
एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.
रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.
चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.
शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास आ जाती थी.
इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.
20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां आ कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी.
एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’
रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा.
उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’
‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.
‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’
‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.
‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.
‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’
‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’
बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया.
इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.
पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे.
सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.
सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते.
पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया.
बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.
—कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.
28 नवंबर को दोपहर 12 बजे के करीब अपहर्त्ताओं का फोन फिर आया. उन्होंने कहा, ‘‘पैसे ले कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचो. वहां से 5 बजे बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ो. 5 बजे के बाद हम फिर फोन करेंगे.’’
नरेंद्र ने यह जानकारी पुलिस को दी तो सादा कपड़ों में पुलिस भी उस के साथ हो गई. पुलिस ने एक बैग में नोटों के बराबर कागज की गड्डियां रख कर नरेंद्र को दे दीं. बैग ले कर वे लोग हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जिस मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फोन आया था, वह फोन नरेंद्र ने अपने पास रख लिया था. ट्रेन ओखला स्टेशन से निकली ही थी कि अपहर्त्ताओं का फिर फोन आ गया. अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के लिए कहा गया.
फरीदाबाद स्टेशन पर उतरने के 10 मिनट बाद उन्होंने फोन कर के नरेंद्र को बताया कि वह दोबारा ट्रेन पकड़ कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं. नरेंद्र ने ऐसा ही किया. हजरत निजामुद्दीन पहुंचने के बाद फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया कि वह ट्रेन पकड़ कर वापस फरीदाबाद आ जाएं. नरेंद्र और पुलिस टीम के जवान फिर से फरीदाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए. वे लोग इधर से उधर भागभाग कर परेशान हो गए थे. लेकिन बच्चे की खातिर वे अपहर्त्ताओं के इशारों पर नाचने को मजबूर थे. ट्रेन में बैठने के 5 मिनट बाद ही नरेंद्र के पास फिर से फोन आया.
इस बार अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘तुगलकाबाद में पैसों का बैग चलती ट्रेन से नीचे फेंक देना.’’
‘‘आप लोग कोई एक जगह बताओ, हम आप को वहीं पैसे दे देंगे. इस तरह से परेशान मत करो. हम वैसे भी बहुत परेशान हैं.’’ नरेंद्र ने गुजारिश की.
‘‘अगर बच्चा जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं करते रहो, वरना बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’
‘‘नहीं, आप बच्चे को कुछ मत करना. और हां, आप लोग हमें बच्चे की आवाज सुना दो, जिस से हमें विश्वास हो जाए कि बच्चा तुम्हारे पास ही है.’’
‘‘आवाज क्या सुनाएं, पैसे मिलने पर हम बच्चा ही वापस कर देंगे. लेकिन फिलहाल वही करो, जो हम कह रहे हैं.’’
अपहर्त्ताओं के कहने पर नरेंद्र चौधरी और पुलिस वाले फिर फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतर गए. उस समय रात के 10 बज चुके थे. नरेंद्र ने स्टेशन पर इधरउधर देखा. लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया. जिन नंबरों से अपहर्त्ताओं के फोन आ रहे थे, नरेंद्र ने उन्हें मिलाए. लेकिन सभी स्विच औफ मिले. इस का मतलब फोन पर बात करते ही वे उस का स्विच औफ कर देते थे.
काफी देर इंतजार करने के बाद अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि अब वापस हजरत निजामुद्दीन चले जाओ और तुगलकाबाद के आगे रास्ते में रुपयों का बैग फेंक देना. तुगलकाबाद से आगे किस खास जगह बैग फेंकना था, यह बात उन्होंने फोन पर नहीं बताई थी, इसलिए नरेंद्र चौधरी ने रास्ते में बैग नहीं फेंका. वह वापस हजरत निजामुद्दीन पहुंच गए.
उधर क्राइम ब्रांच की एक टीम इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के जरिए अपहर्त्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन नंबरों की जांच में लगी थी. उन की लोकेशन तुगलकाबाद इलाके की ही आ रही थी.
हजरत निजामुद्दीन लौटने के बाद नरेंद्र चौधरी क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचे तो इंसपेक्टर सुनील कुमार ने बताया, ‘‘हमें अपहर्त्ताओं का सुराग मिल चुका है. लेकिन अभी भी हालात गंभीर हैं, क्योंकि बच्चा उन की कैद में है. हमें उम्मीद है कि कल सुबह तक आप का भांजा आप के पास होगा.’’
इस दौरान पुलिस ने जांच में यह पाया कि अपहर्त्ता अलगअलग नंबरों से नरेंद्र चौधरी को फोन करने के बाद एक दूसरे मोबाइल नंबर पर तुरंत काल करते थे. जिस नंबर पर वे काल करते थे, उस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा कर ट्रेस करना शुरू कर दिया था.
