Crime Story : गांव में दबंगई दिखाने के चक्कर में रामउजागर ऐसा हिस्ट्रीशीटर बदमाश बन गया कि उस के खिलाफ 45 मामले दर्ज हो गए. फिर उस ने पुलिस से बचने के लिए ऐसी फूलप्रूफ योजना बनाई कि पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के बक्शा थाना क्षेत्र में एक गांव पड़ता है चुरावनपुर. इस गांव में वैसे तो सभी जातियों की मिलीजुली आबादी है, लेकिन चौहानों की संख्या यहां दूसरी जातियों से ज्यादा है. इसी गांव के रामकिशोर चौहान ने अपने सभी बच्चों को ठीक से पढ़ायालिखाया.
वे चाहते थे कि उन के सभी बच्चे पढ़लिख कर किसी काबिल बनें. लेकिन उन के बेटे रामउजागर उर्फ कल्लू ने तो कुछ और ही सोच रखा था. घरपरिवार के दबाव के बावजूद वह ज्यादा नहीं पढ़लिख सका. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती गई, उस की सोच भी बदलती गई. वह खापी कर घर से निकलता और दिनभर मौजमस्ती कर के देर शाम घर लौट आता. धीरेधीरे गांव के कई आवारा लड़के उस की सोहबत में आ गए. इन लोगों के लिए गुंडागर्दी और लोगों से मारपीट करना आम बात हो गई. उस की इन हरकतों को देख कर रामकिशोर ने उस की नौकरी एक ईंट भट्टे पर लगवा दी, ताकि वह बुरी सोहबत से बचा रहे.
रामउजागर ने नौकरी तो कर ली, लेकिन इस काम में उस का मन नहीं लगता था. उसे आवारागर्दी में जो आनंद आता था, वह बंद हो गया. इसी बीच उसे शराब पीने की लत लग गई. अपनी इस लत को पूरी करने के लिए वह चोरी भी करने लगा. मारपीट करना तो उस की आदत में शामिल था ही. चोरीचकारी की शिकायतें भले ही रामकिशोर के पास नहीं आ पाती थीं, लेकिन बेटे द्वारा की गई मारपीट की बातें उन्हें अकसर पता चलती रहती थीं. इस से परिवार को भी कई तरह की मुशकिलों का सामना करना पड़ता था. जब रामउजागर का आतंक बढ़ने लगा तो उस की शिकायतें थाने तक पहुंचने लगीं. एक बार उस की शिकायत पुलिस के पास पहुंची तो बक्शा थाने की पुलिस ने उसे उठा लिया.
उस के पास से पुलिस ने चाकू बरामद किया. पुलिस ने उस के खिलाफ 25 आर्म्स एक्ट का केस दर्ज किया. यह 1983 की बात है. यह छोटा सा मामला था, इसलिए जल्दी ही उसे जमानत मिल गई. जेल से आने के बाद सुधरने के बजाय वह और बिगड़ गया. वह बेखौफ हो कर वारदातें करने लगा, जिस से कुछ ही दिनों में उस पर बक्शा थाने में 9 केस दर्ज हुए और 1998 में वह थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश घोषित हो गया. हिस्ट्रीशीट खुलने के बाद जब पुलिस का दबाव बढ़ने लगा तो रामउजागर जौनपुर से मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर चला गया. 22 अक्तूबर, 2014 को जौनपुर के पुलिस अधीक्षक बबलू कुमार अपने औफिस में बैठे दैनिक फाइलें निपटा रहे थे.
तभी पहरे पर तैनात सिपाही ने आ कर बताया कि उन से मध्य प्रदेश पुलिस के 2 पुलिसकर्मी मिलने आए हैं. साहब के हां करने पर उस ने उन दोनों को अंदर भेज दिया. पुलिस अधीक्षक ने उन दोनों को बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘कहिए, क्या कहना चाहते हैं?’’
