डर्टी फिल्मों का ‘राज’ : राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस – भाग 3

बाद में जब पत्नी ऊषा रानी खर्च में हाथ बंटाने के लिए चश्मे की दुकान में काम करने लगीं. तो धीरेधीरे पैसा जुड़ने लगा. उन के 4 बच्चे थे 3 बेटियां और इकलौता बेटा राज.

कुछ साल की मेहनत के बाद बाल कृष्ण कुंद्रा ने पैसे जोड़जोड़ कर बाद में एक ग्रौसरी की दुकान खोल ली. दुकान ठीक चल गई. जिस के मुनाफे से उन्होंने एक पोस्ट औफिस खरीद लिया. इंग्लैंड में पोस्ट औफिस खरीदा जा सकता है.

बाल कृष्ण एक व्यापार से दूसरे व्यापार में घुसने में ज्यादा देर नहीं लगाते थे. जैसे ही वह देखते कि इस धंधे में गिरावट आने के आसार हैं, वह उस धंधे को बेच दूसरे बिजनैस में चले जाते थे.

इसी बिजनैस सेंस और अपनी मेहनत की बदौलत बाल कृष्ण कुंद्रा कुछ सालों में एक सफल मिडिल क्लास बिजनैसमैन बन कर उभरे. बच्चों के जवानी में कदम रखने तक उन का परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका था.

लंदन से ही इकौनामिक्स  में ग्रैजुएशन करने के बाद जब राज 18 साल के हुए तब उस के पिता का रेस्तरां का बिजनैस था. पिता ने राज को अल्टीमेटम दे दिया कि या तो वह उन के रेस्तरां को संभाले या वो उन्हें 6 महीने में कुछ कर के दिखाए. राज सारी जिंदगी रेस्तरां में नहीं बिताना चाहता था.

लिहाजा पिता से बिजनैस करने के लिए 2000 यूरो ले कर वह हीरों का कारोबार करने के लिए दुबई चला गया. लेकिन दुबई में बात बनी नहीं. इसी बीच किसी काम से राज को नेपाल जाना पड़ा. वहां घूमते हुए राज को पश्मीना शाल नजर आए. वहां ये शाल बहुत कम कीमत में मिल रहे थे. लेकिन राज को पता था कि इन शालों की कीमत इस से बहुत ज्यादा है.

राज के पास जो रकम बची थी उस से तकरीबन 100 से ऊपर शाल खरीद लिए और लंदन वापस आ गया. लंदन आ कर बड़ेबड़े क्लोथिंग ब्रांड्स के दरवाजे खटखटाने लगा. इन ब्रांड्स को पश्मीना शाल बहुत पसंद आए और देखते ही देखते पश्मीना शाल इंग्लैंड में फैशन ट्रेंड बन गया.

फिर क्या था नेपाल से सस्ते पश्मीना शाल ला कर लंदन में महंगी कीमत में बेचने का कुंद्रा का बिजनैस ऐसा फलाफूला कि उस साल उस के बिजनैस का टर्नओवर 20 मिलियन यूरो छू गया. वो भी सिर्फ शाल बेच कर.

3-4 साल बाद राज ने शाल का व्यापार छोड़ दिया और वापस दुबई जा कर हीरे की ट्रेडिंग का काम ही करने लगा. पिता की ही तरह राज भी किसी एक धंधे को जीवन भर नहीं करना चाहता था.

जब किसी धंधे में घाटा दिखाई देता तो वह दूसरा मुनाफे का धंधा शुरू कर देता. किस्मत अच्छी थी कि वह जिस कारोबार में हाथ भर डालता, वह चल पड़ता.

बाद में उस ने हीरों के अलावा रियल एस्टेट, स्टील स्क्रैप का भी काम शुरू कर दिया. इन दिनों वह 10 कंपनियों का मालिक था. लंदन में उस ने करीब 100 करोड़ की कीमत का एक पैलेसनुमा मेंशन बनवाया हुआ था.

2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी. इन दोनों की एक बेटी भी हुई. लेकिन मात्र 2 साल बाद 2007 में राज और कविता का तलाक हो गया और कोर्ट ने उन की बेटी की कस्टडी भी कविता को ही दे दी.

हालांकि राज दुनिया के सामने हमेशा यही कहता रहा कि कविता से उस के तलाक की वजह उस की बहन रीना के पति से उस के अवैध संबध होना था. इसी कारण से उस की बहन ने भी अपने पति को तलाक दिया था.

लेकिन राज की पत्नी कविता ने कई बार मीडिया को बताया कि अभिनेत्री और मौडल शिल्पा शेट्टी के कारण राज कुंद्रा ने उसे तलाक दिया था.

साल 2007 की ही बात है जब शिल्पा शेट्टी के साथ राज कुंद्रा की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. राज के पास करोड़ों की दौलत तो थी लेकिन शोहरत के नाम पर तब तक उसे कोई ज्यादा लोग नहीं जानते थे. लेकिन शिल्पा से मिलने के बाद शोहरत भी उस के करीब आ गई.

शिल्पा और राज की मुलाकात भी कम फिल्मी नहीं है. जैसे इंडिया में लोग ‘बिग बौस’ के दीवाने हैं, वैसे ही इंग्लैंड के लोग इसी शो के संस्करण ‘बिग ब्रदर’ के दीवाने हैं. इसी शो में 2007 में शिल्पा शेट्टी ने शिरकत की थी और इसे जीता भी था.

जिस के बाद शिल्पा इंग्लैंड में खूब लोकप्रिय हो गईं. राज कुंद्रा के घर में भी ‘बिग ब्रदर’ बिना मिस किए देखा जाता था. राज भी देखता था और इंडियन कनेक्शन होने के नाते शिल्पा के लिए वोट भी किया करता था.

संयोग से शिल्पा के यूके में बिजनैस मैनेजर से राज की अच्छीखासी पहचान हो गई थी. शिल्पा शेट्टी के ‘बिग ब्रदर’ जीतने के बाद उन्हें बहुत सी यूके फिल्मों के औफर आ रहे थे. इसी सिलसिले में सलाह लेने के लिए शिल्पा के मैनेजर ने राज को एक दिन फोन किया.

