पुलिस मान कर चल रही थी कि यदि वह दिल्ली आ रहा होगा तो या तो बस से आएगा या फिर ट्रेन से. छत्तीसगढ़ से आने वाली बसें सराय कालेखां अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर आती हैं और ट्रेनें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन. इसलिए 9 मई, 2014 को 2 पुलिस टीमें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और सराय कालेखां बस टर्मिनल पर लगा दीं.
चूंकि सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ और उन का बेटा अंकुश रफीक और गुलफाम को जानते थे इसलिए उन दोनों को भी पुलिस ने अपने साथ ले लिया था.
एक पुलिस टीम सर्विलांस के जरिए उस फोन नंबर पर नजर रखे हुई थी. सर्विलांस टीम को जो नई जानकारी मिल रही थी, टीम उस जानकारी को दोनों पुलिस टीमों को शेयर करा रही थी. इसी आधार पर पुलिस ने रफीक और गुलफाम को हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से हिरासत में ले लिया.
थाने ला कर उन दोनों से किआरा पारकर की हत्या की बाबत पूछताछ की तो उन्होंने बड़ी आसानी से किआरा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.
किआरा दिल्ली के रहने वाले विनोद कुमार की बेटी थी. विनोद कुमार एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. किआरा दूसरे नंबर की थी. किआरा की मां रेखा को कैंसर था. विनोद ने पत्नी का काफी इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी.
एक दिन डाक्टरों ने विनोद को बता दिया कि रेखा का कैंसर ठीक होने वाला नहीं है, यह अब आखिरी स्टेज पर हैं. डाक्टरों से यह जानकारी मिलने के बाद विनोद ने पत्नी की तीमारदारी करनी बंद कर दी.
बताया जाता है कि विनोद का उस समय किसी महिला के साथ चक्कर चल रहा था. उसे यह तो पता चल ही गया था कि उस की पत्नी अब ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहेगी इसलिए उस ने पत्नी के जीतेजी उस महिला से शादी कर ली जिस के साथ उस का चक्कर चल रहा था.
रेखा को पति द्वारा दूसरी शादी करने का ज्यादा दुख नहीं हुआ, बल्कि पति की आदतों को देखते हुए उसे इस बात की आशंका थी कि उस के मरने के बाद उस के तीनों बच्चों की दुर्दशा होगी. क्योंकि सौतन उस के बच्चों को तवज्जो नहीं देगी और उस के नातेरिश्तेदार भी ऐसे नहीं हैं जो बच्चों को पालपोस सकें.
बच्चों के भविष्य के बारे में उस ने अपने मिलने वालों से सलाह ली तो उन्होंने बच्चों को किसी अनाथालय में भरती करने की बात कही. इस बीच विनोद रेखा और बच्चों को दिल्ली में छोड़ कर अपनी दूसरी बीवी को ले कर मुंबई चला गया, जो आज तक नहीं लौटा.
पति द्वारा बच्चों को बेसहारा छोड़ जाने पर रेखा को बड़ा दुख हुआ. तब रेखा दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी गांव में रहने वाली अपनी मां के पास चली गई. रेखा नहीं चाहती थी कि उस के मरने के बाद बच्चे दरदर की ठोकरें खाएं इसलिए वह तीनों बच्चों को गुड़गांव के सेक्टर-10 स्थित शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम के अनाथालय में भरती करा आई.
बताया जाता है कि किआरा का घर का नाम कल्पना था. अनाथालय में उस का नाम किआरा पारकर रखा गया. बच्चों को अनाथालय में भरती कराने के कुछ दिनों बाद रेखा की मौत हो गई. यह करीब 8 साल पहले की बात है. उस समय किआरा करीब 10 साल की थी. अनाथालय में ही तीनों बच्चों की परवरिश होती रही. वहीं पर उन की पढ़ाई चलती रही. किआरा थोड़ी चंचल स्वभाव की थी. जब वह जवान हुई तो अनाथालय में ही रहने वाले कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई.