उस नंबर की लोकेशन बदरपुर बार्डर स्थित बाबा मोहननगर की आ रही थी और वह नंबर सराय कालेखां निवासी रविंद्र के नाम पर लिया गया था. एक पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो वहां रविंद्र नहीं मिला.
पुलिस ने अपने कुछ खास मुखबिरों को भी बाबा मोहननगर इलाके में लगा दिया. इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि बाबा मोहननगर की गली नंबर 6 स्थित मकान नंबर 21 की पहली मंजिल पर कुछ लोग ठहरे हुए हैं. उन के साथ 2 औरतें और एक बच्चा भी है.
मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी पुलिस के लिए बहुत खास थी, इसलिए इंसपेक्टर सुनील कुमार ने तुरंत एसआई रविंद्र तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राणा, कांस्टेबल मोहित और मनोज को बदरपुर के बाबा मोहननगर इलाके में भेज दिया. उस समय रात के 12 बजने वाले थे. पुलिस टीम मुखबिर द्वारा बताए पते पर पहुंच गई.
पुलिस को वहां पर बबीता और अंजलि नाम की 2 युवतियां मिलीं. वहीं पर एक कोने में डरासहमा एक बच्चा भी बैठा था. पुलिस ने तुरंत उस बच्चे को अपनी सुरक्षा में ले कर उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम प्रिंस बताया. प्रिंस को सहीसलामत बरामद कर के पुलिस बहुत खुश हुई.
पुलिस ने दोनों युवतियों से उन के साथियों के बारे में पूछा तो उन्होंने पुलिस को सब कुछ बता दिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पहले तो बाबा मोहननगर की ही एक जगह से रविंद्र को गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी संदीप और अनिल को सिब्बल सिनेमा के पास से धर दबोचा.
पांचों आरोपियों को पुलिस टीम क्राइम ब्रांच ले आई. इंसपेक्टर सुनील कुमार ने नरेंद्र चौधरी को फोन कर के बुला लिया. नरेंद्र और चंद्रा रात के 1 बजे ही क्राइम ब्रांच पहुंच गए. वहां प्रिंस को देख कर दोनों बहुत खुश हुए. चंद्रा उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी.
पुलिस ने दोनों को जब अपहर्त्ताओं से मिलाया तो नरेंद्र चौधरी देखते ही बोला, ‘‘रविंदर, तू..? तूने प्रिंस को अगवा किया था? भाई, तू इतना गिर गया कि…’’
‘‘आप इसे जानते हैं?’’ एसआई एन.एस. राणा ने बात काट कर बीच में ही पूछा.
‘‘जानता हूं सर, यह रिश्ते में मेरा भाई लगता है. इस से सारा परिवार परेशान है.’’
रविंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा सब कुछ सुनता रहा. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ की तो पता चला कि सारी घटना का मास्टरमाइंड खुद प्रिंस का मामा रविंद्र ही था.
रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर सराय कालेखां में रहने वाले महिपाल का बेटा है. मातापिता के अलावा परिवार में रविंद्र के 3 भाई और भी हैं. वह सब से छोटा है. बेरोजगार रविंद्र आवारागर्दी और अपने साथियों के साथ छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करता था. उस की इन्हीं हरकतों से परिवार के दूसरे लोग परेशान रहते थे. वह कोई अपराध कर के फरार हो जाता तो पुलिस उस के घर वालों को तंग करती थी. इसी वजह से उस के घर वालों ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अनिल और संदीप उस के गहरे दोस्त थे.
22 वर्षीय अनिल दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में रहता था. 12वीं पास करने के बाद वह रविंद्र की संगत में पड़ गया था. जबकि रविंद्र का तीसरा दोस्त संदीप दिल्ली के ही कोटला मुबारकपुर इलाके में रहता था. तीनों ही अविवाहित और आवारा थे.
रविंद्र और संदीप अकसर गौतमपुरी में अनिल के पास आते रहते थे. इसी दौरान रविंद्र की मुलाकात बबीता से हुई. बबीता अपनी बड़ी बहन अंजलि के साथ बाबा मोहननगर, बदरपुर, दिल्ली में किराए पर रहती थी. दोनों सगी बहनें मूलरूप से उत्तराखंड के कस्बा धारचुला की रहने वाली थीं.
बबीता अविवाहित थी और अंजलि शादीशुदा. किसी वजह से बबीता का अपने पति प्रमोद से संबंध टूट गया था तो वह मायके चली आई थी. करीब 8 महीने पहले अंजलि और बबीता काम की तलाश में दिल्ली आई थीं और बदरपुर क्षेत्र में दोनों एक दरजी के यहां कपड़ों की सिलाई करने लगी थीं. वहां से होने वाली आमदनी से उन का खर्च चल रहा था.
