Real Crime Story Hindi : महबूब अली और योगेश अच्छे दोस्त थे. दोनों की दोस्ती के बीच ऐसी क्या वजह पैदा हो गई कि महबूब ने उस की हत्या कर लाश के 6 टुकड़े कर दिए. रोजाना की तरह 16 नवंबर, 2014 को भी ओमप्रकाश अपनी परचून की दुकान खोलने गया. उस की दुकान दक्षिणपुरी में गुरुद्वारे के पास ब्लौक नंबर-13 में थी. वह अपनी दुकान के काउंटर को दुकान बंद करते समय बाहर ही छोड़ जाता था. जैसे ही वह दुकान पर पहुंचा. उसे दुकान के बाहर रखे काउंटर और दुकान के शटर के बीच प्लास्टिक की एक बोरी रखी मिली. वहां बोरी देख कर वह मन ही मन बुदबुदाया कि पता नहीं यह बोरी यहां किस ने रख दी है?

सफेद रंग की उस बोरी को वह गौर से देखने लगा. तभी उसे उस के खुले हिस्से से इंसान के पैर दिखाई दिए. यह देखते ही वह समझ गया कि इस में जरूर किसी की लाश है. घबरा कर उस ने आसपास रहने वाले लोगों को बुला लिया. इस के बाद तो वहां लोगों का मजमा जुट गया. अब सभी के मन में यही सवाल उठ रहा था कि पता नहीं इस में किस की लाश है, ओमप्रकाश ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर यह सूचना दे दी. दक्षिणपुरी इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अंबेडकर नगर के तहत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से खबर अंबेडकर नगर थाने को दे दी गई. सूचना मिलने पर इंसपेक्टर अजब सिंह सबइंसपेक्टर आनंद कुमार झा और कांस्टेबल संजय को ले कर सूचना में बताए गए पते की ओर रवाना हो गए.

वह स्थान थाने से बमुश्किल 500-600 मीटर दूर था इसलिए वह जल्द ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा ब्लौक नंबर 13 के फ्लैट नंबर 282 के आगे भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अजब सिंह ने उस बोरी का मुआयना किया तो उन्हें भी वह संदिग्ध नजर आया. उन्होंने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुला लिया. टीम के सामने ही उस कट्टे को खोला गया. बोरी के खुलते ही पुलिस और वहां मौजूद लोग हक्केबक्के रह गए. उस के अंदर घुटनों से कटे हुए 2 पैर निकले. वे किसी आदमी के थे. दाहिने पैर में नीले रंग की जींस भी थी. उसी बोरी में घुटनों से कमर तक का हिस्सा भी मिला.

लोग देख कर दंग थे कि किसी ने इसे कितनी क्रूरता से काटा था. और पता नहीं यह कौन है. लाश के 3 टुकड़े मिलने के बाद पुलिस की परेशानी बढ़ गई. इंसपेक्टर अजब सिंह ने यह सूचना थानाप्रभारी पंकज मलिक को दी तो वह भी मौके पर पहुंच गए. कातिल ने लाश का आधा हिस्सा यहां डाला है तो बाकी का हिस्सा भी आसपास कहीं डाला होगा. पुलिस इधरउधर घूम कर बाकी हिस्से को ढूंढने लगी. इस काम में इलाके के लोग भी पुलिस का सहयोग करने लगे. ओमप्रकाश की परचून की दुकान से करीब 50-60 कदम की दूरी पर कुछ खोखे रखे हुए थे. वे खोखे अकसर बंद रहते थे. उन्हीं खोखों के सामने लोग अपनी कारें पार्क कर देते थे. वह जगह एकांत रहती थी.

