Love Story in Hindi : 20 दिन के अंदर रोशन कुंभारे की ही नहीं, बल्कि उस के मम्मीपापा और दोनों बहनों की एकएक कर मौत हो गई. जबकि उस के भाई और ड्राइवर को किसी तरह बचा लिया गया था. पांचों की मौत की सही वजह डौक्टर भी नहीं पहचान सके. एक ही परिवार में रहस्यमय तरीके से हुईं इन मौतों की पुलिस जांच हुई तो इस में मृतकों के ही अपनों की ऐसी साजिश का परदाफाश हुआ कि…

जंगलों और पर्वतों से भरापूरा महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला नक्सली घटनाओं के लिए जाना जाता है. बीड़ी के लिए तेंदूपत्ता और बांस यहां की मुख्य पैदावार हैं. यहां की अहेरी तहसील तेलंगाना राज्य की सीमा से लगी है. इसी तहसील क्षेत्र में स्थित महागांव इस तरह बसा है कि यहां के रहने वाले साइकिल से तेलंगाना जा सकते हैं. इसी महागांव में शंकर कुंभारे अपनी पत्नी विजया और 2 बेटों व 2 बेटियों के साथ रहते थे. शंकर ने दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. बड़ी बेटी कोमल की ससुराल दहागांव में थी तो उस से छोटी वर्षा उराडे बगल के ही गांव में ब्याही थी.

बड़ा बेटा सागर दिल्ली में किसी औफिस में नौकरी करता था, जिस के विवाह के लिए शंकर कुंभारे और विजया लड़की खोज रहे थे. 4-5 महीने में वह एकाध बार अपने घर महागांव आता था. सागर से छोटा रोशन अकोला में रह कर पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहा था. अकोला की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का बड़ा नाम है. इसी यूनिवर्सिटी में पढऩे वाली संघमित्रा देखने में काफी सुंदर थी. इस के अलावा वह पढऩे में भी काफी तेज थी. एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में बीएससी में उस ने टौप किया था. एमएससी में वह दाखिला लेती, उस के पहले ही उस ने प्यार की क्लास जौइन कर ली थी.

अकोला के बाजार में महागांव से आए रोशन कुंभारे से उस का परिचय हुआ और यह दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई तो दोनों ने विवाह करने का फैसला कर लिया. संघमित्रा और रोशन की जाति अलगअलग थी. इस में संघमित्रा की अपेक्षा रोशन की जाति को काफी हल्का माना जाता था. संघमित्रा का परिवार इस विवाह के लिए सहमति नहीं देगा, यह जानते हुए भी उस ने अपने मम्मीपापा से रोशन कुंभारे के साथ विवाह करने की बात की.

बेटी का यह प्रस्ताव सुन कर पेरैंट्स को मानो भूकंप जैसा झटका लगा हो. गुस्से से लालपीले होते हुए उन्होंने कहा, ”तुम्हें कुंभारे के अलावा और कोई लड़का पसंद नहीं आया? कम से कम तुम्हें अपने पेरेंट्स की इज्जत का तो खयाल करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि अगर तुम उस कुंभारे से शादी करोगी तो हम लोग समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. हमारे लिए यह मरने जैसा होगा.’’

पेरेंट्स के इस विरोध की बात संघमित्रा ने रोशन कुंभारे को बताई. तब रोशन ने कहा, ”अगर हम उन के विरोध के बावजूद विवाह कर लेते हैं तो कुछ दिनों बाद उन का यह गुस्सा खत्म हो जाएगा और वे हमें स्वीकार कर के हमारे विवाह को मान्यता दे देंगे. यदि विवाह के 2 महीने बाद हम उन का आशीर्वाद लेने जाएंगे तो वे हमें खुशीखुशी स्वीकार कर लेंगे. तुम हिम्मत कर के घर छोड़ कर आ जाओ. हम विवाह कर के सीधे महागांव चलते हैं.’’

संघमित्रा ने रोशन की सलाह मान ली और सहेली के जन्मदिन के बहाने वह कपड़ों का बैग ले कर घर से निकली. फिर योजना के अनुसार अकोला में कोर्ट मैरिज कर के वह रोशन के साथ उस के महागांव स्थित घर जा पहुंची.

