एयर होस्टेस का अधूरा प्यार – भाग 2

आदेश अर्चना की डेटिंग ऐप प्रोफाइल पर अब रोज अपने कमेंट भेजने लगा था. अर्चना अपनी पोस्ट पर आदेश के द्वारा भेजे कमेंट पढ़ती तो उस की नजर में आदेश का कद और ऊंचा हो जाता. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे मजबूत डोर में बंधने लगी. आदेश अर्चना की नजर में सुलझा हुआ इंसान था. उस के कमेंट में कोई अश्लीलता नहीं होती, न वह ऊलजलूल बातें लिखता था.

आदेश हमेशा इस खूबसूरत दुनिया के खूबसूरत नजारों की बातें लिखता, कभी निराशा के महत्त्व को समझाता, जिस के आधार पर इंसान अपना भविष्य तय करता है. आदेश मन से चाहता था कि अर्चना अपने मकसद में कामयाब हो जाए, वह एयरहोस्टेस बन कर ऊंची उड़ान भरे. अर्चना पूरी लगन से एयरहोस्टेस के लिए तैयारी कर रही थी. इधर उस का झुकाव धीरेधीरे आदेश की ओर होने लगा था.

दोस्ती बदली प्यार में…

किसी दिन आदेश का यदि कोई कमेंट नहीं आता तो अर्चना उदास हो जाती थी. आदेश उस के दिलोदिमाग पर छाता जा रहा था. सोतेजागते, खातेपीते बस आदेश का खयाल ही अर्चना की जेहन में उभरता रहता. आदेश उस की नींदें चुराने लगा था, उस के दिल में हलचल मचाने लगा था. अब अर्चना का मन करता था, उस की पोस्ट से हट कर सीधे उस से बातें करे.

अर्चना हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा के बनखेड़ी में रहती थी और आदेश बेंगलुरु में. दोनों के बीच बहुत लंबा फासला था, वह आमनेसामने बैठ कर बातेंमुलाकातें नहीं कर सकते थे. अर्चना को आदेश से बात करने का एक ही जरिया नजर आया, वह जरिया था मोबाइल. मोबाइल द्वारा आदेश और वह रात और दिन बातें कर सकते थे, लेकिन अर्चना आदेश को यह सुझाव देने में हिचक रही थी. वह नारी थी, अपनी ओर से यह सुझाव देने में उसे शरम महसूस हो रही थी. वह चाहती थी कि इस की पहल आदेश करे.

एक दिन उस की मुराद पूरी हो गई. आदेश ने कमेंट किया, ‘‘अर्चना, तुम बेहद खूबसूरत और सुलझी हुई युवती हो. हम दोनों के बीच लंबे समय से पोस्ट पर कमेंट का ही आदानप्रदान हो रहा है, अब दिल तुम से मिलने को तड़पने लगा है. ऐसा क्यों हो रहा है, मैं नहीं जानता, लेकिन अब मैं तुम्हारी मीठी आवाज सुनना चाहता हूं. क्या तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर दोगी?’’

अर्चना के दिल में जलतरंग बजने लगी. उसे बिन मांगे मोती मिल गए थे. उस ने कमेंट में लिखा, ‘आदेश, मैं खुद तुम्हारी आवाज सुनने को बेताब हूं. मैं तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दे रही हूं, तुम भी मोबाइल नंबर लिख दो, दिलों से तो हम कभी के जुड़ चुके हैं, अब जुबां से भी जुड़ जाएं, तो अच्छा होगा.’’ दोनों ने अपनाअपना मोबाइल नंबर पोस्ट पर डाल दिया.

उस वक्त रात के सवा 9 बजे थे, जब आदेश ने उस का नंबर मिलाया. उस की आवाज में शायरानापन था, ‘‘मेरे दिल की बगिया में खूबसूरत शहजादी का स्वागत है, यह नाचीज गुलाम तुम्हें झुक कर सलाम करता है.’’

“ओह आदेश, तुम कितने अच्छे हो.’’ आदेश की आवाज पर मदहोशी में झूमती हुई अर्चना बोली, ‘‘तुम जैसा प्यारा दोस्त पा कर मैं निहाल हो गई हूं.’’

“एक बात कहूं अर्चना?’’ आदेश ने सकुचाते हुए पूछा.

“कहो आदेश, जो तुम्हारे दिल में हो, बेझिझक कह डालो.’’

“यह दिल अब तुम्हारे लिए बेचैन रहने लगा है, क्या तुम एक बार मेरे पास बेंगलुरु नहीं आ सकती?’’

“तुम बुलाओ और मैं न आऊं.’’ अर्चना खुशी से चहकी, ‘‘मुझे खूबसूरत लोग और खूबसूरत शहर देखने का बचपन से शौक रहा है. सुना है बेंगलुरु बहुत खूबसूरत शहर है.’’

“बहुत खूबसूरत है मेरा बेंगलुरु, जैसे तुम्हारा कश्मीर हसीन है, वैसे ही मेरा बेंगलुरु भी हसीन है. आओगी तो मन खुश हो जाएगा.’’

“ठीक है आदेश. मैं आ रही हूं, तुम इंतजार करना.’’ अर्चना ने कहा और अंगड़ाई ले कर उस ने मोबाइल औफ कर दिया.

4 दिन बाद ही अर्चना बेंगलुरु पहुंच गई. वह ट्रेन से आ रही है, इस बात की सूचना उस ने आदेश को दे दी थी. वह ट्रेन पहुंचने के वक्त उस बोगी के सामने अर्चना के स्वागत के लिए खड़ा था, जिस में अर्चना की बर्थ थी. अर्चना अपना बैग ले कर बोगी के दरवाजे पर आई तो आदेश ने उस की तरफ हाथ हिलाया.

कंप्यूटर पोस्ट पर वे अपनीअपनी तसवीरें डालते रहते थे, इसलिए एकदूसरे को पहचानने में उन्हें परेशानी नहीं हुई. अर्चना आदेश को देख कर खुशी से दौड़ी और उस के सीने से लग गई. आदेश ने भावावेश में अर्चना का माथा चूम लिया.

“कैसी हो अर्चना, सफर में कोई परेशानी तो नहीं हुई?’’

“मैं आराम से पहुंच गई हूं आदेश, तुम्हें सामने देख कर मुझे इतनी खुशी हो रही है कि शब्दों में बयान नहीं कर सकती.’’

“मैं भी तुम्हें देख कर बहुत खुश हूं अर्चना.’’ आदेश ने मुसकरा कर कहा और अर्चना का बैग ले कर कंधे पर टांग लिया, ‘‘आओ पहले किसी रेस्तरां में कुछ नाश्ता कर लेते हैं, फिर घर चलेंगे.’’

आदेश ने कराई बेंगलुरु की सैर…

आदेश अर्चना को एक रेस्तरां में ले कर आया. वहां अर्चना को ब्रेकफास्ट करवाने के बाद वह उसे श्री लक्ष्मी मंदिर रोड स्थित श्री रेणुका रेजीडेंसी के फोर्थ फ्लोर वाले अपने फ्लैट में ले आया. यह फ्लोर उस ने रेंट पर ले रखा था. उस के कमरे में एक सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले इंसान के रोजमर्रा के काम आने वाला सामान था. फोल्डिंग पलंग, दरी चादर, बैग और किचन में छोटा सा इलैक्ट्रिक बर्नर. वहां खाना पकाने और खाने के इस्तेमाल में काम आने वाले कुछ बरतन भी थे.

अर्चना ने आश्चर्य से पूरा कमरा और किचन देखा, ‘‘तुम खुद खाना बनाते हो आदेश?’’ हैरानी से अर्चना ने पूछा.

“हां.’’आदेश ने सिर हिलाया, ‘‘फिलहाल तो मैं ही खाना बनाता हूं, बाद में कोई घर संभालने वाली आ जाएगी तो इस झंझट से मुक्ति मिल जाएगी.’’

“कोई देख रखी है क्या?’’ कनखियों से आदेश की ओर देख कर अर्चना ने उत्सुकता से पूछा.

“देखी तो है लेकिन अभी उस से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है.’’ आदेश ने कहा और इस विषय को ही बदल दिया, ‘‘अर्चना तुम नहा कर फ्रैश हो जाओ, कुछ देर आराम कर लो, फिर मैं तुम्हें घुमाने ले चलूंगा.’’

“ठीक है,’’ अर्चना ने कहा और टावेल ले कर बाथरूम में घुस गई.

“आदेश ने घर संभालने के लिए किसी को देखा है. वह कौन होगी, यह जानने के लिए अर्चना उत्सुक नहीं थी. क्योंकि वह जान चुकी थी कि आदेश उसे मन ही मन प्यार करने लगा है. अपना जीवनसाथी वह उसे ही बनाएगा. शरम और झिझक में आदेश ने बात का विषय ही बदल दिया.’’ फ्रैश होते समय अर्चना यही सोच कर मन ही मन मुसकराती रही.

नहाने के बाद अर्चना ने कुछ देर आराम किया. फिर आदेश के साथ बेंगलुरु की सैर को निकल गई. आदेश ने उसे बेंगलुरु के पर्यटनस्थल दिखाए, माल में शापिंग करवाई और स्थानीय भोजन का स्वाद चखाया. अर्चना बहुत खुश थी कि वह आदेश के साथ में है.

रहने लगे लिवइन रिलेशन में…

अर्चना 5 दिन बेंगलुरु में रही. इन 5 दिनों में वह आदेश के दिल के और करीब आ गई. छठे दिन आदेश से विदा लेते समय उस ने आदेश के चेहरे पर उदासी देखी तो उस का दिल तड़प उठा, ‘‘क्या हुआ आदेश, तुम्हारा चेहरा क्यों मुरझा गया है?’’

आदेश ने उस की तरफ नजरें उठाईं और भरे गले से बोला, ‘‘मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता अर्चना. तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

“मैं भी अब तुम्हारी जुदाई नहीं सह सकूंगी आदेश. मैं यहीं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं लेकिन…

“लेकिन क्या?’’ आदेश ने व्याकुल हो कर पूछा.

