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बच्चे के मन में क्या चल रहा होता है, जो वह ऐसा करता है? उस के दिमाग में यह जो उथलपुथल चल रही होती है, इस के बारे में उस ने कभी अपने घर वालों या दोस्तों को बताया था? क्या कोई उपाय है कि बच्चों को सुसाइड करने से रोका जा सके?

इन सवालों के जवाब हम सभी को जानना जरूरी है, क्योंकि हम सभी के बच्चे हैं और हम सब अपने बच्चों को कुछ न कुछ बनाना चाहते हैं. इस के लिए हम अपने बच्चों पर प्रेशर भी डालते हैं. यही प्रेशर उन्हें परेशान करता है और वे कुछ उल्टासीधा कदम उठा लेते हैं. जो बच्चे कोटा पढऩे के लिए जाते हैं, उन पर कोचिंग संस्थान की पढ़ाई का बहुत ज्यादा प्रेशर होता है, वे हर वक्त इस बात के तनाव में रहते हैं कि वे पिछड़ न जाएं.

दरअसल, पढ़ाई का जो प्रेशर है, जिसे कंपटीशन कहा जाता है, कोटा में वह क्रेजी कंपटीशन बन गया है और यह क्रेजी कंपटीशन का जो स्ट्रेप है, उस के लिए यहां के बच्चे मात्र 16, 17, या 18 साल के होते हैं, जो अभी मेच्योर नहीं हैं, इसलिए वे इस कंपटीशन को झेल नहीं पाते और निराश हो जाते हैं.

धीरेधीरे उन की यह निराशा डिप्रेशन बन जाती है. दूसरे शहरों या गांवों से आए बच्चे अपनी पढ़ाई कवर नहीं कर पाते और पढ़ाई में अन्य बच्चों से पीछे रह जाते हैं. टेस्ट में नंबर कम पाते हैं. परीक्षा में सेलेक्शन नहीं होता, जो निराशा को और ज्यादा बढ़ाता है.

कोटा कोचिंग के लिए जाने वाले ज्यादातर बच्चों की अधिक से अधिक उम्र 18 साल होती है. यह ऐसी उम्र होती है, जिस में शरीर में भी बदलाव आता है और सोच में भी. बच्चा इसे समझ नहीं पाता. कोटा में वह अकेला होता है, वहां कोई समझाने या सहारा देने वाला नहीं होता. जिस की वजह से प्रेशर भी बढ़ता और तनाव भी.

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