शराफत का इनाम – भाग 3

करीमभाई को कुछ सालों पहले ऐनजाइमा की तकलीफ हुई थी. डाक्टर ने उन्हें जुबान के नीचे रखने वाली गोली दी थी. उन्होंने कांपते हाथों से गोली जुबान के नीचे रखी. आंखें बंद कर के गहरीगहरी सांसें लेने लगे. थोड़ी तबीयत संभली तो घर के लिए रवाना हो गए.

‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’ रूमाना ने उन के घर पहुंचते ही पूछा.

‘‘हां, कुछ परेशानी है. तुम बहुत खुश लग रही हो?’’

‘‘हां, खबर ही खुशी की है. लेकिन पहले आप बताइए कि क्यों परेशान हैं?’’

करीमभाई कुछ देर टहलते रहे, उस के बाद सोच कर बोले, ‘‘आज हारुन हमारे औफिस में आया था.’’

‘‘हारुन आया था?’’ रूमाना ने हैरानी से पूछा. इस के बाद बिफर कर बोली, ‘‘आप ने उसे औफिस से निकलवा क्यों नहीं दिया?’’

‘‘मैं यही करता, लेकिन रूमाना, तुम यह बताओ कि हारुन ने तुम्हें जबानी तलाक दिया था या लिख कर दिया था?’’

‘‘जबानी दिया था. मगर इस से क्या फर्क पड़ता है. तलाक तो तलाक है, जबानी दे या लिख कर दे. तलाक तो हो जाता है.’’ वह सादगी से बोली. करीमभाई ने सिर पर हाथ मार कर कहा, ‘‘तुम बड़ी मासूम हो. तुम्हें नहीं मालूम कि आजकल जमाना कितना खराब हो गया है. अगर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है तो अदालत में यही माना जाएगा कि उस ने तुम्हें तलाक नहीं दिया है.’’

रूमाना हैरान रह गई, ‘‘आप…आप का मतलब है कि वह कमीना आदमी 4 साल बाद यह दावा ले कर आया है कि तलाक नहीं हुआ है.’’

‘‘हां, उस के पास निकाहनामे की कौपी है. रजिस्ट्रार औफिस की रजिस्टर्ड कौपी है.’’ यह कह कर निकाह की कौपी रूमाना के हाथ में दे दी, जो हारुन छोड़ कर गया था.

‘‘बकवास करता है कमबख्त.’’ रूमाना ने गुस्से से निकाहनामा फाड़ कर फेंक दिया. इस के बाद गुस्से से कांपते हुए बोली, ‘‘कोई संबंध नहीं है हारुन से मेरा, मैं आप की बीवी हूं.’’ कह कर रूमाना रोने लगी.

‘‘मैं जानता हूं.’’ करीमभाई ने कहा और रोती हुई रूमाना को सीने से लगा कर चुप कराने लगे.

‘‘आज मैं आप को एक खुशखबरी सुनाने वाली थी कि यह मनहूस खबर आ गई.’’

‘‘कैसी खुशखबरी?’’ सेठ करीमभाई ने पूछा.

रूमाना ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मैं मां बनने वाली हूं. आज ही मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

करीमभाई खुश हो गए. उन्होंने बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘‘अब तुम फिक्र मत करो, मैं सारा मामला निपटा लूंगा.’’

‘‘आप क्या करेंगे? पुलिस में जाएंगे?’’

‘‘नहीं, पुलिसअदालत में जाने से मामला बिगड़ जाएगा. मेरे पास एक तरीका है, मैं उस का मुंह बंद कर दूंगा.’’

बाद में हारुन ने रूमाना को फोन कर के कहा, ‘‘तुम ने अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह अदा की है. बच्चे के बारे में सुन कर बुड्ढा तो दीवाना हो गया होगा?’’

‘‘हां हारुन, लेकिन मुझे डर लग रहा है. उस ने कहा है कि उस के पास उस का मुंह बंद करने का एक तरीका है.’’

‘‘अरे वह रकम दे कर मुंह बंद कराने की बात कर रहा होगा.’’ हारुन ने कहा.

‘‘नहीं, सोचो वह अरबपति है. उस के पास दौलत की ताकत है. अगर उस ने इस ताकत को तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल किया तो..? मैं ने 2 बार पूछा कि कौन सा तरीका है तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रकम की बात होती तो वह मुझ से जरूर बता देता.’’

रूमाना की इस बात से हारुन परेशान हो गया. इस से पहले उन्होंने जिन 5 लोगों को इसी तरह फांसा था, उन में से कोई भी इतना दौलतमंद नहीं था.

वैसे तो करीमभाई देखने में बहुत शरीफ था, दौलत का इस्तेमाल कर के पुलिस को मिलाने और किराए के किलर की व्यवस्था करने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी. उस के पास कई औप्शन थे. हारुन बुनियादी तौर पर बुजदिल आदमी था. उस ने रूमाना से पूछा, ‘‘तुम क्या सोचती हो?’’

‘‘मेरी सलाह तो यही है कि अब तुम उस के सामने मत जाना. फोन पर बात करो और यह सिम बंद कर दो या जब बात करनी हो तभी चालू करो, क्योंकि यह सिम तुम्हारे नाम है. वह तुम्हें ब्लैकमेलिंग में फंसा सकता है. एक बात और याद रखना हारुन, तुम ने वादा किया था कि यह आखिरी बार है. इस के बाद हम बाहर चले जाएंगे.’’

हारुन ने एक बार फिर वही यकीन दिलाया, जो पहले भी कई बार दिला चुका था. वह चालबाज, शातिर आदमी था. उस का और रूमाना का 7 साल से ज्यादा का साथ था.

दोनों ने घर से भाग कर शादी की थी. रूमाना एक बहुत अच्छे खानदान की लड़की थी, लेकिन कमउम्र में मोहब्बत के जज्बात में आ कर उस के साथ भाग गई थी और शादी कर ली थी. रूमाना के घर वाले हारुन को बिलकुल नहीं पसंद करते थे. हारुन को घरगृहस्थी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस का मकसद बस दौलत कमाना और अय्याशी करना था.

दोनों कई शहरों में रहे और हर जगह इसी तरह चक्कर चला कर कई लोगों को ब्लैकमेल किया. रूमाना मजबूर थी. वह घर भी वापस नहीं जा सकती थी. घर जाने पर उस के दोनों भाई उसे जिंदा जला देते.

हारुन ने रूमाना को जिस रास्ते पर चलाया था, वह उस पर चलने को मजबूर थी. इसी वजह से उन्होंने काफी दौलत जमा कर ली थी. इस के अलावा भी हारुन उल्टेसीधे तरीकों से पैसे कमाता रहता था. ऐसे कामों में रूमाना उस का साथ देतेदेते तंग आ चुकी थी. यह भी कह सकते हैं कि वह थक चुकी थी. उस का कहना था कि यह आखिरी बार है, इस के बाद वे बाहर चले जाएंगे.

करीमभाई लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन हारुन का नंबर नहीं लग रहा था. वह लगातार बंद बता रहा था. उस ने 2 दिन का समय दिया था. एक ही दिन उन के पास था. वह सोच रहे थे कि हारुन न जाने कितनी रकम पर राजी होगा? काम में उन का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. उन्होंने फाइलें बंद कर दीं. बारबार उन का ध्यान मोबाइल पर जा रहा था. इस के पहले वह कभी इतना परेशान नहीं हुए थे.

कहां खुशी मनाने का मौका था और वह परेशान थे. फोन की घंटी बजी तो उन्होंने लपक कर उठाया. लेकिन यह रूमाना का फोन था. उस ने पूछा, ‘‘हारुन का कोई फोन आया? मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है, मैं सब संभाल लूंगा. अगर घी सीधी अंगुली से नहीं निकला तो मुझे अंगुली टेढ़ी करना भी आता है. मुझे पता है कि मुझे क्या करना है.’’ करीमभाई ने दृढ़ता से कहा.

रूमाना ने धीरे से कहा, ‘‘शादी के बाद मैं बहुत खुश थी. खुद को बहुत महफूज समझ रही थी, लेकिन यह बखेड़ा खड़ा हो गया.’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 3

नूनूराम ने पत्नी और बेटे से भी पिंकी के बारे में पूछा. पत्नी ने बताया कि काम खत्म होते ही बहू कमरे में बंद हो जाती थी. फिर वह फोन पर फुसुरफुसुर बातें करती रहती थी. बेटे ने भी कुछ ऐसा ही बताया. उस का कहना था कि एक पत्नी को जिस तरह अपने पति के प्रति समर्पित होना चाहिए, वह समर्पण भाव पिंकी में नहीं था. इन बातों ने साफ कर दिया था कि पिंकी का प्रेमसंबंध नितेश था.