“मैं समाज से डरती हूं आदेश. मैं अभी कुंवारी हूं, तुम्हारे पास रही तो लोग तरहतरह की बातें करेंगे.’’

“समाज के लोग किसी को प्यार करते देख कर कब खुश हुए हैं अर्चना. ये लोग प्यार के रास्ते में फूल नहीं, कांटे बिछाना जानते हैं. हम यदि इन से डरेंगे तो कभी एक नहीं हो पाएंगे.’’

“तुम ठीक कहते हो आदेश,’’ अर्चना ने सिर हिलाया और दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘मैं कांगड़ा जा कर अपना सामान ले आती हूं. अब हम साथ जीएंगें, साथ मरेंगे.’’

आदेश ने खुशी से अर्चना को बाहों में भर लिया. अर्चना ने उस के कंधे पर सिर रख कर आंखें बंद कर लीं. दोनों के चेहरों से उदासी की परछाइयां लोप हो गई थीं.

एयर होस्टेस का अधूरा प्यार – भाग 1

वर्तमान परिवेश में हम ऐसे अव्यवस्थित समय में जी रहे हैं, जहां विश्वास सब से दुर्लभ वस्तु बन गया है. आज के दौर में सच्चा प्रेम और अपनापन किसी से पा लेना एक अधूरे सपने को पूरा कर लेने जैसा ही है. इस सत्य घटना की पात्र अर्चना धीमान ने भी आदेश से सच्चा प्रेम और अपनापन पाने के लिए उस की ओर हाथ बढ़ाया, उस पर विश्वास किया, लेकिन वह ठगी गई.

अर्चना न तो अशिक्षित थी, न कच्ची उम्र की नादान बालिका. वह 25वां बसंत देख चुकी थी. ग्रैजुएट कर चुकी अर्चना ने अपनी आंखों पर नए दौर का ऐसा चश्मा लगा लिया था, जिस से उसे दुनिया चमचमाती और रंगीन दिखाई देती है. बेटी की बढ़ती उम्र को देख कर मांबाप चिंतित थे. अर्चना के पिता देवनाथ धीमान उस के हाथ पीले कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा लेना चाहते थे.

न्यूजपेपर में उन्होंने उस के विवाह का विज्ञापन दिया था. रोज 5-7 लडक़ों के फोटो बायोडाटा के साथ उन के पते पर आ रहे थे, लेकिन अर्चना किसी भी लडक़े को अपने जीवनसाथी के रूप में पसंद नहीं कर रही थी. उस दिन भी डाक से 3 लडक़ों के फोटो अर्चना से रिश्ते के लिए आए थे. पतिपत्नी उन्हीं फोटो को देख रहे थे.

“अर्चना के पापा, मुझे यह लडक़ा अर्चना बेटी के लिए पसंद आ रहा है,’’ अर्चना की मां एक फोटो देवनाथ धीमान की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘इस का कोच्चि में पांचसितारा रायल होटल है. 50 आदमी वहां काम करते हैं. लाखों कमाता है, अर्चना रानी बन कर राज करेगी.’’

“लडक़ा तो अच्छा है, मुझे भी जंच रहा है, लेकिन अर्चना से पूछ लो. वह हां करेगी या अन्य रिश्तों की तरह इस रिश्ते को भी ठुकरा देगी.’’

“मैं बुलाती हूं उसे,’’ अर्चना की मां ने कहने के बाद जोर से पुकारा, ‘‘अर्चना बेटी, जरा यहां ड्राइंगरूम में आना.’’

2-3 बार पुकारा गया, तब अर्चना अपने स्टडीरूम से झल्लाती हुई बाहर आई, ‘‘क्या हुआ मम्मी, आप हर समय आवाज लगाती रहती हो, मेरा एग्जाम सिर पर है, यह तो सोचा करो, मैं पढ़ रही हूं, डिस्टर्ब होगा.’’

“जानती हूं बेटा, लेकिन हमें भी तो अपनी जिम्मेदारी निभाने दे.’’ अर्चना की मां हंस कर बोली, ‘‘ले देख यह लडक़ा तेरे पापा को और मुझे बहुत जंच रहा है.’’

अर्चना ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘लगता है कि आप दोनों के पास मेरी शादी के अलावा कोई और विषय नहीं है क्या. हर वक्त शादी… शादी यह लडक़ा देख, वो लडक़ा देख. मैं 10 बार कह चुकी हूं मम्मी, मुझे पहले अपना एयरहोस्टेस बनने का सपना पूरा करना है, मैं जब अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी, तब शादी के बारे में सोचूंगी.’’

“तब तक तो बहुत देर हो जाएगी बेटा.’’ देवनाथ ने परेशान हो कर कहा.

“हो जाने दीजिए. शादी होगी तभी इंसान जीएगा, ऐसा किसी किताब में नहीं लिखा है. करोड़ों कुंवारे भी अपनी जिंदगी पूरी कर ही लेते हैं न.’’ अर्चना ने झुंझला कर कहा और पांव पटकती हुई स्टडी रूम में चली गई. देवनाथ और उन की पत्नी गहरी सांस भर कर एकदूसरे को देखते रह गए.

डेटिंग ऐप से हुई दोस्ती…

अर्चना आ कर अपने कंप्यूटर के सामने बैठ गई. उस का मूड खराब हो गया था. कुछ देर तक वह चुप बैठी रही, फिर उस ने कंप्यूटर चालू कर के अपनी डेटिंग ऐप वाली प्रोफाइल खोल ली. उस में अर्चना ने अपनी सहेली प्रिया के कहने पर दोस्ती के लिए रिक्वेस्ट डाली थी.

4 दिनों से उस के प्रोफाइल पर आदेश नाम के युवक की ओर से फ्रैंडशिप के लिए रिक्वेस्ट आ रही थी. अर्चना उस की रिक्वेस्ट पर कोई उत्तर नहीं दे रही थी, वह आदेश की रिक्वेस्ट को ब्लौक कर देती थी. अभी उस ने कंप्यूटर खोल कर अपनी डेटिंग ऐप वाली प्रोफाइल देखी तो आदेश की फ्रैंड रिक्वेस्ट फिर से नजर आई. आदेश ने इस बार अपना बायोडाटा भी भेजा था.

बायोडाटा के अनुसार आदेश केरल के कोच्चि शहर का रहने वाला था. वर्तमान में वह कर्नाटक के बेंगलुरु में रह कर एक प्रतिष्ठित कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहा था. आदेश ने अपनी फोटो भी प्रोफाइल पर भेजी थी. देखने में वह हैंडसम लग रहा था. उस की उम्र 30 साल थी. अर्चना ने आदेश की फोटो अपने मोबाइल में अपलोड कर ली और कंप्यूटर बंद कर के अपनी सहेली प्रिया से मिलने के लिए घर से निकल गई.

“वाव,’’ प्रिया ने आदेश का फोटो देख कर होंठों को गोल दायरे में सिकोड़ कर चहकते हुए कहा, ‘‘यह तो बहुत हैंडसम है यार अर्चना. यह दोस्त बनाने के काबिल है.’’

“सिर्फ किसी की खूबसूरती और तन के कीमती कपड़ों से उस की परख नहीं होती प्रिया, वह व्यक्ति दिल का कैसा है, यह भी देखना पड़ता है.’’ अर्चना ने गंभीर स्वर में कहा.

“तू इस से दोस्ती करेगी, इस के करीब जाएगी तभी तो इसे सही ढंग से पहचान पाएगी.’’ प्रिया ने तर्क रखा, ‘‘तू इसे दोस्त बना कर परख ले. मन का साफ और दिल का नेक हो तो दोस्ती निभाना, नहीं तो चलता कर देना.’’

“हां, यह तू ठीक कह रही है. मैं इस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर लेती हूं.’’ अर्चना ने मुसकरा कर कहा. थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद दोनों सहेलियां अपनीअपनी राह निकल गईं. उसी रात सोने से पहले अर्चना ने आदेश की फ्रैंडशिप कुबूल कर ली. आदेश की ओर से उस की प्रोफाइल पर दोस्ती कुबूल करने के लिए थैंक्स कहा गया.

अर्चना धीमान बनी एयर होस्टेस…

अर्चना अपनी ग्रैजुएशन कंप्लीट कर लेने के बाद एयरहोस्टेस के एग्जाम की तैयारी कर रही थी. उस का सपना एयरहोस्टेस बनने का था. वह छरहरे बदन की खूबसूरत युवती थी. नैननक्श तीखे थे और संतरे की फांक जैसे पतले गुलाबी होंठों पर हमेशा मुसकान खिली रहती थी. उस का मदमाता यौवन किसी भी पुरुष को मदहोश बना सकता था.

25 साल की उम्र किसी भी इंसान को इतना तो सिखा ही देती है कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है. अर्चना भी इतनी परिपक्व हो चुकी थी कि सामने वाले से 2-4 बातें कर के उस की नीयत का अंदाजा लगा लेती थी. इंसान की परख करना वह सीख गई थी. उसे अपने आप पर पूर्ण विश्वास था कि अपने विश्वास को कभी डगमगाने नहीं देगी.

उस ने मम्मीपापा की शादी की जिद से ऊब कर ही डेटिंग ऐप पर अपना एकाउंट बनाया था. कितने ही युवकों ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए अपनी रिक्वेस्ट भेजी थी, उन्हीं में से जांचपरख कर अर्चना ने आदेश का चुनाव किया था.

आदेश अर्चना की नजर में खरा और विश्वास करने वाला युवक था. आदेश का सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर एक प्रतिष्ठित कंपनी में जौब करना, उस का प्रभावशाली व्यक्तित्व और आकर्षक बौडी अर्चना को पसंद आई थी. उस ने आदेश की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया था.

बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 3

साहिल ने तुरंत इस घटना की सूचना अपने ससुर बृजभूषण और साले गौरव को दी. लगभग 2 घंटे बाद श्वेता के घर वाले रिश्तेदारों और परिचितों के साथ जगराओं आ पहुंचे. उन लोगों ने साहिल या उस के घर वालों की कोई बात सुने बिना ही हंगामा करना शुरू कर दिया.

थाना सिटी को भी घटना की सूचना दे दी गई थी. थाना सिटी के थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू, एसआई मलकीत सिंह एएसआई बलदेव सिंह, हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह, गुरदियाल सिंह, बलजिंदर कुमार, कांस्टेबल जसविंदर सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए थे.

लाश कब्जे में ले कर उन्होंने आगे की काररवाई शुरू कर दी. दलजीत सिद्धू ने श्वेता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवानी चाही तो उस के मायके वालों ने हंगामा खड़ा कर दिया.  उन का कहना था कि श्वेता कोठी की छत से खुद नहीं कूदी, बल्कि साहिल और उस के मांबाप ने दहेज के लिए उसे छत से धकेल कर मारा है. जब तक उन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक वे लाश नहीं ले जाने देंगे.

श्वेता के घर वालों की मदद के लिए कुछ स्थानीय नेता और समाजसेवी भी आ गए थे. वे पुलिस वालों को धमकी दे रहे थे कि अगर दोषियों के खिलाफ काररवाई नहीं की जाती तो वे धरनाप्रदर्शन के साथ बाजार बंद करवा देंगे. हंगामा चल ही रहा था कि डीएसपी सिटी सुरेंद्र कुमार भी घटनास्थल पर आ गए.

थानाप्रभारी दलजीत सिद्धू ने मौके की नजाकत देखते हुए इस घटना को अपराध संख्या 62/2014 पर भादंवि की धारा 304बी/34 के अंतर्गत साहिल, उस के पिता अशोक कुमार सिंगला और मां कुसुम सिंगला के खिलाफ दर्ज करा दिया. यह 11 मार्च, 2014 की बात है. थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने उसी दिन श्वेता की लाश का पोस्टमार्टम करा कर लाश मोर्चरी में रखवा दी. अगले दिन यानी 12 मार्च को श्वेता की लाश का एक्सरे करवाया गया.

13 मार्च को श्वेता की हत्या के आरोप में साहिल को गिरफ्तार कर लिया गया. साहिल की गिरफ्तारी के बाद श्वेता के मायके वाले कुछ शांत हुए. 14 मार्च को उसे डयूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 18 मार्च तक के लिए रिमांड पर लिया गया.

थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने साहिल को अदालत में पेश करने से पहले 13 मार्च को ही उस की निशानदेही पर श्वेता का मोबाइल फोन और लैपटौप उस के घर से बरामद कर लिया था.  पुलिस ने श्वेता का फोन चैक किया तो पता चला कि घटना वाले दिन यानी 10 मार्च को श्वेता के नएपुराने, दोनों नंबरों पर 2 नंबरों  से 163 बार फोन आए थे तो उन्हीं नंबरों से 193 मैसेज किए गए थे.

पुलिस ने उन दोनों नंबरों के बारे में पता किया तो वे नंबर लुधियाना के हितेश जिंदल के निकले. इस के बाद जब थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने श्वेता के लैपटौप को खंगाला तो उस में उन्हें श्वेता और हितेष की अनगिनत अर्धनग्न अश्लील तसवीरें भरी पड़ी मिलीं. श्वेता के मोबाइल फोन और लैपटौप को चैक करने के बाद सारा मामला साफ हो गया.

एक एसएमएस में श्वेता ने हितेश को लिखा था, ‘तुम मुझे परेशान मत करो. मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा रही हूं, मेरे जाने के बाद तुम्हारे मन में जो आए कर लेना, जितनी मरजी हो मेरी बदनामी करा देना.’

इस एसएमएस के जवाब में हितेश ने लिखा था, ‘हिम्मत है तो मर के दिखा.’

दरअसल, घटना वाले दिन यानी 10 मार्च को 163 बार फोन कर के और 193 बार एसएमएस कर के हितेश ने श्वेता को पूरी तरह से बदनाम करने की जो धमकियां दी थीं, उस से वह बुरी तरह डर गई थी. हितेश उसे तुरंत साहिल से रिश्ता खत्म करने के लिए कह रहा था. वह यह भी कह रहा था कि अगर वह बात नहीं कर सकती तो वह स्वयं फोन कर के साहिल से बात कर लेता है.

जबकि श्वेता ऐसा करने से उसे मना कर रही थी. श्वेता के बारबार मना करने के बावजूद भी हितेश ने रात 1 बजे के करीब साहिल को फोन कर के अपने संबंधों की बात बता दी थी. यही नहीं, उस ने साहिल से गालीगलौज भी की थी. इस पर साहिल ने उस की बातों का बुरा नहीं माना और सुबह बात करने को कह कर फोन काट दिया था.

साहिल ने सोचा था कि सुबह वह कुछ बड़ेबूढ़ों को ले जा कर हितेश को समझा देगा. क्योंकि उन के बीच रिश्तेदारी भी थी. एक तरह से साहिल हितेश के बहनोई का बहनोई था. रात में साहिल ने श्वेता से भी कोई बात नहीं की थी. लेकिन श्वेता ने साहिल और हितेश के बीच होने वाली बातें सुन ली थीं. तब बदनामी के डर से उस ने आत्महत्या कर ली थी.

23 मार्च को पुलिस ने फोन और लैपटौप में मिले सुबूतों को अदालत में पेश कर के स्थानीय जज गुरबीर सिंह की अदालत में साहिल को निर्दोष बताते हुए श्वेता को आत्महत्या के लिए विवश करने के लिए हितेश जिंदल को आरोपी बनाने की अपील की.

साहिल के वकील अशोक भंडारी ने भी श्वेता के घर वालों के अलावा अन्य लोगों के दर्ज बयान, लैपटौप से मिली श्वेता और हितेश की अश्लील तसवीरें तथा फोन में मिले तमाम रिकौर्ड अदालत में पेश किए थे. अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें और सुबूत देखने के बाद साहिल को इस केस से मुक्त कर हितेश को आरोपी बना कर जल्द से जल्द उसे गिरफ्तार करने के आदेश दिए. हितेश अपनी पत्नी हिना के साथ उसी दिन घर से फरार हो गया था, जिस दिन श्वेता ने आत्महत्या की थी.

5 मई, 2014 को हितेश ने लुधियाना की सैशन जज सुरेंद्रपाल कौर की अदालत में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे उन्होंने अगले दिन खारिज कर दिया था. हितेश की तलाश में पुलिस रातदिन छापे मार रही थी. लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लग रहा था. श्वेता ने अपनी एक गलती से अपना घर तो बरबाद किया ही, बेटे को भी बिना मां के कर दिया.

_हरमिंदर खोजी / संजीव मल्होत्रा

बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 2

हितेश श्वेता के भाई गौरव की पत्नी चेतना के मामा जुगल किशोर जिंदल का बेटा था. वह अपने चाचा पवन कुमार जिंदल के साथ लुधियाना की न्यू फे्रंड्स कालोनी में जिंदल प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी का व्यवसाय करता था. श्वेता की तरह वह भी शादीशुदा था. श्वेता की ही तरह वह भी पत्नी से खुश नहीं था.

हितेश की पत्नी हिना लुधियाना की ही रहने वाली थी. श्वेता भी पति से खुश नहीं थी, शायद यही वजह रही कि शादीशुदा होने के बावजूद श्वेता और हितेश पहली ही मुलाकात में एकदूसरे से इस तरह प्रभावित हुए कि एकदूसरे को दिल दे बैठे. शादी के माहौल में साहिल जहां रिश्तेदारों और अन्य कामों में व्यस्त था, वहीं श्वेता हितेश से परिचय बढ़ाने में लगी थी. रिश्तेदारी हो ही गई थी, इसलिए दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए थे.

साहिल तो अगले दिन जगराओं वापस आ गया, पर श्वेता कुछ दिनों के लिए मायके में रुक गई. मौका मिलते ही उस ने हितेश को फोन किया. दूसरी ओर हितेश उस से मिलने के लिए उतावला बैठा था. उस ने श्वेता को मिलने के लिए एक होटल में बुला लिया.

श्वेता ने हितेश के सामने अपने मन की बात रखी तो हितेश ने भी उस से अपने मन की बात बता दी. दोनों ही एकदूसरे की बातों से सहमत थे, इसलिए सारे रिश्तेनाते और अपनीअपनी मर्यादाएं भूल कर उन्होंने होटल के उस एकांत में सारी सीमाएं तोड़ दीं. उन्होंने वहां एक ऐसा रिश्ता कायम कर लिया, जो समाज की नजरों में अवैध था.  लेकिन इस की परवाह न श्वेता को थी और न ही हितेश को. दोनों बेझिझक एकदूसरे से मिलने लगे. कभी हितेश जगराओं चला जाता तो कभी श्वेता लुधियाना आ जाती.

उन का यह खेल बिना किसी रोकटोक के चल रहा था. जब श्वेता रोजरोज लुधियाना जाने लगी तो साहिल ने पूछ लिया कि वह रोजरोज लुधियाना क्यों जाती है? तब उस ने कहा कि उस के सिर में दर्द रहता है, उसी के चैकअप और इलाज के लिए वह लुधियाना जाती है. सीधेसादे साहिल ने उस की बात पर विश्वास कर लिया और संतुष्ट हो कर चुप बैठ गया. क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि एक संभ्रांत परिवार की बहू कोई ऐसा काम कतई नहीं करेगी, जिस से उस की बदनामी हो.

लेकिन यह भी सच है कि पाप कितना भी छिपा कर क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. इस का मतलब यही हुआ कि पाप का घड़ा अवश्य फूटता है. वजह चाहे जो भी हो, ऐसा ही श्वेता और हितेश के साथ भी हुआ. दोनों के संबंधों को अब तक लगभग एक साल हो चुका था.

