Crime Kahani : रंगेहाथों पकड़ी जाने पर अमन कौर ने प्रेमी डाक्टर के साथ मिल कर सास जीत कौर की हत्या कुछ इस तरह से की थी कि किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ. लेकिन उस की अलमारी से मिली फाइल ने उस की पोल खोल दी. इस में कोई 2 राय नहीं कि अवैधसंबंध हमेशा बरबादी ही लाते हैं. न जाने कितने परिवार अवैधसंबंधों की बलि चढ़ गए हैं, इस के बावजूद न अवैधसंबंधों में कोई कमी आ रही है और न इस से होने वाले अपराधों में. मजे की बात यह है कि इस के दुष्परिणाम को जानते हुए लोग जानबूझ कर इस आफत को न्यौता देते हैं.
समाज में ऐसे ढेरों किस्से हैं, जो रहस्य के गर्भ में दफन हो कर रह गए हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि जिस तरह पानी में गंदगी छिपी नहीं रह सकती है, उसी तरह समाज की इस गंदगी की भी पोल कभी न कभी खुल ही जाती है. यह भी ऐसा ही मामला है. बीबी जीत कौर की हत्या का मामला भी शायद रहस्यों की अंधेरी परतों में दबा रह जाता, अगर उन की रहस्यमयी मौत से उठे चंद सवालों ने उस के बेटे लवप्रीत को यह सोचने के लिए विवश न कर दिया होता कि उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं, सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या है.
सरदार जगमोहन सिंह का परिवार पटियाला के घग्गा गांव में रहता था. गांव में उन के पिता हाकम सिंह की काफी उपजाऊ जमीन थी, जिस पर वह भाई के साथ मिल कर खेती करते थे. 32 साल पहले जगमोहन की पंजाब नहर एवं सिंचाई विभाग में नौकरी लग गई तो वह पटियाला आ कर रहने लगे. नौकरी लगने के बाद पिता ने उन की शादी जिला पातड़ा की जीत कौर से कर दी थी. शादी के लगभग 2 सालों बाद जगमोहन सिंह के घर बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उन्होंने लवप्रीत सिंह रखा. लवप्रीत के पैदा होने के 2 सालों बाद ही जगमोहन सिंह के पिता हाकम सिंह की मौत हो गई तो दोनों भाइयों ने जमीन का बंटवारा कर लिया.
बंटवारे में मिली अपने हिस्से की जमीन बेच कर जगमोहन सिंह ने पटियाला के बाहरी क्षेत्र में विकसित हो रही नई कालोनी त्रिपुड़ी में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई और उसी में पत्नी जीत कौर और बेटे लवप्रीत सिंह के साथ रहने लगे. लगभग 10 साल पहले सन 2004 में एक सड़क दुर्घटना में जगमोहन सिंह की मौत हो गई. जीत कौर के लिए यह तोड़ देने वाला दुख था. लेकिन वह खुद टूट जातीं तो बेटे का क्या होता. उन्होंने खुद को संभाला और बेटे लवप्रीत का लालनपालन करने लगीं. उन्होंने उसे उच्च शिक्षा दिलाई, जिस की बदौलत उसे गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सहायक मैनेजर की नौकरी मिल गई.
नौकरी की वजह से लवप्रीत सिंह गुड़गांव आ गया तो जीत कौर अकेली पड़ गईं. लवप्रीत महीने, 2 महीने में 1-2 दिनों के लिए पटियाला मां से मिलने जाया करता था. ऐसे में अपना समय काटने के लिए जीत कौर कुछ दिनों के लिए देवर के यहां चली जातीं तो कभी अपने मायके पातड़ा. वैसे वह अपना ज्यादातर समय गुरुद्वारों में जा कर भजनकीर्तन में गुजारती थीं. लवप्रीत सिंह के अलावा उन के रिश्तेदारों को भी जीत कौर के अकेली रहने की चिंता सताती थी. इसलिए रिश्तेदार उन पर लवप्रीत की शादी के लिए दबाव बनाने लगे. उन लोगों का कहना था कि घर में बहू आ जाएगी तो उन का अकेलापन भी दूर हो जाएगा, साथ ही उन की सेवासत्कार भी ठीक से होने लगेगी.
लवप्रीत 27-28 साल का गबरू जवान था. उस की उम्र शादी लायक हो गई थी. ठीकठाक नौकरी भी थी, इसलिए उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं थी. घर में पहले से ही किसी चीज की कमी नहीं थी. उन का काफी संपन्न परिवार था. लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें दौलत से नहीं खरीदा जा सकता, खासकर सुख या खुशी. जीत कौर की उम्र 60 साल से ज्यादा हो चुकी थी. अपनी उम्र और हालत को देखते हुए वह बेटे की शादी के लिए राजी हो गईं. उन के हामी भरते ही लड़की वालों की लाइन लग गई. काफी देखसुन कर उन्होंने चंडीगढ़ निवासी गुरमेल सिंह की बेटी अमन कौर को लवप्रीत के लिए पसंद कर लिया. बातचीत के बाद शीघ्र ही अमन कौर से लवप्रीत की शादी कर दी. यह शादी मई, 2010 में हुई थी.
अमन कौर नाम के अनुरूप जितनी शांत और सुशील थी, उस से कहीं ज्यादा सुंदर थी. वह पढ़ीलिखी भी काफी थी. इस तरह की सुंदरसुशील और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर जहां लवप्रीत खुश था, वहीं बहू के व्यवहार और अपनेपन से जीत कौर भी निहाल थीं.अमन कौर ने अपने व्यवहार और सेवाभाव से पति और सास का दिल जीत लिया था. शादी पर ली गई छुट्टियां खत्म हो गईं तो लवप्रीत अपनी नौकरी पर गुड़गांव चला गया. जाते समय उस ने अमन कौर से कहा था कि उसे मां का अपनी जान से भी ज्यादा खयाल रखना है. लवप्रीत पहले जहां महीने, 2 महीने में घर आता था, नईनई शादी के बाद वह महीने में कम से कम 2 बार घर आने लगा. घर आने पर जब उसे मां से पता चलता कि उस की सोच से भी कहीं अधिक अमन कौर उस का खयाल रखती है तो उस की नजरों में पत्नी की इज्जत और ज्यादा बढ़ गई.
बहरहाल, अमन कौर के आ जाने से लवप्रीत की चिंता खत्म हो गई थी. वह मां की ओर से पूरी तरह निश्चिंत हो गया था. मां भी खुश थी. बेटे के सामने जीत कौर बहू की तारीफें करते नहीं थकती थीं. एक सुबह जीत कौर उठीं और दैनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर पूजा के कमरे की ओर जाने लगीं तो अचानक फिसल कर गिर गईं. उन की चीख सुन कर अमन कौर दौड़ी आई और सास को सहारा दे कर सोफे पर बिठाया. जीत कौर के पैर में काफी तेज दर्द था, इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया. पैर देख कर डाक्टर ने संदेह व्यक्त किया कि शायद पैर में फैक्चर हो गया है, इसलिए इन्हें अस्पताल ले जाना पड़ेगा.
अस्पताल जाने पर पता चला कि सचमुच पैर टूट गया है. उस पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया. इस के बाद डाक्टर ने उन्हें डेढ़ महीने तक बैड से न उतरने की सलाह दी. अमन कौर सास की खूब सेवा कर रही थी. सूचना पा कर लवप्रीत भी घर आया और अमन कौर द्वारा की जा रही मां की सेवासुश्रुषा से संतुष्ट हो कर लौट गया. वैसे तो जीत कौर को अपने खर्च भर के लिए पैंशन मिलती ही थी, लेकिन इस के अलावा भी मां को खर्च के लिए उन के बैंक एकाउंट में लवप्रीत भी समयसमय पर रुपए डालता रहता था. जरूरत पड़ने पर जीत कौर एटीएम कार्ड से रुपए निकाल लाती थीं. पैर टूटने से जीत कौर घर के बाहर जाने लायक नहीं रह गईं तो उन्होंने एटीएम कार्ड अमन कौर को दे दिया, ताकि जरूरत पड़ने पर वह रुपए निकाल लाए.
जीत कौर के बिस्तर पर पड़ने के बाद अमन कौर लगभग आजाद सी हो गई थी. वह जीत कौर को दर्द निवारक के नाम पर इस तरह की दवाएं देती थी, जिसे खा कर वह इस तरह सो जाती थीं कि उन्हें होश ही नहीं रहता था. उन के सोने के बाद घर में क्या होता है, उन्हे पता नहीं चलता था. जब भी उन की आंखें खुलतीं, अमन कौर घर से गायब होती थी. अक्सर वह रात के 8 बजे के बाद ही आती थी. कभीकभी रात के 9, साढ़े नौ भी बज जाते थे. ऐसे में जीत कौर देर से आने की वजह पूछतीं तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. कभी दवा का तो कभी डाक्टर से मिलने का तो कभी किसी सहेली के घर जाने की बात कह कर उन्हें संतुष्ट कर देती.
एकाध दिन की बात होती तो इस तरह की बहानेबाजी चल जाती है, लेकिन अगर ऐसा रोज होने लगे तो संदेह होने लगता है. ऐसा ही कुछ जीत कौर के मामले में हुआ. जीत कौर अनुभवी और सुलझी हुई महिला थीं. अब तक उन्होंने बहुत कुछ देखा, झेला और कठिनाइयों का सामना किया था. बहू की बातों और हरकतों से उन्हें साफ लगने लगा था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है, जिसे अमन कौर बताना नहीं चाहती थी. उन के संदेह को तब बल मिल गया, जब उन के पारिवारिक डाक्टर खन्ना खुद उन के यहां उन्हें देखने आ गए. हुआ यह कि जब कई दिनों से अमन कौर उन के यहां जीत कौर की दवा लेने नहीं गई और न ही पिछले महीने के इलाज एंव दवाओं के पैसे दिए तो डा. खन्ना ने सोचा कि वह खुद जा कर जीत कौर का हालचाल ले लें, साथ ही पैसों के बारे में भी कह दें. जिस समय वह जीत कौर के घर पहुंचे, अमन कौर घर में नहीं थी.
डा. खन्ना ने जब जीत कौर का हालचाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘डा. साहब, पैर तो अब काफी ठीक है, सूजन भी लगभग खत्म हो गई है, दर्द में भी काफी आराम है. लेकिन इन दिनों आप जो दवाएं दे रहे हैं, उसे खाने के बाद नींद बहुत आती है. मैं ऐसा सोती हूं कि होश ही नहीं रहता.’’
‘‘आप यह क्या कह रही हैं बीजी. मैं ने तो ऐसी कोई दवा नहीं दी है. हमारे खयाल से लगभग 20 दिनों से अमन मेरे यहां नहीं आई है. तब दवा…?’’
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जीत कौर ने हैरानी से कहा, ‘‘वह तो मुझे रोज बता कर जाती है कि आप के क्लिनिक पर दवा लेने जा रही है और आप कह रहे हैं कि..?’’
‘‘मैं ठीक कह रहा हूं बीजी. उस ने तो अभी पिछले महीने की दवा के पैसे भी नहीं दिए हैं.’’ दवाओं का बिल देते हुए डा. खन्ना ने कहा.
जीत कौर ने देखा, 26 हजार 470 रुपए डा. खन्ना के बाकी थे. उन का माथा ठनका. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है. अमन तो एटीएम से रुपए निकाल कर ले आई है, फिर रुपए कहां गए? वह इसी विषय पर सोच रही थीं कि अमन कौर आ गई. डा. खन्ना पर नजर पड़ते ही उस का चेहरा सफेद पड़ गया. शायद उसे इस बात का अहसास हो गया था कि उस की चोरी पकड़ी गई है. इस के बावजूद उस ने खुद को संभाल कर डा. खन्ना को सतश्रीअकाल कहा.
जीत कौर ने इधरउधर की बातें करने के बजाय सीधे पूछा, ‘‘अमन, डा. साहब के इतने पैसे क्यों बाकी हैं?’’
‘‘बीजी, मैं आप को बताना भूल गई थी कि मेरी एक सहेली की मां की हार्ट सर्जरी होनी थी. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. उस ने पैसे मांगे तो मैं ने रुपए निकाल कर उसे दे दिए. 2-4 दिनों में वह रुपए लौटा देगी तो मैं डाक्टर साहब के रुपए दे दूंगी.’’ अमन ने कहा.
जीत कौर जानती थीं कि अमन झूठ बोल रही है. इस के बावजूद उन्होंने डाक्टर के सामने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, तुम्हारी सहेली के कहीं भाग तो नहीं जा रही. तुम ऐसा करो, बैंक से पैसे निकाल कर डा. साहब के पैसे दे दो. वह आगेपीछे पैसे देती रहेगी.’’
डा. खन्ना के चले जाने के बाद अमन कौर घर के काम में लग गई. जीत कौर अपने कमरे में उसी तरह लेटी रहीं. वह अच्छी तरह समझ गई थीं कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. अमन जरूर कुछ उलटासीधा कर रही है. डा. खन्ना से बातचीत के बाद उन की समझ में आ गया था कि उन्हें दी जाने वाली दवा ठीक नहीं है. इसलिए अगले दिन सुबह जब अमन कौर ने उन्हें दवा खाने के लिए दी तो उन्होंने वह दवा खाई नहीं और इस तरह लेट गईं, जैसे गहरी नींद में सो रही हों. कुछ देर बाद अमन कौर ने उन के कमरे में आ कर पुकारा, ‘‘मांजी.’’
जब जीत कौर ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह समझ गई कि मांजी सो गई हैं यानी उस की दवा काम कर गई है. वह घर से निकल पड़ी. उस के घर से जाते ही जीत कौर उठीं और उस के कमरे में जा कर उस की अलमारी खोल कर देखने लगीं. अलमारी में महंगी सौंदर्य प्रसाधन सामग्री भरी पड़ी थी. उसी के साथ महंगी विदेशी शराब की 2 बोतलें भी रखी थीं. जीत कौर ने अलमारी का लौकर खोला तो उस में करीब 50 हजार रुपए रखे थे. यह सब देख कर जीत कौर हैरान रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि अमन कौर ऐसा कर के कौन सा खेल खेल रही है. उन की नजरों में अमन कौर की जो आदर्श बहू वाली तस्वीर बनी हुई थी, यह सब देख कर धुंधलाने लगी.
अमन कौर के घर लौटने के बाद जीत कौर ने उस से कुछ नहीं पूछा. वह इस तरह बनी रहीं, जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं है. अब तक वह चलनेफिरने लगी थीं. इसलिए अगले दिन जब अमन कौर घर से बाहर निकली तो उन्होंने उस का पीछा किया. अमन कौर जा कर एक मकान में घुस गई तो लगभग 2 घंटे बाद निकली. जीत कौर ने लगातार 3 दिनों तक उस का पीछा किया. तीनों दिन अमन कौर उसी तरह घर से निकली और अलगअलग मकानों में गई, जहां 2-3 घंटे रह कर वापस आ गई. इस के बाद जीत कौर ने उन मकानों में रहने वालों के बारे में पता किया तो पता चला कि उन मकानों में परिवार से अलग रहने वाले वे लड़के रहते हैं, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं या फिर अकेले रह कर नौकरी करते हैं.
अनुभवी जीत कौर ने बहू की सच्चाई जान ली. एक जवान औरत ऐसे लड़कों के पास क्यों जाएगी? मतलब स्पष्ट था. वह समझ गईं, अमन कौर पति की कमाई दोनों हाथों से यारों पर लुटा रही थी. बहू की सच्चाई जान कर जीत कौर परेशान हो उठीं. बहू की शिकायत बेटे से करने से पहले वह उस से बात कर लेना चाहती थीं. क्योंकि कभीकभी आंखों से दिखाई कुछ और देता है, जबकि उस की सच्चाई कुछ और होती है. जीत कौर ने जब अलमारी से मिले रुपए और शराब की बोतल से ले कर अलगअलग मकानों में जाने की बात अमन कौर को बता कर सच्चाई पूछी तो अमन कौर ने तुरंत अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि उन मकानों में रहने वाले कुछ लड़के उस के कालेज के समय के दोस्त हैं. वह उन्हीं से मिलने जाती है. लेकिन जैसा वह सोच रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है.
जीत कौर को अपने अनुभवों से पता था कि अवैधसंबंधों को जब तक आंखों से न देखा जाए, अमन कौर तो क्या कोई भी स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए उन्होंने इस बात पर जोर दे कर बहू को समझाया, ‘‘देखो अमन, अब तक जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. तुम एक अच्छे खानदान की बेटी तो हो ही, अब एक अच्छे खानदान की बहू भी हो, यह सब करना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’
‘‘बीजी, मैं वादा करती हूं कि आगे से ऐसी कोई गलती नहीं होगी.’’
अमन कौर के माफी मांग लेने के बाद जीत कौर ने बात यहीं खत्म कर दी. खाना आदि खा कर सासबहू अपनेअपने कमरों में जा कर सो गईं. अगले दिन सुबह अमन कौर चाय बना कर सास को उन के कमरे में देने गईं तो यह देख कर हैरान रह गई कि उतनी देर तक सास के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. अमन कौर ने 2-4 बार आवाज दी, दरवाजा खटखटाया. लेकिन जब भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो अमन कौर जोरजोर से दरवाजा पीटने के साथ चिल्लाने लगी. दरवाजा भड़भड़ाने और अमन कौर के चीखने की आवाजें सुन कर पड़ोस के लोग आ गए.
अमन कौर काफी परेशान और घबराई हुई थी. पड़ोसियों के पूछने पर उस ने कहा कि मांजी न दरवाजा खोल रही हैं और न कोई जवाब दे रही हैं. पड़ोसियों ने कोशिश कर के दरवाजा तोड़ा तो अंदर बैड पर जीत कौर चित पड़ी थीं. देखने से ही लग रहा था कि उन की मौत हो चुकी है. सास को इस हालत में पा कर अमन जोरजोर से रोने लगी. रोरो कर उस का बुरा हाल हो रहा था. पड़ोसी औरतों ने किसी तरह उसे संभाला और इस घटना की सूचना तुरंत जीत कौर के बेटे लवप्रीत सिंह को दे दी गई. दोपहर तक लवप्रीत घर पहुंच गया. अपनी मां की इस तरह अचानक हुई मौत से वह बहुत दुखी भी था और हैरान भी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मां की मौत इस तरह कैसे हो गई कि किसी को पता ही नहीं चला.
वह गंभीर रूप से बीमार भी नहीं थी. शाम को उस की मां से बात भी हुई थी. तब वह पूरी तरह ठीक थीं. बहरहाल, होनी को स्वीकार कर के वह मां के अंतिम संस्कार की तैयारियां करने लगा. जब सभी रिश्तेदार आ गए तो उस ने मां का अंतिम संस्कार कर दिया. इस के बाद मां की आत्मा की शांति के लिए पाठ वगैरह करवाया. सभी क्रियाकर्म से छुट्टी पा कर लगभग दस दिनों बाद लवप्रीत गुड़गांव जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी अलमारी में कुछ ढूंढ़ते समय कपड़ों के बीच से उसे एक फाइल मिली, जिस पर बीबी जीत कौर का नाम लिखा था.
लवप्रीत ने फाइल खोल कर देखी तो उस में जीत कौर की दवाओं की पर्चियों के साथ कई टेस्टों की रिपोर्टें थीं. न जाने क्या सोच कर लवप्रीत ने वह फाइल अपने बैग में रख ली और दोपहर को उसे ले कर अपने फैमिली डाक्टर खन्ना के यहां जा पहुंचा. फाइल देख कर डा. खन्ना ने कहा, ‘‘यह फाइल मेरी बनाई हुई नहीं है. इस में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें भी मैं ने बीजी के लिए नहीं लिखी हैं.’’
‘‘पर डा. साहब, इस फाइल की रिपोर्ट के अनुसार…’’
‘‘ये सारी रिपोर्टें गलत हैं. मेरे नाम से ये गलत रिपोर्टें न जाने किस ने और क्यों बनवाई हैं?’’
‘‘आप यह क्या कह रहे हैं डा. साहब?’’
‘‘मैं सच कह रहा हूं लवप्रीत. मैं ने बीजी के सारे टैस्ट कराए थे, जिन में वह एकदम ठीकठाक थीं. उन्हें कोई बीमारी नहीं थी. पैर में हलका सा फै्रक्चर होना कोई बीमारी नहीं है. उस के लिए मैं ने पेन किलर दिए थे, जिन्हें तेज दर्द होने पर खाना था. फाइल में रखे पर्चे के अनुसार बीजी को जो दवाएं दी जा रही थीं, वे नशे की थीं. ये दवाएं अमन कौर कहां से लेती थी, यह मुझे नहीं पता. अभी तो बीजी के इलाज के मेरे 22-23 हजार रुपए बाकी हैं. अमन ने कहा था कि तुम्हारे आने पर मेरे रुपए दे देगी.’’
‘‘डा. साहब पिछले महीने 3 बार में मैं ने एक लाख रुपए भेजे थे, फिर भी अमन ने आप के रुपए नहीं दिए.’’ लवप्रीत ने हैरान हो कर कहा.
इस के बाद कुछ देर के लिए खामोशी छा गई. कुछ देर में खामोशी तोड़ते हुए डा. खन्ना ने कहा, ‘‘लवप्रीत, कुछ भी हो, मुझे इस सारे मामले में कोई बड़ी साजिश लग रही है.’’
‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं डा. साहब. मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.’’ कह कर लवप्रीत घर लौट आया.
उसी दिन लवप्रीत गुड़गांव जाने के लिए घर से निकल पड़ा, लेकिन गुड़गांव गया नहीं. घर छोड़ कर वह शहर के एक होस्टल में कमरा ले कर ठहर गया. इस के बाद वह थाना त्रिपुड़ी आ कर मुझ से (इंसपेक्टर दर्शन सिंह) मिला. पूरा घटनाक्रम बता कर उस ने संदेह व्यक्त किया कि उस की मां जीत कौर की मौत स्वाभाविक नहीं है, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत उन की हत्या की गई है. उस ने व्यक्तिगत तौर पर निवेदन किया कि इस रहस्य से परदा उठाने में मैं उस की मदद करूं.
