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घर वालों के पहुंचने पर जब पुलिस कमरे में घुसी तो मनजोत की लाश बैड पर पड़ी थी. उस के दोनों हाथ पीछे बंधे थे. उस के मुंह पर पौलीथिन बंधी थी. कमरे में पीले रंग की 3 पर्चियों पर अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा था.

एक परची पर केवल ‘सौरी’ लिखा था तो दूसरी परची पर ‘हैप्पी बर्थडे पापा’ लिखा था और तीसरी परची पर लिखा था कि ‘मैं ने जो भी किया है, अपनी मरजी से किया है तो प्लीज मेरे दोस्तों और पेरेंट्स को परेशान न करें.’

घर वालों के सामने पुलिस ने मनजोत की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए कोटा के एमबीएस अस्पताल भिजवा दी. इस के बाद घर वालों ने मोर्चरी पर जा कर हंगामा शुरू कर दिया.

दबाव में दर्ज करना पड़ा हत्या का केस

मनजोत के घर वालों ने कोचिंग संस्थान, हौस्टल के केयरटेकर और उस के एक क्लासमेट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. क्योंकि जिस तरह मनजोत की लाश पड़ी थी, उस तरह कोई आत्महत्या नहीं करता. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर कस कर बंधे थे. कोई अपने हाथों को खुद ही इतना कस कर कैसे बांध सकता है. उस की मुट्ठियां इतने जोर से जकड़ी थीं कि उस के नाखून हथेलियों में घुस गए थे. लाश औंधे मुंह पड़ी थी.

मनजोत के कमरे का दरवाजा अंदर से जरूर बंद था, लेकिन उस के कमरे की खिडक़ी के दरवाजे टूटे हुए थे और जाली कटी हुई थी. इसी वजह से घर वाले कह रहे थे कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. घर वालों ने स्पष्ट कहा था कि जब तक उस की हत्या की रिपोर्ट नहीं दर्ज की जाएगी, तब तक वे मनजोत की लाश नहीं उठाएंगे.

घर वालों के हंगामा करने के बाद थाना विज्ञाननगर में मनजोत की हत्या का मुकदमा कोचिंग संचालक, हौस्टल के केयरटेकर और मनजोत के एक दोस्त के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. डीएसपी धर्मवीर का कहना है कि पुलिस इस मामले की जांच करेगी. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया जाता है तो उस के खिलाफ अवश्य काररवाई की जाएगी.

3 अगस्त, 2023 की रात जहां मनजोत ने आत्महत्या की, वहीं इसी कोटा में 4 अगस्त को भार्गव मिश्रा, 10 अगस्त को मनीष प्रजापति और 15 अगस्त को वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ यानी कुल 11 दिनों में 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया.

18 साल के मनजोत के बारे में तो बताया ही जा चुका है कि वह उत्तर प्रदेश के रामपुर का रहने वाला था और नीट की तैयारी करने कोटा आया था तो 5 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का भार्गव मिश्रा बिहार के जिला चंपारण का रहने वाला था. वह कोटा के महावीर नगर में रहने वाले महेश गुप्ता के मकान के ऊपरी हिस्से में किराए पर रह कर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी कर रहा था.

उस दिन सुबह जब उस ने पिता का फोन नहीं उठाया तो उस के पिता को शक हुआ. उन्होंने मकान मालिक महेश गुप्ता को फोन किया. इस के बाद जब उन्होंने ऊपर जा कर खिडक़ी से भार्गव के कमरे में झांका तो वह पानी की मोटी पाइप से लटका हुआ था. महेश गुप्ता ने इस घटना की सूचना थाना महावीर नगर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर शव उतारा और पोस्टमार्टम के लिए न्यू मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इस साल 21 बच्चे कर चुके आत्महत्या

इस के बाद 10 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का मनीष प्रजापति उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ का रहने वाला था. कोटा में वह भी संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई की तैयारी कर रहा था. वह 6 महीने पहले ही कोटा आया था.

इस के बाद जिस दिन पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, उस दिन यानी 15 अगस्त को सुसाइड करने वाला 18 साल का वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ बिहार का रहने वाला था. उस के पिता सेना में सूबेदार थे, जो पिछले साल ही रिटायर हुए थे. 2 बहनों का एकलौता भाई वाल्मीकि पिछले साल जिद कर के कोटा आईआईटी की तैयारी करने आया था.

कोटा में वह थाना महावीर नगर इलाके में किराए के मकान में रहता था. 15 अगस्त को जब कई घंटे वह कमरे से बाहर नहीं आया तो अगलबगल रहने वाले उस के साथियों ने उस का दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो छात्रों ने मकान मालिक को सूचना दी. मकान मालिक ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर वाल्मीकि का शव कमरे की खिडक़ी से लटका हुआ था. इस के बाद पुलिस ने घर वालों को सूचना दी और लाश को उतार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उस के कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था, इसलिए पता नहीं चला कि उस ने आत्महत्या क्यों की.

इस तरह कोटा में एक ही महीने में यानी अगस्त महीने में केवल 11 दिनों के अंदर 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया. जबकि इस के पहले 17 बच्चे सुसाइड कर चुके थे यानी कुल मिला कर जनवरी से अब तक इसी साल 21 बच्चों ने सुसाइड कर लिया.

जबकि कोटा शहर में अपने सपने पूरा करने आए बच्चों में से पिछले एक साल में 29 बच्चों ने तो पिछले 10 सालों में 160 से ज्यादा बच्चे जिंदगी से हार चुके हैं यानी उन्होंने इसी तरह मौत को गले लगा लिया है. अब सोचने वाली बात यह है कि जिस कोटा में बच्चे कामयाब जवानी का सपना ले कर आते हैं, आखिर क्यों जवान होने से पहले ही मुर्दा बचपन उन के हिस्से में आता है.

उन की 16, 17 या 18 साल की उम्र होती है, जब 12वीं पास कर के कुछ कर दिखाने का सपना ले कर वे कोटा पहुंचते हैं और डाक्टर या इंजीनियर बनने की तैयारी शुरू करते हैं. लेकिन यहां तो जैसे आत्महत्या करने का सिलसिला ही चल पड़ा है. इसलिए अब इस से हर मांबाप को डर लगने लगा है.

बच्चों का मनोविज्ञान समझने की जरूरत

यह सोचने वाली बात है कि वहां पहुंचने पर ऐसा कौन सा डर है, जिस से बच्चा जिंदगी से लडऩे के बजाय हार जाता है. हम कहते भी हैं कि जिंदगी एक इम्तहान है, पर कोटा में बच्चे इम्तिहान से ही हार रहे हैं और जीने के लिए मिले जीवन को फंदे से लटक कर गंवा रहे हैं.

आखिर इस के पीछे वजह क्या है? क्या इसे रोका जा सकता है? इस में गलती किस की है, घर वालों की या बच्चों की या कोचिंग संस्थानों की है या फिर सिस्टम की और सरकार इस के लिए कर क्या रही है?

इस के लिए हमें इस का हल जरूर जानना और समझना चाहिए. क्योंकि जब भी कोई बच्चा सुसाइड करता है तो अनेक सवाल उठते हैं. आखिर उस की क्या परेशानी होती है, जो उसे यह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर करती है?

अगले भाग में पढ़िए, कैसे इन होनहारों का जीवन बचाया जा सकता है?

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