राज ने उन से कहा कि अभी तो शिल्पा लोकप्रिय हैं, लेकिन जब तक फिल्म बन कर रिलीज होगी उन की इंग्लैंड में लोकप्रियता घट चुकी होगी. इसलिए फिल्म बनाने में घाटा होगा. उस से अच्छा है कि उन के नाम से परफ्यूम ब्रैंड लौंच किया जाए.

कुंद्रा ने शिल्पा शेट्टी के नाम से परफ्यूम ब्रांड लौंच करने का औफर भी दिया. जब मैनेजर ने औफर की जानकारी शिल्पा की मां को दी तो उन्होंने राज को बताया कि उन के पास ऐसा औफर पहले ही आ चुका है.

ये सुन कर राज ने उन्हें डबल पेमेंट का औफर दे दिया. राज को पता था कि यह घाटे की डील थी. लेकिन वह शिल्पा के साथ वक्त बिताना चाहता था. करीब आना चाहता था और दोस्ती करना चाहता था.

इसलिए उस ने एक तरीके से दोगुने पैसे दे कर वक्त खरीद लिया था, दरअसल जब से  राज ने शिल्पा को बिग ब्रदर शो में देखा था तभी से उसे पहली नजर का शिल्पा से प्यार हो गया था.

खैर, राज जिस कारोबार में हाथ डालता था, वो खूब चलता था. शिल्पा के नाम से लौंच हुआ परफ्यूम भी खूब बिका. इंग्लैंड में परफ्यूम मार्केट में नंबर एक पर रहा. शिल्पा  को दोगुने पैसे दे कर की गई डील भी उस के लिए फायदेमंद ही रही.

एक तो परफ्यूम खूब बिका. दूसरा इस दौरान शिल्पा से इतनी घनिष्ठता हो गई कि शिल्पा भी उस के करीब आ गईं और 2009 में दोनों की शादी हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- राज कुंद्रा हो या शिल्पा शेट्टी पोर्नोग्राफी रैकेट के अलावा पहले भी दोनों सुखिर्यो में रह चुके हैं

डर्टी फिल्मो का ‘राज’ : राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस – भाग 2

यही वजह रही कि कई बार पूछताछ के लिए बुलाने के बाद जब 19 जुलाई, 2021 को उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया तो क्राइम ब्रांच ने पर्याप्त सबूत होने के कारण राज कुंद्रा को गिरफ्तार कर लिया.

मुंबई क्राइम ब्रांच राज कुंद्रा पर बिना पुख्ता सबूत के हाथ नहीं डालना चाहती थी. इसलिए क्राइम ब्रांच ने राज कुंद्रा के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद पूरे मामलें की कडि़यों को एक दूसरे से जोड़ना शुरू किया.

जिन लोगों के नाम सामने आते रहे उन के खिलाफ साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस बारीबारी से उन्हें गिरफ्तार करती रही. ये साफ हो चुका था कि अश्लील फिल्मों का ये रैकेट एक पोर्न फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की आड़ में चलाया जा रहा था. जहां फिल्मों में ब्रेक देने के बहाने युवा और जरूरतमंद लड़कियों के अश्लील वीडियो बनाए जाते थे.

क्राइम ब्रांच इस केस में 2 अभिनेता, एक लाइटमैन और 2 महिला फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी.

लेकिन इस मामले में उमेश कामत नाम के एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच के पास पहली बार ऐसे साक्ष्य हाथ लगे, जिस से राज कुंद्रा पर हाथ डाला जा सकता था.

दरअसल, उमेश कामत यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का भारत में प्रतिनिधि था. उमेश कामत भारत में एक्ट्रेस गहना वशिष्ठ के साथ मिल कर अश्लील फिल्में बनाता था.

इन पोर्न फिल्मों की शूटिंग के बाद तैयार किए गए वीडियो भारतीय एजेंसियों से बचने के लिए एक एप्लिकेशन के जरिए यूके में केनरिन प्रोडक्शन हाउस भेजे जाते थे.

एडिटिंग के बाद पोर्न फिल्मों को हौट शौट एप्लिकेशन पर अपलोड किया जाता था. यूके में पोर्न फिल्मों पर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ये काम यूके से किया जाता था.

उमेश की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच की पड़ताल और तेज हो गई. राज कुंद्रा से कई बार पूछताछ की गई. क्राइम ब्रांच की टीम पोर्न फिल्में बनाने वाले इस गैंग से राज कुंद्रा के सबंधों के सबूत जुटाने का भी काम करती रही.

उमेश कामत से पूछताछ में पता चला कि वह राज कुंद्रा के यूके में रहने वाले बहनोई प्रदीप बख्शी के साथ काम करता है. प्रदीप बख्शी यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस का डायरेक्टर है.

केनरिन लिमिटेड़ कंपनी 16 साल से वजूद में है. इस में केवल एक एक्टिव डायरेक्टर है, वो हैं प्रदीप बख्शी. उन्हें पहली नवंबर 2008 को इस फर्म के डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था. इस कंपनी में 10 से भी कम कर्मचारी हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 2 मिलियन पाउंड है.

ये फर्म वीडियो प्रोडक्शन एक्टिविटीज और टेलिविजन प्रोग्रामिंग से जुड़ी थी. उमेश कामत से पता चला कि राज कुंद्रा इस कंपनी में प्रदीप बख्शी के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर बिजनैस पार्टनर और निवेशक है.

उमेश कामत ने क्राइम ब्रांच को बताया कि केनरिन प्रोडक्शन हाउस भारत में मौजूद अलगअलग एजेंटों के जरिए पोर्नोग्राफी और पोर्नोग्राफी फंडिंग का भी बिजनैस करता था.

एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे और फिर ऐसे कंटेंट को कैनरिन प्रोडक्शन हाउस को भेजते थे.

इसी बीच जांच के दौरान क्राइम ब्रांच को एक वाट्सऐप ग्रुप के बारे में भी पता चला. उस वाट्सऐप ग्रुप में पोर्न फिल्मों से जुड़े पूरे बिजनैस को ले कर चर्चा होती थी. उस वाट्सऐप ग्रुप का नाम ‘एच अकाउंट’ था, जिस में राज कुंद्रा समेत कुल 5 लोग शामिल थे.