शंकर कुंभारे परिवार के लिए भी यह एक तरह का झटका था. घर में कोई बात किए बगैर बेटा रोशन कुंभारे दूसरी जाति की लड़की से विवाह कर के उसे घर ले आया था. यह बात रोशन के फेमिली वालों को भी अच्छी नहीं लगी. संघमित्रा की हालत अब न घर की न घाट की वाली हो गई थी. सासससुर विजया और शंकर तो ठीक, इन के अलावा शादीशुदा दोनों बेटियां वर्षा और कोमल भी अकसर मायके आती रहती थीं. इन चारों में से किसी ने भी संघमित्रा का प्यार से स्वागत नहीं किया था.

शादीशुदा दोनों बेटियों में इस बात की समझ बिलकुल नहीं थी कि अब उन्हें मायके के कामों में किसी भी तरह की किचकिच नहीं करनी चाहिए. संघमित्रा को उलटेसीधे ताने मार कर अपमानित करने में वर्षा और कोमल को जैसे खुशी मिलती थी. महीने भर में ही ससुराल में संघमित्रा की हालत खराब हो गई. अब उसे खुद पर ही दया आने लगी कि उस ने यह क्या कर डाला. मम्मीपापा की मरजी के खिलाफ जा कर उस ने रोशन से विवाह किया था. यह आघात और समाज में अपनी बदनामी न सह पाने के कारण उस प्रौढ़ दंपति ने जहर पी कर आत्महत्या कर ली थी.

मम्मीपापा के विरोध की बात जब संघमित्रा ने रोशन से की थी, तब रोशन ने ही सलाह दी थी कि कुछ दिनों बाद उस के मम्मीपापा का भी विरोध शांत हो जाएगा. फिर वे खुशीखुशी उन्हें स्वीकार कर लेंगे. वह हिम्मत कर के घर छोड़ कर आ जाए. अपने मम्मीपापा की आत्महत्या का समाचार सुन कर संघमित्रा को लगा कि रोशन ने उसे गलत सलाह दे कर बेवकूफ बनाया था. संघमित्रा को लगा कि रोशन से विवाह कर के उस ने बहुत बड़ी गलती की है और अपने मम्मीपापा को खो दिया है. 21 साल की संघमित्रा इस वेदना में जल रही थी.

ऐसे में सासससुर, दोनों ननदें और पति रोशन सभी उसे सांत्वना देने के बजाए ताने मारते थे. उस से सहानुभूति के 2 शब्द कहने वाला कोई नहीं था. दिल की बात सुनने वाली अब एक ही जन थी, रोशन के मामा प्रमोद रामटेक की पत्नी रोजा. रोजा के दिल में संघमित्रा के लिए सहानुभूति थी. जब भी संघमित्रा के दिल की पीड़ा बरदाश्त से बाहर हो जाती तो वह रोजा के पास जा कर मन की बात कह कर हलका कर लेती.

सासससुर के अलावा संघमित्रा की दोनों ननदें भी उस की जैसे दुश्मन थीं. उसे एक ही बात कचोटती रहती थी कि विवाह के लिए रोशन ने उसे गलत सलाह दे कर उसे बेवकूफ बनाया था, जिस की वजह से उसे अपने पेरेंट्स को खोना पड़ा था. यह सब सोच कर संघमित्रा रोशन को भी धिक्कारती थी. विवाह के बाद रोशन का भी व्यवहार बदल गया था. जब कभी घर में झगड़ा होता, वह संघमित्रा को ही इस के लिए दोषी ठहराता था.

एक दिन घर में जोरदार झगड़ा हुआ. अकेली संघमित्रा के सामने सासससुर, ननदें और पति थे. इन सभी के मन में जो आ रहा था, वह उसे वही कह रहा था. सब तरफ से टूट चुकी 22 साल की अकेली संघमित्रा क्या करे? उस ने केरोसिन का डिब्बा उठा कर अपने ऊपर उड़ेल लिया. वह माचिस जला कर आग लगाती, उस के पहले ही मामी सास रोजा रामटेक वहां आ गई और संघमित्रा को समझा कर अपने घर ले गई. शाम को फिर संघमित्रा अपने घर आ गई.

कुछ दिनों बाद शंकर कुंभारे और विजया की तबीयत अचानक खराब हो गई. स्थानीय डाक्टर की सलाह पर दोनों को अहेरी में स्थित अस्पताल ले जाया गया. वहां के डौक्टरों की कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने दोनों को चंद्रापुर के बड़े अस्पताल भिजवा दिया. वहां इलाज शुरू हुआ, लेकिन उन की हालत में कोई बदलाव होते न देख दोनों को नागपुर ले जाया गया. डौक्टरों की कोई भी दवा उन दोनों पर काम ही नहीं कर रही थी. दोनों के अंगों में कंपकंपी, पीठ में भयानक दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.