‘‘सर, हम लोग मध्य प्रदेश, जबलपुर के थाना जीआरपी से आए हैं. रामउजागर चौहान जिस की उम्र करीब 50-55 वर्ष होगी, ने हमारे क्षेत्र में जहरखुरानी की कई वारदातों को अंजाम दिया है. पकड़े जाने पर वह कई बार जेल भी जा चुका है, लेकिन जमानत मिलने के बाद वह फिर से जहरखुरानी की घटनाओं को अंजाम दे रहा है. हमारे पास उस की कुर्की का आदेश है. हमें पता चला है कि इन दिनों वह जनपद जौनपुर के बक्शा थाना क्षेत्र के अपने गांव चुरावनपुर में छिपा हुआ है.’’
उन दोनों की बात सुन कर एसपी बबलू कुमार ने बक्शा थानाप्रभारी प्रशांत कुमार श्रीवास्तव को फोन मिलवा कर कहा कि रामउजागर चौहान के बारे में पता लगाएं और जबलपुर जीआरपी से आए सबइंस्पेक्टर आर.पी. सिंह की पूरी मदद करें. साथ ही अपनी काररवाई से भी अवगत कराएं. एसपी से बात होने के बाद थानाप्रभारी प्रशांत कुमार श्रीवास्तव ने चुरावनपुर गांव का आपराधिक रजिस्टर मंगा कर उस पर नजर डाली तो उन्हें पहली ही नजर में पता चल गया कि रामउजागर बक्शा थाने का हिस्ट्रीशीटर है.
जबलपुर जीआरपी से आए सबइंसपेक्टर आर.पी. सिंह से बातचीत के बाद पता चला कि रामउजागर के खिलाफ 45 मुकदमे दर्ज हैं. प्रशांत कुमार तब आश्चर्य में रह गए, जब उन्हें पता चला कि रामउजागर तो 3 साल पहले ही मर चुका है. फाइल देखने के बाद प्रशांत कुमार ने गांव चुरावनपुर के प्रधान राजबहादुर पाल को फोन कर के थाने आने को कहा. ग्रामप्रधान राजबहादुर पाल आ पाता, इस से पहले ही जबलपुर जीआरपी के सबइंसपेक्टर आर.पी. सिंह अपने सहयोगी के साथ थाना बक्शा पहुंच गए. उन्होंने एसपी बबलू कुमार का रेफरेंस दे कर थानाप्रभारी प्रशांत कुमार को अपने आने का मकसद बता दिया.
थानाप्रभारी बक्शा और जबलपुर जीआरपी से आए आर.पी. सिंह रामउजागर के बारे में बातें कर ही रहे थे कि ग्रामप्रधान राजबहादुर पाल आ गए. जब प्रशांत कुमार श्रीवास्तव ने उन्हें बताया कि जबलपुर जीआरपी को उन के गांव के रामउजागर की तलाश है और वे उस के घर की कुर्की का आदेश ले कर आए हैं तो वह आश्चर्य से बोले, ‘‘साहब, वह तो 3 साल पहले मर चुका है, उस के घर की कुर्की कर के क्या होगा?’’
ग्रामप्रधान ने यह बात बड़े विश्वास से कही थी. उन का कहना था कि रामउजागर का अंतिम संस्कार उन के सामने किया गया था. ग्रामप्रधान की बात पर विश्वास कर के थानाप्रभारी प्रशांत कुमार ने उन से लिखित में रामउजागर का मृत्यु प्रमाणपत्र ले लिया. ग्रामप्रधान वापस लौट गया. ग्रामप्रधान द्वारा रामउजागर की मृत्यु के बारे में लिखित पत्र दिए जाने के बाद भी सबइंसपेक्टर आर.पी. सिंह यह मानने को तैयार नहीं थे कि वह मर चुका है. उन्होंने जातेजाते अपनी यह शंका थानाप्रभारी प्रशांत कुमार श्रीवास्तव को भी बता दी.
