romantic story in hindi : प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा और एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल के फेमिली वालों को उन के अंतरजातीय प्रेम संबंध पर कोई आपत्ति नहीं थी और लिवइन में रहने पर कोई शिकायत भी नहीं थी. दोनों परिपक्व थे, प्रोफेशनल थे. पतिपत्नी नहीं थे, फिर भी गीता का नौमिनी बन कर प्रेमी ने एक करोड़ रुपए का इंश्योरेंस करवा रखा था. आपस में लाखों का लेनदेन करते थे. फिर क्या हुआ, जो गीता की रक्तरंजित लाश बीच सड़क पर पाई गई. पढ़ें, नए जमाने की लंबी चली प्रेम कहानी, जिस का अंत चौंका गया…
दोपहर का वक्त था. तारीख थी 18 जनवरी, 2025. रोजाना की तरह लंच करने के बाद प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा लखनऊ के पीजीआई स्थित नीलगिरी अपार्टमेंट में बने अपने औफिस में आ गई थी. कुछ परेशान लग रही थी. कभी मोबाइल फोन को हाथ में लेती तो कभी सामने लैपटौप की स्क्रीन पर खुले वाट्सऐप मैसेज को स्क्राल करने लगती. अंदर की बेचैनी उस के हावभाव से साफ झलक रही थी. दरअसल, गीता शर्मा कई दिनों से परेशान चल रही थी. गिरिजा न तो उस के उधार के पैसे लौटा रहा था और न ही उस का फोन उठा रहा था. उस से लाखों रुपए लेने थे. वह कोई गैर नहीं, बल्कि उस का प्रेमी था.
सालों से लिवइन में भी था. हालांकि वे अलगअलग रहते थे. जब से उस ने शादी की जिद की थी, तब से कारोबारी लेनदेन में बाधाएं आने लगी थीं. औफिस में अकेली बैठी हुई काफी समय तक वह खयालों में खोई रही. अचानक उस का मोबाइल फोन बज उठा. वीडियो काल था. स्क्रीन पर दिखे चेहरे को देखते ही एकाएक मुसकरा उठी और बोली, ” हैलो!’’
”देखो, शिकायत मत करना…नाराज मत होना. मैं गुनहगार हूं तुम्हारा. फोन नहीं रिसीव किया, मैं कोर्ट में था.’’ उधर से काल पर गिरिजाशंकर पाल था.
गीता नाराज होती हुई बोली, ”कैसे नहीं करूं शिकायत! तुम्हारे साथ लिवइन में रहते हुए मुझे 10 साल हो गए, लेकिन जब से मैं ने तुम से शादी की बात छेड़ी है, तब से तुम्हारा रवैया ही बदल गया है.’’
”देखो, तुम गुस्से में भी सुंदर दिख रही हो.’’ गिरिजा बोला.
”वह सब तो ठीक है, मेरे भाई का फोन आया था. पूछ रहा था शादी का मुहूर्त निकलवाना है.’’ गीता बोली.
”अरे वह भी हो जाएगा, थौड़ा बैंक बैलेंस बढ़ जाने दो.’’ गिरिजा का जवाब था.
”फिर टाल रहे हो!’’
”अरे नहीं मेरी जान! तुम ने भी कौन सा राग छेड़ दिया. मैं आज तुम्हें कैंडल डिनर देना चाहता हूं. एक बड़ा मुकदमा हाथ आने वाला है, इस खुशी में…’’ गिरिजा शंकर आंखें मटकते हुए बोला.
”अच्छा!’’
”आज शाम को 5 बजे मैं गांव जा रहा हूं. कल संडे है. चाहो तो तुम भी गांव चल सकती हो. रास्ते में रेस्टोरेंट में डिनर करेंगे. अगर वहीं से लौटना चाहो तो वापस हो जाना. कुछ देर तुम्हारे साथ बैठेंगे. मुझे अच्छा लगेगा!’’ गिरिजा शंकर बोला.
इस पर गीता ताना मारती हुई बोली, ”मैं क्या करूंगी गांव जा कर! वहां वही ताने सुनने को मिलेंगे. कब दुलहन बन रही हो?’’
