूने मेरी रसोई का शेड तोड़ दिया है, उसे अब कौन बनवाएगा.’’

इस के बाद नन्हे ने अपने घर का गेट खोल दिया. गेट खुलते ही वहां मौजूद लोग अंदर घर में दाखिल हो गए. उन्होंने नन्हे की पत्नी रेशमा को पूरे घर में तलाशा, वह नहीं मिली. लोगों ने इतना जरूर देखा कि मकान के सेप्टिक टैंक (गटर) के पास खून की बूंदें व खून साफ करने के निशान थे. लोगों को मामला गंभीर दिखा तो उसी समय किसी ने थाना सिविल लाइंस को फोन कर दिया.

उस समय एसएचओ गजेंद्र सिंह रात्रि गश्त की तैयारी कर रहे थे ड्राइवर गाड़ी में बैठा उन के आने का इंतजार कर रहा था. एसएचओ कमरे से बाहर आए. तभी ड्ïयूटी औफिसर ने उन्हें डीआईजी साहब के बंगले के पास गौतम नगर गली नंबर 9 में लोगों की भीड़ जमा होने की सूचना दी.

यह सुन कर एसएचओ सीधे गौतम नगर चले गए. पुलिस को देखते ही लोग अपनेअपने घरों में चले गए. कुछ लोग छतों पर खड़े हुए थे. एसएचओ गजेंद्र सिंह ने पूछा कि नन्हे का घर कौन सा है? लोगों ने इशारे से बताया, ‘‘साहब वो है.’’

नन्हे के मकान का गेट खुला था. पुलिस जब उस के घर में पहुंची तो घर में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. एक छोटा दोढाई साल का बच्चा सोता मिला. पूरा घर खाली था. पुलिस को देख नन्हे के घर में कुछ बुजुर्ग लोग भी आ गए थे. उन्होंने बताया, ‘‘साहब, नन्हे व उस की पत्नी रेशमा में झगड़ा हुआ था, सेप्टिक टैंक के पास ज्यादा खून पड़ा है.’’

एसएचओ गजेंद्र सिंह ने एक सिपाही से कह कर गटर का ढक्कन उठवाया तो उस में कंबल व अंदर कपड़े पड़े थे. उन्हें हटा कर देखा तो वहां मौजूद पुलिस व लोग सन्न रह गए. गटर के अंदर रेशमा की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. पुलिस ने शव को गटर से बाहर निकाला. रेशमा का गला काटा गया था.

नन्हे आया पुलिस हिरासत में

इस हत्याकांड की सूचना एसएचओ गजेंद्र सिंह ने अपने उच्च अधिकारियों को दी. सूचना मिलते ही मुरादाबाद के एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ अर्पित कपूर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी घटनास्थल की जांच की.

पुलिस के आने से पहले हत्यारा नन्हे घर से भाग गया था. एसएसपी हेमराज मीणा ने सीओ अर्पित कपूर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. पुलिस टीम आरोपी नन्हे की तलाश में जुट गई. पुलिस को 9 मई, 2023 को सफलता मिल गई.

मुखबिर की सूचना पर टीम ने भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी के केंद्रीय पुलिस अस्पताल के सामने से नन्हे को उस समय धर दबोचा, जब वह बाहर भागने की फिराक में था. थाना सिविल लाइंस में उच्च अधिकारियों के सामने नन्हे से पूछताछ की गई तो उस ने पत्नी की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पत्नी रेशमा के मर्डर की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

रेशमा नन्हे की थी दूसरी बीवी

मुरादाबाद शहर के गौतम नगर निवासी नन्हे की पहली शादी काशीपुर निवासी नाजनीन से हुई थी. नन्हे ईरिक्शा चलाता था. पहली पत्नी नाजनीन से 2 बेटियां पैदा हुईं. किसी वजह से दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा तो एक दिन गुस्से में नाजनीन अपनी छोटी बेटी को ले कर अपने मायके काशीपुर चली गई. उस ने नन्हे के साथ रहने को मना कर दिया. बड़ी बेटी नन्हे की बड़ी बहिन के पास है.

पत्नी के वापस न आने की शिकायत नन्हे ने थाना सिविल लाइंस में भी की. पुलिस ने नाजनीन को काशीपुर से थाने बुलाया. थाने में ही नाजनीन ने पति के साथ न रहने की बात दोहरा दी. तब नन्हे ने उसे तलाक दे दिया. यह बात करीब ढाई साल पहले की है.

पत्नी से तलाक के बाद नन्हे अकेला हो गया. फिर करीब 2 साल पहले जिला बिजनौर के कस्बा नेहटौर के कासमपुर लेखराज बाग निवासी रेशमा से निकाह कर लिया था. रेशमा भी पहले से शादीशुदा थी. उस के भी 2 बच्चे थे.

रेशमा की पहले लव मैरिज हुई थी. बदायूं निवासी कन्हैया नाम के युवक के पिता नेहटौर, बिजनौर में लेखराज बाग में आम के बाग की रखवाली करते थे. आम के बाग में कन्हैया भी अपने पापा के साथ ही रहता था.

कन्हैया गठे शरीर का गबरू इंसान था. वह गांव में स्थित दुकान से अकसर घरेलू खानेपीने का सामान लेने जाता था. वहीं पर खूबसूरत रेशमा से उस की आखें चार हुईं. दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. बाग का एकांत क्षेत्र दोनों के मिलने के लिए काफी मुफीद था. नैन मटक्का होतेहोते दोनों में शारीरिक संबंध बन गए थे.

अवैध संबंध हो जाने के बाद एक दिन कन्हैया व रेशमा दोनों गायब हो गए थे. उस के बाद दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. रेशमा उस के साथ हंसीखुशी रह रही थी. वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. बाद में रेशमा अकसर अपने मायके में रहने लगी थी. यह बात कन्हैया को पसंद नहीं थी. जिस कारण कन्हैया व रेशमा में झगड़ा रहने लगा था. रेशमा का बड़ा बेटा अपने पिता कन्हैया से बहुत लगाव रखता था.

