romantic story in hindi : लिवइन प्रेमिका की कीमत एक करोड़

romantic story in hindi : प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा और एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल के फेमिली वालों को उन के अंतरजातीय प्रेम संबंध पर कोई आपत्ति नहीं थी और लिवइन में रहने पर कोई शिकायत भी नहीं थी. दोनों परिपक्व थे, प्रोफेशनल थे. पतिपत्नी नहीं थे, फिर भी गीता का नौमिनी बन कर प्रेमी ने एक करोड़ रुपए का इंश्योरेंस करवा रखा था. आपस में लाखों का लेनदेन करते थे. फिर क्या हुआ, जो गीता की रक्तरंजित लाश बीच सड़क पर पाई गई. पढ़ें, नए जमाने की लंबी चली प्रेम कहानी, जिस का अंत चौंका गया…

दोपहर का वक्त था. तारीख थी 18 जनवरी, 2025. रोजाना की तरह लंच करने के बाद प्रौपर्टी डीलर गीता शर्मा लखनऊ के पीजीआई स्थित नीलगिरी अपार्टमेंट में बने अपने औफिस में आ गई थी. कुछ परेशान लग रही थी. कभी मोबाइल फोन को हाथ में लेती तो कभी सामने लैपटौप की स्क्रीन पर खुले वाट्सऐप मैसेज को स्क्राल करने लगती. अंदर की बेचैनी उस के हावभाव से साफ झलक रही थी. दरअसल, गीता शर्मा कई दिनों से परेशान चल रही थी. गिरिजा न तो उस के उधार के पैसे लौटा रहा था और न ही उस का फोन उठा रहा था. उस से लाखों रुपए लेने थे. वह कोई गैर नहीं, बल्कि उस का प्रेमी था.

सालों से लिवइन में भी था. हालांकि वे अलगअलग रहते थे. जब से उस ने शादी की जिद की थी, तब से कारोबारी लेनदेन में बाधाएं आने लगी थीं. औफिस में अकेली बैठी हुई काफी समय तक वह खयालों में खोई रही. अचानक उस का मोबाइल फोन बज उठा. वीडियो काल था. स्क्रीन पर दिखे चेहरे को देखते ही एकाएक मुसकरा उठी और बोली, ” हैलो!’’

”देखो, शिकायत मत करना…नाराज मत होना. मैं गुनहगार हूं तुम्हारा. फोन नहीं रिसीव किया, मैं कोर्ट में था.’’ उधर से काल पर गिरिजाशंकर पाल था.

गीता नाराज होती हुई बोली, ”कैसे नहीं करूं शिकायत! तुम्हारे साथ लिवइन में रहते हुए मुझे 10 साल हो गए, लेकिन जब से मैं ने तुम से शादी की बात छेड़ी है, तब से तुम्हारा रवैया ही बदल गया है.’’

”देखो, तुम गुस्से में भी सुंदर दिख रही हो.’’ गिरिजा बोला.

”वह सब तो ठीक है, मेरे भाई का फोन आया था. पूछ रहा था शादी का मुहूर्त निकलवाना है.’’ गीता बोली.

”अरे वह भी हो जाएगा, थौड़ा बैंक बैलेंस बढ़ जाने दो.’’ गिरिजा का जवाब था.

”फिर टाल रहे हो!’’

”अरे नहीं मेरी जान! तुम ने भी कौन सा राग छेड़ दिया. मैं आज तुम्हें कैंडल डिनर देना चाहता हूं. एक बड़ा मुकदमा हाथ आने वाला है, इस खुशी में…’’ गिरिजा शंकर आंखें मटकते हुए बोला.

”अच्छा!’’

”आज शाम को 5 बजे मैं गांव जा रहा हूं. कल संडे है. चाहो तो तुम भी गांव चल सकती हो. रास्ते में रेस्टोरेंट में डिनर करेंगे. अगर वहीं से लौटना चाहो तो वापस हो जाना. कुछ देर तुम्हारे साथ बैठेंगे. मुझे अच्छा लगेगा!’’ गिरिजा शंकर बोला.

इस पर गीता ताना मारती हुई बोली, ”मैं क्या करूंगी गांव जा कर! वहां वही ताने सुनने को मिलेंगे. कब दुलहन बन रही हो?’’

दोनों का गांव रायबरेली जनपद में सदर कोतवाली क्षेत्र का अकबरपुर कछुबाहा, मटिया है. गीता अपने गांव जाने से कतराती थी. अपने काम के सिलसिले में लखनऊ के नीलगिरी अपार्टमेंट में कई सालों से अकेली रह रही थी. वहां गिरिजाशंकर बेरोकटोक आताजाता रहता था. उस रोज भी उन्होंने वीडियो कालिंग में गीता को शाम के 5 बजे तैयार रहने को कहा था. जवाब में गीता बोली थी, ”बड़ी बेकरारी से इंतजार करूंगी.’’

गिरिजाशंकर पाल अपनी सफारी गाड़ी से निर्धारित समय पर वृंदावन कालोनी के निकट नीलगिरी अपार्टमेंट के गेट पर पहुंच गया. उस रोज उस ने बाहर से ही काल कर गीता को बुला लिया. गीता हैरान थी कि जो कुछ दिनों से उस का फोन बारबार काट देता था. वह ठीक समय पर आ गया. हालांकि उस ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उस की सफारी गाड़ी में साथ वाली सीट पर जा कर बैठ गई.

”बहुत जरूरी बात करनी है.’’ गीता बोली.

”कर्ज के बारे में! जल्द लौटा दूंगा.’’ गिरिजा बोला.

”मैं उस की नहीं, शादी के मुहूर्त की बात कर रही हूं.’’

”देखो, तुम ने फिर से दुखती रग पर हाथ रख दिया…’’ गिरिजा बोला ही था कि गीता तुरंत बोल पड़ी, ”तुम्हारे लिए दुखती रग है, लेकिन मेरे लिए दिल का दर्द है!’’

”जब तक मैं गले मढ़ी पत्नी से कानूनी छुटकारा नहीं पा लेता, तब तक तुम से शादी संभव नहीं है.’’

”अभी तक झूठा वादा करते रहे?’’

”कैसा वादा?’’ गिरिजाशंकर की यह बात गीता को चुभ गई.

बोली, ”तो अब मुकर रहे हो…’’

”मैं एडवोकेट हूं…सब कुछ कानूनी दायरे में करता हूं.’’ गिरिजाशंकर के इस तर्क से वह और भी मायूस हो गई. उदासी चेहरे पर झलक आई थी. वह एकदम से चुप हो गई. गिरिजाशंकर कार भगाए जा रहा था. गीता काफी देर तक गुमसुम उस का चेहरा देखती रही. उस के चेहरे पर कई तरह के भाव आजा रहे थे. उस के जरिए

गीता समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर गिरिजाशंकर के दिमाग में क्या चल रहा है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. थोड़ी देर की खामोशी के बाद गिरिजाशंकर और गीता एक रेस्टोरेंट में थे. एक टेबल पर आमनेसामने. उन के सामने चाय और गीता के पसंद की सैंडविच आ चुकी थी. चाय पीते हुए गिरिजाशंकर अपने नए मुकदमे की बात करने लगा, जबकि गीता उस की बातें सुनते हुए अपने असली मकसद पर आ गई थी.

गीता बोली, ”गिरिजा, आज तुम मुझे साफसाफ बताओ कि मुझ से शादी करने की तारीख किस महीने की निश्चित कर रहे हो.’’

”गांव से लौटते ही जवाब मिल जाएगा.’’ मुंह बनाता हुआ गिरिजा बोला. गीता ने महसूस किया कि गिरिजा के चेहरे पर तनाव था.

”मैं तुम से पिछले 5 सालों से आग्रह कर रही हूं. अब पानी सिर से काफी ऊपर हो चुका है. और ज्यादा दिन तक मैं इंतजार नहीं कर सकती.’’ गीता बोली.

”समझो, इंतजार का अखिरी वक्त आ चुका है. वैसे मैं ने तुम्हारा एक करोड़ का इंश्योरेंस कर भविष्य सुरक्षित कर दिया है. जरा इस पर भी तो सोचो.’’ गिरिजाशंकर अपनी सफाई में बोला.

गीता बोली, ”वह तो ठीक है मगर!’’

”अब अगरमगर छोड़ो, चलो, तुम्हें अपार्टमेंट के रास्ते में छोड़ता हुआ अपने गांव निकल जाऊंगा.’’

कुछ समय में ही दोनों रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए. गीता गिरिजाशंकर के साथ सफारी में बैठ गई. हालांकि गीता उस के साथ जाने के मूड में नहीं थी, लेकिन रात गहरी होने के कारण वह उस के साथ बैठ गई थी. गिरिजाशंकर मेन रोड छोड़ कर सन्नाटे की ओर सफारी को तेजी से चला रहा था. कुछ समय में ही वह लखनऊ में डिफेंस एक्सपो मैदान के सामने की सड़क पर पहुंच गया था. वहां काफी सन्नाटा था. गिरिजा ने एक किनारे कार रोक दी और कहा, ”तुम यहीं उतर जाओ. यहां से तुम्हारा अपार्टमेंट ज्यादा दूर नहीं है. मैं कैब बुक कर देता हूं.’’

उस वक्त सड़क पर इक्कादुक्का गाडिय़ां चल रही थीं. उन में बड़े ट्रक भी थे. गीता उस की कार से बाहर निकल आई थी.

”तुम सड़क के दूसरी तरफ चली जाओ. मेरे कुछ साथी सामने की बिल्डिंग से आने वाले हैं. वह भी मेरे गांव जाएंगे.’’ गिरिजाशंकर बोला और मोबाइल से कैब बुक करने लगा, लेकिन गीता ने मना कर दिया. वह बोली, ”मैं खुद कैब बुक कर लूंगी, मैं यहां की कोई नई नहीं हूं.’’

”ओके! संभल कर सड़क क्रौस करना!’’ कहते हुए गिरिजाशंकर ने अपनी सफारी वहां से थोड़ी आगे बढ़ा ली.

अगले रोज 19 जनवरी, 2025 की अल सुबह लखनऊ की वृंदावन कालोनी सेक्टर 10 में डिफेंस एक्सपो मैदान का इलाका रात को जितना सुनसान दिख रहा था, सुबह होते ही वहां का माहौल चहलपहल में बदल गया था. लोगों का मार्निंग वाक के लिए आना शुरू हो चुका था. उन में नजदीक की कालोनी में रहने वाली महिलाएं और मर्द ही अधिक थे. ट्रैकसूट में मैदान की सड़क से सटे किनारे दौड़ लगा रही एक युवती की नजर एक पेड़ की जड़ के पास गई. वह चौंक गई.

तुरंत कुछ अन्य लोगों को इकट्ठा किया. सभी पेड़ के पास गए. देखा, वहां एक महिला खून से लथपथ पड़ी थी. उस का चेहरा खून से पुता हुआ लाल था. उसे पहचानना मुश्किल था. कपड़े भी कई जगह से फटे हुए थे. तुरंत इस की सूचना वृंदावन पुलिस चौकी को दी गई. वहां के इंचार्ज एसआई विकास कुमार तिवारी सूचना मिलते ही कुछ पुलिसकर्मियों हैडकांस्टेबल आकाश गुप्ता और असिंदर कुमार यादव के साथ मौके पर पहुंच गए. मृत महिला की उम्र 35 वर्ष के करीब लग रही थी. उस लाश को अपने कस्टडी में लेने के बाद पुलिस ने उस की शिनाख्त के लिए जांच शुरू की. पहने हुए कपड़े बहे खून से शरीर पर चिपके हुए थे.

शरीर के कई जगहों पर घाव के निशान साफ दिख रहे थे. लग रहा था कि शायद वह किसी वाहन से कुचली गई हो. सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई थी. लाश की हालत देख कर ऐसा लगता था, मानो उस पर कई बार वाहन के पहिए चढ़े हों. सूचना मिलने पर डीसीपी (पूर्वी) शशांक सिंह और एडिशनल डीसीपी (पूर्वी) पंकज कुमार सिंह भी मौके पर पहुंच गए. उस की पहचान के लिए पीजीआई थाने ने वृंदावन कालोनी और नीलगिरी अपार्टमेंट के आसपास के लोगों से पूछताछ की. जल्द ही उस की पहचान हो गई. उस का नाम गीता शर्मा था, जो नीलगिरी अपार्टमेंट में अकेली किराए पर रहती थी.

आसपास की कालोनी के कई लोग उसे जानतेपहचानते थे. आगे की जानकारी पुलिस ने जुटा ली. गीता नाम की वह महिला मूलरूप से रायबरेली के अकबर कछुबाहा (मटिया) की निवासी थी. गीता के बारे में पुलिस ने रायबरेली की सदर कोतवाली को सूचना दे दी गई. कुछ घंटे में ही उस के फेमिली वालों को इस की सूचना मिल गई. उस का भाई लालचंद पीजीआई, लखनऊ पहुंच गया. उस ने उस की पहचान कर ली. एसएचओ रविशंकर तिवारी को लालचंद्र ने बहन की मौत का कारण भी बताया. साथ ही हत्या का आरोप एडवोकेट गिरिजाशंकर पाल पर लगाया.

इस आधार पर पीजीआई कोतवाली में गीता की हत्या का मुकदमा धारा 103 (1) बीएनएस के तहत गिरिजाशंकर पाल के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार सिंह को सौंपी गई. इस के बाद पीजीआई पुलिस ने सेक्टर 11-12 में पुलिस चौकी के निकट मामा चौराहे के कालिंदी पार्क से ले कर ट्रामा सेंटर के किनारे लगे तमाम सीसीटीवी कैमरों को फुटेज निकाली. उन की जांच के बाद कुछ फुटेज में एक कार रात के समय ट्यूबलाइट की रोशनी में डिफेंस एक्सपो मैदान की ओर जाती दिखाई दी.

कार का नंबर पढ़ा जा रहा था. उस नंबर से कार के मालिक का पता चल गया. वह एक सफारी कार थी, जो गिरिजाशंकर पाल पुत्र राम पाल के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस द्वारा गीता की लाश के पास मिले सामान की जांच की गई. उस के मोबाइल नंबर की सर्विलांस जांच से गिरिजाशंकर के मोबाइल का नंबर आया. जिस से घटना के दिन कई बार बातें हुई थीं. यहां तक कि वीडियो कालिंग का विवरण भी मालूम हो गया, जो 18 जनवरी की दोपहर से ले कर रात तक का था. रिपोर्ट भी गिरिजाशंकर के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इसलिए पुलिस ने देर किए बिना गिरिजाशंकर की गिरफ्तारी की पहल की. जल्द ही वह सफारी कार समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

गीता की सड़क दुर्घटना में मौत और इस से पहले उस से हुई मोबाइल पर बात के बारे में पूछे जाने पर उस ने बगैर किसी नानुकुर के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि गीता उस की प्रेमिका थी. उन का प्रेम संबंध लंबे समय से चल रहा था. वे शादी करने वाले थे, किंतु उस ने योजना बना कर उसे मार डाला. उस की मौत को दुर्घटना बनाने की कोशिश की, ताकि उस के नाम एक करोड़ रुपए के इंश्योरेंस की रकम को वह हासिल कर ले. वह एक एडवोकेट था, इसलिए उस ने बचाव के तरीके निकाल लिए थे. गीता की हत्या स्वीकार करते हुए उस ने जो कहानी सुनाई, वह स्वार्थ से भरी काफी रोमांचक निकली.

गिरिजाशंकर पाल 8 साल पहले एलएलबी की पढ़ाई के लिए अपने गांव से लखनऊ आ गया था. वह महत्त्वाकांक्षी और फितरती दिमाग वाला इंसान था. बातों को सुनसमझ कर वह शीघ्र ही उस पर पकड़ बना लेता था और उस के अनुरूप खुद का ढाल लेता था. उस की शादी किशोरावस्था में ही उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बगराहा गांव के निवासी श्यामपाल की बेटी रीना के साथ हो गई थी. लखनऊ में पढ़ाई के दौरान हर रविवार को वह अपने गांव मटिया आताजाता था. एलएलबी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उस ने लखनऊ में रह कर वकालत की प्रैक्टिस करने का मन बना लिया था.

इस के लिए रायबरेली रोड पर कल्ली पश्चिम के कस्बे में एक छोटा सा मकान किराए पर ले कर रहने लगा था. वह वकालत की प्रैक्टिस में बहुत जल्द ही रम गया. हर किस्म के प्रोफेशनल लोगों के साथ उस का उठनाबैठना हो गया. समय बीतने के साथ वह एक तजतर्रार एडवोकेट बन गया था. अपने गांवघर को तो वह करीबकरीब भूल गया था. शहरी लड़कियां उसे अच्छी लगने लगी थीं और उन में से ही किसी को जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा था. एक तरह से वह नई जिंदगी में रंग चुका था. संयोग से उस की जानपहचान प्रौपर्टी मे लगे लोगों से अधिक थी.

साल 2011 के जनवरी महीने में गिरिजाशंकर की मुलाकात गीता से कोर्ट परिसर में तब हो गई थी, जब वह किसी प्रौपर्टी की रजिस्ट्री के सिलसिले में वहां गई थी. गीता को देखते ही गिरिजा ने उसे पहचान लिया था. दरअसल, एक समय में दोनों ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई साथसाथ की थी. उस के बाद गिरिजा लखनऊ चला आया, जबकि गीता की पढ़ाई छूट गई थी. एक ही गांव के होने के चलते उन के बीच फिर से दोस्ती हो गई. गीता ने बताया कि वह लखनऊ में रह कर प्रौपर्टी का काम करती है. गिरिजा ने बताया कि खरीदबिक्री में कानूनी मदद कर सकता है और उसे नए ग्राहक भी दे सकता है. गीता यह सुन कर खुश हो गई. इस के बाद गीता ने उसे अपने अपार्टमेंट में रात के खाने पर बुला लिया.

