short kahani in hindi : आदमी सोचता कुछ और है और हो कुछ और जाता है. इकबाल ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक अकबर को बैंक डकैती की योजना में शामिल तो इसलिए किया था कि काम का बंदा है, बाद में उस का हिस्सा हड़प कर निपटा देंगे. लेकिन ऐसा हो…

अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई. अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे.

ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले. इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था. 12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था. अकबर के बदन पर जहां मामूली कपड़े थे, वहीं इकबाल ने बढि़या सूट पहन रखा था. उस के रंगढंग बदल गए थे. दोनों एक होटल में बैठ कर बातें करने लगे, एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताने लगे. अकबर ने कहा, ‘‘बीटेक करने के बाद मैं एक औफिस से दूसरे औफिस में धक्के खा रहा हूं. यही नहीं, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है, उन्हें शुगर की बीमारी है. मां ने एक कंपनी में 2 लाख रुपए फिक्स करा दिए थे और 4 साल बाद 4 लाख रुपए मिलने थे.

‘‘लेकिन वह कंपनी साल भर बाद ही लोगों से करोड़ों रुपए ले कर चंपत हो गई. इस घटना ने मुझे बड़ा विद्रोही बना दिया है. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’’

‘‘मैं ने भी तेरी तरह बहुत धक्के खाए हैं. कुछ नहीं मिलता इन नौकरियों में. बस, घर की दालरोटी चल सकती है.’’ इकबाल के स्वर में कठोरता शामिल हो गई थी, ‘‘अगर तुम शान से जिंदगी बिताना चाहते हो तो कल शाम को मुझ से मिलो.’’

फिर उस ने अखबार के एक टुकड़े पर कोई पता लिख कर दे दिया. अकबर ने वह पर्ची ले कर अपनी जेब में रख ली. इकबाल आगे बोला, ‘‘मेरे पास एक औफर है. अगर मंजूर हो तो वहीं बता देना और अगर न हो तो तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते.’’ उस के बाद अकबर और इकबाल अपनेअपने घरों की ओर चल पड़े. अगले दिन इतवार था. अकबर को कहीं इंटरव्यू नहीं देना था इसलिए उस ने इकबाल को आजमाने का फैसला किया और उस के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान का गेट इकबाल ने ही खोला और उसे अंदर ले गया. चाय तैयार थी. चाय का कप अकबर को देने के बाद इकबाल ने अपनी बात शुरू की, ‘‘देखो अकबर, मैं जानता हूं कि तुम एक शरीफ आदमी हो मगर अब शराफत का जमाना नहीं रहा. मैं ने भी बहुत धक्के खाए हैं तुम्हारी तरह.

‘‘शायद जिंदगी भर धक्के ही खाता रहता, अगर मुझे नासिर भाई न मिलते. क्या शानदार दिमाग है उन के पास. यकीन करो, मैं उन के साथ रह कर हर महीने एक लाख रुपए कमाता हूं और कभीकभी उस से भी ज्यादा.’’

इकबाल की बात सुन कर अकबर हैरान रह गया, ‘‘एक लाख…वह कैसे?’’

‘‘हम बड़े काम में हाथ डालते हैं. गाडि़यां, बाइक्स छीनते हैं. बड़ीबड़ी दुकानों में डकैती डालते हैं. बंगलों के अंदर घुस जाते हैं. एक महीने में 2-3 वारदातें भी कर लीं तो एक लाख आसानी से बन जाता है,’’ इकबाल बोला.

अकबर सन्न रह गया. वह जानता था कि बेरोजगारी के इस दौर में अपना हक छीनना ही पड़ता है, मगर इकबाल तो उस से भी ऊपर की चीज था. वह बोला, ‘‘मगर यार, इस में तो बहुत खतरा है. पकड़े जाने का और जान जाने का भी.’’