इधर कुछ दिनों से श्वेता को लगता था कि हितेश अपनी सीमाएं लांघने लगा था. वह जरूरत से ज्यादा आगे बढ़ रहा था. वह उस पर इस तरह अधिकार जताने लगा था जैसे उस का पति हो. यही नहीं, हितेश श्वेता से कहने लगा था कि वह साहिल से उस के और अपने संबंधों के बारे में बता कर उस से तलाक ले ले और उस से शादी कर ले. लेकिन श्वेता इस के लिए कतई तैयार नहीं थी.

उस ने हितेश से संबंध अपनी इच्छापूर्ति के लिए बनाए थे. इस के लिए वह हितेश का पूरा खर्च भी उठा रही थी. लेकिन हितेश अब जो चाह रहा था, वह उसे कभी नहीं पूरा कर सकती थी. क्योंकि इस में 2 परिवारों की इज्जत तो जुड़ी ही थी, साहिल और उस की हैसियत में भी बहुत अंतर था. हितेश की हरकतों से तंग आ कर श्वेता ने उस से मिलना बंद कर दिया. तब वह उसे फोन कर के साहिल से तलाक लेने के लिए कहने लगा. अब श्वेता को लगा कि उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है.

श्वेता को गलती का अहसास हुआ तो पछतावा भी होने लगा. अब वह उस से संबंध खत्म करना चाहती थी, लेकिन हितेश उसे मजबूर करने लगा था. वह उसे धमकी देने लगा था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह साहिल से अपने और उस के संबंधों के बारे में सबकुछ बता देगा.

हितेश के डर से श्वेता अपना पुराना नंबर अकसर बंद रखने लगी. बातचीत के लिए नया नंबर ले लिया. लेकिन हितेश ने उस का नया नंबर भी पता कर लिया.

8 मार्च, 2014 को भी हितेश ने श्वेता के नए नंबर पर फोन कर के धमकी दी थी कि अगर उस ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो वह जगराओं आ कर साहिल को सब साफसाफ बता देगा. हितेश की इस धमकी से श्वेता बेचैन हो उठी थी. उस ने हितेश को न जाने कितना समझाया कि उन के बीच जो भी जिस तरह चल रहा है, उसे वैसा ही चलने दे. वह जो चाहता है, वह न ठीक है और न संभव. उस से कई घर बरबाद हो जाएंगे.

लेकिन हितेश उस की बातों को हंसी में उड़ा कर अपनी जिद पर अड़ा रहा. इस से श्वेता और अधिक परेशान रहने लगी थी. उस की परेशानी को साहिल ने ताड़ तो लिया था लेकिन वजह नहीं जान पाया था. उस ने सोचा कि वह श्वेता को समय नहीं दे पाता, शायद इसीलिए वह परेशान रहती है. तभी उस ने 10 मई को बाहर किसी होटल में चल कर डिनर लेने के लिए कहा था.

साहिल वादे के अनुसार शाम को समय से पहले घर आ गया था. श्वेता ने सासससुर के लिए खाना बना कर रख दिया था, इसलिए साहिल के आते ही वह उस के साथ निकल गई थी. साहिल उसे जगराओं के मशहूर होटल स्नेहमून में डिनर के लिए ले गया.

श्वेता साहिल के साथ होटल डिनर ले रही थी, तब भी हितेश बारबार श्वेता को फोन कर के धमकी दे रहा था. परेशान हो कर श्वेता ने अपना फोन बंद कर दिया था. रात के 12 बजे के करीब पतिपत्नी खाना खा कर लौटे. साहिल काफी थका हुआ था, इसलिए लेटते ही सो गया. जबकि चिंता और बेचैनी की वजह से श्वेता को नींद नहीं आ रही थी.

हितेश उतनी रात को भी श्वेता को फोन कर रहा था. श्वेता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाए. बातचीत से श्वेता समझ गई थी कि हितेश काफी नशे में है. नशे में ही होने की वजह से ही शायद वह उसे और ज्यादा परेशान कर रहा था. उस स्थिति में उसे रोका भी नहीं जा सकता था.

कोई उपाय नहीं सूझा तो श्वेता ने फोन का स्विच औफ कर दिया और आंखें बंद कर के बेड पर साहिल के बगल लेट गई. इस के बाद रात 1 बजे के करीब साहिल के फोन पर किसी का फोन आया. साहिल ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से जो भी कहा गया, उसे सुन कर साहिल ने सिर्फ यही कहा, ‘‘रात बहुत हो चुकी है. अभी सो जाओ. इस विषय पर कल सुबह बात करेंगे.’’

फोन रख कर साहिल ने करवट ली तो बगल में श्वेता नहीं थी. उसे लगा, सीढि़यों पर कोई जा रहा है. वह उठ कर सीढि़यों की ओर गया. वहां कोई नहीं था. उसे ऊपर का दरवाजा खुला दिखाई दिया तो वह तेजी से ऊपर की ओर बढ़ा.

छत पर पहुंच कर साहिल ने देखा श्वेता छत की मुंडेर पर चढ़ कर नीचे कूदने की तैयारी कर रही थी. वह ‘श्वेता… श्वेता’ चिल्लाते हुए उसे बचाने के लिए उस की ओर दौड़ा. वह श्वेता के पास पहुंच पाता, उस से पहले ही श्वेता ने छलांग लगा दी. एक जोरदार चीख वातावरण में गूंजी, उस के बाद सब खत्म हो गया.

साहिल जहां था, वहीं घबरा कर रुक गया. जल्दी ही उस ने स्वयं को संभाला और नीचे की ओर भागा. चीख सुन कर साहिल के मातापिता ही नहीं, पड़ोसी भी जाग गए थे. लोग निकल कर बाहर आ गए. श्वेता जमीन पर पड़ी थी. पड़ोसियों की मदद से साहिल ने उसे कल्याणी अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

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बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 1

श्वेता बिस्तर पर लेटी जरूर थी, लेकिन नींद न आने की वजह से वह बारबार लंबी सांसें छोड़ कर करवट बदल रही थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ जाती तो उठ कर कमरे में ही टहलने  लगती. उस के मन में जो जबरदस्त  अंर्तद्वंद्व चल रहा था, वह उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. उस ने जो गलती की थी, उसी के पश्चाताप की आग में वह जल रही थी. जैसे ही वह अपने अतीत में झांकती, इतना डर जाती कि सांसें तेजतेज चलने लगतीं. इस के बाद वह सोचने लगती कि अतीत में की गई गलती से वह वर्तमान में कैसे छुटकारा पाए. यही बात उस की समझ में नहीं आ रही थी, जो उस की बेचैनी का सबब बनी हुई थी.

श्वेता ने जो गलती की थी, उस बात पर उसे बेहद अफसोस था. उसी गलती ने आज उसे ऐसी जगह पर ला कर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जिंदगी उसे मौत से भी बदतर लग रही थी. इसलिए वह मौत के बारे में सोचने लगी थी, क्योंकि मौत ही अब उसे इस समस्या और चिंता से मुक्ति दिला सकती थी.

लंबी सांस ले कर श्वेता ने खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखा. बाहर गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. एक गलती की वजह से ठीक वैसा ही अंधकार और सन्नाटा उस के जीवन में भी पसर गया था, जिस के लिए वह स्वयं दोषी थी. अगर वह अपनी बेलगाम इच्छाओं और कामनाओं को काबू रखती तो शायद आज यह दिन उसे न देखना पड़ता.

बिना पतवार की नाव की तरह वह भटकतेभटकते एक ऐसे भंवर में फंस गई थी, जहां से निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ही कभी वह अपने 4 वर्षीय बेटे हितेन के बारे में सोचती तो कभी पति साहिल के बारे में. साहिल सिंह सारी चिंताओं से मुक्त एकदम शांति से बिस्तर पर लेटा सो रहा था.

कल तक जो साहिल उसे गंवार, साधारण और भोंदू नजर आ रहा था, इसी वजह से वह उस से घृणा करती थी. आज उसी भोंदू साहिल पर उसे प्यार आ रहा था. लेकिन अब अफसोस इस बात का था कि उस के पास उस से प्यार करने का वक्त नहीं था. अब न ही वह उस से दुख प्रकट कर सकती थी, न ही उस का घर बरबाद होने से बचा सकती थी. समय उस की उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और हाईसोसायटी के साथ उस के हाथों से सरक गया था.

श्वेता के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. यहां तक कि उस के पास अपनी गलती का प्रायश्चित करने का भी समय नहीं रह गया था. उस की यह हालत कई दिनों से थी. लेकिन आज जो हुआ था, उस ने उस की बेचैनी को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था. वह अजीब कशमकश में फंसी थी.

बात ऐसी थी कि चाह कर भी वह यह राज किसी को नहीं बता सकती थी. श्वेता जानती थी कि उस ने बहुत बड़ी गलती की थी, लेकिन अब उसे सुधारने का न कोई रास्ता था न समय. वह कई दिनों से उसी गलती की वजह से परेशान थी, जो उस के चेहरे पर साफ झलक भी रही थी. उसे परेशान देख कर साहिल ने पूछा भी था. हर बार वह ‘कोई खास बात नहीं है’, कह कर टाल दिया था.

दरअसल, साहिल अपने कामों में कुछ अधिक ही व्यस्त रहता था, इसलिए श्वेता को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. श्वेता के ठीक से जवाब न देने से उसे लगा कि कहीं उसी की वजह से तो वह परेशान नहीं है. इसलिए 10 मार्च की दोपहर को जब वह खाना खाने घर आया तो उस ने कहा, ‘‘श्वेता, आज रात का खाना केवल मां और बाबूजी के लिए ही बनाना. हम दोनों बाहर खाने चलेंगे.’’

अशोक कुमार सिंगला जगराओं शहर के किराना के थोक व्यापारी थे. जगराओं के आतुवाला चौक में उन की बहुत बड़ी दुकान थी. उन का यह व्यवसाय पुश्तैनी था. शहर में उन की गिनती बड़े व्यापारियों में होती थी. जगराओं जैसे छोटे शहर के वह बड़े व्यापारी थे. पास में पैसा था, इसलिए शहर में इज्जत भी थी और रुतबा भी था.