एडवोकेट गिरिजाशंकर जब गीता से मिलने उस के फ्लैट पर गया, तब उसे बड़े फ्लैट में अकेली देख कर काफी हैरानी हुई. वह रोमांचित हो गया. दिल की धडकनें बढ़ गईं. उस की तारीफ में बोला, ”गीता, तुम गांव की देसी गर्ल से शहर की बोल्ड लड़की बन गई हो…अच्छा लग रहा है!’’

”मुझे भी तुम से मिल कर बहुत खुशी हुई. तुम अगर साथ दो तो मैं कंस्ट्रक्शन में भी हाथ आजमा लूं.’’ गीता बोली.

”हांहां, क्यों नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ कहते हुए गिरिजा ने गीता का हाथ पकड़ लिया.

”देख लो, हाथ पकड़े हो, वरना हाथ मिलाने वाले तो कई होते हैं.’’ गीता मजाकिया लहजे में बोली.

”कैसी बात करती हो, मैं ने जो कह दिया, वह अटल है और अटल रहेगा. किंतु हां, मेरे वाजिब मुनाफे का भी खयाल रखना.’’

इस तरह उन के बीच प्रोफेशनल बातें होने लगीं. गीता ने गिरिजा की खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ी. दरअसल, उसे प्रोफेशनल मदद की जरूरत थी. उस की बदौलत वह अपने कारोबार को फैलाने का सपना बुनने लगी, जिस से उसे अच्छा मुनाफा होने वाला था. उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई. उस ने बताया कि गांवघर से बाहर इसलिए निकली है कि परिवार की आर्थिक मदद करे. उस के पिता नहीं हैं. परिवार में अकेली मम्मी किरण देवी और छोटा भाई लालचंद की जिम्मेदारी उसी के ऊपर ही है.

गीता शर्मा गिरिजाशंकर का साथ पा कर खुश हो गई थी. जल्द ही उसे महसूस हो गया कि गिरिजा के सहारे वह अपने कारोबार में बहुत कुछ अच्छा कर सकती है. इस की जानकारी उस ने अपनी मम्मी और छोटे भाई को भी दे दी. गिरिजा के बातव्यवहार से गीता ने उसे अपने दिल के काफी करीब पाया. वह एक काल पर हाजिर हो जाने वाला इंसान था. उस ने कभी भी कोई मोबाइल काल मिस नहीं होने दी. मिस काल पर तुरंत कालबैक किया या वाट्सऐप मैसेज भेज दिया. गीता उस की व्यवहारकुशलता और हाजिरजवाबी से प्रभावित हो गई थी. वह अपने प्रोफेशन में माहिर मुश्किल से मुश्किल काम निकाल लेता था.

गीता को गिरिजाशंकर की मदद से नीलगिरी अपार्टमेंट में सोसाइटी का सस्ता फ्लैट मिल गया था. गिरिजा अमूमन हर रोज गीता से मुलाकात कर लेता था. धीरेधीरे गीता और गिरिजा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. इस तरह दोनों गहरे दोस्त और प्रेमी युगल के बाद लिवइन में थे. उन के बीच पैसों का लेनदेन भी होने लगा. गीता का काम चल पड़ा था. उसे आमदनी होने लगी. गिरिजा की सलाह पर उस ने एक करोड़ का बीमा करवा दिया. उस का नौमिनी गिरिजा को ही बना दिया, क्योंकि उस ने उस से शादी का वादा किया था. जरूरत पडऩे पर गिरिजा गीता से रुपए उधार मांग लेता था. जब उसे लौटाने में देरी होती, तब भी गीता उस से कुछ नहीं कहती थी.

गिरिजा के पास सफारी कार थी, गीता को जहां भी जाना होता, वह उसे अपनी गाड़ी से ले जाता था. कालोनी के लोग उन के संबंध से वाकिफ थे तो गीता के फेमिली वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी. आपत्ति थी तो गिरिजा की ब्याहता पत्नी के मायके वालों को. हालांकि उन की जातियां भिन्न थीं. कुछ साल पहले तक गिरिजा जब भी गांव जाता तो गीता को भी साथ ले कर जाता था और वापस भी साथ लाता था. कभीकभी गीता अपनी मम्मी को लखनऊ ले आती थी. भाई भी आताजाता रहता था. किंतु कुछ महीने से गिरिजा के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था. ऐसा तब से हुआ था, जब से गीता उस के साथ गांव जाने से मना कर चुकी थी.

गीता जब भी गिरिजा से मिलती थी, उसे शादी के बारे में जरूर कहती. आए दिन के रोकनेटोकने से वह तंग आ चुका था. वह चाहता था कि पहले कानूनी स्तर पर उस का पूर्वपत्नी से तलाक हो जाए, उस के बाद ही गीता से कोर्ट मैरिज करे. इस के अलावा गिरिजा ने गीता से लाखों रुपए उधार ले रखे थे. जिस कारण वह गीता से कन्नी काटने लगा था. यहां तक कि वह कई बार गीता की काल रिसीव नहीं करता था या कट कर देता था. गीता की मौत के कुछ दिन पहले भी गिरिजा ऐसा ही कर रहा था. बारबार गीता के फोन करने पर वह उस का जवाब नहीं दे रहा था. गीता परेशान हो गई थी.

खासकर जब से उस ने इंश्योरेंस के सर्टिफिकेट में नौमिनी की जगह अपनी मम्मी या भाई का नाम नहीं देखा था, तब से वह कुछ अधिक बेचैन रहने लगी थी. उस का मोटा पैसा भी कारोबार में फंसा हुआ था. गिरिजा अगर उसे पैसे लौटा देता, तब उस की कुछ परेशानी खत्म हो सकती थी. 18 जनवरी, 2025 की दोपहर में जब गिरिजाशंकर ने उसे फोन कर बुलाया और अपने साथ चलने की बात की, तब गीता आसानी से तैयार हो गई. उस के मन में जरा भी अनहोनी की आशंका नहीं थी. किंतु इस के विपरीत गिरिजाशंकर ने उस के खिलाफ योजना बना रखी थी. वह अपनी योजना को अंजाम देने में सफल भी हो गया, किंतु जुर्म को छिपाने में कामयाब नहीं हो पाया.

वारदात को दुर्घटना बनाने के लिए उस ने गीता को अपनी कार से पीछे से तब टक्कर मार दी, जब वह सड़क पार कर रही थी. वह जानबूझ कर उसे सुनसान इलाके में ले गया था. गीता के सड़क पर गिरते ही गिरिजा ने अपनी सफारी कार से उसे कुचल दिया. उस ने उसे कई बार रौंदा और उस की लाश को सुनसान इलाके में एक्सपो मैदान के किनारे जा कर फेंक दिया. गीता शर्मा की मौत के बाद गिरिजाशंकर घबरा गया. वह फरार होने के लिए तेजी से कार भगाने लगा, जिस से उस की कार डिवाइडर से टकरा गई. गाड़ी का शीशा टूट गया. तब उस ने गाड़ी में लगे खून की धुलाई, सफाई एवं गाड़ी की रिपेयर के लिए गाड़ी को गैराज में लगा दिया. उस के बाद उस ने होटल में जा कर देर रात तक आराम किया.

आधी रात के बाद वह होटल से अपने गांव चला गया. वहां सुबह उस ने गीता के भाई लालचंद को घर जा कर गीता की दुर्घटना के बारे में बताया. उस ने यह भी बताया कि सड़क दुर्घटना में उस की घटनास्थल पर ही मौत हो चुकी है. लालचंद्र शर्मा उसी वक्त भागाभागा लखनऊ के पीजीआई पुलिस स्टेशन जा पहुंचा. उस ने पुलिस को अपनी बहन की मौत का दोषी गिरिजाशंकर को ही बताया. उस ने यह भी बताया कि गिरिजा ने उस की बहन के साथ लिवइन में रहते हुए अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़ रखा था. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि गिरिजा ने गीता से 13 लाख रुपए उधार ले रखे थे. इसे ले कर उन के बीच कई बार झगड़ा हो चुका था.

उस की हरकतों से गीता काफी तंग आ चुकी थी. गिरिजा ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था. उस से पूछताछ कर पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर दिया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया था. romantic story in hindi

 

 

गर्लफ्रेंड के नामर्द कहने पर Boyfriend ने तमंचा निकाल मारी गोली

कुलदीप ने प्रेमिका के खून से हाथ रंग कर जो किया, वह भावावेश में उठाए गए कदम के साथसाथ जघन्य अपराध भी था. इस की सजा भी उसे मिलेगी, लेकिन उसे इस स्थिति तक पहुंचाने वाली शबनम भी कम गुनहगार नहीं थी. अगर वह…

कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है बिल्हौर. इस कस्बे से सटा एक गांव है दासा निवादा, जहां छिद्दू का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटे सतीश, नेमचंद्र तथा 2 बेटियां विजयलक्ष्मी और पूनम थीं. विजयलक्ष्मी को ज्यादातर शबनम के नाम से जाना जाता था. छिद्दू गरीब किसान था. उस के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह परिवार का भरणपोषण करता था. खेतीकिसानी में उस के दोनों बेटे भी सहयोग करते थे.

तीखे नैननक्श और गोरी रंगत वाली विजयलक्ष्मी उर्फ शबनम छिद्दू की संतानों में सब से सुंदर थी. समय के साथ जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, उस के सौंदर्य में भी निखार आता जा रहा था. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नैननक्श, गुलाबी होंठ और कंधों तक लहराते बाल किसी को भी उस की ओर आकर्षित कर सकते थे. अपनी खूबसूरती पर शबनम को भी बहुत नाज था. यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह उसे इस तरह घूर कर देखती मानो खा जाएगी. उस की टेढ़ी नजरों से ही लड़के उस से डर जाते थे. लेकिन कुलदीप शबनम की टेढ़ी नजर से जरा भी नहीं डरा.

कुलदीप का घर शबनम के घर से कुछ ही दूरी पर था. उस के पिता देवी गुलाम खेतीबाड़ी करते थे. उन की 3 संतानों में कुलदीप सब से छोटा था. वह सिलाई का काम करता था. उस की कमाई ज्यादा अच्छी नहीं तो बुरी भी नहीं थी. अच्छे कपड़े पहनना और मोटरसाइकिल पर घूमना कुलदीप का शौक था. शबनम तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही वह पढ़नेलिखने में भी तेज थी. बिल्हौर के बाबा रघुनंदन दास इंटर कालेज से हाईस्कूल पास कर के उस ने 11वीं में दाखिला ले लिया था. अपने कामधाम और स्वभाव की वजह से वह अपने मांबाप की आंखों का तारा बनी हुई थी. शबनम के कालेज आनेजाने में ही कुलदीप की निगाह शबनम पर पड़ी थी. पहली ही बार में वह उस की ओर आकर्षित हो गया था. वह उसे तब तक देखता रहता था, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी.

ऐसा नहीं था कि कुलदीप ने शबनम को पहली बार देखा था. इस के पहले भी उस ने शबनम को कई बार देखा था. लेकिन तब और अब में जमीनआसमान का अंतर था. शबनम कुलदीप के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. उस के कालेज आनेजाने के समय वह रास्ते में खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. शबनम उसे दिखाई दे जाती तो वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता रहता, लेकिन शबनम थी कि उसे भाव ही नहीं दे रही थी. धीरेधीरे उस की बेचैनी बढ़ने लगी थी. हर पल उस के मन में शबनम ही छाई रहती. यहां तक कि उस का मन सिलाई के काम में भी नहीं लगता था. उस के मन की बेचैनी तब और बढ़ जाती, जब शबनम उसे दिखाई दे जाती.

जब कुलदीप के लिए शबनम के करीब पहुंचने की तड़प बरदाश्त से बाहर हो गई तो उस ने शबनम के भाई सतीश से दोस्ती कर ली और मिलने के बहाने उस के घर आनेजाने लगा. सतीश के घर पर कुलदीप बातें भले ही दूसरों से करता था लेकिन उस की नजरें शबनम पर ही जमी रहती थीं. जल्दी ही इस बात को शबनम ने भी भांप लिया. कुलदीप की आंखों में अपने प्रति चाहत देख कर शबनम का मन भी विचलित हो उठा. वह भी अब कुलदीप के आने का इंतजार करने लगी. जब कुलदीप आता तो वह उस के पास ही मंडराती रहती. दोनों ही एकदूसरे का सामीप्य पाने के लिए बेचैन रहने लगे. कुलदीप की चाहत भरी नजरें शबनम की नजरों से मिलतीं तो वह मुसकरा कर मुंह फेर लेती. कई बार वह तिरछी नजरों से देखते हुए कुलदीप के आगेपीछे चक्कर लगाती रहती.

शबनम की कातिल निगाहों और मुसकान से कुलदीप समझ गया कि जो बात उस के मन में है, वही शबनम के मन में भी है. फिर भी वह अपनी बात शबनम से नहीं कह पा रहा था, जबकि शबनम पहल करने से कतरा रही थी. सोचविचार कर कुलदीप ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह शबनम से अपने दिल की बात कह सके. यह सच है कि चाह को राह मिल ही जाती है. आखिर एक दिन कुलदीप को मौका मिल ही गया. शबनम को घर में अकेली पा कर कुलदीप ने कहा, ‘‘शबनम, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर बुरा न मानो तो मैं अपने मन की बात कह दूं?’’

‘‘बात ही तो कहनी है. कह दो. इस में बुरा मानने की क्या बात है.’’ शबनम नजरें चुराते हुए बोली. शायद उसे अहसास था कि कुलदीप क्या कहने वाला है.

‘‘शबनम तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मुझे तुम्हारे अलावा कुछ सूझता ही नहीं है.’’ कुलदीप नजरें झुका कर बोला, ‘‘हर पल तुम्हारी सूरत मेरी नजरों के सामने घूमती रहती है.’’

कुलदीप की बात सुन कर शबनम के दिल में गुदगुदी सी होेने लगी. वह शरमाते हुए बोली, ‘‘कुलदीप, जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

शबनम का जवाब सुन कर कुलदीप ने उसे बाहों में भर कर कहा, ‘‘तुम्हारे मुंह से यही बात सुनने के लिए मैं कब से इंतजार कर रहा था.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. शबनम कालेज के लिए निकलती तो कुलदीप सड़क पर मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार करता मिलता. शबनम के आते ही वह उसे मोटरसाइकिल पर बिठा कर कालेज छोड़ आता. शबनम जब कुलदीप की मोटरसाइकिल पर बैठती तो उस के किशोर मन की कल्पना के घोड़े तेज रफ्तार से दौड़ने लगते. उसे लगता जैसे कुलदीप ही उस के सपने का राजकुमार है और वह उस के साथ घोड़े पर सवार हो कर कहीं दूर सपनों की दुनिया में जा रही है. कुलदीप उसे बाइक से कालेज छोड़ने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता था. शबनम को भी उस का साथ भाने लगा था. शबनम बाइक से उतर कर जब उसे थैंक्स कहती तो कुलदीप का दिल खुश हो जाता.

इश्क की आग दोनों ओर बराबर भड़क रही थी. धीरेधीरे कुलदीप और शबनम के बीच की दूरियां सिमटने लगी थीं. अकसर तन्हाइयों में होने वाली दोनों की मुलाकातें उन्हें और ज्यादा नजदीक लाने लगी थीं. कुलदीप अब शबनम को तोहफे भी देने लगा था. एक रोज कुलदीप शबनम के लिए एक कीमती सलवार सूट ले कर आया. सलवार सूट देख कर शबनम खुशी से झूम उठी. उस ने चहकते हुए पूछा, ‘‘इतना महंगा सलवार सूट क्यों लाए?’’

‘‘कीमती आभूषण पर महंगा नगीना ही सजता है, शबनम.’’ कुलदीप ने उस के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे आगे इस सूट की कीमत कुछ भी नहीं है.’’ कुलदीप अपना चेहरा उस के एकदम करीब ले आया.

शबनम के होंठ कंपकंपाने लगे. निगाहें हया से झुक गईं. उस ने कांपते शब्दों में पूछा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए इतना मायने रखती हूं.’’

‘‘हां, शबनम.’’ कुलदीप की सांसें उस के चेहरे से टकराने लगीं, ‘‘तुम मेरे लिए मेरी सांसों से ज्यादा मायने रखती हो. मैं दिल हूं तुम धड़कन. मैं दीया, तुम बाती. तुम फूल मैं खूशबू.’’ कहने के साथ ही उस ने शबनम का चेहरा ऊपर उठाया.

शबनम उस की बातों से मदहोशी के आलम में आ चुकी थी. खुशियों भरी लज्जा से उस की आंखें बंद हो गई थीं.

कुलदीप ने चेहरा झुका कर शबनम के होंठों को चूम लिया. सांसों से सांसें मिलीं तो शबनम की मदहोशी बढ़ गई. उस ने कुलदीप को रोका नहीं, बल्कि उस से लिपट गई. फिर तो तन से तन मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा. दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. एक बार दोनों ने वासना की दलदल में कदम रखा तो उन की भावनाएं, उन की चाहत, सामाजिक मर्यादाएं सब उस दलदल में डूबते गए. घर के बाहर जहां भी मौका मिलता वे शरीर की आग शांत करने लगे. कुलदीप शबनम के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ कि उस की हर डिमांड पूरी करने लगा. बात करने के लिए उस ने शबनम को महंगा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया. रिचार्ज का पैसा भी शबनम उसी से लेती थी. इस के अलावा, कपड़े, फीस और उस के अन्य खर्चे भी कुलदीप ही उठाने लगा.

एक रोज शबनम ने कुलदीप से एक अजीब पेशकश की. उस ने प्यार के क्षणों में कहा, ‘‘कुलदीप मुझे बाइक चलाना सिखा दो. मैं भी तुम्हारी तरह फर्राटे भर कर बाइक चलाना चाहती हूं.’’

