आनंद कुमार पंजाबी बाग के ईस्ट एवेन्यू रोड पर स्थित अपनी कोठी में पत्नी रीना गुप्ता और बेटी के साथ रहते थे, जबकि बेटा सौरभ अपनी पत्नी पूनम के साथ कर्मपुरा की कोठी में रहता है. सौरभ रोजाना सुबह करीब 11 बजे अपनी होंडा सिटी कार नंबर डीएल07सी ई4000 से पश्चिम विहार के शोरूम के लिए निकल जाते और रात साढ़े 9 बजे शोरूम बंद करा कर घर लौटते थे. लेकिन 9 दिसंबर, 2017 को वह साढ़े 10 बजे तक भी घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी पूनम ने उन के मोबाइल पर फोन किया.

उधर से सौरभ ने रोने जैसी आवाज में कहा कि वह एक घंटे में घर पहुंच जाएंगे. सौरभ की ऐसी आवाज सुन कर पूनम परेशान हो गईं. क्योंकि जब भी वह पति से बात करती थीं, वह खुश हो कर बात करते थे. पति की बात से उन्हें लगा जैसे वह किसी परेशानी में हैं. उन का मन नहीं माना तो उन्होंने फिर से पति को फोन लगा दिया. पर इस बार उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. उन्होंने 2-3 बार फिर ट्राई किया, हर बार फोन बंद ही मिला. इस से पूनम की चिंता बढ़ गई.

पूनम ने यह बात फोन कर के अपनी सास रीना गुप्ता को बता दी. रीना गुप्ता ने भी सौरभ को फोन लगाया तो उन का फोन अब भी बंद आ रहा था. इस के बाद पूनम और उन के पति ने बेटे को कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार बंद ही मिला. वे दोनों भी परेशान हो गए कि आखिर उस का फोन बंद क्यों है.

इस के करीब आधे घंटे बाद सौरभ ने अपनी मम्मी रीना गुप्ता के मोबाइल पर फोन किया. इस से पहले कि मां उन से कुछ पूछती, सौरभ ने कहा कि पापा से बात कराओ. तब रीना ने फोन अपने पति आनंद कुमार को दे दिया. जैसे ही आनंद कुमार ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हम ने सौरभ को धर लिया है, यह अभी गाड़ी चला रहे हैं. आप कोई टेंशन नहीं लेना. न ही कोई काररवाई करने की जरूरत है. अब सुबह तुम से वाट्सऐप पर बात करेंगे.’’ इस के बाद फोन कट गया.

बेटे के अपहरण की बात सुनते ही आनंद कुमार के जैसे होश उड़ गए. बेटा किस हाल में और कहां है, यह जानने के लिए उन्होंने बेटे का नंबर मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से उन की बेचैनी बढ़ गई. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. पत्नी रीना को उन्होंने बेटे का अपहरण हो जाने की जानकारी दी तो उन की आंखों में आंसू छलक आए.

वैसे अपहर्त्ता ने उन्हें किसी से बात न करने की चेतावनी दी थी लेकिन आनंद बेटे को ले कर बहुत चिंतित हो गए थे, इसलिए उन्होंने उसी समय अपने शुभचिंतकों को फोन कर के इस बारे में सलाह मांगी तो सभी ने यही सुझाव दिया कि ऐसे मामले बहुत संवेदनशील होते हैं, इसलिए सूचना थाने में दे देना ही ठीक रहेगा.

आनंद कुमार ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर काल कर दी. पुलिस कंट्रोल रूम की तरफ से वह काल पश्चिमी जिले के मोतीनगर थाने को फारवर्ड कर दी गई. मोतीनगर थाने की पुलिस आनंद कुमार से मिली. तब पता चला कि घटनास्थल मोतीनगर थाने का न हो कर बाहरी जिले के पश्चिम विहार थानाक्षेत्र का है.

रात 3 बजे के करीब आनंद कुमार थाना पश्चिम विहार पहुंच गए. थानाप्रभारी उस समय रात्रि पैट्रोलिंग के लिए गए हुए थे. ड्यूटी अफसर ने अपहरण की सूचना दी तो वह थाने लौट आए. आनंद कुमार ने थानाप्रभारी को पूरी बात बताते हुए बेटे के अपहरण की आशंका जताई.