अशोक कुमार सिंगला के परिवार में पत्नी कुसुम के अलावा बेटी शिखा तथा बेटा साहिल सिंह उर्फ रिकी था. शहर के पौश इलाके ग्रेवाल कालोनी में 5 सौ वर्गमीटर में उन की 2 मंजिला विशाल कोठी थी. बेटी की शादी के बाद साहिल पढ़ाई पूरी कर के पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

2-4 लड़कियां देखने के बाद अशोक कुमार सिंगला ने साहिल की शादी लुधियाना के रहने वाले बृजभूषण गोयल की बेटी श्वेता को पसंद कर के उस के साथ कर दी थी. बृजभूषण का लुधियाना में कपड़े रंगने का व्यवसाय था. श्वेता के अलावा उन का भी एक ही बेटा था गौरव.

लुधियाना जैसे महानगर में पलीबढ़ी श्वेता को जगराओं जैसा छोटा शहर देहात जैसा लगता था. उस का वश चलता तो वह एक पल भी जगराओं में न रुकती. लेकिन मांबाप की इज्जत की खातिर वह स्वयं को ससुराल में व्यवस्थित करने की कोशिश करने लगी थी. इस में वह काफी हद तक सफल भी हो गई थी.

श्वेता को एक बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम हितेन रखा गया. चूंकि श्वेता उच्चशिक्षा प्राप्त थी और उस ने महानगर और कालेज की रंगीनियों में दिन गुजारे थे, इसलिए कभीकभी न चाहते हुए भी उस के मन को भटका देते थे. घर में पड़ेपड़े श्वेता का दम घुटने लगा तो उस ने लैपटौप खरीद लिया. नेट लगवा कर वह उसी पर समय काटने लगी.

कोई चिंता उसे थी नहीं, उतनी बड़ी कोठी में सास कुसुम के अलावा और कोई नहीं होता था. वह भी ज्यादातर बीमार ही रहती थीं.  नेट से भी मन भर जाता तो श्वेता समय काटने के लिए कार ले कर निकल पड़ती. जगराओं में ऐसा कुछ था नहीं, जहां वह समय गुजारती. इसलिए वह लुधियाना चली जाती. सिंगला परिवार इस का बुरा भी नहीं मानता था.

श्वेता खुले विचारों की आधुनिक युवती थी, जिस से वह आजाद पंछी की तरह हवा में उड़ना चाहती थी. जबकि उस की ससुराल वाले धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए वो आजकल की चकाचौंध और फैशनपरस्ती से काफी दूर थे. यही वजह थी कि ससुराल उसे कैदखाने की तरह लगती थी.

श्वेता कुछ मांबाप की इज्जत का खयाल कर रही थी तो कुछ समाज का, इसीलिए वह साहिल के साथ दांपत्य की गाड़ी खींच रही थी. क्योंकि साहिल उसे भोंदू, गंवार और बेवकूफ लगता था. शायद इसीलिए एक दिन दांपत्य की इस गाड़ी को ऐसा झटका लगा कि श्वेता की गाड़ी दूसरी पटरी पर चली गई.

पिछले साल मई में श्वेता के भाई गौरव की शादी थी. उस के भाई की शादी थी, इसलिए शादी में शामिल होने के लिए वह तो आई ही थी, पति और सासससुर भी शादी में शामिल होने आए थे. यह शादी लुधियाना के गुलमोहर पैलेस में हो रही थी. इसी शादी में श्वेता की मुलाकात हितेश जिंदल से हुई.

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किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 3

अनारकली की बात पर बलराम ने भी बहस करनी जरूरी नहीं समझी. वह उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर उसी समय उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि इस धोखेबाज औरत को वह सबक जरूर सिखाएगा. और यह काम उस के साथ रह कर संभव हो सकता था.

बलराम के दिल में कसक तो थी ही. वह बस मौके का इंतजार कर रहा था. बात 2 दिसंबर, 2016 की है. दोपहर के समय बलराम दशघरा गढ़ी स्थित अपने कमरे पर आया. उस के दिल में अनारकली के प्रति गुस्सा तो भरा ही हुआ था. बलराम ने उस के चरित्र को ले कर बात शुरू की तो अनारकली भड़क गई. दोनों तरफ से गरमागरमी होने लगी. तभी बलराम कमरे में स्लैब पर रखा अपना हथौड़ा उठा लिया और उस का एक वार उस के सिर पर किया.

हथौड़े के वार से अनारकली बेहोश हो कर गिर पड़ी और उस के सिर से खून निकलने लगा. इस के बाद उस ने उस की पीठ पर भी हथौड़े से कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

अनारकली की हत्या करने के बाद बलराम को तसल्ली हुई पर उस के सामने समस्या यह आ गई कि लाश को ठिकाने कैसे लगाए.

कुछ देर सोचने के बाद वह कमरे में रखा किचन में प्रयोग होने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने अनारकली को कूल्हे के ऊपर से काट कर 2 हिस्सों में कर दिया. कमरे में बड़ेबड़े 2 ट्रैवल बैग रखे थे. उन में रखे कपड़े निकाल दिए. इस के बाद उस ने उन में लाश के टुकड़े रख दिए. फिर उस ने कमरे का खून साफ किया. अब वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा.

अंधेरा होने पर उस ने वह बैग उठाया, जिस में अनारकली का सिर और धड़ वाला भाग रखा था. उस बैग को रिक्शे में ले कर वह कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के पास स्थित बसस्टैंड पर उतर गया. कुछ देर वहां बैठने के बाद जब उसे आसपास कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस बैग को नाले के किनारे झाडि़यों में डाल दिया.

एक बैग को ठिकाने लगाने के बाद वह कमरे पर आया और दूसरे बैग को रिक्शे में ले कर कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित मसजिद के पास उतर गया.

फिर वहां से कुछ मीटर आगे चल कर उस ने वह बैग भगेल मंदिर के पास पुलिया के नीचे गिरा दिया. वह इलाका श्रीनिवासपुरी क्षेत्र में आता है. वहां से बह रहे बड़े नाले में 2 छोटे नाले भी जुड़े हुए हैं. वह बैग जिस में अनारकली के कूल्हे और पैर वाला भाग था, लुढ़क कर एक छोटे नाले के किनारे पहुंच गया.

दोनों बैग ठिकाने लगाने के बाद बलराम ने राहत की सांस ली. फिर कमरे की सफाई कर के खून से सनी चादर कूड़े के ढेर पर फेंक आया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने एक जानकार के यहां चला गया.

नोटबंदी के बाद जिस तरह जगहजगह नोट पड़े होने की खबरें सामने आई हैं, उसी तरह नाले के पास झाडि़यों में पड़े उस बैग को किसी व्यक्ति ने लालच में आ कर खोला होगा. पर नोटों की जगह उस में लाश देख कर उसे जरूर पसीना आ गया होगा. डर की वजह से वह बैग को खुला छोड़ कर भाग गया.

उधर भगेल मंदिर के पास छोटे नाले के पास जो बैग गिरा था, उसे कुत्तों ने फाड़ कर उस में से लाश निकाल कर खा ली. केवल एक टांग पर कुछ मांस बचा था. जानवरों की खींचातानी में वह हिस्सा नाले में गिर गया.

पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में लाश के जो 2 हिस्से रखवाए थे, उन की डीएनए जांच की गई तो वह दोनों एक ही महिला के पाए गए. बलराम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा और चाकू भी कमरे से बरामद कर लिया. खून से सनी चादर जहां फेंकी थी, पुलिस उसे वहां ले कर गई पर नगर निगम की गाड़ी वहां के कूड़े को ले जा चुकी थी, जिस से वह चादर वहां नहीं मिल सकी. पुलिस ने बलराम को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर के साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अर्चना बेनीवाल की कोर्ट में पेश कर उसे 2 दिनों के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में संबंधित स्थानों की तसदीक कराने के बाद उसे फिर से कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक बलराम जेल में बंद था. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजेश मौर्य कर रहे हैं.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 2

अब तक की जांच में मृतका के साथ रहने वाले बलराम पर ही शक जा रहा था, क्योंकि वह गायब था. पुलिस टीम उसे ढूंढने में जुट गई. इस काम में पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. प्रवीण ने पुलिस को बताया था कि मृतका अनारकली का एक बेटा भी है जो चेन्नै में रहता है. पुलिस ने प्रवीण से उस का, अनारकली और उस के बेटे का फोन नंबर ले लिया. तीनों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस के अलावा इन तीनों नंबरों के द्वारा जिन नंबरों से बात होती थी, उन की भी जांच की. इस जांच में अनारकली के फोन नंबर की लोकेशन उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की आ रही थी.

अनारकली के इस नंबर से जिनजिन नंबरों से संपर्क हुआ था, उन सब को जांच के दायरे में लिया गया. इन में से एक नंबर दिल्ली के संगम विहार इलाके का मिला. संगम विहार के जिस व्यक्ति का यह नंबर था, वह एक औटो ड्राइवर था. पुलिस उस तक पहुंच गई. उस से पूछताछ की गई तो वह पुलिस को बेकसूर लगा.

उधर पुलिस की बलराम को ढूंढने की कोशिश जारी थी. फिर 7 दिसंबर, 2016 को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बलराम को दिल्ली के नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनारकली उस के साथ 20 साल से लिवइन रिलेशन में रहती थी. पर उस ने हालात ऐसे खड़े कर दिए थे कि उसे उस की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. बलराम ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली निकली.

अनारकली उर्फ अन्नू मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के मातापिता बेहद गरीब थे, इस वजह से वह नहीं पढ़ सकी. उस के मोहल्ले की कई लड़कियां दिल्ली में नौकरी या फिर दूसरे कामधंधे करती थीं. अनारकली जब करीब 16 साल की हुई तो उस के पिता ने उसे काम करने के लिए मोहल्ले की लड़कियों के साथ दिल्ली भेज दिया.

