Rajasthan True Crime: तरविंदर सिंह उर्फ राजू इतना शातिर था कि एकएक कर आधा दरजन हत्याएं करने के बावजूद भी वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ सका. लेकिन जब उस ने वही अपनी सगी बुआ के साथ किया तो पुलिस के शिकंजे में ऐसा फंसा कि…
21 दिसंबर, 2014 की बात है. कडाके की ठंड पड़ रही थी. चारों ओर पसरा घना कोहरा ठिठुरन को और बढ़ा रहा था. राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ कस्बे के रहने वाले मलकीत सिंह कमरे में बैठे अलाव ताप रहे थे. तभी बाहर कार के रुकने की आवाज से वह चौंके. उन्होंने सिर उठा कर दरवाजे की तरफ देखा तो उन के साले का लड़का तरविंदर सिंह उर्फ राजू आता दिखाई दिया. उस के पीछे एक अनजान औरत भी थी. उसी दौरान रसोई के काम में जुटी मलकीत सिंह की पत्नी छिंदरपाल कौर भी पति के पास पहुंच गई थीं.
अब तक राजू औरत के साथ उन के घर में दाखिल हो चुका था. राजू को देखते ही छिंदरपाल कौर का चेहरा खुशी से खिल उठा. कमरे में पहुंचते ही राजू और औरत ने झुक कर वृद्ध दंपत्ति के पैर छुए और कुशलक्षेम पूछने लगे. इस से पहले कि राजू की बुआ साथ आई औरत के बारे में पूछती, राजू ने खुद ही उस का परिचय अपनी पत्नी यशोदा के रूप में दे दिया. राजू की पहली पत्नी कुलविंदर की कई सालों पहले संदिग्ध स्थिति में मौत हो गई थी.
‘‘फूफाजी, अगले सप्ताह मेरी भतीजी की शादी होनी है. बाजार से गहने, कपड़े आदि खरीदने हैं. मैं इस मामले में अनाड़ी हूं. आप ने कई शादियां करवाई हैं, इसलिए अगर मेरे साथ चल कर खरीदारी करवा देते तो अच्छा रहता.’’ राजू ने कहा.
‘‘देख बेटा, मुझे सर्दी से एलर्जी है. इसलिए इस जबरदस्त जाड़े में मैं कहीं नहीं आजा सकता. हां ऐसा कर, तू अपनी बुआ को साथ ले जा. यह तेरी मदद कर देगी.’’ मलकीत सिंह ने कहा. फूफा की बात सुन कर राजू और उस की पत्नी यशोदा के होंठों पर रहस्यमयी मुसकान तैर गई, क्योंकि वे दोनों भी चाहते थे कि केवल बुआ ही उन के साथ चले.
मलकीत ने पत्नी से भी कह दिया कि वह राजू के साथ चली जाए. पति के कहने पर छिंदरपाल कौर तैयार होने के लिए संदूक से अपने कपड़े निकालने लगीं. उस दिन मलकीत का बेटा काला सिंह अपनी पत्नी के साथ नजदीक के एक गांव गया हुआ था. जिस वक्त छिंदरपाल कौर संदूक से कपड़े निकाल रही थीं, राजू उन के पास पहुंच गया. वह धीरे से गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘बुआ, महंगाई का जमाना है. मैं तंगी की हालत में हूं. कुछ रुपयापैसा हो तो साथ ले लो, जरूरत पड़ी तो लूंगा, अन्यथा नहीं.’’
‘‘हां…हां बेटा, मेरे पास 25 हजार रुपए पड़े हैं. उन्हें साथ लिए चलती हूं.’’ छिंदरपाल कौर ने कहा.
बाहर गली में बच्चों के संग खेल रही छिंदरपाल की 12 वर्षीया पोती गुरप्रीत कौर, 6 वर्षीया मनीषा और एकलौता पोता रवि सिंह घर के अंदर आ गए. गुरप्रीत को देखते ही राजू ने कहा, ‘‘गुरप्रीत तेरी दादी हमारे साथ शादी में जा रही हैं. तू भी जल्दी से तैयार हो जा. तुझे भी हमारे साथ चलना है. असमंजस में फंसी गुरप्रीत कुछ कह पाती, इस से पहले मनीषा और रवि भी जिद कर के दादी के साथ चलने को तैयार हो गए.