‘‘बाइक मर्द चलाते हैं, औरतें नहीं.’’ कुलदीप ने शबनम को समझाया, लेकिन वह जिद पर अड़ गई. अंतत: कुलदीप को शबनम की बात माननी पड़ी. वह उसे बाइक चलाना सिखाने लगा. कुलदीप की मेहनत और शबनम की लगन काम आई, कुछ ही दिनों में वह सचमुच फर्राटे भरते हुए मोटरसाइकिल चलाने लगी. उस ने लाइसेंस भी बनवा लिया था. इस के बाद उस ने कुलदीप के सहयोग से एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीद ली और उसी से कालेज आनेजाने लगी. अब तक कुलदीप और शबनम के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे थे. उड़तेउड़ते यह खबर शबनम के मांबाप के कानों में पड़ी तो सुन कर रमा और छिद्दू सन्न रह गए. उस दिन शबनम घर आई तो रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर बोली, ‘‘शबनम, तुम पर मैं बहुत भरोसा करती थी, लेकिन तुम ने अभी से अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. बता कुलदीप के साथ तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘मां अगर जानना चाहती हो तो सुनो. कुलदीप और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं. हम दोनों शादी कर के अपना घर बसाना चाहते हैं.’’ शबनम ने विस्फोट किया तो छिद्दू और रमा समझ गए कि शबनम बेलगाम हो गई है. उसे समझाना आसान नहीं होगा.

चूंकि सवाल इज्जत का था, सो शबनम के दो टूक जवाब देने के बावजूद रमा ने उसे समझाया. छिद्दू भी कुलदीप के पिता देवी गुलाम के घर गया और इज्जत की दुहाई दे कर कुलदीप को समझाने के लिए कहा. देवी गुलाम ने  आश्वासन दिया कि वह कुलदीप को समझाएगा. देवी गुलाम ने कुलदीप को समझाया भी, लेकिन उस ने पिता की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. परिवार वालों का विरोध बढ़ा तो शबनम अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठी. उस ने अपनी चिंता से कुलदीप को भी अवगत करा दिया था. उस ने आश्वासन दिया कि वह किसी भी हाल में उस का साथ नहीं छोड़ेगा. समय आने पर उस की मांग में सिंदूर भरेगा. वह उसे भगा कर नहीं ले जाएगा, बल्कि गांव में ही उस के साथ सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर के घर बसाएगा.

शबनम को विश्वास दिलाने के लिए वह उसे मंदिर में ले गया और भगवान को साक्षी मान कर उस के साथ विवाह कर लिया. इस बात की जानकारी न तो शबनम के घर वालों को हुई और न ही कुलदीप के घर वालों को. कुलदीप को अब घर से पैसा मिलना बंद हो गया था. सिलाई की दुकान से उसे इतनी आमदनी नहीं थी कि वह अपना और शबनम का खर्च बरदाश्त कर पाता. इसलिए ज्यादा पैसा कमाने के लिए उस ने दिल्ली जाने का निश्चय कर लिया. इस बाबत उस ने शबनम से बात की तो उस ने सहमति दे दी. दरअसल शबनम को कुलदीप से ज्यादा पैसे से प्यार था. बिना पैसे के उस का काम नहीं चल सकता था. दिल्ली के लक्ष्मीनगर में कुलदीप का दोस्त अमर रेडीमेड कपड़ों के कारखाने में सिलाई का काम करता था. कुलदीप ने उस से बात की तो उस ने उसे दिल्ली बुला लिया.

दिल्ली आ कर कुलदीप कारखाने में ज्यादा से ज्यादा सिलाई का काम करने लगा ताकि प्रेमिका के लिए पैसा जुटा सके. कुलदीप और शबनम में ज्यादा बातें रात में होती थीं. शबनम कुलदीप से प्यार भरी बातें तो करती थी, लेकिन अपनी डिमांड पूरी करने का दबाव भी बनाती थी. कुलदीप यथाशक्ति उस की डिमांड पूरी करने का प्रयास करता था. जो डिमांड अधूरी रह जाती उसे वह छुट्टी पर घर आ कर पूरी करता था. कुलदीप को 2-4 दिन की ही छुट्टी मिलती थी. वह छुट्टी पर घर आता तो शबनम को हर तरह से खुश रखता. उस की डिमांड पूरी करता और शारीरिक सुख प्राप्त कर के वापस चला जाता. समय बीतता रहा. शबनम अब तक इंटरमीडिएट पास कर चुकी थी और बीटेक की डिग्री के लिए उस ने कृष्णा इंजीनियरिंग कालेज, कानपुर में दाखिल ले लिया था. वह मोटरसाइकिल से ही कालेज आतीजाती थी.

20 वर्षीय शबनम तेजतर्रार युवती थी. वह न किसी से दबती थी और न किसी के सामने झुकती थी. कभी कोई युवक उस पर फब्तियां कसता तो वह बाइक रोक कर उसे सबक सिखा देती थी. उस के गांव के लोग तो उस की छाया तक से डरते थे. बीटेक की पढ़ाई के दौरान शबनम के आंतरिक संबंध बीटेक के कुछ छात्रों से बन गए थे. वह उन के साथ घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती. दोपहर को वह एक युवक के साथ होटल या रेस्टोरेंट जाती तो शाम को किसी दूसरे के साथ. जल्दी ही उस के चाहने वालों की फौज तैयार हो गई. चाहत के ऐसे ही फौजियों से उस की आर्थिक व शारीरिक दोनों तरह की पूर्ति होने लगी. दरअसल, कुलदीप के बाहर चले जाने के बाद वह पुरुष संसर्ग से वंचित रहने लगी थी. साथ ही उसे आर्थिक परेशानी से भी जूझना पड़ता था. इन्हीं आवश्यकताओं की वजह से उस के कदम बहक गए थे.

शबनम ने जम कर मौजमस्ती की तो उस की पढ़ाई में बाधा पड़ने लगी. इस का परिणाम यह निकला कि उस के 2 पेपर में बैक आ गई. खिन्न हो कर शबनम ने बीटेक की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. इस के बाद उस ने तांतियागंज स्थित विशंभरनाथ डिग्री कालेज से बीकौम करने के लिए दाखिल ले लिया. शबनम पर घर वालों का कोई नियंत्रण नहीं था. वह अपनी मरजी से घर आती थी और  मरजी से जाती थी. उस की भाभी दया अगर कभी उस से मजाक करती तो वह उसे करारा जवाब देती, ‘‘भाभी, पहले तुम बताओ मायके में कितने यार छोड़ कर आई हो, फिर मैं बताऊंगी.’’

शबनम भले ही गरीबी में पली थी, लेकिन उस के सपने आसमान छूने वाले थे. वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, अपने सपने पूरे करना चाहती थी. वह तेजतर्रार ही नहीं शरीर से भी हृष्टपुष्ट थी. इसी के मद्देनजर वह पुलिस विभाग में नौकरी करने की इच्छुक थी. इस के लिए उस ने प्रयास भी शुरू कर दिया था. सिपाही भरती में उस ने आवेदन भी किया था, लेकिन यह परीक्षा निरस्त हो गई थी. इधर शबनम ने जब नए दोस्त बना लिए और वह उन के साथ मौजमस्ती करने लगी तो उस ने कुलदीप को दिल से ही निकाल दिया. अब उस का मन कुलदीप से ऊबने लगा था. प्रेमिका की यह फितरत कुलदीप समझ नहीं पाया. वह तो सपनों की दुनिया में जी रहा था. शबनम ने अब मोबाइल पर भी कुलदीप से बात करनी करीबकरीब बंद कर दी थी.

कुलदीप शबनम से बात करने की कोशिश करता तो वह उस का फोन रिसीव नहीं करती थी, कभी झुंझला कर रिसीव भी करती तो कोई न कोई बहाना बना देती. कभी कालेज में होने का बहाना बनाती तो कभी रात अधिक होने या सिरदर्द का बहाना कर फोन बंद कर देती. कुलदीप की समझ में नहीं आ रहा था कि शबनम बेवफाई क्यों कर रही है. कुलदीप, शबनम से बेइंतहा प्यार करता था. उस के बिना वह खुद को अधूरा महसूस करता था. जब शबनम ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. कारण जानने के लिए वह दिल्ली से अपने गांव आ गया. गांव में उस ने गुप्त रूप से शबनम की बेरुखी के बारे में पता किया तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे पता चला कि शबनम ने कई नए दोस्त बना लिए हैं, जिन के साथ वह मौजमस्ती करती है.

कुलदीप ने इन नए दोस्तों के बारे में शबनम से पूछा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘कुलदीप, अब मैं कालेज में पढ़ती हूं. कालेज में लड़केलड़कियां साथ में पढ़ते हैं. उन से मेलजोल स्वाभाविक है. तुम व्यर्थ में शक कर रहे हो. मैं तुम से उतना ही प्यार करती हूं जितना पहले किया करती थी.’’

‘‘तो फिर मोबाइल पर बातचीत करनी क्यों बंद कर दी?’’ कुलदीप ने शिकायत की, तो शबनम बोली, ‘‘तुम वक्त बेवक्त फोन करते हो. कभी मैं कालेज में क्लास में होती हूं तो कभी रात को घर वाले कान लगाए रहते हैं. लेकिन अब तुम्हें शिकायत नहीं होगी. मैं तुम से बात करती रहूंगी.’’

शबनम ने अपनी चपल चाल से कुलदीप को संतुष्ट कर दिया. उस ने 1-2 दिन कुलदीप के साथ मौजमस्ती की और अपनी जरूरत की चीजों की खरीदारी भी. इस के बाद कुलदीप वापस दिल्ली चला गया. लेकिन इस बार दिल्ली में उस का मन नहीं लग रहा था. वह रात दिन शबनम के फोन का इंतजार करता रहता. पर शबनम फोन नहीं करती. कुलदीप फोन मिलाता तो वह रिसीव नहीं करती थी. शबनम से बात न हो पाने से कुलदीप परेशान हो गया. उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गई. कुलदीप समझ गया कि शबनम बेवफा हो गई है. उस ने नए यार बना लिए हैं, जिन की वजह से उस ने उसे भुला दिया है. उस ने सोच लिया कि अगर शबनम उस की नहीं हुई तो वह उसे दूसरों की बांहों में भी नहीं झूलने देगा.

24 जून, 2018 को कुलदीप दिल्ली से अपने गांव दासानिवादा आ गया. यहां उस ने शिवराजपुर कस्बे के एक अपराधी से संपर्क किया और उस से 315 बोर का तमंचा व 6 कारतूस खरीद लिए. उस ने तमंचा लोड कर के सुरक्षित रख लिया. कुलदीप ने शबनम से मिल कर बात करने का काफी प्रयास किया, लेकिन शबनम नहीं मिली. 27 जून को कुलदीप को शबनम के चचेरे भाई से पता चला कि वह कालेज गई है. यह जानने के बाद कुलदीप बाइक ले कर राधन लिंक रोड पर पहुंच गया और शबनम के वापस लौटने का इंतजार करने लगा. इसी लिंक रोड से गांव आनेजाने का रास्ता जुड़ा था. कुलदीप को मालूम था कि गांव जाने के लिए शबनम इसी लिंक रोड से हो कर गुजरेगी.

इस बीच कुलदीप ने अपने मोबाइल से शबनम से बात करने की कोशिश की. लेकिन शबनम ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. इस पर कुलदीप ने शबनम के फोन पर ‘काल मी’ मैसेज भेजा पर शबनम ने उसे फोन नहीं किया. लगभग 12 बजे कुलदीप को शबनम बाइक से आती दिखी. नजदीक आते ही उस ने शबनम को रोेक लिया. दोनों में फोन पर बात न करने को ले कर तकरार होने लगी. कुलदीप ने शबनम से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करता हूं. फिर भी तुम बेवफा बन गईं, मुझे भूल कर यारों के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगीं.’’

कुलदीप के इस आरोप से शबनम तिलमिला गई. वह कुलदीप को मां की गाली देते हुए बोली, ‘‘तू अपना खर्चा पूरा कर नहीं पाता, मेरा कैसे करेगा. चल भाग, नामर्द कहीं का.’’

एक तो मां की गाली, ऊपर से नामर्द कहना, कुलदीप को नागवार लगा. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कमर में खोसा हुआ तमंचा निकाला और शबनम की कनपटी पर लगाते हुए बोला, ‘‘बेवफा, बदजुबान, आज मैं तुझे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

शबनम कुछ सोच पाती इस से पहले ही कुलदीप ने ट्रिगर दबा दिया. धांय की आवाज के साथ शबनम का भेजा उड़ गया. खून से लथपथ हो कर वह सड़क पर गिर गई. थोड़ी देर में उस ने दम तोड़ दिया. गोली चलने की आवाज सुन कर खेतों में काम कर रहे लोग उस ओर दौड़े तो कुलदीप बाइक से भाग निकला. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने एक युवती की हत्या किए जाने की खबर थाना बिल्हौर की पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिल्हौर थानाप्रभारी ज्ञान सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल आ गए.

उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. कुछ देर बाद ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, सीओ (बिल्हौर) आर.के. चतुर्वेदी, फोरेंसिक टीम के साथ आ गए. इसी बीच दासानिवादा निवासी छिद्दू और उस के दोनों बेटे सतीश व नेमचंद आए और युवती के शव को देख कर बिलख पड़े. छिद्दू ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि लाश उस की बेटी शबनम उर्फ विजयलक्ष्मी की है. लाश की पहचान हो गई तो पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. शबनम की कनपटी में सटा कर गोली मारी गई थी. जो आरपार हो गई थी. उस का भेजा उड़ चुका था. मौके पर पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया गया. मृतका की बाइक भी पुलिस ने थाने भिजवा दी. फोरेंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए. इस के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया.

शबनम की हत्या के संबंध में एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह ने छिद्दू और उस के बेटे से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शबनम की हत्या गांव के ही कुलदीप ने की है. दोनों के बीच अवैध संबंध थे. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ज्ञान सिंह ने मृतका के भाई सतीश को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत कुलदीप के खिलाफ रिपार्ट दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उस के घर पर छापा मारा गया पर वह फरार हो गया था.

कुलदीप को पकड़ने के लिए एसपी (गामीण) प्रद्युम्न सिंह ने एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में बिल्हौर थानाप्रभारी ज्ञान सिंह, एसआई बहादुर सिंह, शिवप्रताप तथा सिपाही उमेश रामवीर, जुनेंद्र व अफरोज को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने कुलदीप के पिता देवी गुलाम से उस के ठिकानों के संबंध में जानकारी हासिल की. इस के बाद कुलदीप के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर उसे चरखी, दादरी, लक्ष्मी नगर (दिल्ली), बीकानेर (राजस्थान), गोहना (हरियाणा) तथा नोएडा की संभावित जगहों पर खोजा गया. लेकिन कुलदीप हाथ नहीं लगा. आखिर पुलिस ने उस की तलाश में मुखबिर लगा दिए.

पुलिस टीम ने घटनास्थल से मिला मृतका का फोन खंगाला तो उस में कई दरजन नंबर सेव थे. ये नंबर थे तो लड़कों के, लेकिन फोन में लड़कियों के नाम से सेव किए गए थे. मृतका के मोबाइल पर आखिरी काल 3 मिनट की थी. इसी नंबर से ‘काल मी’ का मैसेज भी था. जांच से पता चला कि वह नंबर कुलदीप का था. 13 जुलाई, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी ज्ञान सिंह को मुखबिर ने खबर दी कि हत्यारोपी कुलदीप इस वक्त उत्तरीपुरा रेलवे फाटक के पास मौजूद है, अगर तुरंत एक्शन लिया जाए तो उसे पकड़ा जा सकता है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. ज्ञान सिंह ने पुलिस टीम के साथ छापा मार कर कुलदीप को रेलवे फाटक के पास स्थित होटल से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से शबनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने कहा कि उसे शबनम की हत्या का कोई गम नहीं है. उस की बेवफाई ने उसे गुनाह करने को मजबूर कर दिया था.

कुलदीप के पास से 315 बोर का तमंचा तथा 3 जीवित कारतूस भी मिले. पुलिस ने इस के लिए उस के खिलाफ आर्म्स एक्ट का मुकदमा अलग से दर्ज किया. यह वही तमंचा था, जिस से उस ने शबनम की हत्या की थी.

दिनांक 14 जुलाई, 2018 को थाना बिल्हौर पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

live in Partner निकली शादीशुदा

ऋषभ सिंह और रिया के बीच 2-4 मुलाकातों में ही प्यार के बीज अंकुरित हो गए. ऋषभ रहने वाला प्रतापगढ़ का था, लेकिन लखनऊ में किराए पर फ्लैट ले कर पढ़ाई कर रहा था. उस के पिता सिंचाई विभाग में क्लर्क थे और बड़ा भाई प्रतापगढ़ में ही एक प्राइवेट स्कूल चलाता था. ऋषभ ने एमएससी तक की पढ़ाई की थी और एसएससी की तैयारी कर रहा था.

रिया और ऋषभ के बीच जैसेजैसे प्यार गहराता गया, वे एकांत में भी मिलने लगे. रिया ऋषभ के कमरे पर भी आनेजाने लगी. उसी दौरान ऋषभ को रिया के शराब पीने की आदत के बारे में भी मालूम हुआ. रिया शराब पीने के लिए क्लब जाती थी. ऋषभ को भी शराब पीने का शौक था, इसलिए ऋषभ ने उस की इस कमजोरी में अपने शौक को शामिल कर दिया. गाहे बगाहे दोनों शराब के लिए साथसाथ क्लब जाने लगे.

दोनों के एक साथ पीने पिलाने का एक असर यह हुआ कि वे एकदूसरे की अच्छाइयों और कमजोरियों से भी वाकिफ हो गए. वे आपस में बेहद प्यार करने लगे थे. रिया ने ऋषभ में एक जिम्मेदार मर्द की खूबियों के अलावा भविष्य में सरकारी नौकरीशुदा मर्द की पत्नी होने के सपने देखे. ऋषभ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए प्रतापगढ़ से लखनऊ आ गया था. वहीं के सुशांत गोल्फ सिटी में स्थित एक फ्लैट में रह रहा था.