चंद्रा का मायके जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उस ने घर का अगले दिन का काफी काम शाम को ही निपटा दिया था. बचाखुचा काम अगले दिन पूरा कर के वह दोनों बच्चों सोनिया और प्रिंस को ले कर 20 नवंबर, 2013 को नोएडा से बस पकड़ कर दिल्ली आ गई. दिल्ली के सराय कालेखां में उस का मायका था. नानी के घर आ कर दोनों बच्चे बहुत खुश थे.
चंद्रा के मायके के सामने ही दिल्ली नगर निगम का पार्क था. मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ सोनिया और प्रिंस भी सुबह ही पार्क में खेलने के लिए निकल जाते थे. दोनों बच्चों के साथ खेलने में इतने मस्त हो जाते थे कि उन्हें खाना खाने के लिए चंद्रा को बुलाने जाना पड़ता था. चंद्रा सोचती थी कि 2-4 दिनों में वह फिर ससुराल लौट जाएगी और वहां जा कर बच्चे स्कूल के काम में लग जाएंगे, इसलिए वह बच्चों के साथ ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थी.
24 नवंबर की सुबह भी प्रिंस रोजाना की तरह अपनी बहन सोनिया के साथ पार्क में खेलने गया. जब वह खेलतेखेलते थक गया तो पार्क के किनारे बैठ गया और अन्य बच्चों का खेल देखने लगा. उसे वहां बैठे अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि 2 आदमी उस के पास आ कर खड़े हो गए. उन का चेहरा रूमाल से ढका हुआ था.
उन में से एक ने प्रिंस को गोद में उठा कर उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया और पास खड़ी मोटरसाइकिल के पास पहुंच गए. मोटरसाइकिल को पहले से ही एक आदमी स्टार्ट किए उस पर बैठा था. वे दोनों भी मोटरसाइकिल पर उस के पीछे बैठ कर फरार हो गए.
सोनिया ने यह सब खुद अपनी आंखों से देखा, लेकिन डर की वजह से वह कुछ नहीं बोल सकी. वह भागती हुई घर पहुंची और अपनी मां चंद्रा को बताया कि कुछ लोग मोटरसाइकिल पर आए थे और भैया को पकड़ कर ले गए. उन का मुंह ढका हुआ था.
सोनिया की बात सुन कर चंद्रा जल्दी से अपने भाई नरेंद्र के पास पहुंचीं, जो अपने परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे. चंद्रा रोते हुए सोनिया द्वारा बताई गई बात अपने भाई नरेंद्र चौधरी को बता दी.
हकीकत जान कर नरेंद्र के भी होश उड़ गए. वह फटाफट घर से बाहर निकला और प्रिंस को सभी संभावित जगहों पर ढूंढ़ने की कोशिश की. मोहल्ले के जिन लोगों को पता चला, वे भी उसे इधरउधर खोजने निकल गए. जब काफी देर की खोजबीन के बाद भी प्रिंस का कहीं पता नहीं चला तो चंद्रा नरेंद्र के साथ सनलाइट कालोनी थाने पहुंची.
थाने में नरेंद्र चौधरी ने पुलिस को सारी बातें बता कर 7 वर्षीय प्रिंस का हुलिया बता दिया. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर के प्रिंस की तलाश शुरू कर दी.
काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को प्रिंस का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. चूंकि चंद्रा के पास प्रिंस की कोई तसवीर नहीं थी, इसलिए तलाश करने में और भी ज्यादा असुविधा हो रही थी. प्रिंस को गायब हुए 24 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे. बेटे का कोई सुराग न मिलने पर चंद्रा की रोरो कर आंखें सूज गई थीं.
26 नवंबर की रात करीब पौने 8 बजे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने आ कर नरेंद्र चौधरी को बताया, ‘‘अभीअभी किसी ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के पूछा है कि आप के पड़ोस में कोई बच्चा गायब हुआ है क्या?’’
नरेंद्र ने सोचा कि हो सकता है जिस आदमी ने फोन किया हो उसे प्रिंस मिल गया हो, इसलिए जिस नंबर से फोन आया था, उन्होंने वह नंबर मिलाया. लेकिन उस नंबर का मोबाइल स्विच्ड औफ था. थोड़ी देर बाद उसी पड़ोसी के नंबर पर फिर काल आई. इस बार नरेंद्र ने फोन रिसीव किया.
‘‘क्या तुम्हारा कोई बच्चा अगवा हो गया है?’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने पूछा.
‘‘हां जी, मेरा भांजा अगवा हुआ है. आप जानते हैं उस के बारे में?’’ नरेंद्र ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘अगर तुम्हें बच्चा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं, वैसा करो.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कड़कती आवाज में कहा.
‘‘हां जी, बताइए आप क्या चाहते हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.