हालांकि छिंदरपाल कौर बच्चों को संग नहीं ले जाना चाहती थीं, जब वे ज्यादा ही जिद करने लगे और राजू भी बच्चों को ले चलने को कहने लगा तो छिंदरपाल बेबस हो गईं. तीनों बच्चे भी राजू के साथ चलने को तैयार हो गए. तैयार हो कर जैसे ही सब लोग जाने को हुए, तभी मलकीत सिंह बोले, ‘‘बच्चों के जाने के बाद घर सुनसान हो जाएगा. मेरा मन नहीं लगेगा, इसलिए रोजाना सुबहशाम बच्चों व अपनी बुआ से मेरी बात कराते रहना.’’
‘‘हां…हां, फूफाजी क्यों नहीं, आप चिंता न करें. मैं बात कराता रहूंगा.’’ कह कर वह चला गया.
बुआ और बच्चों को ले कर वह चक 42 एच में अपने घर पहुंच गया. घर पहुंचने के बाद राजू ने फोन से बुआ व बच्चों की मलकीत सिंह से बात करवा दी. 2 दिनों बाद मलकीत सिंह का बेटा काला सिंह पत्नी के साथ घर लौटा तो मां और बच्चों को घर में न पा कर उस ने पिता से उन के बारे में पूछा. मलकीत ने जब बताया कि छिंदरपाल बच्चों को ले कर राजू के यहां गई है. राजू कह रहा था कि उस के भाई की बेटी की शादी है. वह तेरी मां के साथ शादी की कुछ खरीदारी करना चाहता है. यह सुनते ही काला सिंह के मुंह से निकला, ‘‘बापू, आप ने यह क्या किया? आप को मां और बच्चों को उस के साथ नहीं भेजना चाहिए था.’’
‘‘क्यों बेटा, क्या कोई बात हो गई है क्या?’’ मलकीत सिंह चौंके.
‘‘बापू, राजू अच्छा आदमी नहीं है. काला सिंह ने घबरा कर कहा और उसी वक्त उस ने राजू को फोन लगाया. जैसे ही राजू ने फोन रिसीव किया, ‘‘राजूभाई, मैं अनूपगढ़ से काला सिंह बोल रहा हूं. मेरी मां और बच्चों से बात करवा दो.’’
‘‘देखो भैया, अभी मैं बाहर हूं, जैसे ही घर पहुंचूंगा, तुम्हारी बात करवा दूंगा.’’ राजू ने कहा.
राजू ने शाम को भी बात नहीं करवाई. यही नहीं, राजू ने अपने फोन का स्विच्ड औफ कर दिया. काला सिंह चिंतित हो उठा. वह थोड़ीथोड़ी देर बाद राजू को फोन मिलाता रहा. फोन बंद होने से उस की घबराहट बढ़ती जा रही थी. देर रात उस ने फोन किया तो राजू के फोन की घंटी बजी. इस से काला सिंह को उस से बात होने की उम्मीद जागी. लेकिन कई बार घंटी बजने के बाद भी राजू ने फोन नहीं उठाया तो काला सिंह ने यही सोचा कि शायद शादी के कामों में व्यस्त होने की वजह से वह फोन नहीं उठा रहा है. 10 दिन बीत गए. राजू ने छिंदरपाल और बच्चों से मलकीत सिंह व उन के बेटे काला सिंह से बात नहीं करवाई. उस का फोन नंबर भी नहीं मिल रहा था. इस के बाद बापबेटे का धैर्य जवाब देने लगा. अगले दिन मलकीत सिंह ने कहा, ‘‘बेटा काला, तू चक 42 एच जा और अपनी मां और बच्चों ले आ. उन के बिना अब मेरा मन नहीं लग रहा है.