सारी जानकारी जुटा कर नूनूराम ने थाना घनावर में पिंकी को षडयंत्र रच कर गायब करने और उन के परिवार को झूठे मुकदमे में फंसाने का मुकदमा 6 फरवरी, 2013 को केदार राणा, पिंकी, उस के प्रेमी नितेश राय, उस के भाई निरेश राय, पिता चंद्रभानु राय, नितेश की बहन कल्याणी, केदार राणा के दामाद चतुर शर्मा के खिलाफ दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद लोगों से पूछताछ तो की, लेकिन सुबूत न होने की वजह से कोई काररवाई नहीं कर सकी.

नूनूराम ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो वह अपने स्तर से नितेश के बारे में पता लगाने लगे. आदमी चाह ले तो कौन सा काम नहीं हो सकता. आखिर नूनूराम ने पता कर ही लिया कि नितेश के पिता चंद्रभानु राय अपने खाते से हर महीने नितेश के खर्च के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. लेकिन वह पैसा कहां ट्रांसफर करते हैं, यह पता नहीं चल रहा था. उन्होंने हार नहीं मानी और अंत में पता कर ही लिया कि वह पैसा कहां जाता है.

नूनूराम ने पता कर लिया था कि निश्चित तारीख पर चंद्रभानु वाराणसी के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. इस से उन्हें लगा कि नितेश और उन की बहू पिंकी, जिस की हत्या के आरोप में उन का बेटा अरुण जेल में बंद है, वह वाराणसी में कहीं रह रही हैं.

इतने बड़े वाराणसी में उन्हें खोजना आसान नहीं था. लेकिन नूनूराम ने घुटने नहीं टेके और मेहनत कर के पता लगा ही लिया कि नितेश और पिंकी वाराणसी के पांडेपुर में रह रहे हैं. उन्हें यह भी पता चल गया था कि पिंकी अब नितेश के बेटे की मां भी बन चुकी है.

पूरी जानकारी जुटाने के बाद नूनूराम ने इस बात की सूचना इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय और थाना घनावर के थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को दे दी. थानाप्रभारी रासबिहारी लाल के लिए इतनी जानकारी काफी थी. उन्होंने सारी बात गिरिडीह के पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार गढ़देसिया को बताई तो उन्होंने पिंकी और नितेश की गिरफ्तारी के लिए सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में हेडकांस्टेबल हरेंद्र सिंह, 2 महिला कांस्टेबल सुनीता और सरिता को शामिल किया गया.

पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार ने थाना कैंट के इंस्पेक्टर विपिन राय को फोन कर के इस टीम का सहयोग करने के लिए भी कह दिया. लेकिन वाराणसी से इस पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. क्योंकि नितेश, पिंकी और बेटे को ले कर एक दिन पहले ही गिरिडीह चला आया था.

गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी भले ही नहीं मिले, लेकिन यह तो पता चल ही गया था कि पिंकी जिंदा थी और नितेश के साथ रह रही थी. सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ ने वहीं से थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को नितेश और पिंकी के गिरिडीह जाने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही उन्होंने तुरंत मुखबिरों को नितेश के घर पर नजर रखने के लिए सहेज दिया.

उन्हीं मुखबिरों में से किसी मुखबिर ने थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को सूचना दी कि पिंकी और नितेश गिरिडीह के टावर चौक पर कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रासबिहारी लाल सहयोगियों के साथ टावर चौक पहुंच गए. महिला सिपाहियों की मदद से पिंकी तो बेटे के साथ पकड़ी गई, लेकिन नितेश फरार होने में कामयाब हो गया. पिंकी को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

पिंकी के बताए अनुसार, 11 जून, 2011 को पिंकी अपने पति अरुण के साथ नागपुर जाने के लिए निकली तो योजनानुसार टे्रन के बिलासपुर पहुंचने पर वह चुपके से नितेश के साथ टे्रन से उतर गई. नितेश उसे ले कर रेलवे स्टेशन के बाहर आ गया और वहां से दोनों दिल्ली चले गए. कुछ दिनों तक दोनों दिल्ली से जुड़े गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर रहे. उस के बाद दोनों उत्तर प्रदेश के वाराणसी आ गए, जहां थाना कैंट के मोहल्ला पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. यहीं उन्हें एक बेटा पैदा हुआ.

पिंकी ने थानाप्रभारी को बताया कि वह अरुण से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन मांबाप के दबाव के आगे उस ने उस से शादी कर ली थी. 11 महीनों तक उस के साथ रही, लेकिन एक दिन के लिए भी वह दिल से उस की नहीं हो सकी. जबकि अरुण और उस के घर वाले उसे पूरा प्यार और सम्मान दे रहे थे. अरुण के साथ रहते हुए वह पल भर के लिए भी नितेश को भूल नहीं पाई. इसीलिए मौका मिलते ही उस के साथ भाग निकली. वह उसी के साथ अपना यह जीवन बिताना चाहती थी.

उस ने यह भी बताया कि उस के मांबाप और भाई को पता था कि वह जीवित है और नितेश के साथ वाराणसी में रह रही है. नितेश उस के साथ रह कर पढ़ाई कर रहा था. उन का खर्च नितेश के पिता चंद्रभानु राय वहन कर रहे थे. यह जो कुछ भी हुआ था, वह उस के परिवार वालों की सहमति से हुआ था.

पिंकी के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी रासबिहारी लाल ने 23 दिसंबर, 2013 को उसे न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रीमती अपर्णा कुजूर की अदालत में पेश किया, जहां उस का धारा 164 के तहत कलमबद्ध बयान दर्ज कराया गया. बयान दर्ज कराने के बाद उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में गिरिडीह की जिला जेल भेज दिया गया.

पिंकी को जेल भेजने के बाद थाना घनावर पुलिस ने नामजद अन्य अभियुक्तों में से नितेश को छोड़ कर सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नितेश पुलिस के हाथ नहीं लगा था पुलिस उस की तलाश कर रही थी. अरुण को जेल से रिहा कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. मामले की जांच सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय कर रहे थे.

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 3

जांच के शिकंजे में आ ही गए जनार्दन नायर

इस के बाद नायर साहब को बुलाया गया. एक बार उन से फिर अपना वही बयान दोहराने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने 26 मई, 2006 को पत्नी रमादेवी की हत्या के बाद दिया था. नायर साहब को अपना बयान दोहराने में भला क्या ऐतराज होता. उन्होंने अपना पूरा बयान इंसपेक्टर सुनील राज के सामने दोहरा दिया.

इस के बाद जब उन्हें उस दरवाजे के पास ले जाया गया, जिसे सुनील राज ने तैयार कराया था तो वह दरवाजा देख कर चौंके.

इस के बाद सुनील राज ने कहा, “यह दरवाजा भी ठीक उसी तरह है, जैसे आप के घर में लगा था. उस के ऊपर वाली जाली भी उतने ही अंतर पर लगी है. उस में अंदर जो कुंडी लगी थी, ठीक ही वैसी कुंडी उसी जगह लगी है, जहां आप के घर के दरवाजे में लगी थी. पत्नी की हत्या वाले दिन आप ने जिस तरह जाली से हाथ डाल कर दरवाजा खोला था, उसी तरह आज यहां हाथ डाल कर कुंडी खोलिए.”

नायर साहब ने हाथ डाल कर अंदर लगी कुंडी खोलने की बहुत कोशिश की, पर कुंडी खोलने की कौन कहे, उन का हाथ कुंडी तक भी नहीं पहुंचा. पुलिस ने देखा, जाली से हाथ डालने पर उन के हाथ और कुंडी के बीच करीब एक फुट का अंतर था.

नायर साहब कुंडी नहीं खोल पाए. इंसपेक्टर समझ गए कि यह दरवाजा उतनी ऊंचाई से खुल ही नहीं सकता. इस का मतलब रमादेवी का पति झूठ बोल रहा है. इसलिए अब उन्हें हत्या का शक उसी पर होने लगा. पुलिस ने उन्हें घर जाने के लिए कह दिया.

इस के बाद इंसपेक्टर सुनील राज ने फोरैंसिक रिपोर्ट की जांच की. इस से उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. दरअसल, रमादेवी जब मृत मिली थीं, तब उन के हाथों में बाल मिले थे, जो किसी आदमी के थे. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले कर जांच के लिए भेज दिया था. लेकिन उस की डीएनए रिपोर्ट 4 साल बाद आई थी.

चूंकि हत्या के इस मामले में पुलिस को पूरा यकीन था कि हत्या उसी मजदूर ने की है, इसलिए पुलिस यही सोचती रही कि जब वह मजदूर मिलेगा, तब उस का डीएनए करा कर इस रिपोर्ट से मिलाया जाएगा.

जनार्दन नायर ही निकले पत्नी के हत्यारे

सुनील राज ने डीएनए रिपोर्ट निकलवाई और चूंकि अब रमादेवी के पति जनार्दन नायर शक के घेरे में आ गए थे, इसलिए उन का डीएनए सैंपल लिया और जांच के लिए भिजवा दिया. इस के बाद जो डीएनए रिपोर्ट आई, उस में रमादेवी की हत्या का रहस्य खुल गया. क्योंकि रमादेवी के हाथों में मिले बालों का डीएनए जनार्दन के डीएनए सैंपल से मैच कर गया था.