बात 17 अगस्त, 2023 की शाम की है. करीब 3 बजे थे. उस दिन उस का मन कुछ उखड़ाउखड़ा था, लेकिन अपने दोस्त अमनजीत को ले कर फ्लैट में आया था. कालबेल दबाने वाला ही था कि उसे ध्यान आया कि वह तो पिछले कई दिनों से खराब है. अचानक उस का एक हाथ हैंडल पर चला गया और दूसरे हाथ से दरवाजे पर थपकी देने लगा. हैंडल के घूमते ही दरवाजा खुल गया. उस ने सोचा कि शायद भीतर की कुंडी ठीक से नहीं लगी होगी.

फ्लैट के अंदर पैर रखते ही उस ने दोस्त को ड्राइंगरूम में बिठा दिया और ‘रिया… रिया’ आवाज लगाई. कुछ सेकेंड तक रिया की आवाज नहीं आई, तब वह बोला, ”रिया! कहां हो तुम? देखो, आज मेरे साथ कौन आया है?’‘

फिर भी रिया की कोई आवाज नहीं आई. तब अमनजीत की ओर मुंह कर धीरे से बोला, ”शायद अपने कमरे में सो रही है…देखता हूं.’‘

इसी के साथ वह सीधा रिया के बेडरूम में चला गया. वहां रिया को बेसुध सोई हुई देख कर उसे नींद से जगाना ठीक नहीं समझा. जबकि सच तो यह था कि वह उसे जगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. इस का कारण बीती रात रिया के साथ हुई उस की तीखी नोकझोंक थी. साधारण सी बात पर शुरू हुई नोकझोंक में जितना ऋषभ ने रिया को भलाबुरा कहा था, उस से कहीं अधिक जलीकटी बातें रिया ने सुना दी थीं. एक तरह से रिया ने अपना पूरा गुस्सा उस पर उतार दिया था. इस कारण वह रात को न तो ठीक से खाना खा पाया था और न ही सो पाया था.

सुबह होने पर ऋषभ ने रिया को नाराजगी के मूड में ही पाया. गुमसुम बनी रसोई का काम निपटाने लगी थी. इस दौरान न तो ऋषभ ने रिया से एक भी शब्द बोला और न ही रिया ने अपनी जुबान खोली. उस ने अनमने भाव से नाश्ता किया. ऋषभ बीती रात से ले कर सुबह तक की यादों से तब बाहर निकला, जब अमन ने आवाज लगाई, ”ऋषभ! क्या हुआ सब ठीक तो है न! रिया कहीं गई है क्या?’‘

”अरे नहीं यार, अभी वह सो रही है, लगता है गहरी नींद में है! किसी को नींद से जगाना ठीक नहीं होता.’‘ ऋषभ वहीं से तेज आवाज में बोला.

”कोई बात नहीं तुम यहां आ जाओ.’‘ अमन बोला और ऋषभ ने बेडरूम का दरवाजा खींच कर बंद कर दिया. संयोग से दरवाजे के हैंडल पर उस का हाथ तेजी से लग गया और दरवाजा खट की तेज आवाज के साथ बंद हो गया. इसी खटाक की आवाज में रिया की नींद भी खुल गई.

रिया और ऋषभ में क्यों होता था झगड़ा

ऋषभ ड्राइंगरूम में अमन के पास आ गया था. कुछ सेकेंड में ही रिया भी आंखें मलती हुई किचन में चली गई थी. किचन में जाते हुए उस की नजर अमनजीत पर भी पड़ गई थी. अमनजीत ने भी उसे देख लिया था और तुरंत बोल पड़ा, ”भाभीजी नमस्ते! कैसी हैं!’‘

थोड़ी देर में ही रिया ने एक ट्रे में पानी भरे 2 गिलास ला कर अमनजीत की ओर बढ़ा दिए थे. अमनजीत ने भी पानी पी कर खाली गिलास ट्रे में रख दिया था. रिया अमनजीत से परिचित थी और यह भी जानती थी कि वह ऋषभ का जिगरी दोस्त है. इस कारण उस के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रखती थी. अमन से औपचारिक बातें करने के बाद दोबारा किचन में चली गई.

कुछ मिनटों में ही रिया अमन और ऋषभ के पास 3 कप चाय ट्रे में ले कर उन के सामने स्टूल पर बैठ गई थी. वास्तव में अमन को ऋषभ के साथ आया देख कर रिया कुछ अच्छा महसूस कर रही थी. वह भी बीती रात से ले कर कुछ समय पहले तक के मानसिक तनाव से उबरना चाह रही थी.

चाय का कप उठा कर मुसकराते हुए अमन की ओर बढ़ा दिया. अमन कप पकड़ता हुआ बोला, ”भाभीजी, आप ठीक तो हैं न! कैसा हाल बना रखा है, लगता है सारी रात ठीक से सो नहीं पाईं?’‘

रिया चुप बनी रही. ऋषभ भी चुप रहा. कुछ सेकेंड बाद रिया धीमी आवाज में बोली, ”यह अपने दोस्त से पूछो, तुम्हारे सामने तो बैठे हैं.’‘

”क्यों भाई ऋषभ,’‘ अमन दोस्त की ओर मुखातिब हो कर बोला.

”अरे, यह क्या बोलेंगे. इन्होंने तो मेरी जिंदगी में भूचाल ला दिया है…अब बाकी बचा ही क्या है. इसे तुम ही समझाओ.’‘ रिया थोड़ी तल्ख आवाज में बोली.

”क्या बात हो गई. तुम दोनों के बीच फिर कुछ तकरार हुई है क्या?’‘ अमनजीत बोला.

”तकरार की बात करते हो, युद्ध हुआ है युद्ध. बातों का युद्ध.’‘ रिया नाराजगी के साथ बोली.

थोड़ी सांस ले कर फिर बोलना शुरू किया, ”कई साल मेरे साथ गुजारने के बाद कहता है कि शादी नहीं कर सकता. इस के चक्कर में मैं ने अपने घर वालों को छोड़ दिया. …और अब यह कह रहा है कि शादी नहीं कर सकता, अब तुम्हीं बताओ कि मैं कहां जाऊं? क्या करूं? जहर खा लूं क्या, इस के नाम का?’‘

”भाभी जी ऐसा नहीं कहते. जान लेनेदेने की बात तो दिमाग में आने ही न दें.’‘ अमन ने रिया को समझाने की कोशिश की.

”यही तो मेरी जिंदगी बन गई है. कहां तो मुझ पर बड़ा प्यार उमड़ता था. कहता था, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, एक पल भी नहीं गुजार सकता. जल्द शादी कर लेंगे, अपनी नई दुनिया बसाएंगे. कहां गईं वे प्यार की बातें? कहां गए वायदे…जिस के भरोसे मैं बैठी रही.’‘

रिया ने जब अपने मन की भड़ास पूरी तरह से निकाल ली तब अमन ऋषभ सिंह से बोला, ”क्यों भाई ऋषभ, ये क्या सुन रहा हूं? रिया जो कह रही है क्या वह सही है? अगर हां तो तुम्हें इस की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था.’‘

ऋषभ अपने दोस्त की बातें चुपचाप सुनता रहा. उस की जुबान से एक शब्द नहीं निकल रहा था. उस की चुप्पी देख कर अमन फिर बोलने लगा, ”तुम रिया से शादी क्यों नहीं कर रहे हो? उस की उपेक्षा कर तुम एक औरत की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हो… देखो भलाई इसी में है कि तुम जितनी जल्द हो सके, रिया से शादी कर लो और इसे समाज में सिर उठा कर चलने का मानसम्मान दो.’‘

मानसम्मान की बात सुनते ही ऋषभ बिफर पड़ा. कड़वेपन के साथ बोला, ”तुम किस मान सम्मान की बात कर रहे हो, इस ने आज तक मेरा सम्मान किया है? …भरी पार्टी में शराब पी कर मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ा चुकी है. शादी की बात करते हो! इसे तो शादी के बाद मेरे मम्मीपापा के साथ रहना भी पसंद नहीं है. उस के लिए साफ मना कर चुकी है…तो इस के साथ कैसे शादी कर सकता हूं?’‘

अमन को ऋषभ की बातों में दम नजर आया. वह इस सच्चाई से अनजान था. अजीब दुविधा में फंसा अमन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह किस का पक्ष ले और किसे कितना समझाए? फिर भी उस रोज अमन ने दोनों को सही राह पर चलने और जल्द से जल्द किसी सम्मानजनक नतीजे पर पहुंचने की सलाह दी.

किस ने मारी थी रिया को गोली

थोड़ी देर बाद अमन ने बोझिल मन से दोनों से विदा ली और अपने घर चला गया. उस के जाते ही दोनों फिर उलझ गए. तूतूमैंमैं होने लगी. दोनों एकदूसरे पर आरोप मढऩे लगे कि उन के आपसी झगड़े के बीच अमन को क्यों लाया? इसी बात पर उन दोनों में काफी समय तब बहस होती रही. वे चीखचीख कर बातें कर रहे थे. उन की आवाजें अपार्टमेंट के दूसरे फ्लैटों में भी जा रही थीं, लेकिन उन के पास कोई भी ऐसा नहीं था, जो उन्हें झगडऩे से रोक सके. उन को शांत कर सके या उन्हें समझाबुझा सके. पड़ोसियों के लिए तो उन के झगड़े आए दिन की बात हो चुकी थी.

कुछ देर बाद उसी फ्लैट से गोली चलने का आवाज आई और अचानक एकदम से शांति छा गई. अपार्टमेंट के लोग भी एकदम से चौंक गए थे. किसी ने अपने घरों की खिड़कियां खोल लीं तो कोई तुरंत बालकनी में आ गए. उन में से कुछ लोग भाग कर उस फ्लैट के दरवाजे पर भी आए, लेकिन वहां उन के पैर ठिठक गए, क्योंकि उन के फ्लैट नंबर 203 पर बाहर से ताला लगा हुआ था.

उन्हें यह समझ में नहीं आया कि थोड़ी देर पहले इस फ्लैट से आवाजें आ रही थीं तो बाहर ताला कैसे लगा है? अंदर गोली चलने की वारदात हुई. उस में कोई जख्मी हो सकता है या किसी की मौत भी हो सकती है? थोड़ी देर पहले तो वहां 3 लोग थे. उन्होंने तुरंत पुलिस को खबर कर दी. जबकि कुछ पड़ोसियों के पास रिया के मायके का मोबाइल नंबर था. उन्होंने तुरंत इस की सूचना उन्हें दे दी.

थोड़े समय में ही पुलिस की टीम पहुंच गई. उन में एसएचओ अतुल कुमार श्रीवास्तव, एसएसआई ज्ञानेंद्र कुमार, एसआई दीपक कुमार पांडेय, नरेंद्र कुमार कनौजिया, संतोष कुमार गौड़ और महिला सिपाही दीपा चौधरी थी. एसएचओ अतुल कुमार के सामने फ्लैट का ताला तोड़ा गया. पुलिस टीम ड्राइंगरूम होती हुई बेडरूम में चली गई. रिया फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. चारों ओर खून फैल चुका था. पुलिस की शुरुआती जांच में पता चल गया कि रिया की मौत हो चुकी है. उसे 2 गोलियां मारी गई थीं. एक माथे पर, जबकि दूसरी सीने पर.

ऋषभ क्यों बना प्रेमिका का कातिल

घटनास्थल का मुआयना करने के बाद इंसपेक्टर श्रीवास्तव ने इस की सूचना डीसीपी विनीत जायसवाल और एडीसीपी (दक्षिणी) शशांक सिंह को दे दी. वे फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हें वहां 4 जिंदा कारतूस और 4 खोखे भी मिले. पुलिस ने रिया के कमरे की गहन खोजबीन की. इसी बीच लखनऊ सदर कैंट निवासी रिया के पापा शिवशक्ति गुप्ता भी पत्नी गीता गुप्ता के साथ वहां पहुंच गए.

उन्होंने पुलिस को बताया कि उन की बेटी रिया विभूतिखंड स्थित एक कंपनी में काम करती थी. वहीं उस की मुलाकात ऋषभ सिंह से हुई थी. वह उसी के साथ रहती थी. उस वक्त फ्लैट में कोई नहीं था. निश्चित तौर पर ऋषभ ही रिया की मौत का गुनहगार हो और उस की हत्या के बाद फरार हो गया हो.

पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इसी के साथ 18 अगस्त, 2023 को भादंवि की धारा 302, आम्र्स एक्ट की धारा 3/25 का मामला दर्ज कर लिया गया. मामले की विवेचना का कार्य इंसपेक्टर ने संभाल लिया. उन की पहली काररवाई ऋषभ को गिरफ्तार करने की थी. इस में पुलिस को जल्द सफलता मिल गई. वह लुलु मौल के पास पार्क में दबोच लिया गया.

उसे थाने ला कर पूछताछ की तो बगैर किसी विरोध या नाटकीयता के ऋषभ सिंह ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस का कारण उस ने रिया की बेवफाई बताया. इस मामले में ऋषभ के दोस्त अमनजीत का नाम भी शामिल हो गया था. पूछताछ में उस ने रिया की हत्या की जो कहानी बताई, उस में चरित्रहीनता, लिवइन रिलेशन में रहते हुए जीवन को अपनी मरजी से जीने की जिज्ञासा भी उजागर हो गई. वह इस प्रकार से सामने आई—

क्यों बहके रिया के पैर

रिया लखनऊ कैंट के ओल्ड गोता बाजार स्थित मकान में रहने वाले शिवशक्ति गुप्ता की बेटी थी. गुप्ता का एक छोटा परिवार था. पत्नी के अलावा इकलौती संतान के रूप में रिया ही थी. गुप्ता बीमार रहते थे, जिस से परिवार की जिम्मेदारी पत्नी गीता पर आ गई थी. मम्मी की देखरेख में रिया ने पढ़ाई की थी, लेकिन वह फैशनपरस्त थी. बिंदास किस्म का आचरण और चालचलन था. कोई भी उस की अदा पर मर मिटने को तत्पर रहता था. बोलचाल से ले कर चलनेफिरने तक से सैक्स अपील का एहसास करवा देती थी.

उस पर सोशल मीडिया का भी चस्का लग चुका था. फेसबुक पर दोस्ती करना, रील बनाना और फैंसी कपड़ों में इंस्टाग्राम पर फोटो और वीडियो पोस्ट करने में माहिर थी. जबकि उस की मम्मी उसे समाज की मानमर्यादा को ध्यान में रख कर रहने की सलाह दिया करती थीं. मम्मी की हर हिदायत को वह बेवजह की रोकटोक और लड़की पर अंकुश लगाना ही समझती थी. उसे हमेशा लगता था कि मम्मी उस की आजादी में खलल डाल रही हैं.

धीरेधीरे मम्मी भी उस की आदतों से ऊब गई और उसे अपने हाल पर छोड़ दिया. अपनी जिद, पसंद और पारिवारिक परिस्थितियों के चलते रिया काफी स्वच्छंद हो गई थी. खुलेपन की जिंदगी के मजे लेने को आतुर रहती थी. बहुत जल्द ही उसे एक चस्का नए लोगों से संपर्क बनाने और उन से दोस्ती करने का भी लग गया था. वह कइयों से फोन पर मीठीमीठी बातें करने लगी थी. इसी बीच 2019 में उस की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी लग गई. कुछ दिनों में ही उस ने साथ काम करने वाले कई युवकों को अपना दीवाना बना लिया था. उन्हीं में पुष्पेंद्र सिंह बत्रा भी था. वह सदर कैंट का रहने वाला था.

रिया उस के साथ घुलमिल गई. पुष्पेंद्र उसे अपना दिल दे बैठा. रिया भी उसे बेहद प्यार करने लगी. बहुत जल्द ही उन्होंने शादी करने का फैसला भी कर लिया. उन की लवमैरिज को घर वालों ने भी स्वीकार लिया. इसे संयोग ही कहें कि उन की शादी के कुछ दिनों बाद ही कोरोना का दौर आ गया और लौकडाउन का असर उन की जिंदगी पर भी पडऩे लगा. वैवाहिक जिंदगी की मिठास में कमी आने लगी. खासकर रिया की आजादी और मौजमस्ती की स्वच्छंद रहने की आदतों पर इस का असर पड़ गया. करीब 2 साल के लौकडाउन में रिया एक बच्ची की मां भी बन गई. उस के बाद रिया का यौवन और उभर गया था. साथ ही उस में खुलापन बढ़ गया था.

दूसरी तरफ रिया की कई आदतें पति पुष्पेंद्र और उस के घर वालों को पसंद नहीं थी. रिया की आजाद खयाली और गैरमर्दों के साथ दोस्ती करना पसंद नहीं था. वह इस के लिए उसे हमेशा टोकता रहता था. कई बार इस बात पर दोनों के बीच नोकझोंक भी हो जाती थी. एक दिन पुष्पेंद्र रिया की आदतों से ऊब गया और उस से तलाक ले लिया. रिया अपनी छोटी बेटी को ले कर मायके आ गई. उस की मां पर फिर से नई जिम्मेदारी आ गई. रिया का इस पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने फिर से कंपनी जौइन कर ली.

औफिस आतेजाते एक बार रिया ऋषभ सिंह से टकरा गई. ऋषभ को रिया की खूबसूरती भा गई थी, जबकि रिया को ऋषभ के बात करने का सलीकेदार तरीका और स्टाइलिश लाइफस्टाइल पसंद आ गई थी. उन्होंने लिवइन में रहने का फैसला ले लिया. इस के बाद वह सुशांत गोल्फ सिटी के क्रिस्टल पैराडाइज अपार्टमेंट में 203 नंबर का फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगा. रिया ने ऋषभ से अपने दिल की सारी बातें कीं, लेकिन तलाकशुदा बीवी होने की बात छिपा ली.