पुलिस उन खोखों की तरफ भी गई. वहीं पर एक लोहे के खोखे और मारुति वैन के बीच की खाली जगह में पुलिस को प्लास्टिक की एक और बोरी दिखी. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम की मौजूदगी में जब वह बोरी खोली गई तो उस में एक आदमी का सिरविहीन धड़ मिला. उस का बायां हाथ कंधे से कटा हुआ था. वह हरे, गुलाबी व नीले रंग की चेकदार शर्ट पहने था. अब पुलिस ने पहली बोरी में मिले अंगों को दूसरी बोरी में मिले धड़ से मिला कर देखा तो पता चला कि वे एक ही आदमी के हैं. सिरविहीन लाश की शिनाख्त होनी मुश्किल थी. पुलिस ने बराबर में स्थित पार्क और अन्य जगहों पर सिर को तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला. लाश के 5 टुकड़े तो मिल चुके थे, अब केवल उस का सिर बाकी था.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि हत्यारे की मृतक से गहरी रंजिश रही होगी. तभी तो उस ने इतनी क्रूरता से लाश के टुकड़ेटुकड़े किए हैं. इन सब बातों से लग रहा था कि कातिल बेहद शातिर है. बोरियों में 5 टुकड़ों में लाश मिलने की बात थोड़ी ही देर में दक्षिणपुरी और अंबेडकरनगर क्षेत्र में फैल गई. तमाम लोग लाश के टुकड़ों को देखने के लिए ब्लौक नंबर-13 में पहुंचने लगे. सभी लोग इस बात से हैरान थे कि कातिल ने लाश के इतने टुकड़े क्यों किए? डीसीपी मनदीप सिंह रंधावा और एसीपी दीपक यादव भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश के सभी टुकड़ों का गौर से निरीक्षण किया तो उस के दाहिने हाथ का अंगूठा आधा कटा हुआ दिखा. वह अभी का नहीं, बल्कि पुराना कटा हुआ था.

दक्षिणपुरी के ब्लौक नंबर-13 के फ्लैट नंबर 27 में रहने वाले रामचंद्र का 23 साल का बेटा योगेश पिछले 2 दिनों से गायब था. रामचंद्र ने उसे अपनी रिश्तेदारियों में तलाशा था और उस के दोस्तों से भी पूछा, लेकिन उस के बारे में पता नहीं चला था. उस का फोन भी बंद आ रहा था. थाने में सूचना देने के बजाय रामचंद्र अपने स्तर से ही उसे खोज रहा था. उसे भी जब बोरियों में लाश के टुकड़े मिलने की जानकारी हुई तो वह भी मौके पर पहुंच गया. उस के बेटे योगेश के दाहिने हाथ का अंगूठा भी आधा कटा हुआ था. उस ने जैसे ही लाश के टुकड़े देखे, उस के होश उड़ गए. क्योंकि योगेश जिस तरह के कपड़े पहन कर घर से निकला था, वैसे ही कपड़े लाश पर थे. ‘

जब उस ने मृतक के दाहिने हाथ का अंगूठा देखा, उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. सिर के बिना ही उस ने वह लाश पहचान ली. उस ने पुलिस को बताया कि कदकाठी, कपड़ों और कटे अंगूठे से वह लाश के टुकड़े उस के बेटे योगेश के ही हैं. लाश की शिनाख्त हो ही चुकी थी. इस के बावजूद भी पुलिस ने उस का सिर ढूंढने की कोशिश की. जब आसपास उस लाश का सिर नहीं मिला तो पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश के उन टुकड़ों को पोस्टमार्टम के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने का मामला दर्ज कर लिया. साथ ही एक आदमी की लाश का सिर न मिलने की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष से सभी थानों को भेज दी, ताकि कहीं सिर मिलने पर उसे बरामद किया जा सके.

पुलिस ने रामचंद्र से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया कि योगेश एक प्राइवेट अस्पताल में वार्डबौय था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी, इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की यह हालत किस ने की. मामला बेहद पेचीदा लग रहा था, इसलिए डीसीपी मनदीप सिंह रंधावा ने एसीपी दीपक यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी पंकज मलिक, अतिरिक्त थानाप्रभारी अजब सिंह, सबइंसपेक्टर आनंद कुमार झा, राम सिंह, हेडकांस्टेबल बंसीलाल, कांस्टेबल विनीत कुमार, संजय, संदीप आदि को शामिल किया गया.

पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती योगेश के सिर को बरामद करने की थी. पुलिस टीम ने इलाके के पार्कों, नालों में उसे खोजा. दक्षिणपुरी से ले कर जामिया हमदर्द, तारा अपार्टमेंट के पास तक काफी बड़े भाग में जहांपनाह सिटी फौरेस्ट फैला हुआ है. सिर की तलाश में टीम ने उस फौरेस्ट को भी छान मारा, लेकिन सिर का कहीं पता नहीं चला. सिर ढूंढना पुलिस के लिए एक चुनौती भरा काम हो गया था. पुलिस यही मान कर चल रही थी कि जितनी बेदर्दी के साथ हत्यारों ने लाश के टुकड़े किए थे, इस के पीछे कोई प्रेमकहानी रही होगी. मृतक के किसी लड़की के साथ प्रेमसंबंध रहे होंगे, फिर उस लड़की के घर वालों या उस के दूसरे प्रेमी ने योगेश का यह हाल किया होगा.

