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पैसे और दबंगई के नशे में दिलावर सिंह इतना क्रूर और अय्याश हो गया था कि वह किसी को कुछ नहीं समझता था. एक दिन उसी की पीडि़त बैंक कैशियर मालती ने उस से इस तरह बदला लिया कि...

मालती पुणे शहर में नईनई आई थी. वह भारतीय स्टेट बैंक में एक कैशियर थी. अपने काम के प्रति वह बहुत गंभीर रहती थी. ऐसे में मजाल है कि उस से कोई गलती हो जाए. वह बेहद खूबसूरत थी. जब वह मुसकराती तो लोगों के दिलों पर बिजली सी गिर जाती थी.

एक दिन वह सिर झुका  कर बैंक में बैठी अपना काम निपटा रही थी कि एक बुलंद आवाज ने उस का ध्यान तोड़ दिया. एक मोटेतगड़े आदमी ने कहा, ‘‘ऐ लौंडिया, पहले मेरा काम कर.’’ उस आदमी का नाम दिलावर सिंह था.

मालती ने देखा कि वह आदमी 2 गनमैन के साथ खड़ा था. उसे देख कर बैंक के सारे कर्मचारी खड़े हो गए. मैनेजर खुद बाहर आ कर उस से बोला, ‘‘दिलावर सिंहजी, चलिए मेरे चैंबर में चलिए. मैं खुद आप का काम करवा दूंगा.’’

दिलावर सिंह बोला, ‘‘मैनेजर तू अपने केबिन में जा. आज मुझे काउंटर से ही काम करवाने का मन हो रहा है. हां तो लौंडिया, मेरे ये 50 लाख रुपए जमा कर दे. तब तक मैं तेरा काम देखता हूं.’’

मालती ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘सर, आप के पहले से ये बुजुर्ग महाशय खड़े थे. पहले मैं इन को पेंशन दे दूं.’’

मगर दिलावर ने ममता की इस बात को अपना अपमान समझा, दिलावर सिंह उस बुजुर्ग से बोला, ‘‘क्यों भई बुजुर्ग महाशय के बच्चे, तू मेरे पहले यहां क्यों आया?’’

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