‘‘फौरन 14 लाख रुपए का इंतजाम करो और बच्चा ले जाओ. और हां, एक बात ध्यान से सुनो. तुम ने ज्यादा होशियारी की या पुलिस को कुछ भी बताया तो समझो बच्चा हाथ से गया.’’
‘‘जी, मैं समझ गया. मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा. आप लोग बच्चे को कुछ मत करना, मैं पैसों का बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन 14 लाख रुपए बहुत ज्यादा हैं. आप कुछ कम नहीं कर सकते?’’ नरेंद्र ने गुजारिश करते हुए कहा.
‘‘ठीक है, हम सोच कर बताते हैं.’’ कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.
पैसे लेने के बाद भी अपहर्त्ता बच्चे को सहीसलामत दे देंगे, इस बात पर नरेंद्र को विश्वास नहीं था. इसलिए उस ने चुपके से फोन वाली बात पुलिस को बता दी. बच्चे के अपहरण की इस वारदात को पुलिस ने गंभीरता से ले कर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.
एडिशनल डीसीपी भीष्म सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी राजाराम के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई रविंदर तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राना, एएसआई धर्मेंद्र, हेडकांस्टेबल विक्रम दत्त, अजय शर्मा, दिनेश, कांस्टेबल मोहित, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंदर, राकेश, देवेंद्र, कुसुमपाल, उदयराम और सुरेंद्र आदि को शामिल किया गया.
पुलिस टीम ने सब से पहले उस मोबाइल फोन की जांच की, जिस से अपहर्त्ताओं ने फोन किए थे. इस से पता चला कि उस की लोकेशन सराय कालेखां की आ रही थी. बच्चा सराय कालेखां से ही उठाया गया था और उसी इलाके में अपहर्त्ताओं के फोन की लोकेशन आ रही थी. पुलिस को लगा कि बच्चे को शायद वहीं कहीं छिपा कर रखा गया है. इसलिए पुलिस ने वहां के हर घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. लेकिन वहां बच्चा नहीं मिला.
पुलिस के पूछने पर प्रिंस के घर वालों ने अपने एक परिचित पर शक जताया, जिस के बाद पुलिस ने उस परिचित को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उस से कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.
अगले दिन यानी 27 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे अपहर्त्ता ने फिर से उसी पड़ोसी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन इस बार उन्होंने किसी दूसरे नंबर का इस्तेमाल किया था. काल नरेंद्र चौधरी ने रिसीव की. फोन करने वाले ने नरेंद्र चौधरी से सीधे पूछा, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया या नहीं?’’
‘‘जी, हम ने पैसों का इंतजाम कर लिया है. आप यह बताइए कि पैसे ले कर हम कहां आएं?’’
बिना कुछ कहे ही दूसरी तरफ से फोन कट गया. बाद में नरेंद्र ने वह नंबर कई बार मिलाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला. अब उन लोगों के अगले फोन का इंतजार करने के अलावा नरेंद्र के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.
उसी दिन शाम को करीब 4 बजे फिर काल आई. इस बार भी अपहर्त्ता ने पैसों के इंतजाम के बारे में पूछा. नरेंद्र ने पैसे तैयार होने की बात कर पूछा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं? अपहर्त्ता ने सिर्फ इतना ही कहा कि जगह बाद में बताएंगे. इस बार भी नए नंबर से काल आई थी.
नरेंद्र ने यह बात भी जांच टीम को बता दी. चूंकि अपहर्त्ताओं की तरफ से जो भी फोन आए, वह पड़ोसी के ही मोबाइल पर आए थे, इसलिए पुलिस को शक हो रहा था कि बच्चे को अगवा करने में किसी जानपहचान वाले का हाथ हो सकता है.
तान्या बहुत ही तेज तर्रार थी. वह जानती थी कि बाहर रह कर लड़कियों से दोस्ती करने से कोई लाभ नही, लड़कों से दोस्ती कर हर मकसद पूरा किया जा सकता है. क्योंकि अधिकांश लड़कियों में एकदूसरे से जलने की आदत होती है. यही कारण था कि उस ने इंदौर आते ही सब से पहले युवकों को ही निशाना बनाया था.
छोटू से दोस्ती करते ही उसे भरोसा हो गया था कि वह ही उसे उस की मंजिल तक पहुंचा सकता है. यही सोच कर उस ने छोटू के लिए अपने दिल के दरबाजे खोल दिए थे. उस के सहारे से ही उस की कई अवारा लड़कों से दोस्ती हो गई थी.
तान्या की हरकतों का पता रचित को लगा तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक भी बात नहीं मानी. बाद में रचित तान्या को बोझ लगने लगा था. उस ने रचित से साफ शब्दों में कह दिया था कि उसे उस की हमदर्दी की कोई जरूरत नही. तान्या की बात सुनते ही रचित ने उस की तरफ ध्यान देना बिल्कुल ही बंद कर दिया था. लेकिन फिर भी उसे एक चिंता लगी रहती थी कि वह गलत हाथों में पड़ कर अपना भविष्य खराब न कर ले.