वह कोई पढ़ीलिखी तो थी नहीं, जिस से उस की कहीं नौकरी लग जाती. कुछ कोठियों में उसे झाड़ूपोंछा आदि का काम जरूर मिल गया. बाद में उसे और कोठियों में भी काम मिलते चले गए. कई जगह काम करने से उसे महीने की अच्छी कमाई होने लगी. उन पैसों में से वह कुछ पैसे अपने मांबाप के पास भेज देती थी.

दिल्ली में साल भर काम करने के बाद अनारकली काफी चालाक हो गई थी. अब वह पहले वाली सीधीसादी अन्नू नहीं रह गई थी. उसी दौरान 17 साल की अनारकली उर्फ अन्नू की मुलाकात दुरक्कन नाम के युवक से हुई जो दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. दुरक्कन 20-22 साल का युवक था. वह भी चेन्नै का रहने वाला था, इसलिए दोनों के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई. अपने कामधंधे से निपटने के बाद दोनों मिलतेमिलाते रहते थे.

अनारकली अपने मांबाप से भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर रह कर अपने प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर रही थी, इस के बावजूद भी इस की जानकारी उस के घर वालों को हो गई थी. इस बारे में जब उन्होंने अनारकली से बात की तो उस ने साफसाफ बता दिया कि वह दुरक्कन से शादी करना चाहती है. घर वालों ने उस की बात मानते हुए दुरक्कन से उस की शादी कर दी. इस के बाद वह पति के साथ दिल्ली में रहने लगी.

अनारकली और उस का पति दोनों कमा रहे थे, इसलिए उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीनिवासन रखा. प्यार से सभी उसे सनी कहते थे. शादी के 7-8 साल बाद दुरक्कन पत्नी को अकेला छोड़ कर कहीं चला गया. अनारकली ने अपने स्तर से जब पति के बारे में पता लगाया तो जानकारी मिली कि उस का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा था. वह उस लड़की को ले कर चेन्नै भाग गया है. पति के इस विश्वासघात से अनारकली को बड़ा दुख हुआ.

वह दिल्ली में बेटे सनी के साथ अकेली थी. उस ने सनी को अपने मायके भेज दिया ताकि वह अपने नानानानी की देखरेख में पढ़ाई पूरी कर सके. अनारकली की उम्र उस समय करीब 24-25 साल थी. यह उम्र अकेले काटे से नहीं कटती. पति उसे धोखा दे कर चला गया था. उसी दौरान उस की मुलाकात बलराम नाम के व्यक्ति से हो गई.

बलराम प्लंबर था. वह मूलरूप से उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था, उस की पत्नी उड़ीसा में ही रहती थी. धीरेधीरे दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन्होंने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया. वे दोनों दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अमर कालोनी के गांव दशघरा गढ़ी में लिवइन रिलेशन में रहने लगे.

अनारकली ने घरों में काम करना बंद कर दिया. वह ईस्ट औफ कैलाश में स्थित नर्सरी के पास फुटपाथ पर चाय की दुकान चलाने लगी. बलराम का साथ मिलने पर अनारकली के जीवन में खुशहाली लौट आई थी. करीब 20 साल तक दोनों लिवइन रिलेशन में रहते रहे.

इस बीच बलराम समयसमय पर उड़ीसा स्थित अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने चला जाता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. बीवी और जवान बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लग सकी थी कि वह दिल्ली में किसी औरत के साथ रह रहा है.

करीब डेढ़ महीने पहले बलराम उड़ीसा से दिल्ली लौटा तो अनारकली का व्यवहार कुछ बदला हुआ था. हालांकि अनारकली का सारा खर्च वह खुद उठाता था, इस के बावजूद भी वह उस के साथ रूखा व्यवहार कर रही थी. इतना ही नहीं, वह बिस्तर पर भी उसे अपने पास नहीं फटकने देती थी. बलराम को शक हो गया कि जरूर इस के किसी और से संबंध हो गए हैं. वह पता लगाने में जुट गया कि ऐसा कौन आदमी है.

बलराम ने जल्द ही इस बारे में जानकारी जुटा ली. उसे पता चला कि अनारकली के एक नहीं बल्कि 2 औटो ड्राइवरों से नाजायज संबंध हैं. यह जानकारी मिलते ही बलराम के तनबदन में आग सी लग गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह अनारकली को अभी ऐसी सजा दे, जिसे वह जिंदगी भर न भूल सके. पर वह कोई बात सोच कर अपना गुस्सा पी गया.

उस ने शाम को अनारकली से उस के बदले व्यवहार के बारे में बात की तो वह उस के साथ लड़ने को आमादा हो गई. दोनों में कुछ देर बहस हुई और मामला शांत हो गया.

एक दिन बलराम दोपहर के समय कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला. किवाड़ के बीच में जो दरार थी, उस पर आंख गड़ा कर देखा तो कमरे के अंदर जल रही ट्यूबलाइट की रोशनी में सारा नजारा दिख गया. अनारकली एक व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. इस के बाद तो बलराम का शक विश्वास में बदल गया.

बलराम ने दरवाजा खटखटाने के बजाय अनारकली को फोन लगाया तो उस ने स्क्रीन पर नंबर देखने के बाद अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के अलावा उस ने कमरे में जल रही ट्यूबलाइट भी बंद कर दी.

तब बलराम ने दरवाजा खटखटाया. करीब 4-5 मिनट बाद अनारकली ने दरवाजा खोला तो सामने बलराम को देख कर उस के होश उड़ गए. उसी दौरान कमरे में अनारकली के साथ जो युवक था, वह वहां से भाग गया. तब बलराम ने उस से उस युवक के बारे में पूछा तो अनारकली बोली, ‘‘कोई भी हो, तुम्हें उस से क्या मतलब?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम किसी और को यहां नहीं बुला सकती.’’ वह बोला.

‘‘क्यों, मैं ने तुम्हारे साथ क्या शादी की है जो मुझ पर इस तरह से हुकुम चला रहे हो. अपनी जिंदगी मैं अपनी तरह से जिऊंगी. इस में कोई भी दखलअंदाजी नहीं कर सकता. इसलिए बेहतर यही है कि तुम इस मुद्दे पर ज्यादा बात मत करो.’’ अनारकली ने जवाब दिया.

बलराम उस का मुंह देखता रह गया. बात भी सही थी, उस ने अनारकली से शादी थोड़े ही की थी. दोनों का स्वार्थ था, इसलिए वे साथसाथ रह रहे थे. बलराम से जब उस का मन भर गया तो उस ने किसी और के साथ नजदीकी बना ली.

किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 1

3 दिसंबर, 2016 को सुबह करीब साढ़े 10 बजे दक्षिणपूर्वी दिल्ली के अमर कालोनी थाने के ड्यूटी अफसर को पुलिस कंट्रोलरूम से सूचना मिली कि कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के किनारे बैग में किसी की लाश पड़ी है. उस दिन थानाप्रभारी उदयवीर सिंह किसी काम से बाहर गए हुए थे. उन की गैरमौजूदगी में थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजेश मौर्य संभाले हुए थे. बैग में लाश मिलने की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर राजेश मौर्य एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल सुरेंद्र सिंह और महावीर सिंह को ले कर सूचना में बताए पते की तरफ निकल गए.

कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित वह नाला थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में ही वहां पहुंच गई. वहां पहले से काफी लोग खड़े थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहन चालक भी वहां रुकरुक कर जा रहे थे. सभी लोग नाले के किनारे झाड़ी के पास पड़े उस काले रंग के ट्रैवल बैग को देख रहे थे. उस बैग का फ्लैप खुला हुआ था, जिस से उस में रखी लाश साफ दिखाई दे रही थी.

नोटबंदी के बाद जिस तरह आए दिन कूड़े के ढेर या अन्य जगहों पर करोड़ों रुपए मिलने के समाचार आ रहे हैं, उसी तरह इस बड़े बैग को भी नाले के किनारे किसी व्यक्ति ने देखा होगा तो पैसे मिलने की संभावना को देखते हुए उस ने इस बैग का फ्लैप खोल कर देखा होगा. लाश देख कर उस के होश फाख्ता हो गए होंगे. फिर वह बैग को ऐसे ही खुला छोड़ कर भाग गया होगा. लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा था कि उस में रखी लाश किसी आदमी की है या किसी महिला की.

इंसपेक्टर राजेश मौर्य ने उस बैग का ऊपरी मुआयना कर के सूचना डीसीपी रोमिल बानिया, एसीपी सतीश केन, थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के अलावा क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को दे दी. वहां मौजूद सभी लोग आपस में यही बातें कर रहे थे कि पता नहीं इस बैग में किस की लाश है. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने के बाद बैग से जब लाश निकाली गई तो सभी हैरान रह गए.

किसी महिला की लाश का वह कूल्हे से ऊपर का हिस्सा था. बाकी नीचे का हिस्सा वहां नहीं था. वह औरेंज कलर की नाइटी पहने हुए थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार करने की चोट थी. उस की कलाई पर कलावा बंधा था. इस के अलावा हाथ की एक अंगुली में अंगूठी थी और गले में पीले रंग का धागा पड़ा हुआ था. महिला की उम्र यही कोई 40-45 साल थी.

बैग से या उस महिला की लाश से कोई ऐसी चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. वहां जितने भी लोग खड़े थे, उन में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस से यही अनुमान लगाया गया कि शायद यह किसी दूसरे इलाके की होगी. पुलिस ने मृतका का पेट के नीचे का हिस्सा आसपास की झाडि़यों में तलाशा पर वह वहां नहीं मिला.

उसी दौरान डीसीपी रोमिल बानिया, एडिशनल डीसीपी राजीव रंजन, एम. हर्षवर्धन, एसीपी सतीश केन आदि भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद लाश के आधे हिस्से को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर मृत महिला की शिनाख्त की काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने महिला की लाश के फोटो लगे 4 हजार पैंफ्लेट छपवा कर इलाके में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए.

