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प्रसिद्ध धार्मिक नगरी चित्रकूट (Chitrakoot) का एसपीएस यानी सदगुरु पब्लिक स्कूल (Sadguru Public Schook) अपने आप में एक ब्रांड है. अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं, चित्रकूट (मध्य प्रदेश) से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित है, (Karwi) कर्बी जिले (उत्तर प्रदेश) के सैकड़ों बच्चे यहां रोजाना पढ़ने के लिए बस से आते हैं.

इन्हीं सैकड़ों बच्चों में से श्रेयांश रावत (Shreyansh Rawat) और प्रियांश रावत (Priyansh Rawat) की पहचान कुछ अलग हट कर थी. क्योंकि ये दोनों जुड़वां भाई (Twins Brother) भी थे और हमशक्ल भी. दोनों को पहचानने में कोई भी धोखा खा जाता था. 5-5 साल के ये मासूम अभी एलकेजी में पढ़ रहे थे.

जुड़वां होने के अलावा एक और दिलचस्प बात यह भी थी कि रावत परिवार के ये दोनों ही नहीं बल्कि 11 बच्चे एसपीएस में पढ़ रहे थे. इन में से 2 श्रेयांश और प्रियांश (Shreyansh and Priyansh) के सगे बड़े भाई देवांश और शिवांश भी थे.

इन चारों भाइयों के पिता ब्रजेश रावत (Brajesh Rawat) चित्रकूट के जाने माने तेल व्यापारी हैं. आयुर्वेदिक तेलों का कारोबार करने वाले ब्रजेश रावत ईमानदार, कर्मठ और मिलनसार व्यक्ति हैं. तेल के अपने पुश्तैनी कारोबार को उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. इसी वजह से कर्बी से ले कर चित्रकूट तक उन की अपनी एक अलग पहचान है.

अपने कारोबार में मशगूल रहने वाले ब्रजेश रावत हर लिहाज से सुखी और संपन्न कहे जा सकते हैं. कर्बी के रामघाट में उन का बड़ा मकान है, जिस में पूरा रावत परिवार संयुक्त रूप से रहता है. उन के घर में हर वक्तचहलपहल रहती है जिस की बड़ी वजह वे 11 बच्चे भी हैं जो एसपीएस में पढ़ते थे.

ईश्वर में अपार श्रद्धा रखने वाले ब्रजेश रावत ने कभी सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी कि कभी उन के साथ भी ऐसी कोई अनहोनी होगी जो जिंदगी भर उन्हें सालती रहेगी और जिन श्रेयांश और प्रियांश की मासूम किलकारियां और शरारतों से उन का घर आबाद रहता है, उन की यादें उम्र भर उन्हें काटने को दौड़ती रहेंगी.

रोजाना की तरह 12 फरवरी को भी दोपहर में लगभग 12 बजे एसपीएस की बसें लाइन से लग गई थीं. बच्चे अपनी बसों का नंबर पढ़ते हुए उन में सवार हो रहे थे. छोटी कक्षाओं के बच्चों में स्कूल की छुट्टी के बाद घर जाने की खुशी ठीक वैसी ही होती है जैसी जेल से लंबी सजा काट कर रिहा हुए कैदियों की होती है.

क्लास से लाइन में लग कर बाहर आए प्रियांश और श्रेयांश भी अपनी बस में सवार हो गए, जिस में ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा एक केयरटेकर भी थी. जब बस के सभी बच्चे आ कर अपनीअपनी सीटों पर बैठ गए तो गेट बंद होने के बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. इस बस का नंबर था एमपी19-0973.

स्कूल कैंपस से बस अभी 500 मीटर का फासला भी तय नहीं कर पाई थी कि न जाने कहां से एक लाल रंग की बाइक आई और बस के सामने रुक गई.

ड्राइवर ने अचकचा कर बस धीमी की लेकिन जब तक वह माजरा समझ पाता तब तक बाइक पर सवार दोनों युवक नीचे उतर आए. उन में से एक के हाथ में पिस्टल थी. दोनों युवकों ने चेहरा भगवा कपड़े से ढक रखा था. फिल्मी स्टाइल में ही बस के गेट तक आए बदमाशों ने डरावनी चेतावनी दी और श्रेयांश और प्रियांश को नीचे उतार लिया.

कोई कुछ समझ या कर पाता इस के पहले ही दोनों ने श्रेयांश और प्रियांश को बाइक पर बीच में बैठाया और आंधीतूफान की तरह जैसे आए थे, वैसे ही उड़नछू हो गए. कहां गए यह कोई उन्हें ढंग से भी नहीं देख पाया.

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यह जरूर है कि हर किसी को समझ आ गया कि दिन दहाड़े स्कूल बस में से दोनों का अपहरण हो गया है और अपहरणकर्ताओं का टारगेट श्रेयांश और प्रियांश ही थे, क्योंकि अगर किसी को भी उठाना होता तो बच्चे आगे की सीटों पर भी बैठे थे. लेकिन बदमाशों ने पीछे की सीट पर बैठे दोनों भाइयों को ही उठाया था यानी अपहरण की यह वारदात पूर्वनियोजित थी.