अधिकांशत: देखा गया है कि ऐसे जवान लड़के और लड़कियां जो आपस में सगेसंबंधी न हों उन की दोस्ती लंबे समय तक पाकसाफ नहीं रह पाती. एकांत में मिलने का मौका पाते ही वह खुद पर संयम नहीं रख पाते और उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात कायम हो जाते हैं. यही किआरा के साथ भी हुआ.
अनाथालय में ही रहने वाले एक नजदीकी दोस्त के साथ किआरा के अवैध संबंध कायम हो गए. काफी दिनों तक वह मौजमस्ती करती रही. इसी दौरान उस ने अपने और भी कई दोस्तों से नाजायज ताल्लुकात बना लिए. इस के बाद तो अनाथालय के तमाम लड़के किआरा के नजदीक आने की कोशिश करने लगे.
अवैध संबंधों को छिपाने के लिए कोई चाहे कितनी भी सावधानी क्यों न बरते, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. यानी किआरा के संबंधों की जानकारी भी अनाथालय के संचालकों तक पहुंच गई.
संचालकों ने किआरा को बहुत समझाया लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं बदली तो उन के लिए यह बड़ी ही चिंता की बात हो गई. खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. उस की देखादेखी अनाथालय के अन्य बच्चे न बिगड़ जाएं, संचालकों को इस बात की आशंका थी.
काफी सोचनेसमझने के बाद संचालकों ने किआरा को उस अनाथालय से किसी दूसरी जगह भेजने का फैसला ले लिया. करीब 1 साल पहले अनाथालय की तरफ से किआरा को पढ़ाई के लिए आगरा भेज दिया गया. वहां के एक हौस्टल में रह कर वह पढ़ने लगी.
चूंकि किआरा के कदम पहले ही बहक चुके थे इसलिए आगरा में उस के रोहित नाम के लड़के से अवैध संबंध हो गए. रोहित का एक दोस्त था विवेक चौहान जो दिल्ली में रहता था. वह भी आगरा आताजाता रहता था. किआरा ने उसे भी अपने जाल में फांस लिया. इसी दौरान किआरा गर्भवती हो गई. यह बात उस ने जब रोहित को बताई तो उस के हाथपैर फूल गए.
किआरा ने जब रोहित से शादी करने को कहा तो वह उस से कन्नी काटने लगा. उस समय किआरा के पेट में 2 माह का गर्भ था. जब किआरा को लगा कि उस का साथ देने वाला कोई नहीं है तो उस ने दवा खा कर गर्भ गिरा दिया.
किआरा का एक दोस्त था रफीक, जो गुड़गांव के अनाथालय में उस के साथ ही था. उस की उम्र जब 18 साल हो गई तो वह अनाथालय से बाहर आ गया. अनाथालय से निकलने के बाद रफीक ने गुड़गांव स्थित साउथ इंडियन होटल में नौकरी कर ली और में कादीपुर गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.
किआरा को किसी तरह रफीक के बारे में जानकारी मिली. तब वह इस साल होली से पहले आगरा से भाग कर गुड़गांव चली आई. वह उस होटल पर पहुंच गई जहां रफीक नौकरी कर रहा था. किआरा को देख कर रफीक खुश हुआ. फिर किआरा ने रफीक को अपना गर्भ गिराने तक की पूरी कहानी बता दी.
उस ने आराम करने के लिए कुछ दिनों उस के यहां रुकने की इजाजत मांगी. रफीक उसे मुंहबोली बहन मानता था इसलिए उस ने उसे हर तरह का सहयोग करने का भरोसा दिया. वह उसे अपने कमरे पर ले गया. फिर वह वहीं रहने लगी. रफीक अपने काम पर निकल जाता तो किआरा घर पर ही रहती थी.
क्यों मजबूर हो गए थे वो दोनों किआरा की हत्या करने पर? जानेंगें कहानी के अंतिम भाग में.