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रेशमा ने भी छोड़ रखा था पहला पति

रेशमा के अब्बू मेहंदी हसन का पहले ही इंतकाल हो चुका था. रेशमा का छोटा बेटा उस समय गोद में था. उस के बाद से रेशमा अपनी ससुराल नहीं गई थी. कन्हैया व रेशमा के बीच संबंध बिलकुल खत्म हो गए थे.

उधर रेशमा की अम्मी नसीमा ने अपने एक परिचित की मदद से नन्हे की मां छोटी से संपर्क साधा कि तुम्हारा बेटा भी अपनी पहली पत्नी नाजनीन को तलाक दे चुका है, मेरी बेटी रेशमा भी अपने पहले पति से अलग हो गई. इसलिए क्यों न नन्हे और रेशमा का निकाह कर दिया जाए.

करीब 2 साल पहले नन्हे ने नेहटौर जिला बिजनौर की रेशमा से निकाह कर लिया. नन्हे रेशमा को पा कर बहुत खुश था, क्योंकि रेशमा बला की खूबसूरत थी. नन्हे रेशमा से बहुत प्यार करता था. नन्हे ईरिक्शा चला कर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने में लगा रहता था. थकाहारा नन्हे घर आ कर खाना खा कर सो जाता था.

रेशमा कहीं अपने घर या रिश्तेदारों में हंसहंस कर फोन पर बात करती तो नन्हे को शक पैदा होता था कि उस का किसी गैरमर्द से जरूर कोई चक्कर चल रहा है. इसी बात को ले कर अकसर नन्हे और रेशमा में झगड़ा होता रहता था. शक आदमी को पागल बना देता है, ऐसा ही नन्हे के साथ हुआ था. नन्हे द्वारा पत्नी के चरित्र पर शक करने के बाद रेशमा ने भी नन्हे से दूरी बनानी शुरू कर दी. नन्हे रेशमा की बेवफाई से परेशान था. सुंदर होना भी उस के लिए एक अभिशाप बन गया था.

आदमी की फितरत ही कुछ ऐसी होती है कि सुंदर पत्नी यदि किसी से हंस कर बात कर ले या फोन पर ज्यादा परिवार वालों से बात कर ले तो वह शक करने लगता है. नन्हे के मन में शक ज्यादा गहराने लगा था. घर में आए दिन झगड़े होने लगे थे.

पति को होने लगा रेशमा पर शक

8 मई, 2023 की रात करीब 11 बजे से पहले भी रेशमा के चरित्र को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. नन्हे का शक इतना बढ़ गया था कि वह कुछ भी करने को तैयार था. उस दिन नन्हे की मां अपनी छोटी लडक़ी शहनाज की ससुराल काशीपुर, उत्तराखंड गई हुई थी. घर में रेशमा के पहले पति कन्हैया से पैदा ढाई साल का बेटा ही मौजूद था.

उस दिन नन्हे खाना खा कर सोने चला गया था. उस की पत्नी रेशमा भी अपने बच्चे के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई थी. उधर नन्हे की नींद जैसे कोसों दूर हो चुकी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. मन में तरहतरह के विचार आ रहे थे.

वह उठा व घर में रखा छुरा उठा कर दूसरे कमरे में सो रही रेशमा के पास पहुंच गया. उस ने उस की गरदन जैसे ही छुरा से रेतनी शुरू की रेशमा की नींद खुल गई. पूरा जोर लगा कर रेशमा ने नन्हे को पलंग से नीचे गिरा दिया और वह कमरे से बाहर आ गई थी.

घायल अवस्था में छत से कूद गई थी रेशमा

जान बचाने का रास्ता नहीं था. घायल रेशमा भाग कर मकान की सीढिय़ों पर चढ़ गई. वहां से उस ने बराबर में रहने वाली नाजमा के घर में छलांग लगा दी. वह घर में न गिर कर गली में गिर गई. ठीक उसी समय नन्हे भी पीछा करते हुए वहां पहुंचा. उस ने भी पड़ोसी के घर में छलांग लगा दी. वह नाजमा की रसोई, जिस की छत सीमेंट के चादरों की थी, पर जा कर गिरा. उस के कूदते ही रसोई का शेड धड़ाम से टूट कर नीचे गिरा. बहुत जोर की आवाज हुई.

शोर सुन कर नाजमा ने समझा कि घर में चोर आ गए हैं, उस ने शोर मचा दिया. चोरचोर सुनते ही पड़ोसी लोग अपनेअपने घरों से निकल आए. नाजमा और पड़ोसियों ने देखा नन्हे रेशमा के बाल पकड़ कर खींचते हुए अपने घर में ले गया. वहां घायल रेशमा नन्हे के पैरों पर पड़ कर अपनी जान की भीख मांगने लगी. नन्हे पर भूत सवार था. उस ने एक झटके में रेशमा का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

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आननफानन में नन्हे ने अपने सेप्टिक टैंक (गटर) का ढक्कन उठा कर रेशमा के शव को उस में डाल कर ऊपर से कंबल व अन्य कपड़े डाल दिए. जो खून घर में पड़ा था जो उसे दिखाई दिया, उसे उस ने साफ कर दिया था.

मोहल्ले वाले जब पुलिस बुलाने की कोशिश कर रहे थे तो पुलिस के आने से पहले ही नन्हे फरार हो गया था. पुलिस ने रेशमा की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को दी. रेशमा की अम्मी नसीमा सूचना मिलते ही अपने बड़े बेटे नाजिम व छोटी बेटी व बहनोई को ले कर मुरादाबाद आ गई. रेशमा की लाश देख कर घर के लोगों का रोरो कर बुरा हाल था.