इस ग्रुप का एडमिन भी राज कुंद्रा ही था. ग्रुप के सभी लोग पोर्नोग्राफिक कंटेंट बनाने के इस बिजनैस में शामिल थे.

जो वाट्सऐप चैट पुलिस को मिली उस में राज कुंद्रा इस बिजनैस की मार्केटिंग, सेल्स और मौडल्स की पेमेंट से जुड़े मसलों पर बात कर रहा था.

साथ ही किस तरह रेवेन्यू पर फोकस किया जाए, मौडल को कैसे पेमेंट दी गई है और किस तरह बिजनैस रेवेन्यू को बढ़ाया जाए. यही चैट होता था.

पुलिस की साइबर सेल राज कुंद्रा के उस ऐप का भी पता लगा चुकी थी, जिस पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थी. ‘हौट हिट मूवी’ नाम के इस ऐप पर मूवी देखने वाले को ऐप डाउनलोड कर 200 रुपए का पेमेंट करना होता है.

कुल मिला कर पुलिस के सामने जब यह साफ हो गया कि मुंबई और इस के उपनगरों में पोर्न फिल्म बनाने का जो कारोबार चल रहा है, उस में राज कुंद्रा प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा है, तब 19 जुलाई की रात 9 बजे क्राइम ब्रांच ने पूछताछ के लिए उसे बुलाया. कुछ देर पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

हालांकि राज कुंद्रा ने किसी भी ऐप और पोर्नोग्राफी फिल्मों के रैकेट से अपना संबध होने से साफ इंकार कर दिया. उस ने कहा कि वह सिर्फ इरोटिक फिल्में बनाते हैं. लेकिन पुलिस का दावा है कि कुंद्रा ही अश्लील फिल्मों के कारोबार का मास्टरमाइंड था.

कुंद्रा को गिरफ्तार कर उसे 7 दिन की रिमांड पर लिया. इस दौरान पुलिस ने कुंद्रा के औफिस पर छापेमारी की तो वहां छिपा कर रखी गई 51 आपत्तिजनक वीडियो बरामद हुईं.

गिरफ्तारी के बाद ही पुलिस ने राज कुंद्रा के मोबाइल फोन को जब्त कर लिया. जिसे साक्ष्य एकत्र करने के लिए फोरैंसिक लैब भेजा गया. इस के अलावा पुलिस ने कई ऐसे सबूत एकत्र किए जाने का दावा किया है, जिस के बाद जल्द ही इस केस में गहना वशिष्ठ की गिरफ्तारी हो सकती है.

चूंकि ब्रिटेन में पोर्नोग्राफी के खिलाफ कोई कानून नहीं है, इसलिए पुलिस यूके बेस्ड कंपनी केनरिन प्रोडक्शन हाउस के खिलाफ काररवाई को ले कर कानूनी राय ले रही है.

पुलिस का कहना है कि जिस ‘हौट हिट मूवी’ ऐप पर पोर्न फिल्में अपलोड की जाती थीं, उसे मेंटेन करने के लिए प्रतिकेश और ईश्वर नाम के 2 कर्मचारियों को विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड में पेरोल पर रखा था.

केनरिन कंपनी के ‘हौटशौट’ ऐप को मैनेज और मेंटेन करने के लिए ‘विआन इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ यानी राज की कंपनी हर महीने 3-4 लाख रुपए चार्ज करती थी. जांच में सामने आया है कि इस ऐप के जरिए राज कुंद्रा को एक दिन में कई बार 10 लाख से ज्यादा की कमाई भी होती थी.

लेकिन जो राज कुंद्रा आज केवल पोर्न फिल्मों के बिजनैस से 10 लाख रुपए प्रतिदिन कमाता है और अपने दूसरे कारोबार से 2700 करोड़ की संपत्ति का मालिक बन गया है, एक समय था जब वह दुबई से, नेपाल से पश्मीना शाल ला कर लंदन में बेचता था.

राज कुंद्रा का जीवन भी एक फिल्मी कहानी की तरह है. राज कुंद्रा का असली नाम है रिपुसूदन कुंद्रा. कुंद्रा के पिता बाल कृष्ण कुंद्रा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन शादी के बाद वह युवावस्था में ही पत्नी को ले कर लंदन चले गए.

लंदन में पहले उन्होंने एक कौटन मिल में नौकरी की. उस के बाद वह बस में कंडक्टर के तौर पर नौकरी करने लगे. बाल कृष्ण न तो ज्यादा पढ़ेलिखे थे, न धंधा शुरू करने के लिए उन के पास बड़ी पूंजी थी.

अगले भाग में पढ़ें- 2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी

डर्टी फिल्मों का ‘राज’ : राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस – भाग 1

20 जुलाई, 2021 की सुबह का सूरज ठीक से उदय भी नहीं हुआ था, उस से पहले ही दिन फिल्म इंडस्ट्री  की पटाखा गर्ल कही जाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के मुंबई में सब से पौश इलाके जुहू बीच पर बने आलीशान बंगले के बाहर मीडिया का जमावड़ा होना शुरू हो चुका था.

हर कोई बीती रात की कहानी के बारे में शिल्पा की प्रतिक्रिया लेना चाहता था. शिल्पा शेट्टी और उन के पति राज कुंद्रा अपने दोनों बच्चों बेटा विहान राज कुंद्रा और बेटी शमिषा कुंद्रा  के साथ समुद्र किनारे बने बंगले में रहते थे. समुद्र किनारे बने ‘किनारा’ नाम के इस बंगले के बाहर उस दिन मीडिया के लोगों की जो भीड़ उमड़ी थी उस ने शिल्पा शेट्टी को असहज कर दिया था. क्योंकि एक दिन पहले यानी 19 जुलाई की रात को शिल्पा के पति राज कुंद्रा को मुंबई के भायखला से क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल क्राइम ब्रांच की साइबर सेल की टीम अश्लील फिल्में बनाने वाले गैंग की जांच कर रही थी. जिस की जांच करते हुए खुलासा हुआ कि इस गैंग का मास्टरमाइंड राज कुंद्रा ही था. पूरी मुंबई और बौलीवुड हस्तियों तक रात में ही राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैलते हुए पहुंच गई. इसी का नतीजा था कि अगली सुबह शिल्पा और राज कुंद्रा के बंगले के बाहर मीडिया के लोगों की भारी भीड जमा थी.

