पुलिस ने पूछताछ के लिए गनमैन विजय कुमार को हिरासत में ले लिया था. इस वारदात के पीछे पुलिस को 3 ऐंगल नजर आ रहे थे. पहला यह कि कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप शुक्ला इतनी बड़ी लूट को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही वारदात को अंजाम दिया होगा.
दूसरा ऐंगल यह लग रहा था कि किसी प्रोफेशनल गिरोह ने रास्ते में प्रदीप को काबू कर के उस का अपहरण कर लिया होगा और रकम व प्रदीप को वह अपनी गाड़ी में डाल कर ले गए होंगे. अगर ऐसा हुआ तो अपहत्र्ता प्रदीप की हत्या कर सकते थे.
तीसरा ऐंगल यह लग रहा था कि गनमैन विजय कुमार ने साजिश रच कर यह वारदात कराई है. गनमैन योजना के तहत लघुशंका के बहाने उतर गया होगा और उस के साथियों ने ड्राइवर का पीछा कर के वारदात को अंजाम दिया होगा. पुलिस इन तीनों संभावनाओं पर तहकीकात कर रही थी.
विकासपुरी से कैश ले कर वैन जिस रूट से होते हुए श्रीनिवासपुरी की रेडलाइट तक पहुंची थी, पुलिस ने यह पता लगाया कि इस रास्ते में कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पुलिस यह जानना चाहती थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाश विकासपुरी से ही किसी गाड़ी से कैश वैन का पीछा कर रहे थे. इस के अलावा गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई. क्योंकि कैश वैन लावारिस अवस्था में इसी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी मिली थी.
पुलिस की एक टीम विकासपुरी स्थित करेंसी चेस्ट पहुंची. वहां से पता चला कि एसआईएस की किसी भी वैन में रोजाना 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं रखे जाते थे तब पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि उस दिन वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए क्यों रखे गए?
इस के अलावा यहां एक खामी और सामने आई, वह यह थी कि हर दिन हरेक कैश वैन पर 2 गनमैन, एक ड्राइवर और एक कस्टोडियन सवार होता था लेकिन उस दिन कैश वैन में एक गनमैन और एक कस्टोडियन को क्यों नहीं भेजा गया? इतने ज्यादा कैश के साथ केवल एक ही गनमैन क्यों भेजा गया? कस्टोडियन सुरेश कुमार उस वैन में क्यों नहीं गया?
इस के अलावा पुलिस को यह भी पता चला कि वैन में रकम रखने की जिम्मेदारी कस्टोडियन की होती है, लेकिन उस वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए कस्टोडियन के बजाय किसी विक्रम नाम के कर्मचारी ने रखे थे. इन खामियों को देख कर पुलिस को शक हुआ कि लूट की योजना बनाने में यहां के कर्मचारियों का भी हाथ हो सकता है. इसीलिए पुलिस ने विक्रम, कस्टोडियन सुरेश कुमार और अन्य कई कर्मचारियों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.
इस से पहले दिल्ली में कैश लूट के जो मामले हुए थे, उन में जिन बदमाशों के शामिल होने की बात सामने आई थी, पुलिस ने उन बदमाशों के डोजियर के आधार पर उन की तलाश शुरू कर दी. उन में से पुलिस के हाथ जितने भी बदमाश लगे, उन से भी सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.
प्रदीप शुक्ला नाम का जो ड्राइवर कैश के साथ लापता था, पुलिस ने एसआईएस कंपनी से उस का फोटो और उस की डिटेल हासिल की तो पता चला कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाला था और उस ने 10 सितंबर, 2015 को ही इस कंपनी में नौकरी जौइन की थी.
कंपनी में उस ने दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का पता लिखवाया था. पुलिस की एक टीम उस के कोटला मुबारकपुर वाले पते पर पहुंची तो पता चला कि वह पहले कभी इस पते पर रहता था. मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि अब वह ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक हरकेशनगर में रहता है.
हरकेशनगर का पता ले कर पुलिस टीम जब उस के कमरे पर पहुंची तो वहां उस की पत्नी शशिकला और 3 बच्चे मिले. पुलिस ने जब शशिकला से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्ïयूटी गए हैं. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप घर में नोटों के बौक्स रख कर कहीं फरार हो गया हो और पत्नी झूठ बोल रही हो. यह शंका दूर करने के लिए पुलिस ने उस के कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहां उसे कुछ नहीं मिला. पुलिस वहां से खाली हाथ लौट आई.