इतना ही नहीं, समस्त थानों में सूचना भेज कर यह भी पता लगाने की कोशिश की कि इस हुलिया से मिलतीजुलती कोई महिला लापता तो नहीं है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह जो बाहर गए हुए थे, लाश मिलने की खबर पा कर शाम तक थाने लौट आए. अगले दिन भी पुलिस टीम हर संभावित तरीकों से पता लगाने लगी कि आखिर यह महिला है कौन. पर कहीं से भी उस के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा.

4 दिसंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से थाना अमर कालोनी में सूचना मिली कि श्रीनिवासपुरी के क्यू ब्लौक में पास भगेल मंदिर के पास छोटे नाले में किसी महिला का पेट से नीचे का भाग पड़ा हुआ है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य 15-20 मिनट में ही भगेल मंदिर के पास पहुंच गए.

क्योंकि एक दिन पहले उन्होंने जिस महिला की लाश बरामद की थी, उस का भी पेट से नीचे का हिस्सा गायब था. पुलिस जब भगेल मदिर के पास पहुंची तो वास्तव में वहां किसी महिला के पेट के नीचे का हिस्सा नाले में पड़ा हुआ था. उस के एक पैर पर मांस नहीं था. शायद उसे कुत्तों ने खा लिया होगा.

नाले के पास एक काले रंग का बैग पड़ा हुआ था. उस पर खून के निशान से लगा कि लाश का वह हिस्सा उसी बैग में रख कर लाया गया होगा. जिस जगह से पुलिस ने एक दिन पहले महिला का धड़ बरामद किया था, यह जगह वहां से कोई आधा किलोमीटर दूर थी. जरूरी काररवाई कर के उसे भी पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में रखवा दिया. पुलिस ने नाले के पास से महिला का जो धड़ बरामद किया था, यह हिस्सा उसी महिला का है या नहीं, यह बात डाक्टरी जांच के बाद ही पता लग सकती थी.

बहरहाल, अब पुलिस का पहला मकसद मृतका की शिनाख्त करवाना था. पुलिस के पास लाश के जो फोटो थे, उन्हीं के माध्यम से वह उस की शिनाख्त में जुट गई. बीट का हरेक पुलिसकर्मी अपनेअपने इलाके के लोगों को वह फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछने लगा. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र भी इसी काम में लगे हुए थे. फोटो देख कर उन्हें अमर कालोनी क्षेत्र के ही एक व्यक्ति ने बताया कि यह महिला तो अन्नू की तरह लग रही है.

‘‘अन्नू…यह अन्नू कौन थी और कहां रहती थी?’’ हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने उस से पूछा.

‘‘सर, यह दशघरा गढ़ी गांव में ही कहीं रहती थी. पर मैं इस के एक रिश्तेदार प्रवीण को जानता हूं जो सपना सिनेमा के पास साउथ इंडियन व्यंजन की रेहड़ी लगाता है.’’ वह व्यक्ति बोला.

सुरेंद्र को यह सुन कर खुशी हुई कि शायद यहां से कुछ बात बन सकती है. वह उस व्यक्ति को ले कर थाना अमर कालोनी क्षेत्र में स्थित सपना सिनेमा के पास ले गए. प्रवीण वहीं मिल गया. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने प्रवीण को महिला की लाश का फोटो दिखाया तो उस ने उसे पहचानते हुए कहा कि यह अनारकली उर्फ अन्नू हैं. रिश्ते में यह उस की मौसेरी सास (सास की छोटी बहन) हैं.

सुरेंद्र ने यह जानकारी थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को दी. दोनों पुलिस अधिकारी प्रवीण के पास ही पहुंच गए. पुलिस प्रवीण को ले कर दशघरा गढ़ी स्थित अनारकली के कमरे पर पहुंची. पर उस का कमरा बाहर से बंद मिला. करीब 45 कमरों वाला वह मकान श्रीराम नाम के एक शख्स का था. पुलिस ने श्रीराम को बुला कर बात की तो उस ने बताया कि अनारकली एक मद्रासन थी जो करीब 3 महीने पहले उस के यहां आई थी.

इस के साथ बलराम नाम का एक बंदा और रहता था. यह सन 2010 में भी इसी मकान में 6-7 महीने रह कर गई थी. उस समय भी बलराम इस के साथ रहता था. जिस कमरे में अनारकली रहती थी, उस के आसपास के कमरों में रहने वाले लोगों ने बताया कि यह 2 दिसंबर से दिखाई नहीं दे रही.

वहां खड़ेखड़े पुलिस को अनारकली के कमरे से बदबू आती महसूस हुई. पुलिस ने भगेल मंदिर के पास से महिला के पेट से नीचे वाला जो हिस्सा बरामद किया था, उस की अभी डाक्टरी रिपोर्ट नहीं आई थी इसलिए कहा नहीं जा सकता था कि वह उसी की लाश का हिस्सा है. थानाप्रभारी को लगा कि कहीं अनारकली की लाश का आधा भाग इस कमरे में तो नहीं रखा है, इसलिए उन्होंने मकान मालिक और अन्य लोगों के सामने कमरे का ताला तोड़ कर कमरे में खोजबीन की तो वहां सूखी हुई मछलियां मिलीं. वह बदबू उन्हीं से आ रही थी.

कमरे की जांच के दौरान दीवार पर खून के कुछ छींटे भी दिखे. वे छींटे मानव खून के थे या नहीं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. लिहाजा उन्होंने फोरैंसिक विभाग को फोन कर दिया. डा. नरेश कुमार के नेतृत्व में एक फोरैंसिक टीम वहां आ गई. टीम को दीवार पर 6 जगह खून के छींटे मिले. इस के अलावा एलपीजी के छोटे सिलेंडर पर भी खून के छींटे मिले. कमरे में 3 चाकू मिले. फोरैंसिक टीम ने कमरे से सबूत इकट्ठे कर लिए.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 3

आखिर जब नहीं रहा गया तो एक रात बिस्तर पर उस ने पति को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह अच्छा नहीं है. तुम उस दो टके की औरत के पीछे ऐसे दीवाने हो गए हो, जैसे कोई पागल सांड़ भरी बाजार में बलबला उठता है. मेरा नहीं तो कम से कम अपने बेटे के बारे में सोचो. कल जब वह बड़ा होगा तो तुम्हारा नाम ले कर लोग ताना नही मारेंगे.’’

प्रेम केसरवानी समझ गया कि पत्नी को सब पता चल गया है. वह सिर झुकाए बैड पर बैठा रहा. संगीता आगे बोली, ‘‘आखिर सुशीला में कौन से मोती जड़े हैं? क्या मुझ से ज्यादा उस के अंदर तुम्हें गरमी मिलती है? प्रेम, मैं तुम्हारी पत्नी हूं और सुशीला… सुशीला गंदी नाली का कीड़ा है. वह औरत लटकेझटके दिखा कर तुम्हें तो चूस ही रही है. साथ में तुम्हारी दौलत पर भी उस की नजर लगी हुई है.’’

संगीता ने हर तरह से पति को समझाया, लेकिन संगीता की कोई बात प्रेम की खोपड़ी में नहीं घुसी. उस ने बातें एक कान से सुनीं और दूसरे से निकाल दीं. दरअसल, सुशीला की चाहत में वह इतना आगे निकल चुका था कि वहां से पीछे लौटना अब उस के बस की बात नहीं थी. फिर भी संगीता ने पति का साथ नहीं छोड़ा और उस के पीछे पड़ी रही. सुशीला और प्रेम केसरवानी लव अफेयर की कहानी आगे बढ़ती रही. एकदूसरे को पाने के लिए वे दोनों हमेशा छटपटाते रहते और जब कभी एकांत में मिलने का अवसर मिलता तो आंधीतूफान की तरह एकदूसरे में समा जाते थे. तन की आग बुझ जाती, किंतु मन की प्यास हमेशा बनी रहती.

जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, वैसेवैसे संगीता की चिंता बढ़ती जा रही थी. उसे सब कुछ गंवारा था, लेकिन सुहाग का बंटवारा मंजूर न था. इसी चिंता में एक रोज संगीता सुशीला की पान की दुकान पर जा पहुंची. वहां उस ने सुशीला को खूब खरीखोटी सुनाई और पति से दूर रहने की चेतावनी दी. सुशीला मुंहफट थी. संगीता की चेतावनी से न वह डरी न सहमी. वह बेहयाई से बोली, ‘‘अपने खसम को अपने पल्लू से बांध कर रखो. मैं उसे बुलाने नहीं जाती, बल्कि वही कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ मेरी चौखट पर आ जाता है. समझा देना उसे कि वह मेरे घर न आया करे.’’

संगीता ने मुंहफट औरत के मुंह लगना उचित नहीं समझा और वापस घर आ गई. वह अपनी किस्मत पर रोती रही. इधर प्रेम को पता चला कि संगीता उस की प्रेमिका की दुकान पर उलाहना देने गई थी तो उस का गुस्सा बढ़ गया. देर रात जब वह घर आया तो उस की संगीता से तकरार हुई और नौबत मारपीट तक आ गई. धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच दूरियां और बढ़ गईं. प्रेम को इस के बावजूद कोई परवाह नहीं थी. तब संगीता ने भी अपना दिल कठोर कर लिया. उसे अब अपने बेटे की चिंता थी. उस ने सब कुछ नियति पर छोड़ दिया था.

इधर सुशीला ने संगीता को फटकार तो दिया था, लेकिन उस के मन में डर समा गया था कि कहीं संगीता का विरोध भारी न पड़ जाए और वह प्रेम को उस से छीन ले. इसी डर के चलते उस शाम वह प्रेम के साथ रेस्टोरेंट पहुंची थी और अपनी चिंता से प्रेम को अवगत कराते हुए संगीता के डर से निजात दिलाने की बात कही थी.