पिता के कहने पर काला सिंह राजू के घर की ओर चल दिया. वह बसस्टैंड से चक जाने वाली बस में बैठ गया. काला सिंह के बराबर वाली सीट पर बैठा एक आदमी अखबार पढ़ रहा था. तभी काला सिंह की नजर अखबार में छपी एक फोटो पर पड़ी. वह फोटो उस के बेटे रवि सिंह की थी. फोटो देखते ही काला सिंह आशंकित हो उठा. जब उस ने फोटो गौर से देखते हुए खबर पढ़ी तो उस के आंसू टपकने लगे, क्योंकि किसी ने उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस के गले में एक साफा भी बंधा हुआ था. लाश बरामद होते समय उस की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. पुलिस ने शिनाख्त के लिए उस बच्चे की फोटो अखबार में छपवाई थी. इस के बाद काला सिंह राजू के घर जाने के बजाय अपने घर लौट गया.
बेटे को इतनी जल्दी लौटा देख कर मलकीत सिंह चौंके. वह उस से कुछ पूछते इस से पहले ही काला सिंह पिता की गोद में गिर गया और दहाड़ें मार कर रोने लगा. उस ने अपने बेटे रवि की मौत की बात पिता को बताई तो मासूम पोते की हत्या की बात सुन कर मलकीत भी बिलख पड़े. बापबेटे उसी समय थाना गजसिंहपुर पहुंचे. थानाप्रभारी ईश्वर प्रसाद को उन्होंने छिंदरपाल व बच्चों के राजू के साथ जाने से ले कर रवि का अखबार में फोटो देखने तक की पूरी बात बताई. थानाप्रभारी ईश्वर सिंह ने कई दिनों पहले एक आदमी की सूचना पर एफएफए नहर से एक वृद्ध महिला की लाश बरामद की थी. उस समय उस की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. काला सिंह की बात सुन कर उन्हें लगा कि कहीं वह महिला भी उस के परिवार की तो नहीं है. पुलिस को बच्चे का शव बाद में मिला था.
इसलिए उन्होंने एफएफए नहर में मिले महिला व बच्चे के शव के कपड़े व फोटो काला सिंह व उस के पिता को दिखाए तो दोनों फफक कर रो पड़े. मलकीत सिंह ने कहा, ‘‘साहब, उस पिशाच ने दोनों को मार डाला है. उस ने मेरा घर बरबाद कर दिया. साहब, मेरी पोतियां भी उस के कब्जे में है. साहब, उन्हें तो बचाइए. कहीं वह उन को भी…’’
कहने के साथ ही मलकीत बेसुध हो कर फर्श पर गिर गए. उसी दिन मलकीत की तहरीर पर राजू उर्फ तरविंदर उर्फ धर्मेंद्र उर्फ वीरू पुत्र तरसेम सिंह निवासी हिम्मतपुरा (अबोहर) पंजाब, हाल निवासी चक 42 एच (श्रीकरणपुर) राजस्थान के खिलाफ भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. थानाप्रभारी ने इस पूरे मामले की सूचना एसपी हरिप्रसाद शर्मा को भी दे दी. एसपी शर्मा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए श्रीकरणपुर के डीएसपी अमृतलाल जीनगर के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में विभिन्न थानों के 3 थानाप्रभारियों सहित 10 अन्य तेजतर्रार अधिकारियों व जवानों को शामिल किया गया. पुलिस के लिए बच्चियों की सकुशल बरामदगी व आरोपी की गिरफ्तारी एक चुनौती भरा काम था.
इस काम में पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था. पुलिस की 2 टीमें पंजाब व हरियाणा भेज दी गईं. राजू और उस की पत्नी घर पर नहीं मिले. पुलिस की चिंता काला सिंह की उन दोनों बच्चियों को ले कर थी, जिन्हें राजू अपने साथ ले गया था. राजू की तलाश के लिए पुलिस ने उस के रिश्तेदारों आदि के यहां छापेमारी शुरू कर दी थी. इस कोशिश में पुलिस को राजू के बारे में एक खास सूचना मिल गई. इस सूचना के बाद पुलिस ने हनुमानगढ़ जिले के शाहपीनी गांव में छापा मार कर राजू और उस की पत्नी यशोदा को हिरासत में ले कर थाना गजसिंहपुर ले आई. पूछताछ के लिए एसपी हरिप्रसाद शर्मा भी थाने पहुंच गए. पूछताछ करने पर राजू ने एसपी के सामने जो खुलासे किए, उन्हें सुन कर एसपी, सीओ अमृतलाल जीनगर सहित अन्य अधिकारी सन्न रह गए.
