Crime News : होटल मालकिन सुशीला ने अगर अपने नौकर नंदू को 2 रुपए दे दिए होते तो शायद हत्या जैसा यह जघन्य अपराध न होता. नौकरों पर इलजाम लगा देना बड़ा आसान होता है, पर उन के दबेकुचले मन के आक्रोश को समझना बहुत मुश्किल. नंदू के मामले में भी शायद ऐसा ही था. तारीख थी 5 नवंबर, 2014. सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तराखंड के हरिद्वार की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक स्वीटी अग्रवाल उस समय हर की पौड़ी पुलिस चौकी पर अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के बारे में निर्देशित कर रही थीं, क्योंकि अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा को होने वाले महास्नान के कारण वहां जिलेभर की पुलिस की तमाम टीमें मौजूद थीं.

उसी बीच वहां मौजूद हर की पौड़ी पुलिस चौकी के प्रभारी मोहन सिंह के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली और मोबाइल का स्विच औन कर के ‘हैलो’ कहा तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘क्या पौड़ी पुलिस चौकी इंचार्ज से बात हो सकती है?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं. बताइए क्या बात है?’’ मोहन सिंह ने कहा.

‘‘सर, आप को एक मर्डर की खबर देनी थी.’’ फोनकर्ता बोला.

‘‘भई मर्डर कहां और किस का हुआ है?’’ मोहन सिंह ने चौंक कर पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मर्डर जाह्नवी मार्केट के निकट होटल शेरेपंजाब की मालकिन सुशीला शर्मा का हुआ है. सुशीला रात को प्रतिदिन की तरह होटल में सोई थीं. आज सुबह उन की बर्फ तोड़ने वाले सुए से गोदी हुई लाश बेड पर पड़ी मिली है.’’

‘‘सुशीला शर्मा के घर वाले क्या वहां मौजूद हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, वहां पर सुशीला शर्मा का कोई घर वाला नहीं है. दरअसल वह पिछले कई महीने होटल में ही रात को सोती थीं. उन का होटल मैनेजर राहुल भी अक्सर होटल में ही सोता था.’’ फोन करने वाले ने बताया.

‘‘क्या राहुल वहां मौजूद है.’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, अभी मौके पर न तो राहुल है और न ही सुशीला का कोई घर वाला,’’ फोन करने वाले ने आगे बताया, ‘‘रोजाना की तरह आधे घंटे पहले होटल के नौकर दिलवर सिंह और संतराम भट्ट होटल पहुंचे थे. वहां उन्हें होटल का आधा शटर खुला मिला. वे दोनों अपने साथ होटल के बाहर सोने वाले नौकर सहदेव के साथ अंदर गए तो उन्होंने वहां का जो नजारा देखा, उसे देख कर तीनों के होश उड़ गए.’’

‘‘क्या सुशीला की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी गई है?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोन करने वाले ने बताया, ‘‘हां सर, होटल के पड़ोसी दुकानदारों ने फोन कर के सुशीला की हत्या की जानकारी गुरदासपुर में रहने वाले उन के पति सुरेश शर्मा और दिल्ली में रह रही उन की बेटी को दे दी है. प्लीज आप जल्दी आ जाइए.’’

‘‘आप कौन साहब बोल रहे हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोनकर्त्ता ने कहा, ‘‘देखिए सर, मैं ने आप को इस मर्डर की खबर दे कर एक जिम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभया है. आप मेरे बारे में जानकारी करने के बजाय घटनास्थल पर पहुंचे और अपनी जिम्मेदारी निभाएं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. मामला चूंकि चौकी क्षेत्र की होटल संचालिका की हत्या का था, इसलिए मोहन सिंह ने इस मामले की सूचना कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर पी.सी. मठपाल, सीओ चंद्रमोहन नेगी, एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल को दे दी. थोड़ी देर में सभी अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक शेरेपंजाब होटल के बाहर स्थानीय दुकानदारों, नेताओं और हर की पौड़ी पर आए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी.

पुलिस ने सब से पहले वहां खड़ी भीड़ को हटाया और उस के बाद मौके का गहनता से निरीक्षण करने लगी. एसएसपी स्वीटी अग्रवाल और सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने अंदर जा कर सब से पहले लहूलुहान पड़े सुशीला के शव को देखा. शव के चेहरे, गरदन व शरीर के अन्य भागों पर सुए से निर्ममता से गोदे जाने के दरजनों घाव थे. मृतका की सलवार उतरी हुई थी. जिसे देख कर पुलिस को कुछ संदेह हुआ. इसी के मद्देनजर हर की पौड़ी पुलिस चौकी से एक महिला कांस्टेबल को बुला कर सुशीला के सारे शरीर का निरीक्षण कराया गया. पता चला कि मृतका के शरीर के सभी जेवर गायब थे. लाश को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे उस का गला भी दबाया गया हो.