उन के जाने के बाद प्रशांत कुमार ने इस मुद्दे पर गहराई से सोचा तो उन्हें यह बात थोड़ी आश्चर्यजनक लगी कि जब रामउजागर 3 साल पहले मर चुका है तो 1998 में खोली गई उस की चार्जशीट क्यों नहीं बंद की गई. मन में संदेह उठा तो उन्होंने पुराना रिकौर्ड चेक किया. उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि रामउजागर के मरने के बाद भी थाने में उस के खिलाफ 7 मुकदमें दर्ज हुए थे. सोचविचार के बाद प्रशांत कुमार ने अपने एक मुखबिर को सच्चाई पता लगाने का काम सौंपा. 2 दिन बाद मुखबिर ने थाने आ कर बताया कि रामउजागर मरा नहीं है, बल्कि उस ने पुलिस से बचने के लिए मरने का नाटक किया था. उस ने यह भी बताया कि वह अब भी अपराधों में लिप्त है. इतना ही नहीं, उस ने थानाप्रभारी को रामउजागर का मोबाइल नंबर भी दे दिया.
प्रशांत कुमार श्रीवास्तव ने उस नंबर पर फोन लगाया. दूसरी ओर फोन की घंटी भी बजी और रिसीव भी किया गया. लेकिन थानाप्रभारी ने कोई बात करने के बजाय 2 बार ‘हैलो हैलो’ कह कर फोन काट दिया. इस से उन्हें यकीन हो गया कि रामउजागर वाकई जिंदा है. विश्वास होने के बाद उन्होंने यह बात एसपी बबलू कुमार को बता दी. यह जान कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ कि 45 अपराधों का आरोपी लोगों की नजरों में खुद को मरा हुआ साबित कर के अब भी अपराध कर रहा है. निस्संदेह मामला गंभीर था. उन्होंने रामउजागर को पकड़ने के लिए क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस की एक संयुक्त टीम बनाई, साथ ही आदेश दिया कि जैसे भी हो जल्दी से जल्दी रामउजागर को गिरफ्तार करें.
एसपी बबलू कुमार के निर्देश पर संयुक्त टीम ने रामउजागर को अपने जाल में फांसने की योजना बना ली. जब सारी तैयारी हो गई तो 9 नवंबर, 2014 को थानाप्रभारी प्रशांत कुमार ने रामउजागर के नंबर पर फोन मिला कर उस से बात की. बातचीत के दौरान उन्होंने ठेठ गंवई अंदाज में कहा, ‘‘रामउजागर, मैं तुम्हारा भाई बोल रहा हूं. भाई बहुत बीमार है, चुपचाप आ कर मिल जाओ.’’
यह सुन कर रामउजागर ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं कल शाम को आता हूं. ध्यान रखना किसी को कानोंकान खबर न हो. मैं भाई से मिल कर भोर में निकल जाऊंगा.’’
‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ कह कर प्रशांत कुमार ने फोन काट दिया.
बात होने के बाद पुलिस ने सारी तैयारी कर ली. दूसरे दिन यानी 10 नवंबर को पुलिस टीम ने थाना क्षेत्र के सरायहरखू रेलवे स्टेशन पर अपना जाल बिछा दिया. रामउजागर को पहचानने वाला एक मुखबिर पुलिस के साथ था. सभी लोग सादे कपड़ों में थे. ट्रेन आने से थोड़ी देर पहले थानाप्रभारी प्रशांत कुमार ने रामउजागर के नंबर पर फोन मिला कर कहा, ‘‘कहां पहुंचे भैया, मैं स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’
‘‘बस, थोड़ी देर में पहुंचने वाला हूं, मुझे गेट के पास मिलना.’’
दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘और हां, मैं ने मुंह पर कपड़ा बांध रखा है, ताकि कोई पहचान न सके. इस बात का ध्यान रखना.’’