पुलिस ने 17 नवंबर को फिर रामचंद्र से इस बारे में पूछताछ की कि कहीं उस के बेटे योगेश का किसी लड़की से कोई चक्कर तो नहीं था. रामचंद्र ने इस बात से इनकार कर दिया. तब पुलिस ने योगेश के दोस्तों से मालूमात की तो उन्होंने भी बता दिया कि योगेश इस तरह का नहीं था. योगेश जिस निजी अस्पताल में नौकरी करता था, पुलिस वहां पहुंच गई. अस्पताल में लड़कियां भी काम करती थीं. कहीं वहीं पर उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं था, यह जानने के लिए पुलिस ने अस्पताल के स्टाफ से भी पूछताछ की. वहां से पुलिस को पता चला कि योगेश का वहां किसी लड़की से कोई चक्कर नहीं था. योगेश अस्पताल में बस अपने काम से मतलब रखता था. किसी से फालतू बातें तक नहीं करता था.

जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस टीम फिर से क्षेत्र में ही लोगों से पूछताछ करने में जुट गई. उसी दौरान पुलिस को पता चला कि 14 नवंबर की रात करीब 9 बजे योगेश को महबूब अली नाम के शख्स के साथ देखा गया था. महबूब की दक्षिणपुरी में 13 नंबर ब्लौक में हेयर कटिंग की दुकान थी. पुलिस उस की दुकान पर गई तो वह बंद मिली. आसपास के लोगों ने बताया कि यह दुकान पिछले 3 दिनों से बंद है. महबूब दुकान के ऊपर ही बने कमरे में अपने परिवार के साथ रहता था. पुलिस उस के कमरे पर गई तो उस पर ताला बंद मिला. मकान मालिक ने बताया कि महबूब ने अपनी पत्नी और बच्चों को 15 नवंबर को अपने गांव भेज दिया था. उस ने बताया था कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं था. उस की देखभाल के लिए ही उस ने पत्नी को मायके भेजा है.

पूछने पर मकान मालिक ने बताया कि महबूब मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के गांव राजा का ताजपुर का रहने वाला था. थानाप्रभारी योगेश मलिक ने एसआई आनंद कुमार झा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम तुरंत बिजनौर रवाना कर दी. दिल्ली पुलिस की टीम महबूब अली के घर बिजनौर पहुंच गई. वहां उस की बीवी नसरीन तो मिल गई, लेकिन वह नहीं मिला. नसरीन ने बताया कि महबूब गांव आया ही नहीं था. वह तो दिल्ली से यहां अकेली ही आई थी. उसे यह कह कर गांव भेजा था कि मां की तबीयत खराब है. लेकिन यहां आई तो ऐसा कुछ नहीं था.

पुलिस के दिमाग में यह सवाल पैदा हुआ कि महबूब ने अपनी पत्नी को झूठ बोल कर दिल्ली से गांव क्यों भेजा? महबूब वहां नहीं मिला तो पुलिस टीम बैरंग दिल्ली लौट आई. इन सब बातों से पुलिस को महबूब पर शक होने लगा. दिल्ली लौटने के बाद पुलिस महबूब अली की खोज में जुट गई. इसी दिन 17 नवंबर को दिल्ली के जामिया नगर इलाके के जोगाबाई एक्सटेंशन में नूर मसजिद के पास कूड़ाघर में पौलीथिन की एक थैली में एक सिर मिला. वह सिर कूड़ा बीनने वाले एक लड़के ने देखा था. इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को मिली तो जामिया नगर थाना पुलिस वहां पहुंची.