हालांकि तान्या ने रचित से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन फिर भी उस के दिल में रचित के लिए बेचैनी रहती थी. उस के दिल में उस के लिए अभी भी थोड़ी जगह खाली थी. लेकिन उस के छोटू से संबंध होते ही रचित ने उस से पूरी तरह से संबंध खत्म कर लिए थे. उस के बाद तान्या ने रचित से बदला लेने का पक्का प्लान बना लिया था. उस ने अपने इस मकसद को अंजाम देने के लिए छोटू के साथसाथ शोभित और उस के दोस्त को भी अपने साथ मिला लिया था.
पूर्व बौयफ्रैंड को सिखाना चाहती थी सबक
26 जुलाई, 2023 को तान्या अपने तीनों दोस्तों के साथ एक होटल में खाना खाने गई हुई थी. उसी दौरान तान्या को पता लगा कि रचित अपने दोस्तों मोनू, विशाल व रचित के साथ महाकाल दर्शन करने के लिए जा रहा है. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपने तीनों दोस्तों से रचित को सबक सिखाने वाली बात कही.
उस के सभी दोस्त उस वक्त शराब के नशे में थे. तान्या के कहने मात्र से सभी ने उस की नजरों में हीरो बनते हुए उस की हां में हां कर दी. फिर जल्दी से तीनों ने एक्टिवा स्कूटी निकाली और लोटस चौराहे पर जा पहुंचे. तान्या जानती थी कि उन की कार उसी रास्ते से हो कर गुजरेगी.
लोटस चौराहे पर पहुंचते ही रचित की नजर सामने खड़ी स्कूटी पर पड़ी. उस वक्त तान्या स्कूटी पर सब से पीछे बैठी सिगरेट पी रही थी. इतनी रात गये तान्या को तीन युवकों के साथ इस तरह से घूमते हुए देख रचित को गुस्सा आ गया. रचित ने उस के पास जा कर ही कार रोकी.
तान्या को देखते ही रचित बोला, ”तान्या तुम्हें शर्म नहीं आती . इस तरह से तुम 3-3 लड़कों के साथ रात में आवारगर्दी करती फिर रही हो.”
रचित की बात सुनते ही तान्या को भी गुस्सा आ गया.”तू कौन होता है मुझे रोकने टोकने वाला. तुझ से मेरा क्या रिश्ता है?” उस ने चिल्लाते हुए कहा.
रचित की बात सुनते ही उस के साथी बौखला गए. उन्होंने कार की तरफ लपकने की कोशिश की तो रचित उर्फ टीटू ने कार आगे बढ़ा दी. कार के आगे बढ़ते ही चारों स्कूटी पर सवार हुए. फिर उन्होंने स्कूटी कार के पीछे लगा दी. फिर कार को आगे से घेर कर रचित व उस के साथियों पर हमला कर दिया.
इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त एक्टिवा स्कूटी व चाकू भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने इस मामले में तान्या कुशवाह सहित उस के अन्य दोस्तों शोभित ठाकुर,छोटू उर्फ तन्यम व ऋतिक को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.
हालांकि तान्या ने पुलिस के सामने सफाई देते हएु कहा कि रचित को मारने का उस का कोई इरादा नहीं था. वह केवल उसे डराना चाहती थी. फिर भी उस ने जेल जाने से पहले पुलिस के सामने कहा कि रचित ने कई साल उस का शोषण किया था. वह उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी. वह जब भी जेल से छूटेगी, उस से बदला जरूर लेगी.
आज की इस फैशनपरस्त दुनियां में लिवइन रिलेशनशिप में रहना युवकयुवतियों में क्रेज सा बन गया है. युवकयुवतियां अपना भविष्य बनाने के लिए बड़े शहरों में कोचिंग या पढ़ाई करने के नाम पर निकलते हैं, लेकिन मांबाप से दूर रह कर अधिकांश वहां पर जाते ही गलत रास्ता अपना लेतेे हैं.
शुरूशुरू में लिव इन रिलेशन में रहना अच्छा लगता है, लेकिन जैसे ही बात शादी की आती है तो उस प्रेमी युगल में एक शख्स पीछे हटने लगता है. जिस के कारण दोनों में मनमुटाव पैदा हो जाता है. फिर कुछ ही दिनों में दोनों प्रेमी युगल के रास्ते अलगअलग हो जाते हैं.
इस से युवकों को तो ज्यादा फर्क नही पड़ता, लेकिन युवतियों के आगे. खून के आंसू बहाने के अलाबा कोई रास्ता नहीं बचता. जिस के कारण उन की जिंदगी ही तबाह हो कर रह जाती है. तान्या के साथ भी यही हुआ. काश! वह समझदारी से काम लेती तो वह शायद जेल नहीं पहुंचती.