राज कुंद्रा को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, उस में लगे आरोप इतने घिनौने और संगीन थे कि शिल्पा शेट्टी के लिए उन आरोपों से जुड़े सवालों का जवाब देना मुमकिन नहीं था. इसलिए उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली.

दरअसल, राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की पटकथा इसी साल फरवरी में लिखी गई थी. मुंबई क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सेल को एक गुप्त सूचना मिली थी कि मलाड वेस्ट के मडगांव में एक किराए के आलीशान बंगले में अश्लील फिल्म की शूटिंग चल रही है.  इसी सूचना के आधार पर सेल के एपीआई लक्ष्मीकांत सालुंखे ने अपनी टीम के साथ उस बंगले पर छापेमारी की.

टीम ने मौके पर देखा कि एक न्यूड वीडियो की शूटिंग चल रही थी. वहां 2 लड़कियों समेत कुल 5 लोग थे, जिन्हें  हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ व छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि यह शूटिंग मोबाइल एप्लिकेशन के लिए की जा रही थी, जिस पर अश्लील वीडियो अपलोड किए जाते हैं. इन वीडियोज को देखने के लिए पैसा दे कर मोबाइल एप्लिकेशन की सदस्यता लेनी पड़ती है.

जिस लड़की की अश्लील फिल्म  शूट की जा रही थी, उस के साथ पुलिस ने रौनक नाम के कास्टिंग डायरेक्टर, रोवा नाम की एक महिला वीडियोग्राफर तथा इस अश्लील फिल्म में काम कर रहे लीड एक्टर भानु और रोवा की दोस्त प्रतिभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

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जांच में पता चला है ये गिरोह मोबाइल एप्लिकेशन के अलावा कुछ ओटीटी प्लेटफार्म के लिए भी ओटीटी फिल्म बनाते हैं. ऐप के बारे में पड़ताल शुरू हुई तो राज कुंद्रा का नाम भी सामने आया.

जब मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस मामले का खुलासा किया तो सामने आया कि इस गिरोह से जुड़े आरोपी अश्लील वीडियो बना कर उन के ट्रेलर इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम, वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया साइटों पर भी जारी करते थे.

इस खुलासे के बाद 4 फरवरी 2021 को मुंबई के क्राइम ब्रांच ने  मालवानी थाने में राज कुंद्रा समेत गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 103/2021 दर्ज  कराया था.

जिस में उन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67, 67ए व अन्य संबंधित धाराएं भी एफआईआर में लगाई थीं.

मुकदमा तो फरवरी में दर्ज हो गया था, लेकिन मुंबई क्राइम ब्रांच को तलाश थी एक ऐसे पुख्ता सबूत की, जो राज कुंद्रा को बेनकाब कर सके. क्योंकि उन पर अश्लील फिल्में बनवाने से ले कर कुछ ऐप्स के जरिए उन्हें प्रसारित और शेयर करने का इलजाम था.

छानबीन में मुंबई क्राइम ब्रांच को जो सबूत हाथ लगे वो राज कुंद्रा की तरफ मुख्य साजिशकर्ता होने का इशारा कर रहे थे.

अगले भाग में पढ़ें- एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे 

श्रीराम लागू: एक युग का अंत

भारत भूषण श्रीवास्तव 

1980  में प्रदर्शित बी.आर. चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ में सब से चुनौतीपूर्ण भूमिका डाक्टर श्रीराम लागू के हिस्से में आई थी. इस फिल्म में वे जीनत अमान और पद्मिनी कोल्हापुरे के बलात्कार के आरोपी राज बब्बर के वकील थे.

‘इंसाफ का तराजू’ 80 के दशक की सर्वाधिक चर्चित और हिट फिल्मों में से एक थी, क्योंकि बलात्कार पर इस से पहले कोई ऐसी फिल्म नहीं बनी थी, जो समाज में हलचल मचा कर उसे इस संवेदनशील मुद्दे पर नए सिरे और तरीके से सोचने मजबूर कर दे.

कारोबारी राज बब्बर 2 बहनों का बलात्कार करता है और उसे बचाने का जिम्मा लेते हैं क्रिमिनल लायर मिस्टर चंद्रा यानी श्रीराम लागू. इस फिल्म के अदालती दृश्य काफी वास्तविक और प्रभावी बन पड़े थे. जिरह में बचाव पक्ष का वकील कैसेकैसे घटिया और बेहूदे सवाल पीडि़ता से पूछता है, यह श्रीराम लागू ने परदे पर जितने प्रभावी ढंग से उकेरा था, वह शायद ही कोई दूसरा कलाकार कर पाता.

कटघरे में खड़ी जीनत अमान से यह पूछना कि बलात्कार के वक्त आरोपी के हाथ कहां थे, कंधों पर या जांघों पर और आप ने अपने बचाव में क्याक्या किया, जैसे दरजनों सवाल अदालतों का वीभत्स और कड़वा सच तब भी थे, आज भी हैं.

बचाव पक्ष के वकील अपने मुवक्किल को बचाने की हरमुमकिन कोशिश करते हैं. बलात्कार के मामलों में वकील की हरमुमकिन कोशिश होती है कि किसी भी तरह अदालत में यह साबित कर दें कि जो हुआ वह बलात्कार नहीं बल्कि सहमति से किया गया सहवास था. इस के बाद उस के नामी मुवक्किल को बदनाम और ब्लैकमेल करने की गरज से पीडि़ता हाय हाय करती अदालत आ पहुंची है.

फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ में जीनत अमान की दयनीयता पर श्रीराम लागू की क्रूरता भारी पड़ी थी. अलावा इस के इस फिल्म का यह डायलौग भी खूब चर्चित हुआ था कि अगर कोई चश्मदीद गवाह होता तो बलात्कार होता ही क्यों.

खैर, यह हिंदी फिल्म थी, इसलिए अंत सुखद ही हुआ. लेकिन श्रीराम लागू ने अपने किरदार को जिस तरह से अंजाम दिया, वही उन की वह खूबी थी जिस के लिए वे आज तक याद किए जाते हैं और अब पुणे में निधन के बाद तो खासतौर से किए जा रहे हैं.

80 से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों में विभिन्न शेड्स में अभिनय करने बाले श्रीराम लागू पेशे से ईएनटी सर्जन थे और मराठी थिएटर का जानामाना नाम थे. मामूली शक्लसूरत वाले श्रीराम लागू की एक्टिंग की अपनी एक अलग स्टाइल थी, जिसे बदलने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की, ठीक वैसे ही जैसे उन सरीखे दूसरे कई चरित्र अभिनेताओं ने नहीं की. इन में खास नाम इफ्तिखार, जगदीश राज, ओम प्रकाश, असित सेन, केष्टो मुखर्जी, उत्पल दत्त और ए.के. हंगल के हैं. ये तमाम कलाकार चार दशकों तक एक से ही नजर आए और हर भूमिका में दर्शकों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया भी.

सतारा से मुंबई

महाराष्ट्र के सतारा में जन्मे 92 वर्षीय श्रीराम लागू ने पढ़ाई पुणे और मुंबई से की. ईएनटी सर्जन बनने के बाद प्रैक्टिस करने लगे. कालेज के दिनों में उन्होंने स्टेज पर एक्टिंग की, जो सराही भी गई. थिएटर तो उन की सांस में था. कुछ साल बतौर डाक्टर वे दक्षिण अफ्रीका में भी रहे लेकिन जब भारत वापस आए तो बचपन से मन में दबीकुचली इस ख्वाहिश को और ज्यादा नहीं टरका पाए कि फिल्मों में काम किया जाए, जिस पर उन के मातापिता कभी राजी नहीं हुए थे.

उस वक्त श्रीराम लागू की उम्र 42 साल थी. जाहिर है इस अधेड़ावस्था में उन्हें कोई हीरो वाले रोल तो मिलते नहीं, लिहाजा वे खामोशी से चरित्र अभिनेता बन गए. गंभीरता और परिपक्वता उन के चेहरे पर हमेशा पसरी रहती थी, जिस के चलते वे दूसरे कलाकारों से अलग हट कर दिखते थे. शायद डाक्टरी के पेशे ने उन्हें ऐसा बना दिया था.

हालांकि फिल्मों में काम हासिल करने के लिए उन्हें कोई स्ट्रगल नहीं करना पड़ा, लेकिन बतौर चरित्र अभिनेता उन  की पहचान सन 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘घरौंदा’ से मिली. गुलजार की लिखी इस कहानी में बढ़ते शहरीकरण के साइड इफेक्ट और बिल्डर्स की ठगी और बेइमानियां दर्शाई गईं थीं.

अमोल पालेकर और जरीना वहाब प्यार करते हैं लेकिन मुंबई में उन के पास घर नहीं है. फिल्म ‘घरौंदा’ में उन की इस कशमकश को बेहद खूबसूरत तरीके से दिखाया था. एक घर हासिल करने के लिए जरीना वहाब अमोल पालेकर के कहने पर अपने बूढ़े लेकिन रईस बौस मिस्टर मोदी यानी श्रीराम लागू से शादी कर लेती है. लेकिन शादी के बाद उस के भारतीय संस्कार उसे पति को धोखा देने से रोकते हैं और वह उस से ही प्यार करने लगती है.

अमोल पालेकर बेचारा हाथ मलता रह जाता है. फिल्म का गाना,  ‘दो दीवाने शहर में रात में और दोपहर में आशियाना ढूंढते हैं…’ खूब बजा था और आज भी शिद्दत से सुना और गुनगुनाया जाता है.

इस फिल्म के आखिरी दृश्य में श्रीराम लागू को हार्ट अटैक आता है, जिसे उन्होंने इतने जीवंत तरीके से जिया था कि हाल में बैठे दर्शकों को वे सचमुच में मरते से लगे थे. फिल्म समीक्षकों ने इस दृश्य को जबरदस्त करार दिया था. मिस्टर मोदी के किरदार के बाबत श्रीराम लागू को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था.

घरौंदा की जबरदस्त कामयाबी के बाद भी उन्हें उल्लेखनीय रोल नहीं मिले, लेकिन कई भूमिकाओं को उन्होंने अपने अभिनय के दम पर उल्लेखनीय बना दिया.

इन में से एक है प्रकाश मेहरा निर्देशित और अमिताभ बच्चन अभिनीत 1981 में प्रदर्शित फिल्म ‘लावारिस’, जिस ने बौक्स औफिस पर हाहाकार मचा दिया था. लावारिस फिल्म में श्रीराम लागू की भूमिका दूसरे कलाकारों के मुकाबले काफी छोटी थी. वे लावारिस हीरो के पिता बने थे, जो दिनरात शराब के नशे में धुत अपने सौतेले बेटे को गलियां देता रहता है.

यादगार किरदार

गंगू गनपत का यह किरदार अनूठा था जिस में में वह बारबार एक खास अंदाज में हरामी, कुत्ता और नाली के कीड़े जैसी गालियां बकता है. तब अमिताभ बच्चन का कैरियर और शोहरत दोनों अपने चरम पर थे पर श्रीराम लागू गंगू गनपत को जीते उन के सामने बिलकुल नहीं लड़खड़ाए थे.

इस फिल्म के डायलौग कादर खान ने लिखे थे, जिन्होंने पहली बार नाजायज औलाद की जगह नाजायज बाप शब्द का प्रयोग किया था. इस छोटी सी भूमिका में श्रीराम लागू ने जान डाल दी थी और हैरत की बात यह है कि व्यक्तिगत जीवन में वे शराब और सिगरेट जैसे नशे से परहेज करते थे.