इस का मतलब हत्या के समय रमादेवी ने दोनों हाथों से पकड़ कर, जिस आदमी के बाल खींचे थे, वह आदमी मजदूर चुटला मुथु नहीं, खुद उस का पति जनार्दन नायर था. इस के बाद पुलिस ने 75 साल के जनार्दन नायर को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में उन्होंने पत्नी की हत्या का अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया. इस तरह 17 सालों बाद रमादेवी का असली कातिल गिरफ्तार हो गया, जिस ने हाईकोर्ट तक में अपील की थी कि उस की पत्नी के कातिल को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

अब आइए यह जानते हैं कि जनार्दन ने अपनी पत्नी का कत्ल क्यों और कैसे किया था.

जनार्दन नायर को अपनी पत्नी रमादेवी के चरित्र पर शक था. उन्हें लगता था कि उन के औफिस जाने के बाद उस के घर लडक़े आते हैं, जिन से उन की पत्नी के गलत संबंध हैं. इसी शक को ले कर पतिपत्नी में अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था.

घटना वाले दिन यानी 26 मई, 2006 को भी इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. पतिपत्नी में मारपीट होने लगी थी. दोनों ही एकदूसरे को पीट रहे थे. इसी मारपीट में रमादेवी ने दोनों हाथों से जनार्दन नायर के बाल पकड़ कर खींचे तो नायर साहब ने घरेलू चाकू से हमला कर के उन की हत्या कर दी थी. इस के बाद चुपके से घर से निकल गए थे. लेकिन हत्या के समय रमादेवी के हाथों की मुट्ठी में पति के जो बाल थे, वे उसी तरह मुट्ठी मे दबे रह गए थे.

क्राइम थ्रिलर फिल्मों से मिला बचने का आइडिया

पत्नी की हत्या करने के कई घंटे बाद जनार्दन नायर घर वापस आए तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. उन्होंने सब से झूठ बोला था. दरवाजा खोल कर वह घर में घुसे और उस के बाद पत्नी की हत्या होने का शोर मचा दिया.

पुलिस से बचने के लिए उन्होंने दरवाजा बाहर से खोलने वाली कहानी गढ़ ली. संयोग से पड़ोस की एक महिला ने मजदूर वाली कहानी सुना दी, जिस से पुलिस का पूरा ध्यान उसी मजदूर चुटला मुथु की ओर चला गया और नायर साहब बच गए.

पुलिस ने नायर साहब से पूछा कि जब वह खुद ही कातिल थे, तब वह धरनाप्रदर्शन कर के कातिल को पकडऩे के लिए पुलिस पर दबाव क्यों बना रहे थे?

जवाब में जनार्दन नायर ने कहा, “धरनाप्रदर्शन तो मैं ने पड़ोसियों के कहने पर किया था. अगर मैं वैसा न करता तो पड़ोसी मेरे ऊपर शक करने लगते.”

“तो फिर हाईकोर्ट क्यों चले गए?” इंसपेक्टर सुनील राज ने पूछा.

“यह आइडिया मुझे क्राइम थ्रिलर फिल्मों से मिला था. दरअसल, कुछ लोगों को शक होने लगा था कि पत्नी की हत्या कहीं मैं ने तो नहीं की है? इसलिए मुझे लगा कि अगर मैं कातिल को पकडऩे के लिए कुछ नहीं करता तो इन लोगों का शक विश्वास में बदल जाएगा. अगर मैं कोर्ट में अपील कर दूंगा तो इन लोगों को लगेगा कि मजदूर ने ही रमादेवी की हत्या की है.”

लेकिन जनार्दन नायर के इसी कदम ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. अंत में उन्होंने कहा भी कि उन्हें पता था कि एक न एक दिन वह जरूर पकड़े जाएंगे, लेकिन पकड़े जाने में इतना समय लगेगा, यह उन्होंने नहीं सोचा था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से वह अपनी सही जगह जेल पहुंच गए हैं, जहां उन्हें बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 3

पुलिस उसे आरोपी न बना सके, इसलिए प्रखर ने अपनी ओर से सब कुछ किया. कंचन का वाट्सऐप व अपना इंस्टाग्राम दोस्त शीलू के मोबाइल में इंस्टाल किए. उस से अंजलि को मैसेज भेज रहा था. प्रखर को पता था कि पुलिस उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालेगी, लोकेशन देखेगी. उस की और कंचन की लोकेशन अलग आएगी. काल डिटेल्स में बातचीत नहीं निकलेगी, इसलिए वह इंस्टाग्राम पर काल कर रहा था. यदि पुलिस उस के इंस्टा प्रोफाइल की डिटेल्स निकालेगी तो भी कुछ नहीं मिलेगा. बातचीत के लिए शातिर प्रखर ने दूसरा प्रोफाइल बनाया था.

प्रखर के मुंह से यह सुन कर उस की मां भी दंग रह गई. पहले उसे लग रहा था कि प्रखर हत्या जैसी घटना नहीं कर सकता. जब अपनी आंखों के सामने बेटे को सच उगलते देखा तो वह बोली, “प्रखर, तुम ने सभी की जिंदगी बरबाद कर दी. मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा अच्छे ढंग से तुम्हें पाला. यदि किसी से प्यार था तो मुझे तो बताता. प्यार के लिए कोई इस तरह अपराधी नहीं बनता है.”

पुलिस ने उसी दिन दबिश दे कर गंजडुंडवारा निवासी शीलू को गिरफ्तार कर लिया. दोनों का आमना सामना कराया गया. दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, बाइक और खून से सना अंगोछा (गमछा) भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

प्रखर के बाबा व पिता की हो चुकी है हत्या

सनसनीखेज वारदात को अंजाम देने वाले प्रखर गुप्ता की कहानी भी कम चौंकाने वाली नहीं है. वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज के कस्बा गंजडुंडवारा का रहने वाला है. कई साल से अपनी मां व हाईस्कूल पास छोटे भाई के साथ आगरा में रह रहा था. दयालबाग सौ फुटा रोड स्थित अपर्णा रिवर व्यू अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले रखा है.

उस के बाबा की रंजिश में हुत्या हुई थी. पिता विष्णुरत्न गुप्ता भी हत्या के मामले में पहले जेल गए थे. जेल से बाहर आने के बाद विरोधियों ने 2013 में उन की भी हत्या कर दी. उस समय प्रखर 11 साल का था. मां आगरा में संजय पैलेस में एक कंपनी में काम करती है. 21 वर्षीय प्रखर ने इंटर तक पढ़ाई की है. उस ने मां से कहा कि अब वह व्यापार करेगा. उस की जिद पर मां ने 2 लाख रुपए की बाइक दिलाई थी.

कच्ची उम्र के प्यार की सनसनीखेज कहानी—

कारोबारी बजाज दंपत्ति अपनी इकलौती बेटी कंचन को एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे थे. मां अंजलि बेटी की पढ़ाई पर काफी ध्यान दे रही थीं. पुलिस पूछताछ में पता चला कि कंचन का स्कूल में एक दोस्त है कुशल. प्रखर कुशल का दोस्त था.

कुशल ने ही उस की प्रखर से पहचान कराई थी. प्रखर ने कंचन से दोस्ती ही झूठ बोल कर की थी. उस ने बताया था कि वह डीयू (दिल्ली यूनिवर्सिटी) में ग्रैजुएशन का छात्र है. वह जिम भी जाता है. गांव में खेती है और मां नौकरी करती है.

पहली ही मुलाकात में कंचन उस से प्रभावित हो गई. अपनी कीमती बाइक पर प्रखर कंचन को स्कूल छोडऩे व लेने जाने लगा. यह सब कंचन को बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. ये बात जनवरी, 2023 की है.

मार्च के महीने में कंचन अपने घर से बिना बताए प्रखर के साथ बाहर घूमने चली गई थी. कई घंटे बाद घर लौटी. वापस लौट कर आई तो मां बहुत नाराज हुई. पूछा कहां गई थीं, किस के साथ गई थीं? इस घटना के बाद मां ने उस का मोबाइल भी चैक किया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म खंगाला.

मोबाइल में अंजलि ने प्रखर के साथ उस के फोटो देख लिए तो उन्होंने घर में बहुत क्लेश किया. पूछा, “ये लडक़ा कौन है?”

तब कंचन ने बताया कि उस का दोस्त प्रखर गुप्ता है. यह सुन कर मां ने उसे डांटा. फोन पर प्रखर से भी बात की और बेटी से दूर रहने को कहा. मां की सख्ती के चलते करीब एक महीने प्रखर उस से मिल नहीं पाया था. चोरीछिपे केवल फोन पर बातचीत होती थी.