मक्कारी भरे चेहरे के पीछे छिपे शैतानी फितरत वाले राजू ने आधा दरजन हत्याओं सहित कई अन्य गंभीर अपराधों का खुलासा किया. एक के बाद एक हत्याएं करने की उस ने जो कहानी पुलिस के सामने उजागर की, वह इस प्रकार थी. पंजाब की अबोहर तहसील में एक गांव है हिम्मतपुरा. इसी गांव में रहता था तरसेम सिंह मजहबी सिख. तरसेम के 2 बेटे थे, निंदर सिंह व तरविंदर उर्फ राजू. पत्नी की असमय मौत के बाद तरसेम ने नजदीक के गांव की रतन कौर से दूसरी शादी कर ली थी. समय गुजरता रहा और बच्चे बड़े हो गए. रतन राजू के बजाय निंदर को ज्यादा प्यार करती थी. सौतेली मां के इस पक्षपातपूर्ण रवैये से राजू मां से नफरत करता था. कुछ समय बाद निंदर व राजू की भी शादी हो गई.
निंदर की पत्नी की अपेक्षा राजू की पत्नी कुलविंदर ज्यादा सुंदर थी. सुंदरता के अलावा वह हंसमुख व मिलनसार भी थी. उस की मीठी बोली व मुसकराहट ने अपने जेठ निंदर को अपना दीवाना बना लिया था. यह दीवानगी गुस्सैल किस्म के राजू से छिपी नहीं रही. उसे लगने लगा कि उस की पत्नी उस के बजाय उस के बड़े भाई निंदर को ज्यादा तरजीह देती है. इस से राजू को शक हो गया कि उस की पत्नी के निंदर के साथ अवैध संबंध हैं. राजू मन ही मन पत्नी को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा. फिर उस ने योजना के अनुसार दूध में जहर दे कर कुलविंदर को मौत की नींद सुला दिया. उस ने गांव में कहा कि पत्नी की स्वाभाविक मौत हुई है और आननफानन में उस का अंतिम संस्कार कर दिया. छोटे गांव का मामला होने के कारण मामला दब गया.
पत्नी की हत्या के बाद राजू का मन गांव से उचट गया. महत्त्वाकांक्षी राजू कुछ बड़ा बनने की चाहत पाले गांव छोड़ कर श्रीगंगानगर जिले में आ गया. भाई निंदर व सौतेली मां रतन कौर के प्रति उस के मन में उफनती नफरत घर छोड़ने के बाद और बढ़ गई थी. श्रीगंगानगर में राजू ने अपने लिए नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. काफी कोशिश के बाद भी जब उसे नौकरी नहीं मिली तो वह श्रीकरणपुर क्षेत्र के चक 42 एच में रह कर दिहाड़ी मजदूरी करने लगा. इस के अलावा वह इलाके में छिटपुट आपराधिक वारदातें भी कर लेता था. सन 2009 तक वह अपने इलाके का कुख्यात बदमाश बन गया. एक दिन किसी काम से उस की सौतेली मां रतन कौर उस से मिलने आई.
मां को देखते ही राजू आपा खो बैठा और उस ने एक लोहे की पाइप से मां के सिर पर वार किया. एक ही वार में रतन कौर नीचे गिर गई और थोड़ी देर में उस की मौत हो गई. इस तरह दिनदहाड़े उस ने एक और कत्ल कर दिया. रतन कौर की चीख सुन कर आए पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस ने राजू को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया. राजू को इस मामले में अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सजा होने के बाद राजू को जोधपुर की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था. इसी जेल में एक अन्य युवक भी सजा काट रहा था. इस युवक की विधवा बहन यशोदा महीने में एक दो बार अपने भाई से मिलने जेल आती रहती थी. यशोदा के तीखे नयननक्श राजू के दिल में गहराइयों तक उतर गए.