बहुत जल्द ही ऋषभ को रिया की वैसी आदतों की भी जानकारी हो गई, जो उसे अच्छी नहीं लगती थीं. इंस्टाग्राम के जरिए रिया की गैरमर्दों के साथ मौजमस्ती की एक तरह से पोल खुल गई, जो उस के साथ रहते हुए भी जारी थी. उस की शर्मसार करने वाली फूहड़ और अश्लील वीडियो को देख कर ऋषभ ने विरोध जताया तो वह उल्टे उस की कमजोरियों का हवाला देने लगी और अपनी आदत को सही ठहराने लगी. जबकि ऋषभ रिया के साथ शादी करने का मन बना चुका था और उस के साथ अच्छी जिंदगी जीना चाहता था.

रिया की गलत आदतों से तंग आ कर ऋषभ ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिया अपनी जिद पर अड़ी रही. जब भी उन के बीच इसे ले कर नोकझोंक होती रिया एक ही राग अलापती, ”मुझ से शादी कब करोगे?’‘

बगैर बताए घर से घंटों गायब रहने के बारे में पूछने पर वह ऋषभ को ही भलाबुरा कहने लगती थी. इस कारण ऋषभ उस से नाराज रहने लगा था और उस के साथ शादी करने का जुनून भी उतर चुका था. ऋषभ सिंह ने जब रिया की हकीकत का पता किया, तब यह जान कर उस के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई कि वह न केवल तलाकशुदा है, बल्कि एक बच्ची की मां भी है. इस सच ने ऋषभ की जिंदगी में भूचाल ला दिया था. उस के बाद उस का रिया के प्रति विचार और व्यवहार बदलने लगा था.

रिया का भी अपना एक प्रोफेशनल करिअर था. उस ने मेकअप डिजाइन में डिप्लोमा कर रखा था. इस फील्ड में अपना करिअर बनाने के लिए लुलु माल के एक भव्य मेकअप सैलून खोलना चाहती थी, किंतु पैसे नहीं थे. उस ने पैसे के लिए ऋषभ पर दबाव बनाना शुरू किया. जबकि ऋषभ की आर्थिक स्थिति इस लायक बिलकुल नहीं थी. एक रोज ऋषभ ने रिया को रात में बीएमडब्लू कार में एक अधेड़ व्यक्ति के साथ जाते देखा. देर रात नशे की हालत में वापस लौटने पर उस के बारे में पूछने पर सफाई देते हुए उस ने ताना दिया, ”चाहे जैसे भी हो, मुझे सैलून के लिए पैसे जुटाने हैं. तुम तो पैसे देते नहीं तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा. जो मैं तो करूंगी ही.’‘

इतना सुनते ही ऋषभ के तनबदन में आग लग गई. उस रोज तो ऋषभ ने जैसेतैसे कर खुद को संभाला, लेकिन 16 अगस्त की रात को तो हद ही हो गई. रिया अपने एक दोस्त की पार्टी में गई हुई थी. साथ में ऋषभ भी था. पार्टी में रिया ने अपने दोस्तों के साथ छक कर शराब पी और जम कर डांस भी किया. यह देख कर ऋषभ बौखला गया. उस ने पार्टी में ही उसे समझाने की कोशिश की. दोस्तों के साथ अभद्रता और अश्लील हरकतों वाला डांस करने से मना किया. अपनी मर्यादा में रहते हुए पार्टी एंजौय करने की सलाह दी, जबकि रिया नशे में धुत थी.

वह ऋषभ को ही ताने देने लगी. उस से वहीं उलझ गई. यहां तक कह डाला कि वह उस की कोई गुलाम नहीं है, जो जब देखो तब उसे मानमर्यादा का पाठ पढ़ाता रहता है. वह दोनों भारी मन से घर आ गए, लेकिन आते ही फिर उलझ गए. एकदूसरे पर तीखे आरोप लगाने लगे. गुस्से में ऋषभ भी बोला, ”मेरे साथ रहना है तो ढंग से रहो, वरना मुझे छोड़ कर चली जाओ.’‘

यह सुनते ही रिया का गुस्सा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था. वह बोली, ”चली जाऊं? क्यों चली जाऊं मैं…कई महीनों तक मेरे शरीर के साथ खेला और अब कहते हो चली जाओ, मेरा पीछा छोड़ दो. इस का खामियाजा तो तुम्हें भुगतना पड़ेगा. मैं कोर्ट जाऊंगी, तुम्हारे खिलाफ रेप का मुकदमा करूंगी. फिर सड़ते रहना जिंदगी भर जेल में.’‘

इस धमकी के साथ रिया ने तुरंत अपने एक परिचित वकील को भी फोन मिला दिया. रोती हुई बोलने लगी. ऋषभ की शिकायत करती हुई उस के खिलाफ तगड़ा केस बनाने को बोली. यह सुन कर ऋषभ बुरी तरह से घबरा गया. उसे मालूम था कि एक बार शिकायत दर्ज हो गई तो उस की गिरफ्तारी तय है…और उस की जमानत भी नहीं होगी. उस रात वह सो भी नहीं पाया और सुबह होते ही सीधा अपने दोस्त अमनजीत के पास चला गया. उस से रिया के बारे में सारी बतों बता दीं.

अमनजीत ने ऋषभ सिंह को शांत रहने को कहा और रिया को समझाने के मकसद से उस के घर आ गया. लेकिन बात नहीं बनी, जबकि उस ने दोनों को काफी समझाने की कोशिश की. बात बिगड़ती देख अमनजीत वापस अपने घर आ गया. उस के निकलते ही दोनों के बीच फिर तकरार शुरू हो गई. ऋषभ ने गुस्से में तमंचा निकाल लिया. वह काफी तैश में आ गया था. उस ने तड़ातड़ रिया पर गोलियां दाग दीं. उस के बाद फ्लैट में ताला लगा कर लुलु मौल चला गया.

ऋषभ से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विवेचना जारी थी.

विवाहिता के इश्क में जान गंवा बैठा शादाब

मरजीना पति को छोड़ कर प्रेमी शादाब के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि मरजीना ने ही प्रेमी की जान ले ली…

सुबह के 10 बज रहे थे. बरसात का मौसम होने के कारण उस दिन सुबह से ही उमस भरी गरमी पड़ रही थी. अफजाल उस समय अपने ड्राईंगरूम में बैठा चाय पी रहा था. जैसे ही उस ने चाय का प्याला खाली कर के रखा तो अचानक उस के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी.

कौन है?’’ अफजाल ने पूछा

मैं हूं भाईजान, सावेज.’’ बाहर से आवाज आई.

अरे सावेज, तुम? अंदर आ जाओ.’’ यह कहते हुए अफजाल ने दरवाजा खोल दिया था.

इस के बाद सावेज अंदर आ कर अफजाल के पास बैठ गया था. सावेज अफजाल का छोटा भाई था. अफजाल की बीवी मरजीना ने जब सावेज को आया देखा था तो वह उस के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थी. इस के बाद अफजाल व सावेज एकदूसरे का हालचाल पूछने लगे थे और आपस में बातें भी करने लगे थे.

अचानक सावेज बोला, ”भाई, तुम ने भाभी मरजीना के बारे में कुछ सुना है?’’

हां सावेज, रिश्तेदारी और मोहल्ले में जो बातें फैल रही हैं, मैं उस से बाकायदा वाकिफ हूं. पड़ोसी कस्बे मंगलौर के रहने वाले शादाब द्वारा समाज व रिश्तेदारी में हमें बदनाम किया जा रहा है, जिस से हम समाज में सिर उठा कर जी न सकें.’’ अफजाल बोला. 

मगर यह बात भी भाभी मरजीना द्वारा ही शुरू की गई थी. भाभी को रील बनाने की और उसे फेसबुक पर लोड करने की आदत थी तथा वह अपनी आदत के चलते पड़ोस के युवक शादाब से दिल लगा बैठी थी. इस के बाद भाभी उस के साथ लिवइन में रहने लगी थी.’’ सावेज बोला.

तेरी भाभी के शादाब के साथ लिवइन में रहने के कारण हमें कस्बा मंगलौर छोडऩा पड़ा था. इसी कारण हमें वहां से 10 किलोमीटर दूर यहां रुड़की में आ कर रहना पड़ रहा है. मैं जानता हूं कि तेरी भाभी पहले रंगीली तबियत की थी, मगर अब तो शादाब हमें लगातार बदनाम करने में लगा है. अब हम कैसे अपनी इज्जत बचाएं?’’ अफजाल बोला.

तुम इस की चिंता मत करो भाईजान, मैं ने इस का रास्ता ढूंढ लिया है. हमें शादाब को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाना पड़ेगा. भाभी मरजीना से कहेंगे कि वह फोन कर के शादाब को अपने घर बुला ले. इस के बाद हम उसे घेर लेंगे. फिर हम तीनों उस की गला दबा कर हत्या कर देंगे. फिर यह मामला खुद ही शांत हो जाएगा.’’ सावेज बोला.

मगर शादाब की हत्या के बाद उस की लाश को हम लोग कहां छिपाएंगे? ”अफजाल ने पूछा.

तुम उस की चिंता मत करो. यह काम मुझ पर छोड़ दो भाईजान. शादाब की लाश को हम बोरे में डाल कर पास में बह रही गंगनहर में रात में ही फेंक देंगे. इस के बाद किसी को भी पता नहीं चलेगा कि शादाब कहां चला गया.’’

कैसे रची मौत की साजिश

सावेज की इस योजना पर अफजाल व मरजीना ने अपनी मुहर लगा दी थी और वे तीनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में लग गए थे. शादाब के साथ लिवइन में पहले तो मरजीना रहती थी, मगर मंगलौर में अपनी हो रही बदनामी की वजह से वह रुड़की रेलवे स्टेशन के पास की कालोनी तेलीवाला में अपने पति व देवर के साथ आ कर रहने लगी थी. मरजीना का शौहर बिजली मैकेनिक था.

वह 23 अगस्त, 2024 की सुबह थी. उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. कोतवाली मंगलौर के कोतवाल शांति कुमार उस वक्त अपने औफिस में बैठे फाइलों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. उस वक्त मंगलौर के मोहल्ला मलकपुरा निवासी 55 वर्षीय मुस्तकीम कोतवाल से मिलने पहुंचा था. उस वक्त मुस्तकीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और वह घबराया हुआ सा लग रहा था. मुस्तकीम ने कोतवाल को बताया कि उस का 24 वर्षीय बेटा शादाब आसपास के क्षेत्र में फेरी लगाकर कपड़े बेचता है. गत दिवस वह किसी से मिलने के लिए घर से निकला था, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है. उस का मोबाइल नंबर भी स्विचऔफ चल रहा है.

जब कोतवाल शांति कुमार ने मुस्तकीम से पूछा कि शादाब की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी तो मुस्तकीम ने बताया कि शादाब का सभी से अच्छा व्यवहार था. मुझे उस के अपहरण की भी आशंका नहीं है. मुझे शक है कि शादाब किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. इस के बाद शांति कुमार ने मुस्तकीम को शादाब की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर उस का फोटो ले कर कोतवाली आने को कहा था. 

मलकपुरा मोहल्ला एसआई रफत अली के हलके में आता था, अत: शांति कुमार ने शादाब की गुमशुदगी का मामला रफत अली को ही सौंप दिया था. शादाब की गुमशुदगी का मामला हाथ में आते ही रफत अली सक्रिय हो गए. सब से पहले उन्होंने कांस्टेबल मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप को मोहल्ला मलकपुरा में भेजा तथा उन से शादाब के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को कहा. इस के बाद रफत अली ने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह से संपर्क कर के उन से इस मामले में उन का निर्देशन मांगा.

स्वप्न किशोर सिंह ने तत्काल गुमशुदा शादाब के मोबाइल की काल डिटेल्स एसओजी से निकलवाने के निर्देश रफत अली को दिए. अगले दिन पुलिस को शादाब की काल डिटेल्स भी मिल गई थी. शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर एसआई रफत अली के शक की सूई अटक गई थी. उधर सिपाही मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप ने शादाब के बारे में जो जानकारी हासिल की तो वह चौंकाने वाली थी. पता चला कि शादाब की कई महीनों से मरजीना नामक महिला से दोस्ती थी. मरजीना शादीशुदा थी, लेकिन वह शादाब के साथ लिवइन में रहती थी. शादाब उस पर रुपए उड़ाता था. शादाब के घर वालों ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह उस का साथ छोडऩे को तैयार नहीं था.

घर बुला कर क्यों की हत्या

अपने शौहर की बदनामी की वजह से मरजीना ने मंगलौर कस्बा छोड़ दिया था और रुड़की के रेलवे स्टेशन से सटी कालोनी तेलीवाला में आ कर रहने लगी थी. दोनों सिपाहियों ने एसआई रफत अली को बताया कि शादाब के लापता होने में मरजीना का हाथ हो सकता है. यह जानकारी पा कर रफत अली ने मरजीना से पूछताछ करने का विचार बनाया. यह भी पता चला कि शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल भी मरजीना के ही फोन से की गई थी.

वह 26 अगस्त, 2024 का दिन था. रफत अली ने शादाब के लापता होने के बारे में पूछताछ करने के लिए मरजीना व उस के पति अफजाल को कोतवाली मंगलौर में बुलाया था. शाम को जब मरजीना अपने शौहर अफजाल के साथ कोतवाली पहुंची तो उस समय वहां पर सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार भी मौजूद थे. सीओ विवेक कुमार ने शादाब के बारे में मरजीना से पूछताछ की तो मरजीना व अफजाल के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. पहले तो दोनों ने पुलिस को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर वे दोनों सीओ विवेक कुमार के प्रश्नों के जवाब में ही उलझ गए थे. 

अंत में मरजीना ने पुलिस के सामने शादाब की हत्या की बात कुबूल कर ली थी. मरजीना ने पुलिस को बताया कि गत 22 अगस्त, 2024 को मैं ने ही शादाब को फोन कर के अपने घर पर बुलाया था. शादाब द्वारा हमारे परिवार को बदनाम करने के कारण हम उस से बदला लेना चाहते थे. जब शादाब मरजीना के घर पर पहुंचा तो मरजीना और उस के पति अफजाल ने शादाब के हाथ व पैर पकड़ लिए थे. इस के बाद सावेज ने शादाब का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. रात को 2 बजे तीनों ने शादाब के शव को एक बोरे में डाल लिया. फिर उस बोरे को बाइक पर ले जा कर अफजाल व सावेज ने शव गंगनहर में डाल दिया था.

पुलिस ने मरजीना के ये बयान रिकौर्ड कर लिए थे. इस के बाद सावेज को भी हिरासत में ले लिया गया. सावेज की निशानदेही पर शादाब का मोबाइल फोन व उस की चप्पलें भी बरामद कर ली गईं. अफजाल व सावेज ने मरजीना के दिए बयानों का समर्थन किया था. फिर एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने मंगलौर कोतवाली पहुंच कर शादाब हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक मंगलौर पुलिस व जल पुलिस द्वारा गंगनहर के अथाह जल में शादाब के शव को तलाश किया जा रहा था. मरजीना, अफजाल व सावेज रुड़की जेल में बंद थे. शादाब हत्याकांड की विवेचना थानेदार रफत अली द्वारा की जा रही थी. रफत अली शीघ्र ही आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य जुटा कर चार्जशीट अदालत में भेजे जाने की तैयारी कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

कूड़ेदान में मांबेटियों का कत्ल कर किसने फेंका

तलाकशुदा रेशमा के साथ हसीन लिवइन रिलेशन में रह कर खुश था. रेशमा को भी उस से कोई शिकायत नहीं थी. इसी दौरान एक दिन कूड़े के ढेर पर रेशमा और उस की दोनों बेटियों की लाशें मिलीं. आखिर किस ने कर दी इन तीनों की हत्या?

पुलिस ने भी महसूस किया कि दुर्गंध कूड़े के ढेर से ही आ रही है. पुलिस वाले वहां जांचपड़ताल करने लगे. उन की नजर पास में पड़े 2 प्लास्टिक के थैलों पर गई. निश्चित तौर पर दुर्गंध उन्हीं से आ रही थी. उन की जांच की गई तो उन में 2 बच्चों की सड़ी लाशें थीं. पुलिस वालों का माथा ठनका! वे आसपास और भी सघनता से जांचपड़ताल करने लगे. उन्हें वहीं कूड़े के ढेर में फोम के गद्दा  से ढंका एक महिला का शव भी मिला.

महिला समेत 2 बच्चों की लाशें मिलने पर पुलिस महकमे से ले कर पूरे इलाके में हड़कंप मच गया था. घटनास्थल पर देहरादून की कोतवाली पटेल नगर के कई पुलिसकर्मी पहुंच चुके थे. उन में कोतवाल कमल कुमार लुंठी भी थे. उन्होंने इस की सूचना एसएसपी (देहरादून) अजय सिंह समेत सीओ अनिल कुमार जोशी को दे दी थी. 

वहां आने वाले पुलिस अधिकारियों में एसएसआई मनमोहन नेगी भी थे. नेगी और लुंठी ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान पाया कि इस इलाके में आम लोगों का आनाजाना बहुत कम होता है. लाशें ब्लूडार्ट कुरिअर कंपनी के थैले में डाल कर लाई गई थीं.

पेट्रोल पंप से कुछ दूरी पर 25 जून, 2025 को शाम के समय एक सूखे नाले के पास की सड़क पर गुजरते हुए लोग बहुत ही असहज महसूस कर रहे थे. कारण, वहां फैली तेज दुर्गंध थी. लोग परेशान थे. हर कोई पहले इधरउधर नजर दौड़ाता था, फिर नाकमुंह बंद कर कूड़े के ढेर के पास पहुंच कर तेजी से आगे बढ़ जाता था. उस सड़क पर वैसे तो कारें व बाइक तेजी से गुजर रही थीं, मगर पैदल चलने वाले कुछ लोगों ने महसूस किया कि दुर्गंध कूड़े के ढेर से आ रही है.