रेशमा की अम्मी नसीमा ने थाना सिविल लाइंस में नन्हे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. पोस्टमार्टम के बाद रेशमा का शव अपने घर नेहटौर ले कर चली गई थी. साथ में रेशमा का ढाई साल का बेटा भी अपने साथ ले गई थी. वहां जा कर उन्होंने रेशमा को दफन कर दिया था. नन्हे से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 9 मई, 2023 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

सपना का अधूरा सपना

जलन में जल गया पूरा परिवार

रांची में एक जगह है कोकर. वैसे तो यह इंडस्ट्रियल एरिया है, लेकिन इसी से लगा कुछ रिहाइशी इलाका भी है. रांचीझारखंड की राजधानी है, इसलिए इस शहर का विकास तेजी से हो रहा है. कोकर चौक से कांटा टोली की ओर जाने वाली सडक़ पर एक हाउसिंग सोसायटी है, जिसे लोग रिवर्सा अपार्टमेंट के नाम से जानते हैं. यह काफी ऊंची और शानदार बिल्डिंग है. जब इमारत बड़ी और सुंदर होगी तो उस में रहने वाले भी बड़े लोग ही होंगे.

इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 में डा. सुकांत सरकार अपने परिवार के साथ रहते थे. डा. सुकांत सरकार डाक्टर तो थे ही, आर्मी से रिटायर भी थे, इसलिए लोग उन की काफी इज्जत करते थे. समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. इस की एक वजह यह भी थी कि वह सामाजिक आदमी थे और हर छोटेबड़े का सम्मान करते थे. मिलनसार स्वभाव वाले होने की वजह से हर किसी से मिलतेजुलते और बातचीत करते रहते थे. इसीलिए लोग उन्हें काफी मानसम्मान देते थे.

उन का बेटा था सुमित सरकार, जो नोएडा की एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पर पर नौकरी करता था. सुमित ने नोएडा में अपना मकान ले रखा था. नोएडा में अपना मकान होने की वजह से डा. सुकांत सरकार पत्नी के साथ कभी रांची में रहते थे तो कभी बेटे के पास नोएडा जा कर रहते थे. इस तरह इस परिवार का नोएडा और रांची आनाजाना लगा रहता था. सब से बड़ी बात तो यह थी उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी.

साल 2006 में डा. सुकांत सरकार ने खूब धूमधाम से बेटे सुमित का विवाह कोलकाता की मधुमिता के साथ किया. मधुमिता पढ़ीलिखी संस्कारी लडक़ी थी, इसलिए ससुराल आ कर उस ने घर को संभाल लिया. फिर परिवार ही कौन बड़ा था. कुल 4 लोगों का ही तो परिवार था. सब पढ़ेलिखे व्यवस्थित थे.

मधुमिता एक अच्छी, कुशल और संस्कारी बहू साबित हुई थी, इसलिए पति ही नहीं, सासससुर भी उसे प्यार तो करते ही थे, उस का सम्मान भी करते थे. उसे वे बेटी की तरह रखते थे. अब घर में वही सब होता था, जो वह चाहती थी. वह भी इस बात का खयाल रखती थी कि उस से ऐसा कोई काम न हो, जिस से घर के किसी सदस्य को किसी तरह की ठेस पहुंचे. वह कभी सासससुर के साथ रांची में रहती तो कभी पति के साथ नोएडा में. कुछ सालों बाद उसे एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम रखा गया शमिता.

इस परिवार में सब बढिय़ा चल रहा था. छोटा परिवार था, इसलिए सभी हंसीखुशी से रहते थे. ऐसे में ही 9 अक्तूबर, 2016 को इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 से यानी सुकांत सरकार के फ्लैट से एक भयानक खबर निकल कर बाहर आई और वह खबर यह थी कि सुकांत सरकार के फ्लैट में एक साथ 5 लोगों की मौत हो गई है और सुकांत सरकार बुरी तरह घायल हैं.

रांची शहर में फैल गई थी सनसनी

जिन लोगों की मौत हुई थी, उन में सुकांत सरकार की 60 साल की पत्नी अंजना सरकार, उन का 35 साल का बेटा सुमित सरकार, सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव की पत्नी मोमिता सरकार और बेटे की बेटी शमिता तथा भतीजे की बेटी सुमिता शामिल थी.

इस तरह अचानक 5 लोगों की मौत और घर के मुखिया के बुरी तरह से घायल होने की खबर से अपार्टमेंट में ही नहीं, पूरे रांची शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना के बारे में जिस ने भी सुना था, वह हक्काबक्का रह गया था. एक तरह से यह बहुत ही दुखद और दिल दहलाने वाली घटना थी.

इस की जानकारी लोगों को तब हुई, जब पुलिस अपार्टमेंट पर पहुंची थी और पुलिस को सूचना सुकांत सरकार के इसी शहर में रहने वाले भांजे ने दी थी. हुआ यह था कि भांजे ने पहले मामा सुकांत सरकार को फोन किया. जब उन का फोन नहीं उठा तो उस ने परिवार के अन्य लोगों को फोन किया. जब अन्य किसी का भी फोन नहीं उठा तो उसे चिंता हुई.

किसी एक का फोन न उठे तो सोचा जा सकता है कि वह कहीं व्यस्त होगा, इसलिए फोन नहीं उठा रहा है. लेकिन जब घर में कई लोग हों और किसी का भी फोन न उठे तो चिंता होगी ही. उस से रहा नहीं गया और वह मामा सुकांत सरकार के घर जा पहुंचा. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने घंटी बजाई, दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा खटखटाने पर भी नहीं खुला तो उस ने पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलते ही थाना सदर पुलिस रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 पर पहुंच गई. पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब सभी अंदर गए तो अंदर का दृश्य भयानक था. घर के अंदर एक कमरे में 5 लाशें पड़ी थीं, जिन में सुकांतो के बेटे, पत्नी, भतीजे की पत्नी और 2 बच्चियों की लाशें थीं. पर इन के शरीर पर किसी भी तरह की चोट वगैरह का कोई निशान नहीं था.

दूसरे कमरे में अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन की सांसें अभी चल रही थीं. पर वह बुरी तरह घायल थे. उन का पूरा शरीर खून से लथपथ था. उन के पास एक बड़ा सा चाकू पड़ा था. चाकू पर भी खून लगा था. साफ लग रहा था उसी चाकू से उन पर वार हुए थे.

पुलिस ने तुरंत सुकांत सरकार को अस्पताल भिजवाया कि शायद समय पर इलाज मिलने से उन की जान बच जाए, पर अस्पताल पहुंचने के कुछ समय बाद जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आखिर उन की भी सांसें थम गईं यानी उन की भी मौत हो गई थी. इस तरह एक ही परिवार के 6 लोगों की एकाएक मौत हो गई थी.