फिर 2 साल बाद आई निर्देशक सावन कुमार टांक की फिल्म ‘सौतन’ जिस के संवाद जानेमाने साहित्यकार कमलेश्वर ने लिखे थे. राजेश खन्ना, टीना मुनीम, पद्मिनी कोल्हापुरे, प्रेम चोपड़ा और प्राण सरीखे नामी सितारों के सामने श्रीराम लागू के पास करने को कुछ खास नहीं दिख रहा था. लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के बाद दर्शकों और फिल्मी पंडितों ने एक सुर में माना था कि श्रीराम लागू ने गोपाल के किरदार में अपनी प्रतिभा से जान डाल दी है.

इस फिल्म में वे पद्मिनी कोल्हापुरे के पिता बने थे. दरअसल, यह भूमिका ऐसे अधेड़ गरीब दलित की थी, जिस की परित्यक्ता बेटी पर रईसों ने चारित्रिक लांछन लगा रखा है. एक दयनीय दलित पिता के इस रोल को दर्शकों ने खूब सराहा था तो इसलिए कि यह पात्र और श्रीराम लागू का अभिनय दोनों वास्तविकता के काफी नजदीक थे.

दूसरी कई फिल्मों में वे छोटीमोटी भूमिकाओं में दिखे, लेकिन अधिकांश में उन्हें अभिनय प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिला और इस का अफसोस भी उन्हें कभी नहीं रहा. 1982 में सुभाष घई की फिल्म ‘विधाता’ में वे खलनायक बने थे, पर दर्शकों ने उन्हें इस रूप में ज्यादा पसंद नहीं किया.

हालांकि हास्य को छोड़ कर उन्होंने बेहद सहज तरीके से तमाम भूमिकाएं निभाईं इसीलिए वे फिल्म इंडस्ट्री में एक सहज कलाकार माने जाते थे जो आमतौर पर पब्लिसिटी से दूर रहता था. 90 के दशक में वे हिंदी फिल्मों में न के बराबर दिखे और जिन में दिखे, वे सब की सब सी ग्रेड की फिल्में थीं.

हिंदी फिल्मों से ज्यादा पहचान उन्हें मराठी थिएटर और सिनेमा से मिली ‘पिंजरा’, ‘सिंहासन’ और ‘सामना’ उन की यादगार मराठी फिल्में हैं. नट सम्राट वह पहला नाटक है, जिस की भूमिका के लिए वे हमेशा याद किए जाते रहेंगे. इस के लेखक विष्णु वामन शिरवाडकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था.

इस नाटक में श्रीराम लागू ने गणपत बेलवलकर की भूमिका निभाई, जिसे मराठी थिएटर में मील का पत्थर माना जाता है. इस नाटक से ताल्लुक रखती दिलचस्प बात यह किंवदंती है कि गणपत बेलवलकर का रोल इतना कठिन है कि जिस किसी  कलाकार ने भी इसे निभाना चाहा, वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया.

इस रोल को करने के बाद खुद श्रीराम लागू भी हार्ट अटैक की गिरफ्त में आ गए थे. शायद इसीलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए नट सम्राट ही कहा.

लगता ऐसा है कि व्यावसायिक सिनेमा के फेर में पड़ कर वे थिएटर से दूर होते चले गए, हालांकि इस बात को उन्होंने एक इंटरव्यू में बेमन से नकारा था, लेकिन अपनी आत्मकथा ‘लमन’, जिस का मतलब माल ढोने वाला होता है, में उन का यह दर्द झलका था.

समाजसेवी अन्ना हजारे से वे खासे प्रभावित थे. उन की पत्नी दीपा भी नामी कलाकार रही हैं. हिंदी फिल्मों से श्रीराम लागू को नाम और पैसा तो खूब मिला, लेकिन वह पहचान नहीं मिल पाई, जिस के वह हकदार थे और जिंदगी भर उस के लिए बैचेन भी रहे. शायद ऐसे ही मौकों के लिए मशहूर शायर निदा फाजली ने यह गजल गढ़ी होगी, ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’

सौजन्य: मनोहर कहानियां, जनवरी 2020

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जब माथे पर लिख दिया ‘मेरा बाप चोर है’

यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई फिल्म ‘दीवार’ हिंदी सिनेमा की सफलतम फिल्मों में से एक है. कहा जाता है कि इस फिल्म की कहानी अंडरवर्ल्ड डौन हाजी मस्तान के जीवन पर आधारित थी.

इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का नाम विजय था. विजय फिल्म में मजदूर नेता बने सत्येन कप्पू का बेटा था. सत्येन कप्पू मजदूरों के हक के लिए फैक्ट्री मालिकों से लड़ाई लड़ता है, पर फैक्ट्री मालिक उसे और उस के परिवार वालों को जान से मारने की धमकी देते हैं तो डर कर सत्येन कप्पू फैक्ट्री मालिकों की बात मान लेता है.

इस बात से नाराज हो कर फैक्ट्री के मजदूर सत्येन कप्पू पर जानलेवा हमला कर देते हैं, जिस से डर कर वह घर छोड़ कर भाग जाता है. इस के बाद मजदूर उस के बेटे विजय को पकड़ कर उस के हाथ पर ‘मेरा बाप चोर है’ लिख देते हैं. विजय जीवन भर अपने हाथ पर लिखे ‘मेरा बाप चोर है’ को ले कर कानून से नफरत करता है.

उस का मानना था कि दुनिया उसी की सुनती है, जिस के पास पैसा होता है. फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन के हाथ पर लिखे गए ‘मेरा बाप चोर है’, जैसी ही एक घटना पिछले साल जयपुर में सामने आई थी. इस घटना में ससुराल वालों ने एक महिला के माथे पर लिख दिया था. ‘मेरा बाप चोर है’.

जयपुर के आमेर इलाके के रहने वाले रामलाल की बेटी मालती की शादी अलवर जिले के थाना रैणी के अंतर्गत रहने वाले जग्गू से तय हुई तो मालती तो खुश थी ही, उस के घर वाले भी बेहद खुश थे. इस की वजह यह थी कि मालती की यह दूसरी शादी थी. इस तरह एक बार फिर उस का घर बसने जा रहा था, इसीलिए सभी खुश थे.