सुशीला रखैल के बजाय बनना चाहती थी पत्नी…

सुशीला चालाक औरत थी. वह प्रेम की रखैल बन कर नहीं रहना चाहती थी. बल्कि उस की पत्नी बनने का सपना संजोने लगी थी. इस सपने को पूरा करने के लिए वह तानाबाना बुनने लगी थी. हालांकि प्रेम सुशीला का पूरा खर्च उठाता था और आर्थिक मदद भी करता था, लेकिन सुशीला इस से संतुष्ट नहीं थी.

एक रोज शाम को प्रेम केसरवानी सुशीला के घर पहुंचा तो घर पर वह अकेली थी. उस के बच्चे ननिहाल गए थे. प्रेम को देख कर सुशीला बहुत खुश हुई. दोनों कुछ देर हंसतेबतियाते रहे फिर साथ बैठ कर खाना खाया. उस रोज सुशीला ने मीट पकाया था, सो खाते वक्त उस ने मीट पकाने के लिए सुशीला की जम कर तारीफ की. रात 10 बजे प्रेम घर जाने लगा तो उस ने बहाने से उसे रोक लिया. प्रेम भी यही चाहता था, इसलिए वह रुक गया. थोड़ी देर बाद दोनों बिस्तर पर पहुंच गए.

सुशीला कुछ देर प्रेम की बांहों में मचलती रही फिर बोली, ‘‘प्रेम एक बात पूछूं, सचसच बताना.’’

“पूछो, क्या जानना चाहती हो?’’

“तुम मुझ से जिस्मानी प्यार करते हो या सच्चा प्यार…’’

“मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं. यकीन न हो तो आजमा कर देख लो.’’ प्रेम बिना सोचेसमझे बोल गया.

“तो फिर कल बारादेवी मंदिर चलो और मां को साक्षी मान कर मेरी मांग में सिंदूर भर दो. अब मैं तुम्हारी रखैल बन कर नहीं, बल्कि पत्नी बन कर रहना चाहती हूं. पत्नी का दरजा मिल जाएगा तो तुम्हारी धनदौलत और मकान पर भी मेरा हक होगा.’’ सुशीला की बात सुन कर प्रेम सन्न रह गया. वह जान गया कि सुशीला के मन में लालच समा गया है. वह उस की पत्नी बनने और संपत्ति हथियाने का ख्वाब देखने लगी है. प्रेम शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. अत: वह सुशीला की बात कैसे मान लेता.

प्रेम कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सुशीला, मुुझे कुछ वक्त दो ताकि मैं तुम्हारा ख्वाब पूरा कर सकूं. क्योंकि सब जानते हैं कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. संगीता तुम्हें सौतन के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेगी. कहीं अलग प्लौट मकान ले कर तुम्हें बसाना होगा.’’

“ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. लेकिन जल्दी ही इंतजाम करो.’’ इस के बाद प्रेम केसरवानी परेशान रहने लगा. उस ने सुशीला से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब वह तभी उस के घर जाता, जब वह जिद कर उसे बुलाती. हर बार वह अपनी बात मनवाने का दबाव डालती.

दे दी हत्या की सुपारी…

प्रेम केसरवानी का एक दोस्त राजेश गौतम उर्फ छोटू था. वह पनकी में रहता था और अपराधी किस्म का था. एक शाम प्रेम ने उसे सीटीआई चौराहा स्थित शराब ठेके पर बुला लिया. वहां बैठ कर पहले दोनों ने शराब पी, फिर प्रेम ने उसे अपनी समस्या बताई और किसी तरह समस्या से निजात दिलाने की बात कही. दोस्त की समस्या से छोटू के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन उस ने प्रेम को निजात दिलाने का भरोसा दिया.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 4

एक रोज प्रेम केसरवानी किसी काम से पनकी गया तो उसे छोटू की याद आ गई. तब उस से मिलने उस के घर जा पहुंचा. राजेश गौतम उर्फ छोटू उस समय घर पर ही था. बातचीत करते हुए प्रेम ने पूछा, ‘‘छोटू, तुम ने हमारी समस्या का कोई हल ढूंढा या फिर यूं ही आश्वासन दे रहे थे?’’

“तुम्हारी समस्या का एक ही हल है कि तुम अपनी प्रेमिका सुशीला का काम तमाम करा दो. लेकिन इस के लिए तुम्हें पैसा खर्च करना पड़ेगा,’’ छोटू ने प्रेम को सुझाव दिया. “ठीक है, मैं तैयार हूं.’’ इस के बाद प्रेेम ने सुशीला की हत्या की सुपारी 70 हजार रुपए में राजेश गौतम उर्फ छोटू को दे दी.

रकम मिलने के बाद छोटू ने हत्या की योजना बनाई और रुपयों का लालच दे कर अपने अपराधी दोस्त अजय, दिनेश व सनी को शामिल कर लिया. ये तीनों मन्नीपुरवा (मैथा) के रहने वाले थे. हत्या की योजना बनाने के बाद राजेश गौतम ने प्रेम को वह सुनसान जगह दिखा दी, जहां सुशीला को ठिकाने लगाना था. उस ने दिन, तारीख व समय भी निश्चित कर दिया. सुशीला को उस स्थान तक लाने की जिम्मेदारी प्रेेम को सौंपी गई.

योजना के तहत 3 दिसंबर, 2022 की शाम 4 बजे प्रेम सुशीला की पान की दुकान पर पहुंचा और प्लौट देखने के लिए साथ चलने को कहा. सुशीला ने दुकान बंद की और प्रेम की स्कूटी पर बैठ कर चल दी. प्रेम सूरज छिपने तक सुशीला को इधरउधर घुमाता रहा, फिर किसान नगर होता हुआ जामू नहर पुल के पास पहुंचा. यहां राजेश गौतम उर्फ छोटू अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ खड़ा था. अब तक हलका अंधेरा छा चुका था.

प्रेमी ने कराया मर्डर…

सुशीला जैसे ही प्रेम की स्कूटी से उतरी, तभी राजेश व उस के साथियों ने उसे दबोच लिया और अजय ने तमंचा निकाल कर उस के सीने में 2 फायर झोंक दिए. सुशीला की मौके पर ही मौत हो गई. प्रेम दूर खड़ा करीब 10 मिनट तक देखता रहा कि सुशीला की सांसें चल रही हैं या नहीं. जब उसे विश्वास हो गया कि सुशीला की सांसें थम गई हैं तब वह भी वहां से फरार हो गया. हत्या के बाद राजेश व उस के साथी भी फरार हो गए. प्रेमिका की हत्या हो जाने के बाद प्रेम ने राहत की सांस ली यानी प्रेमी कातिल बन गया.

सुबह जामू गांव के बाहर नहर पुल के पास झाडिय़ों के किनारे कुछ लोगों ने एक महिला की लाश देखी तो उन्होंने सूचना ग्राम प्रधान जनार्दन सिंह को दी. ग्राम प्रधान ने थाना विधनू पुलिस को खबर दी तो मौके पर एसएचओ योगेश सिंह, एसीपी (नौबस्ता) अभिषेक कुमार तथा एडिशनल डीसीपी अंकिता शर्मा आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड व फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. सभी अपनेअपने काम में जुट गए. पुलिस

अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि महिला की हत्या सीने में गोली मार कर की गई थी. उस की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. वह पीले रंग की साड़ी व गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. तब पुलिस ने उस के शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भेज दिया.

इधर रात 10 बजे तक जब सुशीला घर नहीं पहुंची तो उस के बेटे को चिंता हुई. वह और उस की बहन रात भर मां के आने का इंतजार करते रहे. सुबह वे दोनों मां की पान की दुकान पर पहुंचे तो दुकान बंद थी. मां का जब पता नहीं चला तो बेटा थाना गुजैनी जा पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को मां के लापता होने की बात बताई. थाने में उसे पता चला कि विधनू थाना पुलिस ने एक अज्ञात महिला की लाश बरामद की है. तब वह थाना विधनू पहुंच गया.

एसएचओ योगेश सिंह ने जब उसे लाश की फोटो दिखाई तो वह फफक पड़ा और बताया कि यह लाश उस की मां सुशीला की है. लाश की शिनाख्त होने के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने मृतका के बेटे से सहानुभूतिपूर्वक पूछताछ की तो पता चला कि वरुण विहार (बर्रा) का रहने वाला प्रेम केसरवानी उन के घर आताजाता था. मां सुशीला से उस की दोस्ती थी. वह रात में भी उस के घर रुक जाता था. इस से पुलिस को यह शक हो गया कि सुशीला के प्रेमी ने ही मर्डर कराया है.

प्रेम केसरवानी शक के दायरे में आया तो योगेश सिंह ने उस की तलाश शुरू कर दी. फिर छापा मार कर उसे उस के घर से ही हिरासत में ले लिया. प्रेम केसरवानी को थाना विधनू लाया गया. उस से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तो उस ने सारा रहस्य उगल दिया. प्रेम ने बताया कि सुशीला से उस का नाजायज रिश्ता था, लेकिन वह उस पर पत्नी का दरजा देने का दबाव बना रही थी और संपत्ति में हक मांग रही थी. इसी कारण उस की हत्या की सुपारी अपने दोस्त पनकी निवासी राजेश गौतम उर्फ छोटू को 70 हजार रुपए में दी. उस ने अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ मिल कर सुशीला की हत्या कर दी.

इस के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ छापा मार कर पहले राजेश गौतम उर्फ छोटू को भाटिया तिराहा से गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी सनी व अजय गौतम को गड़ेवा नहर पुल के समीप धर दबोचा. राजेश, अजय व सनी ने भी सुशीला की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन का एक साथी दिनेश पुलिस के हाथ नहीं आया.

अजय गौतम के पास से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त .315 बोर का एक तमंचा तथा 2 जिंदा कारतूस बरामद किए. प्रेम ने भी अपनी स्कूटी बरामद करा दी. कानपुर (विधनू) के सुशीला मर्डर केस की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. एक अन्य आरोपी दिनेश फरार था. पुलिस उसे तलाश रही थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित