Hindi Kahani : सूरतशक्ल से भले ही बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है, लेकिन है वह बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उस के सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं. उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों. लेकिन एके 47 को वह खिलौने जैसे चलाती थी. अनुराधा सिंह चौधरी जब भी लोगों को नजर आई, पैंट शर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने नहीं देखा. लंबीदुबली, पतली छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी लेकिन वह थी कितनी खूंखार इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है.
राजस्थान के सीकर के फतेहपुर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वे नन्ही मिंटू को ले कर दिल्ली आ गए. यहां पैसा बरसा तो नहीं लेकिन कभी फांके की नौबत भी नहीं आई. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.
निश्चित रूप से इस के पीछे उस की लगन का बड़ा हाथ था और तीक्ष्ण बुद्धि का भी जिस से अभावों में रहते और पढ़ते हुए उस ने कभी असफलता का मुंह नहीं देखा. पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया. दिल्ली में रहते उस ने फर्राटे से अंगरेजी बोलने के साथसाथ यह भी सीख लिया था कि प्यार निहायत ही व्यक्तिगत मामला है और हर किसी को अपनी जिंदगी के फैसले लेने का हक है. लिहाजा उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.
यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी. शेयर बाजार का घाटा पहला मोड़ दीपक भी अनुराधा की तरह महत्त्वाकांक्षी था, जो सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी तो उसे राहत मिली. लेकिन यह राहत जल्द ही आफत बन गई, क्योंकि शेयर मार्केट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे. गलत नहीं कहा जाता कि शेयर मार्केट किसी का सगा नहीं होता, जिस ने इन दोनों के साथ जरूरत से ज्यादा सौतेलापन दिखाया.
मुनाफा तो रत्ती कौड़ी का भी नहीं हुआ, उलटे जब नुकसान होना शुरू हुआ तो पतिपत्नी दोनों घबरा उठे कि अब क्या करें. लेकिन अब करने को कुछ नहीं बचा था. कर्ज में डूबे दीपक और अनुराधा पर उन के कहने पर शेयरों में पैसे लगाने वाले रोजरोज तकाजा करने लगे थे, जिस से इन का खानापीना सोना तक दूभर हो चला था. अब अनुराधा को जिंदगी के असल मायने समझ आए कि पैसा कमाना कोई बच्चों का खेल नहीं और यूं ही शेखचिल्ली की तरह सपने देख कर कोई रातोंरात रईस नहीं बन जाता. उस की जिंदगी का यह ऐसा मोड़ था, जहां न तो पढ़ाईलिखाई काम आ रही थी और न ही प्यार कोई हिम्मत या ताकत दे पा रहा था. फिर किसी और से किसी तरह की उम्मीद लगाना एक फिजूल की बात थी.
लेनदारों के बढ़ते दबाब से निबटने के लिए उस ने जो रास्ता चुना या वह उसे आसानी और इत्तफाक से मिल गया था, जो हालांकि और भी ज्यादा सरदर्दी वाला था. लेकिन इस राह पर पहला कदम रखते ही उसे लगा कि जिंदगी के तमाम मकसद इसी से पूरे हो सकते हैं और यही रास्ता उसे मंजिल तक ले जा पाएगा जो फौरी तौर पर मौजूदा परेशानी से भी छुटकारा दिला रहा है. यह रास्ता जुर्म का था, जिस ने अनुराधा सिंह नाम की इस युवती की जिंदगी बदल डाली. जिंदगी सिर्फ अनुराधा की ही नहीं बल्कि राजस्थान के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की भी बदल गई, जिस से जुर्म का ककहरा अनुराधा ने सीखा था.
जब दीपक और अनुराधा लेनदारों के डर से मुंह छिपाने को मजबूर हो चले थे, तभी अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई. बलबीर खुद तो अनुराधा के लिए कुछ नहीं कर सका लेकिन जाने क्या सोच कर उस ने अनुराधा की मुलाकात आनद पाल सिंह से करवा दी. दोनों ने एकदूसरे को देखा, परखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं. आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही, जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे. राजपूत समुदाय के लोग उसे रौबिनहुड आज भी मानते हैं.
दूसरा मोड़ – आनंद की संगत आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए तो उस के खुराफाती दिमाग की ट्यूबलाइट जोरों से चमकने लगी. अनुराधा ने देखा और महसूसा कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े में ही संतुष्ट हो जाता है. उस का हुलिया और रहनसहन भी आम गुंडेमवालियों जैसा है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया और वह भी अपनी प्रेमिका की तरह फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगा. कल तक देसी तरीके से रहने वाला यह जरायमपेशा मुजरिम फिल्मों के उन खलनायकों जैसा नजर आने लगा जो आलीशान इमारतों में रहते हैं. सर पर हैट लगाते टिपटौप दिखते हैं और अपराध करने का उन का अपना एक अलग स्टाइल होता है.
जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया. अनुराधा के लिए भी अपने पहले प्यार के कोई माने नहीं रह गए थे. उस के अंदर की रूमानियत आनंद की संगत में कभी खत्म न होने वाली क्रूरता में बदल चुकी थी. इन दोनों ने फिर एकदूसरे से कभी कोई वास्ता नहीं रखा. हां, इतना जरूर हुआ था कि अब कोई उसे पैसे मांगने तंग नहीं करता था क्योंकि उस की पत्नी राजस्थान के डौन आनंदपाल सिंह की रखैल थी, जिस से पुलिस भी कांपती थी. न कहने की कोई वजह नहीं कि अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी. जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिए थे.
गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे. यह सरनेम उसे पति से मिला था. अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद भी उस के ग्लैमर और अभिसार में डूबा अपनी पत्नी राज कंवर और बेटियों योगिता और चरंजीत कंवर चौहान को भूल चुका था. लेकिन तब तक एक बात वह अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है जिस में रिवर्स गियर नहीं होता. खुद अनुराधा भी अब पीछे मुड़ कर देखने की ख्वाहिशमंद नहीं थी और कभी होती भी तो उस के जुर्मों का बढ़ता ग्राफ और मोटी होती पुलिसिया फाइल उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देते. उसे दौलत चाहिए थी जो उस पर छमाछम बरस रही थी.
बहुत जल्द वह पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी, वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें खौफ से जरूर झुक जाते थे. और यही शायद अपनी जिंदगी का मकसद भी उस ने बना लिया था, जिस के अंजाम से भी वह वाकिफ थी लेकिन भयभीत कभी नहीं रही. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी, खासतौर से अपहरण कर फिरौती वसूलना उस का पसंदीदा अपराध था जिस की वह विशेषज्ञ हो चली थी. अनुराधा ने पहला अपराध कब किया, यह अब शायद वह भी न बता पाए.
लेकिन बाकायदा वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. तब पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का इनाम भी रखा था. इस वक्त तक आनंद के सर कोई 5 लाख रुपए का इनाम घोषित था जो उस की मौत तक बढ़तेबढ़ते 10 लाख रुपया हो गया था. जाहिर है, खुद के नाम से पहला मामला दर्ज होने तक अनुराधा के किए जुर्म आनंद के खाते में दर्ज हो रहे थे. करीब 10 साल इन दोनों ने बिना किसी खास दिक्कत के गुजारे. लेकिन राजस्थान में बबंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया.
दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदरा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने कर दी थी जिस से पूरा राज्य हिल उठा था. वारदात के दिन डीडवाना में जीवनराम जब अपनी दुकान के नीचे कुछ दोस्तों के साथ बैठा था, तभी आनंद और उस के साथियों ने दिनदहाड़े उसे गोलियों से भून दिया था. तीसरा मोड़ – एक गवाह का अपहरण दिलचस्प बात यह है कि जीवनराम और आनंद कभी पक्के दोस्त हुआ करते थे. साल 1992 में आनंद की शादी की रस्म बिन्नाइकी या बिंदौरी (एक रस्म जिस में दूल्हा अपने मोहल्ले या गांव में घूमता है) को कुछ दबंगों ने रोक लिया था, तब जीवनराम ने ही उस की मदद की थी जो उन दिनों छात्र नेता हुआ करता था.
तभी से गुस्साए आनंद ने जुर्म का रास्ता पकड़ लिया था, लेकिन जीवनराम से उस की दुश्मनी की ठोस वजह किसी को नहीं मालूम सिवाय इस के कि बाद में कभी जीवनराम ने उस के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल कर दिया था. इस हत्याकांड की गूंज राजस्थान विधानसभा में भी सुनाई दी थी. जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. तब उस के साथ गिरोह के और मेंबर भी थे. इंद्रचंद्र को पुणे के एक फ्लैट में बंधक बना कर रखा गया था, जिस ने एक दिन मौका पा कर एक पर्ची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हू और मुझे मदद की जरूरत है.’
पर्ची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे. जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया. लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से मार गिराया. इस मौत पर खूब बवाल मचा था. राजनीति भी हुई थी और राजपूत समुदाय के लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन भी किया था. तब प्रशासानिक हलकों खासतौर से पुलिस महकमे में यह चर्चा गर्म रही थी कि आनंद के मरने से उस की दहशत कम नहीं हुई है. क्योंकि उस की वारिस अनुराधा अब इस गैंग की कमान संभालेगी.
लेकिन यह आशंका पूरी तरह सच नहीं निकली, क्योंकि डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से वह इधरउधर भागती रही तो लोग उसे भूलने लगे. क्योंकि आनंद नाम की दहशत से तो राजस्थान आजाद हो ही चुका था. कहते हैं, हर कामयाब मर्द के पीछे किसी औरत का हाथ होता है लेकिन अनुराधा पर यह कहावत उलटी बैठती थी, जिस की कामयाबी के पीछे हर बार मर्द का हाथ रहा. अब तक वह इतनी बदनाम और वांटेड हो चुकी थी कि चाह कर भी जुर्म की दुनिया नहीं छोड़ सकती थी. जिस दिन वह पहचान ली जाती तय है, उसी दिन पुलिस की मेहमानी करती भी नजर आती.
काला से मुलाकात चौथा मोड़ इसी फरारी के दौरान सहारा और संरक्षण ढूंढती अनुराधा लारेंस विश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था जैसे भी हो पुलिस से बचना. हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह यानी लारेंस विश्नोई से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई. आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. दोनों में डील हुई और अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिया, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था.
फर्क इतना भर आया कि दोनों ने इस डील के तहत हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी कर ली. यह और बात है कि वे शुरू से ही रह तो पतिपत्नी की तरह ही रहे थे. काला जठेड़ी का असली नाम संदीप काला है, जो हरियाणा के सोनीपत के जठेड़ी गांव का रहने वाला है. गांव का नाम तो उस ने तखल्लुस की तरह जोड़ लिया था. संदीप को कम उम्र से ही जुर्म का चस्का सा लग गया था. 12वीं क्लास में आतेआते वह पेशेवर मुजरिम बन चुका था. पेट पालने के लिए उस ने केबल औपरेटर का काम शुरू किया था, लेकिन साल 2004 में झपटमारी के एक केस में वह पहली बार गिरफ्तार हुआ था. कुछ साल बाद ही उस का नाम सांपला और गोहाना में हुई कत्ल की वारदातों से जुड़ गया. इस के बाद वह जुर्म की दुनिया का एक अहम और जरूरी नाम बनता गया.
हत्या, अपहरण, लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह काला जठेड़ी की जिंदगी के हिस्से और किस्से बनते गए. नई दिल्ली और एनसीआर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब व उत्तराखंड में भी उस की तूती बोलने लगी थी. अपने गैंग में उस ने शूटरों की फौज भर रखी थी, जो उस की असली ताकत हुआ करते थे. पुलिस से आंख मिचौली काला के लिए रोजमर्रा की बात हो चली थी. दिनोंदिन उस का आतंक पुलिस के लिए सरदर्द बनता जा रहा था. क्योंकि ठिकाने बदलने में वह माहिर था. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे. उस में और आनंद में कई समानताएं अनुराधा को नजर आई थीं.
काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी. उस के सर अगर 10 लाख का इनाम था तो काला पर भी हरियाणा पुलिस ने 7 लाख रुपए का इनाम रखा था. काला पर भी आनंद की तरह दरजनों मामले दर्ज थे. उस ने अनुराधा को अपने गिरोह में इसलिए भी आसानी से शामिल कर लिया था कि वह आनंद के गिरोह में काम कर चुकी थी इसलिए उसे हालात से निबटने का तजुर्बा था. दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी, जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था. ठीक वैसे ही जैसे आनंद के गिरोह में मैडम मिंज का खिताब उसे मिला था.
पुलिस और खुफिया एजेंसियों से भी काला जठेड़ी और अनुराधा की जुगलबंदी की बात छिपी नहीं रह गई थी. लेकिन इन शातिरों को गिरफ्तार कर लेना कोई आसान काम भी नहीं था, जिन के खिलाफ मारे डर के कोई मुखबिरी करने भी तैयार नहीं होता था. फिर भी पुलिस की निगाह में तो यह नया क्रिमिनल कपल चढ़ चुका ही था. इंतजार था तो एक मुनासिब मौके का. काला को अनुराधा से एक फायदा आनंद की विरासत का भी मिला. राजस्थान में अब तक लेडी डौन के भी नाम से भी मशहूर हो चली अनुराधा ने फिर से अपहरण की वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया, क्योंकि वह यहां के चप्पेचप्पे से वाकिफ हो गई थी.
कुछ दिन पहले तक यानी आनंद की मौत के बाद अकेले रहते उस की हिम्मत राह चलते आदमी को छेड़ने की नहीं पड़ती थी, पर काला का साथ मिलते ही वह फिर से अपने पुराने फार्म में वापस लौट आई थी. फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली फिर गरमा उठी. क्योंकि इस वारदात में एक और गैंगस्टर नीरज बबाना का भी नाम आया और काला जठेड़ी का भी आया, जिस से अपनी जान को खतरा जेल में बंद सुशील पहलवान ने जताया था. (इस हाई प्रोफाइल मामले के बारे में पाठक मनोहर कहानियां के पिछले अंक में पढ़ चुके हैं) अब पुलिस की स्पैशल सेल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह भागता फिरा और देश के कई हिस्सों में उस ने फरारी काटी. इस दौरान अनुराधा उस के साथ ही रही.
जठेड़ी गैंग की दिलचस्पी दिल्ली-एनसीआर की झगड़े वाली जमीनजायदाद पर ज्यादा रहती थी, क्योंकि इस में मुनाफा ज्यादा होता है और रिस्क कम. जमीनों से कब्जे हटवाना और कब्जे करवाना इस गैंग के बाएं हाथ का खेल होता था. इस काम को अंजाम हथियारों के दम पर दिया जाता था. बड़ेबड़े बिल्डर्स से ले कर छोटेमोटे भूमि स्वामी तक जठेड़ी जैसे गैंगस्टर की सेवाएं लेते हैं क्योंकि मामला अगर अदालत में जाए तो वक्त और पैसा दोनों बरबाद होते हैं और जितना पैसा मुकदमेबाजी में लगता है उतने में ये गैंगस्टर रातोंरात पैसा देने वाले के हक में इंसाफ करा देते हैं. क्लाइमेक्स अनुराधा इस काम में सहायक भर थी, लेकिन जैसे ही काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सेल जुटी तो वह फिर चिंतित हो उठी.
क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउन्टर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सर पर भी लटकने लगी थी. दिल्ली में डर और खतरा इस बात का भी था कि कहीं गैंगवार न हो जाए क्योंकि जेल में बंद रहते अपना गिरोह चला रहे नीरज बबाना गैंग की पुरानी दुश्मनी काला से थी. लेकिन लारेंस विश्नोई के गैंग का साथ उसे मिला हुआ था. यह वही लारेंस विश्नोई है, जिस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को धमकी दे कर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. पहलवान से मुजरिम बन चुके सुशील ने भी काला की सेवाएं और सहायता कुछ मामलों में ली थी. सागर धनखड़ की हत्या के वक्त सुशील और उस के साथियों ने एक और शख्स सोनू महाल की पिटाई की थी, जो काला का राइट हैंड है और रिश्ते में उस का भांजा भी लगता है. इसलिए सुशील उस से डरा हुआ था.
