जब अच्छी आमदनी होने लगी तो गौहर ने अपना खुद का जरदोजी का कारखाना खोल लिया. लगभग 5 महीने से जावेद उसी के कारखाने में काम करता था. जावेद फर्रूखाबाद के मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था. उस के परिवार में पिता नियामतुल्ला के अलावा मां शाहीन बेगम, 3 भाई अजहर, आवेद व उबैद और 4 बहनें थीं. 3 बहनों का निकाह हो चुका था. जबकि सब से छोटी बहन रुखसाना (परिवर्तित नाम) अविवाहित थी.
जावेद ने अपने काम और व्यवहार से जल्द ही गौहर का विश्वास हासिल कर लिया. दोनों के बीच जल्द ही अच्छीभली दोस्ती हो गई. जावेद ने फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने की बात गौहर के दिमाग में डाली तो उसे उस की बात जम गई. वैसे भी फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर होता था. यह काम करने वालों की वहां कोई कमी नहीं थी.
समय पर अच्छा काम होने की लालसा में गौहर ने जावेद को फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने का जिम्मा सौंप दिया. इस के लिए उस ने अपनी होंडा बाइक भी जावेद को दे दी. इस के बाद जावेद जयपुर से गौहर से जरदोजी का काम ले कर फर्रूखाबाद में करने वालों को बांटने लगा. काम पूरा होने पर जावेद पूरा माल जयपुर पहुंचवा देता था. काम पूरा हो जाता तो गौहर कारीगरों को देने वाली रकम उसे दे देता. काम अच्छा चलने लगा, तो गौहर और जावेद की उम्मीदों को नए पंख लग गए.
काम के चक्कर में गौहर भी फर्रूखाबाद आनेजाने लगा. वह जावेद के घर पर ही रुकता था. हालांकि उस के मामा आफाक उर्फ हद्दू फर्रूखाबाद में असगर रोड पर रहते थे. वह उन के घर जा कर मामा व ननिहाल वालों से मिल तो आता था लेकिन वहां रुकता नहीं था.
गौहर करीबकरीब हर हफ्ते ही फर्रूखाबाद आता था. जावेद के घरवालों से उस की खूब पटती थी. वैसे भी उसी की वजह से जावेद का काम अच्छा चल रहा था. घर पर जावेद की छोटी बहन रुखसाना ही ऐसी थी जो मेहमानों की खातिरतवज्जो करती थी.
गौहर के बारबार आने से उस से रुखसाना का ही ज्यादा वास्ता पड़ता था. इसी वजह से रुखसाना उस से काफी खुल गई थी. वह उस से बात करते मुसकराती रहती थी. उस की मुसकराहट और अल्हड़ता गौहर को मन भाने लगी थी. कामधंधे के चक्कर में गौहर की शादी की उम्र भले ही निकल गई थी, लेकिन वह था तो कुंवारा ही.
रुखसाना को देख कर उस के अरमान मचल उठे थे. अचानक ही उसे सारी दुनिया उसे अच्छी लगने लगी थी. धीरेधीरे रुखसाना उस की चाहत बन गई. रुखसाना जब भी उस के सामने आती तो वह उसे एकटक निहारता रह जाता. वह क्या बोलती क्या कहती, उसे सुध ही नहीं रहती थी. जब रुखसाना ने उसे इस स्थिति में देखा तो वह झेंपने लगी. लेकिन जल्द ही उसे गौहर की इस हालत की असलियत पता चल गई.
धीरेधीरे वह भी गौहर की चाहत के बारे में जान गई. गौहर कोई बात कहता या उस के साथ शरारत करता, तो वह शर्म से दोहरी हो जाती थी. मुंह से शब्द नहीं निकलते थे और वह वहां से मंदमंद मुसकराते हुए चली जाती थी. रुखसाना भी दिल से गौहर को अपना मान चुकी थी. इस बात को गौहर भी महसूस करने लगा था कि रुखसाना भी उसे दिल से चाहने लगी है.
