समय अपनी गति से गुजर रहा था. उधर प्रधान हुल भौपजी बहुत परेशान थे. उन्हें यह जानकारी मिल चुकी थी कि तीजनियां अब पाटण के बाग में हैं.
प्रधान हुल भौपजी अपने हुल पाटण भेज कर आगे की तैयारी में जुट गए. वह घोड़ों को पाटण के रास्तों पर दौड़ा रहे थे, ताकि उस रास्ते को घोड़े अच्छी तरह से पहचान जाएं, जिस से हमले के समय घोड़े रुके नहीं. उन जवानों का हुलिया राजकुमार जगमाल के हुलिए की तरह करा दिया गया था.
प्रधान हुल मौके की तलाश में लगे थे. आखिर उन के हाथ मौका लग ही गया. पाटण में गणगौर की सवारी बड़ी धूमधाम से निकल रही थी. हाथी खान भी खुश था. वह शहजादी को खुश करने में लगा था. शायद शहजादी रीझ कर उस से शादी कर ले. अगर ऐसा हो गया तो अहमदाबाद से पूरे गुजरात में उस का डंका बजेगा. इसी उम्मीद में वह शहजादी गींदोली की हर इच्छा पूरी कर रहा था.
तीजनियों के बगीचे की चौकसी उस ने बढ़ा दी थी, ताकि त्यौहार का फायदा उठा कर जगमाल वहां तक पहुंच न सके.
गणगौर के काफिले में प्रधान हुल भौपजी के साथी मौका मिलते ही घुस गए और गींदोली को पालकी से उठा कर यह जा वह जा करते हुए निकल गए. भौपजी ने गींदोली को अपने घोड़े पर बिठा कर ललकार लगाई, ‘‘महेवा के कुंवर जगमालजी का प्रधान हुल भौपजी तुम्हारी शहजादी को दिनदहाड़े ले जा रहा है. हिम्मत हो तो पकड़ लो.’’
इस के बाद पाटण अहमदाबाद के रास्ते पर दौड़ रहे प्रधान हुल के घोड़े के पीछे हाथी खान ने अपनी सेना के घुड़सवारों को लगा दिया. उन्होंने पचास कोस तक भौपजी का पीछा किया. लेकिन वे उन्हें पकड़ नहीं सके. प्रधान हुल शहजादी गींदोली को ले कर सीधे जगमाल के सामने पहुंचे. प्रधान के साथ एक रूपसी को देख कर जगमाल ने पूछा, ‘‘भौपजी, यह रूपसी कौन है?’’
‘‘हुजूर, यह सेनापति महमूद बेग की शहजादी गींदोली है. चरणों में हाजिर है.’’
जगमाल ने शहजादी को गौर से देखा. लगा जैसे आसमान से चांद उतर आया हो. रूपसी थरथर कांप रही थी. जगमाल गुस्से में बोले, ‘‘वाह प्रधानजी, वाह! अच्छा बदला लिया है. अच्छी बहादुरी दिखाई है. मुझे अपने यहां की वही तीजनियां चाहिए, जिन्हें हाथी खान ले गया था. किसी दूसरे की बहन बेटी नहीं.’’
‘‘वह भी हो जाएगा कुंवर सा, मैं ने ऐसा पांसा फेंका है, जिस से हाथी खान अब खुद तीजनियों को ले कर हाजिर होगा.’’ प्रधान हुल ने अपना इरादा व्यक्त किया.
जगमाल कुछ नहीं बोले. भौपजी ने गींदोली का अलग डेरा लगवा दिया और उस की सुरक्षा के अच्छे बंदोबस्त करा दिए. शहजादी गींदोली जगमाल की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गई थी. अब उसे तीजनियों की वे बातें याद आ रही थीं, जिस में उन्होंने जगमाल की इंसानियत और बहादुरी की तारीफ के पुल बांधे थे. शहजादी ने तीजनियों से जगमाल की जो प्रशंसा सुनी थी, वह वैसा ही निकला था.
दूसरे दिन जगमाल गींदोली के डेरे पर उस का हालचाल लेने पहुंचे. उन के साथ भौपजी भी थे. वह पर्दे की ओट से बोले, ‘‘शहजादी गींदोली, प्रधान हुलजी आप को उठा लाए, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं. मैं वादा करता हूं कि आप को आप के मातापिता के पास इज्जत के साथ पहुंचा दिया जाएगा. बस आप अपने पिताजी को तीजनियों को छोड़ने का पत्र लिख दीजिए.’’
गींदोली ने चुपचाप सिर हिला कर स्वीकृति दे दी और अपने अब्बू के नाम एक पत्र लिख दिया.