बेटी के आपत्तिजनक फोटो देख कर परेशान थीं अंजलि

घटना से 20 दिन पहले अंजलि को कंचन की प्रखर के साथ फिर से दोस्ती की भनक लग गई थी. उन्होंने बेटी से इस संबंध में बात की तो बेटी ने कहा कि प्रखर उस से बहुत प्यार करता है. अंजलि ने कंचन के मोबाइल में प्रखर के साथ उस के आपत्तिजनक फोटो देख लिए थे. फोटो देख कर अंजलि परेशान हो गई.

उन्हें लगा कि यदि बेटी को काबू में न रखा गया तो वह समाज में बजाज परिवार की नाक कटा देगी. उन्होंने बेटी पर पहरा बैठा दिया. फोन काल से ले कर हर चीज पर नजर रखी जाने लगी. कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन इस के बाद वह फिर से प्रखर को चोरीछिपे फोन करने लगी. उन का प्रेम प्रसंग जारी रहा. जब मां को यह बात पता चली तो उन्होंने बेटी के न मानने पर प्रखर को पोक्सो एक्ट में जेल भिजवाने की धमकी दी.

यह भी कहा कि नाबालिग का बयान कोई मायने नहीं रखता है, इन फोटो व चैट से ही प्रखर को जेल जाना पड़ेगा. यह बात कंचन ने अपने बौयफ्रैंड प्रखर को बता दी. जेल जाने की बात से प्रखर परेशान हो गया. उसे लगा कि यदि वह जेल चला जाएगा तो कारोबारी की इकलौती बेटी को पाने का उस का सपना अधूरा रह जाएगा. उस का प्यार उस से छिन रहा था. प्रेमिका पर लगाई जा रही बंदिशों से वह आजिज आ चुका था. जेल जाने के डर से प्रखर ने अंजलि बजाज की हत्या की योजना बनाई.

अंजलि बजाज की हत्या के लिए प्रखर को एक साथी की तलाश थी. वह अकेले अंजलि की हत्या नहीं कर सकता था. वह अपने गांव गंजडुंडवारा गया और वहां 10 दिन रुका. इस बीच उस का दोस्त शीलू मिला. वह घर में खाली बैठा था. उस से बातचीत की और उसे 10 हजार रुपए का लालच दिया. उस से कहा कि स्कूल में झगड़ा हो गया है एक को सबक सिखाना है.

शीलू इस के लिए तैयार हो गया. वह शीलू को 3 जून को आगरा बुला लाया. दोनों आईएसबीटी के पास एक होटल में ठहरे. वहां 2 दिन रुकने के बाद दोनों सिकंदरा स्थित होटल में आ गए.

कंचन ने बहाने से बुलाया था मां को

साजिश के तहत कंचन 7 जून को अपने शास्त्रीपुरम स्थित घर से दोपहर में निकल कर पार्क में जा कर छिप गई. थोड़ी देर बाद उस ने अपनी मां अंजलि को फोन कर बताया कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ जा रही है. यदि आखिरी बार मिलना है तो मिल लो. यह सुन कर अंजलि घबरा गईं.

थोड़ी देर बाद बेटी ने वाट्सएप पर लोकेशन भेजी. लोकेशन ककरैठा स्थित वनखंडी महादेव मंदिर की थी. बेटी ने प्रेमी के साथ जाने का नाटक कर मां को वनखंडी मंदिर पर भेज दिया. लेकिन अंजलि के साथ पति उदित को देख कर प्रखर ने कंचन को फोन से मैसेज भेज कर दोनों को अलग करने को कहा. इस पर कंचन ने पिता को फोन कर स्वयं को ले जाने की बात कह कर मंदिर पर मां से अलग कर हत्यारों के सामने भेज दिया. जबकि खुद पार्क में छिपने के बाद मां और पिता को भ्रमित करने के बाद घर आ गई.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 4

प्रशांत रेलवे स्टेशन से उस के लिए माजा की बोतल ले आया. प्रशांत भागभाग कर सामान लाता रहा और वह बैठी फोन पर बातें करती रही. माजा पीने के बाद अनुराधा ने प्रशांत से बड़ी सौंफ लाने को कहा. इस पर प्रशांत को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन घर का माहौल खराब न हो, इसलिए वह बड़ी सौंफ लाने के लिए पूना रेलवे स्टेशन चला गया.

तब तक रात के साढ़े 12 बज गए थे. प्रशांत जब बड़ी सौंफ ले कर लौटा, तब भी अनुराधा फोन पर बातें कर रही थी. इस बार प्रशांत सीधे घर के अंदर आने के बजाय दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा कि वह किस से क्या बातें कर रही है. अनुराधा फोन पर कह रही थी, ‘‘ठीक है, कल सुबह हम निकल चलेंगे.’’

इस के बाद अनुराधा चुप हो गई, शायद वह सामने वाले का जवाब सुन रही थी. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है. प्रशांत को मैं संभाल लूंगी. अगर उस ने कोई नौटंकी की तो उस के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दूंगी. कहूंगी कि 3 सालों से मुझे बंधक बना कर मेरे साथ बलात्कार कर रहा है. उस के बाद उसे जेल जाने से कोई नहीं रोक पाएगा. वह वहीं पड़ा सड़ता रहेगा, क्योंकि यहां उसे कोई छुड़ाने वाला भी नहीं है.’’

अनुराधा की ये बातें सुन कर प्रशांत हैरान रह गया. जिसे उस ने तनमन से प्यार किया, जिस के लिए घरपरिवार छोड़ा, जिस की सुखसुविधा का हर तरह से खयाल रखा, आज वही न जाने किस के साथ उसे छोड़ कर भाग जाना चाहती थी और झूठी शिकायत कर के उसे जेल तक भिजवाने को तैयार थी. अनुराधा की इन बातों से उसे बहुत दुख हुआ.

अंदर आ कर उस ने कहा, ‘‘इतनी देर से तुम किस से बातें कर रही थी? कौन है वह, जिस के लिए तुम मुझे जेल भिजवा रही हो?’’

प्रशांत के सवालों का जवाब देने के बजाय अनुराधा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘मैं किस से क्या बातें कर रही हूं, तुम से क्या मतलब? तुम अपना देखो, यह देखने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं क्या कर रही हूं.’’

‘‘क्यों जरूरत नहीं है. तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मेरा हक बनता है तुम से पूछने का.’’ प्रशांत ने कहा तो अनुराधा गुस्से में उस का कौलर पकड़ झकझोरते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘हक की बात करते हो, कभी शीशे में अपनी शक्ल देखी है. तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और अब हक जमा रहे हो. तुम्हें प्यार कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की. तुम्हारी वजह से मां को छोड़ा. लेकिन अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. तुम मेरे लायक नहीं हो.’’

अनुराधा ने प्रशांत के कौलर को इस तरह पकड़ रखा था कि वह छुड़ाने से भी नहीं छोड़ रही थी. काफी कोशिश के बाद भी जब अनुराधा ने प्रशांत का कौलर नहीं छोड़ा तो उसे भी गुस्सा आ गया. वह अनुराधा का गला पकड़ कर दबाने लगा, ताकि वह वह उस का कौलर छोड़ दे. लेकिन दबाव बढ़ने की वजह से अनुराधा की सांसें रुक गईं और उस के प्राणपखेरू उड़ गए.

जब प्रशांत को पता चला कि अनुराधा मर गई है तो उस के होश उड़ गए. वह सिर थाम कर बैठ गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह हत्यारा बन जाएगा. कुछ देर तक वह उसी तरह बैठा रहा. इस के बाद वह बाहर आ कर अनुराधा की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. इसी चक्कर में वह उस पूरी रात सो नहीं सका.

सुबह उस ने अनुराधा के गले से सोने की चैन उतारी और 8 बजे के आसपास आटोस्टैंड हड़पसर पहुंचा, जहां उस की मुलाकात उस के दोस्त महेश रंगोजी से हुई. उस के साथ चायनाश्ता कर के वह उसे ले कर वीटी कवडे रोड स्थित धनलक्ष्मी ज्वैलर्स के यहां गया, जहां उस ने वह चैन 16,900 रुपए में यह कह कर बेच दी कि उस की पत्नी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. इस समय वह लातूर स्थित उस के गांव में है. उस के इलाज के लिए उसे पैसों की सख्त जरूरत है.

चैन बेचने के बाद महेश रंगोजी तो चला गया, प्रशांत ने वहीं बाजार से लाल रंग का एक बड़ा सा बैग खरीदा और घर आ गया. उस ने अनुराधा की लाश को उसी में ठूंस कर भरा और आटोरिक्शा से ले जा कर खराड़ी गांव के पास फेंक आया.

प्रशांत को विश्वास था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. लेकिन जब पुलिस ने तेजी से जांच शुरू की तो वह डर गया. उस ने सोचा कि अब उस का पूना में रहना ठीक नहीं है. पुलिस कभी भी उस तक पहुंच सकती, इसलिए वह अपना समान और पैसे समेटने लगा.