दोनों का गांव रायबरेली जनपद में सदर कोतवाली क्षेत्र का अकबरपुर कछुबाहा, मटिया है. गीता अपने गांव जाने से कतराती थी. अपने काम के सिलसिले में लखनऊ के नीलगिरी अपार्टमेंट में कई सालों से अकेली रह रही थी. वहां गिरिजाशंकर बेरोकटोक आताजाता रहता था. उस रोज भी उन्होंने वीडियो कालिंग में गीता को शाम के 5 बजे तैयार रहने को कहा था. जवाब में गीता बोली थी, ”बड़ी बेकरारी से इंतजार करूंगी.’’
गिरिजाशंकर पाल अपनी सफारी गाड़ी से निर्धारित समय पर वृंदावन कालोनी के निकट नीलगिरी अपार्टमेंट के गेट पर पहुंच गया. उस रोज उस ने बाहर से ही काल कर गीता को बुला लिया. गीता हैरान थी कि जो कुछ दिनों से उस का फोन बारबार काट देता था. वह ठीक समय पर आ गया. हालांकि उस ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उस की सफारी गाड़ी में साथ वाली सीट पर जा कर बैठ गई.
”बहुत जरूरी बात करनी है.’’ गीता बोली.
”कर्ज के बारे में! जल्द लौटा दूंगा.’’ गिरिजा बोला.
”मैं उस की नहीं, शादी के मुहूर्त की बात कर रही हूं.’’
”देखो, तुम ने फिर से दुखती रग पर हाथ रख दिया…’’ गिरिजा बोला ही था कि गीता तुरंत बोल पड़ी, ”तुम्हारे लिए दुखती रग है, लेकिन मेरे लिए दिल का दर्द है!’’
”जब तक मैं गले मढ़ी पत्नी से कानूनी छुटकारा नहीं पा लेता, तब तक तुम से शादी संभव नहीं है.’’
”अभी तक झूठा वादा करते रहे?’’
”कैसा वादा?’’ गिरिजाशंकर की यह बात गीता को चुभ गई.
बोली, ”तो अब मुकर रहे हो…’’
”मैं एडवोकेट हूं…सब कुछ कानूनी दायरे में करता हूं.’’ गिरिजाशंकर के इस तर्क से वह और भी मायूस हो गई. उदासी चेहरे पर झलक आई थी. वह एकदम से चुप हो गई. गिरिजाशंकर कार भगाए जा रहा था. गीता काफी देर तक गुमसुम उस का चेहरा देखती रही. उस के चेहरे पर कई तरह के भाव आजा रहे थे. उस के जरिए
गीता समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर गिरिजाशंकर के दिमाग में क्या चल रहा है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद गिरिजाशंकर और गीता एक रेस्टोरेंट में थे. एक टेबल पर आमनेसामने. उन के सामने चाय और गीता के पसंद की सैंडविच आ चुकी थी. चाय पीते हुए गिरिजाशंकर अपने नए मुकदमे की बात करने लगा, जबकि गीता उस की बातें सुनते हुए अपने असली मकसद पर आ गई थी.
गीता बोली, ”गिरिजा, आज तुम मुझे साफसाफ बताओ कि मुझ से शादी करने की तारीख किस महीने की निश्चित कर रहे हो.’’
”गांव से लौटते ही जवाब मिल जाएगा.’’ मुंह बनाता हुआ गिरिजा बोला. गीता ने महसूस किया कि गिरिजा के चेहरे पर तनाव था.
”मैं तुम से पिछले 5 सालों से आग्रह कर रही हूं. अब पानी सिर से काफी ऊपर हो चुका है. और ज्यादा दिन तक मैं इंतजार नहीं कर सकती.’’ गीता बोली.
”समझो, इंतजार का अखिरी वक्त आ चुका है. वैसे मैं ने तुम्हारा एक करोड़ का इंश्योरेंस कर भविष्य सुरक्षित कर दिया है. जरा इस पर भी तो सोचो.’’ गिरिजाशंकर अपनी सफाई में बोला.
गीता बोली, ”वह तो ठीक है मगर!’’
”अब अगरमगर छोड़ो, चलो, तुम्हें अपार्टमेंट के रास्ते में छोड़ता हुआ अपने गांव निकल जाऊंगा.’’
कुछ समय में ही दोनों रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए. गीता गिरिजाशंकर के साथ सफारी में बैठ गई. हालांकि गीता उस के साथ जाने के मूड में नहीं थी, लेकिन रात गहरी होने के कारण वह उस के साथ बैठ गई थी. गिरिजाशंकर मेन रोड छोड़ कर सन्नाटे की ओर सफारी को तेजी से चला रहा था. कुछ समय में ही वह लखनऊ में डिफेंस एक्सपो मैदान के सामने की सड़क पर पहुंच गया था. वहां काफी सन्नाटा था. गिरिजा ने एक किनारे कार रोक दी और कहा, ”तुम यहीं उतर जाओ. यहां से तुम्हारा अपार्टमेंट ज्यादा दूर नहीं है. मैं कैब बुक कर देता हूं.’’