इस के बाद मैं ने लवप्रीत सिंह से एक प्रार्थनापत्र ले कर हत्या का मामला अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करा दिया. मैं ने उस से जीत कौर का बैंक एकाउंट नंबर ले कर उसी दिन से अपना काम शुरू कर दिया. मैं ने लवप्रीत को कुछ दिशानिर्देश दे कर अमन कौर की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा. कुछ ही दिनों की जांचपड़ताल से स्पष्ट हो गया कि जीत कौर की मौत के पीछे निश्चित रूप से अमन कौर की साजिश थी. दरअसल, जब मैं ने जीत कौर की बैंक स्टेटमैंट निकलवाई तो पता चला कि उन के खाते से लगातार मोटीमोटी रकमें निकाली गईं थीं. ये सारे पैसे एक ही एटीएम से निकाले गए थे. मैं ने उस एटीएम की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी तो अमन कौर जबजब वहां रुपए निकालने आई थी, उस के साथ कोई न कोई लड़का जरूर था.
एटीएम से रुपए निकाल कर अमन कौर अपने साथ आए लड़के को भी रुपए देती थी. दूसरी ओर लवप्रीत ने लगातार अमन कौर का पीछा किया तो पता चला कि सुबह 10-11 बजे अमन कौर घर से निकल कर अपने किसी दोस्त के यहां जाती थी. 3-4 घंटे वहां रुक कर वहां से किसी दूसरे मित्र युवक के यहां चली जाती थी. यह क्रम देर रात तक चलता था. सुबह की निकली अमन कौर रात 10-11 बजे तक घर लौटती थी. इन सब बातों से साफ हो गया था कि जीत कौर की मौत के पीछे अमन कौर का हाथ था. लवप्रीत के प्रार्थनापत्र पर मैं जीत कौर की हत्या का मुकदमा दर्ज ही करा चुका था. अब मुझे अमन कौर के खिलाफ सुबूत जुटा कर यानी उसे रंगेहाथों पकड़ कर गिरफ्तार करना था. इस के लिए मैं ने अपने कुछ होशियार पुलिस वालों को अमन कौर के मकान के पास निगरानी पर लगा दिया.
चूंकि जीत कौर की मौत हो चुकी थी और अमन कौर की जानकारी में लवप्रीत गुड़गांव चला गया था. इसलिए उसे किसी का डर नहीं रह गया था. सो अब वह अपने दोस्तों को घर भी बुलाने लगी थी. इन में उस का एक दोस्त ऐसा था, जिसे वह रात में बुलाती थी, जो पूरी रात उस के साथ रहता था. उस दिन अमन कौर के घर की निगरानी कर रहे एएसआई कुलदीप सिंह ने देखा कि 2 लड़के आए और उस के घर की बैल बजाई. अमन कौर ने दरवाजा खोला तो दोनों लड़के अंदर चलग गए. कुछ देर बाद एक अन्य लड़के ने आ कर बैल बजाई तो इस बार भी अमन कौर ने ही दरवाजा खोला. तीसरा लड़का भी अंदर चला गया.
कुछ देर बाद अमन कौर के घर से तेजतेज आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी बात को ले कर अंदर झगड़ा हो रहा था. कुलदीप सिंह ने समय बरबाद न करते हुए इस बात की जानकारी मुझे दी तो मैं 4 सिपाहियों को ले कर वहां पहुंच गया. मैं ने अमन कौर के घर का दरवाजा खुलवाया तो सामने पुलिस वालों को देख कर अमन कौर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मैं ने घर की तलाशी ली तो अंदर वाले कमरे में 3 लड़के छिपे मिले. तीनों लड़कों की उम्र 19 से 22 साल के बीच थी. ये अलगअलग प्रदेशों के थे, जो यहां पटियाला विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे.
मैं अमन कौर और तीनों लड़कों को थाने ले आया. तीनों लड़कों से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे अमन कौर के प्रेमी थे. लेकिन जीत कौर की हत्या से उन का कोई संबंध नहीं था. इस के बाद अमन कौर से पूछताछ की गई तो उस ने जीत कौर की मौत के रहस्य से परदा उठाते हुए उन की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पश्चिमी सभ्यता के आकर्षण में बंधी संस्कारविहीन बिगड़ी संतानों के कारनामों का लेखाजोखा निकली. अमन कौर शुरू से ही आजाद खयालों वाली जिद्दी लड़की थी. घर की एकलौती बेटी होने की वजह से वह सब की लाडली थी. अधिक लाडप्यार ने उसे कुछ ज्यादा स्वच्छंद बना दिया था. धनदौलत की कमी न होने की वजह से वह अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रही थी.