पुलिस को मिले बहू द्वारा प्रताडि़त करने के सबूत

पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुला कर सारे साक्ष्य एकत्र कराए. इस के बाद बाकी की पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया. अब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. क्योंकि उसी से पता चलता कि इन लोगों की मौत कैसे हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि जिन 5 लोगों की पहले मौत हुई थी, उन्हें एनेस्थेसिया की ओवरडोज तो दी ही गई थी, साथ ही उन्हें इंजेक्शन से कोई जहर भी दिया गया था. अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन के पेट पर चाकू के 14 घाव थे और इसी वजह से उन की मौत सब से बाद में अस्पताल जा कर हुई थी.

पुलिस ने परिवार वालों से पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में पता चला कि जिस समय यह घटना घटी थी, सुकांत सरकार की बड़ी बहू यानी सुमित सरकार की पत्नी मधुमिता सरकार नोएडा में थी. इसलिए वह बच गई थी. जबकि उस के पति की रांची में होने की वजह से मौत हो गई थी.

फ्लैट की तलाशी में पुलिस को कुछ ऐसे कागजात मिले थे, जिस से साफ पता चल रहा था कि यह पूरा परिवार बहू की प्रताडऩा से परेशान था. परिवार वालों से पूछताछ में भी यह बात सामने आई थी. आगे की जांच और पूछताछ में जो कहानी निकल कर सामने आई थी, वह बहुत ही अजीबोगरीब थी.

जैसा कि शुरू में बताया गया है कि जब मधुमिता इस घर में ब्याह कर आई थी तो इस घर में वह ढेरों खुशियां ले कर आई थी. क्योंकि मधुमिता एक बहुत अच्छी बहू साबित हुई थी. हर किसी का खयाल रखने वाली, हर किसी की हर बात सुनने वाली. जिस तरह वह हर किसी का खयाल रखती थी, उसी तरह घर का हर सदस्य उस का भी खयाल रखता था. उस के बातव्यवहार से सरकार परिवार उस पर अपनी जान छिडक़ता था.

छोटी बहन के देवरानी बनने पर हुई कलह शुरू

मधुमिता की एक छोटी बहन थी मोमिता, जो कोलकाता के एक आश्रम में रहती थी. क्योंकि घर में उन की मां नहीं थी. मधुमिता ने जब यह बात अपनी ससुराल वालों को बता कर उसे अपने साथ अपने घर लाने को कहा तो चूंकि मधुमिता ने खुद को अच्छी बहू साबित कर दिखाया था, इसलिए उस की ससुराल वाले उसे बहन को अपने घर लाने से मना नहीं कर सके. उन्होंने कहा था कि वह अपनी बहन को बिलकुल ले आए. वह भी उन के घर एक बेटी की तरह रहेगी.

ससुराल वालों से परमिशन मिलने के बाद मधुमिता अपनी छोटी बहन मोमिता को अपने घर ले आई थी. मोमिता भी कभी रांची तो कभी नोएडा में बहनबहनोई के साथ रहने लगी थी. धीरेधीरे मोमिता ने भी अपनी बड़ी बहन की ही तरह अपने बातव्यवहार और कामों से सरकार परिवार का दिल जीत लिया.

उस ने सरकार परिवार का ऐसा दिल जीता कि सरकार परिवार ने उसे भी अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया. इस के बाद सुकांत सरकार ने मोमिता का विवाह अपने भतीजे पार्थिव सरकार के साथ करा दिया. इस तरह मधुमिता की छोटी बहन मोमिता सुकांत सरकार के घर की दूसरी बहू बन गई. मोमिता का विवाह भले ही सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव के साथ हुआ था, पर वह रहती थी सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही.

पार्थिव अलग रहता था, इसलिए कभी वह अपने चाचा के घर आ जाता था तो कभी मोमिता अपने पति के साथ उस के घर रहने चली जाती थी. उस का आनाजाना लगा रहता था, लेकिन वह ज्यादातर सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही रहती थी  इस तरह सुकांत सरकार के परिवार में अब 7 लोग हो गए थे. वह खुद, उन की पत्नी अंजना, बेटा सुमित, दोनों बहुएं और दोनों बहुओं की एकएक बेटियां.

धीरेधीरे एक समय ऐसा आ गया, जब सरकार परिवार छोटी बहू यानी मधुमिता की छोटी बहन मोमिता पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. यानी लोग उस से ज्यादा प्यार करने लगे, उस का ज्यादा खयाल रखने लगे. अब घर में चलती भी उसी की ज्यादा थी. घर में मधुमिता से उस की तुलना होने लगी.

घर में जब उस का मानसम्मान ज्यादा होने लगा तो मधुमिता को इस से जलन होने लगी. इस की वजह यह थी कि मोमिता ने अपने कामों और बातव्यवहार से सब का दिल जीत लिया था. सभी के लिए वह हर वक्त एक पैर पर खड़ी रहती थी. कहा भी जाता है कि काम प्यारा होता है शरीर नहीं. यह बात सच साबित हुई थी.

मधुमिता छोटी बहन को समझने लगी दुश्मन

बस, यहीं से दोनों बहनों, जो अब जेठानी और देवरानी बन चुकी थीं, के बीच नफरत ने जन्म ले लिया. जिस की लपेट में धीरेधीरे पूरा परिवार आ गया. मधुमिता यानी सुमित की पत्नी इस जलन की लपटों में कुछ इस तरह झुलसी कि उस ने अपने पति और अपनी ही सगी बहन पर यह इलजाम लगा दिया कि उस के पति के अपने छोटे भाई की पत्नी मोमिता के बीच अवैध संबंध हैं.

इस नाजायज संबंधों की बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर मधुमिता यह भी कहने लगी कि मोमिता के नाजायज संबंध अपने ससुर यानी उस के ससुर सुकांत सरकार से भी हैं. जब इस तरह के झूठे इलजाम एक प्रतिष्ठित परिवार के लोगों पर लगाया जाएगा तो सोचिए उस परिवार पर क्या बीतेगी, परिवार वालों का क्या हाल होगा? बहू द्वारा लगाए गए इस इल्जाम से पूरा सरकार परिवार हिल गया था.