उस वक्त सड़क पर इक्कादुक्का गाडिय़ां चल रही थीं. उन में बड़े ट्रक भी थे. गीता उस की कार से बाहर निकल आई थी.
”तुम सड़क के दूसरी तरफ चली जाओ. मेरे कुछ साथी सामने की बिल्डिंग से आने वाले हैं. वह भी मेरे गांव जाएंगे.’’ गिरिजाशंकर बोला और मोबाइल से कैब बुक करने लगा, लेकिन गीता ने मना कर दिया. वह बोली, ”मैं खुद कैब बुक कर लूंगी, मैं यहां की कोई नई नहीं हूं.’’
”ओके! संभल कर सड़क क्रौस करना!’’ कहते हुए गिरिजाशंकर ने अपनी सफारी वहां से थोड़ी आगे बढ़ा ली.
अगले रोज 19 जनवरी, 2025 की अल सुबह लखनऊ की वृंदावन कालोनी सेक्टर 10 में डिफेंस एक्सपो मैदान का इलाका रात को जितना सुनसान दिख रहा था, सुबह होते ही वहां का माहौल चहलपहल में बदल गया था. लोगों का मार्निंग वाक के लिए आना शुरू हो चुका था. उन में नजदीक की कालोनी में रहने वाली महिलाएं और मर्द ही अधिक थे. ट्रैकसूट में मैदान की सड़क से सटे किनारे दौड़ लगा रही एक युवती की नजर एक पेड़ की जड़ के पास गई. वह चौंक गई.
तुरंत कुछ अन्य लोगों को इकट्ठा किया. सभी पेड़ के पास गए. देखा, वहां एक महिला खून से लथपथ पड़ी थी. उस का चेहरा खून से पुता हुआ लाल था. उसे पहचानना मुश्किल था. कपड़े भी कई जगह से फटे हुए थे. तुरंत इस की सूचना वृंदावन पुलिस चौकी को दी गई. वहां के इंचार्ज एसआई विकास कुमार तिवारी सूचना मिलते ही कुछ पुलिसकर्मियों हैडकांस्टेबल आकाश गुप्ता और असिंदर कुमार यादव के साथ मौके पर पहुंच गए. मृत महिला की उम्र 35 वर्ष के करीब लग रही थी. उस लाश को अपने कस्टडी में लेने के बाद पुलिस ने उस की शिनाख्त के लिए जांच शुरू की. पहने हुए कपड़े बहे खून से शरीर पर चिपके हुए थे.
शरीर के कई जगहों पर घाव के निशान साफ दिख रहे थे. लग रहा था कि शायद वह किसी वाहन से कुचली गई हो. सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई थी. लाश की हालत देख कर ऐसा लगता था, मानो उस पर कई बार वाहन के पहिए चढ़े हों. सूचना मिलने पर डीसीपी (पूर्वी) शशांक सिंह और एडिशनल डीसीपी (पूर्वी) पंकज कुमार सिंह भी मौके पर पहुंच गए. उस की पहचान के लिए पीजीआई थाने ने वृंदावन कालोनी और नीलगिरी अपार्टमेंट के आसपास के लोगों से पूछताछ की. जल्द ही उस की पहचान हो गई. उस का नाम गीता शर्मा था, जो नीलगिरी अपार्टमेंट में अकेली किराए पर रहती थी.
आसपास की कालोनी के कई लोग उसे जानतेपहचानते थे. आगे की जानकारी पुलिस ने जुटा ली. गीता नाम की वह महिला मूलरूप से रायबरेली के अकबर कछुबाहा (मटिया) की निवासी थी. गीता के बारे में पुलिस ने रायबरेली की सदर कोतवाली को सूचना दे दी गई. कुछ घंटे में ही उस के फेमिली वालों को इस की सूचना मिल गई. उस का भाई लालचंद पीजीआई, लखनऊ पहुंच गया. उस ने उस की पहचान कर ली. एसएचओ रविशंकर तिवारी को लालचंद्र ने बहन की मौत का कारण भी बताया. साथ ही हत्या का आरोप एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल पर लगाया.
