कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कहते कहते गुस्से की वजह से मनोज की आवाज थोड़ी ऊंची हो गई थी. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन मैं अपना भविष्य बरबाद नहीं करना चाहता. चोरी का आरोप लगने के बाद मुझे कोई बढि़या नौकरी मिल नहीं पाएगी. फिर मैं खुद भी अपनी नजरों में गिरा रहूंगा. इस के अलावा वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. इसलिए मैं यह साबित करना चाहता हूं कि मुझ पर चोरी का यह जो आरोप लगा है, वह झूठा है.’’

इतना कह कर जैसे ही मनोज चुप हुआ, स्वाति बोली, ‘‘मनोज ने अभी तक इस घटना के बारे में अपनी मां को भी कुछ नहीं बताया है. फिर इतनी शर्मनाक बात बताई भी कैसे जा सकती है.’’

‘‘तुम बता सकते हो कि रमेश ने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मैं ने उस से पूछा तो था कि वह ऐसा क्यों हर रहा है? मैं चिल्लाया भी था कि अगर मैं चोर हूं तो वह पुलिस को बुलाए और रिपोर्ट लिखा कर मुझे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने जवाब देने के बजाय मुझे औफिस से निकाल दिया. वहां से आने के बाद मैं ने अपने एकाउंट से 10 हजार रुपए निकलवाए और एक आदमी के हाथों उस के पास भिजवा दिए. मैं इस मामले को किसी किनारे लगते देखना चाहता हूं, इसीलिए आप से कह रहा हूं कि आप मुझे गिरफ्तार करवा दीजिए. क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘अभी तो अवंतिका के हाथ की बनी मिठाई खा कर कौफी पियो. कल रमेश गायकवाड़ से मिलते हैं. उस के बाद सोचते हैं कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए.’’ नवीन करमाकर ने कहा.

अगले दिन नवीन मनोज के साथ रमेश से मिलने सोलकर इंस्टीटयूट पहुंचे. नवीन ने अपने तौर पर फोन कर के रमेश से मुलाकात का समय ले लिया था. लेकिन जब दोनों रमेश के औफिस में दाखिल होने लगे तो गेटकीपर ने मनोज को रोक लिया, ‘‘डायरेक्टर साहब ने तुम्हें अंदर न जाने देने का आदेश दिया है. इसलिए तुम अंदर नहीं जा सकते.’’

अपने इस अपमान से मनोज का चेहरा गुस्से से सुर्ख पड़ गया, लेकिन वह कुछ बोला नहीं. वह वहीं बाहर ही बैठ गया. नवीन अंदर चले गए. रमेश ने बड़े ठंडे अंदाज से नवीन का स्वागत किया. उस की बगल में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पक्की उम्र का आदमी बैठा था. रमेश ने नवीन से उस का परिचय कराया.

उस आदमी का नाम शशांक ठाकरे था और वह इंस्टीटयूट का कानूनी सलाहकार था. परिचय करने के बाद रमेश ने कहा, ‘‘शायद आप उस नौजवान चोर के बारे में बात करना चाहते हैं, जिसे मैं ने अंदर आने से रोकवा दिया है. कृपया संक्षेप में बात करिएगा, मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘समय मेरे पास भी ज्यादा नहीं है.’’ नवीन ने कड़वे लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत ही संक्षेप में एकदम सीधी बात करूंगा. आप ने मनोज का इंस्टीट्यूट में आना तो बंद ही करा दिया है, अब उसे इस शहर से बाहर भेजना चाहते हैं, इस की कोई विशेष वजह?’’

रमेश के कोई जवाब देने से पहले ही संस्था के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘लगता है, आप उस के बचाव में आए हैं?’’

‘‘वही समझ लो. मैं चाहता हूं कि आप लोग उस के खिलाफ बाकायदा चोरी का मुकदमा दर्ज करवाएं और अपना आरोप सिद्ध करें. वरना मैं उस नौजवान को सलाह दूंगा कि वह आप के खिलाफ मानहानि का दावा करे.’’ नवीन ने कहा.