वह सड़क जंगली क्षेत्र से गुजरती है, जहां अकसर जंगली जानवर गुलदार, आवारा कुत्तों के अलावा जहरीले सांप भी घूमते रहते थे. उस रोज इस क्षेत्र में फैली दुर्गंध असहनीय हो गई थी. वहां से गुजरने वाले लोगों को सांस लेनी दूभर हो गई थी. इसी बीच किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. सूचना पाते ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. कूड़े के ढेर पर एक महिला व 2 बच्चियों के शव मिले.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान ही सूचना मिलने पर सीओ अनिल कुमार जोशी, फील्ड यूनिट टीम, पुलिस चौकी (आईएसबीटी) प्रभारी विजय प्रताप राही तथा एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी भी वहां पहुंच चुके थे. सभी ने घटनास्थल की गहनता से जांचपड़ताल की. 

जांच की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने स्थानीय लोगों से शवों की शिनाख्त कराने की कोशिश की, किंतु उन की पहचान नहीं हो पाई. लाशों की हालत देख कर इतना तो तय था कि उन की हत्या कहीं और की गई थी. अंत में तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

बस के टिकटों से कैसे आगे बढ़ी जांच

इस हत्याकांड के खुलासे के लिए एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी की टीम को भी पटेल नगर पुलिस के साथ लगा दिया गया. लाशें जिस ब्लूडार्ट कुरिअर कंपनी  के थैले में मिली थीं, पुलिस उस कुरिअर कंपनी के औफिस गई, लेकिन वहां से कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा पुलिस टीमों ने आसपास के थानों समेत सीमावर्ती जिलों सहारनपुर, बिजनौर व मुजफ्फरनगर जिले के थानों से संपर्क कर महिला और 2 लड़कियों के लापता होने की भी जानकारियां जुटाने की शुरुआत कर दी.

बरामद लाश वाले थैले में ही महिला और बच्चों के कपड़े समेत अन्य सामान भी था. उसी के अंदर बैंगनी रंग का एक छोटा पर्स भी था. पर्स में नहटौर, बिजनौर से देहरादून की उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस का टिकट मिला. टिकट एक बालिग और एक नाबालिग का था. 

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के टिकट के आधार पर पुलिस ने पहले बस का पता लगाया और फिर उस बस के कंडक्टर व ड्राइवर से पूछताछ की तो पता चला कि मिले शव का हुलिया उन यात्रियों से मेल खाता है, जो वारदात वाले दिन बस से बिजनौर से देहरादून आए थे.

घटनास्थल के पास स्थित टिंबर फैक्ट्री में पुलिस को कुरिअर कंपनी का वैसा ही नीले रंग का बैग मिला, जैसा बरामद लाश वाला बैग था. इस बारे में पुलिस ने फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ की. 

उन से मिली जानकारियों में एक अहम जानकारी वहां काम करने वाले एक कर्मचारी हसीन के बारे में भी थी. वह नहटौर का रहने वाला था. उस के नहटौर से होने के बारे में सुनते ही पूछताछ कर रही पुलिस चौंक गई. उन्हें पर्स से मिला टिकट भी नहटौर से था. इस के बाद पुलिस नहटौर पहुंची और जांच की कडिय़ां आपस में जुड़ती चली गईं.

हसीन के इस हत्याकांड से जुड़े होने का संदेह तब और गहरा हो गया जब महिला का शव फैक्ट्री में रखे फोम के गद्ïदे में पैक होने का सबूत मिला. वह कूड़े के ढेर में दबा दिया गया था. 

दोनों लड़कियों के शव बैग में कूड़े के ढेर पर फेंके गए थे, जो पहले दिन ही मिल गए थे, जबकि महिला का शव अगले दिन मिला था. लड़कियों की लाशें 25 जून, 2024 की शाम को बरामद हुई थीं. इस के करीब 18 घंटे बाद अगले रोज दोपहर महिला का शव मिला था.

लगातार दूसरे दिन शव मिलने के बाद पुलिस की जांच में और तेजी आ गई थी. जांच आगे बढ़ाई गई. आसपास के जिले सहारनपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, हरिद्वार, रुड़की आदि स्थानों पर महिला और बच्चों की गुमुशुदगी का पता लगाया गया. 

26 जून, 2024 को एसओजी टीम को बिजनौर जिले के अंतर्गत नहटौर थाने से एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. थाने में एक महिला की 2 बच्चियों समेत गुमशुदगी दर्ज की गई थी. इस सूचना पर एसओजी प्रभारी चंद्रभान अधिकारी और मनमोहन नेगी नहटौर गए. उन्होंने वहां जा कर लापता महिला उस की दोनों बच्चियों की तसवीरें देखीं.

मृतकों की ऐसे हुई शिनाख्त

तीनों तसवीरें देहरादून से बरामद लाशों से मेल खा खा रही थीं. तसवीरों की पहचान से उन के नाम, पहचान और पते की जानकारी हो गई. महिला का नाम रेशमा था, जो मुसलिम समाज की एक तलाकशुदा महिला थी. उस के बाद बीते कई सालों से हसीन के साथ देहरादून के बडोवाला इलाके में रह रही थी. उन के बीच लिवइन रिलेशन थे.

जब वह हसीन के साथ आई थी तब वह एक बच्ची की मां थी, किंतु 3 साल पहले उस ने हसीन से एक बच्ची को जन्म दिया था. इस तरह वह 2 बेटियों की मां मां बन गई थी. रेशमा के मायके में सभी उन के बीच लिवइन के बारे में जानते थे. वे हसीन को भी जानते थे, जो बडोवाला देहरादून की एक टिंबर फैक्ट्री में नौकरी करता है.

पुलिस को रेशमा, उस के बच्चे, तलाकशुदा जिंदगी और हसीन के साथ प्रेम संबंध के बारे में कई जानकारियां मिल गई थीं. अब तलाश हसीन की थी. पुलिस टीम वापस देहरादून लौट आई. एसएसआई मनमोहन नेगी 27 जून को बडोवाला स्थित टिंबर फैक्ट्री गए. हसीन वहां मिल गया. 

पुलिस को देखते ही हसीन के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. उस ने सहज बनने की भरसक कोशिश की, लेकिन भीतर ही भीतर डर गया. नेगी उस से पूछताछ के लिए कोतवाली पटेल नगर ले आए.

कोतवाली में जब सीओ अनिल जोशी और कोतवाल कमल कुमार लुंठी ने हसीन से रेशमा व उस की बेटियों की हत्या के मामले में पूछताछ शुरू की, तब वह इस बारे में अनजान बनने लगा. उस ने सिरे से नकार दिया कि उसे तीनों की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

हसीन को नेगी अलग कमरे में ले गए. उस से सख्त लहजे में तीनों की हत्या की सच्चाई पूछी. नेगी ने सीधा सवाल किया, ”तुम ने अपनी प्रेमिका के साथ बच्चों को क्यों मारा?’’ 

इस पर हसीन चुप्पी साध गया. इस पर उन्होंने लिवइन रिलेशन के कानूनी दुष्परिणामों के बारे में भी कहा. डांटते हुए रेशमा के मायके वालों द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर सजा मिलने की बात कही. नेगी की इस सख्ती का असर हुआ और वह सब कुछ बताने के लिए तैयार हो गया.

करीब 5 मिनट की चुप्पी के बाद हसीन ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि रेशमा और बच्चों को उस ने मारा है. इस की उस ने माफी मांगते हुए पूरे घटना के पीछे के कारण के बारे में जो कुछ बताया वह इस प्रकार है

तलाकशुदा रेशमा की शुरू हुई नई प्रेम कहानी

हसीन मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नहटौर थाने के अंतर्गत फरीदपुर गांव का रहने वाला था. कई सालों से वह देहरादून के मोहल्ला ब्रह्मïपुरी पटेल नगर में रहते हुए बडोवाला स्थित टिंबर फैक्ट्री में नौकरी करता था. करीब 2 साल पहले रेशमा की हसीन से मुलाकात हुई थी. उसे पति तलाक दे चुका था. वह 14 वर्षीया एक बेटी की मां थी, लेकिन दिखने में बला की सुंदर और कमसिन जैसी थी.

पहली मुलाकात में ही रेशमा ने उसे अपनी घरेलू परेशानी बताते हुए आजीविका की समस्या के लिए मदद मांगी. हसीन उस की हरसंभव मदद के लिए तैयार हो गया. उस के बाद दोनों की फोन पर बातें होने लगीं. 

धीरेधीरे ये बातें मोहब्बत में बदल गईं. जल्द ही दोनों एकांत जगहों पर मिलनेजुलने लगे. हसीन उस के लिए छुट्टी ले कर बारबार नहटौर जाने लगा, जहां उस का मायका था. 

हसीन उस के घर वालों से भी मिला और उस ने रेशमा के प्रति हमदर्दी जताई. रेशमा बला की सुंदर थी. वह उस की जवानी पर मोहित हो गया था. इसलिए उसे पैसे की मदद करने लगा. 

जल्द ही दोनों के बीच प्रेम संबंध गहरे हो गए. दोनों ने लिवइन रिलेशन में रहना भी शुरू कर दिया. एक साल कैसे बीत गए उन्हें पता ही नहीं चला. इसी दौरान रेशमा गर्भवती हो गई. रेशमा ने राजीखुशी के साथ एक बच्ची को जन्म दिया. हसीन ने भी उस के मां बनने पर खुशी जाहिर की और दोनों ने मिल कर उस का नाम आयशा रखा.

आयशा 8 माह की हो गई थी. हसीन ने उसे नहटौर में किराए के मकान में रख दिया. हसीन वहीं आता था और कुछ दिन रह कर देहरादून लौट जाता था. एक दिन रेशमा ने देहरादून में ही साथ रहने की जिद की. हसीन नहीं चाहता था कि रेशमा अपने बच्चों के साथ देहरादून में रहे. 

वह उस की इस बात को महीनों से टाल रहा था. जबकि रेशमा बारबार यही जिद कर रही थी. फोन पर बात होती थी, तब और जब हसीन सामने होता था तब रेशमा तोते की तरह रटने लगती थी, ”मुझे देहरादून में ही साथ रहना है. वहीं कमरा ले कर साथ रहेंगे. वहीं पर मैं भी कुछ काम करूंगी.’’

जून के महीने में एक रोज हसीन नहटौर आया था. उस के कदम कमरे की चौखट के भीतर पड़ते ही रेशमा उस पर बरस पड़ी, ”तुम ने हमें 2-2 बेटियों के साथ यहां मरने के लिए छोड़ दिया है. छोटी बेटी को कैसे संभालती हूं, मैं ही जानती हूं. हमें आज ही देहरादून ले चलो, यहां नहीं रहेंगे.’’

अरे! तसल्ली रखो, मैं वहां कमरा देख रहा हूं. सस्ता नहीं मिल रहा है. महंगाई है. शहर भी महंगा है.’’ हसीन ने समझाने की कोशिश की.

नहींनहीं! मैं वह सब नहीं जानती हूं. यहां अब नहीं रह सकती. मोहल्ले वाले अजीबअजीब नजरों से देखते हैं.’’ रेशमा बोली.

हां अब्बू! लोग हम से भी आप के बारे में पूछते हैं.’’ बड़ी बेटी भी बोली.

ठीक है, देहरादून जा कर बात करता हूं.’’

उस रोज हसीन ने किसी तरह मांबेटी को समझाबुझा कर शांत किया. वह उलटे पैर वापस देहरादून लौट आया. रास्ते भर सोचता कि वह रेशमा को कैसे देहरादून में रख पाएगा? उस का खर्च कैसे जुटा पाएगा? खर्चीली रेशमा के नखरे कैसे उठाएगा? ऊपर से जवान होने को आई रेशमा की बेटी के देखभाल की जिम्मेदारी और आ गई थी.

उसे पता था कि देहरादून में किराए के कमरे काफी महंगे हैं. यदि वह रेशमा को नहटौर से देहरादून ले आता तो फैक्ट्री के वेतन से उस का खर्च चलाना मुश्किल हो जाएगा. 

कुछ दिन इसी उधेड़बुन में निकल गए, जबकि इस बारे में रेशमा हसीन को लगातार फोन करती रही. उस पर देहरादून में कमरा ले कर साथ रखने का दबाव बनाती रही. आखिर में तंग आ कर उस ने रेशमा को बेटियों समेत देहरादून बुलवा लिया.

काश! रेशमा जिद पर न अड़ी होती

इस सूचना को पाते ही रेशमा अपनी बेटियों आयत व आयशा को साथ ले कर 23 जून, 2024 को बस द्वारा नहटौर से देहरादून के आईएसबीटी बसअड्डे पर पहुंच गई. उन्हें वहीं हसीन मिल गया. वह अपनी बाइक ले कर आया था. वह तीनों को अपनी बाइक (यूपी20वीई 9915) पर बिठा कर अपनी फैक्ट्री में ले आया. तब तक शाम का अंधेरा गहरा चुका था. वहीं उस ने तीनों को एक कोने में खाना खिला कर सुला दिया.

जब तीनों गहरी नींद में सो गए, तब उस ने पहले रेशमा का गला दबा कर उसे मार डाला. इस के बाद आयत व आयशा का मुंह और गला दबा कर उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. इस तरह तीनों को गला घोंट कर मार देने के बाद हसीन के सामने बड़ी समस्या तीनों शवों को ठिकाने लगाने की आ गई थी. 

हालांकि उस का उपाय भी उस ने निकाल रखा था. इस की तैयारी पहले से कर रखी थी. वह जहां काम करता था वह एक सोफा फैक्ट्री थी. उस के पीछे जंगल था. वहां पर कूड़े के बड़ेबड़े ढेर थे.

हसीन ने दोनों लड़कियों की पहचान छिपाने के लिए उन के कपड़े उतार दिए थे.  फिर उस ने ब्लूडार्ट कुरिअर के बैगों में उन के शव को डाल दिया था. इस के बाद  उस नेे उसे फैक्ट्री के पीछे के कूडे के ढेर में फेंक आया. 

रेशमा की लाश को उस ने फोम में लपेट कर कूड़े के नीचे दबा दी थी. बाद में हसीन ने रेशमा का मोबाइल और उस के नहटौर स्थित घर की चाबी अपने पास रख ली थी. उस के जेवर, उस के घर की चाबी तथा उस का मोबाइल उस ने एक पर्पल कलर के बैग में छिपा कर रख लिया.

हसीन के इस कुबूलनामे के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. हसीन की निशानदेही पर रेशमा, आयत व आयशा को आईएसबीटी से फैक्ट्री तक लाने वाली बाइक, कुरिअर कंपनी का बैग, आयशा की दूध की बोतल तथा मृतकों के घर की चाबी, मोबाइल व रेशमा के जेवर भी बरामद कर लिए.

इस तरह से एसएसपी अजय सिंह ने इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई. हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को डीजीपी (उत्तराखंड) अभिनव कुमार ने 25 हजार रुपए का नकद इनाम देने की घोषणा की.

अगले दिन पटेल नगर पुलिस को रेशमा, आयत व आयशा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में उन तीनों की मौत की वजह गला दबा कर सांस रोकनी बताई गई. 

कथा लिखे जाने तक इस तिहरे हत्याकांड का आरोपी हसीन देहरादून जेल में बंद था. इस मामले की जांच एसएसआई मनमोहन सिंह नेगी द्वारा की जा रही थी. वह आरोपी के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर के उस के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने में लगे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

लिवइन पार्टनर का खूनी खेल

प्रेमिका के 100 टुकड़े कर कुकर में उबाला

मुंबई में ठाणे जिले के मीरा रोड (पूर्व) पर गीता नगर है. यहां फेज 7 में आकाशदीप सोसाइटी के चेयरमैन प्रताप जायसवाल और सेक्रेटरी सुरेश चह्वण 7 जून, 2023 की सुबह एक शिकायत ले कर नयानगर थाने गए थे. उन्होंने एसएचओ को बताया कि सोसाइटी के 704 नंबर फ्लैट से अजीब तरह की सड़ांध आ रही है. उन्होंने बताया कि दुर्गंध तो कई दिनों से आ रही थी, लेकिन पिछले 2 दिनों से और तीखी हो गई है. उस की वजह से सोसाइटी के लोग काफी परेशान हो गए हैं. वहां से हो कर गुजरना तक मुश्किल हो गया है.

ऐसे मामलों में ज्यादातर लाश के होनेे की ही बात सामने आती है, इसलिए एसएचओ ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और तुरंत ही कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर आकाशदीप सोसायटी की तरफ निकल गए. पुलिस की जांच टीम बिल्डिंग की 7वीं मंजिल पर स्थित उस फ्लैट पर पहुंची तो उस का मेन गेट बंद था. एक पुलिसकर्मी ने दरवाजे की कालबेल बजाई. कुछ सेकेंड बीत गए, लेकिन भीतर से किसी के दरवाजा खोलने की आहट तक नहीं सुनाई दी.

पुलिसकर्मी ने दोबारा 2-3 बार कालबेल बजाई और दरवाजे को जोर से थपथपाया. कुछ सेकेंड बाद आवाज आई, “अभी आता हूं. वेट! वन मिनट!”

फ्लैट में दनदनाते घुसी पुलिस

दरवाजे की कुंडी खुली, दरवाजे के पीछे से सुटके गाल पर अधपकी दाढ़ी वाला एक अधेड़ व्यक्ति दिखा. उस ने दरवाजा उतना ही खोला, जितने से वह अपनी गरदन बाहर निकाल सकता था. शांति से बोला, “क्या बात है? कौन है?”

