Hindi Kahani: जिस सोढ़ी रानी ने शूरवीर पति रणमल से वचन लिया था कि वह दूसरी शादी नहीं रचाएंगे, फिर ऐसा क्या हुआ कि उसी रानी ने पति की दूसरी शादी स्वयं कराई.
कच्छ रियासत के राव रायधण के बड़े बेटे देदा के 7 बेटों में रणमल सब से छोटे थे. बंटवारे में उन्हें मोरणा की जागीर मिली थी, जहां उन की ठकुराई ठाठ से चल रही थी. अपनी ताकत से उन्होंने मच्छुकांठा का बहुत सा हिस्सा अपनी जागीर में मिला लिया था. वह बहुत ही पराक्रमी और वीर योद्धा थे. वह जहां भी हाथ डालते, उन्हें सफलता ही मिलती. ऐसा लगता था, जैसे विजयश्री वरमाला लिए हर जगह उन का इंतजार करती रहती थी.
रणमल के सामंत भी एक से बढ़ कर एक पराक्रमी थे. वे जैसे रणबांकुरे थे, वैसे ही विद्यानुरागी भी थे. रणभूमि में वे अपनी तलवारों का कौशल दिखाते थे तो शांति के समय दरबार में बैठ कर साहित्य चर्चा करते थे. एक दिन सािहत्य चर्चा के दौरान बात चली कि उन्हें ऐसा क्याक्या मिलना चाहिए, जिस से दिल को खुशी हो.
सब से पहले रणमल ने कहा, ‘‘सारा सूरो फूलसरो, पानां बीड़ा हाथ. उडण तुरि ने सुचंग धण, एती मंडो आथ.’’ यानी ‘फूलों का सुंदर गुच्छा हो, पान के बीड़े हों, नभ में उड़े वैसा पवन वेग घोड़ा और सद्गुणी स्त्री हो. अगर इतना मिलता है तो जरूर दिल को खुशी होगी.’
इस के बाद सभा में बैठे एक चारण कवि ने रणमल द्वारा कहे गए दोहे को सुधार कर कहा, ‘‘सारा सूरो फूलसरो, पानां बीड़ो हाथ. उडण तुरि ने सुचंग धण और भाइयों रो साथ.’’
दरबार में बैठे सभी सभासद खुश हो कर दोहे की प्रशंसा करने लगे.
रणमल का विवाह अमरकोट के सौढ़ा राजपूतों के यहां हुआ था. सोढ़ी रानी भी विदुषी थीं. एक दिन पतिपत्नी महल के झरोखे में बैठे बातें कर रहे थे तो रणमल ने पूछा, ‘‘महारानी, जीवन का सच्चा आनंद आप किसे मानती हैं?’’
प्रेम की बातें चल रही थीं, इसलिए महारानी सोढ़ी ने कहा, ‘‘भादौं माह में भैंसें ब्याई हुई हों, दहीछाछ के मटके भरे हों, उस समय पत्नी प्यार से पति को अपने हाथों से छाछ पिलाए और पति पिए तो कितना अच्छा लगेगा.’’
रानी की बात रणमल को अच्छी नहीं लगी. वह वीर पुरुष थे, वीर को भला शृंगार की रचना कैसे सुहाती. उन्होंने कहा, ‘‘कमर में कटारी हो, घोड़े में कोई ऐब न हो और सवार अकेला दस दुश्मनों से लड़ रहा हो, उसी में आनंद है.’’
महारानी सोढ़ी रानी को लगा कि शायद उन की बातों से रणमल को लगता है कि वह केवल शृंगारिक रचनाएं ही करना जानती हैं, जबकि वह एक वीर की पत्नी हैं. पति को बता देना चाहिए कि वह वीर रस की रचना करना भी जानती हैं. नहले पर दहला जड़ते हुए वह बोलीं, ‘‘क्षत्रिय वीर का एक पैर पलंग पर और दूसरा घोडे़ के पागड़े पर होना चाहिए. दुश्मन की पीठ दूसरी तरफ हो और शरीर में बल हो तो यश खांडे की मूठ में हो.’’
सोढ़ी रानी के मुंह से यह सुन कर रणमल बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने कहा, ‘‘बोलो रानी सा, आप को उपहार में क्या दूं?’’
रानी ने उचित मौका देख कर कहा, ‘‘आप दूसरा विवाह नहीं करेंगे.’’