शाम को 5 बज कर 20 मिनट पर सुलतानपुर की ओर से आने वाली गाड़ी जब प्लेटफार्म नंबर 1 पर आ कर रुकी और यात्री उतरनेचढ़ने लगे तो प्रशांत कुमार के नंबर पर फोन आया. फोन रामउजागर का ही था. वह बोला, ‘‘भैया, मैं ट्रेन से उतर गया हूं, तुम गेट के पास ही हो न?’’
‘‘हां, गेट पर ही खड़ा इंतजार कर रहा हूं.’’ कह कर थानाप्रभारी ने फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद पुलिस की नजर एक अधेड़ उम्र के आदमी पर पड़ी, जो मुंह पर कपड़ा लपेटे, एक बैग और एक ब्रीफकेस उठाए गेट की ओर आ रहा था. मुखबिर ने उसे पहचान कर बताया कि वही रामउजागर है. पुलिस ने उसे दबोच लिया. अचानक हुई इस काररवाई से रामउजागर हतप्रभ रह गया. हिरासत में ले कर रामउजागर के बैग और ब्रीफकेस की तलाशी ली गई तो उस के पास से 1 चाकू, 3.2 किलोग्राम चांदी के जेवरात, एक फरजी पहचान पत्र और 205 ग्राम नशीला पाउडर बरामद हुआ. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई.
बक्शा बाजार से किसी तरह यह खबर रामउजागर के गांव चुरावनपुर पहुंच गई. सुन कर लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे लोग जिस रामउजागर के मृत्युभोज में शामिल हुए थे, वह जिंदा है और उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. इस बात की पुष्टि के लिए गांव के कुछ लोग रात 9 बजे ही थाना बक्शा पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें थाने में नहीं घुसने दिया. इस की जगह थानाप्रभारी ने उस इलाके के सिपाही को निर्देश दिया कि अगले दिन 9 बजे वह चुरावनपुर के ग्रामप्रधान और रामउजागर के पिता और भाई को थाने ले आए.
दूसरे दिन यानी 11 नवंबर, 2014 को रामउजागर के पिता रामकिशोर चौहान और ग्रामप्रधान राजबहादुर पाल गांव के कुछ लोगों के साथ थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी प्रशांत कुमार ने एक सिपाही को बुला कर लौकअप से रामउजागर को लाने को कहा. उसे लाया गया तो उसे जीवित देख कर गांव के लोग आश्चर्यचकित रह गए. रामउजागर शरम के मारे सिर झुकाए खड़ा था. पूछताछ में रामउजागर ने अपनी जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी. रामउजागर की हिस्ट्रीशीट खुलने के बाद इलाके में कोई अपराध होने पर पुलिस पूछताछ के लिए उसे ही उठा कर लाती. पुलिस प्रताड़ना से तंग आ कर रामउजागर अपना गांव छोड़ कर जबलपुर चला गया.
वहीं पर उस की मुलाकात किशन नाम के एक युवक से हुई. किशन जबलपुर की गुप्तेश्वर रोड का रहने वाला था. रामउजागर ने उस से रोजी रोजगार की बात की तो वह बोला, ‘‘चिंता मत करो, ऐसा रोजगार बताऊंगा कि पैसे की कोई कमी न रहे. बस थोड़ी सी मेहनत और चालाकी की जरूरत है.’’
‘‘बताइए, क्या करना है.’’ रामउजागर ने विनती की, ‘‘बताओ दोस्त, मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. कभी भी तुम्हारा उपकार नहीं भूलूंगा.’’
इस पर किशन रामउजागर को पाउडर का एक पैकेट पकड़ाते हुए बोला, ‘‘यह लो और रेलवे स्टेशन की ओर निकल जाओ. वहां तुम्हें ट्रेनों में काम करना है. वहां जो भी ठीकठाक पैसे वाला आदमी दिखाई दे, उस से दोस्ती करो और चाय वगैरह में इस पाउडर में से थोड़ा सा मिला कर उसे चुपके से पिला देना. थोड़ी देर में वह बेहोश हो जाएगा. इस के बाद उस का माल ले कर चलते बनना.’’