2 जुलाई को प्रशांत ने अपने मकान मालिक दीपक जाधव से कहा कि उस की पत्नी गांव चली गई है, अब वह भी हमेशा के लिए गांव जाना चाहता है. इसलिए वह एक महीने का किराया काट कर उस का डिपाजिट वापस कर दें. मकान मालिक से बात करने के बाद उस ने अपना सारा सामान अपने दोस्त पिंटू के यहां पहुंचा दिया.

उसी बीच अनुराधा शोरूम पर नहीं गई तो प्रशांत के पास फोन आया. प्रशांत ने उन्हें बताया कि अनुराधा की बहन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, इसलिए वह गांव चली गई है. अब उस का काम करने का कोई इरादा नहीं है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वे उस का बकाया वेतन दे दें तो बड़ी कृपा होगी.

शोरूम की ओर से पैसे देने के लिए कहा गया तो प्रशांत ने अपने दोस्त पिंटू को फोन किया. लेकिन पिंटू उस समय बारामती में था, इसलिए अनुराधा का वेतन लाने के लिए उस ने महेश रंगोजी को फोन किया.

महेश जा कर अनुराधा का बकाया वेतन ले आता, उस के पहले ही वाट्स ऐप पर अनुराधा की लाश का फोटो आ जाने से शोरूम वालों को सच्चाई का पता चल गया और उन्होंने महेश को पकड़ कर लश्कर पुलिस के हवाले कर दिया, जिस की वजह से पत्नी की हत्या करने वाला प्रशांत भी पकड़ा गया.

प्रशांत सूर्यवंशी के बयान के आधार पर अनुराधा की हत्या का मुकदमा उस के खिलाफ दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. महेश निर्दोष था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेईमान बनाया प्रेम ने

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है.

इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पडऩे पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं.

हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धडक़नों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था.

उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था.

जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था.

उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया.

कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके.

लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके.

पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है.

जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया.

आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था.

उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, “जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.”

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया.

ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे.

दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई.

हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

“कोई खास खबर?” मालिनी ने पूछा.

“अभी देखता हूं.” पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, “क्या बात है डियर?”

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, “समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.”

“हां संयोग ही है,” वह मुंह सिकोड़ कर बोला, “जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.”

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढऩे लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’

इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—

‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया.

इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोर्ई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है.

सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 2

चुटला मुथु की तलाश में केरल पुलिस तमिलनाडु भी गई थी. वहां से भी उसे निराश हो कर ही लौटना पड़ा था. पुलिस अपना काम कर रही थी, पर सफलता न मिलने से लोगों को यही लग रहा था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है. जबकि पुलिस अधिकारी हत्या के इस केस को हल करने के लिए नईनई टीमें बना कर नए जांच अधिकारी नियुक्त कर किसी भी तरह से हत्यारे को गिरफ्तार करना चाहते थे. लेकिन कोई भी हत्यारे तक पहुंच नहीं सका.

इस के बाद जनार्दन नायर ने अधिकारियों से मांग की कि जब थाना पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराई जाए. इस के बाद यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. क्राइम ब्रांच ने भी इस मामले में अपने नजरिए से जांच शुरू की. पर वह भी कुछ नहीं कर पाई.

इस की वजह यह थी कि सभी उसी मजदूर को कातिल मान रहे थे और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. जो भी नया अधिकारी आता, फाइल देखता, दोचार दिन इधरउधर करता, उस के बाद रमादेवी मर्डर केस की फाइल फिर नीचे दब जाती. इसी तरह समय बीतता गया. गांव वालों का धरनाप्रदर्शन और घेराव भी कुछ नहीं कर पाया था.

जनार्दन नायर पहुंचे हाईकोर्ट

साल बीततेबीतते कुछ लोगों को शक होने लगा था कि रमादेवी की हत्या उस के पति जनार्दन नायर ने तो नहीं की है. दबी जुबान से लोग यह बात कहने भी लगे थे. यह नायर साहब के लिए परेशान करने वाली और अपमानित करने वाली बात थी.

ऐसे में ही अचानक इस मामले में एक नया मोड़ आ गया. साल 2007 में हत्या में मारी गई रमादेवी के पति जनार्दन नायर केरल हाईकोर्ट पहुंच गए. उन्होंने हाईकोर्ट से अपील की कि उन की पत्नी की हत्या के मामले में कातिल का पता लगाने के लिए जांच में तेजी लाई जाए. इस मामले में थाना पुलिस की तो छोड़ो, स्पैशल क्राइम ब्रांच भी कुछ नहीं कर सकी. एक साल बीत जाने के बाद भी न तो कोई सुराग मिला है और न कातिल का पता चल सका.

इस के बाद हाईकोर्ट ने क्राइम ब्रांच को फटकार लगाई. क्राइम ब्रांच ने जांच में तेजी लाई. पर फिर बात उसी मजदूर पर जा कर अटक गई थी, क्योंकि उस के बारे में कुछ पता ही नहीं चल रहा था. जब भी नया अफसर आता, अनसुलझे मामलों की फाइल निकलवाता तो उस में रमादेवी हत्याकांड की भी फाइल निकलती. फाइल पढ़ता, अपने शागिर्दों को इधरउधर दौड़ाता और महीने, 2 महीने बाद शांत हो जाता. इसी तरह एकएक कर के 17 साल बीत गए.

इन 17 सालों में रमादेवी हत्याकांड मामले की जांच क्राइम ब्रांच की 15 टीमों ने की. ये सभी टीमें रमादेवी की हत्या के लिए उसी मजदूर को जिम्मेदार मान रही थीं और उसी को खोज रही थीं. जबकि उस मजदूर का कुछ पता नहीं चल रह रहा था. जबकि उस की तलाश में ये टीमें तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश तक जा चुकी थीं.

रमादेवी हत्याकांड की फाइल कभी खुलती तो कभी धूल खाती पड़ी रहती. कोई पुलिस अधिकारी थोड़ी बहुत कोशिश कर लेता तो कोई उसे देख कर ऐसे ही रख देता. इसी तरह समय बीतता रहा. इस फाइल को धक्के खाते पूरे 17 साल बीत गए.

17 साल में बदल गए 15 जांच अधिकारी

इसी साल जुलाई में क्राइम ब्रांच में एक नए अधिकारी आए इंसपेक्टर सुनील राज. उन्होंने जब पुरानी फाइलें ले कर देखना शुरू किया तो उन्हें रमादेवी हत्याकांड की फाइल में कुछ ज्यादा ही रुचि जागी. उन्होंने पूरी फाइल को ध्यान से पढ़ा. उन्होंने देखा कि इस पर हाईकोर्ट का भी और्डर है, पर अभी तक इस में कुछ हुआ नहीं है.

जिन जिन अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी, उन सब की टिप्पणियां पढ़ीं. सभी ने उसी मजदूर चुटला मुथु को दोषी मान कर उसी की तलाश की बात की थी. पर उस का कुछ पता नहीं चला था. इंसपेक्टर सुनील राज ने तय किया कि वह इस मामले की जांच अपने हिसाब से करेंगे.

उन्होंने हत्या के इस मामले को अपने नजरिए से देखा और इस की जांच शुरू से करने का विचार किया. उन्हें लगा कि रमादेवी का हत्यारा वह मजदूर नहीं, कोई और ही है. क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था तो मजदूर ने हत्या कैसे की थी?

हत्या करने के बाद मजदूर जब बाहर आ गया तो उसे अंदर से दरवाजा बंद करने की क्या जरूरत पड़ी? कोई भी हत्या करने के बाद घटनास्थल से जल्दी से जल्दी भागना चाहेगा न कि बाहर खड़े हो कर अंदर से दरवाजा बंद करने की कोशिश करेगा?

इंसपेक्टर सुनील ने लीक से हट कर की जांच

सुनील राज पहले अफसर थे, जिन्होंने मजदूर को बाहर कर के इस मामले में सोचना शुरू किया. क्योंकि उन्हें लगा कि वह मजदूर इस घटना के बाद दोबारा दिखाई नहीं दिया. इस तरह की कोई दूसरी घटना भी नहीं घटी. जब उन्होंने सोचा कि हम यह मान कर चलें कि मजदूर कातिल नहीं है, कातिल कोई और भी सकता है तो इस के लिए सब से पहले उन्हें यह साबित करने के लिए सबूत की जरूरत थी.

यही सब सोच कर उन्होंने इस घटना की जांच हत्या होने वाले दिन से शुरू करने का निश्चय किया. उन्होंने सब से पहले उन बयानों का ध्यान से अध्ययन किया, जो पहले दिन जनार्दन नायर और उन के पड़ोसियों ने दिए थे. फिर मुखबिरों की खोज के बारे में अध्ययन किया.

सारे बयानों को पढऩे के बाद सुनील राज का ध्यान जनार्दन नायर के बयान पर गया, जिस में उन्होंने कहा था कि उस दिन वह पूरा दिन औफिस में थे. शाम को घर लौटे तो घर की कुंडी अंदर से बंद थी. कई बार आवाज देने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो उन्हें लगा कि पत्नी को कुछ हो तो नहीं गया. तब दरवाजे के ऊपर लगी जाली से हाथ डाल कर उन्होंने अंदर लगी कुंडी खोली और दरवाजा खोल कर अंदर गए तो अंदर पत्नी की लाश पड़ी थी.