घटनास्थल से बर्फ तोड़ने वाला वह सुआ मिल गया था, जिस से सुशीला की हत्या की गई थी. पुलिस ने उसे जब्त कर लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद सबइंसपेक्टर मोहन सिंह मृतका सुशीला की लाश का पंचनाम बनाने लगे और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने होटल मैनेजर राहुल तथा नौकरों दिलवर, संतराम व सहदेव से पूछताछ करनी शुरू कर दी. हालांकि घटनाक्रम के हिसाब से शक की सुई लापता नौकर नंदकिशोर उर्फ नंदू पर जा रही थी, लेकिन इस केस में बड़ा पेंच यह फंस गया था कि किसी को यह मालूम नहीं था कि नंदू कहां का रहने वाला था और वह कहां से यहां आया था? हत्या के बाद नंदू के गायब होने से सुशीला की हत्या की गुत्थी और उलझ गई थी. घटनास्थल से मृतका के 2 मोबाइल फोन भी गायब थे.

बहरहाल, सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय हरमिलाप अस्पताल भिजवा दिया और राहुल, संतराम, दिलवर व सहदेव को ले कर कोतवाली हरिद्वार लौट आए. कोतवाली में सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने उन चारों से हत्या की तह में जाने के लिए गहन पूछताछ की. तत्पश्चात पुलिस ने नौकर संतराम, निवासी गांव भटवाडा, जिला टिहरी गढ़वाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही गवाहों सहदेव, दिलवर और राहुल के बयानों के आधार पर जांच शुरू कर दी. जांच की जिम्मेदारी मोहन सिंह को सौंपी गई थी. पुलिस पूछताछ में सुशीला की हत्या की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

सुशीला शर्मा के पति सुरेश शर्मा मूलत: हापुड़, गाजियाबाद के रहने वाले थे. उन के फूफा देवीराम का हरिद्वार में होटल था. उन की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने सुरेश को गोद ले लिया था. बाद में सुरेश हरिद्वार आ कर होटल चलाने लगे थे. सुरेश ने काफी मेहनत की और पैसा कमा कर किराए के होटल की इमारत अपनी पत्नी सुशीला के नाम से खरीद ली. इस बीच उन के 2 बेटियां और एक बेटा हुआ. बच्चों के बड़े होने के बाद सुशीला ने कांगे्रस पार्टी ज्वाइन कर ली और कांगे्रस के कार्यक्रमों में भाग लेने लगी. सन 2000 में सुशीला महिला कांगे्रस की प्रदेश सचिव बन गईं. सुशीला का दिन भर घर से बाहर रहना सुरेश को पसंद नहीं था, इसलिए दोनों में आपसी तनाव रहने लगा.

जब तनाव बढ़ता गया तो सन 2006 में सुरेश अपनी पत्नी सुशीला, दोनों बेटियों और बेटे को छोड़ कर गुरदासपुर, पंजाब चला गया और एक होटल में काम करने लगा. इस के बाद सुशीला ने अपनी दोनों बेटियों और बेटे की शादियां कर दीं. 3 साल पहले सुशीला के बेटे अंकुर की छत से गिर कर मौत हो गई. उस वक्त अंकुर की मौत को आत्महत्या माना गया था. पिछले 7 महीने से सुशीला घर छोड़ कर होटल में ही रहने लगी थी. होटल का मैनेजर राहुल निवासी हाथीखाना, हरिद्वार भी रात को अकसर होटल में ही सोता था. लेकिन पिछले 7 दिनों से वह होटल में नहीं सो रहा था. यह भी पता चला कि सुशीला का अपने नौकरों के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था. वह नौकरों को अक्सर डांटतीफटकारती रहती थी. इतना ही नहीं, उन्हें वेतन देने में भी परेशान करती रही थी.

