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बस चल पड़ी. इराकी सेना ने बस को रोकने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई. थोड़ा आगे जाने पर लड़ाकों ने नर्सों को दिलासा दिया कि वे परेशान न हों, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. उन्हें मोसुल ले जाया जा रहा है, जहां पहुंच कर उन्हें एरबिल हवाईअड्डे से आजाद कर दिया जाएगा. बस के चलते ही नर्सों के मोबाइल बजने लगे.

फोन दिल्ली से किया जा रहा था. लेकिन नर्सों को यह पता नहीं था कि फोन कौन कर रहा था. फोन करने वालों ने उन से कहा था कि वे खिड़की से झांक कर देखें कि बाहर साइनबोर्डों पर स्थान का नाम क्या लिखा है. उस के बाद स्थान का नाम उसी नंबर पर मैसेज कर दें.

नर्सों को ले जाने वाली बस जिस रास्ते से गुजर रही थी, वह काफी घुमावदार था. शायद सड़कें सुरक्षित नहीं थीं, इसलिए उन्हें उस रास्ते से ले जाया जा रहा था. नर्सों को पता नहीं चल पा रहा था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. बस की खिड़कियों पर मोटे परदे पड़े थे, जिस से बाहर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.

बस के आगे एक काला झंडा लगा था, जिस पर वहां की भाषा में कुछ लिखा था. शायद ऐसा इसलिए किया गया था कि उन के लड़ाके साथी उस पर गोली न चलाएं. बस के पीछे एक वैन थी, जिस पर नर्सों का सामान लदा था. एक लड़ाका नर्सों के साथ था. बाकी के 3 लड़ाके एक कार में सवार थे.

मोसुल पहुंचने में उन्हें 8 घंटे लगे. पूरी रास्ते सभी नर्सें रोती रहीं. उन के आंसू एक पल के लिए भी नहीं रुके. मौत के डर से सभी के शरीर कांप रहे थे. एकदूसरे से लिपट कर वे एकदूसरे को ढांढस बंधा रही थीं. वहां उन्हें 10-10 की टोली में कतार से उतरने को कहा गया. लड़ाकों के इस हुक्म से उन नर्सों को लगा कि इस तरह कतार में उतारने का मतलब है, वे उन्हें मारना चाहते हैं.

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