इतना ही नहीं, मधुमिता बारबार दहेज उत्पीडऩ का केस दर्ज कराने की भी धमकी देने लगी थी. वह खुद तो धमकी देती ही थी, कई एनजीओ यानी स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से भी सरकार परिवार को चेतावनियां या यह कहिए कि धमकियां दी जाने लगी थीं कि वे लोग मधुमिता को परेशान न करें.

इस तरह की बातें कर के एक तरह से सरकार परिवार को डराया जाने लगा था. अकसर उन के घर पुलिस भी आने लगी थी, जो कभी समझाती तो कभी कहती कि आप लोग पढ़ेलिखे प्रतिष्ठित लोग हैं, फिर भी बहू को परेशान करने जैसी ओछी हरकत करते हैं.

कभीकभी उन लोगों को थाने भी जाना पड़ता था, जहां उन्हें जलील किया जाता, बेइज्जती की जाती. मधुमिता ने पति, सासससुर पर कई मुकदमे दर्ज करवा दिए थे, जिन में दहेज उत्पीडऩ और प्रताडि़त करने वाले थे.

बहू की प्रताडऩा से परेशान हुआ परिवार

सुकांत सरकार ही नहीं, उन का पूरा परिवार इस तरह की बातों से शर्मिंदगी महसूस करता. क्योंकि वह जो सफाई देते, उन की बातों पर कोई विश्वास नहीं करता. इस से पूरा परिवार दिमागी रूप से इतना परेशान रहने लगा था. उन की कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

कभी वे सभी मधुमिता से पूछते भी कि वह ऐसा क्यों कर रही है तो वह कोई जवाब भी नहीं देती थी. इस तरह कभी घर की अच्छी कही जाने वाली बहू ने ही पूरे परिवार की जिंदगी में उथलपुथल मचा दी थी. एक तरह से सभी का जीना हराम कर दिया था.

और इसी सब का परिणाम आया था 9 अक्तूबर, 2016 को, जब घर के 6 लोगों ने एक साथ मौत को गले लगा लिया था. एक दिन पहले सुकांतो सरकार ने संकेत भी दिया था कि अगर घर के हालात ऐसे ही रहे तो वह कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि कोई सोच भी नहीं सकता.

लेकिन किसी को न तो पता था और न ही विश्वास था कि इस घर से एक साथ 6 लाशें उठेंगी यानी और 6 लोगों की जान चली जाएगी. लेकिन 9 अक्तूबर को कुछ ऐसा ही हुआ. इस तरह 6 लोगों का मौत को गले लगाना दिल दहलाने वाली घटना थी.

पुलिस जांच में घर में जो कागजात मिले थे, उन से मौतों की वजह का पता चल गया था. इन मौतों का सारा इलजाम घर की बड़ी बहू मधुमिता पर लगाया गया था. उसी की ओर इशारा किया गया था कि यह जो कुछ भी हुआ है, उसी की वजह से हुआ है.

जांच में पता चला था कि सभी की रजामंदी के बाद डा. सुकांत सरकार ने ही सभी को पहले एनेस्थेसिया की ओवरडोज का इंजेक्शन लगाया था. बच्चियां किस के सहारे रहेंगी, इसलिए उन्हें भी एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगा दिया गया था. एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगाने के बाद जहर का भी इंजेक्शन लगाया गया था, जिस से कोई न बचे. इस के बाद डा. सुकांत सरकार ने खुद पर चाकू से 14 वार किए थे.

7 साल बाद पुलिस के हत्थे चढ़ी बड़ी बहू

इस मामले की जांच में लगी पुलिस ने कागजों में जो लिखा था, रिश्तेदारों तथा परिचितों से इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि इन मौतों के लिए मधुमिता ही जिम्मेदार है. पुलिस के हाथ जो सबूत लगे थे, उस से साफ हो गया था कि मधुमिता की ही वजह से पूरे परिवार की मौत हुई थी. उसी की प्रताडऩा से तंग आ कर परिवार ने मौत को गले लगाने का निर्णय लिया था.

इस के बाद पुलिस ने मधुमिता पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया और उसे गिरफ्तार करने नोएडा जा पहुंची. क्योंकि पुलिस के पास नोएडा का ही पता था. पर वह वहां से फरार हो चुकी थी. पुलिस मामले की जांच करते हुए सबूत भी जुटाती रही, साथ ही मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती रही.

कभी इस मामले की फाइल धूल खाती रहती तो कभी कोई अधिकारी मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश में नोएडा में छापा मार देता, क्योंकि पुलिस के पास उस का केवल वहीं का पता था. लेकिन इधर पुलिस को पता चला कि मधुमिता कोलकाता में रह रही है. पुलिस ने जब उस की तलाश कोलकाता में शुरू की तो उस का सही पता ही नहीं मिल रहा था. कभी पता मिल भी जाता तो पुलिस के पहुंचने से पहले वह ठिकाना बदल चुकी होती.

लेकिन जून, 2023 में पुलिस को उस का कोलकाता का सही पता मिल गया तो रांची पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पहले उसे कोलकाता की अदालत में पेश किया गया, जहां से ट्रांजिट रिमांड पर उसे रांची लाया गया है. रांची में उसे सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

पुलिस अब एक एनजीओ की संचालिका गिताली चंद्रा के बारे में जांच कर रही है कि इस मामले में उन की तो कोई भूमिका नहीं थी.

कलयुगी बेटा : मां के बुढ़ापे का सहारा बना हत्यारा

मेनगेट का ताला खुला देख कर राधा समझ गई कि मनीष आ गया है, क्योंकि घर की चाबियां मनीष के पास भी होती थीं. उतने बड़े घर में मांबेटा ही रहते थे, इसलिए दोनों अलगअलग चाबियां रखते थे कि किस को कब जरूरत पड़ जाए.