वहीं राजू भी यशोदा को भा गया था. इस के बाद यशोदा हर सप्ताह राजू से मिलने जेल पहुंचने लगी. मिलने के दौरान ही राजू व यशोदा ने अपने भावी जीवन को अपने रंगों में ढाल लिया. यशोदा को पता था कि राजू आजवीन कारावास की सजा काट रहा है, इस के बावजूद भी उस ने उस के साथ शादी करने की ठान ली. यशोदा ने भागदौड़ कर के राजू का एक माह का पैरोल स्वीकृत करवा लिया. जेल से बाहर आ कर राजू ने सब से पहले यशोदा से शादी की. शातिर राजू पैरोल अवधि बीत जाने के बाद भी जेल नहीं लौटा. वह यशोदा के साथ भूमिगत हो गया. प्रशासनिक सुस्ती के चलते राजू की फरारी की फाइल पर धूल जमती गई. मामला ठंडा होने पर राजू बेफिक्र हो कर इधरउधर घूमने लगा.
खाली बैठे रहने से राजू के सामने आर्थिक परेशानी आ गई. राजू जानता था कि मजदूरी करने से केवल पेट की भूख को शांत किया जा सकता है, ऐश की जिंदगी इस से नहीं जी सकते. बातों ही बातों में उस ने पत्नी के सामने अपने गुनाह भरे अतीत को खोल कर रख दिया. किसी प्रकार का अफसोस व्यक्त करने की जगह यशोदा ने राजू के कारनामों की न केवल प्रशंसा की, बल्कि उस ने भविष्य में अपना हर संभव सहयोग देने का आश्वासन भी उसे दिया. लंबा हाथ मारने की नीयत से राजू सन 2010 में श्रीगंगानगर चला आया. टैक्सी स्टैंड पर उस ने दरिया सिंह नामक टैक्सी चालक की बोलेरो कार हरियाणा जाने के लिए बुक कराई. दरिया सिंह उसे ले कर चल पड़ा. तभी रेवाड़ी के नजदीक राजू ने धोखे से वार कर के चालक दरिया सिंह को बेहोश कर दिया. मरा समझ कर उस ने दरिया सिंह को नजदीक की एक नहर में फेंक दिया.
किस्मत का धनी दरिया सिंह बच गया और नहर से निकल आया. दरिया सिंह ने इस वारदात की रिपोर्ट थाना रेवाड़ी में लिखवाई. काफी कोशिश के बाद भी पुलिस न तो दरिया सिंह की कार ढूंढ़ सकी और न ही राजू को. राजू ने उस बोलैरो कार को औनेपौने दामों में बेच दिया था. उन पैसों से राजू व यशोदा ने खूब ऐश की. इस वारदात के बाद राजू की हिम्मत और बढ़ गई. उस के दिलोदिमाग में अपने बड़े भाई निंदर सिंह के प्रति पहले की ही तरह जहर भरा हुआ था. उस ने मन ही मन भाई को भी ठिकाने लगाने का मन बना लिया. राजू ने किसी के द्वारा खबर भिजवा कर निंदर को अपने घर बुला लिया.
18 मई, 2014 को निंदर को वह किसी बहाने हनुमानगढ़ के टिब्बी गांव ले गया. गांव के बाहर निकलने के बाद राजू ने पीछे से रौड का वार कर के निंदर की भी हत्या कर डाली. उस की लाश एक प्लास्टिक के बैग में भर कर उस क्षेत्र में बहने वाली केएसपी नहर के नजदीक खदानों में फेंक दी. बाद में वह लाश टिब्बी पुलिस ने बरामद कर ली. जब लाश की पहचान नहीं हो सकी तो पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. मृतक की शिनाख्त न होने पर यह मामला भी पुलिस के ठंडे बस्ते में चला गया.
दिसंबर, 2014 को एक दिन राजू संगरिया बस द्वारा कहीं जा रहा था. उस के बराबर में बोलांवाली गांव का रहने वाला रणजीत सिंह बैठा था. दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बातों ही बातों में राजू को यह पता लग गया कि रणजीत की खेतीबाड़ी की अच्छीखासी जमीन है और वह हैसियतदार आदमी है, लेकिन किसी वजह से उस की शादी नहीं हो पा रही है. तभी राजू ने उसे झांसे में लेते हुए कहा, ‘‘अरे भैया, शादी करवाना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है. मैं एक नहीं, दोदो बीवियां ला कर दे सकता हूं. पर मेरी 2 शर्तें हैं.’’
उतावलेपन से रणजीत ने पूछा, ‘‘क्या?’’