‘‘और मान लो, अगर मैं पकड़ा गया तो?’’ रामउजागर ने कहा तो किशन बोला, ‘‘अरे भाई, पैसा कमाना है तो डर तो रहेगा ही, लेकिन सावधानी बरतेंगे तो पकड़े जाने का खतरा नहीं रहेगा. मैं ने रास्ता बता दिया है, आगे तुम्हारी मरजी.’’
कुछ देर शांत रहने के बाद रामउजागर उठा और रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया. स्टेशन पर पहुंच कर उस ने आसपास सरसरी नजर डाली तो एक व्यक्ति एक भारीभरकम बैग लिए बैठा दिखाई दिया. वह उसी की बगल में जा कर बैठ गया. कुछ देर खामोश बैठे रहने के बाद रामउजागर उस से गाडि़यों के बारे में बात करने लगा. बातों का सिलसिला जुड़ा तो वह अपना बैग उस के बैग के पास रखते हुए बोला, ‘‘खयाल रखना जरा, मैं कैंटीन से चाय ले कर आता हूं.’’
थोड़ी देर बाद वह वापस लौटा तो उस के हाथों में चाय के 2 प्याले थे. उस ने एक प्याला उस आदमी को थमा दिया और दूसरा खुद ले कर उस के साथ बैठ गया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. चाय पीने के बाद वह व्यक्ति एक ओर लुढ़कने लगा. यह देख रामउजागर ने इधरउधर नजर दौड़ाई. फिर उस आदमी को हिलाडुला कर देखा. चाय में नशीला पाउडर होने की वजह से उस पर बेहोशी छाने लगी थी. उस पर कोई प्रतिक्रिया न होती देख वह धीरे से अपना और उस का बैग ले कर वहां से चलता बना. जहर खुरानी का यह उस का पहला दिन था, इसलिए अपनी सफलता पर वह फूला नहीं समा रहा था. अपने ठिकाने पर आ कर जब उस ने बैग खोला तो उस में काफी मात्रा में नकदी और कपड़ों सहित कई कीमती सामान निकले.
बस फिर क्या था, उस दिन के बाद उस का जहरखुरानी का यह सिलसिला चल निकला. कभी इस शहर तो कभी उस शहर में वह वारदात पर वारदात को अंजाम देने लगा. इस तरह धीरेधीरे उस ने किशन से अलग हो कर अपना गिरोह बना लिया. उस के दोस्तों की संख्या भी अच्छीखासी हो गई. इसी बीच अचानक वह एक दिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. लेकिन जल्दी ही उसे जमानत मिल गई. जमानत मिलने के बाद वह फिर जौनपुर आ गया. लेकिन उस का अपराधी दिमाग उसे कहां शांत बैठने देने वाला था. बक्शा पुलिस ने उसे आर्म्स एक्ट में गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस मामले में भी उसे जमानत मिल गई.
जेल से बाहर आने के बाद वह मानिकपुर, बांदा आ गया और जहरखुरानी की वारदातों को अंजाम देने लगा. जौनपुर के अलावा वह बांदा, कानपुर, सुलतानपुर, सीतापुर, इलाहाबाद, वाराणसी में भी वारदातें करने लगा. धीरेधीरे उस का आतंक उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर मध्य प्रदेश और मुंबई तक फैल गया. पुलिस उस की कारगुजारियों से परेशान थी. रामउजागर इन प्रदेशों में ट्रेन और बस में सफर करने वाले सहयात्रियों के साथ मधुर संबंध बना कर उन्हें खानेपीने की चीजों में नशीला पदार्थ मिला कर उन के सामान पार कर देता था. उस के अपराधों का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा था. कई बार वह पकड़ा भी गया, लेकिन जमानत पर छूटने के बाद वह केस की तारीखों पर नहीं जाता था. इस के लिए उस के खिलाफ कई वारंट भी निकाले गए.