वह सिर पौलीथिन की कई थैलियों में बंधा हुआ था, जिस की वजह से वह सड़ने लगा था. सड़ने की वजह से उस की पहचान नहीं हो पाई. अंबेडकरनगर थानाक्षेत्र में टुकड़ों में सिरविहीन लाश बरामद होने की खबर वायरलैस से दिल्ली के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस यह मान रही थी कि बरामद सिर अंबेडकरनगर में मिली लाश का हो सकता है. जामिया नगर पुलिस ने अज्ञात सिर बरामद होने की सूचना थाना अंबेडकर नगर पुलिस को दी तो थानाप्रभारी पंकज मलिक मृतक योगेश के पिता रामचंद्र को साथ ले कर जामिया नगर पहुंच गए. रामचंद्र ने उस सिर को देखते ही पहचान लिया था वह सिर योगेश का था. पुलिस ने लिखापढ़ी कर के वह सिर भी पोस्टमार्टम के लिए एम्स भेज दिया.

मृतक योगेश के शरीर के सारे अंग बरामद हो चुके थे. पुलिस को फरार महबूब अली पर ही शक था. वह उस की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 17 नवंबर, 2014 की शाम को अंबेडकरनगर क्षेत्र में ही पुष्पा भवन के बसस्टाप से महबूब अली को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से योगेश की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि योगेश की हत्या उस ने ही की थी. उस ने यह भी बताया कि योगेश उस का दोस्त था. दोस्त की हत्या कर लाश के कई टुकड़ों में काटने की उस ने जो कहानी बताई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

महबूब अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के गांव राजा का ताजपुर के रहने वाले हकीमुद्दीन का बेटा था. हकीमुद्दीन के 8 बेटे और 3 बेटियां थीं. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह किसी को पढ़ा नहीं सके. बच्चे जैसेजैसे जवान होते गए, हकीमुद्दीन उन की शादियां करते गए. महबूब अली की परवरिश भले ही गांव में हुई थी, लेकिन उस का गांव में मन नहीं लगता था. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे. 10-12 साल पहले वह भी उन के साथ काम की तलाश में दिल्ली आ गया. दिल्ली में उसे एक हेयर कटिंग सैलून पर नौकरी मिल गई.

वहां काम करने के दौरान जल्दी ही महबूब अली समझ गया था कि इस काम में कम खर्च में ज्यादा आमदनी है. लिहाजा उस ने दिल्ली के थाना अंबेडकरनगर क्षेत्र में दक्षिणपुरी के 13 नंबर ब्लौक में हेयर कटिंग की दुकान खोल ली. दुकान के ऊपर ही वह किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. थोड़े दिनों में ही उस का काम चल निकला तो हकीमुद्दीन ने उस का निकाह नसरीन नाम की एक लड़की से कर दिया. महबूब अपनी बीवी को भी दिल्ली ले आया. दुकान से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी. इसलिए उस की गृहस्थी बड़े मजे से चल रही थी. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा और वह एकएक कर के 5 बच्चों का बाप बन गया.

परिवार बढ़ने पर भी उस के सामने कोई आर्थिक परेशानी नहीं आई, क्योंकि उसे दुकान से अच्छी आमदनी हो रही थी. लेकिन इसी दौरान महबूब अली को जुआ खेलने का शौक लग गया. दरअसल, उस की दुकान पर कुछ ऐसे लड़के आते थे, जो जुआरी थे. उन्हीं की संगत में आ कर उसे भी जुआ खेलने की लत लग गई. आए दिन जुए में पैसे हारने की वजह से महबूब अली को आर्थिक परेशानी होने लगी. नसरीन ने उसे काफी समझाया, लेकिन उस ने जुआ खेलना नहीं छोड़ा. दक्षिणपुरी का रहने वाला योगेश भी महबूब का दोस्त था. वह एक निजी अस्पताल में नौकरी करता था. वह भी पक्का जुआरी था. महबूब रात को अपनी दुकान का शटर बंद कर के दुकान के अंदर ही दोस्तों के साथ जुआ खेलता था. पिछले 2-3 महीनों में वह योगेश से करीब 70-80 हजार रुपए हार चुका था.