इस आधार पर पीजीआई कोतवाली में गीता की हत्या का मुकदमा धारा 103 (1) बीएनएस के तहत गिरिजाशंकर पाल के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार सिंह को सौंपी गई. इस के बाद पीजीआई पुलिस ने सेक्टर 11-12 में पुलिस चौकी के निकट मामा चौराहे के कालिंदी पार्क से ले कर ट्रामा सेंटर के किनारे लगे तमाम सीसीटीवी कैमरों को फुटेज निकाली. उन की जांच के बाद कुछ फुटेज में एक कार रात के समय ट्यूबलाइट की रोशनी में डिफेंस एक्सपो मैदान की ओर जाती दिखाई दी.
कार का नंबर पढ़ा जा रहा था. उस नंबर से कार के मालिक का पता चल गया. वह एक सफारी कार थी, जो गिरिजाशंकर पाल पुत्र राम पाल के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस द्वारा गीता की लाश के पास मिले सामान की जांच की गई. उस के मोबाइल नंबर की सर्विलांस जांच से गिरिजाशंकर के मोबाइल का नंबर आया. जिस से घटना के दिन कई बार बातें हुई थीं. यहां तक कि वीडियो कालिंग का विवरण भी मालूम हो गया, जो 18 जनवरी की दोपहर से ले कर रात तक का था. रिपोर्ट भी गिरिजाशंकर के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इसलिए पुलिस ने देर किए बिना गिरिजाशंकर की गिरफ्तारी की पहल की. जल्द ही वह सफारी कार समेत गिरफ्तार कर लिया गया.
गीता की सड़क दुर्घटना में मौत और इस से पहले उस से हुई मोबाइल पर बात के बारे में पूछे जाने पर उस ने बगैर किसी नानुकुर के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि गीता उस की प्रेमिका थी. उन का प्रेम संबंध लंबे समय से चल रहा था. वे शादी करने वाले थे, किंतु उस ने योजना बना कर उसे मार डाला. उस की मौत को दुर्घटना बनाने की कोशिश की, ताकि उस के नाम एक करोड़ रुपए के इंश्योरेंस की रकम को वह हासिल कर ले. वह एक एडवोकेट था, इसलिए उस ने बचाव के तरीके निकाल लिए थे. गीता की हत्या स्वीकार करते हुए उस ने जो कहानी सुनाई, वह स्वार्थ से भरी काफी रोमांचक निकली.
गिरिजाशंकर पाल 8 साल पहले एलएलबी की पढ़ाई के लिए अपने गांव से लखनऊ आ गया था. वह महत्त्वाकांक्षी और फितरती दिमाग वाला इंसान था. बातों को सुनसमझ कर वह शीघ्र ही उस पर पकड़ बना लेता था और उस के अनुरूप खुद का ढाल लेता था. उस की शादी किशोरावस्था में ही उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बगराहा गांव के निवासी श्यामपाल की बेटी रीना के साथ हो गई थी. लखनऊ में पढ़ाई के दौरान हर रविवार को वह अपने गांव मटिया आताजाता था. एलएलबी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उस ने लखनऊ में रह कर वकालत की प्रैक्टिस करने का मन बना लिया था.
इस के लिए रायबरेली रोड पर कल्ली पश्चिम के कस्बे में एक छोटा सा मकान किराए पर ले कर रहने लगा था. वह वकालत की प्रैक्टिस में बहुत जल्द ही रम गया. हर किस्म के प्रोफेशनल लोगों के साथ उस का उठनाबैठना हो गया. समय बीतने के साथ वह एक तजतर्रार एडवोकेट बन गया था. अपने गांवघर को तो वह करीबकरीब भूल गया था. शहरी लड़कियां उसे अच्छी लगने लगी थीं और उन में से ही किसी को जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा था. एक तरह से वह नई जिंदगी में रंग चुका था. संयोग से उस की जानपहचान प्रौपर्टी मे लगे लोगों से अधिक थी.