‘‘मेरी जान, खतरे के बगैर कोई खेल नहीं खेला जाता. वैसे हमारी तरह के लोग इसलिए पकड़े जाते हैं कि पुलिस को मुखबिरी हो जाती है या कोई साथी गद्दारी कर जाता है. लेकिन यहां अपने साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. क्योंकि नासिर भाई पुलिस में हैं. वे सब संभाल लेते हैं.

‘‘पहले हम सिर्फ 2 लोग थे मगर अब हर वारदात में एक ऐसा बंदा जरूर रखते हैं जो अपने काम में पारंगत हो. जैसे पिछली बार हमारे साथ तिजोरियों का लौक तोड़ने वाला एक माहिर आदमी था,’’ इकबाल ने कहा.

‘‘तो ऐसा एक बंदा स्थायी रूप से क्यों नहीं रख लेते,’’ अकबर ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, हम ऐसा नहीं करते. हमारे ग्रुप की परंपरा है कि एक बंदा सिर्फ एक वारदात में साथ देता है. इस बार खेल बड़ा है, इसलिए भरोसे के आदमी की जरूरत है. हमें कंप्ूयटर का एक माहिर आदमी चाहिए.

‘‘तुम ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. अगर तुम हमारे साथ मिल जाओ तो हमारा काम बड़ी आसानी से हो सकता है. 3-4 करोड़ का खेल है. अगर कामयाब रहे तो 50 लाख तेरे, 50 लाख मेरे और बाकी नासिर भाई के. अगर मंजूर है तो बताओ.’’ इकबाल बोला. 50 लाख की बात सुन कर अकबर की आंखें फैल गईं. अगर उसे कोई छोटीमोटी नौकरी मिल भी गई तो गुजारा भर ही हो पाएगा. और कहां 50 लाख, वह कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘मुझे कुछ वक्त दो.’’

‘‘हां, अभी काफी वक्त है. यह काम एक महीने बाद करना है और ये पैसे रख लो.’’ इकबाल ने 10-15 हजार रुपए निकाल कर अकबर की जेब में ठूंस दिए. फिर वह अकबर से बोला, ‘‘पैसों की परेशानी से दूर रह और अपना पहनावा ठीक कर. लेकिन बात बाहर न जाने पाए.’’

अकबर उस के स्वर में छिपी धमकी को समझ गया था. उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. कुछ देर बाद वह ढेरों सोचों को दिमाग में समेटे अपने घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया. मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.

अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था. नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.

रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है. असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’

थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया. जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’

अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.

‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’

तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’

‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.

‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.

‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.

‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.

यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते. इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.

सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.

ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े. बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था. अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया.

कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी. इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी. बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.

मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर 2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले. गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.

बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता. वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका. ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम  को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था. दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.

उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’ इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं. 25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’

तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’

नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.

‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.

‘‘अभी हाल में हम ने सरकारी खजाना लूटा था, जिस के लिए राइफल के एक निशानेबाज की जरूरत थी. बाद में हम ने उसे भी यहीं दफना दिया. यहां ऐसे ही कई हुनरमंद लोग दफन हैं. लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारी लाश का क्या किया जाए.

खैर, हम आपस में सलाह कर लेंगे. शीजा तो हमें 2-4 रात जन्नत की सैर कराएगी, फिर उस के बारे में सोचेंगे कि क्या करना है.’’

नासिर की बात सुन कर अकबर के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बारीबारी से नासिर और इकबाल से दया की भीख मांगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अकबर शीजा के बारे में सोच रहा था. उस ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर धांय की आवाज के साथ गोली चली. लेकिन अकबर को दर्द का अहसास नहीं हुआ. मगर इकबाल की चीख कमरे में गूंज उठी. उस के दाएं हाथ में गोली लगी थी और पिस्टल उस के हाथ से छूट कर दूर जा गिरी थी. नासिर ने चौंक कर पीछे देखा. वहां रिवौल्वर हाथ में लिए शीजा खड़ी मुसकरा रही थी.