‘‘अगर ऐसी कोई कोशिश की जाती है तो मैं यही समझूंगा कि आप यह सब पैसे के लिए कर रहे हैं. हम इस बात को लोगों के सामने लाने की कोशिश् करेंगे. बहरहाल अब आप जा सकते हैं.’’ शशांक ठाकरे ने कहा.

बाहर आने के बाद नवीन ने कहा, ‘‘अंदर हुई बातचीत से मुझे यही लग रहा है कि किसी वजह से तुम्हारा इंस्टीट्यूट में आना जाना रमेश को परेशान कर रहा था. इसी वजह से उस ने ऐसा किया है. लेकिन वह चाहता तो तुम्हें किसी दूसरे तरीके से भी रोक सकता था.’’

‘‘लेकिन मुझे यहां आने से रोकने के लिए नौकरी देने और यह सब करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘एक नौकर पर आरोप लगाना आसान ही नहीं होता, बल्कि थोड़ी कोशिश के बाद उसे सिद्ध भी किया जा सकता है.’’ नवीन ने कहा.

‘‘रमेश की कोशिश का संबंध तुम्हारे इस संस्था के संस्थापक के पोते होने से भी हो सकता है.’’

‘‘मुझे भी यही लगता है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी कभी न कभी इस संस्था का दौरा करने तो आते ही होंगे. शायद रमेश नहीं चाहता कि उन से मेरी मुलाकात हो. आखिर वह मुझे उन से मिलने से रोकना क्यों चाहता था, उसे क्या डर था?’’

‘‘यह सब छोड़ो. मैं तुम्हारी ओर से मानहानि और तुम्हारे खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा दायर करता हूं.’’ नवीन ने कहा.

मनोज ने सहमति जताई तो पूरी तैयारी कर के नवीन करमाकर ने उस की ओर से मानहानि की याचिका दायर कर दी. लेकिन उस याचिका पर जिस दिन सुनवाई होनी थी, उस दिन मनोज ने खुद आने के बजाय एक पत्र और उस के साथ चैक भेज दिया था.

फिर सुनवाई के समय नवीन ने वह पत्र और चैक अदालत को दिखाते हुए कहा, ‘‘योर औनर, मनोज सोलकर की ओर से मानहानि और उस के खिलाफ साजिश रचने की मैं ने जो याचिका दायर की थी, उस के संबंध में आज सुबह मुझे यह पत्र और चैक मिला. पत्र में उस ने लिखा है कि वह यह याचिका वापस लेना चाहता है, क्योंक वह यह शहर छोड़ कर जा रहा है. उस ने मुझे कष्ट देने के लिए क्षमा मांगते हुए मेरी फीस के तौर पर कुछ रकम का यह चैक भेजा है. पत्र पाने के बाद मैं अपने मुवक्किल के फ्लैट पर पहुंचा तो वह पत्नी के साथ सचमुच जा चुका था.’’

‘‘इस का मतलब इस याचिका को खारिज कर दिया जाए?’’ जज ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ नवीन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, यह पत्र दूसरे पक्ष ने उस पर कोई दबाव डाल कर लिखवाया है.’’

नवीन का इतना कहना था कि दूसरे पक्ष के वकील शशांक ठाकरे ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘योर औनर यह आरोप सरासर गलत है. अगर याचिका दायर करने वाला याचिका वापस ले रहा है तो उस पर कार्यवाही कर के याचिका को खारिज कर देना चाहिए. जब याचिका दायर करने वाला ही नहीं है तो उस पर कार्यवाही क्या होगी?’’

‘‘वकील साहब, शायद आप भूल गए हैं कि दीवानी के दावे में दोनों पक्षों की मौजूदगी जरूरी नहीं है.’’ नवीन ने कहा.

नवीन की बात काटते हुए शशांक ने कहा, ‘‘बात दरअसल यह है कि मनोज के वकील ने ही उस पर दबाव डाल कर यह दावा कराया है. शायद इस तरह वह कुछ रकम कमाना चाहते थे. लेकिन जब मनोज को लगा कि इस मामले में कुछ नहीं होने वाला तो उस ने पीछे हट जाना ही मुनासिब समझा. इस मामले में मैं मनोज सोलकर के वकील से पूरी जिरह करना चाहता हूं.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...