मामला एक उच्च व्यवसाई के बेटे का था, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी डीसीपी एम.एन. तिवारी को दी. डीसीपी ने तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर थानाप्रभारी को जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 365 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

बेटे के अपहरण पर सन्न रह गए मांबाप  सौरभ चूंकि अपनी सफेद रंग की होंडा सिटी कार में थे और उन्हें कार सहित ही अगवा कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दिल्ली के सभी थानों में वायरलैस से मैसेज प्रसारित कर के यह जानकारी पाने की कोशिश की कि डीएल7सी ई4000 नंबर की कार कहीं लावारिस हालत में तो नहीं मिली. लेकिन सुबह होने तक भी पश्चिम विहार पुलिस को इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

रात भर सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने पर उन के घर वाले बहुत परेशान थे. वह उस की सलामती की दुआ मांग रहे थे. 10 दिसंबर को ही सुबह 10 बज कर 40 मिनट पर आनंद कुमार के मोबाइल पर बेटे सौरभ का फोन आया. फोन स्क्रीन पर उस का नाम देख कर आनंद कुमार की आंखों में कुछ चमक आई. उन्होंने तुरंत काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, कैसे हो तुम?’’ पर दूसरी ओर से सौरभ नहीं बल्कि कोई और शख्स था. वह बड़ी ही शालीनता से बोला, ‘‘आनंद भाई.’’

‘‘हां जी.’’ आनंद कुमार बोले.

‘‘ध्यान से सुनो, आप का लड़का हमारे पास सुरक्षित है.’’ अपहर्त्ता बोला.

‘‘ठीक है जी.’’ आनंद कुमार ने भी प्यार से जवाब दिया.

तभी अपहर्त्ता बोला, ‘‘बस आप से यह विनती है कि जैसे हम आप को श्योरिटी दे रहे हैं न कि आप का लड़का हम सुरक्षित देंगे, वैसे ही आप को भी श्योरिटी देनी पड़ेगी कि आप को कोई कदम नहीं उठाना है. देखो जी, आप भी परिवार वाले हो और हम भी परिवार वाले हैं.’’

‘‘ठीक है भाईसाहब.’’ आनंद कुमार बोले.

‘‘समझते हैं हम, आप की भी मजबूरी है…ठीक है जी.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

‘‘हां जी.’’ आनंद कुमार ने जवाब दिया.

‘‘आप का छोरा एकदम ठीक है. हम ने उस से कुछ भी नहीं कहा है. जब वह घर आएगा तो आप उस से मालूम कर लेना.’’ अपहर्त्ता बोला.

‘‘बहुत बढि़या जी, आप का शुक्रिया.’’ आनंद कुमार ने कहा.

‘‘हम तो ठीक ही करते आ रहे हैं,’’ वह बोला, ‘‘अब मुद्दे की बात सुन लो. हमें 5 करोड़ रुपए चाहिए. रकम हमें मिल जाएगी तो आप का छोरा सहीसलामत मिल जाएगा, वरना मजबूरी में हमें…’’

‘‘नहींनहीं, आप बेटे को कुछ नहीं करना. जैसा आप कहेंगे मैं वैसा ही करने को तैयार हूं.’’ आनंद कुमार ने भी उसे आश्वासन दिया.

‘‘पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह हम बाद में बता देंगे.’’ कह कर अपहर्त्ता ने फोन काट दिया.

आनंद कुमार की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह सब उन्होंने पुलिस को बता दी. पुलिस ने सौरभ के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 9 दिसंबर की रात साढ़े 10 बजे के करीब जो काल की गई थी, उस की लोकेशन विकासपुरी की थी, अब जो काल आई थी, उस की लोकेशन निलोठी (निहाल विहार) की थी.

10 दिसंबर की सुबह को ही आनंद कुमार ने बाहरी दिल्ली जिले के डीसीपी एम.एन. तिवारी से मुलाकात कर अपने बेटे की सुरक्षित बरामदगी की मांग की. पश्चिम विहार के थानाप्रभारी डीसीपी को इस मामले से पहले ही अवगत करा चुके थे.

इसलिए इस हाईप्रोफाइल किडनैपिंग के मामले को गंभीरता से लिया गया. उन्होंने केस को सुलझाने में स्पैशल सेल, थाना पुलिस, बाहरी जिले के स्पैशल स्टाफ सहित 5 टीमें लगा दीं. सभी टीमें अपनेअपने तरीके से किडनैपर्स तक पहुंचने की कोशिश में लग गईं.

जिन जगहों से आनंद कुमार को फिरौती की काल की गई थी, पुलिस टीम वहां भी गई. इसी दौरान दोपहर लगभग 12 बजे और साढ़े 12 बजे किडनैपर ने आनंद कुमार को फोन किया. उस ने जल्द से जल्द पैसे उपलब्ध कराने को कहा. उस ने चेतावनी दी कि ऐसा न होने पर आप बेटे से हाथ धो बैठेंगे. उस की लाश टुकड़ेटुकड़े कर के ऐसी जगह ठिकाने लगा दी जाएगी कि ढूंढते रह जाओगे.