सोढ़ी रानी की बात सुन कर रणमल को हंसी आ गई. उन्हें लगा, सोढ़ी को उन के प्रेम पर भरोसा नहीं है. वह जोर से हंसे. पति की इस हंसी से रानी का संदेह और गहरा हो गया. उन्हें लगा कि रणमल दूसरी शादी करना चाहते हैं, इसीलिए उस के कहने पर हंस रहे हैं, वरना सीधे कह देते कि ‘हां, मैं दूसरी शादी नहीं करूंगा.’
सोढ़ी रानी इस बात को अपने हृदय में रख कर चुप रह गईं और दूसरी बातें करने लगीं. बात आईगई हो गई और दिनपरदिन बीतते गए. रणमल की वीरता की चर्चा अहमदाबाद के नवाब ने सुनीं तो वह उन से मिलने को आतुर हो उठा. उस ने अपने सेनापति खिलची खां और दीवान मलिक मोहम्मद को रणमल को ले आने के लिए मोरणा भेजा. नवाब के आमंत्रण का सम्मान करते हुए रणमल अहमदाबाद आए. उन के व्यक्तित्व से नवाब इतना प्रभावित हुआ कि अपनी प्रिय तलवार ‘कनक वीजली’ और रत्नों जड़ी पोशाक भेंट कर के भरे दरबार में उन का सम्मान किया.
कई दिनों तक अहमदाबाद में नवाब के आतिथ्य में रह कर रणमल विदा हुए तो उन के मन में था कि कितनी जल्दी वह अपनी जागीर मोरणा पहुंचे और नवाब द्वारा भेंट में मिली उस की प्रिय तलवार और रत्नों जड़ी पोशाक सोढ़ी रानी को दिखा कर उसे अहमदाबाद का पूरा वृत्तांत सुनाएं कि किस तरह नवाब ने उन का सम्मान किया. रास्ते में भारी बरसात होने के बावजूद वह रुके नहीं और घोड़े को सरपट भगाते हुए चलते रहे. इस की एक वजह यह भी थी कि सोढ़ी से बिछुड़े भी बहुत दिन हो गए थे.
मन में पियामिलन की उमंगे हिलोरें ले रही थीं. घोड़ा सरपट भाग रहा था मानो उस ने सवार की आतुरता भांप ली थी. आधी रात को पानी से तरबतर रणमल ने रनिवास का दरवाजा खटखटाया. सोढ़ी रानी हैरान रह गईं कि इस समय इस मूसलाधर बारिश में कौन हो सकता है? आशंकाओं से घिरी रानी ने दरवाजा खोला तो पति को उस हालत में देख वह हैरानी से बोलीं, ‘‘अरे आप, इस समय, इस मूसलाधार बारिश में..?’’
‘‘हां सोढ़ी रानी, रहा नहीं गया. इतने दिन कैसे बिताए, मेरा जी जानता है. तुम्हारे वियोग में जी तड़प रहा था, इसलिए तुम से मिलने को इतना आतुर था कि मैं ने चाबुक मारमार कर घोड़े का शरीर लहूलुहान कर दिया.’’
रणमल की इस बात से सोढ़ी रानी के मन में जो संदेह था, वह जाता रहा और प्यार तथा विश्वास के आंसू नयनों से ढलक पड़े. रणमल जैसा शूरवीर था, वैसा ही दानी भी था. एक दिन उस के दरबार में एक चारण आया. उस ने खूब कविता पाठ किया. रणमल उस के काव्य पाठ पर रीझ गए. खुश हो कर उन्होंने कहा, ‘‘मांग कवि मांग, जो मांगेगा वह दूंगा.’’
कवि ने निवेदन किया, ‘‘ठाकुर सा मुझे आप की पाग (पगड़ी) चाहिए.’’
इस अनोखी मांग से पूरा राजदरबार हैरान रह गया. कवियों द्वारा मोहरें, घोड़े, जागीर आदि तो मांगते सुना था, पर पगड़ी मांगते पहली बार सुना था. सभी को यह मांग बड़ी अटपटी लगी. रणमल ने कहा, ‘‘कविराज, तुम तमाम राजदरबारों में जाते हो, जहां अभिवादन करते समय झुकते हो. ऐसे में मेरी पगड़ी उन शासकों के आगे झुकेगी तो मेरा अपमान होगा, जो मुझे स्वीकार नहीं है. तुम कोई दूसरी चीज मांगो.’’