साल 2011 के जनवरी महीने में गिरिजाशंकर की मुलाकात गीता से कोर्ट परिसर में तब हो गई थी, जब वह किसी प्रौपर्टी की रजिस्ट्री के सिलसिले में वहां गई थी. गीता को देखते ही गिरिजा ने उसे पहचान लिया था. दरअसल, एक समय में दोनों ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई साथसाथ की थी. उस के बाद गिरिजा लखनऊ चला आया, जबकि गीता की पढ़ाई छूट गई थी. एक ही गांव के होने के चलते उन के बीच फिर से दोस्ती हो गई. गीता ने बताया कि वह लखनऊ में रह कर प्रौपर्टी का काम करती है. गिरिजा ने बताया कि खरीदबिक्री में कानूनी मदद कर सकता है और उसे नए ग्राहक भी दे सकता है. गीता यह सुन कर खुश हो गई. इस के बाद गीता ने उसे अपने अपार्टमेंट में रात के खाने पर बुला लिया.
एडवोकेट गिरिजाशंकर जब गीता से मिलने उस के फ्लैट पर गया, तब उसे बड़े फ्लैट में अकेली देख कर काफी हैरानी हुई. वह रोमांचित हो गया. दिल की धडकनें बढ़ गईं. उस की तारीफ में बोला, ”गीता, तुम गांव की देसी गर्ल से शहर की बोल्ड लड़की बन गई हो…अच्छा लग रहा है!’’
”मुझे भी तुम से मिल कर बहुत खुशी हुई. तुम अगर साथ दो तो मैं कंस्ट्रक्शन में भी हाथ आजमा लूं.’’ गीता बोली.
”हांहां, क्यों नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ कहते हुए गिरिजा ने गीता का हाथ पकड़ लिया.
”देख लो, हाथ पकड़े हो, वरना हाथ मिलाने वाले तो कई होते हैं.’’ गीता मजाकिया लहजे में बोली.
”कैसी बात करती हो, मैं ने जो कह दिया, वह अटल है और अटल रहेगा. किंतु हां, मेरे वाजिब मुनाफे का भी खयाल रखना.’’
इस तरह उन के बीच प्रोफेशनल बातें होने लगीं. गीता ने गिरिजा की खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ी. दरअसल, उसे प्रोफेशनल मदद की जरूरत थी. उस की बदौलत वह अपने कारोबार को फैलाने का सपना बुनने लगी, जिस से उसे अच्छा मुनाफा होने वाला था. उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई. उस ने बताया कि गांवघर से बाहर इसलिए निकली है कि परिवार की आर्थिक मदद करे. उस के पिता नहीं हैं. परिवार में अकेली मम्मी किरण देवी और छोटा भाई लालचंद की जिम्मेदारी उसी के ऊपर ही है.
गीता शर्मा गिरिजाशंकर का साथ पा कर खुश हो गई थी. जल्द ही उसे महसूस हो गया कि गिरिजा के सहारे वह अपने कारोबार में बहुत कुछ अच्छा कर सकती है. इस की जानकारी उस ने अपनी मम्मी और छोटे भाई को भी दे दी. गिरिजा के बातव्यवहार से गीता ने उसे अपने दिल के काफी करीब पाया. वह एक काल पर हाजिर हो जाने वाला इंसान था. उस ने कभी भी कोई मोबाइल काल मिस नहीं होने दी. मिस काल पर तुरंत कालबैक किया या वाट्सऐप मैसेज भेज दिया. गीता उस की व्यवहारकुशलता और हाजिरजवाबी से प्रभावित हो गई थी. वह अपने प्रोफेशन में माहिर मुश्किल से मुश्किल काम निकाल लेता था.
गीता को गिरिजाशंकर की मदद से नीलगिरी अपार्टमेंट में सोसाइटी का सस्ता फ्लैट मिल गया था. गिरिजा अमूमन हर रोज गीता से मुलाकात कर लेता था. धीरेधीरे गीता और गिरिजा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. इस तरह दोनों गहरे दोस्त और प्रेमी युगल के बाद लिवइन में थे. उन के बीच पैसों का लेनदेन भी होने लगा. गीता का काम चल पड़ा था. उसे आमदनी होने लगी. गिरिजा की सलाह पर उस ने एक करोड़ का बीमा करवा दिया. उस का नौमिनी गिरिजा को ही बना दिया, क्योंकि उस ने उस से शादी का वादा किया था. जरूरत पडऩे पर गिरिजा गीता से रुपए उधार मांग लेता था. जब उसे लौटाने में देरी होती, तब भी गीता उस से कुछ नहीं कहती थी.