अदालतों में न जाने से रामउजागर पर कानून का शिकंजा कसता जा रहा था. आए दिन उस के घर पुलिस आने से उस के घर वाले भी परेशान थे. तभी अचानक एक दिन उस ने एक व्यक्ति की हत्या की खबर पढ़ी. हत्या सुलतानपुर के एक व्यक्ति की हुई थी, जिस की शिनाख्त नहीं हुई थी. इस खबर को पढ़ कर उस के दिमाग में साजिश का तानाबाना बुनने लगा. उन दिनों रामउजागर जौनपुर के ही कुल्हनामउ गांव में स्थित अपनी बहन की ससुराल आताजाता रहता था और लोगों से चोरीछिपे वह 2-4 दिन वहीं ठहर जाता था. घरपरिवार के लोग भी उस से वहीं आ कर मिल लिया करते थे. बहन के घर से उस ने चुपके से अपने घर संदेशा भिजवाया कि उस से कानपुर आ कर मिलें. वे लोग उस से मिलने आए तो उस ने उन्हें अखबार में छपी वह खबर दिखाई.
फिर कहा कि वे लोग सुलतानपुर जाएं और अज्ञात लाश की शिनाख्त उस की लाश के रूप में कर दें. इस से पुलिस के आए दिन घर आने का झंझट खत्म हो जाएगा. रामउजागर की राय पर उस के घर वालों ने ऐसा ही किया. लाश के फोटो और कपड़ों के आधार पर पुलिस ने उस व्यक्ति की लाश की शिनाख्त रामउजागर के रूप में कर दी. साथ ही बता भी दिया कि वह अपराधी प्रवृत्ति का था. पुलिस मामले में खानापूर्ति करना चाहती थी, इसलिए उस ने उन की बात सच मान ली. इस के बाद रामउजागर के घर वालों ने बाकायदा उस की तेरहवीं वगैरह की. कोर्ट में हाजिर न होने की वजह से रामउजागर के वारंट भी कटे हुए थे.
रामउजागर की तलाश में पुलिस उस के घर आती या फिर कुर्की वारंट का चक्कर होता तो घर वाले और ग्रामप्रधान उस के मरने की बात बता कर पल्ला झाड़ लेते. उधर रामउजागर अपना जहरखुरानी का काम बाकायदा करता रहा. पूछताछ में रामउजागर ने बताया कि उस से चांदी के जो जेवरात बरामद हुए हैं वे उस ने लखनऊ में चारबाग स्टेशन से वाराणसी जा रहे एक सेठ को नशीला पदार्थ खिला कर लूटे थे और उस का बैग ले कर सुलतानपुर स्टेशन पर उतर गया था. इस बैग में उसे 3.2 किलोग्राम चांदी के जेवरात और 88 हजार रुपए नकद मिले थे.
पकड़े जाने के बाद रामउजागर को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि वह लोगों को लूटने के लिए नशीले पदार्थों के अलावा बिस्किट आदि का भी प्रयोग करता था. बिस्किट और पैकेट के पेय पदार्थों में वह सिरिंज के जरिए नशीला पदार्थ डाल देता था. इस से लोगों को उस पर शक भी नहीं होता था. रामउजागर की कहानी उसी की जुबानी सुन पत्रकार भी दंग रह गए. 45 मामलों में वांछित शातिर अपराधी और बक्शा थाने के हिस्ट्रीशीटर व जौनपुर जिले के टापटेन अपराधियों की सूची में 5वें नंबर के इस अपराधी के पकड़े जाने से पुलिस खुश थी. जुर्म स्वीकारने के बाद पुलिस ने रामउजागर को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. Crime Story