राधा ने अंदर आ कर बाजार से लाया सामान किचन में रखा और हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ी. वह मनीष के कमरे के सामने से गुजरी तो अंदर से मनीष के साथ लड़की के हंसने की आवाज उसे सुनाई दी. उस के कदम वहीं रुक गए और माथे पर बल पड़ गए.

वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई, ‘‘मनीष आज फिर नेहा को ले आया है. इस का मतलब यह हुआ कि वह मानने वाला नहीं है.’’

बेटे की इस मनमानी से नाराज राधा उस के कमरे में घुस गई. अंदर उस ने जो देखा, उस से एक बार उसे पलट कर बाहर आना पड़ा. अंदर पड़े बैड पर नेहा अपनी दोनों बांहें मनीष के गले में डाले गोद में बैठी थी.

राधा को देख कर दोनों भले ही अलग हो गए थे, लेकिन उन के चेहरों पर शरम की परछाई तक नहीं थी. वे कमरे से बाहर आए तो राधा ने कहा, ‘‘तू आज फिर इस लड़की को घर ले आया. मैं ने कहा था न कि मुझे यह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए इसे घर मत ले आना.’’

‘‘मम्मी, नेहा आप को भले नहीं पसंद, पर मुझे तो पसंद है. आप तो जानती हैं कि मैं इसे बहुत प्यार करता हूं, इसलिए शादी भी इसी से करूंगा.’’ मनीष ने राधा के नजदीक जा कर कहा.

‘‘अगर तुम्हें अपने मन की करना है तो करो. लेकिन जिस दिन तुम ने इस लड़की से शादी की, उसी दिन तुम से मेरा संबंध खत्म.’’ राधा ने गुस्से में कहा.

मांबेटे के इस झगड़े से नेहा खुद को काफी असहज महसूस कर रही थी. इसलिए वह मनीष के पास जा कर बोली, ‘‘मनीष, अभी मैं जा रही हूं. कल कहीं बाहर मिलना, वहीं बाकी बातें करेंगे.’’

नेहा की इस बात से राधा को तो गुस्सा आया ही, मां ने प्रेमिका का अपमान किया था, इसलिए मनीष को भी गुस्सा आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, नेहा से शादी करने में तुम्हें परेशानी क्या है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती?’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारी खुशी के लिए न जाने क्याक्या किया है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए उस लड़की को नहीं छोड़ सकते?’’ राधा ने व्यंग्य से कहा.

‘‘नेहा को छोड़ना मेरे लिए आसान नहीं है. अगर आसान होता तो मैं कब का छोड़ देता.’’

‘‘इस का मतलब तुम मुझे छोड़ सकते हो, उसे नहीं. सोच लो, तुम्हें दोनों में से एक का ही साथ मिलेगा. चाहे मां के साथ रह लो या उस लड़की के साथ. अगर तुम ने उस लड़की से शादी की तो मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा. मैं तुम्हें अपने इस घर में भी नहीं रहने दूंगी. यही नहीं, मेरे पास जो कुछ भी है, उस में से भी तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी.’’ इस तरह राधा ने अपना निर्णय सुना दिया.

मां की इन बातों से मनीष परेशान हो उठा. क्योंकि पिता की मौत के बाद सारी संपत्ति की मालकिन उस की मां ही थी. उस के लिए इस से भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि वह पूरी तरह मां पर ही निर्भर था. अगर मां हाथ खींच लेती तो वह पाईपाई के लिए मोहताज हो जाता. जबकि बिना शराब के उसे नींद नहीं आती थी. सिगरेट तो वह पलपल में पीता था.

मनीष ही नहीं, राधा भी कम परेशान नहीं थी. वह उस का एकलौता बेटा था. 5 बेटियों के बाद वह न जाने कितनी मन्नतें मांगने के बाद पैदा हुआ था. बेटा पैदा होने पर राधा और उन के पति लालाराम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.   लेकिन बेटे से उन्होंने जो उम्मीदें पाल रखी थीं, अधिक लाडप्यार ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. बेटे की ही चिंता में राधा को नींद नहीं आ रही थी. देर रात तक करवट बदलते हुए किसी तरह वह सोई तो फिर सुबह उठ नहीं पाई.

सुबह मनीष उठा तो मां नहीं उठी थी. जबकि हमेशा वह उस से पहले उठ जाती थी. उस ने मां के कमरे में जा कर देखा, वहां की स्थिति देख कर वह सन्न रह गया. राधा की खून में डूबी लाश पड़ी थी. मां को उस हालत में देख कर वह घबरा गया.

उस ने तुरंत थाना जगदीशपुरा पुलिस को मां की हत्या की सूचना दी. इस के बाद उस ने पड़ोस में रहने वाले डा. प्रदीप श्रीवास्तव को मां की हत्या के बारे में बताया. इस के बाद तो यह खबर पूरी कालोनी में फैल गई.

मनीष की एक बहन स्नेहलता उसी कालोनी में रहती थी. मनीष ने उसे भी मां के कत्ल की सूचना दे दी थी. आते ही वह मनीष से लिपट कर रोने लगी. वह उसे झिंझोड़ कर पूछने लगी, ‘‘भैया, किस ने किया मम्मी का कत्ल, उस ने किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘दीदी, मैं तो खाना खा कर सो गया था. सुबह उठा तो मम्मी को इस हालत में पाया?’’ रोते हुए मनीष ने कहा.

लोग बहनभाई को सांत्वना दे रहे थे. राधा के अन्य रिश्तेदारों को भी उस के कत्ल की सूचना दे दी गई थी. नजदीक रहने वाले रिश्तेदार आ भी गए थे.

थाना जगदीशपुरा के थानाप्रभारी आदित्य कुमार भी पुलिसबल के साथ आ गए थे. उन की सूचना पर एएसपी शैलेश कुमार पांडेय भी आ गए थे. राधा की लाश जमीन पर पड़ी थी. उस के सिर, गरदन और चेहरे पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. गले पर अंगुलियों के भी निशान थे.