उन्हें जनार्दन नायर के बयान में ही कुछ झोल नजर आया. उन के मन में आया कि वह जा कर उस जाली और दरवाजे को देखें कि क्या जाली से हाथ डाल कर अंदर से कुंडी खोल कर दरवाजा खोला जा सकता है? लेकिन जब वह पोलाद गांव स्थित जनार्दन के घर पहुंचे तो पता चला कि वहां तो वह पुराना घर गिरवा कर नया घर बन गया है.

यह उन के लिए एक खराब अनुभव था. क्योंकि जब दरवाजा और वह जाली ही नहीं है तो वह यह कैसे पता करें कि जाली से हाथ डाल कर दरवाजा खुल सकता था या नहीं? उन्हें गहरा धक्का लगा कि यह क्या मामला है. वह वापस आ गए और फाइल में लगी क्राइम सीन की सारी तसवीरें निकलवाईं.

अलगअलग ऐंगल से ली गई एकएक तसवीर को वह ध्यान से देखने लगे. उन्होंने दरवाजे और जाली वाली तसवीरों पर कुछ ज्यादा ही गौर किया. दरवाजे की ऊंचाई और उस के ऊपर लगी जाली को ध्यान से देखा. इस के बाद नायर साहब के पड़ोसियों को बुला कर दरवाजे, जाली और घर के बारे में विस्तार से चर्चा की.

इस के बाद उन्होंने पुलिस वालों से कहा कि एक बिलकुल इसी तरह का दरवाजा, जाली और दीवार तैयार कराओ, जिस की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई वैसी ही होनी चाहिए, जैसी जनार्दन नायर के घर में लगे दरवाजे, जाली और दीवार की थी. साहब का आदेश होते ही पुलिस वाले काम पर लग गए.

एक खाली प्लौट पर वैसी ही दीवार बनाई गई, जिस में ठीक उतना ही लंबा, चौड़ा और ऊंचा लकड़ी का दरवाजा लगवाया गया, जैसा नायर साहब के घर में लगा था. फोटो से देख कर वैसी ही, उतनी ऊंचाई पर जाली भी लगवाई गई. फोटो में कुंडी भी थी. दरवाजे में ठीक वैसी ही और उसी जगह कुंडी भी लगवाई गई, जहां फोटो में लगी थी.

शराफत का इनाम – भाग 2

उस ने 3 साल बड़ी मुश्किल से गुजारे. इस के बाद एक दिन हारुन ने उसे नशे में तलाक दे दिया. उस के तलाक को चार साल हो चुके थे. अभी उस की उम्र 30 साल थी. एक ही रिश्तेदार डैडी थे, 4-5 साल पहले उन का भी इंतकाल हो गया. डैडी काफी कुछ छोड़ गए थे. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. खाने के बाद उस ने ग्रीन टी बनाई, जो करीमभाई को बहुत पसंद आई. वैसे भी वह बस ग्रीन टी ही पीते थे.

खुशीखुशी घर पहुंच कर करीमभाई रूमाना के खयालों में डूबे रहे. औरत जब खुद बढ़ती है तो मर्द की हिचक खत्म हो जाती है. तीसरी मुलाकात में बात शादी तक पहुंच गई. रूमाना ने कहा कि पहले तजुर्बे के बाद उसे शादी से डर लगने लगा था. कई लोग उस की तरफ बढ़े, पर वही पीछे हट गई. उस ने स्वीकार किया कि उन्होंने उस के दिल पर दस्तक दी और उसे वह बहुत भले इंसान लगे.

रूमाना ने शादी के लिए हां कर दी. शादी बहुत साधारण तरीके से हुई. करीमभाई के बच्चे और कुछ दोस्त ही शामिल हुए. रूमाना सिर्फ हसीन ही नहीं, बल्कि बहुत समझदार और मोहब्बत करने वाली बीवी साबित हुई.

नौकरानी के साथ मिल कर खाना वगैरह खुद पकाती. करीमभाई का खयाल था कि रूमाना शादी के बाद कुछ शर्तें रखेगी या सिक्योरिटी के लिए कुछ खास रखने को कहेगी. लेकिन उस ने न कुछ मांगा, न कुछ कहा. करीमभाई ने मेहर 10 लाख रखा था, जो मुंह दिखाई से पहले दे दिया. उसे जो अंगूठी पहनाई थी, उस का हरा पत्थर ही करीब 50 लाख का था. बाकी जेवर अलग थे.

इस शादी से रूमाना बहुत खुश थी. करीम भाई की जिंदगी खुशियों से भर उठी. रूमाना घर की मलिका थी, जो चाहे कर सकती थी. शादी के बाद दोनों वर्ल्ड टुअर पर गए. एक महीने खूब घूमेफिरे, ऐश किया. उस के बाद रूटीन जिंदगी शुरू हो गई.

शुरूशुरू में करीमभाई के बच्चे जरा खिंचेखिंचे रहे, लेकिन जल्दी ही सब नौर्मल हो गए. पहले की तरह आनेजाने लगे. उन्होंने रूमाना को नई कार गिफ्ट की. करीमभाई को लगता था कि वह फिर से जवान हो गए हैं. जिंदगी बेपनाह खूबसूरत लगने लगी थी. रूमाना भी उन का खूब खयाल रखती और खूब प्यार लुटाती. दिन हंसीखुशी गुजरते रहे.

एक दिन काम के दौरान एक अजनबी नंबर से करीमभाई को फोन आया. फोन उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘हारुन.’’ दूसरी ओर से सपाट लहजे में कहा गया.

करीमभाई शौक्ड रह गए.

‘‘मुझे पहचाना करीमभाई?’’

‘‘हां, फोन क्यों किया?’’

‘‘यह बताने के लिए कि मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ा हूं. तुम से मिलने आ रहा हूं. कुछ जरूरी बातें करनी हैं.’’

करीमभाई सोच में डूब गए. उन के माथे पर पसीना चमकने लगा. उन्होंने सेक्रेटरी से कहा, ‘‘हारुन नाम का एक आदमी आ रहा है. गार्ड से चैक करवा कर उसे अंदर भेजो.’’

2 मिनट बाद एक 35-36 साल का स्मार्ट सा आदमी अंदर आया. उस की आंखों में चालाकी और कमीनापन साफ झलक रहा था. करीमभाई ने उसे बैठने को भी नहीं कहा, लेकिन वह बैठ गया.

करीमभाई ने बेरुखी से कहा, ‘‘मैं बहुत मसरूफ हूं, जो कहना है जल्दी कहो.’’

‘‘मैं अपनी बीवी के बारे में बात करने आया हूं.’’

‘‘यह क्या बकवास है? अब वह तुम्हारी बीवी कहां है?’’

‘‘जो औरत पहले से ही शादीशुदा हो, अगर वह दूसरी शादी कर लेती है, तब भी वह पहले शौहर की बीवी कहलाएगी.’’

‘‘पहले से शादीशुदा थी. लेकिन तुम तो उसे तलाक दे चुके हो.’’

‘‘अगर मैं ने रूमाना को तलाक दिया है तो इस का तुम्हारे पास कोई तो सुबूत होगा?’’

करीमभाई को खयाल आया कि ऐसी कोई चीज रूमाना ने उन्हें नहीं दिखाई थी और दूसरे निकाह के वक्त पहले निकाह का कोई जिक्र भी नहीं किया था. वैसे भी एक निकाह पर दूसरा निकाह हराम है, इसलिए दूसरे निकाह के वक्त तलाकनामा पेश करना जरूरी होता है. उन का लहजा कमजोर पड़ गया, ‘‘तुम ने रूमाना को मुंहजबानी तलाक दिया था.’’

‘‘अदालती मामलों में जबानी तलाक का कोई महत्त्व होता है क्या? यह तुम अच्छी तरह जानते हो. लगता है, रूमाना के हुस्न ने तुम्हारी अक्ल को घास चरने भेज दिया था. तुम ने उस से पूछा तक नहीं.’’ हारुन ने कहा.

‘‘रूमाना ने मुझे बताया था कि 4 साल पहले तुम ने उसे तलाक दे दिया था.’’ करीमभाई ने कहा.

‘‘…और तुम ने मान लिया. तुम इतना बड़ा बिजनैस चलाते हो, इतने जहीन आदमी हो, ऐसी गलती कैसे कर सकते हो?’’ वह बोला.

करीमभाई ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि रूमाना तुम्हारी बीवी है?’’