‘‘ऐसा मत कीजिए. देखिए, आप हमारी प्रौब्लम को समझने की कोशिश कीजिए. यह बात तो आप भी समझते हैं कि इतनी बड़ी रकम कोई भी आदमी घर में तो रखता नहीं है. आज संडे की वजह से बैंक भी बंद हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि 5 करोड़ रुपए मैं कल सोमवार को बैंक से निकाल कर आप को दे दूंगा. आप मुझे कल तक का समय दे दीजिए. कल आप का काम हो जाएगा.’’ आनंद कुमार ने अपहर्त्ता को विश्वास दिलाते हुए कहा.

‘‘हम आप को कल यानी सोमवार 2 बजे तक का समय दे रहे हैं. बस यह समझ लीजिए कि 2 बजे तक पैसे न देने पर आप का जो नुकसान होगा, उस के जिम्मेदार आप ही होंगे. और इस गलती का आप जिंदगी भर अफसोस करते रहेंगे.’’ अपहर्त्ता ने धमकी दी.

अपहर्त्ता द्वारा दोपहर 12 और साढ़े 12 बजे जो काल की गई थी, उन की लोकेशन कंझावला के घेबड़ा गांव और बहादुरगढ़ के कसार गांव की पाई गईं. एक खास बात यह थी कि अबकी बार बात सौरभ के फोन नंबर से नहीं की गई थीं. फोन नंबर कोई दूसरा था पर आईएमईआई नंबर सौरभ के फोन का था. इस का मतलब यह था कि अपहर्त्ताओं ने सौरभ के फोन में अपना सिमकार्ड डाल लिया था. उस फोन में जो सिमकार्ड डाला था, जांच में पता चला कि वह सिमकार्ड फरजी कागजों पर लिया गया था. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की आखिरी लोकेशन दिल्ली के ही चंदरविहार इलाके की मिली. अब सभी पुलिस टीमें चंदरविहार पहुंच गई.

बाहरी जिले के स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर सुखबीर मलिक के नेतृत्व में भी एक टीम काम कर रही थी. इस टीम में एसआई प्रह्लाद, कमलेश, महिला एसआई निशू, एएसआई संजय, राजवीर सिंह, हेडकांस्टेबल धर्मेंद्र, जसबीर, कांस्टेबल परमजीत, संदीप यादव, राजेंद्र, हनुमान, संदीप, दिलीप, अजय, अमित, सुनील आदि शामिल थे.

पुलिस ने सेल्समेन बन कर की जांच डीसीपी ने इंसपेक्टर सुखबीर मलिक की टीम को निर्देश दिए कि वह किसी मोबाइल कंपनी का प्रतिनिधि बन कर चंदरविहार में डोर टू डोर सर्वे करने में लग जाए. उन्होंने ऐसा ही किया. उन्होंने लोगों को बताया कि वह मोबाइल नंबर को आधार नंबर से लिंक करने की प्रक्रिया के तहत सर्वे कर रहे हैं. इस औपरेशन के द्वारा वह उस फोन नंबर तक पहुंचना चाहते थे, जिस से अपहर्त्ता ने फिरौती के लिए फोन किए थे. पूरे दिन टीम डोर टू डोर करीब 250 घरों में गई. 4-5 मकान ऐसे थे जो बंद मिले.

उन बंद मकानों में कौनकौन रह रहा है, पुलिस ने पड़ोसियों से इस बात की जानकारी हासिल की. उन्हीं में से एक बंद मकान था सी-111ए. लोगों ने बताया कि इस में कुछ दिनों पहले ही एक किराएदार आया था. कभीकभी यहां 2 लड़के आते हैं. पुलिस के पास अपहृत सौरभ गुप्ता का फोटो था ही, इसलिए पुलिस लोगों को वह फोटो दिखा कर यह भी पूछ रही थी कि इसे यहां देखा है क्या? पर लोगों ने मना कर दिया.

पासपड़ोस में जो सीसीटीवी कैमरे लगे थे, पुलिस ने उन की फुटेज देखी. एक डाक्टर के मकान के आगे जो सीसीटीवी कैमरा लगा था, उस की फुटेज में 3 आदमी जाते दिखे. जिस में 2 आदमी पैदल ही एक अन्य आदमी को पकड़ कर ले जा रहे थे. जिस मकान की तरफ वे गए थे वह सी-111ए नंबर का ही मकान था, जो बंद था. स्पैशल स्टाफ की टीम पूरी रात उस मकान के आसपास रह कर उस की निगरानी करती रही. 11 दिसंबर की सुबह 5 बजे के करीब एक आदमी गली में टहलता दिखा. पुलिस ने उस आदमी से बात की तो उस ने बताया कि इस मकान के बाहर जो सफेद रंग की वैगनआर कार नंबर डीएल1सी वी5242 खड़ी है, वह उन्हीं की है जो इस कमरे में रहते हैं और ये कभीकभी आते हैं.