तान्या रचित और टीटू को बहुत पहले से जानती थी. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. पुलिस पूछताछ में तान्या व उसके दोस्तों से जो जानकारी प्राप्त हुई वह इस प्रकार थी.
मध्य प्रदेश के धार जिले के बागटांडा के बरोड़ निवासी तान्या कुछ समय पहले पढ़ाई करने के लिए इंदौर आई थी. इंदौर आते ही उस ने एक ब्रोकर के माध्यम से पलासिया इलाके के गायत्री अपार्टमेंट में एक किराए का फ्लैट लिया, और वहीं रह कर उस ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी थी.
तान्या खातेपीते परिवार से थी. उस के पास रुपयोंपैसों की कमी नही थी. उस के मम्मीपापा उस का भविष्य सुधारने के लिए काफी रुपए खर्च कर रहे थे. खूबसूरत तान्या के कालेज में एडमिशन लेते ही उस के कई दीवाने हो गए थे. वह शुरू से ही बनठन कर रहती थी. मम्मीपापा खर्च के लिए पैसा भेजते तो वह खुले हाथ से पैसा खर्च भी करती थी.
इंदौर आते ही उस के जैसे पंख निकल आए थे. वह खुली हवा में घूमने लगी. उस की कुछ फ्रेंड गलत संगत में पड़ी हुई थीं. तान्या उन के संपर्क में आई तो उस पर भी उन का रंग चढ़ने लगा. वह भी अपनी दोस्तों के साथ शराब और सिगरेट का नशा करने लगी थी. उसी नशे के कारण उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. जवानी के जोश में उस के कदम बहके तो वह पढ़ाई करना भूल गई.
उसी दौरान उस की मुलाकात रचित उर्फ टीटू से हुई. टीटू ने उसे एक बार प्यार से देखा तो देखता ही रह गया. दोनों के बीच परिचय हुआ और फिर जल्दी ही दोनों ने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दिए थे. दोस्ती के सहारे ही उन के बीच प्यार बढ़ा और कुछ ही दिनों में वह एकदूसरे को दिलो जान से चाहने लगे.
तान्या से दोस्ती हो जाने के बाद रचित का उस के फ्लैट पर भी आनाजाना शुरू हो गया था. रचित घंटों उस के पास पड़ा रहता था. जिस के कारण उस के आसपास रहने वाले लोग परेशान रहने लगे थे. चूंकि तान्या ने वह फ्लैट किराए पर लिया था. इसी कारण उस के पड़ोसी उसे वहां से जाने के लिए भी नहीं कह सकते थे.
पहले तो उस के फ्लैट पर रचित ही आता था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद अन्य कई युवक भी आने लगे. थे. तान्या के फ्लैट में लडकों का आनाजान शुरू हुआ तो पड़ोसियों को परेशानी हुई. .उस की हरकतों से तंग आ कर पड़ोसियों ने उस फ्लैट के मालिक से उस की शिकायत कर उस से फ्लैट खाली कराने के लिए दबाव बनाया.
पड़ोसियों के दबाव में आ कर फ्लैट मालिक ने तान्या से तुरंत ही फ्लैट खाली करने को कहा. मालिक के कहने पर तान्या ने फ्लैट खाली करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. तान्या ने यह बात अपने दोस्त रचित को बताई. साथ ही उसने उस से उस के लिए एक मकान ढूंढने को कहा, लेकिन इस मामले में रचित ने उस की कोई भी सहायता करने से साफ मना कर दिया था.
रचित ने तान्या को समझाने का किया प्रयास
रचित के अलाबा तान्या का एक ओर दोस्त था छोटू. उस का भी उस के पास बहुत आना जाना लगा रहता था. यह बात उस ने छोटू के सामने रखी तो उस ने उस के लिए फ्लैट ढूंढना शुरू कर दिया. छोटू परदेशीपुरा इलाके में रहता था. छोटू एक दबंग किस्म का युवक था. छोटेमोटे अपराध और मारपीट कर उस ने अपने इलाके में दहशत फैला रखी थी. उस पर 3 मुकदमे दर्ज थे.
कुछ सयम पहले ही तान्या की उस से मुलाकात हुई थी. छोटू को लड़कियों को परखने की महारत हासिल थी. उस ने तान्या के लिए कुछ ही दिनों में एक किराए के फ्लैट की व्यवस्था कर दी. उस के बाद वह उसी के इलाके में आ कर रहने लगी थी. तान्या की छोटू से दोस्ती पक्की हो गई थी. छोटू के साथ दोस्ती हो जाने के बाद तान्या को नशे की लत भी लग गई थी. जिस के बाद उसमें अच्छा बुरा सोचने की क्षमता भी खत्म हो गई. थी.