हारुन ने लिफाफे से निकाहनामे की फोटोकौपी सामने रखते हुए कहा, ‘‘यह है निकाहनामा. इस पर रूमाना के दस्तखत हैं. उस के आईडी कार्ड की कौपी भी मौजूद है. यह निकाह रजिस्ट्रार औफिस में बाकायदा रजिस्टर्ड है. काजी ने निकाह करवाया था. निकाह औफिस के रिकौर्ड के अनुसार रूमाना आज भी मेरी बीवी है. यह तो हुआ कानूनी सुबूत. अब कहो तो बता दूं कि रूमाना के बदन पर कहां और कितने तिल हैं?’’

करीमभाई ने मुश्किल से खुद को जब्त किया. उन्हें लगा कि हार्टअटैक आ जाएगा. उन की दराज में पिस्तौल रखा था. उन का दिल कह रहा था कि उठा कर हारुन को गोली मार दें. वह उन की बीवी के बारे में ऐसी गंदी बातें कर रहा था. उन्होंने पानी पिया और बेरुखी से कहा, ‘‘कहो, चाहते क्या हो तुम?’’

‘‘मैं क्या चाहता हूं. मैं अपनी बीवी वापस चाहता हूं.’’

‘‘वह 4 साल पहले तुम्हारी बीवी थी. अब उस से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘4 साल की जुदाई को तलाक नहीं मान लिया जाता. वह आज भी मेरी बीवी है.’’

‘‘तुम उसे तलाक दे चुके हो. तुम ने उसे जबानी तलाक दिया है. अब मैं तुम्हारा मतलब समझ गया हूं. बोलो, कितना चाहिए 10 लाख, 20 लाख, बोलो?’’

‘‘मुझे अपनी बीवी वापस चाहिए. मैं तुम्हें 2 दिन की मोहलत देता हूं. इस के बाद मैं अदालत जाऊंगा. अगर तुम नहीं जानते तो वकील से पूछ लेना, तुम पर कौनकौन से केस बनेंगे.’’ हारुन ने सपाट लहजे में कहा और कमरे से बाहर निकल गया.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 2

पुलिस की शुरुआती जांच में शक ये उठा कि आखिर अंजलि अपने घर से चल कर मंदिर पर पहुंची लेकिन जंगल में क्यों गईं?

इस की जांच के लिए पुलिस ने उन के फोन की वाट्सएप चैट निकाली. इस से पता चला कि अंजलि की बेटी के फोन से ही मैसेज आया था. जिस में लिखा था कि वो अपने दोस्त के साथ ककरैठा जंगल में महादेव मंदिर के पास है. इस कारण अंजलि कंचन की तलाश में उस जंगल में चली गई थीं. अब पुलिस को यहीं से शक हो गया कि अंजलि मर्डर केस में उन की ही बेटी का कुछ न कुछ हाथ तो जरूर है या फिर उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था.

मां को 47 बार काल किया था कंचन ने

पुलिस ने जब बेटी व मां के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकाली, तब जांच से पता चला कि घटना वाले दिन 7 जून को कंचन ने अपनी मां अंजलि व एक अन्य नंबर पर दोपहर 2.20 बजे से 3.56 बजे तक 47 बार फोन किया. पुलिस यह जान गई थी कि कुछ तो है, जो कंचन छिपाना चाहती है. एसएचओ आनंद कुमार शाही का ऐसा अनुमान था कि कंचन ने ही अपनी मां को हत्यारोपियों के सामने तक भेजा था.

शीलू के मोबाइल में चला रहा था इंस्टाग्राम व वाट्सऐप

पुलिस ने प्रखर गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस यह देखना चाहती थी कि प्रखर 7 जून को कहां था. रिपोर्ट से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 7 जून को दोपहर 12 बजे तक प्रखर आगरा में ही था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था.

पुलिस को जांच में पता चला कि अंजलि पति के साथ जब मंदिर पर पहुंची थीं और गायब हुई थीं, इस समयावधि में प्रखर गुप्ता का तो नहीं लेकिन एक अन्य मोबाइल नंबर उस समय वनखंडी महादेव मंदिर के पास मौैजूद था. यानी वारदात के समय मृतका अंजलि और उस गुमनाम मोबाइल की लोकेशन एक ही जगह पर थी. दोनों ही फोन एक ही टावर से जुड़े थे.

पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि यह नंबर कासगंज के गंजडुंडवारा के रहने वाले शीलू का था. पता चला कि वह प्रखर गुप्ता का दोस्त है. शीलू के मोबाइल में प्रखर गुप्ता का इंस्टाग्राम अकाउंट व कंचन का वाट्सऐप एकाउंट चल रहा था. कंचन ने अपने प्रेमी प्रखर को अपना वाट्सऐप एक्सेस दे कर उस से लोकेशन भी शेयर करा दी. वह मां अंजलि को लोकेशन भेज कर अपने पास बुलाता गया, जबकि अंजलि समझ रही थी कि बेटी अपनी लोकेशन भेज रही है. इसी झांसे में वह हत्यारों के पास पहुंच गई. पुलिस ने शीलू के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

केदारनाथ की कह कर निकला था घर से

प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस ने कंचन के प्रेमी प्रखर गुप्ता की तलाश शुरू की. वह घर से फरार मिला. पुलिस शुक्रवार 9 जून, 2023 की रात को उस के घर पहुंची थी. मां से प्रखर के बारे में पूछा. उस ने बताया कि बेटा तो 3 दिन से बाहर है. केदारनाथ जाने की कह कर घर से निकला था.

यह सुन कर पुलिस का शक और गहरा गया. जबकि उस की लोकेशन बुधवार 7 जून दोपहर 12 बजे तक शहर में ही थी. इस खुलासे के बाद पुलिस ने प्रखर की तलाश में सर्विलांस की मदद ली. सुराग मिलने पर टीम उत्तराखंड और दिल्ली भेजी गईं.

अंजलि के लापता होने से हत्या तक की घटना सस्पेंस फिल्म की पटकथा जैसी है. शातिर प्रखर गुप्ता ने हत्या से पहले पूरी तरह शोध कार्य किया था कि पुलिस कैसे पकड़ती है? पुलिस से कैसे बचना है? गहन मंथन करने के बाद हाईटेक साजिश रची गई थी. फोटो में बाइक के नंबर से पुलिस को प्रखर के बारे में पूरी जानकारी व उस का पता मिल गया था. उस के बाद कडिय़ां आपस में जुड़ती चली गईं. पुलिस ने तब दबिश देनी शुरू कर दी.

गिरफ्तारी के बाद भी डरा नहीं प्रखर

पुलिस को इस मर्डर केस की साजिश का परत दर परत खुलासा करने में 3 दिन लगे. 11 जून को खंदारी के पास से पुलिस ने 21 वर्षीय प्रखर गुप्ता को गिरफतार कर लिया. पुलिस ने प्रखर से पूछताछ शुरू की तो उस ने कहा पुलिस तो रस्सी का सांप बना देती है. निर्दोष को फंसाती है. कोर्ट तो सबूत मांगता है. हत्यारोपी के मुंह से ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई.

पुलिस से डरने के बजाए हत्यारोपी प्रखर पुलिस पर हावी था. उस ने झूठीसच्ची कहानी गढ़ कर पुलिस को घंटों घुमाया. फिल्मों, वेब सीरीज, सीरियलों को देख कर प्रखर ने जो सीखा था, वह पूरा ज्ञान पुलिस पर उड़ेल दिया. कोर्ट में बात करेंगे.

वह टूट नहीं रहा था. कहने लगा, कहां हैं उस के फिंगरप्रिंट, लोकेशन और आला कत्ल, अंजलि का मोबाइल? सबूत हों तो दिखाओ. वह पुलिस के सामने फिल्म ‘दृश्यम’ का अजय देवगन बन गया था.

इस के बाद पुलिस ने भी पैंतरा बदला और प्रखर के सामने उस की मां व छोटे भाई को ले कर आई. कहा कि तुम्हारे साथ मां और भाई भी जेल जाएंगे. इतना सुनते ही प्रखर टूट गया. उस ने कहा कि अंजलि को शीलू ने मार दिया, उस ने कुछ नहीं किया. उस ने तो बात करने के लिए बुलाया था. वह घटना के समय शीलू के साथ था.

कंचन भी प्रखर को निर्दोष बताने लगी. उस ने भी कहा कि मां को शीलू ने ही मारा है. इस पर शीलू ने कहा कि वह प्रखर को जानता है. वह गांव से उसे बहाने से बुला कर लाया था. हम दोनों ने मिल कर हत्या की है. इस में कंचन का भी हाथ है. प्रखर और उस की प्रेमिका दोनों झूठ बोल रहे हैं. पुलिस द्वारा सबूत दिखाने पर आखिर प्रखर ने अंजलि की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

प्यार में कराई मां की हत्या

प्रखर बोला, “हां, उस ने अंजलि बजाज को मारा है. क्या करता, उस का प्यार उस से छिन रहा था. उस के सपने चूरचूर हो रहे थे. उन्हें पता चल गया था कि कंचन से उस का करीबी रिश्ता जुड़ चुका है. वह अंजलि बजाज को नहीं मारता तो वह उसे पोक्सो एक्ट में जेल भिजवा देती.

“कंचन भले ही कोर्ट में कहती रहती कि वह उस से प्यार करती है, तब भी उसे जेल जाना पड़ता क्योंकि नाबालिग की बात कोई मायने नहीं रखती.”

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या में उस ने अपने गांव के दोस्त शीलू की मदद ली थी. हत्या से पहले उस ने व शीलू ने शराब भी पी थी ताकि अंदर से हिम्मत आ जाए.

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 2

अरुण पिंकी को खोज ही रहा था कि उस के मोबाइल पर उस के साले दिनेश ने फोन कर के कहा कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने उसे बताया कि पिंकी ट्रेन से गायब हो गई है तो पहले दिनेश ने उसे खूब गंदीगंदी गालियां दीं, उस के बाद उस पर सीधे आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को ट्रेन के नीचे फेंक कर मार दिया है.

अरुण लाख सफाई देता रहा, लेकिन दिनेश ने उस की एक नहीं सुनी. उसे गालियां देते हुए दिनेश एक ही बात कहता रहा कि उस ने पिंकी को मार डाला है, इसलिए उसे इस करनी का फल भोगना ही होगा. अरुण वैसे ही परेशान था, साले की इस धमकी ने उस की परेशानी और बढ़ा दी.

अरुण बिलासपुर में पिंकी को खोज ही रहा था कि दूसरी ओर उस के ससुर केदार राणा ने थाना घनावर जा कर तत्कालीन थानाप्रभारी महेंद्र प्रसाद सिंह से मिल कर पिंकी को ट्रेन से फेंक कर मार डालने की रिपोर्ट अरुण, उस के पिता नूनूराम, मां रामनी, भाई परमेश्वर और भाभी गुडि़या के खिलाफ दर्ज करा दी.

मुकदमा दर्ज होते ही थाना घनावर पुलिस ने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापा मारा. नूनूराम को रिपोर्ट दर्ज होने का पता चल गया था, इसलिए पुलिस से बचने के लिए वह परिवार सहित छिप गया था. लेकिन वे लोग कितने दिनों तक रिश्तेदारों के यहां छिपे रह सकते थे, इसलिए धीरेधीरे सभी ने आत्मसमर्पण कर दिया. अरुण तो पहले ही पकड़ा जा चुका था. इस तरह नूनूराम का पूरा परिवार पिंकी की हत्या के आरोप में जेल चला गया.

नूनूराम, परमेश्वर, रामनी और गुडि़या की तो जमानतें हो गईं, पर अरुण की जमानत नहीं हो सकी. नूनूराम के जमानत पर जेल से बाहर आने के कुछ दिनों बाद पिंकी का बाप केदार राणा उन से मिलने आया. इस मुलाकात में उस ने नूनूराम से कहा कि अगर वह चाहें तो इस मामले में वह समझौता कर सकता है. लेकिन इस के लिए उन्हें उसे 8 लाख रुपए देने होंगे.

समधी की इन बातों से नूनूराम का माथा ठनका. वह इस बात पर गौर करने लगा कि जिस आदमी ने बेटी की हत्या के आरोप में उस के पूरे परिवार को जेल भिजवाया हो, वह पैसे ले कर समझौता करने को क्यों तैयार है? जरूर इस में कोई राज है.

उस ने केदार राणा से कहा, ‘‘जिस अपराध को हमारे परिवार ने किया ही नहीं, उस के लिए समझौता करने की बात कहां से आ गई. हम तो वैसे भी जेल हो आए हैं, तुम 8 लाख की बात कर रहे हो, हम फ्री में भी समझौता नहीं करेेंगे.’’

इस के बाद नूनूराम ने एक वकील से सलाह कर के गिरिडीह की अदालत में 10 दिसंबर, 2012 को पिंकी की हत्या के मामले में अपने परिवार को निर्दोष बताते हुए एक परिवाद दाखिल किया. यही नहीं, अपने समधी की बातों से उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि इस मामले में उन के परिवार को फंसाया गया है.

यही सोच कर उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह असलियत का पता लगा कर रहेंगे. पिंकी जिंदा है, लेकिन कहां है, इस का पता उन्हें लगाना था.

नूनूराम को पता था कि आदमी कैसा भी हो, उस का कोई न कोई दुश्मन होता ही है. उन्हीं दुश्मनों से मिल कर नूनूराम सच्चाई का पता लगाने लगे. इसी खोजबीन में उन्हें पता चला कि कुबरी के जिस स्कूल में पिंकी पढ़ती थी, उसी स्कूल के प्रिंसिपल चंद्रभानु राय का बेटा नितेश कुमार भी पिंकी के साथ पढ़ रहा था. पढ़ाई के दौरान ही दोनों में प्यार हो गया था.

नितेश के घर वालों को तो पिंकी को बहू बनाने में कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन जब इस बात की जानकारी पिंकी के घर वालों को हुई तो उन लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया. इस की वजह यह थी कि नितेश उन की जाति का नहीं था.

नितेश और पिंकी का प्यार अब तक इस स्थिति तक पहुंच चुका था कि वे अलग होने के बारे में सोच कर ही डर जाते थे. इसलिए पिंकी ने नितेश के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का निर्णय कर लिया था. इस के लिए नितेश भी तैयार था. अब वे मौके की तलाश में थे.

लेकिन घर वालों ने पिंकी को घर में कैद कर दिया था, इसलिए उसे मौका ही नहीं मिल रहा था. उसे मौका मिलता, उस के पहले ही केदार राणा ने नूनूराम के बेटे अरुण के साथ उस की शादी कर दी. अरुण बीए तक पढ़ा भी था और उस का फर्नीचर का काम भी बढि़या चल रहा था.

पिंकी दुलहन बन कर अरुण के घर आ तो गई, लेकिन वह अपने प्रेमी नितेश को दिल से निकाल नहीं पाई. ऐसे में ही जब कहीं से नितेश ने उस का नंबर ले कर उसे फोन किया तो वह यह भूल गई कि अब वह किसी और की अमानत हो चुकी है. फिर तो दोनों में लगातार बाते होने लगीं. इन्हीं बातों में यह बातें भी होती थीं कि वह किस तरह उस के पास पहुंचे. क्योंकि नितेश अभी भी उसे अपनाने को तैयार था.

शादी होने पर अरुण पत्नी को कहीं घुमाने नहीं ले गया था. इसलिए उस ने पिंकी के साथ नागपुर घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया. उस ने टिकट भी करा लिया था. पिंकी ने यह बात अपने प्रेमी नितेश को बताई तो उस के लिए आतुर शातिर दिमाग नितेश ने उसे पाने की योजना बना डाली. उस ने पिंकी से कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ भागना चाहो तो मैं तुम्हें उपाय बताऊं?’’

‘‘मैं तो तुम्हारे साथ भागने को कब से तैयार हूं, तुम उपाय बताओ.’’ पिंकी ने कहा.

‘‘जब तुम नागपुर जाने लगोगी, मैं तुम्हें बिलासपुर में मिलूंगा. तुम वहीं ट्रेन से उतर जाना.’’ नितेश ने उपाय बताया तो पिंकी बोली, ‘‘ठीक है, मैं पूरी तैयारी कर के आऊंगी. लेकिन तुम समय से पहुंच जाना.’’

इस के बाद नितेश ने पिंकी से कोच और सीट नंबर पूछ लिया.

1 जून, 2011 को अरुण पिंकी के साथ राउरकेला से नागपुर जा रहा था तो रात में जब ट्रेन बिलासपुर में रुकी तो योजनानुसार नितेश वहां मिल गया. पिंकी चुपके से उस के साथ ट्रेन से उतर गई. नितेश वहां से उसे ले कर दिल्ली चला गया.

पिंकी के ट्रेनन से उतरते ही उस के भाई दिनेश ने अरुण को फोन किया कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने बताया कि पिंकी ट्रेन से लापता हो गई है तो दिनेश ने आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को मार दिया है और ट्रेन से गायब होने का नाटक कर रहा है. यही नहीं, पिंकी के पिता केदार राणा ने अगले दिन यानी 2 जून, 2011 को थाना घनावर में अरुण और उस के घर वालों के खिलाफ बेटी की हत्या की रिपोर्ट भी दर्ज कर दी थी.

नूनूराम को जब पिंकी और प्रिंसिपल चंद्रभानु राय के बेटे नितेश कुमार के प्रेमसंबंधों के बारे में पता चला तो उस ने नितेश के बारे में पता किया. पता चला, नितेश भी तब से गांव में नहीं दिखाई दिया है, जब से पिंकी गायब है. वह समझ गया कि इस का मतलब पिंकी जहां कहीं भी है, नितेश के साथ ही है. यही नहीं, पिंकी के जिंदा होने और निलेश के साथ होने की जानकारी पिंकी के घर वालों को भी है. साफ था केदार राणा के घर वालों ने पूरा षडयंत्र रच कर उस के घर वालों को फंसाया था.