यह कार और उस मकान में रहने वाले लोग पुलिस के शक के दायरे में आ गए. इंसपेक्टर सुखबीर मलिक ने उस वैगनआर कार का टायर पंक्चर कर दिया, ताकि उस कार को कोई नहीं ले जा सके. इस के अलावा चंदरविहार के बाहर जाने वाले रास्तों को भी सील कर दिया गया. सुबह 8 बजे के करीब एक लड़का उस सफेद रंग की वैगनआर के पास आया और वह कार का मुआयना कर के चला गया. इंसपेक्टर मलिक ने तभी अपनी टीम को सतर्क कर दिया.

फिर सवा 9 बजे वहां एक ओला कैब आ कर रुकी. कुछ देर बाद 2 लड़के एक लड़के को पकड़ कर ओला कैब की तरफ लाते हुए दिखे. जिस लड़के को वे पकड़ कर ला रहे थे, वह लंगड़ा रहा था. उस लड़के को देख कर इंसपेक्टर मलिक चौंक गए क्योंकि वह वही सौरभ गुप्ता था, जिस का अपहरण हुआ था.

बिना मौका गंवाए उन्होंने टीम को इशारा कर दिया, जिस से पुलिस टीम ने उन सभी को घेर लिया. पुलिस ने उन दोनों युवकों को हिरासत में ले कर सौरभ गुप्ता को अपने कब्जे में ले लिया.

दोनों युवकों की तलाशी ली गई तो उन में से एक के पास से .380 बोर की पिस्टल मिली. पूछताछ में एक ने अपना नाम मनीष निवासी पश्चिमपुरी, दिल्ली तो दूसरे ने सतनाम सिंह उर्फ राजू निवासी तिलकनगर, दिल्ली बताया. पुलिस उन के कब्जे से अपहृत सौरभ गुप्ता को सकुशल बरामद कर चुकी थी.

पुलिस दोनों अपहर्त्ताओं को स्पैशल स्टाफ के औफिस ले गई, वहां पूछताछ के दौरान उन्होंने सौरभ गुप्ता के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

आनंद कुमार गुप्ता की गिनती जानेमाने सफल बिजनैसमैनों में होती है. सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दिल्ली और एनसीआर में उन के 46 मेगास्टोर हैं. सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के जरिए वह सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

23 वर्षीय मनीष 4-5 साल पहले करोलबाग में उन्हीं के सरगम इलैक्ट्रौनिक्स में नौकरी करता था. उस समय वह उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में रहता था. वहां उस ने दोढाई साल तक नौकरी की थी. नौकरी के दौरान वह इस कंपनी के मालिक आनंद कुमार और उन के बेटे सौरभ गुप्ता को भी जान गया था.

2 साल पहले मनीष की बहन अलका की शादी थी तो उस ने दहेज में दिए जाने वाले इलैक्ट्रौनिक्स आइटम खरीदने के बारे में आनंद कुमार से बात की. चूंकि मनीष उन के यहां काम कर चुका था, इसलिए उन्होंने उसे भारी छूट के साथ अपने पश्चिमविहार वाले स्टोर से उस के द्वारा मांगा गया सारा सामान दिलवा दिया. उस स्टोर पर आनंद कुमार का बेटा सौरभ गुप्ता बैठता था.

सरगम इलैक्ट्रौनिक्स से नौकरी छोड़ने के बाद मनीष गुरप्रीत के ओबराय कार सेल परचेज नाम के औफिस में नौकरी करने लगा था. यह औफिस विकासपुरी में था. यहीं पर मनीष की मुलाकात सतनाम से हुई थी. सतनाम गुरप्रीत का साला था. सतनाम और मनीष की गहरी दोस्ती हो गई थी. दोनों ही कोई ऐेसे काम की तलाश में थे, जिस से उन्हें मोटी कमाई हो सके.

उसी समय मनीष ने आइडिया दिया कि सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के मालिक का अपहरण कर लिया जाए तो एक ही झटके में मोटी कमाई हो सकती है.

‘‘किसी का अपहरण करना क्या कोई बच्चों का खेल है. और फिर वह कोई छोटामोटा आदमी तो है नहीं.’’ सतनाम बोला.