इस के पहले 2 फरवरी, 2020 को काला ने पुलिस कस्टडी से फरार हो कर सब को चौंका दिया था. इस दिन गुड़गांव पुलिस उसे एक पेशी के लिए फरीदाबाद अदालत ले गई थी. वापसी में गुड़गांव रोड पर काला के गुर्गों ने फिल्मी स्टाइल में ताबड़तोड़ फायरिंग कर काला को छुड़ा लिया था, जिस से पुलिस की खासी किरकिरी हुई थी. यह मामला डबुआ थाने में दर्ज हुआ था. फरार हो कर वह कहां गया और छिपा, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. लेकिन यह अंदाजा हर किसी को था कि अनुराधा उस के साथ है. इन दोनों के नेपाल में होने का अंदेशा था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी, हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.
काला को घिरता देख अनुराधा ने 70 – 80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था. अपनी नई पत्नी के कहने पर काला विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. दिल्ली का होने के चलते दोनों सिख समुदाय के रीतिरिवाजों और बोलचाल के लहजे से खूब वाकिफ थे, इसलिए कोई उन पर आसानी से शक नहीं कर सकता था. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.
इतना ही नहीं, अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था, जिस से वह यह सोचते इन की ढूंढाई में ढील दे दे कि जब वे भारत में हैं ही नहीं तो तलाश में यहां वहां सर खपाने से क्या फायदा. आनंद पाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.
असल में नेपाल से हवाला के जरिए पैसे कनाडा के एक गैंगस्टर गोल्डी बरार को भेजे जाते थे, जिन्हें गोल्डी ई वालेट के जरिए पैसा इन दोनों को वापस भेज देता था और जांच एजेंसियों को हवा भी नहीं लगती थी कि मनी ट्रोलिंग कैसे और कहांकहां से हो रही है. अनुराधा के इसी खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से भी बात न करे. क्योंकि आजकल मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता यही होता है. अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गे को बताता था कि उसे अमुक या फलां से बात करनी है.
विदेश में बैठा वह गुर्गा अपने एक फोन से अमुक या फलां को काल करता था और दूसरे से काला को, दोनों फोन के स्पीकर औन कर दिए जाते थे जिस से काला की बात आराम से यानी बिना किसी डर के अमुक या फलां से हो जाती थी. लेकिन इन दोनों को इल्म भी नहीं था कि पुलिस इन्हें पकड़ने के लिए कमर कस चुकी है जिसे आपरेशन ओपीडी- 4 नाम दिया गया है और उस की टीमें इन की टोह ले रही हैं और वही ट्रिक अपना रही हैं, जो इन्होंने अपना रखी है. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पेशल टीम ने लारेंस विश्नोई को मोहरा बनाया, जो जेल में बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए विश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही. एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि विश्नोई ने काला से भी बात कर डाली.
उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही, जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली. पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं. बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल विश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा ही हुआ भी. अनुराधा खुद को बहुत स्मार्ट और चालाक समझती रही थी, जो यह भूल चुकी थी कि कानून के हाथ वाकई बहुत लंबे होते हैं और यह कहने भर की बात नहीं है.
अब जेल में पड़ेपड़े अपनी गुजरी जिंदगी के बारे में सोचने का उस के पास वक्त ही वक्त है कि कैसे सीकर के छोटे से गांव में जन्मी मिंटू लेडी डौन बन गई और इस से उसे क्या हासिल हुआ. दीपक से नाता तोड़ने के बाद वह भागती ही रही थी. आनंद और काला के साथ रहते उसे पैसा तो खूब मिला लेकिन सुकून और औलाद के सुख से वह महरूम रही तो इस की जिम्मेदार भी वही है. जिस ने अपनी मरजी से जुर्म का रास्ता चुना था और दिलचस्प बात यह कि उस के दोनों आशिक भी कहीं के नहीं रहे. पहला एनकाउंटर में मारा गया तो दूसरा उसी की तरह जेल में पड़ा अपने गुनाहों की फेहरिस्त देखता अपने अंजाम का इंतजार कर रहा है. Hindi Kahani