यह बात रचित को पता चली तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, ”तान्या तुम पढ़ीलिखी हो, तुम्हें ऐसे आवारा किस्म के साथ दोस्ती नही करनी चाहिए. छोटू के साथ दोस्ती करने के बाद तुम पछताओगी.”
लेकिन तान्या ने उस की एक न सुनी. फिर रचित ने भी उस से बात करनी ही बंद कर दी. फिर भी तान्या रचित को छोड़ने को तैयार न थी. वह बारबार रचित को फोन लगाती, लेकिन वह उस का फोन रिसीव नहीं कर रहा था. जिस के कारण वह उस से मिल भी नहीं पा रही थी.
उस के बाद तान्या ने छोटू सेे कहा कि वह किसी भी तरह से एक बार उसे रचित से मिलवा दे. छोटू ने रचित से मिलकर तान्या का मैसेज देते हुए. मिलने को कहा, लेकिन उस के बाद भी रचित उस से नहीं मिला.
जब रचित ने तान्या से रिश्ता तोड़ लिया तो तान्या ने उसे सबक सिखाने की योजना बनाई. छोटू पहले से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था. हर वक्त उस के साथ कई आवारा किस्म के लड़के घूमते थे. एक दिन तान्या ने छोटू से कहा कि वह रचित को धमकाना चाहती है, जिस से घबरा कर वह उसके संपर्क में आ जाए.
तान्या पर मौडल बनने का भूत था सवार
छोटू अय्याश किस्म का था. उस से ज्यादा वह हवाबाज होने के बाद शेखी बघारने में भी कम नही था. यही कारण था कि सामने वाला जल्दी ही उस की बातों में आ जाता था. तान्या उस के सम्पर्क में आई तो उसे भी लगा कि छोटू जो कहता है, उसे कर भी देता है.
तान्या इंदौर आ कर हवा में उड़ने लगी और शीघ्र उच्च स्तर की मौडल बनने का सपना देखने लगी थी. छोटू से दोस्ती करते ही उसे लगने लगा था कि वह उस के सपनों को जल्दी ही पूरा कर सकता है. तान्या उस के संपर्क में आने के बाद कई बार उस से बोल चुकी थी कि उस की मुलाकात एक दो मौडल लड़कों से करवा देना.
26 जुलाई, 2023 को कोई 3 बजे का वक्त रहा होगा. मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में नाईट कल्चर लागू होने से हर रोज की भांति अधिकांश दुकानें खुली हुई थीं. रात का अंतिम पहर होने के बावजूद भी सड़क पर युवकयुवतियां एकदूसरे के हाथ थामे सड़क पर चहल कदमी कर रहे थे. वहीं सड़क पर दोपहिया व चार पहिया वाहन भी इधरउधर आजा रहे थे.
उसी दौरान इंदौर के लोटस चौराहे से एक कार नंबर एमपी09 सीएस 7613 तेजी से गुजरी. उसी चौराहे के पास ही वहां पर पहले से ही एक स्कूटी खड़ी हुई थी. उस स्कूटी पर एकदो नहीं नही बल्कि पूरे 4 लोग बैठे हुए थे. जिन में 3 युवक और एक युवती थी. युवती सब से पीछे बैठी हुई थी. उस समय उस के हाथ में सिगरेट थी. जिस को वह बारबार होंठो पर लगा कर उस से धुएं का छल्ला बना रही थी.
उस युवैती को इस हालत में देख कर अचानक कार उस एक्टिवा के पास रुकी. फिर कार में बैठे युवक ने युवती को कुछ कहा और फिर पल भर में ही उस कार ने आगे की ओर स्पीड पकड़ ली थी. उस कार को वहां से गुजरते ही युवती ने अगली सीट पर बैठे युवक को स्कूटी चलाने का इशार किया. फिर वह स्कूटी उस कार के पीछे लग गई.
देखते ही देखते स्कूटी ने तेज रफ्तार पकड़ ली. काफी देर पीछा करने के बाद मैरियट होटल के पास पहुंचने से पहले ही स्कूटी चालक ने इशारा कर कार को रुकवा लिया था. कार रुकते ही जैसे उस कार का शीश डाउन हुआ, तभी स्कूटी पर सवार युवती उतरी और कार की ओर बढ़ गई. तभी कार में बैठे एक युवक ने युवती की तरफ हाथ बढ़ाया. युवती ने भी बड़ी ही गर्म जोशी से उस युवक से हाथ मिलाया.
तभी युवती के साथ आया एक युवक बहुत ही फुरती से कार के पास आया. कार के पास आते ही उसने कार चालक रचित पर चाकू से हमला बोल दिया. उस के हमले से कार ड्राइवर रचित तो जैसेतैसे बच गया, लेकिन पिछली सीट पर बैठा मोनू इस से पहले कुछ समझ पाता युवक का चाकू उस के सीने में जा धंसा.