‘‘छोटेमोटे से हमें कुछ मिलेगा भी नहीं. देखो, मैं सौरभ को जानता हूं. वह बहुत डरपोक है. वह पश्चिम विहार के शोरूम पर बैठता है. बस वहीं से किसी तरह उस का अपहरण कर लिया जाए तो एक ही झटके में हमारी किस्मत बदल जाएगी. यह समझो कि कम से कम 4-5 करोड़ रुपए तो मिल ही जाएंगे.’’ मनीष ने बताया.

‘‘मगर यह सब होगा कैसे?’’ सतनाम ने पूछा.

‘‘इस की चिंता मत कर. हम प्लानिंग कर लेंगे.’’ मनीष ने समझाया.

इस के बाद दोनों ने सौरभ गुप्ता के अपहरण की योजना बनानी शुरू कर दी. सब से पहले मनीष ने चंदरविहार में एक कमरा किराए पर लिया ताकि अपहरण के बाद सौरभ को वहां रखा जा सके. फिर दोनों ने पश्चिमविहार में उन के स्टोर जा कर रेकी की. सौरभ कितने बजे शोरूम आते हैं और कितने बजे शोरूम से घर किन रास्तों से लौटते हैं, यह सब जानकारी हासिल कर ली.

पूरी योजना बनाने के बाद 9 दिसंबर को इस काम को अंजाम देने की फिराक में लग गए. रोजाना की तरह 9 दिसंबर को भी सौरभ रात साढ़े 9 बजे शोरूम बंद करा कर अपनी होंडा सिटी कार से अपने घर की तरफ चले. जैसे ही उन की गाड़ी कुछ दूर विद्यापीठ एजुकेशन के पास पहुंची तो पल्सर बाइक पर सवार मनीष और सतनाम ने उन की कार रोक ली. कार रोक कर सतनाम ने उन से कहा, ‘‘आप अपनी कार से एक बाइक वाले का एक्सीडेंट कर आए हैं. रुकने के बजाय आप भागे जा रहे हैं.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर सौरभ चौंके. क्योंकि उन से कोई एक्सीडेंट हुआ ही नहीं था. उन्होंने सफाई दी कि उन की कार से कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ है. इसी बहस के दौरान मनीष ने नशीला पदार्थ लगा रूमाल सौरभ के मुंह पर रख दिया.

कुछ ही पल में सौरभ बेहोश हो गए तो उन के हाथपैर बांध कर उन्होंने होंडा सिटी की पिछली सीट पर डाल दिया. फिर वे उन्हें विकासपुरी की तरफ ले गए. वहां से वह चंदरविहार स्थित अपने किराए के कमरे पर ले गए. इस के बाद वे इधरउधर जा कर सौरभ के पिता को फोन कर के फिरौती मांगने लगे. इस बीच होश आने पर सौरभ ने कुछ चालाकी दिखाने की कोशिश की तो उन्होंने उस की जबरदस्त पिटाई कर के उसे इतना डरा दिया कि वह कुछ बोल तक न सके.

11 दिसंबर को वह सौरभ को दिल्ली से कहीं दूसरे प्रदेश में ले जाना चाहते थे. जब उन्होंने देखा कि उन की वैगनआर कार पंक्चर है तो उन्होंने ओला कैब मंगाई. उन का इरादा सौरभ को पानीपत ले जाने का था, वहां से वे उसे पठानकोट ले जाते. लेकिन इस से पहले ही वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पश्चिमपुरी में एक पार्किंग के पास खड़ी की गई सौरभ की होंडा सिटी कार भी बरामद कर ली.

दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस को इस वारदात में उन के तीसरे साथी के भी शमिल होने की जानकारी मिली. पुलिस उसे भी तलाश रही है. मनीष और सतनाम को गिरफ्तार कर 11 दिसंबर को पुलिस ने उन्हें तीसहजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी मनोज कुमार की अदालत में पेश कर एक दिन का पुलिस रिमांड लिया. रिमांड अवधि में अभियुक्तों से कुछ और सबूत जुटा कर उन्हें फिर से 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस हाईप्रोफाइल अपहरण के मामले को 36 घंटे के अंदर हल कर के अपहृत सौरभ को सकुशल बरामद करने वाले इंसपेक्टर सुखबीर मलिक और उन की टीम की पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, विशेष आयुक्त (वेस्ट रेंज) सतीश गोलचा, विशेष आयुक्त (कानून व्यवस्था) पी. कामराज, डीसीपी एम.एन. तिवारी, एसीपी दिनेश कुमार ने पीठ थपथपा कर सराहना की है. ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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