चारण ने कहा, ‘‘दाता, मैं स्वप्न में भी आप की पाग को अपमानित नहीं होने दूंगा. यह चारण का वचन है. आप जैसे दानी की पाग से मेरा सम्मान बढ़ेगा. बस, इसीलिए श्रीमान की पाग मांग रहा हूं. अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो पाग (पगड़ी) ही दें, अन्यथा मैं आप को आशीर्वाद दे कर चला जाऊंगा.’’
चारण के आग्रह पर रणमल ने अपनी पगड़ी अपने हाथों से चारण के सिर पर पहनाई और स्वर्ण जडि़त तलवार, मोतियों की माला तथा एक घोड़ा दे कर उसे सम्मान के साथ विदा किया. चारण रणमल की इस दिलेरी का गुणगान करते हुए मोरणा से चला गया. घूमताघामता वह झालावाड़ की जागीर अजमेर पहुंचा. वहां रणमल की बहन वरसिंह देव को ब्याही थी. रणमल की बहन को पता चला कि कच्छ से चारण आया है तो उन्होंने उस का खूब आदरसत्कार किया. गढ़ (दुर्ग) के एक बुर्ज पर चारण का डेरा लगवा कर कहा, ‘‘ठाकुर सा बाहर गए हैं, देर रात आएंगे. कल सुबह दरबार में जा कर अपने काव्य पाठ से उन्हें रिझाना.’’
अगले दिन सुबह नित्यकर्म से निवृत हो कर चारण वरसिंह देव के दरबार में उपस्थित हुआ. दरबार लगा हुआ था, सभासद् चर्चा कर रहे थे, हुक्काचिलमें चल रही थीं. उसी समय चारण सभाकक्ष में पहुंचा. अपने सिर की पगड़ी एक हाथ में ले कर उस ने वरसिंह देव का अभिवादन करते हुए उन के यश में 2-4 दोहे कहे. चारण के इस विचित्र अभिवादन से सभाकक्ष में सन्नाटा पसर गया. सभी चारण को सवालिया नजरों से घूरने लगे. वरसिंह देव को यह अपना अपमान लगा. उन्होंने रोष में पूछा, ‘‘बारहठजी, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हें पता नहीं, पगड़ी उतार कर किसी का अभिवादन करना उस का अपमान है.’’
‘‘मैं जानता हूं ठाकुर सा, लेकिन मैं मजबूर हूं. मेरे सिर पर जो पगड़ी थी, वह महादानी रणमल की थी, जो किसी के आगे झुकती नहीं. इसलिए उन की ‘अणनम’ पाग को उतार कर आप को अभिवादन किया है श्रीमान.’’
चारण की इस बात से वरसिंह देव तिलमिला उठा. वह स्वभाव से घमंडी और अति क्रोधी व्यक्ति था. रणमल की दानशीलता का गुणगान वह सहन नहीं कर सका. जोरजोर से हंसते हुए उस ने कहा, ‘‘अरे चारण देव, क्यों उस के झूठे गुणगान करते हो? रणमलिया तो गायों के बछड़े चराता जंगल में दिनरात घूमता रहता है?’’
वरसिंह देव के यहां रणमलिया नाम का एक ग्वाला था. उन्होंने उस की ओर इशारा कर के रणमल की तुलना उस से कर दी थी. चारण रणमल जैसे दानी का अपमान सहन नहीं कर सका. वह यह सोच कर तुरंत उस के दरबार से बाहर आ गया कि अगर रणमल बछड़ा चराने वाला होगा तो उस के बछड़े ही चराएगा अन्यथा इस बात का बदला अवश्य लेगा. चारण अजमेर से सीधे मोरणा रणमल के यहां पहुंचा और भरे दरबार में बोला, ‘‘हे रणमलिया, तू सही रणमल बन कर अजमेर के वरसिंह देव को उखाड़ फेंक और स्वयं को वीर रणमल सिद्ध कर.’’