इसी वजह से उस के होटल में नौकर बदलते रहते थे. जब पुलिस सुशीला से अपने नौकरों के सत्यापन के लिए कहती तो वह उन के फोटो देने और उन के सत्यापन कराने में आनाकानी करती. उस की इस आनाकानी की वजह से एक बार हरिद्वार पुलिस उस पर उत्तराखंड पुलिस अधिनियम-2007 के तहत जुर्माना भी कर चुकी थी. पता चला सुशीला फरार नौकर नंदू पर अपने मैनेजर राहुल से ज्यादा भरोसा करती थी. जांचअधिकारी मोहन सिंह के सामने परेशानी यह थी कि उस के पास न तो सुशीला के नौकर नंदू का कोई फोटो था और न ही उस के बारे में किसी को कोई जानकारी थी. नंदू के बारे में पुलिस को केवल इतनी ही जानकारी मिल सकी थी कि वह खुद को राजस्थान का रहने वाला और लावारिस बताता था.

सुशीला उसे 2 महीने पहले गंगाघाट से पकड़ कर अपने होटल में काम करवाने के लिए लाई थी. इस से पहले भी वह उस के होटल में काम कर चुका था. अभी 2 माह पहले ही नंदू दोबारा उस के होटल में काम करने आया था. इस के अलावा पुलिस के लिए सुशील की हत्या की वजह पता लगाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. सुशीला की हत्या उस के नौकर नंदू ने ही की थी या हत्यारा कोई और था, क्योंकि प्रौपर्टी विवाद या किसी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते भी ऐसा हो सकता था. सुशीला की लाश आपत्तिजनक हालत में मिली थी, उस के शरीर के निचले हिस्से पर कपड़े नहीं थे, इस से संभावना दुष्कर्म की भी थी. यह बात मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही पता चल सकती थी. पुलिस को उसी का इंतजार था.

सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला के नौकर नंदू को पकड़ने के लिए अपने कुछ खास मुखबिरों को उस का हुलिया बता कर उस का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी. इस के अलावा उन्होंने सुशीला के दोनों मोबाइल नंबरों को भी सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन की लोकेशन पता चल सके. अगले दिन मोहन सिंह को मृतका सुशीला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सुए से हुए प्रहारों के कारण अधिक रक्त बह जाना और गला दबाना बताया गया. इसी तरह 3 दिन बीत गए, लेकिन पुलिस को नौकर नंदू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. 9 नवंबर को मोहन सिंह को सर्विलांस के माध्यम से जानकारी मिली कि सुशीला शर्मा के एक मोबाइल से एक नंबर पर काल की गई थी.

जिस नंबर पर काल की गई थी, उस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो पता चला कि वह नंबर दुकानदार अंकुर अग्रवाल, निवासी निंबाड़ा, जिला चित्तौड़गढ़, राजस्थान का था. मोहन सिंह तुरंत सिपाहियों गुलशन, दिनेश चौधरी और आशीष बिष्ट को साथ ले कर निंबाड़ा जा पहुंचे और अंकुर से नंदू के बारे में पूछताछ की. उत्तराखंड पुलिस को देख कर अंकुर घबरा गया. अंकुर ने मोहन सिंह को बताया कि 2 वर्ष पूर्व नंदकिशोर उर्फ नंदू उस की दुकान पर नौकरी करता था. वह गांव रानीखेड़ा, थाना निंबाड़ा निवासी गोपाल लोहार का बेटा था.

अंकुर से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम नंदू के घर पहुंची. वहां नंदू के पिता गोपाल लोहार ने पुलिस टीम को निंबाड़ा थाने में दर्ज गुमशुदगी की रिपोर्ट दिखाते हुए बताया कि नंदू घर से 2 वर्ष से लापता है. उसे नहीं मालूम कि इस वक्त वह कहां है. मोहन सिंह ने नंदू के घर से उस की फोटो ली और लोगों को अजमेर, निंबाडा, चित्तौड़गढ़ तथा श्रीगंगानगर के बसस्टैंडों व रेलवे स्टेशनों पर दिखा कर नंदू का पता लगाने की कोशिश की. जब उस का कोई पता नहीं चला तो वह अपनी टीम के साथ हरिद्वार लौट आए.

13 नवंबर, 2014 को मोहन सिंह को पता चला कि सुशीला के मोबाइल के हिसाब से नंदू की लोकेशन चित्तौड़गढ़ की आ रही है. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी थी. मोहन सिंह तुरंत अपनी टीम को ले कर चित्तौड़गढ़ के लिए निकल गए. नंदू को पहचानने वाला एक नौकर उन के साथ था. उस की निशानदेही पर नंदू को रेलवे स्टेशन पर घूमते हुए पकड़ लिया गया. उसे गिरफ्तार कर के पुलिस हरिद्वार ले आई. पूछताछ में नंदू ने सुशीला की हत्या करने की बात कुबूलते हुए जो कुछ बताया, वह कुछ इस तरह था.