‘‘पहली बात तो यह कि बीवी की जाति व उम्र के बारे में चूंचपड़ नहीं करोगे और दूसरी यह कि तगड़ा खर्च करना पड़ेगा.’’
दोनों में पैसों पर बातचीत होने लगी तो रणजीत ने रजामंदी जाहिर कर एक बीवी के लिए एक लाख व 2 के लिए डेढ़ लाख नगदी देने का भरोसा जता दिया. राजू ने हामी भरते हुए रणजीत का पूरा ठौरठिकाना नोट कर लिया.घर आ कर राजू ने रणजीत के साथ हुई बात पत्नी को बताते हुए पूछा, ‘‘यशोदा, तेरी नजर में कोई लड़की हो तो बता, उसे उठा कर लाना मेरा काम है. अगर यह काम हो गया तो एक ही झटके में एक-डेढ़ लाख रुपए मिल जाएंगें.’’
पर यशोदा को कोई लड़की दिखाई नहीं दे रही थी. दोनों लड़की के लिए घंटो मगजखपाई करते रहे, पर समाधान नहीं मिल रहा था. अचानक राजू को अपनी बुआ छिंदरपाल कौर के परिवार का ध्यान आया. वह उछल पड़ा, ‘‘अरे यशोदा मेरी बुआ की पोती गुरप्रीत इस के लिए ठीक रहेगी.’’
गुरमीत को कैसे लाया जाए, इस बारे में दोनों ने योजना बनाई. योजना के अनुसार पत्नी को ले कर वह बुआ के घर पहुंच गया और भतीजी की शादी की खरीदारी के बहाने से बुआ व उन के पोतेपोतियों को अपने साथ ले आया. राजू उर्फ तरविंदर ने बताया कि उस ने बेहोशी की दवा खिला कर बुआ को पहले बेहोश किया, फिर उन के सिर में रौड मार कर उन की हत्या कर दी. उन का शव ठिकाने लगाने के लिए एफएफए नहर में बहा दिया. बाहर घुमाने का बहाना बना कर राजू दोनों नाबालिग बच्चियों, गुरप्रीत व मनीषा को बोलांवाली के रणजीत सिंह को बेच आया. उस समय उस के पास पूरे पैसे नहीं थे, इसलिए वह पेशगी के रूप में मात्र 25 हजार रुपए ही दे पाया था. बाकी रकम बाद में देनी तय हुई थी.
घर पर दादी और बहनों के नहीं होने पर मासूम रवि रोने लगा था. उसे संभालना यशोदा व राजू के लिए मुश्किल हो रहा था. राजू को यह शक भी हो रहा था कि रवि ने बुआ के कत्ल को अपनी आंखों से देख लिया है. इसलिए अपराध दर अपराध करते रहे राजू के लिए मासूम रवि का गला घोंटना भी मच्छर मारने जैसा था. पहली जनवरी, 2015 की रात राजू ने मासूम रवि को अपने पटके से गला घोंट कर मार डाला. उस की लाश को भी वह एफएफए नहर में फेंक आया. पुलिस ने राजू की निशानदेही पर गुरप्रीत व मनीष को उस के खरीदार रणजीत सिंह के घर से बरामद कर लिया था. रणजीत सिंह को भी पुलिस ने बलात्कार व अन्य आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया.
दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर के पुलिस ने उन्हें रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने उन की निशानदेही पर तमाम सुबूत जुटाए. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश करने के बाद केंद्रीय कारागृह जोधपुर भेज दिया. राजू के खुलासे होने के बाद टिब्बी पुलिस भी हरकत में आ गई. 20 फरवरी, 2015 को पुलिस ने प्रोडक्शन वारंट के आधार पर टिब्बी पुलिस राजू को जोधपुर जेल से टिब्बी ले आई. उधर श्रीगंगानगर पुलिस ने हरियाणा पुलिस को भी गाड़ी लूट प्रकरण में अभियुक्त की गिरफ्तारी की सूचना भेज दी.
आपराधिक मनोवृत्ति के राजू व यशोदा ने कई बेगुनाहों की जानें ली थीं. इस मामले के खुलासे पर एसपी हरिप्रसाद शर्मा ने जांच टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है. Rajasthan True Crime
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.