अब तक पुलिस की किसी भी टीम को ऐसा कोई क्लू नहीं मिल सका था, जिस से प्रदीप के बारे में कोई जानकारी मिल सकती. अब तक काफी रात हो चुकी थी. लेकिन पुलिस टीमें अपनेअपने काम में लगी थीं. पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था, इस से उस की आखिरी लोकेशन अपराह्न पौने 4 बजे श्रीनिवासपुरी की आ रही थी.
इस से यही लग रहा था कि वहां से कैश वैन सहित फरार होते समय उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि प्रदीप ने उसी दिन 26 नवंबर को आखिरी बार किसी अजीत के फोन पर बात की थी. बाद में पता चला कि अजीत भी हरकेशनगर में रहता है.
पुलिस अजीत के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उस से प्रदीप के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रदीप से उस की कोई खास बात नहीं हुई थी, लेकिन उस ने प्रदीप को शाम 4-5 बजे के बीच ओखला फेज-3 में देखा था.
थानाप्रभारी नरेश सोलंकी अजीत को ले कर ओखला फेज-3 में उस जगह पहुंच गए, जहां उस ने प्रदीप को देखा था. वहां तमाम इंडस्ट्री हैं, इसलिए प्रदीप को ढूंढना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने इस बात से डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा को अवगत कराया तो उन्होंने उस इलाके में सर्च औपरेशन चलाने के निर्देश दिए.
सर्च औपरेशन में सरिता विहार के थानाप्रभारी मङ्क्षहदर ङ्क्षसह, नेहरू प्लेस पुलिस चौकी इंचार्ज मनमीत मलिक, एसआई राजेंद्र डागर, जितेंद्र ङ्क्षसह, हैडकांस्टेबल यतेंद्र आदि को भी लगा दिया गया. इस टीम का निर्देशन कालकाजी के एसीपी जसवीर ङ्क्षसह कर रहे थे.
पुलिस टीम हर फैक्ट्री में जाती और प्रदीप का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछती. इसी क्रम में पुलिस ओखला फेज-3 स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वह ढाबा अजय का था. वह ढाबा देर रात तक खुला रहता था. पुलिस ने ढाबे वाले को प्रदीप का फोटो दिखाया तो उस ने बताया कि इसे उस ने यहीं पर रात साढ़े 9 बजे के करीब देखा था. ढाबे वाले से बात कर के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि प्रदीप ज़िंदा है. क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि अपहत्र्ताओं ने उसे कहीं मार न दिया हो.
कैश कहां है, यह बात प्रदीप के मिलने पर ही पता लग सकती थी. इसलिए उसे ढूंढना जरूरी था. पुलिस को लगा कि कुछ घंटे पहले जब प्रदीप यहीं था तो जरूर यहीं कहीं छिपा होगा. इस के बाद पुलिस पूरे उत्साह से एकएक फैक्ट्री में जा कर उसे खोजने लगी.
खोजबीन करते हुए पुलिस ढाबे से करीब 50 गज दूर एक फैक्ट्री के गेट पर पहुंची तो उस में अंदर से ताला बंद था. गेट खटखटाने पर गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी आया. वह उस फैक्ट्री का चौकीदार था. उस का नाम रामसूरत था. पुलिस ने चौकीदार को ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा और गोदाम की तलाशी लेने के लिए कहा.
पुलिस को देख कर चौकीदार रामसूरत डर गया. वह गेट की चाबी लेने की बात कह कर अंदर गया और कुछ देर बाद लौट कर गेट खोल कर पुलिस को अंदर ले आया. उस ने एक कमरे का दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘सर, जिस की आप को तलाश है, वह यह रहा.’’
पुलिस कमरे में घुसी तो सचमुच वहां फरार ड्राइवर प्रदीप शुक्ला मिल गया. उसी कमरे में कैश से भरे 9 संदूक भी रखे थे. यह सब देख कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले कर उन बक्सों की जांच की तो उन में से केवल एक बक्से की क्लिप हटी थी, बाकी 8 बक्से जैसे के तैसे थे.