शंकर कुंभारे और उन की पत्नी विजया के होंठ काले पड़ गए थे. जीभ एकदम मोटी हो गई थी. डौक्टरों ने उन्हें बचाने की कोशिश तो बहुत की, पर 4 दिन बाद शंकर की मौत हो गई. इस के अगले दिन विजया ने भी दम तोड़ दिया. मम्मीपापा की मौत के बाद रोशन को बहुत बड़ा धक्का लगा. एक ही तरह के लक्षणों से अचानक पतिपत्नी की मौत होने से पूरे गांव के लोग आश्चर्यचकित रह गए. इस आघात से घर वाले उबर पाते, उस के पहले एकदम वैसे ही लक्षण रोशन की बहन कोमल दहागांवकर में दिखाई दिए तो उसे तुरंत चंद्रापुर के अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की उसी दिन मौत हो गई.

बात यहीं खत्म नहीं हुई. कुंभारे परिवार पर अभी भी मौत का साया मंडरा रहा था. हफ्ते भर बाद उन्हीं लक्षणों के साथ वर्षा उराडे को अहेरी अस्पताल ले जाया गया, जहां उस की भी मौत हो गई. अगली सुबह रोशन कुंभारे को भी वही तकलीफ शुरू हुई तो उसे भी अहेरी अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत बताया. मम्मीपापा की मौत की खबर पा कर रोशन का बड़ा भाई सागर दिल्ली से भागाभागा आया था. उन का अंतिम संस्कार कर के वह दिल्ली गया तो वहां उस की भी तबीयत खराब हो गई. वह तुरंत दिल्ली स्थित एम्स में भरती हो गया, जहां उस की जान बच गई.

शंकर और विजया को कार से चंद्रापुर अस्पताल ले जाने वाले ड्राइवर राकेश मडावी में भी वैसे ही लक्षण दिखाई दिए तो वह नागपुर अस्पताल में भरती हो गया, जहां वह भी बच गया. मात्र 19 दिनों में एक ही परिवार के एकदम ठीकठाक 5 लोग एक ही तरह बीमार हुए और डौक्टर कुछ समझ पाते, उस के पहले ही मर गए. यह घटना पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गई. काला जादू और तांत्रिक क्रियाओं की बात भी फैली, पर जिले के एसपी जी. नीलोत्पल को यह पूरा मामला शंकास्पद लगा. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने खुद ही कमान संभालते हुए पुलिस की 4 टीमें बना कर महाराष्ट्र और तेलंगाना में इस घटना की जांच शुरू कराई.

एक टीम महागांव स्थित कुंभारे के घर पहुंची तो एकमात्र जीवित बची संघमित्रा के चेहरे पर पति सहित 5 स्वजनों को खोने के बावजूद रंचमात्र शिकन नहीं थी. जब इस बात की जानकारी जी. नीलोत्पल को हुई तो वह चौंके. परिवार के 5 लोगों की मौत हो गई और एक युवती जीवित कैसे रह गई? तब उन्होंने संघमित्रा की कुंडली खंगाली.

उन्हें पता चला कि संघमित्रा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की टौपर थी. आगे की जांच में पता चला कि कृषि विज्ञान में तरहतरह के जंतुनाशक और जहर का भी विस्तृत अध्ययन कराया जाता है. एक साल पहले ही संघमित्रा ने भाग कर रोशन कुंभारे के साथ प्रेम विवाह किया था. जिस के बाद संघमित्रा के पेरेंट्स ने आत्महत्या कर ली थी. इतनी जानकारी मिलने के बाद पांचों मरे हुए लोगों का इलाज करने वाले डाक्टरों से पूछताछ की गई. उन का कहना था कि यह हार्ट अटैक या मल्टीआर्गन फेल्योर जैसा मामला लगा था. इस के अलावा यह भी शंका हुई कि यह पौइजनिंग का मामला भी हो सकता है. पर यह क्या था, ठीक से समझ में नहीं आया.

अब तक की जांच से जी. नीलोत्पल को विश्वास हो गया था कि यह खतरनाक खेल संघमित्रा का हो सकता है. उन्होंने संघमित्रा को पूछताछ के लिए बुलाया. अधिकारियों की पूछताछ के बाद जब 2 महिला सिपाहियों ने संघमित्रा से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. संघमित्रा और मामी सास रोजा रामटेक की गिरफ्तारी के बाद प्रैस कौन्फ्रेंस में संघमित्रा के अपराध स्वीकारने के बाद पुलिस ने मीडियाकर्मियों को विस्तारपूर्वक जो जानकारी दी, उसे सुन कर सभी चौंक गए.