दोनों एकदूसरे से दूर होते तो उन के दिल तड़प उठते और पास होते तो दिल को सुकून मिलता, आंखों को ठंडक पहुंचती. दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात कहने को आतुर थे, लेकिन पहल नहीं कर पा रहे थे.
इस बार जब गौहर आया तो उसे मौका भी मिल गया. उस दिन घर में कम लोग थे, वे भी दोपहर का खाना खाने के बाद सो गए थे. जबकि गौहर ऊपरी मंजिल पर टीवी देख रहा था. उसे अकेला बैठा देख रुखसाना भी वहां पहुंच गई. वह भी गौहर के साथ बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगी. उस समय गौहर एक रोमांटिक फिल्म देख रहा था. फिल्म में कोई रोमांटिक सीन आता तो दोनों कनखियों से एकदूसरे को देखने लगते, उन के होंठ मुसकरा उठते. यह क्रम काफी देर यूं ही चलता रहा.
कुछ देर बाद गौहर ने बेड पर लेट कर अपना सिर रुखसाना की गोद में रख दिया. उस की इस अप्रत्याशित हरकत से वह पल भर के लिए चौंकी, लेकिन जब उस ने गौहर की आंखों में प्यार का सागर उमड़ते देखा तो वह विरोध न कर सकी. इस शरारत पर उस ने गौहर से पूछा, ‘‘तुम ने किस अधिकार से मेरी गोद में अपना सिर रख दिया?’’
गौहर उस की आंखों की गहराइयों में उतरते हुए बोला, ‘‘यह सवाल तुम अपने दिल से क्यों नहीं पूछतीं, जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.’’
‘‘अधिकार तुम जता रहे हो, और पूछूं मैं अपने दिल से?’’ रुखसाना थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘कोई जबरदस्ती है, मैं क्यों पूछूं अपने दिल से? तुम्हें बताना हो तो बताओ, नहीं तो मेरे ठेंगे से.’’ रुखसाना गौहर को ठेंगा दिखा कर दूसरी ओर देखने लगी.
गौहर जानता था कि रुखसाना नाराजगी का नाटक कर रही है, जबकि हकीकत में वह अपने दिल का हाल बयां कर देना चाहती है. गौहर यह भी जानता था कि इस के लिए पहल उसे ही करनी होगी. इसलिए वह उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘रुखसाना, मैं तुम से प्यार करता हूं, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार. मुझे यह भी मालूम है कि तुम भी मुझे दिल से चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही हो. इसी प्यार के नाते मैं तुम पर अधिकार जता रहा था.’’
गौहर ने रुखसाना के जिस हाथ को अपने हाथों में ले रखा था, वह उस हाथ को उस के हाथों सहित अपने सीने पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं जानती हूं, तुम ने प्यार के अधिकार से ही ऐसा किया है, लेकिन तुम प्यार की बात जुबां पर नहीं ला रहे थे. तुम से प्यार का इजहार करवाने के लिए ही मैं ने तुम्हें उकसाया था ताकि तुम अपने दिल की बात बेहिचक कह सको. गौहर… आई लव यू टू.’’
रुखसाना ने उस के प्यार को स्वीकार कर के जवाब में प्यार के मीठे बोल बोले तो गौहर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ कर खुशी से झूम उठे. प्यार की खुशी में दोनों के तनमन मिले तो तन की गरमी का वेग बढ़ गया. नतीजतन वे उस राह पर उतर गए जो सामाजिक नजरिए से सही नहीं होती. लेकिन उन दोनों को इस की फिक्र नहीं थी. दुनिया से बेपरवाह हो कर दोनों प्यार की उस नदी में बह गए जिस का कोई छोर नहीं होता.
मन के साथ तन का मिलन हुआ तो उन के चेहरों पर अजीब सी खुशी झलकने लगी. उस दिन के बाद तो यह खुशी अकसर उन के चेहरों पर नजर आने लगी. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के पास उस के कमरे में आ जाती और दोनों मनचाही करते. मस्ती का खजाना लुटाने के बाद वह अपने कमरे में चली जाती. इस की किसी को कानोेंकान खबर तक नहीं होती.