बेटी के पत्र के जवाब में महमूद बेग का उत्तर उतावली के साथ आया. अपनी पुत्री को देखने को वह तड़प रहा था. गींदोली उसे प्राणों से भी अधिक प्यारी थी. उसे छुड़ाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. वह हाथी खान को उस दिन के लिए कोसने लगा, जिस दिन वह तीजनियों का अपहरण कर लाया था.
न हाथी खान तीजनियों को लाता और न ही गींदोली दुश्मन के हाथों में पहुंचती. पर अब क्या हो सकता था. वह विवश बैठा हाथ मल रहा था कि जगमाल का दूत गींदोली का पत्र ले कर पहुंचा. दूत को उस ने मानसम्मान दे कर विदा किया और अपना हरकारा संदेश के साथ महेवा भेज दिया.
दूत के पहुंचने के पहले ही महमूद बेग का हरकारा खेड़ पहुंच चुका था. महमूद बेग के दूत ने कुंवर जगमाल को महमूद बेग का संदेश सुनाया, ‘‘अहमदाबाद के जांबाज सुल्तान महमूद बेग ने फरमाया है कि आप के प्रधान हुल ने बड़ा ही खराब काम किया है. इसे हम कभी भी माफ नहीं करेंगे.’’
दूत के वाक्य पूरा करने से पहले ही भौपजी की तलवार तन गई. कुंवर जगमाल ने उन्हें शांत करते हुए दूत से कहा, ‘‘अपनी बात आगे बढ़ाओ.’’
दूत बोला, ‘‘सुल्तान अपनी शहजादी के बदले में तीजनियों को छोड़ने को तैयार हैं. पर पहले शहजादी गींदोली को हमारे साथ भेजना होगा.’’
दूत को आराम करने को कह कर जगमाल ने भौपजी के साथ विचारविमर्श किया. तय हुआ कि सुल्तान तीजनियों को ले कर मालाणी की सरहद तक आएं और बदले में गींदोली को ले जाएं. दूत जवाब ले कर चला गया.
जगमाल तीजनियों को लाने के दिन की प्रतीक्षा करने लगे. गींदोली अपने डेरे में अपनी आजादी के दिन का इंतजार कर रही थी. पर उस के मन में जगमाल की तसवीर उभर रही थी. जगमाल राजपूती वीरता का उदाहरण था. गींदोली के मन में यह वीरता समा गई.
तीजनियों के साथ हुई बातचीत गींदोली के मन में उभरने लगी कि हिंदू नारी जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है. गींदोली परेशान हो उठी. वह अपने दिमाग में जगमाल की तसवीर बसा चुकी थी और जगमाल था कि परदा हटा कर उसे एक नजर भी नहीं देख रहा था.
नवाब के दूत का संदेश ले कर आने पर जगमाल खुद गींदोली से मिला. वह परदे की ओट से ही बोला, ‘‘शहजादी, आप के अब्बा हुजूर का संदेश आया है. अब आप शीघ्र ही आजाद हो जाएंगी. हमें इस तकलीफ में आप को रखना पड़ा, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं.’’
जगमाल की इंसानियत देख कर वह मन ही मन बोली, ‘‘कुंवरजी, अब मैं अहमदाबाद के महलों में नहीं जाऊंगी. आप का खेड़ का यह डेरा ही मेरा जीवन है.’’
अपनी बात को वह जुबान पर इसलिए नहीं लाई, क्योंकि वह मुसलमान थी. उसे इस बात का अंदेशा था कि जगमाल उसे स्वीकार नहीं करेंगे. बादशाह अलाउद्दीन की पुत्री और वीरम देव सोनगरा की कहानी वह सुन चुकी थी. मरने से पहले तक वीरम देव ने शादी के लिए हां नहीं की थी.
प्रेम जातिपांत नहीं देखता, इसलिए उस ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह जगमाल से ही शादी करेगी. वह अपनी दासी से हिंदू रीतिरिवाजों के बारे में पूछने लगी. दासी हंस कर बोली, ‘‘शहजादी साहिबा, आप को क्या करना है इस सब से?’’
गींदोली ने उसे मन की बात बताई तो दासी की आंखें खुली की खुली रह गईं. दासी ने उसे अंजली और जेठवा की प्रेम कहानी सुनाई, जो गुजराती थे. प्रेम कहानी सुनने के बाद गींदोली के पोर पोर में प्यार का समावेश हो गया. वह सोचने लगी कि लोग जिस तरह प्रेम को ले कर सारस और चकवा की चर्चा करते हैं, अब उस में गींदोली और जगमाल के प्रेम की चर्चा भी शामिल हो जाएगी.
क्रमशः