12 सितंबर, 2014 को सुबह कोई 10 बजे की बात थी. चांदनी अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा कर कालेज जाने की  तैयारी कर रही थी कि उसी बीच उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह एक खास तरह की रिंगटोन थी. वह रिंगटोन उस ने अपने प्रेमी संदीप के फोन नंबर के साथ सेट कर रखी थी. इसलिए रिंगटोन बजाते ही वह समझ गई कि संदीप का फोन आया है.

संदीप का फोन आने पर उस का दिमाग गुस्से से झनझनाने लगा. एक समय ऐसा भी था, जब उस का फोन आता था तो वह मारे खुशी के फूले नहीं समाती थी, लेकिन अब उस का फोन आने पर वह टेंशन में आ गई. एक दफा तो उस के मन में आया कि वह फोन काट दे या यूं ही घंटी बजने दे. कुछ देर तक वह फोन नहीं उठाएगी तो वह अपने आप ही फिर फोन नहीं करेगा.

लेकिन दूसरे ही पल दिमाग में विचार आया कि नहीं, आज वह आखिरी बार उस से बात कर ही ले कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा. यही सोच कर उस ने फोन रिसीव कर लिया. तभी चिरपरिचित अंदाज में फोन करने वाला संदीप बोला, ‘‘मैं एकडेढ़ घंटे में आ रहा हूं, तुम तैयार रहना.’’

‘‘लेकिन सुनो तो…’’ चांदनी ने अपनी बात कहने की कोशिश की. संदीप जानता था कि वह क्या कहेगी, इसलिए अपनी बात कहने के बाद बोला, ‘‘अब जो भी कहनासुनना है, वहीं कहना. ओके, बस तुम तैयार रहना.’’

चांदनी और संदीप कमल द्विवेदी के कैलाशपुरी कालोनी स्थित घर पर मिलते थे. कमल द्विवेदी संदीप का दोस्त था, जो कैलाशपुरी वाले घर में अकेला रहता था. जब भी वे दोनों उस के घर पहुंचते, दोस्ती निभाते हुए वह उन्हें खुल कर मौजमस्ती करने का मौका देने के लिए उन्हें अकेला छोड़ कर बाहर चला जाता था.

संदीप ने चांदनी को कमल के घर पहुंचने को कहा था, इसलिए वह बेबसी से तैयार होने के नाम पर कपड़े बदलने लगी. एक वक्त था जब वह संदीप से मिलने कमल के घर जाती थी तो वह उस की पसंद के कपड़े पहनती थी. जाने से पहले वह खूब मेकअप करती थी और बीच रास्ते में उस के लिए चाकलेट आदि खरीद कर ले जाती थी. घर से निकलते ही उस का दिल करता था कि उड़ कर चली जाए. तब उस के पैरों में पंख लगे रहते थे और दिल बेतहाशा धड़कता था.

लेकिन अब बात और थी. आज वह मन ही मन सख्त फैसला ले कर संदीप से मिलने जा रही थी. उस के मन में बेचैनी थी कि जाने आज भी संदीप उस के सवालों का ठीकठाक जवाब देगा या नहीं या हमेशा की तरह अपनी हवस की आग बुझाएगा और थोड़ाबहुत समझाबुझा या दुलारपुचकार कर चलता बनेगा. इन्हीं खयालों में डूबी चांदनी ने कमरे पर ताला लगाया. चांदनी रीवां के गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही थी और रतहरा मोहल्ले में किराए पर रहती थी. कमरे पर ताला लगा कर वह बाहर आ गई.

सड़क पर धीरेधीरे पैदल चलती चांदनी अभी आधा किलोमीटर भी नहीं चली थी कि संदीप की बाइक उस के नजदीक आ कर रुकी. बगैर कुछ कहेसुने वह कूद कर संदीप के पीछे बैठ गई. संदीप तेज गति से बाइक चलाता हुआ कैलाशपुरी की तरफ निकल गया. वह इतनी नाराज थी कि उस ने रास्ते में उस से कोई बात नहीं की.

कमल ने जैसे ही अपने दोस्त को माशूका के साथ घर पर आया देखा, हर बार की तरह चुपचाप घर से बाहर निकल गया. संदीप और चांदनी एक कमरे में चले गए. अंदर पहुंचते ही संदीप ने पहला काम दरवाजा बंद करने का किया. इस के बाद हर बार की तरह उस ने चांदनी को अपनी बांहों में भर लिया और ताबड़तोड़ उसे चूमने लगा.