स्कूल के दिनों से ही छोटीछोटी बातों पर सहपाठियों से शरतें लगा कर जीतना और पार्टी करना उस की आदत बन गया था. जवान हो कर कालेज पहुंचतेपहुंचते वह पश्चिमी सभ्यता में इस कदर ढल गई कि क्लबों, डिस्कोथैकों में जाना, बीयरव्हिस्की पीना, पुरुष मित्रों की बांहों में नाचना, उस के लिए आम बात हो गई थी. अपनी बिगड़ी आदतों की वजह से कभी वह किसी एक मित्र से संतुष्ट नहीं होती थी, इसलिए नएनए दोस्त बनाती रहती थी. जब तक वह बेटी रही, तब तक यह सब चलता रहा, लेकिन जब वह बहू बन गई तो उस की आजादी पर रोक लग गई. अब तक वह जो कुछ करती आई थी, ससुराल आने के बाद नहीं कर पा रही थी.
आखिर अमन ने अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीने का रास्ता खोज निकाला. अपनी योजना के तहत उस ने अपनी सेवा से पति लवप्रीत और सास जीत कौर का दिल जीत लिया. पति बाहर रहता था, घर में केवल सास थी, इसलिए अमन कौर ने उसे पूरी तरह से वश में कर लिया. बीयर या व्हिस्की ला कर उस ने अपनी अलमारी में रख लिया था. मौका निकाल कर 1-2 पैग ले लिया करती थी. इस बीच अमन कौर ने कुछ ऐसे लड़कों से दोस्ती कर ली थी, जो दूसरे प्रदेशों से वहां पढ़ने आए थे. ऐसे लड़कों को हमेशा पैसों की जरूरत रहती है, यह अमन कौर अच्छी तरह जानती थी. इन लड़कों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उस ने इन्हें अपने जाल में फांस लिया. उन की जरूरतें पूरी कर के वह उन के साथ अय्याशी करने लगी.
अमन कौर लड़कों के कमरों पर पार्टी करती और उन्हें खर्च के लिए रुपए देती. इस तरह दोनों हाथों से वह रुपए लुटाने लगी तो उसे अपने खर्च के लिए रुपए कम पड़ने लगे. 2-3 बार वह अपने मायके से रुपए मांग कर लाई, लेकिन मायके से हमेशा तो रुपए मांगे नहीं जा सकते थे. उसी बीच जीत कौर ने महसूस किया कि बहू का बाजार आनाजाना कुछ ज्यादा हो गया है तो उन्होंने टोकना शुरू किया. तब अमन कौर ने सास को काबू में करने के लिए एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत एक दिन उस ने पूजा के कमरे में जाने वाले रास्ते में फर्श पर औयल गिरा दिया. सुबह स्नान के बाद जीत कौर पूजा के कमरे में जाने लगीं तो फर्श पर पड़े औयल की वजह से फिसल कर गिर पड़ीं, जिस से उन के पैर में फैक्चर हो गया.
उस समय अमन कौर ने जीत कौर के फैमिली डा. खन्ना को न बुला कर पहले डा. रंजीत को बुलाया. डा. रंजीत खूबसूरत भी था और युवा भी. उस की शादी भी नहीं हुई थी. दरअसल, महीने भर पहले एक डिपार्टमैंटल स्टोर पर अमन कौर की मुलाकात डा. रंजीत से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में वह उस पर मोहित हो गई थी. जीत कौर के इलाज के लिए डा. रंजीत को बुला कर अमन कौर ने एक तीर से 2 निशाने साधे थे. एक तो डा. रंजीत को उस ने अपने रूपजाल में फांस लिया, दूसरे जीत कौर को लंगड़ी बना कर बिस्तर पर बिठा दिया.
बाद में सास के कहने पर फैमिली डा. खन्ना के यहां ले जा कर प्लास्टर चढ़वाया लेकिन दवाएं डा. रंजीत की ही चलती रहीं. जीत कौर उस के किसी मामले में रोकटोक न कर सके, इस के लिए वह उन्हें नींद की दवाएं देती रही. कुछ दिनों तक सब कुछ अमन कौर के मुताबिक चलता रहा. लेकिन यह भी सच है कि पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता ही है. घटना वाली रात लगभग 8 बजे अमन कौर ने जीत कौर को खाना खिला कर नींद की दवा दे कर सुला दिया. लगभग साढ़े 8 बजे उस का प्रेमी डा. रंजीत आया तो वह उसे अपने कमरे में ले कर चली गई.
