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उन दिनों मैं अमृतसर में तैनात था. मेरी रात की ड्यूटी थी. गजब की सरदी पड़ रही थी. उसी वक्त फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से तेज आवाज में कहा गया, ‘‘मैं अनिल बोल रहा हूं, डलहौजी से.’’

मुझे अचानक याद आ गया. अनिल सिन्हा बैंक में नौकरी करता था. पहले वह अमृतसर में तैनात था. बाद में ट्रांसफर हो कर डलहौजी चला गया था. एक मामले में मैं ने उस की मदद की थी. उस के बाद वह जब तब मेरे पास आने लगा था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘कहो कैसे हो, बहुत दिनों बाद आवाज सुनाई दी?’’

कुछ पल सन्नाटा छाया रहा. किसी व्यस्त सड़क से गाडि़यों की आवाज आ रही थी. फिर अनिल की घबराई हुई आवाज आई, ‘‘नवाज साहब, मैं यहां एक मुश्किल में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुश्किल?’’

‘‘कुछ गड़बड़ हो गई है, कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, मुझे खतरा महसूस हो रहा है. आप यहां आ सकते हैं क्या?’’

मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं वहां कैसे आ सकता हूं? वैसे परेशानी क्या है? हौसला रखो और मुझे बताओ.’’

‘‘नवाज साहब, बड़ा उलझा हुआ मसला है, फोन पर बताना मुश्किल है. अगर मुझे कुछ हो गया तो...’’ उस की आवाज रुंध गई, ‘‘देखें...देखें...’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘अनिल, घबराओ मत, मुझे बताओ क्या कोई झगड़ा हो गया है या कोई और बात है?’’

‘‘झगड़ा ही समझें, अगर मुझे कुछ हो जाए तो इस की वजह... रत्ना देवी वाले मामले को समझें. रत्ना देवी डाक्टर प्रकाश की बेटी है. वे लोग...’’

अनिल इतना ही बोल पाया था कि लाइन कट गई. मैं सोच में पड़ गया. अनिल की अधूरी बात ने मुझे बेचैन कर दिया. फिर उस का कोई और फोन नहीं आया. मैं उस के लिए परेशान हो गया. अनिल हंसमुख, बातूनी, पढ़ालिखा, स्मार्ट शख्स था और थोड़ा रंगीनमिजाज भी. लड़कियों से वह बहुत जल्दी बेतकल्लुफ हो जाता था.

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