अपनी परेशानी में डूबी चांदनी को संदीप की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने उसे झटक दिया और बेहद सख्त लहजे में कहा, ‘‘आज यह सब नहीं चलेगा. पहले मेरे सवालों का जवाब दो.’’

संदीप के ऊपर तो मिलन का भूत सवार था. प्रेमिका के व्यवहार से उसे झटका लगा. मौके की नजाकत को समझते हुए उस ने अपनी जल्दबाजी और बेसब्री पर काबू में ही भलाई समझी. पर उसे इस बात का भरोसा था कि थोड़ी नानुकुर के बाद चांदनी नौरमल हो जाएगी. क्योंकि बीते एक साल से यही हो रहा था.

चांदनी हर बार उस से यही पूछती, ‘‘संदीप, तुम शादी कब करोगे. आखिरकार हमारे इस रिश्ते का नाम क्या है. मैं खुद को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रही. तुम आखिर समझते क्यों नहीं.’’

उस की बातों को वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता था. उस का मकसद अपनी वासना को शांत करना होता था, इसलिए वह किसी तरह उसे बहलाफुसला कर रास्ते पर ला कर अपनी इच्छा पूरी कर लेता था.

इस तरह पिछले 2 सालों में वह चांदनी की रगरग से वाकिफ हो चुका था. काफी देर तक वह प्रेमिका की बातों को सुनता रहा. चांदनी की बात पूरी हो जाने के बाद वह अपनी लच्छेदार बातों से उसे संतुष्ट करने की कोशिश करने लगा. मानमनुहार करते हुए काफी देर हो गई, लेकिन चांदनी उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. उस दिन वाकई बात जुदा थी.

अपनी बातों से बहलाने की कोशिश करते हुए संदीप को कोई एक घंटा बीत चुका था. चांदनी ने भी शायद खुद को उस के सामने समर्पण न करने का फैसला कर रखा था. तभी तो जब भी संदीप उसे स्पर्श करता, वह उस का हाथ झटक देती. जब काफी देर हो गई तो संदीप झुंझला कर बोला, ‘‘चांदनी, तुम यह बताओ कि हमारे बीच यह सब पहली बार थोड़े न हो रहा है, जो तुम इस तरह की बातें कर रही हो.’’

‘‘पहले जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. लेकिन अब नहीं होगा.’’ चांदनी बोली.

संदीप के सब्र का बांध टूट चुका था. वह भी जिद करते हुए बोला, ‘‘होगा, आज भी होगा और प्यार से नहीं तो रिवाल्वर से होगा.’’ कहने के साथ ही उस ने जेब से रिवाल्वर निकाल लिया.

‘‘तो तुम मुझे मारोगे, मेरी हत्या करोगे?’’ बजाय डरने के चांदनी बेखौफ हो कर बोली, ‘‘तो कर लो मन की. तुम्हारी आज हरगिज नहीं चलेगी.’’

चांदनी नहीं डरी तो संदीप और झल्ला उठा, ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा. सीरियसली कह रहा हूं कि सीधेसीधे मान जाओ, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या…’’

‘‘नहीं तो…’’ कहतेकहते संदीप ने उस के गुप्तांग पर निशाना साधते हुए गोली चला दी, जो कमर को चीरती हुई पार निकल गई.

चांदनी ने यह कभी सोचा भी नहीं था कि जिस प्रेमी को वह अपना सब कुछ सौंप चुकी थी, हवस के लिए वह उस का खून कर देगा. वह तो नाजनखरे दिखा कर उस से केवल शादी की बात पक्की करना चाहती थी. बहरहाल गोली लगते ही चांदनी की सलवार खून से लथपथ हो गई. संदीप ने प्रेमिका पर गोली तो चला दी, लेकिन खून देखते ही वह घबरा गया. उस के सिर से वासना का भूत उतर हो चुका था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे?

चांदनी असहनीय दर्द से जूझने लगी. संदीप से बोली, ‘‘संदीप मुझे अस्पताल ले चलो. मैं किसी से नहीं कहूंगी कि यह गोली तुम ने मारी है. अस्पताल वालों और पुलिस से कह दूंगी कि सेलिब्रेशन होटल के पास एक मोटरसाइकिल पर सवार अज्ञात लोगों ने उसे गोली मार दी. प्लीज, मुझे जल्दी ले चलो.’’