इस के बाद वरसिंह देव का मद चूर करने के लिए रणमल अपनी सेना के साथ अजमेर की ओर चल पड़ा. कोट के कंगूरे गिराने वाले और सुल्तानों के दल को क्षतविक्षत करने वाले रणमल हाथ में धनुषबाण लिए अपने घोड़े पर सवार अजमेर पहंच गए. दूसरी ओर वरसिंह देव इस अचानक होने वाले आक्रमण के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. उस समय उन के पास सैनिक भी नाममात्र के थे, इसलिए उन की स्थिति दयनीय हो गई. उस स्थिति में रणमल की बहन ने आगे आ कर मोतियों के थाल से भाई का स्वागत करते हुए अपने सुहाग की भीख मांगी. रणमल बहन को आशीष दे कर बाहर से ही अपनी सेना के साथ लौट पड़े. वह अपनी सेना के साथ खुशियां मनाते हुए लौट रहे थे कि अपने गांव से 8-10 कोस पहले एक खुले मैदान में उन्हें कुछ खेमे गड़े दिखाई दिए.
अपनी हद में छावनी लगी देख वह हैरान रह गए कि यह कौन हो सकता है? वह समय निरंतर युद्धों का था, इसलिए वह तरहतरह की आशंकाओं से घिर गए. यह पता लगाना जरूरी था कि वे कौन लोग हैं और किस अभिप्राय से यहां डेरा डाले हुए हैं? उन्होंने अपना एक घुड़सवार भेजा. थोड़ी देर बाद घुड़सवार ने आ कर बताया कि कन्या की मर्जी के खिलाफ सांगण बाढ़ेर अपनी बेटी का विवाह करने डोली ले कर अहमदाबाद जा रहे हैं, क्योंकि नवाब से मुकाबला करने की उन में हिम्मत व क्षमता नहीं है.
यह सुन कर रणमल का खून खौल उठा. उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि कुछ भी हो, वह इस कन्या को नवाब के हरम में नहीं जाने देंगे. उन्होंने तुरंत वहां खेमे गाड़ने का आदेश दे दिया. तब उन के सेनापति ने कहा, ‘‘ठाकुर सा किला यहां से 8-10 कोस ही तो है, थोड़ी देर में पहुंच जाएंगे, यहां खेमे गाड़ने का क्या मतलब?’’
‘‘हम तो किले में पहुंच जाएंगे, लेकिन इस अबला को कौन बचाएगा?’’ रणमल ने कहा.
सेनापति ने अपने महाराज का आशय समझ लिया. उन्होंने नवाब के खेमे से कुछ दूरी पर अपने खेमे गड़वा दिए. खेमे गड़ते देख नवाब के खेमे में खुसरफुसर होने लगी कि ये किस के खेमे गड़ रहे हैं? उन्होंने पता लगाया तो पता चला कि वे खेमे मोरणा के रणमल के हैं. बहन से मिलने गए थे, वापस अपने घर जा रहे हैं. नवाब की सेना को जरा भी शक नहीं हुआ. दूसरी ओर सांगण बाढ़ेर की बेटी को जब पता चला कि मोरणा के महाराज रणमल अपनी सेना के साथ वहां ठहरे हैं तो उसे कुछ आशा बंधी.
उस ने रणमल की वीरता के किस्से सुन रखे थे. उसे लगा कि अगर वह किसी तरह रणमल के पास मदद के लिए संदेश भिजवा दे तो वह अवश्य उसे नवाब के चंगुल से छुड़ा लेंगे. लेकिन वह रणमल के पास कैसे संदेश भेजे? काफी सोचविचार कर उस ने अपनी विश्वस्त दासी को एक पत्र लिख कर दिया, ‘एक अबला आप से मदद मांग रही है. मेरी स्थिति वही बन गई है, जो एक गाय की कसाई के यहां होती है. क्षत्रिय गौ और ब्राह्मण प्रतिपालक होते हैं. अगर आप मुझे बचा लेंगे तो ठीक, अन्यथा मुझे आत्महत्या करनी पड़ेगी.’ पत्र दासी को दे कर उस ने कहा कि किसी भी तरह उस पत्र को रणमल तक पहुंचाना है. दासी मर्दाना भेष धारण कर के रात के अंधेरे में छिप कर नवाब के डेरे से निकल कर रणमल के डेरे में जा पहुंची.