एक दिन संघमित्रा ने जब आत्महत्या की कोशिश की तो उस की मामी सास रोजा रामटेक ने उसे बचा लिया था. अपने घर ले जा कर रोजा ने उसे समझाया कि उसे मरने की क्या जरूरत है? अगर उस में हिम्मत है तो वह उसे परेशान करने वालों को ही खत्म कर दे. दरअसल, इस में बात यह थी कि प्रमोद और उस की पत्नी रोजा को कुंभारे परिवार से काफी नाराजगी थी. रोशन की मम्मी विजया और प्रमोद सगे भाईबहन थे. पापा की मौत के बाद विजया ने अपनी मम्मी को बहलाफुसला कर सारी प्रौपर्टी अपने नाम करा ली थी. मम्मी की मौत के बाद विजया ने तमाम प्रौपर्टी हड़प ली थी. प्रमोद और रोजा ने हिस्सा मांगा था तो विजया ने हिस्सा देने से साफ मना कर दिया था.

उस के बाद से विजया और प्रमोद के संबंधों में कड़वाहट भर गई थी. प्रमोद ने तो अपनी बहन को मन ही मन माफ कर दिया था, पर उस की पत्नी रोजा के मन में बदले की आग सुलग रही थी. उसी में उसे संघमित्रा मिल गई. संघमित्रा को भी कुंभारे परिवार पर गुस्सा था. रोजा तो पहले से ही इस परिवार को खत्म करने के लिए तत्पर थी. उस ने संघमित्रा से कहा, ”तुम पढ़ीलिखी होशियार हो. कोई ऐसा रास्ता खोजो कि काम भी हो जाए और किसी को पता भी न चले. इस काम में मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगी.’’

रोजा यानी मामी सास ने मदद करने का वचन दिया तो संघमित्रा की हिम्मत बढ़ गई. उस ने सभी को खत्म करने का निश्चय कर लिया. क्योंकि उस ने जिन लोगों के लिए अपने मम्मीपापा को खोया था, उन सभी लोगों ने उसे धोखा दिया था. संघमित्रा को अलगअलग जहर की पक्की जानकारी थी. रंग, गंध या स्वाद बिना का एक जहर खाने में तो ठीक अगर पीने के पानी में भी मिला दिया जाए तो पीने वाले को कुछ पता नहीं चलेगा. खाना तो संघमित्रा ही बनाती थी. उस ने उस जहर का नाम एक कागज पर लिख कर कहां और कैसे मिलेगा, यह समझा कर कागज रोजा को दे दिया. रोजा तेलंगाना जा कर वह जहर ले आई.

वह जहर स्लो पौइजन 4 दिन खाने या पानी में मिला कर दिया जाए तो किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और आदमी की मौत हो जाएगी. डौक्टर को भी लगेगा कि मौत हार्ट अटैक से हुई है. शंकर कुंभारे और विजया पर संघमित्रा ने पहला प्रयोग किया और उन दोनों की मौत हो गई. उन दोनों को अस्पताल ले जाने वाले ड्राइवर ने भी एक टाइम उन के यहां खाना खाया था, इसलिए उस पर उस जहर का असर हुआ था. मम्मीपापा का अंतिम संस्कार करने दिल्ली से आए रोशन के बड़े भाई सागर ने एक दिन घर में खाना खाया था, इसलिए वह भी तकलीफ में पड़ गया था, पर दिल्ली जा कर वह एम्स में भरती होने से बच गया था.

सासससुर को विदा करने के बाद उसी तरह संघमित्रा ने दोनों ननदों और पति को भी मौत के मुंह में भेज दिया था. अपने ज्ञान का दुरुपयोग करते हुए संघमित्रा ने मात्र 20 दिनों में बड़ी होशियारी से 5 लोगों की हत्या कर दी थी. उस के इस खतरनाक खेल में अपनी दुश्मनी निकालने के लिए रोजा रामटेक ने उस की पूरी मदद की थी. रोजा के पति प्रमोद की इस सारे मामले में पुलिस को कहीं से भी कोई भूमिका नजर नहीं आई, इसलिए पुलिस ने पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया था.

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में स्नातक की परीक्षा में टौप करने वाली 22 साल की संघमित्रा और उस की 36 साल की मामी सास रोजा रामटेक ने मिल कर कुंभारे परिवार का सत्यानाश कर दिया था. गिनती के 20 दिनों में 5 लोगों की हत्या करने वाली संघमित्रा और रोजा गढ़चिरौली की जेल में बंद हैं. Love Story in Hindi

 

 

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