मालती की दूसरी शादी जग्गू से मालती की पहली शादी जिला दौसा में हुई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चला था, लेकिन बाद में पति उस से मारपीट करने लगा था. मालती पति की यह मारपीट सहती रही. पति पहले उसे 2-4 दिनों में मारतापीटता था, लेकिन जब वह उसे रोज ही मरनेपीटने लगा तो परेशान हो कर मालती ने यह बात अपने मातापिता को बता दी.

मातापिता और तो कुछ कर नहीं सकते थे, मालती को अपने यहां बुला लिया. मालती मांबाप के यहां आई तो लौट कर ससुराल नहीं गई. रामलाल उस की दूसरी शादी के लिए लड़का तलाश करने लगे. किसी रिश्तेदार से उन्हें थाना रैणी के अंतर्गत रहने वाले जग्गू के बारे में पता चला तो उन्होंने मालती की शादी उसी से तय कर दी. मालती और उस के घर वालों को लगा कि अब उस की जिंदगी आराम से गुजर जाएगी.

14 जनवरी, 2015 को सामाजिक रीतिरिवाज से मालती की शादी जग्गू से हो गई. मालती आंखों में सुहाने सपने लिए एक बार फिर ससुराल आ गई. पहली बार भी वह गांव में ब्याही गई थी, इस बार भी उस की शादी गांव में ही हुई थी. ससुराल आ कर मालती हर बहू की तरह पति और उस के घर वालों की सेवा करने लगी.

दिन भर वह घर के कामकाज में लगी रहती, उस के बाद पति की सेवा करती. शुरू में यहां भी सब ठीकठाक रहा. लेकिन कुछ दिनों बाद यहां भी उसे दहेज न लाने का ताना मारा जाने लगा. मालती कर ही क्या सकती थी, चुपचाप उन के ताने सुन लेती. वह पढ़ीलिखी भी नहीं थी कि कुछ कर पाती. वही क्यों, न तो उस के मायके में कोई पढ़ालिखा था और न ही ससुराल में.

ससुराल वाले मालती से दहेज के रूप में 51 हजार रुपए पिता से मांग कर लाने के लिए कह रहे थे. मालती को अपने पिता रामलाल की हैसियत का पता था. 51 हजार तो क्या, उन के लिए तो 51 सौ रुपए भी एक बड़ी रकम थी. इसीलिए वह चुपचाप ससुराल वालों की बातें एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती थी.

इस से मालती के ससुराल वालों को लगा कि सिर्फ बातों से ही काम नहीं चलेगा. उन्होंने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. धीरेधीरे यह मारपीट बढ़ती ही गई.

मालती ने कई बार मांबाप से अपनी परेशानी बताई, पर रामलाल ही क्या करते? उन के पास पैसे ही नहीं थे, जिसे दे कर वह बेटी को परेशानी से उबार लेते. वह मालती को समझाबुझा कर ससुराल भेज देते कि आगे चल कर सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हुआ. धीरेधीरे मालती पर होने वाले अत्याचार बढ़ते ही गए. हद तो तब हो गई, जब ससुराल वालों ने उस के माथे पर ‘मेरा बाप चोर है’ गुदवा दिया. इतने पर भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने उस के हाथों और जांघों पर अश्लील शब्द गुदवा दिए.

कहा जाता है कि यह अमानवीय अत्याचार करने से पहले पति ने अपने भाइयों के साथ मिल कर मालती को कुछ सुंघा दिया था. उस के बाद उस के हाथोंपैरों को बांध कर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया, जिस से वह विरोध न कर सके. मालती को पूरी तरह से असहाय कर के उन्होंने उस के शरीर पर कई जगह उस के पिता के नाम के साथ गालियां गुदवा दी थीं. ससुराल वालों ने मालती की हालत ऐसी कर दी थी कि वह किसी को अपना मुंह तो क्या, हाथ तक नहीं दिखा सकती थी. वह साड़ी के पल्लू से आंखों तक माथा और दोनों हाथों को छिपा कर रखती थी.

जब पिता को पता चला बेटी पर होने वाले अत्याचारों का सन 2016 के जून महीने में रामलाल को बेटी पर होने वाले अत्याचारों के बारे में पता चला तो वह उस की ससुराल पहुंचे. बेटी की हालत देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि बेटी के साथ ससुराल वाले ऐसा अत्याचार करेंगे.

रामलाल बेटी को अपने घर ले आए और चूना और तेजाब की मदद से उस के माथे पर लिखे ‘मेरा बाप चोर है’ और शरीर के अन्य अंगों पर लिखे अश्लील शब्दों यानी गालियों को मिटाया गया. मालती को जितनी पीड़ा यह सब गोदने में सहनी पड़ी थी, उस से कहीं ज्यादा उन्हें मिटाने में सहनी पड़ी.

मालती के हाथों पर लिखी गालियों को गोदने वाली मशीन से फूल बनवा कर मिटवाया गया. पिछले साल यानी जून, 2016 के आखिरी सप्ताह में जयपुर में यह मामला मीडिया में सुर्खियां बना तो पुलिस और प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू की.

पता चला कि जयपुर कमिश्नरेट की महिला थाना उत्तर पुलिस 10 दिनों तक इस्तगासे को दबाए बैठी रही. मामला उछला तो पुलिस ने 3 लोगों के खिलाफ प्रताड़ना और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कर लिया. अगले दिन पुलिस ने मालती के घर जा कर उस का बयान लिया और कांवटिया अस्पताल ले जा कर उस का मैडिकल कराया.

मामला सुर्खियों में आया तो राजस्थान महिला आयोग ने खुद इस मामले को संज्ञान में ले कर पुलिस उपायुक्त (उत्तर) को फटकार लगाते हुए पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की. मामला दिल्ली तक पहुंचा तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस घटना को गहरा आघात बताया.

उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को मामले की जांच करने के निर्देश दिए. केंद्रीय मंत्री के निर्देश पर 28 जून, 2016 को राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य रेखा शर्मा मामले की जांच करने जयपुर पहुंचीं. उन्होंने मालती और उस के घर वालों से मामले की विस्तार से जानकारी ली, साथ ही पुलिस से भी रिपोर्ट मांगी.

राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा भी अन्य सदस्यों के साथ मालती से मिलने महिला थाना उत्तर पहुंचीं. उस की हालत देख कर वह सन्न रह गईं. पुलिस ने पीडि़ता मालती के बयान के आधार पर उस की ससुराल वालों की धरपकड़ के लिए 3 टीमें अलवर, रैणी और दिल्ली भेजीं.

इस के अलावा एडिशनल डीसीपी और थाना आमेर के थानाप्रभारी अपनी एक टीम के साथ मालती के घर पहुंचे, जहां मालती से ही नहीं, उस के आसपास रहने वाली महिलाओं से भी घटना के बारे में विस्तार से जानकारी ली. इस के बाद रैणी जा कर ससुराल वालों तथा आसपड़ोस वालों से भी पूछताछ की गई. उस की ससुराल तथा आसपड़ोस वालों का कहना था कि उन के समाज में गोदना गोदने की प्रथा तो है, लेकिन मालती के शरीर पर यह सब किस ने गुदवा दिया, इस का उन्हें पता नहीं है.

विवाद में आ गईं राज्य महिला आयोग की सदस्य पुलिस जांच चल ही रही थी कि एक नया विवाद खड़ा हो गया. सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो गई, जिस में राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा बैठी थीं और आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर इस अमानवीय अत्याचार की पीडि़ता मालती की सेल्फी ले रही थीं. कहा जा रहा था कि वह फोटो 28 जून, 2016 की थी, जब राज्य आयोग की अध्यक्ष व सदस्य पीडि़ता से मिलने गई थीं.

इस फोटो के जरिए लोगों ने सवाल उठाए थे कि महिला आयोग की पदाधिकारियों ने पीडि़ता की पहचान क्यों उजागर की? इस विवाद पर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा एवं सदस्य सौम्या गुर्जर ने अपनेअपने तरीके से सफाई दी.

प्रदेश कांग्रेस की मीडिया चेयरपर्सन डा. अर्चना शर्मा ने मालती के साथ सेल्फी खींचने की निंदा करते हुए महिला आयोग की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए. उन का कहना था कि सदस्य सौम्या गुर्जर ने पीडि़ता के साथ इस तरह सेल्फी ले कर उस का गंभीर मजाक उड़ाया है.

सेल्फी के इस मामले ने तूल पकड़ा तो राज्य महिला आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर ने 30 जून, 2016 को इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर सफाई दी कि लोगों ने सेल्फी लेने के मामले को गलत तरीके से पेश किया है, जो नैतिकता के खिलाफ है. विवाद के बाद उन्होंने नैतिकता के आधार पर पद छोड़ा है.

उन का कहना था कि पुलिस को इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि जब वह पीडि़ता की काउंसलिंग कर रही थीं तो पुलिस के अलावा वहां तीसरा आदमी कैसे आ गया, जिस ने फोटो वायरल कर दी.

पीडि़ता बहुत डरी हुई थी, इसलिए उन्होंने उसे फोन दिखा कर सामान्य करने की कोशिश की थी. वह अपनी फोटो देख कर खुश हो गई थी. उन्होंने वह फोटो वायरल करने के लिए नहीं खीची थी. वह महिला आयोग की सदस्य थीं, इसलिए उन्हें नियमकायदे पता थे.

सौम्या गुर्जर ने भले ही सफाई दे दी थी, लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग ने सेल्फी खींचने को गलत ठहराते हुए अध्यक्ष सुमन शर्मा और सदस्य सौम्या गुर्जर को 4 जुलाई, 2016 को दिल्ली तलब किया. हालांकि राज्य महिला आयोग ने फोटो खींचने वाली बात को जांच का विषय बताते हुए सोशल मीडिया पर वायरल हुई फोटो को सेल्फी मानने से इनकार कर दिया था.

राज्य महिला आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर के इस्तीफे के बाद आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा के इस्तीफे की मांग होने लगी थी. तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी और तत्कालीन शिक्षामंत्री कालीचरण सराफ को उन के बचाव में मैदान में उतरना पड़ा.

इन दोनों नेताओं ने ही नहीं, पूरी पार्टी ने अध्यक्ष को क्लीन चिट देते हुए कहा कि सेल्फी लिए जाने वाली बात से वह पूरी तरह से अंजान थीं.

राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपरसन ललिता कुमार मंगलम ने 4 जुलाई, 2016 को दिल्ली में इस पूरे प्रकरण की जानकारी जुटाई. इस के बाद महिला राज्य आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा को राष्ट्रीय महिला आयोग के समक्ष उपस्थित हो कर अपना पक्ष रखने को कहा.

विवाद बढ़ने के बाद जुलाई, 2016 के दूसरे सप्ताह में मालती का पति जग्गू अपनी ससुराल पहुंचा और वहां सब से हाथ जोड़ कर और पैर पकड़ कर माफी मांगी. उस का कहना था कि उस ने नहीं, गांव में उस के पड़ोस के रहने वाले कुछ लोगों ने मालती के माथे तथा हाथोंपैरों पर गलत बातें लिख दी थीं.

उस का कहना था कि उस ने पत्नी को छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, इस के लिए वह माफी मांग रहा है. यही नहीं, वह और उस के घर वाले मालती को अपने साथ ले जाना चाहते थे. रामलाल भी सब भुला कर बेटी का घर बस जाए, इस के लिए जग्गू को माफ कर के बेटी को भेजने के लिए तैयार हो गए.

अब इन बातों को करीब सवा साल बीत चुका है. मालती अपनी ससुराल में रह रही है. वह और उस के पिता भले ही इन बातों को भूल जाएं, लेकिन माथे और हाथों पर गोदने के निशान मालती पर हुए अमानवीय अत्याचारों को भला कैसे भूलने देंगे.    ?

(कहानी में पीडि़ता और उस के घर वालों की पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिए गए हैं)

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017