नंदू के अनुसार, उस का बाप गोपाल लोहार नशे में बचपन से ही उसे खूब पीटता आया था. बाप की पिटाई से वह काफी परेशान रहता था. इसी चक्कर में उस ने घर छोड़ दिया और 2 साल तक निंबाड़ा के दुकानदार अंकुर अग्रवाल की दुकान पर नौकरी की. जब वहां से उस का मन उचट गया तो वह भाग कर ट्रेन से हरिद्वार आ गया और भिखारियों के साथ रह कर भीख मांग कर अपना पेट भरने लगा. तभी एक दिन उस पर सुशीला की नजर पड़ी. उसे वह भिखारी नहीं लगा. नंदू से बातचीत के बाद सुशीला शर्मा उसे अपने होटल शेरेपंजाब ले गई और काम पर रख लिया. कई महीने काम करने के बाद भी जब सुशीला ने उसे वेतन नहीं दिया तो वह वहां से काम छोड़ कर चला गया. इस के बाद उस ने अन्य 2-3 दुकानों पर काम किया.

2 महीने पहले हरिद्वार में ही सुशीला और नंदू का आमनासामना हो गया. सुशीला ने नंदू को समझायाबुझाया और 3 हजार रुपए महीना नियमित वेतन देने की बात तय कर के उसे अपने होटल ले आई. नंदू ठीक से अपना काम करने लगा. लेकिन जब वेतन देने की बात आई तो सुशीला पहले की ही तरह उसे वेतन देने में आनाकानी करने लगी. यहां तक कि वह सुलभ शौचालय में जाने के लिए उसे 2 रुपए तक नहीं देती थी. इस सब से वह बहुत परेशान था. घटना वाले दिन यानी 4 नवंबर को चाकू लगने से नंदू का हाथ कट गया. जब उस ने घाव पर बैंडैड लगाने के लिए सुशीला से 2 रुपए मांगे तो उस ने 2 रुपए भी देने से मना कर दिया. इस बात को ले कर उस ने 2-4 बातें कहीं तो सुशीला चिढ़ गई.

शाम को सुशीला और होटल मैनेजर राहुल ने उसे चिढ़ाते हुए उस का खाना भी फेंक दिया. इस से नंदू रात को बहुत गुस्से में था. जब उस ने सुशीला से छुट्टी मांगी तो उस ने छुट्टी देने से भी मना कर दिया. रात को डेढ़ बजे जब सुशीला होटल के अंदर सो रही थी तो नंदू ने वहीं रखी अलमारी से बर्फ तोड़ने वाला सुआ निकाला और गुस्से में उस के चेहरे, गले व शरीर पर कई ताबड़तोड़ वार कर दिए. जब सुशीला ने चिल्लाने का प्रयास किया तो नंदू ने उस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने मृत सुशीला के कपड़े उतारे और उस के साथ दुराचार किया. इस के बाद उस ने सुशीला की चेन, अंगूठी, 2 मोबाइल व 6 हजार रुपए उठाए और हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां वह दिल्ली जा रही एक ट्रेन में बैठ गया.

दिल्ली होता हुआ नंदू चित्तौड़गढ़ पहुंचा. चित्तौड़गढ़ के बाद वह अजमेर और निंबाड़ा आदि जगहों पर घूमता रहा. यह सब वह पुलिस से छिपने के लिए कर रहा था. इसी के चलते जब वह चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर घूम रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. जांच अधिकारी मोहन सिंह ने नंदू के बयान दर्ज कर लिए और उस की निशानदेही पर सुशीला के गहने, मोबाइल और कुछ नगदी बरामद कर ली. 14 नवंबर को एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने आरोपी नंदू को प्रैसवार्ता के दौरान मीडिया के सामने पेश किया. इस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नंदू जेल में था और मोहन सिंह इस मामले की चार्जशीट बनाने में जुटे थे.

हो सकता है नंदू के बयानों में सच्चाई न हो. यह बात अदालत में ही साबित होगी. लेकिन छोटी सी यह अपराध कथा उन लोगों के लिए प्रेरणा साबित हो सकती है, जो अपने नौकरों को इंसान नहीं समझते. यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि सालों से मन में दबा आक्रोश जब फूट कर निकलता है तो उस का अंजाम अच्छा नहीं होता. आक्रोश न चाहते हुए भी इंसान को अपराधी बना दे. Crime News

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