“पूरा किवाड़ खोलो, तुम्हारे घर में क्या पड़ा है, जो बिल्डिंग में इतनी तेज बदबू फैल रही है. आसपास के लोग परेशान हो रहे हैं.” एक पुलिसकर्मी बोला.

“कुछ भी तो नहीं. वह मैं ने घर की सफाई की है, उसी कचरे की बदबू है…” दरवाजे के भीतर से झांकता हुआ व्यक्ति एकदम धीमी आवाज में बोला.

इस बीच बाहर खड़ी पुलिस टीम और कुछ स्थानीय लोग दरवाजे को धकेल कर भीतर घर में घुस गए. अंदर जाते ही सभी बदबू से बेहद परेशान हो गए. उन्होंने रुमाल से अपनी नाकमुंह बंद करने पड़े. वे घर के हाल से होते हुए जब दूसरे कमरे की ओर बढ़े तब उन के होश उड़ गए. वहां पुलिस को 3 बाल्टियों में लाश के कई टुकड़े मिले. पास में ही खून से लथपथ पेड़ काटने वाली आरी भी मिली. छानबीन से जल्द ही मालूम हो गया कि शव के टुकड़े वहां रहने वाली सरस्वती वैद्य नाम की माहिला के हैं, जो 32 वर्ष की थी. वह उस फ्लैट में 56 वर्षीय मनोज साने के साथ रहती थी, जिस ने दरवाजा खोला था.

मनोज आसानी से पुलिस की गिरफ्त में आ गया था. हालांकि वह दरवाजा खुलते ही भागने की कोशिश में भी था, जिसे पुलिस और सोसाइटी के लोगों ने नाकाम कर दिया. वह भाग न सका. वहीं पकड़ लिया गया. उस की हालत उस वक्त एकदम से विक्षिप्तों जैसी हो गई थी. चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. ऐसा लग रहा था कि मानो उस का कोई बड़ा गुनाह सब की नजरों में आ गया हो. फिर भी वह एक ही रट लगाए हुए था, “मैं ने उसे नहीं मारा… खुद जहर खा लिया था उस ने.”

इस पर एक पुलिसकर्मी ने डपट दिया, “चुप रह, बकवास करता है. चल अभी कमरे में दिखा हमें.”

प्रेशर कुकर में मिले लाश के टुकड़े

और फिर मनोज को धकियाती हुई पुलिस फ्लैट के अंदर फैल गई. वहां उन्हें सरस्वती के शव के और कई टुकड़े मिले. किचन में काफी बरतन और एक बाल्टी में लाश के कई टुकड़े मिले. जिन में से कुछ को प्रेशर कुकर में पकाया गया था तो कुछ को भूना गया था. पकेअधपके मांस को देख कर सभी लोग हैरान हो गए. लाश के टुकड़ों को जांच के लिए मुंबई के जे.जे. अस्पताल में भेज दिया गया. यह मामला सामने आते ही दिल्ली में हुए श्रद्धा वालकर मामले की यादें ताजा हो गईं.

संभ्रांत इलाके के फ्लैट से टुकड़ों में मिली लाश की खबर तुरंत चारों ओर फैल गई. सोशल मीडिया से ले कर टीवी चैनलों पर और कुछ समय बाद ही यह खबर लोगों के मोबाइल में पहुंच गई थी. जबकि इसे अगले रोज प्रिंट मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया. उस बारे में तरहतरह की बातें छपने से इलाके में सनसनी फैल गई. सोसाइटी के लोग इस घटना के बारे में सुन कर दंग रह गए. यह बेहद लोमहर्षक घटना थी.

एसएचओ ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे कर सोसाइटी के लोगों से भी गहन पूछताछ की. उन से मिली जानकारी से पता चला कि सरस्वती और मनोज इलाके में पिछले कई सालों से किराए पर रह रहे थे. उन के आपसी रिश्ते को ले कर भी लोगों के बीच संदेह था, क्योंकि उन की उम्र का भी बड़ा अंतर था. किसी ने प्रेमी युगल बताया तो किसी ने आपसी रिश्तेदार.

सरस्वती वैद्य की मौत के बारे में पूछने पर मनोज ने दावे के साथ बताया कि वह 3 जून, 2023 को ही मर गई थी. उस ने जहर पी कर आत्महत्या कर ली थी. सरस्वती को उस ने नहीं मारा. जब वह 3 जून की सुबह सो कर उठा, तब पाया कि सरस्वती के मुंह से झाग निकल रहे हैं. उस की नब्ज टटोली, जो नहीं चल रही थी. सांसें भी बंद हो चुकी थीं. सरस्वती की इस हालत को देख कर वह डर गया कि लोग कहीं उसे ही उस की मौत का जिम्मेदार न ठहरा दें. इसी डर की वजह से उस ने लाश को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

आत्महत्या का नहीं मिला सबूत

पुलिस को मनोज की बातें काफी अटपटी लगीं. पुलिस ने महसूस किया कि मनोज ने सरस्वती की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के बाद आत्महत्या की योजना बनाई थी. बचने के लिए उस ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की.

पुलिस को सरस्वती की आत्महत्या के भी कोई ठोस सबूत नहीं मिले. किसी तरह का लिखा नोट या फिर मोबाइल में टेक्स्ट मैसेज, फोटो या वीडियो भी नहीं था. लाश की जो हालत थी, उस से जहर खा कर जान देने जैसी बात की पुष्टि आसान नहीं थी.

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि मनोज एचआईवी संक्रमित है. और उस के दावे के मुताबिक सरस्वती उस की प्रेमिका जरूर थी, लेकिन उस ने कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे. जबकि पुलिस को उन के संबंधों और सरस्वती की लाश को ठिकाने लगाने संबंधी कई बातें सुनने को मिलीं. सोसाइटी के कुछ लोगों ने बताया कि मनोज आवारा कुत्तों को मांस खिलाता हुआ देखा गया था, जो सरस्वती के शरीर के हो सकते हैं. ऐसा करते हुए उसे पहले कभी नहीं देखा गया था.

इस मामले की छानबीन के क्रम में पुलिस को सरस्वती की 4 बहनों के बारे में भी जानकारी मिली, जबकि लोगों को उस के बारे में पता था कि वह अनाथालय में पलीबढ़ी है. उस के मातापिता या परिवार के बारे में किसी का कुछ नहीं पता.

बहनों को थाने बुलवा कर उन से पूछताछ की गई. उन के बयान के आधार पर मनोज साने के खिलाफ हत्या, सबूत मिटाने और लाश को ठिकाने लगाने के जुर्म में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. इस हत्याकांड में मीरा रोड की नया नगर थाने की पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.

पूछताछ में पता चला कि सरस्वती वैद्य और मनोज के रिश्ते की कहानी एक राशन की दुकान से शुरू हुई थी. यहीं दोनों की पहली मुलाकात साल 2014 में हुई थी. इस बारे में मनोज साने ने बताया कि बोरीवली की एक राशन की दुकान पर सरस्वती मिली थी. उन की पहली जानपहचान बेहद दिलचस्प थी. तब दोनों दुकानदार से एक ही बात पर लड़ पड़े थे.

राशन की दुकान पर हुई थी मुलाकात

दरअसल, दुकानदार चावल का वजन कम तौल रहा था, जो मनोज को मिलना था. सरस्वती वहीं खड़ी दुकानदार की हरकत देख रही थी. जब सरस्वती ने इस का विरोध किया, तब शांत स्वभाव का मनोज भी उस का साथ देने लगा और उन्होंने इस की शिकायत मापतौल विभाग में करने की चेतावनी दी. हालांकि बाद में पता चला कि मनोज कभी उसी राशन की दुकान पर काम करता था.

मनोज की बातों से सरस्वती को एहसास हुआ कि वह एक गंभीर और सुलझा हुआ इंसान है. दिखने में जरूर समय का मारा हुआ निराश और हताश दिखता है, लेकिन उसे मानसम्मान की जरूरत है. इस के बाद उन दोनों की कई मुलाकातें हुईं. धीरेधीरे सरस्वती उस की ओर खिंचती चली गई. मनोज ने भी महसूस किया कि सरस्वती के उस की जिंदगी में आने से कुछ अच्छा महसूस कर रहा है.

सरस्वती वैद्य ने मनोज को अपना परिचय एक अनाथ लडक़ी के रूप में दिया. उस का कहना था कि उस के आगेपीछे कोई नहीं है. उसे रिश्ते की एक ऐसी डोर चाहिए, जो उस की भावनाओं को समझ सके, प्यार दे सके. इस तरह से सरस्वती और मनोज के बीच प्रगाढ़ रिश्ते की शुरुआत हुई. रिश्ता परवान चढ़ा और फिर दोनों 2 साल के अंदर ही साथसाथ रहने लगे. मनोज आकाशदीप सोसाइटी में पहले से रह रहा था.

इस हत्याकांड की गहन छानबीन की जानकारी डीसीपी जयंत बजलवे ने देते हुए बताया कि गिरफ्तार किए गए मनोज को अदालत में पेश करने के बाद उसे 14 दिनों के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

साइको किलर था मनोज

पुलिस ने पाया कि मनोज एक साइको किलर की तरह पेश आया था. उस ने हैवानियत की सारी सीमाओं को तोड़ दिया था. मनोज साने ने अपनी लिवइन पार्टनर की न सिर्फ बेरहमी से हत्या की थी, बल्कि उस के शरीर के कई टुकड़े भी कर दिए थे. बाद में उस ने इन टुकड़ों को धीरेधीरे ठिकाने लगाना शुरू किया था.

यह भी पता चला कि शरीर के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के लिए वह उन्हें पहले कुकर में उबालता था और उस के बाद उन्हें ठिकाने लगाता था. कुछ स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि उबालने के बाद वह टुकड़ों को पीस कर टायलेट में फ्लश कर देता था, ताकि इस हत्या के बारे में किसी को पता न चले. वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वह कुत्तों को यह टुकड़े खिलाता था. पड़ोसियों ने टायलेट की पाइपलाइन जाम होने की शिकायत की थी.

मनोज साने को ले कर उस के एक पड़ोसी ने पुलिस को एक अजीब बात बताई. उन्होंने कहा कि मनोज और उस की लिवइन पार्टनर उन से एकदम कटेकटे रहते थे. वह किसी से भी ज्यादा मतलब नहीं रखते थे. एक फ्लोर पर 4 फ्लैट हैं. बाकी लोगों के घर के लोगों का अकसर एकदूसरे के यहां आनाजाना होता था, लेकिन उस का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. वे लोग सिर्फ आनेजाने के लिए ही दरवाजा खोलते थे.

पुलिस की जांच में कई सनसनीखेज खुलासे हुए. जिस में एक उस की आदत भी थी. मनोज ने ही पुलिस को बताया कि उस ने वेब सीरीज देख कर सरस्वती की हत्या करने का प्लान बनाया था. साथ ही श्रद्धा वालकर मामले की भी पूरी स्टडी की थी. इस के अलावा उस ने बौडी कंपोज करने का तरीका गूगल पर सर्च किया था.

दूसरी सनसनीखेज जानकारी दोनों के अनाथ होने को ले कर भी थी. मनोज साने लोगों से कहता था कि वह और सरस्वती दोनों अनाथ हैं. इस की सच्चाई का भेद तब खुल गया, जब पुलिस छानबीन के दरम्यान दोनों के रिश्तेदार सामने आ गए.

सरस्वती की 4 और बहनें हैं. मातापिता के तलाक के बाद उन का पालनपोषण एक अनाथालय में हुआ था. वहीं, आरोपी मनोज के रिश्तेदार बोरीवली में रहते हैं और बोरीवली (पश्चिम) के पौश इलाके भाईनाका की साने रेजीडेंसी में उस का एक फ्लैट है. यह फ्लैट मनोज ने 30 हजार रुपए मासिक किराए पर दे रखा है.

लाश के किए 100 टुकड़े

यहां तक कि मनोज और सरस्वती शुरुआती दिनों में 2 साल तक इसी फ्लैट में रहे थे. पुलिस के अनुसार मनोज एक कोल्ड माइंडेड इंसान है और उस ने बहुत सोचसमझ कर हत्या को अंजाम दिया है. उस ने बताया कि लाश के टुकड़े करने से पहले उस का फोटो भी खींचता था. उस ने लाश के करीब 100 टुकड़े किए थे. मोबाइल और फोटो पुलिस ने कब्जे में ले लिया है. आगे की जांच में इन से मदद मिलेगी.

जांच में सरस्वती की मृत देह पर मारपीट के कई निशान पाए गए. मोबाइल में खींची गई तसवीरें और सरस्वती की मृत देह पर मारपीट के निशान मनोज की दरिंदगी की मंशा को जाहिर कर रहे थे. इस के अलावा गूगल की सर्च हिस्ट्री कई अहम राज खोल सकती है.

मनोज के बारे में पुलिस को एक अहम राज उस के एचआइवी पीडि़त होने का भी मालूम हुआ. इस का दावा उस ने खुद किया. उस ने बताया कि इस की जानकारी उसे 2008 से ही थी. उस का कहना है कि वह इलाज करवा रहा था और सरस्वती से उस ने कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाए. पुलिस उस के सभी दावों की जांच कर रही है.

वह विगत 29 मई से ही काम पर नहीं जा रहा था. उस ने कई लोगों को अपने और सरस्वती के बीच मामाभांजी का रिश्ता बताया था. जबकि दोनों की शादी के बाद सरस्वती की बहनें उस के घर खाना खाने आई थींं. पूछताछ में मनोज ने बताया कि दोनों के बीच आर्थिक तंगी को ले कर झगड़ा होता था. 3 जून की रात भी दोनों के बीच झगड़ा हुआ था. इस अनुसार संभव है कि मनोज ने उस की पहले हत्या कर दी हो और फिर बाद में शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई हो.

लिवइन पार्टनर का खूनी खेल – भाग 3

नजलू को रुखसाना के साथ रहते एक साल हो गया था. तब तक वह रुखसाना का बहुत ख्याल रखता था. एक साल बाद नजलू को पता चला कि रुखसाना किसी और व्यक्ति से फोन पर बातें करती है. बस, उस दिन के बाद वह रुखसाना के पीछे ही पड़ गया.

वह रुखसाना से कहता, “मेरे प्यार में क्या कमी थी, जो तू गैरमर्द से बातें करने लगी है. तूने मेरे साथ धोखा क्यों किया? बता, नहीं तो तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.”

रुखसाना उस के आगे हाथ जोड़ती, पैर पड़ती और कसम खाती कि वह उस पर झूठा शक कर रहा है. मगर नजलू कहता, “तू धोखेबाज है. तूने मेरे प्यार की कद्र नहीं की. मैं ने तुझे क्या कुछ नहीं दिया, मगर तू गैरमर्द के प्यार में पड़ गई. तुझे शर्म नहीं आई.”

इस तरह से नजलू उसे प्रताडि़त करता और मारपीट करता रहता था. रुखसाना को धमकाता कि अगर उस ने उसे छोड़ा तो वह उस के बच्चों और भाइयों को मार डालेगा. नजलू की इन धमकियों से डर कर वह उस के साथ रहने को मजबूर थी.

30 अप्रैल, 2023 को नजलू ने साजिश के तहत रुखसाना को जयपुर से दूर बाइक पर घुमाने ले जाने के लिए कहा. रुखसाना मान गई. नजलू ने रुखसाना को बाइक पर बिठाया और जयपुर से निमोडिय़ा की तरफ रवाना हो गया.  बाइक पर जाते समय नजलू ने सोशल मीडिया रील भी बनाई.

रील के बैक ग्राउंड में आवाज थी, “अब मैं खुद को इतना बदल दूंगा कि तू तो क्या, मेरे अपने भी तरस जाएंगे मुझे पहले के जैसा देखने के लिए…?

इस के बाद नजलू रुखसाना को निमोडिय़ा के घने जंगल में ले गया. वहां उस ने रुखसाना को बेरहमी से पीटा. नीचे पटक कर घुटनों से उस की पसलियों पर वार किए. नजलू इतने गुस्से में था कि अपना आपा खो बैठा और रुखसाना के साथ इतनी मारपीट की कि रुखसाना की पसलियां टूट गईं.

मरणासन्न हालत में किया बलात्कार

जब रुखसाना ने नजलू से हाथ जोड़ कर माफी मांगी तो नजलू ने उसे पीटना बंद कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए. रुखसाना घायलावस्था में अधमरी सी पड़ी थी और दरिंदा नजलू उस के साथ अपनी हवस शांत कर रहा था. दुष्कर्म करने के बाद रुखसाना की तबीयत जब बहुत ज्यादा बिगड़ गई तो नजलू डर गया. आननफानन में वह रुखसाना को निजी क्लीनिक में ले कर गया और बताया कि रोड एक्सीडेंट हो गया है.

हालत बिगडऩे पर रुखसाना को क्लीनिक से जयपुरिया अस्पताल रैफर कर दिया गया. जयपुरिया अस्पताल में भी नजलू ने डाक्टरों को बताया कि हाईवे पर जाते समय रिंग रोड पर एक्सीडेंट हो गया. इस के बाद डाक्टरों ने किसी महिला परिजन को बुलाने के लिए कहा. मजबूरन नजलू को रुखसाना की मां मुन्नी को फोन करना पड़ा.

फोन करने के बाद नजलू नजर बचा कर अस्पताल से फरार हो गया. अस्पताल से पुलिस को सूचना दे दी गई. रोड एक्सीडेंट की बात सुन कर मुन्नी देवी भी जैसेतैसे अस्पताल पहुंची, तब तक रुखसाना इस दुनिया से रुखसत हो चुकी थी.

बेटी की लाश देख कर उस की मां ने कहा, “आखिर मेरी बेटी को मार डाला नजलू ने.”