चाकू का वार होते ही मोनू की जोरदार चीख निकली. उस की चीख सुनते ही चारों लोग स्कूटी से फरार हो गए. इस घटना के घटते ही वहां पर मौजूद लोग नजर बचा कर इधरउधर हो गए थे. चाकू मोनू के दिल के पास जा कर लगा था. उस की हालत को देखते हुए. उसके साथियों ने उसे फौरन ही अस्पताल में भरती कराया. जहां पर इलाज के दौरान ही उस की मौत हो गई.
मोनू मर्डर केस की जानकारी पुलिस को दी गई. इस तरह से खुलेआम सड़क पर हत्या होने की बात सुनते ही पुलिस प्रशासन में तहलका मच गया. घटना की सूचना पाते ही विजय नगर थाने के टीआई रविंद्र सिंह गुर्जर पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे और मौके का जायजा लिया. उसके बाद टीआई रविंद्र सिंह ने इस की सूचना इंदौर डीसीपी अभिषेक आनन्द व इंदौर पुलिस कमिश्नर मकरंद देवास्कर को दी. पुलिस ने इस घटना के चश्मदीद गबाह टीटू,रचित और हर्ष से पूछताछ की.
पुलिस पूछताछ में मृतक मोनू के दोस्त विशाल ने पुलिस को जानकारी दी कि मंगलवार की रात में मोनू, रचित उर्फ टीटू और हर्ष रचित की कार से उज्जैन के लिए निकले थे. लोटस चैराहे पर पहुंचते ही एक स्कूटी ने उन का पीछा करना आरंभ किया. साया जी होटल के पास पहुंचतेपहुंचते उस स्कूटी सवार ने उन की कार के आगे स्कूटी लगा कर कार रोकने पर मजबूर कर दिया.
कार रुकते ही जैसे ही कार के शीशे डाउन हुए, स्कूटी पर उसे तान्या बैठी दिखाई दी. मैं तान्या को पहले से ही जानता था. उस के बाद तान्या ने उस से हाथ भी मिलाया. तभी तान्या के साथ आए अन्य लोगों ने कार में बैठे रचित पर चाकू से हमला बोल दिया. उस हमले में रचित तो बच गया ,लेकिन वह चाकू मोनू के सीने में जा कर लगा.
उस के बाद सभी आरोपी स्कूटी द्वारा वहां से फरार हो गए. पुलिस पूछताछ में विशाल ने बताया कि इस केस की मुख्य आरोपी तान्या है. तान्या ही अपने साथ अपने दोस्तों शोभित ठाकुर, छोटू उर्फ तन्मय तथा ऋतिक के साथ घटना को अंजाम देने के लिए पहुंची थी.
जेल से रिमांड पर लिया तान्या को
यह सब जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मृतक मोनू की लाश का पंचनामा भरने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजवा दी. इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने 2 टीमें गठित कीं. पुलिस टीमों ने आरोपियों की धड़पकड़ का अभियान शुरू किया. चारों आरोपी बिना नंबर की स्कूटी पर सवार हो कर घटना को अंजाम देने के लिए आए थे.
पुलिस ने सब से पहले घटना स्थल के आसपास लगे. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, उन से चारों आरोपियों की पहचान हो गई थी. उसी पहचान के आधार पर पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ शुरू की. पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल नंबरों को सर्विलौंस पर लगा कर उन की लोकेशन के आधार पर उन के पास पहुंचने की कोशिश की.
इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी तान्या जिला धार के बागटांडा के गांव बरोड़ की रहने वाली थी. पुलिस ने कई बार उसके मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन हर बार ही उसका मोबाइल बंद मिला. उस के बाद एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए बरोड़ के लिए निकल गई. पुलिस टीम उसके घर पहुंच भी नहीं पाई थी कि तभी जानकारी मिली कि तान्या ने कोर्ट के माध्यम से खुद को सरेंडर कर दिया था.
यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम आधे रास्ते से ही वापिस आ गई. कोर्ट में सरेंडर करने के बाद तान्या ने अपने अन्य साथियों को भी फोन कर सरेंडर करने को कहा था. इस के बावजूद भी तीनों आरोपी फरार हो गए.
तान्या के सरेंडर करने की सूचना पाते ही पुलिस टीम कोर्ट पहुंची. पुलिस ने वहां से उसे रिमांड पर लिया और फिर उसे साथ ले कर थाने लौट आई. पुलिस ने उस से इस हत्याकांड के मामले में विस्तार से जानकारी ली.
तान्या ने पुलिस को बताया कि वह रचित को बहुत पहले से जानती है. उस के साथ काफी समय तक लव भी चला, लेकिन रचित बीच में उसे धोखा दे कर उस से अलग हो गया. जिस के कारण वह उस से नफरत करने लगी थी. वह अपने साथियों के साथ मिल कर उसे सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन गलती से चाकू मोनू को लग गया. जिस के कारण ही उस की मौत हो गई.