राधा की उम्र 65 साल के आसपास थी. शरीर पर सारे गहने मौजूद थे. कमरे का भी सारा सामान अपनी जगह था. यह देख कर सभी एक ही बात कह रहे थे कि आखिर इस बुढि़या ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो इस की हत्या कर दी गई. जबकि उस का जवान बेटा घर में ही दूसरे कमरे में सो रहा था. पूछने पर मनीष ने पुलिस को बताया था कि मम्मी शायद चीख भी नहीं पाई थी, क्योंकि अगर वह चीखी होतीं तो उस की आंख जरूर खुल जाती.

हत्या लूट के इरादे से नहीं हुई थी, यह अब तक की जांच में साफ हो चुका था. मेनगेट पर ताला राधा ही बंद करती थी. पूछताछ में मनीष ने कहा था कि हो सकता है रात में वह ताला लगाना भूल गई हों.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने देखा था कि वाशबेसिन में खून लगा है. इस का मतलब हत्यारे ने हत्या करने के बाद अपने हाथ वाशबेसिन में धोए थे. इस के अलावा पुलिस को वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सकता.

मां की हत्या पर मनीष जिस तरह रो रहा था, वह लोगों को एक तरह का नाटक लग रहा था. ऐसा लग रहा था, जैसे वह यह साबित करना चाहता है कि मां की हत्या का उसे बहुत दुख है. पुलिस को भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. क्योंकि परिस्थितियां मनीष को ही शक के दायरे में ला रही थीं. पूछताछ में पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं थीं, जिस से वही शक के दायरे में आ रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने काररवाई को आगे बढ़ाते हुए लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

आदित्य कुमार को पूरी संभावना थी कि हत्या के इस मामले में कहीं न कहीं से मृतका का बेटा जरूर जुड़ा है, फिर भी उन्होंने उसे हिरासत में नहीं लिया था. वह सुबूत जुटा कर ही उसे गिरफ्तार करना चाहते थे. आगे क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा मनीष के बारे में जान लें.

आगरा के थाना जगदीशपुरा की विजय विहार कालोनी की कोठी नंबर 27 में रहने वाले लालाराम का बेटा था मनीष. लालाराम ने यह कोठी आगरा में तहसीलदार रहते हुए बनवाई थी. उन के परिवार में पत्नी राधा, 5 बेटियां स्नेहलता, अनीता, प्रेमलता, हेमलता और सुनीता थी.

बेटे के चक्कर में ही उन्हें ये 5 बेटियां हो गई थीं. इसीलिए लालाराम इतने पर भी नहीं रुके थे. आखिरकार छठवीं संतान के रूप में उन के यहां बेटा मनीष पैदा हुआ था. मनीष के पैदा होतेहोते लालाराम और राधा काफी उम्रदराज हो गए थे. उम्र के तीसरे पन में बेटा पा कर पतिपत्नी फूले नहीं समाए थे. एक तो मनीष बुढ़ापे में पैदा हुआ था, दूसरे 5 बेटियों के बाद, इसलिए वह मांबाप का बहुत लाडला था. इसी लाडप्यार में वह बिगड़ता चला गया.

जैसेजैसे बेटियां सयानी होती गईं, लालाराम उन की शादियां करते गए. अच्छी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने सारी बटियों की शादी ठीकठाक घरों में की थीं. उन के 3 दामाद रेलवे में थे, एक बैंक में तो एक प्राइवेट नौकरी में था. बेटे को भी वह पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे का मन पढ़ने में कम, आवारागर्दी में ज्यादा लगता था. खर्च के लिए पैसे मिल ही रहे थे, इसलिए उस के दोस्त भी तमाम हो गए थे.

मनीष पढ़ ही रहा था, तभी लालाराम नौकरी से रिटायर हो गए थे. दुर्भाग्य से रिटायर होने के कुछ ही दिनों बाद वह एक ऐसी दुर्घटना का शिकार हुए, जिस की वजह से कोमा में चले गए. यह सन 2005 की बात है. राधा ने पति का बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

पिता के कोमा में चले जाने के बाद मनीष और ज्यादा आजाद हो गया. राधा के लिए परेशानी यह थी कि वह बेटे को संभाले या पति की देखभाल करे. पति की देखभाल के चक्कर में मनीष उस के हाथ से पूरी तरह निकल गया. आखिर कोमा में रहते हुए सन 2010 में लालाराम की मौत हो गई. पति की मौत के बाद राधा को लगा कि बेटा तो है ही, उसी के सहारे बाकी का जीवन काट लेगी.

लेकिन मनीष मां का सहारा नहीं बन सका. क्योंकि पति की मौत के बाद जब राधा का ध्यान बेटे पर गया तो उसे उस की असलियत का पता चला. उसे पता चला कि बेटा सिगरेट का ही नहीं, शराब का भी आदी हो चुका है. यही नहीं, नेहा नाम की लड़की से उस का प्रेमसंबंध हो गया है, जिस से वह शादी करना चाहता है.

जबकि राधा इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह लड़की उस की जाति की नहीं थी. बेटे की हरकतों से से राधा बहुत परेशान रहती थी. ऐसे में बेटियां ही उसे थोड़ा सुकून पहुंचा रही थीं. जबकि मनीष को बहनों का आनाजाना भी अच्छा नहीं लगता था. क्योंकि बहनें उसे रोकती टोकती तो थीं ही, मां को भी उसे पैसे देने से रोकती थीं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार राधा पर धारदार हथियार से तो हमला किया ही गया था, उस का गला भी दबाया गया था. स्थितियों से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि कातिल कोई नजदीकी ही था. शायद वह गला दबा कर पूरी तरह निश्चित हो जाना चाहता था कि उस में जान नहीं रह गई है.

मनीष ने पुलिस को बताया था कि वह रात में शराब पी कर सोया था, इसलिए न तो उसे चीख सुनाई दी थी, न खटरपटर की आवाज. उस ने सफाई तो बहुत दी थी, लेकिन पुलिस को उसी पर संदेह था. इसलिए पुलिस ने अपने मुखबिरों से उस के बारे में पता लगाने को कह दिया था.

मुखबिरों ने थानाप्रभारी आदित्य कुमार को बताया था कि मां-बेटे में अकसर झगड़ा होता रहता था. इस की वजह मनीष की आवारागर्दी थी. लालाराम अपनी सारी संपत्ति राधा के नाम कर गए थे. शायद उन्हें बेटे पर पहले से ही संदेह था.