गिरिजा के पास सफारी कार थी, गीता को जहां भी जाना होता, वह उसे अपनी गाड़ी से ले जाता था. कालोनी के लोग उन के संबंध से वाकिफ थे तो गीता के फेमिली वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी. आपत्ति थी तो गिरिजा की ब्याहता पत्नी के मायके वालों को. हालांकि उन की जातियां भिन्न थीं. कुछ साल पहले तक गिरिजा जब भी गांव जाता तो गीता को भी साथ ले कर जाता था और वापस भी साथ लाता था. कभीकभी गीता अपनी मम्मी को लखनऊ ले आती थी. भाई भी आताजाता रहता था. किंतु कुछ महीने से गिरिजा के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था. ऐसा तब से हुआ था, जब से गीता उस के साथ गांव जाने से मना कर चुकी थी.
गीता जब भी गिरिजा से मिलती थी, उसे शादी के बारे में जरूर कहती. आए दिन के रोकनेटोकने से वह तंग आ चुका था. वह चाहता था कि पहले कानूनी स्तर पर उस का पूर्वपत्नी से तलाक हो जाए, उस के बाद ही गीता से कोर्ट मैरिज करे. इस के अलावा गिरिजा ने गीता से लाखों रुपए उधार ले रखे थे. जिस कारण वह गीता से कन्नी काटने लगा था. यहां तक कि वह कई बार गीता की काल रिसीव नहीं करता था या कट कर देता था. गीता की मौत के कुछ दिन पहले भी गिरिजा ऐसा ही कर रहा था. बारबार गीता के फोन करने पर वह उस का जवाब नहीं दे रहा था. गीता परेशान हो गई थी.
खासकर जब से उस ने इंश्योरेंस के सर्टिफिकेट में नौमिनी की जगह अपनी मम्मी या भाई का नाम नहीं देखा था, तब से वह कुछ अधिक बेचैन रहने लगी थी. उस का मोटा पैसा भी कारोबार में फंसा हुआ था. गिरिजा अगर उसे पैसे लौटा देता, तब उस की कुछ परेशानी खत्म हो सकती थी. 18 जनवरी, 2025 की दोपहर में जब गिरिजाशंकर ने उसे फोन कर बुलाया और अपने साथ चलने की बात की, तब गीता आसानी से तैयार हो गई. उस के मन में जरा भी अनहोनी की आशंका नहीं थी. किंतु इस के विपरीत गिरिजाशंकर ने उस के खिलाफ योजना बना रखी थी. वह अपनी योजना को अंजाम देने में सफल भी हो गया, किंतु जुर्म को छिपाने में कामयाब नहीं हो पाया.
वारदात को दुर्घटना बनाने के लिए उस ने गीता को अपनी कार से पीछे से तब टक्कर मार दी, जब वह सड़क पार कर रही थी. वह जानबूझ कर उसे सुनसान इलाके में ले गया था. गीता के सड़क पर गिरते ही गिरिजा ने अपनी सफारी कार से उसे कुचल दिया. उस ने उसे कई बार रौंदा और उस की लाश को सुनसान इलाके में एक्सपो मैदान के किनारे जा कर फेंक दिया. गीता शर्मा की मौत के बाद गिरिजाशंकर घबरा गया. वह फरार होने के लिए तेजी से कार भगाने लगा, जिस से उस की कार डिवाइडर से टकरा गई. गाड़ी का शीशा टूट गया. तब उस ने गाड़ी में लगे खून की धुलाई, सफाई एवं गाड़ी की रिपेयर के लिए गाड़ी को गैराज में लगा दिया. उस के बाद उस ने होटल में जा कर देर रात तक आराम किया.
आधी रात के बाद वह होटल से अपने गांव चला गया. वहां सुबह उस ने गीता के भाई लालचंद को घर जा कर गीता की दुर्घटना के बारे में बताया. उस ने यह भी बताया कि सड़क दुर्घटना में उस की घटनास्थल पर ही मौत हो चुकी है. लालचंद्र शर्मा उसी वक्त भागाभागा लखनऊ के पीजीआई पुलिस स्टेशन जा पहुंचा. उस ने पुलिस को अपनी बहन की मौत का दोषी गिरिजाशंकर को ही बताया. उस ने यह भी बताया कि गिरिजा ने उस की बहन के साथ लिवइन में रहते हुए अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़ रखा था. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि गिरिजा ने गीता से 13 लाख रुपए उधार ले रखे थे. इसे ले कर उन के बीच कई बार झगड़ा हो चुका था.
उस की हरकतों से गीता काफी तंग आ चुकी थी. गिरिजा ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था. उस से पूछताछ कर पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर दिया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया था. romantic story in hindi