रणमल के पहरेदारों ने दासी को भेदिया समझ कर पकड़ लिया. दासी ने कहा कि उसे रणमलजी को एक गुप्त संदेश देना है तो पहरेदारों ने पुरुष वेशधारी दासी को रणमल के समक्ष पेश किया. दासी ने राजकुमारी का पत्र रणमल को दे दिया. पत्र पढ़ने के बाद रणमल को सारी स्थिति का पता चल गया. उन्होंने दासी को आश्वस्त किया कि वह हर हालत में राजकुमारी को बचाएंगे. राजकुमारी रणमल का जवाब पा कर बहुत खुश हुई. उस ने दासी से रणमल के बारे में पूछा तो दासी ने कहा, ‘‘सुवर्ण सरखी मुख छटा, राजहंस सम चाल. सूरण सरखी आंखड़ी रणबांको रणमाल.’’
दासी के मुंह से रणमल की प्रशंसा सुन कर राजकुमारी को विश्वास हो गया कि यह वीर क्षत्रिय अवश्य उस की मदद करेगा. सुबह रणमल ने नवाब के सेनापति खिलची खां को संदेश भिजवाया कि वह घोड़ों का मनोरंजन करने के साथ उन की परख भी करना चाहते हैं कि किस के खेमे में अच्छे घोड़े हैं. सेनापति खिलची खां को रणमल का यह प्रस्ताव पसंद आया. उस ने अपनी स्वीकृति दे दी. रणमल ने अपने सहयोगियों को पूरी योजना समझा दी. एक अबला ने शरण मांगी थी, इसलिए उस की रक्षा तो करनी ही थी. यही क्षत्रिय धर्म भी था.
योजना के अनुसार, घुड़दौड़ में दोनों पक्षों के लोग मैदान के दोनों ओर घुड़दौड़ देखने के लिए खड़े होंगे. मैदान के बीच में दोनों पक्ष के लोग अपनाअपना करतब दिखाएंगे. उसी बीच रणमल की सेना के कुछ लोग चुपके से नवाब के खेमे में घुस कर सांगण बाढेर की बेटी का अपहरण कर मोरणा पहुंचा देंगे. पीछे जो होगा, देखा जाएगा. दोपहर को घुड़दौड़ प्रतियोगिता शुरू हुई. दोनों पक्षों के लोग आमनेसामने कतारों में खड़े हो कर घुड़दौड़ देख रहे थे. प्रतियोगिता चरम सीमा पर थी, तभी रणमल के कुछ सिपाही नवाब के खेमे के पहरेदारों पर टूट पड़े और उन्हें मार कर सांगण बाढेर की बेटी को ले कर मोरणा के लिए चल पड़े.
दूसरी ओर प्रतियोगिता देख रहे नवाब के सिपाहियों ने अपने खेमे में हलचल देखी तो उधर भागे. रणमल के सिपाही पहले से ही शस्त्रों से लैस थे. इसलिए नवाब के सिपाही अपने खेमों में पहुंच कर हथियार उठाते, रणमल के सिपाही उन पर टूट पड़े और उन्हें धराशायी कर दिया. जो बचे, वे भाग लिए. नवाब को पूरी घटना का पता चला तो वह जलभुन उठा. उस ने सेनापति खिलची खां की मदद और रणमल से बदला लेने के लिए एक बड़ी सेना भेजी. रणमल घर पहुंचा तो सोढ़ी रानी को कोप भवन में पाया. दासी से कहलवा भेजा कि जब दूसरी ही रानी लानी ही थी, तो उस के साथ धोखा क्यों किया?
लेकिन जब रणमल ने पूरी बात सोढ़ी रानी को बताई तो वह गर्व से फूली नहीं समाई. सांगण बाढ़ेर की बेटी को बहन बना कर विधिवत रणमल से ब्याह रचाया. रणमल को पता था कि नवाब चुपचाप नहीं बैठेगा. इसलिए उस ने भी अपनी सेना को हमेशा तैयार रहने के लिए कह दिया था. कुछ दिनों बाद नवाब की सेना ने मोरणा के बाहर आ कर डेरा डाल दिया. रणमल की सेना तैयार ही थी. वह सेना के साथ रणक्षेत्र में आ डटे. दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ, जिस में नवाब का सेनापति खिलची खां और रणमल अपनी सेना के साथ कट मरे. उस समय की प्रथा के अनुसार सोढ़ी रानी और सांगण बाढ़ेर की बेटी रणमल के साथ सती हो गईं. इस तरह रणमल इतिहास के पन्नों में अमर हो गए. Hindi Kahani