डा. खन्ना से बातचीत के बाद जीत कौर ने अमन कौर द्वारा दी जाने वाली दवा खानी बंद कर दी थी, इसलिए अमन को भले ही लगा कि जीत कौर सो गई हैं, लेकिन वह जाग रही थीं. इसलिए अमन डा. रंजीत के साथ अपने कमरे में हंसीठिठोली करने लगी तो उस की आवाज जीत कौर तक पहुंच गई. हंसीठिठोली की आवाजें सुन कर जीत कौर अमन कौर के कमरे की ओर गईं तो कमरे में जो हो रहा था, उसे देख कर वह हैरान रह गईं. दूसरी ओर अमन कौर तथा डा. रंजीत भी जीत कौर को सामने देख कर बैड से उछल पडे़ और अपनेअपने कपड़े ठीक करने लगे. जीत कौर ने अमन कौर को बुराभला कहते हुए धमकी दी कि वह अभी बेटे को फोन कर के सारी बातें बताएंगी.
जीत कौर की इस धमकी से अमन कौर डर गई. उस ने लपक कर जीत कौर के पैर पकड़ लिए और माफी मांगने लगी. रंजीत भी सफाई देने लगा. लेकिन जीत कौर ने तय कर लिया था कि अब वह हर हाल में सारी बातें बेटे को बता कर रहेंगी. वैसे भी रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद अमन कौर के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. अमन कौर ने देखा कि जीत कौर अब किसी भी सूरत में उस की बातों पर विश्वास करने को तैयार नहीं है तो उस ने धक्का दे कर उन्हें बैड पर गिरा दिया और बैड पर रखा तकिया उन के मुंह पर रख कर दबा दिया. जीत कौर ने हाथपैर चलाए तो रंजीत ने उन्हें पकड़ लिए. कुछ ही पलों में जीत कौर के प्राणपखेरू उड़ गए.
सास को मौत के घाट उतार कर अमन कौर घबरा गई. उस ने सवालिया नजरों से डा. रंजीत की ओर देखा तो उस ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. जो होना था सो हो गया. इस हत्या को हम मैडिकली मौत साबित कर देंगे.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘भई सीधी सी बात है. तुम्हारी सास बीमार रहती थीं, यह बात तुम्हारे पति के अलावा पड़ोसी भी जानते हैं. बीमार सास रात को खाना खा कर सोईं और कब मर गईं, किसी को पता नहीं चला.’’ डा. रंजीत ने कहा.
‘‘क्या यह सब इतना असान है?’’
‘‘तुम इस की बिलकुल चिंता मत करो. बस मैं जैसा कहता हूं, तुम करती जाओ.’’ डा. रंजीत ने कहा.
दोनों ने जीत कौर को इस तरह बैड पर लिटा दिया, जैसे वह सो रही हैं. इस के बाद डा. रंजीत ने अमन कौर को कमरे से निकाल कर खुद अंदर से बंद कर लिया और खिड़की से कमरे से बाहर आ गया. कमरे से बाहर आ कर डा. रंजीत ने कहा, ‘‘सुबह उठ कर तुम्हें शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा करना है कि मांजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं. पड़ोसी आ कर दरवाजा तोड़ेंगे और समझेंगे कि बीमार जीत कौर सोतेसोते मर गईं. किसी को जरा सा भी शक नहीं होगा कि उन की हत्या की गई है.’’
और सचमुच किसी को शक नहीं हुआ. सब ने वही समझा, जैसा डा. रंजीत और अमन कौर ने सोचा था. लेकिन अमन कौर की अलमारी में रखी फाइल ने सारा भेद खोल दिया. अगर डा. खन्ना न बताते कि अमन कौर ने इलाज के पैसे नहीं दिए हैं और फाइल के पर्चों में जो दवाएं लिखी हैं, उन्हें उन्होंने नहीं लिखी तो शायद लवप्रीत को कभी संदेह न होता और डा. रंजीत और अमन कौर साफ बच जाते. अमन कौर ने अपराध स्वीकार कर लिया तो मैं ने डा. रंजीत के घर छापा मार कर उसे भी गिरफ्तार कर लिया. अमन कौर के घर पकड़े गए तीनों छात्र निर्दोष थे, इसलिए उन्हें गवाह बना कर छोड़ दिया.
इस के बाद मैं ने जीत कौर की हत्या के आरोप में अमन कौर और डा. रंजीत को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. यह स्वच्छंदता का ही नतीजा था कि एक पढ़ीलिखी और अच्छे खानदान की बेटी और बहू आज जेल में है. उस के प्रेमजाल में फंस कर एक डाक्टर भी जेल पहुंच गया है. सच है, अवैध संबंध हमेशा बरबादी ही लाता है. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. Crime Kahani