प्रेमिका की बात सुनने के बाद संदीप को भी लग रहा था कि चांदनी सच बोल रही है. इसलिए उस ने फोन कर के अपने दोस्त कमल द्विवेदी को बुला लिया और उसे संक्षेप में जानकारी दे दी. इस के बाद दोनों चांदनी को ले कर रीवां के नामी संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. कमल की परेशानी यह थी कि अगर चांदनी को उस के घर में कुछ हो जाता तो उस के लेने के देने पड़ जाते. लिहाजा वह संदीप का साथ देने को तैयार हो गया. इसलिए अपनी बोलेरो कार से वह चांदनी को अस्पताल ले गया.

आपातकालीन वार्ड में मौजूद डाक्टरों ने चांदनी की हालत देखते हुए उसे तुरंत भरती कर इलाज शुरू कर दिया. मामला पुलिस केस का लग रहा था, इसलिए अस्पताल की तरफ से इस की सूचना थाना सिविल लाइंस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही सिविल लाइंस के थानाप्रभारी बृजेंद्र मोहन दुबे तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लड़की का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की. डाक्टरों ने जब बताया कि लड़की बयान देने की हालत में नहीं है तो उन्होंने लड़की को अस्पताल लाने वाले संदीप और कमल द्विवेदी से बात की. उन से बात करने के बाद वह हैरानी में पड़ गए कि एक लड़की को दिनदहाड़े गोली आखिर किस ने मारी? और गोली भी उस के खास अंग को निशाना साधते हुए चलाई.

संदीप और कमल काफी हद तक अपनी घबराहट पर काबू पा चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि ठीक होने पर चांदनी भी पुलिस को गुमराह करने वाला बयान दे देगी और वह बच जाएंगे.

संदीप ने थानाप्रभारी को दिए बयान में बताया, ‘‘चांदनी पटेल हमारी परिचित है. वह यहीं के रतहरा मोहल्ले में रहती है. वह गर्वमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही है. इस का छोटा भाई राहुल मेरा दोस्त है. चांदनी ने दोपहर कोई साढ़े बारह बजे मुझे फोन पर बताया था कि वह कालेज जा रही थी, तभी सेलीब्रेशन होटल के पास अज्ञात युवकों ने पीछे से आ कर उसे गोली मार दी. यह खबर मिलने पर मैं ने तुरंत अपने दोस्त कमल द्विवेदी को फोन कर के बुलाया और उस की बोलेरो जीप में डाल कर अस्पताल ले आए.’’

संदीप ने पूरे आत्मविश्वास के साथ पुलिस को बयान दिया था, इसलिए पुलिस को उस पर कोई शक नहीं हुआ. चांदनी अभी बेहोश थी, उस के होश में आने के बाद ही पूरी जानकारी मिल सकती थी. इसलिए पुलिस उस जगह रवाना हो गई, जहां चांदनी को गोली मारने की बात बताई गई थी.

पुलिस ने होटल सेलिब्रेशन के आसपास के लोगों से अज्ञात बाइक सवारों द्वारा किसी लड़की को घायल करने के बारे में पूछा. तमाम लोगों से पूछताछ करने के बाद भी पुलिस को ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला, जिस ने गोली मारते देखी हो. वहां खून आदि के निशान भी नहीं मिले. पुलिस के लिए यह बात बड़ी ताज्जुब की थी. चांदनी की सलवार खून से तरबतर थी और घटनास्थल पर खून की बूंद तक नहीं गिरी थी. पहली ही नजर में मामला कोई दूसरा दिख रहा था.

उधर डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे थे. पुलिस को इंतजार था कि चांदनी होश में आ कर बयान दे, जिस से पता चले कि आखिरकार हुआ क्या था. चांदनी के घायल होने की खबर उस के घर वालों को दी गई तो उस के पिता और भाई संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. जैसेजैसे गांव वालों को चांदनी के घायल होने की जानकारी मिलती गई, वे अस्पताल पहुंचने लगे. कुछ ही देर में तमाम लोग अस्पताल के बाहर जमा हो गए.

अस्पताल में भीड़ बढ़ती देख रीवां के एएसपी प्रणय नागवंशी भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी संदीप से पूछताछ की. जिस कालेज में चांदनी पढ़ती थी, उस कालेज के भी तमाम छात्रछात्राएं अस्पताल पहुंच गए. लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. वे नारेबाजी करने लगे.