पुलिस ने अब तक जो सुबूत जुटाए थे, वे मनीष को ही दोषी ठहरा रहे थे. थानाप्रभारी आदित्य कुमार पुलिस बल के साथ उस के घर जा पहुंचे. पुलिस को देख कर मनीष का चेहरा उतर गया. जब सिपाहियों ने उस का हाथ पकड़ कर साथ चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘मुझे कहां चलना है?’’

‘‘थाने और कहां, साहब तुम से कुछ पूछताछ करना चाहते हैं.’’ सिपाहियों ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो सब कुछ पहले ही बता दिया है,’’ मनीष ने कहा, ‘‘अब क्या पूछना है?’’

‘‘अभी तो तुम से और भी बहुत कुछ पूछना है.’’ कह कर सिपाहियों ने उसे गाड़ी में बैठा दिया.

मनीष को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह वही बातें बताता रहा, जो शुरू में बता चुका था. जबकि आदित्य कुमार उस से वह पूछना चाहते थे, जो उस ने सचमुच में किया था. लेकिन यह इतना आसान नही था. उन्होंने जब उसे जुटाए सुबूतों के आधार पर घेरना शुरू किया तो वह फंसने लगा.

जब वह आदित्य कुमार के सवालों में पूरी तरह से फंस गया तो फूटफूट कर रोने लगा. फिर उस ने अपनी मां की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को मां की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मनीष बिगड़ तो चुका ही था, उस के दोस्त भी वैसे ही थे. राधा का सोचना था कि वह उस की शादी कर दे तो शायद उस में सुधार आ जाए. उस के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उसे अच्छा रिश्ता मिल सकता था. लेकिन तभी राधा को पता चला कि मनीष का शाहगंज की रहने वाली किसी लड़की से चक्कर चल रहा है. वह लड़की दूसरी जाति की थी, इसलिए राधा किसी भी स्थिति में उस से मनीष की शादी नहीं करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह भी थी कि उस लड़की यानी नेहा के घर वालों को मनीष और उस के संबंधों का पता नहीं था. ऐसे में अगर शादी हो जाती तो हंगामा भी हो सकता था. इसलिए राधा इस झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी. जबकि मनीष अपनी जिद पर अड़ा था. यही वजह थी कि एक दिन वह नेहा को ले कर घर आ गया.

तब राधा ने दोनों को डांटा ही नहीं था, बल्कि नेहा को चेतावनी भी दी थी कि अगर वह नहीं मानी तो वह उस की शिकायत उस के पिता से कर देगी. इस के बाद उस ने यह बात अपनी बड़ी बेटी और दामाद को बताई तो उन्होंने कहा कि वे मनीष को समझा देंगे.

26 फरवरी को राधा की अनुपस्थिति में मनीष फिर नेहा को घर ले आया. संयोग से राधा घर आ गई और नेहा को मनीष की बांहों में देख लिया तो वह भड़क उठी. उस ने दोनों को डांटाफटकारा ही नहीं, नेहा को अपमानित कर के भगा दिया और मनीष को अपनी संपत्ति से बेदखल करने की धमकी दे दी.

मनीष न तो नेहा को छोड़ना चाहता था और न ही मां की संपत्ति को. उसे यह भी पता था कि मां वसीयत बनवाने के लिए वकील से सलाह ले रही है. इसलिए उसे लगा कि अगर मां ने सचमुच उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया तो वह कहीं का नहीं रहेगा. वह यह भी जानता था कि मां जो ठान लेती है, कर के मानती है.

अगर राधा सारी संपत्ति बेटियों के नाम कर देती तो मनीष का भविष्य अंधेरे में फंस जाता. अपने भविष्य को बचाने के लिए उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि अगर मां न रहे तो उस की संपत्ति भी उसे मिल जाएगी और वह नेहा से शादी भी कर सकेगा.

इस के बाद उस ने तय कर लिया कि वह मां की हत्या कर के अपना रास्ता साफ कर लेगा. रात का खाना खा कर मनीष लेट गया. उसे मां की हत्या करनी थी, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. दूसरी ओर बेटे की चिंता की वजह से राधा को भी नींद नहीं आ रही थी.

करवट बदलते बदलते राधा को नींद आ गई तो मनीष को मौका मिल गया. राधा के सोते ही मनीष ने पहले से छिपा कर रखा हंसिया उठाया और राधा के कमरे में जा पहुंचा. सो रही राधा के चेहरे पर उस ने वार किया तो राधा चीखी. मनीष ने झट उस का मुंह दबा दिया तो वह बेहोश हो गई. इस के बाद उस ने 2-3 वार और किए.

मनीष ने देखा कि मां अभी मरी नहीं है तो उस ने गला दबा दिया. राधा का खेल खत्म हो गया. उस ने रास्ते का कांटा तो निकाल फेंका, लेकिन अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. वह पुलिस से बचने का उपाय सोचने लगा.

काफी सोचविचार कर मनीष ने खून लगे कपड़े उतार कर छिपा दिए. इस के बाद मोटरसाइकिल निकाली और देर तक आगरा की सड़कों पर बेमतलब घूमता रहा. सड़क पर घूमते हुए ही उस ने खुद को बचाने के लिए एक कहानी गढ़ डाली.

सुबह सब से पहले उस ने मां की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. इस के बाद अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उस ने पड़ोसी डा. प्रदीप श्रीवास्तव को घटना के बारे में बताया. इस के बाद कालोनी में ही रहने वाली बहन स्नेहलता को सूचना दी.

पुलिस ने मनीष की निशानदेही पर उस के घर से वह हंसिया बरामद कर लिया, जिस से उस ने मां की हत्या की थी. उस के वे कपड़े भी मिल गए थे, जिन्हें वह हत्या के समय पहने था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे आगरा की अदालत में उसे पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक मनीष जेल में था. अब दुविधा उस की बहनों के सामने है कि वे एकलौते भाई को बचाएं या मां के हत्यारे को सजा दिलाएं.