पुलिस ने नजलू से पूछताछ के बाद कई सबूत भी जुटाए. आरोपी नजलू खान को 4 मई, 2023 को कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

रुखसाना के चारों बेटे अब यतीम हो चुके हैं. उस की ससुराल वालों ने बच्चों को अपनाने से मना कर दिया है. वे कहते हैं कि जब रुखसाना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगी तो अब इन बच्चों से हमारा क्या लेनादेना. उस के 4 बेटों में से एक नानी के पास, 2 बच्चे एक मौसी के पास तो एक बेटा दूसरी मौसी के पास रह रहा है.

बेटी रुखसाना की हत्या के बाद उस के बच्चों की परवरिश की चिंता में बुजुर्ग नानानानी बीमार रहते हैं. ऐसे में उन्हें अब सरकारी योजनाओं के लाभ की आस है. यह आस पूरी होगी या अधूरी रहेगी, यह भविष्य बताएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों व मृतका के मातापिता से की गई बातचीत पर आधारित

लिवइन पार्टनर का खूनी खेल – भाग 2

आज से करीब 2 साल पहले रुखसाना काकोड़ (जिला टोंक) से अपने चारों बेटों के साथ मालपुरा गेट इलाका जयपुर में आ कर रहने लगी. उस ने एक कमरा किराए पर लिया और सांगानेर की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. रुखसाना की गाड़ी चलने लगी.

जयपुर आने के महीने भर बाद एक रोज किसी अंजान व्यक्ति का फोन रुखसाना के मोबाइल पर आया. रुखसाना ने काल रिसीव कर कहा, “हैलो.”

तब दूसरी तरफ से व्यक्ति बोला, “आप रुखसाना बोल रही हैं?”

“हां, मैं रुखसाना बोल रही हूं. आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने पहचाना नहीं आप को.” रुखसाना ने कहा.

तब वह बोला, “मैं नजलू खान बोल रहा हूं. मुझे आप की आवाज बड़ी प्यारी लगती है.”

यह सुनते ही रुखसाना को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, “बकवास मत करो और सुनो, दोबारा फोन भी मत करना.”

रुखसाना ने फोन काट दिया. सोचा कि कोई लफंगा है. एक बार डपटने के बाद दोबारा फोन नहीं करेगा. मगर यह उस की सोच तब गलत साबित हुई, जब 5 मिनट बाद उस का दोबारा फोन आ गया.

वह बोला, “मुझे तुम्हारी आवाज बहुत मीठी लगती है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है और आवाज सुनी है. मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं. लगता है मुझे तुम से प्यार हो गया है…”

सुन कर रुखसाना उस की बात बीच में काटते हुए बोली, “मैं तुम्हें जानती नहीं. फिर क्यों बारबार फोन कर रहे हो. दोबारा मुझे फोन मत करना. यही ठीक रहेगा तुम्हारे लिए.”

रुखसाना के संपर्क में आया नजलू खान

कहने के साथ ही रुखसाना ने फिर काल डिसकनेक्ट कर दी. मगर उस व्यक्ति का फोन जिस ने अपना नाम नजलू खान बताया था, दिन में कईकई बार रुखसाना के पास आने लगा. वह हमेशा उस की आवाज की तारीफ करता था. बोली बड़ी प्यारी लगती है. रुखसाना उस के दिन भर आने वाले फोन काल्स से तंग आ गई थी. मगर वह करती भी तो क्या.

नजलू खान (24 साल) निवासी गांव सूरवाल, जिला सवाई माधोपुर कामधंधे की तलाश में आज से करीब 4 साल पहले जयपुर आया था. उस ने शिकारपुरा रोड, सेक्टर-35 सांगानेर में किराए का कमरा लिया और रहने लगा. वह कुंवारा था और थोड़ा पढ़ालिखा भी. नजलू जयपुर आ कर कपड़े खरीदने और बेचने का काम करता था.

कपड़े के इस धंधे से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी. रुखसाना जब जयपुर आई थी, उन्हीं दिनों एक रोज नजलू की नजर रुखसाना पर पड़ी. तब वह उस की सुंदरता पर मर मिटा. नजलू ने पता किया कि यह महिला कौन है और कहां रहती है, नजलू ने उस के बारे में सारी बातें पता कर लीं.

उसे पता चला कि रुखसाना के पति की मौत हो चुकी है. उस के 4 बेटे हैं. वह अपने बच्चों के साथ मालपुरा गेट इलाके में किराए के कमरे में रहती है और सांगानेर की एक फैक्ट्री में नौकरी करती है. बस, उस के बाद नजलू ने उस फैक्ट्री से रुखसाना का मोबाइल नंबर जुटाया और उसे फोन कर उस की सुंदरता व मीठी बोली की तारीफ करने लगा.

बारबार अजनबी का फोन आने से रुखसाना को फैक्ट्री में परेशानी होने लगी. उस ने उसे डांटाफटकारा, लेकिन वह नहीं माना. आखिर में परेशान हो कर रुखसाना ने नजलू खान को पति की मौत और बच्चों के बारे में सब कुछ बता दिया, ताकि उस से पीछा छुड़ा सके. इस के बाद भी नजलू ने फोन करना बंद नहीं किया.

नजलू ने रुखसाना से कहा, “मैं तुम्हारे चारों बच्चों को अपनाऊंगा. तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को बहुत अच्छी तरह से रखूंगा.”

रुखसाना उस की बातों में आ गई. रुखसाना ने पति की मौत के बाद जो धक्के खाए थे, उस से उसे ऐसा लगा था कि बिना सहारे के एक औरत का जीवन बहुत कठिन है. नजलू उसे अच्छा लगा था. नजलू की मीठी बातों के जाल में रुखसाना फंस गई थी.

नजलू के साथ रहने लगी लिवइन रिलेशन में

रुखसाना ने तय कर लिया था कि वह नजलू के साथ रहेगी. वह उस के कमरे पर आनेजाने लगा. लव अफेयर के बाद रुखसाना और नजलू खान के बीच अवैध संबंध बन गए तो दोनों लिवइन में साथ रहने लगे. रुखसाना ने नजलू खान को अपना तनमन सब समर्पित कर दिया. नजलू से रुखसाना उम्र में भले ही 6 साल बड़ी थी, मगर वह नजलू को शारीरिक सुख दे कर जब तृप्त कर देती तो वह उस के आगेपीछे मंडराता रहता.

रुखसाना के नजलू के साथ लिवइन रिलेशन में रहने का पता जब मुन्नी को लगा, तब वह रुखसाना को समझाने लगी, “बेटी, तू गलत आदमी के साथ रह रही है. यह रिश्ता तोड़ डाल. मैं अपनी बिरादरी में अच्छा लडक़ा देख कर तेरा निकाह कर दूंगी. अगर तू निकाह करना चाहेगी तो. मगर ये रिश्ता तोड़ दे.”

सुन कर रुखसाना बोली, “अम्मी, ये बहुत भोला है. बहुत अच्छा है. इस से निकाह करूंगी तो मेरी और बच्चों की जिंदगी सुधर जाएगी.”

यह सुन कर मुन्नी कसमसा कर रह गई. मुन्नी ने नजलू को भी बहुत समझाया. मगर मुन्नी की बात न रुखसाना ने मानी और नजलू ने. नजलू ने रुखसाना पर ऐसा जादू किया था कि उस ने मां की एक नहीं सुनी और वह उस के साथ रहने लगी.

शुरू में नजलू काफी अच्छे से रहा. बच्चों के कपड़े धोता, खाना बना देता. रुखसाना फैक्ट्री में काम करने जाती तो पीछे बच्चों का ध्यान भी रखता था. बच्चों को मोबाइल तक ला कर दिया. रुखसाना यह सब देख कर नजलू के छलावे में आ गई.

एक साल तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन उस के बाद नजलू का बरताव बदल गया. वह रुखसाना पर हाथ उठाने लगा. जब रुखसाना अपनी मां के घर जाती तो शरीर पर कई जगह नील के निशान दिखते थे. मां पूछती कि ये निशान कैसे हैं?

रुखसाना बात छिपा जाती और कुछ न कुछ बहाना कर देती. लेकिन मुन्नी पास बैठ कर रुखसाना का हाथ अपने सिर पर रखवा कर कसम दिलाती थी. तब रुखसाना सच बताती, वह रोते हुए बताती थी, “अम्मी, गलती हो गई. मैं ने नजलू को पहचानने में गलती कर दी.”

मां ने रुखसाना को नजलू से दूरी बनाने को कहा

रुखसाना ने मां को बताया कि नजलू ने एक रोज सिर पर भी वार किया था. रुखसाना का सिर फूट गया था, टांके आए थे. एक बार रुखसाना का हाथ भी फ्रैक्चर कर दिया, तब पट्टी करवानी पड़ी थी. मुन्नी ने थाने में रिपोर्ट भी कराई थी कि नजलू मेरी बेटी को मारता है. नजलू रुखसाना को धमकी भी देता था कि तेरे बच्चों और भाई को मार दूंगा. रुखसाना अब नजलू की मारपीट व बच्चों, भाई को मारने की धमकी से डरने लगी थी और चुपचाप लिवइन पार्टनर के जुल्म सहती रही.

मुन्नी ने रुखसाना से कहा कि वह नजलू को छोड़ दे. तब रुखसाना ने मां से कहा था, “मां, अगर मैं ने नजलू को छोड़ा और इस ने मेरे परिवार को कुछ कर दिया तो मैं कैसे जी पाऊंगी.”

तब मुन्नी ने नजलू को समझाया था. तेरी उम्र कम है, रुखसाना का पीछा छोड़ दे. उस के छोटेछोटे 4 बच्चे हैं. लेकिन वह पीछा छोडऩे को तैयार ही नहीं था.

लिवइन पार्टनर का खूनी खेल – भाग 1

पहली मई, 2023 को जयपुर शहर (पूर्व) के मालपुरा गेट निवासी मुन्नी ने अपनी बेटी रुखसाना उर्फ अफसाना (30 वर्ष) की हत्या का मामला दर्ज कराया था. एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी को दी रिपोर्ट में मुन्नी ने बताया था कि उस की बेटी रुखसाना गत 2 साल से सूखाल सवाई माधोपुर हाल निवास शिकारपुरा रोड, सेक्टर-35 सांगानेर निवासी नजलू खान (24 वर्ष) केसाथ रह रही थी.

30 अप्रैल, 2023 को नजलू खान ने रुखसाना से मारपीट की और उसे जयपुरिया अस्पताल जयपुर में भरती करवाया और वहां मौत होने पर सूचना दे कर भाग गया. मुन्नी की तहरीर पर पुलिस ने नजलू खान के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस के बाद थाना मालपुरा गेट के एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी मय पुलिस टीम जयपुरिया अस्पताल पहुंचे. वहां पर रुखसाना की लाश मिली.

रुखसाना का इलाज करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि रुखसाना को नजलू खान अस्पताल ले कर आया था.  उस ने बताया था कि एक्सीडेंट में रुखसाना घायल हो गई है. साथ में कोई लेडीज नहीं थी. इस कारण डाक्टर ने नजलू से कहा कि वह परिवार की किसी महिला को बुला लें.  नजलू ने तब रुखसाना की अम्मी मुन्नी को फोन कर कहा कि रुखसाना का एक्सीडेंट हो गया है, आप जयपुरिया अस्पताल जल्दी आ जाओ.

मुन्नी जब अस्पताल आई, तब तक रुखसाना की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद नजलू खान भी अस्पताल से फरार हो गया था. पुलिस ने रुखसाना के शव का पहली मई, 2023 को पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड से करा कर शव उस की अम्मा मुन्नी को सौंप दिया.

पता चला कि रुखसाना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रूह कंपा देने वाला सच सामने आया है. घुटनों से वार करने के कारण रुखसाना की दोनों तरफ की 3-3 पसलियां टूट गई थीं. लिवर फट गया था. छाती और पेट पर घुटनों से कई वार किए गए. अंदर इतनी ब्लीडिंग हुई कि पेट में 2 यूनिट से ज्यादा खून जमा हो गया. 18 से अधिक गंभीर चोटें, छोटीमोटी अनगिनत चोटें पाई गईं. लिवइन पार्टनर ने मारपीट इतनी बुरी तरह से की थी कि रुखसाना की मौत हो गई थी.

लिवइन पार्टनर के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

मामला हत्या का लग रहा था. अगर मामला एक्सीडेंट का होता तो नजलू खान फरार क्यों हुआ. मामले को पुलिस अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया. डीसीपी ज्ञानचंद यादव के निर्देश पर एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी के नेतृत्व में एक विशेष टीम गठित की गई. पुलिस टीम आरोपी नजलू खान को गिरफ्तार करने के प्रयास में जुट गई.

डीसीपी ज्ञानचंद यादव के निर्देशन में पुलिस ने फरार आरोपी नजलू खान के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया. सीसीटीवी फुटेज देखे. नजलू खान ने जिन लोगों से 30 अप्रैल, 2023 को बातचीत की थी, पुलिस ने उन लोगों से संपर्क किया. पता चला कि नजलू खान ने पहली मई को पुरानी सिम फेंक कर नया सिम जारी करवाया, लेकिन इस के बावजूद पुलिस से बच नहीं पाया. पुलिस ने पताठिकाना मालूम कर उसे 3 मई, 2023 को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में नजलू खान ने स्वीकार किया कि उस ने रुखसाना के साथ 30 अप्रैल, 2023 को बुरी तरह से मारपीट कर रुखसाना का मर्डर किया था. उस ने पुलिस को बताया कि उसे शक था कि रुखसाना किसी दूसरे आदमी से फोन पर बात करने लगी है. शक के आधार पर ही उस ने रुखसाना को पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया.

जुर्म कुबूल करते ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया आरोपी नजलू खान से कड़ी पूछताछ में रुखसाना हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार से है—

राजस्थान के टोंक जिले के काकोड़ गांव के कमरुद्दीन व मुन्नी की बेटी थी रुखसाना उर्फ अफसाना. मुन्नी के 7 बेटियां हैं. रुखसाना रूपसौंदर्य की मल्लिका थी. वह करीब साढ़े 5 फीट की गोरे रंग की सुंदरी थी. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों व खनकती हंसी से जो भी रूबरू हुआ, वह उस का दीवाना हो जाता था. रुखसाना की मीठी बोली थी. जब वह जवान होने लगी तो उस का रूपसौंदर्य खिलता गया. गरीब मांबाप की बेटी को सुंदरता मिले तो कहते हैं कि वह अभिशाप बन जाती है.

टोंक जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर काकोड़ गांव के युवाओं में उस वक्त रुखसाना के रूप की ही चर्चा थी. जब रुखसाना गांव में कहीं काम से निकलती तो लोग उसे मंत्रमुग्ध हो कर देखते रह जाते. बेटी के साथ कहीं कोई ऊंचनीच न हो जाए, इसलिए घर वालों ने रुखसाना की शादी मात्र 14 वर्ष की आयु में निवाई (जिला टोंक) के बबलू खान से कर दी. मात्र 14 बरस की आयु में भी रुखसाना भरेपूरे शरीर के कारण भरीपूरी जवान दिखती थी.

बबलू खान निवाई की पत्थर फैक्ट्री में काम करता था. इस से परिवार का भरणपोषण होता था. शादी के साल भर बाद ही रुखसाना एक बेटे की मां बन गई, जो इस समय 15 बरस का है. इस के बाद रुखसाना के 3 बेटे और हुए 4 बेटों के कारण घरगृहस्थी में खर्चा भी बढ़ गया. मगर कमाई वही थी. पत्थर फैक्ट्री में पत्थर कटिंग के बदले 4 सौ रुपए दैनिक की मजदूरी में. मुश्किल से गुजरबसर हो रही थी.

पत्थर की फैक्ट्री में काम करते समय पत्थर कटिंग से उड़ती धूल उस के गले में जमती गई. कफ रहने लगा. धीरेधीरे पति बबलू खान काफी बीमार रहने लगा और आज से साढ़े 3 साल पहले उस की मौत हो गई. रुखसाना विधवा हो गई. उस के चारों बेटे पिता के साए से वंचित हो गए. पति का इंतकाल होने के बाद घर में फाकाकशी की नौबत आ गई.

कुछ समय तक वह जैसेतैसे ससुराल निवाई में रही. ससुराल वाले उसे पूछते तक नहीं थे. ऐसे में पति की मौत के 6 माह बाद रुखसाना ससुराल छोड़ मायके काकोड़ आ कर मांबाप के पास रहने लगी. मातापिता गरीब थे. मगर दुखियारी बेटी को वे कैसे पनाह नहीं देते, रुखसाना अपने चारों बेटों के साथ करीब साल भर मायके में रही.

इस के बाद रुखसाना ने अपनी मां मुन्नी से कहा, “मां, मैं अब तुम लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं. मैं जयपुर जा कर कोई काम कर लूंगी. उस से अपना और बेटों को भरणपोषण हो जाएगा.”

मां की बात नहीं मानी रुखसाना ने

बेटी के जयपुर जाने की बात सुन कर मां मुन्नी ने कहा, “इतने बड़े शहर में किस के भरोसे रहोगी. जमाना बड़ा खराब है. अकेली जवान औरत कैसे अजनबी शहर में अजनबी लोगों के साथ रह सकेगी. मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है. तुम यहीं रहो हमारे पास, जैसेतैसे गुजारा कर लेंगे.”

मां की बात सुन कर रुखसाना बोली, “मां, जिंदगी बहुत लंबी है. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यहां पर मैं कब तक तुम लोगों पर बोझ बनी रहूंगी. अकेली औरतें आज हर काम कर रही हैं, वो अकेली ही रहती हैं. मेरे साथ तो 4 बेटे हैं. मैं अकेली थोड़ी हूं. आप लोग चिंता न करो. ऊपर वाला सब ठीक करेगा.”

“जैसा तू ठीक समझे बेटी. मगर मेरा दिल न जाने क्यों अनहोनी के डर से धडक़ रहा है.” मुन्नी ने शंका जाहिर की. मगर रुखसाना मां को समझाबुझा कर मनाने में कामयाब रही.