‘‘अकबर सौरी, मुझे कुछ देर हो गई. तुम ठीक तो हो न?’’ वह रिवौल्वर से इकबाल और नासिर को कवर करती हुई बोली.

शीजा को इस रूप में देख कर नासिर बौखला उठा था, जबकि इकबाल अपने जख्मी हाथ का खून रोकने की कोशिश कर रहा था. अकबर बोला, ‘‘हांहां, मैं ठीक हूं.’’

फिर वह आगे बढ़ कर शीजा के गले लग गया. तभी नासिर गुर्रा कर बोला, ‘‘ठीक है, खूब गले मिलो. लेकिन यहां से बच कर नहीं जा पाओगे.’’

‘‘यह बात तुम ने गलत कही, अभी देख लेना. खैर, तुम ने अपनी परंपरा बता दी, अब मेरी भी परंपरा सुन लो. मैं जिन पर शक कर लेता हूं, उन्हें उन की गलती की सजा जरूर मिलती है.’’ अकबर ने कुटिल स्वर में कहा.

नासिर बोला, ‘‘कौन सजा देगा मुझे… तुम?’’

फिर उस ने ठहाका लगाते हुए अपनी जेब की ओर हाथ बढ़ाया, तभी पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी तथा कई पुलिस वाले कमरे में घुस आए.

‘‘हैंड्सअप! मैं तुम्हें दूंगा सजा नासिर. कानून तुझे सजा देगा नमकहराम. तूने पुलिस विभाग को बदनाम कर दिया.’’ पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी ने गुस्से से कहा.

पुलिस वाले नासिर और इकबाल को गिरफ्तार कर चुके थे. इकबाल और नासिर की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया. दरअसल, अकबर और शीजा एक ही कालेज में 12वीं तक साथसाथ पढ़े थे तथा एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन शीजा के पिता की अचानक मौत हो जाने पर उसे अपने गांव जाना पड़ा और वह वहीं रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगी थी जबकि अकबर ने बीटेक कंप्यूटर साइंस में दाखिला ले लिया था. इसी कारण दोनों बिछुड़ गए थे. जब नासिर ने शीजा का अकबर से परिचय कराया तो वे एकदूसरे से अपरिचित बने रहे ताकि इकबाल और नासिर को कोई गलतफहमी न होने पाए. लेकिन वे उस के बाद एकदूसरे से बराबर मिलते रहे. दोनों को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे नासिर और इकबाल का साथ देने को तैयार हो गए.

लेकिन बैंक डकैती के कुछ दिनों बाद जब बैंक के दोनों गार्ड्स की अचानक हत्या हो गई तो शीजा और अकबर को अपने बारे में सोचना पड़ा. नासिर और इकबाल ने अभी पैसों का बंटवारा नहीं किया था और कुछ दिनों बाद उन्हें उसी मकान में बुलाया था लेकिन अकबर को शक हो गया था कि वे लोग उसे और शीजा को नुकसान पहुंचाएंगे. इसलिए अकबर और शीजा पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी से मिले जो शीजा के दूर के मामा लगते थे. उन्होंने सारी बात जफर जीलानी को बता दी. फिर शीजा और अकबर ने वैसा ही किया, जैसा जफर जीलानी ने उन से कहा था. इस घटना के बाद कई डकैतियों और लूटपाटों का परदाफाश हो गया तथा काफी मात्रा में रुपए और जेवरात बरामद हुए.

कई लोगों के गायब होने की गुत्थी भी सुलझ गई, जिन्हें नासिर और इकबाल ने मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी शीजा और अकबर के व्यवहार तथा हिम्मत से बहुत खुश हुए. उन्होंने दोनों को वादामाफ गवाह बना दिया. जल्दी ही इकबाल और नासिर को सजा सुना दी गई. जबकि शीजा और अकबर को पुलिस के साइबर विभाग में नौकरी मिल गई. short kahani in hindi

 

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