महानगरों में कितनी ही कामवालियां ऐसी होती हैं, जो अपने छोटे बच्चे को ले कर काम पर जाती हैं और दिन भर लोगों के घरों में काम कर के अपने ठिकाने पर लौट जाती हैं. कई लोग ऐसे भी होते हैं जो यह पसंद नहीं करते कि वे अपने बच्चे को ले कर घर में आएं.

ऐसे में उन की मजबूरी होती है कि बच्चे को मालिक के घर के बाहर बैठा दें या खेलने के लिए छोड़ दें. जबकि कई बार घर के मालिक या मालकिन को तरस आ जाता है और वे बच्चे को अंदर लाने की इजाजत दे देते हैं. इस से उन्हें यह भी डर नहीं रहता कि कामवाली कोई गड़बड़ करेगी.

फुटपाथ पर या झुग्गीझोपड़ी में रहने वाली कामवालियों की यह मजबूरी होती है कि अपना और बच्चों का पेट पालने के लिए हर स्थिति को फेस करें. इन्हें कितने ही ऐसे लोग भी मिलते हैं जो इन्हें या इन के बच्चों को इंसान नहीं समझते. यह अलग बात है कि उन के घर ऐसी ही महिलाओं की वजह से साफसुथरे रहते हैं. शानू शेख भी ऐसी ही महिला थी, जिस का ठौरठिकाना भायखला, मुंबई के एक फुटपाथ पर था.

शानू शेख की बहन भी इसी तरह फुटपाथ पर रह कर घरों में कामकाज करती थी. दोनों बहनें घरेलू कामकाज के लिए रोजाना साथ निकलती थीं और घरों में काम करने के बाद भायखला रेलवे स्टेशन के बाहर मिलती थीं, जहां से वे अपने ठिकाने पर लौट जाती थीं. 16 दिसंबर, 2018 को भी दोनों बहनें साथसाथ काम पर निकलीं. शानू शेख के साथ उस की 3 साल की बेटी कुसुम शेख भी थी.

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