बाइक के नजरों से दूर होते ही कंडक्टर ड्राइवर और केयरटेकर सहित बच्चों का डर खत्म हुआ तो खासी हलचल मच गई. देखते ही देखते यह बात चित्रकूट की तंग और संकरी गलियों से होती हुई देश भर में फैल गई कि 2 जुड़वां भाईयों का दिनदहाड़े अपहरण हो गया.

अपहरण के बाद मिनटों में वारदात की खबर पुलिस और ब्रजेश रावत तक पहुंच गई. ब्रजेश भागेभागे स्कूल आए, लेकिन वहां उन के जिगर के ये दोनों जुड़वां टुकड़े नहीं थे. थी तो ऊपर बताई गई दास्तां जो हर किसी ने अपने शब्दों मे बयां की, जिस का सार यह था कि एक बाइक पर 2 नकाबपोश बदमाश आए. उन्होंने बाइक अड़ा कर बस रोकी, पिस्टल लहरा कर धमकाया और श्रेयांश व प्रियांश को बीच में बैठा कर उड़नछू हो गए.

मौके पर आई पुलिस के हाथ नया कुछ नहीं लगा, सिवाय उन सीसीटीवी फुटेज के जो स्कूल के कैमरों में कैद हो गई थी. इन फुटेज को देखने के बाद पुलिस वालों ने अंदाजा लगाया कि अपहरणकर्ताओं की उम्र 25-26 साल के लगभग है और उन की हरकतें देख लगता है कि वे पेशेवर हैं. पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि 2 संदिग्ध युवक कुछ दिनों से स्कूल की रैकी कर रहे थे. चूंकि स्कूल में अभिभावकों और दूसरे लोगों की आवाजाही लगी रहती है इसलिए किसी ने उन से कुछ पूछा या कहा नहीं था.

सीसीटीवी फुटेज में दोनों के चेहरे नहीं दिखे क्योंकि उन्होंने भगवा कपड़ा बांध रखा था लेकिन यह जरूर पता चला कि एक बदमाश काली और दूसरा सफेद रंग की टी शर्ट पहने हुए था. यह आशंका भी जताई गई कि दोनों बदमाश बच्चों को ले कर अनुसुइया आश्रम की तरफ भागे हैं और बीच में उन की बाइक रजौरा के पास गिरी भी थी.

चंद घंटों में ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस हादसे पर खासा बवाल मचा तो पुलिस भी एक्शन में आ गई. सतना के एसपी संतोष सिंह गौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से बच्चों की सुरक्षित वापसी की कोशिशें की जा रही हैं.

अब तक यह भी कहा जाने लगा था कि बदमाश बच्चों को ले कर बीहड़ों में कूद गए होंगे और जल्द ही ब्रजेश रावत से फिरौती मांगेंगे. आशंका यह भी जताई गई कि इस वारदात के पीछे साढ़े 5 लाख के ईनामी बबुली कोल गिरोह का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने संदिग्ध लोगों को पकड़ कर उन से पूछताछ शुरू कर दी थी, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा था. चित्रकूट को छूती मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को सीज कर दिया गया. कर्बी के एसपी मनोज कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस टीमों ने हर जगह बच्चों और बदमाशों को तलाशना शुरू कर दिया.

ब्रजेश रावत ने बारबार यह बात दोहराई कि उन का किसी से भी व्यक्तिगत या पारिवारिक विवाद नहीं है और न ही अब तक यानि घटना वाले दिन तक उन से किसी ने फिरौती मांगी है. घंटों के सघन अभियान के बाद भी प्रियांश और श्रेयांश का कोई सुराग नहीं लग रहा था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने डीजीपी वी.के. सिंह को तलब किया था. इसलिए पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते अपने महकमे के उन सभी अधिकारियों को चित्रकूट बुलवा भेजा, जो कभी भी एंटी डकैत गतिविधियों का हिस्सा रहे थे.

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ये तजुर्बेकार अधिकारी नौसिखिए अपराधियों के सामने किस तरह गच्चा खा रहे थे. यह खुलासा बाद में 13 फरवरी को हुआ. उसी दिन आईजी ने मोर्चा संभालते हुए एसआईटी गठित कर डाली, जिस के तहत दोनों राज्यों की पुलिस के लगभग 500 जवान विंध्य के बीहड़ों में बच्चों को तलाशते रहे. अपराधियों का सुराग देने पर डेढ़ लाख रुपए के ईनाम का ऐलान भी किया गया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

इसी बीच उम्मीद के मुताबिक अपहरणकर्त्ताओं ने रावत परिवार से संपर्क कर के मासूमों की रिहाई के एवज में 2 करोड़ रुपए मांगे. 19 फरवरी को रावत परिवार ने उन्हें 20 लाख रुपए दिए भी, लेकिन इस के बाद भी उन्होंने बच्चों को रिहा नहीं किया.

अब तक सार्वजनिक रूप से पुलिस की कार्यप्रणाली और लापरवाही की आलोचना होने लगी थी. चित्रकूट में तो आक्रोश था ही, कर्बी और सतना में भी लोगों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किए. अब भाजपाई और कांग्रेसी भी राजनीति पर उतर आए थे, जिस से लगा कि इन नेताओं को बच्चों की सलामती और जिंदगी से प्यारी अपनी आरोपप्रत्यारोप की परंपरागत राजनीति है.

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