थोड़ी देर में एसपी के आदेश पर आसपास के थानों की पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस अधिकारियों ने जैसेतैसे लोगों को समझा कर आश्वासन दिया कि जल्दी ही हमलावरों का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे हुए थे, लेकिन उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. आखिरकार दोपहर कोई 3 बजे उस ने दम तोड़ दिया. चांदनी के मरते ही संदीप ने चैन की सांस ली कि घटना की हकीकत उस के साथ ही दफन हो जाएगी. पुलिस को सच्चाई पता नहीं चलेगी. लेकिन चांदनी के मरने के बाद पुलिस की चिंता और बढ़ने लगी, क्योंकि लोगों के उग्र होने की संभावना थी. पुलिस ने फटाफट चांदनी का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

इस के बाद पुलिस एक बार फिर होटल सेलिब्रेशन पहुंची. शायद इस बार वहां से हत्यारों के बारे में कोई क्लू मिल जाए. वह फिर से चश्मदीद को तलाशने लगी. काफी कोशिशों के बावजूद भी पुलिस को एक भी चश्मदीद नहीं मिला. आसपास के काम करने वाले लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने गोली चलने तक की आवाज नहीं सुनी. यह जान कर पुलिस को ताज्जुब हुआ कि इतनी बड़ी घटना हो गई और लोगों को पता तक नहीं चला. जबकि वह इलाका भीड़भाड़ वाला था.

इन बातों से पुलिस को संदीप के बयान पर शक होने लगा. लिहाजा पुलिस ने संदीप के बयान का पोस्टमार्टम करना शुरू किया. वह संदीप को घटनास्थल पर ले गई तो वह यह तक नहीं बता पाया कि वारदात किस जगह हुई थी.

अब पुलिस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था, लिहाजा पुलिस ने संदीप से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बयां कर दी. उस ने चांदनी से प्यार होने से ले कर हत्या तक की सिलसिलेवार जो कहानी बताई वह इस प्रकार निकली:

मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के रीवां जिले के एक गांव की रहने वाली चांदनी राजकीय कन्या महाविद्यालय से एमएससी कर रही थी. चूंकि रोजाना घर से कालेज आने में उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी, इसलिए उस ने रतहरा में किराए पर कमरा ले लिया. कमरे पर उस ने अपने छोटे भाई को भी रख लिया था. वह भी बहन के साथ रह कर पढ़ाई करने लगा.

उसी दौरान सैमसंग कंपनी में नौकरी करने वाले संदीप नाम के युवक से उस की दोस्ती हुई, संदीप को जब पता चला कि चांदनी के साथ उस का भाई भी रह रहा है तो चांदनी से नजदीकी बढ़ाने के लिए उस ने उस के छोटे भाई से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह चांदनी से मिलने लगा.

संदीप की चांदनी के साथ हुई दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. उन का प्यार परवान चढ़ते हुए इतना आगे निकल गया कि वे सारी हदें पार कर गए. उन के बीच जिस्मानी संबंध कायम हो गए. इतना ही नहीं, उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था.

काफी दिनों तक दोनों चोरीछिपे मिलते रहे. संदीप का एक दोस्त था कमल द्विवेदी, जो अपने जमाने के कुख्यात डकैत महेश द्विवेदी का बेटा था. कमल कैलाशपुरी स्थित मकान में अकेला रहता था. कमल संदीप और चांदनी के प्रेमप्रसंग से वाकिफ था. इसलिए संदीप चांदनी को कमल के घर पर मिलने के लिए बुला लेता था.

जब भी मन होता, वे कमल के घर पर मौजमस्ती कर लेते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद ही संदीप में बदलाव आना शुरू हो गया. जो संदीप जीवनभर प्रेमिका का साथ निभाने का वादा करता था, वह शादी करने से कतराने लगा. अब वह चांदनी को केवल मौजमस्ती का साधन समझने लगा. जब भी चांदनी उस से शादी की बात करती, वह कोई न कोई बहाना बना कर बात टाल देता था. चांदनी उस की बात समझ गई.

चूंकि वह अपनी इज्जत उस के हवाले कर चुकी थी, इसलिए उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. शादी की बात सुनते ही संदीप असमंजस में फंसा महसूस करता. फिर भी वह किसी तरह उसे झूठा भरोसा दे कर उस के साथ मौजमस्ती करने में कामयाब हो जाता था. 12 सितंबर, 2014 को चांदनी ने अपने उस के सामने देह समर्पण नहीं किया तो वह हैवान बन उठा और उसे गोली मार दी.

संदीप से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त कमल द्विवेदी को भी सह अभियुक्त बना कर उसे गिरफ्तार कर लिया. दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस मामले की तफतीश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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