इस के अलावा पुलिस की सर्विलांस टीम 19-20 जून की रात के डंप डाटा की जांच में जुट गई. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि काम्या पैलेस का इलाका किनकिन मोबाइल टावरों के संपर्क में आता है. इस के बाद यह जानकारी हासिल की गई कि उस टावर के संपर्क में उस रात कितने फोन थे. पता चला कि उस रात कई हजार फोन वहां के फोन टावरों के संपर्क में थे. इसी को डंप डाटा कहा जाता है.
पुलिस को पता लग चुका था कि चोरी करने वाले लड़के मध्य प्रदेश के हो सकते हैं, इसलिए उस डंप डाटा से उन मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया गया, जो उस रात मध्य प्रदेश के नंबरों के संपर्क में थे. ऐसे 300 फोन नंबर सामने आए. सर्विलांस टीम ने उन फोन नंबरों की जांच की. अब तक पुलिस को एक नई जानकारी यह मिल गई थी कि मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना पचौड और बोड़ा के गुलखेड़ी और कडि़या ऐसे गांव हैं, जहां के गैंग बच्चों के सहयोग से शादी समारोह आदि के मौकों पर चोरियां करते हैं.
यह जानकारी मिलते ही एसीपी (औपरेशन) राजेंद्र सिंह ने 26 जून, 2017 को एक टीम मध्य प्रदेश के लिए भेज दी. टीम में इंसपेक्टर सतीश कुमार, एसआई अरविंद कुमार, एएसआई महेंद्र यादव आदि को शामिल किया गया था. टीम ने सब से पहले राजगढ़ जिले में रहने वाले मुखबिर को चोरों के फोटो दिखाए. उस मुखबिर ने 2-3 घंटे में ही पता लगा कर बता दिया कि ये लड़के गुलखेड़ी और कडि़या गांव के हैं और ये दोनों गांव थाना बोड़ा के अंतर्गत आते हैं.
यह जानकारी टीम के लिए अहम थी. इस जानकारी से उन्होंने एसीपी राजेंद्र सिंह को अवगत करा दिया. उन के निर्देश पर टीम थाना बोड़ा पहुंची. वहां के थानाप्रभारी को टीम ने दिल्ली में हुई घटना के बारे में बताते हुए अभियुक्तों को गिरफ्तार करने में मदद मांगी. थानाप्रभारी ने बताया कि यहां पर कभी मुंबई की तो कभी पंजाब की तो कभी उत्तराखंड तो कभी यूपी की पुलिस आती रहती है. पर चाह कर भी वह इन गांवों में दबिश डालने नहीं जा सकते.
इस की वजह यह है कि इन गांवों में सांसी रहते हैं. जब पुलिस इन के यहां पहुंचती है तो गांव के आदमी और औरतें यहां तक कि बच्चे भी इकट्ठा हो कर पुलिस पर हमला कर देते हैं. महिलाएं पुलिस से भिड़ जाती हैं. कभीकभी ये लोग आपस में ही किसी के पैर पर देसी तमंचे से गोली चला देते हैं. इसलिए इन गांवों में पुलिस नहीं जाती.
थानाप्रभारी ने बताया कि कुछ दिनों पहले पंजाब पुलिस भी आई थी. पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार की शादी में किसी ने नकदी और ज्वैलरी का बैग उड़ा दिया था. पंजाब पुलिस भी ऐसे ही वापस लौट गई थी.
स्थानीय पुलिस की मदद के बिना किसी भी राज्य की पुलिस सीधे दबिश नहीं दे सकती. दिल्ली पुलिस की टीम असमंजस में पड़ गई कि ऐसी हालत में क्या किया जाए? सीधे दबिश दे कर दिल्ली पुलिस कोई लफड़ा नहीं करना चाहती थी. पुलिस टीम को यह तो पता चल ही गया था कि सूटकेस चुराने वाले बच्चे किस गांव के हैं. अब पुलिस टीम ने उसी मुखबिर की सहायता से उन चोरों के बारे में अन्य जानकारी निकलवाई.
मुखबिर ने बताया कि इन गांवों में चोरों के अनेक गैंग हैं. चूंकि बच्चों पर कोई शक नहीं करता, इसलिए ये लोग अपने रिश्तेदारों या गांव के दूसरे लोगों के बच्चों को साल भर या 6 महीने के कौंट्रैक्ट पर ले लेते हैं. यह कौंट्रैक्ट लाखों रुपए का होता है. उन बच्चों को ट्रेनिंग देने के बाद उन के सहयोग से ही विवाह पार्टियों में चोरियां करते हैं. दिल्ली में जिन बच्चों ने सूटकेस चुराया था, वे बच्चे राका और नीरज के गैंग में काम करते हैं और राका इस समय अपने घर पर नहीं है. वह दिल्ली के पौचनपुर में कहीं किराए पर रहता है.
यह जानकारी ले कर पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पौचनपुर गांव दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका सेक्टर-23 के पास है. अपने स्तर से पुलिस राका को खोजने लगी. कई दिनों की मशक्कत के बाद पहली जुलाई, 2017 को पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला.
राका को हिरासत में ले कर पुलिस ने उस से काम्या पैलेस में हुई चोरी के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे राका ने अपना मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि काम्या पैलेस की शादी में उसी की गैंग के बच्चों ने सूटकेस चुराया था. बच्चों के अलावा नीरज भी गैंग में शामिल था. इस के बाद उस ने चोरी की जो कहानी बताई, वह दिलचस्प कहानी इस प्रकार थी—
मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना बोड़ा के अंतर्गत स्थित हैं कडि़या और गुलखेड़ी गांव. दोनों ही गांव की आबादी करीब 5-5 हजार है. राका गुलखेड़ी गांव का रहने वाला था, जबकि नीरज गांव कडि़या में रहता था. इन दोनों गांवों की विशेषता यह है कि यहां पर सांसी जाति के लोग रहते हैं. बताया जाता है कि यहां के ज्यादातर लोग चोरी करते हैं. इन के निशाने पर अकसर शादी समारोह होते हैं. एक खास बात यह होती है कि इन के गैंग में छोटे बच्चे या महिलाएं भी होती हैं.
चूंकि समारोह आदि में बच्चे आसानी से हर जगह पहुंच जाते हैं, जो आराम से बैग या सूटकेस चोरी कर गेट के बाहर पहुंचा देते हैं. ये बच्चे कोई ऐसेवैसे नहीं होते, उन्हें बाकायदा चोरी करने की ट्रेनिंग दी जाती है. जिन बच्चों को गैंग में रखा जाता है, उन के चुनाव का तरीका भी अलग है.