14 नवंबर, 2014 की रात लगभग साढ़े 9 बजे योगेश उस की दुकान पर जुआ खेलने चला आया. उस दिन योगेश शराब भी पिए था. शटर बंद कर के योगेश और महबूब अली जुआ खेलने लगे. कुछ देर बाद योगेश का दोस्त विकास भी जुआ खेलने के मकसद से उस की दुकान पर पहुंच गया. उस ने शटर खटखटा कर महबूब अली को आवाज दी और शटर खोलने को कहा. विकास की आवाज पहचान कर अंदर से ही योगेश ने कह दिया कि शटर नहीं खुलेगा. तब विकास वापस चला गया. करीब एकडेढ़ घंटे तक योगेश और महबूब जुआ खेलते रहे. उस बीच महबूब उस से करीब 2 हजार रुपए हार चुका था. महबूब के सारे पैसे खत्म हो चुके थे. उसे लगा कि योगेश कोई चालफेर कर के उस के पैसे जीत लेता है. उस ने यह शिकायत उस से की और अपने पैसे वापस मांगे.

योगेश ने पैसे देने से मना कर दिया तो महबूब उस से झगड़ने लगा. महबूब के पास घर के खर्च के लिए भी पैसे नहीं थे. योगेश द्वारा पैसे न लौटाने पर महबूब परेशान हो गया. तभी उस के दिमाग में आया कि अगर वह योगेश को जान से मार दे तो कम से कम आज के हारे हुए पैसे मिल जाएंगे. यही सोच कर उस ने दुकान में रखी कुरसी के पीछे लगे हेड रेस्ट सपोर्टर से उस पर हमला करना शुरू कर दिया. सिर पर 2-3 वार करने से योगेश बेहोश हो गया. महबूब ने सोचा कि योगेश शायद मर गया है. उस ने सब से पहले उस की जेब से सारे पैसे निकाले. उसी समय उसे उस के शरीर में हरकत होती दिखी तो उस ने उसी समय उस का गला दबा दिया. फिर वह उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा.

उस ने उस की लाश उठाने की कोशिश की. योगेश तगड़ा था, इसलिए उस की लाश को वह उठा नहीं पाया तो वह दुकान से बाहर निकला और शटर बंद कर के अपने कमरे पर सोने के लिए चला गया. अगले दिन उस ने पत्नी नसरीन को यह कह कर घर भेज दिया कि गांव में मां की तबीयत खराब है. बीवीबच्चों के चले जाने के बाद महबूब ने गांव में रह रहे छोटे भाई नासिर को फोन कर के बता दिया कि उस के हाथ से एक खून हो चुका है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने नासिर को दिल्ली बुला लिया. उसी दिन शाम तक नासिर उस के पास पहुंच गया. इसी दौरान महबूब बाजार से एक चापर और प्लास्टिक की बोरियां खरीद लाया.

रात होने पर महबूब ने शटर खोल कर भाई को योगेश की लाश दिखाई. दोनों ने सब से पहले चापर से योगेश की गरदन काट कर पौलीथिन की थैली में रखी. खून न बहे, इसलिए उस सिर को पौलीथिन की कई थैलियों में रखा. इस के बाद उन्होंने घुटनों से उस के दोनों पैर काटे, फिर कमर से नीचे से धड़ भी काट दिया. ये सारे टुकड़े उस ने प्लास्टिक की दोनों बोरियों में भर दिए. उस का मोबाइल नासिर ने अपने पास ही रख लिया था. आधी रात के बाद उन्होंने एक बोरी पास में ही स्थित ओमप्रकाश की परचून की दुकान के काउंटर के पास और दूसरी कुछ दूर ही खोखों के पास डाल दीं. रात में ही दोनों ने दुकान की सफाई कर दी थी.

नासिर पहले जामिया नगर इलाके में काम कर चुका था. उसे उस इलाके की अच्छी जानकारी थी. एक रंगीन थैली में सिर वाली थैली रख कर वह जामिया नगर ले गया और वह वहां एक कूड़ाघर में डाल दी. वह सिर उस ने दूर इसलिए डाला था, ताकि लाश के अन्य टुकड़ों की शिनाख्त न हो सके. योगेश का मोबाइल और बेल्ट नासिर ने जहांपनाह सिटी फौरेस्ट में डाल दिया था. अपना काम निपटाने के बाद नासिर अपने गांव लौट गया. महबूब ने लाश ठिकाने लगा कर खुद को बचाने की योजना तो बहुत अच्छी बनाई थी, लेकिन वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने नासिर को उस के गांव राजा का ताजपुर से गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया. मामले की जांच थानाप्रभारी पंकज मलिक कर रहे हैं. Real Crime Story Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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